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॥ कल्याणकलिका. खं० २॥
प्रस्ताबना ॥
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(७) बीजा बधा कल्पोनी साथे एनो महत्वपूर्ण मतभेद कल्याणकोनी उजवणीनो छे, १ थी ७ सुधीना कोइ पण कल्पमां कल्याणकोनी 18 उजवणी के १० दिवसनो कार्यक्रमनो उल्लेख सुधां नथी, ४ था प्रतिष्ठाकल्पमा नन्द्यावर्तपूजन अने महापूजा विगेरे प्रकरणमा अनावश्यक | कही शकाय एटलो बधा विस्तार कर्यो छे, छतां ए कल्याणकोनी उजवणी के ते संबन्धी मंत्रो जेबु कई ज नथी. आना समाप्तिलेखमा सूचव्याप्रमाणे जो आ प्रतिष्ठाकल्प श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीना प्रतिष्ठाकल्प उपरथी बन्यो होय अने कल्याणकोनी उजवणीनो प्रसंग तेमांधी लीधो होय तो पछी जगच्चन्द्रसूरिजीना पृष्टवर्ती नं० ३।४।५।६।७ ना प्रतिष्ठाकल्पकारोए पोताना कल्पोमां ए वस्तुनो स्वीकार केम न कर्यो ? सर्वजण नहिं तो नं०५।६ ना कल्पकर्ताओ के जे श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीनी ज पट्टपरंपराना आचार्यो हता अने सकलचन्द्रजी करतां तेमना निकटवर्ती हता, जगञ्चन्द्रसूरिजीना प्रतिष्ठा कल्पनी पद्धतिने न अपनावे ए बात मानी शकाय तेवी नथी, छतां एवं कशुं थयु नथी आथी समजाय छे के आ कल्पमा लखेल कल्याणक विधि-जगच्चन्द्रसूरि अथवा बीजा कोइ पण प्रामाणिक श्वेताम्बर सम्प्रदायना आचार्यकृत प्रतिष्ठा-कल्प उपरथी नहि पण कोइ दिगम्बरमान्य प्रतिष्ठा कल्प उपरथी उतारी लीधी छे, दिगम्बरोनी प्रतिष्ठामां कल्याणकोनी विधि- विधान घणा जुना समयथी चाल्युं आवे छे, आश्चर्य नथी के श्रीसकलचन्द्रजी उपाध्याय पोते अथवा ते एमना परवर्ती कोई बीजा विद्वाने कल्याणकोना प्रसंगोने श्वेताम्बर संप्रदायने अनुरुप गोठवीने आ आठ नंबरना प्रतिष्ठा कल्पनी योजना करी दीधी होय ? अने प्रचार निमित्ते सकलचंद्रजीना नामे ए संदर्भ चढावी दीधो होय ? गमे तेम होय पण आ प्रतिष्ठा कल्पनो मूलाधार जगच्चन्द्रसूरिनो कल्प तो नथी ज.
श्यामाचार्य-हरिभद्रसूरि-हेमाचार्य-गुणरत्नाकरसूरिकृत प्रतिष्ठा कल्पो पण आ कल्पना समर्थक होय ए वात मानी शकाय तेवी नथी. श्यामाचार्यादिना प्रतिष्ठाकल्पोना अस्तित्व विषे आ कल्पना कथन सिवाय बीजु कोइ प्रमाण नथी, प्राकृत गाथामय प्राचीन प्रतिष्ठाकल्पने
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