Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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- कन्तिोयाशुष्पेक्खा -
[गा० ३९९जो रयणत्तय-जुदो खशादि-भावहिं परिणदो णिचं ।। सत्य वि मज्झत्यो सो साह मानदे चम्मी ।। ३९५ । सो चेव दह-पवारो वादि-भावेहि सप्पसिद्धेहिं । ते पुणु भणिजमाणा मुणियथा परम-भत्तीए ॥ ३९३ ॥ कोहेण जो ण तप्पदि सुर-णर-तिरिणहिँ कीरमाणे वि । उक्सग्गे वि रउद्दे सम्म समा णिम्मला होदि ॥ ३९४ ॥ उत्तम-गाण-पहाणो उत्तम-तवयरण-करण-सीलो वि । अप्पाणं जो हीलदि मदव-रयणं भवे तस्स ॥ ३९५ ।। जो चिंतेइ ण वफ या कुणादि बंर जंपदे वकं । ण य ग्रोवदि णिप-दोसं अजब-धम्मो हवे तस्रा ॥ ३९६ ॥ सम-संतोस-जलेणं जो धोवदि तिव-लोह-मल-पुंजं । भोयण-गिद्धि-विहीणो तस्स सउर्च हवे विमलं ॥ ३९७ ।। जिण-वयणमेव मासदि तं पालेदु असकमाणो वि । ववहारेण चि अलियं ण वेददि जो सच-बाई सो ॥ ३९८ ।। जो जीव-रक्षण-परो गमणागमणादि-सब-कजेमुं। तण-छेद पि ण इच्छदि संजम-धम्मो हवे तस्स ॥ ३९९ ॥ इह-पर-लोय-सुहाणं णिरवेक्खो जो करेवि सम-भायो । विविहं काय-किलेस तव-धम्मो णिम्भलो तस्स ॥ ४० ॥
जो चयदि मिट्ठ-भोज उवयरणं राय-दोस-संजणयं । वैसर्दि ममत्त-हेदुं चाय-गुणो सो हवे तस्स ॥ ४०१॥ ति-विहेण जो विवज्जदि चेयणमियरं च सचहा संगं । लोय-ववहार-विरदो णिगंथत्तं हवे तस्म ॥ ४०२॥ जो परिहरेदि संग महिलाणं वे पस्सदे रूवं ।
काम-कहादि-णिरीहो" णव-विह-वभ" हवे तस्स ।। ४०३ ॥
यभावेण। २लमसग सुश्ख मारहि। ३ स होहि (ही!)। वह ५लसग कुणदिण। ६ लमसग जंपए। गतिठ (:! )[ = तृा]। लमसग तस्स सुचित्तं हथे। ९ व जो ण यदादि। १० घ "गमणाइ। ११ लारा कम्मे । १२ व निणयं । १३ ल (मस!) म संयमभाउ (को), ब मंजम्म। १४लग कास। १५ ससाके. पा गाथा नास्ति । १६म विसयविसमत्त । 10 मसुयो (?)। १८ मस बिहार, ग चे (?) बहार।.गण । २० ल (स)ग जिवची, मणिभत्तो। २, लमसग याहा बभं ।

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