Book Title: Karn Kutuhal
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

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Page 23
________________ ( ११ ) करो छो सो बात मुफ्तसिल लिखो । सो मालुम करांतों को जवाब यो छै । ज्यो म्हांका बड़ा भट्ठजी श्रीसदाशिवजी ने महाराज कवाँर श्री........"सू उदयपर में महाराणा जी साहिब मिलाया सो वणि सो वंदगी करी पर रफाकतर भोत सी रही या छै। येक दिन महाराज कमार फुरमाई म्हाने पढ़ावो करो सो ईही तरै बातां होवै करी । भट्टजी कही म्हे लड़का पढावणा जोशी तो छो नहीं आपने पढास्यां परन्तु म्हानै यो वचन हो जावे कि म्हांका बेटा पोता वंश में होसी सो थांका बेटा पोता वंश का कनै पढ़सी । तदि फरमाई म्हांका मनोरथ हुयाँ या बात मंजूर छै। तदि भट्ट जी कही आप आमेर को राज्य पास्यो, तींकी म्याद अरज करदी सो जबान भटजी महाराज की सिद्ध हुई पाछै जयपुर पधारया जद भट्टजी महाराज नै साथ ल्याया तदि फरमाई कि ई राज्य का मुक्त्यार आप छो म्हामें शिक्षा देस्यो जी मुजब चालस्यां आपको अणकहयो करस्यां नहीं। पाछै भट्ट जी म्हाराज ने विद्या गुरु श्री भदराजा जी' की पदबी दीई और दोय गद्दी बिछबाय सिरे दरबार में बैठावावाने जमीन जायदाद उदफ इनाम वगैर साबिक वरुसी अर बड़ो सो कुरब कायदो बढायो सो ऊही दिन सू लेकर आज तक धणी ऊही रीत पर बरत्या जाय छै सो यो हाल मालुम कर द्योला और लिखी अब काई करो छो सो धण्यां को शुभ चिंतवन करां छां मि० श्रा० शु०५ सं० १६२५ वि० । । __उपयुक्त वर्णन से विदित होता है कि भट्ट सदाशिवजी सवाई माधोसिंह प्रथम के केवल गुरु और परामर्शदाता मात्र ही नहीं थे प्रत्युत एक प्रकार से तत्कालीन जयपुर के सर्वेसर्वा थे। ये अत्यन्त दर-दर्शी, विद्वान् नीतिमान गुणी, वीर एव सोहसी व्यक्ति थे। महाराज माधवसिंह जी इनका पूर्ण आदर करते थे और ये उनके साथ उदयपर से जयपुर आये थे। इस विषय का उल्लेख भट्ट कृष्णराम जी प्रणीत 'कच्छवंश महाकाव्य' के निम्न श्लोक में भी वर्णित हुआ हैते ते गदाधरमुखा अपि पल्लिवालाः औदुम्बरा अपि सदाशिवभट्टमुख्याः । प्राक सेवितांघ्रिमधुना फलदानदक्ष___ मन्त्रीयुरेनमभुवृक्षमिव द्विजौघाः । (मर्ग १३, श्लोक २६७) कर्णकुतूहल नाटक में कविवर शुक्ल भोलानाथ ने भट्टजी का परिचय जिन शब्दों में दिया है उनमे इनके सद्गुणों तथा महत्ता पर पूरा प्रकाश पड़ता है। __सूत्रधार कहता है-"आर्ये, समस्तमामन्तनपचक्रचूड़ामणि भू मण्डलं-किरीटरजितचरणारविन्दः श्रीरत्नेशतनय औदुम्बर कुलालङ्कारो विघ्नराज इव विघ्नविध्वंसकारी सुरगुरुरिव कूर्मवंशगुरुः श्रीमान् भट्टसदाशिवोऽस्ति ।" १. संक्षिप्त । २. मेलजोल ।

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