Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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४२०
- कत्तियाणुःपेक्षा
[गा० २५ मण-पजय-विण्णाणं ओही-णाणं च देस-पञ्चक्खं । मदि-सुदि-णाणं कमसो विस-परोक्खं परोक्खं च ॥ २५७ ॥ इंदियज मदि-णाणं जोगं जाणेदि पुग्गलं दर्छ । माणस-णाणं च पुणो सुय-विसयं अक्ख-विसयं च ॥ २५८ ॥ पंचिंदिय-णाणाणं मझे एगं च होदि उयजुत्तं । मण-णाणे उवजुत्तो इंदिय-णाणं ण जाणेदि ॥ २५९ ॥ एके काले एक गाणं जीवस्स होदि उवजुत्तं । णाणा-णाणाणि पुणो लद्धि-सहावेण वुचंति ।। २६० ॥ जं वत्थु अणेयंत एयंतं तं पि होदि सविपेक्खं । सुय-णाणेण णएहि य णिरवेक्खं दीसदे णेव ॥ २६१ ॥ सधं पि अणेयंतं परोक्ख-रूपेण जं पयासेदि । तं सुय-णिं भषणदि संसय-पहुदीहि परिचत्तं ॥ २६२ ॥ लोयाशं सवारं पास-विरक्या जो पसाहेदि । सुय-णाणस्स वियप्पो सो वि णओ लिंग-संभूदो ॥ २६३॥ णाणा-धम्म-जुदं पि" य एवं धम्म पि वुधदे अत्थं । तस्सेय-विवक्खादो पत्ति विवक्ताँ हुँ' सेसाणं ॥ २६४ ॥ सो चिये एको धम्मो वाचय-सहो वि तस्स धम्मस्स । जे जाणदि तं गाणं ते तिण्णि वि णय-विसेसा य ॥ २६५ ॥ ते सावेक्खा सुणया णिरवेक्वा ते वि दुण्णया होति। सयल-बवहार-सिद्धी सु-णयादो होदि णियमेणें ॥ २६६ ॥ जंजाणिजइ जीवो इंदिय-वावार-काय-चिट्टाहि। तं अणुमाणं भषणदि तं पि णयं बहु-विहं जाण ॥ २६७ ॥ सो संगहेण ऐको दु-विहो वि य दव-पजाएहितो। तेसिं चे विसेसादो गइगर्म-पहुदी हवे गाणं ॥ २६८ ॥
बम महसुह। २ बक्सिय (!)। ३ लमसग पुगं । ष पंखिदिय, लमसग पंचदिध । ५ जाणा(ण)दि, लमस जापति, ग जाएहि । मग एके। लमसग एगे। लमसग णयेहि य मिरविक्वं दीसए। ९मत्त ब-पुस्तके 'जो साइदि विसेस' इत्यादि गाया। .म सुमणा,ग सुचनाणं भन्नदि। लसग परिचितं । १२ ब विबघाह। ५ ब पयासेहि। ५मग ज्यामिल्स। १५ लग भम्म पि, स धम्म पि। १६ लग तस्सेव, म तस्सेर्य। १.लग विवक्खो। 14सहै। १९ म वि य । २० लमसग तं । २, लमसग साविक्खा...गिरविक्सा । २१ ग बिल्हार । २.ववमेण । २४ स इको (१)। २५स वि। १५स णयगम ।

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