Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४३०
- कत्तिगेग्ररणुःपेक्खा
[गा० ३७१जो कुणदि काउसग्गं बारस-आवत्त-संजदो धीरो। णमण-दुर्ग पि कुणतो चदु-प्पणामो पसण्णप्पा ॥ ३७१ ॥ चिंतंतो ससरूवं जिण-विवं अहब अक्खरं परमं । झायदि कम्म-बिवायं तस्स वयं होदि सामइयं ॥ ३७२ ॥ समि-तेरसि-दिवसे अबरण्हे जाइऊण जिण-भयण । किया किरिया-कम्म उववासं चउ-विहं गहिय ॥ ३७३ ॥ मियाफार चशा रहिं गसिजन सम्पमिताए। पघुसे उद्वित्ता किरिया-कम्मं च कादूण ॥ ३७४ ॥ सत्थब्भासेण पुणो दिवसं गमिऊण बंदणं किया। रत्तिं णेदूण तहा पचूसे बंदणं किया ॥ ३७५ ॥ पुजण-विहि च किच्चा पत्तं गहिऊण वरि" ति-विहं पि । भुंजाविऊणे पत्तं मुंजतो पोसहो होदि ॥ ३७६ ॥ एक पि णिरारंभ उववासं जो करेदि उपसंतो। बहु-भव-संचिय-कम्म सो णाणी खंबदि लीलाए ॥ ३७७ ॥ उपवास कुवंतो आरंभ" जो करेदि मोहादो। सो णिय-देहं सोसदि ण झाडए कम्म-लेसं पि ॥ ३७८ ॥" सवित्तं पैंत्त-फलं छल्ली मूलं च किसलयं बीयं"। जो ण ये भक्खदि णाणी सचित्त-विरदो हवे सो दु॥ ३७९ ॥ जो ण य भक्खेदि सयं तस्स ण अण्णस्स जुज्जदे दाउं।। भुत्तस्स मोजिदस्स हि णस्थि विसेसो जदो को वि ॥ ३८ ॥ जो वजेदि सचित्तं दुज्जय-जीहा विणिजियो तेण । दय-भावो होदि किओ जिण-वयणं पालियं तेण ॥ ३८१ ॥"
लमसग कुगइ। २मस पाउत्त। ३ लमसग करतो। ४थ सामार (?) । सत्तम इत्यादि। ५ब सत्तम । ६ सयऊण । लमसग किरिया कम्मं काऊ (उ!), व किया किरिया-। 4[चविह], सर्वत्र तु चडब्धिहं। ९ वग गहियं । १० व बिताइ । ११ का १२वणेऊन । १५ व पूजण। १४ म तहय । १५ ग भुजाविण । १६ ब खदि, ग खविद । १७ में आरंभो। १८बझाडह। १९ ब पोसह । सञ्चितं इत्यादि । २० ग सचिस पत्ति-। २१ लसग बी, मबी। २२ व जो य णय । २३ लमसग सचित्तविरसो (31)हये सो वि। २४ लमसम तदो। २५ स .विणिजिन्दा। २६ ब दयभायो विय अजिउ (?)। २७ व सचित्तविरदी । जो चउबिह इत्यादि ।

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