Book Title: Kalpasutra
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur

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Page 428
________________ इसका नाम चाहे जो भी हो, इतना निश्चित है कि यह मध्यकालीन भारत की अत्यन्त महत्वपूर्ण शैली है, जिससे बाद में राजस्थानी शैलियां निकलीं और इसने मुगल शैली के निर्माण में भी महत्वपूर्ण योग दिया (जैसा कि मुगल चित्रकारों के नाम सूरजी गुजराती, भीमजी गुजराती से स्पष्ट है निश्चय ही इन्होंने पहले पश्चिमी भारतीय शैली की शिक्षा ली होगी)। Eutut चित्र-विवरण १. सिंह एवं हाथियों वाले आसन पर बैठे महावीर । वह मुकुट एवं आभूषण धारण किये हुए हैं और उनके दोनों ओर एक-एक संगीतज्ञ, चामरधारी एवं सेवक खड़े हैं। (पृ० ४) : २. सिंहासन पर विराजमान महावीर के प्रथम शिष्य पट्टधर गौतम स्वामी और उनके दोनों ओर सेवक खड़े हैं । हाथ में माला है और उन्होंने साधु वेश धारण कर रखा है, जिसे चित्र में सुनहली जमीन पर बुदकियों द्वारा दिखाया गया है । (पृ० ६) ३. देवानन्दा के चौदह स्वप्न, श्रीदेवी के चारों ओर बने हाथी, वृषभ, सिंह, सूर्य, चन्द्र, माला-युगल, ध्वजा, कलश, सरोवर, रत्नराशि, प्रासाद, क्षीर-समुद्र एवं अग्निशिखा । (पृ० १४) ४. इन्द्र -सिंहासन पर बैठे चतुर्भुज इन्द्र, नृत्य देख रहे हैं, साथ में सेवक । (पृ० २२) ५. इन्द्र-स्तव-छत्रयुक्त सुसज्जित सिंहासन पर बैठे इन्द्र महावीर की वन्दना कर रहे हैं, इन्द्र के दोनों पोर एक-एक चामरधारी। (पृ० ३०) ६. ऊपरी हिस्से में हरिनगमेषी द्वारा देवानन्दा के गर्भ का सुषुप्तावस्था में गर्भहरण और निचले भाग में त्रिशला की कुक्षि में गर्भ-स्थापन । (पृ० ५०) ७. प्रासाद में सोती त्रिशला एवं पीछी लिये खड़ी सेविका। (पृ० ६०) ( vii ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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