Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 12
________________ ॥ कल्याण कलिका. ॥ प्रस्ताबना ॥ खं०२॥ ॥ १०॥ दिक्पालोनी स्थापना माटे स्वतंत्र पाटलो उपयोगमा लेवावा मांडयो ते समयमा पाटला उपर दिशापालोनी स्थापना दिशापरत्वे चंदननी टीलिओ देइने कराती हती अने सुगंधीद्रव्योथी-पुष्पोथी पूजन करातुं हतुं, वस्त्रपूजानी के वस्त्राच्छादननी कंइ पण चर्चा न हती. नन्यावर्तनुं वस्त्र जे पूर्वे २४ हाधनुं अखंड गणातुं हतुं तेनुं प्रमाण एकदम वधारीने २९१ हाथ- पहेल बहेलां श्रीवर्धमानसूरिजीए जणाव्युं, एमना बृहन्नन्यावर्तमां सर्व मलीने २९१ अधिकारी देव देवी गण होइ प्रत्येक माटे एक एक हस्त वस्त्र गणी लीधुं, एटले ए पछी धीरे धीरे वस्त्र सामग्रीमा वृद्धि थवा मांडी, जो के बीजा प्रतिष्ठाकल्पकारोए एमना उक्त सिद्धान्तने तद्रूपे तो मान्य न कर्यो, छतां वस्त्रना संबन्धमां ते पछी आचार्योए कंइक शरुआत जरूर करी, दिशापालोना पाटला उपर पहेला वस्त्राच्छादननो रिवाज न हतो ते एक वस्त्र ढांकवानी हिमायत करीने चालू कों, ग्रहोनो पाटलो अस्तित्वमा आब्यो एटलं ज नहि, ते उपर प्रत्येक ग्रहना वर्ण प्रमाणेवस्त्र चढाववानो प्रचार पण थयो. वेहि (माटीना वर्तनोनी वेदि) यो के जे माटे पूर्वे वस्त्रनी बात ज न हती, ते पंदरमा सोलमा सैकाथी प्रत्येक १२।१२ हाथ वस्त्रनो अधिकार मेलबी चुकी हती. जलयात्राना कुंभो नन्यावर्त अने जिनप्रतिमा पासे स्थापन कराता, कुंभो उपर पूर्वे जवारनां पात्रो मुकाता हतां पण पाछलथी जवारापात्रोनुं स्थान नालियेर अने रंगीन वस्त्रे ग्रहण कयु जे आज पर्यन्त चाल्युं आवे छे. आम धीमे धीमे प्रतिष्ठाविधिओमां वस्त्रसामग्रीए एक महत्व- स्थान प्राप्त करी लीधुं छे. आजे ग्रहो तथा दिशापालोना पूजन माटे नियत रंगनां रेशमी वस्त्रो ज जोइये, एम आजे नियत रंगना अनेक वस्त्रो खरीदाइने आवे त्यारे ज प्रतिष्ठा के शान्तिस्नात्र जेबी धार्मिक क्रियाओ थइ शके छे. For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 660