Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
-गाहाशुभमणिया
गावर बदुगदिमम्बो सपणी चितंतो ससरुवं जिणविध
४८९
छिन तिलतिलमित्त
१८.
२१०
१९२ २८४
२४३
गाथा
गापा जं संगहेण गहिद बाजिता संपत्ती भोषण जा सासया लच्छी जिणवयणभाषण जिणवत्यणमेव भासदि जिणवणेयम्गमणो जिनसासणमादप जीवस्स पिच्छयादो धम्मो जीवस्स बहुपयार
जीवस्स वि णाणस वि १७९
जीवाण पुगालाणे जे जीवा विदु जीवाणं
जीवा हवंति तिबिहा २१५
जीवो अपंतकाल बस जीवो अणाइणिहणो जीवो णाणसहाको
जीवो ये हवइ मुगा २५११
जीवो वि हवे पाच जौवो हवेइ कना जे जिणक्यणे कुसला जेण सहावेण जदा जो अणुमणणं म कुणदि जो अण्णोषण एवेसो जो अत्यो पडिसमयं जो अप्पाणं जाणवि जो अहिलसेदि पुग्ण जो आयरेण मण्णदि
जो आरंभ ण कुणदि २२५ जोइसियाण विमाणा २६१ जो उपएसो दिजादि
जो उवयरदि जीणं
जो एगेग अत्यं २५४
जो जयकारियमोयण २५१ | जो कुपदि कासगं
अइदेको विच रक्खादे बह पुन सुयसहाया जत्य गुणा सुविसुद्धा जत्य ण कलयलसहो अदि जीपादो भिण अदि ग य हवेदि जीवो अदब इवदि सम्बटू जाद महादि सा सत्ती यदि दग्ने पजाया अदि बत्युदो विमेदो बादि सध्यमेव माण जदि सम्बं पि असतं अम्म मरण सम जलयुम्युयसारिच्छ बामलितगतो जह जीयो ऋणइ रई जह लोणासणई
इदिएहिं गिन किषि वि उप्पण जंकि पिण दिम जं अस्स अम्मि देसे जंजाणिजइ जीवो
परिमाणं कीरदि जबत्यु अणेयंत तं जंवत्थु भयंते एयंत जसवर्ष सत्पा असम्बलोमसिहं जं सम्वं पिपयासदि जे सम्बंपिय संत
१५८ १८५
४५७
२७
२१७
२६७
२८५
१६
२४०
२८४१

Page Navigation
1 ... 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589