Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 10
________________ (८) सव्वाण वि लहुबंधे, भिन्नमुहु अबाह आउजिठेवि। केइ सुराउसमं जिण,-मंतमुह विति आहारं ॥३९॥ सत्तरस समहिआ किर, इगाणुपाणुंमि हुँति खुड्डभवा। सगतीससयतिहुत्तर, पाणू पुण इगमुहृत्तमि ॥४०॥ पणसट्टिसहस पणसय-छत्तीसा इगमुहुत्तखुड्डुभवा । आवलिआणं दोसय-छप्पन्ना एगखुड्डभवे ॥४१॥ अविरयसम्मो तित्थं, आहारदुगामराउय पमत्तो। मिच्छद्दिठी बंधइ, जिट्रिइं सेस पयडीणं ॥४२॥ विगलसुहमाउगतिगं,तिरिमणुआसुरविउविनिरयदुगं। एगिदिथावरायव, आईसाणा सुरुक्कोसं ॥४३॥ तिरिउरलदुगुज्जोअं, छिवट्ठ सुरनिरय सेस चउगइआ। आहारजिणमपुठो,-ऽनिअट्टिसंजलणपुरिसलहुं ॥४४॥ साय जसुच्चावरणा, विग्धं सुहुमो विउव्विछ असन्नी। सन्नी वि आउ बायर-पज्जेगिदी उ सेसाणं ॥४५॥ उक्कोसजहन्नेअर, भंगा साई अणाइ धुव अधुवा। चउहा सग अजहन्नो, सेसतिगे आउचउसु दुहा॥४६॥ चउभेओ अजहन्नो, संजलणावरणनवगविग्घाणं। सेसतिगि साइ अधुवो, तह चउहा सेसपयडीणं॥४७॥ साणाइअपुव्वंते, अयरंतो कोडिकोडिओ न हिगो। बंधो नहु हीणो न य, मिच्छे भविअरसन्निमि ॥४८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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