Book Title: Kalyan Kalika Part 2
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: K V Shastra Sangrah Samiti Jalor
View full book text
________________
। कल्याणकलिका. खं०२॥
। ॥ प्रस्ता
वना ।।
श्रीविशालराज शिष्यना प्रतिष्ठाकल्पमा उपर्युक्त बे पाटलाओ उपरान्त त्रीजा ग्रहना पाटलाए देखाव दीधो छे, ए पहेला कोइ आचार्य | नंदावर्तना छेल्ला बलयमा पूजन करावता अने कोइ प्रथम वलयमा ज जिनबिंबना चरणो पासे ग्रहोर्नु पूजन करावी लेता. पाटला- जुदं अस्तित्व कोइ मानतुं न हतुं. आ रीते सोलमा सैकाना प्रारंभथी ग्रहोनो पाटलो अस्तित्वमा आवतां ३ पाटलाओ प्रतिष्ठाविधिमा दाखल थया.
सं०१८२४ नी पहेलांना अमारा जोएला विधिग्रन्थोमा अष्टमंगलना पाटलानी आवश्यकता मनाती न हती, यद्यपि आचार दिनकरमा अष्टमंगलनी पाटलीनो उल्लेख जरूर मले छे, छतां ते वखते अष्टमंगल माटे पाटलानी आवश्यकता न होती गणाती, पाटली विना पण शुद्धभूमि उपर अष्टमंगलोर्नु अक्षतो बड़े आलेखन करातुं हतुं.
सं० १८८७ मां अथवा ए पछीना समयमा लखायेल शांतिस्नात्रनी लिधिओमां पहेल वहेलो अष्टमंगलनो पाटलो उपकरणरूपे दृष्टिगोचर थाय छे. अमारी पासेनी सं० १६३९ तथा १६८७ मां लखायेली अष्टोत्तरी स्नातनी विधिओ छे, तेमां अष्टमंगलना पाटलानु नाम निशान नथी, आथी सिद्ध थाय छे के अष्टमंगलनो पाटलो सं० १६८७ पछी अने १८८७ पहेला कोइ काले विधिमां प्रविष्ट थयो छे, एनी प्राचीनता बसो वर्षथी वधारे नथी. (२) वस्त्रो
पाटला वध्या एटले तत्संबन्धी पूजन सामग्री वधे ए स्वाभाविक छे. जे वखते मात्र एक ज नंदावर्तनो पाटला हतो ते वखते तेने ढांकवाने एक ज आलुं सफेद वस्त्र आवश्यक गणातुं हतुं, अने ते उपरान्त बिंबनी अधिवासना तथा प्रतिष्ठाना अवसरे आखां बे बस्त्रो | अने मातृशाटिका एटली ते वखते वस्त्रसामग्री हती.
Jain Education International
For Private & Personal use only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 660