Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
View full book text
________________
-कतिगेवाणुष्पेक्खा
[गा० ४८६केपल-णाण-सहायो सुहुमे जोगम्हि संठिमओ काए । जं झायदि स-जोगि-जिणो तं तिदियं सुहुम-किरियं च ॥ ४८६ ॥ जोग-विणासं किया कम्म-चउक्कस्स खवण-करणहूँ। जं झायदि 'अजोगि-जिणो "णिकिरियं तं चउत्थं च ॥ ४८७ ॥ एसो पारस-भेओ उग्ग-तयो जो चरेदि उवजुत्तो। सो खवदि कम्म-गुंजं मुत्ति-सुहं अक्खयं लहदि ॥ ४८८ ।। जिण-पत्रण-भावर्ण8 सामि-कुमारेण परम-सद्धाए । रहया अणुवेहाओ चंचल-मण-रंभणटुं च ॥ ४८९ ॥ वारस-अणुवेक्खाओ" भणिया हु जिणागमाणुसारेण । जो पढइ सुणइ भावह सो पावइ सासयं" सोक्खं ॥ ४९० ॥ "तिडवण-पहाण-सामि कुमार-कालेण तविय-व-चरणं । वसुगुज-सुयं मलिं चरम-तियं संथुवे णिचं ॥ ४९१ ॥"
महमे योगम्मि । मस तदियं (?)। ३ग अयोगि, म भजोह । षनं निकिरिय पाउत्थं । ५. मुखमा । एसो इत्यादि। लमस खषिय, ग स्वविह। लमसग हहह । ८य भावणत्यं ।
रसगम अणुपहाड (ओ!)। १.लग अणुवेखाउ । " लमसग उसमं । १२ बम सुक्लं । एलमग तिहुपम। 14 सामी। १५लमसग तबयरणं । १६ व संथुए। १७ ब स्वामिकुमारा. प्रेक्षा समासः।

Page Navigation
1 ... 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589