Book Title: Karn Kutuhal
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 25
________________ ( १३ ) जगत पवित्र करें कीरति पुनीत जाकी गंगा सी बिसाल संग बाल गज चाल में । संपय रसाल करें सबको निहाल पे के सदाशिव हाल हेरे दीन प्रतिपाल मैं ।। १ ।। पुण्य परताप ही कौ जाके द्वार डंका बाजै, कहै भोलानाथ सोर लंका लौं कही को है । भुवभार काँधे जाकै दयाभार ही में सदा, लाज भार आँखिन में पैज भार जी को है ॥ नृपति सदाशिव उदंबर परदर ज्यौं सुन्दर सभा को औ निकंदर मही को है । आप निरदंभ दंभ मेटत सदर्भानि के राजथंभ बिजैथंभ जाके सिर टीका है ॥ २ ॥ नृपति सदाशिव यौं लखे, तारनि में ज्यों चन्द | जाके चहुँधा कबिस रु, लखियत उदय अमंद ||३|| हैमदान कर सी रहत, वारिद लौं बरसंत देत आशिष कवि सबै, व्है के हिय हरपंत || ४ || गहै जाकी शाखा जानि मूलतें अतूल जाहि, रहै अनुकूल एक धर्म ही को थरु है | सुमन जाकौ सौरभ सुजस छायौ सेवै भोलानाथ मन कामना को फरु है ॥ चाहत सुरेस से महेस से अशेप श्रते ॐ चौ नित पल्लव सौ जाकौ रहै करु है । पूजै द्विजराजनि समाजनि निवाजै सदा नृपति सदाशिव सौं औन सुरतरु हैं ॥ ५ ॥ दानरुचि जी मैं जाकै अचि न नैकौ कहूँ दसों ही दिसन दिवि दामनी ज्यौं बरनी । कलपलता सी सोहै सुमन सुमन जाकौ, सुखसौं फलैगी कर - पल्लव में करनी ॥

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