Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ ॥ कल्याण- कलिका. ॥ प्रस्तावना ।। था i ॥ ८ ॥ G याल छे, आ एक स्वाभाविक नियम छे. प्रतिष्ठाकल्पो अने प्रतिष्ठाविधिओ पण आ अचल नियमथी बची शकी नथी, प्रतिष्ठाकल्पोनी उत्पत्तिनो | इतिहास आपना माटेगें आ योग्य स्थल नथी, अहियां प्रतिष्ठाकल्पो अने प्रतिष्ठाविधिओमां थयेल क्रमिक परिवर्तनोनो ज टुंको परिचय | करावीने वाचकगणनु-खास करीने ए विषयमा रस लेता 'प्रतिष्ठाविधिकार' गण- लक्ष्य खेंचवा मांगीये छीये. बीजी रूढ प्रवृत्तिओने अंगे बने छे तेम ए विषयमां पण विधिकारो पोते पोतानी परम्परागत रूढिओने वलगी रही खरी वस्तुस्थितिने | नही स्वीकारे ए अमे सारी रीते जाणीये छीये, छतां पण समजायेलुं सत्य सर्वने समजाव, ए अमारुं कर्तव्य मानीये छीये. ___प्राचीन प्रतिष्ठाओ घणी ज सादी सुगम अने अल्पव्यय साध्य हती, आजना जेवडी लांबी सामग्री-सूचिओ पूर्वे होती बनती, | आ वस्तुने समजाववा माटे अमो प्राचीन अने अपेक्षाकृत अर्वाचीन प्रतिष्ठाकल्पोमा लखेल सामग्रीओमां कालक्रमे केवी रीते वृद्धि थइ | अने सामग्रीसंभार आजनी स्थितिए पहोंच्यो ते विषयमा केटलांक उदाहरणो आपीशुं. विधिमां उमेरायेली वस्तुओः (१) पाटलाओ निर्वाणकलिकाना रचना समयमा आपणी प्रतिष्ठामा मात्र 'नन्दावर्त' पूजन माटे एक ज पाटलो आवश्यक गणातो हतो, दिक्पालोनो आलेख पंचवर्णना चूर्णथी वेदिका उपर करवामां आवतो हतो. श्रीचन्द्रसूरिनी प्रतिष्ठापद्धतिमां दिक्पालोने माटे पण एक पाटलो जुदो अस्तित्वमा आब्यो, ते पछी गुणरत्नसूरि सुधीना प्रतिष्ठाकल्पोमां | नन्दावर्त अने दिक्पालोनी पूजा माटे बे पाटलाओ ज प्रतिष्ठाना उपकरणोमां गणाता हता. வறு otha न ॥ ८ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 660