Book Title: Kalpasutra
Author(s): Bhadrabahuswami, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur

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Page 386
________________ Nor is it proper for a lone monk to be in the company of two nuns, or for a lode nun to be in the company of two monks, or for two monks to be in the company of two nuns. But if a fifth person is present, even if he or she be a novice monk or a novice nun, or if the place can be observed by others or if all doors are open, then it is proper for them to be together. The same rule applies in case of nuns and lay-men. ३. वहां दो साधुनों को अकेली साध्वी के साथ एक स्थान पर रहना नहीं कल्पता है। ४. वहां दो साधुनों को दो साध्वियों के साथ एक स्थान पर रहना नहीं कल्पता है। किन्तु यदि उस स्थान पर कोई पांचवां व्यक्ति विद्यमान हो, चाहे वह क्षुल्लक हो या क्षुल्लिका हो, अथवा अन्य दूसरे लोग उन्हें देख सकते हों, अथवा घर के चारों तरफ के द्वार खुले हुए हों तो उन्हें एकत्र रहना कल्पता है। २६०. वर्षावास में रहे हुए और भिक्षा के लिये गृहस्थ कुलों की ओर गये हुए पात्रधारी श्रमण को जब रहरह कर वर्षा बरस रही हो, तब उसे बगीचे के नीचे, अथवा उपाश्रय के नीचे चला जाना कल्पता है। वहां पर अकेले निग्रन्थ को अकेली श्राविका के साथ एकत्र रहना नहीं कल्पता है । यहां पर भी एकत्र न रहने के संबन्ध में पूर्व-सूत्र के समान ही चार अंग समझ लेने चाहिए। किन्तु यदि उस स्थान पर पांचवां कोई व्यक्ति विद्यमान हो, चाहे वह स्थविर हो या स्थविरा हो, अथवा अन्य लोगों की दृष्टि उन पर पड़ सकती हो, अथवा घर के चारों ओर के द्वार खुले हुए हों, तब उन्हें एकत्र रहना कल्पता है। ein Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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