Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 14
________________ ( १3 ) एगपएसोगाढं, निअसव्वपएसओ गहेइ जिओ। थोवो आउ तदंसो, नामे गोए समो अहिओ ॥७९॥ विग्घावरणे मोहे, सव्वोवरि वेअणीइ जेणप्पे। तस्स फुडत्तं न हवइ, ठिईविसेसेण सेसाणं ॥८॥ निअजाइलद्धदलिआ-णतंसो होइ सव्वघाईणं। बझंतोण विभजइ, सेसं सेसाण पइसमयं ॥१॥ सम्मदरसव्वविरई, अणवीसंजोअ दंसखवगे अ। मोहसमसंतखवगे, खीणसजोगिअरगुणसेढी ॥२॥ गुणसेढ़ी दलरयणा-णुसमयमुदयादसंखगुणणाए। एयगुणा पुण कमसो, असंखगुणनिजरा जीवा ॥८॥ पलिआऽसंखंसमुहू, सासणइअरगुणअंतरं हस्त। गुरु मिच्छि बे छसट्टी, इअरगुणे पुग्गलद्धंतो ||८|| उद्धारअद्धखित्तं, पलिअ तिहा समयवाससयसमए । केसवहारो दीवो-दहिआउतसाइपरिमाणं ॥८५॥ दव्वे खित्ते काले, भावे चउह दुह बायरो सुहुमो। होइ अणंतुस्सप्पिणि, परिमाणो पुग्गलपरहो ॥८६॥ उरलाइसत्तगेणं, एगजिओ मुअइ फुसिअ सव्वअणू। जत्तिअकालि स थूलो, दवे सुहुमो सगन्नयरा ॥८७॥ लोगपएसोसप्पिणि,-समया अणुभागबंधठाणा य। जहतह कममरणेणं, पुट्ठा खित्ताइथूलिअरा alt Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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