Book Title: Kalpasutra
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur

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Page 427
________________ Farmer Eutus ३६ चित्र बने हैं जो तीर्थंकरों के जीवन से सम्बद्ध हैं । कल्पसूत्र में केवल चार तीर्थंकरों के जीवन से सम्बद्ध घटनाएं वरिणत हैं, इस कारण शेष बीस तीर्थंकरों को दो चित्रों (सं० २७ एवं २८): प्रत्येक में बैठे हुए दस-दस तीर्थकर बताये हैं । सोना, लाल एवं नीले रंगों की प्रमुखता है, कहीं-कहीं काले का प्रयोग चित्र को अधिक प्रभावशाली बना देता है । १५वीं शती उत्तरार्द्ध के कल्पसूत्र-चित्रों में सोने का प्रयोग खूब हुआ है। ऐसा प्रतीत होता है कि समृद्ध जैन समाज अपने धन का उपयोग चित्रकला के लिये उदारता से कर रहा था। प्रस्तुत पोथी में सिद्धार्थ, त्रिशला तथा अन्य राजकीय व्यक्तियों के प्रासादों में कई प्रकार के अलंकरण दिखाई देते हैं। वस्त्रों में भी मध्यकालीन की तरह यथा हंस, फुल्ले आदि बने हुए हैं, जो तत्कालीन गुजरात में छपे वस्त्रों में मिलते हैं। इस पुस्तक के चित्र पश्चिमी भारतीय शैली में बने हैं, जिसकी विशेषताएं, प्राकृति तथा चेहरे में नुकीलापन और परली आँख है। यहां इस शैली के सम्बन्ध में दो शब्द कहना अनुपयुक्त न होगा। एलोरा, मदनपुर एवं कैलाशनाथ (कांचीपुरम) के भित्ति चित्रों में अजन्ता शैली का अपभ्रंश स्वरूप दिखाई पड़ता है, जिसमें परली प्रांख और नुकीलापन है । यद्यपि उपर्युक्त सभी मन्दिर जैन नहीं हैं, यथा एलोरा का कैलाश मन्दिर शिवालय है किन्तु २०वीं शती के प्रारम्भ में प्रानन्द कुमारस्वामी ने जब बॉस्टन संग्रह का सूची-पत्र लिखा तो उसमें इसे 'जैन' शैली का नाम दिया। बाद में कुमारस्वामी ही अपनी पुस्तक 'हिस्ट्री ऑफ इण्डियन एण्ड इन्डोनेशियन पार्ट' में इसे 'गुजराती' कहते हैं । डब्ल्यू. नार्मन ब्राउन ने इसे 'श्वेताम्बर जैन' तथा 'पश्चिमी भारतीय' दोनों ही नाम दिये । वैष्णव विषय वाले चित्रों के प्रकाश में आने पर शीघ्र ही ये नाम अनुपयुक्त लगने लगे। राय कृष्णदास ने 'पश्चिमी भारतीय शैली' को पसन्द नहीं किया, क्योंकि १४६५ ई० का कल्पसूत्र पूर्वी भारत जौनपुर में बना था । अपनी पुस्तक 'भारत की चित्रकला' (प्रकाशित १६३६) में वह इसे 'अपभ्रंश' कहते हैं। उनके अनुसार यह अजंता शैली का तद्भव रूप है और तत्कालीन भाषा भी इसी नाम से जानी जाती है. प्रतएव अपभ्रंश नाम ही उचित है। बेसिल ग्रे के अनुसार भौगोलिक आधार पर दिया गया नाम अर्थात् पश्चिमी भारतीय शैली ही सर्वाधिक सुविधाजनक है। Jain Education vi ) For Pelvate & Personal use only www.jainelibrary.org

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