Book Title: Kaise Banaye Aapna Career
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 106
________________ तो न जाने क्या-क्या गड़बड़ियाँ करते होओगे।' । हम ही हमारी सोच से सन्देह पैदा करते हैं। हम ही हमारा सपना देखते हैं और हम ही इल्ज़ाम दूसरों पर मढ़ते हैं। इसलिए सोच के प्रति सावधान रहें। सोच ही सद्गति बनाती है और सोच ही दुर्गति के दरवाजे खोलती है। राजर्षि प्रसन्नचंद्र अपनी विचारधाराओं के दूषित और आक्रामक हो जाने पर नरक गति की ओर बढ़ने लग जाते हैं वहीं विचारधारा के संस्कारित और क्षमाशील हो जाने पर स्वर्गगति के पथिक बन जाते हैं। सोच चाहिए सकारात्मक। जैसा सोचेंगे, वैसा बोलेंगे। जैसा बोलेंगे वैसा व्यवहार करेंगे। जैसा व्यवहार करेंगे वैसी ही हमारी आदतें बनेंगी। जैसी आदतें बनेंगी, व्यक्ति का वैसा ही चरित्र बनेगा और जैसा चरित्र होगा वैसी ही व्यक्ति की किस्मत बनेगी। किस्मत को सुधारना है तो चरित्र को सुधारें। चरित्र को सुधारना है तो व्यवहार को सुधारें। व्यवहार को सुधारना है तो वाणी को सुधारें। घूम-फिर कर कोल्हू का बैल वहीं आकर खड़ा होगा कि अगर व्यवहार और वाणी को सुधारना है तो सोच को सुधारें। आदमी के भीतर दो तरह की सोच उठती है। एक है नकारात्मक और दूसरी है सकारात्मक। क्रोध और अहंकार क्या हैं? नकारात्मक सोच के परिणाम हैं। प्रेम और शांति सकारात्मक सोच के परिणाम हैं। आप अपने दिमाग़ को टटोलें। उसके भीतर नकारात्मकताएँ ज़्यादा उठती हैं या सकारात्मकताएँ। यदि हम निराशा, हताश, हीनभावना, चुगलखोरी, चिड़चिड़ापन, खीझ, अवसाद और अनिद्रा के शिकार हैं तो समझ लें कि हम पर नकारात्मक सोच हावी है। जीवन में आनंद, शांति, प्रेम और भाईचारा है, स्मरण-शक्ति दुरुस्त है, जीवन के प्रति सजगता है तो मानकर चलें कि हमारे दिमाग में सकारात्मक सोच का पलड़ा भारी है। व्यक्ति विचारों का दामन थामे घूमता रहता है, भटकता रहता है, सोच के घेरे में घिरा हआ रहता है। 105 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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