Book Title: Kartikeyanupreksha
Author(s): Kumar Swami
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal
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-कत्तिगेयाणुप्पेकखा
[०१५ अणु-परिमाणं तचं अंस-विहीणं च मण्णदे जदि हि । तो संबंध-अभावो तत्तो वि ण कज्ज-संसिद्धी ॥ २३५ ॥ सवाणं दवाणं दर-सरूवेण होदि एयत्तं ।। णिय-णिय-गुण-भेएण हि सघाणि वि होति भिण्णाणि ।। २३६ ॥ जो अत्यो पडिसमयं उप्पाद-वय-धुवत्त-सम्भावो । गुण-पज्जय-परिणामो सो संतो' भण्णदे समए ॥ २३७ ॥ पडिसमयं' परिणामो पुबो णस्सेदि जायदे अपणो । वत्थु-विणासो पढमो उववादो भगंणदे विदिओ ॥ २३८ ॥ णी उप्पज्जदि जीवो दव-सरूवेण व गरसेदि । तं चेव दव-मित्तं णिचत्तं जाण जीवस्स ॥ २३९ ॥ अण्णइ-रूवं दवं विसेस-रूमो हवेइ पजायो । दवं पि विसेसेण हि उप्पजदि णस्सदे सददं ॥ २४ ॥ सरिसो जो परिणामो अणाइ-णिहणो हवे गुणो सो हि"। सो सामण्ण-सरूबो उप्पज्जदि णस्सदे णेय ॥ २४१॥ सो कि विणादि जायदि बिसेस-रूवेश सबन्दवेसु । दच-गुण-पज्जयाणं एयत्तं वत्थु परमत्थं ।। २४२ ॥ जदि दधे पजाया वि विजमाणी तिरोहिदा संति । ता उप्पत्ती बिहला पडिपिहिंदे देवदत्ते च ॥ २४३ ॥ सर्वाण पजयाणं अविजमाणाण होदि उप्पत्ती। कालाई-लद्धीए अणाइ-णिहणम्मि दवम्मि ॥ २४४॥ दवाण पंचयाणं धम्म-विवक्खाएँ कीरए भेओ"। वत्थु-सरूवेण पुणो ण हि भेदो सक्कदे काउं ॥ २४५ ।। जदि वत्थुदो विभेदो" पजय-दवाण मण्णसे मूढ ।
तो हिरवेक्खा सिद्धी दोण्हं पि व पावदे णियमा ॥ २४६ ॥
लमसग संबंधाभायो। २ लसग संसिद्धि । ३लग परिणामो संतो भग्यते। मसतो। ५ ब-पुस्तके पड उप्पनदि इत्यादि प्रथमं तदनन्तरं पडिसममें इत्यादि। ६व भण्णा चिदिड। -बण उ ।
लमसमय। ५ च जाणि। १० लममग पनाभी (3)। यसरिसरऽजो प,ससो परिणामो जो। १२ च वि। १३ वरघु। १४ लग निवजमाणा । १५ य देषदते म, लमसग देवत्ति व्व। १६ स सवाणं बवाणं पजायाण अधिजमाणाणं उपती। कालाइ...... दुम्बम्हि "बम विवाक्याय, स वक्खाए। १८ व कीरह। ५५व मेउ, मस मेमो (?)। २.मिमेको। म मणस मूढो, स मणये, म माणसे। २२ब दुपहं।

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