Book Title: Kalpasutra
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur

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Page 424
________________ Etus ( Jain Education International जीवन से सम्बद्ध चित्र बने हैं। इन चित्रों का अंकन पारम्परिक पद्धति में हुआ है और ये अलंकरण प्रधान हैं। इसी युग एवं शैली की दूसरी प्रति सेठ मानन्दजी मंगलजीनी पेढी, ईडर में है, जिसमें महावीर के जीवन से सम्बद्ध चौंतीस चित्र हैं। इन चित्रों के प्रध्ययन से स्पष्ट है कि जैन देवी-देवताओंों के परम्परागत अंकन होते हुए भी ये कलात्मक हैं। पृष्ठभूमि सादी, प्राकृतियां नुकीली एवं परली ग्रांख युक्त हैं। रेखांकन सरल किन्तु निश्चित है । इनमें सीमित रंगों का प्रयोग हुआ है। पृष्ठिका में लाल और चित्रण के लिये हरे, पीले एवं काले रंगों का प्रयोग हुआ है । यहीं नहीं इन चित्रों में शैली का विकास भी दिखाई देता है, उदाहरणार्थ उझमफोई-संग्रह-कल्पसूत्र के महावीर जन्म वाले दृश्य में परदे का थोड़ा सा अंश दिखाया गया है किन्तु ईडर वाले चित्रों में इसी का बड़ा विस्तृत अंकन हुआ है । इडर ईडर के चित्रों में सोने का प्रयोग भी मिलता है, जिसे डा० मोतीचन्द्र फारस से लिया मानते हैं।' कागज : जिनचन्द्रसूरि (१९५६ - ११६६ ) के लिये लिखित ध्वन्यालोक की प्रति से इस बात का संकेत मिलता है कि लेखन कार्य के किये कागज का उपयोग १२वीं शती के मध्य से होने लगा था, किन्तु चित्ररण के लिये संभवतः इसका प्रयोग १४वीं शती के मध्य से पहले नहीं हुआ। क्योंकि इसके पहले की कागज पर चित्रित कोई प्रति नहीं मिलती। मुनि जिनविजयजी के संग्रह में सुरक्षित वि० सं० १४२४ (१३६७ ई०) का कल्पसूत्र ही अब तक प्राप्त, कागज पर बनी प्राचीनतम प्रति है । राष्ट्रीय संग्रहालय में १३८१ ई० की बनी कल्पसूत्र एवं कालक कथा की एक प्रति है । • विभिन्न संग्रहों में कल्पसूत्र की पचासों से अधिक सचित्र प्रतियाँ सुरक्षित हैं और स्थानाभाव के कारण प्रत्येक के विषय में चर्चा करना यहां संभव न होगा, अतएव शैली के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रतियों पर ही डा० मोतीचन्द्र जैन मिनिएचर पेंटिंग फाम वेस्टर्न इण्डिया, अहमदाबाद १६४६, पृष्ठ ३४ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.brg

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