Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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-टीकोत्तपादिसूची
४५१
३३९
[शुभचन्द, ज्ञानार्णव ३९-१]
आर्तध्यानविकल्पा आर्हन्त्यमहिमोपेतं आलप्पालपसंगी आलोयण पडिकमणं श्रावलिअसंखसमया
१५३
[बट्टकेर ] यत्याचार [ भूलाचार ५-१६५] [नेमिचन्द्र ] गोम्मटसार [जी० ५५३] [जंबूदीवपण्णती १३-५] [देवसेन, भावसंग्रह ५१५] [नेमिचन्द्र, गोम्मटसार जी०६.६] [! देवसेन, भावसंग्रह ५२१]
१४३
२६६
वसुनन्दि [-बष्टकेर ] पत्याचार[ मूलाचार ५-१५०] ३३० [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-२८]
३६१ शुभचन्द्र , शौनाव ४०-२४
[जिनसेन, महापुराण २१-२५] [चामुण्डराय] चारित्रसार [पृ० ७५-६]
३६१
आहारमओ देहो आहारवग्गणादो आहारसणे देहो आहारो भुज्यते दुग्धादिक इत्तिरियं जावज्जीवं इत्थं चुराया विविधप्रकारः इत्यसौ सतताभ्यास इत्युक्तत्वाद्धितान्वेषी इत्युक्तमातमार्तास्म इदं रौद्रध्यानचतुष्टयम् इमा प्रसिद्धसिद्धान्त इह परलोयत्ताणं उम्गमलप्पादणएसणा उच्छिष्ट नीचलोका उत्तमखेत मीयं उत्पादन्ययध्रौव्ययुक्तं उत्तमममममहर्ण उदये दु अपुष्पस्स य उहिद्धपिरविरदो उपचित्यामः पुरुषहितो उपशमितकमाये उपसर्गे दुर्भिक्षे उवगृहादिक्ष पुष्युत्ता उपसप्पिणि भवसप्पिणि उक्समसहुमाहारे
बरवडपिपलपिंपरीय सम्वधिस्तात् तिर्यम् अधिस्तिर्यग्व्यतिक्रम जांघो रेफर्सरुद्ध एक एव हि भूतारमा एकमेवाद्वितीय ब्रह्म एकस्मिनाविरोधेन एक द्रव्यमवावा
[वटकर, मूलाचार २-५३]
२३२ [शिवार्य, भगवती आ. २३०, मूलाचार ४२] ነን። [यशस्तिलक,पृ. ४.४]
२६४ [भाषसंग्रह ५०१] उमाखाति [तस्वार्थसूत्र ५-३.] १५६, १६८ बसुनन्दि[श्रावकाचार २८.]
२७७ गोम्मटसार जी. का० १२१] [वसनन्दि, श्रावकाचार ३१३]
२८९ चारिश्रसार
८८
[समन्तभा, रत्नकरण्डक. १२२]
२८७ [मगवती आराधना ११४, मूलाचार ३६५] १४५ [भगवती आराधना १७७८; उड़तेयं सर्वार्थसिद्धौ २-१.] ३४ गोम्मटसार [ जी का• १४२] [वसुनन्दि, प्राक्काथार ५८]
२३६ समन्तभद्र, [र. श्रा० ] [तस्वार्थसूत्र-३०]
२४५ [शानार्णव ३८-८] [ ! प्रविन्दु १२] श्रुति [ ! छान्दोग्य ६-३-१]
१५६, १२२ [शुभचन्द, मानार्णव ४२-२७१४ ]
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