Book Title: Karn Kutuhal
Author(s): Bholanath Jain
Publisher: Rajasthan Puratattvanveshan Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 21
________________ ( ६ ) भट्टराजा सदाशिव जी, जिनकी विद्वत परिषद् के प्रीत्यर्थ 'कर्णकुतूहलम की रचना हुई थी औदुम्बर वंशीय मावजी भट्ट के पौत्र एवं रत्नेश्वर भट्ट के सुपुत्र थे। जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह प्रधम के गुरु एवं प्रमुग्व परामर्शदाता के रूप में ये उनके साथ ही उदयपुर से सं० १८०७ वि० में जयपुर आये थे। इससे पूर्व ये डूगरपुर जिले के निकट वर्ती सागवाड़ा ग्राम में निवास करते थे और तत्कालीन उदयपर के महाराणा जगतसिंह के विशेष कृपापात्र रहे थे। जयपुर नरेश सवाई माधोसिंह प्रथम जब कुँअरपदे में उदयपुर में निवास करते थे, उन्हीं दिनों उन्होंने भट्ट जी को अपना गुरु बना लिया था। इस बारे में प्रसिद्ध है कि उदयपुर महाराणा जगतसिंह ने अब अपने भागिनेय सवाई माधोसिंह को परम योग्य एवं गुणगणवरिष्ठ जान कर भट्टजी से उन्हें पढ़ाने के लिए निवेदन किया तो भट्टजी ने कहा था-मैं सामान्य जोशी नहीं हूँ ' यदि मुझे माधवसिंह जी अपना गुरु माने और मेरी सन्तान को भी उसी प्रकर इनकी सन्तति गुरु मानती रहे तो में अध्यापन के लिये उद्यत हो सकता हूँ" माधवसिंहजी ने भट्टजी की इस शर्त को मान लिया और उनकी शिष्यता ग्रहण की। कालान्तर में जब वे जयपुर नरेश हुए तो उन्होंने भट्टजी को 'भट्ट राजाजी' की उपाधि एवं जागीर आदि देकर समुचित दानमान से विभूषित किया। उक्त जागीर भट्ट सदाशिव जी की अनुवर्ती सात पीढ़ियों । सन् १६३१ ई. तक अविच्छिन्न रूप से चलती रही। इनका वंशवृक्ष इस प्रकार है । ( सागवाड़ा) रत्नेश्वर । भट्टराजा सदाशिवजी ( उदयपुर से जयपुर ) विष्णु शर्मा अम्बादत्त गंगेश्वर रंगेश्वर केसरीलाल नानलाल (१६३१ ई० में निसन्तान दिवंगत हुए)

Loading...

Page Navigation
1 ... 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61