Book Title: Karn Kutuhal Author(s): Bholanath Jain Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir View full book textPage 9
________________ राजस्थानी कवि की सरल संस्कृत में रचना होने के कारण हम इस नाटक को राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला के पुष्प रूप में प्रकाशित कर रहे हैं। एतद्विषयक विशेष ज्ञातव्य के लिये सम्पादकीय भूमिका देखनी चाहिये। महाकवि भोलानाथ ने संस्कृत और हिन्दी में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं जिनमें अब तक कोई भी प्रकाशित नहीं हुआ है और इस दृष्टि से यह कवि अभी तक अज्ञात एवं अप्रसिद्ध है । हमारे प्रवर सहकारी श्री गोपाल नारायण बहुरा ने "कर्णकुतूहल" की शोधित, सम्पादित एवं सम्बद्ध सन्दर्भो से युक्त प्रति तैयार करके जब हमें दिखलाई तो हमने उपयोगी जान कर इसे प्रकाशनार्थ चुन लिया। प्रन्थकर्ता एवं तत्सम्बन्धी ऐतिहासिक टिप्पणियों का निर्माण परिश्रम एवं गम्भीर अध्ययन के साथ किया गया है जिससे सम्पादक की साहित्यिक एवं शोध विषयक अभिरुचि का भली भांति पता चलता है और इस दृष्टि से यह कृति अधिक उपयोगी और बोधगम्य हो गई है । कवि की एक दूसरी लघु संस्कृत रचना "श्रीकृष्णलीलामृतम्" को भी जिसमें श्रीमद्भागवत के आधार पर भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य लीलाओं का वर्णन किया गया है, इसके साथ ही लगा दिया गया है | आशा है अधिकारी पाठकगण लाभ उठावेंगे। १, ज्येष्ठ, १८७६ शकाब्द । मुनि जि न विजय २२, मई, १६५७ ख्रिस्ताब्द । सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिर, जयपुर ।Page Navigation
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