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॥ कल्याण कलिका. खं० २ ॥
|| प्रस्तावना ॥
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(१) निर्वाणकलिकामां बलिनी साथे कंदमूलना ग्रहणनो बे त्रण वार उल्लेख थयेल छे. (२) निर्वाणकलिकानी फलसूचीमां 'बोर' तथा 'वृन्ताक' नी प्रशस्त फल तरीके गणना थयेली छे.
(३) निर्वाणकलिकामा 'ऊर्णासूत्र' तथा 'लोहमुद्रिका' नो उपकरण तरीके स्वीकार थयेल थे, परन्तु ए पछीना कोइ पण प्रतिष्ठाकल्पमा सामग्रीमां उपर्युक्त पदार्थोनी परिगणना थइ नथी.
(४) निर्वाणकलिकामा एक स्थपतिनो अभिषेक मानेलो छ, स्थपति (शिल्पी) प्रथम एक कलश वडे प्रतिमानो अभिषेक करी लेतो ते पछी बीजा ४ स्नात्रकारो अभिषेक करता, आ विधिनो श्रीजिनप्रभसूरिजीए स्वीकार पण कर्यो छे, छतां बीजा कोइ पण कल्पकारे ए विधिनुं समर्थन कर्यु जणातुं नथी.
(५) निर्वाणकलिकामा नन्द्यावर्त ७ वृत्तोथी बनावी तेना प्रथम वलयना मध्य भागे अरिहंत, पूर्व सिद्ध, दक्षिणे आचार्य, पश्चिमे उपाध्याय, उत्तरे सर्व साधुपदनुं अने आग्नेयादि ४ कोणोमां अनुक्रमे ज्ञान, दर्शन, चारित्र अने सूची विद्यानुं आलेखन अने पूजन करवानुं विधान छे, पण बीजा प्रतिष्ठाकल्पकारोए प्रथम वलयमा नन्द्यावर्त अने एने फरता आठ दिशा भागोमां अनुक्रमे १ अरिहन्त २ सिद्ध ३ आचार्य ४ उपाध्याय ५ सर्वसाधु ६ दर्शन ७ ज्ञान ८ चारित्र ए आठ- स्थापन पूजन करवानो आदेश कर्यो छे, शुचि विद्याने छोडी दीधी छे.
(६) पूर्वे स्थिर प्रतिष्ठामा प्रतिमा नीचे पंचधातुक स्थापन करातुं हतुं जेमां लोहधातुनो पण समावेश थतो हतो, पण पाछलना प्रतिष्ठाकल्पकारोए पंचधातुकर्नु स्थापन पंचरत्नने आप्यु के जेमा सोनुं रू' त्रांबुं प्रवाल अने मोती होय छे. लोह होतुं नथी.
(७) पूर्वे चौदमा सैका सुधी चर प्रतिष्ठामा नन्द्यावर्त पूजीने ते उपरर प्रतिष्ठाप्य जिनप्रतिमा स्थापन कराती हती, पछीना थोडाक
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