Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 11
________________ ( १० ) जइलहुबंधो बायर, पजअसंखगुण सुहुमपज्जऽहिगो। एसि अपजाण लहू, सुहुमेअर अपज्जपजगुरु ॥४९॥ लहु बिअपजअपज्जे, अपजेअरबिअगुरुऽहिगो एवं । तिघउअसन्निसुनवरं, संखगुणो बिअअमणपज्जे ॥५०॥ तो जइजिट्ठो बंधो, संखगुणो देसविरयहस्सिअरो। सम्मचउ सन्निचउरो, ठिइबंधाणुकमसंखगुणा ॥५१॥ सव्वाणवि जिठिई, असुभा जं साइसंकिलेसेणं । इअरा विसोहिओ पुण, मुत्तुं नरअमरतिरिआउं॥५२॥ सुहुमनिगोआइखण-प्पजोग बायर यविगलअमणमणा। अपजलहु पढमदुगुरु, पजहस्सिअरो असंखगुणो॥५३॥ अपजत्ततसुक्कोसो, पज्जजहन्नि अरु एव ठिइठाणा । अपजेअर संखगुणा, परमपजबिए असंखगुणा ॥५४॥ पइखणमसंखगुणविरिअ अपज्जपइठिइमसंखलोगसमा। अज्झवसाया अहिआ, सत्तसु आउसु असंखगुणा ॥५५॥ तिरिनिरयतिजोआणं, नरभवजुअ सचउपल्ल तेसटें। थावरचउइगविगला-यवेसु पणसीइसयमयरा ॥५६॥ अपढमसंघयणागिइ-खगईअणमिच्छदुहगथीतिगं। निअनपुइत्थि दुतीसं, पणिदिसु अबंधठिइ परमा॥५७॥ विजयाइसु गेविज्जे, तमाइ दहिसय दुतीस तेसटुं। पणसीइ सययबंधो, पल्लतिगं सुरविउव्विद्गे ॥५॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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