Book Title: Kalpasutra
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur

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Page 451
________________ सन्धिपाल - राज्यों के बीच विग्रह आदि को सुलझाकर सन्धि कराने वाला अधिकारी, राजदूत । समिति - मुनि जीवन में विवेक, सावधानी तथा यतनापूर्वक गति करने को समिति कहते हैं । यह समिति पांच प्रकार की है-१. ईर्या समिति - सावधानी व यतना पूर्वक चलना। २. भाषा समितिविवेक व यतनापूर्वक बोलना। ३. एषणा समिति - मुनि जीवन में खाने-पीने योग्य पदार्थ, पहनने योग्य उपकरण तथा उपयोग में आने योग्य अन्य वस्तुओं के लिए शुद्ध एवं निर्दोष वस्तु को सावधानी व यतनापूर्वक ग्रहण करना। ४. आदान भाण्डमात्र निक्षेपणा समिति - वस्त्र, पात्रादि उपकरणों को यतनापूर्वक उठाना व रखना। ५. पारिष्ठापनिका समिति-फैकने योग्य व त्यागने योग्य बाल, नख, थूक, कफ, मूत्रादि को जीव-रहित निर्दोष तथा निर्जन स्थान में सावधानी तथा विवेकपूर्वक छोड़ना, त्यागना। सागरोपम -असंख्य पल्योपम जितना काल सागर कहलाता है। सागर से उपमित किया जाने वाला काल सागरोपम कहलाता है। सौवीर -कांजी। स्थविर - ज्ञान, तप, चारित्र, अवस्था आदि में अनुभवी वृद्ध मुनि । स्वप्नलक्षणपाठक - स्वप्न सम्बन्धी शास्त्रों का ज्ञाता। स्वादिम - मुखवास अथवा स्वाद्य खाद्य पदार्थ । हरिनगमेषी - इन्द्र को पदाति-सेना का सेनापति, विशेष कार्यदक्ष दूत और गर्भ-परिवर्तन आदि कलामों में प्रवीण । सन्तान प्रादि के लिए इस देव की वेदकाल में भी पाराधना की जाती थी। वेद परम्परा में इसका नाम 'नैगमेषी' अथवा 'नैगम' कहा जाता है। ( xxx ) Jan Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org.

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