Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 12
________________ (११) समयादसंखकालं, तिरिदुगनीएसु आउ अंतमुहू । उरलि असंखपरट्टा, सायठिइ पुवकोडूणा ॥५९॥ जलहिसयं पणसीअं, परघुस्सासे पणिदि तसचउगे। बत्तीसं सुहविहगइ-पुमसुभगतिगुच्चचउरंसे ॥६॥ असुखगइजाइआगिइ,-संघयणाहारनिरयजोअदुगं। थिरसुभजसथावरदस, नपुइत्थीदुजुअलमसायं ॥६१॥ समयादंतमुहुत्तं, मणुदुगजिणवइरउरलवंगेसु । तित्तीसयरा परमो, अंतमुह लहूवि आउजिणे ॥२॥ तिव्वो असुहसुहाणं, संकेसविसोहिओ विवज्जयओ। मंदरसो गिरिमहिरय,-जलरेहासरिसकसाएहिं ॥६३॥ चउठाणाई असुहो, सुहान्नहा विग्घदेसआवरणा। पुमसंजलणिगदुतिचउ-ठाणरसा सेस दुगमाइ ॥६॥ निंबुच्छ्रसो सहजो, दुतिचउभागकहिइकभागंतो। इगठाणाई असुहो, असुहाण सुहो सुहाणं तु ॥६५॥ तिवमिगथावरायव, सुरमिच्छा विगलसुहुमनिरयतिगं। तिरिमणुआउ तिरिनरा, तिरिदुगछेवट्ठ सुरनिरया ॥६६॥ विउविसुराहारगदुर्ग, सुखगइवन्नचउतेअजिणसायं । समचउपरघातसदस, पणिदिसासुच्च खवगा उ॥६७॥ तमतमगा उज्जोअं, सम्मसुरा मणुअउरलदुगवइरं। अपमत्तो अमराउं, चउगई मिच्छा उ सेसाणं ॥६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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