Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४६०
-कसिगेयाणुप्पेत्ता
[एतत्समशः श्लोकः ज्ञानार्णवे (१८-११)]
३७१ ३९६
१२
२९१
कुन्दकुन्द, मोक्षप्रामृत [७६] [शानार्णव ३५-१९]
७५
३७७
[गोम्मटसार जी. का. ६०७]
४०
[ देवसेन, भावसंग्रह ५१८]
३७१
२८७
[वसनन्दि, श्रापकाचार ३०३ 1 [तस्वार्थसार पीठिका ४५] [शुभचन्द्र, शामाणष २५-३४]
३६.
३७४
[ज्ञानार्णव ३८-६९] [अमचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-५५] [भाषसंग्रह ५..] [वसुनन्दि, धावकाचार २९१]
ब्रह्मा कैविसरिः कश्चिद भधरकपदाधीचा भडारक श्रीशुभचन्द्रदेव भरहे. दुस्समकाले भस्मभावमसौ नीत्वा माउन्जा मि सुमं वा भामण्डलादियुक्तस्य भासमणवागणारे नि जिनं जगति कर्म भुक्खसमा ण हु पाही भुक्तिमुस्यादिदातार भुजेदि पाणिपत्तम्मि भेदेनैवमुपानीय मोगा भोगीन्द्रसेव्याः भोजने षड्से पाने प्रमन्त प्रतिपत्रेषु मङ्गलशरणोत्तमपद मज्यिमपते मजिसम मणषयणकायकद मत्तेमकुम्भवलने भुवि मधमासमधुरत्यागः मनोवचनकायकमैगाम् मनभूता किलादाय भमति यनिवजामि मरणसम त्यि भयं मरतु व जीवहु मलगी मलयोनि मलिनं मलसगेन मस्तके बदने कण्ठे मातशोधमदेवध मानखंभाः सर्रालि माया तिर्यम्पोनिषेति मा सहमा तुसह मिच्छत वेदरागा तहेर मिच्छादिट्टी पुरिसो मिथ्यात्ववेदहास्यादि निध्योपदेशरहोभ्याख्यान मुख्योपचारमेवेम मुणिमण गुरुवकर्ज मुहभूमीजोगद
२१३
३७१
[एतस्सदशः श्लोकः शानार्णवे (३८-१२)] कुन्दकुन्द, नियमसार ९९]
२६५
[श्ववमसार ३-१४ [रमकरणश्रावकाचार १४३]
२८२ [अनगारधर्मामृत २-५९]
२१६
३७२, २७६ [रजकरसश्रावकाचार १४] [महापुराण २३-१९२]
३७६ [तस्वार्थस्त्र -१६]
३९२ [मूलाचार ५-२१% भगवती आराधना १११८] ३५४ [भाषसंग्रह ४९९]
२०३, २०३ [तस्वार्थसूत्र -२६]
२४१ [तत्वानुशासन ४७] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २९१]
५८
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