Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४५८
-करियाणुप्पेरला
३५१
तस्वार्थस्त्र [वृत्ति ५-६] [बाप्तमीमांसा १०८] [भालापपति]
१६., १९१
१२३
नासाग्रे निश्चल बापि मास्ति अस्य किचन निरपेक्षा नया मिथ्या निर्षिशेष हि सामान्य निवादं कुलरों वापि निषादर्षमगान्धार निकलः परमात्माई निमल्यो ब्रजी नृणामुरसि मन्द्रस्तु नेत्रदन्दे श्रवणयुगळे -नेह मानास्ति
१२३
[अमरकोश ६-१] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४०-३०१] [ तत्वार्थसूत्र ७-१८]
३०३
१२३
२७७
[शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३०-१३] [गृहदारण्यक ४-४-१९, सर्व चै सल्विदं ब्रा नेह नानास्ति किंचन प्र. भा. २-१२] [वसुनन्दि, श्रावकाचार ३०४ ] [वसुनन्दि, श्रावकाचार २८२] [वनुनन्दि, श्रावकाचार २८७] गोम्मटसार [जी. का. १५८] नैमिनम, [गोमाता जी...१०] गोम्मटसार [बी कां० १९९] [शुमचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-३०]
-७४
३७२
१२३
[शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३५-५५] [करण्डश्रावकाचार १०७] [वसनन्दि, श्रापकाचार २२५] [वसनन्दि, श्रावकाचार ३३९] गोम्मटसार मी.कां. १४४] [ संग्रह १-१९७]
३४९
पक्खालिदूण पत्तं पक्वालिदूण क्यम् पसे अद्विता पजतमणुस्साण तिचउत्थो पजाम य उदये पजत्ती पहरणं जुगर्व पागुरुनमस्कारलक्षणं पानामश्च मुखे यस्ताछ पापर्णमयी विद्या पद्यानो पापानामल किया पहिमहमुचट्टाणं परिजगणेहिं तणुजोय पढमुषसमसहिदाए पढमे दंचं कुपद पहमे पठन णियमा पदमे सत्त सि छवं पथक्षीस सोल छप्पण पत्तस्स दायगस्स पत्त बियपरदारे पदस्थं मनवाक्य पदान्यालम्ब्य पुण्यानि पखव्येषु सर्वेषु परस्परोपग्रहो बीवानाम् परे केवलिनः परे मोक्षहेतू पर्वम्याटम्यां च ज्ञातव्यः पव्वेन इरिथमेवा पंचवर्ण कोडीण
त्रैलोक्यसार [ २०१] [व्यसंग्रह ४५] [भगवती आराधना २२१] [सुनन्दि, श्रावकाचार २२६]
રૂ૮૮ २१८
१०९ २७३, ३७०
፡ २६३
शानार्णव ३०-13
३७० ३२८
[तस्वार्थ ] सूत्रे[५-२11 [तस्वार्थस्त्र ९-३८ [तरवार्थसूत्र ९-२९] समन्तमद्रस्वामि, [रस्नकरणश्रावकाचार १०६] [वमुनन्दि, श्रावकाचार २१३]
३५८ ३५०
२६२
२४५ ३०४

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