Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 9
________________ (८) चालीस कसाएसुं, मिउलहुनिन्धुण्हसुरहिसिअमहुरे। दस दोसड्डू समहिआ, ते हालिदंबिलाईणं ॥२९॥ दस सुहविहगइउच्चे, सुरदुगथिरछक्कपुरिसरइहासे । मिच्छे सत्तरि मणुदुग, इत्थीसाएसु पन्नरस ॥३॥ भयकुच्छअरइसोए, विउव्यितिरिउरलनिरयदुगनीए । तेअपण अथिरछक्के, तसबउ थावर इग पणिंदी ॥३१॥ नपुकुखगइसासचऊ-गुरुकक्खडरुक्खसीयदुग्गंधं । वीसं कोडाकोडी, एवडआबाह वाससया ॥३२॥ गुरु कोडिकोडि अंतो, तित्थाहारण भिन्नमुहु बाहा । लहु ठिइ संखगुणूणा, नरतिरिआणाउ पल्लतिगं ॥३३॥ इगविगल पुत्वकोडो, पलिआऽसंखंस आउचउ अमणा । निरुवकमाण छमासा, अबाह सेसाण भवतंसो॥३४॥ लहुठिइबंधो संजलण,-लोहपणविग्घनाणदंसेसु । भिन्नमुहुत्तं ते अट्ठ, जसुच्चे बारस य साए ॥३५॥ दोइगमासो पक्खो, संजलणतिगे पुमट्ठ वरिसाणि । सेसाणुकोसाओ, मिच्छत्तठिईइ जं लद्धं ॥३६॥ अयमुक्कोसो गिदिसु, पलियाऽसंखंसहीण लहुबंधो । कमसो पणवीसाए, पन्ना सय सहस संगुणिओ॥३७॥ विगलअसन्निसु जिट्ठो, कणिटुओ पल्लसंखभागूणो। सुरनिरयाउ समा दस, सहस्स सेसाउ खुड्डभवं ॥३८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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