Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 541
________________ ३४८] - १२. धम्माणुवेक्खाअसुइ-मयं दुग्गंधं महिला-देहं विरचमाणो जो। रूवं लावणं पि य मण-मोहण-कारणं मुणइ ॥ ३३७ ॥ जो मण्णदि पर-मैहिलं जणणी-बहिणी-सुआइ-सारिच्छं । मण-वयणे कारण वि बंभ-वई सो हवे थूलो ॥ ३३८ ॥ जो लोहं णिहणित्ता संतोस-रसायणेण संतुट्ठो। णिहदि तिण्हा दुवा मण्णंतो विणस्सरं सधं ॥ ३३९ ॥ जो परिमाणं कुषदि धण-धर्ण-सुयण्ण-खित्तमाईणं । उयओर्ग जाणित्ता अणुबदं पंचमं तस्स ॥ ३४० ।।" जह लोह-णासणटुं संग-पमाणं हवेइ जीवस्स। सब-दिसाणे पमाणं तह लोहं णासए णियमा ॥ ३४१ ॥ जं परिमाणं कीरदि दिसाण सघाण सुप्पसिद्धाणं । उपओगं जाणित्ता गुणवदं जाण तं पढमं ॥ ३४२ ।। कजं कि पि ण साहदि णिचं पावं करेदि जो अत्यो । सो सलु हादिया को चपला नि तो विविहो ॥ ३३॥ पर-दोसाण वि गहणं पर-लच्छीणं समीहणं जं च । परइत्थी-अवलोओ पर-फलहालोयणं पढ़मं ॥ ३४४ ॥ जो उवएसो दिजदि किसि-पसु-पालण-वणिज-पमुहेसु । पुरिसिथी-संजोए अणत्थ-दंडो हये विदिओ ॥ ३४५ ॥ विहलो जो वावारो पुढवी-तोयाण अग्गि-पाऊणं । तह वि वणप्फदि-छेदो" अणत्थ-दंडो हवे तिदिओ ॥ ३४६ ॥ मज्जार-पहुदि-धरणं आउह-लोहादि-चिक्कणं जं च । लैक्खा-खलादि-गहणं अणत्थ-दंडो हवे तुरिओ ॥ ३४७ ॥ जं सवणं सत्थाणं भंडण-यसियरण-काम-सस्थाणं । पर-दोसाणं च तहा अणत्थ-दंडो हवे चैरिमो ॥ ३४८॥ गमुम्। २ व परिमहिला......सारिछा । ३ लमसग कायेण | सग धूमो। ५ मिला। ब मुखर्जति विणस्सुरं(?)। ७ब परमाणं । ८ मधाण। ९लमसग मणुम्वर्य। ... इवि अणुम्बदाणि पंचादि । जाह इत्यादि । १५ लमसग दिसिसु। १२ ब णासये। लसग । रूम पसाण गर्ण (स गइण, ग म्गणं)। १५ लमसग भालोमो। इस पुरसथी। मसग मग्गिपवणाणं। लमसगड (भो)। १९ लसग माउध-। २० मो।

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