Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 13
________________ (१२ ) थीणतिगं अणमिच्छं, मंदरसं संजमुम्मुहो मिच्छो। बिअतिअकसाय अविरय-देसपमत्तो अरइसोए ।।६९॥ अपमाइ हारगदुर्ग, दुनिदअसुवन्नहासरइकुच्छा। भयमुवघायमपुवो, अनिअट्टी पुरिससंजलणे ॥७॥ विग्यावरणे सुहुमो, मणुतिरिआ सुहमविगलतिगआउं। वेउविछक्कममरा, निरया उज्जोअउरलदगं ॥७॥ तिरिदुगनिअंतमतमा, जिणमविरयनिरयविणिगथावरयं। आसुहमायव सम्मोव, सायथिरसुभजसा सिअरा॥७२॥ तसवन्नतेअचउमणु, खगइदुगपणिदिसासपरघुच्चं। संघयणागिइनपुथी, सुभगिअरतिमिच्छचउगइआ॥७३॥ चउतेअवन्न वेअणिअ,-नामणुकोस सेसधुवबंधी। घाईणं अजहन्नो, गोए दुविहो इमो चउहा ॥४॥ सेसंमि दुहा, इग दुग-णुगाइ जा अभवणंतगुणिआणू। खंधा उरलोचिअवग्गणा उ तह अगहणंतरिआ॥७५।। एमेव विउव्वाहार, तेअभासाणुपाणमणकम्मे । सुहमा कमावगाहो ऊणूणंगुलअसंखंसो ॥७॥ इक्किक्कहिआ सिद्धा णतंसा अंतरेसु अग्गहणा। सम्वत्थ जहन्नांचआ, निअणंतसाहिआ जिट्टा ॥७७॥ अंतिमचउफासदुगंध, पंचवन्नरसकम्मखंधदलं । सम्वजिअणंतगुणरस,-अणुजुत्तमणंतयपएसं ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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