Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana
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(१४ ) अप्पयरपयडिबंधी, उक्कडजोगी अ सन्निपजत्तो। कुणइ पएसुक्कोसं, जहन्नयं तस्स वच्चासे ॥८९॥ मिच्छ अजयउआऊ, बितिगुणविणुमोहिसत्तमिच्छाई । छण्हं सतरस सुहुमो, अजया देसा बितिकसाए ॥९॥ पणअनिअट्टीसुखगइ, नराउसुरसुभगतिगविउव्विदुर्ग। समचउरंसमसायं, वह मिच्छो व सम्मो वा ॥९॥ निदापयलादुजुअल-भयकुच्छातित्थ सम्मगो सुजई। आहारदुर्ग सेसा, उक्कोसपएसगा मिच्छो ॥९॥ सुमुणी दुन्नि असन्नी, निरयतिग़सुराउसुरविउव्विदुर्ग। सम्मो जिणं जहन्नं, सुहुमनिगोआइखणि सेसा ॥१३॥ दसणछगभयकुच्छा, बितितुरिअकसायविग्घनाणाणं । मूलछगेऽणुकोसो, चउह दुहा सेसि सव्वत्थ ॥९॥ सेढिअसंखिजंसे, जोगट्टाणाणि पयडिठिइभेआ। ठिइबंधज्झवसाया-णुभागठाणा असंखगुणा ॥९५॥ तत्तो कम्मपएसा, अणंतगुणिआ तओ रसच्छेआ। जोगा पयडिपएस, ठिइअणुभागं कसायाओ ॥९॥ चउदसरज्जू लोगो, बुद्धिकओ सत्तरज्जुमाणघणो। तहीहेगपएसा. सेढी पयरो अ तव्वग्गो ॥९७॥ अणदंसनसित्थी, वेअच्छक्कं व पुरिसवेअंच । दो दो एगंतरिए, सरिसे सरिसं उवसमेइ ॥९॥
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