Book Title: Kaise Banaye Aapna Career
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 45
________________ और तुकाराम की पीठ पर दे मारा, गन्ने के दो टुकड़े हो गए । तुकाराम ने कहा, - अच्छा ही किया दो टुकड़े कर दिये, ला एक मैं चूस लेता हूँ, एक तू चूस ले! इसे कहते हैं विपरीत वातावरण में भी सकारात्मक व्यवहार। एक घटना और लीजिए : तेरापंथ के आचार्य हुए हैं भीखणजी। वे एक सभा के मध्य प्रवचन कर रहे थे कि एक युवक आया और उन्हें धड़ाधड़ माथे पर चूंसे-ठोले मारने लगा। जनता के मध्य अज़ीब सी हकबकाहट, बेचैनी फ़ैल गई कि यह कौन है जिसने आचार्य पर ठोले मारे। लोगों ने उसे पकड़ा और पीटने लगे तभी आचार्य ने कहा - इसे छोड़ दो, मारो मत। लोगों ने कहा - यह आपको मार रहा है और आप कहते हैं कि इसे छोड़ दें? गुरु ने कहा - भाइयो, यह आदमी मुझे मारने नहीं, अपना गुरु बनाने आया है। अरे, जब हम बाजार में हंडी भी खरीदते हैं तो ठोक-बजाकर देखकर लेते हैं। तो यह भी मुझे बजाकर देख रहा है कि मैं इसका गुरु बनने लायक हूँ या नहीं। विपरीत वातावरण में सकारात्मक व्यवहार ही आत्म-विजय है। वाकई में अगर आप क्रोध को छोड़ना चाहते हैं तो अधिक से अधिक शांतिमय और आनंदमय होने का संकल्प लें। हमारा मन मजबूत है तो हम बहुत जल्दी गुस्से को छोड़ सकते हैं । प्रतिदिन एक घंटे मौन के दौरान अच्छी-बुरी कोई भी घटना घट जाए आप प्रतिक्रिया नहीं करें। गलतियों की क्षमा माँग लें। क्षमा माँगने वाले क्षमा करने वाले से अधिक महान होता है। याद रखिए : शांति वह दौलत है जिसे हर समय अपने पास रखना ही चाहिए, आप अपने ज्ञान का अपने परिवार, स्वास्थ्य और कैरियर के लिए उपयोग करें। माचिस की तीली के सिर तो होता है, पर दिमाग़ नहीं । वह छोटे से घर्षण से जल उठती है। प्रकृति ने हमें सिर भी दिया है और दिमाग़ भी. फिर हम क्रोध के क्षणिक आवेग से क्यों जल उठे। सोचिए क्या हमें माचिस की तीली बनना है या इन्सान बनकर शांत, सौम्य और बेहतर जीवन जीना है। कृपया स्वयं को माचिस की तीली न बनाएँ। स्वयं को इन्सान का दिमाग बनाइए, देवत्व का प्राणी बनाइए, समत्वशील व्यक्तित्व बनाइए। अधिक से अधिक मुस्कुराने की आदत डालिए और प्रसन्न रहिए। क्रोध आपसे कोसों दूर रहेगा। शांति, सफलता और मुक्ति अगर पानी है तो इसका पहला मंत्र है : गुस्सा छोड़िए और हर हाल में मस्त रहिए। 44 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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