Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 571
________________ --टीकोक्तपधादिमी कल्पे [कल्पसूत्र, सामाचारी सूत्र, १५,२५] दुद्धं पहियं णवणीय दुर्गतापायुषो बन्धे दुर्गन्धे चमंगते गणमुसशिखरे दुर्णयकान्तमारुता १६०,१९० [आलापपद्धति ८] [त्रिलोकसार ५४३ j ។។។ [कानसूर्योदयनाटकेऽप्युदतेय गाथा, पत्र २६] [परमात्मप्रकाश १८८] [ज्ञानार्णव ३८-९] ३२६ [सागारधर्मामृतदीकायाम् ७-२०, चारित्रसार पृ. २२] २९. वसनन्दि, श्रावकाचार ३२] [परमात्मप्रकाश १४] १३. [ देवसेन, भावसंग्रह '५१५] २६५ २१५, २३३ ३८३ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४२-२५] अष्टसहस्री [आप्तमीमांसा ७१] ११९ १८७ देवगुरुधम्मकले देवहूँ सत्य देवासुरमतं मिथ्या देवीणं देवाण देशप्रत्यक्षविकेवल बेहतवणियमसंजम देहविभिषणउ पाणमउ घेहाशुचिं खेतसि भावयन्वं देहो पाणा रूर्व घृतं मासे सुरा वेश्या व्य चेक गुणं चैक द्रवपर्याययोरैक्यं इन्माणां तु यथारूपं द्वारसतिपिलीयन्ते द्विपश्यतुष्पदसारं धनधान्यादिअन्य परिमाय धनश्रीसत्वघोषौ च धम्माधम्माजीणं अम्मिलाणवणयणं धम्मे वासयजोगे धम्मो मंगलमुकिलु धम्मो पत्थुसहाचो धर्मध्यानविशेषा धर्मध्यानस्य विझेया धर्मस्य मूल दया धर्म सधर्मदातार धर्मः सर्वसुखाकरो धर्माधर्मनभःकाला धर्मामृतं सतृष्णः धर्मेषु स्वामिसेवायां घात्री बाला सती नाथ न च परदारान् गच्छति न सभ्यक्त्वसमै किचित् मानाखभावसंयुके भासाकण्ठमुरतालु खा.का.स. २ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ४२-५२] [शुभचन्द, ज्ञानाव २६-२७] [रमकरण्डश्रावकाचार ६१] [ रनकरण्डश्रावकाचार ६५] [गोम्मदसार जी0 का० ५६८] [ वसनन्दि, श्रावकाचार ३०२] १५. दशसक्ति, (प्राकृत) चारित्रभक्ति, क्षे.५] ३.९, ३२५ [खामिकार्तिकेयानुप्रेक्षा ४५८] ३९३ २२५ [चारिप्रसार पृ.१] २१२ २२५,३२४ १५४ [चारित्रसार पृ. 1, दशभक्ति, चारित्रभक्ति, क्षे. [आलापपद्धति २] [ रत्नकरण्डश्रावकाचार १.८] [यशसिलक ८, पृ. ४०५] २६२ २६६ [ रखकरण्डश्रावकाचार ५९] [रनकरण्डथावकाचार ३४] [ आलाएपद्धति १.] १८५

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