Book Title: Kaise Banaye Aapna Career
Author(s): Chandraprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 93
________________ शाम को भी मुस्कुराइये। किसी से मिलते हुए भी मुस्कुराइये, किसी से बिछुड़ते हुए भी मुस्कुराइये। रात को करवट बदलते आँख खुल जाए तब भी मुस्कुराइये, अगर किसी कारण से दिमाग़ में टेंशन हो जाए तो प्रेशर कुकर बन जाइये और ठहाका लगाकर एक मिनट तक हँस लीजिए। बंद मुट्ठी में गुस्सा रखिए और खुली मुट्ठी में मुस्कान। दिमागी तौर पर सदा स्वस्थ और प्रसन्न रहने का यह एक उपयोगी कीमिया है । पाँचवा उपाय : दिमाग़ को विश्राम दीजिए और गहरी नींद भी लीजिए । जहाँ कुछ न करना दिमाग़ी दीवालियेपन की निशानी है वहीं हर समय कुछ न कुछ करते रहना, दिमागी क्षमता का अतिरिक्त उपयोग करने I की निशानी है । अतिश्रम, अतिकाम, अतिसोचना, थकान और तनाव के कारण बनते हैं । इसलिए यह जरूरी है कि आप जहाँ दिमाग़ का अच्छा उपयोग करें वही इसे विश्राम भी दें। रात को जब सोएँ तो गहरी नींद लें। टीवी देखते हुए या मटरगश्ती करते हुए न सोएं वरना नींद उचाट भरी होगी। नींद में भी विचारों की उधेड़बुन जारी रहेगी। नींद तो हमारे शरीर और दिमाग़ की बैटरी को फिर से चार्ज करती है। छह घंटे की गहरी नींद व्यक्ति को 18 घंटे तक क्रियाशील रखती है । शरीर और दिमाग़ की थकावट को दूर करने के लिए हमें रिलेक्सेशन को प्राथमिकता देनी चाहिए। योग और ध्यान तो ऐसा जरीया है जो हमारे शरीर और दिमाग़ को पूरी तरह रिलेक्स करते हुए शांतिमय और आनंदमय बना देता है। विश्राम और नींद की उपेक्षा कर देने के कारण ही क्रोध, चिड़चिड़ापन और अनियंत्रित व्यवहार के शिकार हो जाते हैं। गहरी नींद के लिए जरूरी है। आप निश्चिंत होइये । प्रभु की व्यवस्थाओं में विश्वास कीजिए और परिस्थितियों के आगे घुटना टेकने की बजाय उनका सामना कीजिए । छठा उपाय : सोच को सकारात्मक बनाइये । याद रखिए मनुष्य केवल कर्म से निर्मित नहीं हुआ है वरन् जैसी उसकी सोच होती है, उसका व्यक्तित्व और उसका कैरियर भी वैसा ही निर्मित होता है। मैं कुछ नहीं कर सकता, जैसी निराशा भरी सोच को अपने दिमाग़ से हटाइये और मैं इसे क्यों नहीं कर सकता Jain Education International 92 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122