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आगे भी
तथा च
( १२ )
"भू देवेषु नितिर्मतर्वितरणे दीने दया भूयसी प्रीतिः पुण्यकथासु भीतिरनिश पापात्सुनीतिर्नये । शूरत्वे कृतरुन्नतिः सदसि वाक सत्ये हरौ सज्जने
भक्तिर्भद्र सदाशिवक्षितिपतेः सर्वं परप्रीतये || नासामौक्तिकर्माद्रिराजतनया बिंबाधरे राजते
भूत्वा चन्द्रकला नगेशतनया भाले शिवे तत्सुते । शीतांशावमृतं सरस्सु सततं हंसा हरावाम्बुजं
श्रीमद्भट्ट सदाशिवस्य सुयशः सर्वत्र भूषायते || दिङ्नागाघवलीकृता जलधयः कामं तथा वारिदा
वृक्षा वारिचराः पिकाः शनिर सौ पापानगाः पन्नगाः । दृष्ट्वेदं हरिरीश्वरः स्मित मुखोऽपृच्छत प्रियां साऽवदत् श्रीमद्भट्ट सदाशिवस्य यशसा कृष्णोऽपि हंसायते ।।
आदि शब्दों में बड़ा ही हृदयग्राही मनोरम वर्णन किया है जिससे ज्ञात होता है कि ये एक विद्वान् एवं गुणीजनों के आश्रयदाता थे। स्वयं भट्टजी की कोई साहित्यिक कृति तो उपलब्ध नहीं हो सकी है, परन्तु कवि भोलानाथ के अतिरिक्त अन्य कवियों साहित्यिकों को प्रश्रय देने की बात से ज्ञात होता है कि ये विद्याप्रेमी अवश्य थे । कर्णकुतूहल में इनका वंशानुगत परिचय इस प्रकार दिया है
" रत्नेशः कृतपुण्यरत्ननिचयो रत्नाकरश्चापर
रज्ज्जातः शशि सन्निभः कृतमहादानः कुबेरो यथा । दिव्यौदुम्बर वंशविश्वविदितः श्रीविश्वनाथः स्वयं
श्रीमान् भट्टसदाशिवक्षितिपति जीयात् सहस्रं समाः ॥”
इसके अतिरिक्त after श्री भोलानाथ द्वारा प्रणीत भट्ट सदाशिव की प्रशस्ति के कुछ हिन्दी स्फुट पद्य भी उपलब्ध होते हैं जिनमें से कुछ पाठकों के अवलोकनार्थ
नीचे दिए जाते हैं
महाराज शिवदास को, दास जु भोलानाथ । करतु सदाशिव के कचित, हित सौं जोरे हाथ || 11 2 11
जाके आगे पढ़त कवित्त द्विज देव ठाढ़े
बाढ़े अनुराग गाढ़े गुन गन जात में । सुधानिधि मुख सुधा बानी मुख जाके सदा बाल सुधानिधि देव सो है सदा भाल में ||