Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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३९८
कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे..२. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, (पृ. ५अ-१०अ), आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः
सागरशररसशशिप्रमिते., पे.वि. श्लो.२०१. पे..३. दीपावली कल्प, सं., गद्य, (पृ. १०आ-१६अ), आदिः इहेव भरतक्षेत्रं; अंतिः करणी कृतः स्वगंगतः. १२६७८. विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., (२६.५४११, १५४५०-५५).
विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३८५, आदिः देवः श्रीपुण्डरीका; अंतिः पभाविअं पहुण त्ति. १२६७९. विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प्र. ८३, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १५४५०-५४).
विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३८५, आदिः देवः श्रीपुण्डरीका; अंति:१२६८०. दीपोत्सव कल्प सङग्रह व विविधगच्छउत्पत्तिसमय, संपूर्ण, वि. १५६७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.- गणि
अमरमेरू (गुरु उपा. अमरनन्दि, तपागच्छ), गच्छा.- आ. इन्द्रनन्दिसूरि(तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११,
१७४५६-६३). पे.१. दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान; ___अंतिः सुरेन्द्रादिभिः कृतः., पे.वि. श्लो.२६७. पे..२. दीपालिका कल्प, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., पद्य, वि. १३४५, (पृ. ६अ-६आ, प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः चक्रे
दीपालिकाकल्पं., पे.वि. अंतिम ३९ श्लोक लिखा है. पे.-३. विविधगच्छउत्पत्ति समय, सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः पढम चिय सञ्जाओ इगार; अंतिः जयतां
तावदेषोपिसङ्घः., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.६. १२६८१. दीपावली कपो, संपूर्ण, वि. १६८९, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ४२६., (२६४११, १२४३२-३७).
दीपावली कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदिः पणमिय वीरं वुच्छं; अंतिः समठीउ एस अत्थ करो. १२६८२.” दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४३४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५,
१३-१४४३८-४०).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. १२६८३. दीपावलीकल्प, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभननगरे, ले.- मु. वीरविजय, प्र.वि. श्लो.४३८,
(२५.५४११, १२-१३४३५-४०).
दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. १२६८४. शत्रुञ्जय कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., (२५४११, ५४३१-३४).
शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सुअ धम्मकित्तिअन्तं; अंतिः सित्तुज्जए सिद्धं.
शत्रुजयतीर्थ कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रुतं कहीइ सिद्धान; अंतिः विषइ सिद्धिप्रति. १२६८७. मौनएकादशी कथा व दीवाली कल्प, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(२)=१६, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १४
१६४३८-४६). पे..१. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, (पृ. १अ-५आ, पूर्ण), आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः ___ सागरशररसशशिप्रमिते., पे.वि. श्लो.२०१. बीच का एक पत्र नहीं है. पे..२. दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, (पृ. ५आ-१७आ, संपूर्ण), आदिः
श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये., पे.वि. श्लो.४३५. १२६८८. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्र.वि. टिप्पण युक्त
विशेष पाठ, (२६४११.५, ५४४०-४३).. दीपावली कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदिः पणमिय वीरं वुच्छं; अंतिः श्रीसङ्घ भट्टारक.
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