Book Title: Karmagrantha Part 3
Author(s): Devendrasuri, Jivavijay, Prabhudas Bechardas Parekh
Publisher: Jain Shreyaskar Mandal Mahesana

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Page 8
________________ ( ७ ) ॥२१॥ तणुअटु वेअ दुजुअल, कसाय उज्जोअगोअदुग निद्दा । तसवीसाउ परित्ता, खित्तविवागाऽणुपुवीओ ॥१९॥ घणघाइदुगोअजिणा, तसिअरतिगसुभगदुभगचउसासं । जाइतिग जिअविवागा, आउ चऊरो भवविवागा ॥२०॥ नामधुवोदय चउतणु, वघायसाहारणिअरुजोअतिगं । पुग्गलविवागि बंधो, पयइठिइरसपएस ति मूलपयडीण अडसत्त, छेगबंधेसु तिन्नि भूगारा । अप्पतरा ति चउरो, अवट्ठिओ न हु अवत्तव्व ॥ २२॥ एगादहिगे भूओ, एगाई ऊणगंमि अप्पतरो तम्मत्तोऽवट्टियओ, पढमे समए अवत्तव्वो ॥२३॥ नव छ च्चउ दंसे दुदु, ति दु मोहे दुइगवीस सत्तरस । तेरस नव पण चउति दु, इक्को नव अटु दस दुन्नि ॥२४॥ तिपणछअट्टनवहिआ, वीसा तीसेगतीस इग नामे । छस्सग अट्ठतिबंधा, सेसेसु य ठाणमिक्किकं वीसयरकोडिकोडी, नामे गोए अ सत्तरी मोहे तीसियरचउसु उदही, निरयसुराउंमि तित्तीसा ॥२६॥ मुत्तुं अकसायठिइं, बार मुहुत्ता जहन्न वेअणिए । अट्ठटु नाम गोएसु, सेसएसुं मुहुत्तंतो विग्धावरण असाए, तीसं अट्ठार सुहुमविगलतिगे । पढ मागिइ संघयणे, दस दुसुवरिमेसु दुगवुड्डी ॥२५॥ ॥२७॥ ॥२८॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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