Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 573
________________ २१५ ຊ ານ ३११ -टीकोक्तपादिसूची[गोम्मटसार मी. का. १३८] २३४ यसनन्दि [ श्रावकाचार २०५] २३६ २६३ [वसनन्दि, धावकाचार २२०] योगेन्द्रदेव [ परमात्मप्रकाश १९.] [बसुनन्दि, श्रावकाचार ३०० २८५ गोम्मटसार [१२४] [गोम्मटसार जी. का. ६.१,बसनन्दिवावकाचार १८] १३९ [मूलाकार ९-३६] ३०१ [परमात्मप्रकाश १८७] [शुभचन्द, ज्ञानार्णव २५-३५] २६३ २२० [घसुनन्दि, श्रावकाचार २२९] २८८ वसनन्दि [श्रावकाचार २१४] १४१ [? वसुनन्दि, श्रावकाचार २८८] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४०-३०] [अष्टाध्यायी १, ४, १.६] [एकीभावस्तोत्र १२] आर्षे [जिनसेन, महापुराण २१-३६] ३६१ [तस्वार्थसूत्र ९-२०] [शानार्णव ३८-६५] २७४ भगवती साराधना [२११] [तत्वार्यस्त्र ७-२५] २२९ [तरवार्थसूत्र १-१६ त्रैलोक्यसार [३] [शुभमन्द्र, ज्ञानार्णव २६-२९] [गोम्मटसार जी. का. ६.२] [गोम्मटसार जी. का. १७६] २६३ २७४ पच वि इंदियपाणा पंयतु थारवियले पंचेबरसहिदाई पानापाने समायाते पादोदयं पवितं पाचे णारव तिरिट पुढो बापुडो वा पुढविदगागणिमारुद पुत्वीजलं च छाया पुलवीय समारंभ पुण्णेण होइ बिहवो पुण्यानुष्ठानजातैरमिलपति पुत्रदारादिभिर्दोषे पुदलपरिवार्य परतो पुप्फंजलिं खिवित्ता पुग्धमुहो होदि जिणो पुस्तकासापामा पुष्युत्तविहाणेणं पृथग्भावमतिक्रम्य प्रहासे भन्योपपदे प्रापई तब जुतिपदैः प्राध्यप्रायोमैनोश प्रायश्चित्तविनयवैयावृत्य प्रोथस्सपूर्णचन्द्राभ बत्तीस किर कवला बन्यवधछेदाति बहुबहुविधक्षिप्रानिःसत बहुमजादेसभागम्हि रहारम्भपरिग्रहेषु बावरवादरचादर जायरसहुमा सेसि बालय णिसुण वर्ण बामपन्थविहीना मायेचु शम वस्तु बीमो भागो गेहे बेसत क्सय चोइस गेधेन दुर्लभत्त्वं प्रवीति मध्यमं कीमो ब्रह्मचारी गृहस्थश्व ३७८ ३२४ ३६३ २८३ [रत्नकरण्डश्रावकाचार १४५] [ भावसंग्रह ५७९] [मूलाचार १२-७८, जंबूरीवपण्णत्ती ११-३५३] २८३ २०. १.४ २०४ १२३ उपासकाध्ययने [ आदिपुराण ३५-१५२, सागरपमभूितटीकायामुतोऽयं लोकः -२०]

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