Book Title: Kashay Author(s): Hempragyashreeji Publisher: Vichakshan Prakashan Trust View full book textPage 7
________________ समर्पण पारसमणि के स्पर्शमात्र से, लोहा तत्क्षण हेम बने। चिन्तामणि चिन्ता को चूरे, 'दिनमणि हरे अन्धेर घने। नभमणि आलोकित नभमण्डल, तारक धूमिलहीन बने। संत शिरोमणि मणिप्रभामय, गुरु हरे पातक घने। ज्यों हेमनिर्मित मुद्रिका में, जड़ा हुआ हो मणिरतन। ज्यों बावनाचन्दन से सुरभि - युक्त कोई सघन वन। ज्यों तारामध्ये चन्द्र शोभित, हो रहा हो नीलगगन। त्यों संतमध्ये संत शिरोमणि, गुरु विचक्षण को नमन! गुरुचरणरेणु साध्वी हेमप्रज्ञाश्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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