Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
केनोपायेन घातो भवति केवलणाणसहाको कौपीनोऽसौ शनिप्रतिमा कैवल्यबोधनोन् कृत्या पापसहस्राणि कृष्णमीलाद्यस श्या कृष्णलेश्याश्लोपेतं क्रमप्रवर्तिनी भारती करतादण्डपारुष्य क्षासिकमेकमनन्त क्षायोपशमिको भावः क्षुधा तृषा भयं देषो
१८०
-टीकोक्तपद्यादिसूची
४५३ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-७] [कुन्दकुन्द, नियमसार ९६] [षट्मामृतटीकायामुद्धृतोऽयं श्लोकः ३-२१] २८९ रविचन्द्र, आराधनासार
३९१ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव ३८-४६] [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २५-४० ]
३६१ [शुभचन्द्र] ज्ञानार्णव [२६-३६]
२६३
२२२ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-३७] [ श्रुतभक्ति २९ [ शुभचन्द, ज्ञानार्णव २६-३९ ]
३६४ [एतत्सशःश्लोको यशस्तिलकचम्बामुपलभ्यते , पृ. २७४]
२२५ [तत्त्वार्थसूत्र -२९] [ रखकरण्ठश्रावकाचारटीकायामपि ५-२४]२०३,२२५,२८३ लिब्धिसार ३]
२११ [तिसोयपण्मनी १-९५, मूलाचार ५-३४. गोम्मटसार जी. का. ६.३]
१४., १९५ [गोम्मटसार जी० को० ६४५]
२१८ [ मूलाचार ५-१५५; भगवती माराधना २१५]
२.४ [शुभचन्द्र, ज्ञानार्णव २६-८] [वसुनन्दि, श्रावकाचार ३१.]
२८७ [ वसुनन्दि, श्रावकाचार २८९] [उद्धृतेयं गाथा सर्वार्थसिद्धौ ५-३०]
१७३ [अमिताति, द्वात्रिंशतिका १] [घसुनन्दि, श्रावकाचार २८३] [मूलाचार २१६ ट. १८५, गोम्मटसार-जी-कां०
क्षेत्रमास्तुहिरण्यस्वर्ण क्षेत्रं वास्तु धन धान्य खोचसमविसोहीदेसण संघ सयलसमस्य
खीणे देसणमोहे जे खीरदधिसप्पितेलं ख्यातः श्रीसकल्पविकीर्ति गगनजलधरित्रीचारिणां गंपूण गुरुसमी गंतूण णियबगेह गुण इदि दवविहाणं गुणिषु प्रमोदम् गुरुपुरदो किरियम गूडसिरसंधिपच्वं
[समन्तभद्र, र० श्री. १४७]
२३.
गृहतो मुनिवनमित्वा गोधूमसालिपववर्षय गोपृष्टान्तनमस्कारः गोयरपमाण वायग गोसवे सुरभि हन्यात गोहेमं गजवाजिभूमिमहिला प्रहणधिसतरण प्रामान्तरात्समानीत घणवाइकम्ममहणो धनं तु कांस्पतालादि
[यशस्तिलक ६, पृ. २०२] यत्याचार [ मुलाचार ५-१५८] [१ यशसिलक ७, पृ. ३५८]
२६३
२६२
[रमकरण्डश्रावकाचार १२.] [यक्षस्तिलक आ, ८,पृ. ४.४] [शानसार २८]
२६४
१२१

Page Navigation
1 ... 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589