Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
-कत्सिगेयाणुप्पेक्खा -
[ गा० १६४० सब-जहण्णं आऊ लद्धि-अपुण्णाणे सष्ट-जीवाणं । मज्झिम-हीण-महुत्तं पजत्ति-जुदाण णिकिटु ॥ १६४ ॥ देवाणे णारयाणं सायर-संखा हवंति तेतीसा। उक्टुिं च जहणं वासाणं दस सहस्साणि ॥ १६५ ॥ अंगुल-असंख-भागो एयक्वं-चउक्ख-देह-परिमाणं । जोयणे-सहस्स-महियं परमं उकस्सयं जाण ॥ १६६ ॥ पारस-जोयण संखो कोस-तियं गोभियों समुहिट्ठा । भमरो जोयणमेगं सहस्से संमुच्छिमी मच्छो ॥ १६७ ॥ पंच-सया धणु-छेही सत्तम-णरए हवंति णारइयाँ। तत्वो उस्सेहेण य अद्धद्धा होति उवरुवार ॥ १६८ ॥ असुराणं पणवीस सेसं णव-भावणा य दह-दंडं । वितर-देवाण तहा जोइसिया सत्त-धणु-देहा ॥ १६९ ॥ सुग-युग पदु गुम तुम कप्प-सुराणं सरीर-परिमाणं । सत्तच्छे-पंच-हत्था चउरो अद्धद्ध-हीणा य ॥ १७ ॥ हिद्विम-मझिम-उपरिम-गेवंजे तह विमाण-चउदसए । अद्ध-जुदा ये" हत्था हीणं अद्धद्धयं उवरि ॥ १७१॥ अवसप्पिणीए पढमे काले मणुया ति-कोस-उच्छेहा । छहस्स वि अवसाणे हत्य-पमाणा वियत्था य ॥ १७२ ॥ सब-जहण्णो देहो लैंद्धि-अपुण्णाण सच्च-जीवाणं । अंगुल-असंख-भागो अणेय-भेओ हो सो वि ।। १७३ ॥ वि-ति-चउ-पंचक्खाणं जहण्ण-देहो होइ पुग्णाणं। अंगुल-असंख-भागो संख-गुणो सो वि उवरुवार" ॥ १७४ ॥ अणुबैरीयं "कुंथो मच्छी काणा य सालिसित्थो य ।
पजत्ताण तसाणं जहण्ण-देहो विणिहिहो ॥ १७५ ॥
बभाउ, म माउं, ग भायु। २लमसग -यपुण्णाण । ३लमग मुहसं। १५ निकिटुं । ५ ग देवाण। ६ गतेसीसा। बाउस । अंगुल इत्यादि। ८ ल एगक्ख -। ९य जोहण । १० जोहण । १७ कोस । १२ लमसग गुम्भिया। १३ ब जोशणमेकं । १५ लग सहस्स, म सहस्सा। १५लमसग समुच्छिदो। १६ ब पंचसधणुच्छेहा (!)। १७ लमग गेरड्या । १८ व हुंति। १९॥ जोयसिया। २. सत्तचपंच, सत्तछहपंच] १ बजे, मगेविजे। २२ [?]. २०म उधस। २५ म लखियपुषणाण (?)। २५ ग उवरूवरि । २६ष भण्णुधरीयं, लम प्राणुष,' स बाणुद्ध, ग अणु। २७ लग कुंधुमच्छा, मस कुंयं (?)। २०य देहप्रमाणं । लोय इत्यादि ।

Page Navigation
1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589