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॥ कल्याणकलिका. खं०२॥
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।। प्रस्तावना ॥
॥ १७ ॥
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(५) तपाश्रीगुणरत्नसूरि संदर्भित 'प्रतिष्ठाकल्प' पण पंदरमा सैकाना उत्तरार्धनी कृति छे, ए घणी ज शुद्ध अने सरल संस्कृतमा लखायेली अमारी पासेनी सर्व प्रतिष्ठाविधिओमां सारी अने सुगम छे.
(६) विशालराजशिष्यकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' के जेनुं निर्माण पण पंदरमा सैकाना अन्तमा अथवा तो सोलमां सैकाना प्ररंभमां थयेलं छे, आनी प्राचीन प्रति अमारी पासे छे, ए कल्प पण शुद्ध प्राय छे.
(७) कर्ताना नाम वगरनो छतां श्रीजिनप्रभसूरिजीने अनुसरनारो आ प्रतिष्ठाकल्प कोइ खरतरगच्छीय विद्वानना हाथे पडिमात्रावाली लिपिमा लखायोलो छ, रचना के लेखनसंबन्धी संवत् मिति एमां नथी छतां भाषा अने लिपि उपरथी ए सोलमा सैकाना अन्त भागमां अथवा सत्तरमा सैकाना प्रारंभनां बनेलो लागे छे.
(८) उपाध्याय सकलचंद्रजी गणिकृत 'प्रतिष्ठाकल्प' के जे आजकालना विधिकारोमा अधिक प्रसिद्ध अने प्रचलित छे, एटलं ज नहि पण आचार दिनकरनी प्रतिष्ठा विधिने बाद करतां बीजी बधी विधिओ करतां ए अधिक विस्तृत छ, आ कल्पनो रचनाकाल सत्तरमा सैकानो मध्यभाग छ, अमारी पासेना ८ प्रतिष्ठाकल्पो पैकी सौथी शुद्ध ५ मो अने अशुद्ध आ आठमो प्रतिष्ठाकल्प छे, १ थी ५ सुधीना प्रतिष्ठाकल्पो शुद्ध संस्कृत भाषामां रचायेल छे, ज्यारे ६७८ आ त्रण प्रतिष्ठाकल्पो संस्कृत तेम ज प्राचीन लोकभाषामां लखायेल छे. दरेकनो मंत्र भाग संस्कृत अने कचित् प्राकृतमां छे, अने हकीकत प्रायः भाषामां लखेली छे, कल्प ६ट्ठा नी हकीकत पण क्वचित् संस्कृतमा जणावेली छे.
आटलो कल्पोनो परिचय कराव्या पछी हवे आ ग्रन्थोना आधारभूत ग्रन्थोने अंगे विचार करीये.
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