Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor

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Page 14
________________ ॥ कल्याणकलिका. खं० २ ॥ ।। १२ ।। A ते थाय, पूजारी (गोठी) ले, उपदेशक साधु अथवा यति ले के पछी ते भंडारमा जाय, विधिकारोए तो पोतानी रूढि चालू ज राखवी! | (५) मेवो अथवा सूकां फलो ।। प्रस्तानिर्वाणकलिकामा प्रतिष्टानी सामग्रीमा मेवा अथवा सूकां फलोनुं विधान नथी, नालियेरने फल रूपे अने सोपारीने तंबोलना अंग बना ।। तरीके गणी लेवामां आवे तो तेमां मेवानी कोइ पण चीज लीधी दृष्टिगोचर थती नथी. ज्यारे ते पछीना दरेक प्रतिष्ठाकल्पमां मेवो अथवा सूकां फलो प्रतिष्ठाविधिना एक अंगरूपे रूढ थइ गयां छे. (६) नैवेद्य___ बीजी अनेक सामग्रीओनी जेम निर्वाणकलिका पछीना कल्पोमा नैवेद्य सामग्रीनी पण क्रमे करीने घणी ज वद्धि थइ छ, नि०कलिकामां पक्वान्न तरीके १ पायस दूधपाक. २ गुडपिंड (गोलना पुडला) ३ कुसरा (खीचडी) ४ दध्योदन (दहिनो करंबो) ५ सुकुमारिका (सोहालीसाफली) ६ शाल्योदन (शालना तांदला) ७ सिद्धपिण्डक (घीमां तलेली पिंडली-मुंठियां) आ सात नामो आवे छे अने ए नैवेद्य पण नन्यावर्तना पाटला आगल मूकवानां छे, जिन प्रतिमा आगल नैवेद्य चढाववानो तेमां क्यांइ उल्लेख नथी, परन्तु ए पछीना प्रत्येक पतिष्ठाकल्पमा उक्त नंद्यावर्तना नैवेद्य उपरान्त प्रतिमा आगल मूकवाना २५ काकरिया (लाडवा, जेनुं बीजुं प्राचीन नाम 'मोरिंडा' पण हतुं), खाजां, घेबर, साटा, ठोर, मरकी, पेंडा आदि अनेक पक्कानो विधिमा अनिवार्य थइ पड्यां छे. ए सिवाय ग्रह दिशापालोना पूजनमां वपरातां नैवेद्य तो जुदां ज, चूरमाना लाडवा, तलना लाडवा, अडदना लाडवा, उपरांत मगनी दालना, धाणीना, फुलीना, मोतीया, घेसीदलना लाडवा अने बीजां केटलाये आवां पक्वान्नो तैयार थाय त्यारे ज ग्रहो अने दिक्पालोनुं पूजन थइ शके. अष्टमंगलनो पाटलो जे अक्षतथी मांगलिक ८ आकारो आलेखवा माटे प्रारंभमां उपयोगमा लेवातो हतो ते उपर पण आजे अक्षतो उपरान्त फल, फूल, नाणां अने वस्त्र Jawal जना शनि Sala Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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