Book Title: Kaise Banaye Aapna Career
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ सुनने को मिल गई तो सारी समता धरी रह जाती है। एक महिला सामायिक करके घर पहुँची तो देखा कि एक भिखारी घर से बाहर निकल रहा है। उसने पूछा - क्यों भाई मेरे घर में किसलिये गए ? भिखारी ने कहा - मैया, भूखा हूँ कुछ माँगने गया था। उसने पूछा - कुछ मिला ? नहीं मिला 'क्यों?' क्योंकि आपकी बहू ने मना कर दिया कि हम लोग कुछ देते-लेते नहीं हैं - भिखारी ने कहा। बह ने मना कर दिया, उसे क्या हक है मना करने का - सास बड़बड़ाई - चल तू मेरे साथ आ। भिखारी ने सोचा - मांसा तो बहुत दयालु हैं। भिखारी सास के साथ वापस घर के दरवाजे पर पहुँचा। सास अंदर गई और बहू पर चिल्लाई - तुझे क्या अधिकार है भिखारी को मना करने का, अगर मना करना है तो मैं करूँगी और भिखारी की ओर मुड़कर बोली - ऐ चल जा। सामायिक करना बहुत अच्छी बात है पर सामायिक की समता की साधना करना सामायिक से भी ज्यादा ज़रूरी है। यदि आप स्वयं को शांति और आनन्दमय बनाकर रखते हैं तो आप सच्चे संत हैं। घर-बार छोड़कर, कपड़े बदलकर अगर कोई संत बने तो सौभाग्य है, पर स्वभाव का संत तो प्रत्येक को होना ही चाहिए। गुस्सा घर परिवार में ही ज्यादा होता है। पति-पत्नी, पिता-पुत्र, सास-बहू में अधिक गुस्सा होता है। बहू-ससुर कभी गुस्सा नहीं होते, बेटी और बाप के बीच में कभी गुस्से का निमित्त नहीं बनता। न जाने कितनी मन्नत-मनौतियों से आपने पति या पत्नी पाई है फिर लड़ने का क्या कारण है? अरे भाई, आपस में प्रेम से रहो, आपको साथ में जीना है, तो एक ने कहा और दूसरा मान ले तभी तो आपका संबंध शांति से चलेगा। अगर दोनों अपनी-अपनी चलाएँगे तो हालत उल्टी ही होती जाएगी। इसलिए अपने आपको प्रेममय और शांतिमय बनाएँ। अगर आप धर्म में और ईश्वर में आस्था रखते हैं तो गले में आए हुए कफ के समान ही अपने गुस्से को थूक दें। गुस्सा गलती होने से पैदा होता है। हमारी अपेक्षाएँ जब-जब उपेक्षित होती हैं तब-तब हमें गुस्सा आता है। व्यक्ति को हमेशा दूसरों की गलती देखकर ही गुस्सा आता 35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122