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॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥
।। प्रस्तावना ।।
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काल
।। ३६ ।।
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संकलित “बिम्ब प्रवेशविधि" अने (४) अष्टोत्तर स्नात्रपूजा विधि
उपर्युक्त चार ग्रन्थो पैकीनो एक पण ग्रन्थ सर्वांगपूर्ण अने प्रामाणिक मानीने ते प्रमाणे विधिविधान करवानो निर्णय कराय एवं नथी.
(१) सकलचंद्रजी कृत 'प्रतिष्ठाकल्प' केटलो बधो अव्यवस्थित छे ए संबन्धमां उपर बहु कहेवाइ गयुं छे
(२) 'जलयात्रादिविधि' आ ग्रन्थना मुद्रित पुस्तक उपर रचनार तरीके श्रीरत्नशेखरसूरिजीनुं नाम छपायेल छे. परन्तु आ ग्रंथ श्रीरत्नशेखरसूरि- रचित होवामा कंइ ज प्रमाण नथी, एथी विपरीत आ ग्रन्थने अर्वाचीन सिद्ध करनारां केटलांक कारणो आ ग्रन्थनी अंदरथी जमली आवे छे. जे नीचे प्रमाणे छे.
(१) आ ग्रन्थोक्त 'जलयात्राविधिमां "क्षीरोदधे स्वयंभूश्चा" इत्यादि श्लोको दृष्टिगोचर थाय छे जे श्रीरत्नशेखरसूरिना समयमां तो शुं पण सं०१६८० सुधीमां लखायेल कोइ 'जलयात्राविधि' मा नथी.
(२) आ ग्रन्थमांनी कुंभस्थापन विधि अने बिंबप्रवेशविधिओ अढारमा सैका पहेलांनी नथी.
(३) यक्षकर्दमथी ग्रहो दिक्पालो अने अष्टमंगलोना पाटलाओगें आलेखनविधान आमां सूचव्युं छे ते श्रीसकलचंद्रजीना समय पहेलानु नथी.
(४) ग्रहादिना पाटलाओ उपरांत ३० नाना पाटला तैयार करवानुं विधान कर्यु छे ते अढारमा सैका पहेलांनी कोइ पण अष्टोत्तरी स्नात्र विधिमा जोवामां आवतुं नथी.
(५) जलयात्रामां जल काढती वखते अंकुश, मत्स्य, कच्छप मुद्राओ देखाडवानुं आनुं विधान सकलचंद्रजीनी पहेलांनुं नथी.
च
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सभ यो
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