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The par yusana may be commenced carlier than the fiftieth night of the season, but not later,
चातुर्मासी से पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहते हैं। २३०. जैसे जो आज-कल श्रमण निर्ग्रन्थ प्राषाढी चातुर्मासी से पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहे हैं वैसे ही हमारे प्राचार्य, उपाध्याय भी बर्षा-ऋतु के पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहते हैं। २३१. जैसे हमारे प्राचार्य, उपाध्याय वर्षा-ऋतु के पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहते हैं वैसे ही हम भीपापाढ़ी चातुर्मासी से पचास दिन व्यतीत होने पर वर्षावास रहते हैं । इस समय से पूर्व भी वर्षावास रहना कल्पता है (उचित है, शास्त्रोक्त है), किन्तु उस रात्रि का उल्लंघन करना नहीं कल्पता है, उचित नहीं है। अर्थात् वर्षाऋतु-पाषाढ़ी चातुर्मासी से पचासवीं रात्रि का उल्लंघन नहीं करना चाहिए, पचासवीं रात्रि से पूर्व ही वर्षावास कर लेना चाहिए । २३२. वर्षावास में रहे हुए निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थिनियों को चारों ओर पांच कोस (१६ किलोमीटर) तक अवग्रह को धारण कर रहना कल्पता है । पानी से गीला हमा हाथ जब तकन सूख जाय तब तक भी अवग्रह में रहना कल्पता है और बहुत समय तक भी रहना कल्पता है, परन्तु अव ग्रह के बाहर रहना नहीं कल्पता है ।
232. Monks and nuns who have arrived at a rain-resort for the scason, should limit their area of movement to an extent of five kośas (approximately sixteen kilometres) all around. They can dwell for a short or a long period anywhere within this limit but it is not proper to go beyond it.
कल्पसूत्र
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