Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Catalog link: https://jainqq.org/explore/018026/1

JAIN EDUCATION INTERNATIONAL FOR PRIVATE AND PERSONAL USE ONLY
Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य (खंड १.१.३) KAILASA ŚRUTASAGARA GRANTHASUCI Descriptive Catalogue of Jain Manuscripts(Vol-1.1.3) यह प्रमाणडणा ब्राह्मणांवरादयामु चदरिसीणामिवमा वादम गगरावति॥ गानामा डिपाएंडि आचार्य श्री गावडे महावीर पहला कोबा तीर्थ ससागरसारि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only मादकमित तपारसना श्रीयादी ROSY Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuti Gyanmandir आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ३ कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची (१.१.३) श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रंथों की विस्तृत सूची : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी तु विना प्रकाशक 6 श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ, गांधीनगर वीर सं. २५३०० वि.सं. २०६१ ० ई. २००४ For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra : सूचीकर्ता : मुनि निर्वाणसागर आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची - रत्न ३ Acārya Shri Kailāsasāgarasūri Smṛti Granthasūci - Ratna 3 कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची : १.१.३ Kailāsa śrutasāgara Granthasūci : 1.1.3 : संपादक : पं. मनोज र जैन डॉ. बालाजी गणोरकर : संपादन सहयोगी : संजय र झा शैलेष प्र. महेता नवीन वि. जैन प्रमोद र शाह आशिष आर. शाह www.kobatirth.org : कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग : केतन दी. शाह : Compiler : Muni Nirvansagar For Private And Personal Use Only : Editors : Pt. Manoj R. Jain Dr. Balaji Ganorkar : Editorial Associates : Sanjay R. Jha Shailesh P. Maheta Navin V. Jain Pramod R. Shah Ashish R. Shah : Computer Programming : Ketan D. Shah Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची रत्न ३ श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ संचालित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिरे देवद्विगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखितग्रंथानां विस्तृतसूची विभाग - १ : हस्तप्रत सूची खंड - ३ - वर्ग १ : जैन साहित्य : आशीर्वाद व प्रेरणा : आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी Descriptive Catalogue of Manuscripts Preserved in Devarddhigani Kṣamāśramana Hastaprata Bhāṇḍāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir under the auspices of Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth Section - I : Manuscripts' Catalogue Class - I : Jain Literature Volume - 3 : Blessings & Inspirations : Acharya Shri Padmasagarsurishwarji For Private And Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Published by Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth, Gandhinagar, India 2004 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobairthorg Acharya Shri Kailassagersuti Gyanmandir Acharya Shri Kailasasagarsuri Memorial Catalogue Series - 3 Kailāsa Śrutasāgara Granthasūci Descriptive Catalogue of Manuscripts - 1.1.3 Preserved in Dēvarddhigani kşamāśramana Hastaprata Bhāndāgāra, Acharya Shri Kailasasagarsuri Gyanmandir o Copy rights : reserved by Publisher o Golden Jubilee Deeksha Day of H.H.Acharya Shri Padmasagarsurishwarji Maharaj Kartik Sudi 3, Vir Samvat 2531, Vikram Samvat 2061, 29th November 2004 O Edition : First ० प्रकाशन सौजन्यः घाणेराव (राजस्थान) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन - चेन्नई O Available at: Shruta Sarita Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra, Koba Tirth O Published by : Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar 382009. INDIA Tel: (079) 23276204, 23276205, 23276252, 30927001 Fax: 23276249 Web site: www.kobatirth.org, E_mail: gyanmandir@kobatirth.org o Price: Rs. 750/= O Printed by : Shreemad Griaphics & Stationers, Ahmedabad. Tel. No. 30913535 ISBN 81-89177-00-1 (Set) 81-89177-02-8 (Vol.3) परम पूज्य आचार्य श्री पद्मसागरसूरि म.सा. की दीक्षा स्वर्ण जयंति के उपलक्ष्य में (8944-2008) For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobirth ora Acharya Shri Kailassegarsur Gyanmandir योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कीर्तिसागरसूरीश्वरजी गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी For Private And Personal use only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अहम् नमः 卐मंगल कामना ॥ जिनकी वाणी में सरस्वती का निवास है, ऐसे श्री तीर्थंकर परमात्मा के श्रीमुख से निकली वाणी, जिसे गणधर भगवंतों ने सूत्ररूप में गुंथित किया है उस जिनागम की परंपरा को वाचना के द्वारा आज तक अविच्छिन्न रखने वाले सभी आचार्य भगवंतों को वंदन. जिनागम को समर्पित टीकाकार-भाष्यकार-चूर्णिकार आदि आचार्य भगवंतों का भी मैं पुण्य स्मरण करता हूँ. अनेक जैन संघों, श्रेष्ठियों तथा यतिवर्ग ने आज तक जैन साहित्य का संग्रह-संरक्षण कर के अनुमोदनीय कार्य किया है, वे सभी धन्यवाद के पात्र हैं. समय परिवर्तन के साथ परिस्थितिवश लोगों का शहर की ओर जाना प्रारंभ हुआ. यतिवर्ग में भी कमजोरी आ गई. इन सब कारणों से ग्रन्थभंडारों की स्थिति चिंतनीय बन गई. बहुत से ग्रन्थ विदेश जाने लगे, कुछ भंडार लोगों की उपेक्षा से नष्टप्राय होने लगे, ग्रन्थों की सुरक्षा भी एक समस्या बन गई. इन सब बातों को देखकर सन् १९७४ में अहमदाबाद के चातुर्मास दौरान ग्रन्थ भंडारों को सुव्यवस्थित करने का मुझे सर्वप्रथम विचार आया. परम श्रद्धेय आचार्य भगवंत श्रीमत् कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. से इस विषय में चर्चा करके उनके मंगल आशीर्वाद से कार्य प्रारंभ करने का संकल्प किया. श्रेष्ठीवर्य स्व. कस्तुरभाई लालभाई आदि ने भी इस कार्य में सहयोग देने की भावना दर्शाई. सन् १९७९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र के नाम से कोबा में संस्था की स्थापना हुई. अनेक स्थानों-प्रान्तों में भ्रमण-विहार करके ग्रन्थों को संग्रहित करने का कार्य प्रारंभ हुआ. धीरे-धीरे संग्रह समृद्ध बनता गया. ज्ञानभंडार को व्यवस्थित करने के कार्य में व उसके मार्गदर्शन में हमारे दो विद्वान मुनि श्री निर्वाणसागरजी और विशेषरूप से मुनि श्री अजयसागरजी ने जो सहयोग दिया है, वह कभी भुलाया नहीं जा सकता. हमारे अन्य मुनिराजों ने भी यथायोग्य सहयोग दिया है. मैं उन सभी के कार्यों की भी हार्दिक अनुमोदना करता हूँ. अनेक श्रीसंघों, व्यक्तियों और जैनेतर लोगों ने भी इस कार्य में मुझे पूर्ण सहयोग दिया है, जिन्हें मैं धन्यवाद देता हूँ. आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर आज भारत का एक सुव्यवस्थित-समृद्ध ज्ञानभंडार है. प्राचीन प्रणाली को कायम रखते हुए आधुनिक साधनों से संपन्न यह ज्ञानमंदिर है. पूज्य साधु-साध्वीजी तथा विद्वान-शोधकर्ताओं द्वारा यहाँ के ग्रंथसंग्रह का सुंदर लाभ उठाया जा रहा है, जो प्रसन्नता का विषय है. इस ज्ञानभंडार के हस्तप्रतों की अपने-आप में विशिष्ट प्रकार की कैलास श्रुतसागर ग्रन्थसूची - जैन हस्तलिखित साहित्य के खंड २ व ३ प्रकाशित होने जा रहे हैं, यह ज्ञानमंदिर के कार्य की सफलता का एक सोपान है. संस्था के ट्रस्टीगण, संस्था में कार्यरत विद्वान् पंडितवर्ग सहित सभी कार्यकर्तागण इस कार्य में अपने योगदान के लिये अभिनंदन के पात्र हैं. ___मुझे विश्वास है कि विश्वभर के विद्वान इस ग्रंथसूची का पूरा लाभ उठाएंगे. ग्रन्थ के संरक्षण, सूचीकरण व प्रकाशन में आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाले दाताओं को भी धन्यवाद देता हूँ. संस्था अपने विकास पथ पर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रहे, यही मेरी मंगल कामना है. पभसागरसूरि. 1ि -12-2 For Private And Personal Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: प्रकाशकीय जिनेश्वरदेव चरम तीर्थंकर श्री महावीरस्वामी योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरीश्वरजी तथा परम पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी की दिव्यकृपा से परम पूज्य आचार्यदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी के शिष्यप्रवर राष्ट्रसंत आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी की प्रेरणा एवं कुशल निर्देशन में आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर के देवर्द्धिगणि क्षमाश्रमण हस्तप्रत भाण्डागारस्थ हस्तलिखित जैन ग्रंथों की सूची के द्वितीय व तृतीय खंडों को परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के दीक्षा स्वर्णजयंती महोत्सव के प्रसंग पर चतुर्विध संघ के करकमलों में समर्पित करते हुए श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ अपार हर्ष की अनुभूति कर रहा है. विश्व में बहुत से ग्रंथालय तथा ज्ञानमंडार हैं, किन्तु प्राचीन परम्पराओं की रक्षा करते हुए ज्ञानतीर्थरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर में हस्तलिखित ग्रंथों का जो बेशुमार दुर्लभ खजाना पूज्य गुरुदेवश्री द्वारा भारत के कोने-कोने से एकत्र किया गया है, वह भूमंडल पर अब अपना उल्लेखनीय स्थान प्राप्त कर चुका है. प्रस्तुत प्रकाशन में संस्था में ही विकसित किये गये कम्प्यूटर आधारित विशेष प्रोग्राम के अंदर प्रविष्ट हस्तप्रतों की विस्तृत सूचनाओं के आधार पर मात्र चुनी हुई सूचनाओं को यहाँ पर प्रकाशित किया जा रहा है. समग्र सूची और भी अधिक विस्तार से ज्ञानतीर्थ के कम्प्यूटरों पर वाचकों हेतु उपलब्ध है. हस्तप्रतों की संप्राप्ति, संरक्षण, विभागीकरण, सूचीकरण तथा रखरखाव के इस कार्य व मार्गदर्शन में पूज्य आचार्यदेव के सभी शिष्यों-प्रशिष्यों का विशेष योगदान रहा है. तपस्वी मुनिप्रवर श्री निर्वाणसागरजी ने हस्तप्रतों की प्रथम कच्ची सूची एवं बाद में पक्की सूची हेतु एक लाख से ज्यादा फॉर्म भरने का वर्षों तक अहर्निश भगीरथ परिश्रम किया है. इस सूचीकरण की अवधारणा को और विकसित करने में तथा कम्प्युटर प्रोग्रामिंग के कार्य में ग्रंथालय विज्ञान की प्रचलित प्रणालियों के स्थान पर महत्तम उपयोगिता व सुझबूझ का उपयोग करने में तथा समय-समय पर सहयोगी बनने हेतु पूज्य मुनिराज श्री अजयसागरजी, यहाँ के पंडितजनों, प्रोग्रामरों और कार्यकर्ताओं ने अपनी शक्तियों का यथासंभव महत्तम उपयोग किया है. इसी तरह पूज्य मुनिराज श्री नयपद्मसागरजी का भी उल्लेखनीय योगदान रहा है जिसके लिए संस्था सभी की अनुमोदना करते हुए हार्दिक धन्यवाद देती है. सभी के मिले जुले समर्पित सहयोग के बिना यह विशालकाय कार्य संभव नहीं था. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्रुतोपासक, सुश्रावक स्व. जौहरीमलजी पारख (सेवा मंदिर, रावटी, जोधपुर ) के द्वारा तैयार किये गये सूचीकरण के पैमाने को ही आवश्यक परिवर्तन के साथ यहाँ पर अपनाया गया है. हम उनके लिए श्रद्धा सुमन सहित आभार व्यक्त करते हैं. किसी भी प्रकार के सरकारी या इसी तरह के अन्य अनुदान को न लेकर मात्र समाज की ही ओर से मिलनेवाले आर्थिक व अन्य सहयोग के द्वारा संस्था में हस्तप्रत सूचीकरण व संलग्न अन्य विविध प्रवृत्तियों हेतु भारत व विदेश के श्रीसंघों, संस्थाओं व महानुभावों का आर्थिक सहयोग यदि नहीं मिल पाता तो यह कार्य आगे बढ़ाना मुश्किल था. समस्त चतुर्विध संघ तथा संस्था के सभी शुभेच्छुकों को इस अवसर पर धन्यवाद दिया जाता है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के इस तृतीय खंड के वित्तीय सहयोग प्रदाता घाणेराव (राज.) निवासी श्रीमती मोहिनीबाई एस. देवराजजी जैन, चेन्नई के प्रति संस्था कृतज्ञता व्यक्त करती है.. परम पूज्य | आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के दीक्षा की स्वर्णजयंति के अविस्मरणिय प्रसंग पर श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र द्वारा प्रकाशित आचार्य श्री कैलाससागरसूरि स्मृति ग्रंथसूची के इस तृतीय रत्न का समाज में स्वागत किया जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है. ट्रस्टीगण सुधीरभाई यू. मेहता, कल्पेश जे. शाह, हेमंतभाई सी. ब्रोकर, श्रीपालभाई आर. शाह, गिरीशभाई वी. शाह, सोहनलाल एल. चौधरी, भीखुभाई चोकसी, किरीटभाई कोबावाला, सेवंतीलाल एम. मोरखिया, अरविंदभाई टी. शाह, प्रवीणभाई एन. शाह, चांदमल पी. गोलिया, घीसूलालजी डी. राठोड, खुबीलालजी एल. राठोड, श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र ट्रस्ट कोबातीर्थ, गांधीनगर २ For Private And Personal Use Only Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir परम पूज्य राष्ट्रसंत प्रवचन प्रभावक युग प्रवर्तक आचार्य भगवंत श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज की दीक्षा पर्याय के स्वर्णिम ५० वर्ष पूज्यपाद आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. का जन्म भाद्रपद सुदी ११, वि.सं. १९९१ के दिन विद्वानों, चिन्तकों, समाजसुधारकों व श्रमण निग्रंथों की विहार भूमि पश्चिम बंगाल स्थित अजीमगंज शहर में हुआ. आपश्री ने बचपन से ही शीलवती माता के कुशल मार्गदर्शन में सुसंस्कारों को ग्रहण करते हुए धार्मिकता की ओर उन्मुख होकर अपने मार्ग का अन्वेषण प्रारम्भ कर दिया था. प्रारम्भिक शिक्षा अजीमगंज में तथा शिवपुरी (म.प्र.) में धार्मिक तथा व्यावहारिक शिक्षा ग्रहण की. स्वामी विवेकानंद से काफी प्रभावित और प्रेरित हुए पूज्यश्री ने किशोरावस्था में ही संपूर्ण भारत का भ्रमण किया. विद्वानों की सत्संगति, शास्त्रों का अध्ययन आपश्री की विशिष्ट अभिरूचि रही है. वि.सं. २०११ को साणंद नगर में कार्तिक वदी ३ को प.पू. गच्छाधिपति आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. के वरद हस्त से दीक्षा ग्रहण कर उन्हीं के शिष्य प्रवर प.पू. शिल्पशास्त्रमर्मज्ञ आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. के शिष्य बने. आपश्री के पुण्य प्रभाव, प्रतिभा एवं शासन प्रभावना के उत्कृष्ट कार्यों को देखते हुए अहमदाबाद में मार्गशीर्ष सुदि ५, वि.सं. २०३० में गणिपद, जामनगर में फाल्गुन सुदि ७, वि.सं. २०३२ को पंन्यास पद तथा महेसाणा के श्री सीमंधरस्वामी जिनप्रासाद के विशाल प्राङ्गण में तत्कालीन गच्छाधिपति दादा गुरु आचार्य श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म.सा. तथा वर्तमान गच्छाधिपति आचार्य श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म.सा. व शिल्पशास्त्रमर्मज्ञ आचार्य श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म.सा. की निश्रा में मार्गशीर्ष वदि ३, वि.सं. २०३३ को आचार्य पद से विभूषित किया गया. विविध संघों एवं लब्धप्रतिष्ठ महानुभावों ने आपश्री को राष्ट्रसंत, प्रवचन प्रभाकर, सम्मेतशिखरतीर्थोद्धारक, उपदेशपटु, प्रखरवक्ता, श्रुतसमुद्धारक आदि पदवियों से अलंकृत कर सन्मानित किया श्रुतसंवर्धक प्रवृत्तियों में निरंतर कार्यरत प.पू. आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म.सा. ने समग्र भारतवर्ष सहित पड़ोसी देश नेपाल की जैन एवं जैनेतर जनता के मन में अपनी एक अमिट छाप छोड़ी है जिसे वह कभी भूला नहीं सकती. आपश्री ने अपने कदम जहाँ भी रखे वहाँ की जनता ने आपको अपने सद्गुरु का दर्जा दिया. आपश्री की सत्प्रेरणा से अनेकानेक जैन शासन के प्राण प्रश्नों का सुखद समाधान हुआ है. संघों में एकता कायम करना, जैन धर्म के विविध विशेषज्ञों को संगठित करना (जैसेजैन संस्थान, जैन व्यापार उद्योग सेवा संस्थान, जैन डॉक्टर्स फेडरेशन, जैन सी.ए. फेडरेशन, जैन एडवोकेट फेडरेशन, जैन श्वे. मू. पू. युवक महासंघ आदि), जिन प्रासादों का निर्माण एवं समुद्धार, जन समुदाय को धार्मिक नीतियुक्त जीवन जीने के लिए अभिप्रेरित करना आदि आपश्री के विशिष्ट सत्कार्य हैं. सभी को साथ में लेकर चलने की भावना के कारण पूज्यश्री समग्र जैन समाज सहित अन्य धर्मावलम्बियों के बीच भी लोकप्रिय बने हैं तथा सभी का सन्मान प्राप्त करने का गौरव हासिल किया है. यूं तो आपश्री की निश्रा में जिनशासन की प्रभावना के अनेकानेक उत्कृष्ट कार्य संपादित हुए हैं, जिसका वर्णन करने पर एक विशालकाय ग्रन्थ का सर्जन हो सकता है. आपकी निश्रा में करीब ६५ से अधिक जिनालयों की अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई है तथा अनेक समाजोपयोगी कार्य निष्पन्न हुए हैं फिर भी श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा तीर्थ तथा यहाँ पर संस्थापित ज्ञानतीर्थ स्वरूप आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर परम पूज्य आचार्यश्री की कलिकाल में आध्यात्मिक- सांस्कृतिक विरासत की अनोखी धरोहर के रूप में अद्भूत देन है, जो पूज्यश्री की अनुपम जिनशासन की सेवा, श्रुतभक्ति एवं श्रुतसेवा की मिसाल के रूप में युगों युगों तक आने वाली पीढ़ियाँ संजो कर रखेंगी. परम पूज्य आचार्यदेव श्री के संयम जीवन के ५० वर्षों के कुछ उल्लेखनीय प्रसंग निम्नवत हैं * गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री बाबुभाई जसभाई पटेल को कह कर आपने शेजेजी नदी के बाँध में होती जीव-हिंसा पर रोक लगवाई थी. बम्बई महानगर पालिका के स्कूलों में विद्यार्थियों को फुड-टॉनिक के रूप में अण्डे दिये जाने के प्रस्ताव को आचार्यश्री ने महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शंकरराव चौव्हाण को कहकर खारिज करवाने में अहम भूमिका निभाई थी. *१९९३ में राजस्थान सरकार सभी ट्रस्टों में सरकारी प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए अध्यादेश लाने वाली है, यह बात जब गुरुदेव को ज्ञात हुई तो उन्होंने तत्कालीन गवर्नर श्री चेन्ना रेड्डी के समक्ष प्रभावपूर्ण ढंग से अपना पक्ष रख कर अध्यादेश वापस For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: करवाया, जिससे धर्म क्षेत्र सरकारी हस्तक्षेप से बच सका. * आचार्यश्री की बहुजन हिताय प्रवृत्तियों से प्रभावित होकर आपके संयम पर्याय की रजतजयन्ती के अवसर पर भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति मान्यवर श्री नीलम संजीव रेड्डी ने मुंबई राजभवन के दरबार हॉल में आपका राजकीय अभिनन्दन किया था. इस अवसर पर उन्होंने आपश्री को राष्ट्रसन्त की पदवी से अलंकृत किया. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * आपकी सत्प्रेरणा से प्रभु श्री महावीर की निर्वाणभूमि पावापुरी गाँव के सभी वर्ग के लोगों द्वारा मांस-मदिरा का पूर्णतः त्याग व जलमन्दिर में मछली पकड़ने की हमेशा-हमेशा के लिए पाबंदी एवं सरोवर की पवित्रता बनाए रखने का शुभ संकल्प लिया गया. * मुंबई गोडीजी, वालकेश्वर, दिल्ली, अजीमगंज, जियागंज, आदि अनेक संघों में देवद्रव्य की पूर्णतः शुद्धि एवं शास्त्रीय परम्परा का पुनःस्थापन किया गया. * आचार्यश्री की दक्षिण भारत की यात्रा ने तो पूज्यश्री को राष्ट्रसंत का बिरूद और भी सार्थक कर दिया. दक्षिण की इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान आपने लोक-कल्याण, धर्म- जागरण और स्थानीय जनता की आध्यात्मिक चेतना के विकास व पोषण के लिये अभूतपूर्व कार्य किए. आपके मधुर व्यवहार से अनेक जैन संघों में अनुशासनप्रियता पुष्ट हुई. आपके सौजन्यशील व शालीन उपदेशों से वर्षों से चले आ रहे अनेक विवाद सरलता से हल हो गए. संघ एक जुट हुए. बरसों बाद दक्षिण भारत के जैन संघों में धर्मजिज्ञासु जनता को सफल कुशल नेतृत्व का अनुभव हुआ, दक्षिण भारत में ज्ञान की विलुप्त धारा एक बार फिर तेज गति से बहने लगी. उत्तर भारत विहार के दौरान आपश्री ने राजस्थान, दिल्ली, उत्तरांचल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, बिहार, बंगाल के अनेक गांवों एवं नगरों में धर्म प्रभावना की आचार्यश्री की निश्रा में सन् १९९५ में हरिद्वार तीर्थ में सभी सम्प्रदायों के संत-संन्यासियों के सहयोग से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ के प्रथम जैन मन्दिर की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई. हरिद्वार के सन्त समुदाय ने आपका शानदार अभिनन्दन किया. • कंपिलपुर तीर्थभूमि के जीर्णोद्धार सम्बंधी मार्गदर्शन किया... वाराणसी में श्री पार्श्वप्रभु जन्मकल्याणक भूमि में विहार कर बनारस हिंदू यूनिवर्सीटी में प्रवचन दिया. * बीस तीर्थकरों की मोक्षकल्याणक भूमि समेतशिखर तीर्थ के विकास और रक्षा के लिए सफल मार्गदर्शन किया. * सम्मेतशिखर, शौरीपुर आदि तीर्थभूमियों के जिनालयों का जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठाएं करवाई. * कलकत्ता महानगरी में अनेकविध शासन प्रभावना पूर्वक ऐतिहासिक चातुर्मास, पार्श्व फाउन्डेशन के तहत साधर्मिक भक्ति हेतु लाखों का फंड एकत्र करवाया, * आपश्री की निश्रा में सन् १९९६ में पुनः श्री सम्मेतशिखर महातीर्थ में श्री भोमियाजी धर्मशाला में जिन बिंबों की भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा, श्वेताम्बर कोठी में प्रतिष्ठा महोत्सव, कुंडलपुर स्थित जिनमंदिरजी का जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठा की. राजगृही में पांचों पहाड़ों की तीर्थ यात्रा के दौरान बौद्धधर्म के संतों व नगरजनों की ओर से पूज्य गुरुवर का अपूर्व नागरिक अभिनन्दन हुआ. गुरुदेवश्री के पाटलिपुत्र (पटना) पहुँचने पर बिहार पत्रकार परिषद ने अभिनन्दन समारोह किया. * सैकड़ों वर्षों के बाद नेपाल में पूज्यश्री ने अपने शिष्य समुदाय सहित प्रथम बार विचरण किया. विहार करके किसी जैनाचार्य का यहाँ प्रथम आगमन था. वीरगंज (नेपाल) में श्री महावीर जन्मकल्याणक पर्व जैन धर्म के चारों संप्रदायों ने अन्य धर्मियों के साथ मनाया. राजधानी काठमाण्डु में श्री महावीरस्वामी जिनमंदिर की भव्य प्रतिष्ठा आपश्री की निश्रा में संपन्न हुई. नेपाल नरेश श्री महाराजा वीरेंद्रवीर विक्रमशाह देव एवं महाराणी ऐश्वर्यादेवी का पूज्यश्री के दर्शन के लिये आना वहाँ के इतिहास के लिए अनुपम घटना कही जा सकती है. जनकपुरी नेपाल में मल्लिनाथ एवं नमिनाथ भगवान के चार-चार कल्याणकों की भूमि पर मंदिर न होने के कारण कल्याणक भूमि में जिनमंदिर युक्त तीर्थ का रूप देने हेतु विशाल आयोजन की प्रेरणा की. अपनी जन्मभूमि अजीमगंज (प. बंगाल) में आपश्री की निश्रा में चार जिनमंदिरों की पुनः प्रतिष्ठा संपन्न हुई.. * सन् २००३ में आपश्री की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में बोरीज तीर्थ का पुनरुद्धार हुआ और प्राचीन देरासर के स्थान पर १०८ फीट ऊँचे उत्तुंग शिखर वाले मंदिर में १६ टन वजन वाली पंचधातु में निर्मित भगवान श्री महावीर प्रभु की प्रतिमा की अंजनशलाका व प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई. यह तीर्थ विश्व मैत्री धाम के रूप में विकसित हुआ है. ऐसे परम उपकारी, मृदुभाषी, सदैव परमानंद में तल्लीन, शांति प्रसारक, प्रखर प्रवचनकार, जैन समाज के अग्रणी संतप्रवर आचार्य श्रीमद् पद्मसागरसूरीश्वरजी महाराज साहेब की दीक्षा की स्वर्णजयंती मनाते हुए मुंबई नगर पावन हो रहा है. यह हम सभी का परम सौभाग्य है. ४ For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्राक्कथन कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची जैन हस्तलिखित साहित्य के प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परम पूज्य आचार्यदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी के दीक्षा की स्वर्णजयंती के अविस्मरणीय प्रसंग पर द्वितीय व तृतीय खंड का प्रकाशन हमारे लिए गौरव की बात है. प्रथम खंड के प्रकाशन के पूर्व से ही अगले खंडों के प्रकाशन हेतु हमारी तैयारियाँ जारी थीं. प्रथम खंड के अनुभव ने इन खंडों के कार्य को हमारे लिए सुगम बना दिया था. प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद अनेक विद्वानों का आग्रह होने की वजह से मूल रूपरेखा में उपयोगिता की दृष्टि से थोड़ा परिवर्तन लाते हुए संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की कृति अनुसार प्रतानुक्रम परिशिष्ट-१ में तथा देशी भाषाओं वाली मूल कृतियों को कृति अनुसार प्रतानुक्रम परिशिष्ट-२ प्रत्येक खंड के अंत में शामिल कर दिया गया है. इस परिशिष्टों हेतु यद्यपि कृतिएकीकरण का शक्य प्रयत्न किया गया है, तथापि यह शक्य है कि एक ही कृति भिन्न-भिन्न नामों से एकाधिक जगहों पर भिन्न-भिन्न प्रतों के साथ मिल सकती है. इस कार्य में सांगोपांगता तो भविष्य में सुसंपादित होकर प्रकाशित होने वाले- कृति पर से प्रत माहिती वाले खंडों के प्रकाशन के समय ही आ सकेगी. वर्तमान कार्य के परिणाम स्वरूप प्राकृत, संस्कृत व मारुगुर्जर आदि देशी भाषाओं में मूल व व्याख्या साहित्य की छोटी-बड़ी कृतियाँ प्रचुर संख्या में अप्रकाशित ज्ञात हो रही है. इनमें से अनेक कृतियाँ तो बड़ी ही महत्वपूर्ण हैं. अनेक महत्व के विद्वानों की कृतियाँ भी अद्यावधि अज्ञात व अप्रकाशित हैं, ऐसा स्पष्ट जान पड़ता है. यद्यपि यह निर्धारण संपूर्ण नहीं है फिर भी लाभार्थियों के लिए यह निःसंदेह उपयोगी सिद्ध होगा. उल्लेखनीय है कि श्री विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानभंडार, आगरा से प्राप्त ज्यादातर प्रतों का समावेश कैलास श्रुतसागर जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय व तृतीय खंडों में हो जाता है. __ इस सूचीपत्र में हस्तप्रत, कृति व विद्वान/व्यक्ति संबंधी जितनी भी सूचनाएँ समाविष्ट की गई हैं उन सब का विस्तृत ब्यौरा, टाइप सेटिंग सम्बन्धी सूचनाएँ पृष्ठ ७ एवं प्रयुक्त संकेतों का स्पष्टीकरण पृष्ठ १० पर मुद्रित है. __ जैन साहित्य एवं साहित्यकार कोश परियोजना के अन्तर्गत शक्यतम सभी जैन ग्रंथों व उनमें अन्तर्निहित कृतियों का कम्प्यूटर पर सूचीकरण का एक बहुत बड़ा महत्वाकांक्षी कार्य है. इस परियोजना की सब से बड़ी विशेषता है, ग्रंथों की सूचना पद्धति. अन्य सभी ग्रन्थालयों में अपनायी गई मुख्यतः प्रकाशन और पुस्तक इन दो स्तरों पर ही आधारित द्विस्तरीय पद्धति के स्थान पर यहाँ बहुस्तरीय सूचना पद्धति विकसित की गई है. इसे कृति, विद्वान, प्रत, प्रकाशन, सामयिक व अन्य सामग्री इन भागों में विभक्त कर बहुआयामी बनाया गया है. ग्रन्थालय सूचना पद्धति में कृति की विभावना स्वतः में अनूठी एवं बहूपयोगी सिद्ध हुई है. कृति को हस्तलिखित प्रतों तथा प्रकाशनों के साथ संयोजित किया गया है, जिससे किसी भी कृति से सम्बन्धित सभी हस्तप्रतों व सभी मुद्रित प्रकाशनों एवं सामयिकों की सूचनाएँ एक साथ मिल जाती हैं. इसी तरह व्यक्ति - विद्वान का भी कृति सर्जक, हस्तप्रत प्रतिलेखक आदि व प्रकाशन, सामयिक के संपादक, संकलनकार, संशोधक, संयोजक, प्रेरक एवं प्राचीन मूर्ति आदि के प्रतिष्ठापक, भरवानेवाले इत्यादि आयामों में एकीकृत परिचय रखा गया है. इस प्रकार प्रत, पुस्तक, कृति, प्रकाशन, सामयिक व एक अंश में संग्रहालयगत पुरासामग्री इन सभी का अपने-अपने स्थान पर महत्व कायम रखते हुए भी इन सूचनाओं को परस्पर संबद्ध कर एकीकृत किया गया समग्र कार्य दौरान पूज्य आचार्यदेव श्रीमत् पद्मसागरसूरीश्वरजी तथा श्रुताराधक मुनिराज श्री अजयसागरजी की ओर से मिली प्रेरणा व प्रोत्साहन ने इस जटिल कार्य को करने में हमें सदा उत्साहित रखा है. साथ ही पूज्यश्री के शिष्य-प्रशिष्यों की ओर से भी हमें सदा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता रहा है, जिसके लिए संपादक मंडल सदैव आभारी रहेगा. ____ मुद्रित ग्रंथों के आधार पर कृति संपादन हेतु श्री रामप्रकाश जगदीश झा, तथा प्रतों की विविध प्रकार की प्राथमिक सूचनाएँ कम्प्यूटर पर प्रविष्ट करने एवं प्रत विभाग में विविध प्रकार से सहयोग करने हेतु श्री संजय सोमाभाई गुर्जर तथा ग्रंथालय विभाग के अन्य सभी सहकार्यकरों को त्वरा से संदर्भ पुस्तकें तथा प्रतें उपलब्ध कराने हेतु हार्दिक धन्यवाद. जीर्ण, चिपकी व फफूंदग्रस्त आदि हस्तप्रतों के पुनरुद्धार एवं रख-रखाव के कार्यों में सहयोगी बननेवाले सम्राट संप्रति संग्रहालय के श्री आसीत वस्तुपालभाई शाह को भी हम धन्यवाद ज्ञापन करते हैं. सूचीकरण का यह कार्य पर्याप्त सावधानी पूर्वक किया गया है, फिर भी जटिलता एवं अनेक मर्यादाओं के कारण क्वचित भूलें रह भी गई होंगी. इन भूलों के लिए व जिनाज्ञा विरूद्ध किसी भी तरह की प्ररूपणा के लिए हम त्रिविध मिच्छा मि दुक्कडम् देते हैं. विद्वानों से करबद्ध आग्रह है कि इस प्रकाशन में रही भूलों हेतु हमारा ध्यान आकृष्ट करें एवं इसे और बेहतर बनाने हेतु अपने सुझाव अवश्य भेजें, जिससे अगली आवृत्ति व अगले भागों में यथोचित सुधार किए जा सकें. - संपादक मंडल. For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा इस परियोजना के तहत सूचीपत्र में मुख्य तीन विभाग किए गए हैं. १ हस्तप्रत माहिती. २ कृति माहिती. ३ विद्वान- व्यक्ति माहिती. यद्यपि कम्प्यूटर में सभी तरह की सूचनाएँ विस्तृतरूप से भरी गई हैं एवं आगे भी उनमें परिष्कार, विस्तार जारी रखने का आयोजन है, तथापि प्रत्येक विभाग में मात्र तत्-तत् विभाग की सूचनाएँ शक्य विस्तार से देकर अन्य विभागों की संबद्ध सूचनाओं को आवश्यक हद तक संक्षेप में ही दिया जाएगा. इन संक्षिप्त सूचनाओं की विस्तृत माहिती के लिए संबद्ध विभाग के सूचीपत्र की अपेक्षा रहेगी. उपयोगिता एवं अनुकूलता के अनुसार उपरोक्त तीनों विभागों के सूचीपत्रों के क्रमशः प्रकाशन का आयोजन है. यहाँ पर सूची प्रकाशन रूपरेखा की मूल अवधारणा में हुए परिवर्तनों, परिवर्धनों के साथ संक्षिप्त ढांचा ही दिया गया है, विशेष विस्तार हेतु कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ में पृष्ठ २२ से २४ देखें. १. हस्तप्रत विभाग इस विभाग में महत्तम उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति की प्रधानता के अनुसार निम्न वर्ग किए गए हैं. ये सूचियाँ यथोपलब्ध प्रत क्रमांक के अनुक्रम से होगी. १.१ जैन कृति वाली प्रतें, १.२ धर्मेतर साहित्यिक आदि कृति वाली प्रतें, १.३ वैदिक कृति वाली प्रतें, १.४ शेष धर्मों की कृति वाली प्रतें. इनमें प्रथम, हस्तप्रत केंद्रित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर : इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ उपयोगिता एवं सूची पुस्तक के कद की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए विविध अनुच्छेदों में शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. (२) कृति माहिती स्तर : इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचनाएँ ही दी गई हैं. पुस्तक के कद को मर्यादित रखने के लिए भी यह आवश्यक था. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती तो द्वितीय कृति विभाग वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. प्रत्येक खंड में तत्-तत् खंड की कृति परिवारों के अकारादि क्रम से प्रत क्रमांक का परिशिष्ट भी होगा. १.५ हस्तप्रत विभाग के परिशिष्ट : इस वर्ग में हस्तप्रत विभागीय विविध परिशिष्टों का समावेश किया जाएगा. १.५.१ प्रत, पेटांक व कृति लेखनगत विशिष्ट प्रतिलेखन पुष्पिकाओं का संग्रह., १.५.२ प्रतिलेखन वर्ष से प्रत क्रमांक, १.५.३ प्रतिलेखन स्थल से प्रत क्रमांक, १.५.४ विद्वान/व्यक्ति (प्रतिलेखक आदि) नाम से प्रत क्रमांक. २. कृति विभाग इस विभाग के तहत कृति को केन्द्र में रखकर उससे संबद्ध अनेकविध सूचनाएँ निम्नोक्त प्रकार से आएगी. २.१ कृति पर से प्रत माहिती : यद्यपि खंड १.१.२ के प्रकाशन से प्रत्येक खंड के अंत में उस-उस खंड की कृतियों का यह परिशिष्ट संक्षिप्त रूप से दिया जा रहा है, तथापि सभी खंडों की कृतियों को अपनी महत्तम विस्तृत सूचनाओं के साथ संकलित रूप से देखने की सुविधा के लिए प्रतानुसार कृति माहिती के सभी खंड छप जाने के बाद निम्नोक्त प्रकार से अलग से भी प्रकाशित करने का आयोजन है. २.१.१.१ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.२ जैन मारूगुर्जर, गुजराती, राजस्थानी इत्यादि देशी भाषाओं की - स्थिर कृतियाँ, २.१.१.३ जैन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश - फुटकर कृतियाँ, २.१.१.४ जैन मारूगुर्जर आदि देशी भाषा - फुटकर कृतियाँ, २.१.२.१ से ४ धर्मेतर शेष - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ, २.१.३.१ से ४ वैदिक - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ, २.१.४.१ से ४ अन्य धर्म - उपरोक्त चारों प्रकार की कृतियाँ. २.२ आदिवाक्य से कृति माहिती, २.३ अंतिमवाक्य से कृति माहिती, २.४ विद्वान नाम से कृति माहिती,२.५ रचना वर्ष से कृति माहिती, २.६ रचना स्थल से कृति माहिती, २.७ भाषा पर से कृति माहिती, २.८ विषय विभाग पर से कृति माहिती. For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३. विद्वान/व्यक्ति व गच्छ माहिती विभाग इस विभाग में कृति व हस्तप्रतों से संबंधित विद्वान / व्यक्तियों एवं गच्छों की विविध प्रकार से सूचनाएँ देने का आयोजन है. ३.१ विद्वान/व्यक्ति माहिती : यह वर्ग विद्वान / व्यक्तियों से संबद्ध विस्तृत माहिती का होगा व विद्वान नाम / उपनाम के अकारादि क्रम से यह सूची होगी. यह सूची अनेक उपवर्गों में विभक्त होगी.. ३.१.१ जैन साधुओं की सूची, ३.१.२ जैन साध्वियों की सूची, ३.१ ३ जैन श्रावकों की सूची ३.१४ जैन श्राविकाओं की सूची, ३.१.५ शेष विद्वान/व्यक्तियों की सूची . ३.२ विद्वान शिष्य / संतति माहिती ३.३ विद्वान शिष्य परम्परा वंशवृक्ष, ३.४ विद्वान-गच्छ माहिती वर्ग : गच्छ को केन्द्र में रखते हुए निम्नोक्त वर्गों की सूचियाँ बनेंगी. ३.४.१ गच्छ माहिती, ३.४.२ गच्छ शाखा प्रशाखा वंशवृक्ष, ३.४.३ गच्छानुसार विद्वान माहिती. सूची प्रकाशन की यह एक संभावित संक्षिप्त रूपरेखा है. अनुभवों, उपयोगिता एवं व्यावहारिक मर्यादाओं के आधार पर इसमें यथासमय योग्य परिवर्तन भी किया जाएगा. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण जैन हस्तप्रतों का समावेश करनेवाली हस्तप्रत आधारित इस सूची में सूचनाएँ दो स्तरों पर दी गई हैं. (१) प्रत माहिती स्तर (२) प्रतगत कृति माहिती स्तर. ये सूचनाएँ विस्तार से कैलास श्रुतसागर ग्रंथसूची- जैन हस्तलिखित साहित्य खंड १.१.१ के पृष्ठ ३३ से ३८ पर मुद्रित हैं. यहाँ पर मात्र संक्षिप्त रूप से व प्रथम खंड के प्रकाशन के बाद परिवर्तित सूचनाओं का ही परिचय दिया गया है. प्रत माहिती स्तर इस स्तर पर प्रत सम्बन्धी उपलब्ध सूचनाएँ विविध अनुच्छेदों में निम्नोक्त क्रम से शक्य महत्तम विस्तार से दी गई हैं. यद्यपि कम्प्यूटर पर ये सूचनाएँ और भी विस्तार से उपलब्ध हैं. १. प्रत क्रमांक : प्रत्येक प्रत का यह स्वतंत्र क्रमांक है. इस विभाग में मात्र जैन कृतियोंवाली प्रतों का ही समावेश होने से व बीच-बीच में जैनेतर आदि अन्य वर्गों की प्रतें भी अनुक्रम में होने से वे क्रमांक यहाँ नहीं मिलेंगे. यह क्रमांक अनुच्छेदParagraph की बायीं ओर निकला हुआ गाढ़े अक्षरों Bold type में छपा है. २. प्रत महत्तादि सूचक चिह्न : प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने, कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने, अशुद्ध होने इत्यादि हेतु विद्वानों को प्रत की इस महत्ता का स्तर बताने के लिए क्रमांक के बाद में कोष्टक के अंदर इस तरह (+), (-), (# ) चिह्न दिए गये हैं. २.१. प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (+) का चिह्न लगाया गया है. यह चिह्न न होने का मतलब यह नहीं होता कि प्रत शुद्ध नहीं है. २.२ प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद () का चिह्न लगाया गया है. इनका उल्लेख 'प्र. वि. ' में प्राप्त होगा. २.३ कट, फट जाने आदि के कारण हुई प्रत व पाठ की निम्नोक्त अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के अंत में (# ) का चिह्न लगाया गया है. सूची में इनका उल्लेख 'दशा वि.' के तहत प्राप्त होगा. ३. प्रतनाम : यह नाम प्रत में रही कृति / कृतियों के प्रत में उपलब्ध नाम के आधार से बनता है. यथा - बारसासूत्र, आवश्यकसूत्र सह नियुक्ि व टीका, कल्पसूत्र सह टबार्थ व पट्टावली, गजसुकुमाल रास व स्तवन संग्रह, स्तवन संग्रह, जीवविचार, कर्मग्रंथ आदि प्रकरण सह टीका.... इत्यादि प्रत में दिए गए नामों से सम्बन्धित विस्तृत ब्यौरा प्रथम खंड के पृष्ठ ३३-३४ पर देखें. ४. पूर्णता - हस्तप्रत की पूर्णता, उपयोगिता व स्पष्टता को ध्यान में रखते हुए इसे निम्नप्रकार से वर्गीकृत की गई है. १. संपूर्ण : पूरी तरह से संपूर्ण प्रत, २. पूर्ण मात्र एक देश से अत्यल्प अपूर्ण प्रतों को अपूर्ण न कह कर 'पूर्ण' संज्ञा ७ For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: दी गई है, ३. प्रतिपूर्ण : प्रतिलेखक द्वारा कोई खास अध्याय अंश मात्र ही लिखा हो और उतना संपूर्ण हो, ४. अपूर्ण : प्रत के आदि/अंत का एक बडा अंश अनुपलब्ध हो. ५. त्रुटक : बीच-बीच के अनेक पत्र अनुपलब्ध हो. ६. प्रतिअपूर्ण : प्रतिलेखक ने ही कोई खास अध्याय मात्र ही लिखा हो और उसमें भी पत्र अनुपलब्ध हो.. • जहाँ प्रत व प्रतगत कृतियाँ दोनों की पूर्णता एक जैसी होगी, वहाँ मात्र प्रत स्तर पर ही पूर्णता का उल्लेख मिलेगा. परंतु प्रतगत किसी भी कृति की पूर्णता यदि प्रत से भिन्न होगी, वहाँ प्रत्येक कृति के साथ भी खुद की पूर्णता का उल्लेख मिलेगा. - • कृति स्तर पर यह मात्र संपूर्ण, पूर्ण व अपूर्ण इन तीन प्रकारों में से कोई एक ही मिलेगा. ५. प्रतिलेखन संवत् : प्रत में विक्रम, शक आदि संवत् उपलब्ध हो तो वही वास्तविक रूप से दिया गया है, अन्यथा लेखन शैली, अक्षरों Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir की लाक्षणिकता आदि के आधार पर विक्रम संवत् के अनुमानित शतक का उल्लेख किया गया है. ६. प्रत दशा प्रकार : श्रेष्ठ, मध्यम, जीर्ण. दशा सम्बन्धी विशेष माहिती 'प्र. दशा' के अंतर्गत दी गई है. - ७. पृष्ठ माहिती (पृ.) : प्रत के प्रथम व अंतिम उपलब्ध पृष्ठांक, घटते-बढ़ते पृष्ठ व उनका योग एवं कुल उपलब्ध पृष्ठ इतनी माहिती यहाँ आएगी. यथा १ से ५०४ (५, ७, १५, २७) = ४६:५ से ६०-३ (३, १७, १८) = ५३५ से ६०-३ (३, १७, २८) + २ (४,३५) = ५५. यहाँ अंक पर ८. लिपि माहिती प्रत जिस लिपि में लिखी गई है, उसका उल्लेख यहाँ किया गया है. * का चिह्न अवास्तविक घटते पत्र का सूचक है. ९. प्रत प्रकार : सामान्यतः कागज की बिना बंधे छुट्टे पत्रों वाली प्रतों से भिन्न, किसी भी पदार्थ पर लिखी गई गुटका आदि • प्रकार की प्रत होगी तो उसका उल्लेख यहाँ आएगा. अन्यथा 'प्रत सर्व सामान्य कागज के बिन बंधे पत्रों की है' यह समझ लिया जाना चाहिए. १०. प्रतिलेखन स्थल माहिति (ले. स्थल) जिस स्थल पर प्रत लेखन कार्य हुआ हो, उसका उल्लेख यहाँ दिया गया है. ११. प्रतिलेखक नाम (ले.) : प्रत की प्रतिलिपी लिखने - लिखवाने वाले विद्वान या लहिया आदि नाम गुरू, गच्छ माहिती के साथ यहाँ दिए गए हैं. १२. प्रतिलेखन पुष्पिका उपलब्धि संकेत (प्र.ले.पु. ) : प्रत में प्रतिलेखन पुष्पिका (प्रतिलेखक सम्बन्धी विस्तृत परंपरा का उल्लेख) की उपलब्धि की मात्रा के अग्रलिखित संकेत यहाँ दिए गए हैं जैसे मध्यम, विस्तृत. १३. प्रतविशेष (प्र.वि.) : प्रत सम्बन्धी शेष उल्लेखनीय अन्य मुद्दों एवं प्रतगत कृति सम्बन्धी परन्तु सम्भवतः इसी प्रत में उपलब्ध; ऐसी उल्लेखनीय बातों का समावेश यहाँ किया गया है. प्रत क्रमांक के साथ (+) (७) द्वारा सूचित प्रत विशेषताओं का उल्लेख भी यहाँ होगा. १४. पूर्णता विशेष (पू.वि.) : प्रत संपूर्ण नहीं होने पर कृति का कौन सा अंश उपलब्ध / अनुपलब्ध है, यह स्पष्टता इसमें होगी. १५. दशा विशेष (दशा. वि.) प्रत क्रमांक के साथ द्वारा सूचित प्रत की जीर्ण दशा व उसकी मात्रा आदि सम्बन्धी स्पष्टता यहाँ पर दी गई है. इसके आधार पर प्रत की उपयोगिता तय हो सकती है. १६. प्रतिलेखन श्लोक (प्र.ले. श्लो.) प्रत के अंत में प्रतिलेखक द्वारा दिए जाने वाले हृदयोद्गार श्लोकादि का संकेत अपने श्लोक क्रमांक के साथ यहाँ दिए गए हैं. यह श्लोक क्रमांक ज्ञानमंदिर में संग्रहित ऐसे श्लोकों की सूची में से दिया गया है. यह सूची भविष्य में योग्य खंड में प्रकाशित की जाएगी. १७. लंबाई, चौड़ाई: प्रत की लंबाई-चौड़ाई आधे से. मी. के अंतर की शुद्धि के साथ यहाँ दी गई है.. १८. पंक्ति-अक्षर : पृष्ठगत पंक्ति व पंक्तिगत अक्षरों को भी अंदाजन गिन कर लघुतम व महत्तम रूप से दिया गया है. कृति माहिती स्तर इस द्वितीय स्तर पर प्रत में रही कृतियों का निर्णय करने हेतु आवश्यक लघुतम सूचना ही दी गई है. कृति की शक्यतम विस्तृत माहिती 'द्वितीय कृति विभाग' वाली सूची में दिए जाने का आयोजन है. १. पेटांक (पे.), २. पेटा कृति नाम (पे. नाम), ३. पेटा कृति पृष्ठ (पृ.), ४ . ( पे. वि . ) पेटा कृति विशेष व पेटा कृति का प्रत में उपलब्ध परिमाण, ५. कृति नाम, ६. कर्ता का स्वरूप, नाम, ७ कृति भाषा, ८. कृति गद्य, पद्य प्रकार, ९. कृति , ८ For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir रचना वर्ष, १०.(आदिः) प्रत में उपलब्ध कृति का आदिवाक्य. ११.(अंति:) प्रत में उपलब्ध कृति का अंतिमवाक्य, १२. कृति की प्रतगत पूर्णता. • उपर्युक्त मुद्दों में १ से १२ तक के सभी मुद्दे प्रत में पेटांक होने और इन पेटांकों के स्वतंत्र नाम होने पर दिए गए हैं. • प्रत में पेटांक रहित कृतिवाली प्रतों हेतु ५ से १२ तक के मुद्दे आएँगे. • बिना स्वतंत्र पेटांक नाम वाले संयोगों में उपरोक्त सूची से निम्नलिखित मुद्दे समाविष्ट किए गए हैं - १. पेटा कृति अंक, (३. प्रत में पेटा कृति के पृष्ठ - पृ., ५. कृतिनाम, ६. कर्ता, ७. भाषा, ८. कृति प्रकार, ९. कृति रचना वर्ष, १०. आदिवाक्य, ११. अंतिमवाक्य. १२. कृति की प्रतगत पूर्णता.) कृति नाम के अंत में star '' हो तो वह कृति विभिन्न अज्ञात विद्वान कर्तृक, अनेक अस्थिर समान कृतियों के समुच्चय रूप या फुटकर कृति रूप में जाननी चाहिए. ऐसा बहुधा टबार्थ व श्लोक संग्रह हेतु हुआ है. आदि, अंतिमवाक्य में अक्सर (१) व (२) कर के दो दो आदि/अंतिम वाक्य दिए मिलेंगे. यह विभिन्न प्रतों में सामान्य या विशेष फर्क के साथ मिलनेवाले अनेक आदि/अंतिमवाक्यों की वज़ह से उत्पन्न होने वाले भ्रम को यथा संभव दूर करने के लिए किया गया है. टबार्थ बालावबोध व स्तवन आदि देशी भाषाओं की कृतियों में ऐसा प्रचूरता से प्राप्त होता है. प्राकृत, संस्कृत भाषा की पाक्षिकसूत्र, उपदेशमाला जैसी कृतियों में भी प्रथम गाथा में फर्क पाया जाता है. आदिः कोलम में यदि प्रत में कृति जहाँ से प्रारंभ होती है वह पृष्ठ न हो तो यहाँ पर आदि वाक्य की जगह '' दिया गया है. एवं पृष्ठ होने पर भी यदि पत्र के फट जाने आदि के कारण आदिवाक्य यदि अपठनीय है तो वहाँ पर '' का चिह्न दिया गया है. यही बात अंतिमवाक्य के लिए भी लागू होती है. कृति में कर्ता का नाम अनेक रूपों में मिलता है यथा उपा. यशोविजयजी हेतु यश, जश नाम भी प्रयुक्त मिलते है. ऐसे में तय होने पर कर्ता का मुख्य नाम ही यहाँ पर लिया गया है. कृति व विद्वान के अपरनाम यद्यपि कम्प्यूटर पर उपलब्ध हैं, फिर भी इस सूची में उनकी उपयोगिता अत्यल्प होने से व कद की मर्यादा होने से यहाँ नहीं दिए गए हैं. मुंबई ॐ हस्तप्रत सुचीकरण में विशिष्ट आर्थिक सहयोगियों की नामावली १. शेठ आणंदजी कल्याणजी (धार्मिक धर्मादा ट्रस्ट), पालडी अहमदाबाद २. श्री जवाहरनगर जैन श्वे. मू. पू. जैन संघ, गोरेगांव ३. जैन सेन्टर ऑफ नॉर्धन केलिफोर्निया अमेरिका श्री श्वेतांबर मूर्तिपूजक जैन बोर्डिंग अहमदाबाद ५. श्री शंभुकुमार कासलीवाल ६. शेठ मोतीशा जैन रिलिजीयस एन्ड चेरीटेबल ट्रस्ट ७. श्री सांताक्रुज तपागच्छ जैन संघ मुंबई ८. फेडरेशन ऑफ जैन एसोसीएसन इन नोर्थ अमेरीका, "जैना" ह. डॉ. प्रेम गडा अमेरिका ९. एम. जे. फाउन्डेशन १०. कल्याण पार्श्वनाथ जैन संघ, चौपाटी मुंबई मुंबई मुंबई मुंबई आप सभी धर्मप्रेमी श्रीसंघों तथा महानुभावों की उदार दानशीलता के कारण ही हस्तलिखित ग्रंथों के संरक्षण व संवर्धन की आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबातीर्थ की प्रस्तुत परियोजना सफलता पूर्वक प्रगति के सोपान पर अग्रेसर है. अन्यथा यह कार्य इतना सरल नहीं था. For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत कृति /प्रत/पेटांक नाम के बीच : का, की, के, से इत्यादि तेरा. जैन श्वेतांबर तेरापंथी विभक्ति सूचक दि. जैन दिगंबर प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - दुर्वाच्य, देना. देवनागरी (लिपि) अवाच्य, अशुद्ध पाठ - सूचक पठ. पठनार्थ (प्रतिलेखन पुष्पिका) प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की महत्ता प+ग पद्य व गद्य (कृति प्रकार) सूचक - कर्ता द्वारा लिखित प्रत, कर्ता के शिष्य द्वारा पं. पंन्यास, पंडित (विद्वान स्वरूप) लिखित, प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित, रचना के समवर्ती वर्ष के पूर्व में हो तो संवत् से उतने वर्ष पूर्व का सूचक. काल में लिखित, संशोधित पाठ, शुद्धप्रायः पाठ, टिप्पण यथा- विपू. ७वी. = विक्रम पूर्व सातवीं सदी. युक्त विशेष पाठ, पाठ में सुगमता हेतु विविध प्रकार के पू.वि. पूर्णता विशेष चिह्नयुक्त प्रत यथा- अन्वय दर्शक अंक युक्त, पदच्छेद पृष्ठ (प्रत माहिती स्तर पर व पेटा कृति स्तर पर) चिह्न, संधिसूचक चिह्न, वचन विभक्ति चिह्न, क्रियापद पे. पेटांक, पेटाकृति अनुक्रम प्रत माहिती स्तर में प्रतगत सूचक चिह्न कुल पेटा कृति, कृति माहिती स्तर में पेटा कृति क्रमांक कृति नाम के बाद प्रयुक्त होने पर संयुक्त कृति की पे.नाम पेटाकृति नाम पहचान - यथा आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व पे.वि. पेटांक विशेष, पेटाकृति विशेष तीनों की लघुवृत्ति. प्र.वि. प्रत विशेष प्रत क्रमांक के अंत में छोटे उर्ध्वाक्षरों में - प्रत की प्र.ले.श्लो. प्रत के अंत में मिलने वाले प्रतिलेखन श्लोक अवदशा, पाठ नष्ट हो जाने से उपयोगिता में कमी (जलात् रक्षेत्... इत्यादि) सूचक. इस हेतु दशा विशेष में निम्न संकेत हो सकते प्र.ले.पु. प्रतिलेखन पुष्पिका प्रा. प्राकृत (भाषा) मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया (खंडित). टीकादि का बौ. बौद्ध अंश नष्ट है. मूल व टीका का अंश नष्ट है. टिप्पणक मा.गु. मारुगुर्जर (भाषा) का अंश नष्ट है. अक्षर फीके पड़ गये हैं. अक्षर मिट गये मु. मुनि (विद्वान स्वरूप) हैं. अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. अक्षर की मूपू. जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक स्याही फैल गई है. जीर्णतावश नष्ट होने लगे हैं. जीर्णतावश राज. राजस्थानी (भाषा) नष्ट हो गये हैं. लिखवा. लिखवाने वाला (प्रतिलेखन पुष्पिका) परिशिष्टों में प्रत क्रमांक के अंत में प्रत की अपूर्णता ले. प्रतिलेखक, लहिया, Scribe (प्रतिलेखन पुष्पिका) सूचक. अपूर्ण, त्रुटक, प्रतिअपूर्ण हेतु. ले.स्थल लेखन स्थल (प्रतिलेखन पुष्पिका) आदिवाक्य अनुपलब्ध. वी. वर्ष संख्या के पूर्व होने पर वीर संवत्, वर्ष संख्या अपभ्रंश (भाषा) पश्चात होने पर 'वीं सदी' यथा वी ८वीं सदी अंति: अंतिमवाक्य (कृति माहिती) विक्रम संवत् आ. आचार्य (विद्वान स्वरूप) वैदिक आदि: आदिवाक्य (कृति माहिती) शक संवत् उपा. उपाध्याय (विद्वान स्वरूप) श्रावक (विद्वान स्वरूप) गच्छा. गच्छाधिपति ( विद्वान स्वरूप) सर्वग्रं. मूल व टीका आदि का संयुक्तरूप से सर्व ग्रंथाग्र (परिमाण ग. गणि (विद्वान स्वरूप) प्रत व पेटांक विशेष में) गा. गाथा (परिमाण) सं. संस्कृत (भाषा) गुज. गुजराती (भाषा) सा. साध्वीजी (विद्वान स्वरूप) ग्रं. ग्रंथाग्र (परिमाण) स्था. जैन श्वेतांबर स्थानकवासी जैदेना. जैन देवनागरी (लिपि) (-) अप. अपनर १० For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir अनुक्रमणिका मंगलकामना प्रकाशकीय........... श्री पद्मसागरसूरि म.सा. की दीक्षा पर्याय के स्वर्णिम ५० वर्ष ...... प्राक्कथन. .............. ........... कैलास श्रुतसागर सूची प्रकाशन की रूपरेखा .. प्रस्तुत हस्तप्रत सूचीगत सूचनाओं का स्पष्टीकरण .. हस्तप्रत सूचीकरण सहयोग सौजन्य .. प्रस्तुत सूची में प्रयुक्त संक्षेप व संकेत .... अनुक्रमणिका हस्तप्रत सूची.. ...१-४९७ परिशिष्ट: कृति परिवार की मूल कृति के अकारादि क्रम से... .... .४९८-४९९ ...५००-५५९ १. प्रत-पेटा कृति क्रमांक सूची (संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंशादि) २. प्रत-पेटा कृति क्रमांक सूची (मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी आदि)........ ............५६०-५९० प्रस्तुत सूची पत्र में निम्नलिखित संख्या में सूचनाओं का संग्रह है. 0 प्रत क्रमांक - ९३१५ से १३८२५. 0 इस सूचीपत्र में मात्र जैन कृतियों वाली प्रतों का ही समावेश किया होने से वास्तविक रूप से ३८६० प्रतों का समावेश इस खंड में हुआ है. ० समाविष्ट प्रतों में कुल २३९० कृति परिवारों का समावेश हुआ है. ० इन परिवारों की कुल ३५८५ कृतियों का समावेश हुआ है. 0 उपरोक्त कृतियाँ प्रतों में कुल ७६४४ बार आई हैं. S For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ || श्री महावीराय नमः || || श्री बुद्धि-कीर्ति-कैलास-सुबोध-कल्याण-पद्मसागरसूरि सद्गुरुभ्यो नमः ।। कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ९३१६. निरियावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ६८, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, गच्छा.- आ. माणेकचन्द(लुङ्कागच्छ), ले.- ऋ. मधु, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४१२, ६x४३-४५). पे.-१.पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. १आ-२७आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणि कालि तेणि; अंतिः पूर्वपाठनो कहवो., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे..२.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. २७आ-३०अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जौ हे भगवन्त समण०; अंतिः महाविदेहइ सीझस्यइ., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे..३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ३०अ-५६अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जौ हे पूज्य; अंति: गाथामाहे छे तिम., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे.४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ५६अ-५९अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पूज्य श्रमण; अंतिः सर्व पाछली परे कहेवो., पे.वि. मूल-अध्याय १० अध्ययन. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ५९अ-६८अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जो हे पूज्य श्रमण; अंतिः बारइ उदेसा., पे.वि. मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. ९३१७. जम्बूद्विपप्रज्ञप्ति सह कठिनपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १६९५, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., ले.स्थल. घनोघपुर, प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४१५४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, १३४४२-४६). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-कठिनपदटिप्पण, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंति:९३१८. नलदवदन्ती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-६ खंड; प्र.पु.-मूल-खंज-६ ढाल-३९, ९४१,, ग्रं. १३५७, (२६४११.५, १५४४५-४८). नलदमयन्ती रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७३, आदि: सीमन्धरस्वामी प्रमुख; अंतिः चतुर माणस चित्त वसी. ९३२३. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. प्रल्हादनपुर, ले.- ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मयाचन्दजी, लुङ्कागच्छ), पठ.- ऋ. शिवजी (गुरु ऋ. वर्द्धमान), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२५.५४११.५, ४४३२-३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः त्रिण भुवननइ विषइ अंतिः थकी कह्यौ छे. ९३२४. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पं. जसविजय, प्र.वि. मूल-गा.५३., (२६४११.५, ४ ५४३६-३८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीन भवन; अंतिः थकी कह्यौ छे. ९३२८. रत्नपाल रास, पूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ४२-२(१ से २)=४०, जैदेना., ले.स्थल. प्रांतिज, ले.- ऋ. जोईता (गुरु ऋ. कल्याणजी, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-खंड-४., पू.वि. खंड-१ की ढाल-२ की गा.१२ तक नही है., (२६४१२, १९४३९-४०). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:-; अंति: मोहनविजये विलासेजी. ९३२९." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. १३२, जैदेना., ले.स्थल. अवंतिकानगरे, ले. ऋ. सरुपचन्द्र, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६.प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ४५४५., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५४११, ६-१३४३४-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हुवो; अंतिः कह्यो तिको अमे कह्यो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंति: #. ९३३०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., ले.स्थल. पलाणा, ले.- पं. मनोज्ञविजय (गुरु पं. नायकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., (२५४१२, ५-६४३६-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंतिः अध्ययन समत्त भणीइ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: #. ९३३१. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२, १४-१५४३३-३८). कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः गजपुरनइ विषइं सनत; अंति:९३३४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ९००., (२६४११.५, १४४४५-४८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. ९३३८. गौतमपृच्छा सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., ले.स्थल. धारासणा, प्र.वि. मूल गा.५१., द्विपाठ, (२६४१२, १२४४३-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः जिणवयणमोयगस्स रति; अंतिः मुत्तीखं सासयं पाव. गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य परमानन्द; अंतिः जाणी धर्ममार्ग आदरो. ९३३९." उत्तराध्ययनसूत्र व नियुक्ति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९-११(१ से ११)=८, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४११.५, १५४४४-७४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:- अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति# , आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः९३४०. हरिवंशपुराण, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६०, पे. २, जैदेना., (२५४११.५, १४४३०-३१). For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे..१. हरिवंशपुराण , मु. ब्रह्मजिनदास, सं., पद्य, (पृ. १आ-१६०आ), आदिः सिद्धं सम्पूर्णभव्या; अंतिः भव्यसज्जनवत्सला:., पे.वि. सर्ग-३९. पे.२. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. १६०आ-१६०आ), आदिः पञ्चाग्नि सहन सुगम; अंतिः नही होनी होइ सो होई., पे.वि. गा.२. ९३४१. पुण्यसार रास, नन्दीसूत्र व गाथा, संपूर्ण, वि. १७६७, मध्यम, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., (२५४११.५, १४४३०-३१). पे.१. पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६६६, (पृ. १अ-८आ, संपूर्ण), आदिः नाभिराय नन्दन नमुं; अंतिः नवनिधि होय तस गेह., पे.वि. ढाल-९. पे..२. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, (पृ. ८आ-८आ, प्रतिपूर्ण), आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति:-, पे.वि. गा.१ से ६ तक लिखा है. पे..३. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंति:#. ९३४३.” सालिभद्रधन्ना रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., ले.- मु. सहजशेखर, पठ.- श्रा. साधुभक्ता सारणमल, प्र.वि. संशोधित, (२६४११.५, १५-१६४३९-४०). पे.-१. शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १आ-१९आ), आदिः सासननायक समरियै; ___ अंतिः फल लहिस्यइजी., पे.वि. ढाल-२९. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १९आ-१९आ), आदिः#; अंतिः#. ९३४४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-१ अपूर्ण तक है. टबार्थ पत्र-५ तक लिखा है., (२५.५४११.५, ६४३६-४२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करी महावीर; अंतिः९३४५. सिन्दुरप्रकरण सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, प्र. ६२, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, गच्छा.- मु. माणिकचन्दजी(लुङ्कागच्छ), ले.- ऋ. जेचन्द (गुरु ऋ. चतुरचन्द, लुङ्कागच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल श्लो.१०२., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, ५-१८४३८-४१). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर समुह; अंति: आ मुक्ताफलनी माला. सिन्दूरप्रकर-कथा* , मागु., गद्य, आदिः यतः येषां न विद्या; अंतिः श्रावकनी कथा. ९३४७.” तत्त्वार्थसूत्र-जिनसहस्त्रनाम-पूजाआदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. ७१, पे. २३, जैदेना., ले.स्थल. बालापुर, ले.- ऋ. फुलचन्द, प्र.वि. अशुद्ध पाठ, (२६४११.५, ७-१४४२८-३१). पे-१. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, (पृ. १अ-९अ, संपूर्ण), आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः., पे.वि. अध्याय-१० प्रारंभ व अंतमे मांगलिक गाथायें दी है. पे..२. जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पद्य, (पृ. ९अ-१४आ, संपूर्ण), आदिः प्रसिद्धाष्टसहस्रेद; अंतिः भक्त्या प्रवन्दामहे., पे.वि. श्लो.१६६. पे.३. अभिषेक विधि, श्रा. आशाधर, सं., प+ग, (पृ. १४आ-२२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमन्मन्दिरमस्तके; अंतिः शिवाशाधरपूज्यपादः. पे.-४. अरिहन्त पूजा, सं., प+ग, (पृ. २२आ-२५आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रकथित; अंतिः सन्तु शान्तये. पे.५. सिद्धपूजा, सं., पद्य, (पृ. २५आ-२७आ, संपूर्ण), आदिः ॐ उर्ध्वाधोरयुतं; अंतिः सौभ्येति मुक्तिं. पे:६. कलिकुण्ड पूजा, सं., प+ग, (पृ. २७आ-२९आ, संपूर्ण), आदिः (कारं ब्रह्म; अंतिः शिवं भुक्त्वाभ्युदयं. पे:७. सरस्वती पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, सं.,मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण), आदिः सति श्रुतस्कन्धवने; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४ www.kobatirth.org: वाञ्छित फल बुधि पणि पे.-८. गुरु पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., मागु., गद्य, (पृ. ३०आ-३२अ, संपूर्ण), आदि: सिद्धान्तसूत्र संकि; अंतिः#. पे. ९. षोडशकारण पूजा, सं., प्रा., प+ग, (पृ. ३२अ - ३४आ, संपूर्ण ), आदिः इन्द्रपदं प्राप; अंतिः मुक्तिवरं गणिहिययहरा. पे. १०. दशलाक्षणिक पूजा, प्रा. सं., प+ग, (पृ. ३४-३६अ, संपूर्ण), आदि: स्वर्ग मुक्तिकर: अंतिः तरु देइ फलाइसुमिच्छइ. पे. ११. रत्नत्रय पूजा, सं. प+ग, (प्र. ३६अ -४१आ, संपूर्ण) आदि शुद्धबुद्धस्वचिद्रुप अंतिः मर्धमुत्तारयाम्यहं. " पे.-१२. अनन्तचतुर्दशी पूजा, मु. ब्रह्मशान्तिदास, सं., मागु., प+ग, (पृ. ४२अ - ५६अ, प्रतिपूर्ण), आदिः आवा अरिहन्तं; अंतिः-, पे.वि. अनंतनाथ पूजा तक लिखा है. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे-१३. पद्मावतीव्रतउद्यापन पूजा, सं., मागु., प+ग, (पृ. ५६अ - ६६आ, संपूर्ण ), आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः मातेमजवरी दे अभयवरु. " पे. १४. पार्श्वजिन होरी प्राहिं. पद्य (पृ. ६६आ-६७आ, संपूर्ण), आदि: चालो अब खेलीए होरी अति: पार्श्वप्रग्ट्योरी., " पे.वि. गा. २. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे:-१५. महावीरजिन स्तवन, मु. जिनदास, मागु., पद्य, (पृ. ६८अ -६८अ, संपूर्ण), आदिः सन्देसो देजो रे कहे ; अंतिः याचकने सो कहेवाय जो पे.वि. गा. ५. , कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१६. पे. नाम. सूरजदेवनो सलोको, पृ. ६८आ-६९आ, संपूर्ण सूरजदेव सलोको रिषभसुन्दर मागु, पद्य, आदिः प्रणमुं सारदा गणपत अंतिः होज्यो दोलतदाया., पे. वि. गा.२८. पे १७ पे नाम श्रीऋषभदेवजीनी स्तुति पृ. ६९आ-७०अ संपूर्ण आदिजिन स्तुति कवि ऋषभदास सङ्घवी मागु, पद्य, आदि: प्रह उठी बन्दु: अंतिः ऋषभदास गुण गाय.. पे. वि. , " , गा. ४. पे.-१८. पे. नाम. पारसनाथ थूइ, पृ. ७०अ-७०अ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु, पद्य, आदि पास जिणेसर पूज्या अंतिः जिनजी सुखसम्पतहीतकार, पे.वि. गा. ४. पे - १९. पे. नाम. श्रीबीजनी थुइ, पृ. ७०अ- ७०आ, संपूर्ण बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु, पद्य, आदि दिन सकल मनोहर अंतिः पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे.-२०. पे. नाम. श्रीआदिसरजीनी थुइ, पृ. ७०आ - ७०आ, संपूर्ण आदिजिन स्तुति- वीसलपुरमण्डन, मु. देवकुशल मागु, पद्य, आदि विसलपुर वान्दु अंतिः सङ्घना विघ्न निवार.. पे.वि. गा.४. पे. २१. जैन श्लोक सं., पद्य (५. ७० आ-७०आ, संपूर्ण), आदि # अंतिः #. . " पे:-२२. नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ७१अ - ७१आ, संपूर्ण), आदि: वैशाखे वन मोरीया; अंतिः मिल्या मुगत मझार. पे. २३. विहरमान २० जिन नाम, मागु, गद्य, (पृ. ७१आ-७१ आ. संपूर्ण) आदि सीमन्धरस्वामी अंतिः देवजसा अमितवीर्य, For Private And Personal Use Only ९३४८.” ऋषिमण्डलस्तोत्र वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १२२ - ३ (१,५१*,९४*)+१(२८)=१२०, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं., ( २६ ११, १७५५-६०). ऋषिमण्डल प्रकरण-कथार्णवाङ्क वृत्ति, गणि पद्ममन्दिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदि: -; अंतिः ९३४९. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६१ श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले. स्थल. भूजनगरे, ले. ऋ. चतुरचन्द ( गुरु मु. माणिकचन्दजी, लुङ्कागच्छ), पठ.- ऋ. ताराचन्द (गुरु ऋ. चतुरचन्द, लुङ्कागच्छ); ऋ. जेचन्द (गुरु ऋ. चतुरचन्द, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल- अध्याय - १० प्र. पु. - मूल-ग्रं. २५००, ( २५.५×११, ६-७×२८-३३). Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि तेर्ण चंपा नाम नयरी: अंति दिवसेसु उद्दिसन्ति, उपासकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु, गद्य वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर अंतिः कीजइ पछे समुदेस कीजे. " " ९३५०. धन्नाशालिभद्र रास संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना. ले. स्थल चांणसमा ले. मु. तिलकविजय (गुरु मु. " " . मुक्तिविजय). प्र. वि. खण्ड-२, (२५.५९११.५, १४४४१-४३). धन्नाशालिभद्र रास, मु. भावरत्नसूरि मागु पद्य वि. १७७२ आदि अरिहन्त अनन्त सिद्ध: अंतिः पाणीइ " नवनिधिमङ्गलमाल. ९३५१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व कल्पदीपिका बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. १५१, जैदेना., ले. स्थल. द्राफानगर, पठ ऋ. खुस्यालचन्द (गुरु ऋ. शीवजी, लुकागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान बालावबोध-ग्रं. ३२०० टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित ( २६४११.५, ६- १७४३७-४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र- टवार्थी मागु, गद्य, आदि: ते काल वर्त्तमान अतिः जम्बू प्रते कं. , कल्पसूत्र - कल्पदीपिका बालावबोध, गणि मयाचन्दजी मागु, गद्य वि. १८१४, आदि: प्रणम्य परमं ज्योति अंति बुधैरपरैश्च संशोध्या. " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९३५२.” नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. गमविजय (गुरु मु. नयविजय), प्र. वि. मूल गा.४५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ४४३२-३६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ मागु, गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंतिः अनन्तगुणा अधिक जासे. ९३५३ . आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. ढाल - १६, गा.२२१, (२५.५X११.५, १२×३६-३७). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर मागु पद्य वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर अंतिः होज्यो इम कल्याणो . रे. ९३५४. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. १०३., ( २६ ११.५, ६x४२-४६). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः तुं शाश्वतुं ठाम. ९३५५. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र व वीरजिन स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ३०१, पे. २, जैदेना. ले. स्थल. नवानगरे, ले. साध्वीजी साखरबाई (गुरु साध्वीजी अजबाबाई, गुज. लुङ्कागच्छ.), प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६.५x११.५, ६x४१-४२). - पे. १. पे नाम ज्ञातधर्मकथांगसूत्र सह टवार्थ, पृ. १आ-३००अ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिसुत्तमाणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार श्रीमहावीरने; अंतिः सम्पूर्ण कहिवा., पे.वि. मूल अध्याय - १९ अध्ययन. पे. २. पे नाम वीरजिन स्तवन सह टबार्थ प्र. ३००४-२०१४ महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जइज्जा समणे भयवं; अंतिः सुत्तुमित्तेसु वा वि. महावीरजिन वृद्धस्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जइज्जा समणे नो अर्थ; अंतिः होइ अनन्त सुख पामइ., पे.वि. गा. २१. मूल - गा. २१. ५ " ९३५७. मानतुद्गमानवती रास, संपूर्ण वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना ले. स्थल मांडवी, लेॠ मयाचन्द, पठ वर्द्धमान, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६ ११.५, २०x४२ - ५३). For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मानतुङ्गमानवती रास- मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, वि. १७६०, आदि ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ९३५९. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. स्थल. द्राफापुर, ले. ऋ भूधर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल- २९ (२६.५x१२, २०४६३-६७). चन्द्रलेखा रास मु. मतिकुशल, मागु ९३६०. चन्दराजा चरित्र, संपूर्ण वि. १८९० पद्य वि. १७२८ आदि: सरसति भगवति नमी करी अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. मध्यम प्र. १३७, जैदेना, ले. स्थल. जेसलमेरु ले ॠ अखैचन्द, प्र. वि. ढाल - ४ उल्लास, प्र.ले. श्लो. (४७१) भग्नपृष्टं कटिग्रीवा (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५x१२.५ १३४३६-४३). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना .. ९३६१. ठाणाद्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९०० श्रेष्ठ, पृ. २७१, जैदेना., ले. स्थल. नवानगर, ले. ऋ. अजरामल, प्र. वि. मूल - १० स्थान, ग्रं. ३७५०; टबार्थ-ग्रं. १०५००. इस प्रत में टबार्थ का कर्ता का नाम नही मिलता., (२६×१२.५, ५६×३२-३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज, मागु., गद्य, आदि: (१) श्रीमद्वीरजिनं नत्वा (२) श्रीसुधर्मास्वामी; अंतिः अध्ययनं सम्पूर्ण. ९३६२." कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५३+१(१४०) - १५८, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८.५x१२, ६-१५X३१-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः कल्पसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि नमस्कर हो अरिहन्तने अंति: ; कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंति: ९३६५. प्रज्ञापनसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. २८२, जैदेना., ले. ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रं. १६००० (२८.५४१३, १५०५२-५४% प्रज्ञापनासूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि जयति नमदमरमुकुट; अंतिः जिनवचनसद्बोधम्. ९३६६. दर्शनि जिनमनोनयनाह्लादनोपनिषत, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६-२५(१ से २३,७०,८१ ) =७१, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (३०x११.५, १३x४९-५५). दर्शनिजनमनोनयनाह्लादनोपनिषद् निगम सं., गद्य, आदि:-: अंति: ९३६७. चन्दराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. १३०, जैदेना., ले. स्थल. रीगणोद, ले. ऋ. जेचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. डाल- ४ उल्लास, (२८x१३, १३४३०-३५). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना.. ९३६८.” कर्मप्रकृति सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६३ - २ (५०,१४२ ) = १६१, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीचव अंत के पत्र नहीं हैं., (२९४१३. १५४५४-५६). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः कर्मप्रकृति- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं गद्य आदि प्रणम्य कर्मद्रुम अंतिः " ९३६९. तेजसार रास, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १८९, जैदेना., ले. स्थल. क्लोदी, ले. ऋ. लक्ष्मीचन्दजी (गुरु ऋ. रुपचन्दजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १०९, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा ; (१६) भणजो गुणजो वाचजो, ( २६.५x१४, १४x२९-३२). तेजसारकुमार रास, मु. रामचन्द, मागु, पद्य वि. १८०८ आदि स्वस्ति श्रीचन्दगुरु अंतिः सिद्धि वञ्छित वरे ९३७०." कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. २०० - १(१ ) + १ ( २३ ) = २००, जैदेना., ले. स्थल धनारीनगरे, ले.- भूरालाल दवे, For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ प्र. वि. ९ - व्याख्यान, ग्रं. १२१६, (२५x१३.५, ६x१८-१९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि ९३७१. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २३ जैदेना, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-४ की ढाल ७ की गा. १३ तक " · है. (२६४१३. १९४४३-४७). " श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८ आदिः कल्पवेल कवियण तणी अंति: " ९३७२. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले. स्थल. कुसलगढ, ले. - श्रा. लक्ष्मीचन्द रुपचन्दजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ९ - व्याख्यान, ग्रं. १२५० (२६.५x१३, ११४३०-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि " www.kobatirth.org: (+) ९३७३. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. ५३-१ (२४) =५२, जैदेना, प्र. वि. खण्ड-४ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. पत्र २४ नंबर नहीं दीया गया है., प्र.ले. श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद् वा, (२७१२.५, १२X४३-४९). " श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ९३७४. उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. १७३-२ (११, १४४) + १ (८३) = १७२, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, ले. ॠ. लक्ष्मीचन्द (गुरु ॠ. रत्नचन्द, लुङ्कागच्छ ), प्र. वि. मूल-गा. ५४४. इस प्रत में टबार्थ का कर्ता नहीं मिलता है. (२६.५४१३.५. १३४३६-४५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा. पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वाणी श्रुतदेवता ते. ९३७५. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, प्र. ५१, जैदेना. ले. स्थल. महेसर, ले. ॠ. रूपचन्द, प्र. वि. ९- व्याख्यान, ग्रं. - १२५०, ( २६४१४, १५X३०-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पदम: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि " ९३७७. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ४७, ( २८x१३.५, १७-१८x४७-५६). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे.. ९३७९. सङ्ग्रहणी यन्त्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २९x१३ x). वृहत्सग्रहणी यन्त्रराग्रह' मागु, यंत्र, आदि:-: अंति: ९३८२. दानशीलतपभावना चौढालीयो, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. ढाल ५ (२८४१३, १०X३०-४५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६६२, आदि प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. . " ७ ९३८४. श्रीपाल रास सह बालावबोध- खण्ड ४, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७० - ३(५१,६०,६८ ) = ६७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२६४१३, ९-१६४३५-३९) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य वि. १७३८, आदि:-: अंति- श्रीपाल रास- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि:-: अंति: ९३८५. पुष्पमाला सह वृत्ति व कथा बीजक, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२२ - ९ (१,३ से ४, ९, १२ से १५, १८) = ११३, जैदेना., प्र. वि. मूल गा. ५०५. ग्रं.प्र. ४८५० प्र. वि. प्रथम व बीच बीच के पत्र नहीं है. (२६४१३.५, १५४४९-५३). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१२, (पूर्ण), आदिः-; अंतिः समर्थिताहम्मदावादे. ९३८६. वसुधारामहाविद्या, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२०.५४१३.५, १२-१३४२०-२३). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः श्रीवसुधाराप्रसादात्. ९३८७. मयणारेहा रास, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- ऋ. लक्ष्मीचन्द (गुरु ऋ. रुपचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१८८, (२८x१४, १६-१७४२८-२९). मदनरेखा रास, मागु., पद्य, आदिः जूआ मांस दारु तणी; अंतिः दुक्कडम महारो. ९३८८. स्नात्र, अष्टप्रकारी व नवपद पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१३.५, १३४२७-२८). पे.-१. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ-६आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम हुन्ती सगली; अंतिः कही सूत्र मझार., पे.वि. ढाल-९, गा.६०. पे..२.८ प्रकारी पूजा, मु. देवचन्द्र, सं.मागु., पद्य, वि. १७२४, (पृ. ६आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः गङ्गा मागध क्षीरनिधि; ___अंति: नमतति० कीध पाय. पे..३. नवपद पूजा, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१४आ-, अपूर्ण), आदि: परम मन्त्र प्रणमी; अंतिः-, पे.वि. अपूर्ण अंत के पत्र नहीं है. (पांच पूजा तक है.). ९३९०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. वाचना १० तक है., (२७.५४१३, ६-१७४३८-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य शिरसा धीरं; अंतिः कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा', मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति:९३९१. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१८७, (२७.५४१३, १३४३४-३५). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः सत्योपासक केवली. ९३९२. कल्पसूत्र-सामाचारी व्याख्यान सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. महेसर, ले.- ऋ. रूपचन्द, (२६४१३, १४-१५४२५-२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति: कल्पसूत्र-बालावबोध* , मागु.,राज., गद्य, आदिः तिण काले तिण समये; अंतिः९३९३. उतपत्तिबहुत्तरी व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. हरिदुर्ग, ले.- पं. योग्यसुन्दर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२८x१३, ६४१८-२१). पे.-१. औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१२अ), आदिः उत्पति जोज्यो आपणी; अंतिः इम कहे श्रीसार., पे.वि. गा.७२. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ), आदिः #; अंतिः#. ९३९४.” पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, प्र. ८, जैदेना., ले.स्थल. ओरपाडनगरे, ले.- पं. तत्त्वविजय, प्र.वि. मूल-गा.७०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२८x१२, ६x२४-३५). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करिने; अंति: मोक्षना शाश्वता सुख. ९३९५.” श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. ताजपुर, ले.- ऋ. पीताम्बर (गुरु ऋ. मानसिङ्घ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१२५) अदृष्टदोषान् मतिविभ्रमाद् वा, For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ (२७.५४१२.५, ११-१७X४८-५७). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ९३९६. सूक्तावली, अपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. वडाड, ले.- पं. कस्तुरचन्द, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रस्ताविक श्लोक संग्रह है., (२७.५४१२.५, १७४३८-४१). सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः९३९७. चोबोली प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- पं. कस्तुरविमल, प्र.वि. ढाल-१६, गा.४१८, (२७.५४१२, १९-२१४४०-४४). विक्रमचोबोली प्रबन्ध, आ. हर्षधरसूरि, मागु., पद्य, आदिः जिनवर चरणे नमी समरी; अंतिः वदइ हीराणन्द. ९३९८.” प्रयोगविवेकसङ्ग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, प्र. १५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले.- पं. देव, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, १४४३४-३७). पे.-१. प्रयोगविवेकसङ्ग्रह, ऋ. वररुचि, सं., प+ग, (पृ. १आ-१५अ), आदिः प्रयोगमिच्छता ज्ञातु; अंतिः पच्यमान इत्यदोषः., पे.वि. ३ पटल. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १५अ-१५अ), आदिः#; अंति:#. ९४०१.” पर्युषणअष्टाह्निकाव्याख्यान सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९६, मध्यम, पृ. ५३, जैदेना., ले.स्थल. लश्कर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१२.५, १२४३४-३६). पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः नन्दहेतुः सकामान्. पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथ जिनेस; अंतिः सुख पामस्यै भव्यजीवौ. ९४०४. अष्टोत्तरीस्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., (२६४१३, १३४४०-४७). बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः पूर्वे बाजोट उपर; अंतिः वरदा भवन्तु. ९४०६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, (२६४११.५, १२४२९-३१). __ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ९४०७." दण्डकविचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. जिसलमेर, ले.- मु. अजयराज,प्र.वि. मूल-गा.४०., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४१२, ३-४४३२ ३८). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ऐन्द्रराजं जिनं; अंतिः भाषयाल० दण्डकस्तवे. ९४०९. ठाणाङ्गसूत्र पर्याय सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, ४०-४९४२३-२७). स्थानाङ्गसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः एको नह्यादिरूपात्मा; अंति:९४१२. चौवीसदण्डक स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. मक्षुदाबाद, ले.- गणि फतेसागर, प्र.वि. मूल-गा.३९.. (२६.५४११.५, ४४३६-३८). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मु. भुवनकीर्ति, मागु., गद्य, आदिः चउवीस तीर्थङ्करनैं; अंतिः ना कृत ए टबार्थ. ९४१३. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ९,१०, प्रतिपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. उत्तमचंद, ले.- ऋ. उत्तमचन्द, (२५.५४११.५, ४-५४३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९४१४. कृष्ण विवाहलो, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. मेडता, ले.- श्रा. मोतीचन्द, पठ.- साध्वीजी साराजी, प्र.वि. ढाल-१०, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, १५४३१-३५)... कृष्ण विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः प्रथम जिणेसर परणमुं; अंतिः साध्यौ मुगतनो भाग. ९४१६. स्तवनचौवीसी व सिखामण सज्झाय, अपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, ११-१२४२५). पे..१. जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-११अ, संपूर्ण), आदि: जगजीवन जगवाल्हो; ___अंतिः जीवजीवन आधारो रे., पे.वि. २४ स्तवन. पे:२. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ-, अपूर्ण), आदिः सुखकर हितकारी रे; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. ९४१७." स्तवन सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत अंतिम कुछ पत्र, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२६४११.५, १७-१८४४५-५०). पे..१.२४ जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, वि. १८१६, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः प्रातुकाले प्रभु; अंति: सुसम्पदा सेजे थई., पे.वि. गा.१५. पे.२.२४ जिन स्तवन-ऐरावत क्षेत्रगत, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, वि. १८१४, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः प्रह समे उठिने पाय; अंतिः सम्पदा सहेजे लह्या., पे.वि. गा.१५. पे.-३.पे. नाम. बहूत्तरजिन स्तवन स्तोत्र, पृ. २आ-३अ, संपूर्ण ७२ जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, आदिः श्रीय अरिहन्तनुं; अंति: जपो कोडि कल्याण ए., पे.वि. गा.१७. पे.-४. पे. नाम. चतुर्दशस्वप्न फल वीर स्तवन, पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण महावीरजिन स्तवन-चौदस्वप्नफलगर्भित, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, आदिः श्रीय वर्धमाननी; अंतिः लक्ष्मीनी सम्पदा., पे.वि. गा.१३. पे.५.पे. नाम. झघन्यविहरमानजिन स्तवन, पृ. ३आ-४आ, संपूर्ण विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, वि. १८२५, आदिः सम्प्रतिं विचरता; अंतिः कोडि कल्याणए., पे.वि. गा.२९. पे.६.१७० जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५आ-, पूर्ण), आदिः प्रह समे प्रणमुं ए; अंतिः-, पे.वि. गा.४८ तक हैं मात्र कलश नहीं हैं. अंतिम पत्र नहीं है. ९४१८. रत्नसञ्चय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(२४)=२४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११.५, १४-१५४३८ ४१). गाथासहस्री, मु. समयसुन्दर, सं.,प्रा., पद्य, वि. १६८६, आदिः पडिरूवाई चउद्दस; अंति:९४२१. अष्टाहिकाव्याख्यानबालावबोध, नवअङ्गपूजा के दोहा व जापमन्त्र, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. इंदोर, ले.- मु. कालचन्द, (२५.५४११.५, ११४३०-३२). पे.१. अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमन्दिर, मागु., गद्य, वि. १८८२, (पृ. १आ-२५अ), आदिः शान्तीशं ___ शान्ति; अंतिः भाषा सुगम सुजाण. पे.२. नवअङ्गपूजा दोहा, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदिः परम उपगारी चरणकज; अंतिः आनन्दघन चित्तलाय.,पे.वि. गा.९. पे:३. बाहुबली मन्त्र, प्रा., प+ग, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः ॐ नमो भगवओ बाहुबलिस; अंति: गवइ ह्रीं नमः स्वाहा., पे.वि. गा.१. पे.-४. मोहनी मन्त्र, सं., गद्य, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः ॐ काले निर्मले अमृत; अंतिः#. ९४२३. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,ले.- ऋ. रायसील, प्र.वि. २४ स्तवन, (२७४११.५, १७४४१ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११ स्तवनचौवीसी, मु. महानन्द, मागु., पद्य, वि. १८०६, आदिः आदेशर अवधारीयै रै; अंतिः कीधी जिनवरनी जयकारी. ९४२५. मुनिपति चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१)=२२, जैदेना., (२६.५४१२, १६४३८-४६). मुनिपति चरित्र, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः पामीने मुगते जासी. ९४२७. उपदेशमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ८०-५९(१ से ५९)=२१, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११.५, १-११४३१-३७). उपदेशमाला , गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: उपदेशमाला-कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९४२९. साधुप्रतिक्रमणसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. धानेरा, ले.- श्रा. लखमीचन्द रुपचन्दजी, प्र.वि. सूत्र-२१, (२६.५४१२, ७४३३-३५). पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि पडिक्कमिउ; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. ९४३२. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १५९१, मध्यम, पृ. ३०-१३(१ से ७,२२ से २६,२९)=१७, जैदेना., ले.- गणि दयासागर, प्र.वि. गा.५४४, (२५.५४११, ११-१२४३०-३८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ९४३३. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-२(१,५)=५, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५४११, १२४४७). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः९४३४. सन्धासनबत्रीसी, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., ले.स्थल. उडुग्रामे, ले.- मु. अमृतरत्न (गुरु उपा. जसरत्न),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१६४०, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११.५, १३४३६-३८). सिंहासनबत्रीसी, गणि सङ्घविजय, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सकल मङ्गल धर्म धुरि; अंतिः सुणता एह चरित्र. ९४३५. युगादिजिनदेशना, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., ले.स्थल. कटारिआनगरे, ले.- गणि ज्ञानसागर (गुरु पं. रविसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ५उल्लास, श्लो.५७४, (२६.५४११, १३-१६४३५-४२). युगादिदेशना, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, आदिः श्रीमानादिजिनः श्रेय; अंतिः चैषा जयाभ्युदयदायिनी. ९४३८. नवतत्त्वविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. गा.४६, (२७X११.५, ४४२८-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. ९४३९. भगवतीसूत्रे-उपसर्ग अच्छेरा का सक्षेप विवरण, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. मात्र प्रथम अच्छेरा का संक्षेप विवरण है., (२६.५४११.५, १४-१५४५१-५२). भगवतीसूत्र-दश अच्छेरा, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः उवसग्ग गब्भहरणं; अंति:९४४०. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १७३५, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. कर्णभुषणपुर, ले.- ऋ. लहूजी जसराज, प्र.ले.पु. ___मध्यम, प्र.वि. २० प्राभृत, (२६.५४११.५, १८४६१-६२). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरि० जयति; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. ९४४३. थुलिभद्रचरित्र, चौद नियम सझाय व ७२ कला आदिके नाम सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. ५, जैदेना., पठ.- ऋ. भुधर (गुरु ऋ. जसराजजी), प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६.५४११.५, १३-१४४३३ ३८). पे.-१. गुणरत्नाकर छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५७२, (पृ. १आ-२७अ), आदिः पय युगल प्रणमेसि; अंतिः करो सहिजसुन्दर मया., पे.वि. अध्याय-४. पे.२.पे. नाम. चौउदेनेम सज्झाय, पृ. २७अ-२७आ For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: १२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४ नियम सज्झाय, मु. विवेकविजय, मागु, पद्य, आदि सकल सार मे श्रीजिन: अंतिः चउदनेमथी लहे., पे. वि. गा. १५. पे: ३.७२ कला नाम, मागु, गद्य (प्र. २७-२८अ ), आदि: लेखककला भणवोकला कवित: अंतिः प्रयोगकला अकर्मकला. पे.-४. पे. नाम. चौदविद्या निधान, पृ. २८अ - २८आ १४ विद्या नाम, मागु., गद्य, आदिः विद्याकला १ रसायण; अंतिः नाटककला सम्बोधनकला., पे.वि. पूर्ण - १३ विद्या के नाम लिखे है. लेखक द्वारा. पे - ५. ६ पल्लवी, मागु., गद्य, (पृ. २८आ-२८आ), आदि: अङ्क पल्लवी १ नेत्र; अंति: उषधपल्लवी भाषापल्लवी.. ९४४५. सीयल रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.६४ तक है, ( २६.५X११.५, १३४३७ ३९). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंति: ९४४६. शालिभद्र रास, संपूर्ण वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना. ले. ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी, लुङ्कागच्छ), .. प्र. वि. दाल- २९ (२६.५४११.५. १४४३३-३५). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवंछित फल लहस्यैजी. ९४४७. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५९८, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- १० अध्ययन, ( २६११.५, ११४४२-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइति बेमि ९४४८. गुणावली रास, संपूर्ण वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना. ले. स्थल. द्राफा ले. ऋ. विजयचन्द्र (गुरु आ. वाल्हचन्दजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - २९, ( २६४११.५, १७ - १८४४१-४४). गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु, पद्य वि. १७१४, आदि सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः नितनित सुख आणन्दा. ९४४९. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा संपूर्ण वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. स्थल. फलवडी, प्र. वि. श्लो. १५१, (२५.५५११.५, १०X३७-४०), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. ९४५०. क्रियाकलापटीका, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५४ जैदेना, प्र.वि. ग्रं. २७०० (२६.५४११.५, १५४५०-५४)क्रियाकलाप, आ. जिनदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीभारती; अंतिः सुधीभिः साध्यसिद्धये. ९४५२. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., ( २६१२, १४४४७-४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामर प्रणतमीलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः शोध्यतामियम्. ९४५३. गुणस्थानविचार, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. वडनगर, ले. ऋ. लक्ष्मीचन्द (गुरु ऋ. रुपचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. श्लो. १३६, ( २६x१२, १०X३३-३६). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदिः गुणस्थानक्रमारोह; अंतिः चैव रत्नशेखरसूरिभि. ९४५५. सुक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. गोंडल, ले.- ऋ. डोसा (गुरु ऋ. भीमजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ४ वर्ग, (२५.५११.५ १२ १३४३१-३८). - सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं., मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. ९४५६. रत्नसञ्चय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले. स्थल. नवानगर, ले. वा. देवविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मुलगा. ५४९ (२६.५४११.५, ५-६४३६-४२). रत्नसंचय आ. हर्षनिधानसूरि प्रा. पद्य आदि नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः लहई सासयं ठाणं. " " 1 " For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभदेव आदे देवने; अंतिः जाणवी जे भणे सांभले. ९४५७. रत्नपालरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. गोंडल, ले.- मु. खुशालचन्द, प्र.वि. खण्ड ३, (२६.५४११.५, १२-१५४३७-४१). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः रीषभादिक जिनवर नमुं; अंतिः वो जयजयकार रे. ९४५८. बलभद्रचरित्र सह टबार्थ व, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. गुंडलग्राम, अज्ञात- ऋ. जोधराज(लुङ्कागच्छ), गच्छा.- आ. माणिकचन्द(लुङ्कागच्छ), (२६४११.५, ६x४१-४६). पे..१. पे. नाम, बलभद्र चरित्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२३अ, संपूर्ण बलभद्र चरित्र, प्रा., पद्य, आदिः गोयरग्गपविट्ठस्स; अंति: वो जायणा परीसहोत्ति. बलभद्र चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः गो० गोचरीइ गयो एहवो; अंतिः साधुनो अधिकार कह्यो., पे.वि. श्लोक ६२. (२५ पे:२. उपदेश दृष्टान्त, मागु., गद्य, (पृ. २३आ-२३आ, अपूर्ण), आदिः गर्भावास क्रोध मान; अंतिः-, पे.वि. मधुबिन्दु व षड्लेश्या दृष्टांत है. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४६०.” उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- गणि मयाचन्दजी (गुरु ऋ. लीलाधरजी, लुङ्कागच्छ), पठ.- ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-सूत्र-१८९., (२६४११.५, ५-६x४१-४८). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः वन्दित्वा श्रीजिनं; अंतिः सुख पाम्या थका. ९४६१. चारप्रत्येकबुद्ध रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-३ की ढाल-१० तक है., (२६४११.५, १३४३७-४४). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंतिः९४६२." सुक्तावली, पूर्ण, शक. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. २४-२(७,२३)=२२, जैदेना., ले.- ऋ. मलूकचन्द (गुरु ऋ. ऋषभदास), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.४४२, संशोधित, (२६४११, १५४२७-२९). सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः दानं सुपात्रे विशदं; अंतिः हरिणोपि हसत्यसौ. ९४६३. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४, गा.९९, (२६४११.५, १२४३६-३९). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. ९४६४.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- ऋ. वालजी, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ६००., (२६.५४११.५, २१४६१-७०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः पार्श्वनाथप्रसादतः. ९४६५. सीताराम प्रबन्ध, अपूर्ण, वि. १७८०, श्रेष्ठ, पृ. २४२-१४(१ से १४)=२२८, जैदेना., ले.स्थल. बिशहनपुर, ले.- मु. शुभकिर्ति, राज्यकाल- महम्मदशाह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-९. पू.वि. खंड-१ की ढाल-६ अपूर्ण तक नही है., (२६.५४११.५, ९-१०x२२-२७). रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदि:-; अंतिः कोडी कल्याणो रे. ९४६६." इन्द्रियशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०१; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २७५., (२७४११.५, ६४३३-३४). For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः रसायण सेवी नित्य. ९४६७. विविध सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-५(१ से २,६,१६,१९)+१(११)=१६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १५४४०). विविध सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः९४६८. ब्रह्मचर्यबावनी व ब्रह्मचर्यदससमाधिस्थानकुलक, संपूर्ण, वि. १६९२, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मालपुर, ले. ___मु. मनोहर (गुरु मु. मल्लिदास), पठ.- श्राविका चन्दाबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७ ११.५, १०-१२४४१-४४). पे.-१. ब्रह्मचर्यबावनी, आ. समरचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः सरसति अमृत वसति मुखि; अंतिः ऊचरइं० शिवरमणी वरइ., पे.वि. गा.५२. पे.२. ब्रह्मचर्य दश समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-६आ), आदिः श्रीनेमीश्वर पाय; अंतिः पासचन्दि नमंसिया., पे.वि. गा.४२. ९४७०. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., ले.स्थल. मेउग्राम, ले.- मु. वीरचन्द (गुरु मु. मुलजी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ उल्लास, (२७.५४११.५, १५-१७४४९-५४). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ९४७१. सम्म्मतिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. तरणिपुर, ले.- मु. ज्ञानसागर (गुरु मु. वल्लभसागर, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१६८, (२७.५४१२, ११-१२४२९-३२). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. ९४७२. योगरत्नावली सह (सं.)टीका, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. १९, देना., ले.स्थल. कुसलगढ, ले.- ऋ. अनोपचन्द (गुरु ___ मु. ताराचन्द), प्र.वि. मूल-श्लो.१४०; टीका-ग्रं. ७८०., (२७४१२, १२४४८-५६). योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., पद्य, आदिः विमलमति किरण निकर; अंतिः स्खलति प्रमाद निवहेन. योगरत्नावली-टीका , मु. गुणाकर भिक्षु, सं., गद्य, वि. १२९६, आदिः गुरुचरणकमलममलं; अंतिः भिक्षुणा विवृत्ति. ९४७५. गौतमकुलक सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१८ तक है., (२७४१२, १८४३९-४२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंति: गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः नत्वा श्रीदेवगुरुन्; अंति:९४७६. कल्पसूत्र व्याख्यान पीठिका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२-१०(१ से १०)=१२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२७४१२, ११४४५-४६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः चित्ते साम्भलवो. ९४७७. दण्डक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., पू.वि. प्रथम पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२४). २४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९४७९." उववाईसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५१-१(१)+१(३१)=५१, जैदेना., लिखवा.- श्राविका रावोबाई, ले.- गणि उदयकलश, प्र.वि. सूत्र-१८९, (२८x११.५, ११४३२-३९). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ९४८०." सिन्दूर प्रकरण सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(४,७)=६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.१००., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ८x६५-६६). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १५ सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः व्यरचि कृति. ९४८१. लघुक्षेत्रसमास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४१२, १०-११४२९-३४). पे.-१. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, (पृ. १अ-१५आ, संपूर्ण), आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं., पे.वि. गा.२६३. पे:२. जम्बुद्वीपे रात्रिदिन मान, प्रा., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ-, अपूर्ण), आदिः पुव्वविदेहसेसे; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र ९४८५. ऋषभजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-४२ तक है., (२७४१२, १८-२४४४२-५१). आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः अरिहन्त सिद्धनै; अंति:९४८६. गुणावली रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२९, (२८x१२, १०४३३-३४). गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः नितनित सुख आणन्दा. ९४८८. नन्दीसूत्र सह बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१ से २)=१४, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धपूर, ले.- ऋ. खुशालचन्द,प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. सूत्र व बालावबोध सूत्र नं ९७ से १०९ तक ही है., (२७.५४११, १-२४१३-२९). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: नन्दीसूत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९४८९.” रोहिणी चौपाई, पूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(१)=२८, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-२९, संशोधित, पू.वि. ढाल-१ से २९ तक है., (२७.५४१२.५, १२४३४-३६). रोहिणी चौपाई, मु. कर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १७३०, आदि:-; अंतिः करमसिंह गुण गावइ जी. ९४९१. धर्म परीक्षा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. गा.२१६, (२८x१२.५, १०४३५-३८). धर्म परीक्षा, मागु., पद्य, आदिः हरिहरं ब्रह्मादिक; अंतिः किरतिसूरि० परणछिसोय. ९४९२. प्रबन्ध कथासङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ८, जैदेना., ले.स्थल. वालापुरग्रामे, ले.- ऋ. कस्तुरचन्दजी, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२.५, १७४३८-४२). पे-१. पञ्चपाण्डव प्रबन्ध , मागु., गद्य, (पृ. १अ-४अ, संपूर्ण), आदिः कुरुदेशने विर्षे हथणा; अंतिः अन्तरे मोक्षे जास्ये. पे:२. प्रदेशीराजा केशीसम्बध, मागु., गद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः स्वेतम्बिका नगरीयें; अंतिः अजरामरपद प्राप्त थई. पे.-३. कलासिद्धसाधु सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ४आ-५अ, संपूर्ण), आदिः इहिज जम्बू द्विपे; अंतिः एकावतारीपणे देवताथया. पे.-४. सर्वानुभूति सुनक्षत्रसाधु सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण), आदिः एकदा भगवन्त; अंतिः चवी आठमे __देवलोके गया. पे.५. धन्नाशालीभद्र सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ६अ-७आ, संपूर्ण), आदिः राजगृहि नगरीयें; अंतिः पहोतो एकावतारी. पे.६. आषाढभूति सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ७आ-८आ, संपूर्ण), आदिः राजगृही नगरीयें एकदा; अंतिः केवलपामी मुगते ___ गया. पे.-७. इलाचीकुमार सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः किणहीक ग्रामे; अंतिः पामी जणा ३ मुगते गया. पे..८. ललिताङ्गकुमार सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ९अ-९आ, अपूर्ण), आदिः येषां न विद्या; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९४९३. नवपद वान्दणविधि व महावीरजिन स्तवनादि, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जयनगर, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२८x१२.५, १७४२४-४४). For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः वृक्षप्रातिहार्यसंयु; अंतिः ॐ ह्रीं नमो तवस्स. पे.२.पे. नाम. महावीरजिन स्तवन सह टबार्थ, पृ. ६अ-६आ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., पद्य, आदि: साहिबरी सेवामें; अंति: जय जय श्रीमहावीर. महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-गा.७. पे.-३. दीपावलीपर्वगुणनविधि, सं., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः ॐ ह्रीं श्रीं; अंतिः सर्वज्ञाय नमः. ९४९४. नेमिजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३+१(६०)=९४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२.५, १६४३७-४५). नेमिजिन चरित्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण सिद्धसिवं; अंति:९४९६." नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२९., संशोधित, (२९.५४१२, २०४६६-७९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति. ९४९७. योगशास्त्र सह टीका-१ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल-१-प्रकाश., (३१.५४१२.५, ९-१६४३९-४९). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति: योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि: नमस्कारोस्तु; अंति:९४९८. प्राकृत छन्दकोश सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ४७ तक है तथा बालावबोध गाथा १५ तक है., (२८.५४१२, ८-९४२७-३२). प्राकृत छन्दकोश, प्रा., पद्य, आदिः आजोयणट्टीयाणं सुरनर; अंति: छन्दकोश-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जोअण प्रमाण भूमि; अंतिः९५००. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, (२८x११, ६४३९-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ९५०१." हुण्डिकाग्रन्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-२२(१ से २२)=५७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, १७-१८४५५-६१). हुण्डिका ग्रन्थ, उपा. जयसोम, प्रा.,सं., पद्य, वि. १६५७, आदि:-; अंतिः लेखकतो लेखयाञ्चक्रे. ९५०२." श्राद्धजीतकल्प सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले.- मु. लालचन्द (गुरु मु. भावरङ्ग), प्र.वि. मूल-गा.१४२; टीका-ग्रं. २६४६., पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७.५४११, १३४५६-५९). श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः कयपवयणप्पणामो जीयगयं; अंतिः सोहिन्तु गीअत्था. श्राद्धजीतकल्प-टीका, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरं सगणधरं०; अंतिः जनयन्त्विति गाथार्थः. ९५०३." तत्त्वार्थधिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७४११, १०-११४३५-४०). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः. ९५०४. कुमतकदलीकुपाणिकाचौपाई व सिद्धान्तसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., पठ.- मु. पाता (गुरु आ. समितसागरसूरि, अञ्चलगछ), (२६.५४११, १३४५१-५२). पे:१. कुमतकदलीकृपाणिका चौपाई, मागु., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः वीर जिणेसर पणमिय; अंतिः जिनशासननउ एहजि सार., पे.वि. गा.१३. For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे:२. सिद्धान्तसारोद्धार-देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, उपा. कमलसंयम, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, (पृ. २अ-२०आ), आदिः संवत १५०८ वर्षे अहम; अंतिः सम्यक्त्व राखिस्यइ. ९५०५. ज्योतिषसार सङ्ग्रह व ज्योतिष श्लोक, संपूर्ण, वि. १८१७, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले. गणि फतेसागर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १२-१६x४०-४२). पे..१. ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः कालचन्द्रे भवेन्नहि., पे.वि. कुछेक स्थलो पर देशीभाषा मे संबंधित पाठ भी मिलते है. पे.२. ज्योतिष श्लोक, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदि: मे वरदाझिजलहरे काढे; अंतिः त्रिणने उरे निरख., पे.वि. गा.२. ९५०६.” दण्डक स्तुति सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., संशोधित, त्रिपाठ, (२६४११, २-५४४५-४६). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदिः श्रीवामेयं महिमामेयं; अंतिः मत्वेदं बालचापल्यम्. ९५०७. सिन्दूर प्रकरण, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.७३ तक है., (२६.५४११, ११ १२४३५-३७). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंति:९५०८. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.- पण्डित शिवलाल, प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, (२७.५४११.५, १२-१३४३७-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः भविआण विबोहणट्ठाए. ९५०९.” ज्ञानसार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-७(१ से ७)=५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अष्टक-१७ के श्लो.२ से अष्टक-३२ के श्लो.२ अपूर्ण तक है., (२७.५४११.५, ९x४५-४६). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि:- अंतिः९५१०." कर्मग्रन्थ (१ - ५) सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४११.५, १५४५४-५९). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान प्रति; अंतिः देवेन्द्रसूरि कहिउ., पे.वि. मूल गा.६१. पे..२.पे. नाम, कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. ९आ-१३अ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: १४ आतैका १५ एवं १५., पे.वि. मूल-गा.३४. पे.-३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १३अ-१६अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सामान्यइ सविहुजीवा; अंतिः स्वामित्व विचार कहिउ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.४. पे. नाम. षडशीती नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १६अ-२५अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं.. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: वीतरागदेव नमस्करी; अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं., पे.वि. मूल गा.८६. पे.५.पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. २५अ-४०आ, अपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: वीतराग नमस्करीन; अंति:-,पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९५१२. लघुखेटसिद्धि, ज्योतिष श्लोकसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(१ से २)=६, पे. २, देना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२७४१२४). पे.१. लघुखेटसिद्धि, दिनकर भट्ट , सं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः तिमिते लघुखेटसिद्धिं., पे.वि. गा.३४ प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे..२. ज्योतिष श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ३आ-८अ, संपूर्ण), आदिः इष्टस्यावधिसंस्थितौ; अंतिः हि स्फुटं भवेत्., पे.वि. सारणीयुक्त है. ९५१३." सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२७५ तक है., (२४x११.५, १३४३७-४२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति: बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदिः नत्वा श्रीवीरजिनं; अंतिः९५१४." प्रश्नव्याकरणसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-९ अपूर्ण तक है., (२६.५४११, १५४५४-६६). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंति:९५१५. कर्मप्रकृति सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-७ अधिकार., (२७४११, १५४४९-५०). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य कर्मद्रुम; अंतिः चूर्णिकृते नमस्तस्मै. ९५१६. प्रीयमेलक रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- ऋ. जेठा, प्र.वि. गा.२०६, (२७४११, १६४३३-३७). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्य अधिक परमोद. ९५१७. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., प्र.वि. १०३अध्ययन, ग्रं. १६६७, (२७४११, १५४४५-५२). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ९५१८. ऋषभजिन वीवाहलउ, संपूर्ण, वि. १६२८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. लगतिरि, ले.- श्राविका सोनाई श्राविका, प्र.वि. ढाल-४४, (२६.५४१०.५, १२-१३४३८-४५). आदिजिन विवाहलो, मागु., पद्य, आदिः सासनदेवीय पाय; अंतिः सेवक इम मुदा. ९५१९. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.१०१ तक है., (२७४१०.५, ५४३५-४२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंतिः९५२०." निरियावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७०२, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. खीरपुर, (२६.५४१०.५, १४-१५४३९-४५). पे.१.पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १अ-२आ जापापना. For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंति: चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. अपूर्ण १० अध्ययन. पे.२. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २आ-५आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. ९५२१. सारस्वतप्रक्रीया-धातुपाठ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२७४११, १३-१४४३२-३९). सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, आ. हर्षकीर्तिसूरि, संबद्ध, सं., पद्य, वि. १६६३, आदिः श्रीसर्वज्ञं जिनं; अंतिः निर्मितो नताचिरं. ९५२२." शुकराजकथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-२(१,१५)=१५, जैदेना., प्र.वि. ग्रं.ग्र.५००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रथम एक व बीच का पत्र नहीं हैं., (२७४१०.५, ११-१२४३६-४५). शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदि:- अंतिः कथासौ लभतां प्रदा. ९५२४." कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-२(३ से ४)+१(१२)=४९, जैदेना.,प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२५०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११, ७-११४३८-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ९५२५." प्रश्नषष्टिशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.- मु. कनकसार, प्र.वि. मूल-श्लो.१६१; टीका-ग्रं. १५००. वर्षे गुहाननपयोधिरसेंदुमाने, संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, १५४४४-४७). प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदिः क्रमनखदशकोटीदीप्र; अंतिः धृत्वा प्रसादलवं मयि. प्रश्नशतक प्रकरण-कल्पलतिकावृत्ति, उपा. पुण्यसागर, सं., गद्य, वि. १६४०, आदिः शिरसि यस्य चकासति; अंतिः यमनसो मयि सुप्रसादाः. ९५२७. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६५, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, ४४३३-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः पुवरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंतिः अर्थ कहुं छे. ९५२९. स्तवन, स्तोत्र, सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८४२, मध्यम, पृ. ८-३(३ से ५)=५, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- खुश्यालचन्द, (२६४१०.५, ११४३२-३८). पे..१. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. १अ-२आ-, पूर्ण), आदिः सरसति चरणे सीस नमावि; अंतिः-, पे.वि. ढाल-४ अंतिम पत्र नहीं है.. पे..२. पे. नाम. शान्तिनाथजिन स्तवन, पृ. -६अ-६अ, अपूर्ण शान्तिजिन स्तवन, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदि:-; अंतिः सङ्घनइ सानिध करे., पे.वि. गा.३२ प्रारंभ के पत्र नहीं पे.-३. पे. नाम. सरस्वती स्तोत्र, पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः राजते श्रीमतीदेवता; अंति: मेधावी बुद्धिविभवेन., पे.वि. श्लो.९. पे.-४. पे. नाम. लक्ष्मी स्तोत्र, पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः लक्ष्मी लक्ष्मी महा; अंतिः निश्चलातिष्ठति ध्रुव., पे.वि. गा.८. पे.५. पे. नाम. घीनी सज्झाय, पृ. ७अ-८अ, संपूर्ण औपदेशिक सज्झाया-घृत विषये, मु. लालविजय, मागु., पद्य, आदि: भवियण भाव धरी घणो; अंतिः विजय घी नो गुण कह्यो., पे.वि. गा.१६. पे.६. सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, अपूर्ण), आदिः पुच्छिंसुणं For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची समणा; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.११ तक है. ९५३०. चन्द्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-२९, (२५.५४१०.५, १९४५१-५२). चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ९५३१. अभिधानचिन्तामणीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. कांड-२ के श्लो.१० अपूर्ण तक है., (२६४१०, १०-११४३२-३६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः९५३२." आलोयणा विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२६४१०, १२४३४-३७). आलोयणा विधि, मागु., गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः आगन्या सुधी पालवी. ९५३४." नवस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-६ स्मरण., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. १. नवकार. २. उवसग्गहरंस्तवन.\ ३. संतिकरं. ४. उपसर्ग स्तवन(नमिउण).\ ५. अजितशांति स्तवन. ६. भक्तामर., (२५.५४१०.५, १३४४५-४८). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंति:९५३६. विवेकमञ्जर व स्तवन, संपूर्ण, वि. १४८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १२४४९-५४). पे.-१. विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, (पृ. १अ-५आ), आदिः सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि., पे.वि. गा.१४४. पे..२. साधारणजिन अष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः जयति जङ्गमकल्प; अंतिः विश्वाधिपः सर्ववित्., पे.वि. श्लो.८. ९५३७. स्तोत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. २५-१२(१ से १२)=१३, पे. ११, जैदेना., ले.- ऋ. कृष्णदास, (२६४११, १३४२६-३१). पे.१. पद्मावती वृद्धस्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १३अ-१५आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जगति पद्मावतीस्तोत्र., पे.वि. श्लो.२६ प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे..२. त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, (पृ. १५आ-१८अ, संपूर्ण), आदिः ऐन्द्रस्यैव शरासनस्य; अंतिः पिच्छलः द्वारदेशे., पे.वि. श्लो.२३. पे.-३. भैरवाष्टक, शङ्कराचार्य, सं., पद्य, (पृ. १८अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः एकं खट्वाङ्गहस्तं; अंतिः सिद्धिमवाप्नुयात्., पे.वि. श्लो.११. पे.४. वासरपतिअष्टशतनाम स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण), आदिः सूर्योर्यमाभगस्तुष्ट; अंति: कामान् वाप्नुयात्.,पे.वि. श्लो.१४. पे.५.६४ योगिनी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ, संपूर्ण), आदिः ॐ दिव्ययोगी महायोगी; अंतिः सर्वोपद्रवनाशिनी., पे.वि. श्लो.११. पे.६. चतुःषष्टियोगिनीस्थानकनाम स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२२अ, संपूर्ण), आदिः ॐ काश्मीरे शारदा; अंतिः सर्वत्र विजयी भवेत्., पे.वि. श्लो.१७. पे-७. भवानी अष्टक, शङ्कराचार्य, सं., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ, संपूर्ण), आदिः न तातो न मातो न; अंतिः त्राहिमान् यो नमस्ते., पे.वि. श्लो.९. पे.८. इन्द्राक्षी स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण), आदिः अस्य श्रीइन्द्राक्षी; अंतिः प्रसीद परमेश्वरि., पे.वि. श्लो.११. पे.९. अम्बिकादेवी स्तोत्र, सं.,मागु., पद्य, (पृ. २३आ-२४अ, संपूर्ण), आदिः नित्यानन्दकरी आई; अंतिः वसति मे हृदये सदैव.,पे.वि. गा.६. For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे. १०. अन्नपूर्णा स्तोत्र, शङ्कराचार्य, सं., पद्य, (पृ. २४-२५अ, संपूर्ण), आदिः नित्यानन्दकरी वराभय; अंतिः मातान्नपूर्णेश्वरी, पे.वि. श्लो. ५. पे. ११. स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २५अ - २५अ, संपूर्ण ), आदि: सरसा सघना रक्ता करज; अंतिः स्वस्थो न लङ्केश्वरः., पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.४. ९५३८. पासाकेवली सुकनावली, अपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ९- १ ( ४ ) = ८, जैदेना., ले. स्थल. देवगढ नगर, ले.- उपा. कान्तिसुन्दर (गुरु उपा. सहजसुन्दर, तपागच्छ), पठ. - गणि ज्योतिसुन्दर (गुरु उपा. कान्तिसुन्दर, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. श्लो. १८६, ( २६११, ११x४०). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदि: महादेवं नमस्कृत्य; अंतिः सत्योपासक केवली. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५३९.' कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य (कल्पान्तर्वाच्य), संपूर्ण, वि. १६१५, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले. स्थल. जेसलमेरु, ले.- पं. देवसार; गणि कमलोदय (गुरु गणि स्वर्णप्रभ); पं. भावरङ्ग, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, ( २६ ११, १५४४४800). कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदिः पुत्राः पञ्चमतिश्रुत; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. ९५४०. सील रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. गा. ७०, ( २६.५११, १४४४५-४६). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि मागु, पद्य, आदि पहिलुं प्रणाम करूं अंतिः इम श्रीविजयदेवसूरि. ९५४३.” सिद्धहेमशब्दानुशासनवृत्ति ऊणादिगण सूत्रविवरण प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६×१०.५, १४४४८-५०). सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका सं. गद्य, आदि:-: अंति: · " ९५४४.” शीलोपदेशमाला कथासङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९४-६९ (१ से ६९ ) = २५, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६ ११, १५४०-४५). शीलोपदेशमाला-वालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर मागु, गद्य वि. १५५१, आदि:-: अंति: 1 " ९५४५." सम्बोधसत्तरी व सञ्ज्ञास्तव सह टीका एवं सामान्यजैनकृति, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ३, जैदेना.. ले. स्थल. भीनमाल, ले.- मु. क्षमाकुशल, प्र. वि. संशोधित, त्रिपाठ, ( २६×११, ५-६x४०-४४). पे. १. पे नाम. सम्बोधसत्तरी सह वृत्ति, पृ. १अ ११अ सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो .. सम्बोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य आदि नत्वा तं श्रीमहावीर अंतिः कृता सम्बोधसप्तते.., पे.वि. मूल-गा. ७१. पे. २. पे. नाम. सञ्ज्ञास्तव सह टीका, पृ. ११अ-१२अ संज्ञा स्तव, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः भत्तिपणमन्तसुरवर; अंतिः हवेन्तिय पुणज्जवाएया... संज्ञा स्तव टीका, सं. गद्य, आदि: भतीति सुगमं आहार अंतिः चतुष्टयसमुदायार्थ पे. वि. मूल-गा. ११. : " " ९५४६. कालसप्ततिका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैदेना. प्र. वि. गा.७२ (२६४१०.५ ८- ९४२८-३३)कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. " ', पे. ३. जैन सामान्यकृति, प्रा. मागु. सं., गद्य (पृ. १२अ - १२आ), आदि अंतिः #. पे. वि. पांच प्रकार के विनय, संक्षिप्त मांडलादि संग्रह है, २१ ९५४७." क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६८८, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले. स्थल. नागौर, ले. ऋ. धर्मसी (गुरु ऋ. कानजित), प्र. वि. मूल-६ अधिकार गा. २६२. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित टबार्थादि, संशोधित, त्रिपाठ (२६४१०.५ १-३४४४-४८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय; अतिः कुसलरङ्गमयं " For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पसिद्ध. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर , मागु., गद्य, वि. १६७६, आदिः निश्शेषकर्मदलनं; अंतिः सङ्क्षिप्तम्. ९५४८." नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१०, १२-१४४३३-३७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध. ९५४९." विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., पू.वि. आगे के पत्र नही है।, (२६४११, १९४५६-५७). आगमनामादिविचार सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सूत्र चोर्यासीना नाम; अंतिः#. ९५५०." विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, १६-१७४५५-६३). विचार सङ्ग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः विहवाणुसारउ पुण सत्त; अंति:९५५१. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६-८(१ से २,४० से ४१,११९ से १२२)+१(३९)=११९, जैदेना., पू.वि. अध्ययन ११ गाथा १९ तक है., (२६४१०.५, १५-१७४५०-५३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि:-; अंतिः९५५२.” ऋषिमण्डल स्तोत्र सह वृत्ति व श्लोकादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ४, जैदेना., ले.- मु. रत्नलाभ, प्र.वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x१०.५, ३-७४५२-५७). पे.१.पे. नाम. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-१७आ ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदिः नत्वा श्रीपार्श्वनाथ; अंतिः परम्परमप्रयोजनकथनम्., पे.वि. मूल गा.२१८. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदि: #; अंतिः#. पे.-३.८ मद दृष्टान्त, सं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदि: जयन्ती वङ्कचूलाद्या; अंतिः अट्ठमए ए उदाहरणा., पे.वि. गा.३. पे.-४. १४ रत्न नाम, मागु., गद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः लक्ष्मी तिणराख जगदीस; अंतिः अश्वमुखी सूर्य. ९५५३." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका., (२५.२ २५.५४१०.५, ५४३६-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ध० धर्म म० मङ्गलीक; अंतिः प्रतिबोधनने अर्थे. ९५५४.” सारस्वतसूत्र सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१०.५, २-५४३१-३५). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः चतुरोपिताम्. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि:-; अंतिः प्रभुचन्द्रकीर्तिः ९५५६.” सारस्वतप्रक्रिया सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २११-११(१ से ७,८३ से ८५,११५*)=२००, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. शुरुआत व बीच के पत्र नहीं है., (२६४११, २-४४३३-४०). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदि:-; अंति: नराकारमधुपापीतपत्कजः. For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि : -; अंतिः प्रभुचन्द्रकीर्त्तिः ९५५७. धन्य चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र है., (२५.५x११, २०x४५-५१). धन्य चरित्र, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५५८.” ज्योतिषसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र. वि. विवध पाठान्तर व ज्योतिषचक्रादि दिये है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६X११, १३३४-३८). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः ९५५९.” सीताराम रास खण्ड १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५x११, १५९५२-५५/ रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १७उ., आदिः स्वस्ति श्रीसुखसंपदा; अंति:९५६०. नेमीजिन रास, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. डाल-६ (२६४११, १९-२०४५६-५७). 1 " नेमिजिन रास, मु. रुपविजय, मागु., पद्य, आदि: जिन सासन वचन सीचवा; अंतिः रिषी करे सील प्रसंस. ९५६१. आचार्यशिवजी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. ढाल - २५, ( २६११.५, १७४५३-५६). शिवजी आचार्य रास, ऋ. धर्मसिंह, मागु., पद्य, वि. १६९२, आदि आदिपुरुष आदिसरु मन; अंतिः मुनि० सेवकजन २३ सुखकार. ९५६३. पासाकेवली व औषध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९ पे २ जैदेना. ले. स्थल, मांडवी बंदर (२६४११ ५ १३४३३-३४) , . पे. १. पाशाकेवली. ऋ. गर्ग, सं., पद्य, (पृ. १आ - ९आ) आदि महादेवं नमस्कृत्य अंतिः सत्योपासक केवली. पे.वि. " प.नं.-१ सुंदर चित्र श्लो. १८३. पे:-२. औषध सङ्ग्रह*, मागु., गद्य, (पृ. ९आ - ९आ), आदिः#; अंतिः#. T " ९५६४." जातकदीपक पद्धति सह टवार्थ एवं वर्षप्रवेशआदि विधि, संपूर्ण वि. १८४४ श्रेष्ठ, पृ. ११ पे ४ जैदेना ले. स्थल. द्राफा ले. ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी, लुङ्कागच्छ) प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (६१५) जासं पुस्तकं दृष्टा, ( २६११.५, ५X४०-४२). पे.-१. पे. नाम. जातक दिपक पद्धति सह टबार्थ, पृ. १अ - ११अ, संपूर्ण जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंतिः येष्या जातकादिता. जातकदीपकपद्धति टबार्थ मागु., गद्य (पूर्ण), आदि श्रीपार्श्वदेवजी अंति, पे.वि. मूल-श्लो. ७५ टबार्थे प्रतिलेखक ; द्वारा अपूर्ण. पे. २. ज्योतिष श्लोक सं., पद्य, (पृ. ११आ- ११आ, संपूर्ण), आदि ध्रुवघटी पुटपङ्क्ति: अंतिः मेषखगे पृथुलिप्तके., पे.वि. श्लो. १. पे- ३. ग्रहस्पष्टकरण विधि, मागु, गद्य (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण) आदि वर्तमान शाकमांथी अंतिः एटले लग्नस्पष्ट आवे. 1 पे. ४. ग्रहचालण विधि, सं. मागु, पद्य (प्र. ११आ-११आ, संपूर्ण) आदि आगामिसन्धिरधिके अंति: उपर ग्रह मांडिये. पे.वि. गा. ५. ९५६५.” प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले. स्थल. जेसलमेर, पठ. ऋ. राघव, प्र. वि. मूल- अध्याय-१०. ग्रं. ग्रं. १२५० प्रथम श्रुतस्कंध के ५वें आश्रवद्वार की अंतिम ५ गाथाएं सम्मिलित है., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४११ ७४२७-३०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-, अंतिः जाई अनन्तासुख पामइ. ९५६७." परमाणु विचार, पुद्गल विचार व निगोद विचार सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना. प्र. वि. For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संशोधित, (२६४११, १४-१५४४५-५०). पे.-१. पे. नाम. खण्डषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. १अ-३अ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः खेत्तोमाहणदब्वे भाव; अंतिः बहुतराणं गुणाण ठिई. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः यथास्थिताणुजीवादि; अंति: गुणमिति व्यवस्थितम्., पे.वि. हिस्सा-गा.१५. पे.२.पे. नाम. पुद्गलषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. ३अ-८अ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः वोच्छं अप्पाबहुअं; अंतिः ते ___ अणन्ते जिणाभिहिए. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पञ्चम एव; अंतिः हितान् जानीयादिति., पे.वि. हिस्सा-गा.३६. पे.-३. पे. नाम. निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. ८आ-१५आ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्सेगपएसे जहन्नय; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पंचमांग; अंतिः सङ्ख्येया अवसेयाः., पे.वि. हिस्सा-गा.३६. ९५६८. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.११३, (२६४११, ८-११४४१-४३). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. ९५६९. दशठाणा, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२६४११४). १० स्थान बोल-आनन्दादि दशश्रावक, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: नंदिणिपिया सालहीपिया. ९५७०." ज्योतिषसार सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले.स्थल. मुमासर, ले.- पं. कुशला, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५४३४-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः (१)पुण नत्थइ सन्देहो (२)रासदोषं प्रकीर्तिता. ज्योतिषसार सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः महाराउ श्रीअरिहन्त; अंतिः इति रासदोषण कह्यौ. ९५७१.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४४, (२६४११, ९४३२-३५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. ९५७२. स्तवन, सज्झायादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, पे. २९, जैदेना., (२६४१०.५, १२-१३४३७-४१). पे.१. दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १७१७, (पृ. १अ-५आ), आदिः धर्ममङ्गल महिमा; अंतिः सदाजी जयतसी जयजय रंग., पे.वि. अध्याय-१०. पे.-२. जीवदया सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः जिण सासण हो मोटो; अंतिः तिहां माहरो अवतार., पे.वि. गा.६. पे.-३. औपदेशिक पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः आतम ओलंभातो; अंतिः सुमति अखइ पद पावि., पे.वि. गा.५. पे.-४. अजितजिन स्तवन, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः मेरो सफल दिवस भयो; अंतिः दीजइ शिवसुख राजनो., पे.वि. गा.४. पे.-५. साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः सकल देव जिणवर; अंति: मोक्षसुख निश्चल करी., पे.वि. गा.१५. For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे.६. आदिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः जिन आदेसरजी वखाणीइ; अंतिः सुखकर सेवतां सुख लहइ., पे.वि. गा.६. पे.-७.पे. नाम. आतमसिख्या स्वाध्याय, पृ. ७आ-८आ पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मागु., पद्य, आदिः सुरतरुनी परि दोहिलो; अंतिः श्रीविजयदेवसूर के., पे.वि. गा.१६. पे.-८. पे. नाम. चउत्रीसअतिसय स्तवन, पृ. ८आ-९आ ३४ अतिसय स्तवन, मु. कान्ह, मागु., पद्य, वि. १६५२, आदिः पाय वन्दियइ रे; अंतिः कान्हमुनि० जयकार ए., पे.वि. ढाल-२, गा.१५. पे..९. अजितजिन स्तवन, मु. कान्ह, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. ९आ-१०आ), आदिः अजित जिनवर तणा पाय; अंतिः ____ मुनिकान्ह० मनोरथ घणा., पे.वि. गा.१०. पे..१०.१४ गुण सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः जिन सवेनइ करु प्रणाम; अंतिः ऋषि देज्यो परमत्थ., पे.वि. गा.१५. पे:११.२४ जिन गणधर सङ्ख्या स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदि: पहला वान्दुं रिषभ; अंतिः स्वामिजी दिओ सुखवास., पे.वि. गा.१५. पे..१२. क्षेत्रचौवीसजिन स्तवन, मु. कान्ह, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२आ), आदिः वीर जिनेस्वर पाय; अंतिः भावसुं भविया सुणो., पे.वि. ढाल-२, गा.१२. पे.-१३.२४ जिन ५ बोल स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१४अ), आदिः जिनवरनइ नामुं सीस; अंतिः सयल शुभंकर जिणवर राय., पे.वि. ढाल-४. पे.-१४. विमलजिन स्तवन, मु. रूपसी, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः विमलकर विमलजिन सेवीइ; ___ अंतिः थुण्या जिनवर सुखकरा., पे.वि. गा.१७. पे.-१५. पे. नाम. पञ्चासजिन स्तवन, पृ. १४आ-१५आ ५० जिन स्तवन, मागु., पद्य, आदिः जिनवर चरणे नमुं जस; अंतिः सङ्घ जय जय कारए., पे.वि. गा.१४. पे.-१६. पे. नाम. बत्रीस आगननाम सझाय, पृ. १५आ-१६अ ३२ आगमनाम सज्झाय, मु. खिमा, मागु., पद्य, आदिः वीर जिणेस्वर तिहुयाण; अंतिः दया तप न्यान पसाय., पे.वि. गा.८. पे.-१७. सुभद्रासती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः मुनिवर सोघेरे इरजा; अंतिः रहेशे सोना केरे ठाम., पे.वि. गा.२०. पे:१८.२४ जिन स्तवन, मु. रत्नसिंह, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ), आदिः प्रथम जिन वन्दिइ; अंतिः दिउ प्रभु सिवपुरी., पे.वि. गा.१८. पे.-१९. नववाडि सज्झाय, कवि विजयभद्र, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१९अ), आदि: पहेला प्रणमुं गोयम; अंतिः शीलवन्तने जाउ भामणे., पे.वि. गा.२८. पे.२०. पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. ज्ञानचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः पास जिणेसर सेवीइं; अंतिः सेवता थाय उलास रे., पे.वि. गा.७. पे..२१.७ व्यसन सज्झाय, मु. किसनदास, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ), आदिः सात विसन वरजो भवि; अंतिः किसनदासमुनि भासइ रे., पे.वि. गा.११. पे.-२२. प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. धर्मसिंह मुनि, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. २०अ-२०आ), आदि: कर पडिकमणुं भावशुं; ___ अंतिः मुक्ति निदान लाल रे., पे.वि. गा.६. पे.-२३. औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः निन्दा म For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ करजो कोईनी; अंतिः समयसुंदर सुखकार रे., पे.वि. गा.५. पे.-२४. आदिजिन स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२१अ), आदिः जिन रिषभ भजीयो सदा; अंतिः बीजइ भवदुख दाह., पे.वि. गा.१४. पे:२५. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदिः सीमन्धर सुणो वीनतीरे; अंतिः पाशा ढल्यारेलो., पे.वि. गा.७. पे.२६.पे. नाम. श्रीमन्धरवीनती स्तवन, पृ. २१आ-२२अ सीमन्धरजिन स्तवन , ऋ. किसन, मागु., पद्य, आदिः दिल लागो तुमसुं सही; अंतिः किसन कहइ० अरदास., पे.वि. गा.१०. पे..२७. सीयल सज्झाय, मु. किसनदास , मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२२आ), आदिः सील सदा सेवीइं सारद; अंतिः ___ दासमुनि० भास भाख रे., पे.वि. गा.८. पे.-२८. औपदेशिक सज्झाय-धर्मोपदेश, मु. श्रीदेव, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः जिनधर्म आराधीयइ; अंतिः इम भाखइ श्रीदेव., पे.वि. गा.११. पे.२९. पे. नाम. मरुदेवीमाता सझाय, पृ. २३अ-२३आ मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मागु., पद्य, आदिः रिषभ जीवन वासइ वसइ; अंतिः कल्याण गुण गावइ रे., पे.वि. गा.१३. ९५७३. अभिधानचिन्तामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४३, जैदेना.,प्र.वि. ६ कांड, ग्रं. १८००, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११, १४-१५४४०-४६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. ९५७४." शुकराज कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-१०(१ से २,४,६,८ से ९,१२ से १४,१६)=९, जैदेना., ले.स्थल. पाटरी, ले.- गणि हर्षविजय (गुरु गणि तेजविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ४९९., (२६४११, १३४३०-३६). शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः कथासौ लभतां प्रथाः. ९५७५. रूपसेन कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२०१ तक है., (२६.५४११, १३४३८-४३). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंति:९५७६. नेमनाथ व भरतबाहुबलीरी सिलोको, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, प्र. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मांडवी, ले.- ऋ. वीरचन्द तेजसी, पठ.- ऋ. फूलचन्द (गुरु ऋ. ताराचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११, १३४३६-३९). पे.-१. नेमिजिन सलोको, कवि उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः सिद्धि बुद्धि दाता; अंति: परे बोले० सुजस सवायो., पे.वि. गा.५४. पे.२. भरतबाहुबलीजी सलोको, कवि उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-६आ), आदिः प्रथम प्रणमुं माता; अंति: भरतनें नामे लीलविलास., पे.वि. गा.६८. ९५७७. सुक्तावली, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. तालानगर, ले.- साध्वीजी माना, प्र.वि. श्लो.७७८, (२५.५४१०.५, १३४४०-४३). सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः अर्हन्तो भगवन्तं; अंतिः पित्वा क्षयं जयुः. ९५७८. बारभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., ले.- ऋ. देवजी, पठ.- श्राविका गमतादेबाई; श्राविका फुलबाई; श्राविका प्रेमबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१२, (२६.५४११, ११४२८-२९). १२ भावना, मु. विद्याधर, मागु., पद्य, आदि: पहिलीय भावना भविज्यो; अंतिः करु सफल संसार. For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २७ ९५७९. ज्योतिषसारोद्धार, छींक विचार व दक्षिणालाभ ज्ञान, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. प्रतिलेखन स्थल मिटाया हुआ है., (२६४११, १०-१६x४०-४७). पे:१. ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-५८आ), आदिः तं नमामि जीनाधीशं; अंतिः सङ्कलितवानेनम्., पे.वि. अध्याय-३, श्लो.३३७, ग्रं.५००. पे.२. छिङ्क विचार, सं., पद्य, (पृ. ५९अ-५९अ), आदिः पूर्व छीका भवे मृत्य; अंतिः अन्यथा परिवर्जयेत्., पे.वि. श्लो.४. पे.३. दक्षिणालाभ ज्ञान, सं., पद्य, (पृ. ५९अ-५९अ), आदिः याचंतो लाभगाः खेटाः; अंतिः दक्षिणाज्ञानमाहरेत्. ९५८०. धर्माधर्मविचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. गा.३६६, (२६४११, ११-१३४४७-४८). धर्माधर्म विचार, म. ताराचन्द, माग., पद्य, वि. १६५३. आदिः सरसति देवि समरूं: अंतिः चउपई जग विख्यात ९५८१.” स्तवन स्तोत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. १०, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १२४३७-३९). पे.१.पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदिः परमिट्ठिमन्तसारं; अंतिः देइ सुहपुन्नो., पे.वि. गा.७. पे..२.पे. नाम. सप्ततिजिन स्तवन, पृ. १आ-२आ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अठ्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे.-३. पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः दोसावहारदक्खो नालिया; __अंति: गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे.-४.पे. नाम. आत्मरक्षाकरं स्तोत्रम् म, पृ. ३अ-३अ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, आदिः ॐ परमेष्ठि नमस्कारं; अंतिः चापि कदाचन., पे.वि. श्लो.८.. पे.५. घण्टाकर्णमहावीर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः ॐ घण्टाकर्णो महावीर; अंतिः नमोस्तु ते स्वाहा., पे.वि. श्लो.४. पे.-६.पे. नाम. श्रीशङखेसर पार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ३आ-४अ पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मागु., पद्य, आदिः सखेसर सङ्खपूरीयो; अंतिः ए दली काह्न घर आयो. पे.-७. पे. नाम. जीरावला पार्श्वनाथ स्तवन, पृ. ४अ-४आ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, मागु., पद्य, आदि: जीरावलादेव करु जुहार; अंतिः करी सेवक मुझ थापो., पे.वि. गा.१०. पे.८.पे. नाम. श्रीपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ४आ-५अ पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. भक्तिलाभ, मागु., पद्य, आदिः जीरावलौ छइ कलिकाल; अंतिः ए वीनती बोलइ भगतिलाभ., पे.वि. गा.८. पे.९. पार्श्वजिन लघुस्तवन- जीरावला, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः कामिक तीरथ दूसम काल; अंति: सयल सङ्घ रक्षा करइ.,पे.वि. गा.१०. पे.-१०.पे. नाम. श्रीपार्श्वनाथ लघुस्तवन, पृ. ५-५आ पार्श्वजिन छन्द-नाकोडा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, आदिः आपणे घेर बेठा लील; अंतिः सुन्दर कहै गुण जोडो., पे.वि. गा.८. ९५८२. प्रियङ्कराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७-४६(१ से ४६)=११, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४११.५, ९४२६-२९). प्रियङ्कर राजा रास, मु. ज्ञानमुर्ति, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः९५८४." प्रशमरति प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.२०४ अपूर्ण तक है., (२६४११, १३४४०-४४). For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदिः नाभेयाद्याः; अंति: प्रशमरति प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: उमास्वाति वाचकः पञ्च; अंति:९५८६. योगशास्त्र १ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. भृगुकच्छनगर, ले.- गणि संयमजय, पठ.- मु. हंसहेम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-४प्रकाश., (२६४११, १४-१५४४२-४६). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:९५८७.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., लिखवा.- ऋ. वरनङ्गजी, प्र.वि. मूल-गा.३३७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५-६४३३-३९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: नमिउं कहतां नमस्कार; अंतिः वीरनुं तीर्थ वर्तइ. ९५८८.” ज्योतिषसारसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. श्लो.३७०, ग्रं. ५००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १७४४५-४७). ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः तं नमामि जिनाधीशं; अंतिः सङ्कलितवानेनम्. ९५८९. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. माढकाग्राम, प्र.वि. ढाल-१४, (२५.५४११, १८४५१-५६). मानतुङ्गमानवती रास, उपा. अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२७, आदिः प्रणमुं माता सरसती; अंतिः भेद मतिमन्दिर लहै. ९५९०. कल्पसूत्र की वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १५४५४-५५). कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंतिः९५९१. अठावनबोल सङ्ग्रह व बीजक, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, ११४३०-३५). पे.-१.५८ बोल सङ्ग्रह-बीजक, मागु., गद्य, (पृ. १आ-३अ), आदिः#; अंतिः#. पे.२.५८ बोल सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-५१आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः चारित्र सही जाणज्यो., पे.वि. ग्रं.१२५०. ९५९२. विविध सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५-५६(२ से ३,७ से ११,१३,१५ से १८,२३,३४ से ३६,५५,६३,६५,७४ से ७६,८३,८५ से ८८,९१,१०० से १०१,१०३,१०५ से १०६,१११ से १२६,१२८ से १३४)+१२(१,१,४,१९,२२,२६,३७,४०,४६ से ४७,५३,७२)=९१, जैदेना., (२६.५४११, ६-१५४३३-३५). विविध सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, आदि:-; अंति:९५९३. लीलावती रास, पूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., ले.स्थल. दांता, ले.- पण्डित खिमाविजय (गुरु गणि विनयविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१८६, पू.वि. गाथा १७ तक नहीं हैं., (२१x१०, १४-१५४२६-३१). लीलावती रास, मु. कडुआ, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः इम भणे० पूरे आस. ९५९४. शत्रुञ्जयउद्धार, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- पं. भाणविजय, पठ.- मु. पीताम्बर (गुरु पं. भाणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१३६, (२३.५४१०, १२४४२-४३). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः देही दरीसण जय करूं. ९५९७. कयवन्ना चौपाई, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(८)=९, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४४१०, १३-१४४४१-४५). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः९६००. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. गा.५२, (२३x१०, १०४३०-३१). For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ साधुवन्दना लघु, ऋ. जेमल, मागु., पद्य, वि. १८०७, आदिः नमुं अनन्त चोविसी; अंतिः जैमल एही तिरणनो दाव. ९६०१. इलाकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मांडवी, ले.- मु. सुमतिसागर (गुरु मु. अमरसागर, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाल-१५; प्र.पु.-मूल-गा.१९०,, (२४.५४१०.५, १३४४०). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः ज्ञान दर्शन __अजूआले. ९६०२." स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४४१०.५, १०x२६-३०). स्तवनचौवीसी, वा. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १७५७, आदिः प्रथम जिणन्दसु; अंतिः लकस सङ्घ मङ्गल करो. ९६०३.” गौतमकुलक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२०., संशोधित, (२४४११, १९४५३ ५८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-टीका+कथा , मु. ज्ञानतिलक, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः नत्वा श्रीदेवगुरुन्; अंतिः भुवि चिरं जीयात्. ९६०४. सङ्ग्रहणीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२७४; टीका-ग्रं. ३५००., संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १-४४५९-६६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः अत्यद्भुतं; अंतिः लोकानां सर्वसंख्यया. ९६०५. योगशास्त्र सह टीका १ से ४ प्रकाश, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३-१८(१ से १७,८२)=६५, जैदेना., प्र.वि. विवरण-अध्याय-१-४प्रकाश., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं., (२५४१०.५, १२-१३४३४-३८). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः- अंति: योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः९६०७. दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.२८५. हेमचंद्रसूरि की जगह हेमरत्नसूरि कीया गया है यह प्रतिलेखक की भूल होने की संभावना है., (२५४११, १६-१७४४१-४८). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान; अंतिः प्रति दिवं ययुः. ९६०८.” आराधनासूत्र, पद्मावतीआराधना व व्रतउच्चार विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- ऋ. अजरामर, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, १२-१३४३२ ४१). पे:-१. श्रावक आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, (पृ. १आ-७अ), आदिः श्रीसर्वज्ञं प्रणिपत; अंतिः मासजावज्जीवं वा कुरु., पे.वि. प्रति में कर्तानामवाले श्लोक का उल्लेख नही किया गया है. पे..२. पद्मावती आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः हिवे राणी पद्मावती; अंतिः ____ पापथी छुटे तत्काळ., पे.वि. गा.३५. पे.-३. सम्यक्त्व व शीलव्रतउच्चार विधि, मागु.प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-९आ), आदि: ते समकीत पांच तेहनां; अंतिः संति दूकरं जे करन्ती. ९६०९. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७३, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२५४१०.५, ५४३४-३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः दिवसे श्रुताङ्गतिमज. For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६१०." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८०, मध्यम, पृ. १८१, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, प्र.वि. मूल ३६अध्ययन., (२४.५४१०.५, ५४३३-३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पूर्वल्या संयोग; अंतिः एह वचन भाष्यकारनउ. ९६११. कर्मग्रन्थ ४-५ सह स्वोपज्ञ वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८३-११८(१ से ११८)=६५, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५४११, १-५४२९-३४). पे.-१. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रन्थ सह वृत्ति, पृ. ११९अ-१२३आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः क्रमकमलचञ्चरीकैरिति., पे.वि. मूल-गा.८६; टीका-ग्रं.२००. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.२. पे. नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह वृत्ति, पृ. १२४अ-१८३आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिःशतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविना; अंतिः-, पे.वि. अंत के ___ पत्र नहीं हैं. ९६१३.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२५.५४११, १९४५५-६३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंति: बृहत्सग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदि:-: अंतिः९६१६.” अभिधानचिन्तामणीनाममाला, अपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ५०-४(१ से ४)=४६, जैदेना., ले.- पं. माणिक्यराज, प्र.वि. ६ कांड, संशोधित, पू.वि. कांड-२ के श्लो.१९ तक नहीं है., (२५४१०, १३४४२-४५). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः. ९६१८. सप्तस्मरण, अपूर्ण, वि. १६५९, मध्यम, पृ. १०-४(१ से ३,६)=६, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, गच्छा.- गच्छाधिपति जिनचन्द्रसूरि(बृहत्खरतरगच्छ), ले.- मु. सुखसागर (गुरु पं. उदयसागर गणि, बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ७ स्मरण. सप्तम स्मरण उवसग्गहरं स्तोत्र प्रतिक मात्र दिया गया है., (२५४१०.५, ११४३६-३७). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः भवे पास जिणचन्द. ९६१९. हरीबलमाछी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.- जसराज, प्र.वि. गा.८४९, (२४.५४१०.५, १८-२०४३९ ४९). हरिबल रास, मु. जितविजय, मागु., पद्य, आदि: सुखदाई समरूं सदा; अंतिः पूरे शोसर आसो रे. ९६२०. होलीरजपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालणपुर, ले.- ऋ. वीरचन्द, प्र.वि. मूल-श्लो.५१., (२४.५४११, ५४४०-४५). होलीरजपर्व कथा, सं., पद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंतिः विज्ञानां वाचनोचितः. होलीरजपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानस्वामी; अंतिः ते एह अर्थ कह्यो. ९६२१. थुलिभद्र सज्झाय सङ्ग्रह एवं नवरसो, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. रत्नविजय (गुरु पं. रविविजय), पठ.- श्राविका कसल बाई,प्र.ले.पु. मध्यम, (२४४१०.५, १२४३०-३३). पे.-१. स्थूलिभद्र नवरसो ढाल एवं दोहायुक्त, वा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, वि. १७५९, (पृ. १अ-५अ), ___ आदिः सुखसंपति दायक सदा; अंति: मनोरथ वेगे फल्या रे. पे.२. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः लाछल दे मात मल्हार; अंतिः लीला For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: लखमी घणी जी., पे.वि. गा.१७. पे. ३. स्थूलभद्र सज्झाय, मु. रुपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ), आदिः परमेसर प्रणमेव अरज: अंतिः प्रणमें तेणे हो लाल., पे. वि. गा. ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९६२३. स्तवन व सज्झाय सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ९, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२१x११, १२ · १६x२१-३२). पे. १. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु, पद्य, (पृ. १३-३आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी पास जिणेसर अंतिः गुणविजय रङ्गे गुणि., पे.वि. ढाल -६, गा.४९. पे.-२. सीमन्धरजिननुं स्तवन-१, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः सुणो चन्दाजी सीमन्धर; अतिः वाघे मुज मन अतिनूरो, पे. वि. गा. ७. पे.-३. सोदागर सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ - ४आ, संपूर्ण ), आदिः सुण सोदागर; अंतिः जाई होत सताबी सगाई, पे. वि. गा. ६. पे.-४. माया सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ४आ - ५अ, संपूर्ण), आदिः समकीतनुं मुल जाणीयेज; अंतिः ए मारग छे शुद्ध., पे.वि. गा.६. पे.-५. वणझारा सज्झाय, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदिः नवभव नगर सोहामणुं; अंतिः पद्म नमे वारंवार पे.वि. गा.७. " पे. ६. मान सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५आ - ५आ, संपूर्ण), आदिः रे जीव मान न कीजीए; अंतिः मानने देजो देशवटो रे, पे.वि. गा. ५. (+) ३१ पे. ७. रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय, मागु, पद्य, (पृ. ५आ-६अ, संपूर्ण), आदि हारे मारे वासुपूज्य; अंति दुख कोइ जातनु रे लो. पे.वि. मा.६. पे. ८. पार्श्वजिन स्तवन- शङ्खश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु, पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदि अन्तरजामी सुण अलवेसर अंतिः मुजने भवसागरथी तारो., पे.वि. गा. ५. पे. ९. आदिजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु, पद्य, (पृ. ६आ-६आ, अपूर्ण), आदि ऋषभ जिणेसर प्रीतम अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १ तक है. ९६२४. शीवलवेल सज्झाय, संपूर्ण वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल नउत्तनपुर, ले. ॠ चाम्पसी राजसी, पठऋ. लवजी; मु. अमीचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १८, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल में लिखित, (२१x११, १४-१५X३१-३४). स्थूलभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६२, आदिः सयल सुहङ्कर पासजिन; अंतिः विमला कमला वरशे रे. ९६२५. अभिधानचिन्तामणि नाममाला १२ काण्ड, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. ऋ. चतुरचन्द (गुरु मु. माणिकचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र. वि. प्र.पु.- २ कांड., ( २४.५x११, १६ - १७X३३-३६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला. आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः अंतिः ९६२६. कालिकाचार्य कथा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. पठ. साध्वीजी कनकसिंघजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ग्रं. ३८१ कालिकाचार्य कथा - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: अर्हत भगवंत उत्पन्न: अंतिः तीयां रउ संबंध कह्यो. १८, जैदेना., ले. स्थल. बीकानेर, ले. पं. जैसार (२६४११, १२४४२-४४) For Private And Personal Use Only ९६२९. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७८-१ (२६) ७७, जैदेना. प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. पू. वि. बीच व , अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१०.५४). बोल सङ्ग्रह *, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ९६३०. विक्रमसेन चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.- जसराजजी, प्र. वि. ढाल-६४, (२४.५X१०.५, १४ - Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १७४३३-३८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास; अंतिः परमसागर आणन्दा ९६३१. गौतमपृच्छा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. गा.१ से १७ तक है., (२४x१०.५, १५४४१-४५). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं अंतिः गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंतिः९६३३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. भेसाण, प्र.वि. मूल-गा.६३., (२४४१०, ४४३४-३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, गणि लाभकुशल, मागु., गद्य, आदिः एकठो सम्बन्ध मिलेते; अंतिः ए अध्ययनथी सुख होइ. ९६३४. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. जावण, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२४.५४१०.५, १२-१३४३३-३७)... भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भगवन्त श्रीआदीश्वर; अंतिः नाम स्तवन करे छे. ९६३६. वसतिशैयादान आदि आठकथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १३-१४४३९-४४). दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा.,सं., गद्य, आदिः वसही सयणासण भत्तपाणे; अंतिः९६३७. सुक्तमाला, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम वर्ग की गाथा ४५ अपूर्ण तक __ है., (२१x११, ८x१८-२५). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लीवृन्द; अंति:९६३८.” नयचक्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल का मात्र प्रथम मांगलिक श्लोक ही दीया है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, २३४५०-५६). नयचक्र-भाषावचनिका, श्रा. हेमराज शाह, प्राहिं., गद्य, वि. १७२६, आदिः वन्दौ श्रीजीनके वचन; अंतिः जीवको सरीर ___ ऐसो कहिणो. ९६४१. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ६४३७-४१). बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंति: बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीनें जलसहित मेघ; अंति:९६४३. सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- ऋ. मयाचन्द, प्र.वि. गा.३२२, (२५.५४११.५, १६-१९४४३ ५१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ९६४४." सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८०८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पुरबिंदर, ले.- गणि मयाचन्दजी (गुरु ऋ. लीलाधरजी, लुङ्कागच्छ), पठ.- ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.३२५, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११, १४-१६x४३-५०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ९६४५. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १६९१, मध्यम, पृ. ६५-१(१)=६४, जैदेना., ले.स्थल. खीखराग्राम, ले.- ऋ. For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३३ तलशीदास, प्र.वि. मूल-गा.६४., (२४.५४११, १-१६४३२-३९). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, पाठक शिवसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५६९, आदि:-; अंतिः एस कउ बालअवबोहो. ९६४६. सूक्तमाला, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- ऋ. चतुरचन्द (गुरु मु. माणिकचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र.वि. ४ वर्ग, संशोधित, (२२.५४११.५, २०-२१४४०-४९). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. ९६४७.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. द्राफानगर, ले.- ऋ. वर्द्धमान (गुरु गणि मयाचन्दजी, लुङ्कागच्छ), पठ.- मु. खुशालचन्द (गुरु ऋ. वर्द्धमान),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. गा.३२५, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १५४३९-४०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ९६४८. अञ्जनासती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२१x११, ११४२०-२४). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदिः गणधर गौतम प्रमुख; अंतिः९६४९. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., पठ.- श्रा. भाईचन्द, प्र.वि. सर्वग्रं. ३२७, (२५.५४११.५, १४-१५४३७-४४). पे..१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१०अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.२. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. १०अ-१०अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासणौ पिअं; अंतिः नित्थारगपारगाहोह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ९६५०. मौनएकादशी व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., (२२.५४१०.५, १३-१४४३७-३९). मौनएकादशीपर्व व्याख्यान , मागु., गद्य, आदिः (१) सिरिवीरं नमिउणं (२) श्रीमहावीरदेवनै; अंतिः सकलसुख बिभागी थाय. ९६५१. वीरथुई अध्ययन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.२९, (२५.५४११.५, ५४३६). सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदि: पुच्छिंसुणं समणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति. ९६५२. बुधि रास व नेमराजमती बारमासो, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. हैदराबाद, ले.- ऋ. लक्ष्मीचन्द (गुरु ऋ. रत्नचन्द, लुङ्कागच्छ), पठ.- ऋ. अमरचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, (२२.५४११.५, १३४३०-३४). पे.-१. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः प्रणमवि देव अम्बाई; अंतिः ए तेह सव टले कलेस तो., पे.वि. गा.६३. पे.२. नेमराजिमती बारमासो, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-६आ), आदिः प्रेम गहेली पदमणी; अंति: गढ नाथ सरे सुर नेम., पे.वि. गा.५०. ९६५३. नवसौकन्या रास, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. २२+१(११)=२३, जैदेना., ले.स्थल. एवला, ले.- पं. माणकचन्द, प्र.वि. ढाल-२७, (२५४११.५, १४४३६-४०). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, वि. १७२३, आदिः पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंतिः तेहने सदा हुइ कल्याण. ९६५४. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १८०५, श्रेष्ठ, पृ. १६-२(१ से २)=१४, जैदेना., ले.स्थल. देलवाडा, प्र.वि. २४ स्तवन, पू.वि. सुमतिजिन स्तवन की गा.२ तक नही है., (२२.५४१२, ७-१२४२८-२९). स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी. ९६५५. चतुविंशतिदण्डक विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., (२३.५४११.५, For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४३१-३४). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः मन वचन कायाइ नमस्कार; अंतिः हितनी करणहारी छे. ९६५६. वैदर्भी चोपाइ, इलाचीपुत्र सज्झाय व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११, १२४३७-४०). पे.-१. दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., पद्य, (पृ. १अ-८अ), आदिः जिण धरम मांहि दीपता., पे.वि. गा.१७६. पे.२. इलाचीपुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ)., पे.वि. गा.११. किसी अन्य प्रतिलेखक द्वारा अंतमे ____ अनुपूरित गाथा के रुपमे ६-७ दो गाथा दी है. पे.-३. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ८आ), आदिः #; अंतिः #. ९६५७.” सप्तस्मरण, बृहच्छान्ति, स्तवन, रास, छन्द सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११.५, १२-१४४२७-३४). पे.-१. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-८अ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. १. अजितशांतिस्तोत्र- गा.३९ प.३अ, २. अजितशांतिस्तोत्र- गा.१७ प.४अ, ३. भयहरस्तोत्र- गा.२१ प.५अ, ४. सर्वाद्धिष्टतस्मरण- गा.२६ प.६अ, ५. सर्बोद्धिष्टतस्मरण- गा.२१ प.७अ, ६. सर्वाद्धिष्टतस्मरण- गा.१४ प.७आ, ७. सर्वाधिष्टतस्मरण- गा.५ प.८अ.७ स्मरण. पे.२.बृहत्शान्ति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, (पृ. ८अ-१०आ), आदिः भो भो भव्या श्रृणुत; अंतिः सुखी भवतु लोकः. पे..३. आदिजिन विनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमण्डन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६२, (पृ. १०आ-१३अ), आदिः जय पढम जिणेसर; अंतिः मन वैरागे इम भणियं., पे.वि. गा.४६. पे.-४. पार्श्वजिन स्तोत्र-शर्खेश्वर, मु. लब्धिरूचि, सं.,मागु., पद्य, वि. १७१२, (पृ. १३अ-१५अ), आदिः जय जय ___ जगनायक पार्श्व; अंतिः सुमुदा प्रसन्नात्., पे.वि. गा.३२. पे.५. नमस्कार महामन्त्र रास, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१७अ), आदिः पहिलउजी लीजइ; अंतिः वरतीयो जय जयकार., पे.वि. गा.२१. पे.६.९६ जिन स्तवन, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, वि. १७४३, (पृ. १७अ-१९अ), आदिः वरतमान चोवीसै वन्दु; अंतिः सदा जिणचंदसुर ए., पे.वि. ढाल-५. पे..७.२४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः जय जय आदि नमुं; अंतिः मनवञ्छित __ पाइये., पे.वि. गा.५. ९६५८. चतुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. ग्रं.ग्रं.३३५., (२५४१२, १३४३२-३६). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः स्मारं स्मारं स्फुरद; अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः. ९६५९. अट्ठाइ व्याख्यान व नवअङ्गपूजा दूहादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. कुसलगढ, ले.- ऋ. लक्ष्मीचन्द (गुरु ऋ. रुपचन्दजी, लुङ्कागच्छ), (२४.५४१२, १७-१८४३०-३४). पे.-१.पे. नाम. अट्ठाइ व्याख्यान, पृ. १आ-१५आ अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमन्दिर, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदिः (१) शान्तीशं शान्ति (२) शान्तिदेव प्रणाम कर; अंतिः भाषा सुगम सुजाण. पे.२. नवअङ्गपूजा दोहा, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः परम उपगारी चरणकज; अंतिः आनन्दघन चित्तलाय., पे.वि. गा.९. पे.-३. मन्त्र सङ्ग्रह, मागु.,सं., गद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः ॐ नमो भगवओ बाहू; अंतिः वार २७ गुणीजे. ९६६०." विवेकविलास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७, जैदेना.,प्र.वि. १२वें उल्लास की मूल गाथा १० संपूर्ण तक है., संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १५४३६-४०). For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः शाश्वतानन्दरूपाय; अंतिः विवेकविलास-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ते को एक परमात्मानइ; अंति:९६६१.” सिंहासनबत्रीसी, केशीगणधरप्रदेशीराजा प्रश्नोत्तर व वैतालपचीसी, अपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ६२, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मेउग्राम, ले.- ऋ. जेठा, प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२१.५४११, १७-१९४३१-३५). पे.-१.पे. नाम. सङ्घासणबत्रीसी, पृ. १अ-६१आ, संपूर्ण सिंहासनबत्रीसी, गणि सङ्घविजय, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सकल मङ्गल धर्म धुरि; अंतिः लहि नर कोडि कल्याण., पे.वि. गा.१५४७, ग्रं.२२०० प्रतिलेखन वर्ष१८१० है. पे..२. केशीगणधरप्रदेशीराजा प्रश्नोत्तर, मु. देवमुनि, मागु., पद्य, वि. १७२१, (पृ. ६२अ-६२आ, अपूर्ण), आदिः सकल सम्पद दाइ सदा; अंतिः-, पे.वि. पेज नं.६३ से ६६अ तक कोरे पत्र हैं, प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दूसरे ढाल की गाथा १० अपूर्ण तक है. पे..३. वैतालपञ्चवीसी कथा, मु. देवशील, मागु., पद्य, वि. १६१९, (पृ. ६६आ-८६आ, संपूर्ण), आदिः सरसति सामणि; अंतिः ए पंचवीस कथा रसाल., पे.वि. गा.७९४. ९६६३." सुरप्रिया चरित्र व सझाय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है अल्प, (२६४११, १४-१५४३४-४१). पे.-१. सुरप्रिय केवली रास, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६७, (पृ. १अ-७अ), आदि: राजगृह रलीयामणउं; ____अंति: गुरु सरसति आधारि., पे.वि. गा.२१०. पे.२. जैनदर्शनमण्डन छत्रीसी, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-९आ), आदिः रिसह पमुह जिणवरचउवीस; अंतिः नितु करे प्रणाम., पे.वि. गा.३६. ९६६४. पद्मणी चरित्र व दोहा, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- ऋ. सौभाग्यचन्द, (२५.५४११, १३४३७-४०). पे.-१. गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, (पृ. १अ-३६अ), आदिः श्रीआदिसर प्रथम; अंतिः सील सफल सुरकन्द., पे.वि. खण्ड-३. पे..२. दुहा सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. ३६अ-३६अ), आदिः#; अंतिः#. ९६६८. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले.स्थल. अंजार, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ५४४१-४५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे जम्बू एह; अंतिः शरीरनुं धरणहार थाइ. ९६६९. सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. वगडीनगर, ले.- मु. जिनेन्द्रहर्ष, प्र.वि. मूल-श्लो.१००., (२५.५४११, ५-६४३०-३४). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर; अंतिः प्रत्यक्ष वर्णवी ते. ९६७०. बारभावना व औपदेशिक पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४११, १३४४१-४३). पे.१.पे. नाम. द्वादश भावना, पृ. १अ-५आ, संपूर्ण १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः विमल कुल कमलना हंस; अंतिः सकल मुनी चित्ति आणो..पे.वि. ढाल-१४. पे.२. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, अपूर्ण), आदिः भविकजीव पूछि निजगुरु; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३६ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir द्वारा अपूर्ण. गा. ७ तक लिखा है. ९६७१. दुहा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २१x११.५, १०-१२x२४-२९). जैन दुहा सङ्ग्रह*, सं., प्रा.,मागु., प+ग, (संपूर्ण), आदि: #; अंतिः #. " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६७२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., ले. स्थल. तलवाडा, ले. पं. माणक्योदय (गुरु पं. चारित्रोदय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-१०अध्ययन २ चूलिका (२५.५४११.५. ५-६४३६-४०)दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः कहणा पवियालणा सङ्घे. दशवेकालिकसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट अंतिः पुत्रना राग भणी. (+) ९६७३. रत्नपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५, देना., प्र. वि. प्रत्येक ढाल में ग्रंथकर्ता के नाम को बदलने का प्रयास किया गया है, संशोधित, पू. वि. अंत के पत्र नहीं है. ढाल २३ तक है., (२५.५४११.५, १६४४२-५४). रत्नपाल रास, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीप्रभु: अंतिः ९६७४. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. बीकानेर, ले. ऋ. चतुरचन्द (गुरु मु. माणिकचन्दजी, लुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, १८-२०x४५-४६), भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरै. ९६७५.' दान कुलक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (१) =५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.६ से ४८ तक है., (२५.५४११.५, ६x२८-३७). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि प्रा., पद्य, आदि: अंति: दानशीलतपभावना कुलक-टवार्थ, मागु, गय, आदि:-: अंति: ९६७६ . पाञ्च बोल, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. खेरालु, ले. ऋ. हस्तिचन्द (लौङ्कागच्छ), - (२५.५४११.५, १२४३७-४१). देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार मागु, गद्य आदि पहिलो नारकीनो द्वार अंतिः वैमानिक विचरे छे. ९६७७. चौदस्वप्न विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैवेना. ले. श्राविका गोमती (२५४११, १५४३५-४१). १४ स्वप्न विचार, मागु., गद्य, आदिः ते चऊद मांहि प्रथम अंतिः तलि प्रतिष्टत छइ. ९६७८. विचारपञ्चासिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. कांटारिया, ले. मु. जीवविजय (गुरु मु. ज्ञानविजय, तपागच्छ), प्र. वि. मूल-गा. ५१, त्रिपाठ, (२५x११, २- ७x४२-४५). विचारपंचाशिका गणि विजयविगल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपञ्चाशिका-अवचूरि, गणि विजयविमल, सं., गद्य, आदि: वीरपदकजं श्रीमहावीर; अंतिः विधाय संशोध्यमिति. ९६८१. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १७६९, श्रेष्ठ, पृ. ८- १ (१)= ७, जैदेना., ले. मु. देवचन्द्र, पठ- श्राविका झमो, प्र. वि. मूल - गा. ३३. पत्र चीपके हुए होने से अंतिमवाक्य पढा नहीं जा रहा है., पू. वि. गा. १ से ३ नही है., (२५.५४११.५, ४x२६-३१). For Private And Personal Use Only लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि:-: अंति: " .. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि:-: अंति: ९६८३. होली कथा, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल विक्रमपुर, ले. मु. क्षिमासागर, (२५.५x१२, १३×३३ 34). होली कथा, मागु., गद्य, वि. १८८३, आदिः आदिश्वर प्रणमिकै: अंतिः भणी भाषा वणाइ छे. Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३७ ९६८४." कालिकाचार्य कथा व अक्षोणिमान श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. चिलोडा, ले.- मु. मयासागर (गुरु मु. ज्ञानसागर, तपा.सागरशाखा), पठ.- मु. ज्ञानविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२, ४४३१-३५). पे.१. पे. नाम. कालिकाचार्य कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-१३अ कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, आदिः श्रीवीरवाक्यानुमतं; अंतिः निजबुद्धीयोग्यं. कालिकाचार्य कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीर वनथकें अनुभकहता; अंतिः क्रियता नाम कह्यो छे., पे.वि. मूल श्लो.६५. पे..२. पे. नाम. अक्षोणिमान श्लोक सह टबार्थ, पृ. १३आ-१३आ अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., पद्य, आदिः दशकोटी दन्ता त्रिगुण; अंतिः प्रमाणं मुनयो वदन्ति. अक्षौहिणीसैन्य मान-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः दशकोडी हाथी त्रीशकोड; अंतिः प्रमाण कयुं छे., पे.वि. मूल श्लो .१. ९६८५. अभिधानचिन्तामणी नाममाला- १,२ काण्ड, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-२ कांड., पू.वि. कांड-१ के श्लो.८ तक नही है., (२६x११.५, ९-११४३०-४०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:९६८६. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४११.५, १३४३२-३५). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ९६८७." नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. फलवद्धिका, ले.- मु. जगत्चन्द्रजी, प्र.वि. मूल-गा.४३. अंतिम गाथा प्रतिकपाठ मात्र ही दी गई है., संशोधित, (२५.५४१२, ९४२५-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंतिः प्राप्त भवन्ति. ९६८८." चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११.५, १५४३८ ३९). चातुर्मासिक व्याख्यान, मागु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः पाप थकी श्रावक छुटे. ९६८९.” गौतमपृच्छा सह वृत्ति - सुखबोधिका नाम्नी, पूर्ण, वि. १९१०, मध्यम, पृ. ५९-१(१)=५८, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- ऋ. अखैचन्द, लिखवा.- आ. रतनचन्दजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६४. ग्रं.ग्र. १८८२, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४१२, १३४२७-३३). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः सुगमा सुखबोधिका. ९६९०. कयवना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. ब्रह्मनगर, ले.- ऋ. अजराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-३१, (२५.५४१२, १३४३३-३७). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः विकसे धरमरो मन उलसि. ९६९२. सूक्तिमाला, संपूर्ण, वि. १९१०, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. धौर्जपुर, ले.- ऋ. पेठारवजी, पठ.- गणि रत्नचन्द्र, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ वर्ग. भुअभ्रनंदैकानां वर्षे, (२४४१२, १२-१३४२७-२९).. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृतवल्लिवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. ९६९३. ज्ञानपञ्चमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. जैसलमेर, ले.- ऋ. जैमल, (२५.५४१२, १५४३१ ३४). ज्ञानपंचमीपर्व कथा, मागु., गद्य, आदिः फलविधि पार्श्वनाथनइ; अंतिः सिद्ध नवनिद्ध पामीस. For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९६९४. व्याख्यान सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६१२, १२३२-३५). व्याख्यान सङ्ग्रह, सं. मागु, गद्य, आदि देवपूजा दया दानं अंति: ९६९६." साधुवन्दना, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. गा. १११, संशोधित (२३४१२.५, ८-९४२९-३२). साधुवन्दना बडी, ऋ. जेमल, मागु., पद्य, वि. १८०७, आदिः नमो अनन्त चौवीसी; अंतिः रिषि जेमलजी ईम कहे. ९६९७. गौतमपृच्छाभाषा, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. बालापुर, ले. ऋ. हरखचन्द, पठ- श्राविका हीराबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. सूत्र- १०१ प्रश्न, (२५४११.५ १२-१३४३०-३४)गौतमपृच्छा भाषा, मागु., गद्य, आदिः भगवन्त देवजीने गोतम; अंतिः सर्पनो भव कीधो होय. ९६९८. उपदेशमाला सह कथा, अपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ६६-१९ (१ से १९ ) = ४७, जैदेना., ले. स्थल. प्रांतिज, ले. - ऋ. वेलजी, प्र. वि. मूल-गा. ५३६. पू. वि. गा. १ से ७ तक नही है., ( २६१२, ८-१५X३२-४४). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-: अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदि: ९६९९. पासाकेवली, दोषावली व गोडीपार्श्वनाथ छन्द आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८७१, मध्यम, पृ. १६-१(२ )+१(१३) = १६, पे. ४, जैदेना., ले.- मु. खेमविजय, ( २१x१३, २५-२८x१५-१८). " पे. १. पासाकेवली सुकनावली मागु, गद्य (प्र. १अ ११आ, अपूर्ण), आदि १११ उत्तम भो भद्र अंतिः छे सहि करि मानजे, पं.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पे. २. दोषावली, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ११आ - द्वि १३आ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमो सूर्यदेवाय अंतिः एवं भवती मातुरी. पे. ३. पे नाम. गोडीपार्श्वनाथ छन्द, पृ. १४अ - १४आ, संपूर्ण पार्श्वजिन छन्द-गोडी, मागु., पद्य, आदि: सरसति धो मुझ शुभ; अंतिः महा मन वञ्छित पूरि., पे.वि. गा. ७. पे.-४. यन्त्र सङ्ग्रह, सं., मागु., गद्य, (पृ. १५आ - १६अ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः #., पे. वि. प्र. पु. ५ यंत्र.. ९७००. सझाय आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, पे. २३, जैदेना. (२१x१२.५, २६×१५). पे. १. नन्विषेणमुनि राज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु, पद्य, (पृ. १अ १आ), आदि पञ्चसयां धणि अंति लब्धिविजय निसदीसे रे.. पे. वि. गा.१६. पे.-२. भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ ), आदि: भवदेव भाई घरे आवीयो; अंतिः समयसुन्दर गुण गाइ रे, पे.वि. गा.10. पे.-३. अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदि: श्रीसरसतिने चरणे; अंतिः वाचिक देव सुसीस., पे. वि. गा. ७. पे. ४. औपदेशिक पद, मु. वल्लभसागर मागु, पद्य, (पृ. २आ-३अ) आदि चालो सहेली सहुमिलि अंतिः वल्लभसागर गुण गाय रे, पे.वि. गा.६. पे.-५. रेन्टीया सज्झाय, रतनबाई, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ४आ), आदि: बाई रे अमनें रेण्टीओ; अंतिः सवि फली मन आस रे... पे.वि. गा.२५. पे ६ माया सज्झाय मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ ) आदि माया कारमी रे माया अंतिः मुगति माया राखी रे, पे.वि. गा. ७. पे.-७. औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपासागर, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ), आदिः प्रवचननी रचना घणी रे; अंतिः कृपासागर गुण गाया रे., पे.वि. गा. ८. पे. ८. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदिः विर कहे गौतम सुणो; अंतिः देखीइ भाषा वयण रसाल., पे. वि. गा. २१. पे. ९. जम्बूस्वामी सज्झाय मु. जीवकुशल, मागु, पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदि परमपुरुष परमेसरु: अंति: गावे दोलत , For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पावे हो., पे.वि. गा. १७. पे.-१०. ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ ), आदि: चिहुं दीसथी च्यारे; अंतिः गाया पाटण पर सिद्ध., पे.वि. गा. ५. पे. ११. झाझरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु. पच, वि. १७५६ (पृ. ८अ - १०आ), आदि सरसति चरणे शीस नमावी अंतिः सहु वृन्द रे, पे. वि. ढाल-४, गा. ४३. पे. १२. नवपद स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १०आ - ११अ ), आदि: गोतम पुच्छीत श्रीजिन; अंतिः भक्ति करो भगवान की., पे.वि. गा. ७. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १३. विनयअध्ययन सज्झाय वा. उदय मागु, पद्य, (प्र. ११अ - 993), आदि: पवयण चिचि चीतधरी जी अंति विनय सयल सुखकन्द, पे.वि. गा. ८. पे. १४. धत्राअणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मागु, पद्य, (पृ. ११आ-१२अ) आदि जिनवचने वयरागी हो; अति होये जय जयकार रे., पे.वि. गा.११. पे. १५. धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु, पद्य, (पृ. १२अ - १३अ), आदि धन धन धन्ना सालिभद्र अंति विजय कहे रमणि देह रे.. पे. वि. गा.१३. " पे. १६. गजसुकुमाल राज्झाय, मु. दानविजय, मागु पद्य (पृ. १३अ - १४आ), आदि: श्रीनेमिसर जिनवर अंतिः दाननें एहवा मुनिवरू, पे.वि. गा. १७. पे. १७. चन्दनवाला सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मागु पद्य (पृ. १४-१५आ), आदिः बालकुंआरी चन्दनबाला; अंति कुंवर कहे करजोडि रे, पे.वि. गा. १३. " पे.-१८. शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. १५-१६आ), आदिः प्रथम गोवाल तणे भवे; अंतिः सहजसुन्दरनी वाण., पे.वि. गा. १७. ३९ पे. १९. उंडणऋषि राज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १६आ- १७अ ), आदि ढण्डणऋषिने वन्दणा अंतिः जिनहर्ष० सुजाण रे, पे. वि. गा.९. पे.-२०. औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, (पृ. १७अ - १७आ), आदि: काया पुर पाटण मोकलौ; अंतिः सहजसुन्दर उपदेश रे.. पे.वि. गा.६. , पे. २१. महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मागु., पद्य, (पृ. १७आ - १८आ), आदिः एक वरसीजी ऋषभ करी; अंतिः जिनवर सकलमुनि आधारए., पे.वि. गा.१२. पे. २२. औपदेशिक पद, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १९अ - २१अ ), आदि: अनुभवियाना भविया रे; अंतिः मोक्ष मोझार रे... पे.-२३. आषाढाभूति सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २१अ - २४अ), आदिः श्रुतदेवि हीये धरी; अंतिः भावरतन सुजगीसो रे., पे.वि. ढाल - ५. - ९७०२. लीलावती रास, संपूर्ण वि. १९३४ श्रेष्ठ, पृ. १६. जैदेना. ले. स्थल. पालाणपुर, ले. ॠ रूपचन्द पठ. मु. मोतीचन्द, प्र. वि. ढाल - २१, ( २६१३.५, १४४४३-४४). लीलावती सुमतिविलास रास वा उदयरत्न, मागु पद्य वि. १७६७ आदि परम पुरुष प्रभु पास अंतिः सुख सम्पति सूरसालजी. ९७०३. अवन्तिसुकमाल स्वाध्याय, नेमजिन वारमास व सामान्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३. जैदेना., ले. स्थल, गांधली, ले. गणि ज्योतिविजय (२३.५४१३, ३०x१५-१८) For Private And Personal Use Only पे.-१. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, (पृ. १अ - ५आ), आदि: मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः सुख पावी रे., पे.वि. ढाल - १३, गा. १०७. पे.-२. नेमराजिमती बारमासो, वा. देवविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ ), आदि: ब्रह्माणी वर हूं; अंतिः नेम जीणेसरने Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची केह्यो., पे.वि. गा.१६. पे.-३. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदि: माहरो वांक किस्यो रे; अंतिः ज्ञानविमल० राजधारो., पे.वि. गा.९. ९७०४. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९१६, मध्यम, पृ. १५९, जैदेना., ले.स्थल. पालीनगर, ले.- पं. सूरतसुन्दर(कवलीगच्छ), (२५.५४१२, १२-१५४३१-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढम; अंतिः#. कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु.,राज., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः एहवो एहवो कहता हूआ. ९७०६. महीपाल चौपाई, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. १२०, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४/ ढाल-१२३; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५५००, प्र.ले.श्लो. (६१०) जलं रखे तीलं रखे, (२४४१२, १९-२०४३६-४४). महीपाल चौपाई, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, आदिः श्रीनाभेय युगादिजिन; अंतिः श्रीसङ्घरा वधामणी. ९७०७. चौढालीयो, पञ्चढालीयो, सतढालीयो व आदि स्तवन, सज्झायादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ६८ १(६७)=६७, पे. ११४, जैदेना., पू.वि. बीच का एक व अन्त के पत्र नही है।, (२५.५४११, १९-२०४४६-५५). पे.-१. सुभद्रासती पञ्चढालीयो, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७०, (पृ. १आ-३आ, संपूर्ण), आदिः सिवदायक लायक सदा; अंतिः अखण्ड चन्द कला जिसी., पे.वि. ढाल-५. पे.२. नन्दराजवेरोचनप्रधान कथा, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७९, (पृ. ३आ-५आ, संपूर्ण), आदिः जिन वीर जिनेश्वरू; अंति: जयपुर जयसङ्घराज., पे.वि. ढाल-७. पे.-३. थावच्चासुत चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८५, (पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण), आदिः सोरठ देश सोहामणो; अंतिः प्रवचन वचन प्रमाण था., पे.वि. ढाल-४. पे.-४. पुष्पवती सातढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः अविनासी अविकार जिन; अंतिः ___ ढाल सात सुखदाय रे., पे.वि. ढाल-७. पे.५. निर्मोही ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७४, (पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण), आदिः निरमोही गुण वरणQ; __अंतिः पञ्च ढाल प्रसिद्ध रे., पे.वि. ढाल-५. पे.६. दशार्णभद्रराजा चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः ऋषभ जिनेसर पाय नमुं; अंतिः ते पामे सुखसार., पे.वि. ढाल-४. पे.-७. खन्धकमुनि चौढालिया, ऋ. जैमल, राज., पद्य, वि. १८११, (पृ. १२अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द सासण; अंतिः मिच्छामिदुक्कडम., पे.वि. ढाल-४. पे..८. महावीरजिन चौढालिया, ऋ. रायचन्द, राज., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १३आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धार्थकुलमई जी; अंतिः दीवालि रे दिनव्ये., पे.वि. ढाल-४. पे.९. पे. नाम. होलिका कथा प्रबन्ध, पृ. १५अ-१६अ, संपूर्ण होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, आदिः प्रथम पुरुष राजा; अंतिः विनयचंदजी कहे करजोडी., पे.वि. ढाल-४. पे.१०. नन्दिषेणमुनि चौढालिया, मु. उदयवल्लभ, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१७अ, संपूर्ण), आदिः जय जिन श्रीवर्द्धमान; अंतिः वलभ कीधो० सरस वजिसो., पे.वि. ढाल-४, गा.३२. पे.-११. रोहिणी चौढालिया, ऋ. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः शाशन नायक सुखकरण; अंतिः विनयचंद विधिसु भणे., पे.वि. ढाल-४. पे.-१२. पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १८अ-१९अ, संपूर्ण), आदिः धर्मकथा हिरदे धरो; अंतिः विनय नमे नित पाय., पे.वि. ढाल-२, गा.३०. पे:१३. देवानन्दा चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः सकल जीव सुखदायको; For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ अंतिः बीकानेर चोमास., पे.वि. ढाल-४. पे.-१४. गजसुकमाल चरित्र, मागु., पद्य, (पृ. १९आ-२३आ, संपूर्ण), आदिः रथनेमि नामें हुवा; अंतिः आंणी हिरदय __ विवेक., पे.वि. ढाल-१४. पे.-१५. चन्दनबाला चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८२५, (पृ. २३आ-२५आ, संपूर्ण), आदिः अविन्यासी अविकार; अंतिः सहर सखरो साम्भली., पे.वि. ढाल-४. पे.-१६. मदनरेखा रास, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७०, (पृ. २५आ-२८अ, संपूर्ण), आदिः आदि धरम धोरी प्रथम; अंतिः प्रसादे सुणो भवियण., पे.वि. ढाल-६. पे.-१७. मानतुङ्गमानवती चौपाई, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७०, (पृ. २८अ-३१अ, संपूर्ण), आदिः जिनशान्ति जिनेश्वरू; अंतिः सित्तरे जयनगरे ए कहि., पे.वि. ढाल-७. पे.१८. रोहिणी कथा, ऋ. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३१अ-३३अ, संपूर्ण), आदिः जिनवर श्रीसन्ते सरु; अंतिः मिथ्यादुकृत तेम ए., पे.वि. ढाल-६. पे.१९. बुढ़ापा रास, श्रा. मोतीचन्द, राज., पद्य, वि. १८३६, (पृ. ३३अ-३५आ, संपूर्ण), आदिः दया ज माता वीन; अंतिः कलजुग केरी नीसाणी., पे.वि. ढाल-२२. पे.२०. गुणमाला रास, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८५, (पृ. ३५आ-४०अ, संपूर्ण), आदिः सरस्वती माता आदे; अंतिः सतीगुण सुख भासीये., पे.वि. ढाल-८; प्र.पु.-गा.२०१. पे.२१. पञ्च ढालीया, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४०अ-४१अ, संपूर्ण), आदिः लाल तुम्ह बेसो खोरे; अंति: मुंह रह्यो बिलखाई., पे.वि. ढाल-५. पे:२२. महावीरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३७, (पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण), आदिः सिद्धारथ कुल दीपक; अंतिः प्रभुजी पारे मन., पे.वि. गा.१२. पे.:२३. महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मागु., पद्य, (पृ. ४१आ-४१आ, संपूर्ण), आदिः सिद्धारथ कुळ शणगार..; अंतिः __मुनि भाव प्रधान., पे.वि. गा.५.. पे.२४.१६ सती सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४१आ-४१आ, संपूर्ण), आदिः शीतल जिणवर करी; अंति: नाम समरो निसदीस., पे.वि. गा.५. पे.-२५. १६ सती सज्झाय, मु. टीकम, मागु., पद्य, वि. १७७०, (पृ. ४१आ-४१आ, संपूर्ण), आदिः श्रीऋषभ तणी धुया; अंतिः ते पामे भवपार., पे.वि. गा.१६. पे:२६. भवदेवनागीला सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., पद्य, वि. १८७२, (पृ. ४१आ-४२अ, संपूर्ण), आदिः भवदेव जागी __ मोहनी तज; अंतिः हो निज सीस नमाय., पे.वि. गा.११. पे.२७. साधुगुण सज्झाय, मु. चन्द्रभाण, मागु., पद्य, वि. १८६३, (पृ. ४२अ-४२आ, संपूर्ण), आदिः समकितधारी सुभमती जी; अंतिः समरणे थासी सिद्ध., पे.वि. गा.१७. पे:२८. माजीरी सज्झाय, ऋ. विनयचन्द्र, राज., पद्य, (पृ. ४२आ-४२आ, संपूर्ण), आदिः आतो नाम धरावे माजीरे; अंतिः ___ भवसागरसुं तरसी., पे.वि. गा.१९. पे:२९. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४३अ-४३अ, संपूर्ण), आदिः निज गुणनायो नेहसुं; अंतिः सर्व जीवोने ___ सुखदाय., पे.वि. गा.१४. पे.-३०. औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ४३अ-४३आ, संपूर्ण), आदिः बैठे साधु साधवी पास; अंतिः शङ्का नही छे काय के., पे.वि. गा.२२. पे.-३१. औपदेशिक सज्झाय-निन्दक, मु. रायचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४३आ-४४अ, संपूर्ण), आदिः निखरो माणस नीन्दक; अंतिः रायचन्दकहे० लग जावेए., पे.वि. गा.२८. पे.-३२. नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४४अ-४४अ, संपूर्ण), आदिः लग रही रे नेम दरसन; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची करो भवपार० वीनती गाई., पे.वि. गा.४. पे.-३३. औपदेशिक लावणी, ऋ. रामकिसन, प्राहिं., पद्य, वि. १८६८, (पृ. ४४अ-४४आ, संपूर्ण), आदिः चेत चतुर नर कहेत; अंतिः ए उपदेस सुणाणां है., पे.वि. गा.९. पे.-३४. औपदेशिक लावणी, मागु., पद्य, (पृ. ४४आ-४४आ, संपूर्ण), आदिः एक एक रे छ; अंति: एक धका नरक मे खाय रे., पे.वि. गा.९. पे:३५. जम्बूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८१७, (पृ. ४४आ-४५अ, संपूर्ण), आदि: मगध देश राजगृही नगरी; अंतिः सील तणी महिमा आणी., पे.वि. गा.१७. पे.-३६. स्वार्थपच्चीसी, मागु., पद्य, वि. १८६७, (पृ. ४५अ-४५आ, संपूर्ण), आदिः भरत बाहुबल दो-: अंतिः पटीयाला में गाई रे., पे.वि. गा.२५. पे.-३७. औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, राज., पद्य, (पृ. ४५आ-४६अ, संपूर्ण), आदिः यो भव रतन चिन्तामण; अंतिः भव जीव तरीया रे., पे.वि. गा.१३. पे.-३८. कमलावती सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., पद्य, (पृ. ४६अ-४६आ, संपूर्ण), आदिः महिला में बेठी राणी; अंतिः मिच्छामि दुकडम् मोय., पे.वि. गा.३३. पे.-३९. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण), आदि: देव दाणव तीर्थङ्कर; अंतिः नमो कर्म महाराजा रे., पे.वि. गा.१९. पे.-४०. चित्तब्रह्मदत्त संवाद, मागु., पद्य, (पृ. ४७अ-४७आ, संपूर्ण), आदिः प्रणमुं श्रीजिणवर; अंतिः भणे शिव पदवी पावे., पे.वि. गा.२३. पे.-४१. नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ४७-४८अ, संपूर्ण), आदिः चढी सांवणें सामि; अंतिः प्रसीध पुहवी., पे.वि. गा.१३. पे:४२. द्वारिकाऋद्धिवर्णन सज्झाय, ऋ. जयमल , मागु., पद्य, (पृ. ४८अ-४९अ, संपूर्ण), आदिः बावीसमा श्रीनेमिजिण; अंतिः मिच्छामिदुक्कड मोय ए., पे.वि. गा.३२. पे:४३. कंसकृष्ण विवरण लावणी, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४९अ-५०अ, संपूर्ण), आदि: गाफल मत रहे रे मेरी; ___ अंतिः सुणतां स्नेही आणंद., पे.वि. गा.४३. पे.-४४. मेघकुमार सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५०अ-५१अ, संपूर्ण), आदिः दुर्लभ लाधो मनुष्य; अंतिः क्रोध लोभ अहंकार नही., पे.वि. गा.२०. पे:४५. धन्नाऋषिगुण सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५१अ-५१आ, संपूर्ण), आदिः जिनशासन स्वामी अन्तर; अंतिः विनयचन्द गुण गाया., पे.वि. गा.२०. पे.-४६. मेघकुमार सज्झाय, कवि कुसल, मागु., पद्य, (पृ. ५१आ-५२अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणेसर आवी; अंतिः सोडत नग मण्डार होवा., पे.वि. गा.१०. पे.४७. विजयकुमारविजयाकुंवरी सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८०, (पृ. ५२१-५२अ, संपूर्ण), आदिः विजयकुमर व्रतधारी; अंति: नमये साञ्ज सवारी., पे.वि. गा.९. पे.-४८. श्रावक इकवीसी, मु. रतनचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५२अ-५२आ, संपूर्ण), आदिः श्रावक नाम धरायनें; अंतिः कहे ___सुणो नरनारो., पे.वि. गा.२१. पे.-४९. औपदेशिक सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ५२आ-५२आ, संपूर्ण), आदिः आउखु तुटा नो सान्धो; अंतिः __माहरो निसतार रे., पे.वि. गा.७. पे.-५०. स्थनेमिराजिमती सज्झाय, मु. गुलाबकीर्ति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५२आ-५३अ, संपूर्ण), आदिः गिरनारी की पहारी पर; अंति: गुलाबकिर्ति० बिसरी., पे.वि. गा.१३. पे.-५१. महावीरजिनविनती स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, माग., पद्य, (प. ५३अ-५३आ, संपूर्ण), आदिः वीर सुणो For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ मोरी वीनती; अंति: थुण्यो त्रिभुवन तिलो., पे.वि. गा.१९. पे.-५२. सामायिक सज्झाय, ऋ. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५३आ-५३आ, संपूर्ण), आदिः सामायक पोझा करे; अंतिः जीवरो हो सीखे वोपार., पे.वि. गा.२०. पे-५३. पौषधव्रत सज्झाय, ऋ. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५३आ-५४अ, संपूर्ण), आदिः व्रत इग्यारमो आदरो; अंतिः लहे जे पाले निज आण्ण., पे.वि. गा.९. पे.-५४. धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, राज., पद्य, वि. १८६५, (पृ. ५४अ-५४अ, संपूर्ण), आदिः चम्पानगर अनोपम सुन्द; अंतिः नाम थकी सिव वासो हो., पे.वि. गा.१४. पे.-५५. बांसुरी पद, मोहन, मागु., पद्य, (पृ. ५४अ-५४आ, संपूर्ण), आदिः सुण वांसडली वैराग; अंतिः मोहन दया धारी ____ मनमें., पे.वि. गा.६. पे.-५६. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५४आ-५४आ, संपूर्ण), आदिः करमदल मलकुं क्षय; अंतिः मन मे मत कोई शंका., पे.वि. गा.४. पे.-५७. नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५४आ-५४आ, संपूर्ण), आदिः मति जावो गिरनार नेम; अंतिः नित उठी दर्शणकुं रे., पे.वि. गा.४. पे.५८. पे. नाम. जिनदर्शन पद, पृ. ५५अ-५५अ, संपूर्ण औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, आदिः चली चेतन अब उठकर; अंति: एक जिन दरसण चहीये रे., पे.वि. गा.४. पे.-५९. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५५अ-५५अ, संपूर्ण), आदिः तुम तजीय कर राजुल; अंतिः जिनदास सुनो जिनवर रे., पे.वि. गा.४. पे..६०. औपदेशिक सज्झाय, राज., पद्य, (पृ. ५५अ-५५अ, संपूर्ण), आदिः धर्म पावे तो कोई; अंतिः कोद्रण होवे ____ लारेजी., पे.वि. गा.६. पे:६१. आनन्दश्रावक गौतमस्वामी चर्चा स्तवन, ऋ. चौथमल, मागु., पद्य, वि. १८२४, (पृ. ५५अ-५५आ, संपूर्ण), आदि: हाथ जोडी आनन्द कहें; अंतिः ऋषि चोथमल कहै उलासही., पे.वि. गा.१३. पे.६२. नेमराजिमती पद, चन्द्रप्रताप, मागु., पद्य, (पृ. ५५आ-५५आ, संपूर्ण), आदिः सांवराजी सुं कहीयो; अंतिः नाथ ___मेरो तुमही कयोरी., पे.वि. गा.५. पे.-६३. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५५-५६अ, संपूर्ण), आदिः बल जावो रे मुसाफर; अंतिः जिणदास चरण पे ठेरी., पे.वि. गा.५. पे.-६४. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५६अ-५६अ, संपूर्ण), आदिः मन सुणरे थारी सफल; अंतिः खान पार नही पावै., पे.वि. गा.५. पे.-६५. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५६अ-५६आ, संपूर्ण), आदिः सुक्रत की बात तेरे; अंतिः जोर तेरो नही रे., पे.वि. गा.५. पे.-६६. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५६आ-५६आ, संपूर्ण), आदिः तु मत जो जगत के; अंतिः उपदेस सुनो मत काना., पे.वि. गा.४. पे.-६७. औपदेशिक होरी, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५६आ-५७अ, संपूर्ण), आदिः जानत है जिनराज सकल; अंतिः सबकटे पाप की पोरी., पे.वि. गा.५. पे.-६८. कृष्णव्रजनारी पद, सूरदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५७अ-५७अ, संपूर्ण), आदिः बंसरी दीजे हो ब्रज; अंति: ग्वालन जीतेया दुराय.,पे.वि. गा.८. पे.-६९. मरुदेवीमाता सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., पद्य, वि. १८३७, (पृ. ५७अ-५७आ, संपूर्ण), आदिः नगर वनीता भली विराजे अंतिः पामे लील विलासोजी., पे.वि. गा.१३. For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-७०. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ५७आ-५७आ, संपूर्ण), आदिः प्रात समय परमाद; अंतिः चरणां सासन माय रे., पे.वि. गा.९. पे.-७१.२४ जिन स्तवन, मु. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १८८३, (पृ. ५७आ-५७आ, संपूर्ण), आदिः प्रभातसमय समरना काम; अंतिः दोलत सिरदार., पे.वि. गा.८. पे.-७२. कृष्ण सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५८अ-५८आ, संपूर्ण), आदिः बन्धव बेहुं निसर्या; अंतिः पुन्य तणी छे लार रे., पे.वि. गा.२८. पे.-७३. तपपद सज्झाय, मु. रायचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५८आ-५८आ, संपूर्ण), आदिः तप वडो रे संसार में; अंतिः जोधानै चोमासो रे., पे.वि. गा.१४. पे.७४. विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८६१, (पृ. ५८आ-५९आ, संपूर्ण), आदिः वीतराग जिन देव नमुं; अंतिः रामपुरे गुणगाया., पे.वि. गा.१६. पे.-७५. सगपण व्यवहार पच्चीसी, ऋ. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १८६३, (पृ. ५९आ-६०आ, संपूर्ण), आदि: श्रीअरिहन्त सिद्ध; अंतिः सहर भांणपुर कै मांहि., पे.वि. गा.२५. पे.-७६. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. अगरचन्द, मागु., पद्य, वि. १८८१, (पृ. ६०आ-६१अ, संपूर्ण), आदिः त्रिभवन साहिब अरज; अंतिः वरणे तारोगरी वनवाज.,पे.वि. गा.२१. पे.-७७. औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६१अ-६१अ, संपूर्ण), आदिः खबर नही आ जगमे पल; अंतिः विनति अखमल की., पे.वि. गा.९. पे.-७८. शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमर, मागु., पद्य, वि. ??७१, (पृ. ६१अ-६१आ, संपूर्ण), आदिः सदगुरु पाय नमी ___ कहूं; अंति: चौमासै गुण गाया रे., पे.वि. गा.१४. पे.-७९. मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मागु., पद्य, (पृ. ६१आ-६२अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द समोसर्या; अंतिः सामी सञ्जम सुख अपार., पे.वि. गा.२२. पे..८०. नेमराजिमती पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२अ, संपूर्ण), आदि: नेम वतावन व्याहन आए; अंतिः सूरत मुरत भीनी., पे.वि. गा.७. पे.-८१. औपदेशिक पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२अ, संपूर्ण), आदिः नव घाटी लंघ नरभव; अंतिः उचरत वाणी एही., पे.वि. गा.६. पे.-८२. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२अ, संपूर्ण), आदिः कामी नर कूकर सम कहीय; अंति: लीधो व्रत निर वहीये., पे.वि. गा.७. पे.-८३. औपदेशिक पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२आ, संपूर्ण), आदिः करले भलाई तुं जगमे; अंतिः सतगुरुने सीख सुणाई., पे.वि. गा.९. पे.-८४. नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मागु., पद्य, (पृ. ६२आ-६२आ, संपूर्ण), आदिः बावीस सुभटनेजी पवारे; अंतिः काड्यो चीरचीर चरररर., पे.वि. गा.५. पे:८५. सीतासती पद, मु. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२आ-६२आ, संपूर्ण), आदि: राम अयोध्या राज; अंतिः टरें नही दोनुं टारी., पे.वि. गा.५. पे.-८६. औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द, राज., पद्य, (पृ. ६२आ-६२आ, संपूर्ण), आदिः प्रभुजी रो नाम; अंतिः विनयचन्द वरदाई., पे.वि. गा.९. पे.-८७. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२आ-६३अ, संपूर्ण), आदिः मे हुं पाप अधम की; अंतिः कुलकुं ईशन को ईशान., पे.वि. गा.५. पे..८८. सीतासती सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ६३अ-६३अ, संपूर्ण), आदिः वेगवतीथी बाम्भणी; अंतिः जयपुर नगर मझार., पे.वि. गा.११. For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४५ पे..८९. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६३अ-६३अ, संपूर्ण), आदिः पीहर सासर वासा रघुवर; अंति: मुज सीने वनवासा., पे.वि. गा.८. पे..९०. औपदेशिक पद, मीराबाई, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६३अ-६३आ, संपूर्ण), आदिः सुवा सुवा चोला में; अंतिः गावे मीरा हरदासी., पे.वि. गा.५. पे.९१. कृष्ण लावणी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६३आ-६३आ, संपूर्ण), आदिः चाल गत गयन्द चले; अंतिः धनचरनन की बलिहारी., पे.वि. गा.५. पे.९२. कृष्ण पद, मागु., पद्य, (पृ. ६३आ-६३आ, संपूर्ण), आदिः में मोहन प्रीत लगाई; अंति: मे तुम प्रभु आई., पे.वि. गा.६. पे.९३. कृष्ण पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६३आ-६४अ, संपूर्ण), आदिः वाई जसोदाजी इवडो; अंतिः भाग हमारो व्रज वसीयो., पे.वि. गा.४. पे:९४. कृष्ण पद, मीराबाई, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४अ-६४अ, संपूर्ण), आदिः वावरी वन आई मईया; अंतिः नागर हस हस लेवत तारी., पे.वि. गा.४. पे.९५. कृष्ण पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४अ-६४अ, संपूर्ण), आदिः वावरी बन आई तुझे; अंतिः मुज हरिहोरी खिलाई., पे.वि. गा.३. पे..९६. कृष्ण पद, मीराबाई, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४अ-६४अ, संपूर्ण), आदिः सांवरे विना नीन्द न; अंतिः गिरधर० आन्नज ___ गावे., पे.वि. गा.४. पे.-९७. कृष्ण पद, मीराबाई, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४अ-६४अ, संपूर्ण), आदिः कुवज्या ने जादु; अंतिः हरिचरना चित लगा रे., पे.वि. गा.५. पे.-९८. औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४अ-६४आ, संपूर्ण), आदिः कोई एक दाता दान करे; अंतिः रहे नही ठेहराय के., पे.वि. गा.९. पे.-९९. औपदेशिक पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४आ-६४आ, संपूर्ण), आदिः पिउजी उठ चले परदेस; अंतिः विनयचन्द समतारस पीजे., पे.वि. गा.१२. पे.-१००. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४आ-६४आ, संपूर्ण), आदिः परणी जिन दिनसुं मुझे; अंतिः कहणी अपणी पूर्व कमाई., पे.वि. गा.६. पे.-१०१. औपदेशिक पद, मु. विनय , प्राहिं., पद्य, (पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण), आदिः चवदे नेम छकाय मरजादा; अंतिः जिन धर्म दातार., पे.वि. गा.५. पे.-१०२. नेमराजिमती पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६५अ-६५अ, संपूर्ण), आदिः मे तो गिरनार गढ देखण; अंति: उनही का गुण गाउ गीरी., पे.वि. गा.३. पे.-१०३. औपदेशिक पद-परनारी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६५अ-६५अ, संपूर्ण), आदिः चतुर नर नारी मत निरख; अंति: वरो ढलक जाय ढलको., पे.वि. गा.७. पे.-१०४. औपदेशिक पद, मु. धर्मपाल, मागु., पद्य, (पृ. ६५अ-६५अ, संपूर्ण), आदिः काहें जीवडरे रे दुख; अंतिः वैसव विपत हरे रे., पे.वि. गा.५. पे.-१०५. औपदेशिक पद, मु. नवललाभ, मागु., पद्य, (पृ. ६५अ-६५अ, संपूर्ण), आदिः भववन धरणी कै विषै; अंति: ए लीजीये भजीये भगवान., पे.वि. गा.५. पे-१०६. औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६५अ-६५आ, संपूर्ण), आदिः तुम भजो निरञ्जन नाम; अंतिः भयो जिनदास लावणी गाई.,पे.वि. गा.४. पे.-१०७. रामलक्ष्मण लावणी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६५आ-६५आ, संपूर्ण), आदिः जनक सुता कहै जायनें; अंतिः तणो छे भारी पेट., पे.वि. गा.११. For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१०८. औपदेशिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६५आ-६५आ, संपूर्ण), आदिः राघव बन्धवने विरह; अंतिः सेवक ऊभा हजूर., पे.वि. गा.७. पे.१०९.२४ जिन नाम व जीवनाम-अनागत, मु. लब्धिउदय, मागु., पद्य, (पृ. ६६अ-६६अ, संपूर्ण), आदिः पहिला श्रीश्रेणिक; अंतिः सुख सम्पति भरपुर., पे.वि. गा.७. पे.-११०. बलभद्रमुनि सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., पद्य, (पृ. ६६अ-६६आ, संपूर्ण), आदिः मासखमणने पारणे तपसी; अंतिः कहे मेडते० भाव रे., पे.वि. गा.१४. पे.१११. नेमराजिमती सज्झाय, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६६आ-६६आ-, अपूर्ण), आदिः किम आया किम फिर; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१९ तक है. पे.-११२. दलाली सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. -६८अ-६८अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः आगे थारो इकतार., पे.वि. गा.३१. प्रथम पत्र नहीं है. पे:११३. धन्ना सज्झाय, मु. रत्न, मागु., पद्य, (पृ. ६८आ-६८आ, संपूर्ण), आदिः नगरकाकन्दी हो मुनीसर; अंतिः वस्यो रतन कहे करजोड., पे.वि. गा.१४. पे.११४. दीपावलीपर्व रास, मु. जेमलजी मुनि, मागु., पद्य, (पृ. ६८आ-६८आ-, अपूर्ण), आदिः भजन करो श्रीभगवन्त; अंतिः -, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९७०८. गौतम कुलक व प्रस्ताविकश्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. महेसर, ले.- ऋ. रूपचन्द, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४१४, १४४२५-२६). पे.१. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४अ, संपूर्ण), आदिः नेत्रानंदकरी भवोदधि; अंतिः सद्धा संजममिय वीरियं., पे.वि. श्लो.४१. पे..२. गौतम कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण), आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति., पे.वि. गा.२०. पे.-३. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५७अ, अपूर्ण), आदिः योगी योगवसा तपी तपवस; अंति:-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९७०९. वसुधारा कल्प, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२४.५४१३.५, १३४३२). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. ९७१०." चन्दराजा चरित्र, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२५+२(२४,९०)=१२७, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. चतुर्थ खंड ढाल-३२ की गा.१८ तक है., (२४४१२.५, १४४३३). चन्द्रराजा रास , मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः९७११." व्याख्याण सङ्ग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१३, १६४३३). पे:१. व्याख्यान सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-१७अ), आदिः देवपूजा दया दानं; अंतिः मङ्गलीक माला सम्पजे. पे.२. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदि: #; अंति: #. ९७१२. आचाराङ्गसूत्र सह बालावबोध प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. १५०-१(१४)+१(१५)=१५०, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर,प्र.वि. त्रिपाठ, (२६४१३, १३४३९). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति:९७१३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. कुसलगढ, ले.- ऋ. लक्ष्मीचन्द (गुरु ऋ. रुपचन्दजी, लुङ्कागच्छ), पठ.- मु. सुखलाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ९-व्याख्यान; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १२५०, (२६.५४१३, १४४३८३९). For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ९७१४. ज्ञानपूजा विधि व दर्पणपूजा स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६४१३, १४४३०). पे.-१. ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, (पृ. १आ-६आ), आदिः सकल कुशल कमलावली; ____ अंति: रुपविजय गुणगाया रे., पे.वि. दशा- मध्यम- " झ". पे..२. दर्पणपूजा स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः प्रभु दरीशण करवा; अंतिः दशा तब सर्व कटे रे., पे.वि. गा.४. ९७१५. पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. ३६३-१(२६६)=३६२, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले.- बालमुकन्द, प्र.वि. मूल-३६ पद., सूत्र-२१७६, ग्रं. ७०००. ग्रं.ग्रं. २५०००, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (२६.५४१३, ९४३६). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सुख पाम्या छइ. ९७१६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. जिंद, ले.- आत्माराम, पठ.- मु. गङ्गाराम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२७४१३, १९x४१). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-सौभाग्यमञ्जरी टीका, सं., गद्य, आदिः किलेति सत्ये एषः; अंतिः मलनिचयाः पापरहिताः. ९७१७.” अक्षयनिधितप स्तवन, विधि आदि, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. राजनगृह, ले.- शिवदान ब्राह्मण, प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४१३, १३४३८). पे.-१. अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७१, (पृ. १आ-४अ), आदिः श्रीशद्धेश्वर शिर; अंतिः नाचवा घर बारणे., पे.वि. ढाल-५, गा.५१. पे..२. अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः सुखकर सङ्केश्वर नमी; अंतिः ___होज्यो ज्ञानप्रकाश., पे.वि. गा.२६. पे..३. पाश्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितप गर्भित, पं. पदमविजय, मागु., पद्य, वि. १८४३, (पृ. ५अ-५आ), आदिः तपवर कीजे रे; अंतिः पद्मविजय फल लीधो., पे.वि. गा.१२. पे.-४. अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-७अ), आदिः श्रावण वदी चौथने; अंतिः चित्रामण करवा जोईइ. ९७१८. अध्यातमबहोत्तरी, स्तवन, गीत व अष्टाङ्गयोग विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. १६, पे. ५, जैदेना., पठ.- मु. ___ केसरचन्द, (२८x१३, १५४२७). पे..१. आनन्दघन गीतबहोत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. १आ-१५आ), आदिः क्या सोवेउठि जाग; अंतिः मांनो यह जनरापरोधको., पे.वि. अध्याय-८० पद. पे.२. पे. नाम. अध्यात्म पद, पृ. १५आ-१५आ ____ आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, प्राहिं., पद्य, आदि: जबलगे विषय घटा न; अंतिः कहे० विष वेलि कटि., पे.वि. गा.५. पे..३. नमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१६अ), आदिः विप्रानन्दन नन्दन; अंतिः सम्पद आपद अवगणी., पे.वि. गा.५. पे.४. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः मिल जाज्यो रे साहिब; अंतिः ध्याने० सूख चिनमे., पे.वि. गा.६. पे.५. अष्टाङ्गयोग विवरण, सं., गद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः योगी योगो ध्यान; अंतिः चलेन भूतेनरु समाधिः. ९७१९." उपदेशरत्नाकर सह वृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.स्थल. वीजापुर, ले.- ऋ. रूपचन्द्र, प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वृत्ति की पीठीका नहीं है., संशोधित, पू.वि. पूर्णता प्रथम अंश ९ तरंग तक है., (२७४१२.५, २२४५४). उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदिः जय सिरिवंछिअसुहए; अंति: उपदेशरत्नाकर- स्वोपज्ञवृत्ति, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः तत्रादौ स्वेष्टसिद्ध; अंति:९७२०." दशवैकालिकसूत्र सह शब्दार्थ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ९७, जैदेना., ले.स्थल. अहिपूर, प्र.वि. मूल १०अध्ययनरचूलिका., पदच्छेद सूचक लकीरें, त्रिपाठ, (२८x२३, ३-४४४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदिः स्तम्भनाधीशमानम्य; अंतिः पुनः सार्द्धचतुशतम्. ९७२१. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालनपुर, पठ.- श्रा. लवजी मोतीचन्द, प्र.वि. गा.६३, (२७४१३.५, १२४३१). गौतमस्वामी रास , उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः वृद्धि कल्याण करो. ९७२२." कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., त्रिपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७.५४१३.५, २२४६१). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः पार्श्वनाथप्रसादतः. ९७२३.” स्तवनचौवीसी व ऋषभदेव चैत्यवन्दन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १४, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२८x१३, ११४३६). पे:१. स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, (पृ. १आ-१४अ), आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे., पे.वि. दशा- श्रेष्ठ- " झ" २४ स्तवन. पे.२.आदिजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदि: जयति प्रथम भूपो; अंति:#., पे.वि. श्लो.५. ९७२४. पर्युषणपर्वअष्टाहिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२७७१३, १३४३३). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः प्रत्ये पामता हवा. ९७२५.” स्नात्रपूजा व लूण पाणी विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१३.५, १२४३०). पे.-१. स्नात्रपूजा सङ्ग्रह', मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १अ-७अ), आदिः (१) मुक्तालङ्कार विकार (२) पूर्वदिसइ तथा उत्तरइ; अंतिः च्यारो मङ्गलच्यार. पे.२. लूण पाणी विधि, प्रा., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः उवणेउ मङ्गलं वो जिणा; अंतिः कुलं चैव समूद्धरेत्. ९७२६." कर्मग्रन्थ १,२,३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३.५, ६-७X४४). पे..१.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर प्रते; अंतिः लिख्यो देवेन्द्रसूरि., पे.वि. मूल-गा.६०. पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ५अ-८अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः बन्ध ते स्यु कहीयइ; अंतिः छु नमस्कार करुं छु., पे.वि. मूल गा.३४. पे.३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. ८अ-१०आ For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः हेतु बन्धना कारण; अंति: पयडी थी साम्भलीने., पे.वि. मूल-गा.२५. ९७२७. काया सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.७२, (२८x१२.५, १०४३१). औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, आदिः उत्पति जोज्यो आपणी; अंतिः इम कहे श्रीसार. ९७२८. द्रव्यसङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०९, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ अधिकार, गा.५८., (२८.५४१२, २ ३४३०). द्रव्य सङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः जीवमजीवं दवं; अंतिः मुणिणा भणियं जं. द्रव्यसङ्ग्रह-टबार्थ, मु. हंसराज, मागु., गद्य, आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रदेवा; अंति: नीतोयं सहसि मासेव. ९७२९.” वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९५०, श्रेष्ठ, पृ. ११२, जैदेना., प्र.वि. १०उल्लास, (२८x१२, १४४४६). वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः राजकीर्तिगणिना. ९७३०.” पद्मावतीअष्टक वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६-३७(१ से ३७)=९, जैदेना., ले.- मु. भानुचन्द्र, प्र.वि. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दीया गया है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७.५४१२.५, १५४५०). पद्मावत्यष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, गणि पार्श्वदेव, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्यं जिनं देवं; अंतिः छन्दः सम्पूरय. ९७३१. विचार सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(७)=२५, जैदेना., (२५.५४१२, १५४४१). बोल सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व चेतना सहित; अंतिः सरीखा ता छे. ९७३२.” बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४१३, १४४३५). बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः दस प्रकारे सामाचारी; अंति:९७३३." चौभङ्गीरूपकार वचनिका, संपूर्ण, वि. १८९९, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. अणहलपुर पाटण, ले.- शिवराम पानाचन्द ठाकोर, पठ.- वस्ता, प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७४१३, १२४३८). चौभङ्गी रूपकार वचनिका सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः एक जीव द्रव्यता के अंतिः अशुद्ध रुप विचार. ९७३६. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मेडता, ले.- ऋ. इद्रचन्द,प्र.वि. २०स्तवन, (२५.५४१२, १८४३८). विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः सुजस महोदय वृन्दो रे. ९७३७." सिद्धान्तसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७X१२.५, २१४४३-४८). सिद्धान्तसार चर्चा-तेरापन्थमत निरसन, प्रा., गद्य, आदिः अणाणाए एगे सोवट्ठाणे; अंतिः सिद्धान्तसार चर्चा-टबार्थ, मु. दुलीचन्द रतनेश, मागु., गद्य, वि. १९०६, आदि:-; अंति:९७३८. तेवीसपदवी आदि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., (२६.५४१२, १८४४३). पे.-१.२३ पदवी विचार, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः तीर्थङ्कर चक्रवर्ति; अंतिः केवली साधु समदृष्टि. पे.२. तीनदृष्टि बोल, मागु., गद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः १० बोल एकंत समदृष्टि; अंतिः नर्क के प्रजाप्ते. पे.-३.पे. नाम. सीझणा द्वार, पृ. २आ-६आ सिद्ध के द्वार, मागु.,प्रा., गद्य, आदिः मोक्ष के दो भेद; अंतिः अनंतगुणहीणे कहिणे. ९७३९. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, जैदेना., (२६.५४१२, १३४३६-४०). For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः ज्ञानवरणीय दर्शना; अंतिः चूरि मोक्ष पामे. ९७४०. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१(१)=५१, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, १२४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:९७४१. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७६१, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थबंदर,प्र.वि. २४ स्तवन, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६.५४१२, १३४३५). स्तवनचौवीसी, उपा. लावण्यविजय, मागु., पद्य, आदिः आदि जिनेसर साहिबा; अंतिः लावण्य के मन लाय. ९७४२." उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४२, गा.८४८, ग्रं. १२६०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४१२, १३४५०). उत्तमकुमार चरित्र, मु. विनयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १७५२, आदिः ॐ अक्षर अतुलबल; अंतिः विनयचन्द्र कहे आम. ९७४४." स्थविरावली कथा सङ्ग्रह-कल्पसूत्रबालावबोधे, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, पे. ४, जैदेना., पू.वि. ४ कथा., दशा ___ वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४१२.५, २०x४६). पे.१. कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, (पृ. १अ-७अ), आदिः तिहां पूर्वइ स्थविरा; अंतिः विषे पहून्ता. पे..२. दत्तब्राह्मण कथा, मागु., गद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदि: तुरमणी नगरी इन्द्र; अंतिः पाली देवलोक पोहूतो. पे-३. जम्बूस्वामी सम्बन्ध, मागु., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः राजगृह नगर ऋषभदत्त; अंतिः जथाख्यात चारित्र. पे.४. स्थूलिभद्र कथा, मागु., गद्य, (पृ. ७आ-९आ), आदिः अथ पाडलीपुर नाम; अंतिः विषे अनन्ता सुख लहे. ९७४५." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ३१५, जैदेना., ले.स्थल. त्तात्तोठी, राज्यकाल- राजा गुलाबसीङ्घ, ले.- मु. वखतसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५५००; टबार्थ-ग्रं. ८४१०; प्र.पु.टबार्थ-ग्रं. उभय-१३९१०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र.ले.श्लो. (२०१) कटी कूबड कर बेगडी, (२७४१२.५, ७४३६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालइ जे चउथइ; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. ९७४६." श्राद्धविधि प्रकरण की विधिकौमुदी वृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४६३, जैदेना.,प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२८.५४१२, ६x४२). श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणी; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदीटीका का टबार्थ# , मु. उत्तमविजय, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्त सिद्ध भगवान; अंतिः करनारी पुन्यवन्तोनइ. ९७४७." चन्द्रप्रभ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१७-१(३२६)+१(१०२)=४१७, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ५३२५., ___ संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचनाप्रशस्ति अपूर्ण है., (२८x१२, ६४३५). चन्द्रप्रभ चरित्र, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२६४, आदिः दृष्टोपि ह्रष्टजनलोच; अंतिः व्यतीतेषु नवस्वभूत्. चन्द्रप्रभ चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः दिठो पणहर्षवन्त लोक; अंतिः#. ९७४८. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४०-१(२३१)+१(२०३)=२४०, जैदेना., प्र.वि. मूल १९अध्ययन., (२७.५४१२.५, ७X४४). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. ९७४९." दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टबार्थ व स्थानङ्गसूत्र की टीका का टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ३७, पे. २, For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ जैदेना., ले.स्थल. कंटालीयापुर, प्र.वि. संशोधित, (२८x१२.५, ७४३९). पे.-१. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंध सह टबार्थ, पृ. १आ-३७अ दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० हवइ; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः उपदिसइ इति ब्रवीमि., पे.वि. मूल-अध्याय-१० दशा. पे..२. स्थानाङ्गसूत्र-अभयदेवीयाटीका का टिप्पण* , हिन्दी, गद्य, (पृ. ३७अ-३७आ), आदिः#; अंतिः#.... ९७५०.” गुणसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १८८०, मध्यम, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. द्रांगधर, ले.- पं. जनेन्द्ररत्न, पठ.- ऋ. मोहन, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-३६, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२८.५४१२, १२-१३४३२-३७). पुण्यपालगुणसुन्दरी रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६३, आदिः सकलसिद्धि दायक सदा; अंतिः रच्यो० धणकण मङ्गलमाल. ९७५१. चौवीसदण्डक २९ द्वार, पूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(९)=१२, जैदेना., ले.- मु. वल्लभविजय, (२६.५४१३, २०४४३). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेस्या स्थिति; अंतिः मोक्ष जाई १०८ जाई. ९७५२. कर्मप्रकृति सह टीका, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७१-२(५ से ६)=२६९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-७ अधिकार, गा.४७५., द्विपाठ, (२८.५४१३, १३४४५). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः एन्द्री समृद्धिर्यदु; अंतिः सुकृत तथाप्यतः. ९७५३." उपदेशसप्ततिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.७३. ग्रं.ग्रं ७९७५, पदच्छेद सूचक लकीरें, दशा वि. संश्लिष्ट-अधिक, विवर्ण-पानी से अक्षर मिट गए हैं, (३०x१२, १३४४८). उपदेशसप्ततिका, वा. क्षेमराज, प्रा., पद्य, वि. १५४७, आदिः तित्थङ्कराणं चरणारवि; अंतिः सुहं अणुत्तरं. उपदेशसप्ततिका-स्वोपज्ञ टीका, वा. क्षेमराज, सं., गद्य, वि. १५४७, आदिः विश्वाभीष्टविशिष्ट; अंतिः (१)तोः क्षेमेणेत्युक्तं (२)नव्या सप्ततिका. ९७५४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०८, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले.स्थल. सयंबलिया, ले.- मु. क्षमाकिर्ति(पार्श्वचन्द्रसूर), प्र.वि. १९अध्ययन, ग्रं. ५५६४, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२९.५४११.५, २१४६६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ९७५६. नवकार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.- मु. सुविधरत्न (गुरु गणि कनकरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-४१, गा.८८१; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १२०५, (२७.५४११, १६४३४). नमस्कार महामन्त्र चौपाई, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६२, आदिः अरिहन्त आदि देईनै; अंतिः नवकार तणा गुण गाया. ९७५७. पार्श्वजिनदसभव चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. कोटानगर, ले.- महेसजी, प्र.वि. ढाल-१०, (२७.५४१२, १७४३९). पार्श्वजिन १० भव चौपाई, कवि नन्दलाल, मागु., पद्य, वि. १८७६, आदिः प्रथम नमो अरहन्तजी; अंतिः तस धरि लीला पाय. ९७५८. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व श्लोक, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१५)=१७, पे. २, जैदेना., (२८x११, १३४४७). पे.-१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-१८आ, पूर्ण For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरै., पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. मूल-श्लो.४४. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. ९७५९." आवश्यकसूत्र की नियुक्ति, भाष्य व बृहद्धृत्ति, संपूर्ण, वि. १५१५, श्रेष्ठ, पृ. ४६८, जैदेना., ले.स्थल. अणहलपुरपत्तन, प्र.वि. ६ अध्ययन, सूत्र-१०५; नियुक्ति-गा.१६२३; भाष्य-गा.२५३., संशोधित, (२५.५४१०, १६-१७४४८). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, आदिः अवरविदेहे गामस्स; अंतिः अवाउ जम्हा विउ पमाणं. आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंतिः माध्यस्थमवाप्नुवन्तु. ९७६०. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०१, जैदेना., प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५, ग्रं. २२२०; टबार्थ-ग्रं. ५५००., (२६४१०.५, ४४४२). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्सावणीए णमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेह भणी नमस्कार थाओ. ९७६१. कल्पसूत्र सह टबार्थ व अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. १५७+१(१०५)=१५८, जैदेना., ले.स्थल. खैरवानगर, ले.- गणि खन्तिविजय (गुरु मु. देवेन्द्रविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., (२७४११, ७४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः चोसठि इन्द्रनेपूजनीक; अंतिः उपदिसै इम कहै. कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: चतुर्विंशतिजिनान्; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. ९७६२. पुन्यप्रकास स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०६, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. वडोदरा, ले.- श्रा. कपूरचन्द अनोपचन्द, प्र.वि. ढाल-८, (२६४१२, ११-१२४२५-२७). पुण्यप्रकाश स्तवन , उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंतिः नामे पुण्यप्रकाश ए. ९७६४. देवाधिदेवरचणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. गा.५६९. चित्रकाव्य युक्त., (२६४१२, १६x४९). देवाधिदेव रचना, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १८६०, आदिः सकल जगपति पर्व पद; अंतिः भवकोड अघातपते सुधरे. ९७६५. रघुवंशकाव्यटीका व नेमजिन स्तुति सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१२(१२ से २१,२८ से २९)+२(२७,३०)=३२, पे. २, जैदेना., (२७.५४१२, १२४३०). पे.१. रघुवंश-सञ्जीवनी टीका, कोलाचल मल्लिनाथसूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-४१आ, प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच के पत्र नहीं हैं. पे.२. पे. नाम. नेमिजिन स्तुति सह टीका, पृ. ४१आ-४१आ, संपूर्ण नेमिजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः इन्दिवरदलश्याममिन्दि; अंतिः वन्देहं यदुनन्दनं. नेमिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदिः नेमिनाथ जयति तमिति; अंतिः भावः प्रपेदे प्राप., पे.वि. मूल-श्लो.१. ९७६६. सिन्दूरप्रकरण भाषा, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- विहारीलाल, प्र.वि. गा.१०४, (२५.५४११.५, १७४४६). सिन्दूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९१, आदिः सोभिततपगजराज; अंतिः करनछत्र सित पाख. For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ९७६८. ज्योतिषसार सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा २९१ तक है., (२६४१२, ६-७४३०). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तने प्रणाम; अंति:९७६९. वीरस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४५, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, पठ.- मु. वृद्धिविजय, प्र.वि. ढाल २२, (२८x१२, ११४३७). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. ९७७०.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३-१८(१ से १८)=१०५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन-४ गाथा १८ से अध्ययन-२६ गाथा ६ तक है., (२७४११, ५-६४२८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:- अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:९७७१.” दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध-अध्ययन ५, प्रतिअपूर्ण, वि. १५३८, मध्यम, पृ. २१-१(१)=२०, जैदेना., ले.स्थल. मंडलगढ, पठ.- श्रा. साह गेगा, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, ११४३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति: दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:- अंति:९७७२. बोलनी चरचानुं विवरण, संपूर्ण, वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. राजनगरे, ले.- ऋ. राघव, (२७.५४११, १५४५६). ५८ बोल सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः (१)चारित्र सही जाणज्यो (२)करी मोक्ष पामीई. ९७७३." वीराङ्गद चौपाई, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. भटनेरदुर्गे, ले.- गणि संयममूर्ति (गुरु वा. गुणनन्दन गणि, खरतरगच्छ), पठ.- पं. मतिरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.७०४, (२६.५४११, १५४५२). वीराङ्गद चौपाई, वा. मालदेव, मागु., पद्य, वि. १६१२, आदिः संति जिनेसर पय नमी; अंतिः लहिस्यि सुख अनन्त. ९७७४. शालिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२९, (२७X१०.५, १२४३८). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. ९७७५. रूपसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२६३ तक है., (२६.५४११.५, १६x४५). रूपसेन चरित्र, मागु., पद्य, आदिः वृषभ शान्ति नेमिश्वर; अंति:९७७६. प्रियमेलक चौपाई, दानशीलतपभावना संवाद व द्रौपदी चौपाई, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-७(१ से ७)=३७, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. लावण्यविमल, (२५.५४११.५, १६x४६-५०). पे.१. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, (पृ. -८अ-८अ, अपूर्ण), आदि:-; ___ अंतिः पुण्य अधिक परमोद., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. अंतिमढाल की ७ गाथा है. गा.२३१. पे..२. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, (पृ. ८अ-११अ, संपूर्ण), आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे., पे.वि. ढाल-४, गा.१०१, ग्रं.१३५. पे..३. द्रौपदी चौपाई, वा. कनककीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६९३, (पृ. ११अ-४४आ, संपूर्ण), आदिः पुरिसादाणी पासजिण; अंतिः कनककीरति सुखकार., पे.वि. ढाल-३९. ९७७७. कथासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदेना., ले.- मु. कमलसागर, प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १५४४२). कथा सङ्ग्रह, पाठक राजवल्लभ, प्रा.,सं., पद्य, आदिः ईर्याप्रतिक्रम्य; अंतिः वाच्यमाना सुहृज्जनैः. For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९७७८. विदग्धमुखमण्डण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५८३, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. नागपूर, ले.- पं. हीरकिर्ति गणि(बृहत्खरतरगच्छ), पठ.- पं. राजाणन्द(बृहत्खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-४ परिच्छेद, श्लो.२७६., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (६१७) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, (२७.५४११.५, १०x२७). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकान्त मदनोत्तरम्. विदग्धमुखमण्डन काव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सौद्धोदनैौद्धस्य; अंतिः तु स्थाने यकारदानम्. ९७८०. साधुविधिप्रकाश, कार्योत्सर्गदोष व लघुप्रतिक्रमण गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १९-३(१ से ३)=१६, पे. ३, जैदेना., (२७४१२, १४-१५४३८). पे.-१. साधुविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, सं.,प्रा., गद्य, (पृ. ४अ-१८आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः तद्विधिवेदिभिः., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.२. कायोत्सर्ग १९ दोष , संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. १८आ-१९अ, संपूर्ण), आदिः संजइ कविठूत्यादि; अंतिः सर्गदोषाः ___ हेतुगर्भे. पे.-३. राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ, संपूर्ण), आदिः इरिया कुसुमिणुस्सग्ग; अंतिः वसुस्सग्गो दुसज्जाउ., पे.वि. मूल-गा.२. ९७८१. गमाभवाधिकार व बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४१२, १५-१६४३१). पे.१.पे. नाम. वेभववेभवनां ठाम ९४ तेहनी विगत, प्र. १अ-३अ गमाभवाधिकार, मागु., गद्य, आदिः २ ठाम नारकीना ते; अंतिः असं० उपजै ठिकाणा १९१. पे..२. पे. नाम. वन्धेलगा मुक्केलगा, पृ. ३अ-७आ ५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदि: सरीर पांच उपरि बन्धे; अंति: जाणवा पणिए थोडा छइ. ९७८३." बारभावना, संपूर्ण, वि. १८७९, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१२९, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१२, १४४३८). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. ९७८४. नवतत्त्वविचारादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पे. ७, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, पठ.- मु. गुलाब, ले.- मु. रूपविजय, (२६४१२, २१४४५). पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह विवेचन, पृ. १आ-३५अ नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं; अंतिः परि० भवे सिद्धि. नवतत्त्व प्रकरण-विवेचन, मागु., गद्य, आदिः जीव ज्ञानमय अजीव; अंतिः सर्वसिद्धि श्रेय हुइ., पे.वि. मूल-गा.३०. पे.२. सम्यक्त्व भेद विचार, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, (पृ. ३५अ-३५अ), आदिः अपशमिक सम्यक्तव; अंतिः विचार उच्चर्यु छे. पे.-३. असङ्ख्यात अनन्त विचार, मागु., गद्य, (पृ. ३५अ-३५अ), आदिः यथोक्त भेद स्पष्ट; अंतिः इम १८ भेद हुइ. पे.४. पे. नाम. श्लोक सह बालावबोध, पृ. ३५अ-३५आ जैन श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः दर्शनज्ञानचारित्रात्; अंतिः तथाप्यल्पतरा स्थिति. जैन श्लोक सङ्ग्रह-भावार्थ, मागु., गद्य, आदिः सम्यक्त्वग्यानचारित; अंतिः नर्क ही जाता भया., पे.वि. मूल श्लो.४. पे.५. प्रश्न सङ्ग्रह, मागु., गद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदिः सम्यकग्यान किसे कहते; अंतिः लोकबिन्दुसार पूर्व. पे.-६. दर्शनभक्ति दोहा, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदि: तीनलोक तिहूंकाल; अंतिः पावै मुक्तिनिदान., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे.-७. औपदेशिक पद, मागु., गद्य, (पृ. ३५आ-३५आ), आदि: समयनो सदुपयोग आदर्श; अंतिः उपर जय मेळवी शके 1A ९७८५. कुमारसम्भवकाव्यटीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-७. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दीया है., (२६४११.५, २२-२४x७०). कुमारसम्भव-टीका, सं., गद्य, आदिः इह प्रेक्षापूर्वकारि; अंतिः दत्तवाचं उक्तवाचम्. ९७८६." सिद्धान्तसार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. १९१-१८३(१ से १८३)=८, जैदेना., ले.स्थल. कुचेरा, ले. ऋ. रूपचन्द, प्र.वि. संशोधित, (२६४१२, २१४४४-४८). सिद्धान्तसार, ऋ. कनीरामजी, प्रा., पद्य, वि. १९०६, आदि:-; अंतिः जीवा आणाए आराहगा भवइ. सिद्धान्तसार-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः आराधकपद प्राप्त०हुवे. ९७८८. शीलवती रास, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना., ले.स्थल. खेटकपुर, ले.- मु. रूपरत्न (गुरु मु. लब्धिरत्न), पठ.- मु. जिनेन्द्ररत्न, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-६, (२६४१२, १३४३५). शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मागु., पद्य, वि. १७५०, आदिः ॐकार अक्षर अधिक; अंतिः वृद्धि पद थाजो हे. ९७८९." भाव प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., (२७४११.५, ४४३२). भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद; अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः आनन्दइ करि भरिय कहता; अंतिः मूलगा ग्रन्थ माहिथी. ९७९०.” एकवीसठाणा प्रकरण सह टबार्थ व जिनआन्तरा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, पे. २, जैदेना., पठ.- श्राविका हर्षा, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६.५४१०.५, ८४३९). पे.-१. पे. नाम. एकवीसठाणा प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-५आ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंति: असेस साहारणा __ भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः विमान नयरी जणणी माता; अंतिः साधारण एकठा भण्या., पे.वि. मूल-गा.६६. पे..२. जिन आन्तरा, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः ५० कोडि लाख सागर; अंतिः महावीर छे आन्तरूं. ९७९१. समयसारनाटक भाषा, पूर्ण, वि. १७२७, जीर्ण, पृ. ५८-१(४७)=५७, जैदेना., ले.स्थल. कोलारसनगर, ले.- पं. प्रीतिविजय, प्र.वि. गा.७२७, (२६.५४११, १५४३७). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. ९७९२. भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. वर्गद्दीनगर, ले.- मु. हेमविजय, प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१४५., प्र.ले.श्लो. (२०४) अर्हतो मंगलं संतु, (२६.५४११.५, ३-५४३३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनुतं; अंतिः मङ्गलं भूयात्. ९७९३." जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १४८४, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-४परिच्छेद; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २६३., पंचपाठ, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, १६४५६). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः एष सूर्यो भुवनं; अंतिः भवते न प्राप्नोति. ९७९४. ज्योतिषसार सङ्ग्रह व ग्रहदृष्टि विचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७१, मध्यम, पृ. ४१, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कुवडानगर, ले.- ऋ. टोडरजी, (२६४११.५, ५४३९). For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.१.पे. नाम. ज्योतिषसार सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-४०आ ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः भवत्सिद्धिकरस्तदा. ज्योतिषसार सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीतीर्थङ्कर वीतराग; अंतिः हुवै सिद्धिनो करणहार., पे.वि. प्र.पु. टबार्थ-ग्रं.२५००. पे.२.पे. नाम. ग्रहदृष्टि विचार सह टबार्थ, पृ. ४१अ-४१अ ज्योतिषसङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः#; अंति: #. ज्योतिषसङ्ग्रह-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-मूल-श्लो.५.. ९७९५." क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., ले.स्थल. खंभातबिंदर, प्र.वि. मूल-गा.२६३., त्रिपाठ, (२६४११, १-६४३६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि ,प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई ___ पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर , मागु., गद्य, वि. १६७६, आदिः निश्शेषज्ञानविज्ञान; अंतिः माधाय मयि सर्वं. ९७९६. धना चौपाई, संपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना., ले.- मु. अमरतिलक, पठ.- ऋ. धर्मदास, प्र.वि. गा.३२७; प्र.पु. _मूल-ग्रं. ५००, (२४.५४११, १४४४२). धन्ना रास, वा. मतिशेखर, मागु., पद्य, वि. १५१४, आदिः पहिलउं पणमी पयकमल; अंतिः कीयो कवित अतिचङ्गो. ९७९७.” कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०-१(१)=३९, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, ८-९४२६-३०). कथा सङ्ग्रह*, सं.प्रा.,मागु., पद्य, आदि:- अंति:९७९८." भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४१२, ४४३२). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बन्दित्तु क० वान्दी; अंतिः सुख जे भव्यजन. ९८००. शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., प्र.वि. गा.११५, पू.वि. गा.१ से २२ तक नही है., (२६.५४११, ११४३६). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः#; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं. ९८०१. पद्मावतीअष्टक सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गाथा ५ अपूर्ण तक है., (२६४११.५, १४३६). पद्मावत्यष्टक, सं., पद्य, आदिः श्रीमद्गीर्वाणचक्र; अंति: पदमावत्यष्टक-टीका, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनं देवं; अंति:९८०३. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०४., पंचपाठ, (२६.५४११, ११ १२४३१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः सुखनुं ठाम लहई. ९८०४.” कर्मग्रन्थ १-६, अपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(३ से ४)=१२, पे. ५, जैदेना., ले.- गणि नरसिङ्ग, पठ.- मु. मुणिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. कर्मविपाक की ५१ वी गाथा से बंधस्वामित्व की १७ गाथा तक नहीं हैं., (२६.५४११, १५४४६). For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-आ-, अपूर्ण), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ५० तक है. पे..२. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. -५आ-५आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. अंत के पत्र हैं. गा.१ से १७ तक नही है. गा.२५. पे.-३. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.९०. पे:४. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-११अ, संपूर्ण), आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१०२. पे.५. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-१४अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.९३. ९८०५.” षष्टिशत सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१६१., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६.५४११, १७४६४). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवद्धमाण जिणवरा; अंति: जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, वि. १४९६, आदि: नात्रोक्तमेलोन; अंतिः अनन्त सुख लहउ. ९८०६." कल्याणमन्दिरस्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४. मूल व टीका संपूर्ण है लेकिन टीका के प्रारंभमे दी हुई कथा अपूर्ण है., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, १७४५९). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-सौभाग्यमञ्जरी टीका, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः किलेति सत्ये एषः; अंतिः गुर्वा० विज्ञेयाः. ९८०७. विंशतिस्थानक विचारामृतसङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १५२३, मध्यम, पृ. ६१-२४(३७ से ६०)=३७, जैदेना., ले.- मु. कूखासुतआम्बा, लिखवा.- गणि ज्ञानधर्म,प्र.वि. २० कथाएं है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२८x१२, १६-१७४४३-४९). विचारामृतसार सङ्ग्रह, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १५०२, आदिः श्रीभूर्भुवः स्वस्र; अंतिः कलितां सततानुभावां. ९८०८.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. वसंतनगर, ले.- पं. जसचन्द्र, प्र.वि. मूल-गा.३००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ५-६४३९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमिउं कहितां नमस्कार; अंतिः प्रशासन जयवन्तो छइ. ९८१०. आराधनासूत्र, संपूर्ण, वि. १६४१, जीर्ण, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. सुजाउलपुर, ले.- मु. गुणराज, पठ.- मु. हंसचन्द्र, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. जैन गूर्जर कविओ भाग-१ में यह प्रति का उल्लेख है. गा.४०३, (२६.५४११.५, १३४३४). आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., पद्य, वि. १५९२, आदिः जिनवर चरणयुगल पणमेसु; अंतिः करी भणयो चतुर विचारि. ९८११. सीमन्धरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., पठ.- श्राविका लक्ष्मीबाई,प्र.वि. ढाल-११, गा.१२५, (२६४११.५, १५-१६४३२). सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: स्वामी सीमंधर विनती; अंतिः जसविजय बुध जयकरो. For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org: ५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८१२. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, पूर्ण, वि. १७वी जीर्ण, पृ. २६-१(१२) - २५, जैदेना. (२६.५४११.५, १५४४८). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि सं., गद्य वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः पर्ययादिष्यते बन्धा ९८१३. शान्तिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२२-२४(११ से २२.३९ से ५० ) - ९८, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पू. वि. " (+) बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं है, श्लो १०७७ तक है. (२६.५०१२. १५४४१). " शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंतिः ९८१५." अम्बड कथानक, संपूर्ण, वि. १६४९, मध्यम, पृ. २८, जैदेना., ले. ऋ. खीमजी, प्र. वि. ७ आदेश, संशोधित, (२८x११, १४४३५) अम्बड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., पद्य, आदिः धर्मात् सम्पद्यते; अंतिः तावद्वाच्यमानं बुधैः . ९८१६.” आलोयण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x१२, १३×३३). श्रावक आलोयणा विचार, सं. प्रा. मागु प+ग, आदि प्रथमं मुहूर्त: अंति: १८० उपवास ए दशमो बोल. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८१७. शत्रुञ्जय माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४ श्रेष्ठ, पृ. ५८० - १ (३४६ ) + ४ ( ३४४ से ३४५, ३३२,२७) =५८३, जैदेना., ले. स्थल. जयपूर, प्र. वि. मूल - सर्ग - १४. प्र. पु. -मूल-ग्रं. सर्व- २४०३४., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा ; ( ५३६) जलाद् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्; (२१०) भग्न दृष्टि कटी ग्रीवा, ( २६.५x११, ७३८). श्लो. १२२०, शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सिद्धो दयाद्रिस्थितः. शत्रुंजय माहात्म्य टवार्थ मागु., गद्य, आदि: नमस्कार हो विश्वनो अंतिः सिद्ध उदयाचले रह्या. (+) ९८१९. उदयउदीरणात्रीभङ्गी सह यन्त्र, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २१-६ (१ से ४,११ से १२ ) - १५ जैदेना. प्र. वि. मूल-३ , , त्रिभंगी, गा. ७३., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २४४१०, ४- २४३७-४०). उदयत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः बल० णेमिचन्देण. " ९८२०. सिंहलसिंह चौपाई, संपूर्ण वि. १६९८ मध्यम पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल. फलवधी, प्र. वि. ढाल - ११, गा. २२५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२४४१०, १५४४६). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंतिः पुण्य अधिक परमोद. ९८२३. चन्दराजा रास व जीवभेद श्लोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०२ श्रेष्ठ, पृ. १०९ पे. २, जैदेना. ले. मु. मानविजय ( गुरु गाणि दीपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. ले. श्लो. (४६२) मङ्गलं लेखकस्यापि (२३x१०, १२-१३x४३). पे- १. चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य वि. १७८३ (पृ. १आ-१०२ आ), आदिः प्रथम धराघव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना, पे.वि. १०८, ४ उल्लास. पे. २. पे. नाम जीवभेद श्लोक सह टबार्थ, पृ. १०९ आ ११०अ - जीवभेद श्लोक सं., पद्य, आदि प्रोक्ता नैरयीका; अंतिः त्रिषष्टीक्रमात्. " जीवभेद श्लोक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: प्रथम साते नारकी; अंतिः ५६३ भेद जीवना जांणवा., पे.वि. मूल - श्लो. १. ९८२४. चन्दनबाला रास अपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. २३-११ (१ से ११ ) = १२, जैदेना ले. स्थल कोट, प्र. वि. गा. १६०, " (२५X१०.५, १३ - १४x१९). चन्दनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, प्राहिं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: मोह पिसाच वसकरण कुं; अंतिः सीत तणा गुण वरणवेंइ. ९८२५. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२४४१०.५, ११४३७). " श्रुत विचार सङ्ग्रह, मागु. प्रा., पद्य, आदि: त्रसनाडि बाहरि भाषा अति: For Private And Personal Use Only " ९८२६. गोडीपार्श्वजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ८ जैदेना, प्र. वि. ढाल-५, गा.५५ (२२४१०.५, ८४१८) - पार्श्वजिन स्तवन- अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. प्रीतिविमल, मागु, पद्य, आदि: वाणी ब्रह्मावादनी अंति नाम अभिराम मन्ते. Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ५९ .. १८२७ मृगापुत्र रास, संपूर्ण वि. १७९५, मध्यम, पृ. ६. जैदेना ले. पं. जीवमाणिक्य, प्र. वि. ढाल १०, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, ११-१२५४४). मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७१५, आदिः परतक्ष प्रणमुं वीर; अंतिः चरित्र जिनहरषै कीयो. ९८२८. चित्रसम्भूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७१, श्रेष्ठ, पृ. २३ जैदेना. ले. स्थल आडीसर, ले. मु. दीपविजय (गुरु गणि " लब्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - ३९, (२५.५x१०, १९४२). चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७३१, आदि प्रथम नमुं परमेसरु अंतिः दीई दोलति दीदारू रे. " ९८२९. मयणरेहा चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. गा. १६३ (२३४१०.५, १३४३४). T " मदनरेखा सज्झाय, मागु, पथ, आदि: अरिहन्त सिद्धने; अंतिः पोहचइ मोक्ष मझारी. www.kobatirth.org: " ९८३०.” विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, ( २४ ११, १५X३०). प+ग, आदि: नवकार इकअक्खर पावं अंतिः छे मिथ्यादृष्टि नही. विचार सग्रह, मा. प्रा. ; . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८३१. पञ्चेन्द्री चौपाई, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, प्र. वि. दाल-६, गा. १५४ (१६.५०११, १२x२० ). " ५ इन्द्रिय चौपाई, प्राहिं., पद्य, वि. १७५१, आदि: प्रथम प्रणमी जिनदेव; अंतिः वसै सबकुं मङ्गल होई. ९८३२.” प्रियमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. हंसार, ले. पं. निहालचन्द, प्र. वि. ढाल - ११, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२४.५४११, १३४३४). : प्रियमेलक चौपाई दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, वि. १६७२ आदि प्रणमुं सद्गुरु पाय अंतिः पुण्य अधिक परमोद. ९८३३. अर्बुदगिरि कल्प, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. अजमेर (२१x११, ८-१०X२७-२९). अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, ऋ. विसेष्ट, मागु, गद्य, आदि: अर्बुदगिरि उपरे जे अंतिः अङ्गनी जोग हेम थावे. ९८३४. मङ्गलकलस रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३ - १(१ ) = १२, जैदेना., प्र. वि. गा. ३३२, पू.वि. गा. १ से २९ तक नही है. (२३.५४११, १६४३८) " " मङ्गलकलश रास, मु. ज्ञानरुचि, मागु., पद्य, वि. १५२५, आदि:-; अंतिः घरि उच्छव जय जयकारा . ९८३५. रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. मु. मङ्गलविजय, प्र. वि. ढाल - २४, ( २३११, १३३९). रत्नवूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मागु पद्य वि. १७२८ आदिः स्वस्ति श्रीसोभा अंतिः सम्पद लील कल्याणो रे. ९८३६. स्याद्वाद-पञ्चवादी चर्चा, सुमतिदुर्मतिचौपाई सह बालावबोध, सवैया व श्लोक, अपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ९१(१) = ८, पे. ४, जैदेना., ले. ॠ. रूपचन्द, (१८.५x११.५, १२४३२). -- पे:-१. स्याद्वादपञ्चवादी चर्चा, ऋ. तिलोक, मागु., पद्य, वि. १९२९, (पृ. २अ - ९अ, संपूर्ण), आदि: अरिहन्त सिद्ध सुरीवर अंतिः मील्या सुख भवपारके, पे. वि. पृष्ठ- नंबर गलत है. गा.४१. पे. २. सवैया, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९आ, संपूर्ण ), आदि: केहत कुरङ्ग वेणखान; अंतिः ओपमा न लागत हमारी हे., पे.वि. गा.१. पे. ३. भोजराजा श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ९आ - ९आ, संपूर्ण), आदिः येषां न विद्या न; अंतिः रूपेण मृगाश्चरन्ति., पे.वि. प्र. पु. - १ श्लोक. पे. ४. पे. नाम. सुमति चौपाई सह बालावबोध, पृ. ९आ - ९आ, संपूर्ण सुमतिदुर्मति चौपाई, मागु., पद्य, आदि: मूरख के घर दुरमति; अंतिः नमन सो विवेक गुनचक्र. सुमतिदुर्मति चीपाई - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि मूर्ख ना घरमा अंतिः खोलवानी कुंची छे, पे.वि. मूल-गा.६. ९८३७.” पाहुडपाहुड वर्णन, कर्मग्रन्थ १-६ आदि, संपूर्ण, वि. १८०१, मध्यम, पृ. २२, पे. ९, जैदेना., ले.स्थल. डूनाडाग्रामे, पठ ऋ खुस्यालचन्द, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४५१०५, ११४३८). पे. १. पाहुडपाहुड वर्णन, मागु, गद्य (पृ. १अ १अ संपूर्ण), आदि पाहुड पाहुड क० अंति: ग्यान ते प्राभृतसमास. For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६० www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. पे नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टिप्पण, पृ. १आ-४अ संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु, गद्य (अपूर्ण): अंति:-, पे. वि. मूल-गा. ६२. कुछेक गाथाओं का ही टिप्पण दिया हुआ है. पे.-३. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ - ६अ, संपूर्ण), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.-४. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ - ७आ, संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे. ५. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ७आ-१२अ संपूर्ण) आदि नमिय जिणं जिय: अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे. वि. गा. ८६. पे.-६. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ-१७अ, संपूर्ण), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. 7 सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.१०१. पे. ८. पे नाम. सामायिकबत्तीसदोष सह बालावबोध, पृ. २२-२२आ, संपूर्ण सामायिक ३२ दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदि: पाल्हथी अथिरास; अंतिः वसे सव्व सुह लच्छी. सामायिक ३२ दोष गाथा- बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वचनना दोष १० कुवचन; अंतिः दोष सामाइकना टालिवा. पे. वि. मूल-गा. ३. पे.-९. पौषध के २१ दोष, मागु., गद्य, (पृ. २२आ-२२आ, संपूर्ण), आदि: वासी विना पाणी आणी; अंतिः अपरमारजे वारंवार. ९८३८. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. बोल- ४६ तक है., (२५४१०.५, १३४५१). प्रश्नोत्तर सार्द्धशतक - बीजक, मागु., गद्य अंति: ९८४०. नवकार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. सौभाग्यविजय, (२४×११, १५X३६). नमस्कार महामन्त्र - बालावबोध' मागु, गद्य, आदि बारसगुण अरिहन्ता: अंतिः १०८ गुण थाय. ९८४४. योगदृष्टि सज्झाय, संपूर्ण वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल. मोरबी, प्र. वि. डाल-८ (२४४११.५, १६४३३). " ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, आदि मित्रा तारा बला; अंतिः वाचक जशने वयणेजी. ९८४५. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. कांखडली, ले.- मु. वृद्धिचन्द, प्र. वि. गा. १६४, (२१४१२, १६४४३). अंजनासुन्दरी रास, मागु, पद्य, आदि पहलेने कडाव हो पाय अंतिः रामनी भार्या..... ९८४६." जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. स्थल जेसलमेर, ले. पण्डित हीरालाल, प्र. वि. मुलगा. ३०., (२५४११.५, ३-४०२५). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नमस्कार करीने जिन अंतिः श्रीहरिभद्रससूरिइं. For Private And Personal Use Only ९८४७. नवतत्त्व, जीवविचार व दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८२, मध्यम, पृ. २६, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. सिरदार, ले. साध्वीजी कुन्नणी, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २४.५x१२, ३३०). पे.- १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ -१०अ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीरः; अंतिः एक सिद्ध अनेक सिद्ध., पे.वि. मूल-गा.५०. पे.२. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १०अ-१८अ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीन भवन; अंतिः समुद्र हुन्ती., पे.वि. मूल-गा.५१. पे.-३. पे. नाम. दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, प्र. १८अ-२६आ दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने ऋषभादि; अंतिः हितकारणी कीधी., पे.वि. मूल गा.४०. ९८४८. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.स्थल. वडुलनगर, ले.- पं. हर्षविजय, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२५४११.५, ६४३९). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः सरीरधरे भविस्सइति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अहो जम्बू ए; अंतिः चरम शरीरी हुवइ भवउ. ९८४९. सुक्तमाला व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अंजार, ले.- ऋ. महावजी (गुरु ऋ. खीमजीजी), पठ.- ऋ. जेठा (गुरु ऋ. महावजी), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२५.५४११.५, १४४३७). पे.-१. सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, (पृ. १अ-११आ), आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन., पे.वि. ४ वर्ग.. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः#; अंति: #. ९८५०. सतरभेदी पूजा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचना प्रशस्ति अपूर्ण तक है., (२५४१२, ५४३३). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंति: १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य; अंतिः९८५१. कल्पसूत्र का कल्पद्रुमकलिकानुसारी बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. २४९, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले. जसकरण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ६५००., (२५४१२, ११४३३). कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिकाटीका का बालावबोध, राज., गद्य, आदिः वर्द्धमान जिनेसररा; अंतिः सङ्घ रे मङ्गलीक हुवै. ९८५२. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. १४०, जैदेना., ले.- गणि मुक्तिचन्द्र (गुरु गणि विद्याचन्द), पठ.- मु. वखतचन्द्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-४ उल्लास, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा; (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि, (२५४११, १२४४१). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. ९८५३. हरिवंश रास, अपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ९६-७(१ से ७)=८९, जैदेना., ले.- पं. प्रेमरत्न(तपागच्छ),प्र.वि. ढाल-१२७, गा.२५०६, पू.वि. ढाल-११ की गा.१ तक नही है., (२६४१२, १५४३८). हरिवंश रास, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंतिः भव दुख हरे भाज्याजी. ९८५४. आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व नन्दीसूत्र स्थविरावली, पूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. ७८-१(३)=७७, पे. २, जैदेना., ले. विप्रशामलीया, (२६.५४११.५, १३४४२). पे.-१. नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-२आ-, अपूर्ण), आदिः जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः-,पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.१ से ४८ तक है. पे.२. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. -४अ-७८आ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ३२ तक नहीं है. ग्रं.३१००. For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८५५." शान्तिनाथ चरित्र, पूर्ण, वि. १८०९, मध्यम, पृ. ८४-१(१)=८३, जैदेना., ले.- ऋ. गङ्गाराम, दशा वि. विवर्ण-पानी से ___ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११, १६x४९). शान्तिनाथ चरित्र, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः केवली साधु सीधा. ९८५६. सम्यक्त्वकौमुदी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, मध्यम, पृ. ९४, जैदेना., ले.स्थल. माडपुरा, ले.- पं. गङ्गहर्ष, (२५.५४११.५, १७X४४-५५). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः अक्षयं स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः क्षना फल पामे मनुष्य. ९८५७. नवस्मरण व लघुशान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०५, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २, जैदेना., ले.- मु. सवाईसागर (गुरु मु. विजयसागर), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे, (२५४१२, ७X४०). पे.१. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२१आ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः मोक्ष प्रतिपद्यन्ते. नवस्मरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: नमो न० हुवो अरि; अंतिः मोक्ष सिद्धि पाम्मे., पे.वि. १. नवकार- गा.१ पत्र १आ, २. उवसग्गहरं- गा.५ पत्र १आ, ३. संतिकरं- गा.१४ पत्र आ, ४. तिजयपहुत्त- गा.१४ पत्र ३आ, ५. नमिऊण- गा.२४ पत्र ५आ, ६. अजितशांति- गा.४० पत्र १०आ, ७. भक्तामर- गा.४४ पत्र १५अ, ८. बृहच्छांति पत्र १७अ, ९. कल्याणमंदिर- गा.४४ पत्र २१आ. मूल-अध्याय-९ स्मरण. पे..२.पे. नाम. लघुशांति सह टबार्थ, पृ. २१आ-२२अ लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः यायमान्ने जिनेश्वरे. लघुशान्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः शान्तिनाथ सोलमा; अंतिः शासन जयवन्तु वा., पे.वि. मूल-श्लो.१९. ९८५८.” कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४५१, संशोधित, (२५.५४११, १५४४२). कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, आदिः प्रणम्य श्रीगुरुं; अंतिः बालावबोधिकाम्. ९८६०. आदिनाथ, नेमिजिन व पार्श्वजिन चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १४-१(११)=१३, पे. ३, जैदेना.. पू.वि. बीच व ___अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, १३-१४४४२). पे.१. आदिजिन चरित्र, मागु., गद्य, (पृ. १अ-४आ, संपूर्ण), आदिः विरस सत विसा बार; अंतिः छइ जणा आउखुं पालइ. पे..२. नेमिजिन चरित्र, मागु., गद्य, (पृ. ४आ-१०आ-, अपूर्ण), आदि: जम्बुद्वीपे भरत; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पे.३. पार्श्वजिन चरित्र, मागु., पद्य, (पृ. -११अ-१४आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच के पत्र है. ९८६१." क्षेत्रसमास सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-१(१)=२४, जैदेना., प्र.वि. संक्षेप-अध्याय-५. अंतमे दी गइ २५ गाथाएं प्रक्षिप्त गाथा होने की संभावना है., संशोधित, पू.वि. प्रथम पांच गाथा नहीं है., (२६४११.५, ५४३९). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः (१)झाएज्जा सम्मदीट्ठीए (२)हुंति दसदोय नामाइं. बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः समकितदृष्टी कहीए. ९८६२. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.- मु. विनयविजय (गुरु मु. हंसविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६४१२, १४४४१). आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः प्रथम भव्य जीवनै; अंतिः फली मन आस. ९८६४." होलिपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४९., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १८४४३). होलीरजपर्व कथा, सं., पद्य, आदिः वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंतिः विज्ञानं वाचनोचितः. For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra . www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ होलिपर्व कथा- टवार्थ मागु, गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेवने नमीन अंतिः वाचनार पुरुषे. - ९८६६." दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. स्थल. मांडवी, ले. मु. जीवणविजय, प्र. वि. मूल - श्लो. १०२. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२५.५०११, ४X३८). दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., पद्य, आदि: नत्वा श्रीवृषभं अंतिः विशोध्यं वरै. दृष्टान्तशतक- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: नमस्कार करीने सदैव अति माटे विचारी करबु ; , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९८६७. कल्पसूत्र का प्रारम्भणं (पीठिका), संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ( २६.५x११.५, १८x४४). कल्पसूत्र - पीठिका, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थ सिद्धिजननी; अंतिः हाथी जेटली मसी थाइ. 1 ९८६८. चैत्यवन्दनभाष्य सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९१४ मध्यम, पृ. १५ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा.६३. (२६४११.५, ४X३१). चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः परमपयं पावइ लहुं सो. चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः वान्दि नमस्कार करीने; अंतिः पांमइ शीघ्र उतावलउ. ९८६९. भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. मूल-३ भाष्य; अवचूरि- ३ भाष्य, पंचपाठ, (२६.५X११, ११४३८). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं.. भाष्यत्रय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वन्दनीयान् दशत्रिकाण; अंतिः वृत्यादिभ्योवसेयाः. ६३ ९८७०.” ललीताङ्गकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले. स्थल. सीरोही, ले. गणि केसरविजय, प्र.वि. ढाल - २७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, ( २६ १०.५, १४४४२). ललिताङ्गकुमार रास, मु. दानविजय, मागु, पद्य वि. १७६१, आदि: सकल कुशलकमलासदन अंतिः धर्मपक्षनो रास रे. ९८७१. सुभाषितश्लोक सङ्ग्रह व द्वादशभावफल, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १७-१ ( १ ) = १६, पे. ३, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. (२५४१०, १५४३६). " पे. १. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, प्रा. सं., मागु., पद्य, (पृ. २अ - १६आ, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे. वि. प्रथम पत्र नहीं है. " पे. २. वारभवन विचार, सं. पद्य, (पृ. १६आ-१७अ संपूर्ण), आदि लग्नस्थितो दिनकरः अंतिः रविजस्तु तीक्ष्णं. पे. वि. " श्लो. १२. i "" पे. ३. सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, प्रा. सं., मागु, पद्य, (पृ. १७अ १७आ, अपूर्ण) आदि अंति: पं. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९८७३. मानतुङ्गमानवती रास व पौषध सूत्रादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८२३, मध्यम, पृ. ३९, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. बाटरडा, ले.- मु. डुङ्गरविजय (गुरु मु. मुक्तिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा (५२०) जिहां लग मेरु अडग्ग है, ( २६४११, १४४३५). For Private And Personal Use Only पे.-१. मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (पृ. १आ-३९अ), आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे., पे. वि. बाल- ४७. पे. २. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., मागु, गद्य, (पृ. १अ - १अ ), आदिः करेमि भन्ते पोसहं; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि. पे. ३. पौषधपारणसूत्र- तपागच्छीय का टवार्थ, संबद्ध, प्रा., गुज, गद्य (पृ. १अ -१अ ) आदि सागरचन्दो कामो; अंति मिच्छामि दुक्कडम्. ९८७४.” भवभावना, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९ - १ (१) = ८, जैदेना., प्र. वि. गा. ५३१, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गा. १ से ६६ तक नही है., ( २६.५४११, १८४६२). Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ६४ www.kobatirth.org: भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः कीरउ अलङ्कारो .. (+) ९८७५. पदमनी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. स्थल. नागेन्द्रपुर, ले. पं. तिर्थविजय, प्र. वि. खण्ड-३, संशोधित, ( २६११.५, १६x४१). , गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदिः श्रीआदिसर प्रथम, अंतिः सील सफल सुरकन्द. ९८७६. शत्रुञ्जय रास, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. मु. दानविजय, पठ श्रा. अमरचन्द पारेख, प्र. वि. डाल " ६. प्र. पु. मूल गा. ११० (२५.५४१२, १४४३१). शत्रुंजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य वि. १६८२, आदि: श्रीरिसहेसर पाय नमी अंतिः सुणतां आणन्द " थाय. ९८७८.” सिंहलसुत चौपाई व श्लोक सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६९६, जीर्ण, पृ. ८-२ (१ से २) =६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. आउआ, दशा वि. अक्षर फीके पड़ गये हैं, (२६×११, १४४३८). पे.-१. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, (पृ. - ३अ-८आ, अपूर्ण), आदि: -; अंतिः पुण्य अधिक परमोद., पे.वि. ढाल - ११, प्र. पु. - गा. २३०, प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. ढाल -४ की गा .५ तक नही है. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. ९८८०. धनदत्तश्रेष्ठि चौपाई संपूर्ण वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. ढाल ९ प्र. पु. -मूल- १६१, ग्रं. २१८ (२५४११ १५X३८). व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १६९६ आदि शान्तिनाथ जिन सोलमो: अंतिः सीझई " वंछित काज. , " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९८८१. आउरपच्चक्खाण पर्याय सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६८, मध्यम, पृ. ९, जैदेना. ले. स्थल थानेस्वर ले ॠ जीवन मूल-गा.६०. (२६५११, ५०३९). (गुरु ऋ. आत्मा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा. प+ग, आदि: देसिक्कदेसविरओ अंतिः सव्वदुक्खाणम्. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टवार्थ, मागु गद्य, आदि छकायना देश हुती अंतिः करीनइ शीतलीभूत थाई. 1 " ९८८३.' सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल दासणु. ले. मु. रतिसुन्दर, प्र. वि. मूल गा. ७५; टबार्थ- ग्रं. ४१०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५११, ५४४४). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्वा प्रणामं कृत्वा ; अंतिः हृदये वधार्यते .. ९८८४. द्रव्य सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ४२ + १ (४२) = ४३, जैदेना., प्र. वि. मूल -३ अधिकार, गा.६०., (२५४११, २०१६), द्रव्य सङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः जीवमजीवं दव्वं; अंतिः मुणिणा भणिअं जं. द्रव्य सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रदेवा; अंतिः ए शास्त्र ते सुध करउ. ९८८५. विचार सङ्ग्रह का बालावबोधवार्त्तारूप, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९ जैदेना. (२६.५४११.५, १४४५१). विचार सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) वीरं गुरुश्च वन्दि (२) पृथ्वी अप तेउ वाउ; अंतिः अल्पबहुत्व विचारिउ. -, ९८८६. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. पं. केसरविमल, प्र. वि. ढाल -७ (२६.५४११.५, " For Private And Personal Use Only ११४३३) महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना अंतिः आणा सिर व्हेस्येजी. (+) ९८८७." आत्मानुशासन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १० - १ ( १ ) = ९, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४१२, २२४५३). आत्मानुशासन, सं., पद्य, आदि:-; अंति: आत्मानुशासन-बालावबोध, प्राहिं., गद्य, आदि:-; अंतिः९८८८." गुणावली चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१६. इस प्रत में रचनासंवत्-१६७२ है., संशोधित, (२४४१०.५, १५४४५). गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः प्रणमुं चउवीसे; अंतिः मनवञ्छित पावन्त. ९८९०.” आचारप्रदीप सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-९(१ से ९)+१(३०)=२२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १५४४१). आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, आदि:-: अंति: आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, आदि:-; अंति:९८९१. विचारसार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.५७६ तक लिखा है., (२७४११, ५४३४). विचारसार, प्रा., पद्य, आदिः बारस गुण अरिहन्त; अंति: विचारसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः९८९३." श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १३४३६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. ९८९४.” कर्मसाहित्य सह टिप्पण व यन्त्र, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-४(५ से ८)=५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ११४४६). पे..१. पे. नाम. उदयत्रिभङ्गी सह टिप्पण व यन्त्र, पृ. १अ-४आ-, अपूर्ण उदयत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., पद्य, आदिः पञ्चणवदोणिअट्ठावीसं; अंति:उदयत्रिभङ्गी-टिप्पण, सं., गद्य, आदि:-; अंति: उदयत्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पे.२.पे. नाम. सत्तात्रिभङ्गी सह यन्त्र, पृ. -९अ-९अ, अपूर्ण । सत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., पद्य, आदि:- अंतिः सिद्धिं समाहिं च. सत्तात्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. मूल-खण्ड-३ त्रिभंगी, गा.३४. ९८९५. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-१(१)=३२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गा.१४ से ५०७ तक है., (१७.५४१०.५, १२४२६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति:९८९६.” यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-सूत्र-२१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ३४३६). पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः चत्तारि मङ्गलं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, पं. सुमतिविजय, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीमहावीरं; अंतिः तिया प्रतइ तq. ९८९७. आर्द्रकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २०, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १६४३५). पे.-१. आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२७, (पृ. १अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः सकल सुरासुर जेहना; अंतिः प्रति देउल गेहे रे., पे.वि. ढाल-१९. For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. नन्दिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२५, (पृ. १२अ-२०आ, अपूर्ण), आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ९८९९. जावडसेठ रास, संपूर्ण, वि. १६१३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- वा. आणन्दरत्न, प्र.वि. गा.१८५; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २५० इस प्रत मे रचनासंवत्-एकअठोत्तरइ दीया है., (२५४११, १३४२९). जावडभावडसेठ रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदिः पणमवि मरुदेवि सामिणी; अंतिः जावड गुण गाई देपाल. ९९०१.” विविधविचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, १७X४२). आगमनामादिविचार सङ्ग्रह', मागु.,प्रा.,सं., पद्य, आदि: #; अंति: #. ९९०२." मृगावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-३; प्र.पु.-मूल-खंड-३, गा.७४३,, ग्रं. ९२५, (२६४११, १५४४५). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, आदिः समरु सरसति सामिणी; अंतिः वृद्धि सुजगीसा ९९०३. कुलध्वजकुमार रास, संपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, ले.- भूपतिभोजक, प्र.वि. गा.३५८, (२७४११, १३४४५). कुलध्वजकुमार रास, मु. कक्कसूरिशिष्य, मागु., पद्य, आदिः पास जिणेसर पयनमी; अंतिः जयमङ्गल हुइ भरपूरि. ९९०४. जम्बुस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८१५, मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., ले.- पं. मोहनविजय, पठ.- गणि तीर्थविजय, प्र.वि. ढाल ३५, (२६४११, १५४३६). जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; अंतिः नितु कोडि कल्याण. ९९०५." आचाराङ्गसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५३-२(१ से २)-५१, देना., प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्ययन ६ तक है., (२६.५४११.५, ६४३२). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मागु., गद्य, आदिः भगवन्त श्रीसुधर्मा; अंति:९९०७. बावनीछन्द, श्लोक व पद सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ५, जैदेना., (२६४११.५, १६x४३). पे.-१. छन्दबावनी, कवि नन्दलाल, मागु., पद्य, वि. १८९६, (पृ. १अ-६अ), आदि: उतम कनक देह उपमान; अंतिः आनमैं नगर सुनामजी., पे.वि. गा.५५. पे.२. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः काम वली सवही पुरहे; अंतिः जगतमैं रहे छटै इकठोर., पे.वि. गा.९. पे..३. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः ओधू क्यां सूवै तन; अंति: नारि निरञ्जण पावै., पे.वि. गा.४. पे.-४. आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः आशा औरन की क्या कीजे; अंतिः देखे ___ लोक तमासा., पे.वि. गा.४.. पे.-५. औपदेशिकपद, चांपाराम, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः अरै सजन तेरा मन; अंतिः सन्देह नही ल्याना., पे.वि. गा.६. ९९०८." गौतमपृच्छा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- ऋ. धनजी,प्र.वि. मूल गा.६४., (२६४११.५, ६४३१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नम० करीनइ तीर्थना; अंतिः श्रीमहावीरदेवइं कही. For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ९९०९. चौवीसदण्डक २९ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२५.५४११, १४४४३). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका. ९९१०. नवकार कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ५, जैदेना., (२५.५४११, १७४३७). पे.-१. श्रीमती कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., पद्य, (पृ. १आ-२आ), आदिः नवकारअक्खरकरेणं पावं; अंतिः यथाप्त श्रीमती पुरा., पे.वि. श्लो.५३. पे.२. शिवकुमार कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., पद्य, (पृ. २आ-४अ), आदिः नवकारप्रभावेन सङ्कटा; अंतिः मृत्वा सद्गतिकं ययौ., पे.वि. श्लो.५८. पे..३. जिनदासश्रावक कथा, सं., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः आपतितः सङ्कटे जीवो; अंतिः प्राप्तश्च सुरालये., पे.वि. __ श्लो.४६. पे.४. नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः परत्रापि हि लभ्यन्ते; अंतिः सजाते जैनमंत्रतः., पे.वि. श्लो.४५. पे.५. हुण्डकचोर कथा, सं., पद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः पापिष्ट चौरकर्मात्र; अंतिः यथा चौरेण हुंडिके., पे.वि. श्लो.४८. ९९११.” उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८२-३५(१ से ३५) ४७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र __ हैं. अध्याय-२० की गा.१ से अध्याय-३६ की गा.२४९ तक है., (२६४११, ११४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:९९१३. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १८३३, जीर्ण, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. रीया, प्र.वि. गा.१६४, (२५४११, २२४७२). अंजनासुन्दरी रास, मागु., पद्य, आदिः शील समो वड को नही; अंतिः सती रे सिरोमणि गाईयइ. ९९१४. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, (२६.५४११, १२४३६). स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः ऋषभ जिणिन्दसु; अंति: दुसमकाल आधारजी. ९९१५.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. समाणा, ले.- ऋ. भोला (गुरु ऋ. रामजी),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-श्लो.४४., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (५००) जले रक्षं स्तैले रक्षं, (२५.५४१२, ४४३५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कथभुतं जिनेश्वरस्य०; अंतिः नाम शप्ती होइ छे. ९९१६. धन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. बीलाडा, ले.- गणि आणन्दहंस, पठ.- साध्वीजी रामाआणन्दा, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, १३४२४). धन्ना चौपाई, वा. कमलहर्ष, मागु., पद्य, आदिः वर्द्धमान जिनवर नमुं; अंतिः भणइ० कीरति कमला पावइ. ९९१७. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४८-१२६(१ से १२६)=२२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. अध्याय-३३ की गा.२३ से अध्याय-३६ की गा.१५३ तक है., (२५४१२, ५४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति:९९१८. नन्दीषेणमुनि चौढालीयो, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-४, (२५.५४११.५, १४४४५). नन्दीषेणमुनि चौढालिया, मु. पुर्णमुनि, मागु., पद्य, आदि: सारद पय प्रणमी करी; अंतिः कल्याणनी कोडि रे. ९९१९. कर्मग्रन्थ १-२, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४१२, ७-११४२७-३१). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-६आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६२. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९२०. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. मकसुदाबाद, ले.- मु. विवेकमाणिक्य, प्र.वि. ढाल ४९, (२५४११, १३४३४). श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४०, आदिः अरिहन्त अनन्तगुण; अंतिः पातकवन लुणिज्ये रे. ९९२१.” जिनस्तवनादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ७१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, हानिकारक स्याही, (२१.५४११.५, १२x२५). पे:१. पे. नाम. ऋषभ स्तुति, पृ. १आ-१आ, संपूर्ण आदिजिन-प्रार्थना स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः गढवी काणे सोभता ए; अंति: भेटतां लहे सदा आनंद., पे.वि. गा.३. पे..२. पे. नाम. आदिजिन थुइ, पृ. १आ-१आ, संपूर्ण आदिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः रिषभजिनन्दसु प्रीतडी; अंतिः कीजी रे हिम उपगार., पे.वि. गा.२. पे.-३. आदिजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ, संपूर्ण), आदिः रिषभ जिनेसर अति; अंति: नरनारीना __वृन्दा जी., पे.वि. गा.१. पे:४. अजितजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजितशत्रु नरेस; अंतिः पूरौ वञ्छित काम.,पे.वि. गा.३. पे.५. अजितजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ, संपूर्ण), आदिः आज आनन्द वधाई नाथ; अंतिः तुम गुण अगम कहाई., पे.वि. गा.४. पे.६. अजितजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ, संपूर्ण), आदिः जितशत्रु नरेसर नन्दा; अंतिः भावधरी नरवृन्दा जी., पे.वि. गा.२. पे.-७. सम्भवजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. २आ-२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीसम्भवजिनराज देव; अंतिः जोडने प्रणमै वारंवार., पे.वि. गा.३. पे.-८. सम्भवजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसम्भवजिनराई लगन; अंतिः दीपक ___ अनुप गुण को दाई., पे.वि. गा.२. पे.९. सम्भवजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण), आदिः मेघ नरेसर कुलमणी; अंतिः श्रीसम्भवजिनराया जी., पे.वि. गा.१. पे:१०.पे. नाम. अभिनंदन स्तवन, पृ. ३अ-३अ, संपूर्ण अभिनन्दनजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः श्रीअभिनन्दन समरीयै; अंतिः जय जय श्रीजिनराज.,पे.वि. गा.३. पे..११. अभिनन्दनजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ, संपूर्ण), आदिः अभिनन्दन जिनराज से; अंतिः प्रणमे पद नितमेव रे., पे.वि. गा.३. पे.-१२. अभिनन्दनजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः अभिनन्दनजिन अन्तर; अंतिः सेवा भवि सिरना जी., पे.वि. गा.१. पे:१३. सुमतिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः सुमतिनाथ जिन पञ्चमो; अंतिः प्रणमे वारंवार., पे.वि. गा.२. पे.-१४. सुमतिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः सुमतिनाथ जिन अन्तर; अंतिः सदा हित कामी रे.,पे.वि. गा.३. पे-१५. सुमतिजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण), आदिः सुमतिनाथ सुमतनो दाता; अंतिः जिन जग के त्राता जी., पे.वि. गा.१. पे.-१६. पे. नाम. पद्मप्रभुजिन चैत्यवन्दन, पृ. ४अ-४अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पद्मप्रभजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः पद्मप्रभुजी सदा सदेव; अंति: गुण गावे सनीराय., पे.वि. गा.३. पे.-१७. पद्मप्रभजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ, संपूर्ण), आदिः पद्मप्रभु जीनराजना; अंति: दीजै प्रभु भवसार जी., पे.वि. गा.२. पे.-१८. पद्मप्रभजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः पद्मप्रभुजिन गुणमणी; अंतिः जिन तारण तरीया जी., पे.वि. गा.१. पे-१९. सुपार्श्वजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण), आदिः सामी सुपारस वन्दियो; अंतिः सदा दीजे दरसण एह., पे.वि. गा.२. पे..२०. सुपार्श्वजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ४-५अ, संपूर्ण), आदिः स्वामी सुपारस कृपा; अंतिः सुमति साद ___ पद वंदे रे., पे.वि. गा.४. पे.२१. सुमतिजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चम जिनवर भावे; अंतिः पावो परम आनंदा जी., पे.वि. गा.१. पे.-२२. पे. नाम. चन्द्रप्रभुजी चैत्यवन्दन, पृ. ५अ-५आ, संपूर्ण चन्द्रप्रभजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः चन्द्रप्रभु गुण; अंतिः अधिक थया मनरंग., पे.वि. गा.३. पे.-२३. चन्द्रप्रभजिन थुई, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः चन्द्रप्रभु जिनवर; अंतिः महधरी प्रभु ___ आहो., पे.वि. गा.४. पे.२४. अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः चौवीसे जिनवर प्रणमुं: अंतिः ___ पामे परम आनंद., पे.वि. गा.४ इस प्रत मे विद्वान का उल्लेख नही है. पे.२५. पे. नाम. सुबधिनाथ चैत्यवन्दन, पृ. ५-६अ, संपूर्ण सुविधिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः नवमा जिनवर सुविधिनाथ; अंतिः कुं वंदे सीस नमाय., पे.वि. गा.१. पे:२६. सुविधिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सुविधिजिन साहेबा; अंतिः लुल लुल लागु पाय., पे.वि. गा.४. पे.-२७. सुविधिजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः सुविधिनाथ मुज; अंतिः पाप करम सहु छीजेजी., पे.वि. गा.१. पे.-२८. पे. नाम. शीतलनाथजीरो चैत्यवन्दन, पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण शीतलजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः शीतल जीनवर चरण कज; अंतिः प्रणमे वारंवार., पे.वि. गा.१. पे.२९. शीतलजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः शीतल शीतलनाथनी रे; अंतिः तरि गुण गावै सुसमाज., पे.वि. गा.७. पे.-३०. शीतलजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः शीतल जीनवर उपगारी; अंतिः ए जिन जन __हितकारी जी., पे.वि. गा.१. पे.-३१. श्रेयांसजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः श्रेयांस सुहामणौ; अंति: तुम प्रभु सकल सहाय., पे.वि. गा.२. पे.-३२. श्रेयांसजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदि: मडौ तुमसुं लागौ हौ; अंतिः रतनचीन्तामण पाया हौ., पे.वि. गा.४. पे.-३३. श्रेयांसजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः श्रेयांसजिन अन्तर; अंतिः ए जिन अन्तरजामी जी., पे.वि. गा.१. पे..३४. पे. नाम. १२ भगवानरौ चैत्यवन्दन, पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वासुपूज्यजिन पद, मु. सुमति मागु, पय, आदि वासपूजजिन बारमा अंतिः प्रणमे श्रीजिनराय, पे.वि. गा.१. पे.-३५. वासुपूज्यजिन पद, मु. सुमति मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदिः श्रीवसुपूज नरेसर; अंतिः तुम छो जग सिरदार., पे.वि. गा.४. , www.kobatirth.org: पे - ३६. वासुपूज्यजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ८अ -८अ, संपूर्ण), आदिः श्रीवासुपूज नरेसर; अंतिः आगम गुण आनन्दुं ., पे.वि. गा.१. पे. ३७. पे नाम. विमलनाथ चैत्यवन्दन, पृ. ८अ-८अ संपूर्ण विमलजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः विमलनाथ जिने तेरमा; अंति: सही प्रेमधरी सुखदाय., पे.वि. गा.२. पे.-३८. विमलजिन पद, मु. सुमति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८अ -८आ, संपूर्ण), आदिः विमल जिनन्दा प्रभु: अंतिः सदा मुज मनडे वसीया., पे.वि. गा. ३. पे.-३९. विमलजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः विमलजिनेसर त्रिभुवन अंतिः कारण परम आनन्दा जी., पे.वि.गा. १. पे. ४०. पे नाम. अनन्तनाथ चैत्यवन्दन, पृ. ८- ९अ संपूर्ण अनन्तजिन प्रार्थना-स्तुति, मु. सुमति मागु, पद्य, आदि चवदमा जिनवर अनन्त, अंति: अनुपम श्रीमुनिराय.. पे.वि. गा.२. पे. ४१. अनन्तजिन पद, मु. सुमति, राज, पद्य, (पृ. ९अ-अ, संपूर्ण) आदि अनन्त जिन साहबा थारै अंति: तुम सम अवर न सूर., पे. वि. गा.३. पे.-४२. अनन्तजिन प्रार्थना-स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ९अ - ९अ, संपूर्ण), आदिः अनन्तनाथ मुज अन्तर; अंतिः भव्य सकल हितकामी जी., पे.वि. गा.१. पे. -४३. पे. नाम. धर्मनाथजी चैत्यवन्दन, पृ. ९आ- ९आ, संपूर्ण धर्मजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः धर्मनाथ जिन पनरमो; अंतिः दीजीयै जगजीवन कीरतार., पे.वि. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गा.१. पे. -४४. धर्मजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ, संपूर्ण ), आदिः भवि तुमे वन्दो रे; अंतिः सुमति० इ कथारो आधार., पे.वि. गा. ४. . पे. ४५. धर्मजिन पद मागु पद्य (पृ. १०अ १०अ संपूर्ण), आदि धरम जिनेसर धरम परूपै अंतिः पावो सुख पा ; 1 जी., पे.वि.गा. १. पे ४६. पे नाम सन्तनाथ चैत्यवन्दन, पृ. १०अ १०अ संपूर्ण शान्तिजिन पद, मु. सुमति मागु, पद्य, आदि: सोलम जिनवर सन्तनाथ अंतिः सुमति नमे सुखदाय. पे.-४७ . शान्तिजिन पद, मु. सुमति, राज., पद्य, (पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण), आदिः सन्तजिनन्द जी की अंतिः दीजै मुजने सामी हो., पे.वि. गा. ५. पे.-४८. शान्तिजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १०आ- १०आ, संपूर्ण), आदिः सन्त जिनेसर सोलमा ; अंतिः थाये जै जैकारो जी., पे.वि.गा. १. · पे ४९ पे नाम कुन्थुनाथ चैत्यवन्दन, पृ. १० आ-१०आ, संपूर्ण कुन्थुजिन प्रार्थना स्तुति, मु. सुमति मागु., पद्य, आदिः सतरमा जिनवर वन्दीयै; अंतिः वन्दे वारंवार, पे.वि. गा.१. पे. ५०. कुन्थुजिन स्तुति मु. सुमति मागु पद्य (पृ. १० आ - ११अ संपूर्ण) आदि कुन्थुजीनेसर सुखकर अंति से गुण " , गाये हितकारी, पे.वि. गा.४. " For Private And Personal Use Only पे.-५१. कुन्थुजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - ११अ, संपूर्ण), आदिः कुन्थु जिनेसर अति; अंतिः पावो परम आनन्दाजी., पे.वि. गा.१. पे ५२. अरजिन पद, मु. सुमति मागु, पद्य, (पृ. ११अ-११अ संपूर्ण), आदि अर जिनेसर भेटो भावसुः अंतिः ते प्रणमे Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ वारंवार. पे.-५३. अरजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - ११आ, संपूर्ण ), आदि: अरनाथ जुहारी रे; अंतिः वञ्छित सघला कीजै रे. " www.kobatirth.org: पे. ५४ अरजिन पद मागु पद्य (पृ. ११आ- ११आ, संपूर्ण), आदि: अरनाथ जिनेसर सामी अंतिः ए जिन अन्तरजामी , " " जी., पे.वि.गा. १. पे. ५५ पे नाम मल्लिनाथ चैत्यवन्दन, पृ. ११आ - ११आ, संपूर्ण मल्लिजिन प्रार्थना-स्तुति, मागु., पद्य, आदि: मल्लीनाथ उगणीसमौ; अंतिः भेटतां पामे ऋध अपार. पे.-५६. मल्लिजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. ११आ - १२अ, संपूर्ण), आदिः साहबा मारा मल्लि; अंतिः सुधमणी रे साहबा " " मारा. ; " पे. ५७. मल्लिजिन पद प्राहिं पद्य (पृ. १२अ - १२अ संपूर्ण) आदि मल्लिनाथ मुझ स्वामी अंतिः ए नही जुठी वाची जी., पे.वि. गा.१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे. ५८. ये नाम मुनिसुव्रत चैत्यवन्दन, पृ. १२अ - १२अ संपूर्ण मुनिसुव्रतजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदि: वीसमा जिनवर वन्दीयै; अंतिः दीजीयै अनुभवरसनो सार. पे - ५९. मुनिसुव्रतजिन पद, मु. सुमति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२अ - १२आ, संपूर्ण), आदिः भवि भावधरी मुनि: अंतिः सदा मुजकु चहीयै, पे.वि. गा. ४. पे. ६०. मुनिसुव्रतजिन पद मागु, पद्य, (पृ. १२आ - १२आ, संपूर्ण ) आदि मुनिसुव्रत जिन विसमा: अंतिः सुख कारण सरदहीये. " पे.-६१. पे. नाम. नमीनाथ चैत्यवन्दन, पृ. १२आ - १२आ, संपूर्ण नमिजिन पद, मु. सुमति मागु., पद्य, आदिः नमीनाथ इकवीसमौ सेवौ; अंतिः वन्दै सीस नमाय.. पे:-६२. नमिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, (पृ. १२आ - १३अ, संपूर्ण), आदिः नमि जिनराजजी भवी; अंतिः दरसण प्रभु सुखदाय., पे.वि. गा. ३. पे. ६३. नमिजिन पद मागु पद्य (पृ. १३४-१३-अ, संपूर्ण) आदि इकवीसमा श्रीनमी: अंति पुन्ये दरस सुख पाया.. + पे.वि. गा.१. पे.-६४. पे. नाम. नेमीनाथ चैत्यवन्दन, पृ. १३अ - १३ अ, संपूर्ण नेमिजिन पद, मु. सुमति मागु., पद्य, आदि: नेमनाथ बाईसमा सेवो; अंतिः दीजीयै अनुभवरसनौ सार., पे.वि. , ७१ गा.२. पे. - ६५. पे. नाम. नेमिजिन स्तव, पृ. १३अ - १३आ, संपूर्ण नेमिजिन पद, मु. सुमति मागु., पद्य, आदिः नेम जिणन्द गिरनारी; अंतिः सुमति सदा हितकारि., पे.वि. गा. ४. पे. ६६. नेमिजिन पद मागु, पद्य, (पृ. १३आ- १३आ, संपूर्ण) आदि जयकारि श्रीनेमजिनन्द अंतिः सहु जिवा " · सुखकन्दा. पे. ६७. पे नाम श्रीपार्श्वनाथ चैत्यवन्दन, पृ. १३आ - १४अ संपूर्ण पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति प्राहिं, पद्य, आदि पारस पारस पूजीयै: अंतिः वन्दै सीस नमाय " पे.-६८. पार्श्वजिन पद, मु. सुमति मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४अ, संपूर्ण), आदिः भवि भाव धरि पारसजिन; अंतिः प्रभु गुण गाया छै., पे. वि. गा.६. पे.-६९. पार्श्वजिन पद, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४अ, संपूर्ण), आदि: जयकारि श्रीपास; अंतिः सेवा अधिक आनन्दा जी. पे.-७०. पे. नाम. महाविर चैत्यवन्दन, पृ. १४आ - १४आ, संपूर्ण महावीरजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, आदिः वर्द्धमान चोविसमौ; अंतिः तारकत्रिभुवन भाण., पे.वि. गा.१. पे.-७१. महावीरजिन पद, मु. सुमति मागु., पद्य, (पृ. १४आ - १४आ, संपूर्ण ), आदि: सासननायक वन्दीयै जी; अंतिः प्रभु For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ७२ www.kobatirth.org: ए कीजै ए उपगार., पे.वि. गा. ५. .. " ९९२२.” भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३६, जैदेना. प्र. वि. मूल- ४१शतक, ग्रं. १५६७५. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. ग्रं. ग्रं. १५६७५. (२७४१२, ६३३-३७). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः देउ अविग्घं लिहंतस्स. भगवतीसूत्र- टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १८पू, आदिः श्रेयः श्रीसेवितां ; अंतिः परकार्यकृतोद्यमाः. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ९९२३.” प्रज्ञापनासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६०, जैदेना., प्र. वि. मूल - ३६ पद, सूत्र - २१७६. ग्रं. ग्रं. ६६११६, संशोधित (२६.५४१२.५ ५.८४३१-४२). प्रज्ञापनासूत्र या. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहन्ताणं अंतिः सुही सुहं पत्ता, " प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वली थया सर्व १३९९८. ९९२४. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७०, जैदेना., ले. स्थल. रतलाम, ले. श्री. सिवचन्द पोरवाल, प्र. वि. मूल-सूत्र- १७५. ईस प्रति में टबार्थकार का नाम नहीं है., (२७४१२, ६४३१-३४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्से सुपस्सवणीए. राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेहनइं नमस्कार थाओ. ९९२५. विपाकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्र. वि. मूल-ग्रं. १२५०., प्र.ले. श्लो. (२१६) भग्न कटी ग्रीवा भग्ना (२२) उदकानलचोरेभ्यो (२५x१२.५, ७-९४४०-४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अथ विपाकश्रुत किसउ; अंतिः सूत्रे कह्यो तिम (+) ९९२६. रोहणी रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६० - १ (४५) = ५९, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ३१, (२५X१२.५, १२-१४४३४-३८). रोहणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७७४, आदिः सुखकर श्रीसङ्केसरु; अंतिः पोहचे मनि आस रे.. ९९२७.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. १३९, जैदेना, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., संशोधित, (२५x१२, ५-२०X३८-४८ ) . कल्पसूत्र, आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेणं काले० समणे: अंति: उवदंसेइ ति बेमि " कल्पसूत्र - टवार्थी मागु, गद्य, आदि नमो क० माहरो नमस्कार अंतिः अध्ययन सम्पूर्ण थयउ कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः #. " ९९२८.” जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ३२८, जैदेना., ले. स्थल. राधनपुर, ले. गणि ऋद्धिविजय, प्र. वि. मूल १० प्रतिपत्ति नं. ४७०० संशोधित, ( २६४१२-५, ६४३६-४५). , जीवामिगमसूत्र, प्रा. गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र - टबार्थ, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७७२, आदिः प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंतिः वार्ता संपूर्ण थइ. ९९२९. कल्पसूत्र सह टबार्थ + व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १५१, जैदेना., ले. स्थल. खिरालु, ले.- मु. हरीचन्द ( गुरु मु. मानजी), प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., पू. वि. टबार्थ पत्र ५४A तक है., ( २४.५X१३, ६-१५X३१-३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र- टबार्थ + व्याख्यान + कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंतिः९९३०.” चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना., ले. स्थल. राधनपुर, ले.- तुलजाराम भोजक, प्र. वि. ढाल ४ उल्लास, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित ( २६ ५४११.५, १०- १३५२१-३६). चन्द्रराजा रास. मु. मोहनविजय, मागु, पद्य वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना.. For Private And Personal Use Only ९९३१. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९०, जैदेना., प्र. वि. मूल-२० प्राभृत, (२८x१२, ४-५४०-४५). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ७२ सूर्यप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काले चउथाआराने; अंतिः वारंवार वान्दु छु. ९९३२.” जयन्तविजय काव्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१९, ग्रं. २२००., संशोधित, (२८x१२.५, १५४३०-३५). जयन्तविजय काव्य, आ. अभयदेवसूरि , सं., पद्य, आदिः श्रेयांसि विश्राणय; अंतिः मिदं निर्मितं जयतु. ९९३३. श्रीपाल रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १०९, जैदेना., प्र.वि. मूल-खण्ड-४, ढाळ ४१.. पू.वि. पत्र ५० से टबार्थ लिखा है., (२६.५४१२.५, ६-१३४३०). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (संपूर्ण), आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः च्यार खण्ड सुहायाजी. श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः करी सम्पूर्ण थयो. ९९३४.” ठाणाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ३१३, जैदेना., ले.स्थल. फतेगढनगर, ले.- गणि मेघविजय गणि (गुरु पं. सुमतिविजय गणि, तपागच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१०स्थान, ग्रं. ३७५०., संशोधित, (२८x१३, ६४३०-३९). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज , मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति: पुद्गल अनन्ता कहिआ. ९९३५.” उत्तराध्ययनसूत्र सह नियुक्ति व टीका, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. ४१८-१(४०४*)=४१७, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले.- मङ्गुमल व्यास, प्र.वि. नियुक्ति-गा.५९५; टीका-ग्रं. २००००. मूल का मात्र प्रक्षेप पाठ दिया गया है., संशोधित, (२७.५४१४, १६-१८४३८-३९). उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदि: नामं ठवणादविए; अंति: गुरुपसाया अहिज्झंति. उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति# , आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः शिवदाः सन्तु; अंतिः नयाः तेपि प्राग्वदेव. ९९३६.” भरहेसरबाहुबलीवृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. ४९६, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- पं. अमीविजय गणि (गुरु पं. सुखविजय गणि).प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टीका-२ अधिकार., संशोधित, (२६४१२, ८४४०-४२). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदिः युगादौ व्यवहाराध्वा; अंतिः तमोर्हदादिसाक्षिकम्. भरहेसरबाहुबली-वृत्ति का टबार्थ, गणि हरिरूचि, मागु., गद्य, आदिः युगने आदे व्यवहार; अंतिः अरिहन्तनी शाखइ. ९९३७." जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. ३२३, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले.- मु. माणक्यरत्न (गुरु पं. सुमतिरत्न),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार, ग्रं. ४४५४., संशोधित, पू.वि. ग्रं.ग्रं.१४२५०., (२७ ११.५, ६४३२-३८). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो अरिहंतनइ; अंतिः हु कहु छउ हे जंबू. ९९३८. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. ११९+१(५६)=१२०, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- पं. गम्भीरसागर(तपागच्छ), प्र.वि. मूल-२० प्राभृत., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५, ३-९४४१-४५). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदि: जयति णवरलिण कुवलय; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. चन्द्रप्रज्ञप्ति-टीका का टबार्थ# , मागु., गद्य, आदिः तिहां अविघ्नपणे इष्ट; अंतिः अ० अवनीत नै देव उ. ९९३९." अनुयोगद्वारसूत्र सह टबार्थ व बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१६०४; प्र.पु. मूल-ग्रं. २००५.प्र.पु.-टबार्थ+बालावबोध-ग्रं. १५०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (२०६) भग्न पृष्टी कटी ग्रीवा; (२०७) उदकानलचोरेभ्यो, (२४.५४१२, २-१०४३४-४०). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करुं वीतराग; अंतिः तेसं पउती नगरं पविठा. अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनं; अंतिः पणि समाप्त थयुं. ९९४०. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५२, जैदेना., प्र.वि. मूल-२५अध्ययन. अंत में सर्वनयविशुद्ध __ अर्थवाली दो प्रक्षिप्त गाथा है., (२५.५४१२, ५४३३-४४). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. आचाराङ्गसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कन्ध-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानाय भव्य; अंतिः भगवंत समीपइ सांभलिउ. ९९४१." उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. १६६, जैदेना., ले.स्थल. उमताग्राम, ले.- पं. मयाविजय (गुरु गणि ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५४४., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (२५४१२, १६-१८४३५-४७). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वाणी श्रुतदेवता ते. ९९४२. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३९-१(२३०)=२३८, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. उत्तराध्ययनसूत्र महात्म्यदर्शक नियुक्ति की ४ गाथा दी गई है., (२४४११.५, ७-१७४३१-३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा सङ्ग्रह , मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरने वारे; अंतिः (१)तुज प्रते कहुं छु (२)तेणइ ए० इम भ० कह्यो. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९६, जैदेना., प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५५००. प्र.पु. मूल-ग्रं. सर्व१४०१४., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (१३५) जिहां द्रुसायर चंद रवि; (५२५) तैलाद् रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, (२६४११.५, ७४३४-३९). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. ९९४४. सम्यक्तकौमुदी, अपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. ६०-१५(१ से १५)=४५, जैदेना., ले.स्थल. मालणग्रामे, ले.- पं. देवविजय(तपगच्छ), प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४११.५, १५-१६४३३-३७). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदि:-; अंतिः धर्मो विधीयतां. ९९४५. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १६३१, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.स्थल. बोहीया, पठ.- गणि रामविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि, तपागच्छ), ले.- आ. राजविजयसूरि (गुरु आ. दानसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रं. ४०००. मूल पाठ का प्रतिकपाठ मात्र दीया है., (२६४११, १५-१७४५०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः त्रीणि सप्तशतानि च. ९९४६. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-खंड-४, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४११.५, १४-१८४४०-४५). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः सकल श्रेणि में; अंतिः मोहनविजये विलासेजी. ९९४७.' जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, मध्यम, पृ. ५४, जैदेना., ले.स्थल. मोरबी, ले.- मु. कानकराज (गुरु मु. भीमाराज),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२१उद्देश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ६४३४-३८). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक , गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ७५ जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषइं ते; अंतिः आराधक जीव कह्यां. ९९४८." शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रेष्ठ, पृ. १६१, जैदेना., ले.- मु. जयकमल, प्र.वि. ६ प्रस्ताव; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ६११५, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६.५४१०.५, १३-१५४४१-४४). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: स करोतु शान्तिः. ९९४९. प्रज्ञापनासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४५, जैदेना., प्र.वि. ३६ पद., सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, (२७४११, ११ १३४३५-४१). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: सुही सुहं पत्ता. ९९५०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. १८८, पे. २, जैदेना., ले.- ऋ. हीराचन्द (गुरु ऋ. वस्ताजी), प्र.वि. प्र.पु. का पत्र बदला हुआ है., अशुद्ध पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (६१८) जलाद् रक्षेत् स्थलाद् रक्षेत्, (२५.५४११, ५-६४३४-३८). पे.-१. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-१८६अ उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंतिः तीर्थङ्करै काउ.,पे.वि. मूल-अध्याय-३६अध्ययन. पे.२. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-(प्रा.)अध्ययन विषय व गाथासङ्ख्यासूचक गाथा सह टबार्थ, पृ. १८६अ-१८७आ उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन विषय व गाथासङ्ख्यासूचक गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः जे केइवि भवसिद्धीया; अंतिः सियलंपि उत्तरेज्झयणे. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययनविषय व गाथासङ्ख्यासूचक गाथा का-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जे केइ भवसद्धीआ जीव; अंतिः महिमा वखाण्यो., पे.वि. संबद्ध-गा.१९. इस कृति का छज्जीवणीया अध्ययन नाम दीया है जो दशवैकालिक का चौथा अध्ययन है यह नाम कृतिविषय से संबंध नही रखती है. ९९५१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १६९८, जीर्ण, पृ. १५३-५२(१९,२७,५३ से ५६.५८ से ६२,६४ से ६५,६८ से ७६,८८,९९,१०१ से ११६,१२० से १२२,१२५,१२७,१४० से १४४,१४६ से १४७)=१०१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, त्रिपाठ-बीच के कुछ पत्र, पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, ५-६४३१-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः सकलार्थसिद्धिजननी; अंतिः९९५२. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५+१(१६)=१०६, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. स्थविरावली अपूर्ण., (२६४११, ५-६४३३-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि: अरीहन्तनि नमस्कार; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि: पुरिमचरिमाणकप्पो; अंति:९९५३. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. १२५०., (२६४११, ५४३२-४१). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे जम्बू एह; अंतिः जम्बुस्वामी आगे. ९९५४. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११०-२(८५ से ८६)=१०८, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ५-६४३०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः अथ श्रीपर्युषणपर्वणि; अंति:९९५५.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पीठिका नही है., (२६४११, २-१२४२९-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो; अंति:९९५७.” दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा.७००., संशोधित, पंचपाठ, (२६.५४११.५, ६-८x२२-२५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः भविआण विबोहणट्ठाए. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः धर्म उत्कृष्टमंगलं; अंतिः प्रतिबुझवानइ कारणइ. ९९५८. सिद्धहेमशब्दानुशासनवृत्ति-अष्टमाध्याय, संपूर्ण, वि. १५८५, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्ग, ले.- मु. जयमेरु (गुरु वा. जयसुन्दर), पठ.- मु. भूपति, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रं. २३०८, (२६.५४११.५, १३-१४४४१-४४). प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः अथ शब्द आनन्त; अंति: मुनि हेमचन्द्रः. ९९५९. आचाराङ्गसूत्र व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १५९५, श्रेष्ठ, पृ. ८८, पे. २, जैदेना., प्र.वि. अंत में किसी आगम का पाठ मिलता है., (२६४११.५, १२-१३४३३-३८). पे.१. आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्माखामी, प्रा., प+ग, (पृ. १अ-८८अ), आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि., पे.वि. २५अध्ययन. पे.२. जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ८८अ-८८अ), आदिः#; अंति: #. ९९६०." निरियावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ कही कही लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ६-११४३०-३३). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२६अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति: मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० ते अवसरपणी काल०; अंतिः नामे सूत्र समाप्त., पे.वि. मूल-अध्याय १० अध्ययन. पे.-२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २६अ-२८अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे. कल्पावतंसिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे..३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. २८अ-५३आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५३आ-५६अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:#; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अध्ययन. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह टबार्थ, पृ. ५६अ-६३आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः वर्गना बार उद्देसा., पे.वि. मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ७७ ९९६१.” आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११.५, ५-६४३१-४१). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आचाराङ्ग शब्दना पद; अंतिः९९६२. समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ११९, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. मूल-१०३अध्ययन. प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८७७९., (२४.५४११.५, ६-८४३२-४०). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः कृतोयं टबार्थः. ९९६३. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. ११६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-सूत्र-१७५. इस प्रत मे टबार्थ का कर्ता का नाम नहीं है., (२४.५४१२, ७X४१-४६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्सावणीए णमो. राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेह भणी नमस्कार थाओ. ९९६४. पाण्डव चरित्र, पूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ९५-१(१)=९४, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-९ खंड, पू.वि. ढाल-१ की गा.८ तक नही है., (२४.५४१२, १५४३४-३९). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि:-; अंतिः जंपे संघ रंग वधामणो. ९९६५. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२४.५४१२, ७४३५ ३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः चेव दिवसेसु उद्दिसति. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः विषे उपदिसे साधु. ९९६७. जलयात्रा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२०४०७.५, ५४३२). जलयात्रा विधि, मागु.,सं., गद्य, आदिः श्रीजलयात्रा मधे; अंति:९९६९. सङ्घवीनहरकुंअरसेठाणी सङ्घ स्तवन, दोहा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. सङ्करकेवल भोजक, लिखवा.- श्रा. भाईचन्द वीरचन्द सेठ, (२२४१७, १३-१७४२५). पे-१. हरकुंअरसेठाणी सङ्घ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः विमलगीरि वीमल वसीसेर; __ अंतिः सङ्घवीने सुखसाता.,पे.वि. पृष्ठ- ५४२ ढाल-५. पे..२. दूहा, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः कुप पडत नदी घ्रह; अंति: गँउं पङ्खमें पवन., पे.वि. गा.२. पे.३. श्लोक, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदि: मेघानंच घटाघटा; अंतिः तोय सQव्य., पे.वि. गा.१. ९९७०.” सज्झाय सङ्ग्रह व शान्तिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, पे. १६, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से ___ अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२३.५४१०, ११-१५४३६-४०). पे:१. मेघकुमार सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदि: नवजवालण तेतले रे; अंतिः जिनहर्ष० आण्यो माग., पे.वि. गा.१०. पे..२. जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदि: राजग्रही नगरी वसे; अंतिः तास तणा गुण गाया रे., पे.वि. गा.१४. पे.३. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः लाछल दे मात मल्हार; अंतिः लीला लखमी घणी जी., पे.वि. गा.१७. पे.४. विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, कुसल, मागु., पद्य, (पृ. २आ-४अ), आदिः भरतक्षेत्रे रे समुद; अंतिः कुसल नितधरी अवतरे., पे.वि. ढाल-३, गा.२८. For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.५. भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७७१, (पृ. ४अ-६आ), आदिः स्वस्ति श्रीवरवा; अंतिः गाता रामविजय श्रीवरे., पे.वि. ढाल-४. पे.-६. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः वीर कहे गौतम सुणो; अंतिः देखीए भाखे वयण रसाल., पे.वि. गा.२१. पे.-७. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः काकरडी मत नांख रे; अंतिः ___महावर्त भाजससे रे., पे.वि. गा.१३. पे..८. रथनेमि सज्झाय, मु. हीरमुनि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदि: संयम लेवा सञ्चरी; अंतिः हीरमुनि हो जिण जोडी., पे.वि. गा.१०. पे..९. पञ्चपाण्डव सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः हस्तीनापुर नगर भलो; अंति: मन मोह्यो रे., पे.वि. गा.१८. पे..१०. धन्नाऋषि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः सरसति सामिनि वीनवू; अंतिः साधुनुं मुजने सरण., पे.वि. गा.१५. पे..११. स्थनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय , मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदि: राजुल घरथी नी सरीरे; अंतिः ___ गई रे सुख बोले आवास., पे.वि. गा.११. पे.१२. जम्बूस्वामी सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः सरस्वती स्वामीने; अंतिः जम्बूनामे जयजयकार., पे.वि. गा.१०. पे.१३. नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः साधुजी न जइए रे; अंतिः परघर गमण निवार., पे.वि. गा.१०. पे.-१४. देवानन्दा सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः जिनवर रूप देखी; अंतिः पूछे उलट मनमा आणी., पे.वि. गा.११. पे.-१५. भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः राजतणा अति लोभीया; अंतिः समयसुन्दर गुण गायारे., पे.वि. गा.७. पे.-१६. शान्तिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः शान्ति जिनेश्वर; अंतिः रायनोरे ___ मोहन जयजयकार., पे.वि. गा.७. ९९७२. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. हापग्रामे, ले.- पं. नयविजय, प्र.वि. ढाल ४७, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा; (५८०) जां ध्रु सायर चन्द्र रवि; (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे, (२५४१०.५, १२-१३४३५-४०). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि: ऋषभजिणन्द चरणाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. ९९७४. गीतचौवीसी, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गीत-२४ की गा.२ तक है., (२५४११.५, १०-११४३४-३८). गीतचौवीसी, मु. आनन्द, मागु., पद्य, आदिः आदि जिणन्द मया करो; अंति:९९७५.” पञ्चाख्यान रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा परिमाण १०६३ तक है., (२५.५४११, १७-१८४३४-४५). पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुन्दरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६२२, आदिः आदिस्वर आदिजिन; अंति:९९७६. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन-२३ तक हैं., (२५४११, १४ १५४३५). स्तवनचौवीसी, मु. दीपसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः ऋषभजी साहिब साम्भलो; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ९९७७. जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१ से ३३ तक है., (२४x१०.५, ४-५४३४). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तीन भुवन माहे दिवा; अंति:९९७८. स्नात्रपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(४)=५, जैदेना., ले.स्थल. प्रतापगढ, ले.- पं. सुमतिसुन्दर, प्र.वि. गा.५७, (२४.५४११.५, ९-११४३७-४५). स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः पूर्वदिशा तथा उत्तर; अंतिः सङ्घ सकल आणन्द. ९९७९." उपधान विधि एवं व्रतोच्चारण विधि आलापकयुक्त, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., (२६४११, ११४३५-३८). पे..१. उपधानतप विधि, प्रा.,सं., गद्य, (पृ. १आ-८अ), आदिः प्रथमः द्वितीयोपधान; अंतिः भृतां मालेवमालाभितः. पे.२. व्रतोच्चारण विधि आलापकयुक्त, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. ८अ-११अ), आदिः प्रथमा नालिकेरादि; अंतिः हरामि वार ३ उच्चारः. ९९८०. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन., (२४.५४१२, ७४३३-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर; अंतिः तुज प्रते कहु छु. ९९८१. वीरनिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना.,प्र.वि. गा.१२५, (२६४१२, ८x२२-२५). महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रमणसङ्घतिलकोपमं; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे. ९९८२.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-९२. ग्रं. ग्रं. ३५००, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३४४८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ कालइ चउथा; अंतिः माहर मत थकी कहतो. ९९८३. अनुत्तरोववाइदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-३३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२.५, ७४३२-३७). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आठमां अन्तगडदशाङ्गने; अंतिः धर्मकथानी परे जाणवा. ९९८५. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., (२५४१२.५, ३-६४३४-४१). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंति: ए परोक्ष श्रुतज्ञान. ९९८६. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले.- श्रा. हरगोवन रामजी, प्र.वि. श्लो.४४, (२५४१२, ९ १०x२५-३०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. ९९८७. चौमासी देववन्दन, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-६(८ से ९,१३,१६ से १८)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के ___ पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२.५, ११४२५-२९). चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमलकेवलज्ञान कमला; अंति:९९८८. अम्बडकथानक व भावितीर्थकरजीव, संपूर्ण, वि. १७०३, मध्यम, पृ. ३२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. इलदुर्ग, For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२५४१०.५, १५-१७४३६-४४). पे.१. अम्बड चरित्र, आ. मुनिरत्नसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-३२आ), आदिः धर्मात् सम्पद्यते; अंतिः सद्वाच्यमानं बुधैः., पे.वि. ७ आदेश. पे.२. भावितीर्थकरजीव श्लोकाः, सं., पद्य, (पृ. ३२आ-३२आ), आदिः अतःपरं पूर्ववच्च; अंतिः भद्रकृन्नामतीर्थकृत्., पे.वि. श्लो.१३. ९९९०. योगशास्त्र ३,४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११, १०४३३-३६). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:९९९१. वीसविहरमानजिन स्तवन व नाभिनन्दनविज्ञप्ति विचार, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, ११-१२४४१). पे.-१. विहरमान २० जिन रास, जैनकवि वस्तिग, मागु., पद्य, वि. १३६८, (पृ. १अ-३आ), आदिः विहरमाण तित्थयर ___पाय; अंतिः चउविह सङ्घ आणन्द., पे.वि. गा.३९. पे..२. आदिजिन स्तवन-देउलामण्डन-विज्ञप्तिविचारगर्भित, गणि विजयतिलक, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदिः पहिलु पणमिअ देव; अंतिः विजयतिलक निरंजणो., पे.वि. गा.२१. ९९९२." श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.- वा. केसरविजय, प्र.वि. ढाल-४०; प्र.पु.-आधारित-ग्रं. ११३१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४११, १५-१८४४१-५५). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, आधारित, मागु., पद्य, वि. १७२६, आदिः सकल सुरासुर; अंतिः सहुं चित चङ्ग रे. ९९९३.” मानतुङ्गमानवती रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. २, जैदेना., ले.- गणि रामचन्द्र, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७४११.५, १६४३८-४७). पे.१. मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (पृ. १अ-२९आ), आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंति: घरघर मङ्गलमाल हे., पे.वि. ढाल-४७, गा.१०००. पे..२. श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २९आ), आदिः#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.१. ९९९४. शत्रुञ्जयउद्धार स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. विजापुरे, ले.- पं. राजविजय, पठ.- दयाल दोसी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१२३, (२६४११.५, ११४३३). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरिशन जयकरो. ९९९५.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, त्रुटक, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ३७४-३२४(१ से १११,१२१,१३०,१३४ से १३७,१३९,१४३ से १४४,१४६ से १६३,१६५ से १७६,१७८ से १८४,१८६ से १८९,१९३ से ३१९,३२२ से ३२३,३२५ से ३४१,३४४,३४६ से ३४८,३५० से ३५२,३५५ से ३५६,३५९से ३६४,३६६,३७३)=५०, जैदेना., ले.स्थल. भीनमाल, ले.- ऋ. भीमराज (गुरु ऋ. हंसराज),प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, ६४३७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः-; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः९९९६. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१६)=२९, जैदेना.,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, ४-७४२४-३७). तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः कारणं लहिइ शिव सुखं. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः अथ ग्रन्थकर्ता कहइछइ; अंतिः मुक्ति पहोचें ए भाव. ९९९७. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ (२५.५४१२, ६-१९४४८-५२). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से त्तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नन्दी कहतां आणन्दनो; अंतिः परोक्षज्ञानना भेद छइ. १०००१. जयविजयकुंवर प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. मालवण, ले.- मु. डुङ्गरविजय, प्र.वि. ढाल-३३, (२६.५४११, १५-१६४३७-४०). जयविजयकुंवर रास, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७३४, आदिः आदि आदि जिणेसरु पय; अंति: ए अधिकार सनेहि रे. १०००२. श्राद्धविधिप्रकरणवृत्ति - विधिकौमुदीनाम्नी, अपूर्ण, वि. १६३०, श्रेष्ठ, पृ. १३६-९२(१ से ९२)=४४, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, ले.- दासूपाण्डे, पठ.- गणि गलटकणि, प्र.वि. ६ प्रकाश, ग्रं.६८६१, (२६४११, १५४५५). श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि:-; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. १०००३." स्थुलिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. श्लो.६८६, (२८x१०.५, ११-१२४४४-५०). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदिः वीरोवर्यः श्रिये; अंतिः शुद्धशीलप्रसिद्धिम्. १०००५. अनुयोगद्वारसूत्र व पद, पूर्ण, वि. १६४१, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२ पे.-१. अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-३२अ, संपूर्ण), आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः साहू से तं नए. पे.२. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. ३२आ-३२आ, अपूर्ण), आदिः पल पल छाजे आवउखुं; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. १०००६. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. कालुपूर, प्र.वि. मूल श्लो.४४., (२७४११, १५४४२-५०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध + कथा* , मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीयुगादीश; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. १०००७." गगनधूलि कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. कटीनगर, प्र.वि. ग्रं. २५५, दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-, अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६.५४११, १५४४५-४७). गगनधूलि कथा, सं., गद्य, आदिः उज्जयन्यां विक्रमादि; अंतिः सुखीजतः धर्मं कृत्वा. १०००८. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७-२(१,४)=५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७४११.५, ११४३२-३७). प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.*, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि:-; अंति:१०००९. पाक्षिकसूत्र, खामणा व चैत्यवन्दन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना., (२६.५४११.५, ९४३४-३७). पे.-१. पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-१७अ), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.२.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १७अ-१८अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः इच्छामो अणुसटिं.,पे.वि. सूत्र-४ आलावा. पे..३. पे. नाम. सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दन सह बालावबोध, पृ. १८आ-१८आ सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., पद्य, आदिः सकलकुशलवल्ली; अंतिः श्रेयसे पार्श्वनाथः. सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १००१०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ- नमिप्रव्रज्या अध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., (२८.५४१२, ४४४१ For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ८२ www.kobatirth.org: ४४). -: उत्तराध्ययनसूत्र. मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदि: अंति:उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ' मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः १००११. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८-७ (२ से ८) -४१, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा. ११८ तक लिखा है., ( २६.५x१२, ९-१३X३५-४०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि:-; अंतिः लघुक्षेत्रसमास प्रकरण - बालावबोध पं. दयासिंह मागु, गद्य वि. १५२९, आदि अहं अर्हमिति: अंतिः नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि:-: अंति: नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: १००१२. नवतत्त्व सह टवार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २४-११(१ से ८, १३, १७ से १८ ) - १३, जैदेना, पू.वि. बीच बीच के पत्र है. गाथा २४ अपूर्ण से ९४ तक है., ( २७ ११.५, ३X३३-४०). (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००१४. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १३७, (२७X१२, ५X३०-३५). दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., पद्य, आदि उप्पायविगमधुवमयमसेस अंतिः सोहेयव्वो सुअधरेहिं. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उप्पन्नेवा सर्व अंतिः मन मैं ठामै जावे. १००१५. श्रावकना पाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले. - गणि फतेविजय, ( २८.५४१२, ११४३४-३८). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मागु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १००१७.” भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. श्लो. ४४, (२७११.५, ८x२७-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमीलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी.. १००१८. सुक्तावली, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. पु.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२९.५४१२.५, १५-१६४३४). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः १००१९. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय १० अध्ययन. प्र. ले. श्लो. (२८७) जलात् रक्षेत्र स्थलात् रक्षेत्; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा ; (१३५) जिहां द्रुसायर चंद रवि, ( २६.५x१२.५, ७X३३-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः धर्मरूपीओ मङ्गलिक; अंतिः शिष्य प्रति को. " १००२०. स्तवन, पद, गीत, गुहली व भासादि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-२ (१,८) = १३, पे. १९, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक बीच व अंत के पत्र नहीं हैं, ( २६४११, १०x२८-३३). F पे. १. साधारणजिन गुहंली, मागु., पद्य, (पृ. २अ - २आ, संपूर्ण), आदिः सजनी मोरी गुणशिल; अंतिः ते कांकरो परीहार रे., पे.वि. गा. ८. पे. २. नवपद गुंहली, मु. शुभविजय, मागु., पद्य, (पृ. २आ- ३अ, संपूर्ण), आदि: आतमरामी मुनिराजीया; अंतिः शुभविजय सुखकार, पे. वि. गा.१०. पे. ३. आदिजिन स्तवन, आ. हीररत्नसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदिः एसा जिन एशा जिन एशा; अंतिः करजोडी खरा दिल हे पे.वि. गा.६. For Private And Personal Use Only पे. ४. साधारणजिन गहुंली, मु. वीरविजय, मागु, पद्य, (प्र. ३आ-४अ संपूर्ण), आदि राजगृही वन खण्ड अंतिः वीर जिणन्द वधावे तो, पे.वि. गा.८. पे. ५. साधारणाजिन गहुंली, मु. वीरविजय, मागु, पद्य, (प्र. ४आ-५अ संपूर्ण), आदि: चतुरा चतुरि चालसूरे: अंतिः धरि Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ रे शुभवीर वधावे., पे.वि. गा.६. पे.-६.गुरुगुण गुंहली, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सुण साहेली जङ्गम; अंतिः शुभविर वचन हइडे भावे., पे.वि. गा.७. पे.७.४ शरणा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७अ, संपूर्ण), आदिः मुजने चार शरणा होजो; अंतिः पामीश भवनो पारोजी., पे.वि. अध्याय-४, गा.१२. पे.-८. सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ-, संपूर्ण), आदिः सेवज्यौ रे सामि; अंतिः रामविजय गुणगायरे लाल., पे.वि. गा.७. पे.९. साधारणजिन गहुंली, मागु., पद्य, (पृ. -९अ-९अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: गहुंली गेलि करे री., पे.वि. प्रथम पत्र ___नहीं है. गा.७. पे.-१०. सौधर्मगणधर गहुंली, मु. सोहव, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः चेलणा लावे गहुंली; अंतिः श्रीजिनशासन रीति., पे.वि. गा.७. पे.-११. जिनजन्माभिषेक स्तवन, पण्डित वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण), आदि: माताजी तुम धन धन; अंतिः भगती वशे भगवान., पे.वि. गा.११. पे.-१२. गौतमस्वामी गहुंली, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः राजगृही रळियामणि; अंतिः वजडोवो ___ मंगलतुर., पे.वि. गा.५. पे.-१३. गौतमस्वामी गहुंली, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः चरण करण गूण आगरो; अंतिः कीजे कोड जतन., पे.वि. गा.६. पे.-१४. महावीरजिन गहुंली, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु मारो भोग करम; अंतिः पाली कारज ___ सीधो रे., पे.वि. गा.७. पे.-१५. सुधर्मस्वामी गहुंली, मु. मोहन, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ, संपूर्ण), आदिः सोहम स्वामि समोसर्या; अंतिः मोहन मङ्गलामाल., पे.वि. गा.७. पे.-१६. सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मोहन, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः चउनाणि चोखे चित्त; अंतिः वालउ हरख उल्लास हो., पे.वि. गा.७. पे.-१७. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन , वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः डुंगर पोहलो रे डुंगर; अंतिः करज्यो मन उत्छाहे रे., पे.वि. गा.७. पे.-१८. रथनेमिराजिमती गीत, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ, संपूर्ण), आदिः रहनेमी राजुल दीयर; अंतिः दोयने गावशे रे., पे.वि. गा.१३. पे.-१९. औपदेशिक हरीयाळी, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ-, अपूर्ण), आदिः चेतन चेतो चतुर चबोला; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.८ तक है. १००२१. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-२(२ से ३)=६, जैदेना., ले.स्थल. नीमडी, ले.- वा. भीमराज, प्र.वि. २१ स्तवन, (२६.५४१२, १४-१६x४१). स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः जिणन्दा तारा नामथी; अंतिः होज्यो सदा सहाय. १००२२. अभिधानचिन्तामणी नाममाला- १,२ काण्ड, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., (२८.५४१३, १४४३५-३६). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१००२३." भाष्यत्रय सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-७(१ से ४,२०,२३ से २४)=२४, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ भाष्य., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. भाष्य-१ की गा.१५ से भाष्य-३ की गा.११ तक है., (२७.५४१३, ३४२७-३३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः-; अंति:भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १००२४. नेमिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४, गा.२४, (२९x१३, १०x२५-२८). __ नेमिजिन स्तवन, श्रा. रिषभ, मागु., पद्य, आदिः सरसती सामनी पाय; अंतिः थुण्यो नेमि जिणेसरू. १००२५.” कर्पूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. विजापुर, ले.- पं. रङ्गहेम, प्र.वि. श्लो.१७६, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२८x१३, ३-८४४१-४८). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रका . १००२६. महावीरजिन पञ्चकल्याणक स्तवन, अपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(२ से ४)=७, जैदेना., ले.स्थल. धोलेरा, ले. आ. नरसीराम, प्र.वि. ढाल-१२, (२५.५४१३.५, ९४२५-२८). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज , मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः सरसति भगवति दिओ मति; अंतिः कहे धन मुझ एह गुरू. १००२७. अजितशान्ति स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना.,प्र.वि. गा.४०, (२७४१३.५, ३४२८-३१). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. १००२८. अष्टमी स्तवन, २७ भव स्तवन व पञ्चमी स्तुति, अपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ११-३(४ से ६)=८, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- ऋ. बालगिर बावा, (२९x१३, १०-१२४२७-३१). पे.-१. अष्टमीतिथि स्तवन, पं. लावण्यसौभाग्य, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १आ-३आ-, संपूर्ण), आदि: पंचतिरथ प्रणमुं सदा; अंतिः रच्युं चे तारे रे., पे.वि. ढाल-४. पे.२. पे. नाम. वीरजिन २७ भववर्णन स्तवन, पृ. -७अ-११अ, संपूर्ण __ महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १९०१, आदिः श्रीशुभविजय सुगुरू; अंतिः सेवक वीर विजय जय करो., पे.वि. ढाल-५. पे..३. पे. नाम. पञ्चमी स्तुति, पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. १००२९. जिनप्रतिमामण्डन स्वाध्याय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-२(१ से २)=१३, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. बीच के पत्र है।, (२६४११.५, १-७४३३-३८). १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि:-; अंति: जिनप्रतिमामण्डन स्वाध्याय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:- अंतिः१००३०. चौवीसदण्डक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(१)=१२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२८x१३.५, १० ११४३०-३४). २४ दण्डक विचार, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१००३१. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह व स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ७, जैदेना., (२३.५४११.५, १४४३३). पे.-१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. १अ-७अ), आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः करी मिच्छामि दुक्कडं. पे.२. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंति: पुरो मनोरथ ____ माय., पे.वि. गा.४. पे.-३. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. पे.-४. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः संसारदावानलदाहनीरं; अंति: देवि ___ सारम्., पे.वि. श्लो.४. पे.५. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे.६. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे.७. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः आगे पूरव वार नीवाणु; अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी., पे.वि. गा.४. १००३२. चौमासी व अठाइ व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पे. २, जैदेना., ले.- कृष्ण देव, (२७.५४१३, १२४३४ ३७). पे..१. चातुर्मासिक व्याख्यान*, राज., गद्य, (पृ. १आ-२१आ), आदिः श्रीपार्वं सुख; अंतिः दुक्कडम् होज्यो. पे.२. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, (पृ. २१आ-३५अ), आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः वाञ्छित सिद्ध थाये. १००३४. चौदगुणस्थानक विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. बीच के पत्र है परंतु पत्रांक-१ से दिया गया है.,पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४१३.५, १४४३१-३२). १४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः१००३५." बृहच्छान्ति, पूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२८x१२.५, १० ११४२४-२९). बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति:१००३६. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. धोलेरा, ले.- मु. हजारीमल(कैवलागच्छ), प्र.वि. मूल-गा.५१., (२७.५४१३.५, ४४२१-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: केहवा करी भगवान; अंतिः जांणवाने अर्थे. १००३७." नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. धोलेराबंदरे, ले.- मु. हजारीमल(कैवलागच्छ), प्र.वि. मूल-गा.५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४ १३.५, ४४२०-२८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीव तो हूवो जीव; अंतिः काले अनन्तगुणा जाणवा. १००३८." पिस्तालीस आगम पूजा, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- मु. लक्ष्मीरत्न, पठ.- श्रा. जोइतादास, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२९x१४, १३-१५४३४). ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः सङ्घने तिलक कराओ रे. १००३९. चोवीसदण्डक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४०., (२६.५४१४.५, ४४२०-२४). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चउविस तीर्थङ्करो; अंतिः अर्थ लिखी छे. १००४०. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०३, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., (२७x१२.५, १७४४६ ४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदिः अर्हन्तो ज्ञानभाजः; अंतिः सुदीपिकेयम्. १००४१. भगवतीसूत्र लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२३, जैदेना.,ले.- गुमानीराम बोडा, प्र.वि. ग्रं. १२०००, For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२७.५४१३, १४४४१-४६). भगवतीसूत्र-लघुवृत्ति, आ. दानशेखरसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरं नमंसित्वा; अंतिः पञ्चविंशत्यधिकानीति. १००४२. ज्योतिषकरण्डकप्रकीर्णक टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८१+१(१३८)=१८२, जैदेना., (२७४१३, १२-१४४२९ ३६). ज्योतिष्करण्डकप्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः (१) स्पष्टं चराचरं विश्व (२) इह कायमनोभ्यामपीष्ट; अंतिः तेनाश्नुतां लोकः. १००४३.” पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ५३५, जैदेना., ले.स्थल. रणासण, ले.- पं. मयाविजय (गुरु गणि ऋद्धिविजय), प्र.वि. मूल-सर्ग-८, ग्रं. ६४००; टबार्थ-ग्रं. १२१४७. अंत में संक्षिप्त पार्श्वजिनचरित्र श्लोक मे दिया गया है., संशोधित, (२६४१२, ५-६४२४-२६). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदिः नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः सहस्राण्यनुष्टुभाम्. पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., गद्य, वि. १८००, आदिः प्रणिपत्य जिनान; अंतिः श्लोकमान कह्यो. १००४४. श्राद्धविधि प्रकरण की वृत्ति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९६-२(२७०,६२६)=६९४, जैदेना., प्र.वि. ६प्रकाश., (२७४१२.५, ५४३३-३४). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदि:-; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. श्राद्धविधि प्रकरण-विधिकौमुदि टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: श्रीअरिहन्त सिद्ध; अंतिः पामे परं मङ्गल होइ. १००४५. विशेषावश्यकभाष्य की लघुवृत्ति, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९८-११(३२१ से ३३१)+१(१६८)=३८८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १५७००. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दिया गया है., (२७४१२.५, १३४४१-४५). विशेषावश्यकभाष्य-टीका, आ. कोट्याचार्य, सं., गद्य, आदिः नतविबुधवधूनां कण्ठ; अंतिः प्रीतिमत्रैव तेन. १००४६.' विशेषावश्यकभाष्य की लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६.५४१३, १४४४३). विशेषावश्यकभाष्य-टीका, आ. कोट्याचार्य, सं., गद्य, आदि: नतविबुधवधूनां कण्ठ; अंतिः प्रीतिमत्रैव तेन. १००४७. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८५, देना.,प्र.वि. भाष्य-गा.२५३. मूल व नियुक्ति की अंतिम गाथा नही है., संशोधित, (२६.५४१२.५, १३४३८-४०). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः-; अंतिः विआणाहि समासेण. आवश्यकसूत्र-टीका# , आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः पान्तु वः पार्श्वनाथ; अंतिः कुन्थुजिनः सांप्रतमर. १००४८. पञ्चाशकसूत्र की लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १९४+१(१११)=१९५, जैदेना., ले.स्थल. जैसलमेर, ले.- ऋ. रतनचन्द(नागोरीलुङ्कागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४१३, १०x२६-३१). पंचाशक प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोभद्र, सं., गद्य, वि. ११२१, आदिः सर्वातिशय सम्पन्नमना; अंतिः (१)साधु प्रतिमा करणम् (२)बुद्धो हवउ निच्चो. १००४९. सम्यक्त्वसप्ततिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ३६१+१(११३)=३६२, जैदेना., ले.स्थल. पुष्करण, ले.- ऋ. रामप्रताप(लुम्पकगच्छे), प्र.वि. मूल-गा.७०; टीका-अध्याय-१२ अधिकार., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (६१९) मङ्गलं लेखकानां च, (२७४१३, ११-१२४३०-३५). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धि धुवं लहह. सम्यक्त्वसप्ततिका-टीका, आ. सङ्घतिलकसूरि, सं., प+ग, वि. १४२२, आदिः सच्चामीकरबन्धु; अंतिः (१)च भवन्तीति For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ गाथार्थः (२)कौमुदीद्योततां भुवि. १००५०. आवश्यकसूत्र की हरिभद्रीय टीका का टिप्पणक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४८२०, (२७४१२.५, १३४४०-४२). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पणक, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदि: जगत्रयमतिक्रम्य; अंतिः शेषतो मद्विधासुमताम्. १००५१.” समरादित्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १४७, जैदेना., ले.- जीवणराम ठाकुर,प्र.वि. श्लो.७७१, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७४१२.५, १३४३८-४७). समराइच्चकहा-सक्षेप समरादित्यचरित्र, आ. प्रद्युम्नसूरि, संक्षेप, सं., पद्य, वि. १३२४, आदिः चित्रभानुसुधाभानु; अंतिः सप्ताशीतिमनुष्टुतां. १००५२. अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २७४-२(७ से ८)+१(२३९)=२७३, जैदेना., पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२७४१२.५, १०-१३४३०-३३). अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः चेतः केवरा कौमुदि; अंति:१००५३." धनाशालिभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०३, जैदेना., प्र.वि. ९ पल्लव, संशोधित, (२७.५४१३.५, १३४३९). धन्यशालिभद्र चरित्र, उपा. ज्ञानसागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदं; अंतिः श्रीदानकल्पद्रुमः. १००५४." अष्टकसङ्ग्रह सह टीका, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०९-४(२५ से २८)=१०५, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है. मूल-अध्याय-३२अष्टक; टीका-ग्रं.३३७०. अंतमे विस्तृत प्रशस्ति दी गई है., संशोधित, त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१३, १-४४३५-३७). अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०; अंतिः धातुं न शक्यते. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदिः आविष्कृताशेषपदार्थ; अंतिः हरिभद्रसूरेरिति. १००५५. कुमारपाल रास, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३३+२(२०७,२०९)=२३५, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. गा.४५२३ तक है. रचना प्रशस्ति अपूर्ण है., (२८x१३, १२४३२-३६). कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७०, आदिः सकल सिद्ध सुपरि नमुं; अंति:१००५६." भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ७५२-८(१ से ५,११३,१४४,१४६)+१(१४३)=७४५, जैदेना., लिखवा.- श्रा. हीरालालजी कामाजी, प्र.वि. ४१शतक, संशोधित, (२७४१३, १४४२२-२३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः देउ अविग्घं लिहंतस्स. १००५७." शास्त्रवार्ता समुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ३७५, जैदेना.,ले.- फोजराज पुरोहित, प्र.वि. मूल श्लो.७०१., संशोधित, त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (२८.५४१४, १-१३४८-३७). शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः अधीयतां भक्तिरागः. शास्त्रवार्ता समुच्चय-स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनताय; अंतिः सर्वमवदाततरम्. १००५८. ज्ञानसार अष्टक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. १०६+१(६१)=१०७, जैदेना., ले.स्थल. मंबोई, ले.- परशुराम जोसी, प्र.वि. मूल-३२अष्टक., त्रिपाठ, (२८x१३, १-३४३३-३४). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: स्वीयं कृतं मङ्गलम्. ज्ञानसार-ज्ञानमञ्जरी टीका, गणि देवचन्द्र, सं., गद्य, वि. १७९६, आदिः पार्श्वेशं जिनं नत्व; अंतिः जैनधर्मोस्तु मङ्गलम्. १००५९." श्राद्धदिनकृत्य सूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१९+१(६०)=४२०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३४३., संशोधित, (२६.५४१३, १३४३७-३८). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: गोभिर्येन जगत्त्रये; अंतिः वृत्तिः कृतानन्दा. १००६०. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा १-७ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १९३९, मध्यम, पृ. ३३८, जैदेना., ले.स्थल. मुंबाइ, ले.- भवानीशङ्कर ब्राह्मण,प्र.वि. दीपविजय गणि द्वारा लिखित प्रति पर से यह प्रतिलिपि की गयी है. मुंबाइ शहर के गीरगाम(गोरेगांव) नामक विस्तार में श्री चंद्रेश्वर के देवल मध्ये यह प्रति लिखी गयी. पीठिका का कुछेक भाग संस्कृत में भी लिखा गया है., पू.वि. सप्तम व्याख्यान श्री ऋषभदेव चरित्र तक लिखा गया है., (२८x१३.५, ९४२९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः सर्वसिद्धिकरा देवी; अंतिः कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः श्रीकल्पः सहकार एष; अंति:१००६१. योगशास्त्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. ४१९, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- वंसीधर व्यास, प्र.वि. मूल-१२प्रकाश, श्लो.१०००. ग्रं. ग्रं. १२५७४, (२८.५४१४, १४४३३). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंतिः भव्यो जनो भवतात्. १००६२." तत्त्वार्थसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. २०१, जैदेना., ले.स्थल. जयपत्तन, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०, सूत्र १९८. अंत में मांगलिक श्लोक दिया है., संशोधित, (२८x१४, ११४३१). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-सर्वार्थसिद्धि-वृत्ति , आ. देवनन्दी, सं., गद्य, आदि: मोक्षमार्गस्य नेतारं; अंतिः नरामरगणार्चितपादपीठं. १००६३. तत्त्वार्थसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ३८५-३(२२०,२५७,२२९)+२(२१६,२२१)=३८४, जैदेना., ले.स्थल. जयपूर,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०, सूत्र-१९८., (२८x१४, ११४३१). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमारवाति, सं., प+ग, (संपूर्ण), आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-श्रुतसागरी टीका , आ. श्रुतसागरसूरि(दि.), सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धोमास्वामि पूज्य; अंतिः तत्वार्थ दशमोध्यायः. १००६४. नेमिजिन चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. २००, जैदेना., ले.- पं. महिमाविजय (गुरु गणि रुपविजय), प्र.वि. अध्याय-४ खंड, गा.५५०३, (२४.५४११.५, १४-१५४४२-५०). नेमिजिन रास, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८२०, आदिः उदधि सुता सुत; अंतिः होशे मङ्गलमाल रे. १००६६. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६९७, श्रेष्ठ, पृ. २८६-१(२८५)+१(९३)=२८६, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५५०० सर्वग्रं. १३९१०. शीतलनाथजी प्रसादात्, (२४.५४११, ७X४१-४५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः धर्मकथा संपूर्ण. १००६७." जम्बूद्विपप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५१-१९(८९,९६,१०३ से १०४,२२० से २२२,३९९ से ४००,४१९,४२१ से ४२४,४४० से ४४४)=४३२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ, पृ.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, ३-७४३२-३९). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति: जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंति:१००६८." पण्णवणासूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ५९९-१(३३९)+१(३३८)=५९९, जैदेना., ले.स्थल. मुमाईबिंदर, ले.- मु. अभयविजय (गुरु मु. जसविजय, तपागछ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-३६ पद., सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७., For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ६x४२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७८४, आदिः प्रणम्य पुण्यपदपद्म; अंतिः सुखी थका रहे छे. १००६९. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. २३२-१(२३१)=२३१, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, लिखवा.- श्रा. हलूक,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., (२५.५४११, ५४२७-३०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः पूर्वसंजोग मातापिता; अंतिः (१)जम्बू प्रतइं कहइं छइ (२)अर्थ कयुं छे. १००७०. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. ३०९+२(२३,१०९)=३११, जैदेना., ले.स्थल. वटपद्रनगर, ले.- मु. रामविजय (गुरु आ. विशालसोमसूरि, तपागच्छ), पठ.- पं. सिद्धसोम गणि (गुरु आ. विशालसोमसूरि),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५४८५; टबार्थ-ग्रं. १३५८१., (२६४११, ६x४७-४९). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, गणि रत्नजय, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सुधीभिः शोध्यं. १००७१. ऋषिमण्डलस्तोत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६७३, श्रेष्ठ, पृ. ४५८-४(२४६,२८८,३२५,१३१)+१(१४३)=४५५, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, पठ.- पण्डित जीवविजय, ले.- मु. लालाजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.२०९., प्र.ले.श्लो. (६२५) जलात् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (२६४११, १३४४४). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, (संपूर्ण), आदि: भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टीका , गणि शुभवर्धन, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः योभूद्युगादौशिवशुद्ध; अंतिः वृषभन्दूपमाचार्यं च. १००७२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रवृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. २०२, जैदेना., ले.स्थल. उमयापुर, ले.- मु. मयाविजय (गुरु गणि ऋद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. २७००. सर्वग्रं. ७५९३., प्र.ले.श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६२१) भग्नपृष्टि कटीग्रीवा, (२५.५४१२, ७४३०-३१). श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, वि. १७६१, आदिः बालानां सुहितार्थाय०; अंतिः विधि कहिउ छे. १००७३." भरतेश्वरबाहुबलीवृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ६४८, जैदेना., ले.स्थल. गोघाबिंदरे, ले.- गणि धनविजय (गुरु गणि देवविजय, तपागच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टीका-२ अधिकार., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६२३) भग्नपृष्ट कटी ग्रीवा, (२५.५४१२, ७X३९-४१). भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., गद्य, वि. १५०९, आदिः युगादौ व्यवहाराध्वा; अंतिः तमोर्हदादिसाक्षिकम्. भरहेसरबाहुबली-वृत्ति का टबार्थ, गणि हरिरूचि, मागु., गद्य, आदिः युगने आदे व्यवहार; अंतिः ते मिच्छामिदूक्कडं. १००७४. शान्तिनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८७+७(२७,१०९,१३५,१३५,१६७,३६८,३७५)=३९४, जैदेना., प्र.वि. मूल-६प्रस्ताव, ग्रं. ५०००. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. १००००; प्र.पु.-सर्वग्रं. १५०००., (२५.५४१२, ६४३२-३४). शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंतिः स करोतु शान्तिः. शान्तिनाथ चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मंगलिकरूप समुद्र; अंतिः अजितसुरिइ विरच्यो. १००७५." आचारदिनकर, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१७-५(५ से ९)=३१२, जैदेना., प्र.वि. ३६ उदय. ग्रं.नं. १५०००, संशोधित, (२६४१२, १७-१९४४४-४६). For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदिः तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंतिः महानन्दभृतो जयन्ति. १००७६." जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. २८७, जैदेना., ले.स्थल. कपडवंज, ले.- गणि रङ्गविजय; नागरदास पटेल, प्र.वि. मूल-१० प्रतिपत्ति, ग्रं. ४७५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. टबार्थ पत्र २७७ तक है., (२५.५४१२, ७-८४३५-४०). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः श्रीशान्तिनाथमानम्य; अंति:१००७७. कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१५, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., द्विपाठ, (२६४१२, १२ १३४३७-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. १००७८." चन्दराजा चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०१, जैदेना., प्र.वि. मूल-४ अधिकार. प्र.पु.-मूल-ग्रं. उभय१२७३६., संशोधित, (२६.५४११.५, ५४३३-३६). श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिनं; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) ॐकार सिद्धनो ध्यान (२) ध्यात्वा श्रीमन्; अंतिः ते चिरञ्जीव रहो सङ्घ. १००७९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९, जैदेना.,प्र.वि. पत्रांक-१,२ व १३९ ग्रंथ के उक्त पत्रांक अनुपलब्ध होने से पाठपूर्ति के लिये बाद में लिखकर पूरा किया है. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, (२७.५४१२, ५४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः नमो क० माहरो नमस्कार; अंतिः अध्ययन सम्पूर्ण थयउ. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा', मागु., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः पण क्रोध न राखवो. १००८०. कुमारपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४७-२३(१,३ से ४,७,९,१२०,१३४ से १३८,१४७ से १४८,२४२,२४६,२३६ से २४०,२३२ से २३४)=२२४, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच के पत्र हैं. गा.४४९० तक है., (२७४११.५, १३४३०-३३). कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७०, आदि:-; अंति:१००८१. शत्रुञ्जयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. ५५१, जैदेना., ले.- मु. जयसोम (गुरु मु. मोहनसोम), पठ.- मु. कस्तुरसोम, प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-सर्ग-१४, ग्रं. १००००., (२६४११.५, ७४४०-४२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः ग्रन्थ एषः. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीऋषभं; अंतिः दर्श सर्ग सम्पूर्णम्. १००८२. शान्तिजिन रास, पूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. २४२-४(८० से ८३)=२३८, जैदेना., ले.स्थल. जंबुशरनगरे, ले.- गणि खुशालविजय (गुरु गणि प्रीतविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-६, (२६.५४१२, १४४४६). शान्तिजिन रास, मु. रामविजय, मागु., पद्य, वि. १७८५, आदिः सकलश्रेयवरदायिनी; अंतिः आणन्द अधिक उपाया. १००८३. समरादित्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १९१५, जीर्ण, पृ. ३१३, जैदेना., ले.स्थल. मांडवी बिंदर, प्र.वि. ९ भव, (२६.५४१२, १४४३६-३८). समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गद्य, आदिः पणमह विजिअसुदुज्जय; अंतिः चरिउ दिसउ सिवसोक्खं. १००८४. सम्यक्त्व प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ३२९, जैदेना., ले.- ऋ. रत्नचन्द(नागोरीलुङ्कागच्छ), प्र.वि. मूल-अध्याय-५., (२८x१२.५, १३४३२-३६). For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चन्द्रप्रभसूरि प्रा. पद्य आदि पत्तभवण्णवतीरं दुहदव; अंति: सिवसुहं सासयं झत्ति. , " " दर्शनशुद्धि प्रकरण-वृत्ति, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७७, आदिः यद्वक्त्रांभोजपवाप्य; अंतिः प्रकरणवृतितरिति १००८५. राम चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ३७०, जैदेना., ले. स्थल. सूरत, ले.- पं. दीपविजय गणि, हिस्सा - सर्ग- १०, ग्रं. ४०३२ टबार्थ ग्रं. १००१६. मू+टबा. ग्रं. ग्रं. १४०४८ (२८.५५१२.५, ५०४०). प्र.वि. www.kobatirth.org: रामचन्द्र चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अथ श्रीसुव्रतस्वामी; अंतिः प्रपेदे पदम्. रामचन्द्र चरित्र- टवार्थ, मु. महानन्द, मागु, गद्य, आदि: नत्वा श्रीमज्जिनान् अंतिः पद प्रतें पाम्या. १००८६." चन्द्रप्रभु चरित्र सह टवार्थ पूर्ण वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ४२७-२(६७*, ३६२) = ४२५ जैदेना ले. स्थल महिमदविंदर, ले. - पं. हंसविजय (तपागछ), पठ. - मु. अभयविजय (गुरु मु. जसविजय, तपागछ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२९.५४१२.५, ६४३३-३४) " ' Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चन्द्रप्रभ चरित्र, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२६४, आदि: दृष्टोपि हष्टजनलोच; अंतिः व्यतीतेषु नवस्वभूत्. चन्द्रप्रभ चरित्र-टबार्थ, पं. रुपविजयजी मागु., गद्य, वि. १८९०, आदिः वन्दे श्रीमत्पार्श्व; अंतिः स्वामी मोक्षे गया. १००८७. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य ( कल्पान्तर्वाच्यानि) संपूर्ण वि. १९४१ श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैवेना. ले. स्थल राजनगर, ले. मु. मोतीविजय (गुरु मु. जसविजय), गच्छा. आ. जिनहंससूरि (गुरु गच्छाधिपति रत्नशेखरसूरि ), प्र.ले.पु. मध्यम, " प्र.ले. श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (२८.५x१३.५, १६४३८-४१). कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, आदि: कल्याणानि समुल्लसन्त: अंतिः श्रीसङ्घभट्टारक. " " १००८९. स्तोत्र सङ्ग्रह, पञ्चमेरू पूजा, निर्वाणकाण्ड व निर्वाणकाण्डभाषा, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ७ जैदेना.. प्र. वि. ग्रं. ग्रं. २२५, (२८x१३.५, ११४३३-३६). पे. १. प्रार्थना स्तुति *, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः दर्शनं देवदेवस्य; अंतिः जिनेंद्र० तवदर्शनात्., पे.वि. श्लो. १४. पे.-२. पार्श्वजिन स्तोत्र-लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः लक्ष्मीर्महस्तुल्य; अंतिः स्तोत्रं जगन्मङ्गलम् पे. वि. श्लो. ९. प ९१ पे. ३. लघुस्वयम्भू स्तोत्र, सं., पय, (पृ. २आ-४अ) आदिः येन स्वयं बोधमयेन: अंतिः स्वर्गापवर्गास्थिते पे.वि. श्लो. २५. " पे. ४. पञ्चमेस पूजा मागु., सं., गद्य (प्र. ४अ - ४आ), आदि: संवीषडाहूय निवेश्य अंतिः चन्दन घसावै जिनजी के. " " पे. ५. एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि सं., पद्य, ईस. ११वी (पृ. ४आ-६आ), आदि एकीभावं गत इव मया अंतिः वादिराज मनुभव्य सहाय., पे.वि. श्लो. २६. पे.-६. निर्वाणकाण्ड, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ - ९अ ), आदि: अद्वावय मिउसहो चम्पा ; अंति: गुणसंपत्ति होउ मज्झ., पे.वि. " गा. ४७; अनुवाद-गा. २२. पे. ७. निर्वाणकाण्ड भाषा मैया, प्राहिं, पद्य वि. १७४१ (पृ. ९आ- १०आ), आदि: वीतराग वन्दों सदा अंतिः निर्वाणकाण्ड गुणमाल., पे.वि. गा.२२. १००९०." अनुप्रेक्षाप्रकाश व अपराजित मन्त्रस्तव, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे. २, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, (२८४१३.५. " " ९-११x२९-३७). पे. १. द्वादशानुप्रेक्षा, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदि: णमिऊण सव्वसिद्धेः अंतिः सो पावइ परमणिवाणं, पे. वि. एलो. ८५. For Private And Personal Use Only पे:-२. अपराजित मन्त्रस्तव, आ. उमास्वामि, सं., पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदि: विश्लिष्यन् धनकर्म; अंतिः यदिह शुभरुपो न भवति, पे.वि. श्लो. १०. १००९१ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. अध्याय १०, सूत्र -१९८ (२८४१३.५, ११४३७-३९). .. .. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः. १००९२. ध्वजारोहण विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, (२७.५४१४, ११४३९-४४). Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ ध्वजारोहण विधि, मागु., प्रा.सं., गद्य, आदिः तिहां प्रथम भुमी; अंतिः वान्यमय प्रोक्त. १००९३. नवग्रह पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, (२७x१४.५, ११x४५). नवग्रह पूजा, सं., प्रा., मागु, प+ग, आदि हवै स्नात्रना दिवसथी अंतिः ए गाथा भणी मुकीइ. १००९४. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., (२९x१४, ४x२५-३७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः जैनं जयति शासनं आवक प्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि अरिहन्त विहरमाण अंतिः मांहि उत्कृष्टो छे. १००९५. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ( २८.५४१४, १५X३८-३९). ; नवपद पूजा, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३८, आदिः श्रुतदायक श्रुतदेवता; अंतिः पद्मविजय गुण गायो .. १००९६. अष्टापदगिरिराज पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. ढाल - २४, (२९×१३.५, १२×३७). अष्टापदतीर्थ पूजा, मु. पद्मसागर, मागु पद्य वि. १९४९, आदि (१) प्रथम पीठ त्रिको (२) शंखेश्वर जिन नमी: अंतिः जग जस पडह वजायो रे. " www.kobatirth.org: १००९७. दण्डकविचार व नवतत्त्व भेद संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २ जैदेना. ले. मु. वल्लभविजय, (२७०४१३.५. - , , ११x२७-३१). पे.-१. २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १आ - १७अ ), आदि: प्रथम नामद्वार बीजु: अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका. पे. २. नवतत्त्व २७६ भेद, मागु, गद्य (५. १७आ १७आ), आदि: #; अंतिः #. १००९८. भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९०३ श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना. प्र. वि. मूल-३ भाष्य गा. १४५. त्रिपाठ (२७.५४१४.५ १-१२×३३-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनुतं; अंतिः सूत्रमिति मङ्गलं. १००९९. उपदेशपद सह छाया, संपूर्ण वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ९१ देना, ले. स्थल प्रोढी, ले. ॠ रामप्रताप, प्र. वि. मूल गा.१०४१. संस्कृत छाया गाथा १० तक है, (२८४१४, ६४३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उपदेशपद, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण महाभागं तिलोग; अंतिः भवविरहं इच्छमाणेणं. उपदेशपद - छाया, सं., गद्य (अपूर्ण) आदि नत्वा महाभागं अंतिः " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१०० नन्द्यावर्तपूजा विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण प्रारम्भिक पूजा पश्चात् मुख्य पूजा के पहले श्लोक तक है., ( २७.५x१४, ११x४४). नन्द्यावर्त्तपूजा विधि, सं. गद्य, आदि (१) परमेष्टि मुद्रां (२) कल्याणवल्लीकन्दाय: अंति:१०१०१. शान्तिस्नात्र विधि, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. (२७.५४१४, ११४४४). शान्तिस्नात्र विधि, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं., मागु., पद्य, आदिः अथ प्रतिष्ठायां वा; अंतिः पोतापोताना कहेवा.. १०१०२. अनेकान्तजयपताका वृत्तिटिप्पणक, संपूर्ण, वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ७०, देना., ले. अमोलकचन्द्र व्यास, - (२८x१३.५, · " १०x४२). · अनेकान्तजयपताका टीका, आ. मुनिचन्द्रसूरि सं., गद्य वि. १२वी आदि शेषमतिमतिशयाना यस्या: अंतिः (१) हितं तद्युतत्वेनेति (२)वृत्तिटिप्पणकं इति.. १०१०३.” अध्यात्मतरङ्गणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४१ श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. प्र. वि. मूल श्लो.४०. ग्रं. ग्रं. ५२५, संशोधित, · For Private And Personal Use Only (२८४१४, ११३१-३५). अध्यात्मतरङ्गिणी, मु. सोमदेव, सं., पद्य, आदिः मा स्माधस्ताद्चरित्र; अंतिः सोमदेवाश्च साक्षात्. अध्यात्मतरङ्गिणी-टीका, मु. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, आदि: (१) सदेव वो युष्मभ्यं (२) परम पूज्य जिनराज ; अंतिः Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ साधर्म्य० चोपमालंकार. १०१०४.” त्रीसचौवीसी नामावली स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. गा. १३८, ग्रं. १६८, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२८x१४, १०X३६-४१ ) . त्रीसचौवीसी नामावली स्तोत्र, सं., पद्य, आदि: नत्वा सिद्धसमूहं च; अंतिः भरतेषु च नामवद्धं. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१०५. शान्तिनाथ रास, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. कास्मीरपुर, ले. श्रा. ललुभाई शेठ, ( २८x१४, १६- २०x४५-४६). पे. १. शान्तिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य वि. १७२० ( १अ ४५आ) आदि सकल सुख सम्पतिकरण; ढाल - ६६, गा. १४२८. अंतिः शांतिसर स्वामि गायों, पे.वि. पे. २. जैन गाथा मागु पद्य (पृ. ४५ ४५आ), आदि # अंतिः #. १०१०६. सन्तिकरं स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. १४ प्र.पु. मूल ग्रं. १८०, त्रिपाठ , (२८x१३.५, १-२X४५-५०). सन्तिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सन्तिकरं सन्तिजिणं; अंतिः सिद्धी भणइ सिसो. सन्तिकरं स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः मुनिसुन्दरसूरिप्रणित; अंतिः विरोध उद्भावनीय . १०१०७. धुरताख्यान का बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. पं. लक्ष्मीकुशल, (२९x१३.५, १७-१८x२९). धूर्ताख्यान- बालावबोध, मागु, गद्य, आदिः श्रीमालवदेशे उजेणी अंति: मिथ्यात्वी जाणवो. ९३ १०१०८. सिद्धिप्रिया स्तोत्र, भूपालचौवीसी व नवस्मरण स्तोत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. सर्वग्रं. १५१., (२८x१३, १०X३७-३९). पे.-१. पे. नाम. लघुस्वयम्भू सिद्धिप्रियै स्तोत्र, पृ. १आ-३आ, संपूर्ण सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनन्दी, सं., पद्य, ईस. ६वी आदि सिद्धिप्रियैः; अंतिः रञ्जयति त्रिसन्ध्यम्, पे. वि. श्लो. २६. पे:- २. पे. नाम. भूपालचतुर्विंशतिका, पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण २४ जिन स्तवन, श्र. भूपाल, सं., पद्य, आदि: श्रीलीलायतनं महीकुल अंति भूयात्पुनर्द्दर्शनं ये. वि. गा.२५. पे. ३. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, (पृ. ६अ आ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ अति:-, " पे.वि. नवकार, उवसग्गहरं, संतिकरं व तिजयपहुत्त स्तोत्र ये चार स्मरण है. १०१०९. स्तवचोवीसी सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना. प्र. वि. मूल २४ स्तवन. त्रिपाठ, (२८.५४१३-५, " " " २-५X४७-५२). जिनस्तवचौवीसी, मु. समन्तभद्रस्वामि, सं., पद्य, आदि स्वयंभुवा भूतहितेन; अंतिः समंतभद्रं सकलं. स्तवचौवीसी - अवचूरि, सं., गद्य, आदिः स्वयं परोपदेशमन्तरेण; अंतिः भक्त्यवतं सकलं. For Private And Personal Use Only १०११०. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.६३., (२८.५x१३.५, १५४४५ ४८). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि सावज्ज जोग विरई अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः चतुःशरणविषमपदविचरणं; अंतिः ध्याये० शेषं पूर्ववत्. १०१११.” जिनसहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९४१, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- बाछुराम व्यास, प्र. वि. श्लो. १६६ ग्रं. ग्रं. १७५, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२८x१३.५, ११४३५-३८). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेनाचार्य, सं., पद्य, आदि स्वयम्भुवे नमस्तुभ्य: अंतिः प्रादुरासन् सतक्रतो. १०११२. नन्दीसूत्र की हारिभद्रिय ववृत्ति, संपूर्ण वि. १९४२ श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना. ले. स्थल जैसलमेर, ले. ऋ. रत्नचन्द (नागोरीलुङ्कागच्छ), प्र. वि. ग्रं. २३३६, (२८४१३-५, १३४३०-३२) - Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९४ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नन्दीसूत्र - टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि: जयति भुवनैकभानुः अंतिः परोक्षमिति निगमनमेव. १०११३. कर्मग्रन्थ-३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. कपडवंज, प्र. वि. मूल-गा. २४., पू. वि. टबार्थ गा. १९ तक लिखा है., (२७.५X१४.५, ४X३१-३४). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, (संपूर्ण), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ *, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः कर्म बन्धना प्रकारथी; अंतिः १०११४. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १९३३ श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना. ले. स्थल कपडवंज, पठ. मु. हंस ( गुरु मु. राज), प्र. वि. मूल-गा. ९३., (२७.५x१४.५, १७-१८×३५-३७). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु गद्य, आदि ए गाथाने विष प्यार अंतिः उणी नेउ गाथा जाणवी. १०११५. पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ११, गा. १४०, ग्रं. २१०, ( २८.५१४, १५४३७). पंचकल्याणक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः अमरनिकर नित जेहना; अंतिः रुपविजय गुण गाया रे. १०११६. बृहच्छान्ति, लघुशान्ति व अजितशान्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले. - पं. अमृतविजय, (२८४१४.५, १३-१५४४१-४३). पे.-१. बृहत्शान्ति स्तोत्र- तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. १अ - २अ ), आदि: भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २अ-२आ) आदि शान्ति शान्ति: अंति जैनं जयति शासनम् .. पे.वि. श्लो. १७+२. पे-३. अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ - ५आ), आदि: अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा. ४१. १०११७. महावीरजिन स्तवन व सज्झाय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. कपडवंज, ले. गणि रङ्गविजय, (२७४१५, २३-२४४१८-२० ). पे. १. महावीर जिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्मित उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, वि. १७३३. (g. १आ-१०अ), आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंति: गरुआणा शिर बहेरोजी., पे. वि. ढाल - ६. पे. २. सम्यक्त्व सडसठवोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १०अ १५अ), आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंतिः वाचक जस इम बोले रे, पे.वि. अनुवाद- गा.६९. पे. ३. २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय राज्झाय आ. लक्ष्मीरत्नसूरि मागु, पद्य, (पृ. १५अ - १५आ), आदि जिनशासन रे सूधी अंति: प्राणी ते शिवसुख लहे., पे.वि. गा.१०. , पे. ४. ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु पद्य (पृ. १५आ - १६ अ) आदि शुभ गुरु चरणे नामि: अंतिः सरगे गई सुलसा रेवती, पं.वि. गा. ९. For Private And Personal Use Only १०११८. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, अपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ९-१( ४ ) -८, जैदेना. ले. स्थल. आतरसुंबा, ले. श्रा सखीदास दोसी, (२८४१४.५. १४४३५-३७). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन आ. लक्ष्मीसूरि मागु, पद्य, आदि प्रथम बाजठ उपरि तथा अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १०११९. पिस्तालीस आगम पूजा, संपूर्ण वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. नागरदास पटेल, प्र. वि. गा. १७५, (२८.५X१४.५, १५X३७-३९). ८ प्रकारी पूजा- पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदिः श्रीशङ्खेश्वर पासजी ; अंतिः सङ्घने तिलक कराओ रे . Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०१२०. कर्मग्रन्थ-१ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.- मु. राजविजय, पठ.- मु. हंस (गुरु मु. राज), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६०., (२७.५४१४.५, ३-१८४२२-३६). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ+बावावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंतिः देवेन्द्रसूरीए लख्यो. १०१२१. कर्मग्रन्थ-२ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. कपडवंज, ले.- मु. राजविजय, प्र.वि. मूल गा.३४., (२७.५४१४.५, ४४३१-३३). कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तह कहता तिम हवे बिजा; अंतिः करो ते महावीर प्रते. १०१२२. जयानन्दकेवली रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. चतुर्थ खंड ढाल-१६ की गा.५ तक लिखा है., (२८.५४१३.५, १७४३८-५०). जयानन्दकेवली रास, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८५८, आदिः प्रथम प्रथम प्रणमुं; अंति:१०१२३. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-८, (२८x१३, ११४३९-४१). स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र मझार. १०१२४.” नयचक्र सामान्यवचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२८.५४१३.५, १४-१५४४८-५६). नयचक्र-भाषावचनिका, श्रा. हेमराज शाह, प्राहिं., गद्य, वि. १७२६, आदिः वन्दौ श्रीजिनकै वचन; अंतिः कीनो वचन विलास. १०१२५. वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. कपडवंज, ले.- नागरदास पटेल, प्र.वि. ढाल-२०, (२७४१३, १३४३४-३७). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. १०१२६. वीसस्थानक स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२०, (२८x१३, १२४३६-३८). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः सयल सङ्घ मङ्गल करो. १०१२७. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, प्र. ९, जैदेना., ले.- श्रा. ललु दोसी, पठ.- श्रा. दोलत मोतीचन्द गान्धी,प्र.वि. मूल-गा.५१., (२६ १३.५, ५४२६-२७). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रण भुवनने विषे; अंतिः घणा दिवस जयवन्ता थाओ. १०१२८. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.- मु. रामविजय (गुरु आ. विशालसोमसूरि, तपागच्छ), प्र.वि. ढाल-४७, (२८.५४१३, १६x४०-४६). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. १०१२९. नवतत्त्व, वीरजिन व पिस्तालीसआगम स्तवन, अपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(५ से ६)=९, पे. ३, जैदेना., (२७४१३, १२-१३४२५-२७). पे.-१. नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., पद्य, वि. १८७२, (पृ. १अ-१०अ, अपूर्ण), आदिः सरस्वतीनें प्रणमुं; अंतिः विवेक लहे आणन्द ए., पे.वि. बीच के पत्र नहीं है. पे:२. महावीरजिन स्तवन, श्रीपति, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः सुख मटके अटके मारु; अंतिः श्रीपति ने सिव के., पे.वि. गा.७. For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३.४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः भवि तुमे वन्दो रे ए; अंतिः शिवलक्ष्मी धेर आणो., पे.वि. गा.१३. १०१३०. वीरजिन निर्वाण स्तवन, पूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., प्र.वि. गा.१२५, पृ.वि. गा.१ से ७ तक नहीं है., (२७.५४१३, ११४३३-३६). महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे. १०१३१. योगदृष्टि समुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२२९., त्रिपाठ, (२७.५४१३, २-४-३७-३८). योगदृष्टि समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः नत्वेच्छायोगतोयोग; अंतिः विघ्नप्रशान्तये. योगदृष्टि समुच्चय-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः योगतन्त्रप्रत्यासन्; अंतिः प्रशान्त्यर्थमिति. १०१३२. नवपद स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१२३., पू.वि. गा.९ से १०० तक टबार्थ है., (२७.५४१३, ५४३५-३६). नवपद प्रकरण, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः अरिहाइनवपयाई झाइत्त; अंतिः सिरीपाल नरेस रुव्व. नवपद प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः१०१३३. जीवविचार सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. __गा.३५ तक है., (२७४१३, १२४३२-३६). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: जीवविचार प्रकरण-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः भुवण क० त्रिण भुवन; अंति:१०१३४. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सांदराइ, ले.- पं. गुमानविजय(आणन्दसूरिगच्छ), पठ.- साध्वीजी लक्ष्मीश्री, (२८.५४१२.५, १५४३९-४०). मौनएकादशीपर्व कथा, मागु., गद्य, आदिः महावीरस्वामीने नम०; अंतिः प्रतिबोध पाम्म्या. १०१३५. तत्त्वार्थसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम अध्याय अपूर्ण तक है., (२८x१३, १४४४३-४४). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति, आ. अकलकदेव(दि.), सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सर्वविज्ञान; अंतिः१०१३६. वैराग्यशतक सह सर्वार्थसिद्धिमणिमाल भाषाटीका, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., पू.वि. पूर्णता गाथा २५ व भाषाटीका प्रथम प्रकाश तक है., (२७४१३, ९४३६-४१). वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., पद्य, आदिः दिक्कालाद्यनवच्छिन्न; अंति: वैराग्यशतक-सर्वार्थसिद्धिमणिमाला भाषाटीका, आ. जिनसमुद्रसूरि, प्राहिं., गद्य, आदिः नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः१०१३७. प्रतिष्ठा विधि, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८.५४१३, १६-१७४३७-३८). प्रतिष्ठा विधि, सं.,मागु., गद्य, आदि: पूर्वोक्त शुभ दिवसे; अंति:१०१३८. आत्मानुशासन सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ११, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पूर्णता गाथा ४८ तक है., प्र.ले.श्लो. (६२४) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे, (२७.५४१३, २-४४३८-४०). आत्मानुशासन, आ. गुणभद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः लक्ष्मी निवास निलयं; अंति: आत्मानुशासन-टीका, पं. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, आदिः वीरं प्रणम्य भववारि; अंति:१०१३९. कल्पसूत्र सह अन्तर्वाच्य- स्थविरावली, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. मुंबोई, ले.- परसराम जोसी, (२७.५४१३, १४४४४-४७). कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: नवगणा इक्कारसगणहरा; अंति: For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०१४०. आरामशोभा कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. २६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७.५४१२.५, ११४३२-३३). आरामशोभा कथा, मागु., गद्य, आदिः एसो मङ्गल निलओ भय; अंति:१०१४१." गुणमाला सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., प्र.वि. ग्रं.ग्रं. २७००, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२८.५४१३, १४४३८-३९). गुणमाला, उपा. रामविजय, सं.,प्रा., गद्य, वि. १८१७, आदिः प्रत्यक्षी कृत्य; अंतिः इगवीसगुणो हवइ सड्ढो. गुणमाला-स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं., गद्य, वि. १८१७, आदिः स श्रीसिद्धार्थसूनुः; अंतिः तु जिनलाभसूरीन्द्राः. १०१४२. रत्नसञ्चय सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१(२८)+१(२९)=४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.५२०., (२८.५४१३, ६x४८-५०). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति: गाहा आगमे भणिया. रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहाविरने जिन; अंति: गाथा सङ्ग्रह करवो. १०१४३. हेमलघुप्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र.वि. प्रथम भाग में २१+२=२३ (२,५)कुल २३ पत्र और दूसरे भाग में ६०-४८=१२+१=१३ कुल ६० पत्र में से ४८ पत्र नहीं है. (-७,१०,१४ से ५७ तक) व १ पत्र अधिक है (+१) इस प्रकार दूसरे भाग में कुल १३ पत्र हैं. इस प्रकार भाग-१ व २ के कुल २३+१३=३६ पत्र हैं.. पू.वि. बीच बीच के पत्र हैं., (२९.५४१३.५, १५४४५-४९). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १७१०, आदि:-; अंति:१०१४४. विचारषट्त्रिंसिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मेंसाणा, ले.- तलजाराम बारोट, प्र.वि. मूल-गा.४३., (२९x१४, ३४३५-३७). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सुपार्श्व जिनं नत्वा; अंतिः पोताने हितनी कर धारी. १०१४५. जैनधर्मवर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.३ तक लिखा है., (२९.५४१४, १५४३८-४२). जैनधर्मवर संस्तवन, आ. भावप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमिमं; अंतिः जैनधर्मवर संस्तवन-स्वोपज्ञ टीका, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १७९१, आदिः नत्वा पार्श्वजिने; अंतिः१०१४६.” सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.८६. प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४१०., (३०.५४१४, ४४३२-३४). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीनइ मन वचन काया; अंतिः नायकनुं नाम जाणिवू. १०१४७. षष्टिशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. अवरंगाबादनगरे, प्र.वि. मूल-गा.१६२., (३१x१३.५, ३४४८-४९). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जिणंतु जन्तु सिवं. षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऐंद्रवृन्दाभिवन्द्या; अंतिः फल प्रार्थना जाणवी. १०१४८. सिद्धहेमचन्द्रानुशासनप्रक्रिया, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. २५००., (२९.५४१३.५, ११४४०-४१). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १७१०, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः प्रक्रिया जीयात्. १०१४९. प्रशमरति प्रकरण सह टीका, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०, श्लो.३१३. ग्रं.ग्रं. १८००, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. टीका की प्रशस्ति अपूर्ण है., (२९.५४१३.५, १२४४२-५०). For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नाभेयाद्याः; अंतिः साधनमर्हच्छासनं जयति. प्रशमरति प्रकरण-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि: उदयस्थितमरुणकरं; अंति:१०१५०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. ८७+१(१३)=८८, जैदेना., ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, ले.- पं. हिम्मतविजय, प्र.वि. ९-व्याख्यान, (३०.५४१३, ७४३२-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०१५१. सङ्ग्रहणी सह टबार्थ व २४ दण्डक यन्त्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. ___ मुमाई, (३०x१२, ५४३५-३८). पे.-१.पे. नाम, संग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-६७आ बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, आदिः नत्वा गुरुपदयुग्मं; अंति: जयवन्त हुए त्यां लगी., पे.वि. मूल-गा.४०९. पे.२. पे. नाम. चौवीसदण्डक २४ द्वार यन्त्र सह विवरण, पृ. ६८अ-६९अ २४ दण्डक यन्त्र, मागु., कोष्टक, आदिः#; अंतिः#. २४ दण्डक यन्त्र-विवरण, मागु., गद्य, आदिः उदारिक १ वैक्रिया २; अंतिः#. १०१५२. विशेषावश्यकभाष्य सह वृत्ति खण्ड-२, प्रतिपूर्ण, वि. १५३३, श्रेष्ठ, पृ. १३६, जैदेना., ले.- मु. हर्ष, प्र.वि. हिस्सा प्रथमअध्ययन; भाष्य-अध्याय-प्रथम अध्ययन, गा.३६२२; टीका-ग्रं. २८०००. त्रित्रींद्रियैक वर्षे., (३०x११.५, १७X७३). आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः चरणगुणढिओ साहू. विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः जोग्गो सेसाणुओगस्स. विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि:- अंतिः नमते प्रीत्यविच्छेदः. १०१५३. हीरविजयसूरिश्वर रास, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना., ले.स्थल. घनौघबिंदर, ले.- गणि हर्षविजय (गुरु गणि जीवविजय), पठ.- मु. शान्तिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.३१३८; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४५५०, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२९x१२, १५४३९-४१). हीरविजयसूरि रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६८५, आदिः सरसति भाषा भारती; अंतिः पंडित नरा तेह जाणे. १०१५४. प्रश्नचिन्तामणि व प्रश्नचिन्तामणी बीजक, अपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ८९-२४(१ से २४)=६५, पे. २, जैदेना., ले. परमानन्द, पठ.- आ. देवेन्द्रसूरि(अनन्तसूरिगछे), प्र.ले.श्लो. (३२१) भग्ननेत्रं कटि ग्रीवा, (२८x१२, ११४३६-३७). पे.-१. प्रश्नचिन्तामणि, गणि वीरविजय, सं., गद्य, वि. १८६८, (पृ. -२५अ-८३अ, अपूर्ण), आदिः-; अंतिः नन्दन्तु ___चोत्तमाः., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पूर्णता- १०१+१०१ प्रश्नोत्तर. पे.२. प्रश्नचिन्तामणि-बीजक, मागु., गद्य, (पृ. ८३अ-८९आ, संपूर्ण), आदिः ब्राह्मी सुन्दरी; अंति: पहेरावे के आगल मुके. १०१५५. चतुर्विंशतिदण्डक सूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १८-९(१ से ९)=९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., पू.वि. दंडक प्रकरण गा.१ अपूर्ण से है., (२८x१२.५, ३४२८-२९). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः हितनी करणहारी. १०१५६. अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. साणंद, ले.- पं. हेमविजय, प्र.ले.श्लो. (५७४) For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ केड गुडा करी एकठा; (२१३) भणजो गुणजो वाचजो; (२२५) उत्तम जिणने वांचवा; (५३६) जलाद् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, (२८.५४११.५, १४४३४-४०). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: गद्यवार्ता रचितवान्. १०१५७. चोमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२८x१२, १५४४२-४३). चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः आदिदेव अलवेसरू; अंतिः पास सामलनु चेई रे. १०१५८. दशवैकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदेना., ले.स्थल. पालिताणा, प्र.वि. मूल १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००; टीका-ग्रं. ३४००., त्रिपाठ, (२८.५४१३, २-३४४०-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदिः स्तम्भनाधीशमानम्य; अंतिः (१)ब्रवीमीति पूर्ववत् (२)पुनः सार्द्धचतुशतम्. १०१५९." कर्मग्रन्थ १-५ सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, पे. ६, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, त्रिपाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८x१३, १-३४१४-४६). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १आ-२८अ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः दिनेशवद्ध्यानवरप्रता; अंतिः सर्वोपि तेन जनः., पे.वि. मूल-गा.६०; टीका-ग्रं.१८८२. अंतिम पत्र पर गाथा नं ६ की टीका का पुनः लेखन कीया गया है. पे..२.पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. २८अ-४०आ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः बन्धोदयोदीरण सत्पद; अंतिः त्रुट्यन्तु जगतोपि., पे.वि. मूल-गा.३४; प्र.पु.-टीका-ग्रं.९८३. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. ४०आ-४७अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः सम्यग्बन्धस्वामित्व; अंतिः रतोलेख्यवचूर्णिका., पे.वि. मूल गा.२४; प्र.पु.-अवचूर्णि-ग्रं.४२०. पे.-४. पे. नाम, षडशीति कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ४७अ-८७आ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंतिः विचारणा चतुरः., पे.वि. मूल-गा.८६; टीका-ग्रं.२८००. पे.५. पे. नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ८७आ-९८अ, अपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति:शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविना; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२६ तक लिखा है. पे.-६. औषधवैद्यक सङ्ग्रह *, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ९९आ-९९आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. १०१६०. प्रबोध चिन्तामणि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र.वि. ७अधिकार, (२७४१३, १३४३५-३८). प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः चिदानन्दमयं वन्दे; अंतिः चिन्तामणिमकार्षीत्. १०१६१. कर्मग्रन्थ १-६ सह टबार्थ, चौदगुणठाणा विवरण व यन्त्र, अपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १२२, पे. ७, जैदेना., ले.स्थल. For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १०० www.kobatirth.org: , मुमाई, प्र. वि. * पंक्ति - अक्षर अनियमित है. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७x१२.५X). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १अ - १७आ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ मु. जीवविजय, मागु, गद्य, वि. १८०३, आदिः प्रणिपत्य जिनं वीरं अंति पूर्तिमगात् पे. वि. मूल-गा. ६१. " पे.-२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १७आ-२६अ, संपूर्ण Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ, मु. जीवविजय, मागु, गद्य, वि. १८०३, आदि तथा तिणे प्रकारे अंतिः नामकस्य पूर्णमगात्., पे. वि. मूल-गा. ३४. पे.वि. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. २७अ - ३३अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु, गद्य वि. १८०३, आदि जीवप्रदेश साथे कर्म: अंतिः पूर्तिमगात् पे. वि. मूल-गा. २५ " पे. -४. पे. नाम. १४ गुणठाणा विवरण सह यन्त्र, पृ. ३३ - ३३अ, संपूर्ण १४ गुणठाणा विवरण, मागु., गद्य, आदि: जे कर्मनी स्थिति; अंतिः प्रकार कह्यो. १४ गुणठाणा विवरण यन्त्र, कोष्टक, आदि: अंति: #. पे. ५. पे नाम, पडशीति कर्मग्रन्थ सह टवार्थ, पृ. ३५२-६३आ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जिनने नमस्कार करीने; अंतिः नामकस्य पुर्तिमगात्., पे.वि. मूल-गा. ८६. पे. ६. पे नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ६३आ- १०२अ संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु, गद्य वि. १८०३, आदि जिनप्रति नमस्कार; अंतिः स्वास्यपूर्त्तिमगात् पे.वि. मूल-गा. १००. पे. ७. पे नाम, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टवार्थ, पृ. १०२आ-१२२आ अपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदि:-; अंति:-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ५५ गाथा तक लिखा है. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०१६२. वीतराग स्तोत्र सह टीका, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९-४ (१७ से २० ) = ६५, जैदेना., प्र. वि. मूल -२० प्रकाश., त्रिपाठ, (२७.५४१३ १३४१७-३७) , वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम् वीतराग स्तोत्र - दुर्गपदप्रकाश विवरण आ. प्रभानन्दसूरि सं. गद्य, आदि अनन्तदर्शनज्ञानवीर्य अंतिः सुलभैश्चेति , " 1 समंजसं, For Private And Personal Use Only १०१६३. कल्पसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., (२७.५X१३, १४४४१-४३). कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंतिः वाञ्छितसिद्धिपारम् १०१६४. श्रीपाल रास सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना. पठ. मु. राजविजय, प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: अनियमित है. पू. वि. खंड-३ की ढाल ६ से अंत तक है., (२७.५४१३४) श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८ आदि-: अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी, श्रीपाल रास- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि:-: अंति: १०१६५. चैत्यवन्दन सूत्र की पञ्जिका टीका, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०४ जैदेना. पु. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७X१३, १२x२८-३०). चैत्यवन्दनसूत्र- पञ्जिका टीका, सं. गद्य, आदि: रागाद्यरातिविजयाप्त; अंतिः " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१६६. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ७९-२(१ से २) ७७, जैदेना. ले. स्थल मुडारानगर, ले. पं. किसनविजय, प्र.वि. * पंक्ति - अक्षर अनियमित है. मूल- अध्याय - १०., पू.वि. टबार्थ अध्याय - १ अपूर्ण तक लिखा है., (२७.५४१२४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः दिवसेसु उद्दिसन्ति. उपासकदशाङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, (अपूर्ण), आदि:-: अंति: १०१६७. सीमन्धरजिनवीनती स्तवन सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८७४, जीर्ण, पृ. १०२, जैदेना ले. स्थल, राधनपुर, ले- मु. दयालसागर, प्र. वि. "पंक्ति- अक्षर अनियमित है. मूल-ढाल - १७; बालावबोध- ढाल - १७., (२७४१२.५९). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा उपा. यशोविजयजी गणि, मागु पद्य, आदि श्रीसीमंधरसाहिब आगें अंतिः शास्त्र मर्यादा भणी. सीमन्धरजिन स्तवन-बालावबोध, कवि पद्मविजय, मागु., गद्य, वि. १८३०, आदिः पार्श्वनाथपदद्वन्द्व; अंतिः तेनेदं वार्तिकं कृतं. " १०१६८." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९४३ श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना. ले. चिमनराम ब्राह्मण, प्र. वि. मूल-अध्याय१०. कुल पत्र ७४+५४ = १२८ है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२.५, ५X३४-३६). १०१ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि जम्बू इणमो अण्हयसंवर अंतिः सरीरधरे भविस्साइति. " प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अएह० अपिविधिनाएह०; अंतिः धारणहार हुस्यइ इम. १०१६९. हरिबल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले. स्थल बारेजापूर, ले. पं. दीपविजय, प्र. वि. अध्याय- ४ उल्लास, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा ; (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा, (२७.५४१३, १५X३७-४०). हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १८१०, आदिः प्रथम धराधर जगधणी; अंतिः लब्धीनी वाचा फलयो रे. १०१७०. विसस्थानकविचारसार, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १५०, जैदेना., ले.- मु. खुशालविजय, (२७.५१२, १२-१५२८ ३३). २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य वि. १७४८ आदिः सकल सिद्धि सम्पतिकरण: अंतिः कहे जिनहर्ष मलावो रे. (+) १०१७२. योगसार सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. १०८. प्र. पु. मूल ग्रं. उभय-६००. संशोधित, (२७९१२. ३-४४३८-४१). योगसार, मु. योगीन्द्रदेव, अप., पद्य, आदिः णिम्मलझाणपरिट्ठया; अंतिः कया दोहा इक्कमणेण. योगसार-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि निर्मल ध्यानने विषइ: अंतिः छन्द सहित कीधा. For Private And Personal Use Only १०१७३. नन्दिसूत्र, संपूर्ण वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना. ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. शीवराम जोसी, (२८.५४१२, १३४४६ - ४७). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः णं तदुभयणं अणुजाणामि. १०१७४. गुणवर्म पूजा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-५ (२ से ३,५,२८ से २९) = २६, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची नहीं हैं., (२५.५४११.५, १५४५३-५५). १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७९७, आदिः सुख सम्पति दायक सदा; अंतिः१०१७५. लोगस्ससूत्र का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२६४११.५, ९४३४-३६). लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः चउद राजलोकमांहि; अंतिः दिसन्तु कहीइ दिओ. १०१७६. नवतत्त्व, जीवअजीव के रूपीअरूपीभेद व १४ अशुचिस्थान गाथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(२)=७, पे. ३, जैदेना., ले.- ऋ. अमरचन्द, (२७.५४१२, १०-११४३१). पे.-१. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-८अ, अपूर्ण), आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणन्तभागोय सिद्धि गओ., पे.वि. गा.९९ बीच का एक पत्र नहीं है. पे.२. जीवअजीव के रूपीअरूपीभेद गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-८अ, संपूर्ण), आदिः धम्माधम्मागासा; अंतिः निज्जर ___मुक्खो हवंति., पे.वि. गा.४. पे.-३.१४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः उच्चारे पासवणे खेले; अंतिः मणुअ पंचिन्दी., पे.वि. गा.२. १०१७७. जिनशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९४३, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, ले.- मोतिचन्द डुगरसी, प्र.वि. मूल-४परिच्छेद, श्लो.१००; टीका-ग्रं. १५५०., त्रिपाठ,प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२८x११.५, ३४४१-४६). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक-पज्जिकाटीका, मु. शाम्बमुनि, सं., गद्य, वि. १०२५, आदिः निष्क्रान्तौ कृत; अंतिः वाग्देवता विश्रुता. १०१७८. चन्द्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदर, ले.- पं. दीपविजय गणि, गच्छा.- आ. महेन्द्रसूरि(खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२९, (२७.५४१२, १३-१४४४१-४२). चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. १०१७९. स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. स्तवन-१६ तक है., (२७.५४११.५, १३४३७-४७). स्तवनवीसी, उपा. रामविजय , मागु., पद्य, आदिः सुणि भवि प्राणी रे; अंतिः१०१८०. उपदेशमालान्तर्गत रणसिंहनृप कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, देना., प्र.ले.श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (२७.५४१२, १५४४८-५०). उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदिः श्रेयस्करं कामित; अंतिः१०१८२. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-२(१,१२)=१२, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, (२६.५४१२, १०४३२-३७). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदि:-; अंतिः आतम रूप अनूप. १०१८३." अनुत्तरोववाइदशाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मुंमाई, ले.- पं. जसविजय, प्र.वि. मूल-अध्याय-३३., संशोधित, पू.वि. कही कही वृत्त नही लिखी है., (२७.५४१२, ९-१२४४४). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंतिः __ अन्तकृद्दशाङ्गवदिति. १०१८४. धन्नाशालिभद्र चौपाई, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८-९(२,१६ से १७,२० से २४,२६)=१९, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१२, ११४२४-२६). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंति:१०१८५.” कर्मग्रन्थ-४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. आहोरनगर, ले.- मगन ओजा, प्र.वि. मूल-गा.८६., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२८x१२, ४४३५-३७). For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०३ .. ति.. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवे चोथा कर्मग्रन्थ; अंतिः विचार छ ति कह्यो. १०१८६. बृहतकल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले.- बुलाखीराम गणपतराम क्षत्रीय, प्र.वि. मूल अध्याय-६., (२७४१२.५, ५४३०-३५)... बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई त्तिबेमि. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः न कल्पि साधुने; अंतिः शुद्ध आचार मे रहि जो. १०१८७. उपदेश प्रासाद सह टबार्थ- स्तम्भ ३, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७.५४१२, ५४४१-४३). उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, आदि:-; अंतिः उपदेशप्रासाद-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१०१८८.” चौमासी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. कपडवणजनगर, ले.- श्रा. ललु वरजलाल दोसी, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२७.५४१२, १२-१३४३१-३३). चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः आदिदेव अलवेसरू; अंतिः पास सामलनु चेई रे. १०१८९.” कर्मग्रन्थ १-२ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि.२०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नही है., (२८x१२, ३४३५-३७). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, प्र. १अ-१०आ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आचिरेय नमस्कृत्य; अंतिः सूरीइं कर्यो., पे.वि. मूल-गा.६०. पे.२.पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १०आ-१६आ-, अपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवे बीजा कर्मग्रन्थ; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. गाथा २४ तक है. १०१९०. पट्टावली, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१३, १४४४१-४६). पट्टावली, मागु.,प्रा., गद्य, आदिः त्रैलोक्याधिपं नत्वा; अंति:१०१९१. सत्तरभेदी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. भृगुकच्छ, ले.- पं. राम, प्र.वि. ढाल-१७, (२८x१२.५, ११४३८-३९). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः अरिहन्त मुखपङ्कज; अंतिः सफले थुणियो रे. १०१९३. भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ भाष्य., त्रिपाठ, (२७ ११.५, २ ४४४७-५५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनुतं; अंतिः मङ्गलं भूयात्. १०१९४. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- अमरदत्त बोडा, लिखवा.- पं. पद्मसागर, (२७.५४११.५, १२४५०-५५). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदिः स्मारं स्मारं स्फुरद; अंतिः सर्वेष्टार्थसिद्धिः. १०१९५.” सङ्घपट्टक सह व्याख्या, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-२९(१ से ९,२१ से ४०)=१३, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४११.५, ९४३६-३९). सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति: For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सङ्घपट्टक-व्याख्या , सं., गद्य, आदि:-; अंति:१०१९६. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२००, (२७४११, १६-१७४४९-५४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०१९७." नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, १३४४७-४८). पे.-१. नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-१७आ), आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः से तं ___ परोक्खणाणं. पे.२. लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. १७आ-२०अ), आदिः से किं तं अणुण्णा; अंतिः वीसमणुण्णाए णामाई.,पे.वि. सूत्र-३०. १०१९९." जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.१७३, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६x११, ११४३१-३९). जम्बूस्वामी रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., पद्य, वि. १५२२, आदिः गोयम गणहर पय नमी; अंतिः काज सरसिइ तेहना. १०२०१.” तत्वार्थसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., ले.स्थल. वाघणवाडा, ले.- मु. रूपसागर, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. अध्याय-१ का १ से १४ सूत्र तक नही है., (२६४११, ५४३३-३६). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदि:-; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सिद्ध जुहे साधि वहे. १०२०२. मौनएकादशी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२७४११.५, १५४३५). मौनएकादशीपर्व देववन्दन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, आदिः सकल नयर सिणगार हार; अंतिः दान सकल सुख काजे. १०२०३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ७०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्याय-३६ की गा.११ तक लिखा है., (२६४११, ९x४३-४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः संयोग बाह्यनइ; अंति:१०२०४." जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११, ६x४०-४३). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवन नइ विषइ; अंतिः सिद्धान्तसमुद्र थको. १०२०५.” चौवीसदण्डकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४२., (२५.५४११, ५४३५-३६). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: चोवीस तीर्थकरोने; अंतिः वीनती लिखी. १०२०६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, ५४३७). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलिक; अंतिः प्रपद्यन्ते पामइ. १०२०७.” कर्मग्रन्थ ५-६, वीर स्तवन व स्तुति, अपूर्ण, वि. १६१३, श्रेष्ठ, पृ. १८-९(१ से ९)=९, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२६x११, १२-१३४४१-४४). For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०५ पे.-१. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. -१०अ-१३आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः सयगमिणं ___आयसरणट्ठा., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.१ से १८ तक नहीं है. गा.९८. पे:२. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-१७अ, संपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.८२. पे..३. महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १७अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः निस्तीर्णवीस्तीर्ण; अंतिः साम्याज्यमासादयेत्., पे.वि. श्लो.१७. पे.-४. महावीरजिन स्तुति-पञ्चवर्गपरिहार, सं., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः हर हासयशोराशिं सेवे; अंतिः सुराः सुराः., पे.वि. श्लो.४. १०२०८.” कर्पूर प्रकरण सह टीका, धर्मप्राप्ति के १८ दृष्टान्त गाथा व १४ प्रकार के श्रावक गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. ३, देना., ले.- ऋ. जगन्नाथ, प्र.वि. त्रिपाठ, (२५.५४११.५, ५-८४३९-४१). पे.-१.पे. नाम. कर्पूर प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १आ-२६आ कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन , सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रका. कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः व्याख्यान वेलायां; अंतिः अपितु सर्वस्यापि., पे.वि. मूल-श्लो.१७४. पे.२. पे. नाम. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा सह टबार्थ, पृ. २७अ-२७अ धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा, सं., पद्य, आदिः लज्जातो भयतो वितर्क; अंतिः तेषाममेयं फलम्. धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः लज्जाथकी अर्द्ध; अंतिः प्रकारे धर्म पामे., पे.वि. मूल-गा.१. पे..३. पे. नाम. श्रावक १४ गुण गाथा सह अनुवाद, पृ. २७अ-२७अ १४ प्रकार श्रावकनाम गाथा, सं., गद्य, आदिः मृच्चालिनी महिष हंस; अंतिः भुवि चतुर्दशधा भवंति. १४ प्रकार श्रावकनाम गाथा-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः माटीनी परे हृदयमां; अंतिः ए श्रावकाना १४ गुण., पे.वि. मूल-श्लो.१. १०२०९. नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले.- श्रा. लवजी मोतिचंद, प्र.वि. अंतमे पांच ढाल के पांच श्लोक दीये है., (२६.५४१२, १२४३०-३६). ९९ प्रकारी पूजा, कवि पद्मविजय, मागु.,सं., पद्य, वि. १८५१, आदिः उत्तम गुरु चरणे नमी; अंतिः श्रीविमलाचल पायो १०२१०. अष्टादशपापस्थानकवर्जन सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. १८ सज्झाय, (२६४११.५, १३४५१-५२). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी. १०२११. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-३९ की गा.११ तक है., (२६४११.५, १५४३४-४२). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंति:१०२१२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.४९, (२५.५४११.५, १३-१४४२९-४२). गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., पद्य, आदि: वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः इम भणे ए. १०२१३. स्तवनवीसी व शान्तिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. ज्ञानविमल, (२५.५४११, १८४४४-४६). पे.-१. विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५५, (पृ. १अ-५आ), आदिः पुण्डरीकणी नगरी; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची निरमल थयो बोधिबीज रे., पे.वि. २०स्तवन. पे..२. शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः अचिरानन्दन वन्दना; अंतिः साँ जिनराजथी रे., पे.वि. गा.९. १०२१४. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, (२६४११, ११४३७-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. १०२१६. अष्टप्रकारीपूजा रास, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. ६३+१(१६)=६४, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-७८, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, १५-१७X४२-५१). ८ प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः अजर अमर अविनाश; अंतिः सम्पति बहु पाया रे. १०२१८." भक्तामर अन्त्यपादपूर्ति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४५., संशोधित, (२५.५४११.५, ४४३२-३४). भक्तामर स्तोत्र-शान्तिजिनभक्तामर-चतर्थपादपूर्तिरूप, मु. लक्ष्मीविमल, संबद्ध, सं., पद्य, आदिः श्रीशान्तिमङ्गिसमवाय; अंतिः विमलस्य शान्तेः. भक्तामर स्तोत्र-शान्तिभक्तामर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वामेयमानम्य; अंतिः श्रीशांतिनाथy. १०२१९.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६८१, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१(१)=५१, जैदेना., ले.स्थल. धनपुर, ले.- गणि उदयचन्द्र, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका., पू.वि. अध्याय-२ की गा.२ तक नहीं है., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, ७-३२-३५).. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंतिः कहणा पवियालणा सो. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः पुत्रना सम्बन्धना. १०२२०. भक्तामर स्तोत्र का अनुवाद, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पठ.- श्राविका आणन्द बाई, प्र.वि. गा.४९, (२५.५४११, ११४३२-३६). भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., पद्य, आदिः आदि पुरूष आदिस; अंतिः ते पामै सिवखेत. १०२२१. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- मु. पद्मप्रमोद (गुरु उपा. प्रमोद), पठ.- श्राविका तेजा, प्र.वि. गा.१२१, (२६४११, ११४३८-४४). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. १०२२२." शालिभद्र रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशा वि. विवर्ण-पानी से __अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, १५-१६x४४-५२). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंति:१०२२३. जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७५५, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबंदरे, ले.- मु. मतिकुशल, गच्छा.- आ. जिनधर्मसूरि (गुरु आ. जिनवर्द्धमानसूरि),प्र.वि. अध्याय-४अधिकार,ढाल५५, (२५.५४११, १५४४५-५४). जम्बूस्वामी रास, गणि भुवनकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १७०५, आदिः जोति पुरातन मनि धरइ; अंतिः नवनवी साता सही. १०२२४." क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.- मु. टेकचन्द (गुरु मु. चेनविजय), प्र.वि. ६ अधिकार., गा.३०६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५.५४११, १२४३२-४२). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. १०२२६. शान्तिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १४३-२३(२ से ३,८० से १००)=१२०, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. प्रस्ताव-५ अपूर्ण तक है., (२६४१०.५, १६४४६-४७). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०७ १०२२७. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र भास सज्झाय-७, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४१०.५, १३४३०-३२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, पाठक राजरत्न, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः श्रीसिद्धारथ सुत; अंतिः१०२२८. मानुतङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- पं. राजविजय, प्र.वि. ढाल-४६, (२६४११, १७ १८४४२-४४). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. १०२२९. ओघनियुक्ति की अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३३००, (२५.५४११, ३३-३५४७६-८०). ओघनियुक्ति-अवचूर्णि# , आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदिः प्रक्रान्तोयमावश्यका; अंतिः तु भवानङ्गीकृत्य. १०२३०.” समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५+१(१४५)=१४६, जैदेना., ले.स्थल. सीणोर, प्र.वि. मूल-१०३अध्ययन. प्र.पु.-सर्वग्रं. ६४५३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ५४३९-४१). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः कृतोयं टबार्थः. १०२३१. विक्रमराजा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-९(१,३ से ५,७ से ८,७०,७२,८९)=८१, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. गाथा२६२३ तक है., (२६४११.५, १५-१८x१३-५१). विक्रमराजा रास, मागु., पद्य, आदि:-; अंति:१०२३२." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६०८, श्रेष्ठ, पृ. २९-१(२)=२८, जैदेना., ले.- रवा जोसी, पठ. पं. कुंअरविजय (गुरु पं. गुणहर्ष गणि), (२६४११.५, ४४३६-३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वोसिरियं० मएगहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः माहरउ नम० अरिहन्त; अंतिः सम्यक्त्व मे ग्रहिउ. १०२३३. शुकराज रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.१५९, (२५.५४१०.५, ११-१३४४१-४४). शुकराज सहेली कथारास, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः सरसती हंसगमनी सदा; अंतिः कहे दिन दिन लीलविलास. १०२३४. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१०.५, १२४३०). महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदि: गुरु पद पङ्कज नमी; अंतिः नाम षटपर्वी धर्यो. १०२३५. पार्श्वनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.५३७ तक है., (२६.५४११, १७-१९४६५-६६). पार्श्वनाथ चरित्र, सं., पद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः१०२३६." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १११, जैदेना., ले.- ऋ. देवीदासजी, प्र.वि. मूल ३६अध्ययन., (२६x१०.५, ७X४७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बाह्य अभ्यन्तर संजोग; अंतिः तेहनइ इष्ट वल्लभ छइ. १०२३७." पिण्डविशुद्धि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०३., (२६४१०.५, ५४३३ ३५). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः इन्द्रना वृन्द समूह; अंतिः अने सोधउ निर्दोष करउ. For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२३८." सूयगडाङ्गसूत्र सह टीका १ श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १५४४५-४७). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, वि. १५८३, आदिः प्रणम्य श्रीजिनं; अंतिः१०२३९. श्राद्धगुण विवरण, अपूर्ण, वि. १५१६, मध्यम, पृ. ४४-१५(१,४ से ५,१०,१२,१६,२२ से २४,२८ से ३०,३२,३४ से ३५)+२(२६ से २७)=३१, जैदेना., ले.स्थल. अहमदावाद नगर, ले.- श्राविका सोनाई श्राविका, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-३५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रथम व बीच-बीच के पत्र नहीं है., (२६.५४११, १५४५५-५७). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदि:-; अंतिः श्चिरं नन्द्यात्. १०२४०. गुणसागर पृथ्वीचन्द्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६.५४११, ११४२८-२९). पृथ्वीचन्द गुणसागर वेली, मागु., पद्य, आदिः सिरि नेमि जिणेसर; अंति: गुणसागर रिष राज. १०२४१. स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ६, जैदेना., (२६.५४११, १०४३६-३८). पे.१. स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः जग उपगारी रे साहिब; अंतिः शीस जिन गुण भजे., पे.वि. २४ स्तवन. पे.२. सीमन्धरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः हमारो श्रीसीमन्धर; अंतिः एहीज अन्तरयामी., पे.वि. गा.४. पे..३. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः विमलाचल वन्दीइं; अंतिः कृपा जगमांहइ जाणी., पे.वि. गा.४. पे.-४. साधारणजिन पद, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ), आदिः जिनराज हमारे दिल; अंति: गुण शिवहस्यां., पे.वि. गा.३. पे.-५. आदिजिन पद, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ), आदिः प्रह समें प्रणमीइ; अंतिः ताहरी सफल हो सेव रे., पे.वि. गा.५. पे.६. महावीरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदि: महावीर मनोहरु; अंतिः न्यानसागर कहे सीस., पे.वि. गा.८. १०२४२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६-९२(१ से ९२)=३४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १५४५५-५९). वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि:-; अंति:१०२४३. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, (२५.५४११, १०४३५-३८). जिनस्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः आदिकरण अरिहन्तजी; अंतिः अखय अनन्त सुख पावइ. १०२४४. सिद्धाचलतीर्थोद्धार रास, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-३(१ से ३)=५, जैदेना., ले.- वा. देवविजय, प्र.वि. ढाल-१२, पू.वि. गा.१ से ३८ तक नहीं है., (२५.५४११, ११४३६). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदि:-; अंतिः दरिशन जयकरो. १०२४५. सत्तरविधि पूजा, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. माणिकचन्द (गुरु मु. सुमतिचन्द), पठ.- श्रा. दयाल, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १३४४१). १७ भेदी पूजा, मु. अमरविबुध, मागु., पद्य, आदिः प्रथम प्रणमुं पढम; अंतिः वृद्धि लहस्यैजी. १०२४६. प्रतिक्रमणगर्भहेतु, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, १५४५३-५७). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.,प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंति: For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०९ १०२४७. प्रश्नसमुच्चयभाषा-उत्तरार्द्ध व छ काय विराधना विचार, प्रतिपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- मु. दीपविजय (गुरु पं. विनयविजय, आणन्दसूरगच्छ), (२५.५४११.५, १४-१७४४१-५७). पे-१. प्रश्नसमुच्चयभाषा, मु. मन्दिविजय, मागु., गद्य, (पृ. १अ-२७आ, प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः माटे शरीर न्युन थयु., पे.वि. प्र.पु.-मूल अंश-१५१प्रश्न. पे.२.६ काय विराधना विचार, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पृ. २७आ-२७आ, संपूर्ण), आदिः भवे कारणं जेण तस; अंतिः ततो तेण को कणगेण. १०२४८. बाराआरा स्वरुप स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.७८, (२६x११.५, ११४३०-३३). १२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सरसति भगवति भारती; अंतिः कहे गच्छ मंगल करु. १०२४९." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- मु. जीवराज, प्र.वि. गा.५४४, (२५.५४११.५, ११४३९-४३). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. १०२५१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- श्रा. सामल, पठ.- श्राविका मामबाई, प्र.वि. मूल-गा.६३; टबार्थ-ग्रं. ३४१., (२५.५४११, ४४३१-३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावध व्यापरनइ विषय; अंतिः सुख- देणहारु छे जे. १०२५२. गौतमस्वामी रास व पञ्चमी स्तुति, अपूर्ण, वि. १७६४, मध्यम, पृ. ७,पे. २, जैदेना., ले.- गणि दानविजय, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२५४११, ९४२४-३०). पे..१. गौतमस्वामी रास, श्रा. शान्तिदास, मागु., पद्य, वि. १७३२, (पृ. १अ-७अ, संपूर्ण), आदिः सरस वचन दायक सरसती; अंतिः गौतमरिषी आपो सुखवास., पे.वि. गा.६६. पे..२. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. सुखविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, अपूर्ण), आदिः कार्तिक शुदि पाचमि; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०२५४. शाश्वतजिनप्रासादप्रतिमा नमस्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५.५४११, ७४२६-२९). शाश्वतजिनप्रतिमा नमस्कार, मागु., पद्य, आदिः एहि वडां महाविदेह; अंतिः जिन बिम्ब नमस्करउं. १०२५५.” रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रेष्ठ, पृ. ४३, देना., ले.स्थल. भार्यानगर, ले.- मु. प्रतापविजय (गुरु गणि वीरमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. आदिश्वर प्रसादात्., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, प्र.ले.श्लो. (५३३) मङ्गलं लेखकानां च, (२५.५४१०.५, १५४४३-४५). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः सकल श्रेणि में; अंति: मोहनविजय विलासजी. १०२५६.” इन्द्रियशतक, वैराग्यशतक व देशनाशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२६४१०.५, ६४३५-३७). पे.-१. पे. नाम. इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-१०अ इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं., पे.वि. मूल गा.१००. पे.२. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १०अ-१९अ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः सुखनुं ठाम लहई., पे.वि. मूल-गा.१०४. पे.-३.पे. नाम. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. १९अ-२६आ आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंतिः सिवं जन्ति. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारमांहि नथी सुख; अंतिः शिव मोक्ष पहुंचइ., पे.वि. मूल गा.८८. १०२५७. भुवनभानुकेवली चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., (२५.५४११, १७४४९-५२). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जम्बूद्वीपे; अंति:#. १०२५८. साम्बप्रद्युम्न प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-२खंड, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा , (२६४११.५, १२४३२-३८). साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६५९, आदिः श्रीनेमीसर गुणनिलउ; अंतिः पुरवइ सहु कोड रे. १०२५९. सित्तरसोजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पठ.- साध्वीजी रत्नश्री (गुरु साध्वीजी लक्ष्मी), प्र.वि. ढाल-६, गा.५२, (२६४११.५, ११४२९). १७० जिननाम स्तवन, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १७१६, आदिः कास्मेरी मुखमण्डणी; अंति: देवविजय जय जयकार के. १०२६०. वीसस्थानकतप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पठ.- आ. ज्ञानसूरि, प्र.वि. ढाल-६, गा.८१, (२६.५४११.५, ११-१२४३१-३४). २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७६६, आदिः जिनमुखपंकजवासिनी; अंतिः नितुनितु मङ्गलचार जी. १०२६१.” कल्पसूत्र सह कल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १५४५२-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति: कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंति:१०२६२. महावीर कलश, नवस्मरण, समोसरण व महावीरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-२५(१ से २५)=१५, पे. ६, जैदेना., ले.- मु. ज्ञानहर्ष गणि-शिष्य, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (१७.५४९.५, १२-१३४२५-३१). पे..१. महावीरजिन कलश, आ. मङ्गलसूरि, मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. २६अ-२८अ, संपूर्ण), आदिः श्रेयः पल्लवयतु वः; ___ अंतिः भवियां पूजउ एहजि देव., पे.वि. गा.१७. पे.२. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. २८आ-३३अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४+४. पे..३. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३३अ-३५अ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः परमपयत्थं फुडं पासं., पे.वि. गा.२३. पे.४. सन्तिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३५अ-३६अ, संपूर्ण), आदिः सन्तिकरं सन्तिजिणं; अंतिः लहइ सुह संपयं परमं., पे.वि. गा.१३. पे.-५. नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित , मु. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १६वी, (पृ. ३६अ-३९आ, संपूर्ण), आदिः जायव कुल सिणगार; अंतिः अनन्ती ते लहइ ए., पे.वि. गा.३६ कडी. पे.६. महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३९आ-४०आ, अपूर्ण), आदिः जइज्जा समणे भयवं; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०२६३. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- १० (२४.५४११, १३४३८-३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.. १०२६४. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. खयरवा ले. मु. मेघजी, साध्वीजी लब्धिलक्ष्मी (गुरु साध्वीजी जयलक्ष्मी), प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., ( २६ ११, १३x४३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि: अंतिः समुपैति लक्ष्मी. , भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदि: (१) वर वाण किल इसी सम्भा (२) प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १०२६५. कुमारपाल रास, संपूर्ण वि. १८१६ श्रेष्ठ, पृ. ९४ जैवेना. ले. स्थल. राधनपुर, ले. मु. विद्यावस्निय (गुरु पं. उत्तमवह्निय), पठ. ऋ. सरूपचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १३०, प्र.ले. श्लो. (२१६) भग्न कटी ग्रीवा भग्ना; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा (५३६) जलाद् रक्षेत् तैलात् रक्षेत्, ( २४.५X१०.५, १५४४८-४९). कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमुं: अंतिः ओगणत्रीस ढाळ गावो हो. १०२६६. वडीदीक्षादि योगविधि सङ्ग्रह व साधुवन्दना स्तुति, संपूर्ण वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १८ पे ४ जैदेना, ले. स्थल गटबोरनगरे, ले. साध्वीजी लक्ष्मीश्री, प्र. वि. ग्रं. ग्रं. ४०००, ( १८x१०, १३-१४X३२-३७). " पे. १. वडीदीक्षा योगविधि सङ्ग्रह मागु. प्रा. सं., गद्य (पृ. १आ-१०अ ), आदि आवस्सगम्मि एगो सुयख अतिः एक बे " , छाण्डीयइ. पे. २.७ माण्डलीतप विधि, प्रा., मागु., पद्य, (पृ. १०अ - १०आ), आदि: सुत्ते अत्थे भोयण; अंतिः कांई क्रिया न हुई. पे.-३. दशवैकालिकसूत्र-योग विधि, संबद्ध, मागु., प्रा. सं., गद्य, (पृ. १०आ-१८अ ), आदि: दशवेयालियम्मि एगो; अंतिः तिम ज इहां पणि जाणवी. " पे. ४. अणगारगुणवन्दन स्तुति, मागु, पद्य, (पृ. १८अ १८आ), आदि पापपन्थ परिहरे मोक्ष अंतिः वन्दना हमारे है., पे.वि. मा.२. १११ पठ. - १०२६७. श्रीपाल रास, संपूर्ण वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदेना. ले. स्थल पालीनगर, ले. पं. नयविजय प्र. वि. खण्ड-४, (२४X११, ११-१२x२३-३२). श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८ आदिः कल्पवेल कवियण तणी " 7 अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. १०२६८. चन्द्रलेहा रास, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले. पं. अभयविजय, पठ- पं. धनविजय, लिखवा.- मु. दिपविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - २९, गा. ६२४, ( २४.५x११, १२४३४-३७). चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु पद्य वि. १७२८ आदि सरसति भगवति नमी करी अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. १०२७०. अजितशान्ति स्तव, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. श्राविका वालीबाई, प्र. वि. गा४० (२३.५४१०.५. "" ११x२२-२४). अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदि अजियं जिय सव्वभयं अंति जिणवयणे आयरं कुणह i चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, वि. १७८३ आदि प्रथम घराघव तीम अंति: " १०२७१. चन्दराजा रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३०-१ ( २० ) + १ (२९) ३०, जैदेना.. पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. उल्लास-२ की ढाल - २ की गा. १६ तक है., ( २४९१०.५, ११४३४-३८). For Private And Personal Use Only १०२७२. बार भावना, संपूर्ण वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. पं. रत्नसमुद्र (गुरु गणि महिमसागर, खरतरगच्छ ), पठ साध्वीजी देवा, प्र. वि. ढाल - १२. इस प्रत मे कर्ता का नाम उल्लेख नहीं है., (२५x१०.५, १३४३८-३९). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः विमल कुल कमलना हंस; अंतिः भावना अमृत चाटो. १०२७३. स्तवनचीवीसी, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, प्र. वि. २४ स्तवन, पु. वि. अंतिम पत्र नहीं है. अंतिम गाथा नहीं Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ११२ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची है. (२३.५४११, ११-१३४३३-३६). स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, आदिः आदिपुरुष ए आदि जी; अंतिः १०२७४. चौवीसजिन देववन्दन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. विरक्षेत्र, ( २१.५x११, ९×२३-२४). २४ जिन देववन्दन, मागु., पद्य, आदिः प्रथम जिन युगादि; अंतिः जिन जाउ बलिहारि १०२७५.**” हरिबल चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले. स्थल विद्युतपूर, ले. मु. गोविन्दविजय (गुरु मु. अमरविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ४ उल्लास ५९ ढाल, ग्रं. ३७५१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, दशा वि. किनारी अधिक उपयोग के कारण खंडित है, विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, ( १९४११, १७-१८४२६-३६). " हरिबल चौपाई. मु. लब्धिविजय, मागु पद्य वि. १८१०, आदिः प्रथम धराधव जगधणी अंतिः वाचाए फलज्यो रे. १०२७६.” चैत्यवन्दनचौवीसी आदि स्तवन सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८५०, मध्यम, पृ. ४६ - १ ( २७ ) = ४५, पे. ११, जैदेना., ले. स्थल. भटाणग्रामे, ले.- मु. जयविजय (गुरु गणि वृद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, (२०.५x११, १२-१३X२१२८) पे. १. पे नाम चउवीसी, पृ. १आ-११आ, संपूर्ण जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः जीवजीवन आधारो रे, पे.वि. २४ स्तवन. पे. २. स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, (पृ. ११आ-२६आ-, पूर्ण), आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:-, पे.वि. २४ स्तवन अंतिम पत्र नहीं है. महावीरजिन स्तवन की १० गाथा तक है.. पे.-३. पे. नाम. वीसविहरमानजिन स्तवन, पृ. २८अ - ३६आ, अपूर्ण विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः वाचक जश इम बोले रे., पे.वि. २० स्तवन प्रथम पत्र नहीं है. सीमंधरजिन स्तवन संपूर्ण तथा युगमंधरजिन स्तवन की प्रथम गाथा नही हे. पे. ४. चैत्यवन्दनचीवीसी, कवि ऋषभ कवि, मागु, पद्य, (पृ. ३६आ-४१अ संपूर्ण), आदि आदिदेव अरिहन्त नमु: अंतिः बहु जीव पाम्या पार., पे.वि. २४ चैत्यवंदन. पे.-५. पे. नाम. आदिसर स्तवन, पृ. ४१अ - ४१अ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मागु., पद्य, आदिः जय जगनायक जगनायक; अंतिः द्यौ दरसण सुखकन्द, पे.वि. गा. ५. पे.-६. पे. नाम. श्रीआदिसर स्तवन, पृ. ४१अ - ४१आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. मोहन मागु, पद्य, आदि उ रङ्ग लागो थाहरा अंतिः मोहन विथत सनुर हो., पे.वि. गा. ८. पे.-७. पे. नाम. श्रीसिद्धचक्र स्तवन, पृ. ४२अ - ४३आ, संपूर्ण नवपदजी स्तवन, मु. दानविजय, मागु, पद्य वि. १७६२ आदि सकल कुशल कमलानो अंतिः दानविजय जयकारा रे., पे.वि. गा.२३. अंतिः पे. ८. सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तमसागर - शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ४३आ - ४३आ, संपूर्ण), आदि: नवपद महिमा सार; नवपद महिमा जाणज्यो, पे.वि. गा.५ छंद को छोटा गीनेसे प्रत नं ६०८६ मे १० गाथा है. For Private And Personal Use Only पे.-९. नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर - शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ४४अ - ४४अ, संपूर्ण), आदि: गोयम नाणी हो कहै; अंतिः बहु सुख पाया. पे.वि. गा.५. पे. १०. सिद्धचक्र स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., पद्य, (पृ. ४४-४५अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द वखाण्यौ; अंतिः सागर सुख पाया रे., पे.वि. गा.१०. पे.-११. पार्श्वजिन स्तवन- गोडीजी, मु. सूरविजय, मागु., पद्य, वि. १७१३, (पृ. ४५अ - ४६आ, संपूर्ण), आदिः सरसति Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ देवीने नमी; अंति: गाइओ श्रीगोडी धणी, पे. वि. गा. २६. १०२७७. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले. स्थल. वेलाउलबंदर, प्र. वि. मूल - ४३ कथा, गा. ११५: बालावबोध ग्रं. ६२५० (२१.५४११, १७४२९-३०). " शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः आबालबम्भयारि; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं . शीलोपदेशमाला- बालावबोध+ कथा, गणि मेरुसुन्दर मागु, गद्य वि. १५५१, आदि श्रीवामेयममेय अंतिः माटे शील पालवो सही. . " www.kobatirth.org: " " १०२७८. श्रीपाल रास सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १८५४ श्रेष्ठ, पृ. १०४ जैदेना. ले. पं. कनकचन्द्र प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. मूलपाठ की प्रशस्ति का बालावबोध नहीं लिखा है., पू.वि. खंड ३ की ढाल ६ से अंत तक है., (२४.५X११.५X). ' श्रीपाल रास उपा. विनयविजय उपा यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८ आदि अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. श्रीपाल रास- बालावबोध मागु, गद्य, आदि १०२७९. गीतवीसी व गाथा, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२५.५x११, ११४३९-४१). पे.- १. गीतवीसी, मु. आनन्द, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ७आ), आदिः सीमन्धर समोसर्या रे; अंतिः अचल आनन्द अनुभव ., पे.वि. २०गीत. " ; 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अति: २०४५३-५५) विचार सङ्ग्रह, प्रा. सं., पद्य, आदि:-; अंति: पे. २. जैन गाथा, प्रा. पद्य (पृ. ७आ-७आ), आदि: #, अंतिः #. " १०२८०. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना. प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है खण्ड-४ (२५.५४१२४)श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी. उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं. प+ग, वि. १८४३, आदि:-: अंति: " उपदेशप्रासाद-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:- अंति: १०२८१. उपदेश प्रासाद सह टवार्थ २ स्तम्भ, प्रतिपूर्ण, वि. १८७० श्रेष्ठ, पृ. ८०, जैदेना, ले. स्थल, सूरतबिंदरे, ले. पं. दीपविजय, प्र. वि. प्र. पु. -मूल-ग्रं. ८२६. प्र. पु. - टबार्थ- ग्रं. १३२१: सर्वग्रं. २१४७., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५x११.५, ५X३४-३६). " १०२८२. चौमासीदेववन्दन, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५X११.५, १२४३२-३५). चौमासीदेववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रथम जिनेसर ऋषभदेव; अंतिः १०२८३. विचार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७-३(१ से ३) = २४, जैदेना, पू. वि. बीच के पत्र हैं., ( २५x११, १९ ११३ १०२८४. लीलावती रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७९९, मध्यम, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. अमदावाद, ले.- पं. ऋद्धिसमुद्र, (२५x११, १४४४२-४६). पे. १. लीलावती सुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मागु पद्य वि. १७६७, (पृ. १अ १४आ) आदि परम पुरुष प्रभु पास अंतिः सुख सम्पति सूरसालजी पे. वि. दाल- २१. " * पे. २. जैन श्लोक सं., पद्य, ( १४आ-१४आ) आदि # अंतिः #. १०२८५. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र की राज्झाय, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सज्झाय- १९ की गा .५ तक है., ( २४.५X११, १३x४०-४२). ज्ञाताधर्मकथाद्गसूत्र -भास पाठक राजरत्न, संबद्ध, मागु, पद्य, आदि: श्रीसिद्धारथ सुत: अंतिः For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०२८६.” जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- पं. जसविजय, पठ.- मु. नित्यविमल, प्र.वि. मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ५४३६-३७). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: भुवन कहतां तीन भवन; अंति: समुद्र हुन्ती. १०२८७. यतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. ढाल-११, (२३.५४१०.५, ११४३८). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सुकृत लत्ता वन; अंतिः सुजस लीला अनुभवइं. १०२८८. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- श्रा. ललुभाइ, पठ.- श्रा. दोलतभाई, प्र.वि. श्लो.४४+४, (१९.५४११, १०x२४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. १०२८९." समयसार व दसमद गाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५४११, १३४३८). पे.१. समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, (पृ. १आ-१०अ), आदिः सव्वन्नु मोक्खमक्खन्; अंतिः सययं सिवं दिन्तु., पे.वि. अध्याय-१०. पे..२. पे. नाम. दसमद गाथा सह टबार्थ, पृ. १०अ-१०अ १० मद गाथा , प्रा., पद्य, आदिः मत्तङ्गया भगङ्गा; अंति: गेहागारा अणियया. १० मद गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मदनुं कारण मदिरा; अंतिः वस्त्रना आपणहार., पे.वि. मूल-गा.१. १०२९०. सीमन्धरजिन स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-७ की गा.३ तक है., (२२४१०.५, १२४३०). सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१३, आदिः अनन्त चोवीसी; अंति:१०२९१. नमस्कार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. अहम्मदाबाद, ले.- गणि मोहनसुन्दर, पठ.- श्राविका रत्नाबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, (२२.५४१०.५, ८x२७-२८). नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तने माहरो नम०; अंतिः सिद्ध वडा कहीयइ. १०२९२. कर्मविपाक का शब्दार्थ, कर्मस्तव का बालावबोध व बन्धस्वामित्व का शब्दार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. धर्मचन्द (गुरु पं. रत्नविजय), गच्छा.- पं. रत्नविजय (गुरु आ. लक्ष्मीसूरि), (२१.५४१०.५, १२ १३४२३-३१). पे.१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-शब्दार्थ, मागु., गद्य, (पृ. १अ-१७आ), आदिः सिरि के लक्ष्मीवन्त; अंति: सूरि नामे आचार्ये. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध', मागु., गद्य, (पृ. १७आ-४०अ), आदिः तिम ज स्तवं छ; अंतिः इहां तेरनी सत्ता . पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-शब्दार्थ, मागु., गद्य, (पृ. ४०अ-५१आ), आदिः बन्ध विहाण के बन्धनु; अंतिः अनुसारे ए रच्यु. १०२९३." सुक्तावली, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५-२(२०,९०)+१(४२)=११४, जैदेना., ले.- ऋ. अमरचन्द, पठ.- ऋ. अजबचन्द, प्र.वि. श्लो.८४१, संशोधित, (२४.५४११, ७४२५-२७). सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः अर्हन्तो भगवन्तं; अंतिः कथमपि नृणां हंसगमने. १०२९४. दान कुलक व धर्मसार सह टबार्थ व चौदरत्न नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. श्रीमालनगर, ले.- मु. विलभराज (गुरु मु. गुणराज, अञ्चलगछ), (२५४१०.५, ५४३०-३१). For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. पे नाम. दानशीलतपभावना कुलक सह टवार्थ, पृ. १आ- ९आ दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि देवाधिदेवने नमीनइ अंतिः हुइ ते खमतु हे पूज्य.. ; मूल-गा. ४९. पे.वि. पे. २. पे नाम महानिर्ग्रन्धीय अध्ययन सह टबार्थ प्र. ९आ-१६अ महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धाणं मनो किच्चा अंतिः विगयमोहोत बेमि. महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्धेभ्य तीर्थंकर : अंतिः रहित इम न्यायवंत कहै., पे.वि. हिस्सागा. ६०. पे.-३. १४ रत्न नाम, मागु., गद्य, (पृ. १६आ - १६आ), आदिः खड्गरत्न चर्मरत्न; अंतिः सात पञ्चेन्द्री हु.. १०२९५. वयरस्वामी सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, (२२.५X१०, १४-१५X३०-३४). वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५९, आदि: अरध भरतमांहि शोभतो; अंतिः वयर गुण गाया रे. १०२९६ . अन्तरीक्षपार्श्वजिन छन्द, संपूर्ण वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. गा. ५१, (२५४९.५, ८-१३X२४-३३). पार्श्वजिन छन्द-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मागु., पद्य, आदि: सरसति मात मयाकरी; अंतिः जयो पास जय जय करण. १०२९७. उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ११९ देना. प्र. वि. मूल-३६ अध्ययन. सर्वग्रं. ६०००., संशोधित, (२५.५x१०.५. १५०४८-६४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१) पुव्वरिसी एव भासन्ति (२) सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययन सूत्र- दीपिका टीका. मु. विनयहंस, सं., गद्य वि. १५७२, आदि उत्तराध्ययनस्येमां अंतिः सा बुधवाच्यमाना. १०२९८. अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रकाश - १० गाथा ३ तक है., (१५४०९, १२x२६-३०). अर्हनामसहखसमुच्चय, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि: अर्हन्नामापि कर्णा अंति: १०२९९. त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित्रे पर्व-१, प्रतिपूर्ण, वि. १७०० श्रेष्ठ, पृ. १८९ जैदेना. प्र. वि. प्र. पु. पर्व- १ नं. ५०५०. ११५ (२५x१०.५, १३४३७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२२०, आदिः सकलात्प्रतिष्ठान: अंति:१०३००. अजितशान्ति स्तव आदि स्तोत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. ९ जैवेना. ले. पण्डित हरिचन्द गणि, ( २४.५११, ३-४X३६-३७). पे. १. पे नाम, अजितशान्ति स्तव सह टवार्थ, पृ. १२-१४आ अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिनेंद्र० शासनं जयति. अजितशान्ति स्तव-टबार्थ मागु, गद्य, आदि अजितनाथ बीजा तीर्थकर अंतिः अधिक छइ उत्कर्ष गुणइ, पे. वि. मूल-गा. ४७. पे. २. पे नाम महावीरदेव स्तव सह टवार्थ पृ. १४-१५आ महावीरजिन स्तव, प्रा., पद्य, आदि: जयइ नवनलिनकुवलय; अंतिः दिसउ खयं सव्वदुरिआणं. महावीरजिन स्तवन- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: महावीर देव जयवन्ता अंतिः पूजतां दुःख कष्ट जाइ.. i For Private And Personal Use Only पे.वि. मूल गा.६. पे.-३. पे. नाम. भयहर स्तव सह टबार्थ, पृ. १५आ-१६अ उवसग्गहर स्तोत्र - गाथा ५ आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य, आदि उवसग्गहरं पास पास अंतिः भवे पास जिणचन्द Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उपसर्ग जे विघ्न तेह; अंति: माहि चन्द्र सरिखा., पे.वि. मूल-गा.५. पे.-४. पे. नाम. भयहर स्तव सह टबार्थ, पृ. १६अ-१९आ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण पणयसुरगण; अंतिः ईय नाहत्थणामि भत्तीए. नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करी चरण कमल; अंतिः हुं कर्त्ता कहई., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.५. पे. नाम. जीरापल्लि स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १९आ-२१आ पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला-महामन्त्रमय, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः ॐ नमो देवदेवाय; अंतिः लभेत् ध्रुवम्. पार्श्वजिन स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ॐकार मंगलीक अक्षरइं; अंतिः ध्रुव निश्चलपणइं., पे.वि. मूल-श्लो.१४. पे.-६. पे. नाम. जङ्किञ्चि सूत्र सह टबार्थ, पृ. २१आ-२१आ जं किञ्चिसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः जङ्किञ्चि नामतित्थं; अंतिः ताइं सव्वाइं वन्दामि. जं किञ्चिसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जे कांई तीर्थ एहवू; अंतिः वादउ नमस्कार करओ., पे.वि. मूल-गा.१. पे.-७. पे. नाम. शक्रस्तव सह टबार्थ, पृ. २१आ-२२आ शक्रस्तव, प्रा., पद्य, आदिः नमुत्थुणं अरिहन्ताणं; अंतिः नमो जिणाणं. __ शक्रस्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमोस्तु भणी नमस्कार; अंतिः प्रति नमस्कार हुं. पे..८.पे. नाम. लघु अजितशान्ति स्तव सह टबार्थ, पृ. २२आ-२४अ अजितशान्ति स्तवलघु-अञ्चलगच्छीय , कवि वीर गणि, प्रा., पद्य, आदिः गब्भअवयार सोहम्मसुर; अंतिः सुह सयल सम्पज्जए. अजितशान्ति स्तव-लघु का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः गर्भइ आवतर्या जिन; अंतिः सुख सघला पामइ., पे.वि. मूल-गा.८. पे.९. पे. नाम. अजितशान्ति स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. २४अ-२७आ अजितशान्ति स्तवबृहत्-अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदिः सकलसुखनिवहदानाय; अंतिः सङ्घस्य मुदं. अजितशान्ति स्तव-बृहत् का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सकल भणीइं समस्त सुख; अंतिः अजितशान्ति युगलम्., पे.वि. मूल-श्लो.१७. १०३०१. कल्पसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५३-२८(८८ से ११५)+२(६५,१३४)=१२७, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ६-१२४३३-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंति: कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्व प्रणि; अंतिः१०३०२. दशविधयतिधर्म व सामायिक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. खंभातिबिंदर, ले. ऋ. अमर, (२५४११.५, १३४३६-३९). पे..१.१० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-८अ), आदिः सुकृत लत्ता वन; अंतिः सुजस लीला अनुभवइं. पे.२.३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः संयमे धीर सुगुरु; अंतिः विमल गुण वादे नुर., पे.वि. गा.१०. १०३०३.” बनारसीविलास सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७१२, श्रेष्ठ, पृ. १५०-१४(१ से १४)=१३६, पे. ७१, जैदेना., पठ.- श्राविका केसरबाई, प्र.वि. अंतमे रचना प्रशस्ति दी गई है., संशोधित, (२५४११, ९४३३-३४). पे.-१.पे. नाम. मुक्तिमुक्तावली भाषा, पृ. -अ१५-३०अ, अपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: सिन्दूरप्रकर- पद्यानुवाद भाषा, आ. बनारसीदास प्राहिं. पद्य वि. १६९१, आदि-: अंति: करनछत्र सित पाख.. पे. वि. गा. १०४. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे. २. पे नाम. वाणारसीदासबावनी सवीय, पृ. ३० अ-४२आ, संपूर्ण " सवैया बावनी, श्रा. बनारसीदास, मागु., पद्य, वि. १६८६, आदिः ॐकार सबद विहदया; अंति: गुणग्रहि लीजीयौ ., पे.वि. गा. ५२. " पे.-३. वेदनिर्णयपञ्चासिका, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४२आ - ४८आ, संपूर्ण ), आदिः जगत विलोचन जगतहित; अंतिः नर विवेक भुजबल रहित, पे.वि. गा.५१. पे-४. पे नाम, त्रिषष्टिजीव महापुरुष वर्ग, पृ. ४८आ-५०आ, संपूर्ण त्रिषष्टिशलाकापुरुष उत्पत्तिक्रम मागु, पद्य, आदि नमी जिनवर २ देव अंतिः रघुनाथ पदुमन वराम., पे.वि. संबद्ध-गा. १३. पे.-५. पे. नाम. बासण्ठीमार्गना विधान, पृ. ५०आ - ५२आ, संपूर्ण मार्गणा विधान, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, आदि: वन्दौ देव जुगादि अंतिः वनारसी कीजे मोख उपाउ.. पे.वि. गा.२८. पे. ६. कर्मप्रकृति विधान, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, वि. १७००, (पृ. ५२आ - ६६आ, संपूर्ण ), आदिः परमसङ्कर परमभगवान; अंतिः तव यह भयो सिद्धंत, पे.वि. गा. १७५. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-पद्यानुवादचोपाई, कवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. ६६आ- ७०अ संपूर्ण ), आदि: परमज्योति परमातमा: अंतिः कारन समकित शुद्धि, पे. वि. गा. ४४चोपाई. पे. ८. साधुवन्दना, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. ७० अ-७२आ, संपूर्ण ), आदि जिन भाषित भारती सुमर; अंति: पावइ अविचल मोक्ष., पे.वि. गा.३२. पे. ९. पे नाम, अध्यात्मपैडी, पृ. ७३अ-७५आ, संपूर्ण मोक्षमार्ग पयडी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, आदिः इक्कसमैरु विवन्तनौ; अंतिः मूढ न समुजो लेस., पे.वि. गा.२३. पे. १०. कर्मछत्रीसी, मागु पद्य (पृ. ७५आ-७८अ संपूर्ण) आदि परम निरञ्जन परमगुरु: अंतिः मूड वढावे श्रिष्टि.. पे.वि. गा.३७. " पे. ११. पे नाम, ध्यानबत्तीसी पृ. ७८अ ८०आ, संपूर्ण " ध्यानवत्रीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पथ, आदि: ग्यान सरूप अनन्त: अंतिः यथा सकति परवान, पे.वि. गा. ३५. पे. १२. पे नाम. अध्यात्मबत्तीसी पृ. ८१अ-८३अ संपूर्ण , " · ११७ अध्यात्मबत्रीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, आदिः सुध वचन सदगुरु कहें; अंतिः एह तत लहि पावे भवपार., पे.वि. गा.३३. पे. १३. ज्ञानपच्चीसी, जैनकवि बनारसीदास प्राहिं, पद्य, (प्र. ८३-८४आ, संपूर्ण), आदि: सुरनर तिर्यग जग अंति आपको उदे करण के हेतु., पे.वि. गा.२५. For Private And Personal Use Only पे. १४. शिवपच्चीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. ८४आ - ८६आ, संपूर्ण), आदि: ब्रह्म विलास विकास; अंतिः सोई शिवको रुप, पे. वि. गा. २७. पे. १५ सिन्धुचतुर्दशी प्राहिं, पद्य, (प्र. ८६-८७आ, संपूर्ण), आदि जैसे काहु पुरुष की अंतिः मुनि चतुर्दशी होइ, पे.वि. गा. १४. पे. १६. पे नाम श्रीधर्मधमाल, पृ. ८७आ-८९अ संपूर्ण अध्यात्म फाग, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, आदि अध्यातम बिनु क्यों अंतिः छोडो मोहदल फास. पे.वि. Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गा.१७. पे.-१७. पे. नाम. तिथिषोडशी, पृ. ८९अ-९०आ, संपूर्ण १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मागु., पद्य, आदिः परिवा प्रथम कला घटि; अंतिः साघु तुलसी वनवासी., पे.वि. गा.१६. पे.-१८. १३ काठिया दोहरा, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९०आ-९२अ, संपूर्ण), आदि: जे वट पारे वाट मै; अंतिः तो कहे वनारसीदास., पे.वि. गा.१८. पे.-१९. औपदेशिक गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९२अ-९३आ, संपूर्ण), आदिः मेरा मन का प्यारा; अंतिः चेतन सुमति सदा इकठाव., पे.वि. गा.३१. पे.-२०. पे. नाम. पञ्चपदविधान दोहरा, पृ. ९३आ-९४आ, संपूर्ण पञ्चपदविधान वर्णन, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, आदि: नमो ध्यान धर पञ्च; अंतिः पद उलटि सदा शिव होइ., पे.वि. गा.१२. पे:२१. सुमतिदेवी के अठोत्तरसतनाम दोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९४आ-९५आ, संपूर्ण), आदि: नमो सिद्धसाधक पुरुष; अंतिः यह सुबुद्धिदेवी वरनी., पे.वि. गा.६. पे.-२२. पे. नाम. जिनमुख शारदाष्टक, पृ. ९५आ-९६आ, संपूर्ण शारदाष्टक, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, आदि: नमो केवल २ रुप भगवान; अंतिः सुख तजे संसार कलेस., पे.वि. गा.१०. पे..२३. नवदुर्गा विधान, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९६आ-९८आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम हि समकित; अंतिः अनेक भांति वरनी., पे.वि. गा.९. पे.२४. नामनिर्णय विधान, प्राहिं., पद्य, (पृ. ९९आ-१००अ, संपूर्ण), आदिः काहु दिनका हू समै; अंतिः दाहे ते निरास निरलेप., पे.वि. गा.११. पे:२५. नवरत्न कवित, प्राहिं., पद्य, (पृ. १००अ-१०२आ, संपूर्ण), आदिः धन्वन्तरि छपनकै; अंतिः ए जग महमूरख विदित., पे.वि. गा.११. पे..२६. जिनपूजा अष्टक, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०२आ-१०३अ, संपूर्ण), आदिः जलधारा चन्दन पुहए; अंतिः दीजे अरथ अभङ्ग., पे.वि. गा.११. पे.२७.१० दान दोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०३अ-१०४अ, संपूर्ण), आदिः गो सुवर्ण दासी; अंतिः हित अहित आन की आन., पे.वि. गा.१४. पे..२८.१० बोल, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०४अ-१०५अ, संपूर्ण), आदिः जिन की बात कहुं समुज; अंतिः जहं कहिए जिनमत सोइ., पे.वि. गा.१२. पे:२९. कहरानामचाली, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०५अ-१०६अ, संपूर्ण), आदिः कुमति सुमति दोउ व्रज; अंतिः भई यहै सौति घर छांहि., पे.वि. गा.११. पे.-३०. पे. नाम. प्रश्नोत्तर कथानक, पृ. १०६अ-१०६आ, संपूर्ण प्रश्नोत्तरदसदोहरा, प्राहिं., पद्य, आदिः कौन वसु वपुमांह रै; अंतिः मै कंचन पाहन मांहि., पे.वि. गा.१०. पे:३१. प्रश्नोत्तरमाला , बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०७अ-१०८आ, संपूर्ण), आदिः नमित सीस गोविन्द; अंतिः भान ___ सुगुरु परसाद., पे.वि. गा.२१. पे.-३२. अवस्थाष्टक, मागु., पद्य, (पृ. १०८आ-१०९अ, संपूर्ण), आदिः चेतन लच्छन नियत; अंति: निराकार निरद्वन्द., पे.वि. गा.८. पे.-३३. षड्दर्शनाष्टक, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०९अ-१०९आ, संपूर्ण), आदिः शिवमत बोध; अंतिः सौ दशा छानवै और., पे.वि. गा.८. For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: पे.-३४. पे. नाम. चारवर्णन दोहरा, पृ. १०९आ - ११०अ संपूर्ण औपदेशिक पद- ४ वर्ण, प्राहिं., पद्य, आदिः जो निहचे मारग; अंतिः मिश्रित परिनाम, पे.वि. गा. ५. पे - ३५. पे नाम अजितनाथ के छन्द, पृ. ११०अ १११अ संपूर्ण अजितजिन छन्द श्रा. बनारसीदास, प्राहि., पद्य वि. १६७०, आदि गोयम गनहर पर नमीं अंतिः सेवक " शिरीमाल वनवासी. पे.वि. गा.४. पे.-३६. पे. नाम. शान्तिनाथ के छन्द, पृ. १११अ - १११आ, संपूर्ण शान्तिजिन छन्द प्राहिं, पद्य, आदि सहिएरी दिन आज सुहाया अंतिः धन्य सयानी सहीए., पे.वि. गा.२. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे. ३७. पे. नाम. शान्तिनाथ की त्रिभङ्गीछन्द दोहरा, पृ. १११आ- ११२आ, संपूर्ण शान्तिजिन त्रिभङ्गी छन्द जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, आदि विश्वसेन कुल कमल: अंतिः शान्तिदेव जय " जितकरन., पे.वि. गा. ५. पे ३८. नवसेना विधान प्राहिं, पद्य (प्र. ११२आ- ११४अ संपूर्ण) आदि प्रथम हि पत्निनाम अंतिः अच्छीहिनि परवानकिय, पे. वि. गा.१२. पे - ३९. समयसार सिद्धान्तनाटिक के कवित, प्राहिं, पद्य, (पृ. ११४आ-११५अ संपूर्ण), आदि प्रथम अग्यानी जीव अतिः रनति अष्टकर्मविनास ए.. पं.वि. गा.४. " पे. -४० मिथ्यात्ववानी, प्राहिं. पद्य (पृ. ११५अ-११५आ, संपूर्ण ) आदि नारायन देव को कह अंतिः वयनम्मि खवेई कप्पूर., पे. वि. गा. ४. ; पे. ४१. प्रास्ताविक कवित्त, जैनकवि बनारसीदास प्राहिं, पद्य, (पृ. ११५आ-११९आ, संपूर्ण), आदि: पूरव कि पछिम हो अंतिः पुद्गल के गुन वीस., पे. वि. गा.२३. पे:-४२. गोरख वचनिका, प्राहिं., पद्य, (पृ. १२०अ - १२०आ, संपूर्ण), आदिः जो भग देखि भामिनी; अंतिः विवाद करे सो अन्धा, पे. वि. गा. ७. , " " पे. ४३. वैद्य लक्षण, प्राहिं पद्य (पृ. १२०-१२३अ संपूर्ण), आदि: करमरोग की पर किति अंति: सहज सुष्टता सोइ., पे. वि. गा. ४१. पे. ४४. चीभङ्गी रूपकार वचनिका सङ्ग्रह, मागु, गद्य (पृ. १२३अ - १२५आ, संपूर्ण), आदि: एक जीव द्रव्यता के अतिः व्यवहारा तातकहिए. ११९ पे. ४५ आगम अध्यात्म स्वरुप प्राहिं. गद्य (पृ. १२५ आ- १२९अ संपूर्ण), आदि अगमवसु को जा भाव अंतिः कौनाउ मिश्रव्यवहार, 1 पे.-४६. हेयज्ञेयउपादेय विचार, प्राहिं., गद्य, (पृ. १२९अ - १३०आ, संपूर्ण ), आदिः हेय त्यागरूपनो; अंतिः हे भागाप्रवान. पे-४७. निमित्तकारनउपादानकारणनिर्णय सङ्ग्रह प्राहिं. गद्य, (पृ. १३० आ-१३६अ, संपूर्ण) आदि प्रथम ही कोई पूछ अंतः अशुद्ध रुपविचार. पे. -४८. निमित्तउपादान दोहरा, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (प्र. १३६अ १३६आ, संपूर्ण), आदि: गुरु उपदेस निमित्त: अंतिः मे करेजूं तेसौ भेस, पे.वि. गा.७. पे.-४९. औपदेशिक पद, बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३६आ - १३७अ, संपूर्ण), आदिः या चेतन की सब सुद्धि; अंतिः तब सुख होत बनारसीदास., पे.वि. गा. ४. पे. ५० औपदेशिक पद जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३७अ -१३७अ संपूर्ण) आदि चेतन तूं तिहुं काल , अंतिः होह सुहज सुरझेला, पे. वि. गा.४. पे.-५१. साधारणजिन स्तवन, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३७अ - १३७आ, संपूर्ण), आदि: मगन होइ आराधो साधो अंतिः तजे समकिती सेव, पे.वि. गा.८. For Private And Personal Use Only पे. ५२. जिनप्रतिमा एकादशी, जैनकवि बनारसीदास प्राहिं पद्य (पृ. १३८३-१३८आ, संपूर्ण), आदि इह विधि देव 1 Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अदेव की अंति: बनारसी शिवमारग साधइ., पे. वि. गा.११. पे. ५३. मूळ शिक्षा अष्टपदी, प्राहिं, पद्य, (पृ. १३८ आ- १३९अ संपूर्ण) आदि ऐसें क्यों प्रभु अंतिः विना तूं समजत नाही., पे.वि. गा८. www.kobatirth.org: पे. ५४. परमार्थअष्टपदी प्राहिं, पद्य (पृ. १३९अ - १३९आ, संपूर्ण) आदि ऐसे प्रभु युं पाईये अंतिः एकहि तबको कहि भेटे., पे.वि. गा. ८. पे.-५५. आध्यात्मिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १३९आ - १४०अ, संपूर्ण), आदि: तुं आतम गुण जाण; अंतिः अवर न कोई छुडावनहार, पे.वि. गा. ८. पे.-५६ . औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४० - १४०अ, संपूर्ण), आदि: रे मन कुरु सदा सन्तो; अंतिः को भूपति को रंक., पे.वि. गा. ४. पे. ५७. उधवावर वैराग्य, जैनकवि बनारसीदास प्राहिं. पद्य (पृ. १४० अ- १४१ आ. संपूर्ण) आदि वालम तु हुन्त नः J अंतिः छान नरोत्तम देउ., पे.वि. गा. २६. " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे ५८ औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. १४१-१४२अ संपूर्ण) आदि चेतन उलटी चाल चाले; अंतिः आगि जौ दबी पहार तले., पे.वि. गा. ४. पे. ५९ औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. १४२-१४२आ, संपूर्ण) आदि चेतन नै कुन तोहि अंतिः सुमिरन भजन आधार., पे.वि. गा. ४. पे. ६० औपदेशिक पद प्राहिं. पद्य (पृ. १४२ आ-१४२आ, संपूर्ण), आदि: कोऊ सरल कहै दुविधा अंतिः ही बलि बलि वाछनकी., पे. वि. गा.४. पे. ६१. आध्यात्मिक पद प्राहिं पद्य (पृ. १४२आ-१४३अ संपूर्ण), आदि हम बैठे अपने मौन अंतिः सुरझे · आवागमनसौ., पे.वि. गा. ४. . पे. ६२. साधारणजिन पद, जैनकवि बनारसीदास प्राहिं, पद्य, (पृ. १४३२-१४३आ, संपूर्ण), आदि: सुखदायक सुख एव 1 जगत; अंतिः करत वनारसि सेव, पे.वि. गा. ४. पे. ६३. पे. नाम. रामाइन, पृ. १४३आ-१४४अ संपूर्ण रामायन अष्टपदी, प्राहिं., पद्य, आदिः विराजै रामायन घटमां; अंतिः निहचै केवल राम, पे.वि. गा.८. पे.-६४. सद्गुरुआलाप दोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४४ - १४४आ, संपूर्ण), आदि: ज्यौं दातर दयाल होइ; अंतिः मिनलै उंचा त्रिक मेह., पे.वि. गा.६. पे. ६५. ऑपदेशिक अष्टपदी-भोन्दुभाई, प्राहिं पद्य (पृ. १४४ आ-१४५अ संपूर्ण) आदि भोन्दू भाई समुझु अंतिः कै गुरुसंगति खोलइ., पे.वि. गा. ८. पे.-६६. औपदेशिक अष्टपदी-भोन्दुभाई, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४५ - १४५आ, संपूर्ण), आदि: भोंदूभाई ते हिरदै; अंतिः निरविकल्प पद पावै., पे.वि. गा. ८. पे.-६७. औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. १४६अ - १४६अ, संपूर्ण ), आदि: तूं भ्रम भूलि नरे; अंतिः ना करु होड विरानी पे.वि. गा.२. · पे. ६८. पार्श्वजिन गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं, पद्य, (पृ. १४६अ १४६अ, संपूर्ण), आदि चिन्तामणि सामी सच्चा अंतिः बनारसी बन्दा तेरा., पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only पे.-६९. परमार्थहिण्डाल अष्टपदी, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४६आ - १४७आ, संपूर्ण), आदि: सहज हिण्डोलना हरष; अंतिः सौ नमत कौ सो दास., पे.वि. गा. ८. पे.-७०. औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १४७आ-१४८आ, संपूर्ण), आदिः देखो भाई महाविकल; अंतिः वनारस होइ० धन लूटे., पे.वि. गा. ८. पे.-७१. बनारसीविलास बीजक, प्राहिं., गद्य, (पृ. १४९अ - १५०आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः #. Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १२१ १०३०५. पण्णवणासूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८७-९६ (१ से ९६ ) + १ (१३५) = १९२, जैदेना., प्र. वि. रचना प्रशस्ति नहीं है., पू. वि. प्रारंभ के व अंतिम पत्र नहीं हैं. (२६४१०.५. १३४४५-४७). " प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि : -; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ले. - १०३०६. पिस्तालीस आगम पूजा व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पोसाल, उपा. सुमतिसोम, पठ. - श्रा. ललुभाई शेठ, प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६११.५, १३-१४X३२-३६). पे. १.८ प्रकारी पूजा- पिस्तालीस आगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, (पृ. १आ-७आ), आदिः श्रीशङ्खेश्वर पासजी; अंतिः सङ्घने तिलक कराओ रे., पे.वि. गा. १७५. पे. २. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदि: वीरं देवं नित्यं अंतिः शनो देवि दयादम्भ पे. वि. श्लो. १. १०३०७. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना, प्र. वि. १० अध्ययन २चूलिका गा. ७०० (२६५११, ११४३९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मगलमुक्किट्ठ: अंतिः कहणा पवियालणा सड़घे. १०३०८. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- २श्रुत. / २० अध्य., (२५.५X११, ११४३६-३८). विपाकसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं अंतिः सेसं जहा आयारस्स. · १०३०९. तेजसार रास, संपूर्ण वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. स्थल मैसाणा, ले. गणि जिनविजय (गुरु गणि माणक्यविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल -३९, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५X११, १६१९३५-४३). तेजसारकुमार रास, मु. नेमिविजय, मागु, पद्य, वि. १७८७, आदि परम परमेश्वर परम: अंतिः थायो नेमि सदा सुखकार. १०३१०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - २४ स्तवन, ( २६ १०.५, १०X३९-४२). गीतचौवीसी, मु. आनन्द, मागु., पद्य, आदिः आदि जिणन्द मया करो; अंतिः आणन्द मुनि गुणगाया. १०३११. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना. (२३.५x१०.५, १०x२६-२८). स्नात्रपूजा सङ्ग्रह *, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदिः मुक्तालङ्कार विकार; अंतिः उतारी राजा (+) कुमारपाल. १०३१२. साधुवन्दना, संपूर्ण वि. १७४२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. स्थल स्तंभतीर्थ, प्र. वि. डाल-७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२४४११, ९४२८-३३). साधुवन्दना, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः प्रणमुं श्रीऋषभादि; अंतिः सेवक जसविजय वाचक भणइ. १०३१३. जयतिहुयण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना ले. स्थल मंबोइ, प्र. वि. मूल-गा. ३०: टीकाग्रं. " २५०., (२५x१०.५, ९४२४-२६). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि प्रा. पद्य आदि जयतिहुयणवर कप्परुक्ख: अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदिः अत्रायं वृद्ध; अंतिः त्रिलोकलोकश्लाघितः. , १०३१४. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ५१., (२५X११, २-३x४४-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति अणन्तभागो य सिद्धिगओ नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ मागु, गद्य, आदि सरस्वती भणी नमस्कार अंतिः वखाण्या श्रीवीतरागे. १०३१५. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले.- मु. हस्तिविजय, प्र. वि. ढाल - ३१, (२३.५४११, १६४३७-३९). For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: १२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै .. १०३१६. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदेना., ले. स्थल. सूरतबिंदर, ले. मु. मोहनरत्न, प्र. वि. ढाल -४ उल्लास, (२५.५x११.५, १६४४० - ४१). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १०३१७. २४ तीर्थङ्कर स्तुति, संसारदावा स्तुति व पञ्चिन्दिय सूत्र, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले. मु. विनीतविजय (गुरु मु. प्रीतिविजय तपागच्छ) पठ- श्राविका मधुरीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम ( २५४११, १०-११४२८-२९). पे.- १. महावीरजिन स्तुति, मु. जयतिलक, मागु., सं., पद्य, (पृ. १आ - ५आ), आदिः कनक तिलक भाले हार; अंतिः स्तौमि सूत्रं समग्रं ., पे.वि. श्लो. ३९. " पे. २. पे. नाम. श्रीवीर स्तुति, पृ. ६अ-६आ संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., प्रा., पद्य, आदि: संसारदावानलदाहनीरं; अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो. ४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ३. ये नाम आचार्यगुण गाथा, पृ. ६आ-६आ पञ्चिन्दियसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः पञ्चिदिअ संवरणो तह; अंतिः छत्तीसगुणो गुरु मज्झ., पे.वि. गा.२. १०३१८. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. श्रा. गणेश, प्र. वि. ढाल - १२, ( २६११.५, ११४२८ ३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही. १०३१९. इलाचीकुमार रास, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना ले. मु. लब्धिचन्द्र (गुरु गणि धर्मचन्द्र), पठ- श्राविका " " कल्याणी, प्र. वि. बाल-१६ (२५५११, ११४३२-३५). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा: अंतिः ज्ञान दर्शन अजूआले. १०३२०. जीवाभिगमसूत्र विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना. ले. श्राविका भारतीकृष्ण, (२५.५५११.५ १३४३६ ३८). जीवाभिगमसूत्र-विचार, संबद्ध, मागु, गद्य, आदि जीवाभिगमउपाङ्ग अंतिः बिहुगतिमाहिथी आवइ. १०३२१. निमित्तसंहिता, पूर्ण, वि. १९३९ श्रेष्ठ, पृ. ६१-२ (१ से २) ५९, जैदेना. प्र. वि. अध्याय- २६. अंत में कल्याणसागरसूरि का उल्लेख होने से वह प्रतिलेखक होने की संभावना है. (२४.५४११, १३४३३-३४). भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः नामा पुन्यश्च साधवः. १०३२२. गुणावलि रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२६४११, १५४४५). . गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः प्रणमुं चउवीसे; अंतिः मनवञ्छित पावन्त. " १०३२४. जिनजन्ममहोत्सव व चौदस्वप्न स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले. मु. निपुणसौभाग्य, पठ. - श्राविका सोमकोरबाई, ( २६११.५, ११३१). पे.-१. जिनजन्मादिक चौढालिया, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ३अ), आदि: सरस वर कुसुमस्यूं : अंतिः करति शुभ याचन्ति ., पे.वि. ढाल - ४, गा.४९. पे:-२. १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ३अ - ५आ), आदिः देव तिर्थङ्कर केरडी; अंति: लावण्य समये भणे ए. १०३२५. जम्बूस्वामी चौपाई, संपूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले. रामनाथ व्यास, प्र. वि. ढाल - ४६, ( २६ ११.५, १५४४२-४३). For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १२३ जम्बूस्वामी चौपाई, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः तिण कालै ने तिण समै; अंतिः तेतो समजावण नरनार हो. १०३२६. रत्नचूड रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.३०६ तक है., (२६४११, १९ २०४३९-५४). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५०९, आदिः सरसति देवी पाय नमी; अंतिः१०३२७. ऋषभपञ्चाशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- पं. हेमहंस गणि, प्र.वि. मूल-गा.५०., त्रिपाठ, (२६४११.५, ३-४४३८). ऋषभपञ्चाशिका , कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टीका, गणि नेमिचन्द्र, सं., गद्य, आदिः नत्वा जिनेन्द्रवीरं; अंतिः मध्यस्थाः कृतकृपाश्च. १०३२८. संवेगरस चन्द्राओला, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.४९; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १३५, (२६४११.५, ९ १०४३७-३८). संवेगरस चन्द्राओला, ऋ. लीबो, मागु., पद्य, आदिः प्रहऊठी रे भगवती; अंतिः दयाल पाए लागस्युजी. १०३२९. स्थम्भनकपार्श्वजिन स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., (२६४११, ४४२५-२८). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अभयदेवसूरि नवाङ्गी; अंतिः थयो आनन्दइ स्तव्या. १०३३०." भक्तामर स्तोत्र, पार्श्वनाथ स्तोत्र व शखेश्वरपार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, प्र. ५, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११, ११-१२४२८-३०). पे.-१. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे.२. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., पद्य, (पू. ५अ-५अ), आदिः ॐ नमः पार्श्वनाथाय; अंति: मे वाञ्छितं नाथ., पे.वि. श्लो.५. पे..३. पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः सेवो पास शर्केश्वरो; अंतिः आपो आप तुठा., पे.वि. गा.७. १०३३१. दानशीलतपभावना चौपाई, पूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, जैदेना., ले.स्थल. अवरंगाबाद, ले.- ऋ. हेमराज (गुरु ऋ. कान्हजी), पठ.- श्राविका धनबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-४, गा.९६, पू.वि. गा.१ से ८ तक नहीं है., (२६४११, ११४३५). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदि:-; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. १०३३२. आत्मानी आत्मता, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पाटडीनगरे, ले.- पं. निधानविजय, प्र.वि. द्विपाठ, (२६४११, १२४३७-३९). आत्मा के ६५ गुण, मागु., गद्य, आदिः असङ्ख्यात प्रदेशी; अंतिः सदहो तो पार पामस्यो. १०३३३. सिद्धहेमशब्दानुशासन-धातुपाठ, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १५४४९-५०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंति:१०३३४. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६, गा.८५, (२५४११, ९-१०४३०-३३). महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः विमलकमलदललोयणा दिसे; अंतिः शुभविजय शिष्य जयकरो. १०३३५. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-७, गा.१३६, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची स्याही फैल गयी है-अल्प, (२३.५४१०, १२४४३-४५). महावीरजिन स्तवन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः सकल कुशल तरुयर सजल; अंतिः स्तव्यो जिन जग जयकरो. १०३३७. आत्मासहस्रनाम स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. आमोद्रनगर, ले.- मु. दोलतविजय (गुरु मु. कृष्णविजय), प्र.वि. १०शतक, गा.१०२, (२४४१०, ११४३०-३२). जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९०. १०३३८. सारस्वतप्रक्रिया की टीका, संपूर्ण, वि. १६९७, मध्यम, पृ. १३८, जैदेना., ले.स्थल. सीरोही, ले.- गणि कनकरत्न (गुरु आ. कल्याणरत्नसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ३वृत्ति, ग्रं. ७०००, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (६२८) भग्न मुष्टी कटि ग्रीवा, (२५.५४११, १७X४७). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः बुधैश्चिरम्. १०३४०. अवन्तिसुकमाल, कर्माधिकार सज्झाय व अष्टमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. साणंदनगर, ले.- मु. गौतमविजय, (२३.५४१०, ११-१२४३४-३७). पे.१. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, (पृ. १अ-८अ), आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः ___ सुख पावे रे., पे.वि. ढाल-१३, गा.१०३. पे..२. कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः देव दाणव तीर्थङ्कर; अंति: नमो कर्म महाराजा रे., पे.वि. गा.१७. पे..३. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः मङ्गल आठ करी जिन; अंतिः तपथी कोडि कल्याणजी., पे.वि. गा.४. १०३४१. मृगावती रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१-३(१,६ से ७)=१८, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-३, (२४४१०.५, १३४४५-४६). मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, आदि:-; अंतिः वृद्धि सुजगीसा बे. १०३४२. वाग्भट्टालङ्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. ५परिच्छेद, (२५४१०.५, ११४३८-४१). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वतध्यायिनः. १०३४४. कृतकर्म चौपाई, अपूर्ण, वि. १६५८, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(६)=८, जैदेना., ले.स्थल. अकेउला, प्र.वि. गा.२५०, पृ.वि. बीच का ___ एक पत्र नही है. गाथा १४५ से १७४ तक नही है., (२५४१०.५, १४४४७). कृतकर्म चौपाई, मागु., पद्य, आदिः पढम पणमु नाभि; अंतिः तेहनइ सवि मिलइं. १०३४५. आतमउपदेश स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. दोलतविजय, प्र.वि. ढाल-५, (२४.५४१०.५, १०-११४२९). औपदेशिक स्तवन, मु. दोलतविजय, मागु., पद्य, वि. १८७७, आदिः सरसति भगवति भारति; अंतिः कहे० आत्म उपदेश कए. १०३४६. सूयगडाङ्गसूत्र श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १६५८, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- शवजी जोसी, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ८५०., (२५.५४१०.५, ९४३४). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः१०३४७.” सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२०, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-२३., दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११, ५४३६-३७). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बुज्झि० छकाय जीवना; अंतिः प्रणीत धर्म पालइ छइ. For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १२५ १०३४८. सारस्वतीप्रक्रिया की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. मूल का मात्र साक्षिपाठ है., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, १३४३८)... सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंति:१०३४९. गीतवीसी, पूर्ण, वि. १७४०, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(३)=१६, जैदेना., प्र.वि. २० गीत. लिखावट से पता चलता है कि लिपि २०वी की है.,पू.वि. गीत ३ अपूर्ण से ६ अपूर्ण तक नहीं है., (२४.५४११, ११४३५). विहरमान २० जिन स्तवन-वीसी, लीबउ, मागु., पद्य, आदिः सरसति सामिणि कर; अंतिः अविचल पदवी मागू. १०३५०. सकलार्हत् चैत्यवन्दन, साधुपाक्षिकअतिचार, एकादशी व पञ्चमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., (२४.५४११, १२-१४४३२-३३). पे.-१. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः तानि वन्दे निरन्तरम्., पे.वि. श्लो.३५. पे.२. पे. नाम. साधुपाक्षिकअतिचार, पृ. २आ-५अ साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदि: नाणम्मि दंसणम्मिय; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे-३. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ __ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे.४. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. १०३५१." स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७३०, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, लिखवा.- श्रा. हीरजी शाह, प्र.वि. २४ स्तवन, (२४.५४११, ८x२९-३२). जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः ऋषभदेव नितु वंदिये; अंतिः निज भजनमां दास राखो. १०३५२. अजितशान्ति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.४०, (२४४१०.५, १०x२४-२५). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह १०३५३. दसदृष्टान्त गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१०, (२४.५४१०.५, ११४३३-३५). १० दृष्टान्त गीत, आ. सोमविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सरसति मझ मति दिउ; अंतिः जपइ एहवी वाणी. १०३५४.” तेजसार रास, संपूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-२८, (२५.५४११, ११४३३). तेजसारकुमार रास, मु. खेमविजय, मागु., पद्य, आदिः सुखदाई सारदा तीभुवन; अंतिः सङ्घ मनोरथ फलीयाजी. १०३५५. सप्ततिका कर्मग्रन्थ की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. मूल का प्रतिकपाठ मात्र दीया है., (२५.५४११, १५४४८-५०). सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्ध० सिद्धानि चालय; अंतिः कथयितुं गाह०स्पष्टा. १०३५७." निर्णयप्रभाकर, संपूर्ण, वि. १९४६, मध्यम, पृ. ११५, जैदेना., ले.- मु. माणकचन्द (गुरु मु. रुपविजय), प्र.वि. ग्रं. १५५१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४.५४११.५, ८-९४२४-२८). निर्णयप्रभाकर, पाठक बालचन्द्र, सं.,हिन्दी, प+ग, वि. १९३०, आदिः श्रीजैनेन्द्रवचः; अंतिः निर्णीय च. १०३५८. नन्दिसूत्र की टीका, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६७-२(४५ से ४६)=१६५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ७७३२, (२६४११, १५४५१-५४). नन्दीसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, (संपूर्ण), आदि: जयति भुवनैकभानुः; अंतिः जैनोधर्मश्च मङ्गलम्. १०३५९. पौषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. साणंद, ले.- मु. हेमविजय, (२३.५४११, १०x२६ ३२). For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः इदं सम्बन्धं रचनीयम्. १०३६०. कल्पसूत्र सह सुबोधिका टीका, अपूर्ण, वि. १७३६, मध्यम, पृ. १९६-७४(१,६ से ७८)=१२२, जैदेना., प्र.वि. मूल-९ व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, (२६४११.५, १२-१५४१८-५१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदि:-; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. १०३६१. उपमतिभवप्रपञ्च कथा, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८१, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-८, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र रचनाप्रशस्ति अधुरी है., (२६.५४११, १९४६१). उपमितिभवप्रपञ्चाकथासारोद्धार, आ. देवेन्द्रसूरि, आधारित, सं., पद्य, वि. १२९८, आदिः ॐनमो विषयातीतरूपाय; अंतिः श्रियं प्राप्नुत. १०३६२. सत्तरीसयठाणा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५९-४(६ से ७,२४ से २५)=५५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३५९., (२६.५४११, ५४३२-३५). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, (अपूर्ण), आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो सिद्धिठाणे. सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः ऋषभादिक जिनेन्द्र; अंतिः सिद्धिस्थानकनई विषइ. १०३६३. धम्मिल रास, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. ४०+१(३७)=४१, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदर, ले.- पण्डित खिमाविजय (गुरु गणि विनयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-३ ढाल-२०, (२६४११.५, १३-१४४३६-४२). धम्मिल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१५, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः सयल प्रकारो रे. १०३६४. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- मु. रामसागर (गुरु गणि दोलतसागर),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-खंड४, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १४४४३). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः सकल श्रेणि में; अंतिः मोहनविजय विलासजी. १०३६५.” चौदगुणठाणा विचार, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, त्रिपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६x११x). १४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, आदिः कर्मनी मूल प्रकृति; अंति:१०३६६. सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ व चौदनियम गाथा, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- मु. मेहविजय, (२५.५४११, ६४३६-३८). पे.-१. पे. नाम. सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमीनई त्रिणलोकना; अंतिः लहइ ईहां सन्देह नही., पे.वि. मूल गा.७६. पे.२. श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु., पे.वि. गा.१. १०३६७. नवकार रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-२१, (२५४११.५, १४४४०-४१). नमस्कार महामन्त्र रास, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, आदिः श्रीमत गोडी जगधणी; अंतिः लब्धि भणे सुखदाय रे. १०३६८. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. जालोरनगर, ले.- मु. गुणसागर, प्र.वि. ढाल २९, (२५.५४११.५, १४४३८-४१). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवंछित फल For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १२७ लहिस्यैजी. १०३६९. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- पं. रणछोड गणि (गुरु वा. इसरजी गणि, खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.१४६, (२६४११.५, १२-१३४४२-४६). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः १११ पदं त्रयवृद्धिकर; अंतिः यामेन तथैकदिवसेन तु. १०३७०." आर्द्रकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १७३२, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. अनहल्लपुरपत्तन, ले.- मु. धमेचन्द्र (गुरु गणि ज्ञानचन्द), गच्छा.- आ. अमरसागरसूरि(अञ्चलगछ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२९७, ग्रं. ४५१, ग्रंथ रचना के ___ समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४११, २१४६१-६३). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२७, आदिः सकल सुरासुर जेहना; अंतिः प्रति देउल गेहे रे. १०३७१. नमस्कार चौवीसी, स्तुति चौवीसी व पञ्चजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ७, जैदेना., (२६४११, १४ १५४३२-३४). पे-१. नमस्कार चौवीसी, मु. लखमो, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः पढम जिणवर २ पाय; अंतिः भणइ सफल करो संसार., पे.वि. अध्याय-२४नमस्कार+कळश. पे.२.२४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः कनक तिलक भाले हार; अंतिः होउ मे ज्ञानधारा., पे.वि. गा.२७. पे.-३. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः सेत्रुज रलीआमणो तीरथ; अंति: मागुं मनने उल्लासे., पे.वि. गा.५. पे.-४. शान्तिजिन स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः देउइहपुरी दीपइं; अंतिः समरथ तुहिं ज देवा., पे.वि. गा.५. पे.५. नेमिजिन स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः उज्जलगिरी अमहे जाइस; अंतिः सेवक ___उद्धरुए., पे.वि. गा.५. पे.६. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः सकल मूरति त्रेवीशमो; अंतिः ननसूरि मङ्गल करुए., पे.वि. गा.५. पे:७. महावीरजिन स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः साचुंरि परवर्या जगत्; अंतिः सुखदायक ते सवे., पे.वि. गा.६. १०३७२. रोहणीया रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. गा.३४७, (२५.५४११, १३४४०-४३). रोहिणीयाचोर रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६८८, आदिः सार सकोमल बुधिभली; अंतिः सुष पामे चिर कालोजी. १०३७३. नवकार का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२६४११.५, ९-१०x२८-३२). नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः अरिहन्त प्रति माहरो; अंतिः मङ्गलीक होये. १०३७४. चैत्यवन्दन चौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. २४ चैत्यवंदन, (२५४११, ९४३१). नमस्कारचौवीसी, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः सोमवदन रवि ऊगते जयो; अंतिः पद्म करे प्रणाम. १०३७५. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. धारासण, ले.- पं. रूपसागर, पठ.- मु. हेमचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-६६ खंड४,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (४६०) यां लगि मेरु महीधर; (६०७) जलं रक्षे थलं रक्षे, (२६४१२, १५-१६x४०-४५). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः सकल श्रेणि में; अंतिः मोहनविजय विलासजी. १०३७६. गच्छाचार पयन्ना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. गा.१३७, (२६.५४११.५, ३४३६). For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १२८ www.kobatirth.org: गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. १०३७७. स्तवनवीसी व गाथा संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. भावनगर, ले. पं. जीतकुशल (गुरु पं. दीपकुशल), पठ. - श्राविका लाडुबाई, ( २६४१२, १३४३६-३७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.-१. विहरमानजिन स्तवनवीसी, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७उ., (पृ. १अ - ८अ ), आदिः सीमन्धरस्वामी सुणजो अंतिः लहिई मद्गल कोडी, पे.वि. २० स्तवन, ग्रं. २५०. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ - (अ), आदिः#; अंतिः#. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०३७९. धनाशालीभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. १२१, जैदेना., ले. स्थल. सूर्यपुर, ले. गणि रामविजय, प्र. वि. ढाल ८५. गा. २२५० ग्रं. ३०४५ (२६.५४१२, १२४३३-३४). धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९९, आदि: ऐन्द्रश्रेणि नत; अंतिः पाये सुच्छायो रे. १०३८०." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४१२, ४-१५४३९-४१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः कार्येषु सिद्धिं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि बारगुण सहीत श्रीअरि०: अंतिः विषइ सिद्धि प्रतइ. १०३८१.” चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., ले. स्थल. राधनपूर, ले. पं. कनकराज (गुरु पं. भीमराज), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १०८, ४ उल्लास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६४११.५, १५०४६-४७). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७८३, आदि प्रथम धराधव तीम अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १०३८३. शीलवती रास, पूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. १०० - १ ( १ ) - ९९, जैदेना. ले. स्थल. कपडवांणिज्यनगर, ले. मु. दीपविजय ( गुरु गणि केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. खण्ड-६ ढाल८४, गा.२०६१, पू. वि. दोहो नहीं है., ( २६ १२, १४४३२-३३). . शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मागु., पद्य, वि. १७५०, आदि: -; अंतिः वृद्धि पद थाजो हे.. १०३८४. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदरे, ले. - पं. मोहानानन्दविजय (गुरु पं. सुखविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - १० अध्ययन २ चूलिका., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (३२३) जलात् रक्षे स्थलात् रक्षे, ( २६.५X११.५, ४३६-३७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः कहणा पवियाला सङ्घे. " दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः ध० श्रीजिनधर्म; अंतिः सम्बन्ध कह्यो.. - १०३८५. अष्टप्रकारी पूजारास संपूर्ण वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., ले. स्थल राजनगर, ले. मु. दीपविजय (गुरु गणि केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. डाल - ७८ प्र. पु. मूल-ग्रं. २०८६ (२६४१२, १४-१५X३६-३७). ८ प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदि: अजर अमर अविनाश; अंतिः सम्पति बहु पाया रे .. (+) १०३८६.” भावभावनासूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. १२३, जैदेना., ले. स्थल. सूरतबिंदरे, ले. पं. खेमविजय (गुरुगणि विनयविजय आनन्दसूरिगछे), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ५३१ टबार्थ ग्रं. ३४२५. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५४११.५. ५-१३४३०-३२). भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णमिरसुरवर; अंतिः कीरउ अलङ्कारो. भवभावना-टबार्थ, पं. शान्तिविजय गणि, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरेन्; अंतिः चतुस्त्रिंशत्शतानि च. १०३८७. उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ग्रं. १९०० (२७१२, १३x४०-४३). उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह मागु., प्रा., पद्य, आदिः साधु एक ठिकाणइ रहइ: अंतिः परें सुष पांगे. For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०३८८. श्रीपाल रास खण्ड-४ सह टवार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ५४ जैदेना., ले. स्थल सोझंतराग्रामे, ले. मु. लावण्यसौभाग्य (गुरु मु. रत्नसौभाग्य), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-खण्ड- ४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११. ६x२८-३५). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३८, आदि: अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी. श्रीपाल रास-टवार्थ मागु. राज, गद्य, आदि:-: अंतिः उत्कण्ठा सम्पूर्ण थई. · " " www.kobatirth.org: १०३८९.” रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - खंड४, ( २६.५×११.५, १२×३६-३९). 1 रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि: सकल श्रेणि में; अंतिः मोहनविजय विलासजी. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०३९०.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११७- १ ( २३ ) - ११६, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति - अक्षर अनियमित है। टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६X११.५x). आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय संबद्ध प्रा. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं०: अंति: , " श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय- बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७५१, आदि: बार गुणे करि सहित; " अंतिः १०३९१. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व गाथा संपूर्ण वि. १८२० श्रेष्ठ, पृ. ५२ पे. २, जैदेना. ले. स्थल. समरेला, ले. ऋ. लालजी, (२७x११.५, ७-८x४१-४२). पे. १. पे नाम. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-५२आ उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी: अंतिः दिवसेसु अगं तहेव उपासकदशाङ्गसूत्र-टवार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु, गद्य वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीर अंतिः कीजइ पछे समुदेस कीजे., पे. वि. मूल- अध्याय १०. पे. २. जैन गाथा प्रा. पद्य (प्र. ५२आ-५२ आ), आदि #; अंतिः #. १२९ १०३९२." चन्दाराजा रास, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०४, जैदेना. प्र. वि. ढाल -४ उल्लास, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू. वि. अंतिम पत्र नही है. प्र. पु. का पत्र नही है., (२७X११, १२X४५-४७). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, (संपूर्ण), आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. " १०३९३.” उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. १२८ + १ (९६) = १२९, जैदेना., प्र. वि. ३६अध्ययन, संशोधित, ( २६.५X११, ९४३१-३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स: अंतिः पुव्वरिसी एव भासन्ति .. " १०३९४. अन्ययोगव्यवाच्छेदद्वात्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. ९३ जैदेना. ले. स्थल, बीकानेर, ले. गोवरधन व्यास, प्र. वि. श्लो. ३२. ग्रं.ग्र. ३१३२, (२७४११.५, ११४४२-४६). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि अनन्तविज्ञानमतीतदोष: अंतिः कृतपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वाद्द्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः सास्त्यत्र सम्यग्यतः. १०३९५. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले. पं. खेमविजय (गुरु गणि विनयविजय, आनन्दसूरिगछे), प्र. वि. खण्ड-४ (२०१२ १४-१५९३५-३६) श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३० www.kobatirth.org: अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी. १०३९७. ओघनिर्मुक्ति सह टीका, पूर्ण, वि. १५८१, मध्यम, पृ. १८२-३ (१,९,१२६ ) - १७९, जैदेना. ले. ऋ. पकादीवेचा, प्र. वि. मूल - गा. ११४९, (३०x११.५, १३४५४-५६). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-: अंति: गुणवन्नेहिं सम्मत्ता. ओघनिर्युक्ति- टीका#, आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः संहननो सिद्ध्यतीति. १०३९८. चतुःशरणप्रकीर्णक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९-१(३) = ८, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ६३., पू.वि. गा. १४ से २४ तक नहीं है., ( २८.५x११, १३५२-५३ ). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र प्रा. पद्य, आदि सावज्ज जोग विरई: अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि पहिलं छ आवश्यकनां अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ. " १०३९९. उत्तराध्ययनसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७६ - १४ (४६ से ५८, ७० ) = ६२, जैदेना., प्र. वि. ३६अध्ययन, ( २८.५x१०, ११x४३-४९). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि १०४००. सुक्तावली सह बालावबोध व रहस्यश्लोक, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ८१, पे. २, जैदेना. ले. मु. जिनविजय (तपागच्छ), प्र.ले. श्लो. (५६५) याद्रसं पुस्तकं दृष्ट्वा (६२९) जलाद्रक्षेत् तलाद्रक्षे, ( २६.५×११, १४९४७५०). पे. १. ये नाम सुक्तावली सह बालावबोध, पृ. १आ-८१आ सूक्तमाला मु. केशरविमल सं. मागु पद्य वि. १७५४ आदि सकलसुकृतवल्लिवृन्द अंतिः गम्य विचारणीयं. " " P सूक्तमाला-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः तदनुक्रम सङ्ग्रहो; अंतिः कहेता विचारुवु., पे. वि. मूल- अध्याय - ४ वर्ग. पे.-२. रहस्य श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ८१आ-८१आ), आदिः लोकगनिरव्रतेः रति; अंतिः युक्तो हि बन्धकृत्., पे.वि. श्लो. १. १०४०१. स्तवनचौवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ६५+१ (५७) = ६६, जैदेना, प्र. वि. पंति-अक्षर अनियमित है। मूल - २४ स्तवन बालावबोध - अध्याय - २४स्तवन. त्रिपाठ, (२७४११.५X). " स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदि: ऋषभ जिणिन्दसु; अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी. स्तवनचौवीसी- बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः तेम संसारी जीव देव; अंतिः मोक्षनो परमोपाय. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः रमइ स्वेच्छा . उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः च जाई मरणं वयंति. १०४०२. आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६८७, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., ले. स्थल राजनगर, प्र. वि. २५अध्ययन, (२७११.५, ११x४२-५०). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि १०४०३.” उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ व बालावबोध, पूर्ण, वि. १७८१ श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)-७, जैदेना. ले. स्थल. दोयनडीग्रामे, ले. - मु. तिलोक, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - गा. ३६., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है - अल्प, (२६×१०.५, २४५०-५१). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि प्रा. पद्य, आदि: अंति वच्छलिइ रमइ सच्छाए १०४०४. योगशास्त्र प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ( २६.५x११, १५x५०-५२). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः १०४०५.” सङ्ग्रहणीसूत्र व साधुअतिचारगाथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २०, पे. २, जैदेना., पठ. - मु. रत्नविजय, प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ - कुछ पत्र ( २६ ११, ९४३५-३७ ) . For Private And Personal Use Only पे. १. बृहत्सग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी (पृ. १अ-२०आ), आदि: नमितं अरिहन्ताई: अंति जा , Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १३१ वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.२७४. पे.२. पे. नाम. साधुदेवसिकप्रतिक्रमणअतिचारचिन्तवणगाथा, पृ. २०आ-२०आ साधुअतिचारचिन्तवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सयणासणन्नपाणे; अंतिः वितहायरणेय अइयरो., पे.वि. गा.१. १०४०६. वीतरागस्तोत्र- हिस्सा सह टीका व सप्तपदार्थी, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १५४५४-५८). पे:१. वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-१०अ, प्रतिपूर्ण), आदिः सत्वस्यैकान्तनित्य; अंतिः मुह्यन्ति शेमुषो. वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश-टीका, सं., गद्य, आदिः ननु सिद्धं स्वयं; अंतिः नेकांतो नानुमन्यते. पे..२. सप्तपदार्थी, शिवादित्य मिश्र, सं., गद्य, (पृ. १०अ-१०आ-, अपूर्ण), आदिः हेतवे जगतामेव संसारा; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १०४०७. संवेगरसायनबावनी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.५३, (२६.५४११, १०-११४२८-३४). संवेगरसायनबावनी सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः धरे नित नित जय जयकार. १०४०८. नवतत्त्व भेद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. गोगा, (२६.५४११, १३४३७-४४). नवतत्त्व प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः नवतत्त्व मांहि रुपि; अंतिः सुत्रमा कर्तुं छे. १०४०९. जम्बूद्वीप प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-संक्षेप-गा.१२७,, ग्रं. ३७५., (२७४११, ६४३६). बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः तेरगुलद्धहिअं. बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमीनें जलसहित मेघ; अंति: १२८धनुष अगुल. १०४१०. भुवनदीपक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१७१., (२७४११, १४४४५-४७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, आदिः सरस्वत्याः संबन्धि; अंतिः विस्तार्यमाणाबुधैः. १०४११.” दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८४, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. योगिनीपुर, ले.- ऋ. श्रीपाल, पठ.- साध्वीजी उदयलक्ष्मी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १०२१, (२७४१०.५, ९४३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः निच्चला होसु. १०४१२. अञ्जनासुन्दरी रास व बारमासु, संपूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. २१, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. क्यांमखांचक्क, ले. पं. हंसहर्ष (गुरु वा. गुणनन्दन गणि, खरतरगछ), प्र.वि. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, (२५.५४११, १३४४१ ४२). पे.१.पे. नाम. अञ्जनासुन्दरी चउपई, पृ. १अ-२१अ अंजनासुन्दरी चौपाई, पं. हंसहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७०९, आदिः स्वस्ति श्रीसुरसामि; अंतिः सुणता मनि गहगट्ट. पे.२. कृष्ण बारमासु, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदि:#; अंतिः भेर भुङ्ग लवाईया., पे.वि. गा.१३. १०४१४. नन्दीसूत्र सह टबार्थ व नन्दीसूत्रसक्षिप्तपाठ, पूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- मु. ___ अमृतविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२७४११.५४). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंति:नन्दीसूत्र-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः जय० विषय कयाषादिक; अंति: For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४१५. स्तवनचौवीसी, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना.,प्र.वि. २४ स्तवन, पू.वि. स्तवन-१ से ४ तक नहीं है., (२७४११.५, १३४४१-४२). स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १८वी, (संपूर्ण), आदिः नाभिनरेसर नन्दना हो; अंतिः सेवक जिन सुखदाया रे. १०४१६. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८०५, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले.- पं. भवानीविजय (गुरु मु. बुद्धिविजय), प्र.वि. ढाल-४७, (२६.५४११, १६-१८४३६-४५). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. १०४१७. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२७४११, ११-१२४२६-२७). स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र मझार. १०४१८." सप्तस्मरण, नमस्कारचौवीसी व स्तवन सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, पे. १४, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, ले.- पं. सुन्दरविजय (गुरु पं. अमरविजय), पठ.- श्राविका आणन्द बाई,प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. संशोधित, चित्र-अंक स्थान में-सादा (रेखा चित्र)-पृष्टिका पर-रंगीन-सुंदर-कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, (२६४११.५, ११४२८-३१). पे.-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. -३अ-१५अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. नमिउण, अजीतशांति, भक्तामर व बृहद्शांति है. पे..२.२४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१८अ, संपूर्ण), आदिः कनक तिलक भाले हार; अंतिः ____ मुनि लावण्यसमे भणे., पे.वि. गा.२८. पे.-३. पे. नाम. श्रीचौवीसजिन नमस्कार, पृ. १८अ-२२आ, संपूर्ण नमस्कारचौवीसी, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः सोमवदन रवि ऊगते जयो; अंतिः पद्म करे प्रणाम., पे.वि. २४ चैत्यवंदन, गा.७२. पे.४.४ जिन नमस्कार, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ, संपूर्ण), आदिः रिषभचंद्राननवारिषेण; अंतिः ___ कहे जिनपदपद्म सुजगीस., पे.वि. गा.२. पे.५. पे. नाम. ऋषभदेव स्तवन, पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः हारे आज मिलियो मुझ; अंतिः दोलति अतिघणी रेयो., पे.वि. गा.७. पे.६. पे. नाम. शान्तिनाथ स्तवन, पृ. २३अ-२४अ, संपूर्ण शान्तिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः अचिरानन्दन ओलगु; अंतिः सीस राम लहे आणंद हो., पे.वि. गा.७. पे.-७. पे. नाम. धर्मनाथ स्तवन, पृ. २४अ-२५अ, संपूर्ण धर्मजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः मुगट भलो धर्मनाथनो; अंतिः जोतां वाध्यो हेम., पे.वि. गा.७. पे.८. पे. नाम. आदिनाथजिन स्तवन, पृ. २५अ-२५आ, संपूर्ण आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः जयकारी जिनराजनो रे; अंतिः कहे रंग छे घणो रे लो., ___ पे.वि. गा.५. पे.९. अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२६अ, संपूर्ण), आदि: अजितजिणन्द तुमारी; अंति: गुण ___ गाया जगीसें हो., पे.वि. गा.५. पे.-१०. चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., पद्य, (पृ. २६अ-२६अ, संपूर्ण), आदिः चन्द्रप्रभु जिनराजीआ; अंतिः घj रीजस्ये महाराज., पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १३३ पे..११. पे. नाम. सेत्रुञ्जानी सङ्ख्या तवन, पृ. २६आ-२८आ, संपूर्ण आदिजिन बृहत्स्तवन-शत्रुञ्जय, मु. प्रेमविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रणमु सयल जिणन्द; अंतिः जीम पामो भवपार ए.,पे.वि. गा.१९ चार पदों की १ गाथा गिनी है. पे. १२. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन , मु. रङ्ग, मागु., पद्य, (पृ. २८आ-२९आ, संपूर्ण), आदि: प्यारी पीउनें विनवें; अंतिः जिणे राखी जग रंगरेख., पे.वि. गा.११. पे..१३.२४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०आ, संपूर्ण), आदिः शत्रुजे ___ ऋषभ; अंतिः समयसुन्दर कहे सार., पे.वि. गा.१८. पे.-१४. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, पं. सुन्दरविजय, मागु., पद्य, वि. १७७८, (पृ. ३०आ-३१अ, संपूर्ण), आदिः श्रीशङ्ख्सर पासजी; अंतिः सुन्दरनी पूरी आस रे., पे.वि. गा.७ प्रतिलेखन के समीपकाल की रचना है. यह कृति प्रतिलेखक के द्वारा रचित है. १०४१९." ज्ञानसार अष्टक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अष्टक-२५ का श्लो.५ तक है., (२६.५४१२, ३४३८-३९). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंति: ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, आदिः ऐन्द्रवृन्दनतं नत्वा; अंतिः१०४२०. चौवीसदण्डकसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. १६, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. __गा.३९ तक है. टीका गा.४३ तक है., (२६.५४११, २-४४२८-३३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंति: दण्डक प्रकरण-टीका, मु. रूपचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६७५, आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंति:१०४२१. दीपावलीकल्प सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१(२३)=३४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४३८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच का एक व अंतिम पत्र नहीं है., (२६.५४१२, ६x४१-४३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदिः अहँ नत्वाल्प; अंतिः१०४२२. मुनिपति रास, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, ले.- पं. खेमविजय (गुरु गणि विनयविजय, आनन्दसूरिगछे), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-९३, गा.४००५, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६.५४१२, १७-१८४४२). मुनिपति रास, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६१, आदिः सकल सुख मङ्गल करण; अंतिः सङ्घ मनोरथ फलीया १०४२३. इच्छापरिमाण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.८१, (२५.५४११, ११४४०-४३). इच्छापरिमाण, मागु., पद्य, वि. १६७५, आदिः पणमीय वीर जिणन्द; अंतिः शिवपुरि सुख अनन्त. १०४२४. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-८, (२६४११.५, १३४३३-३६). स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र मझार. १०४२५." आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- मु. गलालविमल, प्र.वि. ढाल-१६, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११.५, १५-१७४३२-३५). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होज्यो इम कल्याणो १०४२६. दशविधियतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- गणि कनकविजय (गुरु मु. नेमिविजय), प्र.वि. ढाल-११, (२५.५४११.५, १४४३८-३९). For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सुकृत लत्ता वन; अंतिः सुजस लीला अनुभवइं. १०४२७." नवाणुं प्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १९०८, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. मांमचूंडा, ले.- श्रा. पनाचन्दजी, प्र.वि. ढाल-११+कळश, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४११.५, ११४२९). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः आतम आप ठवायो रे. १०४२८. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. १८ सज्झाय, पू.वि. १८ सझाय., (२६.५४११.५, ९४३३-३४). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी. १०४२९. सिद्धगिरि स्तुति, सिद्धिगिरी आराधन विधि व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. लब्धिविजय, (२६४११.५, १२४३८-४२). पे.-१. शत्रुञ्जय १०८ खमासणाना दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः श्रीआदिसर अजर अमर; अंतिः वेलि सुजसे जयसिरी., पे.वि. गा.१०९. पे..२. शत्रुजयतीर्थ आराधनविधि, मागु.,सं., गद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः शत्रुजयाय नमः पुंड; अंतिः बहुमान करवा. पे..३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: #; अंति: #. १०४३०. भगवतीसूत्र यन्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६४११.५४). भगवतीसूत्र-यन्त्र, मागु., यंत्र, आदिः#; अंतिः#. १०४३१. दण्डक व पार्श्वनाथ स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पाटणनगर, (२५.५४११.५, १२४३६-३९). पे.-१. महावीरजिन स्तवन-२४ दण्डकगर्भित, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः प्रणमि सरसति ___ भगवती; अंतिः पद्मविजय गुण गाय., पे.वि. ढाल-६, गा.८९ प्रतिलेखनस्थल-पाटण. पे..२. पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मु. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः चिन्तामणि पासजी द्यो; अंतिः पद्मने हर्ष अपार., पे.वि. गा.५ प्रतिलेखनस्थल-पह्लादपुर. १०४३३. देवसिकादिप्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. खेम, पठ.- मु. मोती, (२६४१२, १३४३३-३५). प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, गुज.,मागु.,प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १०४३४. सालीभद्र रास, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. राणाग्राम, ले.- मु. हस्ती, (२५.५४११.५, १५ १६४३२-३६). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. १०४३५. मौनएकादशीदेववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. वटपद्र नगर, ले.- पं. न्यायसौभाग्य, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, ११-१२४३७-४३). मौनएकादशीपर्व देववन्दन, मु. सौभाग्य, मागु., प+ग, आदिः श्रीअरनाथ जिणन्दचन्द; अंतिः सौभाग्य हृदय मझार. १०४३६. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले.- मु. विनयरत्न, प्र.वि. २४ स्तवन, (२६.५४११.५, १५४३८-४०). स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु., पद्य, आदिः ऋषभ जिणन्दा ऋषभ; अंतिः मानविजय नितु ध्यावे. १०४३७. सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ६८-२(४७ से ४८)+१(१३)=६७, जैदेना., ले.स्थल. उंणग्राम, ले.- पं. सुज्ञानसागर, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-श्लो.१०२., द्विपाठ, (२७x१२.५४). For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर; अंति: माला आवली श्रेणी छे. सिन्दूरप्रकर-कथा* , मागु., गद्य, आदिः यतः येषां न विद्या; अंतिः श्रावकनी कथा. १०४३८. कर्पूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.- साध्वीजी जयतश्री, प्र.वि. मूल-श्लो.१८२., त्रिपाठ, (२७४१२.५, ४-६x२९-३३). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रका . कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, आदिः लक्षजिनेशपेशलरदज्योत; अंतिः सुभाषितावली कृता. १०४४०. आत्मानुशासन सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.७१., पू.वि. गा.७१., (२६.५४१२.५, १४४३५-३७). आत्मानुशासन, आ. गुणभद्राचार्य, सं., पद्य, आदिः लक्ष्मी निवास निलयं; अंतिः कृतिरात्मानुशासनं. आत्मानुशासन-टीका, पं. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, आदिः वीरं प्रणम्य भववारि; अंतिः यस्य दधाति कमलाकृतिं. १०४४२. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. डभोईनगर, पठ.- श्रा. कुशल, प्र.वि. ढाल-११, गा.८७, (२६.५४१२.५, १२-१४४४०). महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. ज्ञानकुशल , मागु., पद्य, वि. १७३१, आदिः पूरण प्रेमे प्रणमीइ; अंतिः वीर जिनवर जय करो. १०४४३. शाश्वताजिन बिंब प्रसाद विचार चार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४१२, १३४३३). शाश्वता जिनबिंब प्रासाद विचार, मागु., गद्य, आदिः प्रथम सौधर्म देव; अंतिः नित्य प्रते जोहारू. १०४४४. बारव्रत सज्झाय सङ्ग्रह, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. सज्झाय-८ तक लिखा है., (२६४१२, ११ १३४२८-३१). १२ व्रत सज्झाय, पं. लावण्यसौभाग्य, मागु., पद्य, आदिः परमानन्द परम प्रभु; अंतिः१०४४५." सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.- पं. दीपकुशल (गुरु पं. न्यायकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.३०७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ४-५४४७-५१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो अरिहन्त; अंतिः लोकमांहि० करज्यो. १०४४६. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८९१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. वेजलपुर, ले.- पं. नयविजय, पठ.- श्रा. मोतीचन्द गान्धी, प्र.वि. गा.६२, (२६४१२, १२४२३-२४). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः सूरि इम भणे ए. १०४४७. चौवीसजिन देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. कपडवाणिज्य, ले.- पं. दीपविजय, पठ.- श्रा. वखतकुंयर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१२.५, १३-१६x४१-४३). २४ जिन देववन्दन विधि, मागु.,प्रा., पद्य, आदिः आदिदेव अरिहन्त धनुष; अंतिः पछे वडीशान्ति कहेवी. १०४४८. योगसार, पूर्ण, वि. १९३२, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., प्र.वि. ५प्रस्ताव, पू.वि. प्रस्ताव-१ की गा.११ तक नहीं है., (२६.५४१२.५, १२-१३४३१-३२). योगसार, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः प्राप्नोति परमं पदम्. १०४४९. पूजाविधि स्तवन, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाल-७, गा.७५, (२६.५४११.५, १०४३७-४०). पूजाविधि स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः जिनवदन निवासिनी समरी; अंतिः कहे चित्त प्रसन्न. १०४५१. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ १३×३५-३७). साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह- तपागच्छीय संबद्ध, प्रा. गुज, प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं: अति: 1. www.kobatirth.org: १०४५२.” नमस्कारमाहात्म्य व योगशास्त्र, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३० - १ ( १ ) = २९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२०x१२.५. ११४३८-४० ). " पे. १. नमस्कार माहात्म्य, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., पद्य, (पृ. २अ ११अ पूर्ण), आदि:-: अंति: गीतं श्रीसिद्धपत्तने. पे. वि. ८ प्रकाश प्रथम पत्र नहीं है. पे. २. आनन्दसमुच्चय योगशास्त्र, समुच्चय, सं., पद्य, (५. ११अ -३०अ, संपूर्ण), आदिः यत्र चित्रा समायान्त: अंतिः मधिगच्छति नित्यमेव., पे.वि. ८ प्रकरण. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४५४. थुलीभद्र रस वेल, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. मु. प्रमोदसौभाग्य, प्र. वि. ढाल - १७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५x१३, १३३३-३९). स्थूलिभद्र रसवेल, मु. माणिक्यविजय, मागु, पद्य वि. १८६७ आदि पार्श्वदेवने प्रणमी अंतिः लहे सुजस विलास. (+) (+) १०४५५. नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. स्थल. पालीताणा ले. पं. जतनकुशल, प्र. वि. ढाल - ११+कळश, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५x१३, १०-११४३६-३७). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्मित, पं. वीरविजय, मागु, पच, वि. १८८४ आदिः श्रीशङ्खेश्वर पासजी अंति आतम आप ठवायो रे. , - "" १०४५६. उपदेशरहस्य सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण वि. १९४२, श्रेष्ठ, पृ. ८८+१ (६६) - ८९, जैदेना. ले. स्थल कपडवन, ले. परशुराम जोसी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. * पंक्त्याक्षर अनियमित है. मूल-गा.२०३. ग्रं. ग्रं. ३३००, त्रिपाठ, (२७.५X१३X). उपदेशरहस्य, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं वुच्छ; अंतिः तत्तो हवउ सिद्धी. उपदेशरहस्य-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐंकारकलितरूपां; अंतिः स्वयं निर्मितः १०४५७. योगबिन्दु सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १९४१ श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना. प्र. वि. मूल श्लो. ५२५. ग्रं. ग्रं. ३५००, संशोधित, " (२७४१२.५ १२४३७-४१). योगबिन्दु, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वाद्यन्तविनिर्मुक; अंतिः तेन जनस्ताद्योगलोचनः योगबिन्दु-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सद्योगचिन्तामणितोनणी; अंतिः करणाङ्कप्रद्योतक इति. १०४५८. तत्त्वार्थसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२१-४ (१ से २,४ से ५ ) - ११७, जैदेना. प्र. वि. मूल- सूत्र - १९८, (२६.५४१३. ९४३८-४१). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदि:-; अंतिः तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - वृत्ति पण्डित योगदेव (वि.) सं., गद्य, आदि: अंतिः " · १०४५९. कल्पसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. १६४-१ (३८) - १६३, जैदेना. ले. स्थल. जोधपुर, ले. रामनाथ " व्यास, पठ. मु. पनेसागर, पु.वि. बीच का एक पत्र नही है., ( २६.५x१३, १६४३५-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - बालावबोध*, मागु., राज, गद्य, आदि: पहलउं तीर्थङ्कर; अंतिः इति वर्त्तमान जोगि. For Private And Personal Use Only १०४६१.” सङ्घपट्टक सह अवतर्णिका, संपूर्ण, वि. १९३१, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.- नन्दराम, . प्र. वि. मूल-श्लो. ४०., पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x१२.५, १०x३६-३९). सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: वह्निज्वालावलीढं; अंतिः इत्थं कदर्थ्यामहे. सङ्घपट्टक- लघुवृत्ति, उपा. हर्षराज, सं., गद्य, (पूर्ण), आदि: वन्दे शान्तिजिनं; अंति: १०४६२. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. ३४१, त्रिपाठ, (२७x१२.५, १-६४३८-४०). Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु: अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति आद्धदिनकृत्य प्रकरण- टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि वीरं नत्वा अंतिः निगद० दुक्कडन्ति, · १०४६३. श्रावकप्रज्ञप्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा.४०१. प्र.पु. -मूल-ग्रं. २६५०. , (२७X१२.५, १३४३९-४६). श्रावकप्रज्ञप्ति वा उमास्वाति, प्रा. पद्य, आदि अरिहन्तं वन्दित्ता अंतिः तहेव सुयदेवयाए य " "" श्रावकप्रज्ञप्ति-दिक्प्रदा टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः स्मरणं यस्य सत्वानां; अंतिः क्षन्तव्यमिति वर्तते. (+) www.kobatirth.org: " १०४६४. द्रव्यानुयोगतर्कणा सह टीका, संपूर्ण वि. १९४२ श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना. ले. स्थल जोधपुर, प्र. वि. मूल- अध्याय- १५, ग्रं. २९५६. संशोधित त्रिपाठ, (२७४१२.५, १-३४३६). द्रव्यानुयोगतर्कणा मु. भोजसागर सं., पद्य, आदिः श्रीयुगादिजिनं नत्वा अंतिः द्रव्यानुयोगतर्कणा. . द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, आदिः श्रियं निवासं निखिला; अंतिः समापत्ति प्रकीर्तिता. " " (+) " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४६५. दशवैकालिकसूत्र नियुक्ति, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. ले. ऋ. लुम्पक (नागोरीगच्छ), (२७०४१३. - , " ११४३०-३१). दशवैकालिकसूत्र- नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. पद्य, आदि सिद्धिगाइमुवगयाणं अंतिः वियालणा सङ्घे. १०४६६. समयसार सह छाया संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा ४१४ अनुवाद - श्लो ४१४. संशोधित, , पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१२.५, ५४३६-३७). समयसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., पद्य, आदिः वन्दितु सव्वसिद्धे; अंतिः सोही उत्तमं सोक्खं. समयसार-छाया, सं., पद्य, आदिः वन्दित्वा सर्वसिद्धा; अंतिः उत्तमं सौख्यम्. १०४६७. शत्रुञ्जयतीर्थ कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. टबार्थकारे मुल का कर्ता हरिभद्रसूरि दिया है. मूल-गा.२५ (२६.५०१२-५, ४४२७-३०). शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., पद्य, आदि अइमुत्तयकेवलिणा कहिअ अंतिः लहइ सेतुञ्जञ्जत्तफलं .. शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अइमुत्तइ केवलीइं; अंतिः फल पामे नमस्कार. १०४६८. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना, प्र. वि. मुल-३ भाष्य., (२७४१२.५, ३३१-३२). , . भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं.. भाष्यत्रय-टवार्थ, मु. लावण्यविजय, मागु, गद्य, आदि प्रणम्यतानन्दकारकं अंति: लावण्य सुख सम्पदे. १०४६९. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. २०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, · (२६.५४१२.५, ४X३०-३३). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गीतम कुलक-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि लोभी नर लक्ष्मी अंतिः ते पणा प्रति पामइ. १३७ १०४७१. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा.२०., (२७X१२.५, ४x२८-३२). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गीतम कुलक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि लोभी नर लक्ष्मी अंतिः ते पणा प्रति पामइ. ; For Private And Personal Use Only १०४७२.** कर्मदहन पूजा, संपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, दशा वि. विवर्ण- खामीयुक्त पदार्थ सेअक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४१३, ११४३४). " कर्मदहन पूजा, आ. मलयगिरिसूरि सं., पद्य, आदिः सकल कर्म विप्रमुक्ता; अंतिः श्रेयस्करी शंकरी. १०४७४.” रिषिपुत्रिकाध्ययन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा. २०१, ( २४.५ ११, १३-१६x४२-५५). ऋषिपुत्रिका अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि सो जयउ जएउ समो अणन्तः अंति होइ सम्पत्ती. Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०४७५. बारव्रत पूजा, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना., प्र.वि. गा.१२४, (२५४११.५, १४४३९). १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदि:-; अंतिः टालवा १२४ दीवा करीइं. १०४७६." लुमक रास, अपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. १०-२(२ से ३)=८, जैदेना., ले.स्थल. सुरत बंदरे, ले.- पं. धनविजय, प्र.वि. ढाल-७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२१.५४१२, १४४२१-२३). ढुण्ढक रास , मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, वि. १८७८, आदिः सरसती चरण नमीकरि; अंतिः लेसे अवचलपद लीला रे. १०४७७. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पठ.- श्राविका बनु, (२५४११, ११४३१). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः पञ्चिन्दिय संवरणो; अंतिः वतियागारेणं वोसिरामि. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पाञ्च इन्द्रियना; अंतिः कारणथी वोसिरा. १०४७८. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले.स्थल. सीहोर, प्र.वि. खण्ड-३. इस प्रत मे कृति की रचना संवत्-१७३६ है., (२५.५४११.५, १५४३४-३७). रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः रीषभादिक जिनवर नमुं; अंतिः वयाँ जयजयकार रे. १०४७९." महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. साणंद, ले.- मु. गौतमविजय (गुरु मु. लब्धिविजय), प्र.वि. ढाल-११, गा.२१२, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४४११.५, ११४३५-३८). महावीरजिन स्तवन-कोणिकाराजाभक्तिगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६४, आदिः विमल वचन रस वरसती; अंतिः शान्ति करायो रे. १०४८०. प्रबोधचिन्तामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३२-१(१)=१३१, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं. अध्याय-५ के श्लो.१०५ तक है., (२५४११.५, ४४३५-४०). प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः चिदानन्दमयं वन्दे; अंति: प्रबोध चिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवे ग्रन्थकर्ता; अंति:१०४८१." जीवविचार, नवतत्त्व व विचारषत्रिशिङ्का सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सिरोहि, ले.- मु. हंसविजय; श्राविका अजुबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२, ५४२५). पे..१. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ, संपूर्ण जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसुरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भुवण कहतां तिन भुवन; अंतिः समुद्रथी जोइने., पे.वि. मूल-गा.५१. पे.२. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. ८आ-१५आ, संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त; अंतिः कालनो अतं नही आवे., पे.वि. मूल गा.४८. पे..३. पे. नाम. दण्डक सह टबार्थ, पृ. १५आ-२३आ, संपूर्ण दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदि: नमस्कार करी चउवीस; अंतिः-, पे.वि. मूल-गा.४१. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ गा.८ तक लिखा है. १०४८२. आगमसारोद्धार, पूर्ण, वि. १८९३, श्रेष्ठ, पृ. ५९-१(९)=५८, जैदेना., ले.स्थल. अंकलेश्वर, ले.- ऋ. राजेन्द्रसागर, पठ.- श्राविका जमना, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४११.५, १३४४३). आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्यजीवने; अंतिः फली मन आस. १०४८३. आत्महित सीक्षा स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. साणंद, ले.- पं. गौतमविजय (गुरु पं. For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: विजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ६२, ( २३×११.५, ११x२२-२४). आत्महितशिक्षा सझाय, मु. भीमविजय, मागु पद्य वि. १६९९, आदि: दोहिलो मुगतीनो घाट: अंतिः रे पाप० करजो रे माफ. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०४८४. प्रतिमाशतक सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना. ले. स्थल राजनगर, ले. श्री. ताराचन्द शाह, प्र. वि. मूल - श्लो. १०४. प्र. पु. -मूल-ग्रं. २५०, पू.वि. बालावबोध श्लो. २६ तक लिखा है, (२५.५x११.५, ४X३१). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: ऐन्द्रश्रेणि नता; अंतिः उल्लसद्व्यक्तयुक्ति. प्रतिमाशतक- बालावबोध, मागु., गद्य (अपूर्ण), आदि: ऐन्द्र श्रेणिनतं अंतिः - १०४८५.” पञ्चपर्वी उपरि रत्नशेखरराजा सम्बन्ध व मोक्षमार्ग गाथा, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. उंझा, ले.- श्रा. कुयरजी; मु. विनयरत्न, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२१.५४११.५, ९४२६-२७). १३९ पे. १. रत्नशेखरराजा कथा पर्वतिथिविचारे, मु. दयावर्द्धन शिष्य, प्रा. सं., पद्य, (पृ. १आ-२६आ), आदि: सयल कल्लाणनिलय नमिऊण: अंतिः जयताच्चिर, पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. २६आ - २६आ), आदि: #; अंतिः #., पे. वि. प्र. पु. - मूल श्लो. १.. १०४८६. जीवविचार व नवतत्त्व, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे. २, जैदेना. (२५x१२, ११४३१-४७). " पे. १. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - ३आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा. ५१. पे. २. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पथ (प्र. ३आ-६आ), आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ.. . 1 पे.वि. गा. ५४. १०४८८. शत्रुञ्जय स्तुति, शत्रुञ्जय तीर्थमाला व शत्रुञ्जय २१ नाम, संपूर्ण वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. साणंदनगरे, ले. पं. हेमविजय, प्र.ले. श्लो. (२२४) केउ गावड दो बेवडी (६६२) वली उत्तम जनने; (१४१ ) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२२.५x१२, १२x२७). P पे.-१. शत्रुञ्जय १०८ खमासणाना दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः श्रीआदिस अजर अमर अंति: वेलि सुजसे जयसिरी पे.वि. गा.१०९. " पे.-२. शत्रुंजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, (पृ. ७आ-१८आ), आदिः विमलाचल वाहला वारु: अंतिः नीत नमो गीरीराया रे, पे. वि. ढाल १०. पे. ३. शत्रुंजयतीर्थ इक्कीसनाम व खमासमण विधि, सं., मागु., गद्य, (पृ. १८आ - १९आ), आदिः विमलगिरिनमः; अंतिः पर्वतायनमः. १०४८९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना. ले. स्थल. वीरमग्राम, ले. ऋ. मेघजी (गुरु ऋ. रत्नाजी), पठ- श्राविका लेहरी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५x१२, ३x२८). " आवक प्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय संबद्ध प्रा. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं०: अंतिः जन्तणच्छं जिणार्बिति श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नम० थाओ द्वादशाङगी; अंतिः अर्थे जिन कहे छइ. १०४९०.” उपदेशप्रासाद सह टबार्थ ५ स्तम्भ, प्रतिअपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. टबार्थ पत्र BA तक ही है. (२४.५१२, ५४३३-३५). " उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., प+ग, वि. १८४३, (प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः उपदेशप्रासाद-टवार्थ मागु. गद्य (प्रतिअपूर्ण), आदि:-: अंति: १०४९१.' कोश कथा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४११.५, १३४३१-३२). For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४० www.kobatirth.org: कथाकोश, सं., गद्य, आदि: प्रथम मृषावादव्रत; अंति: १०४९२. दण्डक प्रकरण, अल्पबहुत्व स्तवन, सङ्घयणी व सीमन्धरजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, प्र. ५. पे. ४, जैदेना. (२५x१२, ११४३८-४२). , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची .. पे.-१. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. १अ- ३अ), आदि: नमिउं चउवीस: अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा. ४३. पे. २. महादण्डक स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ - ४अ), आदि: भीमे भवम्मि भमिओ; अंतिः अणुत्तर पयन्देसु., पे.वि. गा.२०. पे. ३. लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ४-५आ) आदि नमिय जिणं सव्वन्नं: अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं., पे.वि. गा.३०. पे. ४. सीमन्धरजिन नमस्कार, मु. विनयविजय, मागु, पद्य, (पृ. ५आ-५आ) आदि शत्रु मित्र सम: अंतिः विनय धरे तुम्ह ध्यान., पे. वि. गा.६. " १०४९३. कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६५, मध्यम, पृ. ७८- २ (३८ से ३९ ) +२(३७, ४०) = ७८, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदर, ले.- पं. मुक्तिसैभाग्य, प्र. वि. मूल - गा.१००., (२५.५x१२, १७-१९x४३-४९). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. जयसोम, मागु., गद्य, आदिः ऐंद्र श्रीकर पीडन; अंतिः भाषामात्मस्मृतौ शतके. १०४९४. उपदेशमाला, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना. प्र. वि. गा.३४३ (२५४११ ९४३२). " उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. १०४९५.” पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. मुंमाइबिंदर, ले.- श्रा. वज्रलाल जोईतादास दोसी, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२०.५x११, ११-१२x२८-३१). , पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः श्रीशङ्खश्वर साहिबो; अंतिः वञ्छीत दाय सुहायो रे. , १०४९६. मानतुङ्गमानवती रास, वीरजन्ममहोत्सव स्तवन ज्योतिष श्लोक व सज्झाय, संपूर्ण वि. २०वी मध्यम, पृ. १४, पे. ४. जैदेना, (२५x१०.५. १३४३३-३५). For Private And Personal Use Only पे. १. महावीर जिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (पृ. १अ - १अ ), आदि जिनमुख देखण जावु अंतिः विमल गुण गावं रे., पे.वि. गा.१०. पे. २. ज्योतिष श्लोक सङ्ग्रह मागु. सं., पद्य, (पृ. १अ १अ ), आदि #; अंतिः #. " पे. ३. मानतुङ्गमानवती रास उपा. अभयसोम मागु पद्य वि. १७२७, (पृ. १आ-१४आ), आदि: प्रणमुं माता सरसती; अंतिः भेद मतिमन्दिर लहै., पे.वि. ढाल - १४. " पे. ४. वैराग्य सज्झाय मागु पद्य (पृ. १४- १४आ), आदि: आतम अति अभीमानी अंति# पे.वि. गा. ७ अंतिमवाक्य अस्पष्ट है. १०४९७. अवयद सुकनावली, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- मु. केसरविजय (गुरु पं. अभयविजय), प्र. वि. अध्याय- ४ प्रकीर्णक, ( २४ ११, १३ ३४ ) . अबयद सुकनावली, मागु., गद्य, आदिः ॐ नमो भगवते; अंतिः उपजसि एकाज कर. १०४९८.” अन्तगडदशाङ्गसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६४९, श्रेष्ठ, पृ. १० - ४ (१ से ४ ) = ६, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२५.५×११, १३४४१). " अन्तकृदशाङ्गसूत्र- टीका आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य, आदि: अंतिः ननु विधीयतां सर्वथा, १०५००. वासुपूज्यजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ढाल - १२, ( २४ ११.५, १२-१३x२९-३१). वासुपूज्यजिन महिमावर्णन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मागु, पद्य, आदि वासुपूज्य जिणन्दने अंतिः सकलसङ्घ मङ्गल Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १४१ लहे. १०५०१. वीरजिननिर्वाण स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१०, गा.१२२, (२५.५४११, ११४२७-२८). महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन-दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., पद्य, आदिः श्रमणसङ्घतिलकोपमं; अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे. १०५०२." बार व्रतना नियमनी टीप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, देना., ले.स्थल. जावालनगरे, ले.- मु. हस्तिविजय, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४.५४११.५, १८४३९-४२). बाखतना नियमनी टीप, मागु., गद्य, वि. १७९७, आदिः (१) स्वस्ति श्रीविक्रमा (२) दर्शनाचारि अढार दोष; अंतिः जीव माटि सावद्य. १०५०३." कल्पसूत्र सह टीका-द्वितीयवाचना, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-७(१ से ७)=२२, जैदेना., (२५४११.५, १५४४१ ४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-टीका', सं., गद्य, आदि:- अंतिः१०५०४.' शीलवेल (थुलीभद्र शील वेल), संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. आतरसुंबानगरे, ले.- उपा. ऋद्धिविजय, पठ.- मु. दयाविजय, प्र.वि. ढाल-१८, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४४११.५, १० ११४२५). स्थूलिभद्र शीयलवेलि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८६२, आदिः सयल सुहङ्कर पासजिन; अंतिः विमला कमला वरशे रे. १०५०५. ऋषिमण्डल प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., पठ.- मु. शान्तिदास; मु. माधव, प्र.वि. गा.२२८, (२४.५४११, ९४३४). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिभरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. १०५०६.” गौतमस्वामी रास, गौतमस्वामी स्तुति व वर्णमाला, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. साणंदनगरे, ले.- पं. गौतमविजय (गुरु पं. हेमविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२३.५४११.५, ११-१३४२७). पे.१. गौतमस्वामी रास, श्रा. शान्तिदास, मागु., पद्य, वि. १७३२, (पृ. १अ-५आ, संपूर्ण), आदिः सरस वचन दायक सरसती; अंतिः गौतमरिषी आपो सुखवास., पे.वि. गा.६६. पे..२. गौतमस्वामी छन्द, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ, अपूर्ण), आदिः मात पृथ्वी सुत; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे.-३. वर्णमाला, सं., गद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लु; अंति: ४ ५ ६ ७ ८ ९ १०. १०५०७. रत्नचूड चौपाई, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. कपडवांणिज्य, ले.- श्रा. वज्रलाल जोईतादास दोसी, प्र.वि. गा.३४०, (२२.५४११.५, १२४३२-३४). रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५०९, आदिः सरसति देवी पाय नमी; अंतिः नित नित जय जयकार. १०५०८. अडसठआगम पूजा, संपूर्ण, वि. १८८८, जीर्ण, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. वडोदरा, ले.- मु. दयाविजय, पठ.- मु. तेजसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५४११, ११-१२४३४-३६). ६८ आगम पूजा, कवि दीपविजय , मागु., पद्य, वि. १८५६, आदिः प्रथम विशाल जिन भुवन; अंतिः तीर्थपती राजा. १०५०९.” सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- गणि रामविमल (गुरु गणि कुशलविमल), प्र.वि. गा.७४, (२५४११, ७४२१-२५). For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४२ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. १०५१०.” भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले. स्थल. सूरतबिंदर, ले.- पं. दीपविजय गणि, प्र. वि. मूल-३ भाष्य टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११ ५ ३-४४२९-३१). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: वन्दित्तु कहितां अंतिः एहवो स्थान कल्पे. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५११. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९१४ मध्यम पृ. ५. जैदेना. ले. स्थल. मुंडारा, प्र. वि. ढाल -७ (२४.५४११.५, १८४३९ " " ४०). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्मित उपा. यशोविजयजी गणि मागु पद्य वि. १७३३, आदि: " "" प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. , १०५१२. स्तवन, स्तुति, सझाय आदि सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९०१ श्रेष्ठ, पृ. १६-१ ( २ ) - १५, पे. २८, जैदेना. प्र. वि. संवत् १९०१ व १९०२ दोनो वर्ष में यह प्रति लिखी गयी है. पू. वि. बीच का एक पत्र नही है., (२५.५x१२, १२४३९-४२). पे. १. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ १अ संपूर्ण) आदि श्रीसीमंधर साहेबो अंतिः नमो भाव धरी भगवन्त., पे.वि. गा. ९. पे. २. महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु, पद्य, (पृ. १अ १आ, संपूर्ण), आदि: सरसति माताने नमुं अंतिः ऋषभविजयनी वांणी रे., पे.वि. गा.६. पे - ३. औपदेशिक गहुंली. मु. ऋषभविजय, मागु, पद्य, (पृ. १आ-१आ, संपूर्ण), आदि मुनिवर शिव हेली रागी अंतिः ऋषभ कहे नीज मल धोती, पे.वि. गा. ५. पे. ४. शत्रुंजयतीर्थ २१ नाम स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु पद्य (प्र. ३अ-३अ, अपूर्ण), आदि:-: अंतिः नमतां लहीई "" " आणन्द, पे.वि. अंतिम पत्र है. (गा. ५ अपूर्ण से है ) गा. २२. पे. ५. आदिजिन स्तवन- केसरीयाजी, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ, संपूर्ण), आदि: सरसति माता ने नमः अंतिः ऋषभविजयनी वांणी रे, पे.वि. गा. १३. पे. ६. आचार्यगुण भास, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ -४अ, संपूर्ण ), आदि: नमी सरसति मात सूवान; अंतिः कवी ऋषभविजय गुण गाय., पं.वि. गा.५. पे. ७. महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु, पद्य, (पृ. ४अ-४अ संपूर्ण ), आदि: सरसति मातनें प्रणमीइ: अंतिः नमे ऋषम जिनराय., पे.वि. गा.५. पे.-८. असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ, संपूर्ण ), आदि: सरसति माता आदे नमीइं; अंतिः वहेला वरसो सिद्धि, पे.वि. गा.११. पे.-९. रोहिणी नमस्कार, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ, संपूर्ण), आदिः पद्मप्रभू जिन विहरता; अंतिः करो निरन्तर सेव.. पं. वि. गा.११. पे. १०. २३ पदवी गहुंली, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ - ५आ, संपूर्ण), आदि: सयल जिणेसर करी परणाम; अंतिः लहे अविचल गेहने रे, पे.वि. गा.११. पे.-११. औपदेशिक पद, मु. ऋषभ, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६अ -६अ, संपूर्ण), आदि: अवधु घर में क्या तूत; अंतिः ऋषभ ज्ञानानन्दी गावे, पे.वि. गा. ७. पे.-१२. पंचमीतिथि स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदि: सरसति माता हित आणी; अंतिः ऋषभविजय कवी सुख पावे. पे.वि. गा.११. पे. १३. कल्पसूत्र-गहुंली, मु. ऋषभविजय, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ, संपूर्ण), आदिः सवि कल्पसूत्रने सूणी; अंतिः ऋषभविजय सुख भरीओ रे., पे. वि. गा. ९. पे. १४. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु, पद्य, (. ७अ-७आ, संपूर्ण ), आदि: सरसति माता रे वाला; अंति For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ वन्दणा वार हजार रे., पे.वि. गा.६. पे.-१५. पार्श्वजिन स्तुति, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ, संपूर्ण), आदिः प्रभु पारस पुरिसादाण; अंतिः प्रभु सासन सानीधकारी.,पे.वि. गा.४. पे.-१६. बीजतिथि स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः हारे मोरे सयल; अंतिः भाखे ऋषभविजय जयकार ए., पे.वि. ढाल-२. पे.१७. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण), आदिः आवो गीरी सिद्धाचल; अंतिः __ ऋषभ कहेव रे शिवराणी., पे.वि. गा.१३. पे.१८. रोहिणीनक्षत्र स्तुति, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, संपूर्ण), आदिः रोहीणी नक्षत्र जे; अंतिः सहेजे भवजल तरी जी., पे.वि. गा.४. पे.-१९. रात्रीभोजन सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ, संपूर्ण), आदिः वीर जिणन्द प्रणमी; अंतिः ऋषभविजय कहे सत्य रे., पे.वि. गा.९. पे..२०. नेमिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदि: नेम जिणन्द बावीसमोरे; अंतिः संसारे माहाभाग रे हो., पे.वि. गा.७. पे:२१. अजितजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय , मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः वालो अजित जिणेशर; अंतिः दायक तु भगवान जोवा., पे.वि. गा.७. पे..२२. सम्भवजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः सम्भव जिनवर आदरो; अंतिः वरणवे ऋषभविजय गुणगेह., पे.वि. गा.७. पे.२३. सुमतिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः सुमति जिणेसर साहेब; अंतिः नमीइ भागे सादि अनन्त., पे.वि. गा.५. पे:२४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२अ, संपूर्ण), आदिः साहेबा सरसति वरसति; अंतिः ऋषभविजय जयकार., पे.वि. गा.५. पे:२५. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः प्यारी कहे पीउ; अंतिः अनन्त दीवाकरु., पे.वि. गा.७. पे..२६. दशार्णभद्र सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमी श्रीश्रुत; अंतिः नीसदीस० सदाय ते वरीश., पे.वि. ढाल-२.. पे.२७. ज्ञानदर्शनचारित्र संवाद, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१६अ, संपूर्ण), आदिः प्रणमु प्रेमे सरसती; अंतिः ऋषभविजय जयकार ए., पे.वि. ढाल-३. पे.२८. धर्मजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ, संपूर्ण), आदिः धर्म जिणेसर आगले; अंतिः मे चीत्त धरीइ० संसार., पे.वि. गा.१२. १०५१३. शत्रुञ्जयउद्यार व पञ्चमारा सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., (२४४१२.५, १३-१५४२९-३१). पे.१. शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, (पृ. १अ-८अ), आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः देही दरीसण जय करूं., पे.वि. ढाल-१२ इस कृति मे रचना संवत्१६३८ है. पे.२. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः वीर कहे गौतम सुणो; अंतिः भाख्यां वयण रसाळ., पे.वि. गा.२१. १०५१४. उत्तमकुमार चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ६६, जैदेना., ले.- मु. धनविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.५७२., (२४.५४१२, ५४३१). उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचन्द्र, सं., पद्य, आदि: वन्दित्वा स्वगुरुन्; अंतिः कथेयं नन्दितश्चिरम्. उत्तमकुमार चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पोताना गुरुनें; अंतिः छे घणाकाल लगे रहेजो. For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५१५. च्यार मङ्गल व बारआरास्वरुप स्तवन, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वटप्रद, ले.- मु. दीपसोभाग्य (गुरु मु. माणिक्यसौभाग्य), पठ.- श्राविका लक्ष्मीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, (२३.५४१२.५, १३-१४४२७-३०). पे.१.४ मङ्गल पद, कवि पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः सासन देवता समरि; अंतिः जिन गुण __निरमल चित्त., पे.वि. गा.६. पे.२.१२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १आ-५आ), आदिः सरसति भगवति भारती; अंतिः कहे गच्छ मंगल करु., पे.वि. ढाल-१२, गा.७६. १०५१६. चौमासीदेववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. राजगढनगरे, ले.- पं. हेमविजय, प्र.ले.श्लो. (२२४) केउ गावड दो बेवडी; (६६२) वली उत्तम जनने, (२४४१२.५, १०x२९-३०). चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पदमविजय, मागु., पद्य, आदिः आदिदेव अलवेसरू; अंतिः पास सामलनु चेई रे. १०५१७. बारव्रत टीप, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. उंटडी, (२३.५४१२.५, १४४३२-३४). १२ व्रत टीप, मागु., गद्य, आदिः देव श्रीअरिहन्त अढार; अंतिः श्रुद्धे करीने पालुं. १०५१८. चतुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,ले.स्थल. साथीयाग्रामे, (२६४१२, १८४३८-४१). चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं.,मागु., गद्य, आदिः सामाइकावश्यक पौषधानि; अंतिः दुक्कडं देवरावओ. १०५१९. वीरजिनसत्तावीसभव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, जैदेना., ले.स्थल. मुंबोई बंदरे, ले.- मु. रामविजय, लिखवा.- श्राविका अमृतबाई,प्र.वि. ढाल-६, गा.८६, पू.वि. गा.१ से ११ तक नहीं है., (२४.५४१२.५, १२४३२). महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदि:-; अंतिः शुभविजय शिष्य जयकरो. १०५२०. मानतुङ्गमानवती रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-२६ की गा.४ तक है., (२२.५४१२, १२-१३४२२-२३). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंति:१०५२१. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२४, जीर्ण, पृ. ६०, जैदेना., ले.स्थल. खेटकपूर, प्र.वि. मूल श्लो.४४+४. पक्षेप श्लोको कृति के अंत मे लिखा है., (२४४१३, १-२४१७-२०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः मानतुङ्ग ज हुंइ. १०५२२. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सांदराइ, (२५४१२.५, १३४२९-३०). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः विशेषतः श्रावक तणआइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १०५२३. सारसीखामण रास, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. कपडवांणिज्य, ले.- पं. दीपविजय, प्र.वि. गा.२५६, प्र.ले.श्लो. (३१९) जब लग मेरु थिर रहे, (२३.५४१३, १५-१६४३२). सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५४८, आदिः जीराउलि पासनाह प्रभु; अंतिः नित्य मङ्गल जय करुए. १०५२४. बारआरा स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. ताराचन्द, प्र.वि. ढाल-१२, गा.७७, (२२.५४१२.५, १३४३०-३२). १२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सरसति भगवति भारती; अंतिः कही तपगछ मङ्गल करु. १०५२५." श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. खंड-३ की ढाल-१ की गा.१ तक है., (२४४१३.५, १३-१७४२३-३३). For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १४५ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: J www.kobatirth.org: १०५२६. सम्यक्त्वसत्तरी सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना, ले गणि दानसागर (गुरु गणि नेमिसागर), पठ. - श्राविका वयजबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ७०, ( २५.५X१३.५, ४x२७). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दंसणसुद्विपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सम्यक्त्व विशुद्धनो; अंतिः ते प्रति शीघ्र पाम इ. १०५२७. भवभावना सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना. प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है. पंचपाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. १०२ तक है., (२५.५४१३.५४) भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णमिरसुरवर: अंति: भवभावना- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि पूजाज्ञानवचोपाया: अंतिः १०५२८. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७-१(३) = ६, जैदेना., ले. श्री. ललुभाइ, (२५.५X१३, १५X३४). १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य : अंतिः टालवा १२४ दीवा करीइं .. १०५२९. स्तवनवीसी, संपूर्ण वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना., ले. स्थल. कपडवांणीज्य ले. श्री. ललुभाई शेठ, प्र. वि. २० स्तवन, ( २५.५x१३.५, १२X४०). - विहरमानजिन स्तवनवीशी उपा. यशोविजयजी गणि मागु, पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे अंतिः वाचक जश इम बोले रे. १०५३०. प्रीयमेलक रास, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. कपडवणंज, ले.- श्रा. ललु दोसी, (२५.५X१३.५, १४४३६-४२). 1 प्रियमेलक चौपाई - दानाधिकारे उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १६७२, आदि: पांगी सहे गुरु पाय अंतिः पुण्ये · · अधिकुं प्रमोद. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , " १०५३१. आर्द्रकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३-६(२,४,६,८,१०,१२) ७, जैदेना, पू. वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. रचनाप्रशस्ति अपूर्ण है. (२४.५४१०५. १४-१५४४२-४४). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना अंति: १०५३२. जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. प्र. वि. मुलगा ५१ (२६.५४१२.५, ४X३०-३१). जीवविचार प्रकरण आ. शान्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण अंतिः रुदाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थी मागु, गद्य, आदि: भुवन कहतां तीन भवन अंतिः सङ्क्षेप मात्र कह्यो. १०५३३. सप्तस्मरण व लघुशान्ति टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १९२६, श्रेष्ठ, पृ. ६०, पे. २, जैदेना, पठ. मु. राजविजय, (२७X१३, १३-१४X३९-४१). पे.-१. नवस्मरण-सप्तस्मरणटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ - ६०आ, प्रतिपूर्ण), आदिः प्रणिपत्य जिनं; अंतिःपे. २. लघुशान्ति स्तव - टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, (पृ. १६आ - २१आ, संपूर्ण ), आदिः सर्वं सर्व सिद्ध्यर्थ; अंतिः यायात् प्राप्नुयात्., पे.वि. यह कृति बीच में लिखि गई हैं. १०५३४. चैत्यवन्दनसूत्र सङ्ग्रह लघुवृत्ति व श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २५, पे. २, जैदेना., (२७४१३, १४४४०-४६). पे.-१. पे. नाम. चैत्यवन्दनादिसूत्र की लघुटीका, पृ. १आ-१८आ चैत्यवन्दनसूत्र सङ्ग्रह - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनवरेन्द्र अति गापवर्गावाप्तिरिति " पे.-२. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की लघुटीका, पृ. १८-२५अ वन्दित्तुसूत्र - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणिधाय श्रीवीरं; अंतिः नमस्करोमीत्यर्थः. For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०५३६.” नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. कपडवन, ले.- नागरदास, प्र.वि. मूल गा.५१., (२७४१२.५, ३-४४२७-२९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व जेह प्राण; अंतिः हजि सिद्धी गयो छे. १०५३७. योगप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभपूर, ले.- कामेश्वर, प्र.वि. श्लो.१४३, (२६.५४१२, १४४३४-३५). योगप्रदीप, सं., पद्य, आदिः यावन्न ग्रस्यते; अंतिः ब्रह्म परमं पदम्. १०५३८." नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८८७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११+कळश, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२७४१३, ११-१५४२१-३५). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः आतम आप ठवायो रे. १०५३९. शान्तिजिन कलश, स्नात्र विधि व लूणपाणी विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४१३.५, १५४३६-३८). पे:१. शान्तिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजयमङ्गलकृत्स्न; अंतिः ___श्रीशान्तिजिन जयकार., पे.वि. गा.२२. पे..२. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. २अ-५आ, संपूर्ण), आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र मझार., पे.वि. ढाल-८. पे.-३. लूण पाणी विधि, प्रा., गद्य, (पृ. ५आ-६अ, अपूर्ण), आदिः उवणेउ मङ्गलं वो जिणा; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १०५४०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. २४स्तवन, (२६.५४१३, १५४३७-४०). जिनस्तवनचौवीसी, आ. हंसरत्नसूरि, मागु., पद्य, वि. १७५७, आदिः सकल वञ्छित सुख आपवा; अंतिः लाभ अन्त उपाया रे. १०५४१. स्नात्र पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-८, (२७४१३.५, १३-१४४२६-३४). स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र मझार. १०५४२." चारप्रत्येकबुद्ध कथा सह टबार्थ व नमिप्रव्रज्याध्ययन सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. बारेजानगर, ले.- पं. दीपविजय, (२६.५४१३.५, ७४३७). ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः करकण्डू कलिङ्गेषु; अंतिः सुकृतं भुवनोपकारि. ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः करकण्डू प्रत्येक; अंति: करो सकलने उपगार. १०५४३. बावन अक्षर, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सांदराइ, ले.- मु. गुमानविजय, (२५.५४१३, १३४२६ २७). भलेनो अर्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रभु नीशालै बैठा; अंति: परमानन्द पामस्यौ. १०५४४. अक्षयतृतीया कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६४१४, १८-१९४३६-३९). अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीसुखदातार; अंति: गद्यवार्ता रचितवान्. १०५४५.” आठ कर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. लुणावा, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६.५४१३.५, १७४३२-३५). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठकर्मना नाम पहिलो; अंतिः विषे उद्यम करवो. १०५४६. नवाणुंप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११+कळश, (२७.५४१३, १३४३६-३७). For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशङ्खसर पासजी ; अंतिः आतम आप ठवायो रे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , १०५४८. वीरजिनविज्ञप्ति स्तवन सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २८-६ (१ से ६ ) - २२ जैदेना. प्र. वि. ग्रंथ के दो पत्र का नंबर नहीं है इसका कुल पेज मे एड नहीं किया है. मूल-ढाल - ६., ( २६१३.५, १०- ११४३४-३५). महावीरजिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि मागु., पद्य वि. १७३३, आदिअंतिः आणा सिर वहेरयेजी, महावीरजिन स्तवन- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि:-: अंति: १०५४९. कर्मग्रन्थ १-६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १११, पे. ६, जैदेना., ( २६.५x११.५, ३x४१-४२). पे. १. पे नाम कर्मविपाक सह टवार्थ, पृ. १२-१८ आ १४७ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि श्रीमहावीरदेव प्रति अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरि पे.वि. मूल-गा. ६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १९अ - ३०आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं ... कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ मागु, गद्य, आदि बन्ध ते स्यु कहीयइ: अंतिः श्रीमहावीरदेव प्रति पे.वि. मूल गा. ३४. पे. ३. पे नाम, बन्धस्वामित्व सह टवार्थ, पृ. ३०आ-३७आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः बन्धना कार सत्तावन्न ; अंतिः कर्मस्तव साम्भलीने., पे.वि. मूल-गा. २५. पे. ४. ये नाम पडशीति सह टबार्थ प्र. ३७आ-५६आ 1 षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: वान्दीनइ तीर्थङ्कर: अंतिः मध्यम अनन्त होइ, पे.वि. मूलगा. ८६. पे. ५. पे नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. ५६आ - ९१अ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणमीने जिन प्रति; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., पे. वि. मूल - गा.१००. प्र. पु. - मूल-ग्रं. १४७, प्र. पु. - टबार्थ- ग्रं. ५०७, प्र. पु. -मूल-ग्रं. उभय-६५४. पे. ६. पे नाम. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टवार्थ पृ. ९१अ १११आ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि: सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मागु., गद्य, आदि सिद्ध निश्चल पद छह अंतिः उणी नेउ गाथा होइ., पै. वि. मूल गा. ९३. १०५५०. जम्बूद्विपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६३४, श्रेष्ठ, पृ. १३३, जैदेना., ले. स्थल. अंद्रीकोट, ले.- ऋ. कृष्ण (दुर्गादासगछ), प्र. वि. ७ वक्षस्कार, ग्रं. ४८५४ (२७०४११.५. १२-१३४४५-४८) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि For Private And Personal Use Only १०५५१.” चन्द्रकेवली रास, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, प्र. वि. खण्ड - ४ उल्लास, १११ढाल, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२८.५५१२.५ १३४४९-५१). श्रीचन्द्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७७०, आदिः सुखकर साहिब सेवीइं; अंतिः भणतां मंगल Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४८ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मालाजी. १०५५२. भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०४, जैदेना., प्र. वि. ४१शतक, ग्रं. १५७५०, (२७×११, ११×३३). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: #; अंतिः करितं नमस्सामि. १०५५३. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व बालावबोध, पूर्ण, वि. १६१३, श्रेष्ठ, पृ. २८७-१ (२११) - २८६, जैदेना. प्र. वि. मूल३६ अध्ययन., ( २६.५X११, १३x४६-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः भावणं कुण. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भिक्षो विनयं अंतिः मायावात् करोति. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भिक्षु महात्मानइ; अंतिः जीवास्तेषां समन्तात्. १०५५४. कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९६, जैदेना., प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., त्रिपाठ, ( २६x१०.५, २ १४४३६-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः रमुष्या शतशः प्रतीः. १०५५५. शत्रुञ्जय महिमा, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. २३३, जैदेना., ले. स्थल. अणहिल्लपुरपत्तन, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. सर्ग - १४. नरसिंहए १७२३ मे श्राविका काहनबाइ के पुण्य के लीये यह प्रत मलकापुर के भंडार मे रखवाई., (२५.५४११, १५४४७-४९). शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः निधिर्ग्रन्थ एव. " १०५५६.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १७८+१ (९०) = १७९, जैदेना. प्र. वि. १९ अध्ययन ग्रं. ५४६४, संशोधित (२६११, ११४३९-४३). १७०+१ (९३) १७१, जैदेना. ले. स्थल ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. १०५५७.” कल्पसूत्र सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. खंभातातीर्थ, ले. मु. नरसागर, प्र. वि. शुरुआत में कल्पसूत्र सुनने की विधि दी गयी है. मूल-९- व्याख्यान, संशोधित, ( २६११.५, ५- १३३७). 7 कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः हेति कहिइ वारजी. कल्पसूत्र- व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः #. For Private And Personal Use Only " " १०५५८. भगवतीसूत्र, संपूर्ण वि. १५८३, श्रेष्ठ, पृ. ४७७-२ (३७ से ३८ ) ४७५, जैदेना ले स्थल, सीरोही, ले. मु. वीरकलश ( गुरु मु. तिलकसुन्दर ), पठ- आषादी ठाकुर, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ३६, ३७, ३८ आ त्रणे नम्बर एकज पेज उपर आप्या छे. ४१ शतक, ग्रं. १६०००, ( २६ ११.५, १३४३९). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति. १०५५९. आवश्यक सूत्र नियुक्ति व भाष्य की शिष्यहिता टीका, पूर्ण, वि. १६४७, मध्यम पृ. ४८३-९(१ से , ८,२५)+१(२५८)=४७५, जैदेना., ले. रूद्र ओझा, प्र. वि. टीका- ग्रं. २२००० मूल, निर्युक्ति व भाष्य की तीनों टीका का संयुक्त ग्रन्थाग्र है तथा इन कृतियों का मात्र प्रतीकपाठ दिया गया है. टीकागत प्राकृतमय दृष्टान्तकथा भी संलग्न है. पू.वि. नियुक्ति गाथा की टीका-६ से मिलती है. (२६४१०.५ १५४५२). " .. आवश्यक सूत्र- शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि:-: अंतिः मिच्छन्तीति गाथार्थः. " आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं. गद्य, आदि:-: अंति मिच्छन्तीति गाथार्थः, आवश्यक सूत्र- नियुक्ति के भाष्य की टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-: अंति: Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०५६०.” उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७९७, मध्यम, पृ. १५४, जैदेना., ले. स्थल. तारापुर, ले.- पं. सुन्दरसागर, प्र. वि. मूल-गा. ५४४ अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५.५४११.५, २-१५४३७-५२). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी... उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वाणी श्रुतदेवताने. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०५६१.” जिवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. २९८, जैदेना., ले. स्थल. खोडनगर, ले. - पं. अजबसुन्दर (उपकेशगच्छ). प्र. वि. मूल- १० प्रतिपत्ति नं. ४९५०. प्र. पु. बार्थ ग्रं. उभय-१८७८१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११.५, ६x४४-४६). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि णमो उसभादियाणं अंतिः सव्यजीवा पण्णत्ता. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७७२, आदिः प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंतिः वार्ता सम्पूर्ण थई. १०५६२.” भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ एवं श्लोक सङ्ग्रह व मोक्षगमनकाल गाथा, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. १९५, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. धनसागर, अञ्चलगच्छ.), पठ- मु. कपूरसागर (गुरु मु. प्रेमसागर अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५५११.५, ५४२९-३५). पे. १. पे नाम, भुवनभानुकेवली चरित्र सह टवार्थ, पृ. १३-१९३आ भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जम्बूद्वीपे; अंतिः नरेन्द्रर्षिः केवली. भुवनभानुकेवली चरित्र - टवार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु गद्य वि. १८०१ आदि एहीज जम्बूद्वीपने अंतिः तत्वहंसेन धीमता. पे. २. पे. नाम. अव्यवहारराशि से निकलनेवाले जीवों की मोक्षगमनकाल गाथा सह टबार्थ, पृ. १९३आ - १९३अ निगोदजीव मोक्षगमनकाल गाथा, प्रा., पद्य, आदि जम्पइ जिणो नरेसर; अंतिः #. निगोदजीव मोक्षगमनकाल गाथा-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: चन्द्रमीली राजा अंतिः पणाने न पायें, पे.वि. मूल गा.२. " १४९ पे - ३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १९४अ - १९४आ), आदि: #; अंतिः #. १०५६३. स्थानाङ्गसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८३६, जीर्ण, पृ. ४८३ - २ (१,४२ ) = ४८१, जैदेना., ले. स्थल. सूरतबंदिर, प्र. वि. * पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल- १०स्थान टीका- १० स्थान त्रिपाठ, (२७४१२X) स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदि:-; अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या. १०५६४.” भगवतिसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४९४, जैदेना., प्र. वि. ४१शतक, ग्रं. १५७५२, संशोधित, ( २६ ११, १३x४५ (२५.५X१०.५, ११४३५-३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः करितं नमस्सामि. ४७) भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति. १०५६५. भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १५२५, श्रेष्ठ, पृ. ६४९- १ ( २ )+१(५८७) - ६४९. जैदेना. ले. स्थल नरसमुद्रपत्तन प्र. वि. ४१ शतक, १०५६६.” कल्पसूत्र सह सुबोधिकाटीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २१०, जैदेना. प्र. वि. मूल ९ व्याख्यान, संशोधित, " , त्रिपाठ (२४.५४११, १२४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनैराश्रिता. १०५६७. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १९३, जैदेना. प्र. वि. १९ अध्ययन, ग्रं. ५५०० (२५.५४१०.५, For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५० www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४३८). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्त.. १०५६८. श्रीपाल रास सह टवार्थ व पद संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०५, पे. २, जैदेना. ले. स्थल सुरतिबिंदर, ले. मु. " 1 " मोतीसागर (गुरु मु. कपूरसागर, अञ्चलगछ), प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है। ( २६११.५४). पे.- १. पे. नाम. श्रीपाल रास सह टबार्थ, पृ. १अ - २०५अ , श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. श्रीपाल रास-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रथम ऋषभदेव; अंतिः ज्ञाननिळाव पामी नई., पे. वि. मूल-खण्ड-४. पे. २. ऑपदेशिक राज्झाय-६ दर्शन प्रबोध, मु. रूपचन्द, मागु, पद्य, (पृ. २०५अ २०५आ) आदि ओरनसें रङ्ग न्यारा; अंतिः चरण सरण तिहारा है, पे.वि. गा. ९. १०५६९. जम्बुकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. १०६, जैदेना., ले. स्थल. सूलपूर, ले. मु. मतिरत्न (गुरु मु. जिनरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल -६६, गा. १८३८, ग्रं. २५००, ( २४x१०.५, ११-१२X३०-३१). जम्बूस्वामी चौपाई. मु. उदयरत्न, मागु, पद्य वि. १७४९, आदिः परम ज्योति परकसकर अंतिः मनोरथ फलस्येञ्जी. १०५७०. कर्मग्रन्थ १-६ सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९२, पे. ६, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, ( २४.५x११, १ ३X१२-२४). पे. १. पे नाम कर्मविपाक कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १८-३७आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं. गद्य, आदि दिनेशवद्ध्यानवरप्रता: अंतिः सर्वोपि तेन जनः पे. वि. मूल-गा. ६०: टीका- ग्रं. १८८२. " .. पे. २. पे. नाग. कर्मस्तव कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ३८अ-५६आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं .. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि बन्धोदयोदीरण सत्पद: अंतिः यन्मयार्जितं सुकृतम्, पे.वि. मूल-गा. ३४. प्र. पु. - टीका- ग्रं. ८३०. पे: ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व कर्मग्रन्थ सह टीका, प्र. ५७अ-६५आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूर्णि सं., गद्य, आदि सम्यग्बन्धस्वामित्व अति: रतोलेख्यवचूर्णिका, पे.वि. मूलगा.२५. प्र. पु. - अवचूर्णि-ग्रं. ४२०. पे. ४. पे नाम षडशीति कर्मग्रन्थ सह टीका, प्र. ६६अ-१२३आ For Private And Personal Use Only षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंतिः विचारणा चतुरः, पे.वि. मूल-गा. ८६ टीकाग्रं. २८००. पे. ५. पे नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १२४अ-२१३आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां अंतिः सर्वोपि तेन जनः, पं. वि. मूल गा. १०० टीका ग्रं. ४३४०. पे. ६. पे नाम, सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. २१३आ-२९२अ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा. पद्य, आदि सिद्धपएहिं महत्थं अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ- टीका आ. मलयगिरिसूरि सं गद्य, आदि अशेषकर्माशतमः समूह अंति: (१) धर्म : Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १५१ परममङ्गलम् (२)तेनाश्नुतां लोकः., पे.वि. मूल-गा.९३; टीका-ग्रं.३८८०. १०५७१.” कल्पसूत्र सह कल्पप्रकाश टबार्थ, व्याख्यान+कथा व कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. २५३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (४९७) अतिदृष्टिदीनात् मतिविभ्रमाच्च, (२५.५४१०.५, ५-६x२८-३९). पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह (मा.गु.)कल्पप्रकाश टबार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १अ-२४९आ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पप्रकाश टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६२, आदिः ॐ नमः परमानन्द; अंतिः प्राप्नुवन्ति सज्ञान. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-९-व्याख्यान, ग्रं.१२१६. पे.२. कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, (पृ. २४९आ-२५३अ), आदिः हवें थिवरावली माहिं; अंतिः श्रुत कहें ते प्रमाण. १०५७२. उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति अध्ययन १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४-१(११३)+१(११४)=१३४, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल-अध्याय-८; प्र.पु.-टीका-अध्याय-८., त्रिपाठ, (२४.५४११, १४४४८-५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः१०५७३. सम्यक्त्वसित्तरी सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. १७४+१(६२)=१७५, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- मु. प्रेमसागर (गुरु मु. धनसागर, अञ्चलगच्छ.), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७०. प्र.पु.-मूल-ग्रं. उभय-५४००., द्विपाठ, (२५.५४११.५, १४४३६). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध+कथा, उपा. रत्नचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १६७६, आदिः नत्वा श्रीपार्श्व; अंतिः तत्त्वार्थबोधकर. १०५७४. विचार रत्नाकर, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १७१+३(१२,६१,७८)=१७४, जैदेना., ले.- गणि विनयविजय, (२७४११.५, १५४४९). विचार रत्नाकर, पाठक कीर्तिविजय, सं., गद्य, वि. १६९०, आदिः सजयति जिनवीर क्षीर; अंति: १६९०० गुरुमहिम्ना. १०५७५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. १९४, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५-१५४३०-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते काल अवसर्पिणीनो; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः-; अंतिः१०५७६." सम्यक्त्वपरिक्षा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. ४३८+२(१४७,४१३)=४४०, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्र.वि. मूल-अध्याय-४अधिकार., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, द्विपाठ, (२५.५४११.५, ११४३२-३८). सम्यक्त्व स्वरूप, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथेश; अंतिः यावच्चन्द्रदिवाकरौ. सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १८१३, आदिः प्रणम्य क० प्रणाम; अंतिः दुक्कडं होज्यो. १०५७७. योगशास्त्र सह टीका प्रकाश १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. २४४, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-मूल-प्रकाश-४, ग्रं. ११७००., (२५४११.५, १५४४६-४८). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति: For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५२ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगशास्त्र- स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. गद्य, आदि प्रणम्य सिद्धाद्भुत: अंतिः १०५७८. कर्मप्रकृति सह टीका, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. २४२, जैदेना., ले. स्थल. कृष्णगढ, प्र. वि. मूल - ७ अधिकार., (२६१२, १३३७-४१). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदिः प्रणम्य कर्मद्रुम; अंतिः चूर्णिकृते नमस्तस्मै. १०५७९." कल्पसूत्र सह टबार्थ, व्याख्यान+कथा, पट्टावली व बारबोल संपूर्ण वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. २४०, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले.- मु. कान्तिविजय (गुरु गणि मानविजय), प्र. वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५x११.५, ५-११९३२-३६). पे. १. पे. नाग. कल्पसूत्र सह (मा.गु.) टवार्थ व व्याख्यान+कथा, पृ. १अ-२३५अ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: ते० तिण कालेइ तिण अंतिः वार श्रीभगवन्त कर्यो. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा*, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः दुक्कडं दीजै., पे.वि. अंत में कल्पसूत्र चांचनविधि लिखी है. मूल- अध्याय ९- व्याख्यान. पे:-२. पट्टावली, मागु., गद्य, (पृ. २३५आ-२३८आ), आदि: महावीर देव चोवीसमो; अंतिः दयासूरि चिरञ्जीवी. पे. ३. पे. नाम. बार बोल, पृ. २३८आ-२४०अ बोल सङ्ग्रह, मागु., प्रा., सं., गद्य, आदि: #; अंतिः#. १०५८०. शीलोपदेशमाला सह वृत्ति शील तरङ्गिणी नाम्नी, संपूर्ण, वि. १६५७, मध्यम, पृ. २१७, जैदेना., ले. स्थल. त्रांबावतीनगरे, ले.- मु. कीर्तिचन्द्र (गुरु गणि पुन्यकलश), गच्छा.- आ. जिनचन्द्रसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ११४., ( २६११, १३३८-४१). " शीलोपदेशमाला. आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि आबालबम्भयारिं अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं. शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९४, आदिः यस्योपदेशमाय दशनां; अंतिः चेते चरम गाथार्थ. (+) १०५८१. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति (लघु टीका) सुखबोधिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२७, जैदेना, पठ. - गणि सङ्घविजय (गुरु मु. गुणविजय, तपागच्छ), प्र. वि. मूल - ३६ अध्ययन, (२५.५×१०.५, १५×५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स: अंतिः पुव्वरिसी एव भासन्ति उत्तराध्ययनसूत्र- सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्न; अंतिः तदनतिक्रमेण यथायोगम्. १०५८२. सम्यक्त्वसित्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १६९, जैवेना., ले. स्थल सूरतबिंदर, प्र. वि. मूल गा. ७०, संशोधित, द्विपाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा (२६४११, १४४३८) " सम्यक्त्वसप्ततिका आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि: दंसणसुद्धिपयासं अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध+ कथा, उपा. रत्नचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १६७६, आदिः नत्वा श्रीपार्श्व; अंतिः तत्त्वार्थबोधकर. १०५८३. श्राद्धविधि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. २३०, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदिरे, प्र. वि. मूल-६प्रकाश; टीका ग्रं. ६७६१, (२५४११.५, १२०४२). For Private And Personal Use Only आद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. , " श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदिः अर्हत्सिद्धगणी; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १५३ १०५८४. कल्पसूत्र सह टीका कल्प किरणावली नाम्नी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५०, जैदेना., ले.- मु. जेठा, प्र.वि. मूल ९-व्याख्यान., त्रिपाठ, (२५.५४११, १-८४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टीका', सं., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः मुख्या शतशः प्रतीः. १०५८५." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध व पञ्चमी स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९९+११(७२,७२,७२,७२,७२,७२,७२,७२,७२,७२,१७२)=२१०, पे. २, जैदेना., ले.- ऋ. जेठा, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच के कुछ पत्र, (२५.५४११, ३-१०४३४). पे.१.पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध, पृ. १आ-१९९अ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः वोसिरियं० मएगहियं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीजसविजयगुरुणां; अंति: में ग्रां. पे.२.पे. नाम. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति सह टबार्थ, पृ. १९४अ-१९५आ ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीनेमीनाथ पाञ्च; अंतिः पण्डीतने सावधान हूती., पे.वि. मूल ___ श्लो.४. यह कृति बिचमें लिखि गई हैं. १०५८६." भगवतीसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०४-१(२७५)+४(८६,१३८,१७३,१९५)=३०७, जैदेना., प्र.वि. ४१शतक, ग्रं. १८६१६, संशोधित, (२६४११, १७४६०). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम्. १०५८८. सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना.,प्र.वि. ७ प्रस्ताव, ग्रं. २८५८, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६x११.५, १३४४१-४४). सम्यक्त्वकौमुदी, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४८७, आदिः ॐ नमः शाश्वतानन्द; अंतिः लोकानां सर्वसङ्ख्यया. १०५८९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना.,प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, (२६४११.५, ९४३४-३६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०५९०." पूजा,स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, पे. १५, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११.५, १३ १४४३४-३७). पे.-१.८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, (पृ. १अ-५आ, संपूर्ण), आदिः अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः मोक्षं हि वीराः., पे.वि. ढाल-९. पे..२.८ प्रकारी पूजा, मागु., पद्य, (पृ. ५-७आ, प्रतिपूर्ण), आदिः स्वस्ति श्रीसुखपूरवा; अंतिः-, पे.वि. पूजा-५ तक लिखा है. पे.-३. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. ७आ-१३आ, संपूर्ण), आदि: उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः कोई नये न अधूरी रे. पे.-४. २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, (पृ. १३आ-२२अ, संपूर्ण), आदिः श्रीशद्धेश्वर ___पासजी; अंतिः २० तवन कहीने पूजे., पे.वि. ढाल-२०. पे.५.१७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. २२अ-२७अ, संपूर्ण), आदिः अरिहन्त मुखकज वासिनी; ____ अंति: सुरपति जिम थुणियो., पे.वि. ढाल-१७. पे.६. पार्श्वजिन च्यवनकल्याणक स्तवन, मु. कपूरसागर, मागु., पद्य, (पृ. २७अ-३२अ, संपूर्ण), आदिः सकल मनोरथ पूरवा; अंतिः लाल पामे परमसुखकन्द., पे.वि. ढाल-१५. For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १५४ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. ७. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३२अ - ४०आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम भुमी जगा सुध; अंतिः तो सकल कार्यनी सिधिः. " पे. ८. शत्रुंजयतीर्थ इक्कीसनाम व खमासमण विधि, सं., मागु, गद्य, (पृ. ४० आ-४० आ, संपूर्ण) आदि विमलगिरिनमः: अंतिः शत्रुञ्जानुं स्तव. पे. ९. पे नाम, सनात्र विधिसहित पृ. ४१३अ-४७अ संपूर्ण " स्नात्रपूजा सङ्ग्रह, मु. मिन्न मित्र कर्तृक, सं. प्रा. मागु प+ग, आदि मुक्तालङ्कार विकार अंति उतारी राजा कुमारपाल. पे.-१०. पे. नाम. अञ्चलगच्छनी १७ भेदी पूजा, पृ. ४७-५१आ, संपूर्ण १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मागु., सं., पद्य, आदिः सर्वज्ञं जिनमानम्यः; अंतिः तस घर होइ आणन्द रे., पे.वि. १७ पूजा. पे. ११.२१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. ५१आ-५५आ, संपूर्ण), आदि: प्रणमुं प्रथम जिणन्द अंतिः हीरो जेम जडियो रे., पे.वि. कृति के अंतमे विधि दी गई है. पे. १२. पे नाम शान्तिजिन अढीसें अभिषेक, पू. ५६३-५८आ, संपूर्ण पंचकल्याणकअभिषेक स्तवन, मु. लक्ष्मी, मागु., पद्य, आदिः जय केवल कमला केलि; अंतिः जिनवर जगतमंगल गाईए., पे. वि. बाल-५. पे. १३. स्नात्रपूजा विधिसहित गणि देवचन्द्र मागु., पद्य, (प्र. ५८आ-६२अ, संपूर्ण), आदि चोतिसे अतिसय; अंति कही सूत्र मझार., पे.वि. ढाल - ८. पे. १४. नवअड्ग पूजा दुहा, मु. वीरविजय, मागु, पद्य, (पृ. ६२आ-६२आ, संपूर्ण), आदि: करिसम्पूट भरी पात्रन: अंति कहे शुभवीर जिणंद, पे.वि. गा.१०. पे.-१५. पे. नाम. शान्तिनाथजीनो कलश, पृ. ६२आ- ६४अ, संपूर्ण शान्तिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु, पद्य, आदि शान्ति जिनवर सयल अंतिः श्रीशान्तिजिन जयकार., पे.वि. गा.२२. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " १०५९१. शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., प्र. वि. ६ प्रस्ताव, ( २६.५X११.५, १५×५१-५६). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि सं., गद्य वि. १५३५, आदि प्रणिपत्यार्हतः अंतिः स करोतु शान्तिः १०५९२. उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, जीर्ण, पृ. १२८, जैदेना. ले. स्थल. सुरतबिंदरे (२५४११, ११९३८). " उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह मागु., प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्वावीर जिणं अंतिः परें सुष पांगे. · १०५९३. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, दि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २७७-१ (१८७) = २७६, जैदेना. प्र. वि. मूल-३६ अध्ययन, टिप्पण , युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, १७४५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः भवसिद्धिय संवुडे. उत्तराध्ययन सूत्र- सुखवोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि सं. गद्य वि. ११२९, आदि: प्रणम्य विघ्न: अंतिः तदनतिक्रमेण " यथायोगम्. १०५९४. आचाराङ्गसूत्र मूल व निर्युक्ति की टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६५ +१ (१४४) = १६६, जैदेना., प्र.वि. टीका-ग्रं. १२०००., (२५x११.५, २१-२२४५९). आचाराङ्गसूत्र- टीका#, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः जयति समस्तवस्तु: अंतिः इति तात्पर्यार्थः. आचाराङ्गसूत्र-निर्युक्ति की टीका#, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः तत्र वन्दित्वा ; अंतिः #. For Private And Personal Use Only १०५९५.' प्रबोधचिन्तामणि सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५ - २ (८२, १२२ )+१(१२३ ) = १४४, जैदेना., पू. वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. अधिकार-६ की गा.६ तक लिखा है. टबार्थ १२१ तक लिखा है. (२६४१२, ४-५४३६). Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ प्रबोधचिन्तामणि आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य वि. १४६२, आदि चिदानन्दमयं वन्दे अंति ; , " प्रबोध चिन्तामणि- टवार्थ मागु, गद्य आदि हये ग्रन्थकर्ता अंति : 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १०५९६." ज्ञानसार सह टीका ज्ञानमञ्जरी नाम्नी, संपूर्ण वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. १०९, जैदेना. ले. मु. प्रेमसागर, प्र. वि. मूल३२अष्टक, श्लो.२७३., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५x१२, १-४४३४-३७). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं. पद्म, आदि: ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन अंतिः स्वीयं कृतं मङ्गलम्. ज्ञानसार-ज्ञानमञ्जरी टीका, गणि देवचन्द्र, सं., गद्य, वि. १७९६, आदिः पार्श्वेशं जिनं नत्व; अंतिः जैनधर्मोस्तु मङ्गलम्. १०५९७. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., ले. स्थल. स्तंभतीर्थे, ले. मु. प्रेमसागर, प्र.वि. खण्ड-खंड४, (२६११.५, १३४३१). रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७६०, आदि सकल श्रेणि में अंतिः मोहनविजय "" विलासजी. १५५ १०५९८.” पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२१, जैदेना., प्र. वि. सर्ग-८, ग्रं. ६०७४, (२७११, १९ - २०x४६-५०). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि सं., पद्य वि. १३१२ आदि नाभेयाय नमस्तस्मै अंतिः शुभभावलक्ष्मीम्. १०५९९. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. ८४, जैदेना. ले. मु. धना (गुरु गाणि रत्नमेरु, अञ्चलगच्छ.), गच्छा.- आ. धर्ममूर्तिसूरि ( अञ्चलगच्छ), प्र. वि. मूल - ६ अधिकार., गा. २६२., (२५.५x१०.५, १७४५०५६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदि: अर्हं अर्हमिति ; अंतिः सूत्र सहित धा. १०६००.” कल्पसूत्र व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. १२६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल नौतनपुर, ले. - गणि कल्याणचन्द्र, पठ. - साध्वीजी भावसिद्ध, राज्यकाल - राजा लाखाजी, गच्छा.- आ. जिनराजसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६×११, ७२७-३०). पे. १. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य (प्र. १आ-१२६अ) आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसह ति बेमि., पे. वि. ९ - व्याख्यान. T ; पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १२६अ - १२६अ ), आदि: #; अंति:#. १०६०१. यतिजीतकल्प सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ११७- १(१ ) = ११६, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. ३०६., (२५.५x११, १७ १८४८-५०). यतिजीतकल्पसूत्र, आ. सोमप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सोहन्तु गीअत्था. यतिजीतकल्पसूत्र- टीका, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५६, आदि:-; अंतिः कल्पं प्रकटमकारीति. १०६०२. कर्मग्रन्थ १ सह बालावबोध व टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४७+१(४) = ४८, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा.६१. " (२५.५x११.५, १३x४२-४३). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., गद्य, आदि: ऐंदवीयकलाशौक्लीं; अंतिः कवि यशःसोम० सहिशा. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि एहवा श्रीमहावीर ३४ अंतिः लिखी देवेन्द्रसूरिइ. १०६०३. भगवतीसूत्र आलापक, संपूर्ण, वि. १६५४, श्रेष्ठ, पृ. ८०, जैदेना., ले.- मु. रत्नचन्द्र, (२६×११, १५x४६-५२). For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह', संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १०६०४. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदेना., ले.स्थल. भाणवडनगरे, ले.- पं. शान्तिरुची गणि (गुरु गणि रूपरूचि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-४ उल्लास, (२६४११.५, १६४३९-४३). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १०६०५. रामयसोरसायण, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ११३+२(५४,६७)=११५, जैदेना., पठ.- श्राविका हेम कोर, प्र.वि. अध्याय-४अधिकरा, ढाल६, ग्रं. ४८००, (२५.५४१०.५, १५-१६४३८). रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मागु., पद्य, वि. १६८०, आदिः मुनिसुव्रत स्वामीजी; अंतिः सदा हरि बधामणी. १०६०६." कल्पसूत्र सह टबार्थ व अन्तर्वाच्य(व्याख्यान)+कथा, संपूर्ण, वि. १७२५, मध्यम, पृ. १६१, जैदेना., ले.स्थल. धाणताग्रामे, ले.- गणि कनकरत्न, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-९-व्याख्यान. प्र.पु.-मूल-ग्रं. सर्व-५०००., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ+व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, आदि: नमो अर्हद्भ्यः अरि; अंतिः जणाविउ ए पण इमेलिई. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदि:#; अंति: #. १०६०७. पण्णवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १६५५, श्रेष्ठ, पृ. १७६, जैदेना., ले.- मु. रयणचन्द्र, प्र.वि. ३६ पद., ग्रं. ७७८७, (२६४११, १५४५०-५३). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: सुही सुहं पत्ता. १०६०८. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७०, जैदेना., प्र.वि. मूल-२० प्राभृत; टीका-ग्रं. ९४००., (२६४११, १५४५३-५७). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदिः जयति णवरलिण कुवलय; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. चन्द्रप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: मुक्ताफलमिव करतलकलित; अंतिः जनस्तेन भवतु कृती. १०६०९. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रहवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. १६३, जैदेना., ले.स्थल. सूरितबिंदरे, ले.- पं. क्षमाप्रभ, प्र.वि. ५ अधिकार, (२६४११, १५-१६x४४-५०). वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदिः जयति सततोदयश्रीः; अंति: जीयादियं च चिरम्. १०६१०." श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना.,प्र.वि. खण्ड-४, ढाळ ४१, गा.१८००, दशा वि. विवर्ण-अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२४.५४११, ९४२९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. १०६११." आवश्यकसूत्र की टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं., (२६४१०.५, १५४५४). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंति:१०६१२. उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६, जैदेना., ले.- मु. रतनसागर, (२५४११.५, १२४३२-३५). उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, आदिः हवि साध्वी आसा विनय; अंतिः मङ्गलीकनी सेण पामे ए. १०६१४." योगचिन्तामणि सह टबार्थ व बीजक, पूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. १४१-१(६५)=१४०, जैदेना., ले.स्थल. नीग्रोधपुर, ले.- मु. रङ्गरत्न (गुरु गणि राजरत्न),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-अध्याय-७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. बीजक-१०० तक दिया गया है., (२६४११, ७X४०-४३). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः योगचिन्तामणिश्चिरम्. For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ योगचिन्तामणि-टबार्थ+बीजक, मागु., गद्य, आदिः सर्वज्ञं प्रणम्यादौ; अंतिः मिश्राध्याय सम्पूर्ण. " १०६१५. स्तवनचीवीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९७, जीर्ण, पृ. १३३, जैदेना. प्र. वि. मूल- २४ स्तवन बालावबोधअध्याय- २४ स्तवन. त्रिपाठ, (२५.५४११.५, २-३४२५-२६) स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र मागु पद्य वि. १८वी आदि ऋषभ जिणिन्दसु अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी. " स्तवन चौवीसी - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: श्रीआदिनाथ प्रमुख अंतिः मोक्षनो परमोपाय. १०६१६.” राजप्रश्नीयसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (+) (२५.५X११, १३-१४४४०). राजप्रश्नीयसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि १०६१७. प्रश्नव्याकरणसूत्रवृत्ति अपूर्ण वि. १७वी १५X४१). प्रश्नव्याकरणसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि " १०६१८. राजप्रश्नीयसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. १३०+१(५०) = १३१, जैदेना. ले. स्थल, पत्तननगर, प्र. वि. मूल - सूत्र - १७५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६११.५, ६x२९). राजप्रश्नीयसूत्र प्रा. गद्य आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अंतिः परसावणीए णमो " राजप्रश्नीयसूत्र - टवार्थ वा मेघराजजी मागु, गद्य, आदि देवदेवं जिनं नत्वा अंतिः ग्रन्धमानविनिर्मत्तं. , , (+) · www.kobatirth.org: , , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) सं गद्य वि. १२वी, आदि:-: अति: संशोधिता चेयम्, " " १०६१९.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व ज्ञानदीपिका बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८३, श्रेष्ठ, पृ. १३४, जैदेना., ले. स्थल. जालोरदुर्ग, ले. मु. केसरविजय (गुरु गणि स्मृद्धिविजय) प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, संशोधित, पू. वि. बीच के कुछ पन्ने चीपके " हुए है., ( २६११.५, ६-१५X३२-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र- टवार्थ मागु गद्य, आदि अष्ट कर्मरुपवरी अंति: सहित वारंवार किहउ P कल्पसूत्र ज्ञानदीपिका बालावबोध, मु. ज्ञानविजय, मागु गद्य वि. १७२२ आदि इरियावही पडिकमिइ एक: अंतिः जयतोदिदं शास्त्रं. १०६२०. जीवाभिगमसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २०७-१ (१६७ ) + २ (१६५,२०४) २०८, जैदेना. प्र. वि. १० प्रतिपत्ति, ग्रं. ४७०० प्र. ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा (२६.५४१०.५, ११४३८) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि णमो उसमादियाणं अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. , सं. गद्य आदि प्रणमत वीरजिनेश्वर अंति: . " श्रेष्ठ, पृ. १४९-६९ (१ से ६९ ) -८०, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. ४६३०, (२५.५४११, १०६२१. आचारप्रदीप, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदर, प्र. वि. ५ प्रकाश, ग्रं. ४७६५, (२५.५८११, १५०४२-४४) १५७ आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५१६, आदिः श्रीवर्द्धमानमनुपम; अंतिः जयदायकश्च विदाम्. १०६२२. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६१-६ (६७ से ७२ ) = १५५, जैदेना., प्र. वि. मूल " गा. ११५. (२६.५x११, १३४४३-४५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं. शीलोपदेशमाला- बालावबोध+ कथा, गणि मेरुसुन्दर मागु, गद्य वि. १५५१ आदि श्रीवामेयममेय अंतिः मोक्षफल पणि " पामउ. शीलोपदेशमाला-कथा मागु, गद्य, आदि:-: अंति: १०६२३. आचाराङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १५९४ श्रेष्ठ, प्र. १८६ - २ (८१, १०९ ) + ३(३९,७६, १३२) - १८७, जैदेना, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६११, १५x५६-६४). आचाराङ्गसूत्र प्रदीपिकाटीका, आ. जिनहंससूरि, सं. गद्य वि. १५७३ आदि शासनाधीश्वरं नत्वा अंतिः वीरशासनं For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जयति० सफला. १०६२४.” समयसारनाटक भाषा, संपूर्ण, वि. १७३३, मध्यम, पृ. ६६, जैदेना., ले.स्थल. त्रामठीआग्रामे, प्र.वि. गा.७२७, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४१०, १३४३९). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंति: नाममइ परमारथ विरतन्त. १०६२५. प्रबोधचिन्तामणि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३५-१(२)=२३४, जैदेना., प्र.वि. मूल-७अधिकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गलती से नंबर-२ नहीं दिया है., (२५४१०.५, ४४३४-३८). प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः चिदानन्दमयं वन्दे; अंतिः चिन्तामणिमकार्षीत्. प्रबोध चिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवे ग्रन्थकर्ता; अंतिः#. १०६२६." उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६.५४११, ११४३५-३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. १०६२७.' द्रव्यगुणपर्याय रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदरे, प्र.वि. मूल-ढाल १७., प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत, पू.वि. अंतिम भाग मे कुछ २ गाथाओं का टबार्थ नहीं है., (२६.५४११.५, ४४२८-३०). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२९, (संपूर्ण), आदिः श्रीगुरु जितविजय; अंतिः जसविजय बुध जयकरी. द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः ऐन्द्रश्रेणिनतं; अंति:१०६२८." उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., ले.- आ. पुण्यरत्नसूरि, प्र.वि. ३६अध्ययन, (२५.५४११, ११४३७-४०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. १०६२९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०१, मध्यम, पृ. १२५, जैदेना., ले.स्थल. जावालपुर, ले.- उपा. रत्नरङ्ग, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६, (२६४१०.५, ७X२४-२८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०६३०. श्राद्धविधि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-६प्रकाश; टीका-ग्रं. ६७६१., (२६४११, १६-१७४४४). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदिः अर्हत्सिद्धगणी; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. १०६३१." पुष्पमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ११४+१(४९)=११५, जैदेना., ले.- पं. देवेन, प्र.वि. मूल-गा.५०५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १६-१७४५०). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंति: सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१२, आदिः जयति जगदेकभानुः; अंतिः नित्यसुखार्थिभिः. १०६३२. कर्मप्रकृति सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५+१(६३)=१३६, जैदेना., प्र.वि. मूल-७ अधिकार. प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८०००., (२६४११.५, १६४५७-५९). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य कर्मद्रुम; अंतिः चूर्णिकृते नमस्तस्मै. १०६३३. कल्पसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११४३२-४० ). ; कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेणं काले० समणे अंति:कल्पसूत्र - बालावबोध' मागु, राज, गद्य, आदि कल्याणानि समुल्ल: अंतिः पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह (मा. गु. ) टबार्थ व (सं.) अन्तर्वाच्य, पृ. ७-१७२आ, पूर्ण कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे; अंति: उवदंसेइ ति बेमि " १०६३४.” कल्पसूत्र सह टबार्थ, अन्तर्वाच्य व गुरु स्तुति सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७३ - ७ (१ से ६,६६ ) = १६६, पे. २. जैदेना. ले. स्थल, पाटणनगरे, ले. मु. ऋद्धिविजय (गुरु गणि मोहनविजय), पू. वि. शुरुआत के व बीच का एक " पत्र नहीं है, प्र.ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं (२४.५५११, ५४३४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि से काल चउथो आरो अंति: गुरु भणी नमस्कार. कल्पसूत्र अन्तर्वाच्य, सं. गद्य, आदि अंति, पेवि. शुरुआत के पत्र व बीच का पत्र नहीं है. मूल- अध्याय-९ व्याख्यान. पे. २. पे. नाम. गुरु स्तुति सह (मा.गु.) टबार्थ, पृ. १७२आ - १७३अ, संपूर्ण गुरु स्तुति, सं., पद्य, आदि येन प्रतिबोधदीपेन अंतिः तस्मै श्रीगुरवे नमः ; गुरु स्तुति-टवार्थ, मागु., गद्य, आदि सर्व सङ्ख्या जे गुरु: अंतिः मोक्षमार्ग सुलभ हुई, पे. वि. मूल-श्लो. २. १०६३५. द्रव्यसङ्ग्रहवृत्ति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६४, जैदेना, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. २७०० (२५.५५११, ८४३३-३४). द्रव्यसङ्ग्रह-वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य परमात्मानं अति: ब्रह्मदेववृत्तिः, 1 १५९ " १०६३६.” क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २६५., (२५.५×११, ३x२५-२९). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धि लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवउ; अंतिः प्रसिद्धि पा ... १०६३९. आराधना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना. (२५४११.५ १२४३६-३९). आराधना, मागु., गद्य, आदिः पहिलुं त्रिकाल अतीत; अंतिः लहई जीओ सासयं ठाणं. " १०६४०. आराधनावर्ता व जीवखामण कुलक, संपूर्ण, वि. १८०० श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. २, जैदेना. (२६४११.५, १३४३२-३६). पे.- १. आराधना, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ४९आ), आदि: पहिलुं त्रिकाल अतीत; अंतिः लहई जीओ सासयं ठाणं. पे. २. खामणाकुलक, प्रा., पद्य, (प्र. ५० अ-५१आ) आदि जो कोवि भए जीवो अंतिः कम्मखयकारणं होउ., पे.वि. गा. ३८. १०६४१. शान्तिनाथ चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ६६ प्र. पु. - मूल-ग्रं. २२०५, (२४.५×११, ११ १२४३८-४५). शान्तिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मागु, पद्य, वि. १७२०, आदि सकल सुख सम्पतिकरण: अंतिः शांतिसर स्वामि गायों. १०६४२.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना. प्र. वि. मूल- १० अध्ययनर चूलिका टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. टबार्थ ५४A तक लिखा है., (२५x१०.५, ६४३७-४२). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, (संपूर्ण), आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः निच्चला होसु. दशवेकालिकसूत्र - टवार्थ' मागु, गद्य, (पूर्ण), आदि ध० श्रीजिनधर्म: अंतिः For Private And Personal Use Only १०६४३. आचाराङ्गसूत्र श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४० जैदेना. (२५.५४११, ११४२९-३३). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि सुर्य मे आउसं० इह अंतिः " १०६४४. आरम्भसिद्धि सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना. ले. गोविन्द राउल प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल - ५ विमर्श., त्रिपाठ, (२६×१०.५x). Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६० www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची आरम्भसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३वी, आदिः ॐ नमः सकलारम्भसिद्ध; अंतिः प्रथयन्ति लक्ष्मीम्. आरम्भसिद्धि-सुधीशृङ्गारवार्तिक, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१४, आदिः श्रीधर्मन्यायसम्यग्; अंतिः अभ्युदयं Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रथयन्ति १०६४५. उपदेशमाला सह टीका, संपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. ११२, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदरे, प्र. वि. मूल-गा. ५४५., (२६४११, १८४६०-६५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य वि. १७८१ आदि श्रेयस्करं कामित अंतिः वाणी श्रुतदेवी. १०६४६.” प्रश्नव्याकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय १० टीका ग्रं. ४८००., संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ १०.५, १५x५३-५५). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. १०६४७. दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७३- २ (१ से २ ) + १ (७) =७२, जैदेना., पू. वि. बीच के पत्र हैं. अध्याय-२ से ८ तक है. (२५.५४११, १३४४१-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि:-; अंति:दशवैकालिकसूत्र - बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु, गद्य, आदि:-: अंतिः १०६४८." अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिकासूत्र सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना, ले गोविन्द राउल, प्र. वि. प्र. पु. - टीका- ग्रं. ३०००., अशुद्ध पाठ, (२५x११, १५x५०-५२). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि अनन्तविज्ञानमतीतदोष अंतिः ; कृतपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका स्याद्वाद्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं. गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु अंतिः सास्त्यत्र सम्यग्यता. १०६४९.” आवश्यकसूत्र की नियुक्ति व स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८०, पे. २, जैदेना, ( २६.५४११, १३४५१५२). पे. १. नन्दी सूत्र - स्थविरावली. आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, (. १आ- ३अ), आदि जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः नाणस्स परूवणं वुच्छं., पे.वि. गा.५०. पे. २. पे. नाम. य, पृ. ३अ-८०आ P आवश्यक सूत्र- नियुक्ति आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि आभिणिबोहियनाणं अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. १०६५०." कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य ( कल्पान्तर्वाच्यानि), संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ९१, जैदेना., (२६×११, ११×३७-४२). कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., प्रा., प+ग, आदि: पुरिम चरिमाण कप्पो अंतिः श्रीसङ्घभट्टारक. १०६५२. योगचिन्तामणी बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना. पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मुलगा. ६ तक है.. (२६×११.५, ११×३६-३९). योगचिन्तामणि- बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: सर्वज्ञं प्रणम्यादौ; अंतिः " १०६५३. दीपावलीकल्प सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८२७ श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना. ले. स्थल, राजनगरे, ले. पं. वेलसागर गणि पठ.- गणि रत्नसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. ४३६., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६११.५, ५X३८-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टवार्थ, गणि सुखसागर, मागु गद्य वि. १७६३ आदि अहं नत्वाल्प अंतिः तिवार लगे प्रतपो. , For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १६१ १०६५४. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. सूरित, ले.- पं. ज्ञानचन्द्र, पठ. मु. उत्तमभाग्य, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-गा.६४., पू.वि. गा.६४(मू), (२६४११४). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार; अंतिः ते मोटा अर्थ पिण. १०६५५.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ७४, जैदेना., ले.स्थल. आहु, ले.- मु. सुखकीर्ति, प्र.वि. टीका ग्रं. ३५००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२६४१०.५, १५४५१-५८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः #. बृहत्सङ्ग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः अत्यद्भुतं; अंति: #. १०६५६. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.- मु. कल्याणचन्द्र, प्र.वि. अध्याय-१०, (२६४११.५, ५४५०-५४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. १०६५७. रत्नसञ्चय, संपूर्ण, वि. १७८०, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.- पं. महिमासागर, प्र.वि. गा.८०५, पू.वि. \ ग्रं.ग्रं. ९९३, (२६४११.५, १५४३८-४२). रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः नन्दउ जा दुप्पसहसूरी. १०६५८. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., प्र.वि. ७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१५४, (२६x१०.५, १५४५१-५३). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०६५९. उत्तराध्ययनसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अध्यय-३६ की गा.१३१ तक है., (२६.५४११, १२-१३४३४-३६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति:१०६६०.” यतिजीतकल्प सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८७२, मध्यम, पृ. १३३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०६; टीका-ग्रं. ६६७२., दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२४.५४१०.५, १५४४६-४७). यतिजीतकल्पसूत्र , आ. सोमप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः कयपवयणप्पणामो० भिन्न; अंतिः सोहन्तु गीअत्था. यतिजीतकल्पसूत्र-टीका, आ. साधुरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५६, आदिः जयति महोदयशाली भास्व; अंतिः#. १०६६२. राजसिंहरत्नावती रास, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. मणोदग्राम, ले.- पं. सुजाणविजय (गुरु मु. उत्तमविजय), प्र.वि. ढाल-२४, (२३४१०, १५-१६x४२-४५). राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः सारद शुभमतिदायिनी; अंतिः सकल सङ्घ मङ्गल करु. १०६६३. कर्मविपाक रास व वासुपूज्यप्रभू स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२४४१०.५, १४-१७४५३-५४). पे-१. जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., पद्य, वि. १७२८, (पृ. १अ-५अ), आदिः सकल पदारथ सर्वदा; अंतिः विनय पुरूष विलास., पे.वि. परिमाण - गाथा.८ ढाल-८. पे:२. वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. नेमसागर, मागु., पद्य, वि. १७७४, (पृ. ५अ-५अ), आदि: वासुपूज्य जिन नित; अंतिः भावधरी निसहास रे., पे.वि. गा.२४. १०६६४. बारव्रत चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पठ.- ऋ. वस्ता (गुरु गणि गजलाभ, अञ्चलगच्छ), प्र.वि. गा.८४, (२५.५४११, १३४३५-३६). १२ व्रत चौपाई, गणि गजलाभ, मागु., पद्य, वि. १५९७, आदिः पहिलूं प्रणिमसु जिनव; अंतिः ते संसार समुद्र तरई. १०६६५. मृगाङ्ककुमार रास व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., (२६४१०.५, ८-१०४३५-३८). पे.१. मृगाङ्ककुमार रास, मु. प्रीतिविमल, मागु., पद्य, वि. १६४९, (पृ. १अ-२१अ), आदिः सरसति सामिणि वीनवू; For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६२ www.kobatirth.org: (+) अंतिः कहइ रह्यो चउमासइ., पे.वि. गा. २६२. पे. २. अजैन सुभाषित सं. पद्य (प्र. २१अ-२१अ ), आदि: #; अंतिः #, " १०६६७. श्रावकदिनकृत्य सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४५ जैदेना, पठ. साध्वीजी सहजश्री प्र. वि. मूल-गा. ३४०., (२६×११, ४X३६-३७). श्राद्धविनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वीरं नमिऊण तिलोयभाणु: अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति " श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: वीरं कहीइ श्रीमहावीर; अंतिः पोक थाउ इहा पाप. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०६६८. विक्रमसेन रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले. स्थल. स्तंभतीर्थ, ले. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. धनसागर, अञ्चलगच्छ.) प्र.वि.] ढाल ६४, (२५०११-५, १६-१७९४१-४८). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः परम ज्योति प्रकास अंतिः परमसागर आणन्दा रे. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६६९. विचारसार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. स्थल. पालिताणा, ले. मु. विनीतशिखर, पठ. - मु. खुशाल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. २ अधिकार, गा. ३१०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५X११.५, ७४२६-२७). विचारसार प्रकरण, गणि देवचन्द्र प्रा. पद्य वि. १७९६ आदि नमिय जिणं गुणठाणे अंतिः देवचन्देण नाण · १०६७०. वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाशक स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले. श्रा. पदमलजी, प्र. वि. ढाल-५८, , (२५४११.५, ११९३३-३५). वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु, पद्य, आदि ऋषभ अजित संभव जिनो: अंतिः सङ्घ सुखविजय लहो.. १०६७१." आरम्भसिद्धि, संपूर्ण, वि. १६२४, जीर्ण, पृ. ४७, जैदेना., ले. उपा. धर्मसागर ( तपगच्छ ). प्र. वि. ५ विमर्श, संशोधित, - टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, ७४२५-२९) आरम्भसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि सं. पद्य वि. १३वी आदिः ॐ नमः सकलारम्भसिद्ध अंतिः प्रथयन्ति लक्ष्मीम्. १०६७२ . उपासगदसाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना. प्र. वि. अध्याय- १० ग्रं. ९१२ (२६४११, १३४३४-३८), उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी: अंति दिवसेस अगं तहेव १०६७३.” आवश्यकसूत्र की निर्युक्ति व गुरुवन्दन विधि, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६० - १ ( १ ) = ५९, पे. २, जैदेना.. प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११, १५×५७). पे.-१. आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. २अ - ६०आ, संपूर्ण), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणतिओ साहू, पे. वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे.-२. गुरुवन्दन विधि, प्रा., गद्य, (पृ. ६०आ-६०आ, संपूर्ण), आदि: इच्छकार भगवन पसाउ; अंतिः अणुग्गहो कायव्वो.. १०६७४. सीमन्धरजिन विज्ञप्ति, संपूर्ण वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. ले. स्थल, सुरतपुर, प्र. वि. दाल १७ गा. ३५४ प्र.पु मूल ग्रं. ५०९ (२६४११.५. ९४३३४०). " सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन- ३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमंधरसाहिब आगे; अंतिः शास्त्र मर्यादा भणी. " १०६७५. प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र. वि. गा. १५३२, ( २६.५x११, १७×५८-५९). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि तिन्नि निसीही तिन्नि: अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो १०६७६. कर्मग्रन्थ-१ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. ५, जैदेना., ले. स्थल. सूर्यपुरनगरे, ले. - रघुनाथ व्यास, (२५.५X११, ८x२९-३५). For Private And Personal Use Only पे १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १आ-६आ), आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः , , Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १६३ लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६१. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-१०अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं ___नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३५. पे..३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१३अ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं ; अंतिः नेयं ___ कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२४. पे-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-२१आ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २१आ-३१अ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. १०६७७. दशवैकालिकसूत्रलघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., (२६.५४११, १५४५२). दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितान्यतेजाः; अंति: गुणानुरागी भवतु लोकः. १०६७८. भाष्यत्रय सह बालावबोध व, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३१, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, १३४४४-४५). पे.-१. पे. नाम. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पृ. १अ-२१अ भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः तस्या प्रसाद मासाद्य; अंतिः वतां सौख्य० पामि सिइ., पे.वि. मूल-अध्याय ३ भाष्य; बालावबोध-३भाष्य. पे.२. जैन सामान्यकृति-पेटाक बाकी*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. २१अ-२१अ), आदिः#; अंतिः#. १०६७९." नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, ले.- ऋ. भावान, पठ. साध्वीजी अतीबाई, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-गा.९९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणन्तभागोय सिद्धि गओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, गणि मानविजय, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व चेतना सहित; अंति: हजी सिद्धि गयो छे. १०६८०.” उत्तराध्ययनसूत्र सह अवचूरि व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६०१, श्रेष्ठ, पृ. १३२, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., पंचपाठ, (२७.५४११.५, ५-९x४७-४९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भिक्षो विनयं; अंतिः इष्टान् इति ब्रवीमि. उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भिक्षु महात्मानइ; अंतिः#. १०६८१. योगशास्त्रान्तरश्लोक व श्लोक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. २, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, (२५४११, १३७५०-५२). पे.-१. योगशास्त्रान्तर्गत श्लोकसङ्ग्रह, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. १अ-२५अ), आदिः अथ सनत्कुमारस्य; अंतिः मतोन्ये ग्रन्थविस्तर. पे.२. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. २५अ-२५अ), आदिः#; अंतिः#. १०६८२. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना.,प्र.ले.श्लो. (१०७) यन्मात्राक्षरपादबिंदुगलितं किंचित्प्रमादान्मयो, (२५.५४११, १७४४८-५०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः त्रीणि सप्तशतानि च. For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६८३. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६.५४११, ९४३३-३५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. १०६८४. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्र.वि. मूल-गा.२७७., (२५.५४११, ९४३५-३७). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति: जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १४९७, आदिः अरिहन्तदेव नमस्करी; अंतिः श्रावणमासे रचिओ. १०६८५. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५६-५०(१,८४ से १३२)=१०६, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., त्रिपाठ, (२५.५४११, ११-१२४४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पप्रदीपिकाटीका, पण्डित सङ्घविजय, सं., गद्य, वि. १६७४, आदि:-; अंतिः श्रीकल्पप्रदीपिका. १०६८८.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६.५४११, १५४४५-४६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः पडहो तिहुयणे सयले. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरो नम०; अंतिः#. १०६८९. चतुःशरणादि प्रकीर्णक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७, पे. १३, जैदेना., (२७४११.५, १३४४१-४३). पे..१. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६२. पे.२. मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-२८अ), आदिः तिहुअणसरीरिवन्दं; अंतिः सञ्झाणं जेसु झायव्वं., पे.वि. ___ गा.६५८. पे.-३. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. २८अ-३४आ), आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभ; अंतिः सोक्खं लहइ मोक्खं., पे.वि. गा.१७२. पे:४. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, (पृ. ३४आ-३७आ), आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः सउखय सव दुरियाणं., पे.वि. गा.६९. पे:५. संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ३७आ-४२अ), आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सङ्कमणं मम दिसन्तु., पे.वि. गा.१२२. पे.६. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, (पृ. ४२अ-५४अ), आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. पे.-७. चन्द्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ५४अ-६०आ), आदिः जोउ चिन्तई मरुप्पा; अंतिः दुग्गइविणिवायगमणाणं., पे.वि. गा.१७५. पे.८. देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, (प्र. ६०आ-७१अ), आदिः अमर नरवन्दिए वन्दिऊण; अंतिः इह सम्मत्तो अपरिसेसो., पे.वि. गा.२८७. पे.९. गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७१अ-७४अ), आदि: वुच्छं बलाबलविहिं; अंतिः नायव्वो अप्पमत्तेहिं., पे.वि. गा.८१. पे.-१०. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७४अ-७९अ), आदिः एस करेमि पणाम; अंतिः अहवा वि सिज्झेज्जा., पे.वि. गा.१४०. पे.-११. वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७९अ-८०आ), आदि: नमिऊण जिणं जयजीवबन्ध; अंतिः सिवपयमणहं थिरं वीर., पे.वि. गा.४३. पे.-१२. अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ८०आ-८२अ), आदिः आहारे उवहिं सिय; अंतिः अहाणुपुव्विए., पे.वि. For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १६५ गा.२९. पे.-१३. गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ८२अ-८७अ), आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो., पे.वि. गा.१३६. १०६९०. चतुःशरणादि प्रकीर्णक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ८४, पे. १३, जैदेना., (२७४११.५, १४४४०-४३). पे.१. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६२. पे.२. मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-२७आ), आदिः तिहुअणसरीरिवन्दं; अंतिः सञ्झाणं जेसु झायव्वं., पे.वि. ___गा.६५६. पे.-३. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. २७आ-३४अ), आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभ; अंतिः सोक्खं लहइ मोक्खं., पे.वि. गा.१७२.. पे:४. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, (पृ. ३४अ-३६आ), आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः सउखय सव दुरियाणं., पे.वि. गा.६९. पे.५. संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ३६आ-४१अ), आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सहस ___कमणं मम दिसन्ति., पे.वि. गा.१२३. पे.६. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, (पृ. ४१अ-५२आ), आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. पे.-७. चन्द्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ५२आ-५९अ), आदिः जोउ चिन्तई मरुप्पा; अंतिः दुग्गइविणिवायगमणाणं., पे.वि. गा.१७३. पे.-८. देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, (पृ. ५९अ-६९अ), आदिः अमर नरवन्दिए वन्दिऊण; अंतिः इह ___सम्मत्तो अपरिसेसो., पे.वि. गा.२८७. पे.९. गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ६९अ-७१आ), आदिः वुच्छं बलाबलविहिं; अंतिः नायव्वो अप्पमत्तेहिं., पे.वि. गा.८३. पे-१०. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७१आ-७६आ), आदिः एस करेमि पणाम; अंतिः अहवा वि सिज्झेज्जा., पे.वि. गा.१४०. पे.-११. वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७६आ-७८अ), आदि: नमिऊण जिणं जयजीवबन्ध; अंतिः सिवपयमणहं थिरं वीर., पे.वि. गा.४३. पे.-१२. अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७८अ-७९आ), आदिः आहारे उवहिं सिय; अंतिः अहाणुपुब्बिए., पे.वि. गा.२९. पे:१३. गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ७९आ-८४आ), आदि: नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो., पे.वि. गा.१३७. १०६९१." शीलकुलक व श्लोक सह व्याख्या, संपूर्ण, वि. १७२५, जीर्ण, पृ. ९३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बुरहाणपुर, ले.- मु. वर्द्धमान (गुरु मु. वीरचन्द, पासचन्दसूरिगच्छे), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १६x४५-५२). पे.-१. पे. नाम. शील कुलक सह टीका, पृ. १अ-९३अ शील कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सोहग्ग महानिहिणो; अंतिः सालसीलस्स दुल्ललियं. शील कुलक-व्याख्या+कथा, सं., गद्य, आदिः अथ धर्मस्य द्वितीय; अंतिः ज्ञेयमितिगाथार्थः., पे.वि. मूल-गा.२०. पे.२.पे. नाम. पार्श्वजिन सह टीका, पृ. ९३आ-९३आ पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः दशावतारो वः पायात्; अंतिः नु वामाङ्गजो जिनः. पार्श्वजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदिः वामाङ्गजः जिनः वः; अंतिः वैचित्र्यं ज्ञेयमिति., पे.वि. मूल-श्लो.१. १०६९३. रोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.- मु. गोविन्दविजय (गुरु मु. अमरविजय), प्र.वि. ढाल-३१, For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १६६ www.kobatirth.org: (२४×१०.५, ११-१२३३-३५). रोहणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७७४, आदिः सुखकर श्रीसङ्खसरु; अंतिः पोहचे मनि आस रे.. १०६९४. उत्तराध्ययनसूत्र कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. ८४ जैदेना. ले. स्थल माडी, ले. गणि कुशलचन्द्र, (२५४११, १७४४८-५२). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: निर्मलानि स्युः. १०६९५.” पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४, जैदेना., प्र. वि. सर्ग-८, ग्रं. ५५००, संशोधित, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५x११, १७३९-४२). पार्श्वनाथ चरित्र, गणि उदयवीर, सं. वि. १६५४ आदि प्रोद्यत्सूर्यसमं अंतिः शुभभाव लक्ष्मी. ; " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०६९६.” आचाराङ्गसूत्र सह बालावबोध- श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना. प्र. वि. पंचपाठ, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्वाही फैल गयी है अल्प, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा, ( २६४११, ६ १०२७३१). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह अंति: आचाराङ्गसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंति: १०६९७. मानवती रास व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ४८, पे. २, जैदेना., ले. मु. प्रेमसागर (गुरु मु. मयासागर), प्र. ले. श्लो. (१४१) यादर्श पुस्तकं कृत्वा, (२५४११, १३४३१-३३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्यमुक्कस्स: अंति: " पे.-१. मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, (पृ. १अ-४८अ), आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे., पे.वि. ढाल - ४७. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ४८आ- ४८आ), आदि: #; अंतिः #. (+) १०६९८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका व टीका का बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०४-३ (७५ से ७७) = १०१, जैदेना. पु. वि. अध्याय १ से १८ तक लिखा है, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प- कुछ पत्र, (२५.५X११, १७४४८). उत्तराध्ययनसूत्र- लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदि: प्रणिपत्यादिदेवादी अंति: " ; उत्तराध्ययनसूत्र- लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु, गद्य, आदि भिक्षु महात्मान: अंति: १०६९९. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले. मु. सुमतिवर्द्धन, ( २४.५x१०.५, १४४४०-४४). आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः भव्य जीवने; अंतिः फली मन आस. १०७०१. राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.- मु. नयमेरु ( गुरु मु. महिमसुन्दर, खरतरगच्छ ), प्र. वि. सूत्र- १७५, २१०० (२५.५४११, १५९४६-५१). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः परसावणीए णमो . " १०७०३. गुरुतत्त्वविनिश्चय सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७३६, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना., प्र. वि. मूल-४उल्लास; टीका४उल्लास, त्रिपाठ, (२५x११, २-७४५८-६०). गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदिः पणमिय पास जिणिन्दं; अंतिः परगुणगहए पवट्टन्ता. गुरुतत्त्वविनिश्चय- स्वोपज्ञ टीका उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि ऐन्द्रश्रेणिनतं नत्व: अंतिः श्रियेस्तादयम्. १०७०४.” सिद्धहैमव्याकरण प्रक्रिया, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. २५००., पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, संशोधित (२४.५४१०.५ १३४३४-३५). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १७१०, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः प्रक्रिया जीयात्. For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १६७ १०७०५. बलिमहानरेन्द्राख्यानक, संपूर्ण, वि. १८७५, मध्यम, पृ. ६५, जैदेना., (२४.५४११.५, १३४३७). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः नरेन्द्रर्षिः केवली. १०७०६. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, १२४२८-३३). ___ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंति:१०७०७. समवायाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३७००, (२४४११, १५४४६-५१). समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः वृत्तितः समाप्तम्. १०७०८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका अध्ययन-१ से २, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५०-२(२० से २१)=४८, जैदेना., ले. ऋ. रत्नामर, (२५.५४११, १४-१५४४९-५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंति:१०७०९. सीलोपदेशमालादि प्रकरण सङ्ग्रह व आदिनाथविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३३, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल. अमरसर, (२६४११, १३४४४-४८). पे.१. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं., पे.वि. गा.११५. पे:२. सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-८अ), आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो., पे.वि. गा.७६. पे.-३. आदिजिन विनतीस्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थ मण्डन, आ. विजयतिलकसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-९अ), आदिः पहिलं पणमीय देव; अंतिः विजयतिलय निरञ्जणो.,पे.वि. गा.३४. पे.-४. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-११अ), आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि., पे.वि. गा.६४. पे.५. सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-१३आ), आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धि धुवं लहह., पे.वि. गा.७१. पे:६. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-३३आ), आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. १०७१०. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१०४., पंचपाठ, (२६४१०.५, १-४४३८). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-टीका, आ. महीतिलकसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीमतोतिशयाभिशालिन; अंतिः कुर्वन्त्वितिगाथार्थ. १०७११. समवायाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०३अध्ययन, ग्रं. १६६७. प्र.पु.-मूल ग्रं. सर्व-४३७७., त्रिपाठ,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११, ३-८४५१-५८). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पादौनाष्टशती तथा. १०७१२. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x११, ५४३२-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध० श्रीजिनधर्म; अंतिः कहुं छु गुरुवचने. १०७१३. महानिशीथसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-६अध्ययन+२चूलिका, ग्रं. ४५००, (२७४११.५, १३४४९-५१). For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची महानिशीथसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः ॐ नमो अरहन्ताणं; अंति: महानिसीहम्मि पाएण. १०७१४." सिद्धहेमशब्दानुशासन षट्पदावचूर्णि, प्रतिपूर्ण, वि. १५९४, मध्यम, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. वागभटमेरुनगरे, ले. गणि भावहर्ष, पठ.- मु. हेमसार,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १७X४२-४६). सिद्धहेमशब्दानुशासन-आख्यात अवचूरि, सं., गद्य, आदिः वृधूड् वृद्धौ वृध्न; अंतिः ए एदैतोयाय् आय. १०७१५. आचाराङ्गसूत्रअवचूर्णि श्रुतस्कन्ध-१, संपूर्ण, वि. १५८०, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., (२६४११, १३४४५). आचाराङ्गसूत्र-प्रथमश्रुतस्कन्ध-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः श्रीआचाराङ्गस्यानुयो; अंतिः यावज्जीवं समित आसीत. १०७१६. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०८, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र.वि. २० प्राभृत, ग्रं. १८५४, (२६x११, १३४४४-४७). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरि० जयति; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. १०७१७." सङ्घयणिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५२, जैदेना., ले.- मु. सौम्यसागर, प्र.वि. मूल-गा.३१८., (२५४११, ५४३०-३१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने; अंतिः तिरथ सुधा प्रवर्तओ. १०७१८.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- गणि लालचन्द्र, पठ.- मु. सिद्धिचन्द्र, प्र.वि. ६ कांड, (२५४११, १५४५९-६०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १०७१९. नयचक्रविवरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, (२५४११, ४-५४४२-४३). नयचक्रसार, गणि देवचन्द्र, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणम्य परमब्रह्म; अंतिः परममङ्गलता लभन्तिति. नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणम्य परमब्रह्म; अंतिः कृति भणता परमानन्द. १०७२१.” आचाराङ्गसूत्र श्रुतस्कन्ध-१, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., (२५.५४१०.५, ११४३८). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति:१०७२२. नर्मदासुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६३, (२६४११.५, १५४४४-४७). नर्मदासुन्दरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रभुचरणाम्बुजरजतणी; अंति: मोहन वचन विलास जी. १०७२३. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, (२६४११.५, १७४४४-४६). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. १०७२४. श्रीपाल रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७-२(१ से २)=७५, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-४, पू.वि. बीच के पत्र है.\ गाथा १ से २८ तक नहीं है.व खण्ड-४ ढाल-१० की गा.१२ तक है., (२६४११, १०-११४३०-३१). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः१०७२५. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, संपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. १६०, जैदेना., ले.स्थल. मसूदानगर, ले.- मु. चयनकुशल (गुरु गणि प्रतापकुशल), प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५४१०.५, ५-६४३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिन नत्वा; अंतिः उपदिसै इम कहै. कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , सं., गद्य, आदिः पुरिमचरिमाणकप्पो; अंतिः शास्त्रेभ्यो ज्ञेया. For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १६९ १०७२६. षष्टीशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले. स्थल. सारंगपुर, लिखवा. श्री. मागजी, प्र. वि. मूल-गा. १६१. सर्वग्रं. १६५० (२४४११, २x२१-२५). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदि अरिहं देवो सुगुरू: अंतिः जाणन्तु जन्तु सि. षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऐंद्रवृन्दाभिवन्द्या; अंतिः फल प्रार्थना जांणवी. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७२७.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १५७३, श्रेष्ठ, पृ. १४० + १ (९२) = १४१, जैदेना., ले.- पं. जिनवर्द्धन गणि (गुरु आ. भावसागरसूरि अञ्चलगच्छ.), प्र. वि. १९ अध्ययन प्र. पु. - मूल-ग्रं. ५४६४, ( २६११, १३४४७-५०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं काले० चम्पाए: अंतिः पण्णत्ते तिबेमि १०७२८. शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. १६८६, मध्यम, पृ. १२१, जैदेना. प्र. वि. ६ प्रस्ताव प्र. पु-मूल-ग्रं. ७००० (२६११, १०९५३-५८). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः स करोतु शान्तिः १०७२९.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११६, जैदेना., प्र. वि. १९अध्ययन, ग्रं. ५५००, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, १५-१६९४८-५०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्त. १०७३०. चारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण, वि. १८३३, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदर, प्र. वि. खण्ड - ४, ( २६×११, १६१७४५०-५२). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि: सिद्धारथ शशिकुलतिलो; अंतिः आणंद लीलविलास. १०७३१.” नन्दिसूत्र-स्थविरावली व आवश्यकसूत्र नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १५३८, श्रेष्ठ, पृ. ५९, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. पत्तन, ले. पं. पथा, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित (२६५११, १५४५७-५९). पे. १. नन्दी सूत्र स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १आ - २ आ), आदि जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः नाणस्स परूवणं वुच्छं., पे.वि. गा. ५१. पे.-२. आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-५९आ), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. १०७३२. उपदेशमाला सह पर्याय, संपूर्ण वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ५४४. त्रिपाठ, (२५.५४१०.५, ३ " ४४४३-४८). १०७३३. विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ( २६.५x१०.५, १३४५१-५३). वीरं गुरुश्च वन्दि: अंतिः अल्पबहुत्व विचारिउ विचार सङ्ग्रह - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: " उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-पर्याय, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, आदिः नमिऊण प्रणम्य इंदनरि; अंतिः सूरि० पर्यायानिखिता. १०७३४. कल्पसूत्र टीका, पूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ४८-१ (१) ४७, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. २१६८ (२६.५५११, १५४४४-५३). " कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि:-; अंतिः समाप्तं समर्थितमिति १०७३५." उत्तराध्ययनसूत्र कथा सङ्ग्रह, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११, १६x४४-४७) For Private And Personal Use Only उत्तराध्ययनसूत्र- कथा सङ्ग्रह, मु. मुनिसुन्दरसूरि - शिष्य, सं., गद्य, आदि: अर्हतः सर्वसिद्धाश्च; अंति: १०७३६.” बनारसीविलास सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६३, पे. ६२, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १५०४१-४२). पे.-१. सिन्दूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९१, (पृ. ५आ - १३आ), आदिः Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सोभिततपगजराज; अंतिः करनछत्र सित पाख., पे.वि. गा.१०४. पे..२. सवैया बावनी, श्रा. बनारसीदास, मागु., पद्य, वि. १६८६, (पृ. १३आ-१९अ), आदि: ॐकार सबद विहदया; अंतिः गुणग्रहि लीजीयौ., पे.वि. गा.५२. पे..३. वेदनिर्णयपञ्चासिका, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. १९अ-२१आ), आदिः जगत विलोचन जगतहित; अंति: नर विवेक भुजबल रहित., पे.वि. गा.५१. पे.४. त्रिषष्टिशलाकापुरुष उत्पत्तिक्रम, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२२आ), आदिः नमो जिनवर नमो जिनवर; अंतिः रघुनाथ पहु मनवराम., पे.वि. गा.१४. पे.५. मार्गणा विधान, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. २२आ-२३आ), आदिः वन्दौ देव जुगादि; अंतिः वनारसी ___कीजै मोख उपाउ., पे.वि. गा.२६. पे.६. कर्मप्रकृति विधान, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७००, (पृ. २३आ-२९आ), आदिः परमसङ्कर __ परमभगवान; अंतिः तव यह भयो सिद्धंत., पे.वि. गा.१७३. पे.-७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-पद्यानुवादचोपाई, कवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. २९आ-३१आ), आदिः परमज्योति परमातमा; अंतिः कारन समकित शुद्धि., पे.वि. गा.४४चोपाई. पे.-८. साधुवन्दना, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३१आ-३२आ), आदिः जिन भाषित भारती सुमर; अंतिः पावइ अविचल मोक्ष., पे.वि. गा.३२. पे..९. मोक्षमार्ग पयडी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३२आ-३३आ), आदिः इक्क समैं रुचि वन्त; अंति: यों ___ मूढ न समझै लेस., पे.वि. गा.२४. पे.-१०. कर्मछत्रीसी, मागु., पद्य, (प्र. ३३आ-३४आ), आदि: परम निरञ्जन परमगुरु; अंतिः मूढ वढावे श्रिष्टि., पे.वि. गा.३७. पे.-११. ध्यानबत्रीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३४आ-३६अ), आदिः ग्यान सरूप अनन्त; अंतिः यथा सकति परवान., पे.वि. गा.३६. पे.-१२. अध्यात्मबत्रीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३६अ-३७अ), आदिः सुध वचन सदगुरु कहें; अंतिः एह तत लहि पावे भवपार., पे.वि. गा.३३. पे.-१३. ज्ञानपच्चीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३७अ-३८अ), आदिः सुरनर तिर्यग जग; अंतिः आपको उदे करण के हेतु., पे.वि. गा.२५. पे.-१४. शिवपच्चीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३८अ-३९अ), आदिः ब्रह्म विलास विकास; अंतिः सोई शिवको रुप., पे.वि. गा.२७. पे.-१५. भवसिन्धु चतुईसी, मागु., पद्य, (पृ. ३९अ-३९अ), आदिः जैसे काहू पुरुष को; अंति: मुनि चतुर्दसी होई., पे.वि. गा.१४. पे.-१६. अध्यात्म फाग, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३९अ-४०अ), आदिः अध्यातम बिनु क्यों; अंतिः छोडि __ मोहजड पास., पे.वि. गा.१८. पे.-१७. १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मागु., पद्य, (पृ. ४०अ-४०आ), आदिः परिवा प्रथम कला घटि; अंतिः साघु तुलसी वनवासी., पे.वि. गा.१६. पे.-१८. १३ काठिया दोहरा, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४०आ-४१अ), आदिः जे वट पारे वाट मै; अंतिः कहियै तेरहतीनि., पे.वि. गा.१७. पे.-१९. औपदेशिक गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४१अ-४२अ), आदिः मेरा मन का प्यारा; अंतिः चेतन सुमति सदा इकठाव., पे.वि. गा.३१. पे.२०. पञ्चपदविधान वर्णन, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४२अ-४२आ), आदिः नमो ध्यान धर पञ्च; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १७१ पद उलटि सदा शिव होइ., पे.वि. गा.१२. पे.-२१. सुमतिदेवी के अठोत्तरसतनाम दोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४२आ-४३अ), आदिः नमो सिद्धसाधक पुरुष; अंतिः यह सुबुद्धिदेवी वरनी., पे.वि. गा.६. पे.२२. शारदाष्टक, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४३अ-४३अ), आदिः नमो केवल २ रुप भगवान; अंतिः सुख तजे संसार कलेस., पे.वि. गा.१०. पे.-२३. नवदुर्गा विधान, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४३आ-४४अ), आदिः प्रथम हि समकित; अंतिः अनेक भांति वरनी., पे.वि. गा.९. पे.-२४. नामनिर्णय विधान, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४४अ-४५अ), आदिः काहु दिनका हू समै; अंतिः दाहे ते निरास निरलेप., पे.वि. गा.११. पे.-२५. नवरत्न कवित, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४५अ-४५आ), आदिः धन्वन्तरि छपनकै; अंति: ए जगडे मूरख वदित्., पे.वि. गा.११. पे.-२६. जिनपूजा अष्टक, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४५आ-४६अ), आदिः जलधारा चन्दन पुहए; अंतिः दीजे अरथ अभङ्ग., पे.वि. गा.११. पे.२७.१० दान दोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४६अ-४६आ), आदि: गो सुवर्ण दासी; अंतिः हित अहित आन की आन., पे.वि. गा.१४. पे.-२८. १० बोल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४६आ-४७अ), आदिः जिन की भान्ति कहो; अंतिः जहं कहिए जिनमत सोइ., पे.वि. गा.१२. पे.२९. कहरानामचाली, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४७अ-४७आ), आदिः कुमति सुमति दोउ व्रज; अंतिः भई यहै सौति घर छांहि., पे.वि. गा.११. पे.-३०. प्रश्नोत्तरदसदोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४७आ-४७आ), आदिः कोन वस्तु वपु मांहि; अंतिः कञ्जन पाहन मांहि., पे.वि. गा.१०. पे.-३१. प्रश्नोत्तरमाला , बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४७आ-४८आ), आदि: नमित सीस गोविन्द; अंतिः तहां गुन परगट होई., पे.वि. गा.२१. पे.-३२. अवस्थाष्टक, मागु., पद्य, (पृ. ४८आ-४८आ), आदिः चेतन लच्छन नियत; अंतिः निराकार निरद्वन्द., पे.वि. गा.८. पे.-३३. षड्दर्शनाष्टक, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४८आ-४९अ), आदिः शिवमत बोध; अंतिः सौ दशा छानवै और., पे.वि. गा.८. पे.-३४. औपदेशिक पद-४ वर्ण, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४९अ-४९अ), आदिः जो निहचे मारग; अंतिः मिश्रित परिनाम., पे.वि. ___ गा.५. पे.-३५. अजितजिन छन्द, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६७०, (पृ. ४९अ-४९आ), आदि: गोयम गनहर पर नमीं; ___ अंतिः सेवक शिरीमाल वनवासी., पे.वि. गा.४. पे.-३६. शान्तिजिन छन्द, प्राहिं., पद्य, (पृ. ४९आ-४९आ), आदिः सहिएरी दिन आज सुहाया; अंतिः धन्य सयानी सहीए., पे.वि. गा.२. पे.-३७. शान्तिजिन त्रिभङ्गी छन्द, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५०अ-५०आ), आदिः विश्वसेन कुल कमल; अंतिः शान्तिदेव जय जितकरन., पे.वि. गा.५. पे.-३८. नवसेना विधान, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५०आ-५१अ), आदिः प्रथम हि पत्निनाम; अंतिः अच्छौहिनि परवानकिय., पे.वि. गा.१२. पे.-३९. समयसारसिद्धान्तनाटिक के कवित, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५१अ-५१आ), आदिः प्रथम अग्यानी जीव; अंतिः रनति अष्टकर्मविनास ए.,पे.वि. गा.४. For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे:४०. मिथ्यात्ववानी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५१आ-५१आ), आदिः नारायन देव कौं कहैं; अंति: वयनम्मि खवेई कप्पूर., पे.वि. गा.४. पे.-४१. प्रास्ताविक कवित्त, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५१आ-५३आ), आदिः पूरव कि पछिम हो; अंतिः सहज दुष्टता सोई., पे.वि. गा.२३. पे.-४२. गोरख वचनिका, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५३आ-५३आ), आदिः जो भग देखि भामिनी; अंतिः विवाद करे सो अन्धा., पे.वि. गा.७. पे.-४३. परमार्थ वचनिका, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५३आ-५४आ), आदिः करम रोग की परकिति; अंतिः सोहाइ सह निकौचैन्न., पे.वि. गा.२६. पे:४४. चौभङ्गी रूपकार वचनिका सङ्ग्रह, मागु., गद्य, (पृ. ५४आ-५७आ), आदिः एक जीव द्रव्यता के; अंतिः कल्यानकारी हैं. पे:४५. निमित्तकारनउपादानकारणनिर्णय सङ्ग्रह, प्राहिं., गद्य, (पृ. ५७आ-६०अ), आदिः प्रथम ही कोई पूछता; अंतिः अशुद्ध रुपविचार. पे.-४६. निमित्तउपादान दोहरा, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६०अ-६०अ), आदि: गुरु उपदेस निमित्त; अंतिः ___मे करेजूं तेसौ भेस., पे.वि. गा.७. पे:४७. औपदेशिक पद, बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६०अ-६०आ), आदिः या चेतन की सब सुद्धि; अंतिः तब सुख होत बनारसीदास., पे.वि. गा.४. पे:४८. साधारणजिन स्तवन, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६०आ-६०आ), आदिः मगन होइ आराधो साधो; अंतिः तजै समकिती सेव., पे.वि. गा.८. पे.-४९. औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६०आ-६०आ), आदिः चेतन तूं तिहुं काल; अंतिः होह सुहज सुरझेला., पे.वि. गा.४. पे.-५०. जिनप्रतिमा स्तवन, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६०आ-६१अ), आदिः जिनप्रतिमा जिन सारखी; अंतिः निरदय संसारी., पे.वि. गा.१०. पे:५१. मूढ शिक्षा अष्टपदी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६१अ-६१अ), आदिः ऐसे क्युं प्रभु; अंतिः विना तूं समजत नाही., पे.वि. गा.८. पे-५२. पण्डितशिक्षा पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६१अ-६१आ), आदिः ऐ सौयो प्रभु पाईयै; अंतिः तब को किहां भेटे., पे.वि. गा.८. पे.५३. आध्यात्मिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६१आ-६१आ), आदिः तुं आतम गुण जाण; अंतिः तीर्थङ्कर गोत., पे.वि. गा.८. पे.५४. साधारणजिन पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६१आ-६१आ), आदिः सुखदायक सुख एव जगत; अंतिः करत वनारसि सेव.,पे.वि. गा.५. पे.-५५. रामायन अष्टपदी, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६१आ-६२अ), आदिः विराजै रामायन घटमां; अंतिः निहचै केवल राम., पे.वि. गा.७. पे.५६. सद्गुरुआलाप दोहरा, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२अ), आदिः ज्यौं दातर दयाल होइ; अंतिः मिनलै उंचा त्रिक मेह., पे.वि. गा.६. पे.-५७. औपदेशिक अष्टपदी-भोन्दुभाई, प्राहिं., पद्य, (पृ. ६२अ-६२आ), आदि: भोन्दू भाई समुझु; अंतिः कै गुरुसंगति खोलइ., पे.वि. गा.८. पे.५८. औपदेशिक अष्टपदी-भोन्दुभाई, प्राहिं., पद्य, (प्र. ६२आ-६२आ), आदिः भौन्द्र भाई तोहि हिर; अंतिः निरविकल ए पद पावे., पे.वि. गा.८. For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे. ५९ औपदेशिक पद जैनकवि बनारसीदास प्राहिं, पद्य (प्र. ६२आ-६२आ), आदि तूं भ्रम भूलि नरे अंतिः करि होड बिरानी, पे.वि. गा.२. पे. ६०. पार्श्वजिन गीत, जैनकवि बनारसीदास प्राहिं, पद्य (प्र. ६३-अ-६३अ), आदि चिन्तामणि सामी सच्चा अंति बनारसी बन्दा तेरा, पे.वि. गा.४. पे ६१. परमार्थ हिण्डोलना, मु. केसवदास, मागु पद्य (प्र. ६३ - ६३आ), आदि हरख हिण्डोलना झुलत: अंतिः नमत केशवदास., पे.वि. गा. ८. www.kobatirth.org: पे ६२. औपदेशिक पद जैनकवि बनारसीदास प्राहिं, पद्य, (पृ. ६३आ-६३आ), आदि देखो भाई महाविकल; अंति " वनारसि होइ० धन लूटे., पे.वि. गा.८. " १०७३७. उपदेशरहस्य सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना. ले. पं. श्रीराम, प्र. वि. मुलगा. २०३, त्रिपाठ, (२५.५४११, २-४४३८-४१). उपदेशरहस्य, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं वुच्छ; अंतिः तत्तो हवउ सिद्धी. उपदेशरहस्य-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि: ऐंकारकलितरूपां; अंतिः स्वयं निर्मितः. १०७३८. राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र. वि. सूत्र - १७५, ग्रं. २०७९, (२६×११, ११४३९-४३). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्सावणीए णमो . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७३९.” वासुपूज्य चरित्र, संपूर्ण, वि. १५०९, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना., ले. पं. कीर्तिविलास गणि, प्र. वि. ग्रं. ५४९४, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है (२६४११ १९ २०४५९-६५). " वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदि: अर्हन्तं नौमि ; अंतिः वेदबाणानीताङ्कग्रन्थ. १०७४०. आवश्यकसूत्र की निर्युक्ति व स्थविरावली, संपूर्ण, वि. १५४४, श्रेष्ठ, पृ. ७९, पे. २, जैदेना. (२६११, १५x४३-५२). पे. १. पे नाम. नन्दीसूत्र- स्थविरावली पृ. १आ-३अ " नन्दी सूत्र - स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि: जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः नाणस्स परूवणं वुच्छं, पे. वि. गा.५०. (+) पे. २. आवश्यक सूत्र - निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-७९आ), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. १०७४१. भगवती सूत्र आलापक सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना. ले. पं. जयहर्ष गणि पठ. पं. राजसागर गणि, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, १६४३१-४७). भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह *, संबद्ध, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. भगवतीसूत्र आलापक की अवचूर्णि, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति: · १०७४२." श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध व छआवश्यकविधि, गोचरी के ४२ दोष आदिसङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. ७८, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. राजद्रिंगपुर, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x११, ३- १३X२५४६). " पे. १. पे. नाग. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, पृ. १आ-७८अ साधु श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. सं., मागु प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं: अंतिः समत्तं गए गहिअं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय-टबार्थ, मु. भीमविमल- शिष्य मागु, गद्य, आदि: भीमविमलगुरुणां चरण: अंतिः निश्चल मनई करी. पे. २. पे. नाम षडावश्यक विधि, पृ. ७८आ-७८ आ प्रतिक्रमणविषयक संबद्ध प्रा. सं., प+ग, आदि # अंतिः #. " , For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १७४ www.kobatirth.org: पे. ३. गोचरी के ४२ दोष मागु. गुज (पृ. ७८ आ-७८आ), आदि में अंतिः #. १०७४३. समँसार नाटक, संपूर्ण वि. १७४७, श्रेष्ठ, पृ. ५४ जैदेना, प्र. वि. गा. ७२७, पृ. वि. गा७२७. (२४.५४१०.५, १३४४४ ४६). समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १६९३, आदिः करम भरम जग तिमिर; अंतिः नाममइ परमारथ विरतन्त. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - १०७४४. प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण वि. १७१८, श्रेष्ठ, पृ. ४९ जैदेना., ले. स्थल राजनगर, ले. मु. ज्ञानविजय (गुरु गणि सूरिविजय), ( २४.५४११, १७०४७-५०). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः बहुस्सुया तं विसोह. १०७४५. विज्जाहलु सह टीका, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., ले. मु. जितसागर, प्र. वि. मूल-ग्रं. १२३०. टीका सज्जनवज्जा की मात्र २१वी गाथा तक है. आवरण पत्र पर ग्रन्थसूची दी गयी है. पंचपाठ प्रारंभिक पत्र, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५x११.५, १२-१३ ३२). वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सव्वन्नुवयणं पङ्कय; अंतिः लहइ सो पुरिसो. वज्जालग्ग वृत्ति, गणि रत्नदेव, सं. गद्य वि. १३९३, (अपूर्ण), आदि: तत्र शास्त्रस्यादि अंति १०७४६. चतुर्विंशति प्रबन्ध व सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १४८०, श्रेष्ठ, पृ. ८६, पे. २, जैदेना ले. आ. क्षेमप्रभसूर, ; - " ( २६११.५, १५४४८). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि सं., गद्य वि. १४०५ (पृ. १अ-८५अ), आदि राज्याभिषेककनकासनस्थ; अंतिः तयोर्व्याप्तिः पे.वि. २४ प्रबन्ध पे. २. पे. नाम धर्ममहिमागर्मित जैन श्लोकसङ्ग्रह, पृ. ८६आ-८६आ सुभाषित सङ्ग्रह, से, मागु., प्रा., पद्य, आदि: #, अंतिम, पे. वि. प्र. पु. श्लो. १४. #; " १०७४७. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले. स्थल. पत्तन, ले.- मु. कान्तिविजय (गुरु गणि मानविजय ) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मुल- २१उद्देश. (२६११.५ ५३३-३५). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे ; अंतिः से आराहगा भणिया जम्बू अध्ययन प्रकीर्णक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ते कालने विषई ते अंतिः मार्गना आराधक कड्या. (+) १०७४८. चन्द्रकेवली रास अन्तर्गत श्लोक सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७२७, जीर्ण, पृ. ५८, जैदेना. ले. स्थल खंभाईतबिंदिर, ले. - मु. सुखसागर, प्र. वि. श्लो. ३६३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५X११.५, ४४४६). श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र गाथाकाव्य श्लोक, संबद्ध, सं., प्रा., पद्य, आदि: जं चन्दणेण तइआतइअं अंतिः श्रीवीरभद्रं दिसः. श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र- गाथाकाव्य श्लोक का टबार्थ + व्याख्यान, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य पार्श्वदेव; अंतिः परम मङ्गलिक दिओ. १०७५०. आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. २०वी, जीर्ण, पृ. ३१, जैदेना., (२५.५X११, १४-१५X३०-४०). आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदि: हिवै भव्यजीवने; अंतिः फली मन आस. १०७५१." उत्तराध्ययनसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १०५ जैदेना. प्र. वि. मूल- ३६अध्ययन टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ७०४३५-४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स: अंतिः पुव्वरिसी एव भासन्ति उत्तराध्ययन सूत्र - टवार्थ' मागु, गद्य, आदि: पूर्वल्या संयोग: अंतिः पूर्व ऋषीश्वर ईम कहई. For Private And Personal Use Only १०७५२. सूयगडाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- २३ (२६४११, १३४४५-४७). . सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि १०७५४.” उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६८७, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले. मु. भीमविजय मुनि (गुरु गणि देवराज), Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १७५ प्र.वि. मूल-गा.५४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६.५४११, ५४४५-४८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः धीरं वीरं महावीरं; अंतिः देवता तेसां सहउं.. १०७५६." आचाराङ्गसूत्र-श्रुतस्कन्ध १ सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १६८३, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- ऋ. केशव, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। प्र.पु.-ग्रं. उभय-१०५००., पदच्छेद सूचक लकीरें, त्रिपाठ, (२५.५४११.५४). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. आचाराङ्गसूत्र-प्रदीपिकाटीका, आ. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदि:-; अंतिः ब्रवीमीति पूर्ववत्. १०७५७. ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., प्र.वि. १०स्थान, ग्रं. ३७५०, पू.वि. ग्रं.ग्रं.३७५०.\ १० अध्ययन., (२६.५४११, ११४४१-४४). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. १०७५८. अनुयोगद्वारसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, ले.- श्रा. दोसी, प्र.वि. ग्रं. ५७००, (२६.५४११, १५४५२-५५). अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदिः सम्यक्सुरेन्द्रकृत; अंतिः रचिता प्रकृतिवृत्तिः. १०७५९. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४६+१(७२)=१४७, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन, ग्रं. ५४६४, (२६४१०.५, १३४४५). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. १०७६०. प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३५, श्रेष्ठ, पृ. १२४, जैदेना.,प्र.वि. ४ उल्लास; प्र.पु.-मूल-सर्वप्रश्न-१०१४, ग्रं. ४२३४, (२५४११, १४-१६४३७-४०). प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य परं ज्योति; अंतिः प्रघोषः श्रुतोस्तीति. १०७६१." वज्जालग्ग सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७२, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.- मु. जयकीर्ति (गुरु गणि सहजरत्न, खरतरगच्छ), प्र.वि. उदयसागरजी द्वारा प्रत संशोधित., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४११, १५४४३). वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः सव्वण्ण वयण पङ्कय; अंतिः लहइ सो पुरिसो. वज्जालग्ग-वृत्ति, गणि रत्नदेव, सं., गद्य, वि. १३९३, आदिः तत्र शास्त्रस्यादि; अंतिः सहस्रत्रितय ननु. १०७६२. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२४.५४१०.५, ६४३०-३२). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु उद्दिसन्ति. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तिणै कालइ; अंतिः दशमु अध्ययन सम्पूर्ण. १०७६३.” कुमारपाल कथा, संपूर्ण, वि. १५२१, जीर्ण, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३५००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१६-१७, १६-१७४५६-५७). कुमारपाल प्रबन्ध, उपा. जिनमण्डन, सं., प+ग, वि. १४९२, आदिः ॐ नमः श्रीमहावीर; अंतिः सुखानि अनुभविष्यति. १०७६४. आचाराङ्गसूत्र-श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. २८००., (२६x१०.५, १२ १५४४७-५०). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति:१०७६५. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. निपुणसौभाग्य, प्र.वि. ढाल-८, (२०.५४१०.५, १३ १४४२९-३०). स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः पूर्वदिशा तथा उत्तर; अंतिः आपणां साधदेवाधी देवो. For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७६६. पञ्चप्रतिक्रमणादिविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ४१, पे. ५, जैदेना., (२२.५४११, ११-१५४२८-३६). पे.१. पे. नाम. साधुश्रावकपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १आ-३७अ साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः मिच्छामि दुक्कडं. पे.२. राइअदेवसी प्रतिक्रमण', संबद्ध, प्रा.,गुज., गद्य, (पृ. ३७अ-४१अ), आदिः#; अंतिः#. पे.३. देववन्दन क्रिया, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. ४१अ-४१अ), आदिः इछामि ख० इरियावहीय; अंतिः १ गणिने सिज्झाय कहीइ. पे.-४. जयतीनी विधि, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. ४१अ-४१अ), आदि: इच्छामि० चैत्यवन्दन; अंतिः पाछले पोहरदाडे. पे.५. नवपद विधि, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. ४१अ-४१आ), आदिः प्रभाते उठीने राई; अंतिः वस्तु नव नव मांडीइ. १०७६७. कर्मग्रन्थ सङ्ग्रह सह टीका बन्धहेतू प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, (२३.५४१०, १-४४४१-४३). पे.-१. पे. नाम. बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र सह टीका, पृ. १अ-२९अ बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र, मु. सागरसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदिः बन्धण हेउ विमुक्कं ; अंतिः सिरिसायरसूरि सीसेणं. बन्धहेतुउदयत्रीभङ्गीसूत्र-टीका, गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६०२, आदिः जयति जगत्त्रयनाथः; अंतिः बुद्ध्या संशोध्येति., पे.वि. मूल-गा.६५. पे.२.पे. नाम. जघन्योत्कृष्टपद एककालं गुणस्थानकेषु बन्तधहेतु प्रकरणयन्त्रस्थापना सह टीका, पृ. २९आ-३०अ जघन्योत्कृष्टपद एककालं गुणस्थानकेषु बन्धहेतुप्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जम्मि गुणे जावइया; अंतिः जोगोण भयं दुगञ्छा वा. जघन्योत्कृष्टपद एककालं गुणस्थानकेषु बन्धहेतुप्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदिः यस्मिन् गुणस्थाने; अंतिः बन्धहेतव उक्ता इति., पे.वि. मूल-गा.३. पे.-३. पे. नाम. १४ जीवस्थानेषु जघन्योतकष्टपदे बन्धहेतु प्रकरण सह टीका, पृ. ३१आ-३१आ बन्धहेतु प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः सोलसट्ठारस हेऊ; अंतिः सन्निविगलेसु दो जोगा. बन्धहेतु प्रकरण-टीका, सं., गद्य, आदिः अथ चतुर्दशजीवस्थाने; अंतिः बन्धहेतवो लिखिताः., पे.वि. मूल-गा.२. १०७६८. कर्मग्रन्थ ५ यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(१२)+१(१४)=४४, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२५४१२४). शतक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, पं. सुमतिवर्धन, मागु., कोष्टक, वि. १८७५, आदिः श्रीजिन प्रते; अंतिः कृष्णगढे सुभ वास. १०७६९. सूयगडाङ्गसूत्र-श्रुतस्कन्ध १, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., (२४.५४११, ९४२८-३१). __ सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः१०७७१.” सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. ६७+१(५)=६८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १७४५३-५५). सुभाषित सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः ॐकारबिन्दु संयुक्तं; अंति: पात्रं प्रवक्षान. १०७७२. अष्टप्रकारी पूजा कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, प्र.वि. ८ कथा, ग्रं. १२००, (२५.५४११, १३४४३-४४). ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह , प्रा., पद्य, आदिः पणमह तं नाभिसुयं; अंतिः सिरि विजयचंदस्स. १०७७३. सूयगडाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ३७, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-२३, (२६४११, १७४५४-५५). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ৭৫৫ १०७७४. कर्पूरप्रकरण टीका व श्लोक सङ्ग्ह, संपूर्ण, वि. १७२९, श्रेष्ठ, पृ. ४९, पे. २, जैदेना., ले.- मु. लक्ष्मीसागर (गुरु गणि सौम्यसागर, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (६४०) जलाद्रक्षे तैलाद्रक्षे; (५५६) भग्नपृष्टि कटी ग्रीवा, (२५४११, १५४५६-६०). पे.-१. कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १५५१, (पृ. १अ-४९आ), आदिः लक्षजिनेशपेशलरदज्योत; ___ अंतिः सुभाषितावली कृता. पे..२. श्लोक सङ्ग्रह , सं., पद्य, (पृ. ४९आ-४९आ), आदिः#; अंतिः#. १०७७५. सङ्ग्रहणीसूत्र व पद, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ३९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूरितबिंदरे, (२६४११.५, ७४३०-३३). पे.-१. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ-३९अ), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा ___ वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३८०. पे:२. साधारणजिन पद, ऋ. जिणदास, मागु., पद्य, (पृ. ३९अ-३९आ), आदिः अरिहन्ताई नवहपय; अंतिः तसु तिहुअण जिणदास., पे.वि. गा.५. १०७७६.” दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १६९८, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.४४५, संशोधित, (२५.५४११, ९४३३-३४). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. १०७७७." कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य(कल्पान्तर्वाच्य), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५४११, १५४६६-६७). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, आदिः पुत्राः पञ्चमतिश्रुत; अंति: पताकां गृह्णाति. १०७७८.” सप्तनयविचार स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ढाल-१५, गा.१८९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ४-६४३९-४०). सप्तनय रास, मु. मानविजय, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रीगुरुचरणकमल; अंतिः अनन्त कल्याणकार. सप्तनय रास-बालावबोध, मागु., गद्य, (त्रुटक), आदि:-; अंति:१०७७९." उपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ६४३८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमीऊण कहीइ नमीनइ; अंतिः थकी नीकली वाणी. १०७८०. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-९२., पू.वि. टीका मात्र प्रारंभिक दो पत्र तक ही है., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (६३३) जलात् रक्षे तैलात् रक्षे, (२५.५४११, १२-१३४३०-३३). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका, सं., गद्य, (अपूर्ण); अंतिः१०७८१.” सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १७६१, जीर्ण, पृ. ५७, जैदेना., ले.स्थल. जलालाबाद, ले.- ऋ. परसा, (२६४११, १३४३९-४३). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः धर्मो विधीयतां. १०७८२." आगमसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-अल्प, (२६४११.५, १३४४३-४५). आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १७७६, आदिः हिवै भव्यजीवने; अंतिः फली मन आस. १०७८३. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-१०, (२६४११, १५४४८-५१). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०७८४. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४१, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, प्र.वि. गा.३१९, (२५.५४११.५, ११४३८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १०७८५." कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, पट्टावली व सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. रयणचन्द्र गणि(अञ्चलगच्छ), पठ.- ऋ. मदनचन्द्र(अञ्चलगच्छ), प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, १३४३५-३८). पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, पृ. १अ-२३आ कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, मागु., गद्य, आदि: नाणं पञ्चविहं पन्नत; अंतिः जे खमावई ते धन्य. पे..२. पे. नाम. पट्टावली, पृ. २४अ-२८आ पट्टावली अञ्चलगच्छीय, मागु., गद्य, आदिः जिसइ कलिकाल तणइ; अंति: पद भोगवता विचरइ छइ. पे.-३.पे. नाम. सुभाषितानि, पृ. २९अ-३१आ सुभाषित सङ्ग्रह, प्रा.,सं., पद्य, आदिः नवि ते पारिवज्झं; अंतिः णिन्दमुहनिग्गयावाणी., पे.वि. गा.७३. १०७८७. ओघनियुक्ति अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३३००, (२६४११, १९४५८-६४). ओघनियुक्ति-अवचूर्णि# , आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदिः प्रक्रान्तोयमावश्यका; अंतिः स्फुटाजयतात्. १०७८८. नवस्मरण सह अवचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल-७ स्मरण., त्रिपाठ, पू.वि. कल्याणमंदिर व बृहच्छांति नहीं है., (२५४११, ५-६x४८-५०). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः अर्हदादीन् नमस्कृत्य; अंति:१०७८९. दशविधयतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-११, गा.१३६; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २५०, (२६.५४११.५, ९४३२-३३). १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदिः सुकृत लत्ता वन; अंतिः सुजस लीला अनुभवई. १०७९०." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५४). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः त्रिजगत्पूज्य पादाब्; अंतिः प्रगट्यो अर्थ छे. १०७९१. नयचक्रभाषावचनिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., (२४.५४१२, १३-१४४३८-४३). नयचक्र-भाषावचनिका, श्रा. हेमराज शाह, प्राहिं., गद्य, वि. १७२६, आदिः वन्दौ श्रीजिनकै वचन; अंतिः कीनो वचन विलास. १०७९२. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-२श्रुत./२०अध्य., ग्रं. १३१६, (२६४११, १५४४२ ४५). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. १०७९३." काव्य सङ्ग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. १२-१(२)=११, जैदेना., ले.- पं. रूपरूचि (गुरु आ. धर्मसूरि),प्र.वि. मूल-श्लो.१३८., पू.वि. गा.१२ से २१ तक नहीं है., (२६४११, ७-८४५१-५२). सूक्तावली, सं., पद्य, आदिः राज्यं निःसचिवं; अंतिः कौरवकर्णहीनम्. सूक्तावली सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः राज्य प्रधान बिना; अंतिः कर्णे करी हीणं. १०७९४. पञ्चाख्यानवार्तिक सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. श्लो.८ वीं कथा अपूर्ण तक है., (२५.५४११.५, १८-२३४४८-५१). For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १७९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पंचाख्यान वार्तिक, सं., पद्य, आदिः कुश्रितं कुप्रनष्टं; अंति: पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः दक्षिणदेश; अंति:१०७९५.” अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८२८, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११.५, ९४२७-२८). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, आदिः अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः मोक्षं हि वीराः. १०७९६. आठकर्म १५८ प्रकृति विचार, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. गोपीपुरा, प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा, (२६४११, ११४३६-३७). ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, आदिः आठ कर्म ते केहा; अंतिः विषइ उद्यम करिवउ. १०७९७.” शतकाख्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ व गाथा, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रेष्ठ, पृ. २४-६(८ से १३)=१८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुर, ले.- मु. जीवविजय (गुरु मु. ज्ञानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ३४३९-४१). पे..१. पे. नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. १अ-२४आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः गोडी पार्श्वजिनं; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., पे.वि. मूल-गा.१००. पे..२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ), आदि: #; अंतिः#. १०७९८. सिंहासनबत्रीसी कथा, संपूर्ण, वि. १६९४, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. आऊआ, ले.- मु. नेमविजय (गुरु पं. विद्याविजय),प्र.वि. ग्रं.ग्रं.२१६९, (२६.५४१०.५, १५४४२-४४). सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, गणि क्षेमकर, सं., प+ग, आदिः अनन्त शब्दार्थ गतो; अंतिः अमरपण्डितहर्षहेतुः. १०७९९. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, (२६x१०.५, १३४४८-५१). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. १०८००. अन्तकृतदशाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६२९, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. दीवबिंदर, ले.- आ. धर्ममूर्तिसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-९२, ग्रं. ८९०., त्रिपाठ, (२६.५४१०.५, १३-१५४४३-४७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; अंतिः ननु विधीयतां सर्वतः. १०८०१. विमलमन्त्री रास, संपूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.- पं. कुयरवर्द्धन गणि, प्र.वि. खण्ड-९+चूलिका, (२५.५४१०.५, १६x४०-४४). विमलमन्त्री प्रबन्ध, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६८, आदि: आदिजिनवर आदिजिनवर; अंतिः धरी रिधिवृद्धि रमइ. १०८०२. कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, मध्यम, पृ. ५८, पे. ४, जैदेना., (२५.५४११, ३४३०-३१). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-१७आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, वि. १७वी, आदिः शारदां वरदां; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरी., पे.वि. मूल-गा.६०. पे..२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १८अ-२६आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः तिम हुं स्तबुं छु; अंतिः श्रीमहावीर प्रतिइं., पे.वि. मूल-गा.३४. For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २७अ-३५अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः कर्मबन्धथी मुकाणउं; अंतिः कर्मस्तव साम्भली., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ३५अ-५८अ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, उपा. धनविजय, मागु., गद्य, आदिः वान्दीनइ तीर्थङ्कर; अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ., पे.वि. मूल-गा.८६. १०८०३. अन्तगडदशाङ्गसूत्र व अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. २, जैदेना., (२६.५४१०.५, १३४४४-४६). पे:-१. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-२४अ), आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं., पे.वि. ग्रं.८००. पे..२. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पृ. २४अ-२९आ), आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं., पे.वि. ग्रं.२००. १०८०४. अनुयोगद्वारसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., (२६४११, १३४४२-४३). ___ अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. १०८०५. इकवीसठाणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. गा.७०, (२५.५४११.५, ९४३७). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. १०८०६. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- मु. प्रेमसागर, प्र.वि. मूल-गा.६८., (२५.५४११.५, ५४३२-३४). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंतिः पामे शाश्वतां सुख. १०८०७. ज्ञानादि अतिचारलोचन, पाक्षिकखामणा व पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. दानचन्द्र, पठ.- पं. दीपचन्द्र, (२६४११, १३४४१-४३). पे.-१.पे. नाम. अतिचार, पृ. १आ-३अ साधुअतिचार सङ्ग्रह, संबद्ध, मागु., गद्य, आदि:#; अंतिः#., पे.वि. अज्ञात मत मान्य. पे.२.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ३अ-३आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः पियं च मे जम्मे; अंतिः मणसा मत्थएण वन्दामि., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. पे.-३. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. ३आ-१२आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. १०८०८. लघुक्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-गा.१११., (२६४११, १२४४०-४४). बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर; अंतिः लोगो चउदसरज्जुओ. १०८०९.” सत्तरीकर्मग्रन्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्र.वि. गा.९३; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ११९, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं, (२६.५४११.५, ७-८४३५-३६). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ. १०८१०. आचाराङ्गसूत्र अवचूरि व जैन सुभाषित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १५४५०-५६). For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे. १. आचारागसूत्र- अवचूरि, सं. गद्य (प्र. १४-२६), आदि प्रथम श्रुतस्कन्धे अंतिः ब्रवीमीति पूर्ववत्. " " पे. २. जैन सुभाषित सं., पद्य, (पृ. २६आ-२६आ) आदि में अंतिः #. पं. वि. प्र. पु. श्लो. १. १०८११.' कर्मग्रन्थ १,२,३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५x११, ४४३६-३७). पे. १. पे नाम कर्मविपाक सह टवार्थ, पृ. १-१० आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि श्रीवीरजिन वान्दी अंतिः अर्थ लाउ जाणिव पे.वि. मूलगा.६०. 1 पे. २. पे नाम, कर्मस्तव सह टवार्थ पृ. ११अ - १७अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा., पद्य, आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. , कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ मागु, गद्य, आदि तथा श्रीमहावीरनी अतिः नमउ अहो प्राणी, पे. वि. मूल-गा. ३४. पे. ३. पे नाम, बन्धस्वामित्व सह टवार्थ, पृ. १७३-२२अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ मागु, गद्य, आदि बन्धना कारणथी मूकाणा अंतिः कर्मस्तवथी साम्मलीनइ., ; पे.वि. मूल-गा. २५. १०८१२. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६८२, मध्यम, पृ. २९, जैदेना., ले. स्थल स्तंभतीर्थ, पठ. - श्राविका रत्ना, प्र. वि. गा. ५४४, (२५.५४११, ११-१२x२५-३८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८१३. एलाचीकुमार चौपाई व गाथा संपूर्ण वि. १७७०, श्रेष्ठ, पृ. ११ . २ जैवेना. ले. स्थल राजनगर, ले. मु. नित्यलाभ (गुरु कवि सहजसुन्दर, अञ्चलगच्छ), पठ- श्रा. धर्मचन्द, गच्छा.- आ. विद्यासागरसूरि (अञ्चलगच्छ), (२६४११.५, १२४३२-३४), (२६४१०.५, ५४२८-३१). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि नमी करी चउवीस अंति: गजसार एहवइ० भणी. पे. १. इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु, पद्य, वि. १७१९ (पृ. १आ- ११आ) आदि सकलसिद्धदायक सदा अंतिः दिन होजो सुजगीसा छे., पे.वि. ढाल - १६; मूल-ढाल - १६. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ - ११आ), आदिः#; अंतिः#. १०८१४. चौविसदण्डकविचारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. ६, जैदेना. ले. मु. दयासोम, प्र. वि. मूल-गा. ३८., १०८१५. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ढाल -७ (२६११.५, ९३६-३८). साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु., पद्य, आदि रिसहजिण पमुह चउवीस अंतिः मन आणन्दे सन्धुआ. १०८१६. गौतमपृच्छा रास, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, पठ श्राविका जानकि प्र. वि. गा. १२०, ( २६४११.५, ११४३७-४१). १८१ गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवे; अंतिः मन जे जिनवचने वस्यो. For Private And Personal Use Only १०८१७. उपदेशरत्नमाला सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५. जैवेना. ले. मु. विद्यासागर (गुरु आ. पुण्यरत्नसूरि), पठ. - श्राविका राजबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - गा. २६., (२५.५X११.५, १३-१४X३५-३७). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८२ (+) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसमुं; अंतिः उपदेशरत्नमाला. १०८१८. योगविधि यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. अहमदाबाद, ले. गणि भाणविमल (गुरु आ. महिमाविमलसूरि), प्र. वि. * पंक्ति-अक्षर अनियमित है ।, ( २६ १२X). योगोद्वहनविधि यन्त्र सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., कोष्टक, आदिः आवश्यक श्रुतस्कन्धे; अंतिः#. १०८१९. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले.- श्रा. फतेचन्द सूरसिङ्घ सङ्घवी, प्र. वि. २० स्तवन, (२५x१०.५, ११४४-४६). " विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि मागु., पद्य, आदि: पुखलवई विजये जयो रे अंतिः वाचक जश इम बोले रे. www.kobatirth.org: १०८२०. योगविधि यन्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६५११५). योगोद्वहनविधि यन्त्र सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., कोष्टक, आदिः #; अंतिः#. १०८२१. महावीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ४, (२५.५x११, १०-११४३३-३५). महावीर स्तवन- १४ गुणस्थानगर्मित उपा. विनयविजय मागु पद्य वि. १७३ आदि वीर जिनेसर प्रणमी: अंति श्रीजिनवीरगाया. , " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८२२. पार्श्वजिन नमस्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. गा.३०, ( २१x११.५, ९४२२-२५). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव विनवइ आणन्दिय. १०८२३. स्तवनादि सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५ पे ४४ " पे.-१. आदिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " -, जैवेना. (२६४११, ११-१३४४३-४७). १अ - १अ ), आदि: तुम दरिसण भले पायो; अंतिः समकित पूरण सवायो, पे.वि.गा. ५. पे. २. सुमतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १अ - १आ), आदि: तुम हो बहु उपगारी; अंतिः जाउं मे बलिहारी, पे. वि. गा.६. पे. ३. पार्श्वजिन स्तवन आ ज्ञानविमलसूरि प्राहिं, पद्य, (पृ. १आ-१आ), आदि प्रभु दरिसन की प्यास अंति " समकित लील विलासी., पे.वि. गा. ५. पे.-४. अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १आ - २अ ), आदि: अजित जिन तुम सीउं; अंतिः शिवसुख रयणना खाणी., पे.वि. गा. ५. पे. ५. विमलजिन स्तवन आ ज्ञानविमलसूरि मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदि: मेरउ तुहि धनी विमल अंतिः विमल० समकित रयणखनी., पे.वि. गा. ५. पे. ६. सीमन्धरजिनविनती स्तवन आ. ज्ञानविमलसूरि प्राहिं, पद्य, (पृ. २आ-२आ), आदि सीमन्धर विनती सुणि अंतिः कहा कहुं बहु तेरा., पे.वि. गा. ५. पे.-७. २४ जिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः प्रह समे भाव धरी; अंतिः नित रहो जो जगीस., पे.वि. गा. ५. पे.-८. साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदि: जब जिनराज कृपा होवे; अंतिः कहे तिम० जिन ओपन आवे.. पे.वि. गा.५. For Private And Personal Use Only i पे. ९. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (पृ. ३अ-३अ) आदि मेरे साहिब पासजी अंतिः करि प्रभुपद अरविन्दा., पे.वि. गा.६. पे.-१०. धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ३अ - ३आ), आदिः नेह नयन सइं नितुः अंतिः की सेवा करत सवेरउ., पे. वि. गा. ५. Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १८३ पे..११. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदिः अङ्खीयां हरखण लागी; अंतिः भव भय भावठ भागी.,पे.वि. गा.४. पे..१२. औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः रे जीव जुगति लिउं; अंतिः नयविमल कही जे., पे.वि. गा.७. पे.-१३. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. ४अ-४अ), आदिः भोर भयो भयो भयो जागी; अंतिः सुखमङ्गल माल रे., पे.वि. गा.७. पे.-१४. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः सकल समता सुरलतानो; अंतिः होय सुजस जमाव रे., पे.वि. गा.८. पे.-१५. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः विमल गिरिवर शिखर; अंतिः मुज आवागमन निवारि रे., पे.वि. गा.९. पे:१६. धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः धर्म जिनवर दरिसन; अंतिः लहइ सुख नित ___मेव रे., पे.वि. गा.६. पे.-१७. आध्यात्मिक गीत, मु. ज्ञानविमल, प्राहिं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः मेरउ साहिब सुगुण; अंतिः राज सुगुण तब आया., पे.वि. गा.९. पे:१८. शान्तिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः शान्ति जिणेसर साहिब; अंतिः सूरि कहइ० पाय लागउ., पे.वि. गा.६. पे.-१९. अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः अष्टापद गिरि जात्रा; अंतिः सुरनर __नायक गावा., पे.वि. गा.८. पे.-२०. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः पास जिन गाइए जिणन्द; अंतिः __तुहि ज देवनउ देव., पे.वि. गा.७. पे.२१. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः मङ्गल कल्पलता नन्दन; अंतिः ज्ञानविमल० अधिक सनेह., पे.वि. गा.५. पे.२२. पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः धनना ठाकुर ज्ञान; अंतिः सेवक ___ सनमुख जोय., पे.वि. गा.५. पे.२३. नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः साम्भलीया तुं पाछउ; अंतिः इम कीजइ रङ्गाचङ्ग., पे.वि. गा.७. पे..२४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः साम्भलि सहीर वातडी; अंतिः आपणु ए साहिब० तारु.,पे.वि. गा.९. पे..२५. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः विमलवर सकल गुण रयण; अंति: गुण० एकतान कीजइ., पे.वि. गा.८. पे.२६. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः सुख सागर पास जिणेसर; अंतिः विमल० इम भावना भावई., पे.वि. गा.८. पे.२७. अनन्तजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः आज सफल दिन मुझ तपो; अंतिः सदा जिन वान्दता ए., पे.वि. गा.१२. पे..२८. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदि: मोरा आतमराम कुण; अंतिः परमानन्द पद पासिउ., पे.वि. गा.७. पे:२९. अनन्तजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः अनन्त भगवन्त महन्त; अंतिः अधिक गुण दीपता रे., पे.वि. गा.९. For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८४ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३०. आदिजिन स्तवन- शत्रुञ्जयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ ), आदि: लाहओ लेयो रे लाहो; अंतिः अविचल ध्यानें रहेजो, पे.वि. गा. ७. पे.-३१. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १०अ -१०अ ), आदिः प्रणमउ पास जिणन्द; अंतिः अतिशय एह महन्त रे, पे. वि. गा.५. पे - ३२. महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (प्र. १०अ १० आ) आदि बलिजाउं श्रीमहावीर अंतिः भवजल तीर सुधीर की., पे. वि. गा. ५. : पे. ३३. साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (पृ. १० आ-१०आ), आदि जिनराजे रे जिनराजइ अंति आतम परमारथ साधइ रे, पे.वि. गा. ८. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. ३४. धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (प्र. १० आ - ११अ ), आदि धर्म जिनेसर धर्मनो: अंतिः सेवइ सवि सुरनर वृन्द, पे. वि. गा. ११. पे. ३५.२० असमाधिस्थान सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (पृ. ११अ - ११आ ) आदि जिन आगम साम्मली चित अंतिः विमल गुण सुजइ रे., पे.वि. गा.११. पे - ३६. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (पृ. ११आ-१२अ ), आदिः परम पुरुष परमेसरु: अंति: अनन्तगुण वासरे, पे.वि. गा. ८. पे: ३७. पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, पद्य, (पृ. १२आ - १३अ) आदि प्रभु पास जिणेसर अंतिः पय वृन्दा गुण भणइ., पे.वि. गा. ८. पे - ३८. महावीरजिन स्तवन मु. ज्ञानविमल मागु, पद्य, (५. १३अ १३आ) आदि मोहन मुरति श्रीमहावी: अंतिः ज्ञानविमल गुण० भाव., पे.वि. गा. ९. " पे.-३९. आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः आदीसर अरिहन्त रे जग; अंतिः ताहरा तेज स्युं रे. पे. वि. गा. ५. पे.-४०. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४अ), आदि: पूजयो रे पास जिणन्द; अंतिः परइ गुण जिनदेवना रे, पे. वि. गा.५. पे.-४१. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १४अ - १४आ), आदि: पास जिणेसर शिवगति; अंतिः सहज स्वभावई पामी जी., पे.वि. गा. ५. पे - ४२. साधारण जिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदि जिनराज नमो जिनराज अंति गुणइ दिल धारो रे, पे.वि. गा.६. पे - ४३. शत्रुञ्जयतीर्थ गीत, मु. ज्ञानविमल, मागु पद्य (प्र. १४-१५अ) आदि अये नाया रे अंति: गुण निधि पाया " रे., पे.वि. गा. ५. " पे. -४४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १५अ - १५अ ), आदि: प्रभु पास जिणेसर; अंतिः समकितनी मोटी मोज रे, पे.वि. गा.६. 1 १०८२४. चारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण वि. १८२३, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना, प्र. वि. खण्ड-४ प्र.पु. मूल-ग्रं. १३६० (२६.५४११.५. १६४३८-४१). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि: श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंतिः आणंद लीलविलास, १०८२५. श्रीपाल रास की ढालें, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैदेना. (२६४११, ११४३८-३९). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदि:-; अंतिः१०८२६. नन्दीसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६ - १ (७) = २५, जैदेना, (२५.५X१०.५, १३x४१-४२). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, आदि जयइ जगजीवजोणीवियाणओ अंतिः मुद्देसामि अणुजाणामि For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १८५ १०८२७. विचारषट्त्रिंशिका सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७१२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. ले. गणि भाग्यसागर, प्र. वि. मूल-गा. ३८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ - प्रारंभिक पत्र, (२५.५११, ५X३२-३४). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि नमितं चउवीस अंतिः एसा विनति अप्पहिआ दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः नमी करी चउवीस अंतिः विनन्ती आपणा हित भणी. १०८२८. द्वादशभावना कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. गा. ९२, ( २४.५x१०.५, १२X४५). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः विमल कुल कमलना हंस: अंतिः ध्यान सकल मुनि आणो १०८२९. सिद्धहेमशब्दानुशासनलघुवृत्ति-६७ अध्याय, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. २४-१ (१५)-२३, जैदेना. (२६.५x११, १९४६१-६४). सिद्धहेमशब्दानुशासन - स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि-: अंति: (+) १०८३०. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना. प्र. वि. १० दशा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५५११, .. १३४३६-३८). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०८३१. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४०, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. गणि वृद्धिविजय (गुरु गणि आणन्दविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-श्लो. ४४. प्र. पु. मूल ग्रं. २५०., (२५.५४११, ४५२७-२८) कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि मङ्गलीक नु घर अनई: अंतिः मोक्ष प्रति पामइ. १०८३२.” पर्यन्ताराधना सह बालावबोध व जीवज्जीवचउवीहारअणसण प्रत्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. (२६४१०.५, १३४४१-४७). पे. १. पे नाम पर्यन्ताराधना सह बालाववोध पृ. १३-८अ पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि प्रा. पद्य आदि नमिउण भणइ अंतिः ते सासयं सुक्खं. : , , पर्यन्ताराधना- बालावबोध' माग गद्य, आदिः श्रीवीतरागदेवने अंतिः ते शाश्वता सुख पामइ... " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे. २. अणसणप्रत्याख्यान विधि, मागु. प्रा. गद्य, (पृ. ८अ (आ) आदि जे मे हुज्ज पमाच अंतिः अप्पसखियं वोसिरइ. प .पे.वि. मूल- मा. 90. ७०. १०८३३. पौषधविधिसङ्ग्रह व सन्थारापोरीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले. - पं. अमृतसागर ( तपगच्छ), पठ श्राविका उमेदकोर बाई, (२५.५४११.५, ४४२४-२८). For Private And Personal Use Only पे. १. पौषध विधि, प्रा., मागु., गद्य, (पृ. १अ - ४अ), आदि: प्रथम राई पडिकमणो; अंतिः विधिना पाठ कहे. पे. २. पे नाम. सन्धारापोरसीसूत्र सह टवार्थ, पृ. ४आ-७अ सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंतिः समत्तं मए गहिअं. पौषधविधि सङ्ग्रह-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: नमस्कार विना बीजो अंति मे ग्रह्मो० करी, पे.वि. मूल-गा. १४. पे. ३. मन्हजिणाणं राज्झाय तपागच्छीय संबद्ध, प्रा., पद्य, (प्र. ७अ - ७आ) आदि मन्हजिणाणं आणं अंतिः निच्चं सुगुरूवएसेणं, पे. वि. गा. ५. '. . 1 " १०८३४. सौभाग्यपञ्चमी कथा संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. श्लो. १५१, संशोधित, ( २६११.५, १३x२९-३८). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्श्व अति रसिन्दुमितवर्षे. १०८३५. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण, वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ४१, ग्रं. ८५०, ( २४.५X११, ११४३७-३८). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन: अंतिः दिन दिन आस. १०८३६.” भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ३ भाष्य, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६ ११, ११४४१-५०). " Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८६ www.kobatirth.org: १५X४९-५०). रत्नसंचय - बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमिऊण क० श्रीमहावीर; अंति: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. १०८३७.” उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना, प्र. वि. अध्याय- १०, ग्रं. ८१२, संशोधित, ( २६ ११, १३x४२-४८ ) . " उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी: अंतिः दिवसेस अगं तहेव १०८३८. रत्नसञ्चय बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५x११, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०८३९. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र. वि. गा. ५४४, (२५.५x११, ११- १२४३९-४६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. १०८४०. बृहतकल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १५७९, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - ६ प्र.पु. - मूल ग्रं. ३७०, (२६×१५, ११x४२ 84). पे. ३. बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि नो कप्पइ निग्गंथाण: अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि १०८४२.' चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, वाणी के ३५ गुण व अरिहन्त के तीननाम, संपूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. ले. स्थल, सरखिज, ले. ऋ. नारायण (गुरु ऋ. मेघना), पठॠ जेइता, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ (२६४१०.५. ५४३३). पे. १. पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १अ - ९आ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: सावद्यजोग ते० ते; अंतिः मोक्षना सुख दइ., पे.वि. मूल-गा. ६३. पे. २. ३५ वाणीगुण, सं., गद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदि: पणतीसं वयणा तिसेसा; अंतिः अपरि० अव्यवेछेदित्वं. पे. ३. अरिहन्त पद विचार गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ- ९आ), आदि: अठविहं पियकम्मं; अंतिः अरिहन्ता तेण वुचन्ति., पे.वि. गा.३. १०८४३. स्तवनचौवीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले. आ. जयचन्द्रसूरि (गुरु आ . विमलचन्द्रसूरि, पार्श्वचन्द्रगच्), प्र. वि. मूल - २४ स्तवन. पू. वि. टबार्थ स्तवन २ गा. १ तक लिखा है., (२५x११, ४४३५). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, (संपूर्ण), आदि: ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम अंतिः अनन्त सुखनो सदा " स्तवनचौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः आनन्दघघनस्यास्या; अंतिः१०८४४. अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५४ जैदेना. प्र. वि. बाल- ४३ (२४.५४११, १०x२९-३३). अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदि: वीणा पुस्तक धारणी; अंतिः थास्यै लाभ सवाई हो. १०८४५. सुभाषित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना, प्र. वि. श्लो. १८५१ (२५८११, १३०४९-५६). सुभाषित सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदि वीरं विश्वगुरु: अंतिः निमियर्त्तिचेतः. १०८४६. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना. प्र. वि. अध्याय- १० ग्रं. ८१२ (२५.५५११५, ११४३९ For Private And Personal Use Only ४०). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं० चंपा नाम नयरी; अंति दिवसेसु अड्गं तहेव १०८४७. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १७४४, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबंदिर, ले. पं. गङ्गविजय (गुरु उपा. शुभविजय) पठ श्राविका नानीबाई, प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. ९ स्मरण, ( २६.५४११, ९-१०x२६-२८). , " नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं० हवइ: अंतिः मोक्षं प्रतिपद्यन्ते. Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १८७ १०८४९. निरयावलीय आदि पञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. ५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं ग्रं-११२५., (२६.५४११.५, ११४३८-४०). पे.१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १-१८आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंति: मायातो सरिसणामाओ., पे.वि. १० अध्ययन. पे.२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १८आ-१९आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंति: महाविदेहे सिद्धे., पे.वि. १० अध्ययन. पे.३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १९आ-३७आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. १० अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३७आ-४०अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४०अ-४५अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन. १०८५०. बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-६, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ११४३२). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि. १०८५१. सिद्धप्रभृत सह टीका, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.११८., त्रिपाठ, (२६४११.५, ३४३५ ३९). सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः तिहुयणपणए तिहुयण; अंतिः सुयाणुसारेण णेयव्वं. सिद्धप्राभूत प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदिः सकलभुवनेशभूतान्निखिल; अंतिः टीकाकृ० चिरन्तनैः. १०८५२. साम्यशतक व सम्यक्त्व चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, ९४३०). पे.१. समताशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-९अ), आदिः समता गङ्गा मगनता; अंतिः करी ___ हेमविजय मुनि हेत., पे.वि. गा.१०५. पे..२. सम्यक्त्व षट्रस्थान चौपाई, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-२१अ), आदिः वीतराग प्रणमी करी; अंतिः वाचक जस इम बोले जी., पे.वि. अध्याय-१२४. १०८५३. विशेषणवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४१९, (२४.५४११.५, १३४३८-४०). विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प+ग, आदिः उस्सेहंगुलमेगं हवइ; अंतिः कालेणाइच्चपेढंति. १०८५४. पञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले.- श्रा. लवजी मोतीचन्द, (२६.५४१२, ११४२९). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १०८५५. स्तवनचौवीसी-१ से १५ स्तवन, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२६.५४११.५, १३-१४४३९-४३). - स्तवनचौवीसी, मु. सुखविजय, मागु., पद्य, आदिः पूजो प्रथम जिनेसरु; अंतिः१०८५६.” सप्ततिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. खंभायत, प्र.वि. मूल-गा.९३. प्र.पु.-मूल ग्रं. सर्व-४७५., (२५.५४११, ४४३२). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध निश्चल पद छइ; अंतिः उणी नेउ गाथा होइ. १०८५७." प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६९, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. १२५०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १५४५२-५५). For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. १०८५८. कूम्र्म्मापुत्रचरित्र सह टदार्थ व जैनगाथा संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. १५ पे. २, जैदेना ले. स्थल. अहिमदनगरे, ले. मु. लाभरत्न, ( २६.५X११, ७x४६-५२). - " पे. १. पे. नाग. कुम्मापुत्त चरिअं सह टबार्थ, पृ. १अ -१५अ कुम्मापुत चरिअं मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण वद्धमाणं अंतिः स० इच्छन्तं चिरं जयउ www.kobatirth.org: कुम्मापुत चरिअंटवार्थ मागु, गद्य, आदि: वर्द्धमान नमीनइ अंतिः चिरकाल जयवन्तु वर्तउ, पे.वि. मूल-गा. २०४. पे. २. जैन गाथा प्रा. पद्य (प्र. १५अ - १५अ), आदि # अंतिः #. , " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०८५९. पट्टावली सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७१५, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. ले. स्थल. सोझितनगरे, ले. पं. धर्महर्ष, प्र. वि. मूल " गा. २१. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४१०.५, ३४२८-३०), तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिमन्तो सुहहेउ; अंतिः णो दिन्तु सिद्धिसुहं. तपागच्छ पट्टावली- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: श्रीमन्तमङ्गलीकभूत अंतिः मोक्षनां सुख द्यो. १०८६०. कुमतकदलीकृपाणी चउपई व सिद्धान्तसारोद्धारे देवतत्त्वस्थापनाधिकार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३ पे. २, जैदेना., ( २६x११.५, १५X३७-४०). पे. १. कुमतकदलीकृपाणिका चौपाई, मागु, पद्य, (पृ. १अ-२अ) आदि वीर जिणेसर पयामिय: अंतिः जिनशासननउ एहजि सार, पे.वि. गा. १३. पे. २. पे नाम. सिद्धान्तसारोद्धारे सम्यक्त्वालासटिप्पनको देवतत्त्वस्थापनाधिकार, पृ. २अ-२३आ सिद्धान्तसारोद्धार-देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, उपा. कमलसंयम, मागु., प्रा., सं., गद्य, आदि: संवत १५०८ वर्षे अहम; अंतिः सम्यक्त्व राखिस्वइ. १०८६२." चम्पकश्रेष्ठि चौपाई संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना. प्र. वि. ढाल २९ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २४.५४११, १५-१६४३७-३९). " चम्पकश्रेष्ठि चौपाई, उपा, समयसुन्दर गणि, मागु पद्य वि. १६९५, आदि जालोर मांहि जाणीयइ अंतिः भली वात बणावी रे. , " १०८६३. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ( २६x१०.५, १३x४७). आवश्यक सूत्र- षडावश्यकसूत्र संबद्ध प्रा. गद्य, आदि: पञ्चिन्दिय संवरणो अतिः वतियागारेणं वोसिरामि " षडावश्यक सूत्र - बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः चउदराज पञ्चिन्दिय; अंतिः साक्षिक खमावउ छउं . १०८६४. आरणकमुनि सज्झाय, दानशीलतपभावनासंवाद व जैनगाथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले. गणि माणिक्यविजय, (२५.५४९.५, १३x४४-५०). पे. १. अरणिकमुनि रास, गणि महिमासागर, मागु., पद्य, वि. १७७४, (पृ. १अ - ४अ), आदि: सरसति सामिणि वीनवुं; अंतिः को विलास के., पे.वि. ढाल - ८. 7 7 पे. २. दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य वि. १६६२ (पृ. ४अ-७3), आदि: प्रथम जिनेसर पाय अंतिः सकल सङ्घ सुजगीसो रे, पं.वि. गा. १०१. पे.-३. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः#; अंतिः#. , १०८६५. धन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, ले. मु. लहुजी, प्र. वि. गा.३३०, (२५.५४१०.५ १६ १७९६४). धन्ना रास, वा. मतिशेखर, मागु., पद्य, वि. १५१४, आदिः पहिलउं पणमी पयकमल; अंतिः विलसइ नवइ निधान.. १०८६६. पुष्पमाला, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. प्र. वि. गा. ५०५, (२५.५४११, ११४३८-४०) " पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. १०८६७. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. पु. वि. बालावबोध पत्र २ तक है. (२६. ५५११. For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १८९ ९४२८). बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः जम्बूदीवोइमलरुखो. बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः नमिऊण कहेता नमीनइ; अंतिः१०८६८." चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- मु. मुनिचन्द्रविजय, प्र.वि. मूल गा.६३., संशोधित, (२५.५४११, ३४३२-३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावध व्यापरनइ विषय; अंतिः सुखनु देणहारु छे जे. १०८७०." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, (२६४१०.५, ११४३६-४०). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. १०८७१. सुदर्शनसेठ प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.२५४. इस प्रत में रचनावर्ष-१५७१ है., (२६४११, १७४५४). सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५०१, आदिः पहिलउं प्रणमिसु; अंतिः सङ्घ प्रसन्न. १०८७२. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९२, (२५.५४११, १०४३१-३८). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. १०८७३. तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०+कारिका, संशोधित, (२६.५४११, १७X४७ ४८). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनशुद्धं; अंतिः बहुत्वत्तः साध्याः. १०८७४. नागश्री कथा व महावीरजिन स्तुति जैनश्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १२४३१ ३४). पे.-१. नागश्री कथा, मु. ब्रह्म नेमिदत्त, सं., पद्य, (पृ. १अ-१८आ), आदिः श्रीमज्जिनं जगत्पूज; अंतिः कुर्यात्शतां मङ्गलं., पे.वि. श्लो.३६५. पे.२. जैन श्लोक', सं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः #; अंतिः #. १०८७५. नवतत्त्व प्रकरण व जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदर, ले.- मु. चारित्रसागर (गुरु आ. उदयसागरसूरि), (२५.५४११.५, ४-५४३८). पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १अ-६आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः समत्तं निच्चलं तस्स. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साची वस्तुनउं स्वरूप; अंतिः निश्चल साचुं तेहनु., पे.वि. मूल-गा.३६. पे.२. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ६आ-११आ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तीन भुवन रै विषै; अंतिः समुद्र हुन्ती., पे.वि. मूल-गा.५१. १०८७६. स्नात्रपूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, (२६.५४११.५, १०४३५-३९). स्नात्रपूजा सविधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः मुक्तालङ्कार विकार; अंतिः पयाहिणन्दिन्तो. १०८७७. उपदेशमाला व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १६०४, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., (२६४११, १३४४३-४६). पे.-१. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२०अ), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी., पे.वि. गा.५४१. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २०अ-२०अ), आदिः#; अंतिः#. For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०८७८. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना.,प्र.वि. ५ अधिकार, (२५.५४११, १३४४५-४७). बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि.६वी, आदिः नमिऊण सजलजलहर; अंतिः उत्तमसुयसम्पयं देउ. १०८७९." अभिधानचिन्तामणी नाममाला, संपूर्ण, वि. १६३६, मध्यम, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. लचाणीद्रंग, गच्छा.- आ. हीरविजयसूरि, ले.- गणि रामविजय (गुरु आ. राजविजयसूरि, तपागच्छ), पठ.- मु. खीमाविजय (गुरु गणि रामविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६ कांड, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १५४४८-५०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १०८८०. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. ८३०, (२६.५४११, १३४४९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नाम नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. १०८८१. वीतरागप्रतिमाआश्रयी पाञ्च बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., (२५४११.५, ९-१०x२९). ५ बोल- वीतरागप्रतिमा आश्रयी, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीतरागदेवनी; अंतिः निर्मल थाए छे. १०८८२. नववाडी सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबिंदरे, ले.- पं. तीर्थविजय (गुरु मु. अमरविजय), पठ.- श्रा. इछाकुयर, प्र.वि. गा.५६, (२३.५४१०, ७४२५). नववाडि सज्झाय, मु. अमरविजय, मागु., पद्य, आदिः परम प्रभुता जेहनी; अंतिः सकल सङ्घ मङ्गलवरू. १०८८३. पाञ्च बोल, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., ले.स्थल. आगरा, ले.- पं. विनयानन्द, पठ.- श्रा. सूरचन्द, प्र.वि. ढाल-६, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२०.५४१०, ९४२३-२४). ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः सिद्धारथ सुत वन्दिये; अंतिः विनय कहे आणन्द १०८८४. प्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., (२४४११.५, ९४३०-३७). साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: सलहइ सुहसंपयं परमं. १०८८५. अवन्तिसुकमाल सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-१३, (२३४११, १२४३१-३३). अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः सुख पावे रे. १०८८६. चौवीसदण्डक २९ द्वार, संपूर्ण, वि. १८३७, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, (२६४११, ११४३७-३८). २४ दण्डक २९ बोल , मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका. १०८८७. दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. १० दशा, (२६.५४११, ११४३८-३९). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०८८८. वीरजिनआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति सह टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. अशुद्ध पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पार्श्वजिन स्तुति-बालावबोध अपूर्ण तक है., (२६.५४११, १०-११४२९-३०). महावीरआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, आदिः (१) जयति विजितान्यतेजाः (२) सकलकुशलवल्ली पुष्करा; अंतिःमहावीरआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंति: महावीरआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:- अंति:१०८८९. अञ्जनासुन्दरी रास, पूर्ण, वि. १७३०, मध्यम, पृ. ३६-१(१)=३५, जैदेना., (२२.५४१०, १०x१८-२२). अंजनासुन्दरी रास, मु. नरेन्द्रकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६५२, आदि:-; अंति: गुणमाला उद्यम घणि. १०८९०." श्रीपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ४०-१(२५)=३९, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- मु. सुखसागर, प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १९१ ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१०.५, १७X४४-५०). श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., गद्य, वि. १७४५, आदिः सकलकुशलवल्ली सेचने; अंतिः सदा वाच्यम्. १०८९१. उपदेशसार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नहीं हैं.\ अधिकार ४ गाथा १४० तक है., (२६४११, १५४५७-६१). उपदेशचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तित्थयरे भयवंते परम; अंति:१०८९२. उपदेशमाला व मुनिसुव्रतस्वामी स्तोत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१०(१ से १०)=९, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १५४६२). पे:-१. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. -११आ-१९अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी., पे.वि. ___ अंत के पत्र है. गा.५४३. पे.२. मुनिसुव्रतजिन स्तोत्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ, संपूर्ण), आदिः स फलितनिजभक्तश्रेणि; अंतिः तुष्टः श्रियेस्तु., पे.वि. श्लो.१७. १०८९३. धर्मोपदेश, संपूर्ण, वि. १६५२, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, ले.- श्रा. भीमजी,प्र.वि. ५ तरंग, (२६४१०.५, १७-१८४५२-५९). उपदेशतरङ्गिणी, गणि रत्नमन्दिरगणि, सं., पद्य, आदिः श्रीनाभेयः स वो; अंतिः ग्रामाधिपत्यं दत्तं. १०८९४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., (२५.५४११, १३४४४-४७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. १०८९५. कर्मग्रन्थ १-६, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ६, जैदेना., (२५.५४११, १३४५३-५६). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६३. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-४आ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं ___ नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे..३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं ; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे..४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-९आ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-१३अ), आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे.६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-१६आ), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंति: एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.९३. १०८९६. सम्यक्त्वसप्तषष्टिभेद व सम्यक्त्व कुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६२४, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अहम्मदाबादे, ले.- मु. राजचन्द्र, प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, (२६.५४१०.५, १४४४८-५०). पे.-१. पे. नाम. समकीतना ६७बोल भेद सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ समकितना ६७ बोलभेद, प्रा.,मागु., पद्य, आदिः चउसद्दहणा तिलिङ्ग; अंतिः विसुद्धं च सम्मत्तं. समकीतना ६७ बोल भेद-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः चउसद्दहणा० जीवजीवदि; अंतिः सप्तषष्टिभेद टालिवा., पे.वि. मूल-गा.२. पे.२. पे. नाम. सम्यक्त्व कुलक सह बालावबोध, पृ. ३अ-५अ सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः होउ सम्मत्त संपत्ती. For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर देविइं; अंतिः प्राप्ति हुइ. सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा सम्यक्त्वस्वरुपं; अंतिः सम्पत्ती संप्राप्ति., पे.वि. मूल-गा.२५. १०८९७. पञ्चाख्यानभाषा-मित्रभेद तन्त्र, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-संबद्ध अंशगा.६८१., (२६.५४१०.५, १५४५०-५२). पञ्चाख्यान भाषा, संबद्ध, मागु., पद्य, आदिः श्रीअम्बा श्रीसारदा; अंतिः१०८९८." कामदेव चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. १९, जैदेना., ले.- पं. लब्धिमेरु गणि, प्र.वि. ग्रं. ७४८, संशोधित, (२६.५४११, १५४४६-४८). कामदेव चरित्र, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, आदिः जयतिकामितपूर्तिसुर; अंतिः राज्यलक्ष्मीनिवासाः. १०८९९. चैत्यवन्दनभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३., (२५.५४११, ४४२९-३२). चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः परमपयं पावइ लहुं सो. चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ऐन्द्रे श्रेणितु; अंतिः प्रथम भाष्य थयो. १०९००. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.- मु. खुशालसागर (गुरु मु. रत्नसागर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-श्लो.२०१. इस प्रत में मूल का रचना वर्ष-१६५४ दिया गया है., (२५.५४११.५, ५४३२ ३५). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभदेवने नमस्कार; अंतिः उजलपक्षे कही छे. १०९०१. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२६४११, १०४३८-४१). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः तम्हा वुछेयणं होई. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अरियावहिय पडिक्कमवा; अंतिः माहा सुख पामि सिइ. १०९०२. शालीभद्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. जालणापुर, ले.- पं. वृद्धिचन्द, (२६.५४११.५, १५४४०-४३). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासणनायक समरीई; अंतिः मनवञ्छित फल लेहस्ये. १०९०३. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. असारुआ, प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. ८१२, (२६४११, ११४४२-४४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. १०९०४. नवस्मरण सह अवचूरि, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., ले.स्थल. जलालपुर, ले.- मु. भाणचन्द, प्र.वि. मूल-९ स्मरण; अवचूरि-अध्याय-९स्मरण., पू.वि. प्रथमस्मरण की गा.५ तक नहीं है., (२५.५४११.५, ५४३६ ३८). नवस्मरण अञ्चलगच्छीय, सं.,प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः सङ्घस्य मुदम्. नवस्मरण अञ्चलगच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः हर्ष उपजनयतु सर्वदा. १०९०५. द्वादशभावना कुलक व नरकविस्तार स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०-१(७)=९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुरबंदिरे, (२६४११.५, ११४२४-२५). पे.१.१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१०अ, पूर्ण), आदिः विमल कुल कमलना हंस; अंतिः सकल मुनी चित्ति आणो., पे.वि. ढाल-१४ बीच का एक पत्र नहीं है. पे..२. नरकविस्तार स्तवन, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः वर्द्धमानजिन वीनवू; अंतिः परमकृपाल उदार., पे.वि. ढाल-६, गा.३५. For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ५५). हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १०९०६. श्राद्धपाक्षिक अतिचार, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. (२६११.५ १२४२७-३१). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा. मागु., गद्य, आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १०९०७. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ( २६ ११.५, ११×३५-३८). पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, आदि तित्थङ्करे य तित्थे अंति: जेसिं सुयसायरे भति १०९०८. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.४३., ( २६११, ३४३९-४०). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध्यात्वा शङ्खश्वर; अंतिः नामें० ते वीनती. १०९०९. सिद्धहेमशब्दानुशासनबृहद्वृत्ति - ३ से ४ अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., (२५.५×१०.५, १३×५२सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि : -; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंति: १०९१०.” सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (४५४) मङ्गलं लेखकानां च (५९४) अदर्शदोषात् मतिविभ्रमात् च (२६११, १५x४६-४९). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पर्ययादिष्यते बन्धः १०९११. पुण्यप्रकाश स्तवन, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचनाप्रशस्ति अधूरी है., (२४४१०.५, ९४३४-३५). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंति: १०९१२.” वसुधारामहाविद्या, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पं. लालचन्द्र (गुरु मु. रयणचन्द्र), (२५x१०.५, १३४४३). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भोगं च करोति. १०९१३. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. स्थल. खंभात, ले.- मु. मीठाचन्द्र (गुरु गणि जयचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ३१९ (२५४११, ११९२९-३१) बृहत्सद्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमितं अरिहन्ताई: अंतिः जा वीरजिण तित्यं , -, १०९१४. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७३२, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. १०४ (२५.५४११, ६४४३-४४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि: संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. १९३ १०९१५.” शान्तिनाथचरित्र - प्रथम प्रस्ताव व षट्कारक, प्रतिपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. अहम्मन्नगरे, ले. गणि दयाचन्द्र (गुरु पं. विवेकचन्द्र गणि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५११, १७ - १८४४१-४४). पे:-१. शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, (पृ. १अ -८आ, प्रतिपूर्ण), आदिः श्रेयोरत्नकरोद्भूता; अंति: पे. २. षट्कारक, मागु, सं., गद्य (पृ. ८आ८आ, संपूर्ण), आदि छ कारक सातमु सम्बन्ध: अंतिः पूच्छीतं पृछ्यमानं. १०९१६.” देवाप्रभोयं स्तव सह टीका व सिद्धगुण गाथा, संपूर्ण, वि. १७१३, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. राजनगरे, ले. पं. मानविजय (गुरु पं. रत्नविजय) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२४.५८१०.५, १४३९-४२). पे. १. पे नाम. साधारणजिन स्तव सह टीका, प्र. १अ ६आ साधारणजिन स्तव, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदिः देवाः प्रभो यं; अंतिः जयानन्दमयप्रदेया. For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, आदिः पार्श्वनाथं नमस्कृत; अंतिः ऋद्धिजयाभिधेन., पे.वि. मूल-श्लो.९. पे..२.पे. नाम. सिद्ध गुणगाथा, पृ. ११-१अ जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-गा.१. १०९१७. थुलिभद्रगुणरत्नाकर छन्द व गौडीपार्श्वनाथ छन्द, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., (२३४१०.५, १५४४७-४८). पे.-१. गुणरत्नाकर छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५७२, (पृ. १अ-१९अ), आदिः शशिकरनिकर समुज्वल; __ अंतिः करो सहिजसुन्दर मया., पे.वि. अध्याय-४. पे..२. पार्श्वजिन छन्द-गौडी-उत्पत्ति, मु. कल्याण, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९आ), आदिः साचा स्वामि सोहइ; अंतिः अलि महिमा महि महइ., पे.वि. गा.२८. १०९१८. अन्तकृतदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. रुपचन्द्र (गुरु आ. अजितसेनसूरि), (२४४१०.५, १८-१९४४३-४४). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. १०९१९. आषाढभूति चौपाई व इलापुत्र रास, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राज्ञपुर, ले.- मु. धनविमल, पठ.- मु. लब्धिविजय (गुरु मु. देवविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५४१०.५, १३-१४४४४). पे.-१. आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, (पृ. १अ-१०आ), आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे., पे.वि. ढाल-१६. पे:२. इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, (पृ. १०आ-१८अ), आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः ज्ञान दर्शन अजूआले., पे.वि. ढाल-१६. १०९२०. वङ्कचूल रास, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. छनीआरि, प्र.वि. गा.९५, (२५.५४११, १२-१३४३४ ३८). वंकचूल रास, मागु., पद्य, आदिः आदि जिनवर आदि जिनवर; अंतिः संघनी पूरइ आस. १०९२१. आराधना कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. जयचन्द्र(तपगच्छ), प्र.वि. गा.१२५, (२६.५४१०.५, ११४४०-४५). आराधना कुलक, मागु., पद्य, आदिः वन्दिय चउवीसमउ जिणिं; अंतिः साधु तुं विंनती कीजई. १०९२२." अनुत्तरोववायदशाङ्गसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-३३., पंचपाठ, (२६४१०, ११४४०). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति:१०९२३." तीर्थमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७४५, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगर, ले.- मु. कुशलचन्द (गुरु वा. लक्ष्मीचन्द्र गणि), पठ.- वा. धर्मचन्द्र,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१११., त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ४-५४४५-४६). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अरिहन्तं भगवन्तं; अंतिः मुणिविन्द थुय महिया. तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः अर्हन्तं पूजायोग्य; अंतिः महिताः सत्कृताश्च. १०९२४. भगवतीसूत्र टीप, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.१६९, (२६.५४११, ९४३३-३८). भगवतीसूत्र-टीप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं वीरं; अंतिः जिण वयणविणीगयावाणी. १०९२५. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १५७४, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., पठ.- श्राविका सोभागिणि, प्र.वि. प्र.पु. For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १९५ ४प्रकाश., (२६४११, ११४३३-३५). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः१०९२६. धूर्ताख्यान बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुर, (२६.५४११, १३-१४४४४). धूर्ताख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सदुपनिषदनेकग्रन्थ; अंतिः अनुमोदवां ध्यावां. १०९२७. प्रतिक्रमणसूत्र व लघुअतिचारादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ९, जैदेना., (२४.५४१०.५, १२-१३४४६ ४७). पे.-१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (पृ. १अ-२अ, संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं; ___ अंति: गारेणं वोसिरामि. पे.-२. श्रावक पाक्षिक अतिचार-लघु, मागु.,प्रा., गद्य, (पृ. २अ-३आ, संपूर्ण), आदिः ईच्छामि० ईच्छाकारेण; अंतिः वत्तिया० वोसिरामि. पे-३. लघुचैत्यवन्दनसूत्र, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदिः इच्छं जय २ महाप्रभु; अंतिः तियलोए चेइए वंदे., पे.वि. गा.९. पे.-४. पे. नाम, नन्दीसूत्र लघु स्वाध्याय, पृ. ४अ-५अ, प्रतिपूर्ण नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः जयइजगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः-,पे.वि. गा.२४. पे.५. पे. नाम. वृद्ध स्वाध्याय, पृ. ५अ-६अ, संपूर्ण स्थविरावली सज्झाय, प्रा., पद्य, आदिः सुहम्मं अग्गिवेसाणं; अंतिः केवलनाणं च पंचमियं., पे.वि. गा.२७. पे.-६. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ, संपूर्ण), आदिः विणिय नगरी २ नाभि; अंतिः तुम्ह दियो वर मुक्ति., पे.वि. गा.११. पे.७.२४ जिन कलश, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-७आ, संपूर्ण), आदिः कलस निसुणो २ रिसह; अंति: धन्ना जेहिं दीट्ठोसि., पे.वि. गा.१७. पे..८. अजितशान्ति स्तवलघु-अञ्चलगच्छीय, कवि वीर गणि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-८अ, संपूर्ण), आदि: गब्भअवयार सोहम्मसुर; अंतिः सुह सयल सम्पज्जए., पे.वि. गा.८; मूल-गा.८. पे..९. अजितशान्ति स्तवबृहत-अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८अ-९अ, संपूर्ण), आदि: सकलसुखनिवहदानाय; अंतिः सङ्घस्य मुदं., पे.वि. श्लो.१७. १०९२९. बारभावना स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. रानेरबंदिर, पठ.- श्राविका कीकीबाई, प्र.वि. ढाल-१४, (२६४११, ११-१२४३८-४०). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः विमल कुल कमलना हंस; अंतिः णो मुनिवर ध्यायवो रे. १०९३०. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- मु. रत्नविजय, प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, (२५.५४१०.५, १५-१६x४६-४८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो. १०९३३. सत्तरिसयठाणा, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. पडधरी, प्र.वि. गा.३६०, (२६x११, १५४५९). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो सिद्धिठाणे. १०९३४. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. ८१२, (२६.५४१०.५, १३४४५ ४७). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 1. १९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९३५.” भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०४., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ७४३७-३९). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. १०९३६." श्रावकदिनकृत्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना.,प्र.वि. गा.३४०, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ९x४१ ४६). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. १०९३७." सङ्ग्रहणीसूत्र व प्रतरनाम, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १३, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ११४४६). पे.-१.बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ-१३आ), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंति: जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.२८०. पे.-२. प्रतरनाम, प्रा., गद्य, (पृ. १३आ-१३आ), आदिः उडुप्रतर चन्द्रप्रतर; अंतिः प्रतर० नरकप्रतराणी. १०९४०. माधवानलकामकुन्दला चौपाई, संपूर्ण, वि. १७२४, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. अकबराबाद, ले.- गणि वैराग्यसागर, पठ.- मु. क्रीयासागर, प्र.वि. गा.५६८, (२५४११, १७४४३-४५). माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., पद्य, वि. १६१६, आदिः देवि सरसति देवि; अंतिः सुख पामइ नरनारि. १०९४१.” प्रतिक्रमणसूत्र, पौषधपारणसूत्र, स्तवन व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ७, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६.५४११, ९-११४२५-३०). पे.१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. १अ-११आ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः-, पे.वि. कल्लाणकंदं तक की विधि मिल रही है. पे..२. प्रभातिमङ्गल स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-१२आ, संपूर्ण), आदिः गोयम सोहम जम्बू पभवो; अंतिः तइयं हवइ ___ मंगलं., पे.वि. गा.१५. पे.३. गुरु स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमन्तं समतावन्तं; अंति: जयप्रदो नित्यं., पे.वि. श्लो.५. पे.-४. पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, संबद्ध, प्रा.,गुज., गद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः सागरचन्दो कामो; ___ अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्., पे.वि. प्रारंभ में पौषधउच्चारण सूत्र अपूर्ण है. पे.५. शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १३अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः श्रीशत्रुञ्जमण्डण; ___अंतिः नन्नसूरि तुसइ सेवता., पे.वि. गा.४. पे.-६. नेमिजिन स्तवन, सं., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः निजगुरुक्रमपङ्कजयामल; अंतिः सौ जिन __ शुभदायकः., पे.वि. श्लो.५. पे.-७. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-१४आ, संपूर्ण), आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंतिः समत्तं मए गहिअं., पे.वि. गा.१४. १०९४२. मृगावती रास, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, प्र.वि. गा.४१७, (२६४१०.५, १३४४० ४४). मृगावती रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः सिद्धारथ नरपति कुलिं; अंतिः भरू पुण्य तणा घडा. १०९४३. स्तवनचौवीसी व सुमतिजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. धनोधबिंदिर, पठ.- श्रा. हरचन्द, (२५४११.५, १३-१४४२६-३८). पे..१. स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदिः प्रथम जिणेसर पूजवा; अंतिः सिद्धि निदान जी.,पे.वि. २४ स्तवन. For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १९७ पे. २. सुमतिजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः सुमति जिणेसर साम्भलि; अंतिः तो जिनविजय गुणगाय.. पे.वि. गा. ५. १०९४४. नवपद पूजा, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- मु. लालचन्दजी, ( २६ ११, १२४३४ 39). www.kobatirth.org: नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. सं., मागु., पद्य, आदिः उपन्नसन्नाणमहोमयाणं; अंतिः कोई नये न अधूरी रे.. १०९४५. दोढसो कल्याणक स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, ले. मु. ज्ञान, पठ. श्राविका प्रामकोरबाई, प्र. वि. " दाल-१२ (२६४११, १०४२८-३०). " . मी एकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक उपा. यशोविजयजी गणि मागु पद्य वि. १७३२, आदि धुरि प्रणमुं जिन अंति: जसविजय जय श्रीलही, , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०९४६." दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना. ले. स्थल. पत्तननगर, ले. मु. कुशलेन्दु, पठ. - मु. सौम्यसागर (गुरु गणि दयाचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. १०२, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. टबार्थ गा. १०० तक लिखा है. (२६५११, ५४४७-४८). " दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: नत्वा श्रीवृषभं; अंतिः विशोध्यं वरै. दृष्टान्तशतक-टवार्थ मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: नमस्कार करीने सदैव अंति: १०९४७. जीवविचार सह टवार्थ व नारकीने अवधिज्ञानादि विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ पे २ जैदेना. (२६४११. ४X३९-४१). पे.- १. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - ७आ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण : अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ मागु, गद्य, आदि: भुवन तीने त्रिभुवनई अंतिः समुद्र ते थकी, पे. वि. मूल-गा. ५१. पे.-२. जैन सामान्यकृति*, प्रा. मागु., सं., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः #; अंतिः #., पे.वि. अवधिज्ञान विचार, नक्षत्रमंडल विचारादि सामान्यतः दिया गया है. १०९४८. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. ३ भाष्य, गा. १५२, ( २६ ११.५, ९×३७-३९). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबा... १०९४९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. २४ स्तवन, (२५.५११, १२X३०-३४). स्तवनचीवीसी, गणि देवचन्द्र मागु, पद्य वि. १८वी आदि ऋषभ जिणिन्दसु: अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी. १०९५०. इन्द्रियशतक, वैराग्यशतक व देशनाशतक सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना. प्र. वि. पंचपाठ, ( २४.५x११, ११४३७-४१). पे. १. पे नाम इन्द्रियपराजयशतक सह टवार्थ पृ. १४-६अ गा.८८. इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक- टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: तेहिज सूर तेहिज: अंतिः रसायण सेवी नित्य, पे. वि. मूल-गा. १००. पे. २. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ६अ - ११आ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदि संसारंमि असारे नत्थि: अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. " वैराग्यशतक- टबार्थ, मागु गद्य, आदि: संसार असारमाहि नथी अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. पं. वि. मुलगा. १०४ ; पे - ३. पे. नाम. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. ११आ - १५आ आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं: अंतिः सिवं जन्ति. आदिनाथदेशनोद्धार-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः संसारमाहि नथी सुख; अंतिः शिव मोक्षे पहुचइ., पे.वि. मूल For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०९५२.” सुक्तावली, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१(१४)=२३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १४ १७४५१-६०). सूक्तावली, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सव्व कला धम्मो कला; अंतिः तिय पञ्च व सत्तवारा. १०९५३. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १५४८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले.- पं. राजतिलकजी गणि, पठ.- श्राविका मणकाई,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१५२, (२६४११, ११४३९-४३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. १०९५४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर,प्र.वि. ग्रं. ८९०, (२५४१०.५, १२४३३). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं. १०९५५. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३४., (२६.५४११.५, ११४३२-३५). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भमम्. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अनन्तज्ञान कलित; अंतिः विजया हू प्रतनुधिषण. १०९५६." रत्नाकरपचीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२५., (२२.५४११, ४४२५-३१). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रेयः कहीई मोक्षरुप; अंतिः#. १०९५७.” कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १४-१५४३८-४१). कयवन्ना चौपाई, मु. विजयशेखर, मागु., पद्य, वि. १६८१, आदिः आदीसर सुखकरण शान्ति; अंतिः दानने कोन तोले रे. १०९५८. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, (२६४११, १४-१५४४९-५२). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. १०९५९. नयोपदेश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१४५, (२५.५४११, १३४३८-३९). नयोपदेश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रं धाम हृदि; अंतिः यशोविजय० आख्यातवान्. १०९६०. पार्श्वजिन कल्याणक व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १०x२३). पे.१. पार्श्वजिन च्यवनकल्याणक स्तवन, मु. कपूरसागर, मागु., पद्य, (पृ. १अ-११अ), आदिः सकल मनोरथ पूरवा; अंतिः लाल पामे परमसुखकन्द., पे.वि. ढाल-१५. पे.२.पे. नाम. दिशासूचक श्लोक., पृ. ११आ-११आ जैन श्लोक *, सं., पद्य, आदिः#; अंति: #. १०९६१. सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२५.५४११, ४४३५-३९). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंति: लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार त्रीलोक; अंतिः#. १०९६२. प्रीयमेलक चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., पठ.- ऋ. माण्डण, प्र.वि. ढाल-११, (२६४१०.५, १३४३५ ३८). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति: पुण्ये अधिकुं प्रमोद. १०९६३. शाश्वतजिनप्रासादजिनपडिमा स्तवन, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, ले.- पं. धर्मचन्द्र For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १९९ गणि, पठ.- श्राविका राजाबाई, प्र.वि. ढाल-७, गा.८५, (२५४११.५, १०x२९-३४). शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मागु., पद्य, वि. १७१४, आदिः वीर जिणेसर पाय नमि; अंतिः सुख सम्पति घणी. १०९६४. साधुवन्दना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. गा.२४६, (२५.५४११, ११४३८-४०). साधुवन्दना चौपाई-चौवीसजिन, ऋ. कुंवरजी, मागु., पद्य, वि. १६२४, आदिः त्रिभुवनमाहि तिलक; अंतिः वेगी एणी परि पाइयइ. १०९६५. एडकाध्ययनसूत्र सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., (२६४११, ११४३६-३७). एडकाध्ययनसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः जहा एसं सुमद्दिस्स; अंतिः सेवई सुणि तिबेमि. एडकाध्ययनसूत्र-अनुवाद, मागु., गद्य, आदि: जथा को एक उद्देसी; अंतिः पण्डित भावसे लीइ. १०९६६. संवेगरस चन्द्रावली, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. अमीविजय (गुरु पं. वर्द्धमानविजय), प्र.वि. गा.४९, (२४.५४११, १२-१३४३२-३७). संवेगरस चन्द्रावली, लीबउ, मागु., पद्य, आदिः सकल सुरिन्द नमइं; अंतिः हीयइजइ थापस्यु जी रे. १०९६७. पर्यन्ताराधना सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पठ.- पं. जीतविजय, प्र.वि. मूल-गा.७०., (२६४११.५, ४४२६-२७). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-अवचूरि, गणि विनयराज, सं., गद्य, आदिः कश्चिद् गुरुर्भणति; अंतिः ते शाश्वतं सौख्यम्. १०९६८. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व भक्तामर स्तोत्र का शेषकाव्य, संपूर्ण, वि. १६९८, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. हंसतटबिंदर, ले.- मु. लालचन्द, (२२.५४११, १८४४४-४६). पे.-१.पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, पृ. १अ-८अ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अहं तं प्रथमं जिन; अंतिः माङ्गलिक० जाणिवू., पे.वि. मूल श्लो.४४. पे..२. भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः गम्भीरताररवपुरिदिग; अंतिः परिणतगुणैः प्रयोज्या., पे.वि. श्लो.४. १०९६९." स्तवनवीसी, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७-१(२)=६, जैदेना., प्र.वि. २० स्तवन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. स्तवन-२ की गा.३ से स्तवन-६ तक नहीं है., (२६४११, १२४२८-३८). विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पुखलवई विजये जयो रे; अंतिः वाचक जश इम बोले रे. १०९७०. गजसुकमाल रास व कयवन्ना सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२४.५४११, १५४४१-४४). पे.-१. गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः अविचल सम्पदा थाइ., पे.वि. गा.८६. पे.२. कयवन्ना सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., पद्य, वि. १६८०, (पृ. ५अ-६आ), आदिः आदि जिनवर ध्याउं; अंतिः सेवी लालविजय० सीधूं., पे.वि. गा.२७. १०९७१. बार भावना, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१३. पू.वि. ढाल १३, (२६४११.५, १३४४०-४२). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. १०९७२.” पञ्चसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ५ सूत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १३४३३ ३४). For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पंचसूत्र, आ. चिरन्तनाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: णमो वीयरागाणं; अंतिः निस्सेयस साहगति. १०९७३. नवतत्त्व सह टीका, निगोद विचारगाथा सह बालावबोध व जीव के ५६३ भेद, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, प्र. ७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, ले.- मु. कपूरसागर (गुरु मु. प्रेमसागर, अञ्चलगच्छ), प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११.५, ३ ७४२७-२९). पे.१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १आ-६आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति., पे.वि. मूल गा.३१. पे..२.पे. नाम. निगोदविचार सह बालावबोध, पृ. ६-७अ सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदि: लोए असङ्खजोयण माणे; अंतिः जा तहत्ति जिणवुत्तं. सूक्ष्मनिगोद विचार-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए चउदराज प्रमाण लोक; अंतिः सम्यक्त्व होइ सही., पे.वि. मूल-गा.३. पे..३. ५६३ जीव भेद विचार, मागु., गद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः पृथ्वीकाय १ अपकाय २; अंतिः दुक्कडं जाणिवा सही. १०९७४." अष्टप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिमध्ये, ले.- मु. भाग्य, प्र.वि. ढाल-९, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४१२, ११४३३-३६). ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १८२१, आदिः अजर अमर निकलङ्क जे; अंतिः मोक्षं हि वीराः. १०९७५. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. २४स्तवन, (२६x११.५, ११४३१-३४). स्तवनचौवीसी, मु. कान्तिविजय, मागु., पद्य, आदिः आज अधिक भावे करी; अंतिः वली वली जी रे जी. १०९७६. अजितशान्ति स्तव सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- गणि देवसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.१७., (२६४११.५, १२४२८-३०). अजितशान्ति स्तवबृहत्-अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदिः सकलसुखनिवहदानाय; अंतिः सङ्घस्य __ मुदं. अजितशान्ति स्तव-बृहत् की अवचूरि, सं., गद्य, आदिः अहं जिनं श्रीअजितनाथ; अंतिः भाजनं स्थानमित्यर्थः. १०९७७. स्तुतिचौवीसी, स्तुति सङ्ग्रह व प्रत्यङ्गिर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ९, जैदेना., ले.स्थल. तरुणीपूर, ले.- मु. ज्ञानचन्द्र, (२६x११.५, १२४३२-३३). पे.-१. स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, (पृ. १अ-९अ), आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा., पे.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६. पे.२. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. ___ श्लो.४. पे.-३. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०अ), आदिः आनन्दानम्रकम्रत्रिदश; अंतिः विघ्नमर्दीकपर्दी., पे.वि. श्लो.४. पे.-४. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०अ), आदिः समुद्रभुपाल कुल; अंतिः देवी जगतः किं लम्बा., पे.वि. ___श्लो.४. पे.५. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः नै दें कि धपमप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे.६. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करो ते अम्बा देवीए., पे.वि. गा.४. पे.-७. पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २०१ पे.८. सीमन्धरजिन स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ११-११आ), आदिः जोरज्यं पविहित्तु; अंति: मे पच्चं गिरा देवया., पे.वि. गा.४. पे.-९. प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः आरूढा सिंहमुद्यद्विम; अंतिः सद्गुरूक्तोपदेशात्., पे.वि. श्लो.१०. १०९७८. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पं. निहालचन्द, (२६४११.५, १२४३३). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. १०९७९. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. २१ स्तवन, (२६४११.५, ९४३३-३५). स्तवनवीसी-अतीत, मु. देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः जिणन्दा तारा नामथी; अंतिः रमज्यो परणति चितनी. १०९८०. पञ्चमीदेववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२६४१२, ११४२९-३४). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १०९८१. नवपद वचनिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२६४१२, १७-२०४४६-५०). नवपद वचनिका, मागु., गद्य, आदिः ॐ ह्री नमो अरि०; अंतिः पद आराधतां केवल लहे. १०९८२." बन्धोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. खंभातबिंदरे, प्र.वि. गा.२१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ३४३०-३२). बन्धोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, प्रा., पद्य, आदिः अपमत्तं तासत्तट्ठ; अंतिः इग सतता० नव अजोगी. बन्धोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः कर्म आठ छे ते एक; अंतिः छेहले भागे नव. १०९८३. लोकनाली सह बालावबोध व सिद्धाचल २२ नाम, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.- मु. मोतीसागर (गुरु मु. कपूरसागर, अञ्चलगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२४.५४१२, १३-१५४३४-३५). पे.१.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह बालावबोध, पृ. १अ-११अ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अनन्तज्ञान कलित; अंतिः वीषे प्रवर्त्तवुजी., पे.वि. मूल-गा.३६. पे.२.२२ शत्रुञ्जयतीर्थ नाम, सं., गद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः शत्रुजयतीर्थाय नमः; अंतिः तीर्थाय नमो नमः. १०९८४. अवन्तिसुकमाल सज्झाय व पुन्य सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.- पं. जगरुप, पठ. __श्राविका नवीवहु, (२६४१२, ११४२८-३१). पे..१. अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, (पृ. १अ-८आ), आदिः मुनिवर आर्य सुहस्ती; अंतिः भद्राघर आवी इम भाखे., पे.वि. ढाल-१४. पे.२. औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः पारकी होड मत कर रे; अंतिः पुण्यथी रोटी न दोटी., पे.वि. गा.३. १०९८५. उपदेश ग्रन्थ व स्तुति आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६८७, श्रेष्ठ, पृ. ४७-६(१ से ६)=४१, पे. ५, जैदेना., ले.- गणि विद्याविजय, दशा वि. विवर्ण-खामीयुक्त पदार्थ से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-आरम्भ के कुछ पत्र, (२५.५४११, १७X४२-४३). पे.१. उपदेश प्रबन्ध, सं.,प्रा., गद्य, (पृ. -७आ-४१अ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: मरणादानन्दमाला भवतु., पे.वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.२. पार्श्वजिन स्तुति-सप्तविभक्तिगर्भित, सं., पद्य, (पृ. ४१अ-४१अ, संपूर्ण), आदिः पाश्वौँ धरणेन्द्र; अंतिः पार्श्वसौख्यं कुरु., पे.वि. श्लो.१. पे.-३. प्रासङ्गिक श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ४१अ-४१आ, संपूर्ण), आदिः उच्चैः कल्याणवाही; अंतिः प्रकृतिर्न मुञ्चति., पे.वि. श्लो... For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.४. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदिः मुनीन्द्रहृदयानन्द; अंतिः योगकृतस्त्वया., पे.वि. श्लो.४. पे.५. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७अ, संपूर्ण), आदि: जयत्रिभुवनाधीशः युगा; अंतिः लोके त्वमेव शरणं मम., पे.वि. श्लो.३. १०९८६.” उपदेशमाला-कथासङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४६-२(१८,१११)=१४४, गुजराती, प्र.वि. अक्षर-असुंदर अवाच्य, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, ९-१०४३४-३७). उपदेशमाला-कथा, मागु., गद्य, आदिः आ जम्बूद्वीप नामा; अंति:१०९८७.” आचाराङ्गसूत्र सह अवचूरि- प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. टबार्थ पत्र ३ तक ही है., पंचपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७.५४११, ११४४०-४२). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सुयं० भ० श्रीसुधर्म; अंति:१०९८८. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२७.५४११, ११४३७ ३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः लक्ष्मी स्वयंवर वरइ. १०९८९. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, (२७४१०.५, ११४४२-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. १०९९०." सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३१२., पंचपाठ, (२७.५४१०.५, ११४३५-३९). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः अरिहन्त कही जे; अंतिः स्थिति० उपयोग जाणवो. १०९९१. आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२७, श्रेष्ठ, पृ. ६४+१(६०)=६५, जैदेना., पठ.- ऋ. हाना(अञ्चलगच्छ), प्र.वि. २५अध्ययन, ग्रं. २६००, (२८x११, १३-१४४५१-५३). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चन्ति त्तिबेमि. १०९९३. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १५२९, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले.स्थल. डंडुपूर, पठ.- मु. उदयलक्ष्मी (गुरु आ. पुण्यरत्नसूरि), लिखवा.- गणि नन्दरत्न(पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००, (२७.५४११, १०४३३-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो. १०९९४.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टिप्पणक व प्रतरयन्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२९x१०.५, १०-११४३५-३९). पे.१.पे. नाम. बृहत्सङ्ग्रहणी सह टिप्पण, पृ. १अ-१५अ बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः नन्दओजाजिणमयंलोए. बृहत्सङ्ग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-गा.२८०. पे.२. बृहत्सङ्ग्रहणी-यन्त्रसङ्ग्रह* , मागु., यंत्र, (पृ. १५आ-१७अ), आदिः#; अंतिः#. १०९९५. सूर्यप्रज्ञाप्तिसूत्र, पूर्ण, वि. १५६८, जीर्ण, पृ. ५८-१(७)=५७, जैदेना., लिखवा.- श्रा. जुठा सङ्घपति, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. २० प्राभृत, ग्रं. २३७७, (३०x१०.५, १३४४८-५१). सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरि० तेणं०; अंतिः सोक्खुप्पाए सदापाए. For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २०३ १०९९६. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६८, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., लिखवा.- श्रा. सोनपाल, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. २० प्राभृत, ग्रं. १८५४, (३०.५४११, १५४५१). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदि: नमो अरि० जयति; अंतिः अविणीएसु दायव्वं. १०९९७. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६८, मध्यम, पृ. ११५, जैदेना., ले.- गणि गुणसार, प्र.वि. ७ वक्षस्कार, ग्रं. ४४५४, (३०.५४११, १३४४३-५०).. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. १०९९८. जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६९, मध्यम, पृ. १०७, जैदेना., प्र.वि. १० प्रतिपत्ति, (३०x१०.५, १३४५८-६३). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. १०९९९. पण्णवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १५६९, श्रेष्ठ, पृ. १५७, जैदेना., लिखवा.- श्रा. जुठा सङ्घपति,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ३६ पद., सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, प्र.ले.श्लो. (५३२) तिलात् रक्षे जला रक्षेत्, (३०.५४१०.५, १३४६४-६९). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ११०००. उववाईसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३१२५, (३०.५४११.५, १५४६४-६७). औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. ११००१. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति, भाष्य व लघुटीका (प्रथम खण्ड), प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५८ १(१०८)+१(४०)=१५८, जैदेना., (३०.५४११, १५४४५-५१). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, (प्रतिपूर्ण), आदिः णमो अरहंताणं; अंति:आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति# , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२९६, (प्रतिपूर्ण), आदिः देवः श्रीनाभि; अंति:आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (प्रतिपूर्ण), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिःआवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदिः अवरविदेहे गामस्स; अंति: आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका# , आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः११००२." कल्पसूत्र सह अवचूरि व टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६९१, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले.- मु. दयारत्न (गुरु गणि हर्षकुशल, खरतरगच्छ), गच्छा.- आ. जिनचन्द्रसूरि (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पंचपाठ, (३०.५४११, ९४३३-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः तेणं० ते इति प्राकृत; अंतिः पारतन्त्र्यमभिहितम्. कल्पसूत्र-टिप्पण", सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ११००३." पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४४, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-८, ग्रं. ६५००, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (३०.५४११.५, १४-१५४५२-५४). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः सहस्राण्यनुष्टुपां. ११००४. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३७००, (३०.५४११.५, १५४५८). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः त्रीणि सप्तशतानि च. ११००७.' ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन, ग्रं. ५४६४, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (३१x११.५, १३४४६-४९). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ११००९. पञ्चमी व एकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२९.५४११, ११४४०-४३). पे.१. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय , मागु., पद्य, वि. १७९३, (पृ. १अ-४अ), आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०४ " www.kobatirth.org: सकल भवि मङ्गल करे., पे.वि. ढाल -६. पे. २. मौनएकादशीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु पद्य वि. १७९५ (प्र. ४अ-६अ), आदि: जगपति नायक नेमिः अंतिः जिनविजय जय सिरी वरी पे.वि. गा.४२. ११०१०. धनदत- धनदेव कथा व देवराज- वत्सराज प्रबन्ध संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १२ पे २ जैदेना. (३०x११.५. · " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४४४८-५१). पे.- १. धनदत्त धनदेव रास, मु. मलयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १५१९, (पृ. १अ - ८अ ), आदि: सरसति समिणि मनि समरे; अंतिः पसाइ ते सुख वहइ., पं.वि. गा.२४२. पे. २. देवराजवत्सराज प्रबन्ध, मु. मलयचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १५१९, (पृ. ८अ - १२आ), आदिः अम्बिकि समिणि पणमी; अंतिः सङ्घनइ वञ्छित सिद्धि, पे. वि. गा. १२८. ११०११. शलभद्र रास व जैनगाथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २ जैदेना. (३०x११, १५४५१-५३). पे. १. शालिभद्र रास, मु. साधुहंस मागु पद्य वि. १४५५ (पृ. १.अ-७आ), आदि देवि सरसति २ सकल अंतिः भगति हैयडइ धरिउ, पे.वि. गा. २२०. पे. २. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः#; अंतिः#. श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. (३०.५०११, १७०४६५-६६). .. " ११०१२. अन्तगडदशाङ्गसूत्र वृत्ति, संपूर्ण वि. १८वी अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र- टीका आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य आदि अथान्तकृतदशासु किमपि अंतिः ननु विधीयतां सर्वथा. ११०१३. विपाकसूत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., (३०.५X११, १५×५०-५१). विपाकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य आदि नत्वा श्रीवर्द्धमाना अंतिः नवाप्यनुगन्तव्यानीति ११०१४. बृहत्कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - ६, (३०x११, १५×५४-५५). - बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि नो कम्पइ निग्गंथाण: अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि ११०१७. समवायाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १८४१ श्रेष्ठ, पृ. ९३ जैदेना., ले. स्थल. सुरतबंदिरे, ले. श्रा. पदमलजी, प्र. वि. मूल- १०३ अध्ययन ग्रं. १६६७ टीका ग्रं. ४३७७. त्रिपाठ, (२७.५४१२, ४-८४४९). गद्य, आदि: सुर्य मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेगि समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. समवायाङ्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंतिः पादौनाष्टशती तथा ११०१८. उत्तराध्ययसूत्र सह लघुवृत्ति व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७०५, जीर्ण, पृ. १४५-५१(१३ से १८,२२ से ३०,१०९ से १४४) =९४, देना., ले. पं. कुंअरपाल, प्र. वि. मूल - ३६ अध्ययन. मू+टी + बाला. ग्रं. ग्रं. ९००० (२८x११, १६-१७४४८५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र- लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भिक्षो विनयं अंतिः इष्टान् इति ब्रवीमि. उत्तराध्ययनसूत्र- लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु, गद्य, आदि भिक्षु महात्मान: अंति ११०२०. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले. स्थल. दमणबंदरे, प्र. वि. खण्ड- ४, ( २६.५x१२, १३४३६ 319). " श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंति: लहसे ज्ञान विशाला जी. ११०२२. समकित सडसठ बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. ढाल १२ गा.६८, (२५.५४१३, १२३२-३३). For Private And Personal Use Only सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंतिः वाचक जस इम बोले रे. Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११०२३. ज्ञानावरणीकर्मभेद सह बालावबोध व आध्यात्मिक पद, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (२७४१३, १३४३०-३२). पे.-१. पे. नाम. ज्ञानावरणीयकर्मभेद गाथा सह बालावबोध, पृ. १आ-१०आ ज्ञानावरणीकर्मभेद गाथा , प्रा., पद्य, आदिः मइसुअओहीमणकेवलाण; अंतिः चक्खुस्स तं तयावरणं. ज्ञानावरणीकर्मभेद गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः मइ के० प्रथममतिज्ञान; अंतिः पांच भेद कह्या., पे.वि. मूल-गा.५. पे.२. आध्यात्मिक पद, प्राहिं., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदि: पवन को करे तोल; अंतिः वात जस मेरा गुरु है., पे.वि. गा.४. ११०२४. मोहनइग्यारस व सिद्धाचल स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., (२७.५४१३, १४४३४-४०). पे.-१. मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३२, (पृ. १अ-४अ), आदिः ___ धुरि प्रणमुं जिन; अंतिः जसविजय जयसिरि लही., पे.वि. ढाल-१२. पे.२. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः सिद्धाचल सिद्ध; अंतिः वचन रस गावे रे., पे.वि. गा.११. पे.-३. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः विमलाचल विमला; अंतिः विर विमल गीरी साचो., पे.वि. गा.७. ११०२५. पुन्यप्रकाश स्तवन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-६(१ से ६)=८, जैदेना., ले.स्थल. मुमाइबंदरे, ले.- पं. अमृतसागर, पठ.- श्राविका उमेदकौर, प्र.वि. ढाल-८, (२७४१२.५, ११-१२४२७-२९). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, (संपूर्ण), आदिः सकल सिद्धिदायक; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. ११०२६. जम्बूद्विपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, ले.- श्रा. सा. जवजी मोतीचन्द, लिखवा.- श्राविका उमेदकुंअर, प्र.वि. मूल-गा.३०. मू+ट.१५१, (२६४१२.५, ४४३०-३२). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्न; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः परोपकरने अर्थ जाणवा. ११०२७. बार भावना वेली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- पं. अमृतसागर, पठ.- श्राविका उमेदकौर, प्र.वि. ढाल-१३, गा.१२८, (२७४१२.५, ११४२९-३०). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. ११०२८. पिस्तालीस आगम पूजा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना., (२६.५४१२, १०-११४३२-४०). ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८१, आदि:-; अंतिः सङ्घने तिलक कराओ ११०२९. पञ्चमी स्तवन व महावीरस्वामी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९०२, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मुमाइ, ले.- पं. अमृतसागर, पठ.- श्राविका उमेदकौर, (२७४१२.५, ११४३०-३१). पे.१. ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७९३, (पृ. १अ-६अ), आदिः सुत सिद्धारथ भूपनो; अंतिः सकल भवि मङ्गल करे., पे.वि. ढाल-६. पे.२. महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज , मागु., पद्य, वि. १७वी, (पृ. ६अ-१२अ), आदिः सरसति भगवति दिओ मति; अंतिः कहे धन मुझ एह गुरू., पे.वि. ढाल-१२, गा.१००. ११०३०. मौनएकादशी स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- पं. अमृतसागर, पठ.- श्राविका उमेदकौर, प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २०६ www.kobatirth.org: ढाल-१२, (२७.५X१२.५, ११-१२X३२-३३). मौनएकादशीपर्व स्तवन- १५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३२, आदिः धुरि प्रणमुं जिन; अंति: जसविजय जयसिरि लही. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०३१. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९१९ श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, प्र. वि. ढाल १२ गा. ८९ (२६.५४१२.५, १०४३०-३२)महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मागु., पद्य, वि. १७वी, आदि: सरसति भगवति दिओ मति; अंतिः कहे धन मुझ एह गुरू. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११०३२. वीरजिन स्तवन संपूर्ण वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, ले. स्थल सुरत, लेॠ लवजी, प्र. वि. ढाल ६, (२७१२.५, १२x२८-२९). महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सुखदायक चोविसमो; अंतिः जसविजय जय सिरिनमो. " ११०३३. कर्मग्रन्थ १-६, संपूर्ण वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. २२. पं. ६, जैदेना. ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. गणि मुक्तिसौभाग्य, पठदोलतिचन्द्र (गुरु गण मुक्तिसौभाग्य), प्र.ले.पु. मध्यम, (३०x१३, ११४३६-३९). , " पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १अ ४अ), आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं, पे. वि. गा. ६०. पे.-२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ -६अ ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. पे.वि. गा.३४. " पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थर्य सोउं पे.वि. गा.२५. . पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-१२अ ), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ८६. पे.-५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ - १७आ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, पे.वि. गा.१००. पे.:-६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १७आ-२२आ), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा. ९३. ११०३४.” प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले. स्थल. सूरतिबिंदरे, ले.- पं. रायचन्द लिखवा श्रा. दुर्लभदास शेठ, ले. पं. श्रीकणे, प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल-८ परिच्छेद, ग्रं. १७०० टीका - ग्रं. ५०९०. मू.+टी.६७९०, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( ३१x१३, १०x६१-६६). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार स्याद्वादरत्नाकर टीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि सं., गद्य, आदि: सिद्धये वर्द्धमान अंतिः प्रस० प्रजल्पता. ; " ११०३५. प्रतिमाशतक सह स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. १८३८, जीर्ण, पृ. ६७-२६ (१ से २६ ) - ४१, जैदेना. ले. स्थल. सूरतबिंदर, लिखवा. - श्रा. सा. दलमजी, प्र. वि. मूल - श्लो. १०४. त्रिपाठ, (३०x१२.५, २०-२२x६७-६९). प्रतिमाशतक उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: अंतिः उल्लसद्व्यक्तयुक्ति. प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः जैनो धर्मश्च मङ्गलम्. For Private And Personal Use Only ११०३६.” चौवीसदण्डक स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले. स्थल मुमाइ, पठ- मु. राजविजय ( गुरु पं. दीपविजय), ले. पं. हंसविजय ( तपागछ), प्र. वि. मूल-गा. ४३, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९.५४१२५, १५-१६४३४-३९). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ध्यात्वा शङ्खेश्वर अंतिः अ० आत्माने हितकारी. ११०३७.” जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. मु. सुग्यानविजय, प्र. वि. मूल-गा. ३०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२.५, ३४३३-३६). " लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिय जिणं सव्वन्नुं अंतिः रईया हरिमद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः नमिअ कहेता नमस्कार; अंतिः हरिभद्रसूरिइं रची छे. ११०३८. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार सह टीका, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. हिस्सा- श्लो. २६, त्रिपाठ, " (२८.५४१२ २-३४३६-४३) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः श्रीवीरजिननेत्रयोः. सकलार्हत् स्तोत्र- टीका, मु. गुणविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य गुरु पादाब्ज; अंतिः तत्प्रमाणप्रसिद्धम्. ११०३९. स्तवन, गहुंली आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ८, जैदेना., ले. स्थल मुमाइ, ले. पं. अमृतसागर, पठ श्राविका उमेदकौर (२७.५१२, ११-१२४२८ ) . २०७ पे:- १. महावीरजिन गहुंली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ ), आदिः श्रीजिनवीर समोसर्या ; अंतिः पामीजे देवविमान, पे. वि. गा. ९. , · ; पे. २. जम्बूस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य मागु पद्य (पृ. २अ-२आ), आदि स्वामी सुधर्मा सेवीइ अंतिः ऋद्धिसौभाग्य सुखकार., पे.वि.गा. ९. " ; पे. ३. गौतमस्वामी गहुंली, मु. दीपविजय, मागु, पद्य, (पृ. २आ-३आ), आदि आज्यो रे बाई आज्यो अंतिः मङ्गल पद पावे रे., पे.वि. गा.९. पे.-४. महावीरजिन स्तवन, मु. माणेक मागु., पद्य, (पृ. ३आ-३आ), आदि: मोरा स्वामी मुझनें; अंतिः माणेक मुगति आपो रे, पे.वि. गा. ८. पे. ५. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. माणिक्य, मागु., पद्य, (पृ. ३आ - ४आ), आदि: विमलगिरि वन्दो रे; अंतिः माणिक्य अकरे., पे.वि. गा. ७. पे. ६. नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मागु, पद्य, (पृ. ४आ-५अ) आदि एतो वाहलो छे अंतिः कहे अमृत हुं वारी.. पे.वि. गा. ८.. पे. ७. महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु, पद्य, (पृ. ५अ-७अ), आदि: श्री अरिहन्त अनन्त अतिः ते नमे मुनि माल.. पे.वि. गा. ३१. : पे. ८. महावीरजिन पञ्चकल्याणक वधावा स्तवन, मु. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. ७अ ११आ), आदि: वन्दी जगजननी; अंतिः फल महाराज वाला., पे.वि. ढाल - ५. " ११०४० आतमराजा रास, संपूर्ण वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल, राधनपुर, पठ. पं. भाग्यविजय, प्र. वि. गा. १०१, (२८.५४१२.५, ११४२८-२९). आत्मराज रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५८८, आदि: सिरि सरसति सरसति; अंतिः तिहां भोगवई भोग. ११०४१ विचिपक्षगच्छ प्रतिक्रमण समाचारि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, (२९x१३, १०४३४ ' For Private And Personal Use Only ३७). " : पंचप्रतिक्रमणसूत्र अञ्चलगच्छीय संबद्ध, प्रा.सं. गुज. प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति नो पमाएयव्यं. ११०४२. अष्टकसङ्ग्रह सह टीका, संपूर्ण वि. १८९० श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना. ले. स्थल. गढबोरुनगरे, ले. यति पूर्णानन्द यति ( गुरु मु. ताराचन्दजी, चन्द्रगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. त्रिपाठ, पू. वि. मूल प्रतिलेखक के द्वारा अपूर्ण है. (अष्टक १६ श्लोक ३ तक ही है. ), ( २७४१४, २-३X३८-४०). " ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, (अपूर्ण), आदि ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन: अंतिः Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानसार-ज्ञानमञ्जरी टीका, गणि देवचन्द्र, सं., गद्य, वि. १७९६, (संपूर्ण), आदिः पार्श्वेशं जिनं नत्व; अंतिः जैनधर्मोस्तु मङ्गलम्. ११०४३. चइत्यप्रभृतिसमवसरण स्तव सह टीका, अपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१,६)=७, जैदेना., ले.स्थल. मुंबाईबंदर, ले.- मु. दोलतराज, प्र.वि. मूल-गा.४५., त्रिपाठ, पू.वि. प्रथम व बीच का पत्र नहीं है., (२६४१४, २-४४३६-४०). चैत्यप्रभृतिसमवसरण स्तव, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः रुवकमिय चेइयसमवसरणे. चैत्यप्रभृतिसमवसरण स्तव-टीका, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः जगतमित्यर्थः . ११०४४. जीवविचार रास, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.- ऋ. सुखराम, प्र.वि. गा.५०२, (२७४१४, १३७३७ ३८). जीवविचार रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि: सरस वचन द्यो शारदा; अंतिः दिनदिन उछव थाशेजी. ११०४५. जीवविचार स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. रामविजय,प्र.वि. ढाल-९, गा.७९, (२७X१३, १२४३०-३६). जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., पद्य, वि. १७१२, आदि: श्रीसरसती रे वरसती; अंतिः पभणे आनन्दकारी. ११०४६. जीवविचार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. मू. गाथा २८ अपूर्ण तक तथा टबार्थ गाथा १४ तक लिखा है., (२६४१३.५, ३४३२). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमान जीनवरनमुं; अंतिः११०४७. जम्बूपृच्छा, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- मु. सुबुद्धिविजय, प्र.वि. ढाल-१३, (२६४१४, १७४३३-३५). जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सकल पदारथ सर्वदा; अंतिः वीरजी मुनि सुखकारी. ११०४८. समयसार-आत्मख्याति टीकागत समयसार कलश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३५, श्रेष्ठ, पृ. १७७, जैदेना., ले. मु. प्रेम, प्र.वि. श्लो.२७८., (२९.५४१४, ११४३९-४२). समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश टीका, आ. अमृतचन्द्राचार्य, सं., पद्य, आदिः नमः समयसाराय; अंतिः मेवामृतचन्द्रसूरेः. समयसारनाटक कलश-बालावबोध, राज., गद्य, आदिः भावाय नमः भावशब्दै; अंतिः करिइ साचै शब्द राशि. ११०४९. स्तुतिचौवीसी व नन्दीश्वरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. दमण, लिखवा. श्राविका फुलकोरबाई, (२५.५४१३, ११४२९-३०). पे.१. स्तुतिचौवीसी, मु. दानविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः श्रीऋषभजिणेशर केशर; अंतिः मङ्गल करजो ___माय., पे.वि. २४ स्तुति जोडा. पे.२. नन्दीश्वरजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदि: नन्दिसर वर द्वीप; अंतिः देवि सानिध किजे., पे.वि. गा.४. ११०५०. नवाण्णुप्रकारी पूजा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११+कळश, (२५.५४१२.५, ११४२४-२६). ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८४, आदिः श्रीशङ्खसर पासजी; अंतिः आतम आप ठवायो रे. ११०५१. वीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, अपूर्ण, वि. १९३३, श्रेष्ठ, प्र. ७-१(१)=६, जैदेना., ले.- मु. देवचन्द, पठ.- श्राविका मणीबाई, प्र.वि. ढाल-११, गा.८५, पू.वि. गा.१ से १६ तक नहीं है., (२६.५४१३, ११४३५). महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. ज्ञानकुशल, मागु., पद्य, वि. १७३१, आदि:-; अंतिः वीर जिनवर जय करो. ११०५२. चन्दराजाकेवली रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९६, जैदेना., ले.स्थल. बुर्हानपुर, प्र.वि. अध्याय-९, प्र.ले.श्लो. For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २०९ (२३०) श्रेयसे भक्तान्नित्यं; (२३१) कल्याणमस्तु शिवमस्तु सदास्तु; (२३२) यावन्नंदतीयं धारा, (२६४१२.५, १७४४५ ४९). चन्द्रराजा रास, मु. विजयशेखर, मागु., पद्य, वि. १६९४, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः वडतइ रङ्गि री माई. ११०५३. भाष्यत्रय, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. भाष्य-३ की ४ गाथा तक है., (२५४१३, ११४३१-३२). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंति:११०५५. सूरसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. गा.५११; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८००, (२५.५४१२.५, १३४३२-३६). सुरसुन्दरी रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६४४, आदिः आदि धरमने करवा ए; अंतिः एम भणे आनंदपूरि. ११०५६.” पञ्चकल्याणक पूजा, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ९+१(७)=१०, जैदेना., ले.स्थल. मुमाइ, ले.- मु. रुपचन्द्र (गुरु धर्मचन्द), प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४१२.५, ११-१२४२९-३०). पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८८९, आदिः श्रीशद्धेश्वर साहिबो; अंतिः वञ्छीत दाय सुहायो रे. ११०५७. सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. खंभात, ले.- मु. हंसरत्न(आगमगच्छ), प्र.वि. मूल-श्लो.१५०., अशुद्ध पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२२.५४१२.५, ७४२३-२५). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः भवद्भिरद्भुतः. ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः आराधवो उजमणे करवो. ११०५८. गयसुकमालदेवकी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- ऋ. भाणजी, पठ.- गणि भाग्यविजय, प्र.वि. गा.८३, (२३४१२.५, १०-११४२५-२९). गजसुकुमाल रास मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., पद्य, आदिः देस सोरठ द्वारापुरी; अंतिः अविचल सम्पदा थाइ. ११०५९. सीमन्धर स्तवन, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-११, गा.१२५, (२३४१३, १३४३१-३५). सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः स्वामी सीमंधर विनती; अंतिः जसविजय बुध जयकरो.. ११०६०." वीसस्थानकपूजा विधि, अपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १०-३(६ से ७.९)=७, जैदेना., ले.स्थल. दमण, प्र.वि. ढाल-२०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४४१२.५, १४-१५४३५). २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, वि. १८४५, आदिः श्रीशद्धेश्वर पासजी; अंतिः पभणै सयल सङ्घ जयकरू. ११०६१. २४ दण्डकविचार व देवों का नाम, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., (२३४१२.५, ११४२७-२९). .२४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १अ-२०आ), आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः जीव अनन्तगुणाधिका पे.२. पे. नाम. देवाना नाम, पृ. २०आ-२०आ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मागु.,सं., गद्य, आदि: #; अंति: #. ११०६२. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२३४१२.५, ११४२६ २७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः११०६३. शालीभद्रधन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १७८०, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. लोद्राणीग्रामे, ले.- पं. ऋद्धिविजय (गुरु ___ गणि हर्षविजय), प्र.वि. ढाल-२९, (२१x१२, १२४२३-३४). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासणनायक समरीई; अंतिः मनवञ्छित फल For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लेहस्ये. ११०६४.” मदनकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७८०, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. रवनगर, ले.- पं. विशेषसागर (गुरु पं. लालसागर), प्र.वि. ढाल-२१, ग्रं.३६०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२१x१२, १३-१४४३२-३५). मदनकुमार रास-शीलव्रताधिकारे, मु. चतुरसागर, मागु., पद्य, वि. १७७२, आदिः नामें नवनिधी सम्पजे; अंतिः ऋद्धि सिद्धि थाय रे. ११०६५. चित्रसम्भूति रास व पद, अपूर्ण, वि. १८०६, श्रेष्ठ, पृ. २७-३(२४ से २६)=२४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जालणापुर, ले.- मु. वृद्धिचन्द (गुरु गणि दीपचन्द्र, अञ्चलगच्छ), पठ.- पं. विनयचन्द्र,प्र.ले.पु. मध्यम, (२३४१२, ११४३४-३७). पे.-१. चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७३१, (पृ. १अ-२७अ, अपूर्ण), आदिः प्रथम नमुं परमेसरु; अंतिः दीइं दोलति दीदारु रे., पे.वि. बीच के पत्र नहीं है. ढाल-३९. पे.२. औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसागर, प्राहिं., पद्य, (पृ. २७आ-२७आ, संपूर्ण), आदिः पण्डित कहिये सोहिजे; अंतिः कहत ज्ञानसागर यती., पे.वि. गा.५. ११०६६.” वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. उनाउआ, ले.- मु. आणन्दरत्न, पठ. श्रा. सामीदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१०३., संशोधित,प्र.ले.श्लो. (५२८) याद्रीसं पुस्तकं द्रीष्ट्वा , (२२४१२, ६x२५-३४). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जीओ सासयठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. ११०६७.” मेघमाला, पञ्चाङ्गज्ञान, गुरचार आदि ज्योतिष सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०-१(४)=९, पे. ७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (३४४११.५, १८४४१-४७). पे.-१. मेघमाला , मु. केवलिकीर्ति, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ, पूर्ण), आदिः तियसिन्दनरिन्दनयं; अंतिः चिन्तनीयो यशोथिभिः., पे.वि. अध्याय-१२, बीच का एक पत्र नहीं है. पे.२. पञ्चाङ्गविधि, मु. मेघराज, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण), आदिः गवरीनन्द आनन्द करि; अंतिः भान्ति करि काज., पे.वि. गा.५८. पे.-३.पे. नाम. विविध विषयक ज्योतिष फलकथन, पृ. ७अ-९आ, संपूर्ण ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंति:#. पे.-४. आसाढीपुनम विचार, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः आसाढी पूनमि दिने; अंतिः जायते तदा., पे.वि. ___ यह कृति बीचमें लिखि गई हैं. पे.५.१२ पुनम विचार, मागु., गद्य, (पृ. ८आ-९अ, संपूर्ण), आदिः चैत्री पूनिम निर्मली; अंतिः वेचणा बिमणा लाभ होइ. पे.-६.पे. नाम. सङ्क्रान्ति, ग्रहण व चन्द्रोदय विचार, पृ. ९अ-९आ, संपूर्ण ज्योतिष , सं.,मागु., पद्य, आदिः#; अंतिः#. पे.७. गुरुचार, शिवपार्वती, सं., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ-, अपूर्ण), आदिः मेषराशि गुरुश्चैव; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ११०६८. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध व प्रस्ताविक श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१, पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, १२४३७). पे.-१.पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-२१अ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भुवण कहेतां त्रणभुवन; अंतिः एतले लेशमात्र कह्यो.,पे.वि. मूल-गा.५१. For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ " पे. २. प्रस्ताविक श्लोकसङ्ग्रह, मागु. सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदि जीवअजीव कछु नवि जानत: अंतिः जो जाणन्ति पण्डिता, पे.वि. श्लो.४. ११०६९. दशवैकालिकसूत्र स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ११सज्झाय, (२६×१२, १२X३३-३४). दशवैकालिकसूत्र - राज्झाय, मु. वृद्धिविजय, संबद्ध, मागु, पद्य, आदि श्रीगुरूपदपंकज नमीजी अंतिः गायो सकल जगीसे रे.. i 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०७०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १९२०, जीर्ण, पृ. २२, जैदेना ले. स्थल, राजनगर, ले. ऋ. खेमचन्द (२६११.५. "" १०X२७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय संबद्ध प्रा. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं०: अंतिः जैनं जयति शासनं " ११०७१. अढारपापस्थानकवर्णन स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. १८ सज्झाय, ग्रं. २११, (२५X११.५, ११४३५-३६) १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलुं; अंतिः वाचकजस इम भाखेजी ११०७२. वीरजिन स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८७९, जीर्ण, पृ. २२, जैदेना., ले. स्थल. अजमेर, प्र. वि. मूल-गा. ४४ प्रत जीर्ण व यत्र-तत्र खंडित होने से पत्र अव्यवस्थित है. (२५४११.५ १२४३८-४० ). २८). महावीरजिन स्तवन- संयमश्रेणीगर्भित, पं. उत्तमविजय मागु., पद्य, वि. १७९९, आदि:-: अंतिःमहावीरजिन स्तवन- संयमश्रेणीगर्भित-स्वोपज्ञ टबार्थ, पं. उत्तमविजय, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. पद्य, आदि दुरिअरयसमीरं मोह अंतिः सया पायप्पणामो तुह " दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं. गद्य, आदि नत्वा वीरजिनेन्द्रं अंतिः तस्य उच्छेदन विनाशकः. ११०७३. ईलाचीपुत्र रास, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- मु. खुसालसागर, प्र. वि. ढाल - १६, ( २६ ११, १३४३५ ३६). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७१९ आदिः सकलसिद्धदायक सदा अंतिः ज्ञान दर्शन अजूआले. ११०७४. वीरजिन स्तवन सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १२वी श्रेष्ठ, पृ. २०-५ (१ से ४,१९) = १५, जैदेना (२६४११.५, १-३०२७ , २११ ११०७५. नेमनाथचोवीस चौक, हीरजी व आम्बिलतप सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., ले.- पं. 1 गङ्गविजय, पठ मोटाचन्द (२६४११, १५-१६४२८-३२). पे.-१. नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., पद्य, वि. १८३९, (पृ. १अ - ६अ ), आदिः एक दिवस वसै नेमकुंवर अंतिः अमृत गुण गाया. पे.वि. २४ चोक. ; पे. २. हीरजी सज्झाय, मु. भीम, मागु., पद्य, (पृ. ६अ - ७अ ), आदि: बे करजोडीजी वीनवुं अंतिः हो जो मङ्गल आणन्द, पे.वि. गा.२१. पे. ३. आयम्बिलतप राज्झाय उपा. विनयविजय मागु पद्य वि. १७३ (पृ. ७अ-७आ), आदि समरी श्रुतदेवी सारदा; अंतिः भाखे विनयविजय उवझाय., पे.वि. गा.११. ११०७७.” थावच्चा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. मांडल, ले.- मु. कल्याणचन्द्र (गुरु गणि दीपचन्द्र ), प्र. वि. खण्ड-२, ग्रं. ६५० टिप्पण युक्त विशेष पाठ बीच का एक पत्र (२५.५४११.५, १५४४३-४९). थावच्चामुनि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि मागु, पद्य वि. १६९१, आदि: नेमिनाथना पाय नमुं अंतिः प्रशिष्य समृद्धा " · . For Private And Personal Use Only ११०७८. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. स्थल. जालणापूर, ले. मु. विनयचन्द्र, Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २१२ www.kobatirth.org: प्र. वि. मूल-गा. ६४., (२५.५X१२, १६३७-४४). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध, मु. वृद्धिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः नत्वा वीरजिनं बालाव०; अंतिः हर्षपूरेण भावतः . ११०७९. आगमसारोद्धार बालावबोध व पुद्गलपरावर्त्त विचार, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. २, जैदेना., ( २६ ११.५, १६४३६-३७). पे. १. आगमसारोद्धार स्वोपज्ञ बालावबोध, गणि देवचन्द्र, मागु, गद्य, वि. १७७६ (पृ. १आ-३२अ ), आदि: तिहां प्रथम जीव; अंतिः ते समकीत जाणवो. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. पुद्गलपरावर्तन विचार, सं., मागु., गद्य, (पृ. ३२अ- ३२आ), आदिः द्रव्य क्षेत्र काल; अंतिः भाव पुद्गल परावर्त्त. ११०८०. ज्ञानपञ्चमी देववन्दनविधि अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १८-११(१ से ७,१० से १३ ) =७, जैदेना. (२५.५४११.५, १४३९-४१). कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि मागु, पद्य, आदि अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ११०८१. सम्मतिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. गा. १६८, ( २६.५x११.५, १३-१४४४७). सन्मतितर्क प्रकरण आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि प्रा. पद्य, आदि सिद्धं सिद्धट्ठाणं अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. 1 , " ११०८२. सम्यक्त्व स्तव सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. प्र. वि. मूल गा. २५. सम्यक्त्व विषयक ओघनियुक्ति व भगवतीसूत्रांतर्गत दृष्टान्त पाठ दिये गये हैं. पू. वि. गा.२५., ( २६ ११.५, २x२५-२६). " सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जह कहतां जे उपशमादिक; अंतिः होवइ ए समकित ११०८३. शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, पठ. श्राविका सुखबाई, प्र. वि. ढाल १२ गा. १२८, - (२६४११.५. १३०४२-४४). शत्रुंजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर मागु पद्य वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल अंति दरिशन जयकरो. 1 ११०८४. सिन्दूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. पं. अमीविजय गणि (गुरु पं. सुखविजय गणि), पठ. श्रा. सा. दलमजी, प्र. वि. श्लो. ९९, ( २४४११.५, ११४३८-३९). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः: अंतिः सुक्तमुक्तावलीयम्. ११०८५. पिण्डविशुद्धि प्रकरण अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. (२६११, १७४५८-६७). पिण्डविशुद्धि प्रकरण- टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११७८, आदिः देविन्द० हितां योग्य; अंतिः श्रीदेवतानुग्रहात्. ११०८६.” पर्यन्ताराधना सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. कुंअरजी, प्र. वि. मूल-गा. ७०., संशोधित, (२५.५४११.५. ८४३६-३८). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना- अवचूरि, गणि विनयराज, सं., गद्य, आदिः कश्चिद् गुरुर्भणति; अंतिः ते शाश्वतं सौख्यम्. ११०८७. इग्यारगणधर देववन्दनविधि, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. (२६११.५ १५४४५-४६). ११ गणधर देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, आदि: बिरुद धरी सर्वज्ञनुं; अंतिः तो शुद्ध समकित लहिये. ११०८८. श्रावक आराधना- बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल. सूरतबिंदर, ले.- मु. चारित्रसागर ( अञ्चलगछ) प्र. वि. संभवनाथ प्रसादात्. (१२.५x१२. १५४४५-४६). " For Private And Personal Use Only श्रावक आराधना-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) श्रीसर्वज्ञं प्रणि० (२) श्रीसर्वज्ञ जे भगवान; अंति: (१) सुधी तथा जावजीव सुधी (२)तो सुखे पीई खाइ सही. ११०८९. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण वि. १९०५ श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना, प्र. वि. ढाल १०, गा. ११५, (२५४११.५, ११४२४-२६). Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २१३ महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु, पद्य, आदिः श्रमणसङ्घतिलकोपमं अंतिः श्रीगुणहर्ष वधामणे. " ११०९०.” बन्धहेतूदयत्रिभङ्गीसूत्र सह यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.६५., संशोधित, (२६११.५, ११४३४). बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र, मु. सागरसूरि - शिष्य, प्रा., पद्य, आदिः बन्धण हेओ विमुक्कं; अंतिः सिरिसायरसूरि सीसेणं. बन्धहेतुदयत्रिभङ्गीसूत्र- यन्त्र, यंत्र, आदि: # अति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११०९१. आर्द्रकुमार चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, प्र.वि.] ढाल १९ गा. ३०१ (२५.५४११.५, १५-१६९४५ . ४६). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु, पद्य, वि. १७२७, आदि सकल सुरासुर जेहना अंतिः प्रति देउल गेहे रे. ११०९२.” चौवीसदण्डक बोल, दसानवाइ व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. भूयड, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६११.५, १९४६-५२). पे.-१. २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, (पृ. १अ - २०अ), आदिः दण्डक १ लेसा २ ट्ठिइ; अंतिः मास ६ नुं आन्तरु पे. २. दसाणुवाइ, मागु., गद्य, (पृ. २०अ - २१अ ), आदिः जीव समुचय सर्व थोडा; अंतिः अधोग्राम मोटउ छइ. पे. ३. विचार सङ्ग्रह सं. प्रा. मागु (प्र. २१अ २१आ) आदि # अंतिः , पे. ४. श्लोकसङ्ग्रह, सं. मागु, पद्य, (पृ. २१आ-२१आ), आदि मैं अंतिः #. ११०९३ यति जीतकल्प चूर्णि संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना. प्र. वि. ग्रं. ग्रं. १०१० (२५.५४११.५, १५०४६-५१). जीतकल्पसूत्र - चूर्णि आ. सिद्धसेन, प्रा. प+ग, आदिः सिद्धत्थसिद्धसासण अंतिः परमोवगाहारकारणमहप्पं. ११०९४. दण्डक प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ४५. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. बार्थ गा. ६ तक का ही मिलता है., ( २६११.५, ४४३८-४०). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (संपूर्ण) आदि नमिठं चउवीस अंतिः एसा विनति अप्पहिआ. 1 दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, (अपूर्ण), आदि नमिठं क० नमिने नमस; अंति: (+) ११०९५. सिद्धपञ्चासिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५०. पंचपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११.५, ५०२७-२८). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- बालावबोध, मागु, गद्य, आदिः सिद्धं० आपणुं अर्थ; अंति: देवेन्द्र सुरई. ११०९६. साधुप्रतिक्रमणसूत्र अवचूरि, संपूर्ण वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल हरिदुर्ग, ले. पं. परसुन्दर, प्र. वि. ग्रं. ग्रं. ३००, द्विपाठ, (२५x११.५, १०x६१). पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा नमस्कारपूर्वं; अंतिः सम्भवादित्यदोष इति. ११०९७. रत्नाकर स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ जैदेना, प्र. वि. मूल श्लो. २५. (२५.५४११-५, ४४२८-३२). रत्नाकरपच्चीसी आ. रत्नाकरसूरि सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी- योगचिन्तामणि टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः श्रेयः कहेतां मोक्ष अंतिः प्रार्थये क. मांग ११०९८. चोमासी देववन्दनविधि, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना. (२५.५४१२, ११४३३-३६). चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, आदिः विमलकेवलज्ञान कमला; अंतिः पास सामलनु चेई रे. ११०९९.” वस्त्राञ्चल बोल व गहुंली सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२५.५x११, १५४३९-४३). पे.-१. वस्त्राञ्चल बोल, मागु., प्रा., सं., गद्य, (पृ. १अ - ६अ ), आदि: अप्पमज्जिय दुप्पमज्ज; अंतिः ते मिच्छामि दुक्कडं. For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. सुधर्मास्वामी गहुंली, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः ज्ञान दर्सन गुण धरता; अंतिः परभावे एहवा उत्तमजीव., पे.वि. गा.५. पे.३. गणधरगुण गुंहली, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदि: गणधर हे के गणधर; अंतिः अनुभव रत्न लहंत., पे.वि. गा.९. १११००. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११.५, १०४३१-३३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंति:१११०१. कयवन्ना चौपाई, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदरे, ले.- वा. जयचन्द्र, प्र.वि. ढाल-३१, (२६x११.५, १५-१६४३८-४१). कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुख; अंतिः धरम करण मन उलसै छै. १११०२. नियुक्ति स्वाध्यायसङ्ग्रह, दशवैकालिकसूत्र-१ से ३ अध्ययन, उत्तराध्ययनसूत्र-३ से ४ अध्ययन व गाथालक्षण, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ५, जैदेना., ले.- मु. कपूरसागर (गुरु मु. प्रेमसागर, अञ्चलगच्छ), (२५.५४११, १२४३०-३१). पे.१. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की सक्षिप्त गाथाएं, संक्षेप, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-८अ, संपूर्ण), आदिः संवत्सरेण भिक्खा; अंतिः सिद्धिगया एग समएणं. पे..२. पे. नाम. दशवैकालिकसूत्र-१ से ३ अध्ययन, पृ. ८आ-१०अ, प्रतिपूर्ण दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिःपे.-३. आदिजिन त्रयोदशभव वर्णन, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः धण मिहुण सुर महब्बल; अंतिः तित्थयरत्तं लहइ जीवो., पे.वि. गा.१३. पे.-४. पे. नाम. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३ व ६, पृ. १०आ-१२आ, प्रतिपूर्ण उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. उत्तराध्ययनसूत्र का द्वितीय-तृतीय अध्ययन है. पे.५. श्लोकलक्षण, सं., पद्य, (पृ. १२आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः प्रथम पदे मात्रा; अंतिः पदे मात्रा पंचदश., पे.वि. _श्लो.१. १११०३. धम्मिल रास, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. उसमापुरे, ले.- मु. उदयसागर (गुरु गणि शिवचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. गा.२८२, (२६४११, १७४५१-५७). धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १५९१, आदि: सरसति मुझ मति दिओ; अंति: ते पाम्मइ नवह निधान. १११०५. बारभावना, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१३, (२५.५४११.५, ११४२७-२९). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. १११०६. जीवविचार, नवतत्त्व व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-बीच के कुछ पत्र, (२५.५४११.५, १०x२४-२७). पे.-१. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-५अ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.२. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-८अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा., पे.वि. गा.४५. पे.-३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-११अ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४०. For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २१५ १११०८. सिन्दूर प्रकरण व चोवीसजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., पठ.- मु. सूरचन्द, (२५.५४११.५, १३-१५४३५). पे.-१. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-९अ, संपूर्ण), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्., पे.वि. श्लो.१००. पे..२.२४ जिन स्तुति-महाप्रभाविक यन्त्र गर्भित, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ, अपूर्ण), आदिः सुवर्णवर्णं गजराजराज; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ११११०. पुन्यप्रकाश स्तवन, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदरे, प्र.वि. ढाल-८+कलश, गा.१०१, (२६४११.५, १२४३७). पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः सकल सिद्धिदायक; अंति: नामे पुण्यप्रकाश ए. १११११. जीव विचार, नवतत्त्व व दण्डक प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., (२६४१२, १२४३२-३३). पे..१. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.२. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ., पे.वि. गा.५५. पे.-३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-८आ), आदि: नमिउं चउवीस; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.५०. ११११२. स्वाध्याय सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९४४, जीर्ण, पृ. ५, पे. ६, जैदेना., ले.- हरीसिङ्ग बारोट, (२३४११.५, १२४२६-३२). पे.-१. १५८ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः श्रीशद्धेश्वरपुर; अंतिः मणिविजय बुध उपदिशे ए., पे.वि. ढाल-२, गा.२२. पे..२. राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. सीसविजय?, मागु., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः राजुल देखी रङ्ग; अंतिः सकमल वाधिए जो.,पे.वि. गा.११. पे.-३. मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-४आ), आदिः सुग्रीव नयर; अंतिः होजो तास प्रणाम रे., पे.वि. गा.२४. पे.-४. मृषावादपापस्थान सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः बीजे रे पापनु थान; अंतिः सुजस ते सुखवरे जी., पे.वि. गा.६. पे.५. द्वेषपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, संबद्ध, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५अ), आदिः द्वेष न धरिए ___लालन; अंति: गुण एम प्रकाशे., पे.वि. हिस्सा-गा.९. पे:६. परनिन्दात्याग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः सुन्दर पापस्थानक; अंतिः पामे शुभ जस हर्ष हो., पे.वि. गा.९. ११११३. बन्धोदयोदीरणा सत्ताविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२३४१२.५, १२४३१-३३). गुणस्थानके बन्धोदयोदीरणा सत्ता विचार, मागु., गद्य, आदि: वर्ण १ गन्ध २ रस ३; अंतिः करीनइ पछइ मुक्ति जाई. ११११४. गौतमपृच्छा, अपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(१ से २)=११, जैदेना., ले.- मु. गुलाबविजय (गुरु गणि पद्मविजय), __प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.११७, पू.वि. गा.१ से १४ तक नहीं है., (२४.५४१०.५, ८-९४२५-२६). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदि:-; अंतिः जे जिनवचने वसिउ. ११११५. आदिजिनवीनती स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- श्रा. वल्लभदास, प्र.वि. गा.४५, (१३.५४१०.५, ८-९४२०-२२). आदिजिन विनती स्तवन-शत्रुजयतीर्थमण्डन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६२, आदि: जय पढम जिणेसर; For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतिः मुनि वैरागी ईम भणी. ११११६. स्तवन सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. १५, जैदेना., (२४.५४१०.५, ९-१०x२७-३४). पे-१. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १अ-१अ), आदि: भमतां आ संसार रे; अंतिः देवाधिदेव विख्यात रे., पे.वि. गा.८.. पे.२. शान्तिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः मृदङ्ग वजायो माङ्का; अंति: सहेजे वरूं छु., पे.वि. गा.६. पे.-३. पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः पास सोसर भेटीइ; अंतिः विमल गुण० वालेसर., पे.वि. गा.५. पे:४. पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. २अ-२आ), आदि: प्रभुजी पास सङ्घसरो; अंतिः विमल गुण० परमाणन्द., पे.वि. गा.५. पे.५. पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, मु. ज्ञानविमल , मागु., पद्य, (पृ. २आ-३आ), आदिः भटेवा पासजी रे भेट; अंति: गुण चित वासो रे., पे.वि. गा.९. पे.६. पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः प्रणमुं पासचिन्तामणी; अंतिः तुम्ह ध्यानो जगमाहि., पे.वि. गा.७. पे:७. पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-४आ), आदिः प्रणमुं पासचिन्तामणी; अंतिः _ विमल गुण तेजथी रे लो., पे.वि. गा.८. पे.८. आदिजिन स्तवन-शत्रुञ्जयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदिः लोहो लेज्या रे लाहो; __अंतिः अविचल ध्याने रहेजो., पे.वि. गा.७. पे.-९. महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः वाटडी विलोकुं रे; अंतिः नितनित कोडि कल्याण., पे.वि. गा.६. पे.-१०. औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः रे जीव जुगति स्युं; अंतिः नयविमल कही जे., पे.वि. गा.७. पे:११. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. ६-७अ), आदिः भोर भयो भयो भयो जागी; अंतिः सुखमङ्गल माल रे., पे.वि. गा.७. पे:१२. साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः सकल समता सुरलतानो; अंतिः होय सुजस जमाव रे., पे.वि. गा.८. पे.१३. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः विमल गिरिवर शिखर; अंतिः मुज आवागमन निवारि रे., पे.वि. गा.९. पे..१४. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदिः जिन पास बडै धम्म; अंतिः विमल पसाई० वजाऊला.,पे.वि. गा.६. पे.-१५. शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः मोरा आतमराम म कुपा; अंतिः परमानन्द पद पास्यु., पे.वि. गा.७. ११११७. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. २०स्तवन, (२४४१०.५, १२-१३४३४-३५). विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५५, आदिः पाटणनगर वखाणी थई; अंतिः निरमल थयो बोधिबीज रे. ११११८. छत्रीसीसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ८, पे. ४, जैदेना., ले.- पं. भक्तिविजय, पठ.- श्रा. मुलचन्द, (२४४१०.५, १३-१४४३६-३७). पे.-१. कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, (पृ. १आ-३अ), आदिः कर्म थकी छूटे नही; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २१७ धर्म तणो परमाण जी., पे.वि. गा.३६. पे:२. दयाछत्रीसी, मु. साधुरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १६८५, (पृ. ३अ-४आ), आदिः दयाधर्म मोटो जिन; अंतिः वरसे अमदावाद मजार जी., पे.वि. गा.३६. पे.-३. पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६९, (पृ. ४आ-६आ), आदि: पुण्यतणां फल परतखि; अंति: पुण्यनां फल परतक्षजी., पे.वि. गा.३६. पे.४. सन्तोषछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८४, (पृ. ६आ-८अ), आदिः सांहामी स्यउं सन्तोष; ___ अंतिः कीधी संघ जगीस जी., पे.वि. गा.३६. ११११९." लघुसङ्ग्रहणीसूत्र सह यन्त्र, संपूर्ण, वि. १६१६, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- पं. नयप्रभ गणि (गुरु वा. रत्नप्रभ, अञ्चलगछ), पठ.- गणि जिनहर्ष(अञ्चलगच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.२९७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३४४५-४६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-यन्त्रसङ्ग्रह* , मागु., यंत्र, आदिः#; अंतिः#. १११२०. इलाकुमार रास, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबिंदर, प्र.वि. ढाल-१६, (२५.५४११, १२४३७-४३). इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः ज्ञान दर्शन अजूआले. १११२१. दानशीलतपभावना रास, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- गणि देवसागर, प्र.वि. ढाल-४, गा.१०४, (२५४१०.५, ११-१३४३४-३७). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. १११२२. जिनस्तुति, पट्टावली व सुभाषित श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., (२६४११, १५४३३-३५). पे.-१. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदि: #; अंतिः#. पे.२. पट्टावली अञ्चलगच्छीय, मागु., गद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः चोवीसमा तीर्थङ्कर; अंतिः श्रीपुण्यसागरसूरि. पे.-३. सुभाषित श्लोक, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः अपुत्रस्य गृहं सुनं; अंतिः नवि देखे कामांध., पे.वि. श्लो.२. १११२३. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६४११, १५४५३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुव्वरिसी एव भासन्ति. १११२४.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पठ.- मु. शिवविजय, प्र.वि. मूल-गा.२८५., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, १४४४५). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-यन्त्रसङ्ग्रह*, मागु., यंत्र, आदिः#; अंतिः#. १११२५." प्रबोधचिन्तामणी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४१, जैदेना.,प्र.वि. ७अधिकार ग्रं.ग्रं. २०४४, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४११, १७४५५). प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः चिदानन्दमयं वन्दे; अंतिः चिन्तामणिमकार्षीत्. १११२७.' सिद्धान्तआलापकहुण्डिका सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७१७, श्रेष्ठ, पृ. ५२-२(१ से २)=५०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११, १५-१६४३८-४४). For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः जिवाणं च बोहित्थं. सिद्धान्तहुण्डी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः भव्य जीवनइ बुजविवु. १११२८. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. देवासनगर, प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. ८१२. ____ अंत में दस उपासको के निवासस्थान व पत्नी के नाम दिये गये हैं., (२६४११, १३४४५-४६). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. १११२९. नन्दीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं.ग्रं.७००, (२५.५४११, १३४३३-३९). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदि: जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः वीसमणुन्नाइं नामाइं. १११३०. विवेकविलास सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७०६, मध्यम, पृ. ८६-५(५२,८० से ८१,८४ से ८५)=८१, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, ले.- मु. विनयसागर (गुरु मु. शान्तिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१२उल्लास., (२६४११, १५४४४-५१). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः शाश्वतानन्दरूपाय; अंतिः लोकोत्तरं शाश्वतम्. विवेकविलास-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ते को एक परमात्मानइ; अंतिः तेह पुरुष मोटउ. १११३१. सम्यक्त्व स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., पठ.- श्रा. कुंआरपाल, ले.- मु. जिनविजय (गुरु मु. शुभविजय), प्र.वि. मूल-गा.२५., संशोधित, (२६४११, ११४३९). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेइ सम्मत्त सुद्धीए.. सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः यथा जिम समकित्व-; अंतिः आपणुं भव सफल करिवू. १११३२. कल्पसूत्र की माण्डणी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, (२६४११, १४४४४-४६). कल्पसूत्र-पीठिका, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः अज्ञानतिमिरान्धानां; अंतिः#. १११३३." स्तम्भनपार्श्वजिन स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ४४३१-३२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव विनवइ आणन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जयवन्तो वर्ति; अंतिः वृत्तिकार वीनती करइ. १११३४." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. गा.५४०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, १३४४०-४५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः पञ्चसया चेव चालीसा. १११३५. एकवीसप्रकारी पूजाविधि, पूर्ण, वि. १९१७, मध्यम, पृ. १७-१(९)=१६, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबिंदरे, ले.- श्रा. लवजी ___ मोतिचंद, (१६x१०, ७४२२-२३). २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणमुं प्रथम जिणन्द; अंतिः हीरो जेम जडियो रे. १११३६.” राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६१, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., प्र.वि. सूत्र-१७५, ग्रं. २२७९, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १५४४५-४६). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्सावणीए णमो. १११३७." प्रशमरति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६६६, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. महिसानकनगरे, ले.- मु. दीपसागर (गुरु गणि गुणसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.३१६, संशोधित, (२५.५४११, १३४४१-४३). प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., पद्य, आदिः नाभेयाद्याः; अंतिः नमो भूतार्थभाषिणे. १११३८. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. १२५०, (२६.५४११, १३४५०-५४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. १११३९." नवतत्त्व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७४२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, ले.- ऋ. सौम्यर्षि,प्र.वि. मूल का For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ मात्र प्रतीकपाठ दिया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५X११, १३x४३-४४). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु, गद्य, आदिः यथास्थित साधुं जे अंतिः निश्चल दृढ जाणवुं. १११४०.” वाक्यप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- मु. दानचन्द्र, प्र. वि. संशोधित, ( २४.५x१०.५, 94x30-80). वाक्यप्रकाश टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रमानम अंतिः सुगमं मुनिगगन० सुगमं. १११४२.” कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य १ से ८ व्याख्यान, प्रतिपूर्ण, वि. १७१७, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले. स्थल. भुजनगर, ले.- मु. मानजी (गुरु गणि मतिकीर्ति, अञ्चलगछ), गच्छा. - आ. अमरसागरसूरि ( अञ्चलगछ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. संशोधित, ( २६ ११, १५x५६-६१ ) . कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं. गद्य, आदि: इह हि सकलकेवलालोका; अंतिः १११४३. ठाणाङ्गसूत्र बोल, पूर्ण, वि. १६१४, श्रेष्ठ, पृ. ६४ - २ (५५ से ५६ ) = ६२, जैदेना., ले. स्थल. तिजारानगरे, ले.- वा. रङ्गतिलक (गुरु गणि पद्ममूर्ति, अञ्चलगच्छ), गच्छा. - आ. धर्ममूर्तिसूरि ( अञ्चलगच्छ), प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है ।, (२७x९.५x). स्थानाङ्गसूत्र- बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः एगे अरिहन्ता एगे; अंतिः साम्भलता खेद नही. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११४४. होलिपर्व कथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. १३४., (२१x१०.५, १४x२७ ३०). होलीरजपर्व प्रबन्ध गणि फवेन्द्रसागर सं., पद्य वि. १८२२, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंतिः सम्प्राप्ते मया. , होलीरजपर्व प्रबन्ध-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्धमानस्वामी; अंतिः वांदे श्रीआचार्यजीना.. · १११४५. महावीर स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८. जैदेना, प्र. वि. गा.९९ (२३.५४१०.५, ९४३०). महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज, मागु., पद्य, वि. १७वी, आदिः सरसति भगवति दिओ मति; अंतिः कहे धन मुझ एह गुरू. १११४७. अन्तगडदशाङ्गसूत्र व जैन गाथासङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १७०४ श्रेष्ठ, पृ. ३० पे २, जैदेना. ले. स्थल स्तंभतीर्थ, " (२४.५X१०.५, १२४३४-३८). पे. १. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-३०अ ), आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०: अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं, पे. वि. अध्याय-९२. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ३०अ - ३०अ), आदिः#; अंतिः#. १११४८. पञ्चाशकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. राजपुर, ले.- आ. वासुदेव, प्र. वि. अध्याय- १९, गा. ९४०, ग्रं. ११८७, ( २६.५x१०.५, १५४५८-५९). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिऊण वद्धमाणं सावग: अंतिः तवोविहिपयरणं समतं. " " २१९ १११४९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. २४ स्तवन, ( २३.५x११, १३-१४X३२-३६). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः जीवजीवन आधारो रे. १११५०. निरयावलिकादिपञ्चोपाङ्गसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ५, जैदेना, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. ५वर्ग, ग्रं. ग्रं. १७४६, ( २६ १०, १५X४५-४७). पे. १. ये नाम. कल्पिकासूत्र की टीका, पृ. १आ-८आ पे.-१. कल्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि: पार्श्वनाथं नमस्कृत् अंतिः शेषं सर्व सुगमम्. पे. २. पे नाम कल्पावतंसिका की टीका, पृ. ८आ-९आ कल्पावतंसिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: श्रेणिकनप्तृणां; अंतिः द्वितीयवर्गश्च. पे. ३. पे नाम पुष्पिकासूत्र की टीका, पृ. ९आ- १४आ For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि अथ तृतीयवर्गोपि दशा अंतिः देवस्य व्यक्तव्यता. पे. वि. १० अध्ययन. पे. ४. पे नाम पुष्पचूलिकासूत्र की टीका, पृ. १४आ-१४आ पुष्पचूलिकासूत्र - टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः चतुर्थवर्गोपि; अंतिः चतुर्थवर्गसमाप्तिः. पे. ५. पे. नाग. वृष्णिदशासूत्र की टीका, पृ. १४-१५अ वृष्णिदशासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं., गद्य, आदिः पञ्चमवर्गे वन्हिदसा अंतिः दुखानामन्तं कुर्वति www.kobatirth.org: · १११५१. वत्सराज कथा संपूर्ण वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना. ले. पं. गुणविमल गणि, प्र. वि. एलो ४७८ (२५.५४१०.५. - " " १५-१७४३५-३९). वत्सराज कथा, सं., पद्य, आदिः भो भव्या इह; अंतिः विपत्कालेपि यो भवेत्. १११५२. प्रमाणनयतत्त्वलोकालङ्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. ८ परिच्छेद, (२५x१०, १३४५४-५६). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १११५३.” अनुत्तरोववाइदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय-३३, पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६५११, ५३७-३९). (+) अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स अतिः कहाणं तहा णेयचं. , 7 अनुत्तरीपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि ते ते काल उत्सर्पि०: अंतिः तुज प्रते कहुं छउ १११५४. योगशास्त्र-१ से ४ प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. व्यिश्वरुप दवे, ( २६.५x१०.५, १३४४३ ५०). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः १११५५. सिन्दूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. मु धर्ममन्दिर (गुरु वा उदयमन्दिर, अञ्चलगच्छ), पठ.- मु. लब्धिमन्दिर, प्र. वि. श्लो. १००, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२५x१०.५, १५४३७-४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. १११५६. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. ३३+१ (१५) = ३४, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- २श्रुत./२०अध्य., ग्रं. १२५०, (२६.५०११, १३४४७-४९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. "" १११५७” नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. २३-१ ( २ ) =२२, जैदेना ले. मु. जिनवर्द्धन प्र. वि. मूलगा. ४६., पदच्छेद सूचक लकीरें (२५.५४१०.५, १३०४३-४४). " नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण बालावबोध, मागु, गद्य, आदि पहिलउ जीवतत्व बीजउ अंतिः ते आश्रीए भेद जाणिवा, १११५८. सङ्ग्रहणी सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७२१, मध्यम, पृ. ४५ जैदेना. प्र. वि. मुलगा. ३१९ संशोधित (२४.५४१०.५. 4x33-38) बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि प्रा. पद्य वि. १२वी आदि नमितं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तित्यं " "T · बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तनी नमी; अंतिः वीरनुं तीर्थ ति लगी. १११६०. स्नात्रपूजा व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल सूरतिबिंदर, पठ- श्राविका प्राणकोरबाई (२५४१०.५, १०-११०३३-३८). पे. १. स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. १अ - ६अ ), आदि: चोतिसे अतिसय; अंतिः कही सूत्र मझार., पे.वि. ढाल - ८. पे. २. श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (प्र. ६अ-६अ), आदि: # अंति#. " For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २२१ १११६१. पापबुद्धिनृप-धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक व चतुर्विंशतिजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थ, ले.- मु. उत्तमचन्द, (२५.५४१०.५, १७x३९-४३). पे..१. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक, सं., गद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः धर्मतः सकलमङ्गलावली; अंतिः धर्मात्सर्वसमीहितं. पे.२.२४ जिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः सुरकिन्नरनागनरेन्द्र; अंति: राजहंसं समप्रभम्., पे.वि. श्लो.५. १११६२. दीक्षायोगविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., (२६.५४११, १४४४५-५०). योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः आवश्यक सुअक्खन्ध; अंतिः यथायोग्य नीम दीजइ. १११६३. गुणवर्म चरित्र, संपूर्ण, वि. १७९०, मध्यम, पृ. ५९, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुर, ले.- मु. ज्ञानसागर, प्र.वि. गगननंदनगावनिसंमिते. सर्ग-५, ग्रं. १८११, (२५.५४११, १३४४५-४७). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदिः विजयतां जिनवाक्य; अंतिः (१)भविका भजध्वम् (२)भवतु मङ्गलम्. १११६५. पुष्पमाला प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. गा.५०५, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४४४-४५). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. १११६६. पञ्चमआरा सज्झाय, षटआरास्वरुपगर्भितवीरजिन स्तवन व गाथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., (२५४११, १०x२४-२६). पे.-१. पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः विर कहे गौतम सुणो; अंतिः देखीइ भाषा वयण रसाल., पे.वि. गा.२१. पे.२. महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्रा. देवीदास, मागु., पद्य, वि. १६११, (पृ. २आ-७आ), आदिः सकल जिणन्द पाय नमि; अंतिः सकल सङ्घ मङ्गल करो., पे.वि. ढाल-५, गा.६४. पे.-३. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः#; अंति:#. १११६७. योगविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं.ग्रं. ६००, (२६x११, १५४५०-५२). अनुयोग विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, आदिः मुहपत्ती पडिलेही; अंतिः पइठइ काल पडिकमीइ. १११६८. वाक्यप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- गणि माणिक्यविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.१२३., (२४.५४१०.५, १५४५४-५६). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः मुदितमुदयधर्मसंज्ञेन. वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रमानम; अंतिः संपदिवाव्ययीभावसमास. १११६९. पयन्ना अवचूर्णि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., (२६४११, १७२५१-५६). पे..१. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः देशस्य त्रसकायस्य; __अंतिः कर्माणामितत्यर्थः. पे.२. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक-अवचूर्णि, सं., गद्य, (पृ. ६अ-८अ), आदिः भृञ्धातुर्धारणे पोषण; अंतिः कर्ता च इणमो इमो०. पे..३. संस्तारक प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, (पृ. ८अ-११आ), आदिः वसंतपुरे गायन; अंतिः प्राप्ति ममदनुः. १११७०. व्याख्यान सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- पं. विनयचन्द्र, प्र.वि. अलग-अलग श्लोकों पर व्याख्यान दिए गए हैं., (२४.५४१०.५, १३४३३-३५). व्याख्यान सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवीयाणओ; अंतिः श्रेय कल्याण संपजै. १११७१. साधुवन्दना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. गा.२४९, (२५४११, ९४३०-३३). प For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची साधुवन्दना, मागु., पद्य, आदिः वन्दिय गुरूआ सिद्ध; अंतिः शुद्ध करू गीतारथ सोई. १११७३." गुणस्थानक्रमारोह विचार सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७५३, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. रायधणपुर, ले.- मु. विमलचन्द्र, प्र.वि. मूल-श्लो.१३६., त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ३-४४४१-४३). गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४४७, आदि: गुणस्थान क्रमारोह; अंतिः चैव रत्नशेखरसूरिभि. गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४७, आदिः अहँ पदं हृदि; अंतिः प्रकटित इत्यर्थः. १११७४." चैत्यवन्दनभाष्य की व्याख्यापद्धति, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित-पानी से, (२६४११, १७४४३-४७). चैत्यवन्दनभाष्य-व्याख्यापद्धति, गणि हर्षनन्दन, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीदायिकां; अंति:१११७५.” सिद्धदण्डिका व दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, २-३४२७-२८). पे.१. पे. नाम. सिद्धदण्डिका विचार सह बालावबोध, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण सिद्धदण्डिका स्तव, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जं उसभ केवलाउ अन्तमु; अंतिः दिन्तु सिद्धिसुहं. सिद्धदण्डिका स्तव-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जे श्रीआदिनाथ; अंतिः सुख दिन्तु कहीइ., पे.वि. मूल-गा.१३. पे..२. पे. नाम. दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व सह बालावबोध, पृ. ५अ-५आ, अपूर्ण दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, आदिः पपुदउ कमसो जीवा जल; अंति: दिक्चतुष्कजीवाल्पबहत्व-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पश्चिम पूर्व दक्षण; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १११७६. सुरसुन्दरी रास, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचना प्रशस्ति अपूर्ण है. गा.४९६ तक है., (२४.५४१०.५, १५४४९-५१). सुरसुन्दरी रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६४४, आदिः आदि धरमने करवा ए; अंतिः१११७७. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४५., (२४.५४१०.५, ४४३४). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः साचउ वस्तुनउ स्वरूप; अंतिः श्रीपार्श्वचन्द्रेण. १११७८. वीतराग स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. २० प्रकाश, (२६४११, १३४३९). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्. १११७९. आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबंदिर, प्र.वि. ढाल-१६, (२५.५४११, १२४३४-४०). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो १११८१. सेत्रुञ्जय द्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-१२, गा.११९, (२४.५४११, ९x४२). शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३८, आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः दरिशन जयकरो. १११८२. योगविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., (२६४११, ११४३५-३८). योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः श्रीआवश्यक सुअक्खन्ध; अंतिः उहडावणीयं० उस्सगं. १११८३." तन्दुलवैचारिकादि प्रकीर्णकसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ३७, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें ___अंतिम कुछ पत्र, (२६४११, ११४४१-४२). पे.-१. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, (पृ. १अ-१५आ), आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंति: मुच्चह सव्वदुक्खाणं. पे:२. देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., पद्य, (पृ. १५-२८अ), आदिः अमर नरवन्दिए वन्दिऊण; अंतिः इह For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ सम्मत्तो अपरिसेसो पे.वि. गा. ३००. " www.kobatirth.org: पे. ३. गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा. गा. ८६. पे. ४. महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा. पद्य (प्र. ३१आ-३७अ), आदि: एस करेमि प्रमाणं तित्थ: अंतिः अहवा वि "T " सिज्झेज्जा, पे.वि. गा. १४६. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पद्य (पृ. २८अ -३१आ), आदि वुच्छं बलाबलविहिं अंतिः नायवो अप्पमत्तेहिं. ये वि... + ; १११८४. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. २१७. पू.वि. टबार्थ गाथा 1 २१२ तक है., (२६×११, ७४१-४२). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी (संपूर्ण) आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य (अपूर्ण), आदि भक्तिमरेत्यादि ऋषभ : अंतिः १११८५. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ व पच्चक्खाण सूत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ पे. २, जैदेना. " (२५.५X११, ५X३५-३७). पे. १. पे नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टवार्थ, पृ. ११-८अ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई: अंतिः कारणं निव्दुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावद्य योग क० पाप; अंतिः कारण एहवुं कह्यउ., पे.वि. मूल गा.६२. पे. २. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ८आ) आदि सुरे उग्गए नमुक्कार अंतिः वतियागारेण वोसिरामि १११८६. वीसस्थानक तपविधि, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. स्तंभतीर्थे, ले.- मु. कपूरसागर (गुरु मु. प्रेमसागर, अञ्चलगच्छ), गच्छा.- आ. पुण्यसागरसूरि ( अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५x११.५, १५×५०). २० स्थानकतप विधि, मागु., गद्य, आदि: श्रीदंयदर्हत्पदवी; अंतिः विस्तार थाइ . २२३ १११८७. सीमन्धरजिनविज्ञप्ति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. ले. स्थल. बोरसिद्धाख्यनगर, ले. पं. मुक्तिसौभाग्य (गुरु गच्छाधिपति पुण्यसागरसूरि, सागरगच्छ ), प्र. वि. ढाल - १७, गा.३५४ (२५x११.५, १४४४०-४४). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: श्रीसीमंधरसाहिब आगें; अंतिः शास्त्र मर्यादा भणी. इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं .. इन्द्रियपराजयशतक- टवार्थ, मागु., गद्य, आदि: तेहिज सुर तेहिज: अंतिः संवेग रसायन नित्यं. १११८८. उपदेशशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना. प्र. वि. श्लो. १०९ (२५.५५११, १५X३८-३९). उपदेशशतक, आ. विबुधविमलसूरि, सं., पद्य, वि. १७९३, आदिः श्रीपञ्चासरपार्श्व; अंतिः समाप्तोभूत्पत्तने. १११८९.” इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १००., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५११, ५X३१-३३). १११९०. पट्टावली सह स्वोपज्ञ टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. त्रिपाठ, ( २६११, १५ - १९x१३-६०). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: सिरिमन्तो सुहहेउ; अंति: (१)णो दिन्तु सिद्धिसुहं (२) विहरन्तो जयउ जगबंधू. तपागच्छ पट्टावली- स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं. गद्य, (पूर्ण), आदि: सिरिमन्तोत्ति यत्तदो अंति १११९१. हंसराजवच्छराज चौपाई - खण्ड १, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ( २६ ११, १५-१६४४४-४८). हंसराजवच्छराज चौपाई मागु, पद्य, आदि: गुरुचरण कमल नमुं: अंति: १११९२. आतमप्रबोध सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना ले. स्थल, सुरतबिंदर, ले. पं. For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मयाचन्द्र(खरतरगच्छ),प्र.वि. मूल-श्लो.४२., (२६४११, ५-६४३७-३९). आत्मप्रतिबोध, सं., पद्य, आदिः महतामपि अभिदानानां; अंतिः पुनर्जन्मो न विद्यते. आत्मप्रतिबोध-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मोटा जे दान दीधां; अंतिः संसार साही करवू नही. १११९३. अञ्जनासती रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. गा.६०६, (२५.५४११, १७४४६-४९). अंजनासुन्दरी रास, मु. शान्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६६७, आदिः सरस वचन वर वरसती; अंतिः रहइ लखमी तस घर वासइ. १११९४. पक्खिसूत्र, श्लोक व औषध, संपूर्ण, वि. १७०७, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११, १३४४१-४४). पे.-१.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-८आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे..२. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः#; अंति: #. पे..३. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदि:#; अंति: #. १११९५. विचारसत्तरी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. लालेन्दु, प्र.वि. त्रिपाठ, (२५४११, ६x६०-६७). विचारसप्ततिका, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदिः पडिमा मिच्छा कोडी; अंतिः होइ सजोगी अजोगीय. विचारसप्ततिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: पडिमा १ मिच्छामि; अंति: गुणठाणाना नाम जाणिवा. १११९६. धर्ममतिश्रेष्ठि कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१६३, (२६x१०.५, १४४३६-३९). धर्ममतिश्रेष्टि कथा, प्रा., पद्य, आदिः दहीपजहनवणीयं इक्खुरस; अंतिः पयं पाविही कमसो. १११९७.” पुद्गल विचार व निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- चेलाघोघर, दशा वि. विवर्ण-पानी से अंतिम पत्र-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६४१०.५, १९-२०४६५-७३). पे.-१. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण-टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः यथास्थिताणुजीवादि; अंति: गुणमिति स्थितम्. पे.२. पे. नाम. निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण सह टीका, पृ. २आ-५आ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्सेगपएसे जहन्नय; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पंचमांग; अंतिः सङ्ख्येया अवसेयाः., पे.वि. हिस्सा-गा.३६. १११९८. सोलसती भास, संपूर्ण, वि. १६९४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. अहमदावाद, ले.- मु. भवान (गुरु वा. देवचन्द्र, पार्श्वचन्द्रसूरिगच्छ), प्र.वि. १६ भास, (२५४१०.५, १३४२६-३१). १६ सती सज्झाय, मु. मेघराज, मागु., पद्य, आदिः जिन गुरु गौतम पाय; अंतिः सोलसती गुणगाया जी. १११९९. मौनएकादशी व ज्ञानपञ्चमी कथा, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, ले.- पं. न्यानचन्द(तपागच्छ), पठ.- पं. जीतविजय(तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, ११-१२४३३-३४). पे.-१. मौनएकादशी कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः अरस्य प्रव्रज्या; अंतिः सुस्थिनो जज्ञिरे. पे.२. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ३आ-७आ), आदिः ज्ञानं सारं सर्व; अंतिः पाल्य मुक्तिं गतः. ११२००. समकितसडसठि बोल सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मछुरति, प्र.वि. ढाल-१२, गा.६८, (२६४११, १०x११). सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः सुकृतवल्लि कादंबिनी; अंतिः वाचक जस इम बोले रे. For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २२५ ११२०१ श्रुतबोध सह टीका, संपूर्ण वि. १७१९ मध्यम, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल बुरहानपुर, पठ. मु. रत्नशेखर, प्र. वि. मूल " श्लो. ४२. त्रिपाठ, ( २६ ११, ४४४४-४७). श्रुतबोध, कालिदास, सं., पद्य, आदि छन्दसां लक्षण: अंतिः प्रोक्तं गणानां फलं. 1 श्रुतबोध-मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीमत्सारस्वतं; अंतिः बालावबोधाय वै. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२०२. आठकर्मप्रकृति सज्झाय, चौदगुणस्थान सज्झाय व बुध रास, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., (२५.५५११, ११४३३-३६). पे.-१. १५८ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः श्रीशङ्खश्वरपुर; अंतिः मणिविजय बुध उपदिशे ए., पे.वि. ढाल - २, गा. २२. पे. २. १४ गुणठाणा सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., पद्य, (पृ. २अ- (अ), आदिः ज्ञानिवाकर भाखीउं; अंतिः निजमतिने अनुसार, पे.वि. १४ सज्झाय. पे. ३. बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ८अ - ८आ), आदिः प्रणमुं देवी अम्बाई; अंतिः सवि टले कलेस तो., पे.वि. गा.६६. - ११२०३.” नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. मेडता, ले.- मु. वीका, पठ. ऋ तुलसी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ४४., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x११, ४४४३-४९). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ मागु., गद्य, आदि जीवतत्त्व अजीवतत्त्व अंतिः कालइ अनन्तगुणा छइ ११२०४. अजितशान्ति स्तवन, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा४०, ( २६.५४११.५, ९×३३-३४). अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि प्रा. पद्य आदि अजियं जिय सव्यभयं अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह ११२०५. अजितशान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ४०. अंतिम दो मंगल गाथा को प्रतिलेखक ने अजितशांति के साथ गिनी है. (२५४११, ६४३६-३७). अजितशान्ति स्तव, आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुण... अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: अजितनाथ जीता छइ सर्व अंति उद्धरणहार जिनवचन तेह. ११२०६. मौनएकादशी देववन्दन, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैवेना. (२५x११, १०x२८-३०). मी एकादशीपर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, पद्य, आदि सयल सम्पत्ति अंतिः नामे नवनिध थाय. ११२०७. प्रतिक्रमण सूत्रसङ्ग्रह सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना, पृ. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२४.५४१०.५. ९४२९-३२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र -तपागच्छीय संबद्ध, प्रा. प+ग, आदि नमो अरिहन्ताणं०: अंतिः श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: श्रीअरिहन्त प्रतइ: अंतिः ११२०८. उपदेशमाला, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र अंतिम गाथा ५४४वी अपूर्ण है., ( २३X११, ११४३४-३६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः ११२०९. श्रीपाल रास, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. आजोल, ले.- श्रा. जीवराज सङ्घवी, प्र.वि. गा. २६८, (२६×११, १३x४०-४३). श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १५३१, आदिः करकमल जोडि करि सिद्ध; अंतिः जिम राजन श्रीपाल .. ११२१०. क्षमाविजयनिर्वाण रास, संपूर्ण वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, प्र.वि.] ढाल १०+कलश, (२५.५४११, १३४४७)क्षमाविजय निर्वाण रास, मु. सुमतिविजय, मागु., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीवरदायिनी अंतिः ए वचन रस सफलो थयो . ११२११. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टीका, श्लोक सग्रह व दशदृष्टान्त, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३. जैदेना., प्र. वि. For Private And Personal Use Only Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ४४५०-५३). पे.-१.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, पृ. १आ-८आ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः., पे.वि. मूल-गा.६३. पे.२. श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः#; अंतिः#. पे..३.१० दृष्टान्त, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः विप्रः प्रार्थितवान; अंतिः सचेत्पूर्ववत्., पे.वि. श्लो.१०. ११२१२." साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-सूत्र-२१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ७४३५-३८). पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि भं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वाञ्छउ निवर्तवा किहा; अंतिः वान्दउ मङ्गलीक भणी. ११२१३. इन्द्रियपराजयशतक व वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., (२६४११, ७X३९ ४०). पे.-१.पे. नाम. इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ । इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं., पे.वि. मूल-गा.९९. पे..२.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ८अ-१६अ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जीओ सासयठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम., पे.वि. मूल-गा.१०३. ११२१४." वैराग्यशतक सह टबार्थ, बीज स्तुति व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प-किनारी, (२६.५४१०, ६x४६ ४८). पे.-१. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जीओ सासयठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शास्वतु स्थानक., पे.वि. मूल-गा.१०२. पे.२. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंतिः पुरो मनोरथ ____ माय., पे.वि. गा.४. पे.३. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९अ), आदिः#; अंतिः#. ११२१५. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूरि व जैनश्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. मेघराज (गुरु उपा. भानुलब्धि, अञ्चलगच्छ), गच्छा.- आ. धर्ममूर्तिसूरि(अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२५.५४१०, १४४३६-५६). पे.१. पे. नाम. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ-५अ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति सम्भावनायां; अंतिः किं० विगलितमलनिचयाः.,पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः#; अंतिः#. ११२१६. सम्बोधसत्तरी, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, जैदेना.,प्र.वि. गा.८०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-नीचला भाग For Private And Personal Use Only Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २२७ का कोना, (२५४११, ९४३२-३३). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. ११२१७." श्रावकविधिप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. उदयचन्द(बृहत्खरतरगच्छ), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, १५-१९४४३-४७). श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, सं.,मागु., गद्य, वि. १८३८, आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीशं; अंतिः सो सोधीयो सुजान. ११२१८. बारभावना सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१३, (२६४११, ११४३५-३८). १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., पद्य, वि. १७०३, आदिः पास जिणेसर पाय नमी; अंतिः भणी जेसलमेर मझार. ११२१९. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७०१, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ले.- पं. हीरसागर, गच्छा.- आ. देवसूरि (गुरु आ. सेनसूरि , तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१५२, (२५.५४११, ११४२९-३१). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ११२२०. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. वेराउलाबिंदर, ले.- पं. गणेशरुचि, पठ.- मु. रामजी, प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो.९६, (२४४१०.५, १३४३६-४०). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक; अंतिः हारतारा बलक्षेमदा. ११२२१."धनदत्त कथा, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. राउबर,प्र.वि. ग्रं. ३००, संशोधित, (२५.५४११, १३४४१). धनदत्त कथा, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः धर्मा देव समीहितार्थ; अंतिः सूरिरेनां करोति स्म. ११२२२. दसठाणा, जीव के २३नाम सह टबार्थ व पञ्चअणुव्रतादि भाङ्गा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. धोराग्रामे, (२६४११, २०४५६-६१). पे:१. १० स्थान बोल-आनन्दादि दशश्रावक, मागु., गद्य, (पृ. १अ-६आ), आदिः मन ठामि राखवा हेते; अंतिः ___ नंदिणिपिया सालहीपिया. पे..२. पे. नाम. जीव के तेवीसनाम सह टबार्थ, पृ. ६आ-६आ २३ जीव नाम, प्रा., गद्य, आदिः जीवेति वा पाणेति वा; अंतिः वा अंतरप्पाति वा.. २३ जीव नाम-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मरे नही ते भणी जीव; अंति: मांहइ वसइ छे. पे..३.५ अणुव्रत भाङ्गा, मागु., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः तथा श्रावके पूर्वे; अंतिः अणुव्रतना ७३५ थाइ. पे.-४. १२ देवलोकइन्द्र सङ्ख्या , मागु., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः पहिले देवलोके ५०; अंतिः ५६ उपरे इन्द्र. पे.५. कर्मबन्ध भङ्गानि, सं., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः बन्धी बन्धति बन्धिस्; अंतिः चतुर्थ क्षीणमोह. ११२२३. उपासकदशाङगसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ३७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, (२६४११.५, ११४३८-३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. ११२२४. वीरजिनविचार स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. मूल-ढाल-६., (२५.५४११.५, ११४३६-४२). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंति: गरुआणा शिर बहेशेजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए अनुयोगद्वारनो पाठ; अंतिः आज्ञा मस्तके वहस्येइ. ११२२५. शतककर्मग्रन्थ (कर्मग्रन्थ-५), संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. गा.१००, (२५४११, ९४२९-३२). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. For Private And Personal Use Only Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२२६. ज्ञानपञ्चमी व मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६४११, १७-१८४६५-६७). पे.-१. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, (पृ. १अ-३अ), आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे., पे.वि. श्लो.१५१. पे..२. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, (पृ. ३अ-६आ), आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते., पे.वि. श्लो.२०१. ११२२७." नयचक्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १३४३८-३९). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, आदिः गुणानां विस्तरं; अंतिः यथा जीवस्य शरीरमिति. ११२२८. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१६४, (२६४११, ११४३६-३७). मौनएकादशीपर्व कथा , आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदिः प्रणम्य जगदीशानं; अंतिः परकार्यविधायिनः. ११२२९. चौमासीदेववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८७२, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, ले.- मु. जिनसतविजय (गुरु पं. नित्यविजय), (२५.५४११, ११४३५-३६). चौमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रथम ईरियावहि पछे; अंतिः शिव मन्दिरीइं रे. ११२३०.” दीपालिका कल्प, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., अज्ञात,प्र.वि. श्लो.४३०, ग्रं. ४४१, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रथम पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४४११, १३-१५४३८-४३). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदि: श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. ११२३१. सिद्धान्तविचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., (२४.५४११, १३४३८-४४). सिद्धान्तविचार सङ्ग्रह, सं.,प्रा., प+ग, आदिः धर्माधर्माकाश्यजीवा; अंतिः नृलोके जीवा वृत्तौ. ११२३२." शीलोपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पठ.- पं. कमलसी, प्र.वि. ४३ कथा, गा.११६, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६४१०.५, ९४३०-३५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अबालबम्भआरि; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं. ११२३३." कालसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.७४., संशोधित, (२४.५४१०, ३ ४४२७-२९). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवेन्द्र देव तणो; अंतिः स्वरुप कांइ एक कहिउं. ११२३४. अजापुत्र चौपाई, गरभवेली व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६३५, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मीढुयाग्रामे, (२३.५४११, १६-१८४४४-४५). पे.-१. अजापुत्र चौपाई, मु. धर्मदेव, मागु., पद्य, वि. १५६१, (पृ. १अ-१३आ), आदिः अट्ठ महासिद्धि पामीइ; अंतिः हुइ मङ्गल रिद्धि. पे.२. गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १६वी, (पृ. १३आ-१७अ), आदिः ब्रह्माणी वर आलि मझ; अंतिः धर्म ____ थकी मुज जोडि., पे.वि. गा.११४. पे.३. श्लोक सङ्ग्रह-, मागु.,सं., पद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः प्यार पाया छे वेररा; अंति: #. ११२३५. मौनएकादशी माहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, प्र.वि. मूल-श्लो.२००., संशोधित, (२४.५४१०.५, ६४३६-३९). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंति: सागरशररसशशिप्रमिते. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणमु श्रीआदिनाथ; अंति: #. ११२३६. इलापुत्र रास, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- मु. विमलचन्द्र (गुरु मु. दानचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१६, (२३४१०, १३४४०-४६). For Private And Personal Use Only Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः सकलसिद्धदायक सदा; अंतिः ज्ञान दर्शन अजूआले. ११२३७. बारभावना, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना ले. मु. शिवलाभ पठॠ रतन प्र. वि. ढाल १४ (२६४१०.५. " ११४३६-३७). १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, आदिः विमल कुल कमलना हंस; अंतिः सकल मुनी चित्ति आणो. www.kobatirth.org: " ११२३८. जम्बुकुमार रास, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ३५, (२५.५x१०, १५X३८). " i जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु पद्य वि. १७३८ आदि प्रणमी पास जिणन्दना अंतिः नितु कोडि कल्याण, ११२३९. द्रव्यगुणपर्याय रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. गणि जितसागर, (२५५११, १५४३६-३८). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " पे. १. द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२९, (पृ. १अ - १४अ), आदिः श्रीगुरु जितविजय अंति: जसविजय बुध जयकरी., पे. वि. दाल-१७. 1 पे. २. जैन गाथा, प्रा. पद्य (पृ. १४अ - १४आ), आदि: # अंतिः #. ११२४०. मोतीकपासीसंवाद, थुलभद्रनवरस गीत व आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५५११, १३-१४४३८-३९). पे.-१. मोतीकपासीया सम्बन्ध, पाठक श्रीसार, मागु., पद्य, वि. १६८९, (पृ. १अ - ५अ ), आदिः सुन्दर रुप सोहामणो; अंतिः चतुरनरां चमतकार. पे.वि. गा. १०३. पे. २. स्थूलभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-८आ), आदिः करी श्रृङ्गार कोशा; अंतिः शिवसुख शाश्वता तेह. पे. ३. आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, (पृ. ८आ-१८आ), आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होज्यो इम कल्याणो रे, पे.वि. डाल- १६. " २२९ ११२४१. वज्जालय सङ्ग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १५६०, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. गणि हीरहंस, (२६.५X११, १७४६२-७१). वज्जालग्ग कवि जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः सुवण्णवयण पङ्कयणिवास अंतिः लहइ सो पुरिसो वज्जालग्ग वृत्ति, गणि रत्नदेव, सं. गद्य वि. १३९३ आदि तत्र शास्त्रस्यादि अंतिः सहस्रत्रितय ननु. ११२४२. उववाईसूत्र, संपूर्ण वि. १६१६, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैवेना., ले. स्थल. मोरबी (२७.५x११, ११४३९-४५). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. (+) ११२४३. “ अनुत्तरोववादशाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. अध्याय-३३, संशोधित, पदच्छेद सूचक . 1 १३४४४-४७). लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७८११, अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: तेणं कालेणं० नवमस्स अंतिः जहा धम्मकहा णेयव्या. ११२४४. उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६३१, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना. ले. स्थल आसी ले ॠ गङ्गा प्र. वि. अध्याय- १०, , For Private And Personal Use Only (२७X१०.५, ९-१०X३१-३३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: ते० चंपा नामं नयरी; अंति: दिवसेसु अङ्गं तहेव ११२४५.' भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल- ३ भाष्य, गा. १४५., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६.५४१०.५, ६-८४३५-३७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबा... भाष्यत्रय- अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि सं., गद्य, आदि वन्दनीयान् सर्व अंतिः श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: (+) २३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२४६. पूजाष्टक कथासङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना, प्र. वि. ८ कथा, ग्रं. १२००, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६. ५४१०.५. १५४५०-५४). ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, आदिः पणमह तं नाभिसुयं; अंतिः सिरि विजयचंदस्स. (+) ११२४७. सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञवृत्ति ६ से ७ अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना, प्र. वि. प्र. पु. - टीका ग्रं. अंश १६६०, संशोधित (२६.५०९११, १७०९४६-४८). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः सामर्थ्यम्. ११२४८. भक्तामर स्तोत्र सह टीका व हीरविजयगुरु गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना, (२७१०.५, ९×३९). पे.- १. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, पृ. १अ - ११अ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किल; अंतिः वशा लक्ष्मी समुपैति., पे.वि. मूल - श्लो. ४४. पे. २. हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. ११अ - ११आ), आदिः छंडिजा रे रे कुमति; अंतिः पास इम रहजे वरासई., पे.वि. गा. ८. ११२४९. विपाकसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना, (२७४१०.५, १५×५०-५३). विपाकसूत्र टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना अंतिः श्रीमदभयदेवाचार्यस्य, ११२५०.” जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी मध्यम, पृ. २६, जैदेना. प्र. वि. संशोधित पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. (२६.५११, १६ - १७४०-४९). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा. गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अति: ११२५१.” दशवैकालिक सूत्र व गोचरी के ४२दोष गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६४११, ११४४३-४४). पे.- १. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, (पृ. १आ - २८अ ), आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः भविआण विबोहणठाए. पे. वि. १० अध्ययनर चूलिका, गा७००. पे. २. पे नाम. ४२दोषविचार गाथा, पृ. २८आ-२८आ गोचरी ४२ दोष गाथा, प्रा., पद्य, आदिः सोलस उग्गमदोसा सोलस; अंतिः रिसहेओ दव्वसंजोगा., पे.वि. गा. ७. ११२५२. उपदेशमाला व नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. २, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६११, ९ १०X३६). पे.-१. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-३४अ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी, पे.वि. गा. ५४४. पे. २. नवतत्व प्रकरण, प्रा. पद्य (प्र. ३४आ-३४आ अपूर्ण), आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति:, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. , ११२५३. दण्डक बोल, संपूर्ण वि. १६३९, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना. ले. स्थल. सेवाडेनगर, पठ पहिराज ( २६४११, १४-१५४३८३९). २४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेशाठ्ठीती; अंति: आंतरु जाणवउ (+) - For Private And Personal Use Only , ११२५४. चतुशरण, आउर पच्चक्खाण, भतपरिज्ञा पयन्ना व सन्धारा पयन्ना, अपूर्ण, वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ५. जैदेना.. प्र. वि. संशोधित, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२६.५x११, १९७१-७४). पे. १. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - २अ, संपूर्ण), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्दुइ सुहाणं, पे.वि. गा.६३. Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २३१ पे..२. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, (पृ. २अ-३अ, संपूर्ण), आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः ___ सव्वदुक्खाणम्., पे.वि. गा.८१. पे..३. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-५आ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण महाइसयं महाणुभ; अंतिः ___ सासयसुक्खं अणाबाहं., पे.वि. गा.१७२. पे.-४. संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-७आ, संपूर्ण), आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सङ्कमणं सया दिन्तु., पे.वि. गा.१२२. पे.५. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, (पृ. ७आ-७आ, अपूर्ण), आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.५ तक है. यह कृति दूसरी बार आयी है. ११२५५. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक व पञ्चपरमेष्ठि स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., पठ.- साध्वीजी हेमश्री, (२६.५४११, १३४३७-३८). पे.-१. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, (पृ. १अ-१४आ), आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः मुच्चह सव्वदुक्खाणं. पे.२. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः अर्हन्तो भगवन्त; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.१. ११२५६. स्तुतिचतुर्विंशतिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. मूल-२४ स्तुति जोडा., श्लो.९६., (२६४११, १७४६०-६२). स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., पद्य, आदि: नमेन्द्रमौलिगलितो; अंतिः बाधमम्बा. स्तुतिचतुर्विंशतिका-वृत्ति, सं., गद्य, आदिः नाभेयरपत्यं नाभेय; अंति: मपनीया इति संबन्धः. ११२५७.” दशवैकालिकसूत्र नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-नियुक्तिगा.४४५,, ग्रं. ५५६., पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२७४११, १२-१३४३७). दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धिगइमुवगयाणं; अंतिः सव्वेसिपि नयाणं. ११२५८. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४१., (२६.५४११, १३४४३-४६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः ए वातनुं संदेह नही. ११२५९. स्तवनचौवीसी, प्रतिपूर्ण, वि. १७५२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. जगतीपूर, प्र.वि. प्रति.सं.-संवल्लोचनेन्द्रियान्द्रीन्दु., पू.वि. स्तवन १-२२ तक लिखा है., (२६.५४१०.५, १२४४१). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंति:११२६१. स्नात्र विधि व लघुस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., (२७४११, ११४३३-३६). पे:१. स्नात्रपूजा सविधि, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १आ-९अ), आदिः पूर्विं दिसइं तथा; अंतिः भिनत्तु भागवती., पे.वि. लूण ___पाणी का टबार्थ भी सम्मिलित है. पे..२.पे. नाम. लघुस्नात्र, पृ. ९अ-१०अ पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव-माङ्गरोलमण्डन, श्रा. वच्छ भण्डारी, मागु., पद्य, आदिः अहो भव्या तुमे; अंतिः जयो जयो भगवन्तोजी. ११२६२. पर्यन्तआराधना, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.७०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२३-२६x११, ९४२३-२६). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. ११२६३." दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १९४५८-६५). For Private And Personal Use Only Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदि: धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो. ११२६४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-९२, ग्रं. ९००, (२६४११, १३४४४-४६). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. ११२६५.” लघुक्षेत्रसमास सह टबार्थ व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ७४३९-४२). पे.१.पे. नाम. लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, पृ. १अ-३१आ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव ते; अंतिः प्रसिद्ध समृद्धि., पे.वि. मूल अध्याय-६ अधिकार., गा.२६४. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ३१आ-३१आ), आदि: #; अंतिः#. ११२६६. योगशास्त्र सह स्वोपज्ञ टीका-५ से १२प्रकाश, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २९, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-टीका-ग्रं. १२९४८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, १५४४७). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः भव्यो जनो भवतात्. ११२६७." श्रावकप्रज्ञप्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १५६५, मध्यम, पृ. ५०, देना., लिखवा.- आ. जिनचन्द्रसूरि (गुरु आ. जिनभद्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-गा.४०१., पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६.५४११, १५४५३-५५). श्रावकप्रज्ञप्ति, वा. उमास्वाति, प्रा., पद्य, आदिः अरहन्ते वन्दित्ता; अंतिः तहेव सुयदेवयाए य. श्रावकप्रज्ञप्ति-दिक्प्रदा टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः स्मरणं यस्य सत्वानां; अंतिः याचार्यहरिभद्रस्येति. ११२६८. लघुक्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७७., (२६४११, १५४४९-५४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिण वन्दिय; अंतिः अबुह० जहा लिहिअं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सक्षेप क्षेत्रसमास; अंतिः वैताढ्ये २० प्रासादा. ११२६९. अजितशान्तिस्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३८. ग्रं.ग्रं.३३९, (२६४१०.५, १५४४८-५०). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः संजमे नंदिं गाहा. अजितशान्ति स्तव-टीका, आ. गोविन्दाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्याजितशान्ती; अंतिः कल्मषनिर्जराथमियम्. ११२७०." थुलभद्रगुणरत्नाकर छन्द, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- वा. जयचन्द्र, प्र.वि. अध्याय-४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १५४४१-४४). गुणरत्नाकर छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५७२, आदिः शशिकरनिकर समुज्वल; अंतिः करो सहिजसुन्दर मया. ११२७१. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., प्र.वि. १०३अध्ययन, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, (२६.५४११, १३४४६-५०). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ११२७२. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. सीओरग्रामे, ले.- मु. मानसुन्दर (गुरु गणि गुणसुन्दर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५२., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण. अंतिम ३ गाथा का टबार्थ नहीं है., (२६.५४१०.५, ६x४०-४५). For Private And Personal Use Only Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ भाष्यत्रय आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण) आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाह भाष्यत्रय- टवार्थ, मागु, गद्य (पूर्ण), आदि वांदिवा योग्य तीर्थख अंतिः ११२७३. उपदेशमाला पर्याय, संपूर्ण वि. १५०४ श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना. प्र. वि. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दिया है.. (२६.५x१०.५, १३४५६-५७). www.kobatirth.org: (+) " उपदेशमाला पर्याय आ. जयशेखरसूरि ११२७४. लघुसङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. गा. २७८ ग्रं. ग्रं. ४०० (२६.५४१०.५, १३४५०-५२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. ११२७५. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र. वि. गा. ५४४, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण (+) युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, ९४३५-३७). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. " J सं., गद्य आदिः इन्द्रनरेन्द्रार्चित अतिः निश्चला भवेत्. , ११२७६. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १५९०, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. पं. कुलसोम गणि (तपागच्छ), गच्छा. - आ. सौभाग्यहर्षसूरि (गुरु आ हेमविमलसूरि, तपागच्छ). प्र. ले. पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ५४४ (२६.५४११, १३४४४-४५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी... ११२७७. चौवीसदण्डक बोल, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना. ले. गणि भोजविजय, ( २६.५५११, ११४३८-३९). २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह मागु, गद्य, आदि शरीर उगाहणा सङ्घयण अंति: अनेक सिद्ध ते कही ए. ११२७८.” क्षेत्रसमास सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६, जैदेना., ले.- वा. रत्नविशाल (गुरु मु. गुणरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-६ अधिकार., गा. २६१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, १७ - १८४८-५०). , लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय अंतिः सव्यनुमइक्क चित्ता. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: अर्हमिति ब्रह्मपदं; अंतिः श्रेयसे सन्तु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " " ११२७९.” इकवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ७०, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२०११, ५४४५-४६). २३३ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया .. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः एक एक तीर्थङ्करना; अंतिः मात्र सार्थ कह्या. ११२८०. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. ३ भाष्य गा. १५०, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच का एक पत्र अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-बीच का एक पत्र (२६.५४११, १५-१९४४८44). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं... ११२८१. गयसुकमाल रास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. गा.८२, (२७४११, १३४३९-४१). " गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन शिष्य मागु, पद्य, आदि देस सोरठ द्वारापुरी अंतिः अविचल सम्पदा थाइ. ११२८२. सारसीखामण रास, संपूर्ण वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. गा. २२३ (२६४१०.५, १३०४३-४४), सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५४८, आदिः श्रीजीराउलि पासनाह; अंतिः नित्य मङ्गल जय करुए. ११२८३. सीमन्धरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, ले. श्रा. दलमलजी, प्र. वि. गा. १०६ (२६.५४११, ९३३-३४). For Private And Personal Use Only सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु पद्य वि. १७१३, आदि अनन्त चोवीसी अंतिः भविक जन मङ्गल करो. ; " Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११२८४. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १३४४६-४९). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य , सं.,प्रा., प+ग, आदिः पुरिम चरिमाण कप्पो; अंतिः वाचकयो म ग्राह्यं. ११२८५. रुपसेनराजेन्द्र कथा, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६-१(१)=२५, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ११००, (२६४११, १५४४६-४७). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदि:- अंतिः सुकृताय कृता कथा. ११२८६." अभिधानचिन्तामणी नाममाला सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १४९७, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले.स्थल. अजाहरीनगरे, ले. मु. आनन्दहंस (गुरु पं. सत्यशेखर),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-६ कांड., पदच्छेद सूचक लकीरें, पंचपाठ, (२६.५४११, १५-१९४५०-५५). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-अवचूरि*, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः सिद्धं प्रतिष्ठा; अंतिः चेति मङ्गलार्थः. ११२८७." पद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५०८, संशोधित, (२६४११, १५-१६४३८-४०). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः आद्यं जिनपतिं नत्वा; अंतिः करोत्पाठक राजवल्लभः. ११२८८." कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-टीका-ग्रं. ३१२., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ८४३७-४०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः कल्या० यस्य० रागादि; अंतिः सुगुरुप्रसादात्. ११२९०.” कर्मग्रन्थ १-६, संपूर्ण, वि. १५८२, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ६, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४४१-४६). पे.१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-६अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं.,पे.वि. गा.२४. पे.४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-१२आ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८४. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १२आ-१८अ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय ; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे.६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १८अ-२२आ), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु., पे.वि. गा.८८. ११२९१. जीरिकापलीपार्श्वजिन स्तुति सह अवचूरि व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, १९४५३-६०). पे.-१. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला-बालावबोध, उपा. धर्मनन्दी, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः अहं पार्वं जिनं; ___ अंतिः रहइ अरिह योग्य छइ. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.१. For Private And Personal Use Only Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११२९२. अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. मोहण, ले. वा. खिमासागर (पूनमगच्छ), प्र. वि. अध्याय-९२. ग्रं. ९०० (२६.५४११, १३-१४०४४-४७). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अन्तगडदसाउ समत्ताउ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२९३ . बृहत्क्षेत्रसमास अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले. मु. चरणरत्न, प्र. वि. मूल का मात्र प्रतिकपाठ दिया गया है., ( २६x११, २३x६८-७० ). . बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्त्वा वीरं बृहत्; अंतिः प्रमाणाश्च ज्ञेयाः .. ११२९४.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६०७, श्रेष्ठ, पृ. २२-२ (२० से २१) - २०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x११, ५X३३-३५). २३५ श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० ; अंतिः आवक प्रतिक्रमणसूत्र - तपागच्छीय- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: अरिहन्त प्रतई माहरु अतिः तीर्थङ्कर प्रतई. ११२९५. चौवीसदण्डक बोल, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. पठ. मु. राजचन्द्र (२६.५४१०.५, १३४३-२० ). २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, आदिः शरीर ५ अवग्रहना १: अंतिः भाङ्गना आव्या सीजइ. ११२९६. सन्थारा पयन्ना, संपूर्ण, वि. १६१५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- भैरवदास पाण्डे, प्र. वि. गा. १२२, (२७११, १२x४५ ४७). संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि काऊण नमोक्कारं जिणवर अंतिः सङ्कमणं मम दिसन्तु ११२९७. कलावती चरित्र, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, प्र. वि. गा.८१ (२६४११, १x२६-२८). " , कलावतीसती रास, कवि विजयभद्र मागु, पद्य, आदि: भरतक्षेत्रइ रे नयरी; अंतिः कवि भणि० वरसइ सयंवरा ११२९८.” सिद्धहेमशब्दानुशासन सह लघुवृत्ति व जैन श्लोक, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. २, जैदेना., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४११ १७४५८-६२). पे. १. पे नाम. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञ लघुवृत्ति-१ से ४ अध्याय, पृ. १अ- ३२अ संपूर्ण सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदिः प्रणम्य परमात्मानं अतिः #. सिद्धहेमशब्दानुशासन- स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: अर्हमित्येतदक्षरं अंति:#. पे.-२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ३२अ-३२अ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः #., पे. वि. प्र. पु. - श्लो. १. ११२९९. आलाप पद्धति, संपूर्ण वि. १८२० श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२६.५४११.५. १४४४१-४३). आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, आदि: गुणानां विस्तरं; अंतिः यथा जीवस्य शरीरमिति. ११३००. औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह, उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८६६, जीर्ण, पृ. ६, पे. ३, जैदेना. ( २६११, ६३३-३७ ) . पे. १. पे नाम औपदेशिक श्लोक सग्रह सह टवार्थ, पृ. १४-४अ औपदेशिक श्लोक सग्रह सं. प्रा. पद्य, आदि सकल कुशलवल्ली पुष्कर अति दुल्लहा सुग्गइ तस्स. औपदेशिक श्लोकसङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: सकल कहेतां समस्त; अंति: अक्षयसुख प्रति पामइ., " पे.वि. मूल-श्लो. २७. पे. २. पे नाम, उपदेशरत्नमाला सह टवार्थ, पृ. ४अ-६आ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः वच्छलिइ रमइ सच्छाए. For Private And Personal Use Only उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उपदेशरुप रत्न तेहनउ; अंतिः स्थलि सवैच्छाइ रमइ., पे. वि. मूलगा. २५. Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः#; अंतिः#. ११३०१. बन्धहेतुउदयत्रीभङ्गीसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६६१, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. मेदिनीपुर, ले.- पं. शङ्करसौभाग्य गणि- शिष्य, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६५. मू+टी.ग्रं.ग्रं. १२६९, संशोधित, त्रिपाठ, (२६.५४११, २-३४३६-३९). बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र, मु. सागरसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदिः बन्धण हेउ विमुक्कं; अंतिः सिरिसायरसूरि सीसेणं. बन्धहेतुउदयत्रीभङ्गीसूत्र-टीका , गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६०२, आदि: जयति जगत्त्रयनाथः; अंति: बुद्ध्या ___ संशोध्येति. ११३०२.” सिद्धहैमशब्दानुशासनअवचूरि अध्याय १-२, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना.,प्र.वि. द्वितीय अध्याय पाद २ तक है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १८-१९४६०-६७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य प्र उपसर्ग; अंति:११३०३. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १४६३, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, (२६.५४११, १८४६५-७८). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. ११३०४.” कुगुर सज्झाय व सुगुरु सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२६४११.५, १२४३२-३३). पे.१.५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः सेवो सदगुरु गुण; अंतिः सीसेण जणाण बोहळा., पे.वि. ढाल-६, गा.३९. पे.२. सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदिः सद्गुरु एहवा सेविइ; अंतिः भणणडे जइयइ रे., पे.वि. ढाल-४, गा.४१. ११३०५. योग विधि व योगानुष्ठान विधि कुलक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, १६४३९-४१). पे.-१. योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, (पृ. १अ-६आ), आदिः सुत्ते अत्थे भोयण; अंतिः ग्रहणानामिमे विधयः. पे.२. योगानुष्ठान कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः जोगाणुट्ठाणविहिं; अंतिः सुत्तं अहिज्जंतु., पे.वि. गा.३०. ११३०६.” कर्पूर प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७४४, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले.- आ. गुणचन्द्रसूरि, पठ.- मु. सुमतिविजय (गुरु आ. गुणचन्द्रसूरि),प्र.वि. मूल-श्लो.१७९. ग्रं.ग्रं.३६६, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२४.५४११, ११४३६-३९). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रका . कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः व्याख्यानावसरं दृश्य; अंतिः#. ११३०८." चौरासी बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.९०, पंचपाठ, (२७ ११.५, ९४२८). कवित्त, कवि हेम, प्राहिं., पद्य, आदिः सुनय पोषहत दोष मोख; अंतिः बढौ ग्यान सुख होत. ११३०९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- पं. गङ्गविजय, पठ.- श्राविका नानी, प्र.वि. २४स्तवन, (२६.५४११.५, ११४३१-३६). जिनस्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदि: जयकारी जिनराज; अंतिः भुवन अविचल दीवो रे. ११३१०. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, (२६४११.५, ११४३७-३८). स्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मागु., पद्य, आदिः ओलगडी आदीनाथनी जो; अंतिः रामविजय जयश्री लही. ११३११. स्तवन चौवीसी, दृष्टिराग व चौदगुणस्थान स्वाध्याय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना., (२६.५४११.५, ११४३८-३९). पे.-१. स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८वी, (पृ. १आ-१५अ), आदिः ऋषभ जिणिन्दसु; अंतिः पूर्णानन्द समाजोजी., पे.वि. २४ स्तवन. For Private And Personal Use Only Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २३७ पे:२. दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१५आ), आदिः दृष्टि रागइ विरागीइ; अंतिः कहे हित शिख मन धरजो., पे.वि. गा.११. पे..३.१४ गुणठाणा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ), आदिः होइं मिथ्यात्व अभव्य; अंतिः निश्चयने व्यवहार रे., पे.वि. गा.७. ११३१२. कल्पसूत्र-साधुसमाचारी २४-२८ सह कल्पलताटीका, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. साधुसमाचारी नामक नवम व्याख्यान की सामाचारी-२४ उदायन चंडप्रद्योत दृष्टांत से लेकर अंत तक है), (२६.५४११.५, १४४३६ ३७). कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि:-; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. ११३१३. नमस्कार बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२७४११.५, ११४३८-४२). नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः माहरो नमस्कार; अंतिः सागरपणसय समग्गेणं. ११३१४. सीमन्धरविज्ञप्ति स्तवन, संपूर्ण, वि. १८०५, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. ढाल-१७, गा.३५३, (२६४११.५, ९४३७-३९). सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमंधरसाहिब आगें; अंतिः शास्त्र मर्यादा भणी. ११३१५. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. २४ स्तवन, (२६४११, १६४३२-३५). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः जीवजीवन आधारो रे. ११३१६. नवस्मरण, संपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ९ स्मरण, (२६४११.५, ११४३६-३८). नवस्मरण अञ्चलगच्छीय, सं.,प्रा., प+ग, आदिः परमेष्ठि नमस्कारं; अंतिः सङ्घस्य मुदम्. ११३१७. आचाराङ्गसूत्र नियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. ग्रं.ग्रं.४५०, (२७.५४१२, १३-१५४४१-४३). आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः वन्दितु सव्वसिद्धे; अंतिः सायउवरिम्भणीहामो. ११३१८. बारव्रत रास, संपूर्ण, वि. १७८५, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र.वि. ढाल-८१, पृ.वि. ढाल ८०, गा.८६१, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६.५४११.५, १३७५०-५२). १२ व्रतविचार रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६६६, आदिः पास जिनेस्वर पूजीइ; अंतिः सकल पदार्थसार पायु. ११३१९. आठकर्म के तीस बोल, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.- मु. लक्ष्मीविजय(तपागच्छ), पठ.- मु. अमृतविजय, (२६४११.५, १३-१४४३४-३९). ८ कर्म ३० बोल विवरण, मागु., गद्य, आदिः ज्ञानावरणी पोलिआ; अंतिः बत्रीस मोक्ष जाई. ११३२०. महीपालराजा रास, पूर्ण, वि. १६२९, श्रेष्ठ, पृ. ३६-१(१)=३५, जैदेना., ले.स्थल. आश्यापल्ली, ले.- मु. सोमजी, पठ. मु. हंसलक्ष्मी, प्र.वि. गा.१०९३, पू.वि. गा.१ से २३ तक नहीं है., (२६.५४११, १५-१६x४३-४९). महीपालराजा रास, मु. अमीपाल, मागु., पद्य, वि. १५७२, आदि:-; अंति: मुनि आनन्द धरी. ११३२१. कर्मग्रन्थ ५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. गा.१०० ग्रं.ग्रं.१४७, (२६.५४११.५, ७४३४-३७). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. ११३२२. स्तवनवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. २०स्तवन, (२६.५४११.५, ९४२९-४०). विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः श्रीसीमन्धर जिनवर; अंतिः सुजस महोदय वृन्दो रे. ११३२३. सिद्धाचल तीर्थमाला, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१०, (२६४११, ११-१२४२९-३२). शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १८४०, आदिः विमलाचल वाहला वारु; अंतिः अमृतरङ्ग For Private And Personal Use Only Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २३८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सोहङ्करूं. ११३२४. चौवीसदण्डक २९ द्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२७४११.५, १४४४१-४६). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंति: जीव अनन्तगुणाधिका. ११३२५." जीवविचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.५१, संशोधित, (२६.५४११.५, ७४२७-२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. ११३२६. कर्मग्रन्थ-६ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. खंभायतबंदरे, प्र.वि. गाथा का मात्र प्रतिकपाठ दीया गया है., (२७४११.५, १८४५६-६३). सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्ध० सिद्धानि चालय; अंति: गाहा० स्पष्टा. ११३२७. आठयोगदृष्टि सज्झाय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१०, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले.स्थल. जेसिंगपुरा, पठ.- श्रा. भवानीदासजी तापीदासजी शाह, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-ढाल-८., (२६४११.५४). ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः शिवसुख कारण उपदेशी; अंति: वाचक जशने वयणेजी. योगदृष्टि सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनतं; अंतिः श्रीखम्भायतविन्दिरे. ११३२८." चौवीसदण्डकविचार छत्रीसी सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४३., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, ४४३१-३३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: #; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः भणवा जाणवा निमित्तइ. ११३२९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. २४ स्तवन, (२६x११.५, ११४३१-३३). स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु., पद्य, आदिः ऋषभ जिणन्दा ऋषभ; अंतिः मानविजय नितु ध्यावे. ११३३०. तत्त्वार्थसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, सूत्र-१९८. अंतमे तत्त्वार्थसूत्र संबंधित श्लोक दीये गये है., (२६.५४११.५, ९४३६-३८). तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, वा. उमास्वाति, सं., प+ग, आदिः सम्यग्दर्शनज्ञान; अंति: बहुत्वत्तः साध्याः. ११३३१.” कर्मग्रन्थ ५-६ सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०-१(१)=१९, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ४४३६-३७). पे.-१. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २अ-१२आ, पूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सम्भारवाने अर्थि., पे.वि. मूल-गा.१००. प्रथम पत्र नहीं है. पे.२. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पृ. १३अ-२०आ, संपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध निश्चल पद छे; अंतिः एकइ उणीमेक गाथा हुवइ., पे.वि. मूल-गा.९३. ११३३२." अजितशान्तिस्तव सह छन्द सङ्केत व छन्दयन्त्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४०., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ७४३३-३६). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. अजितशान्ति स्तव-छन्द सङ्केत, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. अजितशान्ति स्तव-छन्दयन्त्र, संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ११३३३. प्रतिक्रमण सूत्रक्रम विधि, संपूर्ण, वि. १८३८, मध्यम, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. सूरतबंदर, (२७.५४११.५, १५४५०). For Private And Personal Use Only Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २३९ प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः लुप्तश्चिरं नन्दनात्. ११३३४. सुदर्शनसेठ रास, संपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ९, जैदेना., ले.- गणि आणन्दसंयम, प्र.वि. गा.२५६, (२६.५४११, १४ १५४४५-४६). सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५०१, आदिः पहिलउं प्रणमिसु; अंतिः सङ्घ प्रसन्न. ११३३५." क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ६ अधिकार., गा.२६३, संशोधित, (२७४११.५, ११४४२ ४६). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुशलरङ्गमयं पसिद्धिं. ११३३६. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-२श्रुत./२०अध्य., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८.५४१०.५, ११४३९-४४). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ११३३७. सिद्धान्तहुण्डी, पूर्ण, वि. १५८६, श्रेष्ठ, पृ. ४९-३(१५,४२,४७)=४६, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२७.५४११, १३४४६ ४७). सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदिः नमिऊण जिणवराई; अंतिः जिवाणं च बोहित्थं. ११३३८. अम्बड चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.- गणि चारित्रविवेक (गुरु मु. संयमरत्न, आगमगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ७ आदेश, (२८.५४१०.५, १३-१४४५४-५६). अम्बड चरित्र, मु. लक्ष्मीसागर, मागु., गद्य, आदिः आदिभिकित आदिहि अट्ठइ; अंतिः अन्ते करिजे सार. ११३३९. जसोधर रास, संपूर्ण, वि. १६०२, श्रेष्ठ, पृ. २६+१(२६)=२७, जैदेना., ले.स्थल. श्रीकोट्टनगरे, ले.- मु. विनयचारित्र (गुरु पं. चारित्रसिंह, तपागच्छ), पठ.- श्राविका रत्नाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.४६, (२७४११, ११-१२४३८). यशोधर रास, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदिः मुनिसुव्रत जिन २; अंतिः भणे तेहने सौख्य अपार. ११३४०. विपाकसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२श्रुत./२०अध्य., ग्रं. १२५०, संशोधित, (२६.५४१०.५, १३४४६-४९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ११३४१. पापबुद्धिराजा व धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक, संपूर्ण, वि. १५७८, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७ ११.५, १३४४४-४६). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक, सं., गद्य, आदिः धर्मतः सकलमङ्गलावली; अंतिः जयो वाञ्छितावाप्तिः. ११३४२. योगशास्त्र १ से ४ प्रकाश सह स्वोपज्ञ वृत्त, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, त्रिपाठ, संशोधित, (२६.५४११, ५-६४५६-६१). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति:११३४३." भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.- पं. धनविजय (गुरु मु. नेमविजय), प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५२., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२७४११.५, ३-४४३२-३३). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वान्दी नमस्कार करीन; अंतिः सुख० पूरु थयुं. ११३४४. राजप्रश्नीयसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना.,प्र.वि. सूत्र-१७५, ग्रं. २०७९, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२७४११, १३४४३-४५). For Private And Personal Use Only Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४० www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः पस्सावणीए णमो. ११३४५. सूयगडाङ्गसूत्र- प्रथम श्रुतस्कन्ध व श्लोक, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. ३४, पे. २, जैदेना, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४११.५, ११४४०-४२). पे.-१. सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-३४अ प्रतिपूर्ण), आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिःपे. २. जैन गाथा *, सं., प्रा., पद्य, (पृ. ३४अ - ३४ अ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#. ११३४६. हरिवल रास, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना, प्र. वि. खण्ड-४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, १३४४५ ५०). हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मागु., पद्य, वि. १५५५, आदि: पहिलं प्रणमूं पास; अंतिः ए भणता सम्पत विस्तरइ. ११३४७. सत्तरभेदी पूजा सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना. ले. स्थल सुरतिबिंदरे, प्र. वि. मूल-डाल - १७, " (२७X११, ४X३५-३८). १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु, पद्य, आदि अरिहन्त मुखपङ्कज: अंतिः स्यो फल चुंणीयो रे. १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, आदिः हवइ स्नात्र कर्या; अंतिः वानो ए पद आण्युं छेइ. ११३४८. निरयावलीयादि पञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२२, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ५, जैदेना., प्र. वि. सर्व ग्रं. ग्रं. ११०९, संशोधित, (२७.५x११, १५९४५). पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१०अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०: अंतिः मायातो सरिसणामाओ. पे. वि. १० अध्ययन. पे. २. पे नाम. कल्पावर्तसिकासूत्र, पृ. १०अ ११अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे, पे.वि. १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. ११अ - २१अ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. १० अध्ययन. पे. -४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २१अ - २२आ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २२आ - २५आ वृष्णिदशासूत्र प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते० पंचमस्स अंति मइरित एक्कारससु वि. पे.वि. १२ अध्ययन. ११३४९.'' भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. प्र. वि. मुल- श्लो. ४४ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है (२६४११.५. ३x२८-३३) , भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: भक्त जे अमरदेवता अंति करी प्रगटपणे को. i (+) ११३५०. कर्मग्रन्थ १-४, संपूर्ण वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ४ जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५x११.५, ११४४७-५५). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १आ-४अ) आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ६०. पे.-२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ - ५आ), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं, पे. वि. गा. ३४. For Private And Personal Use Only पे. ३ . बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ५आ-७अ ), आदि बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, पे. वि. गा.२५. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ ११अ ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. ११३५१. स्याद्वादरत्नाकरसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. ८ परिच्छेद. ग्रं.ग्र.३२०, (२६.५४११.५, ९४३८ ४३). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंति: च वाच्यम्. ११३५२. कर्मग्रन्थ १-६, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ६, जैदेना., (२६.५४११.५, १२४४०-४२). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः __ लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६३. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५अ-७अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-८आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं __कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-१३आ), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-१९अ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे.-६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. १९अ-२३अ), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे.वि. गा.९३. ११३५३. पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ६६वें पाट के श्रीविद्यासागरसूरि तक है., (२७४११.५, १२-१६४३६-४१). पट्टावली अञ्चलगच्छीय, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः महावीरन पाटइं; अंति:#. ११३५४. आषाढभूति रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१६, (२६४११.५, १२४२९-३०). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो ११३५५. वीरजिनविज्ञप्ति स्तवन सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल-ढाल-६., (२७४१२४). महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३३, आदिः प्रणमी श्रीगुरुना; अंतिः आणा सिर वहेस्येजी. महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए अनुयोगद्वारनो पाठ; अंतिः नियुक्ति मध्ये छइं. ११३५६." स्तवनचौवीसी, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. २४ स्तवन, पू.वि. स्तवन १-२२ तक लिखा है., (२७४१२, ११४३४-३५). स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु., पद्य, वि. १८पू, आदिः ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम; अंतिः आनन्दघन पदराज. ११३५७. वीरजिन सत्तावीसभव स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-६, (२६.५४१२, १०४३५-३७) महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः विमलकमलदललोयणा दिसे; अंतिः शुभविजय शिष्य जयकरो. ११३५८. चौमासी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., (२७.५४१२, १०४३३-३४). चौमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, आदिः प्रथम ईरियावहि पछे; अंतिः शिव मन्दिरीइं रे. ११३५९." नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. सूरत, प्र.वि. मूल-गा.५७., For Private And Personal Use Only Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची संशोधित, (२६.५४११.५, ४४२६-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवनुं स्वरुप ते; अंतिः हजी सिद्धि गयो छइ. ११३६०. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदरे, प्र.वि. मूल श्लो.११७., (२६४१२, ५४३७-३८). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य, वि. १५७६, आदिः अन्यदा नेमिरीशाने; अंतिः हम्मीरपुरसंश्रितैः. मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः मौनएकादशीपर्वस्य; अंतिः शोधनीयं विचक्षणैः. ११३६१. इकवीसठाणुं, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.६७, (२६.५४११.५, ७४२७-३३). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. ११३६२. अढारपापस्थानक सज्झाय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. १८ सज्झाय, (२६.५४११.५, ९४३०-३५). १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदिः पापस्थानक पहिलं; अंतिः वाचकजस इम आखेजी. ११३६३. सिद्धान्त विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., (२६.५४११.५, १५४४६-४८). सिद्धान्त विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, आदिः से नूणं तमेव च सच्चं; अंतिः दिवसे पजूसणपर्व करीइ. ११३६४." सम्मतिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८२४, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१६७, संशोधित, (२६.५४११.५, १४४३९-४०). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. ११३६५. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., (२६.५४११.५, ९४२८-२९). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंति: जैनं जयति शासनं. ११३६६. बारआरा सञ्झाय, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.७७, पू.वि. गा.७७., (२६४११.५, ९-१०x४१-४२). १२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सरसति भगवति भारती; अंतिः कहे गच्छ मंगल करु. ११३६७. भववैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., लिखवा.- साध्वीजी फुल, प्र.वि. मूल-गा.१०४., (२६.५४११.५, ५४२७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जीओ सासयठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. ११३६८. साधु वन्दना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-७, (२६.५४१२, १०४३३-३४). साधुवन्दना, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः प्रणमुं श्रीऋषभादि; अंतिः सेवक जसविजय वाचक भणइ. ११३६९.” जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- मु. कीर्तिविमल (गुरु पं. कुंअरविमल), पठ. श्राविका माणिक्यबाई,प्र.वि. मूल-गा.५१., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ४४२८). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनमांहि दीवा; अंतिः सिद्धान्तनो लेइनइ. ११३७०. श्रीपाल रास, पूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ४७-१(४)=४६, जैदेना., ले.स्थल. व्यारा, पठ.- मु. गुलाबचन्द (गुरु मु. सागरचन्दजी),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-४, (२६४१२, १५-१६४३९-४४). श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३८, आदिः कल्पवेल कवियण तणी; अंतिः लहसे ज्ञान विशाला जी. For Private And Personal Use Only Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २४३ ११३७१. स्तुतिचौवीसी, संपूर्ण वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. ले. स्थल अन्नहलपत्तन, ले. पं. धर्मचन्द गणि, प्र. वि. २४ स्तुतिजोडा, श्लो. ९६, (२७.५X१२, १२X४५-४७). स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि सं., पद्य, आदिः भव्याम्भोजविबोधनैक: अंतिः हारतारा बलक्षेमदा, ११३७२. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ४२ (२७.५४१२, १२४३३-३५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण- बालावबोध, मागु गद्य, आदि साची वस्तूनुं जाणिदु: अंतिः जिनवचन हुइ ते प्रमाण, www.kobatirth.org: ११३७३. नवतत्त्व प्रकरण संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना ले. मु. ज्ञान, पठ श्राविका प्राणकोर, प्र. वि. गा. ९९. पू.वि. " गा. ९९. (२६.५५१२, ९३०-३३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. (+) . ११३७४. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. १५१., संशोधित, (२६.५१२, ५३६-३७). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे .. ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टवार्थ मागु, गद्य, आदि श्रीवामेयं जिनं नत्व: अंतिः छे मेडतानगरने विषे. " ११३७५.” " सम्यक्त्वसित्तरी सह टीका, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ७० टीका- अध्याय १२ अधिकार, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, संशोधित त्रिपाठ, (२६.५४११.५, ४-५X३७-४१). " " सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. पद्य, आदि दंसणसुद्धिपयासं अंति दंसणसुद्धि धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-टीका, आ. सङ्घतिलकसूरि, सं., प+ग, वि. १४२२, आदिः दंसणसुद्धित्ति दृश्य; अंतिः तन्मिथ्यादुकृतं मम. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३७६.' उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना. प्र. वि. अध्याय- १० ग्रं. ८५०, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५४११.५, ११४३८-४०). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. , 7 ११३७७. चन्द्रलेहा चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र. वि. ढाल - २९, (२७.५x१२, १७४४४-४७). , चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु, पद्य वि. १७२८ आदिः सरसति भगवति नमी करी; अंतिः त्रिभुवनपति हुवे तेह. ११३७८. वीरजिन स्तवन, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- मु. मोतिविजय, प्र. वि. ढाल - ६, ( २६ १२, १०x२६ २७) - महावीर जिन स्तवन- स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्‌गीगर्भित उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य वि. १७३३, आदि: प्रणमी श्रीगुरुना; अंति: आणा सिर वहेस्येजी. , ११३७९. स्तवनचौवीसी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. २४ स्तवन (२६.५x१२, ९-१०X३३-३७). स्तवनचीवीसी, मु. आनन्दघन, मागु पद्य वि. १८५, आदि ऋषभ जिनेश्वर प्रीतम अंतिः आनन्दघन प्रभु जाग रे. ११३८०. नेमजिन बारमासो व नेमजिन नवरसो, अपूर्ण, वि. १९२१ श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( १ ) - ५ पे २ जैदेना. ले. श्रा. लवजी " मोतिचंद (२६.५४१२. ११४२४-२६). पे.-१. नेमराजिमती बारमासो, उपा. विनयविजय, मागु., पद्य, वि. १७२८, (पृ. १आ-३अ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः गाया हर्ष उल्लास., पे.वि. गा. २८ प्रथम पत्र नहीं है. , पे. २. नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचन्द, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-६आ, संपूर्ण), आदि समुद्रविजय कुलचन्दलो; अंतिः प्रभु उतारो भवपार., पे. वि. ढाल - ९. For Private And Personal Use Only ११३८१. वीर २७ भव स्तवन, मुहपत्ती बोल सज्झाय व गुंहली सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८ पे ४, जैदेना, पू.वि. " , Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४४ www.kobatirth.org: अन्त के पत्र नही है., (२७४१२, १२x२८-२९). पे. १. महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मागु पद्य वि. १६६२ (पृ. १आ-६आ, संपूर्ण ), आदि: विमलकमलदललोयणा दिसे; अंतिः शुभविजय शिष्य जयकरो., पे.वि. ढाल - ६, गा. ८१. पे. २. मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु, पद्य, (पू. ६आ-८अ संपूर्ण), आदि सिरि जम्बू रे विनय अंतिः तुं वश करी घर आणीये. पे.वि. ग.१२. पे. ३. औपदेशिक गहुंली, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण ), आदि: मुनिवर मारगमां वसिया; अंतिः श्रीशुभवीर चरण नमती., पे.वि. गा.९. पे.-४. साधारणजिन गहुंली, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ-, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है. गा. १ से ५ तक है. ११३८२. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण वि. १९०२ श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना ले. पं. अमृतसागर ( तपगच्छ ) पठ- श्राविका उमेदकौर, (२७x१२.५, १४-१५X३०-३४). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदि: प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ११३८३. आत्मगीता, संपूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना ले. शिवराम ठाकोर, प्र. वि. गा.४९ (२७४१२, १०-११४३०-३१). अध्यात्मगीता गणि देवचन्द्र मागु, पद्य, आदि प्रणमियै विश्वहित अंतिः रङ्गी मुनि सुप्रतीता. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir छअट्ठाइ स्तवन, मागु., पद्य, आदिः स्यादवाद सुद्धोदधी; अंति: छअट्ठाइ स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: कहेतां शोभावन्त एहवो; अंति: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११३८४. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२७१२.५, १०-११४३६-३७). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि मागु, पद्य, आदि प्रथम बाजठ उपरि तथा अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. ११३८५. बारव्रत पूजा, अपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. १२-२ ( ४, ११) - १०, जैदेना. ले. नागरदास, पठ. श्राविका फुलकुंवर, (२६.५x१२.५, १०x३१). -- १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु, पद्य, वि. १८८७, आदिः उच्चैर्गुणैर्यस्य अंतिः जग जस पडह बजायो रे, ११३८६. षट्अट्ठाइस्तवन सह टवार्थ, पूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचनाप्रशस्ति अपूर्ण , है., ( २७.५X१२.५, ६X३१-३३). . ११३८७. साधुगुण भास, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. अवरंगावादनगरे, ले. गणि रामविमल (गुरु गणि कुशलविमल ) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ६६, (२७.५४१२, १०- ११९२६-३४). , साघुगुण भास, मु. रामविमल, मागु, पद्य, आदि: सरसती सांभाणी पाय अंति: गुरु वान्दियेजी. ११३८८. कर्मग्रन्थ ५ सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. १०० सर्व ग्रं. ग्रं. ६५४ संशोधित, " · टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८४१२.५, ४४३२-३७). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: प्रणमीने जिन प्रति अंतिः सम्भारवाने अर्थि. , For Private And Personal Use Only ११३८९. नवपद पूजा व अष्टप्रकारी पूजा, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५-८ (१ से ८) =७, पे. २, जैदेना., ले.- मु. खुसाल विजय (विजयआणन्दसूरिगच्), (२८x१२, ११३०-३४ ) . पे. १. नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा. सं., मागु, पद्य, (पृ. ९अ - ९आ, अपूर्ण), आदि:-: अंतिः कोई नये न अधूरी रे.. पे. वि. मात्र अंतिम पत्र है. पे. २. ८ प्रकारी पूजा, मु. कीर्तिविमल, मागु., पद्य, वि. १८२१, (पृ. ९आ - १५अ, संपूर्ण), आदि: अजर अमर अकलङ्क जें अंतिः मोक्षं हि वीरा. पं.वि. बाल-८. ११३९०. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५१ (२९x१२.५, ४-५४२६-२८). Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भुवन कहितां स्वर्ग; अंतिः सिद्धान्त थकी कह्यो. ११३९१. अक्षयनिधितप विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., ( २६.५x१२.५, १३४३९-४०). पे. १. अक्षयनिधितप स्तवन पं. वीरविजय, मागु, पद्य वि. १८७१, (पृ. १आ-४अ) आदि श्रीशङ्खेश्वर शिर अंति नाचवा घर बारणे, पे.वि. ढाल - ५, गा.५१. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ; पे. २. अक्षयनिधितप खमारामण दूहा, पं. वीरविजय, मागु पद्य (प्र. ४अ - ५अ ) आदि सुखकर सङ्क्षेश्वर नमी अंतिः होज्यो ज्ञानप्रकाश., पे.वि. गा. २६. · प पे. ३. पाश्वजिन स्तवन- अक्षयनिधितप गर्मित, पं. पद्मविजय, मागु पद्य वि. १८४३ (पृ. ५अ-५आ), आदि: तपवर कीजे रे अंतिः पद्मविजय फल लीधो, पे. वि. गा.१२. पे. ४. अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, (प्र. ५आ-६अ ), आदि श्रावण वदी चौथने अंतिः च्यार वरस लगे कर. ११३९२. चौवीसजिन छन्द, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा. २९, ( २६४१२.५, ११४३५-३७). " २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु, पद्य, आदि ब्रह्मसुता गिर्वाणी: अंतिः धरि निसुणो नरनारी. ११३९३. स्नात्र पूजा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. ५ कुसुमांजलि, (२८x११.५, १३x४२). स्नात्र पूजा, श्रा. देपाल भोजक, मागु., प्रा., पद्य, वि. १६वी, आदिः पूर्वदिसें तथा उत्तर; अंतिः माहरे सफल थयो अवतार. ११३९४. स्तवनचीवीसी, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैवेना. प्र. वि. २४ स्तवन (२७४१२, १३४४१-४४). जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, आदि: जगजीवन जगवाल्हो; अंतिः जीवजीवन आधारो रे. ११३९५. दशविधयतिधर्म सज्झाय, संपूर्ण वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. ले. स्थल सुरतिबिंदरे, प्र. वि. डाल- ११, प्र. ले. एलो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५x१२, ११३१-३७). " " १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु पद्य, आदि सुकृत लत्ता वन अंतिः सुजस लीला अनुभवई. ११३९६. दीपावली कल्प बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. (२६१२, १४४३८-४१). दीपावलीपर्व कल्प- बालावबोध, मागु, गद्य, आदिः मङ्गलीक दीवा सरीखी अंतिः लगे जगतने विषेइ रहो. ; २४५ ११३९७. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०७, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. पत्तननगर, ले. पं. ज्ञानविजय गणि पठ. - ऋ वर्द्धमान, ले. गणि भक्तिविजय, पठ मु. कमलकुशल (गुरु गणि लालकुशल) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूलगा. ४४. मूल के प्रतिलेखक भक्तिविजय है तथा टबार्थ के प्रतिलेखक ज्ञानविजय है. एक ही समय पर दोनो ने प्रतिलेखन कीया है., ( २६.५X११.५, ३३४). " नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. " नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साची वस्तुनउं स्वरूप अंतिः ए पनरभेद सिद्ध जाणवा ११३९८. जीवविचार प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैदेना. ले. पं. हर्षविमल गणि, प्र. वि. मूल-गा. ५१.. संशोधित (२६.५x११, ६४३१). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ.. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु, गद्य आदि विश्व सघलाई दीवानी: अंतिः मांहिथी उद्धरिउ " For Private And Personal Use Only ११४०० नवकार बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना ले शम्मुदत्त (२६.५४१२, १४४४५-४९). . नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध *, मागु., गद्य, आदिः बारसगुण अरिहन्ता; अंतिः ए अष्टभङ्गी जाणवा ११४०१.” कूर्मापुत्र कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. गा. १९५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७x११.५, १६ १८४४२-४९), कुम्मापुत चरिअं मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदि नमिउण वद्धमाणं असुरि अंति: स० इच्छन्तं चिरं जयउ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org: २४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४०२. नमस्कारपञ्चपरमेष्टिगुण स्तव सह टीका, संपूर्ण वि. १८३९, मध्यम, पृ. ७ जैदेना, प्र. वि. गा.३२. त्रिपाठ, (२७.५४११, २- ४४४६-५१). नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि प्रा. पद्य, आदिः परमिति नमुक्कारं अंतिः महिम सिद्धि मुहं " नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १४९७, आदिः जिनं विश्वत्रयीं; अंतिः #. ११४०३. बृहतकल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८५२, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - ६, (२७.५x११.५, १३×३७). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि नो कप्पइ निग्गंथाण: अंतिः कप्पट्टिई तिबेगि " ११४०४ दशवैकालिकसूत्र अवचूरि, संपूर्ण वि. १५०५ श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना. ले. स्थल भव्यनगर, प्र. वि. संशोधित, "" (२८.५४११, १६-१८४५३-५७). दशवैकालिकसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि धम्मो मं० धर्मो मग अंतिः ब्रवीमि पूर्ववत् ११४०५.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र. वि. अध्याय-९२, संशोधित, (२७.५x११.५, ११×३८ ३९). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः पण्णत्ते त्तिबेमि. १९४०६ " व्यवहारसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १९ - १(१३ ) - १८, जैदेना. प्र. वि. १० उद्देशक, संशोधित, (२७.५४११.५, १३X३५-३६). व्यवहारसूत्र आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खु मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. ; (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४०७. उववाईसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ५२ जैदेना. ले. ऋ. केशव प्र.वि. मूल- सूत्र - १८९, ग्रं. १२५०, संशोधित, पंचपाठ (२६.५५११.५, २-१६x२९-३८) औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र - दुर्गमपद बालावबोध ऋ. मोहन ऋषि माग गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीर अंतिः सुगमा जाणवी व्यक्ती ११४०८. श्रीपालमयणासुन्दरी चौपाई, पूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ३१ - १ ( १ ) = ३०, जैदेना., प्र. वि. ढाल - ४९, पू. वि. गाथा ७ तक नहीं है., (२५.५४१२, १५०४०-४८) १७४०, आदि:-: अंतिः पातकवन लुणिज्ये रे. श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. ११४०९.” आचारङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२६, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना, पठ. - ऋ. भाण ( अञ्चलगच्छ), प्र. वि. २५ अध्ययन, ग्रं. २५००, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, ११४३३-३५). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि ११४१०. आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., प्र. वि. २५अध्ययन, ग्रं. २५५४ (२६×११, १३x४३-४६). आचाराङ्गसूत्र · आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चन्ति त्तिबेमि. ११४११. आचाराङ्गसूत्र- द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९९-३१(१ से ३१) ६८, जैदेना. प्र. वि. २५अध्ययन, (२७४१०.५, ११४४१-४२). , आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि : -; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. ११४१२. आचाराङ्गसूत्र-प्रथम श्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना. (२६४११, ११४३७-३८). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि सुर्य मे आउसं० इह अंति: , ११४१३. आचाराङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८८ + १ (१३८) = १८९, जैदेना., प्र. वि. मूल - २५ अध्ययन, ग्रं. २५५०; टीका ग्रं. १२०००, संशोधित त्रिपाठ, ( २६.५४११, २-९५४-५७). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि आचाराङ्गसूत्र- टीका#, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., गद्य, वि. ९१८, आदिः जयति समस्तवस्तु; अंतिः मार्गप्रवणोस्तु For Private And Personal Use Only Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २४७ लोकः. ११४१४. आचाराङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १५८९, श्रेष्ठ, पृ. ५५-१(२६)+१(२५)=५५, जैदेना., ले.स्थल. नडुलाई, ले.- गणि विमलरङ्ग(अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. २५अध्ययन, ग्रं. २६५४, (२५.५४११, १५४४७-५२). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. ११४१५." आचारागंसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. ३०१, जैदेना., प्र.वि. मूल-२५अध्ययन., संशोधित, (२६.५४११, १३४४१-४४). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि. आचाराङ्गसूत्र-प्रदीपिकाटीका, आ. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदिः शासनाधीश्वरो जीयाद्; अंतिः ब्रवीमीति पूर्ववत्. ११४१६. आचाराङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६६, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १००००, (२४.५४११.५, १७४५७-६४). आचाराङ्गसूत्र-प्रदीपिकाटीका, आ. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, आदिः शासनाधीश्वरं नत्वा; अंतिः ब्रवीमीति पूर्ववत्. ११४१७." आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३८-९०(२१० से २९९)=२४८, जैदेना., प्र.वि. मूल २५अध्ययन. सर्व ग्रं.ग्रं. ९०००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, ६४३८-३९). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चन्ति त्तिबेमि. आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसुधर्मास्वामी; अंतिः पन्थ थकी मुकाइ. ११४१८. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. १९४, जैदेना., ले.स्थल. वैराट्यनगरे, ले.- पं. भाग्यविजय (गुरु मु. वनीतविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-२५अध्ययन, ग्रं. ३०००; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ७०००. सर्व ग्रं.ग्रं १००००, (२५.५४१२, ६४३६). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंतिः विमुच्चन्ति त्तिबेमि. आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसुधर्मास्वामी; अंतिः श्रीजम्बुने कह्यो. ११४१९." आचाराङ्गसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६११, श्रेष्ठ, पृ. १९५-१४(१ से १४)=१८१, जैदेना., गच्छा.- आ. जिनमाणिक्यसूरि (गुरु आ. जिनहंससूरि, खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-२५अध्ययन., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १५४४७-५१). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पूर्ण), आदि:-; अंतिः विमुच्चन्ति त्तिबेमि. आचाराङ्गसूत्र-प्रदीपिकाटीका, आ. जिनहंससूरि, सं., गद्य, वि. १५७३, (पूर्ण), आदि:-; अंति: वीरशासनं जयति० सफला. ११४२०." आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११.५, ४४२५-२८). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: भगवन्त श्रीसुधर्मा; अंति:११४२१. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७२-१(६७)+१(६६)=७२, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- पं. किसनचन्द तिलोकचन्द,प्र.वि. सर्व ग्रं.ग्रं. ५५८० इसमे विवन्न नामक सप्तम अध्ययन का उल्लेख नही कीया गया है., (२५.५४१२.५, ५४४१-४३). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति: आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सु० सुधर्मस्वामी; अंतिः११४२२. आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ- द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९१६, श्रेष्ठ, पृ. १०५, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २४८ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची मूल-२५अध्ययन, ग्रं. २६४४. इस प्रत मे टबार्थ का तृतीय आदिवाक्य मिल रहा है जो कि द्वितीयश्रुतस्कंध होने के कारण प्रतिपूर्ण के केस मे लिंक नहीं कीया है अंत में आचारांग से संबंधित अन्य गाथाएं दी गई है., संशोधित, (२५.५X१२, ७x४३-४४). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: अंतिः विमुच्चन्ति तिबेमि आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः प्रतइ ए अर्थ भाख्यइ. (+) ११४२३. “ आचाराङ्गसूत्र सह टवार्थ प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना, प्र. वि. मूल- २५अध्ययन सर्व ग्रं. ग्रं. ४१४५, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x१०.५, ५०४३). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि सूर्य मे आउसं० इह अंति: आचाराङ्गसूत्र- टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मागु., गद्य, आदि: श्रीपार्श्वजिनंनत्वा ; अंतिः ११४२४.” आचाराङ्गसूत्र सह टबार्थ प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७५८, मध्यम, पृ. ३८, जैवेना. ले. स्थल आग्रा, ले. साध्वीजी सुजानीजी, प्र. वि. प्रतिलेखकने विवन्न अध्ययन का उल्लेख नही कीया है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा (६३२) भग्न प्रष्टि कटि ग्रीवा (६३३) जलात् रक्षे तैलात् रक्षे, ( २६.५४११, ६-७X५१-५४). आचाराङ्गसूत्र आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि: सुर्य मे आउसं० इह अंति: , " आचाराङ्गसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः सु० एहवउ साम्भलउ; अंति: ११४२५.” आचाराङ्गसूत्र प्रथमश्रुतस्कन्ध सह बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८७- २ (१ से २ ) = ८५, जैदेना., प्र. वि. पंचपाठ, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, ( २६.५११, ५-७ ३१). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: आचारागसूत्र- बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि माग गद्य वि. १८वी, आदि:-: अंति: " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४२६.” आचाराङ्गसूत्र द्वितीयश्रुतस्कन्ध सह बालावबोध, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२१-४२ (१ से ४२ ) =७९, जैदेना.. प्र. वि. २५अध्ययन, पंचपाठ, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६.५०११, १२-१३४३०-३१) 7 आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि:- अतिः विमुच्चति ति बेमि आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः चिरं नन्द्यात्. . ११४२७.” आचाराङ्गसूत्र द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७ - १ (६५) - ६६, जैदेना., प्र. वि. २५ अध्ययन, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११, ११४३-४५ ). आचाराङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-: अंतिः विमुच्चति त्ति बेमि ११४२८. सूत्रकृताङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६१९, श्रेष्ठ, पृ. ६९, पे. २, जैदेना, पठ.- मु. रत्नपाल, ले. मु. रत्नसंयम, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. सर्व ग्रं. ग्रं. २५०० दो प्रत मिलाके एक प्रत की गई है., ( २६११, १३x४३ - ४६). For Private And Personal Use Only पे. १. सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग (पृ. १आ-६२आ), आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज: अंतिः विहरति त्ति बेमि., पे. वि. अध्याय- २३. पे. २. सूत्रकृतागसूत्र नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य (प्र. ६२आ-६९आ), आदि तित्थयरे य जिणवरे अंतिः कहियम्मि उवसन्ता. ११४२९. सूयगडाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ४९+१( ३३ ) - ५०, जैदेना. ले. स्थल विक्रमपुर, प्र. वि. अध्याय- २३. ग्रं. २१००, ( २६४१०.५, १५०४७-५०% सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि ११४३०. सूयगडाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४४ + १ ( १ ) = ३४५, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. -मूल-ग्रं. २२५०. प्र. पु. टीका- ग्रं. १३५०० प्र.पु. - मूल-ग्रं. उभय- १५७५०., (२७४११, १-५४४१-४८). " Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २४९ सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति# , आ. शीलाकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदिः स्वपरसमयार्थसूचक; अंतिः चरणगुणहिओ साहू. ११४३१. सूयगडाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. १२८५०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१०.५, १३४४६-४७). सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति# , आ. शीलाकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, आदिः स्वपरसमयार्थसूचक; अंतिः कल्याणभाग् भवतु. ११४३२. सूयगडाङ्गसूत्र सह वृत्ति, त्रुटक, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४४-११०(१० से ६८,७० से ७८,९१,९७ से ९९,११८,१३० से १३३,१८३ से १९५,२०२ से २०३,२१२ से २१३,२२५,२५८ से २७१,२९८)=२३४, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-२३. मू+ट. सर्व ग्रं.ग्रं. १५७५०, त्रिपाठ, (२६.५४११, ३-६x४०-४८). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (अपूर्ण), आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति# , आ. शीलाकाचार्य, सं., गद्य, वि. १०वी, (अपूर्ण), आदिः स्वपरसमयार्थसूचक; अंतिः कल्याणभाग् भवतु. ११४३३. सूयगडाङ्गसूत्र सह टीका द्वितीयअध्ययन, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२६४११, १७-१८४४७-५०). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-सम्यक्त्वदीपिका टीका, उपा. साधुरङ्ग, सं., गद्य, वि. १५९९, आदि:-; अंति:११४३४." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७९६, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., ले.स्थल. रांणीयाग्रामे, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, ५४४७-५०). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीआचाराङ्ग० छकाय; अंतिः११४३५. सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६१+१(१४९)=१६२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-२३., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ४४४२-४३). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः इत्यादि पूर्ववत्. ११४३६." सूयगडाङ्गसूत्र सह टबार्थ- प्रथमश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. लोद्रांणी, ले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय); मु. अमृतविजय (गुरु मु. कीर्ति), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ५४३८-४१). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः बुज्झिज्ज तिउट्टेज्ज; अंति: सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः आदिदेवं नमस्कृत्य; अंति:११४३७. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध- द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, प्र. ६५, जैदेना., प्र.वि. साधु रत्न के शिष्य पाशचन्द्र कृत वृत्ति पर आधारित बालावबोध. मूल-अध्याय-२३., संशोधित, त्रिपाठ, (२५.५४११.५, ४-१०x४९). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:- अंतिः विहरति त्ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पाचचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-: अंतिः तुम्ह प्रति कहउ छउ ११४३८. सूयगडाङ्गसूत्र सह बालावबोध- द्वितीयश्रुतस्कन्ध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना., प्रति वृत्ति पर आधारित बालावबोध है. मूल-अध्याय-२३. सर्व ग्रं.ग्रं. ४०००, पंचपाठ, (२७X१०.५, ९-१४४३३-३५). सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:- अंतिः विहरति ति बेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः तुम्ह प्रति कहउ छउ. For Private And Personal Use Only Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४३९. ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. १५१, जैदेना., ले.स्थल. वणारग्राम, ले.- ऋ. वेणा, पठ.- ऋ. सारङ्ग, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १०स्थान, ग्रं. ३७७०, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,प्र.ले.श्लो. (६३४) तैलं रखे जलं रखे, (२७.५४११, ११४३७-३९). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. ११४४०. ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. १०५, जैदेना., ले.स्थल. भानुमतीनगर, ले.- मु. सुमतिविजय (गुरु आ. गुणचन्द्रसूरि), प्र.वि. १०स्थान, (२६४११, १३४४४-४८). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. ११४४१. ठाणाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५०५, श्रेष्ठ, पृ. ४०२, जैदेना.,ले.स्थल. अणहिल्लपाटनपुर,प्र.वि. १०स्थान, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १४४४१-४४). स्थानाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवीरं जिननाथं; अंतिः टीकाल्पधियोपि गम्या. ११४४२. ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०१, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना.,प्र.वि. १०स्थान, ग्रं. ३७५०, (२७४११.५, १५४५८). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. ११४४३. ठाणाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. १०स्थान, ग्रं. ३६९०, (२७४११.५, १८४७०-७२). __स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः अणन्ता पण्णत्ता. ११४४४." ठाणाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १७०९, श्रेष्ठ, पृ. १३२, जैदेना., ले.स्थल. नव्यनगर, ले.- मु. पुण्यकलश, पठ.- मु. जेरङ्ग (गुरु मु. पुण्यकलश), प्र.वि. १०स्थान, ग्रं. ११९१७, द्विपाठ, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, २४४६१-६७). स्थानाङ्गसूत्र-दीपिकाटीका, मु. मेघराज, सं., गद्य, वि. १६५९, आदिः वर्द्धमानोजिनो जीयाद; अंतिः (१)मङ्गलं सूचितमिति (२)दीपिकासमाप्ता. ११४४५. ठाणाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., ले.- मु. पेमजी, प्र.वि. मूल-१०स्थान., (२७४११.५, ९४६९). स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं तेणं; अंतिः एहिं दसदिसा पण्णत्ता. स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसुधर्मा कहि हे; अंतिः एवं ए दस दिशि जाणवी. ११४४६. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., प्र.वि. १०३अध्ययन, सूत्र-१५९, (२६४११.५, ११४३५-३७). __ समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ११४४७. ठाणाङ्गसूत्र बोल, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. *अक्षर माहिती बाकी है।, (२५.५४११, १४x). स्थानाङ्गसूत्र-बोल, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः एहे आया एगे दण्डे; अंतिः आवु भगवती मांहि छइ. ११४४८. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५+१(४४)=४६, जैदेना.,प्र.वि. १०३अध्ययन, सूत्र-१५९, (२७.५४११, १३४४८-५१). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ११४४९. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०४, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., गच्छा.- आ. जिनमाणिक्यसूरि(खरतरगछ), ले.- पं. शुभवर्द्धन (गुरु मु. गजसार, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. १०३अध्ययन, सूत्र-१५९, ग्रं. १६६७, (२६४११, १३४५३-५६). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. ११४५०. समवायाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. १०३अध्ययन, ग्रं. १६००, (२६४११, १५४५३-५६). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. For Private And Personal Use Only Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११४५१. समवायाङ्गसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. १०४-१ (३१) = १०३ जैदेना. प्र. वि. मूल- १०३ अध्ययन, सूत्र - १५९, ग्रं. १८५७; टीका- ग्रं. ३९०९. मू+टी. ग्रं. ग्रं. ५७७६, पंचपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७x१०.५, ५-११४३३-३४). www.kobatirth.org: · समवायाद्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि समवायाङ्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः शतानि नवनवाधिके. ११४५२. समवायाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण वि. १६वी, जीर्ण, पृ. १००, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. ३००० (२७९११.५. १३४५०-५४). " समवायाद्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य अंतिः पादन्यूना च षट्शती. ११४५३.” समवायाङ्गसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६३०, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना., प्र. वि. मूल - १०३ अध्ययन, सूत्र - १५९, ग्रं. १६६७; टीका ग्रं. ३७७५. संशोधित त्रिपाठ, ( २६.५४१०.५, ४-७९४८-५०). (+) समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि समवायाङ्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पादौनाष्टशती तथा. ११४५४. समवायाङ्गसूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६६, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५x११, १५४६० ६३) समवायाङ्गसूत्र- वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः ११४५५. समवायाङ्गसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५३. जैदेना, प्र. वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ- प्रारंभिक पत्र, संशोधित, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२६४१०.५. ३-७९५१-६१). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य वि. ११२०, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११४५६.” भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०२, श्रेष्ठ, पृ. ३९५, जैदेना., प्र. वि. ४१शतक, ग्रं. १६०००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र.ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा (२५४११.५ १५५४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति ११४५७. भगवतीसूत्र- शतक २५, उद्देश ६ प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५ जैदेना. प्र. वि. पंचनिर्ग्रन्थ की बातें है, प्र.ले. श्लो. (६३६) यादृशं पुस्तके दृष्टा, ( २६.५४११.५, १५४४१). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः ३८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति: २५१ ११४५८.” भगवतीसूत्र-शतक २, उद्देशक १ प्रतिपूर्ण, वि. १६१५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, ( २६ ११, ११४३६ , ११४५९.” समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६ ११, ६x४३-४४). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः समवायाङ्गसूत्र- टवार्थ, वा. मेघराजजी माग गद्य वि. १७उ, आदि देवदेवं जिनं नत्वा अंति: , ११४६०." समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११७, जैदेना. प्र. वि. पार्श्वचन्द्रसूरि सन्तानीयेन मु. श्री श्रवणस्य शिष्य वा. मेघराज कृत टीका त्रैलोक्य प्रज्ञानुसार टबार्थ मूल- १०३ अध्ययन सूत्र - १५९. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६११, ६४३९-४१). " समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. गद्य, आदि: सुयं मे० इह खलु अंतिः अज्झयणन्ति तिबेमि समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः कृतोयं टबार्थः ११४६१.” समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, For Private And Personal Use Only Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, ६x४४-४६). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः पांचमो गणधर सुधर्मा; अंति:११४६२. समवायाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६८, मध्यम, पृ. १८०, जैदेना., ले.स्थल. त्रंबानगर, ले.- मु. अमृतविजय (गुरु पं. गलालविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१०३अध्ययन, सूत्र-१५९. सर्व ग्रं. ग्रं. ८७०१, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६३५) तैलाद्रक्षे जलाद्रक्षे; (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा, (२६४१२, ६-७X४६ ४७). समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः सुयं मे० इह खलु; अंतिः अज्झयणन्ति त्तिबेमि. समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, वि. १७उ., आदिः देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः बहुमान देखाड्यउ. ११४६३." भगवतीसूत्रव्याख्याप्रज्ञप्तिवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ४११, जैदेना.,प्र.वि. ४१शतक, ग्रं. १८६२५, संशोधित, (२६४१०.५, १५४५०-५१). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम्. ११४६४. भगवतीसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४८+३(१०६,२३९,३२६)=३५१, जैदेना., प्र.वि. ४१शतक, ग्रं. १८६१६, (२७४११, १५४५९-६१). भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम्. ११४६५." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. ८५९-२(३०,३२)+८(३७,४८२ से ४८८)=८६५, जैदेना., ले.- गणि प्रमोदकुशल (गुरु पं. पुण्यकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-४१शतक; टबार्थ-ग्रं. ४५८००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ७४३९-४५). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः वरदामा होउ मे देवी. भगवतीसूत्र-टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, वि. १७९०, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंति:११४६६." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८०२+१(४२८)=८०३, जैदेना., प्र.वि. मूल-४१शतक., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ७X४०-४२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः देउ अविग्धं लिहंतस्स. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १८पू, आदिः श्रेयः श्रीसेवितां; अंतिः विणिग्गया वाणी. ११४६७. भगवतीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७७, जैदेना., प्र.वि. मूल-४१शतक, ग्रं. १५५७५; टबार्थ-ग्रं. ५४०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. पत्र २ से १७० तक का टबार्थ नही है., (२६४११.५, ७४४८-५२). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति. भगवतीसूत्र-टबार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १८पू. (अपूर्ण), आदिः श्रेयः श्रीसेवितां; अंतिः पञ्चमाङ्ग सम्पूर्णः ११४६८." भगवतीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५४+२(३९१,४३८)=५५६, जैदेना.,प्र.वि. ४१शतक, ग्रं. १५७५०, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ११४४२-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः करितं नमस्सामि. ११४६९. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., ले.स्थल. रांनेर, ले.- गणि चतुरविजय (गुरु पं. गुलालविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२४.५४१०.५, ५४३१). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ; अंतिः एकविसमो उद्देशो. ११४७०.” जम्बूअध्ययन, सुभाषितश्लोक व जिनदेहमान गाथा, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धपुरनगरे, ले.- मु. तिलकविजय, प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६४११, १४४३५-३६). For Private And Personal Use Only Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २५३ पे.-१. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-२४आ), आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया., पे.वि. २१उद्देश. पे..२. दुहा सङ्ग्रह* , मागु.,प्रा.,सं., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ), आदिः#; अंतिः#. पे..३.२४ जिन शरीरमान गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ), आदिः पञ्च धणुसय पढमो कमेण; अंतिः शरीरमाणं जिणवराणं., पे.वि. गा.२. ११४७१." भगवतीसूत्र-शतक ९ उद्देस ३३, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. जमालि चरित्र है., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६x११, ११४४०-४४). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:- अंतिः११४७२. भगवतीसूत्र बोल, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. शतक २४ है., (२६.५४११.५४). भगवतीसूत्र-बोलसङ्ग्रह', संबद्ध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:११४७३." भगवतीसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४०९, संशोधित, (२४.५४११.५, १५४३७-३८). भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंतिः सर्वोऽपि भगवतीसत्कः. ११४७४. भगवतीसूत्र बीजक, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. वेन्नातट, प्र.वि. ग्रं. ४९५, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, १७४५६-५८). भगवतीसूत्र-बीजक, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंतिः सर्वोऽपि भगवतीसत्कः. ११४७५." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १६२६, श्रेष्ठ, पृ. ३१५, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन, संशोधित, (२६४११, ९४२९ ३०). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिससीहाणं. ११४७६. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८-६(१ से ६)-९२, जैदेना., प्र.वि. १९अध्ययन, ग्रं. ५४६४, (२५.५४११, १५४५६-५७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः पुरिससिहेणं. ११४७७." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं.३८००, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १५४५३). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः धर्मकथाप्रदेशटीकेति. ११४७८.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ३७००, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६x१०.५, १७४४१-४६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः त्रीणि सप्तशतानि च. ११४७९. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ४२००, (२७४११, १५४५६-६२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः धर्मकथाप्रदेशटीकेति. ११४८०." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १६०२, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३८००, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, (२६.५४११, १५४६२-६६). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदिः नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंतिः त्रीण्येवाष्टशतानि च. For Private And Personal Use Only Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११४८१." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-५(४१,४६,४८ से ४९,५१)-४७, जैदेना.,प्र.वि. द्वितीय श्रुतस्कन्ध का मात्र प्रारंभिक व अंत का पाठ दीया गया है क्रमशः संपूर्ण पाठ नही है., संशोधित, (२५.५४११, १५४४७-५१). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२०, आदि: नत्वा श्रीमन्महावीरं; अंति:११४८२. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. ३७२, जैदेना., प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५५००; टबार्थ-ग्रं. ९०००. सर्व ग्रं.ग्रं. १४५००, (२६.५४११.५, ६४३१-३७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिससिहेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सम्पूर्ण कहिउं. ११४८३." भगवतीसूत्र सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ४६, जैदेना.,प्र.वि. गोशालक, रेवती, महापद्म व भवदेव अध्ययन है., संशोधित, (२५.५४११, ७X४३-४८). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: भगवतीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:११४८४." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. ३७४+१(२७७)=३७५, जैदेना., ले.स्थल. कारारी, ले. पं. जगरुपहंस,प्र.वि. मूल-१९अध्ययन., संशोधित, (२७४११.५, ७४३५-३७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः पुरिससिहेणं. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सन्तैः समर्थनायाः. ११४८५." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७४८, जीर्ण, पृ. ३१६, जैदेना., ले.स्थल. वीकानेर, ले.- मु. सुमतिसमुद्र, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन, ग्रं. ५५००; टबार्थ-ग्रं. ९०००., संशोधित, (२६.५४१०.५, ६x४१-४२). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सन्तैः समर्थनायाः. ११४८६." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. २८२, जैदेना., ले.स्थल. रामबाव, ले.- मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-१९अध्ययन., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. ग्रं.ग्रं.१६०००., (२५.५४११.५, ७४४३). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध्यात्वा वीरं जिनं०; अंतिः थयो दसवर्गे करी. ११४८७. उपासकदशाङ्गसूत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., पंचपाठ, पू.वि. विवरण प्रतिलेखकद्वारा अपूर्ण., (२६.५४११, ११-१६४३४-३७). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-आनन्दादि श्रावकों का विचार, मागु.,सं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीवर्धमानमानम्य; अंतिः११४८८." उपासकदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. ८१२, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १७४६०-६१). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. ११४८९.” उपासकदशाङ्गसूत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १६१५, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभतीर्थनगरे, प्र.वि. मूल अध्याय-१०., संशोधित, पंचपाठ, (२६.५४१०.५, १२-१३४३९-४२). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अंगं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदि: श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. ११४९०.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-९२., पंचपाठ, अशुद्ध For Private And Personal Use Only Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २५५ पाठ, (२५४११, १३-१४४२८-३०). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंति: जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; अंतिः ननु विधीयतां सर्वथा. ११४९१. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व औपदेशिक पद, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पे. २, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (२३७) ज्यां लिग ध्रु सायर चंद रवि; (२३८) एहश्रुत सकलहृदयमज्वही, (२३.५४११.५, ६४३२-३६). पे.-१.पे. नाम. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-६६आ अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषे ते; अंतिः तारवाने अर्थे., पे.वि. मूल-अध्याय-९२. पे.२. औपदेशिक पद, मागु., पद्य, (पृ. ६६आ-६६आ), आदिः मेल मायाकी कोथली; अंतिः ही तो मुगति आप हजूर., पे.वि. गा.१. ११४९२. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व उद्देशबीजक, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५-१(४७)=८४, जैदेना., प्र.वि. मूल-ग्रं. ८२५., (२५४१०.५, ५४३२-३३). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ कालइ चउथा; अंतिः माहर मत थकी कहतो. ११४९३. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(३०)=४३, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-९२. सर्व ग्रं.ग्रं. ३०००, (२६४११.५, ७X४८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनेन्द्; अंतिः धर्मकथानी परे जाणq. ११४९४. अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.स्थल. अंजार, प्र.वि. मूल-अध्याय-९२, ग्रं. ८९०., (२७४११.५, ७४३७-३८). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अयमठे पण्णत्ते. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्त्वा श्रीगुरु; अंतिः शाङ्गनो ए अर्थ कह्यो. ११४९५. अणुत्तरोववायदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (२६४११, ११४३६ ४०). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. ११४९६. अणुत्तरोववाइयदसाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३३, ग्रं. १९२, (२६४११, ११४३७ ४०). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंति: कहाणं तहा णेयव्वं. ११४९७. अनुत्तरोववायदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३३, ग्रं. १९५, (२४.५४११, १५४४२ ४४). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. ११४९८.” उपासकदशाङ्ग, अन्तकृतदशाङ्ग व अनुत्तरोपपातिकसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. सर्व ग्रं.ग्रं. १८००, संशोधित, (२६.५४११, १५४५०-५४). पे..१. उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, (पृ. १अ-२२अ), आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; ___ अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. पे.२. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, (पृ. २२अ-२९अ), आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; For Private And Personal Use Only Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतिः ननु विधीयतां सर्वथा. पे.-३. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, (पू. २९अ-३१अ), आदिः अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंतिः अन्तकृद्दशाङ्गवदिति. ११४९९." उपासकदशाङ्ग, अन्तकृतदशाङ्ग व अनुत्तरोपपातिकदशाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७८, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. वेलाकूलबंदिर, लिखवा.- पं. कुंअरविजय (गुरु पं. गुणहर्ष गणि), प्र.वि. सर्व ग्रं.ग्रं. १३०० स्ववाचन के लिए लिखवाइ., संशोधित, (२६.५४११, १९४५३-५५). पे..१. उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, (पृ. १अ-१५आ), आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; ____ अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. पे..२. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, (पृ. १५आ-२०अ), आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; ____ अंतिः ननु विधीयतां सर्वथा. पे.-३. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, (पृ. २०अ-२२आ), आदिः अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंतिः अन्तकृद्दशाङ्गवदिति. ११५००." अनुत्तरोपपातिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-३३, ग्रं. २००., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x१०.५, १३४३०-३२). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः अथानुत्तरौपपातिकदशा; अंतिः ___अन्तकृद्दशाङ्गवदिति. ११५०१. अनुत्तरोववाइयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. राजपुर, ले.- ऋ. रघुनाथ, प्र.वि. मूल-अध्याय-३३., (२७४११.५, ६४३२). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषे ते; अंतिः वर्गना ए अर्थ कह्या. ११५०२. अनुत्तरोववाइयदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. रायपुर, ले.- मु. हुकमविजय(तपागच्छ), प्र.वि. मूल-अध्याय-३३., (२६४११.५, ६४३२-३४). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषे ते; अंतिः वर्गना ए अर्थ कह्या. ११५०३. अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-३३, ग्रं. २००; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ४००., संशोधित, (२४.५४१०.५, ७४३७). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः अयमढे पण्णत्ते. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणइ कालि तेह ज समय; अंतिः ए अर्थ प्रकासिउ. ११५०४. प्रश्नव्याकरणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०, ग्रं. १३५०, (२७X११, १३४४८-५०). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः सरीरधरे भविस्सइति. ११५०५." प्रश्नव्याकरणाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १८१, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५२००, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११.५, ११४३२-३६). प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः अभयदेवसूरिणोच्यते; अंतिः चरमशरीरधरो भविष्यति. ११५०६. उपासकदशाङ्गसूत्रवृत्ति, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३१-३(१,३ से ४)=२८, जैदेना., ले.- चेलाथिरा, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ९००., (२५.५४१०.५, १२४४३-४६). For Private And Personal Use Only Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २५७ उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदि:-; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. ११५०७. उपासकदशाङ्गसूत्रविवरण, संपूर्ण, वि. १६२१, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२७४११, १७४६०-६४). उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. ११५०८. उपासकदशाङ्गसूत्रविवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२७४११, १३४५४-५५). उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. ११५०९. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२७४१२.५, ४४३६-३९). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः ते० तेणे का० काले; अंतिः अनुज्ञापवेइ जइ. ११५१०.” अणुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. भीलाडा, ले.- ऋ. अमरचन्द, प्र.वि. मूल-अध्याय-३३, ग्रं. १९२., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, ८४३७-४५). अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ कालइ चउथा; अंतिः तेहना परइ जिमज जाणवा. ११५११.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व उद्देशबीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-९२, ग्रं. ८२५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२४४१२, ६-७४३०-३४). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ कालइ चउथा; अंतिः माहर मत थकी कहतो. ११५१२. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. १३६-३६(५ से २०,४९ से ५४,६९ से ८२)=१००, जैदेना., ले.स्थल. मांडलनगरे, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२६४११.५, ६४२७-३१). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः ते दिवसे अणुजाणै. ११५१३.” अन्तगडदशासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., ले.स्थल. भुजनगरे, ले.- शङ्कर खीमजी, प्र.वि. मूल-अध्याय-९२., संशोधित, (२५.५४१०.५, ५४३२-३४). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काले चउथो; अंतिः ज्ञातधर्मकथानी परे. ११५१४. अन्तगड व अनुत्तरोववायदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १५६२, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., पठ.- मु. हर्षलाभ (गुरु गणि पुण्यप्रभ, अञ्चलगच्छ), ले.- उपा. विजयहंस (गुरु आ. माणेक्यकुञ्जरसूरि, अञ्चलगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १८४४८-५४). पे-१. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-१५अ), आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं., पे.वि. अध्याय-९२, ग्रं.८९९; मूल-अध्याय-९२, ग्रं.७५०. पे.२. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, (पृ. १५अ-१८आ), आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; ____ अंतिः कहाणं तहा णेयव्वं., पे.वि. अध्याय-३३, ग्रं.१९२. ११५१५.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-९२, संशोधित, (२६.५४११, १५४५२ ५४). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. ११५१६.” अन्तगडदशाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-९२, ग्रं. ८९०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १७४५३). For Private And Personal Use Only Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः अन्तगडदसाउ समत्ताउ. ११५१७. अन्तगडदशाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सूरपुरौ, ले.- आ. रत्नसुन्दरसूरि (गुरु आ. जिनतिलकसूरि, खरतरगच्छ), प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३३७., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६x१०.५, १७४५३-५४). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; अंतिः कथाविवरणादवसेयमेवं च. ११५१८. अन्तगडदशाङ्गसूत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५.५४१०.५, १७-१९४५६-६०). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, आदिः अथान्तकृतदशासु किमपि; अंतिः कथाविवरणादवसेयमेवं च. ११५१९. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., ले.स्थल. भचाउ नगरे, प्र.वि. मूल अध्याय-१०, ग्रं. ८१२; टबार्थ-ग्रं. ३१३१., (२६४११, ६४३८). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः बिहू दिवसे अङ्ग तथैव. ११५२०."" अन्तगडदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., ले.स्थल. रतलाम, ले.- किसन बोडा, प्र.वि. मूल-अध्याय-९२., संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-बीच के कुछ पत्र, (२६.५४११.५, ६४३१-३३). अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः जहा नायाधम्मकहाणं. अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेणे काले चोथे आरइ; अंतिः माहर मत थकी कहतो. ११५२१.” अनुत्तरोववाईदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ व विपाकसूत्र, अपूर्ण, वि. १९४०, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४१२.५, ५४२९). पे-१. पे. नाम. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-२७आ, संपूर्ण अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० नवमस्स; अंतिः कहाणं तहा ____णेयव्वं. अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते० तेणइ कालइ चउथा; अंतिः परि तिमज जाणिवा., पे.वि. मूल-अध्याय-३३, ग्रं.२५०. पे..२. विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, (पृ. २७आ-२७आ, अपूर्ण), आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः-, पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है. कुछेक अंश का ही टबार्थ दीया गया है. ११५२२. उपाशकदशागसूत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. १४, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १०००., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१२.५, १६x६४-६५). उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १११७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः कुर्वतां प्रीतये मे. ११५२३." प्रश्नव्याकरणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-१०, गा.१२५०, ग्रं. १२५०., संशोधित, त्रिपाठ, (२५४११.५, १-४४४४-४७). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. ११५२४." प्रश्नव्याकरणसूत्र सटीक, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०७-२(४३,५३)=१०५, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. ४६३०, संशोधित, (२५.५४११, १५४४८-५२). For Private And Personal Use Only Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ " , प्रश्नव्याकरणसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं गद्य वि. १२वी आदि श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः इति ब्रवीमीति, ११५२५. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९१-३(३८ से ४० ) + ३ (२८, ३३ से ३४ ) = ९१, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय-१०, गा.१२५० ग्रं. १२५०, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६×११, २-६x४८-५२). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि जम्बू इणमो अण्हयसंवर अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति प्रश्नव्याकरणसूत्र- टीका, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., गद्य वि. १८वी आदि ऐन्द्रवृन्दनतक्रमो अंतिः पञ्चमाकिञ्चनस्येदम् ११५२६. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले. स्थल. अंजार, प्र. वि. मूल- अध्याय - १०, गा.१२५०, ग्रं. १२५०., (२७४११.५, ६४३९-४४). प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः शरीरधरे भविस्सत्तीति. प्रश्नव्याकरणसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि हे जम्बू एह अंतिः अनन्ता सुख पामइ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ११५२७. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह वालावबोध व चैत्यशब्दव्युत्पत्ति, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८९. पे. २ जैदेना. प्र. वि. संशोधित, पंचपाठ, ( २६४१०, ९-११x२९-३४). पे. १. पे नाम. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-८९अ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः जम्बू इणमो अण्हयसंवर; अंतिः अङ्गं जहा आयारस्स. प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रश्नव्याकरण स्युं; अंतिः जाई अनन्तासुख पामइ., पे.वि. मूल- अध्याय - १०, गा. १२५०, ग्रं. १२५०. पे. २. चैत्यशब्दव्युत्पत्ति, सं., गद्य (प्र. ८९आ-८९आ) आदि ज्ञानार्थस्य चैत्य अंतिः तद्धितो क्यणप्रत्ययः (+) ११५२८. विपाकसूत्र, संपूर्ण वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना. प्र. वि. अध्याय- २श्रुत / २० अध्य. ग्रं. १२१६, संशोधित, (२६.५X११, १५४३९). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. विपाकसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ते कालनइ विषइ ते; अंतिः इम कही उपदिश्या. विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः सेसं जहा आयारस्स. ११५२९. विपाकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय २श्रुत/२० अध्य... (२६.५५११, ७X३९-४२). २५९ ११५३०.” विपाकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५८, मध्यम, पृ. ६६, जैदेना., प्र. वि. मूल- अध्याय - २श्रुत. / २०अध्य. ग्रं. १२१६; टीका ग्रं. ९५०, पदच्छेद सूचक लकीरें त्रिपाठ, (२५.५४१०.५, ४-१०४४३-४६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं; अंतिः वं भन्ते सेवं भन्ते. विपाकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्धमाना; अंतिः श्रीमदभयदेवाचार्यस्य. - ११५३१. उववाइसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६५०, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना, ले. स्थल रुण, ले. राघवदास, प्र. वि. मूल-सूत्र१८९; टीका-ग्रं. ३१२५., पंचपाठ, (३०.५x११, १-१५x२४-३०). औपपातिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि तेणं कालेणं० चम्पा०: अंतिः सुही सुहं पत्ता. , " औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. ११५३२. ओपपातिकसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. ३१२५, ( २६.५×११, १५४४५-४७). औपपातिकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि सं. गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य: अंतिः संशोधिता चेयम्. " " , ११५३३.” औपपातिकोउपाङ्गसूत्रवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६३६, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले. स्थल. मल्लपुर, ले. मु. विनयसोम (गुरु आ. जिनमाणिक्यसूरि, खरतरगच्छ ) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. ग्रं. ३३३५, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-अल्प मात्रा में टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५x१०.५, १६-१०००५३-५४)औपपातिकसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. For Private And Personal Use Only Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६० ११५३४. उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैदेना., ले. स्थल. सणवानगर, प्र. वि. मूल- सूत्र - १८९, ग्रं. १७००; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ३९०७. सर्व ग्रं. ग्रं. ५६०७, (२३.५x११.५, ५२९-३१). औपपातिकसूत्र प्रा. प+ग, आदि तेणं काले० चम्पा०: अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र टवार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु., गद्य, आदि: वन्दित्वा श्रीजिनं अंतिः सुख पाम्या थका ११५३५. उबवाईउपाङ्गसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७ची, मध्यम, पृ. ८४, जैदेना, प्र. वि. मूल- सूत्र - १८९. पंचपाठ, (२५X११, ४- ११३२-३५). औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०: अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र - दुर्गमपद बालावबोध ऋ. मोहन ऋषि, मागु, गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीरं अंतिः सुगमा जाणवी व्यक्तौ . ११५३६.” उववाईसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना, पठ.- मु. रूपविजय (गुरु गणि लाभविजय, तपागच्छ ). प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल सूत्र - १८९ टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४११.५, ६४३४-४१). " औपपातिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तेणं कालेणं० चम्पा०; अंतिः सुही सुहं पत्ता. औपपातिकसूत्र - टवार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु., गद्य, आदि: वन्दित्वा श्रीजिनं: अंतिः सुख पाम्या थका " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५३७. राजप्रश्नीयसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९९, जैदेना. प्र. वि. मूल सूत्र - १७५ ग्रं. २१२० टवार्थ-ग्रं. २२२०, ( २६.५x१२, ७x४८-५३ ) . राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अंतिः परसावणीए णमो ; राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हुवउ० चउथा; अंतिः प्रश्न प्रसवतीनइं. " ११५३८.” रायप्रसेणीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., प्र. वि. मूल - सूत्र - १७५. सर्वग्रं. संशोधित, (२५.५४११.५. ८४५४-५८) राजप्रश्नीयसूत्र प्रा. गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अंतिः सुप्परसवणाए णमो " "" , राजप्रश्नीयसूत्र - टवार्थ वा. मेघराजजी मागु, गद्य, आदि ११५३९. राजप्रश्नीयसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. " " " ९२ जैदेना. प्र. वि. मूल - सूत्र - १७५, (२५४१२५, ९४०-४४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्सणीएणं नमो. राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा; अंतिः तेह भणी नमस्कार थाओ.. ११५४०. राजप्रश्नीयसूत्र सह टवार्थ प्रथमअधिकार, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ११६+१(७२) = ११७, जैदेना. प्र. वि. प्रतिलेखकने द्वितीय अधिकार का प्रारंभ करके छोड़ दिया है., (२५.५५११, ५४३३-३७). " राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदि नमो अरिहंताणं० तेणं अंति: ; राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा ; अंति: ८७७३., देवदेवं जिनं नत्वा अंतिः ए बिहुने नमस्कार थाओ. ११५४१. राजप्रश्नीयउपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र. वि. सूत्र - १७५, ग्रं. २०८०, प्र.ले. श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा (२६.५४११, ११-१४४३८-४१ ). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्से परसवणा नमो. For Private And Personal Use Only ११५४२.” रायपसेणीयसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५४ - १ (८२ ) = १५३, जैदेना., प्र. वि. मूल- सूत्र - १७५, ग्रं. २०७९; J टबार्थ-ग्रं. ४४५१. सर्व ग्रं. ग्रं. ६५३०, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X१०.५, ५X४२-४४). राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः सुपस्सणीएणं नमो. राजप्रश्नीयसूत्र - टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदि: देवदेवं जिनं नत्वा ; अंतिः तेह भणी नमस्कार थाओ. ११५४३. जीवाभिगमसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी मध्यम पृ. १९२ जैदेना. प्र. वि. १० प्रतिपत्ति (२६.५४११, ११४३६-४३). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. 1 Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११५४४. जिवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. ३०९, जैदेना., ले.स्थल. शांतलपुर, ले.- गणि सुखविजय (गुरु गणि बुद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मलयगिरिसूरि कृत टीका आधारित टबार्थ है. मूल-१० प्रतिपत्ति, ग्रं. ४७५०; टबार्थ-ग्रं. ९३००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ,प्र.ले.श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो; (६३९) जलाद्रक्षेस्तिलाद्रक्षे; (४६२) मङ्गलं लेखकस्यापि, (२६४११.५, ७४३४-३७). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं णमो; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मागु., गद्य, वि. १७७२, आदिः प्रणम्य ज्ञानविज्ञान; अंतिः वार्ता संपूर्ण थइ. ११५४५. जीवाभिगमसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९८, श्रेष्ठ, पृ. २६०, जैदेना., ले.स्थल. नागोरमध्ये, प्र.वि. मूल-१० प्रतिपत्ति., प्र.ले.श्लो. (२३९) यद किंचित् लिखितं कूटं; (६४३) अक्खरमत्ताहीनं जं, (२६.५४१२, ८४४४-४६). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः णमो० नमस्कार हो उ०; अंति: जीवाभिगम० सम्पूर्ण. ११५४६. पन्नवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १६६५, जीर्ण, पृ. २३४, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- श्रा. तोडरमल, पठ.- ऋ. जोधाशा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ३६ पद., सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७, (२७.५४११.५, १२-१३४४०-४५). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ११५४७." पण्णवणासूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २११+७(१९,३१,४९,५३,५९,११२,१७५)=२१८, जैदेना., प्र.वि. ३६ पद., ग्रं. ___७७८८, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १३४४२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. ११५४८." पण्णवणाउपाङ्गसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५४+१(८५)=१५५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-३६ पद., ग्रं. ७७८७., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १५४४९-५७). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-कठिनपदटिप्पण*, सं.,मागु., गद्य, आदिः#; अंति: #. ११५४९. पन्नवणासूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६३+१(२४८)=२६४, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. २३७८७., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१०.५, १५४५७-६३). प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: जयति नमदमरमुकुट; अंतिः जिनवचनसद्बोधम्. ११५५०. पन्नवणासूत्रवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४१-४०(१ से ३९,१९६)+१(६९)=२०२, जैदेना.,पू.वि. प्रारंभ, बीच व ____ अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १५४५९-६१)... प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि:-; अंति:११५५१." जीवाभिगमसूत्र सह कठिनपदटिप्पण, संपूर्ण, वि. १६६८, श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैदेना., प्र.वि. अन्तिम पत्र पर बीजक दीया गया है. मूल-१० प्रतिपत्ति, ग्रं. ४७५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११, १३४४६-४७). जीवाभिगमसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: णमो उसभादियाणं; अंतिः सेत्तं सव्वजीवाभिगमे. जीवाभिगमसूत्र-कठिनपद टिप्पण, सं.,मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ११५५२. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२१, श्रेष्ठ, पृ. २८५, जैदेना., ले.स्थल. कनकावतिनगर, ले.- मु. भाणविजय (गुरु पं. प्रतापविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार. सर्व ग्रं.ग्रं.१५०००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्ट्वा , (२६४१२, ६x४१-४७). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७७०, आदिः श्रीसिद्धार्थनराधिप; अंतिः शोधितव्य कोविदैः. ११५५३. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.स्थल. पल्लिकानगरे, ले.- अमरदत्त ब्राह्मण, प्र.वि. २० For Private And Personal Use Only Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६२ प्राभृत, ग्रं. २२५४ (२३.५४१२, १५४४५-५०). चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., पद्य, आदि नमो अरि० जयति अंतिः अविणीएसु दायव्यं (+) www.kobatirth.org: ११५५४. निरयावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५६ पे ५ जैदेना, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें (२४.५४१२.५. ८०४०-४५). अध्ययन. पे-४. पे नाम पुष्पचूलिकासूत्र सह (मा. गु.) टवार्थ, पृ. ४७आ-५०आ पुष्पचूलिकासूत्र प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः वासे सिज्झिहिंति " पे.-१. पे. नाम. कल्पिकासूत्र सह ( मा.गु.) टबार्थ, पृ. १आ - २१आ कल्पिकासूत्र, प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०: अंतिः मायातो सरिसणामाओ. कल्पिकासूत्र -टबार्थ, मागु, गद्य, आदि श्रीवीतरागदेवने नम०: अंतिः नामै सरिखा नाम जाणवा, पे.वि. मूलअध्याय १० अध्ययन. पे. २. पे नाम. कल्पावतंसिकासूत्र सह ( मा.गु.) टबार्थ, पृ. २१आ-२३आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०: अंतिः वा सेज्झिहिंति. कल्पावतंसिकासूत्र- टबार्थ, मागु, गद्य, आदिः ज० जउ भं० हे पूज्य अंतिः दुखनउ अन्त करस्यइ., पे. वि. मूलअध्याय १० अध्ययन. पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह (मा.गु.) टबार्थ, पृ. २३-४७ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जति णं भंते समणेनं०: अंति: चेइयाई जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ज० जउ भ०हे भगवन्त: अंतिः गाथाई कह्या तिम. पे. वि. मूल- अध्याय - १० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पुष्पचूलिकासूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि जो है भगवन्त स०श्रमण: अंतिः खपावी मुक्त जास्यै, पे.वि. मूल अध्याय १० अध्ययन. पे. ५. पे नाम वृष्णिदशासूत्र सह (मा.गु.) टवार्थ, पृ. ५०आ-५६आ वृष्णिदशासूत्र प्रा. गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स अंतिः मइरित एक्कारससु वि. ; वृष्णिदशासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः ज०जो हे पूज्य उ०ए अंतिः बारे उद्देशा कह्या, पे. वि. मूल- अध्याय - १२ अध्ययन. ११५५५. पन्नवणासूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२७, जैदेना., प्र. वि. त्रिपाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण... (२५X१३, ४-१४४४७-५३). प्रज्ञापनासूत्र वा श्यामाचार्य प्रा. गद्य, आदि नमो अरिहन्ताणं; अंति: , ! " प्रज्ञापनासूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति नमदमरमुकुट; अंतिः ११५५६. चन्द्रप्रज्ञप्तिसूत्रवृत्ति प्रतिपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना. प्र. वि. किंचिन्यून प्राभृत-४ तक है., (२७.५०१२.५, १३४५५-५६). चन्द्रप्रज्ञप्ति टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य, आदि मुक्ताफलमिव करतलकलित: अंतिः " (+) ११५५७. माहानिसिथसूत्र भावार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२७x१३, ११३१-३५). महानिशीथसूत्र - भावार्थ, मु. दीपविजय कवि, मागु., गद्य, वि. १८९०, आदिः स्वस्ति श्रीमन्नृपती; अंतिः आराधक सिद्धि वरस्यै. ११५५८. विवहारसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५२+१ (१५) = ५३, पे. २, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, ( २४.५x१२, ८x४०-४४), पे.-१. पे. नाम. व्यवहारसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५१आ For Private And Personal Use Only Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ , व्यवहारसूत्र आ. भद्रवाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खु मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः #., पे.वि. मूल- अध्याय - १० उद्देशक. पे. २. पे. नाम. वेयावच्च के दस प्रकार व प्रायश्चित्त विचार, पृ. ५१-५२अ बोल सङ्ग्रह, मागु., प्रा., सं., गद्य, आदि: #; अंतिः #. " www.kobatirth.org: ११५५९.” दशाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., प्र. वि. मूल - १० दशा., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२०२१२, ३-५०४५-४९). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि नमो अरिहंताणं० हवइ: अंति: उवदंसेइ सि बेगि दशाश्रुतस्कन्धसूत्र - जनहिताटीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं., गद्य, आदिः यथास्थिताशेषपदार्थ: अंतिः जं चरणगुणट्ठिओ साहूव ११५६०.” दसाश्रुतस्कन्धसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८६, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले. स्थल. उजेणीनगरे, प्र. वि. मूल - १० दशा. सर्व ग्रं. ग्रं.२५००, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५x१२, ७x४१-४२). दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० हवइ; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि दशाश्रुतस्कन्धसूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: वर्द्धमानं जिन अंतिः उपदिसइ इति ब्रवीमि · " (+) ११५६१. महानिशीथसूत्र भावार्थ, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. (२७४१२.५, १४९३७). " महानिशीथसूत्र- भावार्थ, मु. दीपविजय कवि, मागु., गद्य, वि. १८९०, आदिः स्वस्ति श्रीमन्नृपती; अंतिः रच्यो छे० थासौ. ११५६२. व्यवहारसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. ले. स्थल अर्गलपुर ले. श्री. कपूर सेताम्बर राज्यकाल · " " राजा अकबर, प्र. वि. १० उद्देशक, (२७०९११.५, १४९५२-५४) व्यवहारसूत्र आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि जे भिक्खू मासियं अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. · Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir -, ११५६३.” निशीथसूत्र के चूर्णिगत अपवादसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४१०५. १६४४५-४७). निशीथसूत्र - विशेष चूर्णी का अपवादसङ्ग्रह, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः भवे कारणं जेण तसकाय अतिः अवइढ अभिइ न काव्वो. ११५६४.” बृहदकल्पसूत्र सह टबार्थ व प्रायश्चित्तविधि आदि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११.५, ७०४३८-४०). २६३ पे.-१. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टा पृ. १आ-२७आ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पइ निग्गंथाण: अंतिः कप्पट्ठिई तिबेमि बृहत्कल्पसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः न कल्पि साधुने अंतिः शुद्ध आचार मे रहि जो पे. वि. मूल-अध्याय-६. पे. २. पे नाम, वृहत्कल्पसूत्र की प्रायश्चित्तविधि, पृ. २७अ-२७आ बृहत्कल्पसूत्र- प्रायश्चित्तविधि, संबद्ध, मागु, गद्य, आदि: नीवी मास मिन्न कहिता; अंतिः वृत्ति माहे छई. पे.-३. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तविधि यन्त्र, पृ. २८अ-२८अ बृहत्कल्पसूत्र- प्रायश्चित्तविधि यन्त्र, मागु., गद्य, आदिः #; अंतिः #. , ११५६५. व्यवहारसूत्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. प्र. वि. १० उद्देशक (२४४१०.५, ११४४५-४९). " व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. ११५६६. विशेषावश्यकभाष्य सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी १३४५९-६५). श्रेष्ठ, पृ. २०६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २६.५x११, विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः कयपवयणप्पणामो; अंतिःविशेषावश्यक भाष्य - शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं. गद्य वि. १२वी आदिः श्रीसिद्धार्थनरेन्द् " " अंति: For Private And Personal Use Only Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची २६४ ११५६७.” आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१०, जैदेना., प्र. वि. सर्व ग्रं. ग्रं. १२३८३ नियुक्ति का मात्र प्रतिकपाठ दीया है. पू. वि. सामायिक अध्ययन तक की टीका है., ( २६४११, ११४३६). आवश्यक सूत्र- शिष्यहिता टीका, आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि:-: अंति: " आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की शिष्यहिता टीका# आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि:-: अंति:आवश्यकसूत्र नियुक्ति के भाष्य की टीकाएँ, आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि:-: अंति: ११५६८.” आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११० - ८ (१ से ७, ९ ) = १०२, जैदेना., प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४११, ११९४३). आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. पृ. ४२७ ११५६९.” आवश्यकसूत्र सह निर्युक्ति व टीका - अध्ययन-२ कुन्थुजिन विवरण पर्यन्त प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, १ (३७२ )+१ (१५३)=४२७, जैदेना. प्र. वि. अनुपुरित पत्र- पत्र १ से १५१ १८वी के तथा १५२-४२७ २०वी सदी के पत्र हैं. संशोधित (२६.५४११, १३४५१-५६) " आवश्यकसूत्र, प्रा. प+ग, (अपूर्ण), आदि णमो अरहंताणं०: अंति: " आवश्यक सूत्र- निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंति: आवश्यक सूत्र- टीका आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-: अंति: · " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५७०. आवश्यकसूत्रनिर्युक्ति व भाष्य सह बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. ४००, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमनगर, ले. पं. कर्मसी (बृहत्खरतरगच्छे), गच्छा. गच्छाधिपति जिनचन्द्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टीका ग्रं. २२००० टीका ग्रं. २२०००, अंतमे अनुक्रमणिका दी गई है. (२६४११, १७०४५३-५६). आवश्यक सूत्र- शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंतिः माध्यस्थमवाप्नुवन्तु. आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः माध्यस्थमवाप्तुवन्तु. आवश्यक सूत्र नियुक्ति के भाष्य की टीका# आ. हरिभद्रसूरि सं. गद्य, आदि: अंतिः # , " ११५७१. आवश्यकसूत्र सह नियुक्ति भाष्य व बृहद्वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६०९-२४२ (१ से २४२) - ३६७, जैदेना... प्र. वि. मूल-६ अध्ययन., ( २६.५x११, १३५१). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. आवश्यक सूत्र- नियुक्ति आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य, आदि: अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू. . · आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य प्रा., पद्य, आदि:-: अंति: " आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः नमस्या उद्देशतः कृतं. ११५७२ . आवश्यकसूत्र मूल, निर्युक्ति व भाष्य के सामायिक अध्ययन निर्युक्ति की अवचूर्णि प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६२२ (२९.३१)= ६०, जैदेना. प्र. वि. ३० और ३१ यह दोनो नम्बर एक ही पेज पर है, ( २६.५४११, १५-२१४५४-७२). आवश्यक सूत्र - अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं. गद्य, वि. १४४०, आदिः प्रारभ्यते श्रीआवश्य; अंति: " आवश्यक सूत्र- नियुक्ति की अवचूर्णि# आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४४०, आदि:-: अंतिः " आवश्यकसूत्र-निर्युक्ति के भाष्य की अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः (+) ११५७३ . आवश्यकसूत्रलघुवृत्ति-पीठिका, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, देना., ( २६.५४११, १८ - १९४६४-७०). आवश्यक सूत्र- लघुवृत्तिक आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य वि. १२९६ आदिः देवः श्रीनाभि: अंतिः ११५७४. आवश्यकसूत्र टीका व चौदनियम गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ७०, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, प्र. वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ १०.५, १५४२-४५). पे. १. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र- वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं. गद्य (पृ. १आ-७०-अ), आदि: वृन्दारुवृन्दारक; अंति " " " For Private And Personal Use Only Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ वृत्तितोवरचूर्णितश्च. पे. २. पे. नाम. चउदनियम सह व्याख्या, पृ. ७०अ- ७०अ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः सचित्त दव्व विगइ: अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु. १४ नियम गाथा-बालावबोध, सं., मागु., गद्य, आदिः सचित्त पृथिव्यादि; अंतिः चतुर्वाराणां क्रियते, पे.वि. मूल - गा.१. ११५७५. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५१३, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. पं. सत्यविशाल गणि (गुरु पं. विशालरत्न गणि), प्र. वि. पंचपाठ, ( २६४११, ३-१५०३७-३८). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र संबद्ध, प्रा., मागु, प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः इय सम्मत्तं मए गहियं. , श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: इह तावत् श्राद्धेना अंतिः यथा समीधानमिति Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११५७६. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. प्र. वि. पंचपाठ, ( २६४११, १२X४०-४५ ). " " श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र · संबद्ध, प्रा. मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः जिणे चउव्वीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः इहं तावत् श्रावकेण; अंतिः वृतित्तोवचूर्णितश्च. ११५७७. चैत्यवन्दनसूत्रवृत्ति, संपूर्ण वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३०, जैदेना. (२६४११, १५४४७-४९), , चैत्यवन्दनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भुवनालोकं अंतिः मात्सर्यविरहः परः. " , , ११५७८. साधुप्रतिक्रमणसूत्र व पिण्डविशुद्धि सह टबार्थ, श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. ५२, पे. ६, जैदेना., ले. स्थल कोटासहरे, ले. पं. पेमचन्द (गुरु पं. रतनचन्द, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. सर्व ग्रं. २२६१, (२४४१०.५ ४ ११४३५-४२) पे.-१. पे. नाम. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, पृ. १-४० पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि भं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. " पगामराज्झायसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि प्रकाम क० अतिहि अंतिः वर्तमान जिन प्रते पे. वि. संबद्ध-सूत्र -२१. पे. २. पे नाम. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह टवार्थ, पृ. ४० अ-५२अ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा. पद्य, आदि देविन्दविन्दवन्दिय अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य पिण्डविशुद्धि प्रकरण- बालावबोध, मागु, गद्य, आदि देवताना इन्द्र तेहना; अंतिः अने सोधउ निर्दोष करउ., पे.वि. मूल-गा. १०३. पे. ३. दान लक्षण, सं., पद्य, (पृ. ५२आ - ५२आ), आदिः आनन्द श्रेणिरोमाञ्च; अंतिः संताप दानदुषणपञ्चकं., पे.वि. श्लो. २. २६५ पे. ४. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ५२आ-५२आ), आदि: #; अंति:#. पे.-५. द्विदल विचार, प्रा., पद्य, (पृ. ५२आ-५२ आ), आदि: जं मिओ पिल्लिज्जन्ते; अंतिः होइ नो वीदलं. पे.वि. गा.१. पे. ६. जैन श्लोक सं., पद्य, (प्र. ५२आ-५२आ), आदि अंतिः #. " ११५७९ षडाश्यकसूत्र सह टवार्थ व सोलसती स्तुति, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. ३ जैदेना. (२५५११, ४०३०-३१). पे. १. पे. नाम षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३३आ ; आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो अंतिः निच्चं सुगुरुवएसेणं. षडावश्यक सूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो अरिहंत; अंति: गुरुने उपदेसे करवा. पे. २. पे. नाम जिनालय १० आशातना सह टबार्थ, पृ. ३३आ-३३आ जिनभवन १० आशातना, प्रा., पद्य, आदि: तम्बोल पाण भोयण; अंतिः वज्जे जिणनाह जगइए. For Private And Personal Use Only जिनभवन १० आशातना-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि पान सोपारी अजमो अंतिः देहराने विषे पे. वि. मूल-गा. १. पे. ३. १६ सती स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ -३४अ), आदि: ब्राह्मी चन्दनबालिका; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो. १. Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११५८०. सप्तस्मरण व लघुशान्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., (२५४१०.५, ६४३५-४०). पे.-१.पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-२२आ, प्रतिपूर्ण नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं हवइ; अंतिः स्तूयमाने जिनेश्वरे. नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तने नम०; अंतिः जिनेश्वर भगवन्त., पे.वि. मूल-अध्याय-९ स्मरण. कल्याणमंदिर सिवाय के ८ स्मरण है. पे.२. पे. नाम. लघुशान्ति सह टबार्थ, पृ. २२आ-२४अ, संपूर्ण लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. लघुशान्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीशान्तिनाथ प्रति; अंतिः त्रीनलोक पूज्य., पे.वि. मूल-श्लो.१८. ११५८१. आवश्यकसूत्र की वृन्दारुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. २८००, संशो २८००, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १५-१७४४९-५५). श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका , आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ११५८२. आवश्यकसूत्र की हरिभद्रीयटीका का टिप्पनक, संपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. १०९, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले. श्रा. रामचन्द्र लोढा, प्र.वि. ग्रं. ४४२०, (२७४११.५, १४४४५-४८). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पणक, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदिः जगत्रयमतिक्रम्य; अंतिः युक्तिः समाप्तेति. ११५८३. नवस्मरण व लघुशान्ति सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. त्रंबानगर, ले.- मु. अमृतविजय (गुरु पं. गलालविजय, तपागच्छ); मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), पठ.- मु. कानजी,प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल के प्रतिलेखक अमृतविजय व टबार्थ के प्रतिलेखक उत्तमविजयजी है., (२८x११.५, ७४३८-४१). पे.१. पे. नाम. नवस्मरण सह टबार्थ, पृ. १आ-१२आ, संपूर्ण नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम्. नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तने नम०; अंतिः उत्कृष्टो मोटो., पे.वि. मूल-अध्याय-९ स्मरण. पे..२. पे. नाम. लघुशान्ति सह टबार्थ, पृ. १२आ-१४अ, संपूर्ण लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति शासनम्. लघुशान्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः शान्तिनो करनार अनें; अंतिः आसन जयवन्तु प्रवर्तो., पे.वि. मूल-श्लो.१७+२. ११५८४." षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, श्रावकदिनकृत्य व १०आशातना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४+१(७३)=७५, पे. ३, जैदेना., पठ.- मु. लक्ष्मीविजय,प्र.वि. संशोधित, (२६४११.५, ४४२५). पे.१.पे. नाम. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, पृ. १आ-७४अ आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः वन्दामि जिण चउवीसं. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्त विहरमाण ने; अंतिः#., पे.वि. अंतिम गाथा का बालावबोध नही दिया गया है. पे.२. श्रावक दिनकृत्य, मागु., गद्य, (पृ. ७४अ-७४अ), आदि: मानवी श्रीवीतरागनी; अंति: गुरुने उपदेसे करवा. पे.३. जिनभवन १० आशातना-टबार्थ, मागु., गद्य, (पृ. ७४अ-७४अ), आदिः पान सोपारी अजमो; अंतिः देहराने विषे. ११५८५." षडावश्यकसूत्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१२, ४४३०-३२). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंति: षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तने माहरो नम०; अंति:११५८६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र टीका सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ४८३-१(१०५)=४८२, जैदेना.,ले.- पं. नायकविजय For Private And Personal Use Only Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २६७ (गुरु पं. जयविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ५ अधिकार, ग्रं. ६६४०., (२५४११, ६४३८-४३). वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदिः जयति सततोदयश्रीः; अंति: जीयादियं च चिरम्. वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिकाटीका का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्वा पञ्चासरं पार्श; अंतिः घणा काल जय पामो. ११५८७.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र, वृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रेष्ठ, पृ. १३१, जैदेना., ले.स्थल. कटारियानगर, प्र.वि. प्र.पु.-टीका-ग्रं. २७००.सर्वग्रं. ७०००/६०००. सर्व ग्रंथाग्र ७००० और ६००० दोनो तरह से मिलता है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा ; (६४६) तैला रक्षे जला रक्ष, (२६.५४११.५, ८४४३ ४६). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः जिणे चउव्वीसं. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, वि. १७६१, आदिः बालानां सुहितार्थाय०; अंतिः विधि कहिउ छे. ११५८८. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-गा.५०., (२६.५४१२, ४४३४). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः सर्वज्ञ अरिहन्त; अंतिः वान्दु मङ्गलीक भणी. ११५८९.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र चूर्णि, संपूर्ण, वि. १५८०, श्रेष्ठ, पृ. १३३, जैदेना., ले.- मु. विनयकीर्ति (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच के कुछ पत्र, (२६४११.५, १४४३९-४३). वन्दित्तुसूत्र-चूर्णि, आ. विजयसिंहसूरि, प्रा.,सं., गद्य, वि. ११८३, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं०; अंतिः मासम्मि समत्थिया एसा. ११५९०. जम्बूद्विपप्रज्ञप्तिसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५४, जैदेना., ले.- गणि मुक्तिसागर (गुरु गणि नेमीसागर, तपागच्छ), प्र.वि. मूल-७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१४६; टीका-ग्रं. १४२५२., त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ४-८४४२-४५). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६३९, आदि: जीयात् तेजस्त्रिभुवन; अंतिः कामोत्सवानङ्गीनाम्. ११५९१. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६२, जैदेना., प्र.वि. ७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१५४, (२६.५४१०.५, ११४३६ ४०). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११५९२. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. १५२, जैदेना., ले.स्थल. वारणा, ले.- ऋ. थाउ (गुरु ऋ. थावर), प्र.वि. ७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१५४; मूल-७ वक्षस्कार, ग्रं. ४१५४, (२७.५४११.५, ११४४२-४४). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११५९३." निरयावलियादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, पे. ५, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१०.५, ९४३७-४२). पे..१.पे. नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-२२अ __ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियन्वो तहा., पे.वि. १० अध्ययन. पे.२.पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. २२अ-२४अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा सेज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. For Private And Personal Use Only Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २६८ www.kobatirth.org: पे. ३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. २४अ - ४४आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जति णं भंते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए., पे.वि. १० अध्ययन. पे. -४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ४४आ- ४८अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति., पे. वि. १० अध्ययन. पे.-५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ४८अ - ५४आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि., पे.वि. १२ अध्ययन.. ११५९४.” निरयावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, पे. ५, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२७११, ११४४०). पे. १. पे नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१६आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०: अंतिः भणियव्यो तहा. पे.वि. १० अध्ययन. पे.-२. पे. नाम. कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १६आ - १८अ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा सेज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ३. पे नाम. पुष्पिकासूत्र, पृ. १८आ-३५अ " पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंतिः चेइयाई जहा संगहणीए पे वि. १० अध्ययन. पे. -४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. ३५अ - ३७ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः वासे सिज्झिहिंति., पे.वि. १० अध्ययन. पे. ५. पे नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. ३७आ-४२आ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते० पंचमस्स अंतिः मइरित एक्कारससु वि., पे. वि. १२ अध्ययन. ११५९५. निरयावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र, संपूर्ण वि. १५९७ श्रेष्ठ, पृ. २९ पे ५ जैदेना. प्र. वि. सर्व ग्रं. ग्रं. १२०० (२७४११, १३४४७-५०). पे. १. पे नाम. कल्पिकासूत्र, पृ. १आ-१२अ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा., पे.वि. १० अध्ययन. पे. २. पे नाम, कल्पावतंसिकासूत्र, पृ. १२अ १३अ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः महाविदेहे सिद्धे, पे.वि. १० अध्ययन. पे- ३. पे नाम पुष्पिकासूत्र, पृ. १३अ-२४अ " पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जति णं भंते समणेणं०: अंति: चेहयाई जहा संगहणीए पे. वि. १० अध्ययन. पे. -४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र, पृ. २४अ - २६अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा. गद्य, आदि जइ णं भंते समणेणं०: अंतिः वासे सिज्झिहिंति पे. वि. १० अध्ययन. " पे.-५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र, पृ. २६अ - २९अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदि जइ णं भंते० पंचमस्स अंतिः मइरित एक्कारससु वि. पे. वि. १२ अध्ययन. , ११५९६. निरयावलीयादिपञ्चोपाङ्गसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ९५ पे ५ जैदेना. (२६४११.५ ५४३९-४०). पे. १. पे नाम. कल्पिकासूत्र सह (मा.गु.) टबार्थ, पृ. १आ-३४आ कल्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं तेणं०; अंतिः भणियव्वो तहा. कल्पिकासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: ते तेण उसर्पिणीनउ: अंति कुमरना नाम छइ., पे. वि. मूल- अध्याय- १० अध्ययन. पे. २. पे नाम, कल्पावतंसिकासूत्र सह (मा.गु.) टवार्थ, पृ. ३४-३८आ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः वा सेज्झिहिंति. कल्पावतंसिकासूत्र - टबार्थ मागु, गद्य, आदिः ज०जउ भव्हे भगवन्त: अंतिः खेत्रे सीझस्यै, पे. वि. मूल- अध्याय १० For Private And Personal Use Only Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २६९ अध्ययन. पे.३. पे. नाम. पुष्पिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ३८आ-७९आ पुष्पिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भन्ते समणेणं०; अंतिः चेइयाइं जहा संगहणीए. पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जजउ भंव्हे पूज्य; अंतिः जिम सं०सङ्गहणी गाथा., पे.वि. मूल-अध्याय __१० अध्ययन. पे.-४. पे. नाम. पुष्पचूलिकासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ८०अ-८५अ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., गद्य, आदि: जइ णं भंते समणेणं०; अंतिः वासे सिज्झिहिंति. पुष्पचूलिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जउ हे पुज्य तपस्वीइ; अंतिः विषई सि० सिझस्यइं., पे.वि. मूल अध्याय-१० अध्ययन. पे.५. पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. ८५अ-९५अ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंति: मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जन्जदपी भंव्हे भगवन्त; अंतिः उद्देशा अध्ययन., पे.वि. मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. ११५९७." षडावश्यकसूत्र व वृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, मध्यम, पृ. १६२, जैदेना., ले.स्थल. आडिसरनगरे, ले.- मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. मूल-६ अध्ययन; टीका-ग्रं. २७२०; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ३२५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ७X४३-४५). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः णमो अरहंताणं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, वि. १७६१, आदिः बालानां सुहितार्थाय०; अंतिः विधि कहिउ छे. ११५९८. आवश्यकसूत्र मूल, नियुक्ति व भाष्य की बृहट्टीका, पूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. ४०५-१(२)=४०४, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले.- मु. गोव्यन्द, प्र.वि. टीका-ग्रं. २२०००; टीका-ग्रं. २२०००. नियुक्ति का मात्र प्रतिकपाठ व भाष्य का साक्षीपाठ मिलता है., (२५.५४११, १७-१८४६४). आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंति: माध्यस्थमवाप्नुवन्तु. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः माध्यस्थमवाप्तुवन्तु. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः११५९९.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. उत्तमविजय, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२१.५४१०, १०x२४-२७). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः करी मिच्छामि दुक्कडं. ११६००. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, नमस्कार स्तोत्र व प्रत्याख्यानसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. मु. उमेदविजय, (२४४१०, १६४३४-३९). पे.१. पे. नाम. साधु प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, पृ. १अ-७अ साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,गुज., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पे..२. वज्रपंजर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः ॐ परमेष्ठि नमस्कारं; अंतिः चापि कदाचन., पे.वि. श्लो.८. पे.-३. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः सुरे उग्गए अब्भत्त; अंतिः असित्थेण वा वोसिरामि. ११६०१. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-बालावबोध-ग्रं. ३००४., For Private And Personal Use Only Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२६४११, १४-१५४५६-५७). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः वतियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मागु., गद्य, वि. १५०१, आदिः श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंतिः आचन्द्रार्कनन्द्यात्. ११६०२. आवश्यकसूत्रनियुक्ति व नन्दीसूत्र-स्थविरावली, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७४-१(१)+१(६)=७४, पे. २, जैदेना., पू.वि. गाथा १-३३ नही है., (२६४११, १३४४७-५३). पे.-१. पे. नाम. नन्दीसूत्र-स्थविरावली, पृ. २अ-२आ, अपूर्ण नन्दीसूत्र-स्थविरावली, आ. देववाचक, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः नाणस्स परूवणा वुच्छं., पे.वि. गा.५० प्रथम पत्र नहीं है. पे.२. आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-७४अ, संपूर्ण), आदिः आभिणिबोहियनाणं; अंतिः चरणगुणट्ठिओ साहू., पे.वि. गा.२५५०, ग्रं.२६५९. ११६०३. सप्तस्मरण, प्रतिपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. शांतलपुर, ले.- गणि ऋद्धिविजय (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-८ स्मरण. कल्याणमंदिर सिवाय के स्मरण है., (२५.५४१०.५, १६x४३-४५). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (संपूर्ण), आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः निच्चमच्चेह. ११६०४.' साधुप्रतिक्रमण सूत्र सङ्ग्रह, सप्तस्मरण व स्तोत्र प्रकरणादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पे. १३, जैदेना., ले.स्थल. मालपुर, ले.- मु. दयासागर (गुरु गणि अनोपसागर), प्र.वि. अशुद्ध पाठ, (२३.५४११, ११४३५ ४०). पे.-१. साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. १आ-७आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः जिणे चउव्वीसं. पे..२. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः पोरसी साढपोरसी; अंतिः सहसागारेणं वोसिरामि. पे.-३. जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-११आ), आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव विनवइ आणन्दिय., पे.वि. गा.३०. पे.-४. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-२०अ), आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे.-५. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. २०अ-२१अ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे.६. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२४अ), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे.७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. २४अ-२७आ), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे..८. महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. २७आ-२९आ), आदि: भावारिवारणनिवारणदारु; अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो.३०. पे..९. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २९आ-३२अ), आदि: दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. पे.-१०. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३२अ-३४आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.-११. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३४आ-३७अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. For Private And Personal Use Only Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ गा. ५१. पे.-१२. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ३७अ - ३९अ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा वित्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.३८. २७१ पे.-१३. सिद्धदण्डिका स्तव, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३९अ - ४०अ ), आदि: जं उसभ केवलाउ अन्तमु; अंतिः दिन्तु सिद्धिसुहं., पे. वि. गा. १३. " ११६०५. भाष्यत्रय व पच्चक्खाणसूत्र, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. ६ पे २ जैदेना ले. स्थल अंजार, ले. पं. वनीतविजय, पठ. मु. बालकचन्द (गुरु गणि वनीतविजय), (२५.५४११.५ १४०४१-४४). पे.-१. भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - ६आ), आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं., पे. वि. ३ भाष्य, गा. १५२. पे. २. प्रत्याख्यानसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि सुरे उग्गए अब्मत्त अंतिः असित्थेण वा वोसिरामि ११६०६. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ले.- मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), पठ. - मु. अमरसी कानजी (गुरु मु. उत्तमविजय), (२५X११.५, ९×२८-३४). पे. १. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, (पृ. १आ - १४आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः मणसा मत्थएण वन्दामि. पे. २. महावीरजिन स्तोत्र, मु. मुनिसुन्दर, प्रा., पद्य, (पृ. १४आ - १४आ), आदिः जयसिरिजिणवरतिहुअणजण; अंतिः नियपइ सुदाणओ अइरा., पे.वि. गा.५. ११६०७. यतिप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६१९, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. मु. माना, (२३.५४१०.५, १५४४१). पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदि: नत्वा श्रीवीरजिनं; अंतिः सर्वमनवद्यम्. ११६०८. नवस्मरण व लघुशान्ति, संपूर्ण वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २. जैदेना. ले. पं. चन्द्रकुशल (२६११.५ १२४२६ २९). पे. १. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, (पृ. १अ - ११आ), आदि: नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः समुपैति लक्ष्मी.., पे. वि. अध्याय ६ स्मरण तिजयपहृत्त व कल्याणमंदिर बिना के सभी स्तोत्र है. पे.-२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११आ - १२ आ), आदिः शान्ति शान्ति; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे., पे.वि. श्लो. १८. . " ११६०९. प्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह व स्तुतिसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे. ७ जैदेना, (२५.५५११.५, १३०४०-४३). पे:-१. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र - खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा., सं. मागु., प+ग, (पृ. १आ-५आ), आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः पास पयच्छउ वञ्छिउ. पे:-२. पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, सं., पद्य, (पृ. ५आ - ५आ), आदिः श्रीसेढीतटिनीतटे; अंतिः सदा ध्यायामि मानसे., पे.वि. श्लो. २. पे. ३. अष्टमीतिथि स्तुति, मागु, पद्य, (पृ. ६अ-६अ ) आदि महामद्गलं अटठ सोहइ अंतिः सुह सन्ति कल्याणदाता, पे.वि. गा. ४. पे. ४. दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि सं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ ), आदि: पापायां पुरि अंतिः शार्दूलविक्रीडितम्.. पे.वि. श्लो. ४. For Private And Personal Use Only पे. ५. मीनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (प्र. ६अ-६आ), आदि अरस्य प्रवज्या अंतिः विपदः पञ्चकमदः, पे. वि. श्लो.४. पे - ६. नेमिजिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: सुरअसुरवन्दितपाय; अंतिः करे अम्बक देवीयै., पे.वि. गा.४. पे. ७. शत्रुंजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: श्रीशत्रुञ्जमण्डण; अंतिः तुम्ह पय सेवता, पे. वि. गा.४. Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६१०. श्रावकप्रतिक्रमणविधिसूत्र, चैत्यवन्दन, स्तवन, सझाय, गीत आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पे. १३, जैदेना., ले.स्थल. शेषपुर, ले.- गणि प्रीतिसागर (गुरु मु. लक्ष्मीसागर, विधिपक्षगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६४११, ७४२६-२७). पे.१. पे. नाम. श्रावकपडिक्कमणसूत्र-अंचलगच्छीय, पृ. १आ-२९अ पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अञ्चलगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, आदिः नमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः मुगति तणा फल लीजीइ., पे.वि. इस पेटांक अंतर्गत बीच-बीच के पत्र पर चैत्यवंदनादिसूत्र व स्तवनादि का संग्रह कीया गया है. पे.२.बृहत्चैत्यवन्दनसूत्र, मागु.,प्रा., पद्य, (पृ. १२आ-१५अ), आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः तिलोए चेइए वन्दे., पे.वि. गा.२१. पे.-३. पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१६आ), आदिः सरसति सामिनि पयनमी; अंतिः ऋद्धि सिद्धि आनन्द ए., पे.वि. गा.११. पे.४.२४ जिननाम स्तवन, पण्डित ललितसागर, मागु., पद्य, (प्र. १६आ-१७अ), आदिः ऋषभजिन पहिला बीजा; अंतिः लहीइ नवनिधइ गेह.,पे.वि. गा.८. पे.५. विहरमान २० जिन स्तवन, आ. पुण्यरत्नसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः विहिरमान जे जिणवर; अंतिः कहइ० निश्चय आपइ ठाम., पे.वि. गा.४. पे.-६. पे. नाम. श्रीगुडी पार्श्वनाथ सतवन, पृ. १७आ-१९अ पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, आदिः सरसति सामिणि देवि; अंतिः सङ्घनइ सदा सुख करु., पे.वि. गा.९. पे.७. स्थूलिभद्र सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, (पृ. २९आ-३०आ), आदिः कोशा बोलइ रे साधुजी; अंतिः हुं जाउं बलिहारी., पे.वि. गा.१०. पे.८. आत्महितशिक्षा गीत, मु. ज्ञान, मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-३१आ), आदिः रे मेरे परम सलूणे; अंतिः ज्ञानी करी कछू ज्ञान., पे.वि. गा.६. पे९. पञ्चेन्द्रीय गीत, मु. गुणसागर, मागु., पद्य, (पृ. ३१आ-३२आ), आदिः मयगलमातोवनइं वसइजी; अंतिः भणइ० ___ लहउ सुखसार रे., पे.वि. गा.९. पे.१०. मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ३२आ-३४अ), आदिः सरसति मुझने रे मात; अंतिः परमसुख इम माङ्गीये., पे.वि. गा.१०. पे.-११. औपदेशिक सज्झाय, मु. हंसमुनि, मागु., पद्य, (पृ. ३४अ-३५अ), आदिः मन शुद्धइ सुणि जीव; अंतिः भणइ जिम तरीइ संसार., पे.वि. गा.९. पे.-१२. सोरठी दूहा, मागु., पद्य, (पृ. ३५अ-३५आ), आदिः सुगुण सुगुण सिउंधाइ; अंतिः नेह गहेला न्यान ए., पे.वि. गा.७. पे.१३. सुभाषितानि, मागु., पद्य, (पृ. ३५आ-३६आ), आदिः साजणनइ निज सङ्गथी; अंति:#., पे.वि. गा.६. अंतिमवाक्य अवाच्य होने के कारण नही दीया है. ११६११." चैत्यवन्दनादि की लघुटीका, कायोत्सर्ग २१ दोष व श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र की लघुटीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, १९४६१-६४). पे.-१. पे. नाम. चैत्यवन्दनादिसूत्र सङ्ग्रह की लघुटीका, पृ. १आ-९अ चैत्यवन्दनसूत्र सङ्ग्रह-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनवरेन्द्रं; अंतिः गापवर्गावाप्तिरिति., पे.वि. ग्रं.५५०. For Private And Personal Use Only Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २७३ पे..२. कायोत्सर्ग २१ दोष, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः ऐर्यापथिक्यादि कायो; अंतिः पुटे चलयतोनुपेक्षः. पे.३. पे. नाम. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र की लघुटीका, पृ. ९आ-१२आ वन्दित्तुसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणिधाय श्रीवीरं; अंतिः नमस्करोमीत्यर्थः., पे.वि. प्र.पु. ग्रं.८००. ११६१२. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-सूत्र-२१; टीका-ग्रं. २९६., त्रिपाठ, (२६.५४१२.५, १-२४५५-५८). पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि पडिक्कमिउ; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनाधिपतिं; अंतिः श्रेय एवेति मन्यते. ११६१३. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. द्रांगद्रानगर, ले.- मु. अमरसी (गुरु मु. उत्तमविजय), पठ.- मु. कानजी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२, ५४२८-३२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः तस्स मिच्छआमि दुक्कड. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तदेव तीर्थ; अंतिः दुक्कडं देवो. ११६१४. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १३८, जैदेना., (२७.५४१३, ३५-४३४). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः सर्वकार्येषु सिद्धिं. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: बार गुणे करी सहित; अंतिः वाञ्छीत दायक. ११६१५. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति व टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, लिखवा.- आ. पुन्योदयरत्नसूरि, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रथम अधिकार तक है, द्वितीय अधिकार की मात्र दो पंक्तियां है., (२७.५४१२.५, ६x४५-४७). वन्दित्तुसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु सव्वसिद्धे; अंति:वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, आदि: जयति सततोदयश्रीः; अंति: वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिकाटीका का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नत्वा पञ्चासरं पार्श; अंति:११६१६. षडावश्यकसूत्र की वन्दारूवृत्ति, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, देना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७.५४१२.५, १३४३९-४३). श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंति:११६१७. नवस्मरण, लघुशान्ति व शनिश्चर छन्द, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., (२५४११.५, १६४३८-४०). पे.-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १अ-१०आ), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः मोक्षं _ प्रतिपद्यन्ते., पे.वि. ९ स्मरण. पे..२. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः जैनं जयति शासनम्., पे.वि. श्लो.१७+२. पे.-३. शनिश्चर छन्द, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः आनन्दनजगजयो रविसूत; अंतिः वली सनिश्चर वखाणिइ., पे.वि. गा.१६. ११६१८.” कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. २११, जैदेना., ले.- गणि पद्मविजय (गुरु गणि सङ्घविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (३) भग्नपृष्टि कटिग्रीवा; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२८x१२, १-६४४५-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. For Private And Personal Use Only Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११६१९. कल्पसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४०+१(६०)=३४१, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८०५; टीका-ग्रं. ६५८०., द्विपाठ, (२६४१३, १०४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ११६२०. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, संशोधित, (२७४१२.५, १०४३२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११६२१. कल्पसूत्र सह टीका व बीजक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१०+१(१५८)=२११, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., त्रिपाठ, (२७.५४१४, १-८४३६-४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ११६२२. महानिशीथसूत्र भावार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२६x१३.५, १५४२८). महानिशीथसूत्र-भावार्थ, मु. दीपविजय कवि, मागु., गद्य, वि. १८९०, आदिः स्वस्ति श्रीमन्नृपती; अंतिः आराधक सिद्धि वरस्यै. ११६२३. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- नागरदास, पठ. साध्वीजी जयकुंवरसरी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६३., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४१३, २४२६). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य महावीरं; अंतिः ए अध्ययन इत्यर्थः. ११६२४." चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६५., संशोधित, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा गाथा १ से १४ तक का टबार्थ नही लिखा गया है., (२५.५४१३, ६४३४). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदि:-; अंतिः नित्य ए गुणवू चउसरण. ११६२५. चतुःशरणप्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३., (२७४१३, ४४३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: सा०पापसहित व्यापारनी; अंतिः छै नि० मोक्षसुखy. ११६२६. पाखिसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२८x१२.५, १३४३१-३८). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. सूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७३+१(२७५)=७७४, जैदेना., प्र.वि. मूल-१० उद्देशक; प्र.पु.-मूल ग्रं. ४६०; प्र.पु.-टीका-ग्रं.३४३९१., (२७.५४१२.५, १६x४२-४४). व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः जे भिक्खू मासियं; अंतिः महापज्जवसाणे भवइ. व्यवहारसूत्र-टीका# , आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणमतनेमिजिनेश्वर; अंतिः श्रमणगणानामतभूतम्. व्यवहारसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:#; अंतिः#. व्यवहारसूत्र-नियुक्ति की टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि:#; अंति:#. व्यवहारसूत्र-भाष्य# , प्रा., पद्य, आदिः ववहारो ववहारी; अंतिः मविग्घेण गच्छन्ति. व्यवहारसूत्र-भाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदि: #; अंतिः #. For Private And Personal Use Only Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २७५ ११६२८. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२८x१४, ११४३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११६२९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले.स्थल. अमदाबाद, ले.- श्रा. पोपट शाह, प्र.वि. ९-व्याख्यान, (२९x१४.५, १०४३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११६३०. उपासगदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१२, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. योघपत्तने, ले.- पं. विनयविजय, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०., (२८.५४१३, ७४४६-५४). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः पन्नत्ते त्ति बेमि. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: ए अर्थ उपदिसिउ. ११६३१. पाक्षिकसूत्र व क्षामणकसूत्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., (२७.५४१३.५, १२४३६-७२). पे..१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-११आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.२. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ११आ-१२आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारगपारगाहोह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ११६३२. पिण्डविशुद्धि सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१०३; टीका-ग्रं. २८००., संशोधित, (२७.५४१३, १२४५२). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११७६, आदिः यदुदितलवयोगाद्देहिनः; अंतिः शेषविबुधैश्च. ११६३३. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक व टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २, जैदेना., (२८x१४, १६x४८). पे:१. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः तिहुयणपणए तिहुयण; अंतिः सुयाणुसारेण णेयव्वं., पे.वि. गा.१२१. पे.-२. सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, (पृ. ४आ-२३अ), आदिः सकलभुवनेशभूतान्निखिल; अंतिः टीकाकृ० चिरन्तनैः. ११६३४.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., ले.स्थल. ऐमदावादे, प्र.वि. मूल १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००., संशोधित, (२८x१३.५, ५-६४३६-३८). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल , मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनधर्म उत्कृष्ट; अंतिः तुज प्रतइ कहु छु. ११६३५.” पण्णवणासूत्र सह टबार्थ व बीजक, संपूर्ण, वि. १७८९, जीर्ण, पृ. ३१२, जैदेना., ले.स्थल. जयपुर, प्र.वि. मूल-३६ पद., ग्रं. ७७८७; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. १७५८७; सर्वग्रं. २५३७४. अंतमे अनुक्रमणिका दी गइ है., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (३१x१४, ८४५२-५९). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदि: नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: वीनती अवधारिज्योजी. ११६३६. सूर्यप्रज्ञप्तिसूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १९५९, श्रेष्ठ, पृ. २१५, जैदेना., ले.स्थल. नागौर, ले.- कल्लारामनाथ,प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ९१२५., (३०.५४१४.५, १५४४२-४४). सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः यथास्थितं जगत; अंतिः तेन भवतु कृती. ११६३७." भगवतीसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ९७७-१(१८४)=९७६, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- नरोत्तम For Private And Personal Use Only Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रोयत, प्र.वि. मूल-४१शतक; टीका-४१शतक, ग्रं. १८६१६., संशोधित, त्रिपाठ, (३०.५४१४, १-१२४४५-४६). भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः करितं नमस्सामि. भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२८, आदिः सर्वज्ञमीश्वरमनन्त; अंतिः श्लोकमानेन निश्चितम्. ११६३८. कल्पसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७२६, जीर्ण, पृ. ११२-३२(३४ से ४५,६५ से ७७,८९ से ९५)=८०, जैदेना.,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका अस्पष्ट है. मूल-९-व्याख्यान. टीका का पाठ टबार्थ की तरह लिखने से कई जगह टीकामे लिखे गये व्याकरण के आधारपाठ एवं अन्य टीकापाठ लिखे नही गये है., पदच्छेद सूचक लकीरें, (३१.५४१३, १०x४८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः समाप्तं समर्थितं इति. ११६३९." कल्पसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. २१०-१(१)=२०९, जैदेना., ले.स्थल. छाणी, ले.- पं. मोहनविजय, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रथम पत्र नही है., (२९x१३, १-१२४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदि:-; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ११६४०. बृहद्कल्पसूत्र सह वृत्ति-द्वितीयखण्ड, प्रतिपूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. १८२, जैदेना., ले.- उपरुद्र, प्र.वि. प्र.पु.-टीका ग्रं. ९९२१., पू.वि. प्रथम उद्देश के पांचवे सूत्र से द्वितीय उद्देश संपूर्ण तक हे., (२९x१३, १७४५०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि , आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः-; अंति:११६४१. कल्पसूत्र सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, पू.वि. मेघकुमार कथा तक लिखा है., (२७.५४१२, १-५४४०-४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः११६४२." कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, पूर्ण, वि. १७२९, मध्यम, पृ. १३६-१(१)=१३५, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्र.पु. टीका-ग्रं. ८०००., संशोधित, पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है. अंतिम रचना प्रशस्ति नही है., (२९x११.५, १७४४९ ५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः- अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि:-; अंतिः समयादिमसुन्दराः. ११६४३. कल्पसूत्र टीका, पूर्ण, वि. १५७८, श्रेष्ठ, पृ. ४७-१(४३)=४६, जैदेना., ले.स्थल. षीमसरनगर, ले.- मु. महिमाकीर्ति (गुरु उपा. उदयकीर्ति, मलधारगच्छ), प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३०४१., प्र.ले.श्लो. (६५२) याद्रीसं पुस्तकं द्रीष्टा; (६५३) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, (२८.५४१०.५, १५-१८४६६). कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंतिः वाञ्छितसिद्धिपारम्. ११६४४. आचाराङ्गसूत्र, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्रुतस्कंध-२ का अध्याय १५ अपूर्ण तक है., (२९x१०.५, १५-१६४५०-५७). आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः सुयं मे आउसं० इह; अंति:११६४५." षडावश्यकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १४०५, मध्यम, पृ. ६१, जैदेना., प्र.वि. मूल-६ अध्ययन; टीका-ग्रं. २७२०., For Private And Personal Use Only Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २७७ (२८.५४१०.५, १८-२०४४९-५२). आवश्यकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: णमो अरहंताणं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः वृन्दारुवृन्दारक; अंतिः वृत्तितोवरचूर्णितश्च. ११६४६." ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना.,प्र.वि. १९अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४६००, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२९.५४११.५, १५४५०-५१). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं कालेणं० चम्पाए; अंतिः धम्मकहाओ सम्मत्तउ. ११६४७. पक्खिसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८७६, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबिंदर, ले.- मु. नेमविजय, प्र.ले.श्लो. (६५१) याद्रीसं पूस्तीकं द्रीष्टा; (६४९) जब लग मेरू थीर रहे, (२८x१२, ९४३१-३२). पे.१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण । पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति पे.२. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १९अ-१९आ, अपूर्ण क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. ११६४८." उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २४८, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २०९५; टीका-ग्रं. १२०००; सर्वग्रं. १४०००., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (३०.५४११.५, १५४५६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पसाया अहिजेज्झा.. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः वृत्तेरस्याविनिश्चित. ११६४९." उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३६६-३(२४,२५३,२७०)+१(३३५)=३६४, जैदेना., प्र.वि. मूल ३६अध्ययन., पू.वि. बीच-बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं. रचना प्रशस्ति अधूरी है., (२८x११.५, १३४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः भवसिद्धिय संवुडे. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः तदनतिक्रमण यथायोगम्. ११६५०." दसवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., ले.- आ. जिनचन्द्रसूरि (गुरु आ. जिनराजसूरि, खरतरगच्छ), पठ.- उपा. सकलचन्द्र (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ), प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच का एक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (३०x११.५, ९४३३-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. ११६५१. उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., (३१x११, १५४६२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पसाया अहिजेज्झा... उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः भक्तेन गुणवज्जने. ११६५२." उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १९९-१४(३९,३२,४१,७६,९२,९७ से ९९,११८,१४०,१६२,१६६ से १६७,१९५)+१(१८४)=१८६, जैदेना.,प्र.वि. एक पत्र और है पर खण्डित होनेकी वजहसे नम्बर पता नही चलता. ग्रंथ के कुल १८७ पृष्ठ है. मूल-३६अध्ययन. प्र.पु.-टीका-ग्रं. १५५९३., पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (३१x११, १७४६८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः तदनतिक्रमेण For Private And Personal Use Only Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची यथायोगम्. ११६५३. दीवसागरपन्नति व आराधनापताका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. २, जैदेना., (३०.५४११, १५४५८). पे.-१.द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-६आ), आदिः पुक्खरवरदीवड़ढं परिक; अंतिः पन्तीओ चन्द सूराणं., पे.वि. गा.२२३. पे..२. आराधनापताका प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-२९आ), आदिः नियसुचरियगुणसाहप्प; अंतिः जिणसासणं सुदूरं., पे.वि. गा.९९०. ११६५४. तीर्थोद्गाली प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. गा.१२५३, ग्रं. १५६५, (३०.५४११.५, १५४५४). तीर्थोदगाली प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः जयइ ससिपायनिम्मल; अंतिः एसा भणिया उ अङ्केणं. ११६५५. आचाराङ्गसूत्र चूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१(१)=५१, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं., (३०x१०.५, १३४६५). आचाराङ्गसूत्र-चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, आदि:-; अंति:११६५६. आचाराङ्गसूत्र चूर्णि, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१(१)-५१, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (३०x१०.५, १३४५४-५६). आचाराङ्गसूत्र-चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, आदि:-; अंतिः११६५७. जम्बूद्वीपपन्नत्तीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८-१(४०*)=६७, जैदेना., प्र.वि. ७ वक्षस्कार; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४१५४. ३९-४० नं एक ही पत्र पर दीये गये है., (३०.५४११, १५-१६४५९-७०).. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहंताणं० तेणं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११६५८. विपाकसूत्र, पूर्ण, वि. १५६८, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(१)=२९, जैदेना., ले.- गणि चरित्रवल्लभ(बृहद्तपगच्छ), अन्य- आ. लब्धिसागरसूरि (गुरु आ. उदयसागरसूरि, वृद्धतपागच्छ), ले.- गणि गुणसागर(बृहद्तपागच्छ), लिखवा.- श्रा. सा. सोनाक,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. आचार्य लब्धिसागरसूरि के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी. अध्याय-२श्रुत./ २०अध्य., ग्रं. १२५०, (३०x१०.५, १३४-५६). विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: सेसं जहा आयारस्स. ११६५९. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (३०.५४११, ११४५१-५३). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ११६६०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र चूर्णि, संपूर्ण, वि. १५०३, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले.स्थल. अणहिल्लपुरपाटन, लिखवा.- गणि सहजशील(खरतरगच्छ), गच्छा.- आ. जिनभद्रसूरि (गुरु आ. जिनवर्धनसूरि, खरतरगच्छ), प्र.वि. ग्रं. ४५९०, (३०.५४११.५, १७४७९-८२). वन्दित्तुसूत्र-चूर्णि, आ. विजयसिंहसूरि, प्रा.,सं., गद्य, वि. ११८३, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं०; अंतिः मासम्मि समत्थिया एसा. ११६६१. दशवैकालिकसूत्र सह बृहदवृत्ति, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (३१४११, १७४९१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदि:-; अंति:दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिःदशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि:-: अंति: दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यबोधिनी टीका# , आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः११६६२. दशवैकालिकनियुक्ति सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (३१x११, १८४६४-७६). For Private And Personal Use Only Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ " , दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, (संपूर्ण), आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः #. दशवैकालिकसूत्र - शिष्यबोधिनी टीका# आ. हरिभद्रसूरि सं. गद्य (अपूर्ण), आदि जयति विजितान्यतेजाः : अंति:दशवैकालिकसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (अपूर्ण), आदि: सिद्धिगइमुवगयाणं; अंतिःदशवेकालिकसूत्र - नियुक्ति की शिष्यबोधिनी टीका# आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि:- अंति:११६६३. विपाक सूत्र विवरण, संपूर्ण, वि. १५९१ श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना., ले. स्थल, नारदपुर, ले. गणि गुणलाभ (गुरु पं. नयसमुद्र गणि, खरतरगच्छे), गच्छा. आ. जिनचन्द्रसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (३०x११.५, १८४५८-६२). विपाकसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि सं., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवर्द्धमाना: अंतिः श्रीमदभयदेवाचार्यस्य. " - , ११६६४. प्रश्नव्याकरणसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १५९२ श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना, लिखवा गणि गुणलाभ (गुरु पं. नयसमुद्र गणि, खरतरगच्छे), गच्छा.- आ. जिनशीलसूरि (गुरु आ जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. प्र. पु. - टीका- ग्रं. ४६००., संशोधित, (३०x११.५, १६४६५-७० ). प्रश्नव्याकरणसूत्र - टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः संशोधिता चेयम्. ११६६५.” ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., प्र. वि. १९ अध्ययन प्र. पु. -मूल-ग्रं. ५४००, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (३०४११.५, १७-१८४५७-६७). ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी प्रा. प+ग, आदि तेणं काले० चम्पाए: अंतिः जाव सम्पत्तेणं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६६६.' उपासगदसाङ्गसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २८, जैदेना, प्र. वि. अध्याय- १० अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (३०.५४१२, १२४४२-४३). उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदिः तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव.. ११६६७. ओघनिर्युक्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०३, जैदेना., प्र. वि. सर्वग्रं. ८८५०., (३०.५x१२, १३x४६). ओघनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहन्ते वन्दित्ता; अंतिः अहिएहिं सङ्गहिआ. ओघनियुक्ति टीकाएँ, आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य वि. १२वी आदि अर्हद्भ्यस्त्रिभुवन अंतिः संहननो सिद्ध्यतीति. ११६७०. भगवतीसूत्र, पूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. ३९६ - १( ९८ ) - ३९५, जैवेना. ले. स्थल राजनगरे, लिखवा श्रा. सा. त्रिकमदास नाथभाइ, प्र. वि. पं. रंगविजय गणि के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी. ४१शतक, (२८.५x१२, १३४४९-५०). (२७.५४११.५००). पे- १. पे नाम पाक्षिकसूत्र सह टीका, पृ. १आ- ९५आ २७९ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरहन्ताणं; अंतिः उद्दिसिज्झन्ति ११६७१. पाक्षिकसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०३, पे. २, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., त्रिपाठ, " ११६७२. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना, (२५.५x११, १२×३५-३९). पे. १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ - १३अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे. २. पे नाम पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १३४- १३आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तिल्थे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति पाक्षिकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः शिवशर्मैकनिमित्तं ; अंतिः देवतेह गृह्यते इति. पे. २. पे नाम, क्षामणकसूत्र सह टीका, पृ. ९५आ - १०३अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि: इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारगपारगाहोह. क्षामणकसूत्र- टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य वि. ११८०, आदि: ततो यथा राजानं अंतिः पडिलेहणवेला भवइत्ति., पे.वि. हिस्सा - सूत्र - ४ आलावा. For Private And Personal Use Only Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ११६७३. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अंजारिनगर, ले.- गणि बुद्धिविजय(तपागच्छ), पठ.- गणि सुखविजय (गुरु गणि बुद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६x११, १५४३९ ४५). पे.-१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-९अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे..२.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. ९अ-९आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ११६७४." पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मांडविनगर, ले.- मु. रिद्धिविजय, प्र.वि. अशुद्ध पाठ, (२५.५४११, १५४३६). पे.-१.पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१०आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे..२. पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १०-१०आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः पियं च मे जम्मे; अंतिः मणसा मत्थएण वन्दामि., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ११६७५. पाक्षिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. वीठुरा, (२६४१०.५, १३४४२-४९). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. ११६७६.” पाक्षिकसूत्र व खामणा, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(९)=१०, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १३४४०-४४). पे..१. पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, (पृ. १अ-१०आ, अपूर्ण), आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति., पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है. पे..२. क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारग पारगा होह., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ११६७७." साधु श्राद्ध प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह आदि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, पे. ४२, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५.५४११, १३४४१-४७). पे.-१. पे. नाम. खरतरगच्छीय प्रतिक्रमणसूत्र संग्रह, पृ. १आ-९आ, संपूर्ण श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदि: णमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पे..२. प्रव्रज्या कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः संसार विसम सायर भवजल; अंतिः तरंति ते भवसलिलरासिं., पे.वि. गा.३४. पे..३. प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-११आ, संपूर्ण), आदिः सुरे उग्गए अब्भत्त; अंतिः वत्तियागारेणं वोसिरइ. पे.-४. पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. ११आ-११आ, संपूर्ण), आदिः करेमि भन्ते पोसहं; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि., पे.वि. यह सूत्र प्रत्याख्यानसूत्र के बीचमे दीया गया है. पे.५. पे. नाम. नमस्कार द्वात्रिंशिका, पृ. ११-१३आ, संपूर्ण जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव विनवइ आणन्दिय.,पे.वि. गा.३०. पे.६. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-१९आ, संपूर्ण), आदिः अजिअं जिअ For Private And Personal Use Only Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २८१ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द., पे.वि. ७ स्मरण. पे.-७. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, (पृ. १९आ-२०अ, संपूर्ण), आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च., पे.वि. श्लो.१७. पे.-८. पे. नाम. सप्ततिशतजिन स्तोत्र, पृ. २०अ-२०आ, संपूर्ण तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंति: निच्चमच्चेह., पे.वि. गा.१४. पे..९. पे. नाम. श्रीनवग्रहगर्भित श्रीपार्श्वनाथ स्तवन, पृ. २०आ-२०आ, संपूर्ण पार्श्वजिन स्तोत्र-नवग्रहगर्भित, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दोसावहारदक्खो नालिया; अंतिः गहा न पीडन्ति., पे.वि. गा.१०. पे..१०. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. २१अ-२३अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी., पे.वि. श्लो.४४. पे:११. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. २३अ-२५आ, संपूर्ण), आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते., पे.वि. श्लो.४४. पे.-१२. महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. २५आ-२७अ, संपूर्ण), आदिः भावारिवारणनिवारणदारु; ___ अंतिः दृष्टिं दयालो मयि., पे.वि. श्लो.३०. पे.-१३. दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २७अ-२८आ, संपूर्ण), आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह., पे.वि. गा.४४. पे:१४. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. २८आ-३०आ, संपूर्ण), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.५०. पे.-१५. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३०आ-३२अ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.-१६. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ३२अ-३३आ, संपूर्ण), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति ___ अप्पहिआ., पे.वि. गा.४०. पे.-१७. पार्श्वजिन स्तुति-पलाकित जेसलमेरमण्डन, सं., पद्य, (पृ. ३३आ-३४अ, संपूर्ण), आदि: ___ शमदमोत्तमवस्तुमहापणं; अंतिः सा जिनशासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे.-१८. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः युगादिपुरुषेन्द्राय; अंतिः कूष्माण्डी कमलेक्षणा., पे.वि. श्लो.४. पे.-१९. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४अ, संपूर्ण), आदिः यदंह्रिनमनादेव देहिन; अंतिः वतु नित्यममङ्गलेभ्यः., पे.वि. श्लो.४. पे.२०. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४अ-३४आ, संपूर्ण), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. पे.२१.२४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३४आ-३४आ, संपूर्ण), आदिः नाभेयाजितवासुपूज्य; अंतिः प्रयच्छन्तु नः., पे.वि. श्लो.४. पे.२२. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३४आ-३५अ, संपूर्ण), आदिः हर्षनतासुरनिर्जरलोकं; अंतिः शस्त निदाघः., पे.वि. श्लो.४. पे.-२३. साधारणजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३५अ, संपूर्ण), आदिः अविरलकमलगवलमुक्ताफल; अंतिः देवी श्रुतोच्चयम्., पे.वि. श्लो.४. पे.२४. पार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३५अ-३५आ, संपूर्ण), आदिः अमरगिरिशिरस्थस्फार; अंतिः श्रुतं नः श्रुताङ्गी., पे.वि. श्लो.४. For Private And Personal Use Only Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२५. महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३५आ-३५आ, संपूर्ण), आदिः यत्पारणासु प्रथमासु; अंतिः तु मम प्रमोदम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-२६. पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., पद्य, (पृ. ३५आ-३६अ, संपूर्ण), आदिः श्रीसर्वज्ञं ज्योति; अंतिः वृद्धिं वैदुष्यम्., पे.वि. श्लो.४. पे.-२७. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३६अ-३६अ, संपूर्ण), आदिः पञ्चविदेह विषय; अंति: जण मनवञ्छित सारै., पे.वि. गा.४. पे.-२८. बीजतिथि स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ३६अ-३६अ, संपूर्ण), आदिः महीमण्डणं; अंतिः देहि मे सुद्धनाणं., पे.वि. गा.४. पे.-२९. आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, प्रा., पद्य, (पृ. ३६अ-३६आ, संपूर्ण), आदिः वरमुत्तिअहार सुतारगण; अंतिः सुहाणि कुणे सुसया., पे.वि. गा.४. पे.-३०. शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३६आ-३६आ, संपूर्ण), आदिः श्रीशत्रुञ्जमण्डण; अंति: तुम्ह पय सेवता., पे.वि. गा.४. पे.-३१. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३६आ-३६आ, संपूर्ण), आदि: वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवी दद्यात्सौख्यम्., पे.वि. ___ श्लो.१. पे.-३२.२४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ३६आ-३७आ, संपूर्ण), आदिः रुचितरुचिमहामणि; अंतिः प्रदद्यात्० भारती. पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., पद्य, आदिः ट्रें दें कि धपमप; अंतिः दिशतु शासनदेवता., पे.वि. श्लो.४. पे.-३४. अष्टमीतिथि स्तुति, मागु., पद्य, (पृ. ३७आ-३८अ, संपूर्ण), आदिः महामङ्गलं अष्ट सोहै; अंतिः वैसन्त कल्याणदाता., पे.वि. गा.४. पे.-३५. मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ३८अ-३८अ, संपूर्ण), आदिः दीक्षा श्रीअरनाथ; अंतिः ज्ञानस्य लाभं सदा., पे.वि. श्लो.४. पे.-३६. महावीरजिन स्तुति , आ. जिनलाभसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ३८अ-३८आ, संपूर्ण), आदिः मुरतमनमोहन कञ्चन; अंतिः इम श्रीजिनलाभसुरंद., पे.वि. गा.४. पे.-३७. दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, (प्र. ३८आ-३९आ, प्रतिपूर्ण), आदिः धम्मो __मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः-, पे.वि. तीन अध्ययन तक है. पे.३८. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (पृ. ३९आ-४०आ, अपूर्ण), आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे.-३९. अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, मागु., गद्य, (पृ. ४०-४०आ, संपूर्ण), आदिः आजुणा चौपहुर दिवस; अंतिः आलोअणमांहि आलोयस्यां. पे.-४०. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. ४१अ-५१आ, संपूर्ण), आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.२९४. पे.४१. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ५१अ-५१अ, संपूर्ण), आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः ब्रूते जिनागमपदावली., पे.वि. श्लो.१. पे.-४२. सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, (पृ. ५१आ-५१आ, संपूर्ण), आदिः निसिही निसिही निसीहि; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे.वि. गा.२२. ११६७८." दशविकालसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, गा.७००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२४.५४११.५, ९४२९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २८३ ११६७९. पाखीसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. रीयानगर, ले.- वा. देवविजय (गुरु आ. विजयरत्नसूरि, तपागच्छ), (२३.५४१०, १४४३४-३८). पे:१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-११आ __ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.२. पे. नाम. क्षामणासूत्र, पृ. ११आ-१२अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः मणसा मत्थएण वन्दामि., पे.वि. सूत्र-४ आलावा. ११६८०. पाक्षिकसूत्र की टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., (२६x१०.५, १६४६२-६४). पाक्षिकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., गद्य, वि. ११८०, आदिः इहार्हत्प्रवचनानुसार; अंतिः चाह नमो० सुगमं. ११६८१. पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२४, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., लिखवा.- गणि प्रतिष्ठाकल्याण (गुरु आ. सोमसुन्दरसूरि, तपगच्छ), प्र.वि. त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, (२६x११, ३-५४६७-६८). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा; अंतिः हेतुत्वेनाभिहितत्वात. ११६८२. पाक्षिकसूत्र व खामणा सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.- मु. पुण्यराज, प्र.वि. ___पंचपाठ, (२५.५४११, १३४३५-४४). पे.-१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-६अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः तीर्थङ्करान् वन्दे; अंतिः कृतं मे दुःकृतमस्तु. पे.२.पे. नाम. पाक्षिकक्षामणासूत्र सह अवचूरि, पृ. ६अ-६आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो; अंतिः नित्थारगपारगाहोह. क्षामणकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः यथा राजानं पुष्पमाणक; अंतिः युयमित्याशीर्वचनमिति., पे.वि. हिस्सा-सूत्र-४ आलावा. ११६८३.” पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१०, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, पठ.- गणि सुखसागर,प्र.वि. संशोधित, (२६४१०, ५४४१-४३). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थनइ करइ अथवा०; अंतिः घणउ आदर भक्ति छइं. ११६८४. नवकार बालावबोध, सुभाषित, सीता सज्झाय व पोसहसमायक सज्झाय, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., (२५.५४११, १७४५६). पे.१. नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध , मागु., गद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः बारस गुण अरिहन्ता; अंतिः सुश्रावक सुश्राविका. पे.२. श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु.,हिन्दी, पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.२. पे.-३.पे. नाम. सीता स्वाध्याय, पृ. ५अ-५आ रावणने शिखामणनी सज्झाय, विद्याचन्द, मागु., पद्य, आदिः सीत हरी रावण जव आणी; अंतिः विद्याचन्द० वखाणी हे., पे.वि. गा.१५. पे.४. पौषधसामाइक सज्झाय, पण्डित सुमतिकमल, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: वीर जिणवर रे पासि; अंतिः सुख सम्पति ते लहे., पे.वि. गा.१०. ११६८५." हेतुगर्भित प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२५.५४१०.५, १३४४७-४९). For Private And Personal Use Only Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.,प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः बुधसुधानस्तथाशोधित. ११६८६." हेतुगर्भित प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२६४११, १५४४१-४३). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.,प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः मिथ्यादुष्कृतं तस्य. ११६८७. हेतुगर्भित प्रतिक्रमण विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., (२६४११, १५७४०-४१). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः मिथ्यादुष्कृतं तस्य. ११६८८.” दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., पठ.- मु. रविकुशल (गुरु मु. दयाकुशल), ले.- श्रा. जीवा सुखदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००, अशुद्ध पाठ, (२६.५४११, ११४३७-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः निच्चला होसु. ११६८९." दशवेकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन, गा.७००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, ११४४०-४४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ११६९०." दशवैकालिकसूत्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५-२(१४ से १५)=२३, जैदेना., प्र.वि. १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो. ११६९१. दशवैकालिकसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना.,ले.स्थल. सादडीनगरे, ले.- ऋ. लक्ष्मीदास, पठ.- ऋ. श्यामा, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-१०अध्ययन,गा.७००, (२६४१०.५, १५४५१-५७). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गई त्ति बेमि. ११६९२.” दशवैकालिकसूत्रनियुक्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०+६(१ से ६)=१६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५४११, १२-१४४४५). दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धिगइमुवगयाणं; अंतिः चरण गुणट्ठितो साहू ११६९३. दशवैकालिकसूत्रटीका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३, जैदेना., प्र.वि. रचना प्रशस्ति का अंतिम श्लोक नही है.. पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२६x११, १५४४३-४७). दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितान्यतेजाः; अंतिः ब्रवीमीति पूर्ववत्. ११६९४. दशवैकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९७, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा.७००., त्रिपाठ, (२५.५४११, ३-८४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदिः स्तम्भनाधीशमानम्य; अंतिः (१)ब्रवीमीति पूर्ववत् (२)प्रवचनगुरुणेति. ११६९५. दशवैकालिकसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., ले.- पं. पद्मसागर, प्र.वि. मूल १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००., (२६४११, ११४४३-४५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः मुच्चइ त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः धर्म उकत्कृष्टमङ्गलं; अंतिः (१)मुच्यते शिवपदं उपैति (२)पठ्यमानमिदमस्त्विति. For Private And Personal Use Only Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २८५ ११६९६. दसवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ९४+१(९३)=९५, जैदेना., ले.- करशनजी बधेका, प्र.वि. मूल-अध्याय-१०अध्ययन, गा.७००., (२७४११.५, ४४२८-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ध० धर्म म० मङ्गलीक; अंतिः वन्तनो प्ररुप्यो. ११६९७. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., ले.- मु. दीपहंस (गुरु मु. हुकमहंस), पठ. मु. रिधकरण, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा.७००. टबार्थ १० अध्ययन तक का लिखा है., (२५.५४११.५, ४४२८-३०). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)गई त्ति बेमि (२)भविआण विबोहणट्ठाए. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिन प्रणित; अंतिः कर्मबन्धन पामइ यति. ११६९८. दशवैकालिकसूत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६७, जैदेना., (२६४११, १५४५६). दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्ध; अंतिः चरित्र थकउ जाणियो. ११६९९." दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६६, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले.स्थल. मंगलपुर, पठ.- पाठक वैकुण्ठ; श्राविका लालबाई, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा७००; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १७९२. मूल का प्रतिलेखन वर्ष १६६६ व टबार्थ का १६६८ है., (२४.५४११, ५-६४३२-३४). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः अपुनरागति मोक्षगति. ११७००. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले.- मु. भाऊ,प्र.वि. मूल १०अध्ययनरचूलिका, गा.७००., (२५४११, ५४३९-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ध० दुर्गत पडता जीवनइ; अंतिः अपुनरागति मोक्षगति. ११७०१.” दशवैकालिकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४९, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा.७००., संशोधित, पंचपाठ, (२७४१०.५, ३-८x२९-३३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. २वी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: गई त्ति बेमि. दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्ध; अंतिः आगलि इम कहिउ. ११७०२." दशवैकालिक सूत्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६.५४११, १३४३७-३९). दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, आदिः नत्वा श्रीवर्द्ध; अंतिः चरित्र थकउ जाणियो. ११७०३. दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., ले.स्थल. आडिसरनगरे, ले.- पं. भाग्यविजय, प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा.७००. सर्वग्रं. ३०००., (२५.५४११.५, ६४३४-३९). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१)मुच्चइ त्ति बेमि (२)भविआण विबोहणट्ठाए. दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीवीतरागने नमुं; अंतिः अर्थ सम्पुर्ण. ११७०४.” उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, (२६४११, ११४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ११७०५." षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंतिम For Private And Personal Use Only Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पत्र नहीं है., (२६४११.५, ११४४२-४३). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, आदिः णमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५२५, आदिः शिवाय श्रीमहावीरः; अंतिः जिननइं वांदु नमस्करउ. ११७०६. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५१०, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १७४५८-६१). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः वतियागारेणं वोसिरामि. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस गणि, मागु., गद्य, वि. १५०१, आदिः श्रेयांसि श्रीमहावीर; अंतिः आचन्द्रार्कनन्द्यात्. ११७०७. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(६)=८, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६x१०.५, १० ११४२९-३१). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पूर्ण), आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः वतियागारेणं वोसिरामि. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः अरिहन्त ने नमस्कार; अंतिः करइ तउ पुण भङ्ग नही. ११७०८. आवश्यकसूत्र विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ५००., (२६x१०.५, ९४३१). आवश्यकसूत्र विचार, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः (१) नमो अरिहन्ताणं नमो (२) अरियावहिय पडिक्कमवा; अंतिः (१)तम्हा वुच्छेयाणं होइ (२)तेह महासुख पामिसिइं. ११७०९. षडावश्यकसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. सर्व ग्रं.ग्रं. ५२०, (२६४११, १४४३८ ४८). आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं नमो; अंतिः वतियागारेणं वोसिरामि. षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः अनेरी प्रकृति छाण्डउ. ११७१०." भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१५२, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x१०.५, ११४४३-४७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ११७११. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८९०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. द्वीपबंदर, ले.- पं. कस्तुरविजय (गुरु पण्डित भाणविजय, तपागच्छ), पठ.- मु. भीमजी (गुरु पं. कस्तुरविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१५२, संशोधित, (२४४११.५, ११४३२-३७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ११७१२." भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१४९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच के कुछ पत्र, (२६.५४११.५, ११४२९-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ११७१३. भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १६६०, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., पठ.- गणि येठा (गुरु आ. हीरसूरि , तपागच्छ), प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१५२, (२५.५४११, ११-१३४३५-३७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. ११७१४." भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., पठ.- श्राविका लक्ष्मी, प्र.वि. ३ भाष्य, गा.१५२, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं-अंतिम पत्र, (२५.५४१०.५, ११४४३-४९). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. For Private And Personal Use Only Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २८७ ११७१५. भाष्यत्रय व खामणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१३, मध्यम, पृ. ३९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. अंतमे नवरस के नाम का उल्लेख है., (२४४११.५, ४४३०). पे.१. पे. नाम. भाष्यत्रय सह बालावबोध, पृ. १आ-३७आ भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदिः ऐन्द्रश्रेणिनुतं; अंतिः लघुवृत्यनुसारतः., पे.वि. मूल-अध्याय-३ भाष्य. पे:२. पे. नाम. वान्दणासूत्र सह टबार्थ, पृ. ३७आ-३९अ आवश्यकसूत्र-वन्दनकअध्ययन, प्रा., गद्य, आदिः इच्छामि खमासमणो वन्द; अंतिः अप्पाणं वोसिरामि. आवश्यकसूत्र-हिस्सा वन्दनकअध्ययन का अर्थ, मागु., गद्य, आदिः इच्छामि वाञ्छउ छु; अंतिः पापथकी वोसिरावु छउं., पे.वि. हिस्सा -सूत्र-०१. ११७१६. भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५२; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १९०. प्र.पु.-अवचूरि-ग्रं. ८३३. अंतिम पत्र खंडित है. परिमार्जन योग्य., त्रिपाठ, (२६.५४११, ३-४४४६-५१). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंति: सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः वन्दि० वन्दनीयान्; अंतिः पच्चक्खाणम० सुगमा. ११७१७. भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. गाथा नम्बरो में गलती है. मूल-३ भाष्य, गा.१५०., पंचपाठ, (२६.५४११, ७-८४३५-३७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः वन्दनीयान् परमेष्ठिन; अंतिः पच्चक्खाणम० सुगमा. ११७१८. भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १४९७, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५२., पंचपाठ, (२६४११, ५-६x४२-४५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः वन्दि० वन्दनीयान्; अंतिः श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः. ११७१९. भाष्यत्रय सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- गणि सहजरत्न (गुरु गणि शिवहर्ष),प्र.वि. मूल ३ भाष्य, गा.१५१., पंचपाठ, (२६४११, ५-१२४४२-४५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः वन्दि० वन्दनीयान्; अंतिः श्रीसोमसुन्दरसूरिभिः. ११७२०. भाष्यत्रय सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५२., त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (६५५) जलात् रक्षेत् स्थलात् रक्षेत्, (२४.५४११, १-३४३४-३७). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १७५८, आदिः ऐन्द्र श्रेणिनुतं; अंतिः मङ्गलं भूयात्. ११७२१." भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१०, मध्यम, पृ. २७, जैदेना., ले.- पं. माणिक्यविजय (गुरु गणि वनीतविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-३ भाष्य, गा.१५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रतिलेखकद्वारा अपूर्ण. टबार्थ द्वितीय भाष्य की १५ गाथा तक लिखा है., (२३४०९.५, ४४१८-२४). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं. भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः वान्दिनइ वान्दवा; अंति:११७२२. भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७०, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. संखेश्वरनगर, ले.- मु. अमृतविजय (गुरु मु. For Private And Personal Use Only Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २८८ www.kobatirth.org: उत्तमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल- ३ भाष्य, गा. १५२, (२५x११.५, ४x२८-३०). भाष्यत्रय आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाह " " भाष्यत्रय-टवार्थ, मु. लावण्यविजय, मागु, गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणतानन्द अंतिः पीडाइ करी रहित छइ. ११७२३. भाष्यत्रय सह टबार्थ व अढारभारवनस्पती गाथा, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. रामवाव, ले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४११.५, ४x२५-२९). पे. - १. पे. नाम. भाष्यत्रय सह टबार्थ, पृ. १आ-३३अ भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाह , " भाष्यत्रय-टवार्थ, मु. लावण्यविजय, मागु, गद्य, आदि: प्रणम्य प्रणतानन्द अति पीढाइ करी रहित छइ., पे.वि. मूल- अध्याय - ३ भाष्य, गा. १५२. " पे. २. पे. नाम., पृ. ३३अ-३३अ १८ भार वनस्पती गाथा कवि शुभ, मागु., पद्य, आदि प्रथम कोडि अडतीस अंतिः इम अर्थ कहे मोटा यति., पे.वि. गा.३. " ११७२४. भाष्यत्रय विचार व करणकरावणानुमोदन के ४९ भाङ्गा, संपूर्ण वि. १६९० श्रेष्ठ, पृ. ११, पं. २, जैदेना., ले. स्थल · नुतनपुर, ले. पं. विमलहर्ष, (२७११.५, १५४४८-५२). पे.- १. भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ११अ ), आदि: अहं चैत्यवन्दनादि; अंतिः निराबाधं पाररहित. पे. २. प्रत्याख्यान ४९ भाङ्गा, मागु, गद्य (पृ. ११आ-११आ) आदि मनई न करुं वचने अंति नही अनुमोदु नही. ११७२५. गुरुवन्दनभाष्य व पच्चक्खाणभाष्य प्रतिपूर्ण, वि. १८३२, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. (२६.५४१२, ४४३०-३२) भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-: अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची 1 ११७२६. भाष्यत्रय सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र. वि. त्रिपाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. दूसरे भाष्य की ११ गाथा तक लिखा है., ( २६×११.५, २-३x४१-४४). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः भाष्यत्रय बालावबोध, आ. झानविमलसूरि मागु, गद्य वि. १७५८ आदि ऐन्द्रश्रेणिनुतं अंति . ११७२७.” भाष्यत्रय सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. मूल -३ भाष्य, गा. १५२. सर्वग्रं. ७५०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४१०.५ ६x४४-४६). भाष्यत्रय आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि: वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाह ; , · " भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: अर्हं चैत्यवन्दनादि; अंतिः निराबाधं पाररहित. ११७२८. प्रत्याख्यानभाष्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. पत्तन, ले. मु. खुशालविजय, प्र. वि. मूल-गा. ४८., (२७.५४११.५, ३४३१). प्रत्याख्यानभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दस पच्चक्खाण चउविहि; अंतिः सासयसुक्खं अणाबा.. प्रत्याख्यानभाष्य-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः दस पच्चक्खाणनो द्वार; अंतिः अव्याबाधसुख. " ११७२९." भाष्यत्रय सह अवचूरि, अपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २२-१० (१२ से २१ ) - १२, जैदेना. प्र. वि. मूल-३ भाष्य, पंचपाठ, अशुद्ध पाठ, ( २६ ११, ४-५X३४-३८). भाष्यत्रय आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अतिः सासयसुक्खं अणाबाह " · " भाष्यत्रय - अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः वन्दि० वन्दनीयान्; अंतिः पच्चक्खाणम० सुगमा.. For Private And Personal Use Only T ११७३०.” चैत्यवन्दन भाष्य व गुरुवन्दन भाष्य सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. पं. केसरविजय, प्र. वि. मूल- अध्याय - २ भाष्य. तीसरा भाष्य नही दीया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५X११, ४X३३-३५). भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ (+) www.kobatirth.org: भाष्यत्रय-टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः वन्दित्तु कहेतां अंति: ११७३१. साधुप्रतिक्रमणसूत्र व बत्तीसदूषणसज्झाय, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, " , ( २५x१०.५, ९४२८-३३). पे- १. पे नाम, साधुप्रतिक्रमणसूत्र, पृ. १आ-६अ पे.वि. सूत्र- २१. पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि भं०; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं., पे. २. सामायिक ३२ दूषण सज्झाय मागु.प्रा. पद्य (५. ६अ-७आ), आदि पहिलं प्रणमूं जिन अंतिः महातमेवं, पे. वि. गा.२१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७३२. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६५२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, पठ.- मु. माहान्तविजय (गुरु गणि सिंहविजय), प्र.वि. संबद्ध सूत्र- २१. (२६४११, १५४५३-५६). पगामसज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिउ: अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिनाधिपति; अंतिः श्रेय एवेति मन्यते. ११७३३.” साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. संबद्ध - सूत्र - २१., संशोधित, त्रिपाठ (२४४११, २-३४४६ ४९). पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, आदिः नमो अ० करेमि भं०; अंति: वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अथ साधूनां प्रतिक्र०; अंतिः तीर्थङ्करनइ वान्दुं . ११७३४. साधुप्रतिक्रमणसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. समीनगरे, ले.- मु. गणपति (तपागच्छ), (२७११.५, १३x४२-४५). पगामराज्झायसूत्र संबद्ध, प्रा. गद्य, आदि इच्छामि पडिक्कमिउ: अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पगामसझायसूत्र वालावबोध, मागु, गद्य, आदि निवर्तवा वाञ्छु: अंतिः तीर्थङ्कर वान्दउ ११७३५.” श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्रसङ्ग्रह सह चूर्णि, पूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र. वि. गा. ५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है., ( २६.५x११, १५४६०-६५). वन्दित्तुसूत्र संबद्ध, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: वन्दित्तु सव्वसिद्धेः अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. वन्दित्तुसूत्र-चूर्णि, आ. विजयसिंहसूरि, प्रा.सं., गद्य, वि. ११८३, (पूर्ण), आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं०; अंतिः ११७३६. प्राचीन कर्मग्रन्थ, नमिउण स्तोत्र व श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र की टीका, संपूर्ण वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३. जैदेना., (२७X११.५, २४x६०-६१ ) . पे. १. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रन्थ- पारमानन्दी टीका, आ. परमानन्दसूरि सं. गद्य (प्र. १अ ११आ), आदि: निःशेषकर्मोदयमेघजाल; अंति: द्वाविंशत्यधिकाभवेत्., पे. वि. प्र.पु. ग्रं. २९२२. " पे. २. नमिऊण स्तोत्र - अभिप्रायचन्द्रिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं. गद्य वि. १३६५ (पृ. ११-१३अ), आदि: श्रीपार्श्वस्वामिनं अंतिः शब्देन तत्स्था जनाः, पे. वि. प्र. पु. ग्रं. १७२. २८९ पे. ३. वन्दित्तुसूत्र - लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं. गद्य (पृ. १३-१५आ) आदि प्रणिधाय श्रीवीरं अंति . नमस्करोमीत्यर्थः, पे.-१. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १अ - १२अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि तित्थङ्करे य तिथे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति पे. २. पे. नाग. पाक्षिकक्षामणासूत्र, पृ. १२-१२आ ११७३७. पाक्षिकसूत्र व खामणांसूत्र, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. लाकडिआ नगरे, ले.- मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), पठ- श्रा. लालजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (२६४११.५, १३४३६-३७). For Private And Personal Use Only Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९० www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो अंतिः नित्थारगपारगाहोह, पे.वि. सूत्र -४ आलावा. ११७३८. पाक्षिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले. स्थल. दीवनगर, ले.- मु. शान्तिदास; मु. शान्तिसागर (गुरु वा हरिचन्द, अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. प्र. पु. बार्थ ग्रं. ७२५. मूल के प्रतिलेखक शांतिदास व टबार्थ के प्रतिलेखक शांतिसागर है., प्र.ले. श्लो. (२४१) य्यां प्रथवी य्यां मेरगिर; (२९७) ग्रन्थ भणे मन हर्षसुं, (२७X११.५, ७x४३-४५). पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थङ्कर सिद्ध; अंतिः नइ श्रुतसागरनी भक्ति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११७३९. पाक्षिकसूत्र, गुरुवन्दनसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ३, जैदेना., (२७x१२.५, १२X४१). पे. १. पे नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-११अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति पे २. पे नाम पाक्षिकगुरुवन्दनसूत्र. पू. ११अ ११आ गुरुवन्दनसूत्र-श्वे.मू.पू., संबद्ध, प्रा., गद्य, आदि: इच्छा० सन्दि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. पे. ३. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. ११आ-१२अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो अंतिः नित्थारगपारगाहोह, पे.वि. सूत्र ४. सूत्र -४ आलावा. ११७४०. पाक्षिकसूत्र व खामणा, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. मौर्यपूर, ले. - आ. पुन्योदयरत्नसूरि (२६४१२.५, १३४४१-४५). पे.- १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ - १०आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदि: तित्थङ्करे य तित्थे अंतिः जेर्सि सुयसायरे भत्ति. ; पे. २. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १०आ-११अ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदि इच्छामि खमासमणो: अंतिः नित्थारगपारगाहोह पे. वि. परिमाण सूत्र ४ सूत्र -४ आलावा. (+) ११७४१. पाक्षिकसूत्र, खामणा व क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५१ श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. अणिहल्लपुरपत्तन, ले. गिरधर हेमचन्द भोजक, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र (२७४१२.५, १५४३८४३). पे.- १. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १आ-१०अ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंतिः जेसिं सुयसायरे भत्ति.. पे-२. पे. नाम. पाक्षिक क्षामणासूत्र, पृ. १०अ १०आ क्षामणकसूत्र, प्रा., गद्य, आदिः पियं च मे जम्मे; अंतिः नित्थारगपारगाहोह., पे.वि. सूत्र - ४ आलावा. पे. ३. पे नाम. छिङ्कउपद्रव निवारण स्तुति, पृ. १० आ - १० आ क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, सं., पद्य, आदिः सर्वे यक्षाम्बिकाद्य; अंतिः द्रुतं द्रावयन्तु नः, पे.वि. श्लो. १. ११७४२.” साधु विधि प्रकाश, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले. स्थल. मिरजापुर, ले. पं. विनयरङ्ग (गुरु मु. हीरधर्म, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सुचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र. ले. श्लो. (६२० ) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५X१२.५, १५४४७). साधुविधि प्रकाश वा. क्षमाकल्याण, सं., प्रा., गद्य, आदि: प्रणम्य तीर्थेशगणेश अतिः णविधिः वन्दनकभाष्ये. ११७४३. दशविकालकसूत्र, संपूर्ण वि. १९५६ श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. ले. स्थल. मांडवीबिंदर, प्र. वि. अध्याय १० अध्ययन, गा. ७००, पू. वि. १० अध्ययन (२६.५x१२, १४४५२ ). दशवैकालिकसूत्र आ. शय्यम्भवसूरि प्रा. पद्य, वी. रवी आदि धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ अंतिः गई त्ति बेमि ; For Private And Personal Use Only Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: २९१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ११७४४. दसवैकालिकसूत्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९४८, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना. ले. स्थल, नागोर, ले. भेरुदान व्यास, प्र. वि. मूल- अध्याय - १० अध्ययन, गा. ७०० सर्वग्रं. ३००., ( २६.५x१२, ४४३३-३५). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः गइं त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ*, मागु., गद्य, आदिः ध० जीवनइ दुर्गति; अंतिः प्ररुप्यो. ले. - ११७४५.” दसवैकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. ८८-१ (८३)+१ (८४) = ८८, जैदेना., ले. स्थल. बीकानेर, पं. वासदेव (कवलागछ), प्र. वि. मूल - १० अध्ययन र चूलिका गा. ७०० संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, त्रिपाठ, (२७.५४१२ २-४४३७-४६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंति: मुच्चइ त्ति बेमि दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदिः स्तम्भनाधीशमानम्य; अंतिः प्रवचनगुरुणेति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " " ११७४६. दशवैकालिकसूत्रनिर्युक्ति व भाष्य सह टीका, संपूर्ण वि. १९५३ श्रेष्ठ, पृ. १८१, जैदेना. ले. स्थल अहिपुर, ले. कृष्ण चेतन लेया, प्र. वि. टीका ग्रं. ६८५० मूल का मात्र प्रतिकपाठ दीया है (२७.५०१२ १५९४१-४७)दशवेकालिकसूत्र - नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. पद्य, आदि सिद्धिगाइमुवगयाणं अंतिः चरण गुणट्ठितो साहू. दशवैकालिकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, आदिः एस पइन्नसुद्धी हेऊ; अंतिः विसोहिकोडी अणेगविहा " दशवेकालिक सूत्र- शिष्यबोधिनी टीका आ. हरिभद्रसूरि सं., गद्य, आदि जयति विजितान्यतेजाः अंतिः " दशवैकालिकटीका. , ११७४७.” दशवैकालिकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७७, जैदेना., प्र. वि. मूल - १० अध्ययन २ चूलिका, गा. ७००., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र, (२७.५x१२.५, ४X३८-४१). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः निच्चला होसु. दशवैकालिकसूत्र - टबार्थ मागु, गद्य, आदि ६० जीवनइ दुर्गति: अंतिः अर्थ सम्पुर्ण. , ११७४८. दशवैकालिकसूत्रटीका, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना. पु.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २५४१२.५, १३४३४ " ३९). दशवैकालिकसूत्र - लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजतान्यतेजाः ०; अंतिः ११७४९. उपाशकदशाङ्गसूत्र सह टवार्थ व गाथासङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ५१ पे २, जैदेना. ले. स्थल, हरीदुर्ग, ले. पं. शान्तिविजय (गुरु मु. खान्तिविजय), (२८४१२.५, ७४३८-३९). पे. १. पे नाम. उपासकदशाङ्गसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-५१अ उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., प+ग, आदि: तेणं० चंपा नामं नयरी; अंतिः दिवसेसु अङ्गं तहेव. उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., गद्य, वि. १६९३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः छ अनुज्ञाइ जउ छई मे., पे. वि. मूल- अध्याय १०. पे. २. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ५१अ-५१अ ), आदिः#; अंतिः#. ११७५०.” दसवैकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- जोगीदास जोसी, प्र. वि. मूल- १० अध्ययन २ चूलिका, गा७०० टीका ग्रं. ३४५०, त्रिपाठ, संशोधित पदच्छेद सूचक लकीरें-, १+३, (२८×१३, ३०४१-४३). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः (१) मुच्चइति बेि (२) आलणा सङ्घे . दशवैकालिकसूत्र- दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१ आदि स्तम्भनाधीशमानम्य: अंतिः ( १ ) पुनः सार्द्धचतुशतम् (२) प्रवचनगुरुणेति. For Private And Personal Use Only Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११७५१. दशवैकालिकसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र.वि. मूल-१०अध्ययनरचूलिका, गा.७००; टीका-ग्रं. ३४५०., त्रिपाठ, (२८x१३, १-४४३५-३६). दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, वी. रवी, आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः आलणा सो. दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६९१, आदिः स्तम्भनाधीशमानम्य; अंतिः प्रवचनगुरुणेति. ११७५२. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना., ले.स्थल. मंगलपुर, प्र.वि. ३६अध्ययन, (२६.५४११.५, १३४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ११७५३." उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन, ग्रं. २०००, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११, १३४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः पुत्वरिसी एव भासन्ति. ११७५४. उत्तराध्ययनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, (२६.५४११, २५४५४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ११७५५. उत्तराध्ययनसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०-१(१)=३९, जैदेना.,प्र.वि. ३६अध्ययन, पू.वि. गाथा १ से २२ तक नही है., (२६.५४११.५, १५४५५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:- अंतिः सम्मए त्ति बेमि. ११७५६. उत्तराध्ययनसूत्र सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १४७८, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. मुंजिगपुर, ले.- श्रा. गावल, पठ. पं. सोमभूषण (गुरु आ. सोमसुन्दरसूरि), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६.५४११, १८४५३). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-विषमपद टिप्पण, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. ११७५७." उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन १,२,३, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११, १२४३१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति:११७५८. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६३३, मध्यम, पृ. ७०, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., (२६.५४१०.५, ९४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, आदिः संयोगक्रोधादिविप्रमु: अंतिः पूर्वऋषि एव भाषयन्ति. ११७५९." उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ३६, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१५)=१५, जैदेना., ले.- उपा. संवेगसुन्दर (गुरु उपा. जयसुन्दर, वडतपगच्छ), पठ.- साध्वीजी रत्नश्री, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ३६अध्ययन, संशोधित, (२६.५४११, १०४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुवरिसी एव भासन्ति. ११७६०." उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८२-९६(१ से ९६)=८६, देना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. पूर्णता अध्याय ८ अपूर्ण से अध्याय १८ अपूर्ण तक है., (२५.५४११, २५४५२). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदि:- अंतिः उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका , आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि:-; अंतिः११७६१.” उत्तराध्ययनसूत्र कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४५००, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, २३४४८). For Private And Personal Use Only Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः निर्मलानि स्युः. ११७६२." उत्तराध्यायनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. अध्ययन २ गाथा १८ तक लिखा है., (२६४११.५, १५४५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंति:११७६३." उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति अध्ययन-९ नमिप्रवज्याध्ययन, प्रतिअपूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. ३३-२(२३ से २४)=३१, जैदेना., ले.स्थल. दीवबंदिर, ले.- गणि विबुधकुशल (गुरु गणि सूरकुशल, नागपुरीय तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, (२६.५४१०.५, १२४३८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि:-; अंति:११७६४. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६४, जैदेना., पू.वि. अध्ययन २९ गाथा ७४ तक है., (२७४११, १३४३९). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिःउत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः भिक्षो विनयं; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भिक्षु महात्मानइ; अंति:११७६५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. मूल व नियुक्ति का प्रतिकपाठ मात्र है. टीका की शुरुआत नियुक्ति की गाथा से की है अतः टीका का आदिवाक्य नही दिया है., पू.वि. अन्तिम पत्र नही है. पूर्णता अध्ययन ३६ गाथा ६३ तक की टीका व पत्र है., (२६.५४११.५, २१४८०). उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति# , आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिताबृहद्वृत्ति# , आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः११७६६. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ११ की टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १६८८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. आगरा, ले.- ऋ. क्रिस्ना , प्र.वि. सर्वग्रं. ३७७., (२६.५४११, १८४५२). उत्तराध्ययनसूत्र-टीका* , सं., गद्य, आदि:-; अंति:११७६७. उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन-१ सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४११, ५४३४). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं; अंतिः११७६८. उत्तराध्ययनसूत्र सह शब्दार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. २० अध्ययन तक है.. (२६.५४११, २१-२३४५८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः साधुनइ विनयमार्ग; अंतिः११७६९." उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६१६, श्रेष्ठ, पृ. ९२-२(६७*,३८)=९०, जैदेना., ले.स्थल. अणिहलपत्तन, ले.- श्रा. बलभद्र, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २१५०., संशोधित, त्रिपाठ, (२७४११, ५-१५४५०). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्पमुक्कस्स; अंतिः सम्बुडे त्ति बेमि. उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः भिक्षु महात्मानइ; अंतिः कल्याण हेतु हूइ. ११७७१." पन्नवणासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, मध्यम, पृ. ४८७+१(२६३) ४८८, जैदेना., ले.स्थल. बलूंदा नगरे, ले. ऋ. दुलीचन्द (गुरु ऋ. तिलोकजी, गुर्जरगच्छ); पं. प्रीतिविजय (गुरु पं. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-३६ पद., सूत्र-२१७६, ग्रं. ७७८७. मूल के प्रतिलेखक दुलीचंदजी व टबार्थ के प्रतिलेखक प्रीतिविजयजी है., पदच्छेद For Private And Personal Use Only Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२३.५४१२.५, ६४३४-४२). प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंतिः सुही सुहं पत्ता. प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः चक्रे स्वबुद्धितः. ११७७२." उत्तराध्ययनसूत्र सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ४३४, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., संशोधित, (२५.५४११, १३४४५). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१)भवसिद्धिय संवुडे (२)पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः क्षतमसङ्गतं तदिह. ११७७३." उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०९-२(१ से २)=४०७, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. सर्वग्रं. १७०००., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, १३४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदि:-; अंतिः वृत्तेरस्याविनिश्चित. ११७७४." उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९९-२(३९५ से ३९६)=३९७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., संशोधित, (२५४११, १३४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्पमुक्कस्स; अंति: पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः कृतमसुकृतमसंगतं तदिह. ११७७५. उत्तराध्ययनसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०१-१(४९)+१(१४१)=३०१, जैदेना., प्र.वि. मूल-३६अध्ययन., (२६.५४११, १५४५१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. ११२९, आदिः प्रणम्य विघ्न; अंतिः वृत्तेरस्याविनिश्चित. ११७७६." उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६९५, श्रेष्ठ, पृ. ३८२-११८(१ से ११८)=२६४, जैदेना., ले.- केशव, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन, ग्रं. २०००; टीका-ग्रं. १४२५५; सर्वग्रं. १६२५५., संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११, १५४४६). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध , प्रा., प+ग, आदि:-; अंतिः (१)सम्मए त्ति बेमि (२)पुत्वरिसी एव भासन्ति. उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६८९, आदि:-; अंतिः दिशतु मङ्गलैकगृहम्. ११७७७." उत्तराध्ययनसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ३०९, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले.- साध्वीजी गुलाब, पठ.- ऋ. लाभचन्द्र (गुरु आ. लक्ष्मीचन्द्रसूरी, बृहद्नागपुरी लुङ्कागच्छ), राज्यकाल- राजा रत्नसिंह, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन; टीका-ग्रं. १५३००., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२.५, १७४४८). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः पसाया अहिजेज्झा. उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८पू, आदिः अर्हन्तो ज्ञानभाजः; अंतिः सुदीपिकेयम्. ११७७८." उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. ५७९, जैदेना., ले.- मु. विनयविजय (गुरु गणि वनीतविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-३६अध्ययन. सर्वग्रं. ३६०००., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष For Private And Personal Use Only Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २९५ पाठ, प्र.ले. श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (२४४) अग्निरक्षां जलारक्षां; (६५६) जब लग मेरु अडग है; ( ५३३) मङ्गलं लेखकानां च (२६११.५, ८४३८). www.kobatirth.org: उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंति: (१) सम्मए त्ति बेमि (२) पुव्वरिसी एव भासन्ति उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ + कथा सङ्ग्रह. मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं अंतिः भाष्यकारनं जाण. (+) ११७७९. उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १७१+१ (३६) - १७२, जैदेना. प्र. वि. मूल- ३६ अध्ययन., (२६४१०.५, ५०४७) उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सञ्जोगाविप्पमुक्कस्स; अंतिः (१) सम्मए त्ति बेमि ( २ ) पुव्वरिसी एव भासन्ति " " , उत्तराध्ययन सूत्र - टबार्थ* मागु., गद्य, आदिः संयोग बाह्य मातापिता; अंतिः ए वचन भाष्यकारनो छे. ११७८०. उत्तराध्ययन सूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६ वी, मध्यम, पृ. १८३-१(१८१ ) = १८२, जैदेना. प्र. वि. मूल- ३६ अध्ययन, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५११, ५३७). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकमुख प्रा. प+ग, आदि सञ्जोगाविष्यमुक्कस्स अंतिः (१) पुव्वरिसी एवं भासन्ति ( २ ) पसाया अहिजेज्झा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तराध्ययन सूत्र- टवार्थ+ कथा सङ्ग्रह. मु. पार्श्वचन्द्रसूरि-शिष्य मागु, गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनं अंतिः भाष्यकारनं जाणवुं. , ११७८१.” उत्तराध्ययनसूत्र सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना., ले. स्थल. पाडलाग्रामे, ले.- मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. दीपविजय गणि), प्र. वि. मूल-३६ अध्ययन, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५x१२, १८४४१). उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. प+ग, आदिः सञ्जोगाविष्पमुक्कस्स अति: (१) सम्मए त्ति बेमि (२) पुव्वरिसी एव भासन्ति उत्तराध्ययनसूत्र- टवार्थ+ कथा सङ्ग्रह. मु. पार्श्वचन्द्रसूरि शिष्य मागु, गद्य, आदि: पूर्वसंजोग मातापिता; अंतिः भाष्यकारनं जाणवुं. ११७८२. उत्तराध्ययनसूत्र सह अक्षरार्थलवलेश टीका व बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२१-१० (३७, १८६ से १९४ ) - २११, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखद्वारा अपूर्ण अध्ययन ३४ गाथा ६१ तक लिखा है (२५४११, १८४४२) उत्तराध्ययन सूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध प्रा. प+ग, आदि सज्जोगाविष्पमुक्करस: अंति: , " उत्तराध्ययनसूत्र- लेशार्थदीपिका टीका, सं. गद्य, आदि: मिक्षो विनयं अंति: उत्तराध्ययन सूत्र - लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: हुं विनयमार्ग प्रकट अंतिः ११७८३. पिण्डनिर्युक्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.- पं. श्रीवच्छ, प्र. वि. गा.६९७ (२६.५११, १७४५२). पिण्डनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पिण्डे उग्गम उप्पाय; अंतिः विसोहिजुत्तस्स. ११७८४. ओघनिर्युक्तिसूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १९ + १(१९) = २०, जैदेना., प्र. वि. गा. ११६४ प्र.पु. -मूल-ग्रं. १३००, (२६.५४११.५, १८-२०४६०-७०). ओघनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहन्ते वन्दित्ता; अंतिः अहिएहिं सङ्गहिआ. ११७८५.” ओघनिर्युक्ति सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८७-३ (४ से ५,६५ ) = १८४, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ११६४. सर्वग्रं. ८३८५., संशोधित, प्र.ले. श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२६x११, १५x४९). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहन्ते वन्दित्ता: अंतिः गुणवन्नेहिं सम्मत्ता. For Private And Personal Use Only Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra २९६ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ओघनिर्युक्ति-टीका#, आ. द्रोणाचार्य, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि: अर्हद्भ्यस्त्रिभुवन; अंतिः संहननो सिद्ध्यतीति.. ११७८६. ओघनिर्मुक्ति अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४४ जैदेना. (२६.१९११.५, १९९७२) " ओघनिर्युक्ति-अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदिः प्रक्रान्तोयमावश्यका; अंतिः स्फुटाजयतात्. ११७८७. ओघनिर्युक्ति सह अवचूरि, पार्श्वजिन व गुरुस्तुति, पूर्ण, वि. १५२४, श्रेष्ठ, पृ. ३६ - १ ( १७ ) = ३५, पे. ३, जैदेना., लिखवा गणि प्रतिष्ठाकल्याण (गुरु आ. सोमसुन्दरसूरि, तपगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. त्रिपाठ, ( २६.५४११.५, ७११९६६) पे.-१. पे. नाम. ओघनिर्युक्ति सह अवचूर्णि, पृ. १अ - ३६आ, पूर्ण ओघनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, आदि: अरहन्ते वन्दित्ता; अंति: अहिएहिं सङ्गहिआ. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओघनियुक्ति- अवचूर्णित, आ. ज्ञानसागरसूरि सं., गद्य वि. १४३९, आदि प्रक्रान्तोयमावश्यका अंतिः तु भवानङ्गीकृत्य, पे. वि. बीच का एक पत्र नहीं है. "" पे:-२. पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, गणि प्रतिष्ठाकल्याण, सं., पद्य, वि. १५२४, (पृ. ३६आ- ३६आ, संपूर्ण), आदिः श्रीमान् कल्पद्रु: अंतिः नर्गला मङ्गलाली.. पे.वि. गा.१. यह कृति प्रतिलेखक के द्वारा रचित है. पे. ३. सोमसुन्दरसूरि स्तुति, गणि प्रतिष्ठाकल्याण, सं., पद्य, वि. १५२४, (पृ. भ्रश्यत्तमः अंतिः सुन्दर सोमपूर्व पे.वि. श्लो. १. यह कृति प्रतिलेखक के ११७८८." ओघनिर्युक्ति सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १४६१ श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना. ले. नाइआक, प्र. वि. मूल-गा. ११६४ मूल का . " प्रतिलेखन १४६१ व अवचूरि का प्रतिलेखन १४८५ मे हूवा है., पंचपाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५x११.५, १३-१५४५८). ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. पद्य, आदि अरहन्ते वन्दित्ता: अंतिः अहिएहिं सङ्गहिआ. " ओघनिर्युक्ति-अवचूर्णि# आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३९, आदिः प्रक्रान्तोयमावश्यका : अंतिः भक्त्या स्वपरहेतोः. ११७८९. नन्दीसूत्रटीका, संपूर्ण, वि. १६७२, श्रेष्ठ, पृ. ११७, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभतीर्थ, ले. वश्राम जोसी, प्र. वि. ग्रं. ७७३२, (२६४११, १७४६२). नन्दीसूत्र- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, आदि जयति जगदेकमङ्गलमपहत अंतिः जैनोधर्मश्व मङ्गलम्. ११७९०. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९९, श्रेष्ठ, पृ. ९१-१ ( १२ ) + १(१४) = ९१, जैदेना., ले. स्थल. धांगध्रा, ले.- पं. जिनविजय (गुरु पं. धर्मविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत (२६४११.५, ३-१९४३५-४०) नन्दीसूत्र, आ. देववाचक प्रा. प+ग, आदि जयह जगजीवजोणीवियाणओ अंतिः वीसमणुन्नाई नामाई. नन्दी सूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि ज० विषय कषायादिक: अंतिः अनुज्ञाना नाम जाणवा. ११७९१." नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ६२, जैदेना. ले. स्थल वणथलीनाघोरी ले. मु. अजितसागर (गुरु पं. राजसागर), पठ- मु. ताराचन्द, मु. प्रेमजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५X११.५, ६५४६), " ३६आ - ३६आ, संपूर्ण), आदिः यस्य द्वारा रचित है, नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः वीसमणुन्नाई नामाई.. नन्दी सूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नन्दी कहतां आणन्दनो अंतिः #. ११७९२. अनुयोगद्वारसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. १७५, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.१६०४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २००५. त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (६१६) यादृशं पुस्तकं दृष्टा, (२७११.५, १६-२२x२५-६०). अनुयोगद्वारसूत्र आ. आर्यरक्षित प्रा. प+ग, आदि नाणं पञ्चविहं अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. , · " अनुयोगद्वारसूत्र - बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनं; अंतिः दानविधिकुशलैः. For Private And Personal Use Only ११७९३.” अनुयोगद्वारसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८२, जीर्ण, पृ. १००, जैदेना., ले. स्थल. समीपुर, प्र. वि. प्रथम पत्र नया लिखा हुआ है. मूल-गा. १६००, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४११, ३-१२०५०) Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २९७ अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, आदिः सम्यक्सुरेन्द्रकृत; अंतिः रचिता प्रकृतिवृत्तिः. ११७९४. अनुयोगद्वारचूर्णि, संपूर्ण, वि. १५६३, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., पठ.- वा. ज्ञानविलास (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि, खरतरगच्छ), ले.- केशवदास,प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १८५०., (२६.५४११, १९४६०). अनुयोगद्वारसूत्र-चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, आदिः कञ्चि पञ्चविहायारजाण; अंतिः सव्वणयसम्मतो भवतीति. ११७९५. अनुयोगद्वारसूत्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२५४११.५, १३४४२). अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, (संपूर्ण), आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः दुक्खक्खयट्ठाए. ११७९६. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.७००. सर्वग्रं. ७९९८., (२६.५४११, ६ २८४४७-७५). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः मुद्देसामि अणुजाणामि. नन्दीसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नन्दी ते आनन्दनी; अंतिः#. ११७९७. नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., ले.स्थल. दिल्ली, ले.- पं. पुन्यअक्षय (गुरु मु. रत्नधीर): मु. सुमतिअक्षय (गुरु मु. त्रैलोक्यधीर), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल के प्रतिलेखक पुन्यअक्षयजी है और टबार्थ के प्रतिलेखक सुमतिअक्षयजी है. मूल का प्रतिलेखन दिल्ही व टबार्थ का प्रतिलेखन साहि जिहानाबाद मे कीया गया है., (२४४११, ६४३६). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः सेलघणकुडग चालणि; अंतिः से तं परोक्खणाणं. नन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः मुगल सेल अने मेघना; अंतिः कर्वा परोक्षज्ञान. ११७९८." नन्दीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., ले.- पं. शुभविजय गणि, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२.५, ५-२०४३७-५५). नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., प+ग, आदिः जयइ जगजीवजोणीवियाणओ; अंतिः वीसमणुन्नाइं नामाइं. नन्दीसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः ज० विषय कषायादिक; अंतिः अनुज्ञाना नाम जाणवा. ११७९९." अनुयोगद्वारसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल-ग्रं. १४००., संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, ११४४५). अनुयोगद्वारसूत्र ,आ. आर्यरक्षित, प्रा., प+ग, आदिः नाणं पञ्चविहं; अंतिः साहू से तं नए. अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: नाणं जाणवउ ते ज्ञान०; अंतिः लाभ ते सामायिक कहीइ. ११८००. सन्थारापइन्ना सह टीका, संस्तारककर्तव्यविधि व सन्थारा विधि, संपूर्ण, वि. १६९२, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. बिकानेर, (२५.५४११, १५-१७४४४). पे.-१.पे. नाम. संस्तारकप्रकीर्णक सह टीका, पृ. १आ-१६अ संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सुहसंकमणं मम दिंतु. संस्तारक प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, आदिः काउण० कृत्वा नमस्कार; अंतिः कृतेति भद्रं भवतु., पे.वि. मूल गा.१२१. पे.२. संस्तारक प्रकीर्णक-सन्थाराकर्त्तव्यविधि, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः प्रथम मुखवस्त्रिका; अंतिः स्वर्गा० स्यात्. पे..३. संस्तारक प्रकीर्णक कर्तव्य विधि-अर्थ, मागु., गद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः सन्थाराविधि लिखीजइ; अंतिः विस्तार अनेक प्रकार. ११८०१. भगवतीसूत्र बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४११.५, ११४३६). For Private And Personal Use Only Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir २९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भगवतीसूत्र-बोलसङ्ग्रह, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः तिविहं तिविहेणं न; अंतिः अपर्याप्ता असंख्याता. ११८०२. भत्तपरिज्ञासूत्र, अपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पूर्णता गाथा ७६ तक है., (२६४११, ५४४४). भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभ; अंति:११८०३." आउरपच्चक्खाण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.८४., दशा वि. विवर्ण-तैलीय पदार्थ से-अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५४१०.५, ३४२८). आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः सव्वदुक्खाणम्. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जाणीनइ निरपराध त्रस; अंतिः करी आशीस पणि कही. ११८०४. चतुःशरण प्रकीर्णक व आउरपच्चक्खाण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १४९०, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. शुद्ध प्रति., पंचपाठ, (२६४११, ७-९४५४). पे.१.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, पृ. १अ-४अ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः., पे.वि. मूल-गा.६३. पे.२.पे. नाम. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक सह अवचूरि, पृ. ४अ-७आ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., प+ग, आदिः देसिक्कदेसविरओ; अंतिः सव्वदुक्खाणम्. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः अथातुरप्रत्याख्यान; अंतिः स एव कर्तेति., पे.वि. मूल-गा.८४. ११८०५. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. गुणमाणिक्य, पठ.- श्रा. दोशी सूरा, प्र.वि. मूल-गा.६३., (२६.५४११, १५४४९). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंति: कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलु छ आवश्यकनां; अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ. ११८०६." चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. लाभविजय (गुरु पं. कुंअरविजय), प्र.वि. मूल-गा.६३., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, ७४३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मङ्गलीक भणी पहिलं; अंतिः नित्य ए चउसरण गुणेवउ. ११८०७. चतुःसरणपयन्ना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७१९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सिणालाग्रामे, ले.- गणि विनयविजय (गुरु गणि लब्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६३., त्रिपाठ, (२६४१०.५, ३-५४५८). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निबुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताण; अंतिः अनन्त सुख ते जीव लहइ. ११८०८. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपुर, प्र.वि. मूल-गा.६३., (२६४११, ५४४३). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सावध व्यापार त्याग; अंतिः ए चउसरण सदैव गणवू. ११८०९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,ले.स्थल. सहानगर, ले.- श्रा. जेसङ्ग, पठ.- श्रा. रवि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६३., पंचपाठ, (२५.५४११, ८-१०x२९). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. For Private And Personal Use Only Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ २९९ चतुःशरण प्रकीर्णक-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः पहिलु छ आवश्यकनां; अंतिः मुक्तिनां सुख लहइ. ११८१०. चतुःशरण प्रकीर्णक व नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७१९, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.- गणि कान्तिकुशल (गुरु गणि लालकुशल), (२६४११, ५४४०). पे.-१.पे. नाम. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, गणि लाभकुशल, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सुख- दातार छई., पे.वि. मूल-गा.६३. पे..२. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. ७अ-११आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंतिः ते अनेकसिद्ध कहिइ., पे.वि. मूल-गा.४४. ११८११. गच्छाचारपयन्ना सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. १५५, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१३७; टीका-ग्रं. ५८५०., (२६.५४११, १३४५४). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. गच्छाचार प्रकीर्णक-बृहट्टीका , गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६३४, आदिः उद्बोधं विदधेब्जानाम; अंतिः च्यमानाश्नुतां जयम्. ११८१२. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- गणि विमलसोभाग्य, प्र.वि. मूल गा.६३., पंचपाठ, (२५.५४११, ६-९४३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदि: सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः चतुःशरणविषमपदविचरणं; अंतिः सुखानि तेषामित्यर्थः. ११८१३." गच्छाचारपयन्ना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१३८, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १२४३७). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. ११८१४. अजीवकल्प व सारावली प्रकीर्णकसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., (२७४१२, ५४३७). पे.-१. अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः आहारे उवहिं सिय; अंतिः अहाणुपुवीए., पे.वि. गा.४३. पे.२. सारावलीप्रकीर्णक, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-१८आ), आदिः आरम्भेसु नियत्ता; अंतिः अइरेणं साहुसक्कारं., पे.वि. गा.११६. ११८१५.” तन्दुलवैयालिय सूत्र प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. सर्वग्रं. १२५०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ६४५०). तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा., प+ग, आदिः निज्जरिय जरामरणं; अंतिः कारणं लहिइ शिव सुखं. तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, आदिः कल्याणवल्लीतती; अंतिः करो जेम सुख पामो. ११८१६." भाष्यत्रय व चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.- मु. अमृतविजय, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२४४१०.५, १२४४५). पे.-१. भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-७अ), आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं., पे.वि. ३ भाष्य, गा.१५२. पे.२. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-९आ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६३. For Private And Personal Use Only Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८१७. वीरथुइअध्ययन, दण्डकप्रकरण व चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., (२५.५४११, १२४३८). पे.-१. सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः पुच्छिसुणं समणामाहणा; अंतिः देवाहिव आगमिस्सन्ति.,पे.वि. गा.२९. पे.२. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-४अ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४२. पे.-३. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-७अ), आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं., पे.वि. गा.६३. ११८१८. चतुःशरण प्रकीर्णक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.६३, (२५.५४११, ९४३२). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. ११८१९. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा ३९ तक है. टबार्थ ३५ गाथा तक लिखा है, प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११.५, ५४३६). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंति: चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साव० सावय कहीइ; अंति:११८२०. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभतीर्थ, ले.- सदुआ, प्र.वि. सर्वग्रं. ६००., (२६४११, ११४३५). चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः. ११८२१. चतुःशरण प्रकीर्णक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५२२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पञ्चायण भाट, प्र.वि. मूल-गा.६३., पंचपाठ, (२६४११, ८४३८). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः इदमध्ययनं परमपद; अंतिः भवतीति गाथार्थः. ११८२२. चतुःशरण प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६३., (२६४११.५, ३४३५). चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः सावज्ज जोग विरई; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं. चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ॐ नत्वा चतुःशरण; अंतिः सुख- देणहार. ११८२३. गच्छाचारपयन्ना सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३७., (२६.५४११, १५४५६). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. गच्छाचार प्रकीर्णक-बृहट्टीका, गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६३४, आदिः उद्बोधं विदधेब्जानाम; अंतिः च्यमानाश्नुतां जयम्. ११८२४. पिण्डविशुद्धि सह बालावबोध व द्रव्यभङ्गा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., पठ.- श्राविका बाई जवा, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ५४३२). पे.-१. पे. नाम. पिण्डविशुद्धि प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १आ-१३आ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः देवताना इन्द्र तेहना; अंतिः अने सोधउ निर्दोष करउ., पे.वि. मूल-गा.१०३. पे:२. द्रव्यभङ्गा, मागु., गद्य, (पृ. १३आ-१३आ), आदिः संस्यशेहस्त संस्य; अंतिः तेउ तिम भङ्गउ. ११८२५.” पिण्डविशुद्धि सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५८०, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थे, प्र.वि. मूल-गा.१०३., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-कुछ पत्र, (२६४११, ९४३७). For Private And Personal Use Only Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३०१ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सुरपतिनरपतिपूज्यं; अंतिः बोलइ छइं इसिउ भाव. ११८२६. पिण्डविशुद्धि सह टीका, अपूर्ण, वि. १५८२, श्रेष्ठ, प्र. ७-१(५)=६, जैदेना., ले.स्थल. नारदपुरी ले.- गणि सहजकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१०३., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x११, ७-१०x४२). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२९५, आदिः तं नमत श्रीवीरं; अंतिः सर्वाभीष्टसिद्धये. ११८२७. पिण्डविशुद्धि सह दीपिका, संपूर्ण, वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, पठ.- श्राविका वीरबाई, प्र.वि. मूल-गा.१०२. प्र.पु.-टीका-ग्रं. ७०३५., पंचपाठ, (२५४१०.५, ७X४८). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. पिण्डविशुद्धि प्रकरण-दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२९५, आदिः तं नमत श्रीवीरं; अंतिः स्नेहेन __सम्पुष्यताम्. ११८२८. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.१०३, (२६x१०.५, ११४४४). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य. ११८२९. आराधनापताका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., (२६४११, १३४४४). आराधनापताका प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, आदिः नियसुचरियगुणसाहप्प; अंतिः जिणसासणं सुदूरं. ११८३०." गच्छाचारपयन्ना सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३८. प्र.पु.-अवचूरि-ग्रं. ४७५., संशोधित, पंचपाठ, (२५.५४११, ११४३२). गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण महावीरं; अंतिः इच्छंता हियमप्पणो. गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आदौ शास्त्रकार:; अंतिः इति गाथार्थः. ११८३१. पर्यन्ताराधना सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६९. अंतिम गाथा का टबार्थ नही है., (३४.५४११, १३४३८). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः श्रीवीतरागदेवने; अंति:#. ११८३२." पर्यन्ताराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२३, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. उजरग्रामे, ले.- मु. ___ आणन्दविजय (गुरु गणि लब्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७०., संशोधित, (२५.५४११, ५४३८). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मु. लावण्यविजयवाचक शिष्य, मागु., गद्य, आदि: नत्वा श्रीवाचकोत्तमल; अंतिः सुख अनुक्रमई पामइं. ११८३३. कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३-३(१ से २,२१)=३०, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं.. (२५.५४११, ११४३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:११८३४. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०. अंतिम गाथा का टबार्थ नही है., (२६४१०.५, ५४४७). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंतिः#. ११८३५. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- मु. शिवचन्द्र (गुरु गणि माणिक्यचन्द्र), पठ. For Private And Personal Use Only Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गणि चतुरचन्द्र (गुरु गणि माणिक्यचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७०., (२५.५४११, ६४३७). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंतिः पामे शाश्वतां सुख. ११८३६. पर्यन्ताराधना सह अर्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पूर्णता गा.टबार्थ ३५ तक है., (२६४११.५, १३४४३). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंति: पर्यन्ताराधना-बालावबोध , मागु., गद्य, आदि: श्रीवीतरागदेवने; अंति:११८३७. आराधना प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, प्र. ८, जैदेना., ले.स्थल. वेरावलबंदिरे, ले.- पं. कृष्णविजय गणि (गुरु पं. राजविजय गणि), प्र.वि. मूल-गा.७०., (२२.५४११.५, ६४३०). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः सद्गुरुनइ नमस्करीइनइ; अंतिः सुख अनन्ता पामइ. ११८३८. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- पं. माणिक्यविजय (गुरु गणि वनीतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७०., (२३४१०, ५४३६). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंतिः लहइ ते शाश्वता सुख. ११८३९. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२४.५४११, ६४३७). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीनइं; अंतिः लहइ ते शाश्वता सुख. ११८४०. वृद्धआराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. गा.४४५, (२६.५४११, ११४४१). वृद्ध आराधना, मु. मलिदास, मागु., पद्य, वि. १६५०, आदिः वीर जिणेसर पयनमी; अंतिः अविचल पदवी पामस्यइ. ११८४१. श्रावकआराधना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सुरेतबिंदरे, प्र.वि. आराधना प्रकरण की वृत्ति पर आधारित., (२४.५४१०.५, १४४४५). श्रावक आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीसर्वज्ञ प्रणिपत; अंतिः मुनिषड्रसचन्द्रवर्षे. ११८४२. अन्तकाल आराधना कुलक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९, जैदेना., पठ.- श्राविका जीवणीबाई,प्र.वि. गा.१२५, (२६४११, ११४४२). आराधना कुलक, मागु., पद्य, आदिः वन्दिय चउवीसमउ जिणिं; अंतिः साधु तुं विंनती कीजई. ११८४३. अङ्गचूलियासूत्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मेडतानगरे, ले.- पं. पुन्यसुन्दर, (२५४१२, १३४३८). पे..१. अङ्गचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-२९आ), आदिः नमो सुय० नमो अरि०; अंतिः पवेइयं त्तिबेमि. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. २९आ-२९आ), आदिः#; अंतिः#. ११८४४. ऋषिभासित प्रकीर्णकादि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. ३, जैदेना., (२६४११.५, १०४५०). पे.१.पे. नाम. ऋषिभासित प्रकीर्णक, पृ. १आ-२६आ ऋषिभाषितप्रकीर्णक, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., प+ग, आदिः सोयव्वमेव वदति; अंतिः आगच्छति त्ति बेमि., पे.वि. अध्याय-४५. पे.२.पे. नाम. ऋषिभासित संग्रहणी, पृ. २६आ-२६आ ऋषिभाषितप्रकीर्णक-ऋषिभासितसङ्ग्रहणी, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः पत्तेयबुद्धमिसिणो; अंतिः चत्ता पञ्चेव अक्खाए. पे.-३.पे. नाम. ऋषिभासित अर्थाधिकार संग्रहणी, पृ. २६आ-२७अ For Private And Personal Use Only Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: ऋषिभाषितप्रकीर्णक-अर्थाधिकारसङ्ग्रहणी, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सोयव्वं जस्स भवि; अंतिः अप्पं पापाण हिंसायु., पं.वि. गा.५. , ११८४५." आउरपच्चक्खाण, भत्तपरिज्ञा, सन्धारापन्नासूत्र व रावणस्वरूप संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ९ पे. ४ जैदेना.. प्र. वि. सर्वग्रं. २५५ संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६४११, १७-१९९५४). " पे. १. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा. प+ग, (पृ. १आ-३अ), आदि: देसिक्कदेसविरओ अंतिः " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सव्वदुक्खाणम्.. पे.वि. गा. ८१. पे. २. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-७अ), आदि: नमिऊण महाइसयं महाणुभ अंतिः सुक्खं लहइ मुक्खं., पे.वि.गा. १७२. पे.-३. संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ - ९अ), आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सङ्कमणं सया दिन्तु., पे.वि.गा. १२२. पे.-४. रावण स्वरुप, सं., गद्य, (पृ. ९अ - ९आ), आदि: रावण वाच्यं त्रिकूट; अंतिः शतानि भवन्ति राक्षसा. ३०३ ११८४६. कल्पसूत्र, पूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १३४ - १ (७९) = १३३, जैदेना., ले. स्थल. पोसाला, ले. पं. ऋषभचन्दजी (गुरु मु. परमानन्दजी, बृहद्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत प्र. वि. ९ व्याख्यान (२५.५४१२, ७४२५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि " ११८४७.” कल्पसूत्र सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. टीका प्रतिलेख के द्वारा अपूर्ण स्थविरावली तक का है. (२७४११, ९५२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिःकल्पसूत्र- टीका, सं., गद्य, (प्रतिअपूर्ण), आदि: अत्राध्ययने अधिकार अति: , ११८४८. पिण्डविशुद्धि सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ४४ जैदेना, पृ.वि. अंतिम पत्र नहीं है.. (२७४११, १०x३७). पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदि: देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः (+) पिण्डविशुद्धि प्रकरण-बालावबोध, गणि संवेगदेव, मागु, गद्य वि. १५१३, आदि श्रीमद्वीरजिनेशं अंति: ११८४९. कल्पसूत्र का दुर्गपदनिरुक्त अवचूरि (कल्पभाष्य), संपूर्ण, वि. १५८१, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. भाष्य-ग्रं. ४१८., (२६.५४११, १३०४६). कल्पसूत्र - दुर्गपदनिरुक्त अवचूरि, आ. विनयचन्द्रसूरि सं., गद्य वि. १३२५, आदि सोवर्णः सूत्रभिर्वृ: अंतिः कर्षन्तीति सर्वमनघम्. ११८५०." कल्पसूत्र की चूर्णि (कल्पचूर्णि ), संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. उपा. हर्षरत्न (गुरु उपा. उदयराज, अञ्चलगच्छ), प्र.वि. प्र.पु. - ग्रं. ७००., संशोधित (२४.५X११, १८x६२). कल्पसूत्र - चूर्णि, प्रा., गद्य, आदि: सम्बन्धो सत्तमासियं; अंतिः पज्जोसमणाकप्पो. ११८५१. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १६९६, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना ले. स्थल कुशावती, ले. भूदेव लिखवा. पं. देवविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ९ - व्याख्यान, ( २६.५x११.५, ९x३३). " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि For Private And Personal Use Only i ११८५२. कल्पसूत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४६ जैदेना. प्र. वि. ९ व्याख्यान प्र.पु. मूल ग्रं. १२५०, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७११, ११४४७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ ति बेमि ११८५३. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना. ले. स्थल. भावनगर, ले. पुनमचन्द बोडा, प्र. वि. ९ - व्याख्यान, (२५.५८१२, १०९४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra " www.kobatirth.org: ३०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८५४." कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना. प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान, ग्रं. १२१६. प्र. पु. - टीका ग्रं. २१६८., पंचपाठ, संशोधित (२६.५४११५, २-१५४४२). . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंतिः मध्ययनं समाप्तः. ११८५५.” कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६४, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अंत के पत्र नहीं हैं.. (२६.५४११, ९४३१). पू.वि. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः " ११८५६.” कल्पसूत्र, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४८-१३ (१ से १३ ) = ३५, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६×११.५, १३४३१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति: ११८५७. कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. १८०, जैदेना. प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान, ग्रं. १२१६. प्र. पु. टीका ग्रं. ७०००. अक्षर घीस जाने के कारण प्रतिलेखन पुष्पिका स्पष्ट पढी नही जा रही है., पंचपाठ, (२६.५X११, २-८४३१(३५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः (१)मभिहितमिति (२) रमुष्या शतशः प्रतीः .. ११८५८. कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. १८५, जैदेना., प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., ( २६११, २-६३५-३८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि तेणं कालेणं० समणे अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि " कल्पसूत्र-कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः रमुष्या शतशः प्रतीः. .. ११८५९." कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २०१, जैदेना. ले. स्थल. ईदलपुर, प्र. वि. मूल ९ व्याख्यान., संशोधित त्रिपाठ, ( २६४११, १३०४६). For Private And Personal Use Only कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंतिः रमुष्या शतशः प्रतीः. ११८६०." कल्पसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २०९, जैदेना, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल ९ व्याख्यान.. संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. टीका प्रशस्ति गाथा १० (अपूर्ण) तक ही है. (२५.५४११४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे: अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः प्रतीदमुवाचेति. ११८६१.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, अपूर्ण, वि. १७१५, श्रेष्ठ, पृ. २९२ - १४ (१ से ९, ११४ से ११७, १८७) = २७८, जैदेना., ले. स्थल. अर्गलापुर, प्र. वि. मूल-९- व्याख्यान, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टबार्थादि, संशोधित, प्र. ले. श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२५.५x११, १३४३४-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि:-; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि . ११८६२.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, संपूर्ण, वि. १७३१, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, ले.- मु. लक्ष्मीसुन्दर ( गुरु गणि हस्तिसुन्दर ), गच्छा. आ. कक्कसूरि प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, संशोधित (२५.५४१०.५, १७४५४-५७). Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योतिः; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. www.kobatirth.org: ११८६३. कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, संपूर्ण वि. १७०३ श्रेष्ठ, पृ. १४०, जैदेना., ले. स्थल खेजडला, प्र. वि. मूल-९ व्याख्यान. प्र.पु. - टीका-ग्रं. ८०००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित - टबार्थादि, संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र (२६.५४१०.५, २-५४४८-५८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्पसूत्र- कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८५, आदि: तेणं कालेणं० ते इति; अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. ११८६४.” कल्पसूत्र सह कल्पलताटीका, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. १३५, जैदेना., ले. स्थल. विक्रमपुर, ले. ऋ. सुजाणसिङ्घ, प्र. वि. प्र. पु. टीका ग्रं. ८००० मूल का मात्र प्रतिकपाठ दिया है. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, १७०९४३-४८). कल्पसूत्र - कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य वि. १६८५, आदिः प्रणम्य परमं ज्योति: अंतिः तावन्नन्दतु सापि हि. (+) ११८६५. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, संपूर्ण, वि. १८२२ श्रेष्ठ, पृ. १३३ जैदेना ले. पं. माणिक्यराज (गुरु उपा. " रूपवल्लभ), प्र. वि. अबरख युक्त मूल-९ व्याख्यान (२४.५५१० ५ १७०९४८-४९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेणं काले० समणे: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि " कल्पसूत्र कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य वि. १८वी आदिः श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः कल्पसूत्रस्य · ३०५ · · चेमाम्. " ११८६६.” कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १७०८, मध्यम, पृ. २७५+१(१५) २७६, जैदेना. ले. स्थल, सोजितनगर, पठ. पं. कल्याणसागर (गुरु उपा. श्रुतसागर) ले गणि भाग्यसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पंक्ति-अक्षर अनियमित है। मूल९ - व्याख्यान., संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, त्रिपाठ, (२५x११x). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेण कालेनं० समणे: अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि " कल्पसूत्र- कल्पकौमुदी टीका उपा. शान्तिसागर सं., गद्य वि. १७०७ आदिः प्रणम्य परमानन्दकन्द अंतिः संवाच्यमाना चिरम्. ११८६७.” कल्पसूत्र व्याख्यान ५ सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ९९, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-बीच के कुछ पत्र, (२५.५४१०.५, ६-१४४३३-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे: अंति: " कल्पसूत्र- कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, वि. १६२८, आदिः प्रणम्य प्रणताशेष; अंति: ११८६८. कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना. प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, ग्रं. १२१६. प्रारंभ व अंत की " अवचूरि नही है व बीच मे कहीं कहीं नही लिखी है., पंचपाठ, (२५.५X११, ९-११x४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र- अवचूरि सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि-: अंतिः पारतन्त्र्यमभिहितम्. . For Private And Personal Use Only ११८६९. कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण वि. १७वी, जीर्ण, पृ. १५४, जैदेना. प्र. वि. पंक्ति अक्षर अनियमित है। मूल ९ व्याख्यान. , " प्र.पु. - टीका- ग्रं. ३५३२. त्रिपाठ, (२५.५x११.५x). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र-कल्पदीपिका टीका, मु. जयविजय, सं., गद्य, वि. १६७७, आदिः कल्याणाङ्कुरवृद्धये; अंतिः जिनागमे भक्तैः Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११८७०." कल्पसूत्र-साधुसमाचारी सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६४११, १७४५४-५६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदि:-; अंतिः कल्याणं सर्वदा भवतु. ११८७१. कल्पसूत्र सह टीका - साधु समाचारी, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. टीका-अध्याय-आठवां अध्ययन.., (२५.५४१०.५, १७४४९-५३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-हिस्सा साधुसामाचारी का सूत्रार्थ, गणि विमलकीर्ति, सं., गद्य, आदिः तस्मिन् काले० आषाढ; अंतिः वृत्यनुसारेण लिखितः. ११८७२. कल्पसूत्र सह टीका- साधु सामाचारी, प्रतिपूर्ण, वि. १७२८, मध्यम, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. प्रवचन-अध्याय-आठवां अध्ययन.., प्र.ले.श्लो. (२४६) यदत्र मतिमाद्याद् अज्ञाता, (२६x११, १५४४०-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-व्याख्यान पद्धत्ति, उपा. समयराज, सं., गद्य, वि. १६६२, (संपूर्ण), आदिः प्रथमजिनः श्रीऋषभदेव; अंतिः सन्ततिवाचनार्थम्. ११८७३. कल्पसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६१७, मध्यम, पृ. ११९, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, लिखवा.- श्रा. माइया नाहटा, प्र.वि. प्रथम पत्र पर अष्टमंगल सहित कलश का सुन्दर रङ्गीन चित्र है। मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., संशोधित, पंचपाठ, (२७.५४११, ५-७४२७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढम; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः तेणं० ते इति प्राकृत; अंतिः पारतन्त्र्यमभिहितम्. ११८७४." कल्पसूत्र सह अवचूरि व कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १५१३, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १५-१८४६१-६३). पे.-१.पे. नाम. कल्पसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ-२१अ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-अवचूरि*, सं., गद्य, आदिः अत्राध्ययने त्रयं; अंति: गणेशोपदेशेनेति., पे.वि. मूल-अध्याय-९-व्याख्यान, ग्रं.१२१६. पे.२. कालिकाचार्य कथा, प्रा., पद्य, (पृ. २१अ-२२आ), आदि: हयपडिणीयपयावो; अंतिः भव्वाण भद्दकरा., पे.वि. गा.१२०. ११८७५.” कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६.५४११, १९-२०७५९-६३). कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, आदिः पुरिमचरिमाणकप्पो; अंतिः सो सङ्घगुणायरो जयउ. ११८७६. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य व दोहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १३४४४-४५). पे.१. कल्पसूत्र-अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, (पृ. १अ-६७अ), आदिः पुरिम चरिमाणकप्पो; अंतिः श्रीसङ्घभट्टारकः. पे..२. जैन गाथा *, मागु., पद्य, (पृ. ६७आ-६७आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. परिमाण गा.५ है. ११८७७.” कल्पसूत्र व्याख्यान- ९ सह टबार्थ+अन्तर्वाच्य(व्याख्यान), प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, ६x४२-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. For Private And Personal Use Only Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ कल्पसूत्र- -टबार्थ + व्याख्यान, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: ग्रथितोयं देवकुशलेन. ११८७८. कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६ + १ (१३) = १७, जैदेना., ( २६ ११, २०-२२×५७-६०). कल्पसूत्र अन्तर्वाच्य, सं. प्रा. प+ग, आदि: पुरिम चरिमाण कप्पो अंति क्षमयन्ती मृगावतीम्. www.kobatirth.org: ११८७९." कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २४ पे. २, जैदेना. प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त " " विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२६.५०९११, १७९४४-४७) पे.-१. कल्पसूत्र- अन्तर्वाच्य, सं., प्रा., प+ग, (पृ. १अ - २४अ, संपूर्ण), आदिः कल्याणानि समुल्लसन्त; अंतिः (१) भोजरजोराजि पवित्रितः (२) बाह्यो जिनवाक्यमेतत्. पे.-२. पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, (पृ. २४अ - २४अ, अपूर्ण), आदिः श्रीवज्रस्वामिशाखाया; अंतिः-, पे.वि. मात्र प्रथम पत्र है. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति: कल्पसूत्र - बालावबोध* मागु, राज, गद्य, आदि:-; अंति: ११८८१.() ११८८०.” कल्पसूत्र व्याख्यान २ सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, जैदेना, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है- अल्प, (२५.५X११, १७४४९-५२). कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य सं गद्य, आदि कल्याणांपुरिम इह अंति: ; , कल्पसूत्र का अन्तर्वाच्य, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, प्र. वि. वज्रस्वामि चरित्र तक लिखा है, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४१०, १७-१८०४४-४७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८८२. कल्पसूत्र - साधुसमाचारी सह बालावबोध, प्रतिपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना, ले. स्थल उरालाग्रामे राज्यकालराजा जगतसिङ्घ, प्र.ले. श्लो. (५०४) अक्षर मत्ताहीणं (२६.५x१०.५, १९-२०४५०-५२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - बालावबोध*, मागु., राज, गद्य, आदि:-: अंति: संपूर्ण वाचना होइ. " कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: कल्पसूत्र - टबार्थ + व्याख्यान + कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु, गद्य, आदिः वर्द्धमानं जिनं; अंतिः ३०७ ११८८३. कल्पसूत्र सह टबार्थ + व्याख्यान + कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५५, जैदेना., पू. वि. लेखक द्वारा अपूर्ण. ( भगवान महावीर की बांधव नंदिवर्द्धन को संयम प्रार्थना तक लिखा है), ( २६.५४११ ५-६४३९-४१) (+) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: #; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, आदि: अर्हतभगवन्त उत्पन्न अंति: आगे एहवी कहता हुआ. कल्पसूत्र- व्याख्यान+ कथा*, मागु., गद्य, आदि: अज्ञानतिमिराधानां; अंतिः #. , ११८८४.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान + कथा, संपूर्ण, वि. १७८५, जीर्ण, पृ. ७७, जैदेना., ले. स्थल. देवीझर, ले.- पं. खुस्यालचन्द ( खरतरगच्छ गच्छा. आ. जिनभक्तिसूरि ( खरतरगच्छ ). प्र. वि. मूल-९-व्याख्यान, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ - कुछ पत्र (२५.५११, ५-१८४४२-६०). " ११८८५.” कल्पसूत्र-स्थविरावली सह टवार्थ व व्याख्यान+कथा, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ प्रथम व अंतिम पत्र (२६४११.५, ७४३५-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि-: अंति:कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि:-; अंति: " For Private And Personal Use Only ११८८६. कल्पसूत्र सह व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५३-२ (२८,४७) -५१. जैदेना. प्र. वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं है. चतुर्थ व्याख्यान तक ही है., ( २६.५X११, ६३७-४४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: , Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेषवीर; अंति:११८८७. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(६)=८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण.. (२५.५४११.५, १५४५१-५८). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति: कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंति:११८८८. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८-३४(१ से ३४)=१४, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं. द्वितीय व्याख्यान अपूर्ण है., (२६४११.५, ५४३५-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिःकल्पसूत्र-टबार्थ , मागु., गद्य, आदि:-; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदि:-; अंति:११८८९. कल्पसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३१, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान, ग्रं. १२१६., त्रिपाठ, (२५.५४११, ३-६४३१-३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध', मागु.,राज., गद्य, आदिः श्रीकल्पसिद्धान्त; अंति: कथा वाच्यमान जाणवी. ११८९०. कल्पसूत्र सह बालावबोध व कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १६४०, श्रेष्ठ, पृ. ११०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. दिल्ली(दील्ली), ले.- पाठक महेन्द्रकीर्ति(हर्षपुरीयगच्छ), पठ.- मु. रत्नकीर्ति(हर्षपुरीयगच्छ), राज्यकाल- राजा अकबर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अब्दे रंधेयुगेऋतौशशिमिते.,प्र.ले.श्लो. (४९५) अक्खरमत्ताहीणं, (२६.५४११, ११४३९ ४२). पे.१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह (मा.गु.)बालावबोध, पृ. १आ-१०६आ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-बालावबोध, मागु.,राज., गद्य, आदिः नैतत् पर्वसमं पर्व; अंतिः आगलि संपूर्ण हुई., पे.वि. मूल-अध्याय ९-व्याख्यान. सर्वग्रंथाग्र०५०००. पे.२. कालिकाचार्य कथा, सं., पद्य, (पृ. १०६आ-११०अ), आदिः सालिवाहणेणरन्ना सङ्घ; अंतिः यच्छन्तु सो अनघे., पे.वि. श्लो.६५. ११८९१.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १८५३, मध्यम, पृ. १३७-१(३)+१(४)=१३७, जैदेना., ले.स्थल. बेलानगर, ले.- पं. उत्तमविजय, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४११.५, ६-१५४३८-४२). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंतिः कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति:११८९२." कल्पसूत्र सह टबार्थ, सुबोधिकानुसारी बालावबोध व सङ्घप्रशस्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. १४२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. आडेसर, ले.- गणि शुभविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२६४११.५, ७ १८४४०-४३). पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ व सुबोधिकानुसारी बालावबोध, पृ. १आ-१४१आ कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्तने नम०; अंतिः इम उपदेशदेता हता. कल्पसूत्र-सुबोधिकाटीका का बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः#., पे.वि. बीच-बीच में For Private And Personal Use Only Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: किंचित् संस्कृत पाठ भी लिखा है मूल-अध्याय ९- व्याख्यान. पे. २. पे नाम सङ्घप्रशस्ति सह (मा.गु.) टवार्थ पृ. १४१-१४२अ सङ्घ स्तुति, सं., पद्य, आदिः संघोय गुणरत्नरोहण ; अंतिः सङ्घमहामन्दिरं वन्दे . सङ्घ स्तुति टवार्थ, मागु, गद्य, आदि ए श्रीसद्ध गुण रत्न: अंतिः #, पे.वि. मूल-श्लो. ६. कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हुवो अरिहन्त; अंतिः सुधर्मागणधरइको. (+) ११८९३. कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३२, मध्यम, पृ. ११९, जैदेना. ले. स्थल मेदनीपुर प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान. सर्वग्रं ४२००., ( २६११, ५X३६-४०). ११८९४. कल्पसूत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११६, जैदेना. प्र. वि. व्याख्यान आंशिक है. मूल-९- व्याख्यान., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पु.वि. अंतिम पत्र नहीं है. (२७४११, ५-६४३२-३६)कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: कल्पसूत्र - टवार्थ+ व्याख्यान+कथा, आ. सोमविमलसूरि मागु, गद्य, आदि सकलार्थसिद्धिजननी अंति: ; ११८९५.” कल्पसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८३३. श्रेष्ठ, पृ. १५१-३ (५९.९६ से ९७ ) - १४८, जैदेना., ले. स्थल येशलमेरुनगरे, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, संशोधित, (२५.५x११, १६x४०-४६). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्तार्ण० पदम: अंतिः उददंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - बालावबोध*, मागु., राज., गद्य, आदिः अर्हन्तभगवन्त उत्पन्; अंतिः विस्तरन्तु. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११८९६. कल्पसूत्र व्याख्यान- ९ सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना. प्र. वि. साधु सामाचारी का वर्णन है., ( २६.५४१२, १४०४०). बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नो कप्पइ निग्गंधाण अंतिः कप्पटिठई तिबेमि बृहत्कल्पसूत्र - टबार्थ* मागु., गद्य, आदिः न कल्पि साधुने; अंतिः हुं तुझ प्रति कहु छउ . , कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं. गद्य वि. १८वी आदि अंतिः इत्यग्रेतनवर्तमानयोग. (+) ११८९७. महाकप्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना, प्र. वि. मूल- अध्याय ६, संशोधित, ( २६.५५१२.५, ६-७X२७-३३). ३०९ ११८९८. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १९५१, जीर्ण, पृ. ५२, जैदेना., ले. स्थल. पालीताणाग्रामे, ले. पं. हर्षचन्द गोरजी ( गुरु मु. हीराचन्द गोर्जी, खरतरगच्छ ), प्र. वि. ९ व्याख्यान, ग्रं. १२१६ प्र. ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२२.५४१२.५, १३x२९). For Private And Personal Use Only कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि. ११८९९.” कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, पूर्ण, वि. १९०३, श्रेष्ठ, पृ. २४४ - ३ ( २१४ से २१५,९५ ) = २४१, जैदेना., ले. स्थल. दिल्लीनगर, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, ( २६५११५, ११४४०), कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं. गद्य वि. १८वी आदि श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः कल्पसूत्रस्य "" " " चेमाम्. ११९०० कल्पसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. १७७-१ (७२) + १ (६३) - १७७, जैदेना. प्र. वि. मूल ९ व्याख्यान, ग्रं १२१६., ( २६४१२, १४४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण), आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि कल्पसूत्र - कल्पमञ्जरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदि श्रीनामेयजिनेश्वरो अंतिः तीर्थङ्करगणधरोपदेशेन. - Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९०१.” कल्पसूत्र सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७२-४(१४३ से १४६)=१६८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., त्रिपाठ, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, १-६x४०). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः प्रतीदमुवाचेति. ११९०२." कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिकाटीका, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. २०१, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- पं. अमृतवर्द्धन, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११.५, १४४३८-४१). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः कल्पसूत्रस्य चेमाम्. ११९०३. कल्पसूत्र सह टबार्थ व व्याख्यान+कथा व्याख्यान १-८, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२६.५४१२, ६४३५-३९). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंति:कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानं जिनं; अंति: कल्पसूत्र-व्याख्यान+कथा* , मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य प्रणताशेषवीर; अंति:११९०४.” कल्पसूत्र सह सुबोधिकाटीका, संपूर्ण, वि. १८४१, श्रेष्ठ, पृ. १६३, जैदेना., ले.स्थल. खेटकपुर, ले.- गणि प्रेमरत्न, पठ.- मु. लब्धिरत्न (गुरु गणि प्रेमरत्न), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान., संशोधित, त्रिपाठ, (२६.५४१२, १५-१६x४३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ११९०५. कल्पसूत्र सह सुबोधिकाटीका, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. २०४, जैदेना., प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान. प्र.पु.-टीका-ग्रं. ४५००., संशोधित, त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७.५४१२.५, ९-१५४४५). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, आदिः प्रणम्य परमश्रेयस्कर; अंतिः विद्वज्जनराश्रिता. ११९०६.” कल्पसूत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९७६, श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., ले.स्थल. दमननगर, प्र.वि. मूल-९-व्याख्यान; प्र.पु. मूल-ग्रं. १२१५. कर्ता द्वारा या कर्ता के शिष्यादि नजदीक के व्यक्ति द्वारा लिखे जाने की संभावना है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पू.वि. ग्रं. ग्रं. मू. १२१५, (२७४१३, १०-११४३३-३४). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० समणे; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. कल्पसूत्र-कल्परत्नाकरी टीका, मु. धर्मरत्नविजय, सं., गद्य, वि. १९७६, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः __ महापुरुषपुङ्गवाः. ११९०७. पज्जोसवणाकप्प, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. ९-व्याख्यान, संशोधित, (२४४११, ८४३३). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः उवदंसेइ त्ति बेमि. ११९०८. कल्पसूत्रवृत्ति व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४१२, ८x२८-३१). पे.-१. कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय , सं., गद्य, वि. १६९६, (पृ. १आ-३१अ, अपूर्ण), आदिः प्रणम्य For Private And Personal Use Only Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ परमश्रेयस्कर अंति, पे. वि. नेमिनाथ के चरित्र तक है. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ३१आ-३१आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#. ११९०९. कल्पसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२३ + १ (३७) = १२४, जैदेना., प्र. वि. ९- व्याख्यान, ग्रं. १२१६, ( २६.५x१२.५, ७X२१-२३), कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि: तेणं कालेणं० समणे; अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि ११९१०.” बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ३६, पे. २ देना. ले. मु. सिद्धकुशल (गुरु पं. भाग्यकुशल). पठ.- पं. नेमकुशल (गुरु पं. मगनकुशल), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X१३, ७×३६-३९). पे. - १. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३६अ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि नो कप्पइ निग्गंथाण: अंतिः कप्पट्ठिई तिबेगि बृहत्कल्पसूत्र- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नो क० न कल्पइ नि०: अंतिः हुं तुझ प्रति कहु छउ.. पे.वि. मूल अध्याय-६. , www.kobatirth.org: (+) पे. २. बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि, संबद्ध, मागु., गद्य, (पृ. ३६अ - ३६आ), आदि: नीवी मास भिन्न कहिता; अंतिः वृत्ि माहे छइं., पे.वि. अंतमे प्रायश्चित्त का कोष्टक दीया है. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९११.” कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. २१९, जैदेना., प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें कुछ पत्र, (२७.५X१२.५, १३४३५-३७). कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेह त्ति बेमि कल्पसूत्र-कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः श्रीवर्द्धमानस्य; अंतिः कल्पसूत्रस्य चेमाम्. ११९१२. कल्पसूत्र -महावीर चरित्र का विवरण प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना. पु. वि. महावीरस्वामी जन्मकल्याणक से दीक्षाकल्याणक तक है., (२७.५५१२, १३-१४९५१-५५). कल्पसूत्र अपूर्ण व छूटक पाना" संबद्ध, मागु, पद्य, आदि:-: अंति: ३११ ११९१३. कल्पसूत्र सह कल्पद्रुमकलिका टीका, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १५४ जैदेना. ले. पं. रतनविजय (गुरु गणि गोविन्दविजय) प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान, संशोधित, (२८१२.५ १५०४०-४५) कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी प्रा. गद्य, आदिः णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ त्ति बेमि , ; ; मु. कल्पसूत्र - कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं. गद्य वि. १८वी आदि श्रीवर्द्धमानस्य अंतिः प्रमाणीभवन्ति, ११९१४.” कल्पसूत्र सह टबार्थ व अन्तर्वाच्य, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. १८४, जैदेना., ले. स्थल. विझैंवानगरे, ले. - भोजसागर, पठ.- मु. कृपासागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - ९ - व्याख्यान. अंतमे कुछेक सूत्रो का टबार्थ नही दीया गया है., संशोधित, प्र.ले. श्लो. (४९०) अज्ञानाच्च मतिभ्रंसा (४९२) मङ्गलं पाठकानां च (२१) जिहां ध्रु सायर चंद रवि: (४८५) यावल्लवणसमुद्रो, (२८x१३, ६४३७-४३). 1 कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, (संपूर्ण) आदि णमो अरिहन्ताणं० पढमं अंति: उवदंसेइ ति बेमि कल्पसूत्र - टवार्थ मागु, गद्य, (अपूर्ण), आदि: श्रीअरिहन्तने नम०: अंतिः कल्पसूत्र- 3 - अन्तर्वाच्य, मु. जसवन्त, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः चतुर्विंशतिजिनान्नत्; अंतिः टीका सङ्कलिता मुदा. For Private And Personal Use Only ११९१५.” बृहत् कल्पसूत्र सह निर्युक्ति, भाष्य व वृत्ति (मलयगिरिसूरि कृत पीठिकाबन्ध), प्रतिपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., ले. स्थल. उदयपुर, ले.- बालाराम साधु, प्र. वि. संशोधित, (२७.५X१२.५, १२×५६-५९). · बृहत्कल्पसूत्र - सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि प्रकटीकृतनिश्रेयसपद अंति: बृहत्कल्पसूत्र नियुक्ति, आ. भद्रवाहस्वामी, प्रा. पद्य, आदि:-: अंति: Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका# , आ. मलयगिरिसूरि , आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं.,प्रा., गद्य, आदि:-; अंति:बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य# , गणि सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदिः काऊण नमोक्कारं तित्थ; अंति:बृहत्कल्पसूत्र-भाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि , आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य# , गणि सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य की टीका# , आ. मलयगिरिसूरि , आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:११९१६. वन्हिदशासूत्र सह टबार्थ, भगवतीसूत्र-उद्देश ७ व द्वारामती नगरी वर्णन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, १३४३५-३८). पे..१.पे. नाम. वृष्णिदशासूत्र सह (मा.गु.)टबार्थ, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण वृष्णिदशासूत्र, प्रा., गद्य, आदिः जइ णं भंते० पंचमस्स; अंतिः मइरित्त एक्कारससु वि. वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-१२ अध्ययन. पे.२. पे. नाम. भगवतीसूत्र-श.६ का उ.७, पृ. ५अ-५आ, प्रतिअपूर्ण भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पे.३.द्वारामतीनगरी वर्णन, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-५आ, संपूर्ण), आदिः तेणइ समि मनुष्यनी; अंतिः देस चक्रवर्तिनि होइ. ११९१८." बृहत् कल्पसूत्र सह टबार्थ व प्रायश्चित्त यन्त्र, संपूर्ण, वि. १८३४, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४४११.५, ७X३८). पे.१. पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र सह टबार्थ, पृ. १आ-३३आ बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदिः नो कप्पइ निग्गंथाण; अंतिः कप्पट्ठिई त्तिबेमि. बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवे इहां बृहत्; अंतिः तुझ प्रते कहुं छउ., पे.वि. मूल-अध्याय-६. पे..२.पे. नाम. बृहत्कल्पसूत्र का प्रायश्चित्तविधि यन्त्र, पृ. ३४अ-३४अ । बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यन्त्र, मागु., गद्य, आदिः#; अंति: #. ११९४६. ब्रह्मबावनी, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. बजांणा, प्र.वि. गा.५२, (२७X११.५, १३४३५-३६). ब्रह्मबावनी, मु. निहालचन्द, प्राहिं., पद्य, वि. १८०१, आदिः ॐकार अपार परमेश्वर; अंति: गुनकों गहीजियो. ११९४८. पञ्चासकसूत्र प्रकरण सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६१-२(१,१४)=२५९, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-१९., पू.वि. प्रथम एक, बीच के व अंतिम पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १३४४३-४६). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः जह विरहो होइ कम्माणं. पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, वि. ११२४, आदि:-; अंतिः वृत्तितः समाप्तम्. ११९४९." प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, पूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ४००-४(२०१,२१२,२४२,२७०)+८(१३५,१४१,१९०,२४१,३०० से ३०३)=४०४, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १८३००., संशोधित,प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६ १०.५, १५४४८-४९). प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, (संपूर्ण), आदिः सन्नद्धेरपि यत्तमो; अंतिः समृद्धिमासादयतु. ११९५०. प्रवचनसारोद्धारवृत्ति, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७९-१(३४२)+१(३६५)=३७९, जैदेना., (२५.५४११, १५४४८-५०). प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदिः सन्नद्धेरपि यत्तमो; अंतिः जयतु तावदियम्. ११९५१. प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. १६६+१(१)=१६७, जैदेना., ले.स्थल. सातलपुर, पठ.- पं. विवेकविजय गणि (गुरु गणि शुभविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.१६१८., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, For Private And Personal Use Only Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३१३ (२५४११.५, ६४३४-३८). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं ऋषभ; अंतिः पंडिते भणीउ जेवू. ११९५२.” प्रवचनसारोद्धार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१७-१(८६)+१(४१६)=४१७, जैदेना., ले.- प्रह्लाद मोहनलाल बारोट, प्र.वि. प्रतिलेखक अनुपूर्तिकर्ता है., संशोधित, (२६.५४११, १५४४५-४८). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., गद्य, वि. १२४२, आदिः सन्नद्धेरपि यत्तमो; अंतिः जयतु तावदियम्. ११९५३. सम्यक्त्वपरीक्षा सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. ३४२-७(१९ से २५)=३३५, जैदेना., ले.स्थल. मांडल, ले. प्रथिराज(अञ्चलगच्छ),प्र.वि. मूल-अध्याय-४अधिकार., द्विपाठ, (२६.५४११.५, १२४४४-४६). सम्यक्त्व स्वरूप, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथेश; अंतिः मिथ्यादुःकृतं मेस्तु. सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मागु., गद्य, वि. १८१३, आदिः प्रणम्य क० प्रणाम; अंति: दुक्कडं होज्यो. ११९५४." प्रवचनसार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२४५., संशोधित, (२५.५४११, १६ १७४५०-५६). प्रवचनसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., पद्य, आदिः एस सुरासुरमणुसिंद; अंतिः लहुणा कालेण पप्पोदि. प्रवचनसार-वृत्ति, आ. अमृतचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सर्वव्याप्येकचिद्रूप; अंतिः तत्त्वमेकं परं चित्. ११९५५.” प्रवचनसारोद्धारसूत्र, संपूर्ण, वि. १६०६, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., प्र.वि. गा.१६१४, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभिक पत्र, (२६४११, ११४३८-४२). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. ११९५६. प्रवचनसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., प्र.वि. गा.१६२८, पू.वि. गा.१६२८., (२६.५४११, १३x४२ ४३). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. ११९५७. प्रवचनसारोद्धारप्रकरणअवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ५८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३३०३.,प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२६४११, १७४६०-६३). प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रवचनसारोद्धारे; अंतिः तावन्नन्द्यादसौ भुवि. ११९५८. प्रवचनसारोद्धारावचूरि, पूर्ण, वि. १५३३, श्रेष्ठ, पृ. ४४-१(२८)=४३, जैदेना., ले.स्थल. लासनगरे, गच्छा.- राजा लखमण, ले.- लाम्पा, (२६.५४११, २०-२१४५३-६६). प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रवचन सारोद्धारे; अंतिः तावन्नन्द्यादसौ भुवि. ११९५९. प्रवचनसारोद्धार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६२८, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. नारदपुरी, प्र.वि. त्रिपाठ, (२७.५४११, ८४५१-५५). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिऊण जुगाइजिणं; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रवचनसारोद्धारे; अंतिः कुर्वन्तु निर्दोषं. ११९६१." भाव सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६६३, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. काष्टासंघे, ले.- मु. विवेकसागर, प्र.वि. गा.११९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४१०.५, ७४३५). For Private And Personal Use Only Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३१४ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भावत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., पद्य, वि १४वी, आदिः खवियघणघाइकम्मे; अंतिः पुण्णा दुगुणपुण्णा. ११९६२ द्रव्यगुणपर्याय, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६. जैदेना. ले. मु. उत्तमविजय शिष्य (गुरु गणि उत्तमविजय), " " (२०.५४१०.५, १४४३९-४४). द्रव्यगुणपर्याय, मागु, गद्य, आदि द्रव्यचेतन द्रव्य अंतिः क्रमण क्रियते कथं कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ११९६३.” प्रवचनसारोद्धारअवचूरि, संपूर्ण, वि. १६०९, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले. गणि कर्ण, पठ.- मु. धनविमल (गुरु आ. आणन्दविमलसूरि) प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, २५४६५-७७)प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रवचनसारोद्धारे; अंतिः तावन्नन्द्यादसौ भुवि. ११९६४. प्रवचनसारोद्धार सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. १६१९. पत्रांक १ से प्रारंभ किया है मगर प्रारंभ की ८३६ गाथा नही है., (२७.५x१२, ६x४१-४५). प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः नन्दउ बहु पढिज्जन्तो. प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि-: अंतिः पंडिते भणीउ जेवुं. ११९६५. षट्दर्शनसमुच्चय सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना., प्र. वि. मूल - ७अधिकार, श्लो. ८७; टीकाअध्याय ७ अधिकार (२७.५४१२ २०-२१९५१-५५). , षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः सद्दर्शनं जिनं नत्वा; अंति: आलोच्यः सुबुद्धिभिः. षड्दर्शन समुच्चय- तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: जयति विजितरागः केवला अंतिः च तत्र कुशलमतिभिः. ११९६६. सम्यक्त्वस्वरूप सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६-१ ( ४ ) -५ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. २५., (२५५११५, १५X३९-४५). सम्यक्त्वपच्चीसी प्रा., पद्य, आदि: जह सम्मत्तसरूपं अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी - बालावबोध, मागु, गद्य, आदि जह कहतां जिम उपसमिक: अंतिः ११९६७. विविध सङ्ग्रह सह वीजक, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, प्र. ३१, जैदेना, ( २६४११, १३४४१-४३). विविध सङ्ग्रह, सं. प्रा. मागु, पद्य, आदि: # अंतिः #. विविध सङ्ग्रह - बीजक प्रा. गद्य, आदि: # अंतिः #. " ११९६८.” विविध सङ्ग्रह सह बीजक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२६×११, ९×३५-३९). विविध सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., पद्य, आदि: #; अंतिः #. विविध सङ्ग्रह - बीजक, प्रा., गद्य, आदि: #; अंतिः#. ११९६९. सिद्धान्त प्रकरण संपूर्ण वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ९१ (+) सिद्धान्तप्रकरण, मु. धनविजय, सं., हिन्दी, गद्य, आदिः ११९७०. सिद्धान्तसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. हैं., ( २६११.५, १०-१३४३१-३६). " ५८ बोल सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि:-: अंति: " जैदेना. प्र. वि. संशोधित, ( २६.५४११, १०X३३-३७). शिवायोर्वीर अंतिः सिते ज्येष्टे, ; ५० - २ (१ से २ ) = ४८, जैदेना., पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं For Private And Personal Use Only ११९७१.' आचारोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. मु. विद्याकुशल (गुरु पण्डित देवकुशल), प्र.वि. मूल-अध्याय-वर्ग-६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५x१२, ७-८X३३-४२). आचारोपदेश, गणि चारित्रसुन्दर, सं., पद्य, आदि चिदानन्दस्वरूपाय अंतिः निजयोर्धजन्मनो आचारोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज्ञान अने आनन्द तेहज; अंतिः जन्मारो सफल करे. Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३१५ " ११९७२. आत्मप्रबोध विधान, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. श्लो. १४९. पू. वि. गा. १४९ (२६४११, १३४३३). आत्मप्रबोध, कवि कुमारकवि, सं., पद्य, आदि: आत्मानमात्मनि निरञ्ज; अंतिः शास्त्रमिदं व्यधायि. ११९७३. स्तोत्रादि सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६-१ (६) - १५, पे. ११, जैदेना. पृ.वि. बीच का एक पत्र नहीं है। (२७४११, १२३८-४०). " पे. १. वेदविंसतीजीनानंसन्तीकरमलका, आ. तेजसिंह, सं., पद्य, (पृ. १अ-२आ, संपूर्ण) आदि नमो पञ्चमहाव्रताय अंतिः शोध्यं शुद्धिरहि, पे.वि. एलो. २४. पे.-२. शान्तिजिन स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २आ-२आ, संपूर्ण), आदि: वरसान्त जीनेश्वर; अंतिः नरेंद्रसुसेवीतसञ्चरं., पे.वि. श्लो. ६. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.-३. जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. २आ-४अ, संपूर्ण), आदिः नमस्त्रिलोकनाथाय; अंतिः नात्र संशयः., पे.वि. श्लो. ४१. पे.-४. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४अ-७अ, संपूर्ण), आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी, पे. वि. श्लो. ४४+४. पे.-५. महासा गीत, आ. हेमाचार्य, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ, संपूर्ण), आदि: हैं हैं की धपमप; अंतिः पूज्योपचारात्., पे.वि. श्लो. ६. पे.-६. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ७आ-१०अ, संपूर्ण ), आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते, पे. वि. श्लो. ४४. पे. ७. बृहस्पति स्तोत्र, विष्णुनाथ, सं., पद्य, (पृ. १०अ १०आ, संपूर्ण), आदिः ॐ नमो बृस्पतिसुरा; अंतिः सुप्रीया तस्य जयते., पे.वि. श्लो. ५. पे. ८. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. १०आ- १०आ, संपूर्ण), आदिः यत्पुरा राज्यभ्रष्टा: अंतिः पीडा न भवन्ति कदाचन, पे.वि. श्लो. ८. पे. ९. बृहत्शान्ति स्तोत्र -तपागच्छीय, सं. गद्य (पृ. १० आ- १२आ, संपूर्ण) आदि भो भो भव्याः श्रृणुत: अंतिः #, " पे.-१०. भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. १२आ - १२आ, संपूर्ण), आदि: भरहेसर बाहुबली; अंति: जस पडहो तिहुयणे सयले. पे.-११. आत्मबोध, ऋ. गोकल, मागु., पद्य, (पृ. १३अ - १६आ, संपूर्ण), आदिः मन्त्र मुत्तिमङ्गल; अंतिः सहज जोनी सङ्कट नावे., पे.वि. गा.८०. ११९७४. आत्मशिक्ष्याप्रतिबोध भावना संपूर्ण वि. १९६० श्रेष्ठ, पृ. ९, जैवेना. ले. स्थल बिकानेर, ले. रामधन प्र. वि. गा. १८५, (२५४११.५, ११४३९-४१). आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदि: जिनवर मुख वासिनी जग; अंतिः ते लहसी शिवठाम. ११९७५. इन्द्रियपराजयशतक, वैराग्यशतक व आदिनाथदेशनोद्धार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. अंतिम तीन पत्रों के मूल पत्र संख्या को मिटाकर पत्रांक ७,८,९ किया गया है., ( २६४११, ११४३८-४२). पे. १. इन्द्रियपराजयशतक, प्रा. पद्य (पृ. १आ-६अ, संपूर्ण), आदि: सुच्चिअ सूरो सो चेव अंतिः संवेग रसायणं निच्चं.. पे.वि. गा. १०२. " " पे. २. वैराग्यशतक, प्रा. पद्य (पृ. ६अ-६आ, अपूर्ण), आदि: संसारंनि असारे नत्थि: अंतिः, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा पूर्णता १३ तक है. पे. ३. आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ - ९आ, अपूर्ण), आदि:-; अंति: सिवं जन्ति, पे. वि. गा. ८८. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गाथा पूर्णता २३ से ८८ तक है. , , ११९७६. इन्द्रियपराजयशतक, भववैराग्यशतक व आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५२, पे. ३, जैदेना, प्र. वि. सर्व नं. ८२५. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११.५, ५०२३) For Private And Personal Use Only Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. पे. नाम. इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १आ-१९आ इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं., पे.वि. मूल गा.१००. पे.२. पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. १९आ-३७आ वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम., पे.वि. मूल-गा.१०४. पे.३.पे. नाम. आदिनाथदेशनोद्धार सह टबार्थ, पृ. ३७आ-५२अ आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंतिः सिवं जन्ति. आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसारमांहि नथी सुख; अंतिः शिव मोक्ष पहुंचइ., पे.वि. मूल गा.८८. ११९७७. इष्टोपदेशग्रन्थ सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.५३. प्रत के अन्त में "गौतमस्वामिना विरचितं मोक्षमार्गदीपकं शास्त्रं समाप्तम्" ऐसा उल्लेख है तथा अज्ञातकर्तृक टीका के प्रारंभिक भाग में गुरू-शिष्य रूप में गौतमस्वामि एवं श्रेणिक राजा का उल्लेख मिलता है. दरअसल मूलपाठ संपूर्ण रूप से देवनंदि कृत इष्टोपदेश से मिलता है., (२६४११, १३४३३-३८). इष्टोपदेश, आ. देवनन्दी, सं., पद्य, आदिः यस्य स्वयं स्वभावाप्; अंतिः निरूपमामुपयाति भव्यः. इष्टोपदेश-टीका, सं., गद्य, आदिः इदं इष्टोपदेशग्रन्थ; अंतिः वा रागद्वेषं न करोति. ११९७८. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६६८, श्रेष्ठ, पृ. ४८+१(६)=४९, जैदेना., प्र.वि. गा.५४४, (२७४११.५, ६-७४३३). ___ उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ११९७९." उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७५७, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- मु. सुन्दरकुशल (गुरु मु. वृद्धिकुशल, तपागच्छ), गच्छा.- आ. विजयरत्नसूरि (गुरु आ. विजयप्रभसूरि, तपागच्छ), राज्यकाल- राजा लाखाजी, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.५४४, संशोधित, (२५४११.५, ११४२४-३९).. उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ११९८०. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना.,प्र.वि. गा.५४४, प्र.ले.श्लो. (६६१) मङ्गलं भगवान् वीरो; (२४८) सर्वारिष्ट विनाशाय, (२६.५४११.५, १३-१४४४१). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ११९८१. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १५०९, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. वडोदनगरे, ले.- पं. उदयहर्ष गणि (गुरु उपा. जिनमण्डन), पठ.- मु. आगमसिंह, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.५४४, (२५.५४११, १६-१७४५२-५८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ११९८२. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १७४९, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. संथाणाग्रामे, ले.- मु. मयगलसागर, प्र.वि. गा.५४४, (२६४११, १८-२०४४६-५८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. ११९८३. उपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(३)=५, जैदेना., पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पूर्णता गाथा १२५ तक है., (२६४११.५, १३४४०-४२). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंति:११९८४. उपदेशमाला, संपूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- ऋ. ठाकरसी, पठ.- श्राविका हर्षा, प्र.वि. गा.५४४, (२६४११, १४४३८-४०). For Private And Personal Use Only Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः सोहियव्वं पयत्तेण. ११९८५. उपदेशपद, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना. प्र. वि. गा. १०४१ प्र. पु. मूल ग्रं. १५००, ( २६४११, १५४५१). पद्य, आदि नमिऊण महाभागं तिलोग अंतिः भवविरहं इच्छमाणेणं. उपदेशपद, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९८६. उपदेशमाला, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २३. जैदेना. प्र. वि. गा. ५४४, प्र.ले. श्लो. (६५९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२२.५४०९, ११४४७-५०). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.. ११९८७. उपदेशमाला सह कर्णिकावृत्ति, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २४५, जैदेना, पठ. मु. युक्तिसागर, प्र. वि. मूल-गा. ५४४. प्र.पु. - टीका- ग्रं. १२१६८., (२७४१०.५, १५४५४-५५). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.. उपदेशमाला-उपदेशकर्णिका वृत्ति, आ. उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १२९९, आदि: अर्ह तनोतु भुवनाद्; अंतिः प्रमिताभुतश्री ११९८८." उपदेशमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७० श्रेष्ठ, पृ. १४१, जैदेना. ले. स्थल धाणसा, ले. मु. नगा, प्र. वि. मूलगा. ५३७, संशोधित अल्प मात्रा में (२६४११. १३४३४-४० ). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः दायव्वा बहुसुयाणं च. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि: हेयोपादेयार्थोपदेश; अंतिः साधनपरः खलु जीवलोकः. ३१७ ११९८९. उपदेशकन्दली सह व्याख्या, पूर्ण, वि. १६९८ श्रेष्ठ, पृ. २४०-२ (१४६ १७२ ) - २३८, जैदेना. प्र. वि. मूल-१३ विश्राम टीका-१३ विश्राम मूल की शुरुआत गाथा नं ३ से की गई है, (२७००११, १३४४३). उपदेशकन्दली श्र. आसड, प्रा., पद्य, आदि जे केवि अइक्कंता जे अंतिः रइयं गुरूवयसाणुसारेण. उपदेशकन्दली वृत्ति, आ. बालचन्द्रसूरि सं. गद्य, आदि: अत्रापि तत्र भगवत: अंतिः वृत्तिरियं शोधिता. , ११९९०. उपदेशमाला सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १५६७, श्रेष्ठ, पृ. १२०-१(११९ ) - ११९, जैदेना, लिखवा गणि प्रमोदराज (गुरु पं. शुभशेखर गणि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-गा. ५४४. प्र. पु. - बालावबोध ग्रं. ५०००., पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६.५X११, १३४५१). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला- बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि मागु., गद्य वि. १४८५, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनवर अंतिः (+) भव्यजीवनोपकृत्यै. ११९९१.” उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१-१९ (४७ से ६५ ) = ५२, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण पूर्णता गाथा ११८ ( कथा ३५) तक है. (२६.५५११.५. ४१३X३०-३५ ) . उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे अंति: उपदेशमाला-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि: नमस्कार करीने जिण अंति: ११९९२. उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, प्रतिपूर्ण, वि. १७९४ श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना, ले स्थल शांतलपुर ले. मु. सुन्दरजी (गुरु गणि शुभविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. गाथा पूर्णता २६७ तक है व कथा ६५ तक लिखी है. (२६११.५. ५-१९४३६-४१). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः For Private And Personal Use Only उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिउण कहता नमस्करीनइ; अंतिः (+) ११९९३. उपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना, प्र. वि. मूल-गा. ५४४ संशोधित, (२५x११.५. Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ४४२५-२८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करी; अंतिः मुखथी नीकली वाणी. ११९९४." उपदेशमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १४०, जैदेना., ले.स्थल. राधणपुर, ले.- पं. उत्तमविजय, प्र.वि. मूल-गा.५४४., संशोधित, (२५४११, ३-१७४४६-६८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., गद्य, वि. १७१३, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः वाणी श्रुतदेवता ते. ११९९५." उपदेशमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. रेयाग्रामे, ले.- मु. जीतविजय (गुरु मु. दर्शनविजय),प्र.वि. मूल-गा.५४४., संशोधित,प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा , (२५.५४११, ८४४१-४७). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नमिऊण नत्वा; अंतिः गता वाणी श्रुतदेवता. ११९९६. उपदेशमाला सह टीका व कथा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११८-२९(१ से २१,३१ से ३८)=८९, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, पू.वि. प्रारंभ, बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, १३-१५४३६). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., गद्य, वि. १७८१, आदि:-: अंति:११९९७. उपदेशमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६उ., श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४४., पंचपाठ, पू.वि. अवचूरि पूर्णता गाथा ५३६ तक है., (२६.५४११, ८-१२४४०-४८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी. उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः नत्वा प्रणम्य जिनवरे; अंतिः समाचरतिहितमिति. ११९९८." उपदेशमाला सह लघुवृत्ति, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६-४(१ से ४)=७२, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-कुछ पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. गाथा पूर्णता २३ से ५३२ तक है., (२७.५४११.५, १५४५७-६१). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदि:-; अंति:११९९९." उपदेशमाला सह विवरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५३८., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, १९४५६-५९). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः दायव्वा बहुसुयाणं च. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदिः हेयोपादेयार्थोपदेश; अंतिः साधनपरः खलु जीवलोकः. १२०००. ऋषिमण्डलस्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९३-१०(१ से १०)=२८३, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. पूर्णता गाथा ३ से २०२ तक है., (२७४१०.५, १७४५४-५८). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि:-; अंति: ऋषिमण्डल प्रकरण-कथार्णवाक वृत्ति, गणि पद्ममन्दिर, सं., गद्य, वि. १५५३, आदि:-; अंति:१२००१." वीरजिनदेशना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८९, जैदेना., प्र.वि. ८पल्लव, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ११४३६-४१). धर्मकल्पद्रुम, पण्डित उदयधर्म, सं., पद्य, आदिः श्रियं दिशतु वो; अंतिः वैराग्यकारिणी. १२००३. उपदेशसार सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-५९., त्रिपाठ-कुछ पत्र-द्विपाठ For Private And Personal Use Only Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३१९ कुछ पत्र, (२७.५४१२.५, ११-१२४३८-४५). उपदेशसार, गणि कुलसार, सं., , आदिः यत्कल्याणकरोवतारसमयः; अंतिः सङ्घार्चादिमङ्गलम्. उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं० मङ्ग; अंति: यतीनां भुवि शेषतः. १२००४. दानप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना.,प्र.वि. ८ प्रकाश, ग्रं. ८३४, (२६.५४१०.५, १३-१४४४४-४६). दानप्रकाश, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदिः श्रीपार्श्वः पार्श्व; अंतिः ग्रन्थोयं कनककुशलेन. १२००५. दानप्रकाश, संपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, ले.- गणि कान्तिविजय (गुरु गणि देवविजय),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ८ प्रकाश, ग्रं. ८३४, (२७४११.५, १५-१६x४०-४१). दानप्रकाश, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदिः श्रीपार्श्वः पार्श्व; अंतिः ग्रन्थोयं कनककुशलेन. १२००६. दानप्रदीप, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३, जैदेना.,पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रकाश-१० के श्लो.३९४ तक है., (२६.५४११, १७४६४-६७). दानप्रदीप, गणि चारित्ररत्न, सं., पद्य, वि. १४९९, आदिः श्रीसिद्धिभर्ता; अंति:१२००७. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. आगरानगर, प्र.वि. ढाल-४, गा.१०१, (२५.५४११, १३४३७-३८). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. १२००८. धर्मपरिक्षा, संपूर्ण, वि. १६९८, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.- ऋ. गोपालजी (गुरु ऋ. लालजी), प्र.वि. २०परिच्छेद, (२६४११, १७४४४-६२). धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति (दिगम्बर), सं., पद्य, आदिः श्रीमान्नभस्वत्त्रय; अंतिः युक्तशास्त्रम्. १२००९. दानशीलतपभावना संवाद, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४, गा.१०१, ग्रं. १३५, (२५.५४१०.५, १३४४२). दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६२, आदिः प्रथम जिनेसर पाय; अंतिः समृद्धि सुप्रसादो रे. १२०११. देवधर्मपरीक्षा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., (२५.५४१२, ११४३८-४२). देवधर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्र वृन्दनतं नत्व; अंतिः श्लोकानां तु चतुःशती. १२०१२. उपदेशमाला सह टीका, संपूर्ण, वि. १४६७, मध्यम, पृ. ५०, जैदेना., ले.- विक्रम विप्रः, प्र.वि. मूल-गा.५३८; टीका-ग्रं. ९५००., (२८x१२, २०-२१४५६-६१). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः जगचूडामणिभूओ उसभो; अंतिः दायव्वा बहुसुयाणं च. उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, वि. १०वी, आदिः हेयोपादेयार्थोपदेश; अंतिः साधनपरः खलु जीवलोकः. १२०१३. ज्ञानसार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. ३२अष्टक, श्लो.२७३, (२६.५४११.५, १२४४२-४९). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंतिः नामेषाकृति प्रीतये. १२०१४. कायस्थिति सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२४., (२६४१२.५, १३-१४४३७). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वन्दे श्रीपुष्फदन्त; अंतिः पद ते आपो मुज प्रते. १२०१५. व्याख्यान सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५४१२, १५-१६x४८-५२). व्याख्यान सङ्ग्रह, सं.,प्रा., प+ग, आदिः सज्ञानलोचनविलोकित; अंतिः किं क्षुधितोप्यलं. For Private And Personal Use Only Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०१६. उपदेशरत्नकोश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. बर्हानपुर, पठ.- मु. वृद्धिविजय, प्र.वि. मूल-गा.२६., (२६४११, ४४३४-३५). उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रतन तेहनो; अंतिः रतनमाला प्रीति धरे. १२०१७." उपदेशरत्नाकर-अपरतट, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंश-अंश-८.., संशोधित, (२५४११, १७४५७-६३). उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा.,सं., पद्य, आदि:-; अंतिः करोतु लसज्जयश्रीः. १२०१८. धर्मसङ्ग्रहणी सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५७+१(२०८)=२५८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं है. गा.१३७९ तक है., (२६४११, १५४५२-५३). धर्मसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वीयरागं; अंति: धर्मसङ्ग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः यथास्थिताशेषपदार्थ; अंति:१२०२०. धर्मोपदेशसूत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-१२ प्रक्रम, श्लो.११०.,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (५२५) तैलाद् रक्षेज्जलाद्रक्षेद्; (२४९) शास्त्राभ्यासः सदाकार्यो; (२५०) अध नास्ति जिनाधीशः; (२५१) शृण्वंति जिनवाणी यो, (२६४१०.५, १२-१३४३८-४५). धर्मोपदेश, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदिः ओमित्यक्षरमक्षर; अंति: सज्जनानाम्. धर्मोपदेश-स्वोपज्ञ वृत्ति, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य, वि. १७४५, आदिः श्रीपार्श्व; अंतिः स्वोन्ख्यायां टीकायां. १२०२१. धर्मोपदेश सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७७२, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. जणत्तारिण, लिखवा.- मु. केसरसागर (गुरु पं. तिलकसागर, खरतरगच्छ), ले.- मु. हरचन्द (गुरु पं. विज्जाजी, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. हिस्सा -श्लो.२६५., (२६.५४१०.५, १५-१६४५५-६७). महाभारतश्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः श्रूयतां धर्मसर्वस्व; अंतिः यादवा हुन्त सम्प्लवः. धर्मोपदेश-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः सिद्धगति पहुता ते; अंतिः स्मरणथी ते फल होइ. १२०२२. नरनारी प्रबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. गा.१६८, (२६.५४११, ११४३५-३६). नरनारी प्रबोध, मागु., पद्य, आदिः वन्दिय त्रिभुवन; अंतिः पइं सुखिइं० पारि.. १२०२३. प्रबोधोदय, संपूर्ण, वि. १६७३, मध्यम, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, (२६४११, १७X४४-४९). प्रबोधोदय, आ. जिनपतिसूरि, सं., गद्य, आदिः स्याद्वादामृत संसिक; अंतिः जिनपतिसूरिप्रबोधोदयं. १२०२४." प्रबोध चिन्तामणि, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.स्थल. पाटलीपुत्र, ले.- गणि कीर्तिसागर(अञ्चलगच्छ), प्र.वि. ७अधिकार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११.५, १३४३७-४७). प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः चिदानन्दमयं वन्दे; अंतिः चिन्तामणिमकार्षीत्. १२०२६. ऋषिमण्डलस्तोत्र सह प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना., ले.स्थल. सीहोर, ले.- मु. चतुरचन्द्र (गुरु पं. जिनचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टीका-ग्रं. ४५६४., पू.वि. गाथा १६ से ७६ तक की व्याख्या है., (२६x११.५, १४-१५४३७-४२). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि:-; अंतिःऋषिमण्डल प्रकरण-प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, गणि हर्षनन्दन, सं., गद्य, वि. १७०४, आदिः इक्ष्वाकु राजेषु; अंतिः उत्पाद्य मोक्षं गतः. १२०२७. प्रबोध चिन्तामणी, संपूर्ण, वि. १७६२, जीर्ण, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. ७अधिकार, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२७.५४११, १४४४१-४८). प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, वि. १४६२, आदिः चिदानन्दमयं वन्दे; अंतिः चिन्तामणिमकार्षीत्. For Private And Personal Use Only Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १२०२९. भवभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. गा. ५३१, (२५.५X११, १७४५८). भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर अंतिः कीरउ अलङ्कारो १२०३०. भवभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैवेना. प्र. वि. गा. ५३१ (२६.५४११, १३-१६४५८-६७). भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णमिरसुरवर; अंतिः कीरउ अलङ्कारो . १२०३१. प्रशमरति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. अध्याय- १०, श्लो. ३१३, ( २६.५X११, १३-१४४४६). प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति सं., पद्य, आदि नाभेयाद्या: अंति: साधनमर्हच्छासनं जयति. www.kobatirth.org: . शीलोपदेशमाला. आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि आबालबम्भयारिं अंति: . १२०३२. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १७१-१ (१६३ ) - १७०, जैदेना. पु.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ११४ तक है., (२८x११, १३x४३-५१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " " शीलोपदेशमाला-बालावबोध + कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य वि. १५५१, आदि: श्रीवामेयममेय; अंतिः१२०३३. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६६६, श्रेष्ठ, पृ. १० जैदेना. ले. स्थल. लवेरामध्ये ले. मु. रङ्गकुशल ( गुरु मु. कनकसोम), प्र. वि. मूल-गा.११६ (२६४११.५, ६४३९-४२). " · शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि प्रा. पद्य, आदि आबालबम्भयारिं नेमि: अंतिः जयवल्लहा० बोहि फलं. , शीलोपदेशमाला- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: बालपणा लगई ब्रह्म०: अंतिः भवान्तरि बोधि फल. १२०३४. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. प्र. वि. मूल - ४३ कथा गा. ११६.. (२६.५X११, १३४५१). शीलोपदेशमाला आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि अबालवम्भआरि अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं. , , शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः आबाल ब्रह्मचारी बालक; अंतिः बोधि बीजनउं फल लहु . (+) १२०३५. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६७, जैदेना, प्र. वि. मूल - ४३ कथा; बालावबोध-ग्रं. ६२५०. पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. अंतिम गाथा नही है. रचना प्रसस्ति नहीं है, (२७४११, १३-१५४४१-६२). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पूर्ण), आदि आबालबम्भयारिं; अंति: शीलोपदेशमाला-बालावबोध + कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, (संपूर्ण), आदि: श्रीवामेयममेय; अंतिः सकल सुखनइ भाजनइ हुई. ३२१ १२०३६. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८५, मध्यम, पृ. ९७, जैदेना., ले. स्थल. श्रीनगर, ले. मु. उमेदसागर (गुरु गणि जम्बुसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ११४., ( २६११, ५-१५x२९-४३). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि प्रा. पद्य, आदि आबालबम्भयारिं अंतिः आराहिय लहह बोहिसुहं. शीलोपदेशमाला-टबार्थ+ कथा, मागु, गद्य, आदि आबाल ब्रह्मचारी अंतिः मुक्ति सुख पाये. ; १२०३७.” वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९८, जैदेना., प्र. वि. १० उल्लास, ग्रं. ५२०० (२६.५x११, १५-१७४४६ पपो वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., पद्य, आदिः वीरजिणन्दं देविन्द; अंतिः दशमउल्लासः. १२०३८. युगादिदेशना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०३, जैदेना., प्र. वि. ५उल्लास, श्लो. ५७६, (२६×११, ११४३७-४१). युगादिदेशना, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, आदि श्रीमानादिजिनः श्रेय अंतिः चैषा जयाभ्युदयदायिनी . For Private And Personal Use Only १२०३९. वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण वि. १९३४ श्रेष्ठ, पृ. १३५+१ (९२) - १३६, जैदेना. प्र. वि. १०उल्लास, ( २६४१२.५, १४९३२-४१) " वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः राजकीर्तिगणिना. १२०४०. शीलोपदेशमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ११६., (२६.५X१६, ५X३०-३२). शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा. पद्य, आदि आबालबम्भयारिं नेमि: अंतिः जयवल्लहा० बोहि फलं. Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः बालपणा लगइं ब्रह्म; अंतिः भवान्तरि बोधि फल. १२०४१. वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ९८+१२(३० से ३३,३३ से ४०)=११०, जैदेना., प्र.वि. १०उल्लास, पू.वि. १० उल्लास, (२६.५४१२, १४४३९-५६). वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः नमः श्रीपार्श्वनाथाय; अंतिः राजकीर्तिगणिना. १२०४२.” युगादिदेशना, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ५७, जैदेना., प्र.वि. ५उल्लास, (२८.५४१२, १५४४४-५१). युगादिदेशना, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, आदिः श्रीमानादिजिनः श्रेय; अंतिः चैषा जयाभ्युदयदायिनी. १२०४३. इगुणत्रीसीभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- देवकृष्ण वेलजी, प्र.वि. मूल-गा.३०., (२८x१२, ४४३२-३३). एगणतीसी भावना, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः संसारम्मि असारे; अंतिः याणमाणावि न बब्भन्ति. एगूणतीसी भावना-टबार्थ, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः संसार किदृशे नास्ति; अंति:१२०४४. भवभावना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.स्थल. माडविबंदर, ले.- गणि शुभविजय (गुरु मु. शान्तिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-गा.५३१; टबार्थ-ग्रं. ३४२५., (२६x११.५, ५-१९४३१-४५). भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः णमिऊण णमिरसुरवर; अंतिः कीरउ अलङ्कारो. भवभावना-टबार्थ, पं. शान्तिविजय गणि, मागु., गद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनम्; अंतिः करवो अलङ्कार आभरण. १२०४५. वर्द्धमानदेशना-१ उल्लास सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. १५३, जैदेना., ले.स्थल. सुरत, पठ.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११.५, ५-६४३६-४१). वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., पद्य, आदिः वीरजिणन्दं देविन्द; अंति: वर्द्धमानदेशना-टीका, सं., गद्य, आदिः सिद्धार्थ सुत वीरं; अंति:१२०४६.” शीलोपदेशमाला अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२७४११.५, १३४४७). शीलोपदेशमाला-अवचूरि, उपा. धर्मानन्द, सं., गद्य, आदिः अहं शीलोपदेशमालां; अंतिः जयकीर्तिना कृतां. १२०४७. शीलोपदेशमाला सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ९३-२(१ से २)=९१, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १३४५१-५५). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंति: शीलोपदेशमाला-वृत्ति, सं., गद्य, आदि:-; अंति:१२०४८. शीलोपदेशमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६७२, श्रेष्ठ, पृ. १५८, जैदेना., ले.स्थल. पाटन, ले.- गणेश पण्ड्या , प्र.वि. मूल-४३ कथा, गा.११४. प्र.पु.-टीका-ग्रं. सर्व-६५०१., (२६४११, १५४४४-५१). शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: अबालबम्भआरि; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं. शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३९४, आदिः यस्योपदेशमाय दशनां; अंतिः चेते चरम गाथार्थ. १२०४९." शीलप्रकाश, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४५, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-१४ के श्लो.२४१ तक है., (२६४११, १३४४३-४८). शीलप्रकाश, गणि पद्मसागर, सं., पद्य, आदिः तन्याद्धन्यार्चिता; अंति:१२०५०. शान्तासुधारसभावना, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.वि. १६भावना, (२६४११.५, १२४३९-४१). शान्तसुधारस, उपा. विनयविजय , सं., पद्य, वि. १७२३, आदिः नीरन्ध्रे भवकानने; अंतिः वाङ्गमयमातनोतु. १२०५१. शान्तरसभावनास्वरूप, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(५)=७, जैदेना.,प्र.वि. १६अधिकार, श्लो.२७८, पू.वि. श्लो.१४० से १७३ तक नहीं है., (२७४११.५, १६४५८-६०). For Private And Personal Use Only Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३२३ अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. १२०५२. शान्तरसभावना, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- पं. यावस, प्र.वि. १६अधिकार, श्लो.२७८, (२६४११, १५४४६-५०). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः. १२०५३. शान्तरसभावना, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. मंसूदीनगर, ले.- पं. सुखकुशल, प्र.वि. १६अधिकार, श्लो.२७८, (२६.५४११, १५४४५). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः. १२०५४. विवेकमञ्जरी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५४७, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. मुंडाडानगरे, ले.- गणि कमलरूचि, प्र.वि. मूल-गा.१४४., (२६.५४११, ९४३०-४०). विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदिः सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. विवेकमञ्जरी-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः मोक्षपुरी प्रति; अंतिः दशसूर्यवर्षे १२४८. १२०५५. विवेकमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.१४४, (२६४११, १३४४४-४८). विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदिः सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. १२०५६. विवेकमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१४४, (१३४११.५, १३४३६-३७). विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदिः सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. १२०५७." विवेकमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.१४४, (२६४१०.५, ९४३६). विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदिः सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. १२०५८." विवेकमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.१४४, (२५.५४११, ९४२८-३०). विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., पद्य, वि. १२४८, आदिः सिद्धिपुरसत्थवाहं; अंतिः वसुजलहि० वरिसम्मि. १२०५९. शीलोपदेशमाला सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. १२२, जैदेना., ले.- पं. हेमविजय (गुरु पं. महिमाविजय), प्र.वि. मूल-४३ कथा, गा.११५., (२६४१२, ५-१९४३३-४३)... शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अबालबम्भआरि; अंतिः आराहिय बोहेसूरी. शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५५१, आदिः श्रीवामेयममेय; अंतिः मोक्षफल पणि पामउ. १२०६०. वर्द्धमानदेशना सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३९, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.१७७३ तक है., (२७४१२, ६x४०-४५). वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., पद्य, आदि: वीरजिणन्दं देविन्द; अंति: वर्द्धमानदेशना-टीका, सं., गद्य, आदिः सिद्धार्थ सुत वीरं; अंति:१२०६१.” वैराग्यकल्पलता व वीरजिन स्तुति, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. २४०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद, ले. नरोत्तम लहिया, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२.५, १३४३५-३९). पे-१. वैराग्यकल्पलता, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, (पृ. १अ-२४०अ), आदिः ऐन्द्रीं श्रियं नाभि; अंतिः मार्गानुसारिस्थितिम्., पे.वि. ९स्तबक. पे:२. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. २४०अ-२४०अ), आदिः सिद्धार्थ वदते स्म; अंतिः वर्द्धमानः प्रभुः., पे.वि. श्लो.१. १२०६२." आत्मप्रबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ५५+१(२४)=५६, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४१२.५, १३४३६-४०). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग, वि. १८३३, आदिः अनन्तविज्ञानविशुद्ध; अंति: For Private And Personal Use Only Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२०६३. आत्मप्रबोध, पूर्ण, वि. १९००, श्रेष्ठ, पृ. ९१-१(१)=९०, जैदेना.,प्र.वि. ४प्रकाश, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२८x१२.५, १६x४१-४७). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग, वि. १८३३, आदि:-; अंतिः ग्रन्थवरात्मबोधः.. १२०६४." आत्मप्रबोध, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१२.५, १६-१७४४१-४३). आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग, वि. १८३३, आदिः अनन्तविज्ञानविशुद्ध; अंति:१२०६५. युगादिदेशना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०-३०(१ से ३०)=६०, जैदेना., पू.वि. उल्लास-१ का श्लो.३८३ तक नहीं है., (२८.५४१२.५, ११४४१-४७). युगादिदेशना, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, आदि:-; अंति: चैषा जयाभ्युदयदायिनी. १२०६६. उपदेशचिन्तामणी सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. २९२, जैदेना., प्र.वि. मूल-४ भाग., (२८.५४१३, १५४४४ ४७). उपदेशचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तित्थयरे भयवंते परम; अंतिः सरिसा सिरिसाहणी होउ. उपदेशचिन्तामणि-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४३६, आदिः प्राचीमेकां; अंतिः वाच्यमाना मुनीन्द्रै. १२०६७. विचारसारोद्धार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, प्र. ३६, जैदेना., ले.- गणि सौभाग्यचन्द्र, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-बाँया भाग, (२८x१२.५, १९४५४-५७). सिद्धान्तसारोद्धार, मागु., गद्य, आदिः प्रथम जम्बूद्वीप; अंतिः दुक्कडं दीजै. १२०६९. वीरदेशना, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८-४(८६ से ८९)+१(५९)=१०५, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. पल्लव-७ की श्लो.२७१ तक लिखा है., (२८x१२.५, १४४४२-५१). धर्मकल्पद्रुम, पण्डित उदयधर्म, सं., पद्य, आदिः श्रियं दिशतु वो; अंति:१२०७०. आत्मप्रबोध सह बीजक, छःखण्डसाधनाकाल व सह अर्थ, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १५०+४(१ से ४)=१५४, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. अंतिम ४ पत्र के नंबर अलग से दिये गये है., (२८x१२.५, १४-१५४४४). पे.१. आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., प+ग, वि. १८३३, (पृ. १आ-१५०आ), आदिः अनन्तविज्ञानविशुद्ध; अंतिः सद्बोधभक्तिभृता., पे.वि. ४प्रकाश. पे.२. आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, (पृ. १५१आ-१५४अ), आदिः तत्राद्य प्रकाशे; अंतिः अष्टौ गुणाः. पे..३.६ खण्डसाधनाकाल समय, मागु., गद्य, (पृ. १५४अ-१५४अ), आदिः भरतने देश साधता साठ०; अंतिः हरिषेणने १६ वर्ष थया. पे.४.पे. नाम. जैन गाथा सह बालावबोध, पृ. १५४अ-१५४अ जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदिः#; अंतिः#. जैन गाथा-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः पचास आमुल लाम्बो; अंतिः पन्नतीवृत्ती. १२०७१. धर्मरत्नकरण्डक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२१+३(५६,६६,११८)=२२४, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-२०., प्र.ले.श्लो. (१२७) शिवमस्तु सर्वजगतः, (२७.५४१३, १५४३८-४७).. धर्मरत्नकरण्डक, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, आदिः सर्वनीतिप्रणेतारं; अंतिः पञ्चत्रिंशं शतत्रयम्. धर्मरत्नकरण्डक-स्वोपज्ञ टीका, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., गद्य, वि. ११७२, आदिः प्रणम्य श्रीजिनं; अंतिः कृता विवृतिरेषा. १२०७२. धर्मोपदेश सह टबार्थ व दूहा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. २, जैदेना., ले.- पं. छगनचन्द्र, प्र.ले.श्लो. (२२२) जब लग मेरु अडग है, (२७४१२.५, ६४२५-३३). पे.-१. पे. नाम. धर्मोपदेश सह टबार्थ, पृ. १अ-२०आ धर्मोपदेश, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., पद्य, आदिः ओमित्यक्षरमक्षर; अंतिः सज्जनानाम्. For Private And Personal Use Only Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ धर्मोपदेश-टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः ॐ ईसा अक्षर प्रते अंतिः परुषोने वल्लभ हुवै, पे.वि. मूल- श्लो. १०९. पे. २. दुहा सङ्ग्रह *, मागु.प्रा.सं., पद्य, (पृ. २१अ-२१अ ), आदि: #; अंतिः#. १२०७३. धर्ममञ्जुषा, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. (२७.५०१२-५, १७९९७०) धर्ममञ्जूषा, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणमन्तर्हतां भेदां; अंतिः स्वद्दशः प्रसत्यैः www.kobatirth.org: " , " १२०७४.” आचारोपदेश सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८९५, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. वीजापुर, ले. श्रा खुबचन्द ओसवाल, प्र. वि. मूल-६वर्ग टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (६६०) जिहा लगे मेरु महिधर, (२५x१३, १०४३७-४२). आचारोपदेश, गणि चारित्रसुन्दर, सं., पद्य, आदिः चिदानन्दस्वरूपाय; अंतिः निजयोर्धजन्मनो. आचारोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ज्ञान अने आनन्द तेहज; अंतिः जन्मारो सफल करे. १२०७५. वर्द्धमानदेशना, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ९७, जैदेना. प्र. वि. १० उल्लास, (२५४१३, १९४४१-४७). " वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा., पद्य, आदिः वीरजिणन्दं देविन्द; अंतिः दशमउल्लासः. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२०७८.” उपदेशमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. १३९, जैदेना., ले. पं. देवचन्द्र (गुरु मु. भावविजय), प्र. वि. मूल-गा. ५४४., ( २६४१३.५, ५-१५४३५-४८). उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे; अंतिः वयण विणिग्गया वाणी.. उपदेशमाला-वृत्ति गणि रामविजय, सं., गद्य वि. १७८१ आदि श्रेयस्करं कामित अंतिः विजयतां सदा. + १२०७९. गुणमाला सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., प्र.ले. श्लो. (४८५) यावल्लवणसमुद्रो (५४१) भग्न पृष्ट कटी ग्रीवा, (२७.५४१३ १२४४१-४५). गुणमाला, उपा. रामविजय, सं., प्रा., गद्य, वि. १८१७, आदि: प्रत्यक्षीकृत्य; अंतिः प्रयासः सफल आसीत्. गुणमाला-स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं., गद्य, वि. १८१७, आदिः स श्रीसिद्धार्थसूनुः; अंतिः मनोगतभावान् जानाति १२०८०. आत्मप्रबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. श्लो. १४९, (२७.५x१३.५, १४X३३-३८). आत्मप्रबोध, कवि कुमारकवि सं., पद्य, आदि: आत्मानमात्मनि निरञ्ज: अंतिः शास्त्रमिदं व्यधायि ३२५ पे. २. पे. नाम. श्लोक, पृ. ९०आ-९०आ, संपूर्ण अजैन श्लोक सं. पद्य, आदि में अंतिः #. १२०८१.” सम्यक्त्वद्वार, संपूर्ण, वि. १९०६, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., ले.- ज्येठा कुंवरजी जोसी, पठ. देवकृष्ण सहायात्, प्र. वि. अध्याय- प्र. पु. -मूल-श्लो. १९०० ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६.५४१३.५ १२-१५९२९-४४). सम्यक्त्वद्वार, मु. हुकमविजय, मागु, पद्य वि. १९०५ आदिः संखेश्वर साहेबा अंति जसनाम० पसरो पूह विसथ. १२०८२. कल्पसूत्र की कल्पद्रुम टीका व्याख्यान १-८ श्लोक व कल्पसूत्र - साधुसमाचारी का बालावबोध, संपूर्ण वि. १९३१, श्रेष्ठ, पृ. ११८, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. मकसुदाबाद, ले. पं. विनयचन्द्र नारायण विरामन, लिखवा. - यति विनेचन्द, प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. व्याख्यान १-८ नारायण विरामनने व सामाचारी व्याख्यान पं. विनयचंद्रजीने लिखा है.. (२६.५४१४, १०-१५X३४-३९) पे.-१. पे. नाम. कल्पसूत्र की (सं.) कल्पलता टीका व्याख्यान १-८, पृ. १आ - ९०आ, प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., गद्य वि. १८वी आदि अंति, पे. वि. किंचित् सूत्रपाठ . P लिखा है व कही कही मारुगुर्जर भाषा में भी पाठ लिखा है. प्रारंभिक कुछेक श्लोक समयसुंदरजी कृत टीका के मांगलिक श्लोक के लिखे गये है. , For Private And Personal Use Only पे.-३. पे. नाम. कल्पसूत्र - साधुसमाचारी का ( मा.गु.) बालावबोध, पृ. ९१अ - ११८अ प्रतिपूर्ण कल्पसूत्र-बालावबोध*, मागु., राज, गद्य, आदि:-; अंतिः सूरि आज्ञा प्रवर्ते, पे. वि. किंचित् सूत्रपाठ भी लिखा है. १२०८३. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरीवृत्ति व स्याद्वादकलिका, संपूर्ण, वि. १४५९, श्रेष्ठ, पृ. ११४, पे. २, Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैदेना., ले.स्थल. स्थालनेर, ले.- श्रा. झांटाक, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्रतिलेखन वर्ष-ग्रहशरेन्द्र. प्रत की लिखावट से प्रति वि.१९वी की लगती है. वि.१४५९ की नकल लगती है., (२७.५४१४, १३४३३-३४). पे..१. पे. नाम. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, पृ. १आ-१११आ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वाद्मजरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः सास्त्यत्र सम्यग्यतः., पे.वि. मूल-श्लो.३२. प्र.पु.-टीका-ग्रं.३१००. पे..२. स्याद्वाद कलिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., पद्य, (पृ. १११आ-११४अ), आदिः षद्रव्यज्ञं जिनं; अंतिः सूरिः श्रीराजशेखरः., पे.वि. श्लो.४०. १२०८४. विचाररत्नसार बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., (२८.५४१४, १४४३८-३९). विचारसार प्रकरण-बालावबोध, आ. ज्ञानविजयसूरि, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः सूरीइं का छे. १२०८५. सम्यक्त्वद्वार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-७, (२९.५४१४.५, १८४४०-४७). सम्यक्त्वद्वार, मु. हुकमविजय, मागु., पद्य, वि. १९०५, आदिः संखेश्वर साहेबा; अंतिः जसनाम० पसरो पूह विसथ. १२०८६. षडदर्शनसमुच्चय अधिकार-१ से ६ वृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५७७३, (२९.५४१३, १६४३५-३८). षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति विजितरागः केवला; अंति:१२०८८." भवभावना सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.५३१., (२९.५४११, १५ १७४६१-६५). भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदि: णमिऊण णमिरसुरवर; अंतिः कीरउ अलङ्कारो. भवभावना-बालावबोध+कथा, गणि माणिक्यसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५०१, आदिः (१) रएमि रचउं सिउं भव (२) पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः जयवन्ता वर्त्तउ. १२०९१." सम्यक्त्वकौमुदी, संपूर्ण, वि. १५०४, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.- शिवा, प्र.वि. ७ प्रस्ताव, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२९x११.५, १५४५६-६२). सम्यक्त्वकौमुदी, गणि जिनहर्ष, सं., पद्य, वि. १४८७, आदिः ॐ नमः शाश्वतानन्द; अंतिः लोकानां सर्वसङ्ख्यया. १२०९२." धर्मपरीक्षा, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. परिच्छेद-१९ का श्लो.४७ तक है., (३०.५४११.५, १७-१८४६६-७०). धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति (दिगम्बर), सं., पद्य, आदिः श्रीमान्नभस्वत्रय; अंति:१२०९४." योगशास्त्र व स्तुति, संपूर्ण, वि. १४८१, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. योगिनीपुर, राज्यकाल- राजा मुमारखान, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२२.५४९.५, १२४३२-३५). पे.-१. योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-२३अ, प्रतिपूर्ण), आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:पे..२. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः वदाता ददतां शिवं वः., पे.वि. श्लो.१. १२०९५. अध्यात्मसार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०८, जैदेना., प्र.वि. मूल-७ प्रबंध., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं हैं. प्र. पु. पत्र नहीं है. टबार्थ श्लो.२१९ तक है., (२५४११, ४-५४३३-३६). अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः ऐन्द्रश्रेणिनतः; अंतिः आनन्दावहं भवतु. अध्यात्मसार-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः प्रणम्य श्रीजिनाधीश; अंति: For Private And Personal Use Only Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३२७ १२०९६. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७५७, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- गणि अजबसागर, पठ.- गणि दयासागर (गुरु गणि अजबसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१०.५, १३४४०). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:१२०९७. योगचिन्तामणि, संपूर्ण, वि. १७६७, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले.- गणि लब्धिविजय (गुरु मु. वृद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. अध्याय-७, (२४.५४१०.५, १८-१९४४७-५३). योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, वि. १७वी, आदिः यत्र वित्रासमायान्ति; अंतिः सप्तमको मिश्रकाध्याय. १२०९८. योगशास्त्र प्रकाश-५ से १२, प्रतिपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना.,प्र.वि. १२प्रकाश, (२४.५४१३, १५४४४-४७). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. १२०९९. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १७५४, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पठ.- नारायण, (२५.५४११, १३-१७४३७-४८). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:१२१००." योगशास्त्र प्रकाश-३ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२६.५४११, ११४३२-३५). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:१२१०१. योगशास्त्र प्रकाश-३ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., (२५.५४११.५, ११४४२-४६). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः१२१०२. योगसंसार व गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६४११, ११४३६-३७). पे.-१. योगसार, मु. योगीन्द्रदेव, अप., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः णिम्मलझाणपरिठ्ठया; अंतिः कया दोहा इक्कमणेण., पे.वि. गा.१०८. पे.-२. पे. नाम. ८४ जीवयोनीनी गाथा., पृ. ६अ-६अ जैन गाथा *, प्रा., पद्य, आदि:#; अंतिः#. १२१०४." योगशास्त्र, वीतराग स्तोत्र, पिण्डविशुद्धि व शीलोपदेशमाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१६)=१६, पे. ४, जैदेना., (२६.५४११, १७४६६). पे.-१. योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-१०अ, प्रतिपूर्ण), आदि: नमो दुर्वाररागादि; ___ अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा., पे.वि. प्र.पु.-४प्रकाश. पे..२. वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १०अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्., पे.वि. २० प्रकाश. पे..३. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण), आदि: देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य., पे.वि. गा.१०३. पे.-४. शीलोपदेशमाला, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १५आ-१६आ, अपूर्ण), आदिः आबालबम्भयारिं नेमि; अंतिः जिणवल्लहायरिअ०बोहिफल., पे.वि. बीच का एक पत्र नहीं है.गा.११५. १२१०५." योगबिन्दु सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. १६१, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.५२६., (२५.५४११, ११४२५-२८). योगबिन्दु, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः नत्वाद्यन्तविनिर्मुक; अंतिः तेन जनस्ताद्योगलोचनः. योगबिन्दु-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सद्योगचिन्तामणितोनणी; अंति: करणाङ्कप्रद्योतक इति. १२१०६. योगशास्त्र, प्रतिअपूर्ण, वि. १६५४, श्रेष्ठ, पृ. १३-२(७,१२)=११, जैदेना., ले.स्थल. श्रीपत्तन, ले.- मु. वर्द्धमान, (२५.५४११.५, ११४३७). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंति:१२१०७. योगशास्त्र प्रकाश-५ से १२ प्रकाश सह अवचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १४९४, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. गंधारमंदिरे, ले.- मु. त्रिविक्रम, पठ.- गणि ज्ञानप्रभ(चन्द्रगच्छे),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १२प्रकाश., पंचपाठ, (२६.५४११.५, १५ For Private And Personal Use Only Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १६४५६-५९). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. योगशास्त्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति:१२१०८." योगशास्त्रशुभाषित श्लोक सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-१(१)=१५, जैदेना., प्र.वि. संक्षेप-श्लो.८६८. प्रत के अंतमे १५०३ मे जयसागरजी द्वार अहमदाबाद मे संशोधित ऐसा उल्लेख है परंतु प्रत ही १७ वी सदी की है और कीसी अन्य संशोधित प्रत परसे लिखी जाने की संभावना है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रथम पत्र, पू.वि. गाथा १ से ५९ नही है., (२६.५४११, १७४५४-५७). योगशास्त्रसुभाषितानि, संबद्ध, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः संस्तूयतां श्रूयतां. १२१०९." योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४ सह अवचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६.५४११, ३ १३४३५-४०). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति: योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति:१२११०. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४ सह अवचूरि, प्रतिपूर्ण, वि. १५३३, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६.५४११, ४ १२४४०-४५). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंति:१२१११. अध्यात्मकल्पद्रुमसूत्र सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ८०-४(२ से ५)=७६, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-१६अधिकार., त्रिपाठ, (२४.५४११, १-४४३० ३८). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रीशद्धेश्वरपार्श्व; अंतिः चिरं जयतात्. १२११२.” अध्यात्मकल्पद्रुम सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १६७७, श्रेष्ठ, पृ. ६२-९(४,१०,१७ से १८,२० से २१,३४,४२,४५)=५३, जैदेना., प्र.वि. मूल-१६अधिकार, श्लो.२७२; टीका-अध्याय-१६, ग्रं. २४५९., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित टबार्थादि, त्रिपाठ, (२५.५४११, २-४४३५-३६). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदिः प्रणत सुरासुर; अंतिः वर्द्धते वर्णयामलम्. १२११३.” अध्यात्मकल्पद्रुम, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. १६अधिकार, (२५.५४१०.५, १७४४६-५५). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. १२११४. सम्बोहरसायण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.५४, (२६४११, ९-११४२८-३०). सम्बोहरसायण, आ. नयचन्दसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सावयकुलि कहमविलह; अंतिः सुगुरु नयचन्दसूरि. १२११५. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४ सह विवरण, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४४, जैदेना., प्र.वि. विवरण-अध्याय-१ ४प्रकाश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रकाश १ से ४ है।, (२७४११, १७४५१-५५). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (प्रतिपूर्ण), आदि: नमो दुर्वाररागादि; अंति:योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदि: नमस्कारोस्तु; अंतिः यस्य स सुसंस्थानः. १२११६. योगशास्त्र प्रकाश-१ से ४ सह टीका, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.- गणि हर्षसुन्दर, (२७ ११, For Private And Personal Use Only Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३२९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १५४५५-५८). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति: योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अत्र महावीरायेति; अंतिः१२११७. श्रुतसिद्धान्तविचार सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५७९, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., (२६.५४११.५, ११४३७-३९). सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदिः नमिऊण जिणवराई; अंतिः जिवाणं च बोहित्थं. सिद्धान्तहुण्डी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिनादिक प्रति; अंतिः भव्य जीवनइ बुजविवु. १२११८. श्राद्धगुणश्रेणि सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०-१(२)=२९, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-३५, (२६.५४११, १९४५४ ५८). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः श्चिरं नन्द्यात्. १२११९. द्वादशभावना स्वाध्याय व हीरविजयसूरिदेशना सुरवेली, संपूर्ण, वि. १९७०, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सुद्धदन्ति, ले.- मु. सुमतिसागर, प्र.वि. प्रतिलेखन पुष्पिका मां बे पुष्पिका आपी छे. लि. उ.देवचन्द्र गणि सुरतिबन्दिर सं. १६७५., (२७.५४११.५, १२४४१-४३). पे.१.१२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदि: विमल कुल कमलना हंस; अंतिः सकल मुनी चित्ति आणो., पे.वि. ढाल-१४. पे.-२. हीरविजयसूरि देशना सुरवेली, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-१०आ), आदिः देव देव ब्रह्मा शिवो; अंतिः वृद्धि सम्पइजी., पे.वि. गा.११५. १२१२०. ध्यानमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. बजांणा, ले.- प्रेमचन्द जेठाचन्द भोजक, प्र.वि. मूल-ढाल-६+कलश., (२८x११.५, ४४४०-४१). ध्यानमाला, कवि नेमिदास रामजी शाह कवि, मागु., पद्य, वि. १७६६, आदिः श्रीजिनवाणी प्रणमन; अंतिः नेमीदासे व्रतधारि. ध्यानमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीजिन चोत्रीसअतिसय; अंतिः ध्यानमाला इम रची. १२१२१. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, प्र.वि. गा.४९, (२५.५४१२, ११४३०-३१). अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंतिः रङ्गी मुनि सुप्रतीता. १२१२२.” अध्यात्मकल्पद्रुम सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६९, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. उर्णकपुर, ले.- मु. कर्मसिंह, प्र.वि. मूल-१६अधिकार., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, त्रिपाठ, (२६.५४११.५, २-५४५१-५५). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः अथाय श्रीमान् शान्त; अंति: जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, आदिः श्रीशद्धेश्वरपार्श्व; अंतिः चिरं जयतात्. १२१२३. जीवविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७९८, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.- भवानीशङ्कर जोसी, प्र.वि. मूल-गा.५१. प्र.पु. ____टीका-ग्रं. १०११., (२७४११.५, १५-१७X४७-६१). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टीका, पाठक रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदिः सज्ञानभास्करं वीरं; अंतिः (१)तस्मादित्यक्षरार्थः (२)पाठकरत्नाकरः सुगमम्. १२१२४. जीवविचार सह लघुवृत्ति व दशवैकालिकसूत्र-अध्याय-१, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अंजार, ले.- मु. बुद्धिविजय (गुरु मु. मणिविजय , तपागच्छ), पठ.- मु. सुखविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६x११.५, १५ १६४३८-४६). पे.१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह टीका, पृ. १अ-५अ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. For Private And Personal Use Only Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण-लघुटीका, सं., गद्य, आदिः जीवा मुक्ता मोक्षं; अंतिः एष जीवविचारः उद्धृतः., पे.वि. मूल गा.५१. पे.२. दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः धम्मो मङ्गलमुक्किट्ठ; अंतिः साहुणो त्तिबेमि., पे.वि. गा.५. १२१२५. नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. जितसागर, (२४.५४१०, १२४३५-४०). पे:१. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. गा.४५. पे..२. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ-५अ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. १२१२६. नवतत्त्व व जीवविचार, प्रतिपूर्ण, वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, ११४३१-३५). पे.-१. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३आ, संपूर्ण), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय., पे.वि. अंत मे जीवसंबंधी गाथा अलग दी गयी है. गा.५३. पे:२. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-४अ, संपूर्ण), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. १२१२७. जीवविचार, नवतत्त्व, दण्डक व शनीश्चर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदरे, ले.- गणि तिलकविजय, (२७ ११.५, १०४२८-३६). पे.-१. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे..२. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-८अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा., पे.वि. गा.५६. पे.-३. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-११अ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४३. पे.-४. शनिश्चर छन्द, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-१२अ), आदिः छायानन्दन जगिजयो; अंतिः वली वली एम वखाणीए., पे.वि. गा.१६. १२१२८. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १५४४, श्रेष्ठ, पृ. ९-२(१ से २)=७, जैदेना., ले.- मु. रूपविजय (गुरु गणि रङ्गविजय), प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. गा.१ से ३० तक नहीं है., (२६.५४११, ९४३७). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सिद्धि दीवाइ मोलखं. बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१२१२९. जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७९७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४x१०.५, ४४२९-३१). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः श्रीहरिभद्रससूरिइं. १२१३०. जम्बूद्वीपसङ्गहणी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६१, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.३०., त्रिपाठ, (२६४११.५, २-४४३४). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-बालावबोध, मु. शान्तिसागरविनेय, मागु., गद्य, वि. १७०६, आदिः श्रीमद्वाचकपर्षन्मघव; अंतिः ते विस्तार For Private And Personal Use Only Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ बहु माटे, १२१३१.” क्षेत्रसमास अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. - गणि चन्द्रधर्म (गुरु गणि शुभसुन्दर, तपगच्छ), प्र. वि. संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५x११, १७९५९-६३). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: वीर जिनवरेन्द्र; अंतिः प्रमाणाश्च ज्ञेया. १२१३२. क्षेत्रसमास व जम्बूद्वीपसङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २. जैदेना. ले. स्थल. जालीया ले. पं. हर्षकुशल, पठ. - मु. रत्नजी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२०.५x११.५, १७-१८४३१-३५). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. १. वृहत्क्षेत्रसमास - लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा. पद्य (प्र. १अ (आ), आदि: नमिऊणसजलजलहर; अंतिः झाएज्जा सम्मदीट्ठीए., पे.वि. अध्याय- ५ प्र.पु. - २०१. पे. २. लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं., पे.वि. गा. ३०. १२१३३.” क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. धिराद्रनगरे, ले. मु. जीवणविजय (गुरु मु. जीवविजय), प्र. वि. प्र. पु. - संक्षेप - १२७., (२५x११.५, ७X३४-४२). बृहत्क्षेत्रसमास- सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि नमिऊणसजलजलहर; · अंतिः समताइं दुक्खाई. वृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: नमीनें जलसहित मेघ: अंतिः समकित शुद्ध थाई. १२१३४.” क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. संक्षेप - १४२. कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, ( २७ ११.५, ६४३६-३८). बृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊणसजलजलहर; अंतिः समयखेत्तस्स परिरओ. बृहत्क्षेत्रसमास-सङ्क्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जल सहित मेघ गाजइ ते; अंतिः अढीद्वीपनी परिधि. १२१३५. क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.- मु. लक्ष्मण, पठ.- मु. हंसराज, प्र. वि. संक्षेपअध्याय - ५., (२७४११, ५X४५-५१). बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, संक्षेप, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊणसजलजलहर; अंतिः झाएज्जा सम्मदीटीए. बृहत्क्षेत्रसमास- लघुक्षेत्र समास का टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नमीने जे भगवन्त सजल अंतिः ध्यावउ सम्यग्दृष्टीइ. १२१३६.” क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६७९, श्रेष्ठ, पृ. ४४ जैदेना., ले. स्थल. उदयपुर, ले. आ. जीवा, पठ. मु. - मेघजी, प्र. वि. मूल-६ अधिकार, गा. २६३. त्रिपाठ, ( २६११, १-४४४९-५३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. ३३१ · लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर मागु., गद्य, वि. १६७६, आदि: निश्शेषज्ञानविज्ञान; अंतिः माधाय मयि सर्वं. For Private And Personal Use Only १२१३७. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, इग्याररुद्र विचार व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. ७८, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. खंभायति (२५.५४११ १७४४८-६०). पे. १. पे नाम. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-७८अ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पसत्थं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदि: अर्ह अहमिति; अंतिः लगें विस्तरउ., पे.वि. मूल-अध्याय-६ अधिकार., गा.२६२; बालावबोध-ग्रं.४११७. पे..२.११ रुद्र विचार, मागु., गद्य, (पृ. ७८आ-७८आ), आदिः रिषभदेवनइ वारइ भीमा; अंतिः नरके पृथ्वी गयुउ. पे.-३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ७८आ-७८आ), आदिः#; अंतिः#. १२१३८. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ११७-३(७९,९० से ९१)+२(१८,६४)=११६, जैदेना., प्र.वि. मूल ६ अधिकार., गा.२६५; बालावबोध-ग्रं. ४११७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. उभय-७०००., (२६४११, १६x४९-५३). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुशलरङ्गमयं पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदिः अर्ह अहमिति; अंतिः विस्तार ते प्रते पाम. १२१३९. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२०, जैदेना., प्र.वि. मूल-६ अधिकार., गा.२६२; बालावबोध ग्रं. ४११७., (२५.५४११.५, १२-१३x४५-५१). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसत्थं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदिः अहँ अर्हमिति; अंतिः लगें विस्तरउ. १२१४०. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६१, जीर्ण, पृ. ७२, जैदेना., ले.स्थल. जेसलमेर, ले.- मु. कीर्तिविमल (गुरु गणि ज्ञानमेरुजी, बृहत्खरतरगच्छ.), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.९२., प्र.ले.श्लो. (६५३) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, (२६.५४११, १५४४६-५६). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः अभिनम्य जगवीरं; अंतिः कृतं गम्यार्थपद्धतिः. १२१४१. शतककर्मग्रन्थ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१००., (२६.५४१०.५, १७४४२-४८). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः रत्नत्रयोपदेष्टारं; अंतिः आत्मपरिज्ञान हुइ. १२१४२. शतककर्मग्रन्थ सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८-१(२)=३७, जैदेना., ले.स्थल. आगरा, ले.- ऋ. जिनदत्त, प्र.वि. मूल-गा.१००., (२६४११, ११-१२४२९-३४). शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वीतराग नमस्करीनइ; अंतिः परोपकारनइ काजि. १२१४३." कर्मविपाक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ३४१८-२४). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव प्रति; अंतिः लिख्यो देवेन्द्रसूरि. १२१४४. कर्मग्रन्थ १ से ५ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, पे. ५, जैदेना., (२६.५४११, १९४६६-७०). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः श्रियाष्टप्रतिहार्य; अंतिः बध्नाति अन्तरायम्. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ५आ-९आ), आदिः तथा तेन प्रकारेण; अंति: गतस्तं वीरं नमता. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ९आ-१२अ), आदिः बन्धस्य विधानं; अंति: स्वामित्वं ज्ञेयम्. For Private And Personal Use Only Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३३३ पे:४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. १२अ-१९अ), आदिः श्रीजिनं नत्वा जीव; अंतिः व्यवह्रियमाणत्वात्. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. १९अ-३५आ), आदिः नत्वा जिनं ध्रुवबन्ध; अंतिः शास्त्र समर्थनमाह. १२१४५. कर्मग्रन्थ १-६ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ८२, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल. सणुया, ले.- गणि शुभविजय (गुरु गणि तिलकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२३.५४१०.५, ३-४४२७-३३). पे.-१.पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १आ-१२अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव प्रतइ; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिइं., पे.वि. मूल-गा.६०. पे..२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. १२अ-१८आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः हवे बीजा कर्मग्रन्थ; अंतिः श्रीमहावीरदेव प्रति., पे.वि. मूल गा.३४. पे..३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १८आ-२५अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कर्म बन्धना प्रकारथी; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडशीती सह टबार्थ, पृ. २५अ-४२अ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिवे चोथा कर्मग्रन्थ; अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ., पे.वि. मूल गा.८६. पे.५. पे. नाम. शतक सह टबार्थ, पृ. ४२आ-६३आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणमीनइ जिनप्रतइ; अंतिः सम्भारवानइ अर्थइ., पे.वि. मूल गा.१००; प्र.पु.-मूल-ग्रं.१४७. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं.५०७; प्र.पु.-मूल-ग्रं.उभय-६५४. पे.-६. पे. नाम. सप्ततिका सह टबार्थ, पृ. ६३आ-८२आ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध निश्चल पद छइ; अंतिः उणी नेउ गाथा होइ., पे.वि. मूल गा.९३. १२१४६. कर्मग्रन्थ कर्मविपाक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६०., पंचपाठ, (२६.५४११, ७-१०x२९-३१). कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंतिः सूरि तेह काउ. १२१४७. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- पं. केसरविजय, प्र.वि. मूल-गा.२५., (२६४१२, ३४३३-३६). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः बन्ध कर्मनो बन्ध; अंतिः लिख्यो कीधो जाणवो. १२१४८.” कर्मग्रन्थ १-४ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X११.५, ३-५४३४-४०). For Private And Personal Use Only Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक सह टबार्थ, पृ. १अ-११आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर जिन प्रति; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरि., पे.वि. मूल-गा.६०. पे..२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टबार्थ, पृ. ११आ-१८अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हिव बीजउ कर्मग्रन्थ; अंतिः करो ते महावीर प्रते., पे.वि. मूल गा.३४. पे..३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टबार्थ, पृ. १८अ-२८अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः बन्धना विधान करवू; अंतिः कर्मस्तवथी साम्भलीनइ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.-४. पे. नाम. षडशीति सह टबार्थ, पृ. २८आ-४०आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हवई चउथा कर्मग्रन्थ; अंतिः श्रीतपागच्छ नायकइ., पे.वि. मूल गा.८७. १२१४९. कर्मग्रन्थ बालावबोध- १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पे. ५, जैदेना., (२८x११, १८-२०४३५-४०). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः श्रीवर्द्धमान प्रति; अंतिः देवेन्द्रसूरि कहिउ. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध*, मागु., गद्य, (पृ. ९आ-१२अ), आदिः तिम श्रीमहावीर प्रति; अंति: ते महावीर __ प्रति नमु. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. १२अ-१५अ), आदिः सामान्यइ सविहुजीवा; अंतिः स्वामित्व विचार कहिउ. पे.४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. १५अ-२२अ), आदिः हवइ सक्षेपइ० गुण०; अंतिः देवेन्द्रसूरिहिं. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. २२अ-३८आ), आदिः वीतराग नमस्करीनइ; अंतिः परोपकारनइ ___काजि. १२१५०. कर्मग्रन्थ अवचूरि-१ से ३, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ३, जैदेना., (२८x११, २०-२१४७३-७५). पे..१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि# , आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, (पृ. १अ-३अ), आदिः सिरि० श्रियाष्टप्रात; अंति: येत्यादि कुदेशनाभिः. पे:२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, (पृ. ३अ-५आ), आदिः तह० ___ गुणस्थानेषु; अंतिः चरमसमये व्यवच्छेदः. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, (पृ. ५आ-७अ), आदिः अथ अस्यैव शास्त्रस्य; अंतिः अयोगिनोलेश्यत्वात्., पे.वि. ग्रं.३१००. १२१५१. कर्मग्रन्थ १-३ सह यन्त्र, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., पठ.- गणि शिवविमल (गुरु गणि धनविमल), प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२८x१०x). पे.-१.पे. नाम. कर्मविपाक सह यन्त्र, पृ. १अ-४आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, आदिः#; अंति:#., पे.वि. मूल-गा.६०. For Private And Personal Use Only Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव सह यन्त्र, पृ. ५अ-६आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, आदिः#; अंति:#., पे.वि. मूल-गा.३४. पे.-३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह यन्त्र, पृ. ७अ-१०आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, आदि:#; अंति:#., पे.वि. मूल-गा.२५. १२१५२. कर्मग्रन्थ अवचूरि-१ से ५, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, पे. ५, जैदेना., (२७४११.५, २३४६६-८४). पे.-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः श्रीवीरजिनं नत्वा; अंतिः देवेन्द्रसूरिभिः. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ४आ-७आ), आदिः तेह० मिथ्वात्वादि; अंति: चरमसमये ___ व्यवच्छेदः., पे.वि. '. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ७आ-९अ), आदि: बन्धविस्पष्टा०; अंतिः लेश्याभावः. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ९अ-१२अ), आदिः नमिअ इहसुह० सुगाम; अंतिः शास्त्रेभ्य इति शेषः. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, (पृ. १२अ-२१आ), आदिः घातिन्यस्त्रिधा सर्व; अंतिः केवलज्ञानी भवति., पे.वि. ग्रं.३१००. १२१५३. कर्मग्रन्थ सह अवचूरि-१ से ५, संपूर्ण, वि. १५४०, श्रेष्ठ, पृ. ३०, पे. ५, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, दशा वि. टिप्पणक का अंश नष्ट, (२६४११, ३-१०४३४-४५). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक सह अवचूरि, पृ. १अ-५अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रियाष्टप्रतिहार्य; अंतिः बध्नाति अन्तरायम्., पे.वि. मूल-गा.६०. पे..२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टीका, पृ. ५अ-९अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः तथा तेन प्रकारेण; अंति: गतस्तं वीरं नमता., पे.वि. मूल-गा.३४. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ९अ-१०आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः बन्धस्य विधानं; अंतिः स्वामित्वं ज्ञेयम्., पे.वि. मूल-गा.२४. पे.-४. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ११अ-१७आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनं नत्वा जीव; अंति: व्यवह्रियमाणत्वात्., पे.वि. मूल गा.८६. पे.५. पे. नाम. शतक कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १७आ-३०आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नत्वा जिनं ध्रुवबन्ध; अंतिः शास्त्र समर्थनमाह., पे.वि. मूल-गा.१००. १२१५४. सप्ततिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., (२६.५४११.५, २१-२३४५७-६६). सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्ध० सिद्धानि चालय; अंतिः कथयितुं गाह०स्पष्टा. १२१५५. शतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले.- गणि प्रभासुन्दर (गुरु आ. सोमसुन्दरसूरि), प्र.वि. मूल-गा.१००., पंचपाठ, (२६.५४११, १-९४२९-३७). For Private And Personal Use Only Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३३६ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, आदि नत्वा जिनं ध्रुवबन्ध; अंतिः वृहच्छताकन्य इति शेष. १२१५६. कर्मग्रन्थ अवचूरि-२ से ४ अपूर्ण वि. १४६०, श्रेष्ठ, पृ. ७-२ (१ से २) =५, पे. ३, जैदेना, पू. वि. प्रारंभ व अंत के पत्र , नहीं है. (२६४११.५, २३-२६४६५-७० ). पे. १. पे नाम. कर्मस्तव की अवचूरि पृ. ३अ-४आ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः येन सस्तिबुकोमतः ., पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.२ की अवचूरि अपूर्ण तक नहीं हैं. भूल से पत्रांक- ६-७ की जगह १-२ लिखे होने की संभावना है. पे. २. पे. नाम. बन्धस्वामित्व की अवचूरि, पृ. ४आ-५आ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, वि. १४५९, आदि: अथ अस्यैव शास्त्रस्य; अंतिः अयोगिनोलेश्यत्वात्. पे.-३. पे. नाम. कर्मग्रन्थ-४ की अवचूरि, पृ. ६अ - ७आ-, अपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूर्णि आ. गुणरत्नसूरि, सं. गद्य वि. १४५९ आदि बायर अ० बादरेषु अंति, पे.वि. " , , अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ५२ की अवचूरि अपूर्ण तक है. १२१५७. बन्धस्वामित्व सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५९९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. पुन्यरत्न, प्र. वि. मूल-गा.२५., पंचपाठ, (२४९११, ६x२१-२४). बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं.. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ अवचूरि, सं. गद्य, आदि बन्धविहा इह प्रथमा अंति लेख्यिवा चूर्णिका १२१५८.” कर्मविपाक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा.६१., पंचपाठ, (२६.५x११.५, ६ ११×३०), कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रियाष्टप्रतिहार्य; अंतिः जयति बध्नातीत्यर्थः . १२१५९. कर्मग्रन्थ १-६ सह अवचूरि, जीवविचार व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४२, पे. ८, जैदेना., ( २६.५x११, २३ २५४५७-६५) ; " पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूरि, सं., गद्य (पृ. ११-१आ), आदि सिरि० ज्ञानावरणादि अंतिः भक्तशेषं सुगमं. पे-२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. १आ - ४अ), आदिः तथा स्तुमो निखिल; अंतिः तं वीरं नमतेति. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूर्णि पृ. ४अ-८आ " बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूर्णि सं., गद्य, आदि सम्यग्बन्धस्वामित्व अंतिः देशद्वारेण भणनात्, पे.वि. मूल गा. २४. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. ८आ-१४आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिय जिणं जिय अंतिः देविन्दसुरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थअवचूरि, सं., गद्य, आदि ते जीवायुषु सास्वाद अतिः व्यवह्रियमाणत्वात् पे.वि. मूल For Private And Personal Use Only " गा.८६. पे. ५. पे नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह अवचूरि, पृ. १४आ२४आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः ठिइ अणुभागं कसायाओ. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं. गद्य, आदि: नत्वा जिनं दुच्छं अंतिः व्यतिरेकाभ्यां जायते पे. वि. मूल-गा. ९६. " · पे. ६. जीवविचार, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ) आदि अण्डजाः पक्षिसर्पा अंतिः तु ते चतुरिन्द्रियाः. Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे.-७. श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. २४आ-२४आ), आदिः#; अंति: #. पे.-८. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. २५अ-४२आ), आदिः सिद्ध० सिद्धानि चालय; अंतिः शिष्य० परिकथयंतु. १२१६०. कर्मग्रन्थ-४-६ सह स्वोपज्ञ टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५९-८१(१ से ७१,१३३ से १४२)=७८, पे. ३, जैदेना., ले.- पं. जयसोम, प्र.वि. पत्रांक १०० का आधा भाग खंडित है., पंचपाठ, पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६.५४११, १ ३४३२-३६). पे..१.पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह स्वो. टीका, पृ. -७२अ-७९आ, अपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः विचारणा चतुरः., पे.वि. मूल-गा.८६; टीका-ग्रं.२८००. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. गा.६८ तक नहीं हैं. पे..२. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. ८०अ-१३२आ, संपूर्ण शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां; अंतिः सर्वोपि तेन जनः., पे.वि. मूल-गा.१००. पे.-३. पे. नाम. शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह स्वोपज्ञ टीका, पृ. -१४३अ-१५९आ-, अपूर्ण सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका* , सं., गद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. बीच के पत्र हैं. गा.२१ से ४७ तक है. १२१६१.” कर्मग्रन्थ १-५ सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २११, पे. ५, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, (२६४११, १-२४४०). पे.१. पे. नाम. कर्मविपाक कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. १आ-२४अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः दिनेशवद्ध्यानवरप्रता; अंतिः सरसीरुहचंचरीकैरिति., पे.वि. मूल-गा.६०. पे.२.पे. नाम. कर्मस्तव कर्मग्रन्थ सह टीका, प्र. २४आ-३६अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः बन्धोदयोदीरण सत्पद; अंतिः त्रुट्यन्तु जगतोपि., पे.वि. मूल-गा.३४. पे..३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टीका, पृ. ३६आ-४२आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः सम्यग्बन्धस्वामित्व; अंतिः रतोलेख्यवचूर्णिका., पे.वि. मूल गा.२४. पे.-४. पे. नाम. षडशीति कर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ४२आ-९८आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यद्भाषितार्थलवमाप्य; अंतिः विचारणा चतुरः., पे.वि. मूल-गा.८६. पे.५. पे. नाम. शतककर्मग्रन्थ सह टीका, पृ. ९९अ-२११आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंति: सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविनां; अंतिः सर्वोपि तेन जनः.,पे.वि. मूल-गा.१००; टीका-ग्रं.४३४०. For Private And Personal Use Only Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३३८ १२१६२. कर्मग्रन्थ, प्रकीर्णक, प्रकरण, प्रतिक्रमणसूत्र व स्तोत्र आदि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ५०-८ (३० से ३७) + १ (२७) = ४३, पे. २८, जैदेना, (२७४११.५, १५×५२-६०). पे. १. कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रन्थ ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-४आ, संपूर्ण) आदि ववगयकम्मकलकं वीरं अंतिः कम्मविवागं च सो अइरा., पे.वि. गा. १६८. पे. २. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण जिणवरिन्दे : अंतिः दंसणसुद्धिं समाहिं च., पे.वि. गा. ५५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.-३. कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रन्थ-भाष्य प्रथम, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ - ६आ, संपूर्ण), आदिः बन्धे विसुत्तरसयं; अंतिः अणुदयपत्तस्सुईरणया, पे.वि. गा.३२. पे. ४. षडशीति प्राचीन कर्मग्रन्थ, आ. जिनवल्लभसूरि प्रा. पद्य (पृ. ६आ-९अ संपूर्ण) आदि निच्छिन्नमोहपासं अंति " " ; गुणन्तु जाणन्तु, पे.वि. गा. ९६. , पे. ५. षडशीति प्राचीन कर्मग्रन्थ-भाष्य, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ संपूर्ण), आदि जीवाइपयत्थेसुं अंतिः निकायणा करणणुचियत्तं., पे.वि. गा.३८. पे.-६. पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ - १२अ, संपूर्ण), आदि: देविन्दविन्दवन्दिय; अंतिः बोहिन्तु सोहिन्तु य., पे. वि. ग. १०४. पे.-७. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १२अ - १४ अ, संपूर्ण), आदिः चत्तारी मङ्गलं अरिहन; अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, पे. वि. गा. ६३. पे. ८. आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा. प+ग, (पृ. १४अ -१६अ, संपूर्ण), आदि: देसिक्कदेसविरओ अंतिः सउखय सव दुरियाणं., पे.वि. गा. ७१. ; पे.-९. भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १६अ - २०अ, संपूर्ण), आदिः नमिऊण महाइसयं महाणुभ; अंतिः सोक्खं लहइ मोक्खं पे. वि. गा. १७२. " पे.-१०. संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. २०अ २२आ, संपूर्ण), आदि: काऊण नमुक्कारं जिणवर; अंतिः सुहसंकमणं मम दिंतु, पे.वि. मा. १२२. " पे.-११. सीलसन्धि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, ईस. १४३७, (पृ. २२आ-२३आ, संपूर्ण), आदि: सिरिनेमिजिणिन्दह; अंतिः सील धम्मि उज्जम करहो, पे.वि. गा.३४. पे. - १२. ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, (पृ. २३-२४आ, संपूर्ण), आदि: जयजन्तुकप्पपायवः अंतिः बोहित्थ बोहिफलो., पे.वि. गा.५०. पे.-१३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. २४आ-२६अ, संपूर्ण ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे, पे. वि. गा. ५२. पे. १४. नवतत्त्व प्रकरण आ. जयशेखरसूरि प्रा. पद्य (प्र. २६अ-२७अ संपूर्ण), आदि जीवाजीवा पुण्णं अंति परम्परासिद्धणन्तगुणा., पे.वि. गा.३१. पे.-१५. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २७अ-२७अ, संपूर्ण), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा. ५१. पे १६. अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा. पद्य (पृ. २७अ-२८आ, संपूर्ण) आदि अजियं जिय सव्वमयं अंतिः " जिणवयणे आयरं कुणह., पे.वि. गा.४०. पे. १७. पे नाम. पू. २८-२९आ- अपूर्ण , गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं है. . For Private And Personal Use Only 3 ' पे १८. तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि प्रा., पद्य, (पृ. ३८२-४०आ, पूर्ण), आदि अति मुणिविन्द थुय महिया, पे. वि. प्रथम पत्र नहीं है. गा. १०८. Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३९ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे-१९. शाश्वतजिनभवन स्तोत्र, आ. जयसिंहसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४०आ-४१अ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.२६. पे.-२०. देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-अञ्चलगच्छीय, संबद्ध, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, (पृ. ४१अ-४५आ, संपूर्ण), आदिः ___ नमो अरिहन्ताणं० पढमं; अंतिः जैनं जयति शासनम्. पे..२१. नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४५आ-४६आ, संपूर्ण), आदिः नमिउण पणय सुरगण; अंतिः ईय नाहत्थणामि भत्तीए., पे.वि. गा.२५. पे.:२२. अजितशान्ति स्तवबृहत्-अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ४६आ-४७अ, संपूर्ण), आदिः सकलसुखनिवहदानाय; अंतिः सङ्घस्य मुदं., पे.वि. श्लो.१७. पे:२३. अजितशान्ति स्तवलघु-अञ्चलगच्छीय, कवि वीर गणि, प्रा., पद्य, (पृ. ४७अ-४७अ, संपूर्ण), आदिः गब्भअवयार __ सोहम्मसुर; अंतिः सुह सयल सम्पज्जए., पे.वि. गा.८. पे.२४. आदिजिन स्तव, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४७अ-४८अ, संपूर्ण), आदिः विमल गिरिवर विमल; अंतिः सीयहं० निरन्त तुट्ठि., पे.वि. गा.१६. पे:२५. नेमिजिन स्तव-गिरनारतीर्थमण्डन, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४८अ-४९अ, संपूर्ण), आदिः लच्छिकुलहरु लच्छि; अंतिः करे सामी नेमिकुमार., पे.वि. गा.१६. पे..२६. पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४९अ-४९आ, संपूर्ण), आदिः देव दरिसणि देव दरिसण; अंतिः सफल करे अम्हसे., पे.वि. गा.१६. पे..२७. जयकीर्तिसूरिसुगुरु स्तव, प्रा., पद्य, (पृ. ४९आ-५०अ, संपूर्ण), आदिः गम्भीणीमद्दविउ अप्भव ; अंति: जयकीर्ति वरे., पे.वि. गा.९. पे:२८. आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. ५०अ-५०आ, संपूर्ण), आदिः विणयनयरी विणयनयरी; अंतिः तुम्ह दियो वर मुक्ति., पे.वि. गा.११. १२१६३. कर्मग्रन्थ २ से ३, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२१४११, १२४२४-३२). पे.-१. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-४अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३५. पे..२. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ४अ-६अ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. १२१६४.” कर्मग्रन्थ १ से ४, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५, ५-७४३८-३९). पे.१. पे. नाम, कर्मविपाक सह टिप्पण, प्र. १अ-७अ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-गा.६०. पे.-२. पे. नाम. कर्मस्तव सह टिप्पण, पृ. ७अ-१०आ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. मूल-गा.३४. पे..३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टिप्पण, पृ. १०आ-१३अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु., गद्य, आदि:#; अंतिः#., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-१४आ, अपूर्ण), आदिः नमिय जिणं जिय; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं है.गा.१४ तक है. For Private And Personal Use Only Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (0) www.kobatirth.org: ३४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२१६५. कर्मग्रन्थ १ से ४, संपूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १३ पे ४ जैदेना, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षर पत्रों पर आमनेसामने छप गए हैं-बीच के कुछ पत्र, (२५.५X११.५, १२-१४x२८-३३). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्म (पृ. १आ-५अ), आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ६१; मूल-गा.६१. , " पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (प्र. ५अ-७अ ) आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं, पे.वि. गा. ३४. " पे. ३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (प्र. ७अ - ८आ), आदि बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, पे. वि. गा.२४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ - १३आ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. पे. वि. गा. ८६. १२१६६. कर्मग्रन्थ १ से ५, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ५, जैदेना, (२५.५४११५, ८-१०X३२-३४). पे. १. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. १-५अ) आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं, पे. वि. गा.६१. पे. २. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (प्र. ५अ-७आ), आदि: तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं, पे.वि. गा. ३४. पे:-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ - ९आ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं, पे.वि. गा.२४. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ - १६अ ), आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा. ८६. (+) पे.-५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १६आ - २३आ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा, पे. वि. गा.१००. १२१६७. कर्मग्रन्थ १-६ सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, पे. ६, जैदेना., प्र. वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५७६) यादिसं पुस्तकं लीख्यत वा (२६.५४११ १७४६१-७०) पे. १. पे. नाम कर्मविपाक सह टिप्पण, पृ. १अ-२अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: # अंति:., पे.वि. मूल-गा. ६०. पे. २. पे. नाम कर्मस्तव सह टिप्पण, पृ. २७-३अ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. " " कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- टिप्पण, सं., गद्य, आदि # अंति#. पे. वि. मूल-गा. ३४. " पे. ३. पे नाम, बन्धस्वामित्व सह टिप्पण, पृ. ३अ-३आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टिप्पण, सं., गद्य आदि अंति, पे.वि. मूल-गा. २५. पे. -४. पे. नाम. शतक सह टिप्पण, पृ. ३आ-६अ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ टिप्पण, सं. गद्य, आदि: अंति, पे. वि. मूल-गा. १००. " पे.- ५. पे. नाम. षडशीति सह टिप्पण, पृ. ६अ-८अ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः #., पे.वि. मूल-गा. ८६. For Private And Personal Use Only Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: पे ६. पे नाम सप्ततिका सह टिप्पण, पृ. ८अ -१०अ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदि सिद्धपएहिं महत्थं अंतिः पुरेऊणं परिकहन्तु. सप्ततिका कर्मग्रन्थ टिप्पण, सं., गद्य, आदि में अंतिः पे. वि. मूल-गा. ९२. #; #., " १२१६८.” कर्मग्रन्थ १ से ६ सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, पे. ६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १७९७०). पे.- १. पे नाम. कर्मविपाक सह टिप्पण, पृ. १अ-२अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, आदि: # अंति#. पे. वि. मूल-गा.६०. 1 पे. २. पे नाम कर्मस्तव सह टिप्पण, प्र. २अ-२आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ टिप्पण, सं., गद्य, आदि अंति#. पे. वि. मूल-गा. ३४. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व सह टिप्पण, पृ. ३अ - ३अ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टिप्पण, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः #, पे. वि. मूल-गा. २४. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.-४. पे. नाम. षडशीति सह टिप्पण, पृ. ३अ - ४आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि नमिय जिणं जिय: अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ टिप्पण, सं., गद्य, आदि: पे. ५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. पे. ६. सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-(आ) आदि सिद्धपएहिं महत्थं अंतिः एगुणा होइ नउइओ., पे. वि. गा. ९२. १२१६९.” पञ्चसङ्ग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. २०६ + ३ (५८, १२७, १३५) = २०९, जैदेना., ले. स्थल. नागौर, ले.अरजनदास, प्र. वि. मूल-५ द्वार. पेज नं १७१ व १७२ एक ही पत्र पर दीये है., त्रिपाठ, संशोधित, (२६×११.५, १३१४९५२-५५). . अंति, पे.वि. मूल-गा. ८६. (प्र. ४आ-६आ) आदि नमिय जिणं धुवबन्धोदय अंति पञ्चसङ्ग्रह आ. चन्द्रमहत्तराचार्य प्रा. पद्य, आदि नमिउण जिणं वीरं सम्म अंतिः पञ्च वावट्ठि भङ्गङ्गाओ. पञ्चसङ्ग्रह - टीका, सं., गद्य, आदिः सिद्धं सिद्धार्थसुतं; अंतिः जैनं वरशासनं जयति. १२१७०, कर्मग्रन्थ १६ सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २८६+१० ५४ से ६३ ) - २९६ पे ७ जैदेना, प्र. वि. सर्वगंथाग्र १४०००, दशा वि. अक्षरों की स्याही फैल गयी है - अल्प, (२५.५x११, १५x४८-५४). पे. १. पे. नाम कर्मविपाक सह टीका, पृ. १अ-२६आ - ३४१ For Private And Personal Use Only कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि दिनेशवध्यानवरप्रता; अंतिः सरसीरुहचंचरीकैरिति., पे.वि. मूल-गा. ६०; टीका-ग्रं. १८८२. पे. २. पे नाम, कर्मस्तव सह टीका, पृ. ३६आ-५४आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं .. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदि बन्धोदयोदीरण सत्पद: अंतिः त्रुट्यन्तु जगतोपि., पं.वि. मूलगा ३४. प्र. पु. टीका ग्रं. ८३०. पे-३. पे नाम, बन्धस्वामित्व सह टीका, पृ. क५४आख५४आ 1 · Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंति: नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः सम्यग्बन्धस्वामित्व; अंतिः रतोलेख्यवचूर्णिका., पे.वि. मूल गा.२५. पे.-४. पे. नाम, षडशीति सह टीका, पृ. ख५४आ-११०आ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः जिनं नत्वा जीव; अंतिः क्रमकमलचञ्चरीकैरिति., पे.वि. मूल-गा.८६; टीका-ग्रं.२८००. पे.५. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ११०आ-११२आ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८६. पे.६. पे. नाम. शतक सह टीका, पृ. ११३अ-२०४अ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः यो विश्वविश्वभविना; अंतिः स्मृतिनिमित्तमिति., पे.वि. मूल-गा.१००; टीका-ग्रं.४३४०. पे.-७.पे. नाम. सप्ततिका सह टीका, पृ. २०४अ-२८६आ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः अशेषकर्मांशतमः समूह; अंतिः तेनाश्नुतां लोकः., पे.वि. मूल-गा.७२; टीका-ग्रं.३८८०. १२१७१.” कर्मप्रकृति सह टीका, संपूर्ण, वि. १८२९, श्रेष्ठ, पृ. १६८, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- मु. हेतविजय (गुरु गणि दीपविजय), प्र.वि. मूल-७ अधिकार, गा.४७५.,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (६२७) जलात् रक्षे तैलात् रक्षे; (५०१) भग्न दृष्टि कटि ग्रीवा, (२६४११.५, १४-१८४४५-४९). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः प्रणम्य कर्मद्रुम; अंतिः जैनो धर्मश्च मङ्गलम्. १२१७३. योगशास्त्र सह बालावबोध- प्रकाश ५ से १२ व श्लोक सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१-१(१)=९०, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. रायपूरनगर, ले.- ऋ. चांपा(पूर्णिमागछ), प्र.वि. संशोधित, (२६.५४११, १३४३२-३७). पे.१. पे. नाम. योगशास्त्र सह बालावबोध, पृ. -२अ-९१आ, प्रतिपूर्ण योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. योगशास्त्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, वि. १५०८(प्रतिअपूर्ण), आदि:-; अंति: नई विषइ आरोपी., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे.२. औषध सङ्ग्रह **, सं., पद्य, (पृ. ९१आ-९१आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#. पे.-३. अजैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ९१आ-९१आ, संपूर्ण), आदिः #; अंति: #. १२१७४." योगशास्त्र सह अवचूरि- प्रकाश १ से ४, षष्टिशतक व सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. ३, जैदेना., (२७४११.५, १०४५१-५४). पे.-१. पे. नाम. योगशास्त्र सह अवचूरि, पृ. १अ-१७आ, प्रतिपूर्ण योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंति:योगशास्त्र प्रकाश १ से ४-अवचूरि, सं., गद्य(संपूर्ण), आदिः नमस्करोस्तु क्वचित्; अंतिः प्रयत्नवान् भवति., पे.वि. अवचूरि-४प्रकाश. पे..२. पे. नाम. षष्टिशतक सह टबार्थ, पृ. १७आ-२४अ, संपूर्ण षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जिणंतु जन्तु सिवं. For Private And Personal Use Only Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ षष्टिशतक प्रकरण-टवार्थ, सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञदेव सुसाधु अंतिः गच्छन्तु मोक्षं. पे.वि. मूल-गा. १६१. पे.-३. पे. नाम. सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. २४अ - २६आ, संपूर्ण सम्बोधसप्ततिका आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि नमिऊण तिलोअगुरु: अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका टवार्थ मागु, गद्य, आदि: नमिकर त्रिलोक्यगुरुः अंतिः नथी ए वातनो सन्देह, पे. वि. मूल (+) गा. १२५+२. मूल-गा. ७२. १२१७५. योगशास्त्र सह टवार्थ प्रकाश १ से ४ प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११, ६-७२३२-४४). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (प्रतिपूर्ण) आदि नमो दुर्वाररागादि अंतिः योगशास्त्र - हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदि: नमस्कार हउ दुरावईं; अंतिः प्रकारई उद्यमी थाशे. (+) १२१७६.” योगशास्त्र सह बालावबोध प्रकाश १ से ४ प्रतिपूर्ण वि. १७९४ श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना. ले. मु. सुबुद्धिविजय (गुरु - 1 1 " आ. विजयक्षमासूर), प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११.५, ५६x४२-४५). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि नमो दुर्वाररागादि: अंति: योगशास्त्र-बालावबोध, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १७९२, आदि: तिहां प्रथम श्रीहेम०; अंतिः १२१७७. योगशास्त्र सह बालावबोध- प्रकाश १ से ४, प्रतिपूर्ण, वि. १८०१ श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., प्र. वि. बालावबोध-अध्याय ४प्रकाश., प्र.ले.श्लो. (४८२) भग्न पुष्टी कटी ग्रीवा; (४) जलं रक्षेत् स्थलं रक्षेत्, (४५४) मङ्गलं लेखकानां च; (६४१) अतुप्ति राजा धन सञ्चिनोपि (६४२) यावत् तिष्टति मार्त्तड, ( २६×११, १७४४८-५३). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ सं., पद्य, (प्रतिपूर्ण), आदि नमो दुर्वाररागादि अंतिःयोगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य जिनसिद्धादीन: अंतिः तिहां थका जाणिवा. १२१७८. योगशास्त्रबालावबोध प्रकाश १ से ४, संपूर्ण वि. १४९७, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना ले. स्थल. मंडलीनगर, प्र. वि. ४प्रकाश, प्र. पु. - बालावबोध ग्रं. २१००, ( २७४११.५, १८×५३-५७). योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का बालावबोध, सं., मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीरदेव रहईं; अंतिः संस्थान स्थानक छइ. १२१७९. योगशास्त्र सह टवार्थ प्रकाश-१ से ४ व श्लोक प्रतिपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८६, पे. २, जैदेना. (२४४१०.५, ३X२७-३४). पे.-१. पे. नाम. योगशास्त्र सह टबार्थ, पृ. १अ - ८६आ, प्रतिपूर्ण योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः योगशास्त्र - हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टवार्थ, मागु, गद्य (संपूर्ण) आदि नमस्कार हउ दुरावई: अंतिः #. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १अ - १अ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः #. (+) ३४३ " १२१८०. क्षेत्रसमास सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ६१, जैदेना. प्र. वि. मुलगा. २६६.. " प्र. वि. गा. २६६., ( २६.५४१२, ३-४x२८-३२). For Private And Personal Use Only टिप्पण युक्त विशेष पाठ, लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धि. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदि: वीर श्रीमहावीर केहवउ: अंतिः सय प्रसिद्ध पामो. १२१८१. क्षेत्रसमास सह टीका, संपूर्ण वि. १६८१, श्रेष्ठ, पृ. १५९, जैदेना. प्र. वि. मूल ५ अधिकार, गा. ६५६ टीका- अध्याय ५., Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची (२७.५४११, १५४५०-५८). " · बृहत्क्षेत्रसमास आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा. पद्य वि. ६वी आदि नमिऊण सजलजलहर अंति: उत्तमसुयसम्पयं देउ. बृहत्क्षेत्रसमास- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य वि. १३वी आदि जयति जिनवचनमवितथममित: अंतिः मङ्गलमशिश्रियम्. , १२१८२. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. ६ अधिकार, गा. २६६, ( २६×१२, १४X३२-३५). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय: अंतिः कुशलरङ्गमयं पसिद्धि " www.kobatirth.org: , १२१८३. क्षेत्रसमास अवचूरि, संपूर्ण वि. १५१८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना ले. गोगा ब्राह्मण (२६.५४११, २१४७९-९०). बृहत्क्षेत्रसमास नव्य- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: रज्जउद्वारिति दीर्घव; अंतिः नरक्षेत्रात्बहि. १२१८४. क्षेत्रसमास, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना, गच्छा. पं. जयविजय ले गणि नित्यविजय (गुरु गणि भाणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ६ अधिकार, गा. २६५, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५X११.५, ११-१२x२७-३५). (+) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदि वीरं जयसेहरपय अंतिः कुशलरङ्गमयं , , पसिद्धिं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२१८५. क्षेत्रसमास, पूर्ण, वि. १६९४, श्रेष्ठ, पृ. १६ - १ ( १ ) = १५, जैदेना., गच्छा. आ. जिनराजसूरि (गुरु आ जिनसिंहसूरि, खरतरगच्छ), पठ.- मु. भावहर्ष (गुरु मु. धर्मसी), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. २६३, पू. वि. गा. १ से ८ तक नहीं है., (२६४११, १४४४५) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि:-; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं.. १२१८६. कर्पूर प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५६६, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले. मु. प्रमोदहंस (गुरु गणि संयमविशाल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल श्लो. १७३ अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, ( २६४११, १०-१२४२७-३५). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रकर्त्रा कर्पूरप्रकर- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः व्याख्या लक्ष्यो; अंतिः इयं सुभाषितावली कृता. " १२१८७. कर्पूर प्रकरण संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. ले. पं. विशालरत्न (गुरु पं. संयमविशाल), प्र. वि. श्लो. १६६. - (२६.५४११.५, १५४४०४४). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि कर्पूरप्रकरः शमामृत: अंतिः नेमिचरित्रकर्त्रा १२१८८. कर्पूर प्रकरण संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना, प्र. वि. एलो. १७९ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, " १३३६-४१ ). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि: कर्पूरप्रकरा शमामृत: अंतिः नेमिचरित्रकर्त्रा , १२१८९.” कर्पूर प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७११, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. श्लो. १८२, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (६१८) जलाद् रक्षेत् स्थलाद् रक्षेत् (६०५) भग्न पुष्टि कट प्रिया, (२५.५५११, १२-१३४३८-४१), कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रकर्त्रा १२१९०. कर्पूर प्रकरण, पूर्ण, वि. १५५५, श्रेष्ठ, पृ. १६- १(१)=१५, जैदेना., प्र.वि. श्लो. १७२, पू.वि. श्लो. १ से ८ तक नहीं है., (२६.५४११, १०-१२४३२-३६). कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः नेमिचरित्रकर्त्रा. १२१९१. एकवीसठाणा सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ६६ (२६४११.५, ७०४४-५०), एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. For Private And Personal Use Only Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३४५ एकविंशतिस्थान प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः विमान नयरी जननीमाता; अंतिः साधारण एकठा भण्यां. १२१९२. पर्यन्ताराधना सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२५.५४११, ५४३९-४७). पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण भणइ; अंतिः ते सासयं सुक्खं. पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः#; अंतिः शाश्वता सुख प्रते. १२१९४. बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मेदनीपुर, ले.- मु. उदयसौभाग्य (गुरु कवि शङ्करसौभाग्य महाकवि),प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है। गा.६५, (२६४११). बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र, मु. सागरसूरि-शिष्य, प्रा., पद्य, आदिः बन्धण हेउ विमुक्कं; अंतिः सिरिसायरसूरि सीसेणं. १२१९५.” कर्मसम्बन्धभङ्ग प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१७४, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-नीचला भाग, (२७४१२, १७४५२). कर्मसंवेध प्रकरण, गणि देवचन्द्र, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरनाहनाणं वन्दि; अंतिः सावगवरदेवरायस्स. १२१९६. सप्ततिकायन्त्र सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११.५४). सप्ततिका कर्मग्रन्थ-यन्त्रसङ्ग्रह, मागु., यंत्र, आदि:-; अंति:१२१९७." सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.- मु. नित्यविजय, प्र.वि. मूल-गा.८९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४१२, ४४२८-३५). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध सिद्धानिचालितु; अंतिः नव्यासी जाणवी. १२१९८." सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.वि. मूल-गा.८९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ३-१२४२९-३९). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध सिद्धानिचालितु; अंतिः नव्यासी जाणवी. १२१९९. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४८-९२(१ से ९२)=५६, जैदेना., प्र.वि. मूल गा.९३., (२५४११.५, २-१६४२७-३८). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्ध निश्चल पद छइ; अंतिः उणी नेउ गाथा होइ. १२२००. कर्मग्रन्थ-६ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५८, जैदेना., ले.स्थल. फलवद्धिपुर, ले.- मु. विनीतसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.९२., (२६x११, १५-१९४५६-६६). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः अभिनम्य जगद्वीरं; अंतिः कृतं गम्यार्थपद्धतिः. १२२०१." षष्ठकर्मग्रन्थ सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११७-१(४९)=११६, जैदेना., प्र.वि. बालावबोध-ग्रं. ४००० ., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२७४१२, ११-१३४३८-४२). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. जयसोम, मागु., गद्य, वि. १७०२, आदिः प्रणिपत्य पार्श्वदेव; अंतिः (१)मानं कथितं च षष्टे (२)नेव्यासी गाथा हुइ. १२२०२.” जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. सोजितनगर, ले.- श्रा. हरीदास, प्र.वि. मूल-गा.५०., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२२४१०.५, ३४२३). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. For Private And Personal Use Only Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तीन भुवननइ प्रकाशिवा; अंतिः रूप समुद्रहुती. १२२०३." जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. धीरसागर, पठ.- श्राविका जेठी, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२५४११, ४४२९-३५). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवनउ प्रकाशक; अंतिः कहतां सङ्क्षप थकी. १२२०४. जीवविचार प्रकरण वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४११, १७४५४-५९). जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, आदिः अहं किञ्चिदपि जीवस्य; अंतिः सङ्घाय श्रेयसेस्तु. १२२०५. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- मु. लालसागर, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२५.५४११.५, ३४३०-३३). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः तिनभुवनमांहि दीवा; अंति: मान्थी उद्धर्यो छे. १२२०६. जीवविचार सह बालावबोध, बारपर्षदा विचार व हरियाली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. त्रिपाठ, (२७x११.५, १-५४३४-४०). पे.-१. पे. नाम. जीवविचार प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ-१२अ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानमानम्य; अंतिः श्रुत समु थकी जाणिवओ., पे.वि. मूल गा.५१. पे..२. पे. नाम. १२ पर्षदाविचार सह बालावबोध, पृ. १२आ-१२आ १२ पर्षदाविचार, सं., पद्य, आदिः आग्नेयां गणभृद्विमान; अंतिः भूषितं पातुवः. १२ पर्षदा विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः अग्निखूणे गणधर १; अंतिः तु मनइ पवित्र करओ., पे.वि. मूल-श्लो.१. पे..३. पे. नाम. आदिजिन हरियाली सह बालावबोध, पृ. १२आ-१४अ आदिजिन हरियाली, मागु., पद्य, आदिः एक अचम्भो उपनो कहोजी; अंतिः सुणो भविक सहु सन्त. आदिजिन हरियाली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पुरुष कउआ उषो हवडा; अंतिः सुमुरख हुवई सउ जाणइ., पे.वि. मूल-गा.१०. पे.४.पे. नाम. हरियाली सह बालावबोध, पृ. १४अ-१५आ आध्यात्मिक हरियाली, श्रा. देपाल भोजक, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदिः वरसे काम्बल भीजे; अंतिः मुरख कवि देपाल वखाणे. हरियाली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः काम्बली कहतां इन्द्र; अंतिः देपाल नामे इम वखाणि., पे.वि. मूल-गा.६. १२२०७. चोविसदण्डक विचार, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.- कानजी जोसी, पठ.- विठल, (२५.५४११.५, ११४३१-३६). २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः शरीर उगाहणा सङ्घयण; अंतिः केवलज्ञान केवलदर्शन. १२२०८." चौवीसदण्डकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८९, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.- मु. सुबुद्धिविजय (गुरु गणि कुशलविजय), प्र.वि. मूल-गा.४६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ५४३८-४१). दण्डक प्रकरण , मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमी करी चउवीस; अंतिः गजसार एहवइ० भणी. १२२०९. चोवीसदण्डकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. खीरसरा, ले.- श्रा. रतनजी, प्र.वि. मूल-गा.४४., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (५११) तेला रक्षं जला रक्षं; (५२०) जिहां लग मेरु अडग्ग है, For Private And Personal Use Only Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir 3४७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ (२४४११.५, ४४३८-४३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: चोवीस तीर्थङ्करोने; अंतिः विचार बत्रीसी जाणवी. १२२१०. चौवीसदण्डक स्तवन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. ढालोएग्राम, ले.- मु. विबुधरुचि, पठ.- मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), प्र.वि. मूल-गा.४१., (२६४११, ४४४४-४७). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मु. प्रीतिविजय, मागु., गद्य, आदिः श्रियः पदं युगादीशं; अंतिः विजयं० प्रमोदेन. रक विभक्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(१ से २)=१०, जैदेना., प्र.वि. गा.१४१, (२५.५४११, ९-१०४३०-३५) नरक विभक्ति, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः पद जिम पामो रद्धि. १२२१२. सिद्धमातृका, संपूर्ण, वि. १८२७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१२८, (२५.५४११.५, १३४३९-४४). सिद्धमातृका, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., पद्य, आदिः अहं विभुर्विश्वशिरो; अंतिः जयति जैनशासनं. १२२१३. शीलोपदेशमाला, जीवविचार व नवतत्त्व, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. ३, जैदेना., पठ.- श्राविका लक्ष्मी, (२६४११.५, ११४३४-३७). पे.-१. शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः आबालबम्भयारिं; अंतिः आराहिय लहइ बोहिफलं., पे.वि. गा.११५. पे..२. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-१०अ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ ___ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे.-३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १०अ-१२अ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा., पे.वि. गा.४१. १२२१४." नवतत्त्व सह टिप्पण व दण्डक, अपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. १३-५(५ से ९)=८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, पठ.- पं. जीवराज, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच बीच के पत्र नहीं है., (२४.५४११.५, ९४२७-२९). पे.१.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टिप्पण, पृ. १अ-४आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: नवतत्त्व प्रकरण-टिप्पण* , सं., गद्य, आदि:-; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पे..२. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. -१०अ-१३आ), आदि:-; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं हैं. गा.१ से ३ तक नहीं है. गा.४४. १२२१५. नवतत्त्व, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६-१(४)=५, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, ले.- मु. आणन्दशेखर, पठ.- मु. धर्मचन्द्र (गुरु मु. आणन्दशेखर), प्र.वि. गा.१०२, पू.वि. गा.४९ से ७० तक नहीं है., (२५४११.५, ११४४१-४३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणन्तभागोय सिद्धि गओ. १२२१६. नवतत्त्व सह टीका, संपूर्ण, वि. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. अहिमननगरे, ले.- मु. जयविजय (गुरु गणि देवविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.२८., पंचपाठ, (२६४११, २४२२-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंति: सेधनादनेकसिद्धाः. १२२१७." नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२८; टीका-ग्रं. ४७७., पदच्छेद सूचक लकीरें, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १-३४३४-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे. For Private And Personal Use Only Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३४८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची __ नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनपति; अंतिः स्यादिति गाथार्थः. १२२१८. नवतत्त्व सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२७., त्रिपाठ, (२७४११, १-४४३८-५०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंतिः#. १२२१९. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०. प्र.पु.-अवचूरि-ग्रं. ४५०., त्रिपाठ, (२६.५४११, १-४४३९-४५). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति. १२२२०. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८-१(६)=७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२९., (२६४११, १७४५९ ६७). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः परियट्टो चेव संसारे. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति. १२२२१. नवतत्त्व प्रकरण टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२६.५४११, १५४४८-५१). नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति. १२२२२. नवतत्त्व सह टीका व निगोदादिक विवरण गाथा सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६६१, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुरमहानगर, ले.- उधव जोसी, प्र.वि. पंचपाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६४११, १ १०४२५-३२). पे.-१.पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, पृ. १अ-७आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदि: जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति., पे.वि. मूल गा.२९. पे.२. पे. नाम. सूक्ष्मनिगोदविचार सह बालावबोध, पृ. ७आ-७आ सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., पद्य, आदिः लोए असङ्खजोयण माणे; अंतिः जा तहत्ति जिणवुत्तं. सुक्ष्मनिगोदविचार विवरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ए चउद राजप्रमाण लोक; अंतिः जिते हरइं जाणिवं., पे.वि. मूल-गा.३. १२२२३. नवतत्त्व प्रकरण सह भाष्य व विवरण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१४; टीका-ग्रं. २४००; भाष्य-गा.१५३., (२६४११, १५४५१-५६). नवतत्त्व प्रकरण, आ. देवगुप्तसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सम्मं च मोक्खबीयं; अंतिः सरणत्थं अप्पणो रइया. नवतत्त्व प्रकरण-टीका# , उपा. यशोदेव, सं., गद्य, वि. ११७४, आदिः मोक्षस्यादिमकारणं; अंतिः द्वे चतुःशतसमन्विते. नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः भूयत्था इह अवितहभावा; अंतिः मन्दमईणं विबोहत्थं. नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य की टीका# , उपा. यशोदेव, सं., गद्य, वि. ११७४, आदिः#; अंतिः#. १२२२४. नवतत्त्व प्रकरण टीक व गाथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७३४, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. गागरुडेग्राम, (२६.५४११, १८-१९४४४-५०). पे.-१. नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, (पृ. १अ-१०आ), आदिः जयति श्रीमहावीर; अंतिः शीघ्रं प्राप्नुवन्ति. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदि:#; अंतिः#., पे.वि. कर्मग्रंथ, निद्रालक्षण, संघयणी की त्रुटक गाथाओ. For Private And Personal Use Only Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३४९ १२२२५.” नवतत्त्व प्रकरण सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ३३ तक है., दशा वि. अक्षर फीके पड गये हैं, ( २६.५४११, १६-१८४७-५२), नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंति: नवतत्त्व प्रकरण- टीका, आ. देवेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानजिनपति: अंति: १२२२६. नवतत्त्व प्रकरण अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. (२६.५x११, १७५४-६२). नवतत्त्व प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: वीरं विश्वेश्वरं अंतिः देकसिद्धाः० सिद्धा १२२२७. नवतत्त्व सह टवार्थ व दूहो, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २ जैदेना. पु.वि. अंतिम पत्र नहीं है., (२७४११.५. २-१५x२४-३९). पे. १. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ - २०आ, संपूर्ण , नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थ मागु, गद्य, आदि: जीवतत्त्व चेतना अंतिः हजि सिद्धी गयो छे पे. वि. मूल-गा. ५७. पे.:-२. जैन दुहा सङ्ग्रह*, सं., प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. २०आ-२०आ, अपूर्ण), आदि:-; अंति:-, पे.वि. अंतिम पत्र नहीं है. १२२२८. नवतत्त्व सह टबार्थ, कालिकाचार्य विवरण, कल्पवृक्ष विचार व रामरक्षा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. ४, जैदेना., ले. स्थल. नवसराग्राम, ले. पं. भाणविजय, ( २६११.५, १-३X३६-४०). पे.- १. पे. नाम. नवतत्त्व सह टबार्थ, पृ. १अ - १३आ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि जीवाजीवा पुण्णं पावा अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण- टवार्थी " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माग गद्य, आदि जिण मांडे चेतना; अंतिः उतर करे पूछण हारने, पे. वि. मूल-गा.५१. " मागु, गद्य (प्र. १३ आ - १३आ), आदि: कालिकाचार्य तिन थया अंतिः संवच्छरी थापी. + पे. २. कालिकाचार्यभेद विचार पे. ३. १० कल्पवृक्ष भेद, मागु., गद्य (पृ. १३आ- १३आ) आदि मत्तङ्गकल्पवृक्ष मद अंतिः मनो वञ्छित पूरवै. 1 पे.-४. रामरक्षा स्तोत्र, रामानन्द, मागु, पद्य, (५. १३आ-१३आ), आदिः ॐ सन्ध्यातारनी सर्व अंतिः निराकार वांणी, (+) , १२२२९. नवतत्त्व व प्रश्नोत्तररत्नमाला सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना, (२५.५४११, ११४४५ ४६). पे. १. ये नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पृ. १अ अ संपूर्ण नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः भवे सिद्धि. नवतत्त्व प्रकरण-लेशप्रकाशकस्तवप्रदीप बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्व अजीवतत्व; अंतिः वहिलं मुक्ति पामइ., पे. वि. मूल - गा.३२. पे. २. पे नाम. प्रश्नोत्तररत्नमाला सह बालावबोध, पृ. ९अ ११आ, संपूर्ण प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंतिः कण्ठगता किं न भूषयति. प्रश्नोतररत्नमाला - बालावबोध, मागु, गद्य (पूर्ण), आदि जिनवरेन्द्र नागनरामर अंतिः- पे. वि. मूल- श्लो. २९. १२२३०. नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना, ले. स्थल, महिषदुर्ग, प्र. वि. मूल-गा.३२.. (२६.५X११.५, १७-१९४५८-७३). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः भवे सिद्धि. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि - शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीवीरं विश्वविभुं अंतिः तद्बुद्धैर्विशदाशयैः. १२२३१. नवतत्त्व प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. मु. नेमविजय, प्र. वि. मूल-गा. ४४., (२७४१०.५. ५४३८-४०). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः साचा वस्तुनो स्वरूप; अंतिः ए पनरभेद सिद्ध जाणवा. For Private And Personal Use Only Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२३२." पुष्पमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. गा.५०५, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४३०-३३). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. १२२३३." पुष्पमाला, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.५०५, (२६४११, २७-३१x६७-७१). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. १२२३४.” पुष्पमाला, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. गा.५०५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १५ १६४४९-५३). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्यिहिं. १२२३५. पुष्पमाला सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५७०, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., पठ.- गणि श्रुतसमुद्र, प्र.वि. मूल-गा.५०६., पंचपाठ, (२६.५४११, ६-१६x४४-४६). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः येन प्रबोधपरिनिर्मित; अंतिः प्रकरण द्वाराधिकार. १२२३६.” पुष्पमाला सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०५. प्र.पु.-मूल-ग्रं. २९००., (२५.५४११, ४४२९-३१). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध कहितां सिद्ध; अंतिः जीव सदा सुखने अर्थिए. १२२३७." लघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सीहांणी, ले.- पं. दीपविजय गणि, प्र.वि. मूल-गा.३०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, ५४२९-३३). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ", मागु., गद्य, आदिः नमिअ कहेता नमस्कार; अंतिः रची श्रीहरिभद्रसूरिइ. १२२३८. नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १५६८, श्रेष्ठ, पृ. १६८, जैदेना., ले.स्थल. अणहिलपुरपाटण, ले.- हरिदास त्रवाडी, (२७४११, ९४३१-३८). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः भवे सिद्धि. नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः श्रीमेरुतुङ्गसूरीन्; अंतिः (१)तबुद्धैर्विशदाशयैः (२)सङ्ख्यातानन्तविचार. १२२३९.” कर्पूर प्रकरण व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले.- शेखर, (२८x११.५, १३ १८४४९-६३). पे..१. कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन , सं., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदिः कर्पूरप्रकरः शमामृत; अंतिः नेमिचरित्रका ., पे.वि. श्लो.१८१. पे.२. श्लोक सङ्ग्रह, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदि: #; अंति: #. १२२४०. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, प्र. ३८, जैदेना., ले.स्थल. कास्मीरपुर, ले.- गणि बुद्धमानविजय,प्र.वि. मूल-गा.९७. प्र.पु.-मूल-ग्रं. उभय-१२००., (२६.५४१०.५, २-३४२३-२६). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, गणि मानविजय, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व चेतना सहित; अंतिः अनन्तगुणो इति भाव. १२२४१.” नवतत्त्व प्रकरण सह बालावबोध, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(१)=१६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५२., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ३-६४३१-३८). नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं. For Private And Personal Use Only Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुविमल, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: जीवनुं स्वरुप ते; अंतिः कृतोयत्रः. १२२४२. चोवीसदण्डकसूत्र टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. द्वार-८ अपूर्ण तक है., (२५.५४११, १३४४५-५०). दण्डक प्रकरण- टीका, मु. रूपचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६७५, आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंति:१२२४३. लघुसङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८९७, श्रेष्ठ, पृ. ९७ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. २९७.. विशेष पाठ-कुछ पत्र (२६४११.५ १२ १५४३२-५१). " बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वनाथं फल; अंतिः संसारीक सर्वसुख पा .. १२२४४.” सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २७७., ( २६११, ७४३६-४२). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो अरिहन्त; अंतिः रत्न ए नान्दउ . दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि नमितं चउवीस अंति: एसा विनति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: चोवीस तीर्थकरोने अंतिः सन्देह पणे कीर माने. १२२४५. चौवीसदण्डक प्रकरण सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना ले ऋ अनङ्ग, प्र. वि. मूल-गा.३९.. - " (२६४११, ४-५४३७-४१) १२२४६. क्षेत्रसमास सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७ + १ ( ३७ ) = ३८, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २६२; प्र. पु. -मूल-ग्रं. १६०० टीका - अध्याय ६., (२५.५०११, १६-१७४४१-४६) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः सव्वनुमइक्क चित्ता.. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण- स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं. गद्य वि. १५वी आदि: अर्हमिति ब्रह्मपदं अंतिः माधाय " ; तत्सर्वम्. (+) " १२२४८.” क्षेत्रसमास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना., ले. पं. भक्तिविजय, प्र. वि. (२५४११.५, ३४२८-३२). टिप्पण युक्त १२२४७. क्षेत्रसमास सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना ले. स्थल भव्यनव्यनगरे, ले. गणि भावप्रमोद, गच्छा. आ. जिनचन्द्रसूरि ( खरतरगच्छ ), प्र. वि. मूल-गा. २६२ टीका - अध्याय ६. टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५५११, १०९५४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः सव्वनुमइक्क चित्ता.. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं. गद्य वि. १५वी आदि अर्हमिति ब्रह्मपदं अंति माधाय तत्सर्वम्. ; ३५१ For Private And Personal Use Only मूल-गा. २६४., लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमइं पसिद्धि. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः वीर श्रीमहावीर केहवा; अंतिः संशोधनीयं धीधनैः १२२४९. क्षेत्रसमास सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना. प्र. वि. मूल-६ अधिकार, गा. २६७. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ ११.५, ३-६४३७-४४). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्ध. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण टवार्थ वा. मेघराजजी मागु, गद्य, आदि वीर श्रीमहावीर केहवा अंतिः रंगमय प्रसिद्धि पामउ १२२५०. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १९ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. २६४., पंचपाठ (२६.५४११, ८ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १०x४५). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई __पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः वीरं श्रीवीर प्रणमी; अंतिः सर्वज्ञनी अनुमतिइ. १२२५१. सङ्ग्रहणी,पखी सूत्र व विचार प्रकरणादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. सोजत, ले.- पं. युक्तोदय (गुरु मु. क्षेमकीर्ति), (२६४११.५, १३४३७-३९). पे.१.बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ-१३आ), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३०७.. पे.२. पे. नाम. पाक्षिकसूत्र, पृ. १३आ-२३आ पाक्षिकसूत्र, प्रा., प+ग, आदिः तित्थङ्करे य तित्थे; अंति: जेसिं सुयसायरे भत्ति. पे.३. विचार प्रकरण, मु. महेश्वरसूरि शिष्य, प्रा., पद्य, (पृ. २३आ-२७अ), आदिः सिरिवद्धमाण सामिय; अंतिः रईया ___ बावत्तरी गाहा., पे.वि. गा.७८. पे.४. भारतोल सङ्ख्या , सं., गद्य, (पृ. २७अ-२७अ), आदिः इमपुष्फि भारचत्वारि; अंतिः १ धडी १० धडी १ भार. पे:५. साधारणजिन बल, प्रा., पद्य, (पृ. २७अ-२७अ), आदिः गुजा सतिहाउकागणि; अंतिः पणमामि जिण चन्दे., पे.वि. गा.६. १२२५२." विधिकन्दली प्रकरण सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. १२८-३(८२,८६,१०२)+१(८५)=१२६, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, ले.- पं. पोमा, प्र.वि. मूल-गा.६३., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६x१०.५, १५४५०-५५). विधिकन्दली प्रकरण, वा. नयरङ्ग, प्रा., पद्य, वि. १६२५, आदिः पणमिय वीरं सुमयं; अंतिः विहियं वीरमपुरे जयउ. विधिकन्दली प्रकरण-वृत्ति, वा. नयरङ्ग, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः समवसेयेति गाथार्थः. १२२५३. षडशत्त प्रकरण व पञ्चमी स्तुति, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४१०, १२४३७-४१). पे.-१. षष्टिशतक प्रकरण, आ. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-७अ), आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं., पे.वि. गा.१६२. पे.२. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः पञ्चानन्तक सुप्रपञ्च; अंतिः सिद्धायिका त्रायिका., पे.वि. श्लो.४. १२२५४. समोवशरण स्तोत्र सह बालावबोध व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., (२४.५४११, १५४३९ ४२). पे.-१. पे. नाम. समवसरण स्तव सह बालावबोध, पृ. १अ-८अ समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः थुणिमो केवलीवत्थं; अंतिः कुणउ सुपयत्थं. समवसरण स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) थुणिमो इति वयं एहवो (२) श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंतिः गाथानो अर्थ कह्यो., पे.वि. मूल-गा.२४. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदि: #; अंतिः#. १२२५५." क्षेत्रसमास सह टिप्पण, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(३)=१०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२६७., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पू.वि. गा.३७ से ६३ तक नहीं है., (२६४११, १२-१५४३८-५०). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसिद्धं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टिप्पण , सं., गद्य, आदिः न केवलंवीहं जयशेखरपद; अंति:१२२५६. सम्यक्त्वप्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५७१, श्रेष्ठ, पृ. १६६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-अध्याय-५., (२७४११, १५४५६-६०). For Private And Personal Use Only Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३५३ दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चन्द्रप्रभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः पत्तभवण्णवतीरं दुहदव; अंतिः सिवसुहं सासयं झत्ति. दर्शनशुद्धि प्रकरण-वृत्ति, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, वि. १२७७, आदिः यद्वक्त्रांभोजपवाप्य; अंतिः प्रकरणवृतितरिति. १२२५७. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना.,प्र.वि. गा.३७३, (२६४११, ९४३७-४१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२५८. सङ्घयणसूत्र सह टीप्पण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.- मु. अमरसी कानजी (गुरु मु. उत्तमविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.३६८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ११४३३-३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः#; अंति: #. १२२५९. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. गा.२९१, (२६४११.५, ११४२८-३३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२६०.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.- मु. जयविजय (गुरु ऋ. मेघा, तपगच्छ), पठ.- मु. नीतविजय (गुरु मु. जयविजय), प्र.वि. गा.३६८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १२-१३४३२-३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२६१.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. गा.२७६; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४१२, (२४.५४११, ११४२७ ३७). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः नन्दओजाजिणमयंलोए. १२२६२. सङ्ग्रहणी व गाथा, संपूर्ण, वि. १६८०, मध्यम, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अक्कबरपुर, पठ.- श्राविका नाहनीकी, (२६४११, ११४३८-४३). पे.-१.बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ-१७अ), आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं., पे.वि. गा.३११. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १७अ-१७अ), आदिः #; अंति:#. १२२६३." सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. सोजितपुर, पठ.- श्रा. हरीदास, प्र.वि. गा.३१०, संशोधित, (२५.५४११.५, १३४२९-३५). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२६४. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८९४, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. गोडेलग्राम, प्र.वि. गा.३२२, (२६४१२, १३४३३ ३७). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२६५.” सङ्ग्रहणिसूत्र सह टीप्पण, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२१२., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, ११४३९-४३). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः#; अंति:#. १२२६६.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७४०, मध्यम, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. जालाया, ले.- मु. अनोपसागर (गुरु मु. महिमासागर),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. गा.२७६, (२६.५४११, ११४३८-४१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताई; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२६७. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. सरवाड, ले.- ऋ. चतुर्भुज, प्र.वि. गा.३०६, (२६४११.५, ११-१२४३६-४१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. For Private And Personal Use Only Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: (+) ३५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२२६८. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १६९८ श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. प्र. वि. गा. २६८ (२६.५४११५, ११९३२-३६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२६९. सङ्ग्रहणी, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.- मु. कान्तिकुशल (गुरु पं. न्यायकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा.३१९ (२७४१०.५, ११-१४४३३-४१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२७०. सिन्दूरप्रकरण सह अवचूरि व श्लोकसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. २६, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. सारणिग्रामे, ले. - मु. लक्ष्मीदास, पठ.- मु. कान्हजी (गुरु मु. लक्ष्मीदास); मु. लक्ष्मीदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पंचपाठ, (२७.५४११.५, ८४१७-२० ). पे. १. पे नाम. सिन्दूरप्रकर सह टीका, पृ. १अ - २६अ सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर- टीका, सं. गद्य, आदिः पार्श्वप्रभोः क्रमयो: अंतिः ताथासौ सोमप्रभो जातः, पे.वि. मूल श्लो. ९५. " पे.-२. श्लोक सङ्ग्रह, सं. मागु., पद्य, (पृ. २६आ-२६आ), आदिः #; अंतिः#. १२२७१. सङ्ग्रहणी व कायस्थति प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. त्रंबातनगरे, पठ. - मु. अमृतविजय (गुरु मु. कीर्ति ), ( २६१२, १६x४१-४५). पे.-१. बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, (पृ. १अ - १२अ ), आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं, पे. वि. गा. ३६८. पे. २. कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि प्रा. पद्य (पृ. १२अ - १२आ), आदि जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पदेसु., पे.वि. गा.२४. १२२७२. सिन्दूरप्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८२६, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. स्थल. वैराटनगर, ले.- पं. नायकविजय गणि ( गुरु गणि सुबुद्धिविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल - श्लो. १००., त्रिपाठ, प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, ३-६४३६-४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि सं., पद्य, आदि सिंदूरप्रकरस्तपः अंति: सूक्तमुक्तावलीयम्. " सिन्दूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः पार्श्वप्रभोः; अंतिः वृत्तिमिमामकार्षीत्. १२२७३. सिन्दूर प्रकरण सह टीका व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९३५, जीर्ण, पृ. ४१, पे. २, जैदेना. ले. स्थल, पादलिप्तनगरे, ले. " ऋ. मयाचन्द, प्र. वि. त्रिपाठ, ( २६११.५, २-३X२७-३६). पे. १. पे नाम, सिन्दूरप्रकरण सह टीका, पृ. ११-४१अ सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदृरप्रकरस्तप: अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर- टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्वजिनं; अंतिः वृत्तिमिमामकार्षीत्., पे. वि. मूल - श्लो. १००. पे. २. जैन श्लोक सं., पद्य, (पृ. १अ-अ), आदि: # अंति: # (+) १२२७४. सिन्दूर प्रकरण संपूर्ण वि. १८७५ श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. स्थल, सरवाड़, ले. ऋ चतुर्भुज, प्र. वि. श्लो. १०१. " - अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ १२, १३३३-३६). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. १२२७५. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बीजक, पूर्ण, वि. १७५२ श्रेष्ठ, पृ. ३६-३(१३ से १५ ) - ३३, जैदेना. ले. मु. धीरविजय ( तपगच्छ), - प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पू. वि. गा. १४४ से १९६ तक नहीं है., ( २५x११, १५x४३). बृहत्सग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि १२वी आदि नमिठं अरिहन्ताई अंतिः जा वीरजिण तिथे. बृहत्सङ्ग्रहणी- बीजक, गणि हंसविजय, सं., गद्य, वि. १७२४, आदि: इहहि किल शास्त्रादौ; अंतिः विबुहेहिं For Private And Personal Use Only Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३५५ वायमाणमिणं. १२२७६.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७१८, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. षिरपुरी, ले.- मु. खेमकुशल (गुरु मु. रविकुशल), प्र.वि. गा.२७७, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १७४५३-५६). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२७७." सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना.,प्र.वि. गा.२७७, (२४.५४१०.५, १४-१५४५०-५८). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२७८. सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.३१९, (२६.५४१२, १३-१४४४७-५१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२७९.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.२७७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १३४५१). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२८०.” सङ्ग्रहणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. घोघाबंदिर, ले.- गणि प्रेमकुशल, पठ.- मु. __ हरजीवन; मु. कुंअरजी,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.२८८, संशोधित, (२६४११.५, १३-१४४४२-५०). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदि: नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. १२२८१. सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.९८., अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६४११.५, ३४२९-३५). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-बालावबोध , मागु., गद्य, आदिः सिन्दूरनो प्रकर; अंतिः प्रत्यक्ष वर्णवी ते. १२२८२." सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले.- पं. गुलालविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.१००., (२५४११, ६४३५-४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः महतां मण्डनमिदं. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पार्श्वेप्रभोः क्रमय; अंति: माणसने अलङ्कारण एहो. १२२८३. सिन्दूर प्रकरण सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- उपा. विमलविजय, प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. टबार्थ गा.५० तक लिखा है., (२५४११.५, ८-९x४४-४९). पे.-१. पे. नाम. सिन्दूरप्रकर सह टबार्थ, पृ. १अ-११आ, संपूर्ण सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः स जानाति जनाग्रतः. सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदिः सिन्दूरनो प्रकर समुह; अंतिः-, पे.वि. मूल-श्लो.१०८. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११आ, संपूर्ण), आदि: #; अंतिः#. १२२८४." सिन्दूर प्रकरण सह विवरण, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- वा. केसरविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.९९., (२६४११.५, १५-१७४४९-६०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. सिन्दूरप्रकर-बालावबोध व कथा, पाठक राजशील, सं.,मागु., गद्य, आदिः शारदाचरणयुग्ममतीतपाप; अंतिः पाठकराजसीलेन. १२२८५. सिन्दूर प्रकरण व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. ३८, पे. २, जैदेना., ले.- मु. भागचन्द, (२५.५४११, ४४२४ २९). पे:१. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-३६अ), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः महतां मण्डनमिदं., For Private And Personal Use Only Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.वि. श्लो.१००. पे.२.जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ३६अ-३८अ), आदिः#; अंति:#. १२२८६." सिद्धपञ्चासिका सह टबार्थ व सिद्धदण्डिका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ९, पे. २, जैदेना., ले.- मु. नित्यविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ४-५४३५-४१). पे.१. पे. नाम. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्ध प्रते पाम्या; अंति: परोपकारने अर्थे., पे.वि. मूल-गा.५०. पे.२. सिद्धदण्डिका स्तव, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८अ-९आ), आदि: जं उसहकेवलाओ अन्तमु; अंतिः दितु __ सिद्धि सुहं., पे.वि. गा.१३. १२२८७." आगमिकवस्तुविचारसार व सूक्ष्मार्थविचारसार, संपूर्ण, वि. १५४८, श्रेष्ठ, प्र. ५, पे. २, देना., ले.स्थल. चामुंडसर, ले.- मु. रत्नसागर(खरतरगच्छ), प्र.वि. अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४११, १६x६३-६५). पे.१.पे. नाम. आगमिकवस्तुविचारसार प्रकरण, पृ. १अ-२आ षडशीति प्राचीन कर्मग्रन्थ, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः निच्छिन्नमोहपासं; अंति: गुणन्तु जाणन्तु., पे.वि. गा.८६. पे.२. पे. नाम. सूक्ष्मार्थविचारसार प्रकरण, पृ. २आ-५आ सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, गणि जिनवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः सयलन्तरारि वीरं; अंतिः विवोहितु सो हिन्तु., पे.वि. गा.१५७. १२२८९. दोधक सूक्तावली, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६-३(९,१२,१४)=१३, जैदेना., प्र.वि. गा.७७२, (२६४११, १८-२०४५३ ६०). सूक्तावली सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, आदिः कीजइ धर्म सुहामणउ; अंतिः मन्दिरि मङ्गल चार. १२२९२. जातकराजपद्धति, पूर्ण, वि. १९वी, जीर्ण, पृ. ७२-३(३१,६४,६६)+४(१८,२२,४९,५८)=७३, जैदेना., प्र.वि. १४ अधिकार, (२६.५४११, १३४४४-५८). जातकराजपद्धति, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, आदिः श्रीमद्विद्यागुरुं; अंतिः प्राप्ताधिकार:स्फुटं. १२२९३. सुक्तावली सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, प्र.वि. मूल-श्लो.३१., (२५४११.५, ४४३२-३६). सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः सकल कुशलवल्ली; अंतिः समं धमेहिं उजमह. सूक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सकल क० समस्त कुसल; अंतिः करवाने उजमाल थावउ. १२२९९. सुभाषित सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३३-१(१)=३२, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२६४११, १७४४७-५३). सूक्तमुक्तावली, सं., , आदि:-; अंतिः१२३००. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. ६८ वी पाट तक (+७२ वी पाट तक), (२५.५४१०.५, १४-१५४३५-३८). पट्टावली खरतरगच्छीय , सं.मागु., गद्य, आदिः गुब्बरग्रामवासी; अंतिः सङ्घ जयवन्तो वर्त्तउ. १२३०१. पट्टावली तपागच्छीय, संपूर्ण, वि. १४९२, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४८९, (२६४११, १५-२१४५६-६५). गुर्वावली, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., प+ग, आदिः जयश्रियं रातु; अंतिः श्रीसङ्घकल्पद्रुमः. १२३०२. पट्टावली खरतरगच्छीय, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५४११, १२४३६ ३९). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं.,मागु., गद्य, आदिः वीरे मोक्ष गते संवत; अंति: For Private And Personal Use Only Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ " १२३०४. पट्टावली सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना. ले. गणि शिवविजय (गुरु गणि कल्याणविजय, तपागच्छ), प्र. वि. मूल-गा. २१. प्रथमादर्श पर से सम्यक विचारकर लिखी गयी प्रत. पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, त्रिपाठ अंतिम कुछ पत्र, (२५.५x११, १४-१६x४२). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि सिरिमन्तो सुहहेउ अंति: ( १ ) दिन्तु मे भदं (२)णो दिन्तु सिद्धिसुहं. , " तपागच्छ पट्टावली- स्वोपज्ञ वृति, उपा धर्मसागरगणि सं. गद्य, आदि सिरिमन्तोत्ति यत्तदो अंतिः (१) मम भद्रं प्रयच्छन्तु (२) गुरूणामनुशिष्टिरिति . १२३०५. पट्टावली सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२७११.५, १०-११x४६-५१). तपागच्छ पट्टावली, उपा धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: # अंति#. तपागच्छ पट्टावली-वृत्ति, सं., गद्य, आदि: गुरु परिपाट्या; अंतिः चिरं सङ्घहितकर्ता. १२३०६. तपागच्छ पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., प्र. वि. संबद्ध-गा. २., त्रिपाठ, (२५x११, ११४३८-४१), Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तपागच्छ पट्टावली, वा. गुणविजय, संबद्ध, प्रा., पद्य, वि. १७वी, आदि: सिरिविजयसेणसूरिपट्टे, अंतिः दिन्तु मे भद्दं. तपागच्छ पट्टावली-टीका, सं., गद्य, आदिः अथाग्रे तपा पट्टावली; अंतिः बहुशो दृष्टमिति. पाट तक, (२७१२, १२ - १८४३९-४६ ) . पट्टावली, मागु, गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामी चोथा अंतिः करीए ने धरमकरणी करी. ; १२३०७. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८८९, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना ले. स्थल, सीरोही ले. पं. खुसालविजय गणि, पृ. वि. ६९ वी " , १२३१०.” तपागच्छीय पट्टावली, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रतिलेखक " द्वारा अपूर्ण., (२५.५४११, १३४३३-३८). पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः कल्याण कारणं शुद्धं; अंतिः १२३११. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, ले. स्थल, शांतलपुर (२६.५४१२, १६-१८४४३-४८)पट्टावली, मागु., गद्य, आदि: वर्द्धमानस्वामी वर्ष अंतिः दयासूरि चिरञ्जीवी. ३५७ १२३१२. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. पं. हर्षविजय, (२५.५x१२, १७-१८४४१-४६). पट्टावली, मागु, गद्य, आदिः कर्द्धमानस्वामी वर्ष अंति दयासूरि चिरञ्जीवी. १२३१३. पट्टावलीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. ले. स्थल श्रीपुर बंदिर ले पण्डित ; " देवकुशल (गुरु मु. रविकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - गा.२०. यह प्रत बालावबोधकार द्वारा लिखी गई है., कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित, ( २६.५X११.५, १४-१५९४५). तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि सिरिमन्तो सुहहेउ अंतिः संपइ तह विजयरयणगुरु. तपागच्छ पट्टावली-बालावबोध, पण्डित देवकुशल, मागु., गद्य, आदिः ए श्रीपजूसण कल्प; अंतिः भद्रं दिशतु ते गुरवः. १२३१४.” पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. ६५ वी पाट तक, (२५.५४११, १४-१५४३५-५२). " " For Private And Personal Use Only पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः श्रीजीनसासन; अंतिः विजयजिणेन्द्रसूरि ६६. १२३१५. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना. (२६x१२, १२-१३x४६-५४). i पट्टावली खरतरगच्छीय. वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं अंतिः जीर्णगडे० नवासी. १२३१६. पट्टावली, संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. (२६४१२, १३४३९-४५). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदि: मज्झं विसय कसाया०; अंतिः विजयजिणेन्द्रसूरि ६६. १२३१७. पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२७x१२, १६-१८×३३). Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पट्टावली, मागु., गद्य, आदिः वर्द्धमानस्वामी वर्ष; अंतिः दयासूरि चिरञ्जीवी. १२३१८." पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-गा.३+१., संशोधित, त्रिपाठ, (२५.५४११.५, १४२१-२६). तपागच्छ पट्टावली, वा. गुणविजय, संबद्ध, प्रा., पद्य, वि. १७वी, आदिः सिरिविजयसेणसूरिपट्टे; अंतिः दिन्तु मे भदं. तपागच्छ पट्टावली-विवरण, सं., गद्य, आदिः अथ प्राक्तनपट्टावली; अंतिः संबधमिमं लिलेख मुदा. १२३१९. उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५७५, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (६४९) जब लग मेरू थीर रहे; (६५०) मङ्गलं लिखितार्थ च, (२५.५४११, १३४४२-४३). उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचन्द्र, सं., पद्य, आदिः वन्दित्वा स्वगुरुन्; अंतिः कथेयं नन्दितश्चिरम्. १२३२०.” अगडदत्त चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., (२६४१०.५, १३४४५-४७). अगडदत्त चरियं, गणि देवेन्द्र, प्रा., गद्य, ईस. ११वी, आदिः सुत्ते सयावी पडिबुद्; अंतिः परिपालणुज्जओ त्ति. १२३२१. द्रुपति व आदिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पे. २, देना., ले.- वा. ज्ञानविशाल (गुरु गणि गुणरङ्ग), (२६४११, १४-१५४४६-४८). पे.१. द्रौपदी चरित्र, सं., गद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः अतीताद्वायं चम्पायां; अंतिः विदेहे माझं याता. पे.२. आदिजिन त्रयोदशभव वर्णन, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-१०आ), आदिः धण मिहुण सुर; अंतिः संवेगो नाण दिखाय. १२३२२. चन्दनृप चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९०, जैदेना., ले.- गणि लब्धिविजय (गुरु गणि गुणहर्ष), प्र.वि. ४ अधिकार, श्लो.९६६, (२५४११.५, १२४४१-४३). श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि, सं., पद्य, वि. ५९८, आदिः ॐ ध्यात्वा श्रीजिना; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. १२३२३. उत्तमकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४१०.५, १८४४८-५२). उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, आदिः भक्त्या वस्त्राणि; अंतिः मुक्तिं यास्यति. १२३२४. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-२, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, जीर्ण, पृ. ७६, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३३००., (२६४१०.५, १५४४५-४७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३२५." जम्बूस्वामी कथा, संपूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१०.५, १५ १८४४६-५०). जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, आदिः सप्रभावं जिनं; अंतिः भवन्ति भविनां सदा. १२३२६. जम्बूस्वामी कथा, संपूर्ण, वि. १६५२, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- श्रा. भीमजी, (२५४११, १६४५४-५५). जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, आदिः सप्रभावं जिनं; अंतिः भवन्ति भविनां सदा. १२३२७. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.- गणि उत्तमविजय (गुरु गणि सुबुद्धिविजय), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२५.५४१२, ७X४१-४४). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषइं ते; अंतिः अर्थ सम्पूर्ण थयो. १२३२८. चेतनमोहकर्म चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०७, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.२९६, पू.वि. गा.२९६., (२५.५४११, १७४५४ ५७). चेतन वृतान्त, श्रा. भगवतीदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३२, आदिः जिनचरण प्रणाम करि; अंतिः भगवतीदास० कही अनादि. १२३३०. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. रानेरबंदिर, ले.- गणि शिवविजय (गुरु For Private And Personal Use Only Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३५९ आ. विजयानन्दसूरि), प्र.वि. श्लो.५०८, (२६४११, १४४४३-४५). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोत्पाठक राजवल्लभः. १२३३१. चित्रसेनपद्मावती कथानक, संपूर्ण, वि. १७४८, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. राजनगरे, ले.- गणि राजविजय (गुरु पं. जिनविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.५०५, (२५.५४१०, १३-१४४४३-४५). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः पाठकराजवल्लभः. १२३३२." चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५०६, संशोधित, (२५.५४११.५, ११४३४-३६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोत्पाठक राजवल्लभः. १२३३३. चन्द्रद्योत चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पत्तणनगर, ले.- मु. विनयसागर (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि), पठ.- साध्वीजी शकुशललक्ष्मी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.२५५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (५३२) तिलात् रक्षे जला रक्षेत्; (६०५) भग्न पुष्टि कट निवा, (२७४११, १३४४५-५१). चन्द्रद्योत चरित्र, सं., पद्य, आदिः कल्याणकलशं कम्र; अंतिः द्योतस्य केवलिनः. १२३३४. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-२,३, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. पर्व-३ के सर्ग-८ के श्लो.७१ तक है., (२६.५४११, १७-१९४४९-५९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३३५.” जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. ५३, जैदेना., प्र.वि. मूल-२१उद्देश., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७X१२, ६४३५-३९). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ते कालने विषइं ते; अंतिः प्रांणी मोक्षे जाई. १२३३६. जम्बूअध्ययन सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., प्र.वि. मूल-२१उद्देश., (२६४११.५, ६x४१-४५). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ते कालने विषई ते; अंतिः आराधक जीव कह्यां. १२३३७. चन्द्रप्रभुजिन चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १००, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६x११.५, ५४३५-३६). चन्द्रप्रभ चरित्र, आ. देवेन्द्रसुरि, सं., गद्य, वि. १२६४, आदिः दृष्टोपि ह्रष्टजनलोच; अंतिः चन्द्रप्रभ चरित्र-टबार्थ, पं. रुपविजयजी , मागु., गद्य, वि. १८९०, आदिः वन्दे श्रीमत्पार्श्व; अंति:१२३३८. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-८, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४, जैदेना., प्र.वि. चित्र-रंगीन-प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत-प्रथम पत्र, (२६.५४११, १५४५३). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३३९. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-८, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, जीर्ण, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. गंधार, लिखवा.- मु. सोमसुन्दर,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (६५३) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा, (२६.५४११, १७४५५-५९). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३४०. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-३, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १६९५., (२६४१०.५, For Private And Personal Use Only Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १५४५२-५७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३४१. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-पर्व ७, प्रतिपूर्ण, वि. १६८७, श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३७१४., (२६४११, १५४५०-५१). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३४२." त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-८, प्रतिपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. १५२, जैदेना., ले.स्थल. मंगलपुर, ले.- गणि सूरकुशल (गुरु पं. तत्त्वकुशल गणि, नागपुरीय तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १३४४४-४८). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३४३. चित्रसेनपद्मावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. श्लो.५१२, (२५४११, १३४३७-३९). सेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः श्रीमहिचन्द्रसूरी १२३४४. सुभाषितावली, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.स्थल. सवाईजयपुर, ले.- ऋ. रूपचन्द्र (गुरु ऋ. ईश्वरदासजी), पठ.- यति रामदास जती,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-श्लो.३९४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४१०.५, ९४३५-३८). सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदिः जिनाधीशं नमस्कृत्य; अंतिः तीर्थं हि जीयात्. १२३४५.” जम्बू अध्ययन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. २१उद्देश, संशोधित, (२४x१०.५, १५४३९-४७). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक , गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. १२३४६." जम्बूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. फलोद्धि, ले.- ऋ. रतनचन्द, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-बीच का एक पत्र, (२३४१०.५, १४४५३-५७). जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, आदिः सप्रभावं जिनं; अंतिः भवन्ति भविनां सदा. १२३४७. पट्टावली खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., पू.वि. ८० वी पाट तक, (२१४१०, १०x२८-३३). पट्टावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३०, आदिः प्रणिपत्य जगन्नाथं; अंतिः पत्तनेस्वर्गभाज. १२३४९. रुपसेन चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., ले.स्थल. जैपुरनगर, प्र.वि. मूल-श्लो.२२१., दशा वि. विवर्ण-अक्षरों की स्याही फैल गयी है-अल्प, (२४४११, ७४३८). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः आरोग्यभाग्याभ्युदय; अंतिः सुकृताय कृता कथा. रूपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ, गणि ऋद्धिविजय, मागु., गद्य, आदिः शरीर नीरोग पामे सो; अंतिः विजयेन० परोपकारायेति. १२३५०. वसुदेवहिण्डी व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. राउद्रह, ले.- उपा. ___कनकशेखर, (२२.५४११.५, १४४३५-३९). पे.-१. वसुदेवहीण्डी, आ. गुणनिधानसूरि, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः तेणं कालेणं तेणं; अंतिः गुणनिहाणसूरीणकएकहिआ. पे.२. श्लोक सङ्ग्रह-, सं., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः#; अंतिः#. १२३५१. मुनिपति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७६, जैदेना., ले.- ऋ. वालचन्द, प्र.वि. मूल-गा.६४७. प्र.पु. मूल-ग्रं. २५००., प्र.ले.श्लो. (२३) जब लग मेरु अडग है; (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा; (६३७) जलां रक्षे थलां रक्षे; (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२४.५४११.५, ५-६४३१-५४). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदि: नमिउण वद्धमाणं चउव्व; अंतिः रम्यं हरिभद्दसूरिहिं. मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मु. सुर्यमल्ल-शिष्य, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनें; अंतिः शिष्येण बुद्धिभिः. For Private And Personal Use Only Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३६१ १२३५२. यशोधर नरेन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ६२+१(४८)=६३, जैदेना., (२५४१२, ११४३७-३८). यशोधर चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८३९, आदिः सकलसुरनरेन्द्र श्रेणि; अंतिः सकलोपि तेन जनः. १२३५३. जम्बूस्वामी चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रेष्ठ, पृ. १०४, जैदेना., ले.स्थल. गाध्रांणाग्रामे, ले.- पं. गोतम, (२५४१०.५, ९४२७-२९). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मागु., गद्य, आदिः एही ज जम्बूद्वीपे; अंतिः भवति भविनां सदा. १२३५४. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व-१०, प्रतिअपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-१३ ___ के १४६ श्लोक तक है., (२६४११.५, १७४५६-६०). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३५५." दुरिअरयसमीर सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,ले.स्थल. जावालपुर, ले.- मु. हीराराज, प्र.वि. मूल-गा.४४. प्र.पु.-टीका-ग्रं. ६००., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५.५४११, १७X४४ ४६). दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दुरिअरयसमीरं मोह; अंतिः सया पायप्पणामो तुह. दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, आदिः नत्वा वीरजिनेन्द्रं; अंतिः तस्य उच्छेदन विनाशकः. १२३५६." पद्मनी चउपई, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २१-१(१३)=२०, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-३ ढाल ३९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. ढाल ३९ गा.८१६.\ ग्रं. ग्रं. ११२५ श्लोक, (२५४१०.५, १७४४२-४५). गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., पद्य, वि. १७०७, आदिः श्रीआदिसर प्रथम; अंतिः सील सफल सुरकन्द. १२३५७. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, प्रतिपूर्ण, वि. १६७९, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३४६०., संशोधित, (२५.५४११, १५४४९-५२). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३५८. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-परिशिष्टपर्व, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा , (२६.५४११, १४-१५४४३-४४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३५९." त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र- परिशिष्टपर्व, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ३७६०., पू.वि. स्थविरावली चरित्र है., (२६.५४१०.५, १६x४८-५७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंतिः१२३६०. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९३-२८(१ से २१,२७ से ३३)=६५, जैदेना., पू.वि. परिशिष्ट पर्व स्थाविरावली तक है., (२५४११, १५४४६-४७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१२३६१. पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १६००, (२६४११.५, ९४३०-३२). पार्श्वजिन चरित्र, सं., गद्य, आदिः पार्श्वनाथः भवपापताप; अंतिः पश्चात् मुक्तिं पायो. १२३६२. पार्श्वनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १६८१, श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना., ले.- गणि देवविजय (गुरु पण्डित सङ्घविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. सर्ग-८, ग्रं. ६२००, (२६४११, १३४३४-४१). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदिः नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः सहस्राण्यनुष्टुपां. १२३६३." पार्श्वनाथ चरित्र, पूर्ण, वि. १५१५, श्रेष्ठ, पृ. १८७-१(३)=१८६, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-८, ग्रं. ६०७४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १३४४८-५०). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदि: नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः सहस्राण्यनुष्टुभाम्. For Private And Personal Use Only Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १५). ३६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२३६४. पार्श्वनाथ चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ४०७+१(३७५)=४०८, जैदेना., ले.स्थल. अर्जुनपुर, ले.- मु. रत्नविजय (गुरु गणि हंसविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-सर्ग-८ मूल-ग्रं. ६११५., (२६.५४११, ६x४६-४८). पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., पद्य, वि. १३१२, आदिः नाभेयाय नमस्तस्मै; अंतिः सहस्राण्यनुष्टुभाम्. पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., गद्य, वि. १८००, आदिः प्रणिपत्य जिनान; अंतिः श्लोकमान कह्यो. १२३६५." पाण्डव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१५, जैदेना., पृ.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. अंतिम सर्ग अपूर्ण तक है., (२६४११.५, ११४४१-४३). पाण्डव चरित्र, गणि देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः ॐ नमो वृषभस्वामि; अंति:१२३६६." पाण्डव चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना., पू.वि. प्रारंभ के पत्र हैं. सर्ग-५ का श्लो.१४ तक है., (२६४११, १५४२५-६२). पाण्डव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदिः श्रियं विश्वत्रय; अंति:१२३६७." पाण्डव चरित्र, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. सर्ग ३ तक है., (२६.५४१०, १५४४४-४५). पाण्डव चरित्र, सं., पद्य, आदिः आसीदथाविःकृतभूरि; अंति:१२३६८.' पृथ्वीचन्द्रनरेन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १५५६, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. २१००, संशोधित, (२६.५४११, १५४५२ ५४). पृथ्वीचन्द्रनेरन्द्रचरित्र, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहीपाला या विश्व; अंतिः चारु निर्मितं. १२३६९. प्रद्युम्नचरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६३+३(४२,४२,४२)=१६६, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१८, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. १८ सर्ग, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२८x११, १३४४१-४४). प्रद्युम्न चरित्र, मु. रत्नसिंह, सं., पद्य, वि. १६७१, आदिः श्रीमन्नाभिभवः स्वाम; अंतिः चरितं रचितं सुचारु. १२३७०. प्रद्युम्न चरित्र, संपूर्ण, वि. १७१७, श्रेष्ठ, पृ. १०७, जैदेना., ले.स्थल. भालुग्राम, ले.- गणि चतुरचन्द्र (गुरु गणि माणिक्यचन्द्र),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. सर्ग-१७, ग्रं. ३५६९, (२५४११, १४-१६४३४-३६). प्रद्युम्न चरित्र, उपा. रत्नचन्द्र, सं., पद्य, वि. १६७४, आदिः राज्यलक्ष्मीाय; अंतिः वर्णाः षोडशचाधिकाः. १२३७१. प्रद्युम्न चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-९ का श्लो.३०३ तक है., (२६.५४१०.५, १५-१६४३९-५०). प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५३३, आदिः श्रीमन्तं सन्मतिं; अंति:१२३७२. भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१२, ६४३४-३६). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जम्बूद्वीपे; अंतिः भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु., गद्य, वि. १८०१, आदिः श्रीमद्देवगुरुं; अंतिः१२३७३. भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., ले.स्थल. लींबडी, ले.- गणि हितविजय (गुरु पं. दीपविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. टबार्थ-ग्रं.५०००., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ६४३९). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जम्बूद्वीपे; अंतिः नरेन्द्रर्षिः केवली. भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु., गद्य, वि. १८०१, आदिः अस्ति क० छै एहीज; अंतिः तत्वहंसेन धीमता. १२३७४. शत्रुञ्जय माहात्म्य सर्ग-२, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., (२५.५४११, १५४४६-४८). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंति:१२३७५.” महावीर चरित्र, संपूर्ण, वि. १५५२, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. वीरमग्राम, प्र.वि. श्लो.२५३, अन्वय दर्शक अंक For Private And Personal Use Only Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: युक्त पाठ, ( २६ ११, १७४५९-६१ ). दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान अंतिः शर्मप्रदायके. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३७६. भोज चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७०, जैदेना, पठ. साध्वीजी समति ( गुरु साध्वीजी रत्न). प्र. वि. ५प्रस्ताव, ग्रं. १८१६, (२६×१०, ११४३७-४१ ). भोज चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि अश्वसेनं जिनं नत्वा अंतिः कौतुकं मानवसंस्थितः (+) 1. भोजचरित्र सह टवार्थ पूर्ण वि. १९वी मध्यम, पृ. १०७-१ (२१) = १०६. जैदेना. प्र. वि. मूल-५ प्रस्ताव, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६ १२, ७४३९-४५) . भोज चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि अश्वसेनं जिनं नत्वा अंतिः कौतुकं मानवसंस्थितः. भोज चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आश्वसेन राजानो पुत्र; अंतिः कहेता रह्युं छे. १२३७८. भुवनभानुकेवली चरित्र, संपूर्ण वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ५४ जैदेना. ले. मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), - (२५.५४१२, १८४५१-५४). भुवनभानुकेवली चरित्र - बालावबोध, मु. हरिकलश, मागु., गद्य, आदि: सिरिवीरं नमीअ जिणं; अंतिः ज्ञानवृद्धि हुई. १२३७९. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र. वि. गा. ६२९, ( २६.५x१०.५, १७४६२-६५). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदिः नमिऊण महावीरं चउव्वि; अंतिः रम्यं हरिभद्दसूरिहिं. १२३८०. मलयसुन्दरी चरित्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ९१ जैदेना. प्र. वि. ४प्रस्ताव, ग्रं. २४३० (२००१० १२४३९-४३) (+) मलयासुन्दरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः चतुरङ्गो जयत्यर्हन्; अंतिः मयेदं तथा. ३६३ १२३८१. मृगावती चरित्र व प्रियमेलक चौपाई, अपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. हाजीषानदेश, ले. मु. मेरु, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४१०.५, १५४५१-५५). पे.-१. मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६८, (पृ. १अ - २२आ, संपूर्ण), आदिः समरु सरसति सामिणी: अंतिः वृद्धि सुजगीसा थे. पे. वि. खण्ड-३. " पे. २. प्रियमेलक चीपाई दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, पद्य, वि. १६७२ (पृ. २२-२२आ-, अपूर्ण), आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति:-, पे. वि. प्रथम पत्र है. १२३८२. मलयसुन्दरी चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१-१३ (१ से २, १७ से २७ ) = २८, जैदेना., प्र. वि. ४प्रस्ताव, (२६.५४११, १७४५९-६५). मलयासुन्दरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः त्रिंशताभ्यधिकानि च . For Private And Personal Use Only १२३८३. मलयासुन्दरी चरित्र, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना ले . खेता, पठ. ऋ. मणोर, प्र. वि. गा. ८०३. (२६.५४१०.५ १३४३९-४२). मलयासुन्दरी चरित्र, मु. हरिराय, प्रा., पद्य, आदिः पणयपयकमलसुरयणां; अंतिः पडलए सुखं चऊहिं करो.. १२३८४. मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., प्र. वि. अध्याय - ५, ( २६.५x११.५, १८-१९x४९-५१). मृगावती चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., गद्य, आदिः जयन्ति वर्धमानस्य; अंतिः चिरमस्तु कण्ठे सतां . १२३८५. मुनिपति चरित्रवार्तिक कथा संपूर्ण वि. १६८५, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना. ले. स्थल. जीर्णदुर्ग, ( २६.५४११, २१-२२४५७ ५९). मुनिपति चरित्रवार्तिक कथा, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः जम्बूद्वीपने विषें; अंतिः बोलाणु हुइ ते खमज्यो.. " १२३८६. मुणिपति चरित्र का अनुवाद, संपूर्ण वि. १७०२ श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना ले. स्थल. किसनगढ़, ले. मु. मानविजय (गुरु मु. कपूरविजय, तपागच्छ), प्र. वि. प्रारंभ में मात्र मूल की पहली गाथा दी गयी है., ( २६ १०.५, १६x४४-५७). मुनिपति चरित्र- अनुवाद, मागु, गद्य, आदि एह भरतक्षेत्रमाहि अंतिः बोलाण० ते खमाविज्यो. Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ३६४ - (+) १२३८७, मुनिपति चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १७७२ श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना. ले. स्थल राजनगर, ले. मु. राजविजय (गुरु पं. प्रेमविजय) प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल-गा.६६१ टिप्पण युक्त विशेष पाठ (२६.५४११.५, ६४३७-४२). .. मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदिः नमिऊण महावीरं चउव्वि; अंतिः रम्यं हरिभद्दसूरिहिं. मुनिपति चरित्र - टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीजिनं अंतिः नामि सूरि गच्छनायकइ. १२३८८. भोजराजा चरित्र सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना, ले. स्थल वढवाण, ले. मु. पद्मविजय, प्र. वि. मूल - ५ प्रस्ताव., ( २६ ११, ७५१). भोज चरित्र पाठक राजवल्लभ, सं., पद्य, आदि: अश्वसेनं जिनं नत्वा अंतिः कौतुकं मानवसंस्थिताः. " भोज चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आश्वसेन राजानो पुत्र अंतिः कहेता रह्युं छे. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२३८९. पाण्डव चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. २७९, जैदेना., ले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय ), प्र. वि. सर्ग- १८, प्र.ले. श्लो. (४०६) मृषकानलचौरेभ्यः (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा: (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६४११.५. १३४३४). पाण्डव चरित्र, गणि देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६०, आदिः ॐ नमो वृषभस्वामि; अंतिः शोध्यं तदेतद् बुधैः. १२३९०. श्रीपालनरेन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., प्र. वि. गा. १३४१, ग्रं. १६४४ (२६.५x१२, १०३७-३९). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. १२३९१. सुपार्श्वनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १६६८, श्रेष्ठ, पृ. १०३ - १ ( ३३ ) = १०२, जैदेना., ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. शङ्कर जोसी, प्र. वि. प्रतिलेखक के गा.४२०१ से लिखा है. (२६४११, १३४४८-५१). सुपासनाह चरिअं गणि लक्ष्मण, प्रा., पद्य, वि. ११९९ आदि अंति सोहेयव्वं च सुवणेहिं. (+) १२३९२. रत्नशेखर, दानादि विषयक अष्ट व अञ्जनासुन्दरी कथा संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. अहमदाबाद, ले. - गणि हर्षसुन्दर, ( २६.५x११, १५×५६-५८). पे. १. रत्नशेखरराजा कथा, सं., गद्य (प्र. १अ - १०अ संपूर्ण ), आदि अत्रेव जम्बूद्वीपे अंतिः गतो रत्नशिखोराजा. पे. २. दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा. सं., गद्य (पृ. १०आ-२०अ पूर्ण) आदि वसही सयणासण भत्तपाणे: अंतिः तृतीयभवे मोक्षः. पे. ३. अंजनासुन्दरी हनुमान कथा, सं., पद्य, (पृ. २०४-२३आ, संपूर्ण), आदि वैत्ताढ्वादित्यपुरे अंतिः शीलेयत ध बुधाः., पे.वि. श्लो. १२४. १२३९३. अष्टदानउदाहरण कथानक, संपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल राजनगरे, ले. उपा. मोहन (गुरु उपा. जयसोम, खरतरगच्छ.), गच्छा. - गच्छाधिपति जिनचन्द्रसूरि (बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६×१०.५, १५X३९-४१ ). दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा. सं., गद्य, आदि वसही सयणासण भत्तपाणे अंतिः तृतीयभवे मोक्षः १२३९४. विद्याविलास, पञ्चाख्यान व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., ( २६११, १४४५१-५४). पे.-१. विद्याविलास कथानक पुण्यप्रभावे, सं., गद्य, (पृ. १अ -६अ ), आदि: धर्माज्जन्मकुले शरीर; अंतिः मुक्तिं यास्यतः. पे. २. पञ्चाख्यान कथानक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ६अ ९अ), आदिः यस्य बुद्धिर्बल अतिः क्रीडाविनिविमले जले. पे. ३. श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ९अ - १०आ), आदि #, अंतिः # १२३९५." सम्यक्त्वकौमुदी कथानक, संपूर्ण वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३९ जैदेना. प्र. वि. प्रसिद्ध व्यक्ति द्वारा लिखित प्रत, " संशोधित पानी से (२७.५४१०.५, १३४५४-५८) " सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः धर्मो विधीयतां. (+) १२३९६. सप्तव्यसन कथा व श्लोक, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७२-११(१ से १०, ५८ ) + १ (३५) = ६२. पे. २, जैदेना., (२८४११, १२४४३-४७). For Private And Personal Use Only Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३६५ पे.१. सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., पद्य, वि. १५२६, (पृ. -११अ-७२अ, अपूर्ण), आदिः प्रणम्य श्रीजिनान्; अंतिः-, पे.वि. प्रारंभ व बीच के पत्र नहीं है. सर्ग-१ का श्लो.८० तक नहीं है. सर्ग-७. पे.२. ज्योतिष सङ्ग्रह , मागु., . (पृ. ७२अ-७२अ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः # १२३९७." क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-६ अधिकार., गा.२६५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंतिम पत्र नही हैं (प्र. पु. अधूरी है।), (२९x१२, २-३४३४-३७). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदि: वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमई पसिद्धिं. लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ , वा. मेघराजजी, मागु., गद्य, आदिः वीर श्रीमहावीर केहवा; अंतिः रंगमय प्रसिद्धि पामउ. १२३९८.” मृगावती चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, प्र.वि. अध्याय-५, संशोधित, (२८x११.५, १३४५४-५७). मृगावती चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., गद्य, आदिः जयन्ति वर्धमानस्य; अंतिः चिरमस्तु कण्ठे सतां. १२३९९." पृथ्वीचन्द्रनरेन्द्र चरित्र, संपूर्ण, वि. १५३५, मध्यम, पृ. ३४, जैदेना., ले.स्थल. अहम्मवादनगरे, ले.- पं. सत्यराज (गुरु आ. पुण्यरत्नसूरि, पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. १८४६, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, संशोधित, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२८x११, १७४४८-५१). पृथ्वीचन्द्र चरित्र, पं. सत्यराज, सं., पद्य, वि. १५३४, आदिः श्रीनाभेयोसमश्रेयोतन; अंतिः न प्रमाणमिह निश्चितं. १२४००. समवसरण प्रकरण व प्रजा प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., (२७.५४१२.५, १२४३७-४२). पे:१. समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः थुणिमो केवलीवत्थं; अंतिः कुणउ सुपयत्थं., पे.वि. गा.२५. पे..२. पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, (पृ. २आ-५अ), आदिः सिरिवद्धमाणतित्था; अंतिः अप्पवगाफलो एसो., पे.वि. गा.५६. १२४०१.” भाव प्रकरण सह टबार्थ व गुणस्थानक यन्त्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- देवकृष्ण वेलजी, (२८x१२, ३४२७-३०). पे..१. पे. नाम. भाव प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-९आ भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद; अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः आनन्दइ करि भरिय कहता; अंतिः अपूर्व गाथा कही.,पे.वि. मूल-गा.३०. पे.२. जैन यन्त्रसङ्ग्रह', मागु., यंत्र, (पृ. १०अ-१०अ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गुणस्थानकनु सामान्य यंत्र. १२४०२. नवतत्त्व सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. वीरपुर, प्र.वि. मूल-गा.५७., (२७.५४११.५, २-१२४२४-३१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणन्तभागो य सिद्धिगओ. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जीवा कहेता जीवतत्त्व; अंतिः भागे सिद्ध गयो. १२४०३. सम्यक्त्वकौमुदि कथानक, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. लिंबडीनगरे, ले.- पं. नायकविजय, (२६.५४१२, १५४४६-४९). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः पर्ययादिष्यते बन्धः. १२४०४. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. ४प्रस्ताव, (२७४१२.५, १४४४३-४४). श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं; अंतिः सद्गुरु प्रसादात्. १२४०५.” सम्यक्त्वकौमुदी कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना., ले.स्थल. गोधावीनगरे, ले.- गणि For Private And Personal Use Only Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची लालविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५४४९). सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४५७, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः स्वर्गमश्नुते. सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः वरे अने माहासुख पामे. १२४०६." वासुपूज्य चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ५०५-१(२१६)=५०४, जैदेना., ले.स्थल. वीरमग्राम, ले.- गणि कान्तिविजय (गुरु मु. न्यायविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (६०५) भग्न पुष्टि कट ग्रिवा; (४४०) तैलाद् रक्षेद् जलाद् रक्षेद्, (२७४१२, ५४३३-४०). वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदिः अर्हन्तं नौमि; अंतिः वेदबाणानीताङ्कग्रन्थ. वासुपूज्य चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्यं सारदं देवी; अंतिः योग्य एहवू चरीत्र १२४०७. वसुदेवहुण्डी , संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१००, (२६४११, १३४३८-४०). वसुदेवहीण्डी, मागु., पद्य, आदिः इणि जम्बूद्वीपि भरत; अंति: पंचवर्षशतानि छइ. १२४०८. रुपसेन चरित्र, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९-७(८,१२ से १७)=१२, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, १२-१४४३४-३७). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंतिः१२४०९. यशोधरराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८८८, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. राद्धणपूर, ले.- पं. उत्तमविजय(तपगच्छ), प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है., (२५४११.५४). यशोधर चरित्र, मागु., गद्य, आदिः (१) प्रणम्य जगतां नाथं (२) जम्बूद्वीपना भरत; अंतिः मोक्षने विषे पधार्या. १२४१०." मृगाङ्ककुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५३, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. पाटडी, ले.- प्रल्हाद मोहनलाल बारोट, प्र.वि. श्लो.२८८, (२६.५४१२, ९x४१-४५). मृगाक चरित्र, मु. ऋद्धिचन्द्र, सं., पद्य, आदिः श्रीपार्श्वः प्रत्यह; अंति: चित्तशान्तिकृत्. १२४११." अष्टप्रकारी पूजा कथा सङग्रह सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६९-५(४,२६,४२ से ४३,५७)=६४, जैदेना. पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२४.५४१०.५, ७X४३-४४). ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, आदिः पणमह तं नाभिसुयं; अंतिः ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो ते; अंति:१२४१२." श्रीपाल चरित्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. १२६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३४१, ग्रं. १८३५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ७X३०-३१). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि: अरिहाइ नवपयाइं; अंति: वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरी, मु. हेमचन्द्र, सं., गद्य, आदिः ध्यात्वा नवपदी भक्त; अंतिः नंदतु समृद्धि लभताम्. १२४१३. विक्रमराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. आमेटनगर, ले.- पं. ऋद्धिविजय, प्र.वि. ढाल १७, (२५.५४१०.५, १५-१६x४५-४८). विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथन, वा. अभयसोम, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः वीणा पुस्तक धारणी; अंति: मतिसुन्दर काजे कही. १२४१४. शान्तिनाथ चरित्र, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १०७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११.५, १४ १५४३४-३६). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१२४१५." श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. वीजापुर, प्र.वि. गा.१३४१, (२६.५४११, १७४६३ ६४). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. For Private And Personal Use Only Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३६७ १२४१६. श्रीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ४प्रस्ताव, (२४.५४११, १२४३९-४०). श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., गद्य, वि. १८६८, आदिः प्रणम्य सिद्धचक्रं ; अंतिः सिद्धचक्रमहिमा जातः. १२४१७. श्रीपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५-१(१) ४४, जैदेना., पू.वि. प्रथम व अंतिम पत्र नहीं है. गा.३३ से १३२३ तक है., (२६.५४११, १३४४६-४७). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदि:- अंति:१२४१८." सुदर्शना चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६०, जैदेना., प्र.वि. गा.४०५३, ग्रं. ५६००, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (१५९) अक्षरमात्रापदस्वरहीनं, (२६.५४११.५, १२४४१-४३). सुदर्शना चरित्र, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दितु सुव्वयजिणं; अंतिः विबुहस्सियासुइरं. १२४१९. सुमित्रकेवली चरित्र, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-११(१३ से २२,३०)=२४, जैदेना., (२७४११, ११-१२४४०-४३). ___ सुमित्रकेवली चरित्र, आ. ईश्वरसूरि, सं., पद्य, वि. १५८१, आदिः श्रीनाभिभूर्जिनपति; अंतिः वृत्तिः श्रीर्गी. १२४२०. स्थुलिभद्र चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ७४, जैदेना., ले.- मु. विवेकविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.६८८., (२७४११.५, ५४३३-३८). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदिः वीरोवर्यः श्रिये; अंतिः पुण्यशीलप्रवृद्धिम्. स्थूलिभद्र चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीर परमेश्वर तुम्हने; अंतिः करो ए चरीत्रथी. १२४२१. सुसढ कथानक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.५१८, (२६४११, १९-२१४३९-६०). सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः रायगिहे गुणसिलए समो; अंति: जयणं चिय धम्मकामा. १२४२२. स्थूलभद्र चरित्र, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३-१(१८)=२२, जैदेना., ले.स्थल. रामपुर, ले.- मु. उदयविजय (गुरु मु. कमलविजय),प्र.वि. श्लो.६८७, (२६४११, १५४३९). स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, आदि: वीरं विश्वेश्वरं; अंति: पुण्यशीलप्रवृद्धिम्. १२४२३. रत्नशेखरराजा कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४१०.५, १५४५९-६५). रत्नशेखरराजा कथा - पर्वतिथिविचारे, मु. दयावर्द्धन-शिष्य, प्रा.,सं., पद्य, आदिः सयल कल्लाणनिलय नमिऊण; अंतिः जयताच्चिरं. १२४२४. रुपसेनराजा कथा, संपूर्ण, वि. १६५१, मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., (२६.५४११, १३४४०-४९). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंतिः सुकृताय कृता कथा. १२४२५. अष्टदानउदाहरण कथानक सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८८२, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. सिनोरनामे, ले.- मु. देवेन्द्रविजय, (२४४११, ५४२७-३३). वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., पद्य, वि. १२९९, आदिः- अंतिः जयिनः सुरेन्द्राः. वासुपूज्य चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः वन्ता० इन्द्र वर्णन. १२४२६. अध्यात्मगीता, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. गा.४९, (२६४११.५, १२४३२-३४). अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंतिः रङ्गी मुनि सुप्रतीता. १२४२७." ललीताङ्ग कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.३०६, (२६४१०.५, १३४४८-४९). ललिताङ्गकुमार कथा, सं., पद्य, आदि: पक्षपातोपि धर्मस्य; अंतिः कार्यः सदोद्यमः. १२४२८." रुपसेनचरित्र व वकचूल दृष्टान्त, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, ११४३६-३८). पे.१. रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-३०अ), आदिः आरोग्यभाग्याभ्युदय; अंतिः सुकृताय कृता कथा., पे.वि. श्लो.२२४. For Private And Personal Use Only Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-२. वकचूल दृष्टान्त, सं., गद्य, (पृ. ३०-३५आ), आदिः अग्रे दृष्टान्तगर्म; अंति: मोदयन्स्व गृहं ययौ. १२४२९. देवराजवत्सराज कथानक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.४२६, (२६४११, १७-१८४४०-४५). देवराजवत्सराज कथानक, सं., पद्य, आदिः अस्त्यत्र भारते; अंतिः स्वर्गमगुः क्रमात्. १२४३०. विक्रमनरेन्द्र कथा, संपूर्ण, वि. १६०७, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., पठ.- मु. सोमधीर, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२६x१०.५, १७४४५-४६). विक्रमनरेन्द्र कथा , आ. शालिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः देवपूजा समं पुण्यं; अंतिः समं सुखानि भुङ्क्तो. १२४३१. उत्तम चरित्र, वीरसेन कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. मेघविजय, (२६x१०.५, ११-१२४३७-४४). पे:१. उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, (पृ. १आ-१४अ), आदिः भक्त्या वस्त्राणि; अंतिः सिद्धं गमिष्यती. पे.२. वीरसेनराजेन्द्र कथा, सं., गद्य, (पृ. १४अ-२९अ), आदिः अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंतिः परमानन्दसौख्य लप्ससे. पे..३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २९अ-२९अ), आदि: #; अंतिः#. १२४३२. शीलवती व मकरध्वज कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६४११, १५४४९). पे.-१. शीलवती कथा, सं., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः जम्बू द्वीपाभिधद्वीप; अंतिः निर्मलशील योगात्., पे.वि. श्लो.२२०. पे..२. मकरध्वज कथा, सं., गद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः सत्यवादे कुर्वति; अंतिः तेषां चरणरेणुभिः. १२४३३. शुकराज कथा, संपूर्ण, वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- सामलियक, (२५४११, १३x४०-४४). शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीशत्रुञ्जयतीर्थेश; अंतिः कथासौ लभतां प्रथाः . १२४३४. शुकराज कथा व मनुष्यभवहारणो कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., (२६.५४११, २२४५७-५९). पे.-१. शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-७अ), आदिः श्रीशत्रुञ्जयतीर्थेश; अंतिः कर्मक्षयं०मोक्षं गमी. पे.२. निद्रव्यविप्र कथा, सं., पद्य, (पृ. ७अ-७आ), आदिः यः प्राप्य दुष्प्राप; अंतिः निवहार्यः प्रमादतः., पे.वि. श्लो.२८. १२४३५. श्रीपालनरेन्द्र कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. गा.१३४१, ग्रं. १६७४, (२६.५४११.५, १८४६९ ७३). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. १२४३६." श्रीपाल चरित्र सह अवचूरी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१३४१, ग्रं. १५५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ६४३८-४४). सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४२८, आदिः अरिहाइ नवपयाइं; अंतिः वाइज्जन्ता कहा एसा. सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरी, मु. हेमचन्द्र, सं., गद्य, आदिः ध्यात्वा नवपदी भक्त; अंतिः नंदतु समृद्धि लभताम्. १२४३७. सुदर्शना चरित्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ३५५-१(१५६)=३५४, जैदेना., ले.स्थल. वीरपुरनगरे, ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय),प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-गा.४०५३, ग्रं. ४५००.,प्र.ले.श्लो. (३६७) अक्षरमात्रपदस्वरहीनं, (२६x११.५, ६४३५-३८). सुदर्शना चरित्र, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: वन्दित्तु सुव्वयजिणं; अंतिः विबुहस्सियासुइरं. सुदर्शनासती चरित्र-टबार्थ, मु. वल्लभविजय, मागु., गद्य, आदिः मुनिसुव्रतस्वामीने; अंतिः वल्लभविजये टबो कह्यो. १२४३८.” उत्तराध्ययनसूत्र कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. १८३+१(४६)=१८४, जैदेना., ले.स्थल. पाटननगरे, प्र.वि. ग्रं. ४५२५, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १३४३२-३३). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः निर्मलानि स्युः. For Private And Personal Use Only Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३६९ १२४३९. उत्तराध्ययनसूत्र कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७२७, श्रेष्ठ, पृ. ११८, जैदेना., ले.स्थल. उटाला, ले.- गणि तत्त्वविजय (गुरु गणि देवविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६x११, १६४३६-३८). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., गद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंति: #. १२४४०. शत्रुञ्जय माहात्म्य, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २६७-२(८२ से ८३)+१(१०९)=२६६, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१४, (२६४१०.५, १३४४४-४८). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सङ्घस्य सर्वेष्टदम्. १२४४१. शत्रुञ्जयमहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ७१९+२(२७९,३८५)=७२१, जैदेना., ले.स्थल. मेंसाणा, ले. कुओरजोरा बारोट, पठ.- मु. लब्धिविजय (गुरु पं. नित्यविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-सर्ग-१४., (२५४१२, ६x४२-४३). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सङ्घस्य सर्वेष्टदम्. श@जय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो विश्वनो; अंतिः दर्श सर्ग सम्पूर्णम्. १२४४२. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १५-१(१)=१४, पे. ५, जैदेना., (२६४१०.५, १५४४७-५२). पे.-१. सिंहलसिंहकुमार कथा-दानविषये, सं., गद्य, (पृ. -२अ-५आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः जनैरुद्यमाकार्या., पे.वि. प्रथम पत्र नहीं है. पे.-२. अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, (प्र. ५आ-१०अ, संपूर्ण), आदिः जायइ सुपक्तदाणं भोगा; अंतिः भवे सिद्धि यास्यतः. पे..३. चन्द्रोदय कथा, सं., गद्य, (पृ. १०अ-११अ, संपूर्ण), आदिः चन्द्रोदय प्रकुर्वंत; अंति: मवाप्य मोक्षं जगामि. पे.४. पुण्यपालनरेन्द्र कथा, सं., गद्य, (पृ. ११आ-१२आ, संपूर्ण), आदिः धर्मसिद्धौ ध्रुवसिद; अंतिः इह भवे परभवे तुम्हः. पे.५. सिद्धदत्त कथा, सं., गद्य, (पृ. १२आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः प्राप्तव्यमर्थं लभते; अंतिः प्रव्रज्य सिद्धः. १२४४३. शत्रुञ्जयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७६, जैदेना., प्र.वि. मूल-सर्ग-१४, ग्रं. १००३४; टबार्थ-ग्रं. १२०००.,प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा; (२५२) जिहां लागें मेरु महिधर; (९९) लिखणी पुस्तका रामा, (२६४११.५, ७४४४). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सिद्धो दयाद्रिस्थितः. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, वि. १७६७, आदिः नत्वा वीरं सुबोधाय; अंतिः रससागरचन्द्रे० यदत्र. १२४४४. शत्रुञ्जयमाहत्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, प्र. ५२९, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन्ननगरे, ले.- मु. विनयविजय (गुरु मु. मेघविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-सर्ग-१४., (२६४११.५, ७X४३-४६). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः ग्रन्थ एषः. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंतिः दर्श सर्ग सम्पूर्णम्. १२४४५. शत्रुञ्जयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३०, श्रेष्ठ, पृ. ६३५+२(१२,३८१)=६३७, जैदेना., ले.स्थल. शांतलपुर, ले.- मु. देवविजय (गुरु गणि दीपविजय),प्र.वि. मूल-सर्ग-१४., (२५.५४१२, ७४३६-३८). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सङ्घस्य सर्वेष्टदम्. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार हो विश्वनो; अंतिः दर्श सर्ग सम्पूर्णम्. १२४४६. शत्रुञ्जयमाहात्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. ५४१, जैदेना., ले.स्थल. दिओद्रनगरे, ले.- मु. डुङ्गरविजय (गुरु मु. मेघविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-सर्ग-१४. प्र.पु.-मूल-ग्रं. उभय-२५०००., (२६.५४११.५, ७४३८-४२). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः सङ्घस्य सर्वेष्टदम्. For Private And Personal Use Only Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार हो विश्वनो; अंतिः दर्श सर्ग सम्पूर्णम. १२४४८. शत्रुञ्जयमाहात्म्य सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७१, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सर्ग-६ के गा.२४ तक लिखा है. टबार्थ सर्ग-५ के गा.२६४ तक लिखा है., (२७४११.५, ७-९४५२-५३). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंति:१२४५०." शत्रुजय माहात्म्य, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३३-१(१)=१३२, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- पं. धर्मचन्द्र गणि, प्र.वि. सर्ग-१४, पू.वि. गा.१ से १८ तक नहीं है., (२९४११, १७४६७-७०). शत्रुजय माहात्म्य , आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः सङ्घस्य सर्वेष्टदम्. १२४५१.” सुसढ कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. गा.४८७, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, १७४५३-५६). सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेन्द्रसुरि, प्रा., पद्य, आदिः रायगिहे गुणसिलए समो; अंतिः जयणं चिय धम्मकामा. १२४५२. अष्टाह्निका व्याख्यान व गर्भपरावर्तन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. २, जैदेना., (२७.५४१२, १३४४३-४४). पे.-१. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, (पृ. १अ-१७अ), आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्. पे.२. गर्भपरावर्तनविचार, सं., गद्य, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः अत्राह कोपि शिवशासनी; अंतिः बलभद्रं बलाश्रयात्. १२४५३. प्रासुकनीरदानोपरि रत्नपालराज कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., (२७.५४११.५, १२-१३४३५-३६). रत्नपालराज कथा, सं., गद्य, आदिः प्रासुकजलं जिनोक्तं ; अंतिः सर्वे मोक्षं यास्यति. १२४५४. पोसदसमी कथा, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. गम्भीरविजय, प्र.ले.श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा , (२७४११.५, ११४३३). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः इदं सम्बन्धं रचनीयम्. १२४५५. रत्नपालनृप कथा, संपूर्ण, वि. १६३५, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. अमरसेर, गच्छा.- गच्छाधिपति जिनचन्द्रसूरि(बृहत्खरतरगच्छ), पठ.- मु. सुखनिधान (गुरु मु. समयकलश, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. श्लो.९३१, (२६.५४११, १६x४६-४८). रत्नपालनृप कथा, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः श्रेयः श्रीसद्मने; अंतिः गणाधीशा व शिवसम्पदे. १२४५६. त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र-पर्व-८ सह टबार्थ, प्रतिपूर्ण, वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. २७८, जैदेना., ले.स्थल. अडिसरनगरे, ले.- पं. उत्तमविजय, (२६४१२, ७X४३-४७). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति: त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-टबार्थ, पं. रामविजय, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः१२४५७." सुक्तमाला सह टबार्थ व कथा, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. २०२, जैदेना., ले.स्थल. बालात्रीपुर, ले.- मु. विनीतरज (गुरु गणि रत्नविजय), पठ.- मु. बालचन्द (गुरु मु. विनीतरज), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. मूल-४ वर्ग., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, (२५.५४११.५, १८-२०x४४-४९). सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः सकलसुकृत्यवल्लीवृन्द; अंतिः केसरविमलेन विबुधेन. सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मनाम, मागु., गद्य, वि. १८२७, आदिः प्रणमि सदगुरु शारदा; अंतिः संवाच्यमानाचीरं. १२४५८. क्षेत्रसमास सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., प्र.वि. मूल-६ अधिकार., गा.२४२., (२६४१२, १३४४१-४८). लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., पद्य, वि. १५वी, आदिः वीरं जयसेहरपय; अंतिः कुसलरङ्गमयं पसत्थं. For Private And Personal Use Only Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३७१ लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., गद्य, वि. १५२९, आदिः अहँ अर्हमिति; अंतिः दयासिंहगणि कीधो. १२४५९. मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- जीवणसिंह, (२७४११.५, ११४३२-३५). मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः स मुक्तिसाधनं भवति. १२४६०. मेरुत्रयोदशी कथा, संपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२६.५४११.५, १४४३४-३९). मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः स मुक्तिसाधनं भवति. १२४६१. सौभाग्यपञ्चमीमहात्म्य कथानक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१५२., (२६४१२, ६४३३-३६). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वदेव छ; अंति: मेडतानगर मध्ये कीधी. १२४६२. होलीपर्वशलोक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. समीनगरे, ले.- गणि लालविजय, प्र.वि. मूल-श्लो.३६., (२७४१२, ५४४१). होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदिः ज्ञानं विकाशयविधेदया; अंतिः कान्त्यादिवजयोलिखत्. होलिकापर्व प्रबन्ध-टबार्थ, मु. कान्तिविजय, मागु., गद्य, वि. १७९२, आदिः हे भविन हे प्राणि; अंतिः चिरकाल सुधी वाञ्चवु. १२४६३." होलीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालणपुर, ले.- ऋ. सुखानन्द, प्र.वि. मूल-श्लो.३४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१२, ५-७४३६-३७). होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, आदिः प्रणम्य सम्यक; अंतिः चिरं वाच्यताम्. होलिकापर्व प्रबन्ध-टबार्थ, मु. कान्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करिनेइं; अंतिः पर्वनो सदल्पे रच्यो. १२४६४. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१५२, (२७४१२, १४४४२). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे. १२४६५. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. २६, जैदेना., (२७४१२.५, २१-२२४३७-४१). पे.-१. देवदत्त कथा, मागु., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः सावस्ती नामे नगरी; अंतिः अन्ते देवलोके पोहता. पे.२. वसूराजा कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदिः अङ्गदेशे कुसुमापुरी; अंतिः वसुनी परे दुःख पांमे. पे..३. सुमीत्रकुमार कथा, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-६आ), आदिः मगधदेशे राजगृहनगरे; अंति: पालीने स्वर्गे पोहतो. पे.-४. सुव्रतशेठ कथा, मागु., गद्य, (पृ. ६आ-७अ), आदिः पञ्चाल देसने विषे; अंतिः आराधी स्वर्गे गयो. पे.५. अम्बसार कथा, मागु., गद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः सुसमापुर नगर ने विषे; अंति: परभव दुःखी थयो. पे.-६. शीलवतीसती कथा, मागु., गद्य, (पृ. ७अ-९अ), आदिः सुर्जपुर नामे नगर; अंतिः मरीने नरके पोहतो. पे.७. सुसीलासाध्वी कथा, मागु., गद्य, (पृ. ९अ-१०अ), आदिः पोतनपुर नगरने विषे; अंतिः धरम वरे खरच्या. पे..८. सागरशेठ कथा, मागु., गद्य, (पृ. १०अ-११अ), आदिः वसन्तपुर नगरने विषे; अंतिः केडला सहु ए सखी थया. पे.९. लोभनन्दी कथा, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-१२आ), आदिः पृथ्वीभुवषण नामे; अंतिः गया मरीने नरके गयो. पे.-१०. लोभसारशेठ कथा, मागु., गद्य, (पृ. १२आ-१३आ), आदिः पदमपुर नगरने विषे; अंतिः परे मुलगाने खोइ. पे.-११. देवपाल कथा, मागु., गद्य, (पृ. १३आ-१४आ), आदिः वसन्तपुर नगरने विषे; अंति: पालीने देवलोके पोहतो. पे.१२. हरिषेणभील द्रोणाचार्य कथा, मागु., गद्य, (पृ. १४आ-१६अ), आदिः हस्तीनागपुर नगरने; अंति: भीलनी परे सुखी थाये. पे.-१३. रतनव्यवहारी कथा, मागु., गद्य, (पृ. १६अ-१७आ), आदिः शङ्खपुर नगरने वीषे; अंतिः अत्ये पण सुख पाम्यो. पे.-१४. खडगचण्डाल हंसकपुरोहीत कथा-प्राणातिपातव्रते, मागु., गद्य, (पृ. १७आ-१९आ), आदिः सुसमापुर नगरने विषे; For Private And Personal Use Only Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अंतिः पण घणा सुख पांमे. पे.-१५. श्रीदत्त कथा, मागु., गद्य, (पृ. १९आ-२२अ), आदिः वसन्तपुर नामे नगर; अंतिः घणो सुख पांम्यो. पे.१६. अमरदत्त श्रीमती कथा, मागु., गद्य, (पृ. २२अ-२४अ), आदिः वसन्तपुर नगरने विषे; अंतिः दानेन शीलेन तपेन भाव. पे.-१७. भीमसेन कथा, मागु., गद्य, (पृ. २४आ-२६अ), आदिः अवन्तीनांमे नगर तेह; अंतिः पाली देवगती पाम्यों. पे.-१८. मुलदेव कथा, मागु., गद्य, (पृ. २६अ-२७आ), आदिः कोसंबी नगरीने विषे; अंतिः पण सुपननी परे दुर्लभ. पे.-१९. सुदर्शनशेठ कथा, मागु., गद्य, (पृ. २७आ-२८आ), आदिः पादलिप्तपुरनगरने; अंतिः स्वर्गे गया हता. पे.२०. शीलसुन्दरीसती कथा, मागु., गद्य, (पृ. २९अ-३०अ), आदिः अवन्तीपुर नगरने विषे; अंतिः शब्द वाजते घणो ___ महीमा. पे..२१. सीतासती कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३०अ-३१आ), आदिः अजोध्या नगरी ने; अंतिः वाजते गाजते घरे आवे. पे.-२२. सुसीला कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३१अ-३१अ), आदिः मालवदेशे उजेणी नगरी; अंतिः द्रव्य आपी पाछा चाले. पे.-२३. ढण्ढणकुमार कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३१अ-३२अ), आदिः पुष्फीअ फलीअ पीय; अंतिः अन्तरायकर्म नीवार्यो. पे-२४. अर्जुनमाली कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३२अ-३२आ), आदि: मगधदेश राजग्रही नगरी; अंतिः पांमी मोक्षे पोहता. पे.-२५. दशार्णभद्रराजा कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३२आ-३३अ), आदिः दशार्ण नामा देशने; अंतिः पाली मोक्षे पोता. पे.-२६. रोहिणीयाचोर कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३३अ-३४आ), आदि: मगधदेशने विषे राज०; अंतिः तु सुखे संसार तरे. १२४६६." सुसढ कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. गा.५१७, (२६४११, १२४४४). सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः रायगिहे गुणसिलए समो; अंतिः जयणं चिय धम्मकामा. १२४६७. सुआबहोत्तरी, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., पू.वि. अन्त के पत्र नही है. कथा २६मी अपूर्ण तक है., (२५.५४११.५, १७४४६-४८). शुकबहोत्तरी, मागु., गद्य, आदिः करि प्रणाम श्रीसारदा; अंति:१२४६८. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६७०, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. नीतोडाग्रामे, ले.- ऋ. ढाला, पठ.- मु. रङ्गविमल (गुरु ऋ. ढाला), (२६४११, ९४२८-३०). कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः पश्चिमविदेहे गन्धिला; अंतिः जिनधर्म० भूपति. १२४६९. अघटनृपति कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, देना., प्र.वि. श्लो.६३७, (२६४११, १३४४४-४५). अघटकुमार चरित्र, सं., पद्य, आदिः प्राणिनामसहायनामपि०; अंतिः रतिचारे० पदवी लभध्वं. १२४७०. अनन्तकीर्ति कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., ले.- गणि विवेकलाभ, (२५४११, १४-१५४३९-४२). अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, आदिः परदार विरत्ताणं इहेव; अंतिः मुत्पाद्य शिवं ययौ. १२४७१. नवकार कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ५, जैदेना., (२५.५४१०.५, १२४३७-४०). पे.१. श्रीमती कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः नवकारअक्खरकरेणं पावं; अंतिः यथाप्त श्रीमती पुरा., पे.वि. श्लो.५३. पे..२. शिवकुमार कथा-नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., पद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदि: नवकारप्रभावेन सङ्कटा; अंतिः मृत्वा सद्गतिकं ययौ., पे.वि. श्लो.५८. पे..३.जिनदासश्रावक कथा, सं., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः आपतितः सङ्कटे जीवो; अंतिः प्राप्तश्च सुरालये., पे.वि. श्लो.४६. पे.-४. नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह, सं., पद्य, (पृ. ७आ-९आ), आदिः परत्रापि हि लभ्यन्ते; अंतिः सञ्जाते __ जैनमंत्रतः., पे.वि. श्लो.४५. पे.५. हुण्डकचोर कथा, सं., पद्य, (पृ. ९आ-११आ), आदिः पापिष्ट चौरकर्मात्र; अंतिः यथा चौरेण हुंडिके., पे.वि. For Private And Personal Use Only Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ श्लो.४८. १२४७२. अमरसेनवयरसेन कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना., ले.- मु. खुसाल, (२६.५४११.५, १७४३६-४१). अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, आदिः स्वर्ग्रस्तस्य गृहा; अंतिः मोक्षं यास्यन्ति. १२४७३." आर्द्रकुमार कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धपुर, प्र.वि. हिस्सा-गा.५५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.५५. द्वितीय श्रुत स्कंध है। अध्ययन ६ है।, (२६४११, ४४३१-३४). सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., पद्य, आदिः पुरेकडं अद्दइमं सुणे; अंतिः हरेज्जासि त्तिबेमि. सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पूर्विइं ताहरई; अंतिः करइ ते साधु जाणवउ. १२४७४.” आदित्यव्रत कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.१०४, दशा वि. मूल पाठ का अंश खंडित है, (२४.५४११.५, १२-१३४२५-२७). आदित्यव्रत कथा, पं. गङ्गादास, मागु., पद्य, वि. १६१५, आदिः प्रणमुं पास जिनेसर; अंतिः होवे मङ्गल च्यारी. १२४७५. आरामनन्दन कथा, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.६०४, (२६x१०.५, १७-१८४६२-६५). आरामनन्दन कथा, सं., पद्य, आदिः पुरं लक्ष्मीपुरं; अंतिः दिवं प्रायायुषःक्षये. १२४७६. उत्तराध्यायनसूत्र कथा सङ्ग्रह, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., पृ.वि. अध्ययन ४ तक की कथाए लिखी है।, (२६४१०.५, १४४४७-४९). उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः१२४७७. उत्तमकुमार चरित्र व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले.- गणि धनहर्ष (गुरु पं. विशालसत्य गणि), (२६४१०.५, १७X४०-४२). पे-१. उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचन्द्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-१६अ), आदिः वन्दित्वा स्वगुरुन्; अंतिः कथेयं नन्दितश्चिरम्., पे.वि. श्लो.६०१. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१६आ), आदिः#; अंतिः#. १२४७८. उत्तमकुमार कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६५४, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.- गणि वृद्धिविजय (गुरु गणि लब्धिविजय), (२६४११, १५-१६x४३-४५). पे:१. उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, (पृ. १अ-९आ), आदिः भक्त्या वस्त्राणि; अंति: मुक्तिं यास्यति. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः#; अंति: #. १२४७९. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १५२८, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ६, जैदेना., ले.स्थल. पत्तन, ले.- आ. कालासुत, लिखवा.- गणि कनकजय (गुरु गणि महीसमुद्र),प्र.ले.पु. मध्यम, (२७४११, १५४५४-५६). पे..१.४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदिः करकण्डू कलिङ्गेषु; अंतिः चत्वारोपि मोक्षगता., पे.वि. अध्याय-९. पे..२. पुण्याढ्यनृपति कथा, सं., गद्य, (पृ. ८आ-१३आ), आदिः वासपूज्यचरित्रस्याद; अंति: देवो दिवं ययो. पे..३. पुरषोत्तम कथा, सं., गद्य, (पृ. १३आ-१५अ), आदिः पुराणेभ्यो नमस्तेभ्य; अंतिः मुक्तिं यास्यति. पे.-४. चन्द्रवर्मनृप कथा, सं., गद्य, (पृ. १५अ-१८अ), आदिः गुणेषु सर्वेषु मूलं; अंतिः शीलमहील मुच्चैः. पे.-५. दामन्दक कथा, सं., गद्य, (पृ. १८अ-१८आ), आदिः राजगृहे नगरे नरवर्म; अंतिः मोक्षं च प्राप्तः. पे.६. उदायननृप कथा, सं., पद्य, (पृ. १८आ-२३आ), आदिः जम्बूद्वीप भरतक्षे; अंतिः सम्यक्त्वलाभो भवति., पे.वि. श्लो.१०७. १२४८०." सुभद्रा व ऋषिदत्ता कथा, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २१, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११, १३४३३-३८). For Private And Personal Use Only Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. सुभद्रासती कथा, सं., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः अस्ति दत्तद्विषक्तं; अंतिः भद्रां सुभद्रागतिं., पे.वि. श्लो.६१. पे:२. ऋषिदत्तासती कथा, सं., पद्य, (पृ. ३आ-२१आ), आदिः अस्तीह भरतक्षेत्रे; अंतिः मुदारानन्दसन्दोहमूहि., पे.वि. श्लो.४४८. १२४८१. षडावश्यकसूत्रवृत्ति कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १९५१., प्र.ले.श्लो. (२६४) यावत्सूर्ये शशीयावद्यावज्जैनेंद्रशाशनं, (२७४११.५, १३४४०-४२). षडावश्यकसूत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः श्रीमन्नाभिकुलाब्ज; अंतिः सौधर्मे स सुरो भवत्. १२४८२. विविध कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, पे. २३, जैदेना., प्र.वि. सर्वग्रं. २५१०., संशोधित, (२६.५४११, १५४६४-७०). पे-१. अघटकुमार चरित्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-४आ), आदिः प्राणिनामसहायनामपि०; अंति: रतिचारे० स्युः कदापि. पे..२. वसुभूति सुमित्र कथा, सं., गद्य, (पृ. ४आ-१०अ), आदिः धर्माज्जयो जगत्यत्र; अंतिः वसुभूतिरिवाप्रमत्तैः पे.-३. मदिरावती कथा, सं., गद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः बुधैर्विधीयतामेको; अंतिः सुकृत एव समाचरन्तु. पे:४. देवराजादि कथा, सं., गद्य, (पृ. १०आ-१४अ), आदिः अविचार्य कृतं कार्यं; अंतिः तप सास्वरगात्. पे.५. पुण्यसार कथा, सं., गद्य, (पृ. १४अ-१६अ), आदिः साधर्मिकाणां वात्सल; अंतिः ज्ञानमुपाय॑सिद्धः. पे.६. सूरपाल कथा, सं., गद्य, (पृ. १६अ-१८अ), आदिः दानधर्मधुरीणस्य; अंतिः सुखास्पदं पदं प्राप. पे.-७.धनद कथा-दानधर्मे, सं., गद्य, (पृ. १८अ-१९आ), आदिः दानधर्मप्रभावेण; अंतिः व्यसनविषय० करोति. पे.८. जिनदत्त कथा, सं., गद्य, (पृ. १९आ-२०आ), आदिः आहारैः प्रासुकैर्ये; अंतिः भवेतु शिवश्रियं लेभे. पे.-९. अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, (पृ. २०आ-२३अ), आदिः दानधर्मं समाश्रित्य; अंतिः शिवश्रियं प्रापतुः. पे.-१०. वनमाला कथा, सं., गद्य, (पृ. २३अ-२४अ), आदिः शीलाभिरामारामापि; अंतिः स्वर्धाम भेजतुः. पे.११. रोहिणी कथा, सं., गद्य, (पृ. २४अ-२४आ), आदिः दृष्टादृष्टफलं शीला; अंतिः प्रान्ते सुगतिं गता. पे..१२. शीलवती कथा, सं., गद्य, (पृ. २४आ-२६आ), आदिः शीलप्रभावतः प्राणी; अंतिः एवं शीलं पालनीयं. पे.-१३. कलिङ्गसेना कथा, सं., गद्य, (पृ. २६आ-२८आ), आदिः अभूत्कलिङ्गसेनाया; अंति: महिम्ना गतौ सुरलोकम्. पे.-१४. कुसुमकुमार कथा, सं., गद्य, (पृ. २८आ-३३अ), आदिः तपः प्रोतेन कुसुमसार; अंतिः शिवशर्म स लभन्तेन्ते. पे.-१५. विद्याविलासनृप कथा, सं., गद्य, (पृ. ३३आ-३४आ), आदिः विधिवद्विहितादस्मात्; अंतिः सिद्धिमध्यासामास. पे.-१६. गुणवर्म कथा, सं., गद्य, (पृ. ३४आ-३७अ), आदि: जोओण विहि बहुमाणी; अंति: जनेन विधौ प्रयत्नः. पे.-१७. भुवन कथा, सं., गद्य, (पृ. ३७आ-३७आ), आदिः उद्धारं जैनभवते; अंतिः स्वर्धाम जगाम. पे.-१८. श्रीदत्त कथा, सं., गद्य, (पृ. ३७आ-३८अ), आदिः योधिगत्यपदं किञ्चिन्; अंतिः जातौ द्वावपि सुखिनौ. पे.-१९.शृङ्गदत्त कथा, सं., गद्य, (पृ. ३८अ-३८आ), आदिः अतिलोभो न कर्त्तव्यो; अंतिः प्राप्ताः सुखं भेजुः. पे.२०. मल्लिजिन कथा, सं., गद्य, (पृ. ३८आ-४०अ), आदिः जम्बूद्वीपे अपरविदेह; अंतिः तान् प्रवाजितवान्. पे.२१. रत्नशेखरराजा कथा, सं., गद्य, (पृ. ४०अ-४५अ), आदिः विषयान् काचवत्त्यक्त; अंतिः प्रापल्य शिवं लेभे. पे:२२. धनपालकवि कथा, सं., गद्य, (पृ. ४५अ-४८आ), आदिः पुरा समृद्धिविशालाया; अंतिः कविः तत्र सुखं तस्थौ. पे.२३. ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, (पृ. ४८आ-५२अ), आदिः भरते रथमर्दनपुरं; अंतिः सिद्धिं भेजतुः. १२४८३. कथासङ्ग्रह व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ६, जैदेना., (२४.५४१०.५, १३४४०-४२). पे.-१. रोहिणीतप विषये-अशोकचन्द्र कथा, मु. कनककुशल, सं., पद्य, (पृ. १अ-८अ), आदिः श्रीमान्पार्श्वजिन; अंतिः विनिर्मिता कनककुशलेन.,पे.वि. श्लो.२०१. पे..२. मृगसुन्दरी कथा, सं., पद्य, (पृ. ८अ-१३अ), आदिः प्रणम्य प्रथमं देवं; अंतिः स्युः सुखसम्पदः., पे.वि. श्लो.१४७. पे.३. दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, (पृ. १३अ-१६आ), आदिः अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंतिः स्वर्ग जगाम. पे.४. कुलवालक कथा, सं., गद्य, (पृ. १६आ-२१आ), आदिः अत्रैव भरतक्षेत्रे; अंतिः स्वर्गं जगाम. For Private And Personal Use Only Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे. ५. कनकरथ कथा, सं., गद्य, (पृ. २१आ-२५आ) आदि अत्रैव भरते वैताढ्य अंतिः द्वावपि स्वर्गे गतो. पे.:-६. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः#; अंतिः#. १२४८४. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. ५ जैदेना. पु.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. चतुर्थ व्रत की कथा अपूर्ण तक है., (२५x११, १३३९-४१). पे:-१. सम्यक्त्वोपरी कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ - २अ, संपूर्ण), आदिः समत्तं पालन्तो निच्च; अंतिः पञ्चमकल्पे० यास्यति. पे. २. सूरराजा कथा, सं., गद्य, (पृ. २अ-३आ, संपूर्ण), आदि: जम्बूद्वीपे भरतो अंतिः तो मोक्षं यास्यति. पे.-३. ललिताङ्गकुमार कथा, सं., गद्य, (पृ. ३आ-६अ, संपूर्ण), आदिः (१) रत्नपुरं नगरं ललितं (२) गोकन् नावणी विसयं अंतिः मोक्षं यास्यति, कुणन्त; अंतिः पे.-५. अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, (पृ. ९अ - १४अ-, अपूर्ण), आदि: (१) परदार विरत्ताणं इहेव (२) भारते वैजयन्तीपुरी; अंति, पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण चतुर्थ व्रत की कथा अपूर्ण तक है. www.kobatirth.org: पे. ४. वज्रबाहु कथा, सं., गद्य, (पृ. ६अ - ९अ, संपूर्ण), आदि: (१) सप्त भुवनावत्तारं ( २ ) परविहवपरीहारं चुतो मोक्षं यास्यति १२४८५. अष्टदान कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. (२४.५x११, १४-१५X३७-४१). दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा., सं., गद्य, आदि: वसही सयणासण भत्तपाणे; अंतिः तृतीयभवे मोक्षः . १२४८६. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना, (२६×११, २३×५८-६१). कथा सङ्ग्रह" सं., प्रा., मागु, पद्य, आदि में अंतिः #. , १२४८९. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १६५५ त्रिपाठ (२६४११, १x२९). , " १२४८७. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., ( २६.५x११, १७ १८४५४-५६). पे. १. नमस्कार महामन्त्र कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, (पृ. १अ -३आ, संपूर्ण), आदि: नमस्कारप्रभावे इह अंति मंत्रं सदा सौख्यदं. पे.-२. देवपूजा फल कथासङ्ग्रह, सं., गद्य, (पृ. ३आ - १३अ, अपूर्ण), आदिः देवपूजाफले थोरीकुरु; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२४८८. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना. (२६४११, १३४४४-५०). मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टान्त काव्य Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " प्रा. सं., मागु, पद्य, आदि: चुल्लग पासग धन्न अंतिः समरराजर्षि पहुतउ. " श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. ले. स्थल मेडता, ले. साध्वीजी पदम, प्र. वि. ८४कथा, १२४९२. कुसुमसार कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १९, जैदेना, (२७X११.५, १३-१४४४३-४९). कुसुमसार कथा से गद्य, आदि: तावच्चिय दालिद अंतिः शाश्वतपदं प्राप्ताः .. i कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः उजेणीनगरीनी समीपइ; अंतिः सुव्रतस्वामी० बुधा. १२४९०.” कालिकाचार्य कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. वीरमपुर, प्र. वि. ग्रं. ४४१, दशा वि. विवर्णपानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है (२६. ५४१०.५, १३४४५-४८) , कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., प+ग, वि. १६६६, आदिः प्रणम्य श्रीगुरुं; अंतिः सङ्घः प्रवर्त्तताम्. १२४९१. कामघटराजामन्त्री कथा, संपूर्ण, वि. १७१४, जीर्ण, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. नौनेरनगरे, ले. - गणि वृद्धिविजय, प्र. वि. श्लो. ३६७, (२५.५x१०.५, १५-१६४३९-४१). धर्मपरीक्षा कथा, गणि देवविजय, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य प्रणितं देवं; अंतिः लभते विरक्तः पुमान्. ३७५ १२४९३. कूर्मापुत्र कथा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. गा. १९५ (२५४११, १४४३७-३९). "" कुम्मापुत चरिअं मु. माणिक्यविमल, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण वद्धमाणं अंतिः स० इच्छन्तं चिरं जयउ For Private And Personal Use Only Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२४९४." शीयल कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, पे. ६, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१०.५, १९४५८-६३). पे:१. नर्मदासुन्दरी कथा , मागु., गद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः एहज जम्बूद्वीप माहि; अंतिः वतार लेई मुगति जासें. पे.२. कमलामहासती कथा, मागु., गद्य, (पृ. २अ-२आ), आदिः एहज भरत क्षेत्र भोट; अंतिः पाम्मी मुगति पहुता. पे.-३. कलावतीसती कथा, मागु., गद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः इणइं जम्बूद्वीपे; अंतिः कालि मोक्ष पहूचस्यै. पे:४. ऋषिदत्तासती कथा, मागु., गद्य, (पृ. ३अ-५अ), आदिः एहज जम्बूद्वीप रथ; अंतिः थया पछे मोक्ष पहुता. पे.-५. रतिसुन्दरी कथा, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः साकेतपुर नगरि; अंतिः बेहूं मोक्ष पहुन्ता. पे.६. भुवनानन्द रिपुमर्दनराजा कथा, मागु., गद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदिः एहज भरतक्षेत्र सुषा; अंतिः राजनो स्युं कहीई. १२४९५. गण्ड कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. ५कथा, (२५.५४११, १५४४४-४५). गण्ड कथा सङ्ग्रह, प्रा., गद्य, आदिः नमिऊण जिणवरिन्द सिवा; अंतिः कहाणयं सम्मत्तं. १२४९६. चन्दकुमार वात, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. रापुर, ले.- पं. धनविजय, पठ.- मु. गलालविजय, प्र.वि. गा.१२५, (२३४१२, १५४३६-३८). चन्द्रकुमार वार्ता, मागु., पद्य, आदिः समरु सरसति मात मनाय; अंतिः मुर्ख मन रीझाय. १२४९७." चन्द्रधवल व धर्मदत्त कथा, संपूर्ण, वि. १५४८, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सारंगपुर, ले.- मु. आणन्दसाधु(तपागच्छ), (२६४११, १४-१६४३४-४३). पे.१. चन्द्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-११अ), आदिः चतुर्थी कथा प्रोक्ता; अंतिः माणिक्यसुन्दर० कथं. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः#; अंति: #. १२४९८." विक्रमराजापञ्चदण्डछत्र व चतु:चमरहारी कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १५१७, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. अहमदनगर, ले.- गणि नेमिसूर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, १७४४९-५३). पे.-१. विक्रमराजापञ्चदण्डछत्र प्रबन्ध, सं., गद्य, (पृ. १अ-१२आ), आदिः धर्मोद्यमः सदा कार्य; अंतिः सम्पदः संभवंतीती. पे..२. विक्रमराजाचतुःचामरहारी कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, (पृ. १२आ-१६आ), आदिः उज्जनियां विक्रमादि; अंतिः तत्तुल्यः कथं भवति. १२४९९. चित्रसेनपदमावती कथा, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.स्थल. ब्रह्मावाद, ले.- मु. रत्नमूर्ति (गुरु वा. सोममूर्ति), गच्छा.- आ. कल्याणसागरसूरि(अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. श्लो.५०८, (२४.५४११, १३४३६). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोत्पाठक राजवल्लभः. १२५००. चित्रसेनपद्मावती कथा, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.३६८ तक लिखा है., (२५.५४११, १४४३६-४२). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंति:१२५०१. चम्पकश्रेष्टिकथा व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६३१, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. थिराद्रपद्र, (२६४११, १३४४३). पे..१.पे. नाम. अनुकम्पादाने चम्पक श्रेष्टी कथा, पृ. १अ-११आ चम्पक श्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदि: चम्पानाम नगरी सौगन्ध; अंतिः मोक्षं यास्यति. पे..२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१+२.. १२५०२. सुदर्शनसेठ रास, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. गा.१२१, (२०.५४१०.५, १०x२५-२६). For Private And Personal Use Only Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३७७ सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपो, राज., पद्य, आदिः वान्दु श्रीजिनवीर; अंतिः त्रिभवनमै तारक तिकौ. १२५०३.” जम्बू चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. संशोधित-प्रारंभिक पत्र, (२४४११.५, १५४४५-४९). जम्बूस्वामी कथा, मु. सकलहर्ष, सं., गद्य, आदिः (१) सप्रभावं जिनं नत्वा (२) अथैकदा समुद्रगम्भीरः; अंतिः श्रुत्वा जहर्ष नृपः. १२५०४.” वज्जालग्गं, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४-१(२८)=३३, जैदेना., ले.स्थल. रालूनगरे, ले.- गणि गुणविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११, १३४४४-४६). वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सव्वन्नुवयणं पङ्कय; अंतिः तेनेदंशौकरम्मुखं. १२५०५. प्रियङ्करनृप कथा, संपूर्ण, वि. १६१०, मध्यम, पृ. ३३, जैदेना., ले.स्थल. कुमारपद्रग्रामे, ले.- पं. नयप्रभ गणि (गुरु वा. रत्नप्रभ, अञ्चलगछ), पठ.- गणि विनयसागर(पूनिमगछ), (२५.५४१०.५, १२४३९-४३). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं.,प्रा., गद्य, वि. १६वी, आदिः वंशाब्जश्रीकरो हंसो; अंतिः सुखभाजो भवन्ति ते. १२५०७. दश दृष्टान्त व चौदगुणठाणा नाम सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.- मु. भक्तिचन्द्र (गुरु आ. शिवचन्द्रसूरी), (२५.५४११, १५४४८-५०). पे.-१. पे. नाम. दस दृष्टांत, पृ. १अ-१०आ मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टान्त काव्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) चुल्लग कहतो खीरभोजन (२) संसार माहे प्राणीने; अंतिः रुप धर्म सेविवतु. पे.२.पे. नाम. १४ गुणठाणा नाम सह टबार्थ, पृ. १०आ-१०आ १४ गुणठाणा नाम, प्रा., पद्य, आदिः मिच्छे सासण मीसे; अंतिः सजोगी अजोगी. १४ गुणठाणा नाम-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः मिथ्यात्वते विपरीत; अंतिः आठमो योग गुणठाणो., पे.वि. मूल-गा.१. १२५०८. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६४२, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना.,ले.स्थल. उमापुर, ले.- मु. विमलकुल-शिष्य (गुरु पण्डित विमलकुल, तपागच्छ), (२६.५४११, १४-१५४४९-५१). पे.-१.पे. नाम. शीलव्रते मदनरेखा कथानक, पृ. १अ-४आ मदनरेखा कथा, सं., पद्य, आदिः शीलं प्रधानं न कुलं; अंतिः त्रिदिवं जगाम. पे..२.पे. नाम. जीवदयाविषये-मेतार्य कथा, पृ. ४आ-६आ __ मेतार्य कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, आदिः अत्रैव भरते साकेत; अंतिः दीक्षा गृहीता. पे..३. पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथा, सं., गद्य, (पृ. ६आ-८आ), आदिः प्रथ्वीभूषणपुरे; अंति: मत्याद्यमोक्षजग्मु. १२५०९. नागकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-५; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५३१, (२६.५४११.५, १५४४९ ५३). नागकुमार चरित्र, कवि मल्लीषेण, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमिजिनमानम्य; अंतिः पुराकारं विभूत्यासमं. १२५१०.” कल्पसूत्र की पीठिका, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अंतिम कुछ पत्र, (२५.५४१०.५, १२-१३४३४-३९). कल्पसूत्र-पीठिका*, संबद्ध, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्य परया भक्त्या; अंति: बोध्य मुक्तिमवाप. १२५११. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., (२५.५४१०.५, १९४५०-५२). कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः वसन्तपुर नगरनइ विषइ; अंतिः करतव्य करी सुखी थया. १२५१२. कथा सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १६१९, श्रेष्ठ, पृ. १८-२(२ से ३)=१६, पे. ११, जैदेना., ले.- मु. कर्मरत्न (गुरु आ. हेमरत्नसूरि, जीराउलागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४१०.५, १७४६२-६६). पे.-१. कोकाशनराजा कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ-१आ-, अपूर्ण), आदिः देसावकासिके यस्तु; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र For Private And Personal Use Only Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३७८ www.kobatirth.org: " नहीं हैं. पे. २. श्रीपाल चरित्र' मागु, पद्य, (पृ. ४अ -५अ, अपूर्ण), आदि-: अंति, पे. वि. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.-३. पे. नाम. सम्यत्वपालनविषये ईशानचन्द्रराजा कथा, पृ. ५अ-७अ, संपूर्ण ईशानराजा कथाकन बारव्रतविषये, सं., गद्य, आदि अङ्गदेशे सुदर्शननगर: अंतिः राजा जातानतोमोक्षञ्च पे. ४. पे. नाम जीर्णोद्धारसप्तक्षेत्रविषये वैश्रवण कथानक, पृ. ७अ- ९अ संपूर्ण वैश्रमण कथा-जीर्णोद्धार विषये, सं., गद्य, आदिः जीर्णे समुद्धृतेया; अंतिः मोक्षं गमिष्यन्ति .. पे. ५. पे नाम चतुर्विधधर्मविषये वीरसेन कथानक, पृ. ९अ १३अ संपूर्ण वीरसेन कथानक - चतुर्विधधर्म विषये सं, गद्य, आदि दान शील तपोभाव भेदा: अंतिः पश्चात् मोक्षं च. पे. ६. पे नाम. प्राणातिपात विषये नृपशेखर कथा, पृ. १३३-१४अ संपूर्ण कमलश्रेष्टि कथा- मृषावाद, सं., गद्य, आदिः असत्येन निहन्त्यं; अंतिः क्रमेणमोक्षगामी. पे.-८. पे. नाम. अदत्तादाने सुरदत्तकमलसेन कथा, पृ. १५अ - १५आ, संपूर्ण , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नृपशेखरराजा कथा-प्राणातिपात विषये, सं., गद्य, आदि: हिंसा दुःखलतामूलं; अंतिः सम्यक्पालनीयातथापरैः. पे. ७. पे नाम मृषावादविषये श्रेष्टिकमल कथा, पृ. १४-१५अ संपूर्ण कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सुरदत्त कमलसेन कथा - अदत्तादान विषये, सं., गद्य, आदि: नादत्तं गृह्यते; अंतिः अदत्तं न गृहीतं. पे.- ९. पे. नाम. चतुर्थव्रते चन्द्रसुरेन्द्र कथा, पृ. १५ - १६आ, संपूर्ण चन्द्रसुरेन्द्रभ्रातृ कथा-बह्यव्रते सं., गद्य, आदि परकीय वधूभोगं ये अंतिः शुभ कर्म्म निवन्धनं. पे.-१०. देवदत्तजयदत्त कथा-परिग्रह विषये, सं., गद्य, (पृ. १६आ- १७अ, संपूर्ण), आदिः यथा श्रृण्वन्तु भो; अंतिः निर्वाणपदेमेष्यति. पे.-११. रोहिणी कथा-दिखते, सं., गद्य, (पृ. १७अ - १८अ संपूर्ण ), आदिः दिव्रतं शुद्ध चेतस; अंतिः सिद्धिमवाप्स्यते. १२५१३. भक्तामरस्तोत्र कथा - मन्त्राम्नाययुक्त, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. २१ कथा तक लीखा है., (२५.५४१०.५. १७४५९-६१ ). भक्तामर स्तोत्र - कथा, मागु., गद्य, आदि: हेमश्रावकनी परैं; अंति: १२५१४. मङ्गलकलस कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. श्लो. २९६. प्रतिलेखक की भूल से श्लो. ६६ से प्रारंभ हुआ है किन्तु पाठानुसन्धान क्रमश: है., ( २६.५x११, ११३७). शान्तिनाथ चरित्र-हिस्सा मङ्गलकलश कथानक, आ. अजितप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३०७, आदिः उज्जयिन्यां महापुर्य; अंतिः प्रापतुः पदमव्ययम्. १२५१५. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १५१९ श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना. (२६.५४११.५, १९४५० -५१), कथा सङ्ग्रह, सं.,प्रा., पद्य, आदिः येनादौ नयसम्पदः; अंतिः अनन्तसुखभाजनंजाताः. १२५१७. मलयसुन्दरी कथा, अपूर्ण, वि. १५२८, श्रेष्ठ, पृ. २८- २ (१ से २ ) = २६, जैदेना., ले. - गणि कुलमेरु ( गुरु गणि ज्ञानभद्र), प्र. वि. गा. १२०३, प्र. वि. श्लो. १ से ८४ तक नहीं हैं., प्र.ले. श्लो. (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, ( २६.५४११, १५-१६४५०-५२). For Private And Personal Use Only मलयासुन्दरी कथा, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः परोवयारिक्क लीणमणा. १२५१८. पर्युषणापर्व कथा व कुरगडुमुनि दृष्टान्त, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., (२५.५X११, ११x४२-४३). पे. १. पर्युषणपर्व कथा, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, सं., गद्य (पृ. १आ - १४आ), आदि देवासुवशमानवापि निचय: अंतिः सुप्रेमलालसाः. पे.-२. कुरगडुमुनि दृष्टान्त, मागु., गद्य, (पृ. १४-१५अ ), आदिः खन्तिसुहाणमूलं०; अंतिः मुक्ति सुख पामसें. १२५१९. भाष्यत्रय व उपदेश कुलक, संपूर्ण, वि. १७वी मध्यम, पृ. ९ पे. २ जैदेना. ले. मु. महीसागर, (२५.५०११, ११९३६ " Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३९). पे.-१. भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-८आ), आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं., पे.वि. ३ भाष्य. पे.:-२. वैराग्य कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ - ९आ), आदिः जम्मजरामरणजले; अंति: सिवसुखं जेण पामिहिसि., पे.वि. गा. २२. १२५२०. दीपावली देववन्दन, संपूर्ण वि. १९४३ श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. पं. जसविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. संशोधित, (२५.५५११५, ११४२८-३२). दीपावली देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु, पद्य, आदि वीर जिनवर २ चरिम अंतिः नय कहै० होइ जयजयकार. १२५२१. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण वि. १८५१ श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. ले. मु. इन्द्रमाण, प्र. वि. ग्रं. ४०१, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५x११.५, १७४४५). " चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं. गद्य, आदि स्मारं स्मारं स्फुरद अंतिः सुविशदं व्याख्याभृत. " (+) (+) www.kobatirth.org: १२५२२. चातुर्मासिक व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., ( २४.५x१०.५, १६ १९४४२-४५) चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, आदि: स्मारं स्मारं स्फुरद, अंति: १२५२५. रात्रिभोजन वर्जने नागश्री कथा संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना. प्र. वि. श्लो. ३६३, पदच्छेद सूचक लकीरेंसंधि सूचक चिह्न, ( २६११.५, ११-१२३८). नागश्री कथा. मु. ब्रह्म नेमिदत्त, सं., पद्य, आदिः श्रीमज्जिनं जगत्पूज्: अंतिः कुर्यात्शतां मङ्गलं. १२५२६. पर्वव्याख्यान सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १७८३, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ३. जैदेना. ले. स्थल, पत्तन, ले. मु. उत्तमविजय, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६५११५, ११-१२X३८). " पे. १. अष्टानिकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं. गद्य (पृ. १अ-७अ), आदि: नत्वा गुरुं गिरं अंतिः पुण्यवृद्धये. पे २ फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, आ. भावप्रभसूरि सं., गद्य वि. १७८२, (पृ. ७अ-१५आ), आदि: नत्वा " , पार्श्वजिनेशाय: अंतिः पूर्णतामिदमाप्तवान्. पे. ३. चातुर्मासिक व्याख्यान उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य वि. १६६५ (पृ. १५आ-२२आ), आदि: प्रणम्य परमानन्दात्; अंतिः चतुर्मासक व्याख्याम्., पे. वि. ग्रं. २१०. . , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , १२५२७.” पर्युषणापर्वअष्टानिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. - ३ व्याख्यान.., पदच्छेद सूचक लकीरें, ( २६ ५४११.५ १२४३१-३३). पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान - बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः मङ्गलीक माला सम्पजौ.. १२५२८. पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९६२, जीर्ण, पृ. १५, जैदेना., (२५.५x११.५, १६×३८-४१). " पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, मु. नन्दलाल सं. पद्य वि. १७८९, आदि स्मृत्वा पार्श्व: अंतिः नन्दहेतुः सकामान्. १२५२९. पर्युषणअष्टानिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना. (२४.५४१०.५, १६४३७-४१). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्.. १२५३०.” पर्युषणपर्वअष्टान्हिका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १८१६, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. - ३ व्याख्यान, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२३४१२, १५४३६). पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, आदिः स्मृत्वा पार्श्व; अंतिः मिहातिहर्षात्. १२५३१. कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. १०, जैदेना., ले. स्थल. लाडणुनगर, ले.- ऋ. फतेचन्द, (२६x१२, २०-२१४५५-५७) पे.- १. सुलसासती कथा, सं., गद्य, (पृ. १अ - १आ), आदि: सिरिवद्धमाण पहुणा; अंतिः रूपेणनचचालमनागपि. " ३७९ For Private And Personal Use Only Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. अचकारिता कथा, सं., गद्य, (पृ. १आ-३आ), आदि अच्चकारिय चरियं अंतिः साध्योरग्रेयथास्थिती. पे - ३. सुभद्रासती कथा, सं., गद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदिः सुभद्रा दृष्टान्ते; अंतिः सुगतिंसमन्विभूतां. पे.-४. कलावती कथा, सं., गद्य, (पृ. ४आ-५आ), आदि: भद्दं कलावतीए भीसण; अंतिः हस्तौजातौपुनर्नवौ. पे.-५. सुदर्शनश्रेष्ठि कथा, सं., गद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदि: मुणिउं तस्सनसक्का; अंतिः शिरसिशेषरताम्बभार. पे.-६. सुनन्दासती कथा, सं., गद्य, (पृ. ६आ-८अ ), आदि: मगधदेशे कुशस्थलनगरे; अंतिः प्रीतिकरोजने.. पे. ७. शीलवती कथा, सं., गद्य (प्र. ८अ १० आ ) आदि सीलवईपसीलं सक्कइ: अंतिः श्रुत्वानप्रापकोमुदं. पे.-८. मृगावती कथा, सं., गद्य, (पृ. १०आ - १२अ ), आदिः साकेतपुर पत्तने सुरप; अंतिः भव्यानाम्भुविबोधकृत. पे. ९. चेटकराजासप्तकन्या- सङ्क्षिप्तनिर्देश, सं., गद्य (पृ. १२अ - १२अ) आदि चेटकराज्ञः पृथग्; अंतिः चन्दनार्यापार्श्वे. " " पे १०. रामवनवास सङ्क्षिप्तनिर्देश, सं., गद्य (पृ. १२अ- १२अ) आदि अयोधीश दशरथस्य चतस्र: अंति सौमित्रिरनुजग्मिवान्. (+) www.kobatirth.org: १२५३२. पोसदसमी कथा संपूर्ण वि. १८६४ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. ले. स्थल. अणेहलपुरपाटण (२२.५४१०५, १०-१२x२६ ३२). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः कथानक कृतं सम्पूर्णं. १२५३४. महीपाल कथा संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना, प्र. वि. गा.१८०८, संशोधित (२६.५४११.५ १९ २०४५८ 1 " ५९). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः निययगुरूणं पसाएण. १२५३५. महीपाल कथा संपूर्ण वि. १६४९ श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना, प्र. वि. गा. १८०९ ग्रं. २५००, संशोधित प्रारंभिक पत्र, (२६११, १७९४९). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदि नमिऊण रिसहनाहं केवल अंतिः निययगुरूणं पसाएण. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " (+) १२५३६. महीपाल कथा संपूर्ण, वि. १७वी जीर्ण, पृ. ४७, जैदेना, प्र. वि. गा. १८१४, पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त · विशेष पाठ, (२५.५४११, १५९५१-५५) महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः निययगुरूणं पसाएण. १२५३७.” महीपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६३ - १ (४१) = ६२, जैदेना., ले. गणि हेमवर्द्धन (गुरु पं. रङ्गवर्द्धन ), प्र. वि. गा. १८०६, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४११, १३४४५-५०). महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण रिसहनाहं केवल; अंतिः वुद्धिं करतेहिं. १२५३८. मौनएकादशी कथा संपूर्ण वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. जीवणसिंह, लिखवा मु गम्भीरविजय, प्र. वि. प्र.पु. ग्रं. १७०., प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२७४१२, ११४३२-३५). मौनएकादशी कथा, मु. लक्ष्मीविमल, सं., गद्य, आदिः श्रीमन्नेमिजिनेश्वरं; अंतिः लक्ष्मीमुनिस्तांकथां. - " १२५३९. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, ले. जीवणसिंह, लिखवा. मु. गम्भीरविजय, प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १४०., संशोधित, ( २६.५x११.५, ११४३५-३६). मौनएकादशी कथा, मु. लक्ष्मीविमल, सं., गद्य, आदिः श्रीमन्नेमिजिनेश्वरं; अंतिः लक्ष्मीमुनिस्तांकथां. For Private And Personal Use Only १२५४०. कर्पूर प्रकरण कथासङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६४७, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. पाहलणपुर, ले.- मु. वासण (गुरु गणि कुशलचन्द्र ), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. मूल १५७ कथा, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले. श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा, (२५.५x१०.५, १७४४८-४९). कर्पूर प्रकरण-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानम्य; अंतिः कोडीएविनं नट्ठीय. १२५४१. पोषदशमी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२५x११, ११x२७-२९). " पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं. गद्य, आदि: प्रणम्य पार्श्वनाथ: अंतिः इदं सम्बन्धं रचनीयम्. Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra , हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३८१ १२५४२. मेरुतेरस कथा संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना ले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय ), ( २६४११, १३१४४४३-४७). मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदि: प्रणम्य भारती अंतिः यस्यमुक्तिसाधनङ्कृतः १२५४३. मौनएकादशी माहत्म्य, संपूर्ण वि. १७०७ श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. स्थल सूर्यपुरबंदिरे, ले. पं. प्रीतिविजय (गुरु पण्डित दर्शनविजय), प्र. वि. श्लो. २०१, संशोधित, ( २६.५x११, १७४४८). मौनएकादशीपर्व कथा आ. रविसागर सं., पद्य, वि. १६५७, आदि: प्रणम्य ऋषभदेवं अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. www.kobatirth.org: १२५४४. एकादशी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना, प्र. वि. मूल श्लो. ११६. पू. वि. टबार्थ गा. ३७ तक " ही लिखा है., ( २६११.५, ४२७-२८). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., पद्य वि. १५७६, (संपूर्ण), आदि अन्यदा नेमिरीशाने अंतिः नं ते . भवति श्रीयपदं. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मौनएकादशीपर्व कथा - टवार्थ, मु. सौभाग्यचन्द्र मागु, गद्य, (अपूर्ण) आदि ग्रामानुग्रामें: अंतिः १२५४५. मौनएकादशी कथा सह टबार्थ, पार्श्वजिन स्तोत्र व नमस्कार काव्य, संपूर्ण, वि. १८२०, मध्यम, पृ. ८, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. मंगलपुर, ले. पं. मोहनविजय, ( २६१२, ९५१). पे. १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. , मौनएकादशीपर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: प्रणम्य श्री ऋषभदेव अंति: १६६७ वर्षे ए कथा करि., पे.वि. मूलश्लो. २०१. पे. २. पार्श्वजिन स्तोत्र, सं. पद्य, (पृ. ८अ-८आ), आदि पार्श्वनाथ नमस्तुभ्य अंतिः सततमहं नमस्करोमि, पे.वि. श्लो. २१. " पे. ३. सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., पद्य, (पृ. ८आ८आ), आदि सकलकुशलवल्ली अंतिः श्रेयसे पार्श्वनाथः, पे.वि. श्लो. १. १२५४६. मौनएकादशी व सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. २, जैदेना., ले. - गणि शुभविजय, (२५.५४११.५, ६४३५-३८). पे. - १. पे. नाम. मौनएकादशीपर्व कथा सह टबार्थ, पृ. १आ-१७अ मीनएकादशीपर्व कथा आ. रविसागर सं., पद्य वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं अंति सागरशररसशशिप्रमिते. मी एकादशीपर्व कथा-टवार्थ मागु, गद्य, आदि नमस्कार क० श्रीऋऋषभ अंति सर विद्यमान हुते. पं. वि. मूलश्लो २०१ पे. २. पे नाम ज्ञानपञ्चमीपर्व कथा सह टबार्थ प्र. १०अ २९अ J वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्श्व अंतिः प्रमिते मितसद्गुणम्.. ज्ञानपंचमीपर्व कथा- टवार्थ माग गद्य, आदिः श्रीमन्त शोभा अंतिः रूडे गुण युक्त छइ. पं. वि. मूल-श्लो. १५०. ; १२५४७. होलीपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८५७ श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना., ले. स्थल द्वीपबिंदर, ले. ऋ. वेलजी, प्र. वि. मूल " श्लो. ६९., ( २६.५x११.५, ५X३२-३४). होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि: ऋषभस्वामिनं वन्दे; अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभ स्वामीने नमस्कार; अंतिः होइ तिहां जय थाई. १२५४८. रजपर्व कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. मूल श्लो.६९ (२६४११.५, ७५३६-३७). - For Private And Personal Use Only Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८२ www.kobatirth.org: होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदि ऋषभस्वामिनं वन्दे अंतिः यतो धर्मस्ततो जयः. होलिकापर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ऋषभ स्वामीने नमस्कार; अंतिः होइ तिहां जय थाई. १२५४९.” षट्अठाईस्वरूप, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल भृगुकच्छ, प्र. वि. ३व्याख्यान, संशोधित, ( २६×११, १०x४०-४३). पर्युषणाष्टानिका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., गद्य, आदिः अष्टानिकाः षडेवोक; अंतिः काणाङ्कारइत्युक्तं. १२५५०. सौभाग्यपञ्चमी कथा व ग्रहशान्ति स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६×१०.५, १५X३५-३९). पे.- १. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, (पृ. १अ - ५आ), आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे, पे.वि. श्लो. १५२. पे. २. ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य (प्र. ५आ-६अ ), आदि: जगद्गुरुं नमस्कृत्य: अंतिः शान्तिविधि श्रुतम्, पे.वि. श्लो. ११. १२५५१. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा संपूर्ण वि. १६९४ श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. प्रथमादर्श लिखित श्लो. १४७, पू.वि. " " गा. १४७, ( २६४११, १३४४०-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्श्व अंतिः तैरेव मेडतानगरे. १२५५२. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा संपूर्ण वि. १६५५ श्रेष्ठ, पृ. ५. जैवेना. प्र. वि. श्लो. १५२, (२५४१०५ १३-१५४४३-४४). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं. पद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्थ: अंतिः तैरेव मेडलानगरे. " " " ३२). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं. गद्य, आदि ज्ञानसार सर्व संसार अंतिः प्रपाल्य मुक्तिंगतः " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२५५३. वरदत्तभूपाल कथा संपूर्ण वि. १७२०, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना, प्र. वि. श्लो. ५२३ (२४.५१०.५, १५९४६-४९). " वरदत्तभूपाल कथा, मु. देवविजय, सं., पद्य, आदि: पुष्णातु प्रीतिमन्ना अंतिः वरदत्तवरलक्ष्मीः, ; १२५५४. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. खुसालविजय, (२५.५X११.५, ११-१२x२७ " १२५५५. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा संपूर्ण वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. ले. स्थल थीरानगर, ले. मु. रुपविजय शिष्य, - राज्यकाल- दृरजेणसङ्घ ठाकुर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१२, १३४३७-३८). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं., गद्य, आदि ज्ञानसार सर्व संसार अंतिः प्रपाल्य मुक्तिंगतः १२५५६. सौभाग्यपञ्चमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. १५२., (२५x११, ६३३ " 34). वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं. पद्य वि. १६५५ आदिः श्रीमत्पार्थ: अंतिः तैरेव मेडतानगरे, " ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः ए कथा गुन्थी कनककुसल . १२५५७. ज्ञानपञ्चमी कथा सह टबार्थ व उजमणा के वस्तुओं की नोंध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., , (२६.५४१२, ७०x३९-४२) पे. १. पे नाम ज्ञानपञ्चमीपर्व कथा सह टवार्थ, पृ. १अ ११अ वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदि: श्रीमत्पार्श्व; अंतिः विनिर्मिता कनककुसले. For Private And Personal Use Only ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टवार्थ मागु गद्य, आदि: पार्श्वनाथ प्रतें अंतिः ए कीधी कनककुसल कविई, पे. वि. मूल .. श्लो. १५०. पे. २. उद्यापन वस्तु सूची माग गद्य (पृ. ११आ-११आ) आदि ५ नोकारवली ५ पावा अंतिः सुधू करे जथा सकतें. . (+) १२५५९. स्थम्भनपार्श्वमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह व स्तोत्र, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे २, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, (२५.५४१०.५, १८४६०-६३). Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३८३ पे. १. पार्श्वजिन माहात्म्य कथासङ्ग्रह स्थम्भनपार्श्व आ. मेरुतुङ्गसूरि सं., गद्य वि. ११३१, (पृ. १अ - ५अ ), आदि: स्थम्भनपार्श्व मूर्त; अंतिः वाञ्छितस्तम्भनेश:., पे. वि. ३२प्रबंध. पे. २. पार्श्वजिन स्तुति स्तम्भन सं., पद्य, (पृ. ५अ -५आ) आदि भूमिनाभिसुते पवित्रय: अंतिः वांछितं स्तंभनेशः, पे. वि. गा. ५.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२५६१. दीपावली कल्प व होली कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८३७, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. ३, जैदेना., ले. स्थल. अहिम्मदाबादनगरे, ले. मु. मतिसागर (गुरु आ. पुण्यसागर), (२५.५४११.५, १२-१३४३४). पे. १. दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि सं., पद्य, वि. १४८३ (५. १अ २०आ) आदि श्रीवर्द्धमानमाङ्गल: अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये, पे.वि. श्लो. ४२२. पे.-२. होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., पद्य, वि. १४८५, (पृ. २०आ - २३आ), आदि: प्रणम्य सम्यक् ; अंतिः चिरं वाच्यताम्.. पे.वि. श्लो. ३४. " 1 पे. ३. होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं. पद्य (पृ. २३-२४आ), आदि: वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंति विज्ञानायाञ्चनोचितः., पे.वि. श्लो. ५२. १२५६२." गौतम कुलक सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना. ले. स्थल सुरति बंदर, पठ. पं. सिद्धिविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५x११.५, ९×३४-३५). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-बालावबोध, मागु, गद्य, आदि: नत्वा श्रीदेव गुरुन: अंतिः घणुं संसारमांहि भमि. १२५६३. गौतम कुलक सह टबार्थ आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ५, जैदेना. (२६.५४१०.५, ४×२७-३०), पे.- १. पे. नाम. गौतम कुलक सह टबार्थ, पृ. १अ - ५अ गीतम कुलक, प्रा., पद्य, आदि सुद्धा नरा अत्थपरा: अंति सुहं लहन्ति. , , गीतम कुलक-टवार्थ, मागु, गद्य, आदिः लु० लोभीया नर मनुष्य अंतिः सेवइ ते सुख लहई, पे.वि. मूल-गा.२०. पे. २. पे. नाम. राज्य की २७ शोभागाथा सह टबार्थ, पृ. ५अ - ५आ राज्यकी २७ शोभा गाथा, प्रा., पद्य, आदिः वापी वप्र विहार; अंतिः राज्यं ववैः सोभ्यते. राज्यकी २७ शोभा गाथा-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: वावि कोट प्रासाद अंतिः राज्य सोभइ विराज्य., पे.वि. मूल गा.१. पे. ३. जैन श्लोक सं., पद्य, (प्र. ५आ-५आ), आदि: # अंति, पे. वि. प्र. पु. १. पे. ४. पे नाम. १४ नियम गाथा सह टवार्थ प्र. ५आ-५आ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., पद्य, आदिः सच्चित्त दव्व विगई; अंतिः दिसि न्हाण भत्तेसु. १४ नियम गाथा - टवार्थ, मागु, गद्य, आदि सचित जलादिक १ द्रव्य अंतिः स्नाद आहारादि.. पे. वि. मूल-गा.१. पे. ५. पञ्चिन्दियसूत्र, प्रा. पद्य (प्र. ५आ-५आ), आदि पञ्चिदिअ संवरणो तह अंतिः छत्तीसगुणो गुरु मज्झ., पे.वि. गा.२.. १२५६४. गौतम कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना, ले. स्थल, साणंद, ले. पं. रङ्गविजय, प्र. वि. मूल - गा.२०. प्र. ले. श्लो. (४७४) मङ्गलं लेखकानां (लिखितानां च (२६.५५११.५, ४४२९). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा: अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि लोभीया मनुष्य अर्थनइ: अंतिः आत्मासुख लहई. १२५६५.” भावना कुलक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७६१, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २१., दशा वि. अक्षर पत्रों पर आमने-सामने छप गए हैं. (२६४१०.५. १८- २०४५३-५९) भावना कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा., पद्य, आदि कमठासुरेण रईअम्मि: अंतिः सोलहइ सिद्धि सुहं. " For Private And Personal Use Only Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भावना कुलक-बालावबोध , मु. विनयकुशल, मागु., गद्य, आदिः कमठासुरनामइ मेघमाली; अंतिः सूचिउं इस्यू भावार्थ. १२५६६. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. छमुआलाग्राम, प्र.वि. मूल ____ गा.४९., (२५.५४११.५, ६x४२-४५). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदि: देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः देवाधिदेवने नमस्कार; अंतिः षमज्यो हे महापुरुसो. १२५६७. कुलक सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.- गणि बुद्धिविजय (गुरु गणि तत्वविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४११, ५४३८-३९). पे.-१. पे. नाम. पडिलेहण कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-४अ पडिलेहण कुलक, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः पडिलेहणा विशेष; अंतिः सीसेणं विजयविमलेणं. पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रतिलेखनाना विशेष; अंतिः विजयविमल शिष्येण., पे.वि. मूल-गा.२८. पे..२. पे. नाम. अष्टभङ्गी कुलक सह टबार्थ, पृ. ४अ-५अ अष्टभङ्गी कुलक, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः देवगुरुधम्मतत्तं; अंतिः लिहिया कविविजयविमलेण. अष्टभङ्गी कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: सुगुरु सुदेव सुधर्म; अंतिः विजयवमल कवीश्वरेण., पे.वि. मूल-गा.१०. पे.-३. पे. नाम. प्रतिलेखनबोल गाथा सह टबार्थ, पृ. ५अ-५आ प्रतिलेखनबोल गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः सुतत्थतत्थदिट्ठी; अंतिः तणत्थं मुणि बिन्ति. प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः पहिली पडिलेहणानु; अंति: मांहि चिन्तववा कह्या., पे.वि. संबद्ध गा.०५. १२५६८. दानशीलतपभावना कुलक सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४४९-३७५(१ से ३७५)=७४, जैदेना., प्र.वि. मूल गा.२०.. पू.वि. प्रारंभ व अंत के पत्र नहीं हैं. तपकुलक का अंतिम मात्र हैं, भावना कुलक हैं., (२६x११, ११४३५ ३८). दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमञ्जूषा टीका, गणि देवविजय, सं., गद्य, वि. १६६६, आदि:-; अंतिः सुहं मोक्ष सुखमिति. १२५६९. प्रबन्धचतुर्विंशतिका, संपूर्ण, वि. १६७६, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., ले.स्थल. कंटालिया, ले.- गणि लब्धिकल्लोल (गुरु मु. कुशलकल्लोल, खरतरगच्छ),प्र.वि. २४ प्रबन्ध, (२५.५४११, १७४५२-५५). प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १४०५, आदिः राज्याभिषेककनकासनस्थ; अंतिः सुखं तन्यात्. १२५७०." जिनप्रतिमास्थापन प्रबन्ध-६ अधिकार, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१०.५, १३४४५-५१). जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध , मु. ब्रह्म, मागु., पद्य, वि. १६७७, आदि:-; अंति:१२५७१. खरतरगच्छीय पट्टावली, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- गणि सुन्दर, (२६४१०.५, २१-२४४६८-७०). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदिः आभोहर देशे जिन; अंतिः महामहोत्सवेनोपवेशित. १२५७२. प्रियमेलक चौपाई, पुण्य कुलक आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, पे. ५, जैदेना., (२५४११, १५४४२ ४६). पे:-१. प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, (पृ. १आ-९अ), आदिः प्रणमुं __ सद्गुरु पाय; अंति: पुण्यइ अधिक प्रकार., पे.वि. गा.२२०. पे.२. पुण्य कुलक, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-९अ), आदिः सपुन्न इंदिअत्त माणु; अंतिः ते सासयं सुक्खं., पे.वि. गा.१०. पे..३. लेश्या विचार, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः रुद्रो दुष्टः सदा; अंतिः शुक्ललेश्यः उदाहृतः., पे.वि. गा.६. For Private And Personal Use Only Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३८५ पे:४. औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गा.७. पे.५. गर्भवृद्धि विचार, सं., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः सोणितं प्रथमे मासे; अंतिः गर्भोपद्रव वर्जित., पे.वि. श्लो.२. १२५७४. रोहिणीयाचोर प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. गा.२६२, (२०.५४१०.५, १३४३८-३९). रोहिणीयाचोर प्रबन्ध, श्रा. देपाल भोजक, मागु., पद्य, वि. १६वी, आदि: बाहर टङ्कु ग्रहि; अंतिः देपाल भणइ० समोसरणि. १२५७५. भोजराज प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. २ प्रकाश, (२६४१०.५, १५४४९-५३). भोजराज प्रबन्ध, आ. मेरुतुङ्गाचार्य, सं., गद्य, आदिः पुरा मालवमण्डले; अंतिः यथाश्रुतं मन्तव्या. १२५७६." ढालसागर, पूर्ण, वि. १७०५, मध्यम, पृ. १२९-२(१,३८)=१२७, जैदेना., ले.- मु. नानग, प्र.वि. अध्याय-९ खंड/१५१ ढाल, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४११, १४-१५४५०-५१). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदिः- अंति: जंपे संघ रंग वधामणो. १२५७७. हरिवंशप्रबन्ध अधिकार ७-९, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., (२६.५४११, १८-६१४५२-५९). पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७६, आदि:-; अंतिः जंपे संघ रंग वधामणो. १२५७९. इन्द्रियपराजयशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. गा.१००, (२६.५४११, १०-११४३७-३९). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. १२५८०. वैराग्यशतक, आदिनाथदेशनोद्धारशतक व इन्द्रियपराजयशतक, संपूर्ण, वि. १६५४, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., पठ.- गणि चारित्रविजय, (२६.५४११, १५४४९-५२). पे:-१. वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं., पे.वि. ___गा.१०३. पे.२. आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदिः संसारे नत्थि सुहं; अंति: सिवं जन्ति., पे.वि. गा.८५. पे.-३. इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-९आ), आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं., पे.वि. गा.१०४. १२५८१.” इन्द्रियपराजयशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१००., पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, (२६४११, १५४४५). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., गद्य, वि. १६६४, आदिः प्रणम्य मृगलक्ष्मी; अंतिः किमुवाच्यमार्याः. १२५८२." इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.- मु. हंसलक्ष्मी, प्र.वि. मूल-गा.९९., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११, ६x४१). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं. १२५८३. इन्द्रियपराजय व वैराग्यशतक सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, ७X३४-३८). पे.१.पे. नाम. इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, पृ. १अ-९आ, संपूर्ण इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सुच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः अमृते नित्य सदाई पीइ., पे.वि. मूल गा.१०१. पे.२.पे. नाम. वैराग्यशतक सह टबार्थ, पृ. ९आ-९आ-, अपूर्ण वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंति: For Private And Personal Use Only Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ए संसार असार जांणिउ; अंतिः-, पे. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रारंभ मात्रही हैं. १२५८४. जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६१, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल - ४परिच्छेद, श्लो. १००., त्रिपाठ, (२४.५४१०.५, ७४४५-४९). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः रागादिदोष जेतृत्वा; अंतिः श्रुन्यान्विधियादिति... www.kobatirth.org: (+) " १२५८५. जिनशतक सह अवचूरि व श्लोक, संपूर्ण वि. १४८२ श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना. प्र. वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत, ( २६ ११, १३x४३-४९). पे.- १. पे. नाम. जिनशतक सह अवचूरि, पृ. १-८आ जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः रागादिदोष जेतृत्वा; अंतिः क्षुद्रान् न भवति, पे. वि. मूल- अध्याय - ४परिच्छेद, श्लो. १००. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदि: #; अंतिः #., पे. वि. प्र. पु. - श्लो. १. १२५८६.'” जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५४६, श्रेष्ठ, पृ. ५, देना., ले. गणि शुभवर्द्धन, प्र. वि. मूल - ४परिच्छेद, श्लो. १००., पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न - वचन विभक्ति संकेत - क्रियापद संकेत, संशोधित, पंचपाठ, दशा वि. टीकादि का अंश नष्ट है दाहिना भाग, (२५.५४११, १७-१८४५५-५६). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः एष सूर्यो भुवनं अंतिः भवते न प्राप्नोति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (+) १२५८७. जिनशतक सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना. प्र. वि. मूल-४परिच्छेद, श्लो. १००, पदच्छेद सूचक " " लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत क्रियापद संकेत, पंचपाठ (२६४११, १३-१४४३७-४१) - जिनशतक. मु. जम्बू कवि सं. पद्य वि. ११वी आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो अंतिः वागसी द्वाग्विधेयात्. जिनशतक- अवचूरि, सं., गद्य, आदि: रागादिदोष जेतृत्वा; अंतिः श्रुन्यान्विधियादिति. १२५८८. जिनशतक सह पञ्जिका अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. मूल - ४परिच्छेद, श्लो. १००; अवचूरि-ग्रं. ११३४. पंचपाठ (२६.५x११, १०-११०४२-४४). जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक- अवचूरि, मु. शाम्बमुनि, सं., गद्य वि. ११वी आदि श्रीइति प्रक्रान्त: अंतिः शून्यान्विधेयादिति. १२५८९. जिनशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना, प्र. वि. मूल-४परिच्छेद, श्लो. १०० प्र. पु. उभयग्रं. १५५०.., (२६×१०.५, १७४५३-५७). जिनशतक, मु. जम्बू कवि सं., पद्य वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो अतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. " जिनशतक- पञ्जिकाटीका, मु. शाम्बमुनि, सं. गद्य वि. १०२५, आदि: निष्क्रान्ती कृत अंतिः परिच्छेदः समाप्तः १२५९०. जिनशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६२५, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले. स्थल. नंदरबार, ले.- श्रा. खीमजी सोमजी, प्र. वि. मूल- ४परिच्छेद, श्लो. १०० टीकाग्रं. १५५० (२६४११, १६-१९४६०-६४) जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., पद्य, वि. ११वी, आदिः श्रीमद्भिः स्वैर्महो; अंतिः वागसौ द्राग्विधेयात्. जिनशतक- पञ्जिकाटीका, मु. शाम्बमुनि, सं., गद्य वि. १०२५, आदि: निष्कान्ती कृत अंतिः परिच्छेदः समाप्तः १२५९१.” दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. १०२, पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६११, ५X४१-४३). दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं. पद्य, आदि नत्वा श्रीवृषमं अंतिः विशोध्यं वरे For Private And Personal Use Only Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३८७ दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं; अंतिः सिङ्घजीनी आज्ञा छइं. १२५९३." दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९०१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. बनेडानगरे, ले.- ऋ. रामनाथ(बृहन्नागोरीलुङ्कागच्छ), प्र.वि. मूल-श्लो.१०२., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२६४११.५, ५४३०-३३). दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., पद्य, आदिः नत्वा श्रीवृषभं; अंतिः विशोध्यं वरै. दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: न० नमस्कार करीनै; अंतिः नही इम आज्ञा छइं. १२५९४. कौतुक कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. ३२कथा, प्र.ले.श्लो. (६११) यादृशं पुस्तके _ दृष्ट्वा ; (६२६) मङ्गलं लेषकानां च, (२६४११, १२-१३४३४-३९). भरटकद्वात्रिंशिका, गणि आनन्दरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः देवदेवं नमस्कृत्य; अंतिः (१)हृष्टोगृहे जगाम (२)बुधेन निश्चितं. १२५९६. लोकनालिद्वात्रिशका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, (२४.५४११, १२ १३४३६-४४). लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीदायकं; अंतिः तीर्थङ्करे कयुं छे. १२५९७. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३३., (२६४१२, ३-४४२५ ३१). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे वीतराग देव ताहरु; अंतिः सूबोध पांमने अर्थे. १२५९८.” लोकनालिद्वित्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३२., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ३४३०-३१). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) जिनना दर्शन (२) पणमिय जिण पयपङ्कय; अंतिः नही अनइ सुख पामउ. १२५९९. लोकनालिद्वात्रिंशका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. लिंबपत्तन, ले.- मु. खुसालविजय, प्र.वि. मूल-गा.३२., प्र.ले.श्लो. (६२७) जलात् रक्षे तैलात् रक्षे, (२५.८x११, १२-१३४३३-३४). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रीदायकं; अंतिः तीर्थङ्करे कडुं छे. १२६००.” अभिधानचिन्तामणि नाममाला, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., ले.स्थल. विक्रमपुर, पठ.- सुगुणचन्द्र, प्र.वि. ६ कांड, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२५४११.५, ११४३१ ३७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १२६०१. विचारपंचाशिका सह टबार्थ व समकित के ६७ बोल आदि, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ८, पे. ५, जैदेना., पठ. मु. तिलकविजय, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ४-५४३६-४१). पे.-१. पे. नाम. विचारपञ्चाशिका सह टबार्थ, पृ. १अ-७आ विचारपंचाशिका , गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपञ्चाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्व; अंतिः (१)कीधी परोपकारार्थि (२)तीहांथी सर्व जाणज्यो., पे.वि. मूल-गा.५१. For Private And Personal Use Only Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे..२.पे. नाम. समकीतना ६७बोल सह विवरण, पृ. ७आ-८आ समकितना ६७ बोलभेद , प्रा.,मागु., पद्य, आदि: चउसद्दहणा तिलिङ्ग; अंतिः भेअविसुद्धिच समत्तं. समकीतना ६७ बोल-विवरण, मागु., गद्य, आदिः प्रथम चार सद्देहणा; अंतिः सरवाले ६७ बोल जाणवा., पे.वि. मूल गा.२. पे.-३. पे. नाम. सप्तनय विवरण, पृ. ८आ-८आ सप्तनय, सं., पद्य, आदिः नैगम सङ्ग्रह व्यवार; अंतिः देवंभुतोभिमन्यते., पे.वि. गा.८. पे.-४. सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः मुहपत्ती रयहरणं; अंतिः दसप्पेहाणुग्गएसूरे., पे.वि. गा.१. पे.-५. साधुअतिचारचिन्तवन गाथा, संबद्ध, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः सयणासणन्नपाणे; अंतिः वितहायरणेय अइयरो., पे.वि. गा.१. १२६०२. विचारपञ्चासिका सह अवचूरि व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.- गणि न्यायसागर, प्र.वि. त्रिपाठ, (२४.५४१०.५, २-५४५०-५२). पे.-१.पे. नाम. विचारपञ्चाशिका सह अवचूरि, पृ. १अ-६अ विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपञ्चाशिका-अवचूरि, गणि विजयविमल, सं., गद्य, आदि: वीरपदकजं श्रीमहावीर; अंतिः विधाय ___संशोध्यमिति., पे.वि. मूल-गा.५१. पे..२. जैन सामान्यकृति, प्रा.,मागु.,सं., गद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः#; अंतिः#. १२६०३. विचारपञ्चाशिका सह टीका, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पठ.- पं. उत्तमविजय, प्र.वि. मूल-गा.५१., __ त्रिपाठ, (२६.५४११.५, ४-५४४१-४४). विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपञ्चाशिका-अवचूरि, गणि विजयविमल, सं., गद्य, आदि: वीरपदकजं श्रीमहावीर; अंतिः विधाय संशोध्यमिति. १२६०४. धनपालपञ्चाशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. देवसनगरे, ले.- गणि आणन्दविजय (गुरु गणि सिंहविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५०., (२६४११, १३४३६-४१). ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टीका, आ. प्रभानन्दसूरि, सं., गद्य, आदिः जयत्ति व्याख्या हे; अंतिः पञ्चाशत्तमगाथार्थः. १२६०५. ऋषभपञ्चाशिका सह टबार्थ व जीवदया सझाय, संपूर्ण, वि. १५वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- मु. जिनप्रमोद-शिष्य (गुरु गणि जिनप्रमोद), पठ.- गणि कुंअरविजय, (२६.५४११, ७४३७). पे.-१. पे. नाम. ऋषभपञ्चाशिका सह टबार्थ, पृ. १अ-५अ ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जगना जीवरहि कल्प; अंतिः बोधिबीज फल छइ जेहनउ., पे.वि. मूल ___गा.५०. पे.२. जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १६वी, (पृ. ५अ-५आ), आदिः गोयम गणहर पय पणमेवि; अंतिः सासणि साचउ धर्म., पे.वि. गा.१५. १२६०६. ऋषभपञ्चाशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., (२६४१२, ५४३२-३३). ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जगजन्तु कल्पपादप; अंतिः बीजफलनुं देणहार हुई. १२६०७. शाश्वतजिनभवन स्तोत्र व ऋषभपञ्चाशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १५३५, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. For Private And Personal Use Only Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३८९ खरसुदग्रामे, ले.- मु. लावण्यप्रिय (गुरु गणि ज्ञानभद्र), प्र.वि. पंचपाठ, (२६४११, ८-१०x४२-४५). पे..१.पे. नाम. शाश्वतचैत्य स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ शाश्वतचैत्य स्तव, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिउसह वद्धमाणं; अंतिः भवियाण सिद्धिसुहं. शाश्वतचैत्य स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीऋषभ वर्द्धमान; अंतिः तेवीसजुयापणिवयामि., पे.वि. मूल-गा.२४. पे.२. पे. नाम. ऋषभपञ्चाशिका सह टीका, पृ. २आ-५आ ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः जयजन्तुकप्पपायव; अंति: बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टीका, गणि नेमिचन्द्र, सं., गद्य, आदिः नमस्तुभ्यमस्तु इति; अंतिः द्रेण बोधिनिमित्तम्., पे.वि. मूल-गा.५०. १२६०८. ऋषभदेवपञ्चाशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७७९, श्रेष्ठ, प्र. ७, जैदेना., ले.स्थल. रूपनगर, ले.- जटु वैद्य, प्र.वि. मूल-गा.५०., (२५४११, १३४४५). ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदि: जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टीका, गणि नेमिचन्द्र, सं., गद्य, आदिः नमस्तुभ्यमस्तु इति; अंतिः बोधिफलो बोधि लाभायभव. १२६०९.” सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- मु. हरषसागर, प्र.वि. मूल गा.७४. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ३५०., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ४-५४३०-३९). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइ तिन; अंतिः ईहां सन्देह नही. १२६१०. उपदेशरत्नकोश व सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५७, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सोजितनगर, ले.- मु. महेन्द्रसागर, पठ.- मु. इसरसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, (२५.५४१०.५, ६४३७-३८). पे..१. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह टबार्थ, पृ. १अ-३अ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ; अंतिः विउलं उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः उपदेशरूप रत्नकोश; अंतिः स्वेच्छाइ रमइ., पे.वि. मूल-गा.२५. पे.२.पे. नाम. सम्बोधसत्तरि सह टबार्थ, पृ. ३अ-९आ सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीने त्रिण; अंतिः इहां सन्देह कोई नही., पे.वि. मूल गा.७२. १२६११. सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७३३, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., लिखवा.- ऋ. मूलजी, प्र.वि. मूल-गा.७४. प्र.पु. उभय-ग्रं. ३५०., (२४.५४११, ५४३३). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइ तिन; अंतिः पामइ इहां सन्देह नही. १२६१२." सिन्दूर प्रकरण व सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १७७७, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. संघाणानगरे, पठ.- मु. लाला, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१०, १४४४७-४९). पे:१. सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-७आ), आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्., पे.वि. श्लो.१०२. पे:२. सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ७आ-९आ), आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो., पे.वि. गा.७३. १२६१३. सम्बोधसत्तरी सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७६., (२५४११, ५-६४३८-४१). For Private And Personal Use Only Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: नत्वा त्रैलोक्य गुरु; अंतिः लभते नैवात्र सन्देहः. १२६१४.” सम्बोधसत्तरी सह टीका, संपूर्ण, वि. १८१३, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. जयनगरे, ले.- गणि भाग्यविजय, प्र.वि. मूल-गा.७६., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४११.५, ५ ८४३७-३९). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः अहंउद्धारगाथाभिः; अंतिः नमिसूचितं श्रीजयशेखर. १२६१५.” सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १७०६, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. वढवांण, ले. पं. जयविजय (गुरु गणि दीपविजय), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४११.५, ४४३१-३२). पे.-१. पे. नाम. सम्बोधसप्ततिका सह टबार्थ, पृ. १आ-१८आ, संपूर्ण सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य(अपूर्ण), आदिः नमस्कार करीनै; अंतिः-, पे.वि. मूल-गा.१०४. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.१२ तक टबार्थ लिखा हैं. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-३. १२६१६. सम्बोधसत्तरी, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., पठ.- श्राविका सीताबाई, प्र.वि. गा.७२, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ९४३०-३२). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. १२६१७. सम्यक्त्वसत्तरी सह बालावबोध+कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७०., (२६.५४११, ७४३०-३१). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध+कथा, उपा. रत्नचन्द्र, मागु., गद्य, वि. १६७६, आदिः सम्यक्त निर्मलाईनु; अंतिः शुद्धि निश्चइं लहउ. १२६२०. कालसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. घाटीला, ले.- पं. भीमविजय, प्र.वि. मूल गा.७४., (२४.५४११.५, ६x४०-४७). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इन्द्र महाराय नम्या; अंतिः कहिव्युं जीवनइ अर्थे. १२६२१. कालसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. घांटीला, ले.- पं. भीमविजय, प्र.वि. मूल गा.७४., (२४.५४११.५, ६x४४-४६). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः इन्द्र महाराय नम्या; अंतिः कहिव्युं जीवनइ अर्थे. १२६२२. उपदेशसप्ततिका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., प्र.वि. ५ अधिकार; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ३०००, (२५४११, १८४५०-५२). उपदेशसप्ततिका, गणि सोमधर्म, सं., पद्य, वि. १५०३, आदिः श्रीसोमसुन्दरगुरूज्ज; अंतिः स्यात्तथा चिन्तनीयम्. १२६२३. सित्तरी सङ्ग्रह सह अवचूरि, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४-१(२)=१३, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, पंचपाठ, पू.वि. बीच का एक पत्र नहीं है व प्रतिलेखक द्वारा अंतिम अवचूरि अपूर्ण., (२६४११, ११४३०). पे.-१. पे. नाम, वनस्पतिविचारसत्तरी सह अवचूरि, पृ. १अ-५अ, संपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३९१ वनस्पतिसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उसभाइए जिणिन्दे; अंतिः मुणिचन्दसूरीहिं. वनस्पतिसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः उसभेत्यादि गाथा; अंतिः ततः प्रत्येक इति., पे.वि. मूल-गा.७७. पे.२.पे. नाम. कालसप्ततिका सह अवचूरि, पृ. ५अ-१०अ, संपूर्ण कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि: देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः देवेन्द्र नतं विद्या; अंतिः नन्तगुणानागताद्वा., पे.वि. मूल-गा.७४. पे.-३. पे. नाम. अगुलसप्ततिका सह अवचूरि, पृ. १०अ-१४अ, संपूर्ण अङ्गुलसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उसभसमगमणमुसभजिण; अंति: रइअमिणं सपरगुणहेउं. अगुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य(अपूर्ण), आदिः ऋषभगामिनं अनिमिष; अंतिः-, पे.वि. मूल-गा.७०. प्रतिलेखक द्वारा अवचूरि अपूर्ण. १२६२४. भववैराग्यशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१०४., पंचपाठ, (२६.५४११, ११-१२४३३-३५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः सुखनुं ठाम लहई. १२६२६. षष्टिशतक प्रकरण की अवचूरि, पूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ११-१(१)=१०, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१६१, (२६४११, १५४५४-५६). षष्टिशतक प्रकरण-टीका, मु. धवलचन्द्र-शिष्य, सं., प+ग, आदि:-; अंतिः श्रीधवलचन्द्रगुरोः. १२६२७." षष्टिशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१६१., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, १३४५३). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंति: जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-अवचूरि, मागु.,सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १२६२८." षष्टिशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१६१., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११.५, ५४३६-३८). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहं देवो सुगुरू; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त देव; अंतिः सुख अनन्ता लहउ. १२६२९. भववैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.१०४, (२५४११, ९४३८-४०). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. १२६३०. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- मु. शुभविजय, प्र.वि. मूल-गा.१०३., (२६.५४११.५, ५४३९-४२). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः एह संसार मे जे; अंतिः उद्यम करवो जीव इ. १२६३१. धर्मसारोत्तर, योगशास्त्र, योगशतक व औषध सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. मूल पत्रांक-४१९ से ४२७ तक है. कोई संग्रहरूपात्मक प्रत का पेटापत्र है., (२७४११, १७४५०-५१). पे.-१. धर्मसारोत्तरप्रकरण, सं., पद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः मायाहङ्कार मुक्तं ; अंतिः सचोपद्रववर्जितः., पे.वि. गा.२४२. पे..२. योगशास्त्र-परिच्छेद ३८ वाँ, मु. अमरकीर्ति, सं., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः ध्यानस्थिति; अंतिः शुद्धबोधैकपात्रम्., पे.वि. श्लो.६४. पे.-३. समाधिशतक, आ. देवनन्दी, सं., पद्य, (पृ. ७आ-९आ), आदिः येनात्मा बुध्यतात्म; अंतिः समाधितन्त्रम्., पे.वि. श्लो.१०५. For Private And Personal Use Only Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-४. औषध सङ्ग्रह **, सं., पद्य, (प्र. ९आ-९आ), आदिः#; अंतिः#. १२६३२." वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, देना., प्र.वि. श्लो.१०३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, १५४५१-५४). वैराग्यशतक, कवि पद्मानन्द कवि, सं., पद्य, आदिः त्रैलोक्यं युगपत्करा; अंतिः स्वादितः स्वेच्छया. १२६३३. वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.१०५, (२६.५४११.५, ११४४०-४१). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. १२६३४. वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., ले.- नागरदास, प्र.वि. मूल-गा.१०४., (२५.५४१२, ३४२७-२८). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंति: लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः चउद राजलोक रूप संसा; अंतिः स्थानक प्रतइं पामे. १२६३५." वैराग्यशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. बीलाडा, ले.- कृष्णचन्द व्यास, प्र.वि. मूल-गा.१०४; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. २००; प्र.पु.-उभय-ग्रं. ३२५., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२७x१२, ६४३६-३७). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः संसार असारमाहि नथी; अंतिः जीव शाश्वतुं ठाम. १२६३६. षष्टिशतक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१६१., (२५.५४११, १२-१५४४० ४६). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवद्धमाण जिणवरा; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः नेमिचन्द्र भण्डारी; अंतिः पद जाउ अनन्त सुख लहो. १२६३७." श्राद्धविधि प्रकरण सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३५-२६(१५ से १६,१०० से १०७,१११ से १२५,१३४)=१०९, जैदेना., प्र.वि. मूल-६प्रकाश; प्र.पु.-सर्व-ग्रं. ६७६१., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११.५, १५४५२-६१). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदिः अर्हत्सिद्धगणी; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. १२६३८." श्राद्धविधि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६२, श्रेष्ठ, पृ. १८१, जैदेना., प्र.वि. मूल-६प्रकाश; प्र.पु.-सर्व-ग्रं. ६७६१., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५४११.५, १५४३६-४१). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदिः अर्हत्सिद्धगणी; अंतिः जयदायिनी कृतिनाम्. १२६३९. प्रतिमाशतक सह स्वोपज्ञ टीका, पूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. १८५-१(१७९)+२(८३,१७७)=१८६, जैदेना., प्र.वि. मूल ___श्लो.१०४. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, द्विपाठ, (२३.५४१०.५४). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रश्रेणि नता; अंतिः उल्लसद्व्यक्तयुक्ति. प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्रश्रेणि प्रणत; अंतिः जैनो धर्मश्च मङ्गलम्. १२६४३. श्राद्धविधि प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८७, जैदेना.,प्र.वि. मूल-६प्रकाश., पू.वि. प्रत का अंतिमपत्र आवरण युक्त होने से प्रशस्ति गा.१० तक ही दिखता हैं., (२६४११, १५४४२-४४). श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं पणमिय; अंतिः लहुं लहन्ति धुवं. श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, वि. १५०६, आदिः अर्हत्सिद्धगणी; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ३९३ भन्ते प्राप्नुवंतीति. १२६४४. अष्टक सङ्ग्रह सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-३२अष्टक; प्र.पु.-उभय-ग्रं. ३६३६; टीका-ग्रं. ३३७०., (२५.५४१०.५, १५४४९-५४). अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०; अंति: भवन्तु सुखिनो जनाः. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदिः आविष्कृताशेषपदार्थ; अंतिः हरिभद्रसूरेरिति. १२६४५. कथा सङ्ग्रह, पूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. २७-१(५)+१(७)=२७, जैदेना., ले.स्थल. नरायणानगरे, ले.- गणि कपूरविजय(तपागच्छ),प्र.वि. अध्याय-३३कथा, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६x१०.५, १०४३०-३५). भरटकद्वात्रिंशिका, गणि आनन्दरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः देवदेवं नमस्कृत्य; अंतिः एवंविधो अन्योपि. १२६४६. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले.- श्रा. अमरसी, प्र.वि. मूल-गा.४४., पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११.५, ४४३३-३५). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनइं ऋषभ; अंतिः पण आत्मानइ कारीणी. १२६४७." विचारषट्त्रिंशका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबिंदर, ले.- ऋ. राजधर, प्र.वि. मूल-गा.४३., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ३४३२-३४).. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ऐन्द्रराजं जिनं; अंतिः आत्माने हितनी देणहार. १२६४८. विचारषट्त्रिंशिका की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७१२, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सरवाडनगर, ले.- गणि जससागर (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. २१६. मूलपाठ प्रतिक मात्र हैं., (२६४१०.५, १५४४१-४२). दण्डक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदिः श्रीवामेयं महिमामेयं; अंतिः मत्वेदं बालचापल्यम्. १२६४९. प्रकरणचतुष्क व बत्रीसअनन्तकाय गाथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., (२६.५४११.५, १४४२९-३८). पे.-१.३२ अनन्तकाय गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः सव्वाउ कन्दजाई सूरण; अंतिः परिहरियव्वा पतत्तेणं., पे.वि. गा.५. पे.२. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-३आ), आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ __सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा.५१. पे..३. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदि: जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः तिन्निवि ए पउवा एया., पे.वि. गा.५५. पे.४. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ६अ-७आ), आदिः नमिउं चउवीस; अंति: एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४२. १२६५०. भाष्यत्रय व विचारट्त्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १७७८, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मसूदानगरे, प्र.वि. प्रतिलेखक का नाम स्पष्ट नहीं हैं., (२५.५४१०.५, १५-१६४३९-४८). पे.१. भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-६आ), आदिः वन्दित्तु वन्दणिज्जे; अंतिः सासयसुक्खं अणाबाहं., पे.वि. ३ भाष्य. पे.२. दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ., पे.वि. गा.४१. १२६५१." खण्डषट्त्रिंशिका, पुदगलषत्रिंशिका व निगोदषत्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. २२, पे. ३, For Private And Personal Use Only Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ३९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - वचन विभक्ति संकेत - अंतिम कुछ पत्र, ( २६.५X१०.५, ११४४९). पे. १. पे. नाम. भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा खण्डषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. १अ ४आ, संपूर्ण भगवती सूत्र - अभयदेवीय टीका का हिस्सा परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा. पद्य, आदि खित्तोगाहणदव्वे भाव; अंतः बहुतराणं गुणाण ठिई. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहरि, सं. गद्य, आदिः यथास्थिताणुजीवादि: अंतिः गुणमिति स्थितम्., पे. वि. हिस्सा-गा. १५. पे. २. पे. नाग. भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. ४आ- १३आ, भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः वुच्छं अप्पाबहुअं; अंतिः अन्ते जिणाभिहिए. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य (संपूर्ण), आदि: अथ पञ्चम एव; अंतिः हितान् जानीयादिति, पे.वि. हिस्सा-गा. ३६. पे. ३. पे नाम भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. १३आ-२२अ संपूर्ण भगवती सूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा. पद्य, आदि लोगस्सेगपएसे जहन्नय: अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. आदिः भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा- निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, अथ पंचांग अंतिः सङ्ख्येया अवसेया, पे.वि. हिस्सा-गा. ३६. १२६५२. खण्डषट्त्रिंशिका, पुद्गलषट्त्रिंशिका व निगोदषट्त्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ३, जैदेना, प्र. वि. त्रिपाठ, ( २६.५X११.५, २-५x५२-५४). पे. १. पे नाम भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा खण्डषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. १अ-२अ भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः खित्तोगाहणदव्वे भाव; अंतिः बहुतराणं गुणाण ठिई. परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः यथास्थिताणुजीवादि अति गुणमिति स्थितम्., पे.वि. हिस्सा-गा.१५. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir זי पे. २. पे. नाग. भगवती सूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिशिका सह टीका, पृ. २अ ५अ भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: वुच्छं अप्पाबहुअं: अंतिः अणन्ते जिणाभिहिए. पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका आ. रत्नसिंहरि, सं., गद्य, आदि: अथ पञ्चम एव अंतिः हितान् " जानीयादिति, पे.वि. हिस्सा-गा. ३६. पे-३. पे नाम भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका सह टीका, पृ. ५अ-८आ भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सेगपएसे जहन्नय; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा भगवती सूत्र अभयदेवीय टीका के हिस्सा- निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदि: अथ पंचमांग; अंतिः सङ्ख्येया अवसेया:., पे.वि. हिस्सा - गा. ३६. १२६५३. गुरुगुणषट्त्रिंशिका सह दीपिका टीका, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १७-१ ( २ ) - १६, जैदेना. प्र. वि. मूलगा ४० टीका ग्रं. १२००, त्रिपाठ, ( २६४११, १- २x६२ ) - For Private And Personal Use Only " गुरुगुणषट्त्रिंशत्पट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य, आदि: वीरस्स पए पणमिय अंतिः पावन्तु कल्लाणं. गुरुगुणषट्त्रिंशत्पट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ दीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं. गद्य, आदि श्रीमदहं पदं जीयात " Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ अंतिः स्म विवृतिमिमाम्. १२६५४." सिद्धपञ्चासिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- मु. खुसालविजय, प्र.वि. मूल-गा.५०. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा ४ से २५ गाथा तक टबार्थ नही लिखा गया हैं., (२७४११.५४). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः सिद्ध कहतां मोक्ष; अंतिः परोपकारने अर्थे. १२६५५. सिद्धपञ्चासिका सूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. भावनगरबंदर, ले.- चूनिलाल, प्र.वि. मूल-गा.५०. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. ४५०., (२६४१२, २-३४२७-२८). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सिद्धं क० आपणो अर्थ; अंतिः देविन्द्रेसूरिभीः. १२६५६. पञ्चनिर्ग्रन्थि, सिद्धिपञ्चाशिका सह अवचूरि व जैन श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.- गणि देवविजय (गुरु पण्डित सङ्घविजय, तपागच्छ), (२५४११, १८-२०४५२-५४). पे.-१. पंचनिर्ग्रन्थी प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. १अ-६अ), आदिः पन्नवण इति द्वारगाथा; अंतिः पृथक्त्वात्तेषाम्., पे.वि. प्र.पु.-१०५. पे.२. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, (पृ. ६अ-१०आ), आदिः इहानन्तर सिद्धः सत्य; अंतिः प्राभृताद्भावनीया. पे.३. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदि:#; अंति:#., पे.वि. प्र.पु.-२. १२६५७. सिद्धपञ्चासिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४५, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, ले.- गणि सिंहसागर, पठ. गणि श्रीसागर,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५०., त्रिपाठ, (२६४११, ३-६x४८-५०). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः नवरं सिद्धं निष्ठिता; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिभिः. १२६५८. सिद्धपञ्चासिका सह अवचूरि व गाथा, संपूर्ण, वि. १६३८, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पंचपाठ, (२६.५४११, ७४२८-३१). पे.१.पे. नाम. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण सह अवचूरि, पृ. १आ-९आ सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धत्थ० सिद्धाः; अंतिः सिद्धप्राभृतावनीयः., पे.वि. मूल-गा.५०. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ९आ-९आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-गा.१. १२६५९. ज्ञानसारअष्टक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सिद्धपुर, प्र.वि. ३२अष्टक, (२६.५४११, १२४३७-४१). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंतिः स्वीयं कृतं मङ्गलम्. १२६६०. गाथासहस्त्री, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., प्र.वि. गा.१०१९; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १६००, (२६४१०.५, १३४४४ ५०). गाथासहस्री, मु. समयसुन्दर, सं.,प्रा., पद्य, वि. १६८६, आदिः पडिरूवाई चउद्दस; अंति: वाच्यमानोसौ. १२६६१." गाथासहस्त्री, महावीरजिन १० श्रावक नाम व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७२६, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. नवलखीग्रामे, ले.- पं. विजयवर्द्धन (गुरु मु. विजयहर्ष, खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, (२६४१०.५, १५४४७-५३). For Private And Personal Use Only Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-१. गाथासहस्री, मु. समयसुन्दर, सं.,प्रा., पद्य, वि. १६८६, (पृ. १आ-३२अ), आदिः पडिरूवाई चउद्दस; अंतिः ___ वाच्यमानोसौ., पे.वि. श्लो.१०१९; प्र.पु.-ग्रं.२२००. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ३२आ-३२आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.६. पे.-३. महावीरजिन १० श्रावक नाम, मागु., गद्य, (पृ. ३२आ-३२आ), आदिः आणन्द कामदेव सुरा; अंतिः प्रिया लन्तकीप्रिया. १२६६४. सतरसण्ठाणा प्रकरण, संपूर्ण, वि. १६४२, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. नवानगर, ले.- मु. भूपति, पठ.- मु. पुन्यविजय (गुरु मु. देवविजय), प्र.वि. गा.३५९, (२६४११, ११४३९-४६). सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., पद्य, वि. १३८७, आदिः सिरिरिसहाइ जिणिन्दे; अंतिः जाइ सो सिद्धिठाणे. ठोत्तरीस्नात्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१११; प्र.पु.-उभय-ग्रं. ५५०., संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७ ११.५, १५-१६४३६-४२). तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अरिहन्तं भगवन्तं; अंतिः मुणिविन्द थुय महिया. तीर्थमाला स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः अर्हन्तं पूजायोग्यं; अंति: महिताः सत्कृताश्च. १२६६६. आगमअट्ठोत्तरी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.११४, (२४४११, १३४३७-३९). आगमअट्ठोत्तरी, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः सुविशाललोयणदलं; अंति: गुणिआ अप्पेइबोहिफलं. १२६६७. अध्यात्म गीतबहोत्तरी, संपूर्ण, वि. १८८३, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. राधिकापुर, ले.- पं. उत्तमविजय(तपगच्छ), पठ.- पं. जसविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ७८ पद, (२२.५४११.५, १४४३९-४७). आनन्दघन गीतबहोत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहिं., पद्य, आदिः क्या सोवेउठि जाग; अंतिः भागे आंनव सीठडे. १२६६९. प्रश्नोत्तररत्नमाला बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सुभटपुर, ले.- पं. कस्तुरचन्द, प्र.वि. ग्रं. ६५ बोल, (२५४११.५, १०x२९-३१). प्रश्नोत्तर रत्नमाला, मागु., गद्य, आदिः हवै शिष्य पूछ हे; अंतिः तेहनौ घणो लाभ थाय छै. १२६७०. उपदेशबावनी, पूर्ण, वि. १९२८, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(१)=८, जैदेना., ले.- महादेव व्यास, प्र.वि. गा.६२, पू.वि. गाथा १ से ४ अपूर्ण तक नही हैं.. (२५.५४११.५, ११४४२-४३). अक्षरबावनी, वा. किशन, प्राहिं., पद्य, वि. १७६७, आदि:-; अंतिः कीनी उपदेश बावनी. १२६७१." मातृकाबावनी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगरे, ले.- पं. ऋद्धिविजय, प्र.वि. गा.५८, संशोधित, (२६.५४११.५, १३-१५४३६-४०). अक्षरबावनी , मु. केशवदास, प्राहिं., पद्य, वि. १७३६, आदिः ॐकार सदा सुख देत; अंतिः केसवदास सदा सुख पावै. १२६७२." साधारणजिन स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२५; टीका-ग्रं. ३००., पदच्छेद सूचक लकीरें-क्रियापद संकेत, त्रिपाठ, (२६.५४१२, २-३४४७). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीशी-टीका, गणि कनककुशल, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमदर्हन्; अंतिः वृत्तिरियं कनककुशलेन. १२६७३. वादस्थल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, पे. १९, जैदेना., (२७४११, १७४५५-६०). पे.-१. प्रमाण लक्षणसिद्धि, सं., गद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः प्रमाणं स्वपरव्यवसाय; अंतिः रनवद्यलक्षणमिदं. पे..२. वादिघटमुद्गरवादनामस्थल, सं., गद्य, (पृ. १आ-३अ), आदिः इहहि पूर्वं; अंतिः उच्यते मुच्यते वेति. पे.-३. हेतुसिद्धि, सं., गद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः समस्तुतिसमाक्रान्त; अंति: गमकत्वं नैकातसाधने. पे.-४. परहेतुतमोभास्करनामस्थल, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, (पृ. ३आ-६अ), आदिः इहहि सकलतार्किक; अंतिः प्रमुक्तं तत्तत्वं च. For Private And Personal Use Only Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पे.५. विरोधनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः ननु सदसदादिविरोधि; अंतिः कृतं विस्तारेण. पे:६. महेश्वरव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. ६आ-९अ), आदिः क्षित्यादिकं बुद्धि; अंतिः कथञ्चिदपि सिद्धिः. पे-७. सर्वज्ञव्यवस्थापकस्थल , सं., गद्य, (पृ. ९अ-११अ), आदिः अत्र जैमिनीयाः प्राह; अंतिः प्रमाण सर्वज्ञेति. पे:८. आत्मव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. ११अ-१४आ), आदिः अत्र चार्वाकश्चर्वय; अंतिः अभिलाषान्तराभावात्. पे:९. सर्वज्ञव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदि: नन्वशेषविषयविशदावभास; अंतिः विषयत्वविशेषज्ञस्य. पे..१०. इश्वरजगत्कर्तृकोस्थापनस्थल, सं., गद्य, (पृ. १५अ-१६आ), आदिः तन्वादिकं बुद्धिमत्; अंति: महेश्वरस्याशेषज्ञत्व. पे.११. अद्वैतवादनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. १६आ-१७आ), आदिः नापि ब्रह्मणस्तस्या; अंतिः विचारणां प्राञ्चति. पे.-१२. सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. १७आ-१९अ), आदिः यः कार्यसिद्धि; अंतिः दिग्मात्रवादस्थलं. पे.-१३. सामग्रीभङ्गवाद, सं., गद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः अथ कैश्चित्सामग्री; अंतिः एवेति विरम्यते. पे.-१४. प्रत्यक्षानुमानप्रमाणनिरुपण वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. १९अ-२१अ), आदिः ननु प्रत्यक्ष व्यति; अंतिः भासिनः परोक्षेतेति. पे.-१५. भ्रमज्ञाननिरुपण वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २१अ-२१आ), आदिः शुक्तिकायाः रजतज्ञान; अंतिः स्वरुपमेवोपपन्नमिति. पे-१६. साङ्ख्यमतनिरासन वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २१आ-२४अ), आदिः क्षित्यादिकं बुद्धि; अंतिः षङ्गात्तत्प्रयुक्तं. पे.-१७. चाक्षुषप्राप्यकारित्व वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २४अ-२५अ), आदि: ननु प्राप्यकारि; अंतिः प्राप्यकारित्वमिति. पे.-१८. शाब्दबोध वादस्थल, सं., गद्य, (पृ. २५अ-२५आ), आदिः ननु शब्द स्वग्राहकेण; अंतिः कारित्वं श्रोत्रस्य. पे.-१९. परमब्रह्मोत्थापनस्थल, आ. भुवनसुन्दरसूरि, सं., गद्य, (पृ. २५आ-२९आ), आदिः श्रीवीरजिनमानम्य; अंतिः विलुठिष्चति तत्पदोः. १२६७५. परमाणु भाङ्गा, भाङ्गाकरण विधि व प्रस्तार विधि सह यन्त्र व दृष्टप्रतर, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ४, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६.५४१२४). पे.१. परमाणुपरिणाम भाङ्गा कोष्टक, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. १अ-३अ), आदिः परमाणु पोगालेण भन्ते; अंतिः #. पे..२.पे. नाम. भाङ्गाकरण विधि सह यन्त्र, पृ. ३आ-३आ भाङ्गाकरण विधि, सं.,प्रा., पद्य, आदि: गन्धेषु गुणं कावर्णा; अंतिः स्कन्धविषयेपि. भाङ्गाकरणविधि-यन्त्र, सं., कोष्टक, आदिः#; अंति: #. पे..३. पे. नाम. प्रस्तार विधि सह यन्त्र, पृ. ४अ-५आ। प्रस्तार विधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः वर्णीन् क्रमेण गन्धा; अंतिः लक्षण निमित्तम्. प्रस्तार विधि-यन्त्र, सं., कोष्टक, आदि:#; अंतिः #. पे.-४. दृष्टलोकप्रतर, सं.,मागु., यंत्र, (पृ. ६अ-६अ), आदि: #; अंतिः#. १२६७६. षडशीती कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- नागरदास, प्र.वि. मूल-गा.८६., (२६.५४१२, ३४२७-३१). षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंति: देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करि जिन; अंतिः आचार्य ग्यान हेतु. १२६७७. ज्ञानपञ्चमी, मौनएकादशी कथा व दीवाली कल्प, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. नाडुलनगरे, ले.- मु. हेतसागर, (२६४१२, १४-१६४३७-४३). पे.-१. पे. नाम. कार्तिकसौभाग्यपञ्चमीमाहात्म्यविषये वरदत्तगुणमञ्जरी कथानक, पृ. १अ-५अ वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे., पे.वि. श्लो.१५२. For Private And Personal Use Only Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३९८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे..२. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, (पृ. ५अ-१०अ), आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते., पे.वि. श्लो.२०१. पे..३. दीपावली कल्प, सं., गद्य, (पृ. १०आ-१६अ), आदिः इहेव भरतक्षेत्रं; अंतिः करणी कृतः स्वगंगतः. १२६७८. विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. ७८, जैदेना., (२६.५४११, १५४५०-५५). विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३८५, आदिः देवः श्रीपुण्डरीका; अंतिः पभाविअं पहुण त्ति. १२६७९. विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, प्र. ८३, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४११, १५४५०-५४). विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, आ. जिनप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३८५, आदिः देवः श्रीपुण्डरीका; अंति:१२६८०. दीपोत्सव कल्प सङग्रह व विविधगच्छउत्पत्तिसमय, संपूर्ण, वि. १५६७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.- गणि अमरमेरू (गुरु उपा. अमरनन्दि, तपागच्छ), गच्छा.- आ. इन्द्रनन्दिसूरि(तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११, १७४५६-६३). पे.१. दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १अ-६अ, संपूर्ण), आदिः सन्तु श्रीवर्द्धमान; ___अंतिः सुरेन्द्रादिभिः कृतः., पे.वि. श्लो.२६७. पे..२. दीपालिका कल्प, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., पद्य, वि. १३४५, (पृ. ६अ-६आ, प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः चक्रे दीपालिकाकल्पं., पे.वि. अंतिम ३९ श्लोक लिखा है. पे.-३. विविधगच्छउत्पत्ति समय, सं., पद्य, (पृ. ६आ-६आ, संपूर्ण), आदिः पढम चिय सञ्जाओ इगार; अंतिः जयतां तावदेषोपिसङ्घः., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.६. १२६८१. दीपावली कपो, संपूर्ण, वि. १६८९, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ४२६., (२६४११, १२४३२-३७). दीपावली कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदिः पणमिय वीरं वुच्छं; अंतिः समठीउ एस अत्थ करो. १२६८२.” दीपावली कल्प, संपूर्ण, वि. १८४५, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.४३४, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, १३-१४४३८-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. १२६८३. दीपावलीकल्प, संपूर्ण, वि. १८५२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभननगरे, ले.- मु. वीरविजय, प्र.वि. श्लो.४३८, (२५.५४११, १२-१३४३५-४०). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. १२६८४. शत्रुञ्जय कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३९., (२५४११, ५४३१-३४). शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सुअ धम्मकित्तिअन्तं; अंतिः सित्तुज्जए सिद्धं. शत्रुजयतीर्थ कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रुतं कहीइ सिद्धान; अंतिः विषइ सिद्धिप्रति. १२६८७. मौनएकादशी कथा व दीवाली कल्प, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७-१(२)=१६, पे. २, जैदेना., (२५.५४११, १४ १६४३८-४६). पे..१. मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, (पृ. १अ-५आ, पूर्ण), आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः ___ सागरशररसशशिप्रमिते., पे.वि. श्लो.२०१. बीच का एक पत्र नहीं है. पे..२. दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, (पृ. ५आ-१७आ, संपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये., पे.वि. श्लो.४३५. १२६८८. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७४, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबिंदर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ५४४०-४३).. दीपावली कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., गद्य, वि. १३८७, आदिः पणमिय वीरं वुच्छं; अंतिः श्रीसङ्घ भट्टारक. For Private And Personal Use Only Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ दीपावली कल्प- टवार्थ मागु, गद्य, आदि वामेयं प्रणिपत्य : अंतिः परम्परा विस्तारो १२६८९." दीवाली कल्प सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण वि. १८२५, श्रेष्ठ, पृ. ५८, पे. २ जैदेना. ले. स्थल. मातरग्रामे, ले. पं. माणिकविजय, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६X११.५, ५x२४-३०). पे. १. पे नाम दीपावलीपर्व कल्प सह टवार्थ प्र. १आ-५८आ - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टवार्थ, गणि सुखसागर, मागु, गद्य, वि. १७६३, आदि: (१) अर्हन्त बालबोधाना (२) अष्टमहाप्रातिहार्यनी अंति: बोर्हद्धर्मदीपोत्सवः, पे. वि. मूल-श्लो. ४३३: बार्थ-ग्रं. १२०० ; (+) - पे. २. ज्ञानीदसलक्षण श्लोक सं., पद्य, (प्र. ५८-५८आ) आदि अक्रोधवैराग्य: अंतिः मूलं दसलक्षणा. पे. वि. श्लो. १. १२६९०. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८५०, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना. ले. स्थल रोहीडा, ले. पं. ललितसागर (गुरु पं. भक्तिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल- श्लो. ४३७, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिहन क्रियापद संकेतप्रारंभिक पत्र (२५.५४११.५. ५४३०-३९). - दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु, गद्य वि. १७६३ आदि अर्हन्त बालबोधाना: अंति तिवार लगे प्रतपो. १२६९१. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. भावपुर, ले. - गणि वनीतविजय (गुरु " गणि रत्नविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - श्लो. ४३५., ( २६१२, ७३३-३७). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि सं., पद्य वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. " दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि वर्द्धमानस्वामि अंतिः लगें त्रिण्यजग माहे. · " १२६९२. दीपावली कल्प सह टबार्थ, संपूर्ण वि. १८६०, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना. ले. स्थल. वैराटनगरे ले. मु. हेतविजय (गुरु गणि दीपविजय), प्र. वि. मूल- श्लो. ४३७. (२६४१२, ६x४३-५५). दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि सं., पद्य वि. १४८३, आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये. · दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., गद्य, वि. १७६३, आदि: अर्हन्त बालबोधाना; अंति: शासन श्रीमहावीरनुं. १२६९३. दीपावली कल्प का बालावबोध, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना ले. पं. भाग्यविजय (२५x११, १३-१४४३७ ४२). दीपावलीपर्व कल्प- बालावबोध+ कथा, मागु, गद्य आदि स्वस्ति श्रीसुखदातार अंतिः मुष इति भद्रं भूयात्. १२६९४. प्रतिष्ठा कल्प, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय ), ( २७४१२, - ३९९ १६४३८-४१ ). प्रतिष्ठाकल्प उपा. सकलचन्द्रगणि, सं. मागु, गद्य, आदि प्रणम्य श्रीमहावीर अंतिः इति आसनमुद्रा. १२६९५. पद्मावती कल्प, संपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले. स्थल. मंदसोरखानपुरा, ले. ॠ. राधाकृष्ण (गुरु ऋ. कानजी), पठ. ऋ. भागचन्द, ( १७१०, ९-११x१५-२२). पद्मावती कल्प सं., पद्य, आदिः उत्पत्ति स्थिति संहा अंतिः सर्वे पूजयन्ते. · १२६९७. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना, (२५X११, ९४३९-४०). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः चिन्तितार्थो भवति. १२६९८. वसुधारा स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना. ले. पं. हरखा, लिखवा. पं. सुरताण्ण, (२५.५x११, For Private And Personal Use Only ११×३३-३५). वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः नामधारिणीमहाविद्या. १२६९९. वसुधारा, संपूर्ण, वि. १७७५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. सूर्यपूरनगरे, ले.- वा. देवविजय, (२५X११, १३४३८-४०). Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वसुधारा, सं., गद्य, आदिः संसारद्वयदैन्यस्य; अंतिः भाषितमभ्यनन्दन्निति. १२७००. यतिदिनचर्या, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., पठ.- मु. मतिचन्द्र, प्र.वि. गा.३९४, (२६.५४११.५, १३४४१ ४३). यतिदिनचर्या, आ. देवसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तं जयइ सुहं कम्म; अंतिः ता जयउ जईण दिणचरिया. १२७०१. विवेकविलास, संपूर्ण, वि. १५२१, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. गोरलिग्रामे, गच्छा.- मु. भाणविजय, ले.- मुरारी पण्ड्या , प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १२उल्लास, (२६.५४११, २०-२१४७०-७६). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः शाश्वतानन्दरूपाय; अंतिः पापळ्यमानो बुधैः. १२७०२." श्राद्धदिनकृत्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. गा.३४४, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ११ १२४३८-४०). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. १२७०३. श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. गा.३४५, (२६४११, ११४३४-४२). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. १२७०४. श्रावकदिनकृत्य सूत्र, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.३४०, (२६४११, १७४६१-६७). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. १२७०५. उपधान विधि व व्रत उच्चारण विधि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ११, पे. ४, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४४१०.५, १५४३६-३९). पे.१. उपधान तपविधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-९आ, संपूर्ण), आदिः पहिलं नवकार-; अंतिः वडा कहें ते प्रमाण. पे.२. ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., गद्य, (पृ. ९आ-१०आ, संपूर्ण), आदिः महामहोत्सव पूर्वकः; अंतिः प्रदक्षिणा देवरावीइं. पे.३.२० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १०आ-११अ, संपूर्ण), आदिः नान्दि सर्व उपधान; अंतिः नित्थारपारगाहोह. पे.४. ज्ञानपंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, (पृ. ११अ-११अ, अपूर्ण), आदिः इमं ज्ञानपञ्चमी; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १२७०६. योगविधि यन्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पठ.- गणि बुद्धिविजय, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६४११४). योगोद्वहनविधि यन्त्र सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., कोष्टक, आदिः आवश्यक श्रुतस्कन्धे; अंतिः सुइक्किक्कं निच्चियं. १२७०७." अट्ठोत्तरीस्नात्र विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२५४११, १३४४२-४४). बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः प्रथम सुश्रावकं ; अंतिः शान्ति निमित्त. १२७०८. चौमासी व ज्ञानपञ्चमी देववन्दन, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. १८, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बजाणानगरे, ले.- वा. देवकृष्ण (गुरु गणि जशोविजय), गच्छा.- आ. देवचन्द्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, (२६४११.५, १३४३६-३९). पे.-१चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-११आ), आदिः आदिदेव अलवसरू; अंति: पास सामलनु चेई रे. पे:२. ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१८आ), आदिः (१) श्रीसौभाग्यपञ्चमी (२) प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १२७०९. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १८५८, श्रेष्ठ, पृ. ६, देना., (२४.५४११, १५-१६x४०-४६). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः (१) श्रीसौभाग्यपञ्चमी (२) प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४०१ विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १२७१०. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. वीसलनगरे, ले.- खेमा जेठा ठाकोर, (२६.५४१२, १३४२७-३२). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., प+ग, आदि: नमो अरिहन्ताणं०; अंतिः जैनं जयति शासनं. १२७११. ज्ञानपञ्चमी देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२५४११.५, ११४२४-२९). ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, आदिः (१) श्रीसौभाग्यपञ्चमी (२) प्रथम बाजठ उपरि तथा; अंति: विजयलक्ष्मी शुभ हेज. १२७१२. नन्दीश्वर पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. इस प्रत में कृति का रचना वर्ष-१८७६ लिखा है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४११.५, १५४३८-४१). नन्दीश्वरद्वीप बावनजिनप्रसाद स्तवन, गणि शिवचन्द्र, मागु., पद्य, वि. १८७७, आदिः स्वस्ति श्रीसुखकरण; अंतिः एह पूजा मनरङ्ग. १२७१३. प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२६४११.५, १९४४१-४६). प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, आ. चन्द्रसूरि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः मूलगुरुंमिपुरन्दर; अंतिः श्रावका क्षिपन्तिः. १२७१४. मुद्रा विधि व प्रतिष्ठोपयोगी औषधीनाम, संपूर्ण, वि. १८६८, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- पं. प्रतापसौभाग्य, पठ. मु. सागरचन्द (गुरु पं. प्रतापसौभाग्य), (२४४११.५, १३४३२-४४). पे.१. मुद्रा विधि, सं., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः वामहस्तस्योपरि दक्षि; अंतिः श्रृंखला मुद्रा., पे.वि. गा.३५. पे..२. प्रतिष्ठोपयोगी औषधीनाम सङ्ग्रह, सं., गद्य, (पृ. २अ-५अ), आदिः ते च यथा अथ प्रतिष्ठ; अंतिः धुनीरा सेसकी चेअ., पे.वि. प्र.पु.-ग्रं.३६४ औषधि नाम.. १२७१५. प्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १९३८, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., (२६४११, १२४३३-३६). प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, आ. चन्द्रसूरि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः ॐ ह्रीं णमो अरिहन्त; अंतिः श्रेयेर्हदिबवेसनं. १२७१६. स्थूलप्रतिष्ठा विधि, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (१७.५४१०, १४-१६४३०-३६). प्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, आदिः प्रथम नोकार कथितं; अंतिः कारी प्रतिमादृढकारी. १२७१८. योगविधि आदि सङ्ग्रह व नन्दीसूत्रसङ्क्षिप्त, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, ११४३३ ३८). पे.१. योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-३४अ), आदिः श्रीआवश्यक सुअक्खन्ध; अंतिः यथायोग्य नीम दीजइ. पे..२. योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. ३४अ-३४आ), आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः नित्थारपारगाहोह. १२७१९." योग विधि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२४.५४१०.५, १३-१४४३३-३६). योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदिः पाटलीपडि मुहपत्तिपडि; अंतिः केही वेलाइ लीजेनलीजी. १२७२०. प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ५२८., पंचपाठ, (२६.५४११, ८-१४४२४-३१). श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , संबद्ध, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः नमो अरिहं० सव्वसाहूण; अंतिः सर्वामर पूजितं वन्दे. श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः इह चैत्यवन्दनादर्शन; अंतिः आचारतद्वतोरभेदात्. १२७२२. रत्नाकरपच्चीसी सह बालावबोध, गोचरीदोष व जिनमन्दिर ८४ आशातना, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., ले.- मु. जीवविजय, पठ.- मु. जीवणविजय (गुरु मु. जीवविजय), प्र.वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें अंतिम पत्र, (२२४९.५, ६-१५४३४-३९). पे..१.पे. नाम. रत्नाकरपच्चीसी सह बालावबोध, पृ. १अ-३अ For Private And Personal Use Only Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः अहो कल्याण लक्ष्मी; अंतिः प्रार्थउं मागु., पे.वि. मूल-श्लो.२५. पे..२.पे. नाम. गोचरी ४७ दोष गाथा सह बालावबोध, पृ. ३अ-५अ गोचरीदोष, प्रा., पद्य, आदिः आहा कम्मु देसिय; अंति: एसणा दोसा दस हवन्ति. गोचरी ४७ दोष गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः आधाकर्मी ते कहीईं; अंतिः रूडी परिपालवां., पे.वि. मूल गा.५. पे.-३. पे. नाम. वीतराग चोरासीआशातना गाथा सह टबार्थ, पृ. ५अ-५आ जिनभवन ८४ आशातना सुत्र, प्रा., पद्य, आदिः खेलं केलि कलिं कला; अंतिः जुओ वज्जो जिणिन्दालए. जिनभवन ८४ आशातना सूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्लेष्मा १ क्रीडा; अंतिः वा जलक्षालनंवा., पे.वि. मूल गा.४. १२७२७. तप सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १५३४, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. करजूग्रामे, ले.- महेश जोसी, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६.५४११x). तप सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः श्रेणि तपो दिन पंचाव; अंतिः पूठिइं पाछउ घरि आवइ. १२७३०. श्राद्धचतुर्विशतिअतिचार-पाक्षिकअतिचार, संपूर्ण, वि. १७८६, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. जिहांनाबाद, (२५.५४११, १८४४०-४३). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः (१) नाणंमि दंसणंमि० (२) विशेषतः श्रावक तणआइ; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १२७३१." प्रतिक्रमणविधि-हेतुगर्भित, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. अजीमगंज, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, (२५४११, १७४५२). प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, संबद्ध, सं.प्रा., पद्य, वि. १५०६, आदिः श्रीवर्द्धमानमानम्य; अंतिः बुधसुधानस्तथाशोधित. १२७३२." स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. प्रतापविजय,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ कुछ पत्र, (२३४१०.५, १५४३६). स्नात्रपूजा सविधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः (१) पूर्वे तथा उत्तरदिसे (२) मुक्तालङ्कार विकार; अंतिः विध्यनुसारण. १२७३३. स्नात्रपूजा विधिसहित, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५.५४११.५, १३४३०). स्नात्रपूजा सविधि, सं.,मागु., पद्य, आदिः (१) पूर्वे तथा उत्तरदिसे (२) मुक्तालङ्कार विकार; अंतिः पयाहिणन्दिन्तो. १२७३४. वीरजिनजन्माभिषेक कलश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२६४११, ११-१२४३१-४०). महावीरजिनजन्माभिषेक कलश, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, आदिः विनयनयरी विनयनयरी; अंति: बुल्लइ० एहज पूजो देव. १२७३६. विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना.,प्र.वि. ३६अधिकार, (२६४११.५, १२-१३४३९-४३). सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, आदिः (१) प्रथमं तावज्जिनाझै (२) श्रीजिनप्रासाद जिन; अंतिः सिद्धान्तोक्त जाणिवा. १२७३७." विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. ३६अधिकार, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, १४-१६x४१-४६). सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं.प्रा.,मागु., प+ग, आदिः प्रथमं तावज्जिनाझै; अंतिः सिद्धान्तोक्त जाणिवा. १२७३९. विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., (२५.५४११, १५-१६४३१-३४). उपधानतपआदि विधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः प्रथम द्वितीयोपध्यान; अंतिः यथायोग्य नाम दीजइ. For Private And Personal Use Only Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४०३ १२७४०. स्नात्रविधि सह व्याख्या, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. २४+१ (१३) - २५, जैदेना. प्र. वि. मूल-५ पर्व, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित, (२५.५४११, १४४२९-३३). · स्नात्रविधिपञ्जिका, आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि: अर्पितमनर्पितं वस्तु; अंतिः व्रजन्ति तेन. स्नात्रविधि व्याख्या, सं., गद्य, आदि: गुरुगरिमगुरोः अंतिः भाजनतां व्रजन्ति. १२७४१. विधि सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५×१०.५, १७×५३-५९). विधि सङ्ग्रह, गणि शिवनिधान, सं., प्रा., मागु, पद्य, आदि प्रथम सामायिक ग्रहण अंति: १२७४२. उपधान विधि, अष्टात्तरीस्नात्र विधि व प्रतिष्ठा विधि आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. ८, जैदेना., (२६×११, ११-१२x४१-४६). पे. १. उपधानतप विधि, सं. प्रा. मागु, गद्य (पृ. १अ - ६अ ), आदिः पञ्चमङ्गल महासुअखंधे; अंतिः विशेषतपश्चविलोक्यते. पे.-२. तपउच्चारण विधि- सङ्क्षिप्त, सं., प्रा., गद्य, (पृ. ६अ- ६अ ), आदि: सविस्तारे तु नन्दौ; अंतिः नित्थारपारगाहोउ... पे. ३. अष्टोत्तरी विधि, मागु, गद्य (प्र. ६अ - ६आ), आदि पितापितामह परपितामह: अंतिः सङ्घ पूजा करिवी. पे.-४. बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदिः ॐ भवणवद्० एतद्; अंतिः ब्रह्मचारी दिन ८. ५. प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं., मागु, पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदि: अट्ठाही पूजा अंतिः तस्यचनामगृह्यते. पे. ६. पे. नाम. प्राकृतगाथा सङ्ग्रह, पृ. ८आ८आ जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी *, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदि: #; अंतिः#. पे.-७. भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः भवचरिमं पच्चखामि; अंतिः अप्पसक्खियं. पे... गच्छस्थापनकाल, मागु, गद्य (पृ. ८आ८आ) आदि पूर्णिमा ११५९। खरतर अंतिः आगमिय १२५० तपागच्छ. १२७४३. सन्धारापोरसीसूत्र आदि सङ्ग्रह सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५. पे ४ जैदेना. प्र. वि. त्रिपाठ " (२६४११, १-७०४३५-३९) पे.-१. पे. नाम. सन्थारापोरसीसूत्र सह अवचूरि, पृ. १अ - ३अ सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., पद्य, आदि: निसिही निसिही निसीहि; अंतिः समत्तं मए गहिअं. सन्धारापोरसीसूत्र - अवचूरि, सं., गद्य, आदि निसीही ३ कृत स्वाध्य: अंतिः मया ग्रहीतं. पे. २. पे. नाम. चउक्कसायसूत्र सह अवचूरि, पृ. ३-४ पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, प्रा. पद्य, आदि: चउक्कसाथपडि अंतिः पासु पयच्छउ वञ्छिउ " ; Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६०), " पार्श्वजिन स्तुति अवचूरि, सं. गद्य, आदि भुवनत्रयस्वामी पार्श अंति: लाञ्छितश्चिह्नितः, पे. वि. मूल-गा.२. पे. ३. पे नाम. आयरियउवज्झायसूत्र सह अवचूरि, पृ. ४आ-४आ आयरियउवज्झायसूत्र, प्रा., पद्य, आदिः आयरिय उवज्झाय सीसे; अंतिः खमामि सव्वस अहयम्पि. आयरियउवज्झायसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, आदिः आयरि० ये मे मया; अंतिः विन्नयेनस्तथा, पे.वि. मूल-गा. ३. पे. ४. पे. नाम जिन स्तुति सह अवचूरि, पृ. ४आ-५आ साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि सं., पद्य, आदि: श्रीतीर्थराजपदपद्म अंतिः वदाता ददतां शिवं कः. ; साधारणजिन स्तुति - अवचूरि, सं., गद्य, आदि: श्रीतीर्थाधिपतिर्वा अंतिः वरेण्य प्रभावदाताः पे. वि. मूल- श्लो. १. १२७४४. अष्टादशजल्पा, संपूर्ण, वि. १६७२, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ( २६ ११.५, १३५० -५४). अष्टादश जल्पा, सं., मागु., गद्य, आदि: (१) उपाध्याय सोमविजय (२) श्रीतत्वार्थग्रन्थ अतिः आज्ञाछइ ते प्रीछयो. १२७४५. चच्चरीसुचर्चामञ्जरी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. ४७., (२७×११, १३-१४४५४ · For Private And Personal Use Only Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०४ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची : . चच्चरीसुचर्चामञ्जरी, आ. जिनदत्तसूरि अप, पद्य, आदिः नमिवि जिणेसर धम्म अंतिः मोक्ष सोख्यमित्यर्थः चच्चरीसुचर्चामञ्जरी-वृत्ति, उपा. जिनपाल, सं., गद्य, वि. १२९४, आदिः (१) जिनपति पदपद्मरम्य (२) नत्वा जिनेश्वरस्य अंतिः सङ्क्षप्तामन्द मेघसा. १२७४६." दश पद सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६६७, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना. ले. मु. तेजपाल (गुरु मु. जिणदास, कटुकमती गच्छ), प्र. वि. मूल-ग्रं. ४३५., संशोधित, ( २६ ११.५, ११-१२X४३-४८). दश पद विचार, प्रा. सं., गद्य, आदिः नमः अष्टप्रातिहार्यो: अंतिः बहुसो सामाइयं कुज्जा. " दश पद विचार-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: जिन मन्दिरि पाघडी; अंतिः विसन्धि सामायक विचार. (+) १२७४७. विचार सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना, प्र. वि. संशोधित, (२५.५५११.५, ११४४०-४२). प्ररूपणा विचार, सं., पद्य, आदि आर्हन्त्यमाध्याय चिर अंतिः सर्वत्र सुलभाः श्रिय १२७४८. बूटेरायजी का जीवन चरित्र व लिङ्गप्रतिबोध सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १९२४, श्रेष्ठ, पृ. ६५, पे. २, जैदेना., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५.५X१२, ५- १३३७-४५). पे १. पे नाम. वूटेराय बुद्धिविजेजी का पिछला विरतंत, पृ. १आ-१७आ बूटेरायजी महाराज की आत्मकथा, मु. बुद्धिविजय, प्राहिं, गद्य, आदि: दिल्ली का उसवाल जात अंतिः पख छोड के विचाज. पे-२. पे नाम, मुहपति चर्चा सह टवार्थ, पृ. १७आ-६५आ जिनमत मुनिलिङ्गवेष प्रबोधक, मु. बुद्धिविजय, प्रा. प्राहिं, पद्य, आदिः तत्तेणं से भगवं गोयम: अंति के करने वाले हो. लिङ्गप्रतिबोध-टवार्थ मागु, गद्य, आदि: श्रीदेव गुरुको नम०: अंतिः मेरा अदित्त लागेगा. १२७४९ . षट्त्रिंशत्जल्पविचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., ले. श्री. मदन मूथा, (२५.५X११.५, १२ - १४X३५-४७). गद्य वि. १६७९, आदिः ॐ नमः श्रीपार्श्व अंतिः चिरं नन्दत्तात्. . षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं. १२७५०. लुकटवदनचपेटा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना लें. मु. पराजसुन्दर, प्र. वि. गा.१८१ (२६४११. . १२-१३४३८-४३). , लुंकावदन चपेटा, मु. लावण्यसमय मागु पद्य वि. १५४३, आदि सकल जिणंदह पाय नमुं अंतिः ते मनवांछित लीला लहइ. १२७५१. गौतमपृच्छा चौपाई, श्रावकापाक्षिकअतिचार, उपदेशरत्नकोश, नवतत्त्व आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २३, पे. १३, जैदेना., (२७११, १३x४४-६०). .. , पे. १. गीतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु पद्य वि. १५४५ (पृ. १अ-६अ ), आदि: सकल मनोरथ पुरवइ: अंतिः जे जिनवचने वसिउ., पे.वि. गा.१२१. पे. २. आवक पाक्षिक अविचार-तपागच्छीय संबद्ध, प्रा., मागु गद्य (प्र. ६अ १०आ), आदि: नाणंमि दंसणंमि०, अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. पे. ३. पे. नाम. उपदेशरत्नमाला सह बालावबोध, पृ. १०आ- १३आ उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः उवएसरयणकोसं नासिअ अंतिः विउलं " उवएसमालमिणं. उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः श्रीमहावीर चउवीसमुं; अंतिः वहइ नित्य निरन्तर, पे. वि. मूल " गा. २५. पे.-४. नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, (पृ. १३आ - १४आ), आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः अणागयद्धा अणन्तगुणा., For Private And Personal Use Only Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४०५ पे.वि. गा.११. पे.५. शत्रुजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १४आ-१५आ), आदि: सुअ धम्मकित्तिअन्तं; अंतिः सित्तुजए सिद्धं., पे.वि. गा.३९. पे:६. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, (पृ. १५आ-१८अ), आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; ___ अंतिः वृद्धि कल्याण करो., पे.वि. गा.४६. पे.-७. पे. नाम. चतुर्विंशतिजिन नमस्कार, पृ. १८अ-२०अ २४ जिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रथमजिनवरनिखिलनरनाथ; अंतिः प्रचय सकल जगत्रयधीर., पे.वि. श्लो.२५. पे.८. पे. नाम. नवकार का बालावबोध, पृ. २०अ-२२अ नमस्कार महामन्त्र-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः अरिहन्तनइ माहरउ नमस; अंतिः भणी सिद्ध वडां कहीइं. पे:९. वीतराग प्रार्थना, मागु., गद्य, (पृ. २२अ-२३अ), आदिः हे वीतरागस्वामी माहर; अंतिः माहरउ नमस्कार हुउ. पे-१०. श्रावक २१ गुण, प्रा., पद्य, (पृ. २३अ-२३अ), आदिः धम्मरयणस्स जुग्गो; अंतिः इगवीस गुणेहिं सपन्नो., पे.वि. गा.३. पे-११.पे. नाम. वार्तुलय विज्ञप्तिका, पृ. २३अ-२३अ शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मागु., पद्य, आदिः विमलाचल मण्डण रिसह; अंतिः अवर न कांई इछिई ए., पे.वि. गा.१. पे.-१२. पे. नाम. महासतामहासती कुलक, पृ. २३अ-२३आ ___ भरहेसर सज्झाय, संबद्ध, प्रा., पद्य, आदिः भरहेसर बाहुबली; अंतिः जस पडहो तिहुयणे सयले., पे.वि. गा.१३. पे.-१३. पे. नाम, पञ्चकल्याणक स्तुति, पृ. २३आ-२३आ __ कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, आदिः कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. १२७५२. श्रुत विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४९, जैदेना., (२६.५४११.५, १२-१४४४४-५८). सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., गद्य, आदि: नमिऊण जिणवराई; अंतिः जिवाणं च बोहित्थं. १२७५३." अढारबोल पत्रोत्तर, संपूर्ण, वि. १६७२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १३४५६-६४). १८ बोल पत्रोत्तर, मागु., गद्य, वि. १६७२, आदिः तत्त्वार्थ ग्रन्थ; अंतिः मुत्तर लिखी मोकलयो. १२७५४." गौतमपृच्छा सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११३, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.६४., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, संशोधित, (२६४११, ८-१०x२४-३१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंतिः नगर्यां च शुभे दिने. १२७५५. गौतमपृच्छा सह टबार्थ व गाथा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- ऋ. खेताराम, (२६४११, ६४३५). पे..१. पे. नाम. गौतमपृच्छा सह टबार्थ, पृ. १आ-७अ गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदि: नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः तेणि करी संयुक्त., पे.वि. मूल-गा.६५. पे.२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-२. १२७५६. गौतमपृच्छा सह भाषा, संपूर्ण, वि. १५९४, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. अहम्मदाबाद, अन्य- गणि हर्षवृद्धि(तपगच्छ), लिखवा.- गणि अमरहंस(तपगच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६४. गणि हर्षवृद्धि के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी. *अक्षर माहिती अनियमित है।, (२६.५४११, १२४). For Private And Personal Use Only Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंतिः श्रीगौतमपृच्छा. १२७५७. गौतमपृच्छा चौपाई, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.११८, (२६.५४११.५, १५४४३-५१). गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, आदिः सकल मनोरथ पूरवइ; अंति: जे जिनवचने वसिउ. १२७५८. प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५.५४११, १५-१८४४३-४७). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः भवणपति व्यन्तर; अंतिः१२७५९. प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७४११, ११४४१-४६). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, उपा. जयसोम, मागु.,सं., गद्य, वि. १६२९, आदिः वामेय ममेय प्रमेय; अंतिः१२७६०. प्रश्न सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २९, जैदेना., (२६४१०.५, १५४५०). प्रश्न सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदि: न तु चतुर्दश्यां; अंतिः पानकाकारा भवन्ति. १२७६१. प्रश्नसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ६७५, (२६४११, १५४५६-६२). प्रश्न सङ्ग्रह, सं., गद्य, आदिः कस्य जिनस्य कीदृशो; अंतिः जेयंज्ञातातुउपासकः. १२७६२. वीसस्थानकतपआराधन विधि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११, १७ १८४४९-५६). २० स्थानकतप आराधनविधि, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः प्रथमनालिकेरादि हस्त; अंतिः१२७६३." इकवीसठाणा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८४०, मध्यम, पृ. १०-१(१)=९, जैदेना., ले.- गणि ज्योतिविजय, पठ.- मु. देवविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.६९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. गा.१ से ४ तक नहीं हैं., (२५.५४११.५, ७४२७-३१). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदि:-; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः थाकता ससुत्रइ कह्या. १२७६४. प्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. २६ प्रश्नोत्तर; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ५००, (२६४११, २०-२१४५६ प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, उपा. जयसोम, मागु.,सं., गद्य, वि. १६२९, आदिः नत्वा श्रीसर्वज्ञं; अंतिः (१)तेहनइ घणा गुण छइ (२)मिथ्योदितस्यासु. १२७६५. प्रश्न सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२-१(१)=५१, जैदेना., पू.वि. प्रथम एक व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १५४३६-४१). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह* , सं.,प्रा.,मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः१२७६६. प्रश्नशतक सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. लोहिआणा, ले.- धना आका, प्र.वि. मूल-श्लो.१६१., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, पंचपाठ, (२६.५४११, १२४४०). प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदिः क्रमनखदशकोटीदीप्र; अंतिः प्रसादलवं मयि. प्रश्नशतक-अवचूरि, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., गद्य, आदिः जिनहानि गच्छत; अंतिः जिनवल्लभेन नाम्ना. १२७६७. प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८४८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. २६ प्रश्नोत्तर, (२५४१२, २१-२४४४४-४८). प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, उपा. जयसोम, मागु.,सं., गद्य, वि. १६२९, आदि: नत्वा श्रीसर्वज्ञं; अंतिः (१)तेहनइ घणा गुण छ। (२)मिथ्यौदितस्यापि. १२७६८. धर्मसागरमतखण्डन सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६.५४११.५, १७-१८४४३-४९). For Private And Personal Use Only Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४०७ धर्मसागरमतखण्डन, प्रा., पद्य, आदिः केई भणन्ति भगवई; अंति: धर्मसागरमतखण्डन-टीका, सं., गद्य, आदिः नत्वा श्रीपार्श्व; अंति:१२७६९. इकवीसठाणा व मन्त्र, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., ले.- अमरा, (२४x११, १३४३६-३७). पे.१. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया., पे.वि. गा.६६. पे.२. कामाख्या मन्त्र, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः ॐ नमो कामारु देश; अंतिः फुरोमन्त्रिश्वरोवाच. १२७७०. इक्कवीसठाणा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.७४., (२५४११.५, ४४२६-३४). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. मानचन्द्र, मागु., गद्य, आदिः श्रीदेवगुरुनइं; अंतिः काजई भण्या. १२७७१.” इकवीसठाणा सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८०१, श्रेष्ठ, पृ. ११-२(५,९)=९, जैदेना., ले.स्थल. पीपलीग्रामे, ले.- पं. तत्त्वविजय गणि (गुरु मु. पुण्यविजय), पठ.- मु. भावविजय (गुरु पं. तत्त्वविजय गणि),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूलगा.७०; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १२५; प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ४५१; प्र.पु.-उभय-ग्रं. ५७६., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, २ ४४३८-४४). एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीचोविस जे; अंतिः भणीया कहितां कह्या. १२७७२. इकवीसठाणा सह टबार्थ व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, पे. २, जैदेना., ले.- मु. नरसिङ्घजी (गुरु मु. हरजी), (२२.५४११, ६४३६-३७). पे.१.पे. नाम. एकविंशतिस्थान प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १अ-७अ एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया. एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जे विमानथका चव्या; अंतिः समय साधारणइ कह्या., पे.वि. मूल-गा.६९. पे.२. जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ७अ-७अ), आदिः #; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-१. १२७७३. रत्नाकरपचीसी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.२५., पू.वि. अंतिम प्रतिलेखन पूष्पिका पत्र नहीं हैं., (२५.५४११.५, २-३४२२-२५). रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रेयः श्रियां मङ्गल; अंतिः श्रेयस्करं प्रार्थये. रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः श्रेयः श्रियां क०; अंतिः करणहारुं मांगुं छु. १२७७६.” सम्यक्तपच्चीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.२५., संशोधित, त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५, २४४३-४८). सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., पद्य, आदिः जह सम्मत्तसरूवं; अंतिः हवेउ सम्मत्तसम्पत्ति. सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः मनोवाञ्छितदातारं; अंतिः माङ्गलिकवचनमिदं कवेः. १२७७७. चोवीसठाण्णा का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२५.५४११.५, १६-१७४४९ ५२). २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः (१) गइ इन्दिय काए (२) गइ क० गति ४ नारकी; अंतिः हेतु ४३ जोग १४ टल्या. १२७७८. इकवीसठाणा व भाष्यत्रय, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पालणपुर, ले.- मु. जिनविजय, पठ.- श्रा. दुलिचन्द (पिता आ. धर्मसूरीश्वरजी), (२५.५४११.५, १२-१३४३५-४२). For Private And Personal Use Only Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४०८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे:-१. एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - ४आ), आदि: चवण विमाणा नयरी; अंतिः असेस साहारणा भणिया, पे.वि. गा. ७१. www.kobatirth.org: पे. २. भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य (पृ. ४आ - ११) आदि वन्दित्तु वन्दणिज्जे अंतिः सासयसुक्खं अणाबाई... पे.वि. ३ भाष्य, गा. १४५. १२७७९.” प्रश्नोत्तररत्नमाला सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २० - १५(१ से १५ ) = ५, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. २९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ४४२५-२८). प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणिपत्य जिनवरे; अंतिः कण्ठगता किं न भूषयति .. प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः पहिलि श्रीअदिनाथ; अंतिः तिको भलउ दीसइ सही. (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७८०. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. ९९ प्रश्नों तक लिखा हैं., ( २४x११.५, १४X३६-४२). प्रश्नोत्तरसार्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं. गद्य वि. १८५१, आदि: श्रीसर्वज्ञं नत्वा अंति: " (+) १२७८१. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना. प्र. वि. १५१ प्रश्नोत्तर (२५४११, १२४३८-४६). " प्रश्नोत्तरसार्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८५१, आदि: श्रीसर्वज्ञं नत्वा; अंतिः धर्मप्राप्तिविचारः. १२७८२.” प्रश्नोत्तरसार्द्धशतकभाषा, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले. स्थल. जोधपुर, ले. मु. विद्याविजय, प्र. वि. १५१ प्रश्नोत्तर, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४९.५, ११४३९-४४). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, मागु., गद्य, वि. १८५३, आदि: पहिलै बोलै तीर्थङ्कर; अंति: शास्त्रमै कह्यो छे.. १२७८३.” प्रश्नोत्तर समुच्चय, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२३ (१ से २३ ) = ८, जैदेना., प्र. वि. ४प्रकाश, संशोधित, प्रकाश-१ प्रश्न- १२ अपूर्ण तक नही है., ( २६११, १६-१७९४८-५३). पू. वि. हीरप्रश्न उपा. कीर्तिविजय सं गद्य, आदि:- अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति , , . १२७८४." हीरप्रश्न, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले. स्थल स्तंभतीर्थ, ले. पं. समयकीर्ति (गुरु उपा. धर्मनिधान), प्र. वि. ४प्रकाश मुनि धर्मकीर्ति द्वारा संशोधित संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सुचक चिह्न, ( २६४११, १२४३६-४१). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति. १२७८५. तेतीस बोल, संपूर्ण, वि. १९१३, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले. स्थल. रामनगर, ले.- अमरदास गुसाई, (२५x११, १६x४५ 40). ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः एकविहं सञ्जमे १ एक: अंतिः रईयत की रक्षा करणी. १२७८६. महादण्डक व अल्पबहुत्व की अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ( २६.५x११, ९३४-३९). पे.-१. महादण्डक स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १आ - २ आ), आदिः भीमे भवम्मि भमिओ; अंतिः अणुत्तर पयन्देसु., पे.वि. गा.२०. पे. २. अल्पबहुत्व अवरि, सं. गद्य (पृ. ३अ-९आ) आदि भीमे भवेति० गब्ज०: अंति: जघन्यपदे समेति. " 7 १२७८७. बोल सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है ।, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२३×११.५४), For Private And Personal Use Only ५८ बोल सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, आदि: एगेआया एगेलोए एगे; अंति: १२७८८. चौवीसदण्डक के तीसबोल, अजीव के ५३० भेद व आठकर्म विचार, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. ३, जैदेना., पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. (२५x११, २०४५४-५६) पे.-१. २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, (पृ. १अ - १५अ, संपूर्ण), आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंति: विरहन बोलई जाणवू. पे. २. अजीव ५३० भेद, मागु, गद्य (पृ. १५-१५अ संपूर्ण), आदि कालावरण माहिई रस ५: अंति: मली अजीवना 1 Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ भेद ५३०. " पे. ३.८ कर्म विचार, मागु, गद्य (प्र. १५२-१५आ अपूर्ण) आदि ज्ञानावरणी १ दर्शनाव: अंतिः पे. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२७८९. २४ दण्डक २८ बोलना, संपूर्ण, वि. १७०९, मध्यम, पृ. ७, जैदेना., ले. स्थल. बोडावडि, ले.- ऋ. कमा (गुरु ऋ.. वीरदास), प्र.ले.पु. मध्यम, ( २६ ११, १७-१९X३८-४८). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदि: प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनन्तगुणा अधिका कहवा. १२७९०. चौवीसदण्डक के तीसबोल व आयुष्य विचार, संपूर्ण वि. १६९४, श्रेष्ठ, पृ. ४३, पे. २ जैदेना. (२६४११.५ ९४३५ ४०९ (४०). पे.-१. पे. नाम. दण्डक ३० बोल, पृ. १आ-४३अ २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंतिः निरन्तरदार समत्तं. पे. २. आयुष्य विचार मागु, गद्य (पृ. ४३२-४३अ) आदि मनुष्यनउ वरस १२५: अंतिः सङ्घनउ वरस ४८. १२७९१. २४ दण्डक ३० बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७-१ (७*) = २६, जैदेना., (२६X११.५, ११-१३×१५-१८). २४ दण्डक ३० द्वार विचार मागु, गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती अंतिः मास ६ नुं आन्तरु ; १२७९२. चौवीसदण्डक विचार व अल्पबहुत्व प्रकरण संपूर्ण वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना, ले. मु. अमरसी (गुरु मु. उत्तमविजय), ( २६.५X११.५, १५x४६-५२). पे. १. २४ दण्डक २९ बोल, मागु गद्य (ए. १आ- (अ) आदि प्रथम नामद्वार बीजु अंतिः संसारी जीव विशेषाधिक पे.-२. महादण्डक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ- ९आ), आदिः थोवागभय मणुआ सखे; अंतिः अभयदेवसूरिहिसङ्गहियं. पे. वि. गा.१९. १२७९३. २४ दण्डक २३ द्वार विचार व २४ दण्डक के बोल, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७ पे २ जैदेना. (२५.५०१०.५, १४-१५४२-४७). पे. १. २४ दण्डक २३ द्वार विचार मागु, गद्य (पृ. ११-५अ) आदि नारकी माहे शरीर ३ अतिः ३३ सागरोपम ए विशेष, पे. २. २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, (पृ. ५अ-७आ), आदि: नारक दण्डक विचार; अंतिः सर्व व्यन्तर ज्युं. १२७९४. छकायजीव, चौवीसदण्डक, नवतत्त्व विचार व नवकार अर्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ४, जैदेना., ले.- पं. खुस्यालकुशल, ( २६४११.५, १०-११४३३-३७). पे.-१. ६ काय विचार, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ३आ), आदिः पृथ्वीकाय अप्काय; अंतिः ३३ सागरौपमनुं. पे.-२. २४ दण्डक विचार, मागु., गद्य, (पृ. ३आ - ५अ ), आदि: प्रथवीकायनौ १ दण्डक: अंतिः रकीनौ १ दण्डकमा आ. पे. ३. पे नाम. चउवीस दंडक विचार, प्र. ५अ-७आ नवतत्त्व प्रकरण-२४ दण्डक विचार, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः (१) जीवाजीवा पुन्नं पावा (२) जीवा क० जीवत्त्व; अंतिः ए सिद्धना भैद जाणिवा. पे.-४. नमस्कार महामन्त्र - बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. ७आ - ११अ), आदिः नमो अरिहन्ताणं कहिता; अंतिः मङ्गलीक हौओ. १२७९६.२४ दण्डक बोल, द्वारगाथा व ४ प्रकार के शुरवीर, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६ पे ३ जैदेना, प्र. वि. पंक्तिअक्षर अनियमित है (२६४१२४) , For Private And Personal Use Only पे.-१. २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, (पृ. १अ - ६अ), आदिः दण्डक २४ नरकगति १: अंतिः असङ्ख्यात गुणा. पे. २. २४ दण्डक द्वार गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: नेरइया असुराई पुढवाई: अंति: सण्णी गइ आगईवेए. पे. ३. शूरवीरप्रकार गाथा, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि क्षमासूरा अरिहन्ता अति: जुद सुरा वासुदेव, पे.वि. गा.१. Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२७९७. सर्वाधिकार गाथा व अक्षोहणिमान गाथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.- ऋ. मेघजी, (२५.५४११.५, १७४३५-४१). पे.-१. सर्वाधिकार गाथासङ्ग्रह, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, प्रा.,सं., पद्य, (पृ. १अ-११आ), आदिः पढमोबारसमत्तो बीओ; अंतिः अश्वे अश्वे सतं नर., पे.वि. गा.३३८. पे.२. अक्षौहिणीसैन्य मान, मागु., कोष्टक, (पृ. ११आ-११आ), आदिः#; अंति:#. १२७९८.२४ दण्डक बोल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६.५४१२४). २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः दण्डक २४ नरकगति १; अंतिः वैक्रिय तेजस कार्मण. १२७९९. भीषणमतप्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., (२५४१२, १५४२७-३१). तेरापन्थी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः ज्ञातासूत्र का सोलमा; अंतिः समयरस करल्यो आतमलीन. १२८००." भीषणमतप्रश्नोत्तर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५४१२.५, १४ १५४२८-३०). तेरापन्थी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा.,मागु., प+ग, आदिः छे लेस्या हुंति वीर; अंतिः बोलणु अयुक्त छै. १२८०२." नवतत्त्व १३ द्वार विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. अजमेरुदुर्ग, ले.- गणि मानवर्द्धन, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित, (२३.५४१२, १३४३३-३९). नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः (१) जीव चेतन १ अजीव (२) तत्र पथमं मूल द्वार; अंतिः तलावरुप मोक्ष जाणवो. १२८०३. चौदगुणठाणे ५७ कर्मबन्धहेतु व बासठमार्गणा बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१९, मध्यम, पृ. ८, पे. २, जैदेना.,ले.- मु. इन्द्र, पठ.- श्राविका पुतली बाई,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५.५४१२, १७४३४-३९). पे.-१. १४ गुणठाणे ५७ कर्मबन्धहेतु, मागु., गद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः मिथ्यात्व १ सास्वादन; अंतिः शरीर नहि जोग रहित. पे.२. बासठमार्गणा-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. २अ-८अ), आदिः देव गतिमांहि जीवना; अंतिः ६ लाभे १ सर्वस्तोक. १२८०४. सप्रदेश अप्रदेश विचार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., (२५४१०.५, २१४४५-५०). बृहत्सङ्ग्रहणी-१४ द्वार वर्णण, मागु., गद्य, आदिः सप्रदेशद्वार आहारक; अंतिः विषे ६ भाङ्गा हुइ. १२८०५. चौदगुणठाणा ५७ कर्मबन्ध व बासठमार्गणा बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ.८, पे. २, जैदेना., ले.- पं. जीतकुशल (गुरु पं. दीपकुशल), पठ.- पं. खुस्याल, प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४१२, १३x४१-४८). पे..१.१४ गुणठाणे ५७ कर्मबन्धहेतु, मागु., गद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः मिथ्यात्व १ सास्वादन; अंतिः शरीर नहि जोग रहित. पे.२. बासठमार्गणा-बालावबोध, मागु., गद्य, (पृ. २अ-८अ), आदिः देव गतिमांहि जीवना; अंतिः ६ लाभे १ सर्वस्तोक. १२८०६. बासठमार्गणेमोहनीकर्म के चोवीसीषोडसअष्टक यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), (२६.५४११.५, १२४३४-४१). बासठमार्गणायां मोहनीय करम बन्धोदय सत्ता स्थान भाङ्गा यन्त्र, मागु., , आदिः अथ बासठमार्गणाये; अंतिः#. १२८०७. सम्मतिसूत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १९७, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रथम खण्ड १७३ पत्र तक है प्रथम खंड के अंत के पत्र नहीं है. व दूसरा खण्ड २४ पत्र तक है। (२५.५४११.५, १७४५०-६०). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंति: सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः स्फुरद्वागंशुविध्वस्; अंतिः१२८०९. सम्मतिसूत्र सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६०८-२(१५२*,१६०) ६०६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१६८. प्र.पु. For Private And Personal Use Only Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४११ सर्वग्रं. २२०००., (२५४११, १५४४०-४२). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः स्फुरद्वागंशुविध्वस्; अंतिः सन्मतेर्विवृतिः कृता. १२८११. जैनीसप्तपदार्थी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२५४१०.५, १०x४०-४१). जैनीसप्तपदार्थी, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्तिस्याद्वादवादा; अंतिः विचार० श्रुत सम्मता. १२८१३. विशेषणवती, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.३४७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४३८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है-किनारी, (२६४११, १५-१६x४५-४८). विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प+ग, आदि: उस्सेहंगुलमेगं हवइ; अंतिः कालेणाइच्चपेढंति. १२८१४. विशेषणवती, संपूर्ण, वि. १६३९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- पं. पद्मराजगणि, प्र.वि. गा.३६५; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४१९, (२६.५४११, १७-१८४६१-६५). विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प+ग, आदिः उस्सेहंगुलमेगं हवइ; अंतिः कालेणाइच्चपेढंति. १२८१५. जैनतर्कभाषा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, प्र. २२, जैदेना., ले.स्थल. प्रतिष्टितपुर, ले.- पं. यशस्वत्सागर (गुरु गणि यशस्सागर, तपगच्छीय),प्र.वि. ४ परिच्छेद, कर्ता के हस्ताक्षर से लिखित प्रत, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५.५४११, ११४३५-३६). जैनतर्कभाषा, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः अहँ बीजं भावश्चाभि; अंति: दधिर्वरतर्क भाष्यम्. १२८१६." जैनीतर्कभाषा, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना., ले.- गणि युक्तिसागर (गुरु पं. विचारसागर), प्र.वि. ४ परिच्छेद, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४११, ११४३३-३४). जैनतर्कभाषा, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः अर्ह बीजं भावश्चाभि; अंतिः दधिर्वरतर्क भाष्यम्. १२८१७. जैनीतर्क भाषा, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२७४११.५, १२-१३४४५-४६). जैनतर्कभाषा, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः (१) अहँ बीजं भावश्चाभि (२) प्रणम्य सर्वज्ञ शिरो; अंति:१२८१८. चोवीसदण्डक त्रीस बोल, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., (२३४१०.५, १३४३५-३९). २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंतिः मासनौ आन्तरौ पडै. १२८१९. जैनीसप्तपदार्थी, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. समुदयपुर, राज्यकाल- राजा जयसिंह, (२५.५४१०.५, ११४३६-३९). जैनीसप्तपदार्थी, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्तिस्याद्वादवादा; अंतिः विचार० श्रुत सम्मता. १२८२०." जैनसप्तपदार्थी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. संखुदायेपुर, गच्छा.- राजा जयसिंह, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२५४१०.५, १०४३२-३४). जैनीसप्तपदार्थी, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः स्वस्तिस्याद्वादवादा; अंतिः सन्मान सिद्धये. १२८२१. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., (२५४१०, १५-१६४५६-६६). बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः पाञ्च मिथ्यात्वना; अंति: गुण सिद्धना जाणवा. १२८२२. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५४९.५, १५४५६-६०). बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः हिवें ५ देव किसी; अंतिः मनुष्यना आवी उपजै. १२८३६. साक्षात्कारप्रबोधक, संपूर्ण, वि. १७५८, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. संग्रामपुर, गच्छा.- मु. जयसिंहविजय, (२६x१०.५, ११४३८-४१). प्रमाणवादार्थ, मु. यशस्वतसागर, सं., गद्य, आदिः श्रीमद्वागीश्वरी; अंतिः साक्षात्कार प्रबोधकः. For Private And Personal Use Only Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: 1 ४१२ १२८३७. विषयतावाद व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ( २६.५x११, १७५०-५५). " पे. १. विषयतावाद, उपा. यशोविजयजी गणि, सं. गद्य वि. १८वी (प्र. १अ-६अ) आदि विषयता स्वरुप सम्बंध अंति कृतं पल्लवितेन. पे. २. विषयतावाद, रघुदेव भट्टाचार्य, सं., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: ननु संयोगाद्यात्मक; अंतिः करोमीत्यनुव्यवसायः. पे.-३. जैन सामान्यकृति, प्रा., मागु. सं., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदि: #; अंतिः#. १२८४०" न्यायसार सह टीका, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना. प्र. वि. मूल-३ परिच्छेद, पदच्छेद सूचक लकीरें संघि सूचक चिह्न, ( २६.५X११, १९४७३-७५). न्यायसार आ. भासर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि प्रणम्य शंभुं जगतः अंतिः पुरुषस्य मोक्ष इति , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची न्यायसार - न्यायतात्पर्यदीपिका वृत्ति, आ. जयसिंहसूरि, सं. गद्य वि. १५वी आदिः यत्सत्त्वं ध्वनयत्य: अंतिः सर्वदापि . , प्रकाशताम्. १२८४१. परीक्षामुख, संपूर्ण वि. १९३०, श्रेष्ठ, पृ. १३. जैदेना. ले. ऋ. नानकचन्द्र प्र. वि. ६ अधिकार, सूत्र - २०७ ग्रन्थ के प्रारंभ में टीका का मंगलाचरणरूप प्रतिकपाठ मात्र लिया है. (२४.५११.५ ६४३१-३२). परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनन्दि, सं., पद्य, वि. ५६९, आदि: प्रमाणदर्थसंसिद्धि; अंतिः परीक्षादक्षवद्व्यधां. १२८४८." प्रमाणसुन्दर प्रकरण संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २९ जैदेना, प्र. वि. खण्ड-४ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६४११.५ १०५४६-४७). ; प्रमाणसुन्दर प्रकरण, मु. पद्मसुन्दर, सं., गद्य, वि. १७३२, आदि: स्यात्कारमुद्रितानेक अंतिः भिद्यते तत्क्षणात्. १२८४९. सिद्धान्तसार, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. स्थल. योधपुर, ले. पं. सत्यसागर, ( २४.५x११, १९×५६). सिद्धान्तसार, सं.,मागु., गद्य, आदिः तथा त्रिविधाहारे; अंतिः सत्ता सम्पूर्णा. १२८५०. स्याद्वादमुक्तावली, संपूर्ण वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. १३ देना. ले. ऋ. मुकुन्द, प्र. वि. ४स्तबक, (२५४११, १०४४२-४८). स्याद्वादमुक्तावली, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य शङ्खेश्वर; अंतिः बोधाय देवसूरिवचोनुगा. १२८५१.” सिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासन, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. अध्याय-८; प्र.पु. -मूल-ग्रं. १०५०, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ प्रारंभिक पत्र, पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत (२६.५५११, १७४५३-५६). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि अहं सिद्धिः स्याद् अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. १२८५३ . उक्तित्रय, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. मयगल, (२५.५x११, २०x६४-६५). उक्तित्रय, सं., गद्य, आदि: सर्वज्ञं हंसतां अंतिः शब्दशास्त्रानुसारेण . १२८५४.” अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५२, जैदेना., प्र. वि. श्लो. ३२., प्र.ले. श्लो. (५१५) जीयाच्च पुस्तकं शस्तं (२६.५x११, ११९५५-५८). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः कृतपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका - स्याद्वाद्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु. १२८५५. उणादिसूत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १४६६, श्रेष्ठ, पृ. ६३ - १०(१ से ९,६२ ) = ५३, जैदेना., ले. स्थल. धारापूरी, (२६.५x११.५, १५४८). For Private And Personal Use Only सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः वह क्विप् सश्च डा. Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४१३ सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र का स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदिः-; अंतिः वहति अनड्वान्वृषभः. १२८५७.” क्रियारत्नसमुच्चय सह बीजक, संपूर्ण, वि. १६४०, श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., ले.- गणि गुणरत्न (गुरु मु. विनयसमुद्र, खरतरगच्छ), पठ.- वा. रत्नविशाल (गुरु मु. गुणरत्न), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. सर्वग्रं. ५७००., संशोधित, (२६.५४११, १९४५६-६०). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, आधारित, सं., गद्य, वि. १४६६, आदिः जयति जिनवर्द्धमानो; अंतिः अर्थापयिता. क्रियारत्नसमुच्चय-बीजक, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि:#; अंतिः#. १२८६१. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१२, जैदेना., ले.स्थल. जयपत्तननगरे, ले.- मु. चारित्रसागर(क्षेमकीर्तिशाखा), प्र.वि. ३६ उदय; मूल-३६ उदय; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १८५९८, (२५.५४१२, १३४३४-४३). आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदिः तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंति: जिनागमं वाचयंतु सदाः. १२८६३. मिश्रलिङ्गनिर्णय, संपूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- पं. रत्नसमुद्र, प्र.वि. ६ कांड, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२४.५४११, ११४३२-३३). लिङ्गनिर्णय, आ. कल्याणसागरसूरि, सं., , आदि: तार्तीयीकं जिनं; अंतिः चिरं जीयादहर्निशं. १२८६५.” मानमञ्जरी, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णदुर्ग, ले.- गणि युक्तिसागर (गुरु पं. विचारसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ११-१२४३३-४२). मानमञ्जरी, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, आदिः स्तुत्वा सारस्वतीं; अंतिः विद्भिर्मयिकृपापरैः. १२८६६. नामलिङ्गानुशासन की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६४६, श्रेष्ठ, पृ. १३३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३३००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, प्र.ले.श्लो. (६३०) सर्वेपि सुखिनः सन्तु; (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (४८४) अदृष्टिदोषा मतिविभ्रमेण; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६४११, ११४३५-३६). हैमलिङ्गानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः श्रीसिद्धहेमचन्द्र; अंतिः लिङ्गानाम्. १२८६७." नामलिङ्गानुशासनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.- पं. मानेन्द्रसागर, प्र.वि. अध्याय-८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२६४११, ७४३५-४१). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर; अंतिः लिङ्गानाम्. १२८६८." लिङ्गानुशासन, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- गणि वृद्धिकुशल (गुरु गणि भोजकुशल), पठ.- मु. लाभकुशल (गुरु गणि वृद्धिकुशल),प्र.वि. अध्याय-८, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२५.५४११, ११४५२-६१). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर; अंतिः लिङ्गानाम्. १२८६९. क्रियारत्नसमुच्चय सह बीजक, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २१२, जैदेना., प्र.वि. आधारित-ग्रं. ५६६१. सर्वग्रं. ५७७८., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (४८४) अदृष्टिदोषा मतिविभ्रमेण, (२५.५४११, ११४४०-४३). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, आधारित, सं., गद्य, वि. १४६६, आदिः जयति जिनवर्द्धमानो; अंतिः प्रेक्ष्यमाणं बुधैः. क्रियारत्नसमुच्चय-बीजक, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १२८७०. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति अष्टमअध्याय, संपूर्ण, वि. १६२५, श्रेष्ठ, पृ. ११४, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले. भवान, प्र.वि. हिस्सा -४ पाद., (२६.५४१०.५, १७४६४-६५). प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ , सं., गद्य, आदिः अथ प्राकृतम् बहुलम; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. For Private And Personal Use Only Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " सिद्धहेमशब्दानुशासन - हिस्सा अष्टमअध्याय की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, गणि उदयसौभाग्य, सं. गद्य, आदिः यस्य क्रमनमस्कारः; अंतिः निवारणायेत्यर्थः. (+) www.kobatirth.org: १२८७२. परिभाषासूत्र की वृत्ति, संपूर्ण वि. १६६९, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. स्थल मेदिनीकोट्ट, ले. गणि " आनन्दकीर्ति(खरतरगच्छ ) पठ. गणि राजसमुद्र ( खरतरगच्छ ). प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. - ), सूत्र- १९ (२६४११, १३४३३-४० ). " परिभाषासूत्र- वृत्ति, सं., गद्य, आदिः पञ्चम्या निर्दिष्टे ; अंतिः किं हि वचनान्न भवति. १२८७३." न्यायसङ्ग्रह की न्यायार्थमञ्जुषा टीका का स्वोपज्ञ न्यास, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. १२०४ टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें अल्प मात्रा में, ( २६.५४११, १७४६०-६२). न्यायसङ्ग्रह- न्यायार्थमञ्जूषा टीका का न्यास#, गणि हेमहंस, संबद्ध, सं., गद्य, आदि: श्रीजिनवरगणधर अंतिः सर्वापि श्रृङगारिता. " १२८७४." रुचादिगण सह पञ्जिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. मु. नारायण (गुरु गणि महिमासुन्दर ). प्र. वि. मूल ग्रं. २७० टीकाग्रं. २३०, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२५.५४१०.५, १७९५०-५२/रूचादिगण, सं., गद्य, आदिः रूचादिडानुबन्धेभ्यः; अंतिः शिष्यं गुरुः. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रूचादिगण-पञ्जिका वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, शक. १२४६, आदिः कर्त्तरि रूचादि; अंतिः (१) एवमन्येप्यनुसर्तव्या (२) गणयुगलवृत्तिः, १२८७५. नामलिङ्गानुशासन की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७००, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले. स्थल. वीरमपुर, प्र. वि. *पत्र ८६ से १०१ जीर्ण, प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्ट (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, ( २६.५००११, १५४३९-४०)हैमलिङ्गानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि: श्रीसिद्धहेमचन्द्र: अंतिः लिङ्गानाम्. १२८७६. नामलिङ्गानुशासन की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना, प्र. वि. ग्रं. ३३८४ (२६४११, १९४५७). हैमलिङ्गानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः श्रीसिद्धहेमचन्द्र, अंतिः लिङ्गानाम्. - " १२८७७.” नामलिङ्गानुशासन सूत्र, संपूर्ण वि. १७५९, मध्यम, पृ. ८ जैदेना ले स्थल. नागनगरे, ले. मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - वचन विभक्ति संकेत, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५X१०.५, १२४३७-३८). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी आदि पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर अंतिः लिङ्गानाम्. १२८७८. लिङ्गानुशासन की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७१७, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले.- मु. कर्मचन्द, ( २६४१०.५, १५४३३-३५). हैमलिङ्गानुशासन अवचूरि, आ. रत्नशेखराचार्य, सं., गद्य, आदि: कटणथपट्टमयरषस इत्येद अंतिः निश्शेषेत्यादि , सुगमं. १२८७९. लिङ्गानुशासनसूत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. - गणि धर्महंस (गुरु आ. उदयनन्दिसूरि) प्र. वि. मूल- अध्याय ८. पंचपाठ (२६.५x११.५, ६-१३४३५-३८). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी आदि पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर अंतिः 1 , लिङ्गानाम्. , हैमलिङ्गानुशासनअवचूर्णि सं. गद्य, आदि: कटणथपममयरषस इत्येदं अंतिः काटकं पालकमित्यादि. " (+) १२८८१. वाक्यप्रकाश सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना, प्र. वि. मुल- श्लो. १३२, पदच्छेद सूचक लकीरें संसूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. टीका मात्र १ से ७ गाथा For Private And Personal Use Only Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४१५ तक ही लिखी हैं., (२६४११, ११-२४४१३-४०). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः श्रीमज्जिनेन्द्रमानम; अंतिः१२८८२. वाक्यप्रकाश सूत्र, संपूर्ण, वि. १८८४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.- पं. हेतविजय, प्र.वि. श्लो.१२६, (२६४११, १३ १४४४३-४४). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. १२८८३." वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना.,ले.- मु. मनोज्ञसागर, प्र.वि. श्लो.१२८, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पंचपाठ, (२५.५४१०.५, ११४४२-४३). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. १२८८४. वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.१२६, (२६x१०.५, १२४४१). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. १२८८७." लघुउपसर्ग सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.२०., संशोधित, (२६.५४११, १७ १९४५६-६५). उपसर्गगण, सं., पद्य, आदिः प्रपरापसमन्वव निर्दु; अंतिः स्थानादि कर्माण्यपि. उपसर्गगण-दीपिकाटीका, सं., गद्य, आदिः प्र इत्युपसर्गः पंच; अंतिः इत्यादौ विसर्गलोपः. १२८९४." प्राकृतलक्षण, संपूर्ण, वि. १९२०, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- श्रा. छोटालाल, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. २७०., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-कुछ पत्र, (२६४११, ६४३४-३६). प्राकृतलक्षण, कवि चण्ड कवि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य शिरसा वीरं; अंतिः भाषाश्च प्रकीर्तिति. १२८९५.” हैम प्राकृत व्याकरण सह स्वोपज्ञ टीका, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १८-१(१५)=१७, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. तृतीय पाद सूत्र ११ तक हैं., (२६.५४११, १७-१९४४७-५०). प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः अथ प्राकृतम् बहुलम ; अंति:प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः अथ शब्द आनन्त; अंति:१२८९६." सिद्धहेमचन्द्राभिधान-शब्दानुशासन सह वृत्ति-अष्टमअध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-८, ग्रं. २१९०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६.५४११, १५४४९-५१). सिद्धहेमशब्दानुशासन , आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्धृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः अभ्युदयश्चेति. १२८९७." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति अष्टमअध्याय, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-२(३२ से ३३)=४०, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-८., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४११, १७४५२ सिद्धहेमशब्दानुशासन , आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः अभ्युदयश्चेति. १२८९८. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति अष्टमअध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ५९, जैदेना.,प्र.वि. हिस्सा-४ पाद., For Private And Personal Use Only Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५४११, १५४४१-४४). प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ प्राकृतम् बहुलम; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ शब्द आनन्त; अंतिः अभ्युदयश्चेति. १२८९९. सिद्धहैमशब्दानुशासन सह वृत्ति अष्टमअध्याय, प्रतिअपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १००-१(९९)=९९, जैदेना., ले.- मु. धनरत्न (गुरु आ. लब्धिसागरसूरि, तपागच्छ),प्र.वि. हिस्सा-४ पाद; प्र.पु.-टीका-सूत्रसंख्या-४४५., (२६४११.५, १९४६६-६८). प्राकृत व्याकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः अथ प्राकृतम् बहुलम; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टमअध्याय की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, गणि उदयसौभाग्य, सं., गद्य, आदिः यस्य क्रमनमस्कारः; अंतिः निवारणायेत्यर्थः. १२९००. शब्दमहार्णवन्यास की स्वोपज्ञ वृत्ति-७ अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १९६८, श्रेष्ठ, पृ. १७५, जैदेना., ले.- रामचन्द्र लोडा, (२७४११.५, १४४४६-४८). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्धृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंति:१२९०२." वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. १९१७, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. अमदावाद, ले.- मु. जवेरसागर, प्र.वि. श्लो.१२७, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४१२.५, ५४३९-४०). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. १२९०४. सारस्वतीप्रक्रिया सह दीपिका, संपूर्ण, वि. १८०३, श्रेष्ठ, पृ. १५४, जैदेना., ले.स्थल. सोजिंतराग्रामे, ले.- पं. लक्ष्मीविजय (गुरु गणि दयाविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. टीका-ग्रं. ७१००., पंचपाठ, (२५.५४११.५, ३-५४४३-४६). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः नराकारमधुपापीतपत्कजः. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः चरणकमले यस्य स. १२९०५.” सारस्वतव्याकरण सह दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४३, जैदेना., ले.- ऋ. सदारङ्ग (गुरु ऋ. वेलाजी), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. टीका-अध्याय-३वृत्ति., संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४११, १७-१८४५१-५५). सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः नराकारमधुपापीतपत्कजः. सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि: नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः प्रभुचन्द्रकीर्तिः. १२९१०. अवन्तिसुकमालादि ढाल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. ९, पे. ५, जैदेना., (२६.५४१२, १६४६३-६६). पे.१. पे. नाम. ऐवन्तीशुकमाल महामुनि चरित्र, पृ. १अ-३आ अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४१, आदिः पास जिनेसर; अंतिः सुख पावे रे., पे.वि. ढाल १३. पे.२. नन्दिषेण चोपाई, मु. दानविनय, मागु., पद्य, वि. १६६५, (पृ. ३आ-५आ), आदिः जिनेसर पाया समरीय; अंति: ___ गुणतां नवनिध थायइ., पे.वि. गा.८५. पे.-३. मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदिः श्रीजिनवरनो रे चरण; अंतिः चूक्यौ आण्यो माग रे., पे.वि. ढाल-४. पे.-४. पे. नाम. रोहिणीतप स्तवन ढालीयो, पृ. ६आ-७आ For Private And Personal Use Only Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४१७ रोहिणीतप स्तवन, कवि दीपविजय, मागु., पद्य, वि. १८५९, आदिः हा रे मारे वासु; अंतिः रोहणी तप गुण गाईया., पे.वि. ढाल-६. पे:५. शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६८२, (पृ. ७आ-९आ), आदिः श्रीरिसहेसर पाय नमी; अंतिः सुणतां आणन्द थाय., पे.वि. परिमाण ढाळ-५. ढाल-६. १२९१३.” शब्दार्णव प्रक्रिया, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. योषिद् अधिकार तक है., (२५४११, १३४४०-४२). शब्दार्णव व्याकरण-स्वोपज्ञ प्रक्रिया, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः श्रीपार्वं प्रणिपत; अंति:१२९१४.” शब्दार्णव व्याकरण, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, संशोधित, (२६४११, १०-११४३७-४०). शब्दार्णव व्याकरण, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, आदिः सिद्धयर्थं फलवृद्धि; अंतिः कल्याणभाजः. १२९२६. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, पूर्ण, वि. १७२८, श्रेष्ठ, पृ. १७२-८(१ से ८)=१६४, जैदेना., ले.स्थल. द्वीपबंदिर, ले.- गणि विबुधकुशल (गुरु गणि सूरकुशल, नागपुरीय तपागच्छ), पठ.- मु. मानकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ८२००., प्र.ले.श्लो. (६१७) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा; (६३१) मङ्गलं लेखकानां च, (२६.५४११, १५४४४ ४९). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदि:-; अंतिः प्रभुचन्द्रकीर्तिः. १२९२७. सारस्वत व्याकरण की दीपिका टीका, संपूर्ण, वि. १६२९, श्रेष्ठ, पृ. १३७, जैदेना., ले.स्थल. नागपुरनगरे, ले.- मु. साजण (गुरु पं. चारित्रमेरु, नागपुरीयतपागच्छ),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.ले.श्लो. (२७०) यावन्मेरु धरापीठे; (६६७) तैलाद्रक्षेज्जलाद्रक्षेद्, (२६४१०.५, १४-१५४२६-५१). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः बुधैश्चिरम्. १२९२९." सिद्धहेमशब्दानुशासन की वृत्ति- १ से ७ अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, पृ. २१६, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४११, १५४५४-५७). सिद्धहेमशब्दानुशासन-तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्धृत्ति की न्याससारसमुद्धार टीका, आ. कनकप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १२९८, आदिः प्रणम्य केवलालोकाव; अंति:१२९३२." षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. ४४, जैदेना., ले.स्थल. सूर्यपूर, ले.- मु. मेरुतिलक (गुरु पं. विद्याविजय, खरतरगच्छ), गच्छा.- आ. जिनवर्द्धमानसूरि(खरतरगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४११, १७४४६-५१). षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६७९, आदिः ॐ नमः श्रीपार्श्व; अंतिः चिरं नन्दतात्. १२९३३. ढुण्ढियानी नवबोलनी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९०९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- पं. जशोविजय गणि, (२७४१२, १४४३६ ४०). ढुण्डीया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, राज., गद्य, वि. १८७६, आदिः भट्टारक श्रीविजय; अंतिः छइ ते वचन प्रमाण १२९३६. लघुनन्दिसूत्र, योग विधि, व्रतोच्चारण आदि विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. १२, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, दशा वि. विवर्ण-पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२६.५४११, १८-१९४४३ ५१). पे.१. योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गद्य, (पृ. १अ-१आ), आदि: नाणं पञ्चविहं; अंतिः नित्थारपारगाहोह., पे.वि. सूत्र-९. For Private And Personal Use Only Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. २. योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, प्रा., पद्य, (पृ. १आ-१आ) आदि उमिति नमो भगवओरिहन्त: अंति: जिणाइनवकार उधरियं. पे.वि. गा. ५. पे.-३. नन्दीसूत्र स्तुति, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ ), आदि: अर्हं स्तनोतु श्रेयः; अंतिः विघ्न विघातदक्षा:., पे.वि. " (+) गा. ८. पे. ४. १०८ स्नात्र विधि, मागु., सं., गद्य, (प्र. २अ-२४), आदि सोपारी १०८ खारिक: अंतिः च कर्तव्यमिति, पे. ५. आगतिकाष्टोत्तर विधि, सं. गद्य (पृ. २अ (आ) आदि इहापि सर्वोपि अंतिः सङ्घपूजादिकं " 1 पे. ६. पे. नाम नन्दि विधि, पृ. २आ-३आ व्रतउच्चारण विधि, प्रा., सं., गद्य, आदिः यथा प्रथम नालिकेरादि; अंतिः सम्प० विहरामि . पे.-७. पे. नाम. श्रावकनी ११ प्रतिमानु विधि, पृ. ३आ-४आ श्रावक ११ प्रतिमा, सं. प्रा. मागु, गद्य, आदि अनं० मिच्छतं दव्य अंतिः तेतला नइ कही घरी आवइ. पे.-८. पंचपरमेष्ठिगुणन विधि, सं., गद्य, (पृ. ४आ-४आ), आदिः प्रभाते मूल नायकस्य; अंतिः सङ्घट्टस्त्याज्यः. पे. ९. चैत्रीपूनमपूजा विधि, सं., प्रा., गद्य, (पृ. ४आ - ५अ ), आदि: ओसप्पिणीइ प०: अंतिः पूजयतिचैत्र पूर्णिमां. पे. १०. वासक्षेप विधि सं. गद्य (प्र. ५अ-५अ) आदि नमस्कारत्रयेण अंतिः वेलायां कार्या " www.kobatirth.org: " . पे.-११. जिनबिम्बप्रतिष्ठादि विधि, सं., गद्य, (पृ. ५अ - ६आ), आदिः नव्य प्रतिष्ठितबिम्ब; अंतिः श्रीसङ्घभक्तिश्च. पे. १२. उपधानतप विधि, सं.प्रा., गद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदि प्रथम उपधाने उपवास अंतिः तत्रनुकार प्रगटनुकार. १२९३७. क्षेत्रसमास, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना. प्र. वि. अध्याय ६ अधिकार, गा. २६२, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित (२६.५४११, १५९५७-६४). " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir लघुक्षेत्रसमास प्रकरण आ. रत्नशेखरसूरि प्रा. पद्य वि. १५वी आदिः वीरं जयसेहरपय अंतिः कुसलरङ्गमई 1 , पसिद्धिं. १२९३८. स्नात्र विधिपञ्जिका, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. प्र. वि. ५ पर्व (२७४११.५, १००९५३-५०) " " " स्नात्र विधिपञ्जिका, आ. शान्तिसूरि, सं., गद्य, आदि अर्पितमनर्पितं वस्तु अंतिः भाजनतां व्रजन्तीति १२९३९. जिनप्रतिमापूजासिद्धि, अपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, पृ. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७४१२, १५-१६४४४ ५१). जिनप्रतिमापूजासिद्धि, सं., प्रा., गद्य, आदिः उमास्वातिकृत पूजा; अंति: (+) १२९४०. श्राद्धपाक्षिकअतिचार, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८- १ ( ४ ) = ७, जैदेना., ले. पं. रत्नविजय, (२७४११.५, १३×३०). श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, संबद्ध, प्रा., मागु., गद्य, (पूर्ण), आदि: नाणंमि दंसणंमि०; अंतिः मिच्छामि दुक्कडम्. १२९४१. श्राद्धपाक्षिकअतिचार (अञ्चलगच्छीय), संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले. स्थल. शेषपुर, ले.- मु. प्रीतिसागर, पठ- श्राविका बची प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें (२०५११५, ११४३५-३८). श्रावक पाक्षिक अतिचार अञ्चलगच्छीय संबद्ध, मागु, गद्य, आदि: इच्छा० गुरुपर्वभणी: अंतिः गारेणं वोसिरामि १२९४३. चौमासीदेववन्दन विधिसहित संपूर्ण वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना. (२८x१२.५ १४-१५X३८-४७). चीमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु, पद्य, आदि (१) श्रीशङ्खेश्वर ईस्वर (२) नोकार ३ गणिई थापना; अंतिः शिव मन्दिरीई रे. 1 (+) १२९४४. विचारसार का बालावबोध प्रश्नोत्तररत्नमाला व गौतमपृच्छा सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र, ( २७ ११.५, १३४४७-५३). पे.-१. विचारसार-बालावबोध, सं., मागु., गद्य, (पृ. १अ - ११अ ), आदिः अहं श्रीवीरं जिनं; अंतिः मइ रचिउ नीपजाविउ . पे. २. पे नाम प्रश्नोत्तररत्नमाला सह वालावबोध, पृ. ११अ १३अ प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्य जिनवरे अंतिः कण्ठगता किं न भूषयति. For Private And Personal Use Only Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४१९ प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जिनवरेन्द्र नागनरामर; अंतिः पामाडइ अपितु पमाडइजि., पे.वि. मूल-श्लो.२९. पे.-३.पे. नाम. गौतमपृच्छा सह बालावबोध, पृ. १३अ-१७आ गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि. गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः तीर्थनाथ श्रीमहावीर; अंति: गौतम प्रतिइ उपदिशी., पे.वि. मूल-गा.६४. १२९४५. ऋषि कुलक सह टबार्थ, धर्मप्राप्ति के १८ दृष्टान्त व कवित सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७४११.५, ४४३२-३५). पे..१. पे. नाम. ऋषिभासित कुलक सह टबार्थ, पृ. १आ-४आ गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः लोभीया मनुष्य अर्थनइ; अंतिः सेव्याथी सुख पामीजइ., पे.वि. मूल-गा.२०. प्र.पु.-टबार्थ-८४ कथा. पे.२. पे. नाम. धर्मप्राप्ति के १८ निमित्त, पृ. ४आ-५अ धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा, सं., पद्य, आदिः लज्जातो भयतो वितर्क; अंतिः तेषाममेयं फलम्., पे.वि. श्लो.१. पे.-३.पे. नाम. कवित सङ्ग्रह, पृ. ५आ-आ __ जैन सामान्यकृति, प्रा.,मागु.,सं., गद्य, आदि: #; अंतिः#. १२९४८. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक का बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९+१(१२)=२०, जैदेना., (२८x११.५, १५-१६४४१-५०). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, मागु., गद्य, आदिः पहिले बोले तीर्थङ्कर; अंतिः शास्त्रमे कह्यो छे. १२९५०. महादण्डक ३० बोल, संपूर्ण, वि. १८७३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. अजमेर, ले.- मोहनदास, (२७४११, १४४४३-५१). २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, आदिः दण्डक लेश्या ठित्ती; अंतिः अन्तरद्वार समत्तं. १२९५१. २४ दण्डक २९ द्वार विचार, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. उन्नतीसवां द्वार अपूर्ण तक है., (२७.५४११.५, ९४३०-३२). २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः१२९५२." प्रश्नोत्तरसमुच्चय व बीजक, संपूर्ण, वि. १६५३, श्रेष्ठ, पृ. ४५, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगरे, ले.- गणि लाभविजय (गुरु गणि कल्याणकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६.५४११.५, १५४४५-४९). पे:-१. हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, (पृ. १अ-३५अ), आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति., पे.वि. ४प्रकाश; प्र.पु.-ग्रं.२०२५. पे.२. हीरप्रश्न-बीजक, सं., गद्य, (पृ. ३५आ-४५अ), आदिः तत्र प्रथममहोपाध्याय; अंतिः को हेतुरिति प्रश्नः., पे.वि. बीजक के प्रतिलेखक हीरसागर हैं. १२९५३. प्रश्नोत्तरसमुच्चय, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१(३८)+१(१४)=४२, जैदेना., प्र.वि. ४प्रकाश, (२६.५४११.५, १३४४१ ४७). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति. १२९५४. प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र.वि. १५१ प्रश्नोत्तर, (२७४१२, १५४३२-३८). प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, मागु., गद्य, वि. १८५३, आदिः पहिलै बोलै तीर्थङ्कर; अंतिः शास्त्रमै कह्यो छे. १२९५६. नयचक्र विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- पुनमचन्द, (२७४११.५, ११४४०). नयचक्र विचार, मागु., गद्य, आदिः ए षट द्रव्यनो नाम; अंतिः जीवनो शरीर एम कहेवो. For Private And Personal Use Only Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४२० १२९५७. समति सूत्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. गा. १६६ (२६.५४१२, १३४५३-५७). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धट्ठाणं; अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. १२९५८. समति सूत्र, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले. स्थल. सूरत, प्र. वि. गा. १६७, ( २६११.५, ११४३३-३७). सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि प्रा. पद्य, आदि सिद्धं सिद्धट्ठाणं अंतिः संविग्गसुहाहिगम्मस्स. १२९५९.” प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार की लघुटीका का टिप्पणक, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५२, जैदेना. प्र. वि. ८ परिच्छेद, ग्रं. २१०४, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७.५x१२.५, १५४५-४७). रत्नाकरावतारिकाटीका-टिप्पण, मु. ज्ञानचन्द्र, सं., गद्य, आदिः एकान्तमत्तमातङ्गसिंह; अंतिः (१)कुर्वाणैः कृपामुच्चै (२) विरुद्धत्वोद्भावनं. " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १२९६२. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार सूत्र सह लघुटीका, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ७३-१ (१८) ७२, जैदेना. प्र. वि. ८ परिच्छेद. प्र. पु. - टीका ग्रं. ५०००., ( २६.५x११.५, १८४६७-६९). . प्रमाणनयतत्वालोकालकार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदि रागद्वेषविजेतारं अंतिः च वाच्यम्. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार स्याद्वादरत्नाकर टीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं. गद्य, आदि: सिद्धये वर्द्धमान अंतिः प्रस० प्रजल्पता, १२९६३. प्रमाणनयतत्त्वलोकालङ्कार सूत्र की लघुटीका का टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र. वि. ८ परिच्छेद (२६.५४११, १७५४२-४३). रत्नाकरावतारिकाटीका-टिप्पण, मु. ज्ञानचन्द्र, सं., गद्य, आदि: एकान्तमत्तमातङ्गसिंह अंतिः विरुद्धत्वोद्भावनं. " १२९६८.” कविकल्पद्रुम व कविकल्पद्रुम टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १५, पे. २, जैदेना., प्र. वि. संशोधित, (२७X११.५, १५X४७-४९). पे.- १. कविकल्पद्रुम, मु. हर्षकुल, आधारित, सं., पद्य, (पृ. १आ - १२अ), आदि: अर्हं प्रणम्य; अंतिः हर्षकुलविहिते० दशमपर.. पे. वि. मूल- अध्याय १०. पे. २. कविकल्पद्रुम टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, (पृ. १२अ-१५अ), आदि: अथ सौत्रा घातकः तत्र अंति एकादशपल्लवः फलदः. (+) १२९६९. सिद्धहेमशब्दानुशासन का विवरण, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ४४ जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, ( २६.५४११, १८४४७-५९). 1 सिद्धहेमशब्दानुशासन- उणादिगणसूत्र का स्वोपज्ञ विवरण आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १२वी आदिः करोतीत्यादिभ्यो धातु अंतिः वहति अनड्वान्वृषभः. १२९७०. कातन्त्रविभ्रम सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. मेद्रावस, ले.- वा. यशःसोम गणि (गुरु गण कनकप्रिय, बृहत्खरतगच्छ), पठ. - जीवणदास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. आधारित - श्लो. २२. लेखन संवत्चारधिनिधिवारभूवर्षे प्र.ले. श्लो. (६७३ ) यल्लिखितं मतिमान्या (२६.५०१०.५, १३०४८-५०) - हैमविभ्रम, आधारित, सं., पद्य, आदिः कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंतिः त इव दुर्वदकः सभायां. हैमविभ्रम- अवचूरि, मु. चारित्रसिंह, सं. गद्य वि. १६२५, आदि नत्वा जिनेन्द्र अंतिः वरैः स्वपरोपकाराय. 1 १२९७२. शब्दमहार्णवन्यास की वृत्ति अध्याय १ पाट ३ से अध्याय २ पाट १ प्रतिपूर्ण वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ९४, जैदेना., पू.वि. द्वितीय अध्याय प्रथम पाद तक है., (२७४११.५, १४४४१-४५). · सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिकावृहद्वृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १२वी आदि-: अंति: For Private And Personal Use Only १२९७५.” नामलिङ्गानुशासन सह स्वोपज्ञ वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, ( २६.५X११.५, २०x६०-६१ ). Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४२१ हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर; अंतिः सङ्ख्यं च तद्बहुलं. हैमलिङ्गानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः श्रीसिद्धहेमचन्द्र; अंतिः लिङ्गानाम्. १२९७६. नामलिङ्गानुशासन सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५३-२(१ से २) ५१, जैदेना, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें - संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत, (२७११, १७६१). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य वि. १२वी, आदि:-: अंतिः लिङ्गानाम्. हैमलिङ्गानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंतिः लिङ्गस्येति च . १२९७९. विचारपञ्चासिका सह टबार्थ व पुद्गल विचार, संपूर्ण वि. १८३९, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. २, जैदेना. ले. स्थल, राधनपुर, प्र. वि. प्रत के अंत में प्रतिलेखन वर्ष १८३४ भी लिखा है.. (२६.५४१२ ३-४४३९-४१). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे.- १. पे. नाम. विचारपञ्चाशिका सह टबार्थ, पृ. १अ - ९अ मूल-गा. ५१. विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदि: वीरपयकयं नमिउं अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपंचाशिका-टबार्थ *, मागु., गद्य, आदिः वीर क० श्रीविरपरमात्; अंतिः प्रधान विनयें करी., पे.वि. पे. २. पुद्गल विचार मागु., गद्य, (पृ. ९अ- ९आ), आदि: पुद्गलनो विचार अंतिः ते कलिओयुमा कहिई. १२९८०. त्रिभुवनदीपक प्रबन्ध संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना, प्र. वि. गा४५८, संशोधित, (२७.५x११, ९४३०-३६). त्रिभुवनदीपक प्रबन्ध, आ. जयशेखरसूरि, मागु., पद्य, वि. १५वी, आदि: पहिलु परमेसर नमी; अंति: शशि दिणयर ठाउ १२९८१. बप्पभट्टिसूरि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२७.५X११.५, ११४४३). बप्पभट्टसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: गुर्जरदेशे पाटलिपुरे; अंतिः पुरुषैरेवं भाव्यम्. १२९८२.” स्तम्भनपार्श्व प्रबन्ध व पञ्चक, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४११, १५४४८-५०). पे. १. पार्श्वजिन माहात्म्य कथासङ्ग्रह स्थम्भनपार्श्व, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं. गद्य वि. ११३१ ( १अ - ७आ), आदि: श्रीस्थम्भनपार्श्व; अंतिः तदादि निरन्तरं पूजा, पे.वि. ३२प्रबंध. पे. २. पार्श्वजिन स्तुति-स्तम्भन सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ ), आदि भूमिनाभिसुते पवित्रय अंतिः वांछितं स्तंभनेशः, पे. वि. श्लो. ५. (+) " १२९८३. स्तम्भनपार्श्व प्रबन्ध, पञ्चक व पूजाफल, संपूर्ण वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३. जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक 1 लकीरें (२६.५४११, १०४५५-५७) पे.-१. पार्श्वजिन माहात्म्य कथासङ्ग्रह - स्थम्भनपार्श्व, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, वि. ११३१, (पृ. १अ-६अ), आदिः श्रीस्थम्भनपार्श्व; अंतिः तदादि निरन्तरं पूजा., पे.वि. ३२प्रबंध. पे. २. पार्श्वजिन स्तुति-स्तम्भन, सं., पद्य, (पृ. ६अ-६अ ), आदि भूमिनामिसुते पवित्रय अंतिः वांछितं स्तंभनेश पे.वि. श्लो. ५. " For Private And Personal Use Only " पे.-३. पार्श्वजिन पूजाफल- स्थम्भनपार्श्व, सं., गद्य, (पृ. ६अ - ६अ ), आदिः प्रथमं श्रीस्तम्भनक; अंतिः भूमौस्तम्भतीर्थेपूजा. १२९८४. विक्रमराजा प्रबन्ध संपूर्ण वि. १७०१ श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना. ले. स्थल दमाणिग्रामे, ले. मु. अमरविजय (गुरु गणि विजयराज), पठ.- मु. मानविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ४३६, ( २६.५X११, १६x४२-४३). विक्रमराज खापरतस्कर रास वा मङ्गलमाणिक्य मागु पद्य वि. १६०८ आदि प्रथम नमी जिन पय: अंतिः एह रास विस्तरइ. १२९८५.” इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. १००., संशोधित, (२७४१२, ५४३१). Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सोच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तेहिज सूर तेहिज; अंतिः संवेग रसायन नित्यं. १२९८६. इन्द्रियपराजयशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१०२; अनुवाद-श्लो.१०२. टबार्थ शैली में छायानुवाद लिखा हैं., (२६.५४११.५, ५४३५-४०). इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., पद्य, आदिः सोच्चिअ सूरो सो चेव; अंतिः संवेग रसायणं निच्चं. इन्द्रियपराजयशतक-छाया, सं., पद्य, आदिः स एव शूरः स चैव; अंतिः संवेग रसायनं नित्यं. १२९८७." दृष्टान्तशतक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१०२. प्रतिलेखक द्वारा टबार्थ अपूर्ण गा.८६ तक लीखा हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ४४४३-४५). दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नत्वा श्रीवृषभं; अंतिः विशोध्यं वरै. दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः नमस्कार करीनइं; अंति:१२९८८.” कर्मग्रन्थ ६ सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२७४११, १५४५१-५३). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः पूरेऊणं परिकहन्तु. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, आदिः अशेषकर्मांशतमः समूह; अंतिः धर्मं परममङ्गलम्. १२९८९. दर्शनसत्तरी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- गणि जयविजय (गुरु गणि कनकविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७०. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. २६४., (२७४१२, ४४३२-३३). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धि धुवं लहह. सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः सम्यक निर्मलाईनइ; अंतिः दर्शन निर्मल करेइ. १२९९०. नमस्कारफलदृष्टान्त सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.३२६, (२६४११, १२४३७-४०). नमस्कारफलदृष्टान्त सङ्ग्रह, सं., पद्य, आदिः नमो अरिहन्ताणं; अंति: महामंत्र सदा सौख्यदं. १२९९१." सिद्धचक्र माहात्म्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, (२६.५४११.५, १३४४३-४६). सिद्धचक्र माहात्म्य, सं., गद्य, आदि: मगधदेशे राजगृहे; अंतिः जनः समुद्यतोभूत. १२९९२. चौरासीधर्मकथा प्रबन्ध व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, पे. २, जैदेना., (२७४११.५, १५४५५-५६). पे.१.८४ धर्मकथा प्रबन्ध, सं., गद्य, (पृ. आ-८३आ), आदि: उज्जयिन्यां महासेनो; अंतिः मोक्षे यास्यति., पे.वि. ग्रं.३५२५. पे.२. जैन गाथा *, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ८३आ-८३आ), आदिः#; अंति: #. १२९९३. साठिसउ प्रकरण, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना.,प्र.वि. गा.१६२, (२७४११.५, १३४४४). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, आदिः अरिहन्त देव सुसाधु; अंतिः भणउ जाणउ जावउ मोक्ष. १२९९४." षष्टिशतक सह वृत्ति, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१६१. प्रशस्ति गाथा अपूर्ण होने के कारण अंतम वाक्य नही भरा है., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. , (२६x१०.५, १५४५८). षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः अरहं देवो सुगुरु; अंतिः जाणन्तु जन्तु सिव्वं. षष्टिशतक प्रकरण-वृत्ति, उपा. गुणरत्न, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः जयति श्रीऋषभजिनो; अंतिः१२९९५.” अष्टकसङ्ग्रह सह टीका व जिनचन्द्रसूरि प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०२, पे. २, जैदेना., प्र.वि. For Private And Personal Use Only Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२७४११.५, १३४३७-४४). पे.१. पे. नाम. अष्टक प्रकरण सह वृत्ति, पृ. १आ-१०१आ अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः यस्य सङ्क्लेशजननो०; अंति: भवन्तु सुखिनो जनाः. अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., गद्य, वि. १०८०, आदिः आविष्कृताशेषपदार्थ; अंतिः लोकानां सप्ततिस्तथा., पे.वि. मूल-अध्याय-३२अष्टक; प्र.पु.-टीका-ग्रं.३७७४. पे.२. जिनचन्द्रसूरि प्रशस्ति, सं., गद्य, (पृ. १०१आ-१०२आ), आदिः रङ्गद्वैवाग्ववासना; अंतिः जिनचन्द्रसूरिपुरंदरै. १२९९६." भरडकबत्रीसी कथा सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. ३२कथा, संशोधित, (२६४११, १६x४० ४३). भरटकद्वात्रिंशिका, गणि आनन्दरत्न, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः देवदेवं नमस्कृत्य; अंतिः हृष्टोगृहे जगाम. १२९९७. स्नात्रपञ्चाशिका सह कथा, पूर्ण, वि. १८९४, श्रेष्ठ, पृ. ३१-२(१ से २)=२९, जैदेना., ले.स्थल. विरमगाम, ले.- मु. जयविजय (गुरु मु. नायकविजय), प्र.वि. कथा-अध्याय-५० कथा., पू.वि. प्रथम पूजा नहिं हैं., (२७४१२.५, १३ १४४३३-३६). स्नात्रपञ्चाशिका, गणि शुभशील, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः मुक्ति सुखार्थिना. स्नात्रपञ्चाशिका-कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः मुक्तिसुख पामिस्यइ. १२९९८." दिनचर्यासूत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. नांदीग्रामे, ले.- मु. धना, प्र.वि. संशोधित, (२६.५४११, २०-२१४७२-७७). यतिदिनचर्या-अवचूरि, मु. मतिसागर, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य जगदानन्दं; अंतिः स्तोकमतियतियोग्या. १२९९९. श्राद्धदिनकृत्य, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. गा.३४१, (२६.५४११, १५४५३-६६). श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरं नमिऊण तिलोयभाणु; अंतिः मिच्छामिह दुक्कडन्ति. १३०००. विवेकविलास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना.,प्र.वि. १२उल्लास, (२६.५४११, १५-१६४५४-६८). विवेकविलास, आ. जिनदत्तसूरि, सं., पद्य, आदिः शाश्वतानन्दरूपाय; अंतिः लोकोत्तरं शाश्वतम. १३००२. योगविधि व प्रवज्यादि विधिसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९२७, श्रेष्ठ, पृ. ४६, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर-अमदावाद, ले.- सीवचन्द बोरा, लिखवा.- मु. हर्षविजय (गुरु मु. जयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६.५४११.५, १३४३६-४०). पे.-१. योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १आ-३०अ), आदिः श्रीआवश्यक सुअक्खन्ध; अंतिः उपस्थापना आलोचना. पे.२. प्रवज्या विधि, प्रा.,मागु., पद्य, (पृ. ३०आ-४४अ), आदिः दीक्षा लेतां एतला; अंतिः वार ३ उच्चरावीई. पे..३. काल विधि, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ४४अ-४५आ), आदिः वाघाई अहुरत्ती; अंति: जावसुठुइच्छं. पे.४. उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन ४, प्रा., पद्य, (पृ. ४५आ-४६अ), आदिः असङ्खयं जीविय मा; अंतिः सरीरभेउ त्ति बेमि., पे.वि. गा.१३. १३००३. तपस्याविधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२७४११.५, १३४३६-४१). तपस्या विधि सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नउकार पोरसीए पुरिम; अंतिः यथोक्तलाभात्. १३००४." कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान, सङ्घस्तुति सह टबार्थ व साधुसमाचारी के २८ प्रकार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, पे. ३, जैदेना.,प्र.वि. अंत में प्र.पु.श्लोक का अर्थ भी लिखा है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ,प्र.ले.श्लो. (४९५) अक्खरमत्ताहीणं, (२६४११.५, ६४३६-४२). पे.-१. पे. नाम. साधुसामाचारी के २८ प्रकार, पृ. १अ-१अ, संपूर्ण सामाचारी, सं., पद्य, आदिः प्रथम सामाचारी; अंतिः श्रीकल्पाराधन फल. पे..२. पे. नाम. कल्पसूत्र सह टबार्थ+व्याख्यान, पृ. १आ-१७अ, प्रतिपूर्ण For Private And Personal Use Only Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४२४ (+) www.kobatirth.org: कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गद्य, आदि:-: अंति: कल्पसूत्र - टबार्थ + व्याख्यान, मु. देवकुशल, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:पे.-३. पे. नाम. सङ्घ स्तुति सह टबार्थ, पृ. १७-१७आ, संपूर्ण सङ्घ स्तुति, सं., पद्य, आदिः संघोय गुणरत्नरोहण ; अंतिः सङ्घश्चिरं नन्दतात्. सङ्घ स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः ए श्रीसङ्घ गुण रत्न; अंतिः इं नन्दो जयवन्त रहो. " १३००५. विचारषट्त्रिंशका सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १६, जैदेना. ले. मु. सुन्दरसागर (गुरु गणि कल्याणसागर), पठ श्राविका सुहागदे, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-गा. ३९.. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६.५४११.५, २X३०-३४). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ऐन्द्रराजं जिनं; अंतिः हेतना करणारा. कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३००६. विचारषट्त्रिंशिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. वीरपुर, पठ- श्राविका फूल (श्रीमालज्ञाती- लघुशाखा), प्र. वि. मूल गा. ४५. (२७४११.५, ३४३०-३३). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टवार्थ राज, गद्य, आदि नमिउं कहितां नमस्कार अंति: अने परने पण हितकारी. १३००७. विचारषट्त्रिंशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८१४, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.- मु. हेमविजय, प्र. वि. मूल-गा. ४०., (२७११.५, १३४३६-४० ) . दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: ऐन्द्र जिनतंनत्वा ; अंतिः हितनी करणहारी... १३००८. सिद्धपञ्चाशिका सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा.५०., (२७४१२, १५४४२ ४३). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- बालावबोध, आ. विद्यासागरसूरि मागु, गद्य, आदि: सिद्धार्थ राजतनयं अंतिः (१) लोद्वी मितेशरदिहर्षतः ( २ ) परमोपकारनइं अर्थइं. १३००९. ईर्यापथिकाषट्त्रिंशिका सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १३ -४ (२, ८ से १० ) = ९, जैदेना., प्र. वि. प्र.पु. उभय-ग्रं. ७४७. त्रिपाठ, (२७४१२ २-३४४५-४७). ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागर, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः पणमिअ जिणवर वीरं; अंतिः सिरिहीरविजय For Private And Personal Use Only मूल-गा. ३६. जुगपवरा. ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा. धर्मसागर, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः प्रणम्यात्मविदं वीरं; अंतिः धर्म्मधियेति. १३०१०. द्वात्रिंशिका सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले. पण्डित बालाजी वैद्य, प्र. वि. २१द्वात्रिंशिका, (२७४१२.५, १५४२९-४९). द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि सं., पद्य, आदि स्वयम्भुवं भूतसहस्र अंतिः ताश्चक्रिशक्रश्रियः. १३०११. विचारषट्त्रिंशिका की अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. ग्रं. २५०, ( २८x१२.५, १२-१४X३६-४१). दण्डक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., गद्य, वि. १५७९, आदिः श्रीवामेयं महिमामेयं; अंतिः मत्वेदं बालचापल्यम्. १३०१२. निगोदछत्रीसी सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८९६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र. वि. हिस्सा-गा.३६., (२७.५x१२.५, १३४२८-२९), Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४२५ भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदि: लोगस्सणम्भन्तेएगम्मि; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. निगोदषट्त्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: इम लोकाकाश प्रदेशनें; अंतिः उद्देशे ए अधीकार छे. १३०१३. श्राद्धविधिप्रकरणवृत्ति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ३४०, जैदेना., ले. स्थल मकसूदावाद, ले. मु. मतिकुमार (गुरु पाठक विद्याधीर, बृहत्खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. टीका-६ प्रकाश. प्र. पु. - सर्वग्रं. ६७६१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें (२७.५०१२ ७०४६-४९). श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. रत्नशेखरसूरि सं., गद्य, वि. १५०६, आदि: अर्हत्सिद्धगणी अति: www.kobatirth.org: , " " जयदायिनी कृतिनाम्. श्राद्धविधि प्रकरण-विधिकौमुदि टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीअरिहन्त सिद्ध: अंतिः पुण्यवन्ताने होज्यो. १३०१५. कर्मग्रन्थ ६ सह वृत्ति, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. ४८, जैदेना, प्र. वि. टीका ग्रं. ३७८०, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x११.५. १९-२०४६५-७०). सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. " सप्ततिका कर्मग्रन्थ- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य, आदि अशेषकर्माशतमः समूह अंतिः धर्मं परममङ्गलम्. १३०१६. कालसत्तरि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. भावनगर, ले. कृष्णजी वेलजी दवे, प्र. वि. मूल-गा. ७५. (२८४११.५, ४४३४-३६) कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य, आदि देविन्दणयं अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं · कालसप्ततिका टवार्थ मागु, गद्य, आदिः इन्द्र महाराय पण अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३०१७. श्राद्धआलोचना विधि, संपूर्ण वि. १८७१ मध्यम पृ. ७ जैवेना. ले. स्थल वढवाण, ले. मु. पद्मविजय ( तपगच्छ), " " प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१२, १२-१३३७-४१). श्रावक आलोयणा विधि, मागु., पद्य, आदिः अष्टविधि विज्ञान; अंतिः निन्दा० आलोयणा पोहति. १३०१९. देववन्दन विधि, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. बजांणानगर, ले. जेष्टीराम प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१२.५, १३-१६४३८-४४). " देववन्दन विधि, मु. हुकमचन्द, मागु., पद्य, आदिः सर्वारथसिध वीमानथी; अंतिः ते लहसे बहु सुषमान. १३०२०. निगोदषट्त्रिंशिका का बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र. वि. द्विपाठ, (२७.५x११.५, १३-१४४३७ 89). निगोदषट्त्रिंशिका-बालावबोध, मागु., गद्य, आदि: लोकचउदरजवात्मक तेहना; अंतिः असङ्ख्याति जाणवि. १३०२१. दिगम्बरमत विचार, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना, ( २८.५५११.५ १३४४२-४७). दिगम्बरमत विचार, आ. महेन्द्रसूरि सं., गद्य, आदिः तत्र च परिधापनिका अंतिः शूद्रादपिनदुष्यति. १३०२२. सिद्धपञ्चाशिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. मूल-गा. ५०, ( २८.५४११, १३४५०-५२). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धत्थ० सिद्धाः; अंतिः सिद्धप्राभृतावनीयः. १३०२३. कालसत्तरि, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना. प्र. वि. गा. ७४ (२९x१२, १०४३७-४०). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. १३०२४. सिद्धान्तविचारछत्रीसी, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र. वि. ३६अधिकार, (२९x१२, १४-१५X४६-५१). सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं., प्रा., मागु., प+ग, आदिः प्रथमं तावत्; अंतिः संसारिणो हुन्ति. १३०२५." श्रुत विचार, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४७, जैदेना., प्र. वि. प्र. पु. ग्रं. १७५०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९.५४१०.५, १३४४६ ४९). For Private And Personal Use Only Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची श्रुत विचार, प्रा.,मागु., गद्य, आदिः नमिऊण जिणवराई मुअ; अंतिः भवियजीयाणंवबोहिव्वं. १३०२८. महाबलमलयसुन्दरी कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-४, (२८.५४११.५, ११४४२-४७). मलयासुन्दरी कथा, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदिः जातो यः कमलाकरे शुचि; अंतिः विस्तारो कथायामिहतत्. १३०२९.” पञ्चाशिका प्रकरण १-१०, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२९.५४११.५, १६-१७४५४-६६). पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वद्धमाणं सावग; अंति:१३०३०. तप सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (३०x११.५४). तपावली, मागु., गद्य, आदिः महासर्वतो भद्र तप; अंति: सर्व उपवास ७२. १३०३१. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र- ८ पर्व, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १०४, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१२, पदच्छेद सूचक लकीरें, (३०x११, १५४५५-५६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः विस्मयाय त्रिलोक्यं. १३०३२." शत्रुञ्जय माहात्म्य-१ से ६ सर्ग, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १०४, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (३०x११, १७४६०-६३). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति:१३०३५. कातन्त्र व्याकरण की दुर्गपदप्रबोध वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १०१+२(७४,७४)=१०३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. २६४४, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (३०४८ ., ९x४७-५०). कातन्त्रव्याकरण-दौर्गसिंहीवृत्ति की दुर्गपदप्रबोधवृत्ति, गणि लेशप्रबोधमूर्ति, सं., गद्य, वि. १३२८, आदिः श्रीमन्तं वीरजिनं; अंतिः दृष्टव्या इत्यर्थः. १३०३६. पर्युषणा कल्प की सन्देहविषौषधि टीका, संपूर्ण, वि. १४७४, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. ३०४१, संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (४७९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२८.५४०८.५, २०४५८). कल्पसूत्र-सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६४, आदिः ध्यात्वा श्रीश्रुत; अंतिः वाञ्छितसिद्धिपारम्. १३०३७. नरवर्मराज चरित्र, संपूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. १३८+१(१२६)=१३९, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-५, ग्रं. ५४२४, (२९.५४०९., १३४५२-५७). नरवर्मराज चरित्र, गणि विवेकसमुद्र, सं., पद्य, वि. १३२४, आदिः प्रव्रज्याप्रमदा; अंतिः संसेव्यमानं बुधैः. १३०४४. न्यायसार, नयतत्त्वलोकालङ्कार की टीका, सप्तपदार्थी, तर्क प्रकरण व श्लोक, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १८ २(१ से २)=१६, पे. ५, जैदेना.,ले.- गणि उदयसोम, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-कुछ पत्र, (३०.५४११, १७-१८४६५-६७). पे.-१. न्यायसार, आ. भासर्वज्ञ, सं., गद्य, (पृ. १अ-८आ, अपूर्ण), आदि:-; अंतिः पुरुषस्य मोक्ष इति., पे.वि. ३ परिच्छेद. __ प्रथम परिच्छेद नही है. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ, संपूर्ण), आदिः#; अंतिः #. पे.-३. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, (पृ. ९अ-१३अ, संपूर्ण), आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः ___ च वाच्यम्., पे.वि. ८ परिच्छेद. पे.-४. सप्तपदार्थी, शिवादित्य मिश्र, सं., गद्य, (पृ. १३आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः हेतवे जगतामेव संसारा; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४२७ वस्तुप्रकाशिनी. पे.५. तार्किकरक्षा, आ. वरदराज, सं., पद्य, (पृ. १६अ-१८आ, संपूर्ण), आदिः नमः परमात्मानं स्वतः; अंतिः विद्वत्सदसि राजते., पे.वि. श्लो.१६०. १३०४६.” सुभाषित सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.९३६ तक है., (३१x११.५, १८-२६४५०-६०). सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह*, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, आदिः कृत्वान्तर प्रदीपं; अंतिः१३०४७. निगोदषट्त्रिंशिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. हिस्सा-गा.३६. विवाह प्रज्ञप्ति शतक ११ उद्देश १० की टीका सह वृत्ति., (३०.५४११, १६४५२-५६). भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः लोगस्सेगपएसे जहन्नय; अंतिः ते अणन्ता असङ्खा वा. भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा-निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., गद्य, आदिः अथ पंचमांग; अंतिः सङ्ख्येया अवसेयाः. १३०४८. पुष्पमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १५७७, मध्यम, पृ. ८४, जैदेना., ले.स्थल. अहमदावाद, प्र.वि. मूल-गा.५०५., (३१x१२, १७४६३-६६). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं कम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१२, आदिः जयति जगदेकभानुः; अंतिः नित्यसुखार्थिभिः. १३०५०. भगवतीसूत्रना बोलनी टीप, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२९.५४१३x). भगवतीसूत्र-हुण्डी, ऋ. धर्मसिंह, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदिः नमो बम्भीए लिवीए; अंतिः मिथ्यात्वीनूं प्रश्न. १३०५१. ऋषभपञ्चासिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५०., त्रिपाठ, (२९x१३, १-२४३९ ४५). ऋषभपञ्चाशिका , कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, आदिः जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. ऋषभपञ्चाशिका-टीका, आ. प्रभानन्दसूरि, सं., गद्य, आदि: जयत्ति व्याख्या हे; अंतिः पञ्चाशत्तमगाथार्थः. १३०५२. जैन तर्कभाषा, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- देवकृष्ण व्यास, प्र.वि. ३ परिच्छेद, ग्रं.७००, (२९४१२, १४४५६-६०). तर्कभाषा-जैन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्र वृन्दनतं नत्व; अंतिः विवेचितमस्माभिः. १३०५४. रुपसेनराजा कथा, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले.- जयकृष्ण बोडा, प्र.वि. श्लो.२७८, (२९x१२, १२४३५-४३). रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं विदुरं; अंतिः सुकृताय कृता कथा. १३०५५. सिद्धहैमशब्दानुशासन सह टीका प्रथम अध्याय, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, जीर्ण, पृ. २३, जैदेना., (२९.५४१२.५, १९४५२ ६३). सिद्धहेमशब्दानुशासन , आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद्; अंतिःसिद्धहेमशब्दानुशासन-तत्त्वप्रकाशिकाबृहद्धृत्ति की न्याससारसमुद्धार टीका, आ. कनकप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १२९८, आदिः प्रणम्य केवलालोकाव; अंति:१३०५७. न्यायसारटीका, संपूर्ण, वि. १४८९, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (३१x१२, १८४६५-६७). न्यायसार-न्यायतात्पर्यदीपिका वृत्ति, आ. जयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः सत्वं यस्य वदत्य; अंतिः सर्वदापि For Private And Personal Use Only Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४२८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रकाशताम्. १३०५९. चम्पक श्रेष्ठी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. तेइरवाडा, ले.- मु. सोमविमल (गुरु गणि केशव), (२९x१२, १३४४७). चम्पक श्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः चम्पानाम नगरी सौगन्ध; अंति: मोक्षं यास्यति. १३०६०. चम्पक श्रेष्ठि कथा, संपूर्ण, वि. १९६७, जीर्ण, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. अहीपुर, ले.- कीलाणमल, प्र.वि. श्लो.४७७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ६५०, (२९x१२, १४४५०). चम्पक श्रेष्ठि कथा, मु. प्रीतिविमल, सं., पद्य, वि. १६५६, आदिः श्रेयः सन्तति कर्तार; अंतिः श्लोकाश्चरित्रस्य. १३०६१. भुवनभानुकेवली चरित्र बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. ६५, देना., ले.- पं. लाभविजय (गुरु पं. भाग्यविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, (२९४१३, १७X४४-५२). भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मागु., गद्य, आदिः सिरिवीरं नमीअ जिणं; अंतिः ज्ञानवृद्धि हुई. १३०६२." गुरुगुणषट्त्रिंशिका सह वृत्ति व बीजक, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- हरीकिसन व्यास, प्र.वि. मूल-गा.४०. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, संशोधित, त्रिपाठ, (२८x१३x). गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः वीरस्स पए पणमिय; अंतिः पावन्तु कल्लाणं. गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ दीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीमदर्ह पदं जीयात; अंतिः स्म विवृतिमिमाम्. गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-खोपज्ञ बीजक, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, आदि: देशना कथा भावना धर्म; अंतिः अष्टविद्याः विनय. १३०६३. जैन कथाकोश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३४, जैदेना., (३०x१२.५, ७-९x४४-४५). जैन कथाकोश, सं., गद्य, आदिः पान्ति दृष्टं दूरिता; अंतिः द्वावपि स्वर्गे गतौ. १३०६५." हैमव्याकरणशब्द, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (३०.५४१३.५, १५४४७-५०). __ शब्दसंचय, सं., गद्य, आदिः शब्दाम्भोधिसमुल्लास; अंतिः एकं शेषं पुंवत्. १३०६६. सिद्धान्तसमुच्चय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १५५७, श्रेष्ठ, पृ. ९१-१(११*)=९०, पे. २, जैदेना., ले.- गणि शिवविमल (गुरु गणि धनविमल), पठ.- मु. सींहविमल (गुरु गणि शिवविमल), प्र.ले.पु. मध्यम, (३१.५४१३, १५४४८-५४). पे.-१. सिद्धान्तसमुच्चय, सं.,प्रा., प+ग, (पृ. १अ-९१आ), आदिः अन्नत्थणाभोगेणं; अंतिः दिवसमपिनहापदोपयेत्. पे..२. जैन गाथा *, प्रा., पद्य, (पृ. ९१आ-९१आ), आदिः#; अंतिः#. १३०६८. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ४५, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- मु. तत्त्वविजय, प्र.वि. ग्रं. २२५०, (२९.५४१३, १९-२२४३९-५४). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः (१) वीरोवर प्रीयासीद्धीः (२) श्रीवीर वर्धमान; अंतिः विजय जिनेन्द्रसूरि. १३०६९. समाधितन्त्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८०४, श्रेष्ठ, पृ. १३५, जैदेना., ले.स्थल. सेडेरा, ले.- मु. कुस्यालचन्द, पठ.- मु. नगजी (गुरु मु. कुस्यालचन्द),प्र.वि. मूल-श्लो.१०४. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ४२००., (२९.५४१३.५, ७-१३४३० ४२). समाधिशतक, आ. देवनन्दी, सं., पद्य, आदिः येनात्मा बुध्यतात्म; अंतिः समाधितन्त्रम्. समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मागु., गद्य, आदिः (१) जिनान् प्रणम्याखिल (२) जिण अनादिकाल की; अंतिः लीलाइ पामिस्यइ. १३०७०." स्याद्वाद भाषा, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-अल्प मात्रा में, (२९.५४१३.५, १६४५१-५५). स्याद्वाद भाषा, गणि शुभविजय, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीमद्वीरजिनेशं; अंतिः स्याद्वादभाषेयं. For Private And Personal Use Only Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४२९ १३०७२. शत्रुञ्जयमाहत्म्य सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ६६५+१(१५३)=६६६, जैदेना., प्र.वि. मूल-सर्ग-१४. प्रथम चित्र पर पट्टिका है।, (३०x१३.५, ६४३४-३६). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: ग्रन्थ एषः. शत्रुजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीयुगादीशं; अंतिः ए ग्रन्थ चिरं नन्दतु. १३०७३." कुमारपाल चरित्र, पूर्ण, वि. १५वी, श्रेष्ठ, पृ. २०४, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१०, पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. रचना प्रशस्ति गा.९ तक हैं., (२८.५४१४, १५४३९-४५). कुमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., पद्य, वि. १४२२, आदिः चिदानन्दैककन्दाय; अंतिः पुण्यात्मनाम्. १३०७६. हैमव्याकणसूत्र अध्याय १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. ७८१., (३०.५४१४, १५४५३-६०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद् ; अंति:१३०७७. वैराग्यशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१०३, (३०x१४, १४-१५४४४-४५). वैराग्यशतक, कवि पदमानन्द कवि, सं., पद्य, आदिः त्रैलोक्यं युगपत्करा; अंतिः स्वादितः स्वेच्छया. १३०७८. विचार सङ्ग्रह, जिनयक्षयक्षणी वर्णन व विद्यादेवी स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, पे. ५, जैदेना., (३०.५४१४, १५४५१-६२). पे.१. विचार सङ्ग्रह, सं.,प्रा., गद्य, (पृ. १अ-१६आ), आदिः बत्तीसं कवलहारो; अंतिः निष्फलं होइ गोयमा. पे.२.२४ जिन यक्ष वर्णन, सं., पद्य, (पृ. १६आ-१७आ), आदिः ऋषभदेव गोमुखयक्ष; अंतिः वामकरधृतबीजपूरश्च., पे.वि. श्लो.२४. पे..३.२४ जिन यक्षिणी वर्णन, सं., पद्य, (पृ. १७आ-१८आ), आदिः ऋषभस्य चक्रेश्वरी; अंतिः वामकरद्वया च., पे.वि. श्लो.२४. पे.-४. १६ विद्यादेवी वर्णन, सं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः रोहिणी श्वेतवृषयाना; अंतिः अभयदान खेटक मं०., पे.वि. श्लो.१६. पे.५. १६ विद्यादेवी स्तोत्र, प्रा., पद्य, (पृ. १८आ-१९अ), आदिः सङ्खक्खमालाधणुबाण; अंतिः असोग चन्दप्पहुण्णय., पे.वि. गा.२१. १३०७९. लोकनालिद्वात्रिंशिका व कायस्थिती सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मेसाणे, ले.- जोगीदास व्यास-जसलमेरा, प्र.वि. त्रिपाठ, (३१x१४, १३-१४४६७-७६). पे.१. पे. नाम. कायस्थिति प्रकरण सह टीका, पृ. १आ-५अ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमण्डनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः वर्द्धमानं जिनं नत्व; अंतिः पदं ददस्व ममेति शेषः., पे.वि. मूल-गा.२४. पे.२.पे. नाम. लोकनालिद्वात्रिंशिका सह व्याख्या, पृ. ५अ-१०अ लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंति: जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-व्याख्या, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः यथाइहनचमथइतिगाथार्थः., पे.वि. मूल गा.३३. १३०८०. सङ्ग्रहणीसूत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८८१, श्रेष्ठ, पृ. १३२, जैदेना., ले.स्थल. वीसलनगरे, ले.- पण्डित वीरविजय(तपागच्छ), गच्छा.- आ. जिणेन्द्रसूरि(तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.५०८.प्र.पु.-उभय-ग्रं. ६६६५. चित्र यंत्र युक्त., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा; (६३७) जलां रक्षे थलां रक्षे, (३०.५४१४, ६-१८४४२). For Private And Personal Use Only Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः जा वीरजिण तित्थं. बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध*, मागु., गद्य, आदिः ॐ नत्वा अरिहन्तादि; अंतिः लगि एह चिरंजीवउ. १३०८१. भाव प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., त्रिपाठ, (२९.५४१४, १-३४५२ ७५). भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, वि. १६२३, आदिः आणंदभरियनयणो आणंद; अंतिः रम्माओ पुव्वगंथाओ. भाव प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, गणि विजयविमल, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नत्वा श्रीजिनशम्भवमा; अंतिः विहितेयं विजयविमलेन. १३०८२. अध्यात्मबिन्दु सह टीका-प्रथम द्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- ऋ. बालगिर बावा, प्र.वि. मूल-श्लो.३२. प्रथम द्वात्रिंशिका., (३१x१४, १२४३५-३७). अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या , मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदिः (१) वयमध्यात्ममहत्वं (२) अनन्तविज्ञानविभूति; अंतिः ज्ञानं न सिद्ध्येत. १३०८३. सर्वज्ञशतकसंशयनिराकरण, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., (२९.५४१४, १४४३७-३९). सर्वज्ञशतकसंशयनिराकरण, सं., गद्य, आदिः भट्टारक विजयसेनसूरि; अंतिः हेतु प्रतीकाराभावात्. १३०८४. पौषदसमी कथा सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. जीर्णदुर्गनगरे, ले.- गणि कुंअरकुशल, पठ.- मु. वीनयकुशल (गुरु गणि कुंअरकुशल),प्र.ले.पु. मध्यम, (२९.५४१४, ७४३२-३५). पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः सुखं जनः प्राप्नोति. पौषदशमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: नमस्कार करीने पार्श; अंतिः मोक्षनां सूख पामेइं. १३०८५." ऋषभजिनशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, देना., ले.स्थल. अकब्बरपुर, ले.- गणि हेमविजय, प्र.वि. ४स्तव, श्लो.२४२, संशोधित, (२९.५४१४, १४४३८). आदिजिन शतक , कवि कमलविजय, आ. विजयसेनसूरि, सं., पद्य, वि. १६५६, आदिः स्वस्ति श्रीमति यत्र; अंतिः अगमत् शतकं सदर्थम्. १३०८७. सारस्वतोल्लासकाव्य, गुरुशष्टिशतक व पर्वविकृप्तिशतक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३, जैदेना., (२९.५४१४.५, १४४३६-३९). पे.१. सारस्वतोल्लासकाव्य, आ. रत्नमण्डनसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-७आ), आदिः कश्चिज्जनो नोलज्जित; अंतिः __अधिगम्य कविप्रवेका., पे.वि. श्लो.१५४. पे.२. गुरुगौरव स्तोत्र, आ. रत्नमण्डनसूरि, सं., पद्य, (पृ. ७आ-१५अ), आदि: लक्ष्मीलतार्गलसोग ; अंतिः वादे व्यधादिदं., पे.वि. श्लो.१६१. पे..३. पर्वविकृप्तिशतक, वा. बूटारत्न, सं., पद्य, वि. १५०४, (पृ. १५अ-२३आ), आदिः श्रीसान्द्रश्चन्द्र; अंतिः मुखे मडंनं पंडितानां., पे.वि. श्लो.१०२. १३०८८." रत्नपालनृपकथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना.,प्र.वि. श्लो.८३१, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२९.५४१४, १४४३६-३८). रत्नपालनृप कथा, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः श्रेयः श्रीसद्मने; अंति: गणाधीशा वः शिवसम्पदे. १३०८९. सिद्धपञ्चासिका सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- मेघराज व्यास, प्र.वि. मूल-गा.५०., पंचपाठ, (२९.५४१४, ३-४४३७-३९). सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुअं; अंतिः देविन्दसूरिहिं. सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिद्धाः प्रतिष्टिता; अंतिः श्रीदेवेन्द्रसूरिभिः. For Private And Personal Use Only Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३१ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १३०९०." त्रैविद्यगोष्ठी, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ८००, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२९.५४१४, १४४५१-६०). त्रैविद्यगोष्ठी, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., गद्य, आदि: नमो विततैकान्तिका; अंति: न गृह्यते तद्वत्. १३०९१. न्यायसङ्ग्रह सह बृहद्वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-सूत्र-५७; टीका-ग्रं. ३२०६; प्र.पु. उभय-ग्रं. ३२७४., (३०.५४१४, १४४५३-५५). न्यायसङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः स्वं रूपं शब्दस्या; अंतिः वा सिद्धिः. न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१५, आदिः (१) त्रैलोक्यालादहेतु (२) ॐ रूपाय नमः; अंतिः न्यासश्चिरं नन्दतात्. १३०९२. क्रियारत्नसमुच्चय सह बीजक, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १६०, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले.- माधवजी जेष्टाराम उपाध्याय,प्र.वि. आधारित-ग्रं. ५६६१. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ५७७९., (३०.५४१४, १४४३४-३७). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, आधारित, सं., गद्य, वि. १४६६, आदिः जयति जिनवर्द्धमानो; अंतिः प्रेक्ष्यमाणं बुधैः. क्रियारत्नसमुच्चय-बीजक, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः#. १३०९३. प्रमाणनयतत्त्वप्रकाशिका, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२९.५४१४, १७-१८४६०-६४). स्याद्वाद भाषा, गणि शुभविजय, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीमद्वीरजिनेशं; अंतिः स्याद्वादभाषेयं. १३०९४. अयोगव्यच्छेदद्वात्रिंशिका व अन्ययोगव्यच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, प्र. ६१, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. काशी, ले.- बटुकप्रसाद, अन्य- मु. धर्मविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. धर्मविजय म.सा. के उपदेश से यह प्रति लिखवाई गयी. महोपाध्याय यशोविजयजी जैन पाठशाला हेतु लिखा है., (२९.५४१४, १५४५८ ५९). पे.-१. अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः अगम्यमध्यात्मविदाम; अंतिः उपाधिं विधृतवान्., पे.वि. श्लो.३२. पे.२. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. २आ-३अ), आदिः ___ अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः., पे.वि. श्लो.३२. पे:३. पे. नाम. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, पृ. ३आ-६१आ अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंतिः कृतसपर्याः कृतधियः. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादमञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः सास्त्यत्र सम्यग्यतः., पे.वि. मूल-श्लो.३२. प्र.पु.-उभय-ग्रं.३१००. १३०९५. अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका सह स्याद्वादमञ्जरी टीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. श्लो.१३ की टीका अपूर्ण तक हैं., (३०.५४१४, १५-१६४५४-५६). अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः अनन्तविज्ञानमतीतदोष; अंति:अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका-स्याद्वादद्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं., गद्य, शक. १२१४, आदिः यस्य ज्ञानमनन्तवस्तु; अंतिः१३०९६." प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार सह लघुटीका, पूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ९९-१(५५)=९८, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- नरोत्तम पुरोहित, प्र.वि. मूल-८ परिच्छेद; टीका-ग्रं. ५०००., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (३०.५४१४, १६४५१-५२). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकर टीका की रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः For Private And Personal Use Only Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धये वर्द्धमान; अंतिः प्रस० प्रजल्पतः. १३०९९. शास्त्रार्थवार्ता समुच्चय, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- गिरधर हेमचन्द भोजक, प्र.वि. मुख्य पृष्ठ पर स्याद्वादकल्पलताटीका का भी नामोल्लेख है परन्तु प्रत में मूलमात्र ही पाठ है. ग्रं. ७००,प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६३८) किङ्करोति वक्तार, (३०.५४१४, १३४४६). शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंतिः अधीयतां भक्तिरागः. १३१००. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. ८ परिच्छेद, (३०.५४१४, १३४४२-४३). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. १३१०८. कातन्त्र व्याकरण सह बालावबोधवृत्ति व वृत्ति का टिप्पनक, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. अहमदाबाद,प्र.वि. टीका-ग्रं. ४८०. प्र.पु.-सर्वग्रं. १५२०.,पू.वि. प्रारंभिक भाग मात्र ही टिप्पण है., (२९.५४१४, १५४४५-५०). कातन्त्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः सिद्धो वर्णसमाम्नायः. कातन्त्रव्याकरण-बालावबोधटीका, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, वि. १४४४, (संपूर्ण), आदिः (१) ॐकार बिन्दुसंयुक्त (२): अंतिः वृद्धिः स्यात् आरऐऔ. कातन्त्रव्याकरण-बालबोधटीका का स्वोपज्ञ दुर्गपदटिप्पण, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदि: योगी पुरुष बिन्दु; अंति:१३१०९. युगप्रधान स्वरुप, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. रापरग्रामे, ले.- श्रा. प्रेमचन्द मीयाचन्द, प्र.वि. २३ उदय. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, त्रिपाठ, (३०x१४.५४). युगप्रधान स्वरुप-यन्त्र, आ. देवेन्द्रसूरि, सं.,मागु., यंत्र, आदिः नमः श्रीभद्रबाहवे; अंति: न्यासीचक्रे लिखितं च. १३११०." वाक्यप्रकाश, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१२९, वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२९x१४, १३४३५). वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., पद्य, वि. १५०७, आदिः प्रणम्यात्मविदं; अंतिः वाक्यप्रकाशोयम्. १३१११. धातु, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ३००, (२८x१४, १३४३५-३७). धातुपारायण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः अहं भू सत्तायां; अंतिः बहुलमेतन्निदर्शनम्. १३११२. पट्टवलीतपगच्छीय, संपूर्ण, वि. १९६०, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. वाराणशी, प्र.वि. श्लो.४९०, (२८.५४१४.५, ११४४३). गुर्वावली, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., प+ग, आदिः जयश्रियं रातु; अंतिः श्रीसङ्घकल्पद्रुमः. १३११३. शत्रुञ्जय माहत्म्य, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. सर्ग-२ गा.७३ तक लीखा हैं., (२८.५४१४, ११४३६-३७). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति:१३११४. सम्यक्त्वसम्भव काव्य, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-८, श्लो.७४०, प्र.ले.श्लो. (२०४) अर्हतो ____ मंगलं संतु, (२७.५४१४, १४४३९-४०). सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: अहँ नमस्यामि; अंतिः सङ्ख्ययाक्षरविंशतिः. १३११५. शान्तिनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११+२(९६,१०५)=११३, जैदेना., पठ.- पण्डित देवसागर गणि, प्र.वि. ६ प्रस्ताव, (२६.५४१४.५, १९-२१४४४-५२). शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १५३५, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः स करोतु शान्तिः. १३११६. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., (२८x१४, १३४३४-३६). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्. For Private And Personal Use Only Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १३११७. प्रतिमाशतक संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. प्र. वि. श्लो. १०४ (२७.५४१४, १०४४४३-४४). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रश्रेणि नता; अंतिः उल्लसद्व्यक्तयुक्ति. १३११८. हैमव्याकरणसूत्र अध्याय १ से ७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., (२७.५x१४, १३×३९-४२). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. ११९३, आदि अहं सिद्धिः स्याद्: अंतिः१३११९. हैमव्याकरणसूत्र अध्याय १ से ७ प्रतिपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ४२+१ (६) = ४३ जैदेना ले. स्थल, पाटण, ले. वल्लभ " लहिया, (२७४१४, ११४३९-४०). www.kobatirth.org: " सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. गद्य वि. ११९३, आदि: अर्ह सिद्धिः स्याद् अति:१३१२०. नामलिङ्गानुशासन सह अवचूर्णि संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना. प्र. वि. मूल- अध्याय ८., (२८४१४ " " , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३X३२-३४). हैमलिङ्गानुशासन आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. पद्य वि. १२वी आदि पुल्लिङ्गं करणथपभमयर अंतिः लिङ्गानाम्. हैमलिङ्गानुशासन अवचूर्णि सं. गद्य, आदि: कटणथपभमयरस इत्येदं अंतिः काटकं पालकमित्यादि. " " १३१२२. चोवीसदण्डक चोवीसद्वार विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र. वि. *अक्षर माहिती अनियमीत है।, (२७.५X१४, १६ X ). २४ दण्डक २४ द्वार विचार, मागु., कोष्टक, आदिः दण्डक २४ नामानी; अंतिः असङ्ख्यात गुणा. १३१२३. गौतमपृच्छा, ध्यानस्वरुप, पार्श्वगीता व गीतचौवीसी, संपूर्ण, वि. १७३२, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. ७, जैदेना., ले. स्थल. राजनगर, ले.- पं. रत्नविजय (गुरु गणि भाणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, ( २४.५१४, २२ - २७१४-१९). पे.-१. गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५४५, (पृ. १अ-७आ), आदि: सकल मनोरथ पूरवइ; अंतिः जे जिनवचने वसिउ पे.वि. गा. १२०. पे. २. ध्यानस्वरूपनिरूपण प्रबन्ध, मु. भावविजय, मागु पद्य वि. १६९६ (पृ. ८अ १७आ), आदि सकल जिणेसर पाय वन्दे अंतिः भणइ० सषर मेवओ., पे.वि. ढाल - ९, गा. १६३. i पे. ३. पे नाम सखेश्वरापार्श्वनाथ राजगीता, पृ. १७-१९आ पार्श्वजिन स्तवन-शङ्खश्वर, वा. उदयविजय, मागु., पद्य, आदि: सकल मङ्गल तणी; अंतिः जिनवरतणी राजगीता, पे.वि. गा. ३६. 1 ४३३ पे:-४. आदिजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु, पद्य, (पृ. १९आ-२०अ ), आदि: सकल समीहित पुरण अतिः कामधेनु सो दोहइ., पे.वि. गा. ५. पे. ५. अजितजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु, पद्य, (पृ. २०अ २०अ), आदि: श्री अजितजिणेसर राय अंतिः भाव नमइ निसिदीस., पे. वि. गा. ५. पे. ६. सम्भवजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु, पद्य, (. २०अ २०आ) आदि जयो सम्भव शम्भुत्ती अंतिः करतइ तस गुणगान रे, पे.वि. गा.५. पे.-७. अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु., पद्य, (पृ. २०आ-२०आ), आदिः श्रीअभिनन्दनओ रे; अंतिः शिवसुख साथि जोडओ., पे.वि. गा.५. १३१२४. कुण्डीयाथी नवबोलनी चर्चा, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. (२७४१४, १३-१४४४०-४४). कुण्डीया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय राज, गद्य वि. १८७६, आदिः श्रीमन्तपागछिय अंतिः के आज्ञा होय हे. For Private And Personal Use Only १३१२५. ढूण्ढीयासाथेपूजा तथा परमातमानी चर्चा, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले. स्थल. वीरमगांम, ले. छगन लक्ष्मीराम भट, पठ.- श्रा. डाया लाडका कपासी, प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५x१४, ९×३५-३९). पुष्पपूजा चर्चा-कुण्ठकमत निरसन, पं. देवचन्द्रजी, मागु गद्य वि. १८५८ आदि अथ सं. १८५८ नी साल अंतिः मध्ये Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची जोइय लेज्यो. १३१२६. कर्मप्रकृति सह टीका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. २६७, जैदेना., ले.स्थल. घोघावेलाकूल, प्र.वि. मूल-७ अधिकार, गा.४७५., (२८x१३.५, १६x४०-४६). कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धं सिद्धत्थसुयं; अंतिः सो मे सरणं महावीरो. कर्मप्रकृति-टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः एन्द्री समृद्धिर्यदु; अंतिः सुकृत तथाप्यतः. १३१२७." योगशास्त्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. २९१-८९(६४ से १५२)=२०२, जैदेना., प्र.वि. मूल-१२प्रकाश. प्र.पु.-उभय-ग्रं. १२३००., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२७x१४, १६४३९-४२). योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः नमो दुर्वाररागादि; अंतिः श्रीहेमचन्द्रेण सा. योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सिद्धाद्भुत; अंतिः भव्यो जनो भवतात्. १३१२८. अध्यात्मकल्पद्रुम सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., प्र.वि. मूल-१६अधिकार, श्लो.२७८; टीका अध्याय-१६., त्रिपाठ, (२८.५४१४, २-४४४१-५०). अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदिः (१) जयश्रीरान्तरारीणां० (२) अथाय श्रीमान् शान्त; अंतिः जयश्रिया शिवश्रीः. अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, सं., गद्य, वि. १६७४, आदिः प्रणत सुरासुर; अंतिः वर्द्धते वर्णयामलम्. १३१२९. शत्रुञ्जयमाहात्म्य, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३७३, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१४, (२७.५४१४, १३४४१-४३). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंति: ग्रन्थ एषः. १३१३०. समाचारीसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ४०००., (२८x१३.५, १६-१७४३९-४९). सामाचारी सङ्ग्रह, आ. नरेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदि: नाणं किरिया सहित्यं; अंतिः सूरि श्रीमानदेवश्च. १३१३१. प्रतिमाशतक सह स्वोपज्ञटीका, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. मूल गा.३५ तक हैं., (२७४१४x). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदिः ऐन्द्रश्रेणि नता; अंति: प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्रश्रेणि प्रणत; अंतिः१३१३२. न्यायसङ्ग्रहसूत्र व न्यायसङ्ग्रह बृहत्वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ८९, पे. २, जैदेना., प्र.वि. प्रत के अंत में पेन्सील से प्रति लेखन वर्ष-१९५२ और मुनि अमिविजय पठनार्थे ऐसा लीखा हैं., (२८x१४, १३४३६-३७). पे.१. न्यायसङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. १आ-३आ), आदिः स्वं रूपं शब्दस्या; __अंतिः वा सिद्धिः. पे..२. न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१५, (पृ. ३आ-८९आ), आदिः त्रैलोक्यालादहेतु; अंति: न्यासश्चिरं नन्दतात्. १३१३३." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति- प्रथम, प्रतिअपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७९-१(७४)=७८, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, पू.वि. तृतीय अध्याय के द्वितीय पाद तक है., (२७४१४, १३४४०-४८). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहं सिद्धिः स्याद्; अंति: सिद्धहेमशब्दानुशासन-चन्द्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदिः प्रणम्य श्रीमदर्हन्त; अंति:१३१३४. जैन तर्कभाषा, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र.वि. ३ परिच्छेद, (२७४१३.५, ११४४०-४८). तर्कभाषा-जैन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, आदिः ऐन्द्र वृन्दनतं नत्व; अंतिः परमानन्द सम्पदम् १३१३५. अध्यात्मबिन्दु सह टीका-प्रथमद्वात्रिंशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.३२., त्रिपाठ, For Private And Personal Use Only Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४३५ (२८x१३, १४-१५४५२). अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदिः अनन्तविज्ञानविभूति; अंतिः ज्ञानं न सिद्ध्येत. १३१३६. श्राद्धगुण विवरण, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, (२७.५४१३, १४-१५४४२-४४). श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., गद्य, वि. १४९८, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः श्चिरं नन्द्यात्. १३१३७. आचारदिनकर, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. २४७, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- देवकृष्ण जोसी, प्र.वि. ३६ उदय; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १४०६५, (२८x१३, १६x४२-५९). आचारदिनकर , आ. वर्द्धमानसूरि, सं., प+ग, आदिः तत्त्वज्ञानमयो लोके; अंतिः (१)महानन्दभृतो जयन्ति (२)क्रतीनां प्रमोदं. १३१३९. न्यायावतारवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. बनारस, ले.- रामचन्द्र लोडा, प्र.वि. ग्रं. २१००, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं, (२८.५४१३, १५४५३-५७). न्यायावतारसूत्र-टीका , गणि सिद्धर्षि, सं., गद्य, आदिः अवियुतसामान्यविशेष; अंतिः मतलम्पटमेव चेतः. १३१४१. प्रश्नोत्तररत्नाकर, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५, जैदेना., प्र.वि. ४ उल्लास, (२७.५४१२.५, १३४३९-४३). प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., गद्य, आदिः प्रणिपत्य परं ज्योति; अंतिः वाच्यमानो वचस्विभिः. १३१४५. सिद्धहैमशब्दानुशासनवृत्ति, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७८-१(१७७)=१७७, जैदेना., (२७X१२.५, १६४३४-४०). सिद्धहेमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टमअध्याय की व्युत्पत्तिदीपिका टीका, गणि उदयसौभाग्य, सं., गद्य, आदिः यस्य क्रमनमस्कारः; अंतिः निवारणायेत्यर्थः. १३१४६. चन्द्रप्राकृत प्रकाश, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२८x१२.५, ११४५२-५८). प्राकृतलक्षण, कवि चण्ड कवि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य शिरसा वीरं; अंतिः भाषाश्च प्रकीर्तिति. १३१४८.” सारस्वतव्याकरणदीपिका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४५, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, प्र.ले.श्लो. (५१०) यादृसं पुस्तकं दृष्टवा, (२७.५४१२.५, १६x४४-४६). सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६२३, आदिः नमोस्तु सर्वकल्याण; अंतिः बुधैश्चिरम्. १३१४९. प्रतिमाशतक सह लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले.- नारणजी जेष्ठाराम उपाध्याय, प्र.वि. मूल-श्लो.१०४., त्रिपाठ, (२७४१२.५, २-३४४७-५१). प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रश्रेणि नता; अंतिः उल्लसद्व्यक्तयुक्ति. प्रतिमाशतक-लघुवृत्ति, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १७९३, आदिः लक्ष्मीपुण्यगृहेणहिल; अंतिः वृत्तिरुत्तमा. १३१५०. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार सह स्याद्वादरत्नाकर टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३५५-१(२३)+१(३४)=३५५, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर,प्र.वि. मूल-८ परिच्छेद; टीका-८ परिच्छेद., (२८.५४१३, १३४४०-४६). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदि: नमः परमविज्ञानदर्शना; अंतिः पत्तन द्वितीय. १३१५१. क्रीयारत्नसमुच्चय सह बीजक, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. १२२, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ५७७८., (२८x१३, १६x४३-५२). क्रियारत्नसमुच्चय, आ. गुणरत्नसूरि, आधारित, सं., गद्य, वि. १४६६, आदिः जयति जिनवर्द्धमानो; अंतिः प्रेक्ष्यमाणं बुधैः. क्रियारत्नसमुच्चय-बीजक, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः#; अंतिः#. १३१५२." न्यायसङ्ग्रह व न्यायसङ्ग्रहवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १११, पे. २, जैदेना., प्र.वि. सर्वग्रं. ३२७४., पदच्छेद . For Private And Personal Use Only Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (३७.५४१३, १३४३७-४०). पे.-१. न्यायसङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, (पृ. १आ-४अ), आदिः स्वं रूपं शब्दस्या; अंतिः ____ वा सिद्धिः ., पे.वि. सूत्र-६५. पे.२. न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१५, (पृ. ४अ-१११आ), आदिः त्रैलोक्यालादहेतु; अंतिः न्यासश्चिरं नन्दतात्., पे.वि. ४ वक्षस्कार, ग्रं.३२०६. १३१५३." सिद्धहेमशब्दानुशासनप्रक्रीया, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १७९, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२७.५४१३, १४४३९-४३). सिद्धहेमशब्दानुशासन-चन्द्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदिः प्रणम्य श्रीमदर्हन्त; अंतिः लक्षणान्वितयाश्रये. १३१५४. सिद्धान्तसारदीपक, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४०-२(६,३२)=१३८, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. पूर्णता अधिकार ११ गाथा १६८ तक है., (२७.५४१३, ११४४०-४१). सिद्धान्तसार, आ. सकलकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीमन्तं त्रिजगन्ना; अंति:१३१५५." वादस्थल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, मध्यम, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., प्र.वि. अन्तिम पत्र खंडित है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२.५, १६४५६-६१). पे.१. सर्वज्ञव्यवस्थापनस्थल, सं., गद्य, (पृ. १आ-आ, संपूर्ण), आदिः इह हि केचिदहंकारशिखर; अंतिः अपलाप: प्रसज्यते. पे.२. सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, सं., गद्य, (पृ. २आ-४आ, संपूर्ण), आदिः इह हि केचिदज्ञान; अंतिः स्थितः सर्वज्ञ इति. पे.-३. सर्वानुमानोत्थापनस्थल, सं., गद्य, (पृ. ४-५आ, संपूर्ण), आदि: ननु भो भो कोविदकुलाव; अंतिः अलंकर्मीण तां दधाति. पे.-४. तर्कभाषा, केशव मिश्र, सं., गद्य, (पृ. ५आ-५आ, अपूर्ण), आदिः बालोपि यो न्यायनये; अंतिः-, पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. प्रतिलेखक मात्र प्रारंभिक पाठ देकर पूरा कर दिया है. १३१५८." न्यायदीपिका, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २९-२(३ से ४)=२७, जैदेना., प्र.वि. ३ प्रकाश, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत, (२७.५४१३, १२४३६-४३). न्यायदीपिका, आ. धर्मभूषणाचार्य, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमानमर्हतं; अंतिः आगमप्रमाणं. १३१५९. सर्वार्थनिरासवादस्थल व सर्वज्ञस्थपनास्थापकवादस्थल, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, (२७.५४१२.५, १४४४०-४१). पे.-१. सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः यः कश्चिद्विपश्चित्; अंतिः दिग्मात्रवादस्थलं. पे.२. सर्वज्ञस्थापनास्थापकवादस्थल, सं., गद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः अविनाभूताल्लिङ्गा; अंतिः समस्ति सर्वज्ञः. १३१६०." सर्वार्थनिराकरण व सर्वज्ञस्थापनास्थापक वादस्थल, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. ५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१२.५, १४४४१). पे:-१. सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः यः कश्चिद्विपश्चित्; अंतिः दिग्मात्रवादस्थलं. पे..२. सर्वज्ञस्थापनास्थापकवादस्थल, सं., गद्य, (पृ. ३आ-५आ), आदिः अविनाभूताल्लिङ्गा; अंतिः समस्ति सर्वज्ञः. १३१६१." प्रमाणसुन्दरप्रकरणनास्थापकवादस्थल, पूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५-१(१)=१४, जैदेना., अन्य- मु. जयवन्तसागर, प्र.वि. खण्ड-४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ८१२, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१२.५, १७-१८४४९-५५). प्रमाणसुन्दर प्रकरण, मु. पद्मसुन्दर, सं., गद्य, वि. १७३२, आदि:-; अंतिः प्रमाणिकामिमागिरं. १३१६२." प्रमाणनयतत्त्वालौकालाकार, संपूर्ण, वि. १९३४, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.स्थल. हरिदुर्ग, ले.- वालचन्द्र द्विज, पठ.- हरखचन्द पारख,प्र.वि. ८ परिच्छेद, संशोधित, (२७४१२.५, १०४३७-३८). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. For Private And Personal Use Only Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४३७ १३१६५.” तेतीसबोल, संपूर्ण, वि. १८७१, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. गोपाचल, ले.- ऋ. नगराज, पठ.- ऋ. भगवानदास (गुरु ऋ. सुखानन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. समवायाङ्ग तथा ठाणाङ्ग मध्ये., संशोधित, (२७.५४१३, १३x४२-४६). ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, आदिः एकविधि असंयम दोय; अंतिः जाय तो आसातना लागै. १३१६६. चौदगुणठाणे २८ द्वार, संपूर्ण, वि. १९१४, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. किल्लाधार, प्र.वि. २८ द्वार, (२८x१३, १५४३१-३५). १४ गुणठाणा २८ द्वार, मागु., गद्य, आदिः नामद्वार लक्षणद्वार; अंतिः वनस्पतिनी अपेक्षाये. १३१६७. षट्त्रिंशत्ज्जल्पविचार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६९३, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., ले.- मेघराज व्यास, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्रत १६९३ की प्रति उपरसे नकल लगती हैं. परंतु प्रत २०वी सदी के शुरुआतमें लिखी हुइ लगती है।, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२९४१३, १५४४८-५०). पत्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं., गद्य, वि. १६७९, आदिः ॐ नमः श्रीपार्श्व; अंतिः चिरं नन्दतात्. १३१६८.” नामलिङ्गानुशासन, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना.,प्र.वि. अध्याय-८, (२७.५४१३, १४४४०-४४). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर; अंतिः लिङ्गानाम्. १३१६९. साधुपाक्षिकअतिचार व पद, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२८x१२.५, ९४२९-३३). पे.-१. पे. नाम. साधुपाक्षिकादिअतिचार, पृ. १आ-५आ, संपूर्ण साधुपाक्षिकअतिचार श्वे.मू.पू., संबद्ध, मागु.,प्रा., गद्य, आदिः नाणम्मि दंसणम्मि०; अंतिः (१)मिच्छामिदुक्कडम् (२)यथाशक्ति तपप्रवेश. पे..२. औपदेशिक गाथा, मु. केसवदास, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ-, अपूर्ण), आदिः कामनी कन्त चलो परदेस; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १३१७०. बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १०३ बोल.., (२७x१२, १३-१४४२६-३१). बोल सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, आदिः द्वादशव्रतधारिवत्; अंतिः देवलोके जाइ ते किमछइ. १३१७१.” पर्वव्याख्यान कथा, तपगुणणविधि, स्तवन आदिसङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७८, पे. ३७, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-कुछ पत्र, (२८x१३, १७X४०-४४). पे..१. चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६६५, (पृ. १अ-६अ), आदिः प्रणम्य परमानन्दं; ___ अंतिः व्याख्यानम्. पे.२. दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८३, (पृ. ६अ-१७आ), आदिः श्रीवर्द्धमानमाङ्गल; अंतिः चन्द्रार्कजगत्त्रये., पे.वि. श्लो.४३७. पे.-३. दीपावलीगुणनो, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः ॐ ह्रीं श्रीं महा०; अंतिः स्वामी सर्वज्ञाय नमः., पे.वि. ३मंत्र. पे.-४. वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., पद्य, वि. १६५५, (पृ. १७आ-२१आ), आदिः श्रीमत्पार्श्व; अंतिः तैरेव मेडतानगरे., पे.वि. श्लो.१५१. पे.-५. ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २१आ-२२आ), आदिः प्रणमुं श्रीगुरुपाय; अंतिः भगति भाव प्रशंसीयो., पे.वि. गा.२१. पे-६. ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, (पृ. २२आ-२२आ), आदिः पञ्चमी तप तुमे करो; ___ अंतिः पञ्चमो भेद रे., पे.वि. गा.५. पे.-७. पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. २२आ-२३आ), आदिः प्रथम गुरु आगल आवी; अंति: लोगस्स कही For Private And Personal Use Only Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४३८ www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची निस्तरे. , पे. ८. पंचमीतपपारवानी विधि, मागु, गद्य (पृ. २३-२४अ), आदि: तपकरी उजमणो कीजै अतिः याचकानें दान दीजै. पे. ९. ज्ञानपंचमी देववन्दन विधि, प्रा. मागु, गद्य (प्र. २४अ-२६अ ), आदि प्रथम चैत्यवन्दनविधि: अंतिः पीछे जयवीयराय कहैं.. पे. १०. ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं. गद्य (प्र. २६अ-२६आ), आदि स्पर्शनेन्द्री व्यंज; अंतिः श्रीज्ञानाय नमः . पे.-११. मौनएकादशी कथा, प्रा., सं., प+ग, (पृ. २६आ- ३१आ), आदि: वारवइए नयरीए: अंतिः परकार्य्य विधायिनः., पे.वि.श्लो ६४. पे. - १२. मौनएकादशीगणणुं, सं., कोष्टक, (पृ. ३१आ - ३२आ), आदि: जम्बूद्वीप प्रथम; अंतिः सर्वज्ञाय नमः . पे. १३. मीनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि मागु पद्य वि. १६८१ (प्र. ३२-३३अ) आदि समवसरण बेठा भगवंत; अंतिः कहै कहौ द्याहडी., पे.वि. गा.१३. पे. १४. पे. नाम. होलीरजपर्व्व सम्बन्ध, पृ. ३३अ - ३५अ होलिकापर्व कथा, सं., पद्य, आदिः ऋषभस्वामिनं वन्दे अंतिः विज्ञानंवाचनोचितः., पे.वि. श्लो. ८३. पे. १५. होलीरजपर्व कथा, सं., पद्य, (पृ. ३५-३६अ) आदि वर्द्धमानं जिनं नत्व: अंतिः त्रीणामगम्यम्महतामपि पे.वि. श्लो. ३३. पे. १६. पे नाम. चैत्री पूनिम क्रिया, पृ. ३६अ-४६अ चैत्री पूर्णिमा पूजा विधि, मागु., हिन्दी, सं., गद्य, आदिः प्रथम पवित्र स्थान; अंतिः पछै चैत्यवन्दन कीजै. पे - १७ चैत्री पूर्णिमा तपउच्चारण विधि, मागु, गद्य (पृ. ४६अ -४६अ), आदि प्रथम गुरु पास आवी अंति करेमिका उसग्गं. , पे.- १८. चैत्रीपूर्णिमा पूजा, उपा. समयसुन्दर गणि, प्रा. सं., मागु., पद्य, (पृ. ४६ अ - ४७आ), आदिः उसप्पणइ पढमं सेत्रु०; अंतिः पुण्डरीकाय नमः., पे.वि. ५ पूजा. पे. १९. देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, (पृ. ४७आ- ४७आ), आदि अहण्णं भन्ते तुम्हाण; अंतिः ताव अभिगाहो० वोसिरइ. पे.-२०. पौषध विधि, प्रा. मागु., गद्य, (पृ. ४७-४८अ ), आदि: प्रथम वन्दन करणी; अंतिः करकै आपणा कार्य करणा. पे.- २१. पे नाम. श्रावक स्वाध्याय, पृ. ४८-४८ १० श्रावक सज्झाय, गढमल, मागु, पद्य, आदि आनन्दे आणन्द हुवै अंतिः आपो अविचल सेव, पे.वि. गा.५. पे. २२. १० पच्चक्खाण विचार सूत्र, प्रा., मागु., गद्य, (पृ. ४८अ - ४९आ), आदि: तिहां प्रथम चवदै; अंतिः सेसेसुचत्तारी.. पे:-२३. १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., पद्य, वि. १७३१, (पृ. ४९आ - ५०आ), आदिः सिद्धारथनन्दण नमुं; अंतिः रामचन्द्र तपविधि भणे., पे.वि. ढाल - ३. पे. २४. तपावली, मागु, गद्य (प्र. ५०-५२अ ) आदि नवकारसी १ पोरसी २: अंतिः सुणनै देववान्दै, पे. वि. प्र. पु. ४७ प्रकार के तप. For Private And Personal Use Only पे. २५. नमस्कार महामन्त्र स्तवन, मु. प्रेमराज, मागु पद्य (पृ. ५२३-५२आ), आदि जिन गणधर मुनिदेव अंति सुमुख होय सासती., पे.वि. गा. १३. पे. २६. अतिचारशुद्धि प्रायश्चित, मागु., गद्य, (पृ. ५२आ-५४अ), आदिः ज्ञानाशातना जघन्य; अंतिः अतिचार शुद्ध हुवै. पे.-२७. अतीतअनागतवर्तमानचौवीसीजिन नाम, सं., मागु., गद्य, (पृ. ५४अ - ५४आ), आदि: अथ जम्बू द्वीपे ; अंतिः सर्वज्ञाय नमः, 7 पे. २८.४५ आगम श्लोक सङ्ख्या, सं., गद्य (पृ. ५४-५५अ), आदि आचाराङ्ग २५०० सूयगडा अंतिः एह परम्पराय जाणिवी. Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४३९ पे.२९. नवपदगुणन विधि, सं.,मागु., गद्य, (पृ. ५५अ-५७आ), आदिः तिहां प्रथम पद अत्र; अंतिः तपोगुण युक्ताय नमः. पे.-३०. कर्मप्रकृतिनो गुणन टीप, सं., गद्य, (पृ. ५७आ-५९अ), आदिः मतिज्ञानावरणी कर्म; अंतिः हिताय श्रीसिद्धायनमः. पे.-३१. १७० तीर्थङ्कर नाम, सं., गद्य, (पृ. ५९अ-६०अ), आदिः श्रीजयदेवसर्वज्ञाय; अंति: १० क्षेत्र मिली १७०. पे.-३२. पार्श्वजिन लघुस्तवन-सारङ्गशब्दयुक्त, मु. रामविजय, सं., पद्य, वी. १९४२, (पृ. ६०अ-६०आ), आदिः वामासुत; ___ अंतिः श्रेयसेस्तु., पे.वि. श्लो.७. पे.-३३. पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. शिवसुन्दर, सं., पद्य, (प्र. ६०आ-६०आ), आदि: वरसं वरसं वरसं वरसं; अंतिः शिवसुन्दरसौख्यभरम्., पे.वि. श्लो.७. पे.-३४. चतुर्दशीतप पारने की विधि, सं.,मागु., प+ग, (पृ. ६०आ-६१अ), आदिः प्रथम इरिया वही पछै; अंतिः कही ___ अपना काम कीजै. पे.-३५. आगमपुरुष चित्र, मागु., गद्य, (पृ. ६१आ-६१आ), आदि:#; अंतिः#. पे.-३६. चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, (पृ. ६१आ-७४आ), आदिः स्मारं स्मारं स्फुरद; अंतिः १४० अतीचारा भवन्ति. पे.-३७. मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, (पृ. ७४आ-७८अ), आदि: मारुदेवं जिनं __नत्वा; अंतिः शिष्यैरामोदतस्त्वदः. १३१७२. श्राद्धविधिविनिश्चय, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. १८७५, (२८.५४१२.५, १५४४४-४७). श्राद्धविधिविनिश्चय, मु. हर्षभूषण, सं., गद्य, आदिः ऐंदवमण्डलनिर्मलकेवल; अंति: निश्चयग्रन्थोयमलेखि. १३१७३." समाचारी, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना.,प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. १००४., संशोधित, (२७४१२.५, १४४४२-४७). सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, आदिः आयारमयं वीरं वन्दिय; अंति: जरमरणविवजिअं ठाणं. १३१७४. शत्रुञ्जय माहत्म्य, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६१-१(३२)=६०, जैदेना., पू.वि. बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. सर्ग-२ गा.८० तक हैं., (२६.५४१२.५, ६४३०). शत्रुजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो विश्वनाथाय; अंतिः१३१७५. सूर्ययशा चरित्र, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.१५७, (२८x१२.५, १३४३९). सूर्ययशा चरित्र, सं., पद्य, आदिः अथ सूर्ययशाः शोक; अंतिः विलसितानन्दहेतुसकामं. १३१७७. निर्वाणकलिका, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले.- ऋ. बालाराम, गच्छा.- आ. विजयधर्मसूरि, (२८x१२.५, १२४५३-५८). निर्वाणकलिका, आ. पादलिप्तससूरि, सं., , आदिः वर्धमानं जिनं नत्वा; अंतिः पद्धतिर्बोधिहेतोः. १३१७९. सम्बोधसत्तरी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६६, श्रेष्ठ, पृ. ५६, जैदेना., ले.स्थल. बनारस, ले.- रामचन्द्र लोडा, प्र.वि. मूल-गा.१२५., प्र.ले.श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२८x१२.५, १५४४७-४८). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., गद्य, वि. १६५१, आदिः प्रणिपत्य सत्यकीर्ति; अंतिः शिष्यपरिवारलब्धमुदः.. १३१८०. विंशतिविंशिका प्रकरण सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ५००, (२७४१३, १४४४२-४३). विंशतिविशिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण वीयरायं; अंतिः हन्तु जिणसासणे बोहिं. १३१८१.” कर्मप्रकृति व चौदगुणठाणा, संपूर्ण, वि. १९वी, मध्यम, पृ. १७, पे. २, जैदेना., दशा वि. विवर्ण स्याही फैल गयी है-कुछ पत्र, प्र.ले.श्लो. (६१७) भग्नपृष्टि कटि ग्रीवा, (२८x१३, १२-१३४३७-४३). पे.१.१४ गुणठाणा, प्रा.,मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः सत्ततुटइहि तुरिय; अंतिः केवली अजोग केवली. पे.२. कर्मप्रकृति, सं., गद्य, (पृ. १आ-१७आ), आदि: जिनेन्द्रान् धर्मचक्; अंतिः स्तुवे तद्गुणाप्त्यै. For Private And Personal Use Only Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ४४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३१८२. पट्टावली-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र. वि. ६९ वी पाट तक हैं. अंत में कुच्छेक पट्टधरो का पर्याय वर्ष वगेरे विवरण दिया हैं., (२७.५x१२.५, १६४३६-३८). पट्टावली खरतरगच्छीय उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, आदि गौतमादि गुरु नत्वा: अंतिः जिनसौख्य० सञ्जाता. १३१८३.” पट्टावली-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना. प्र. वि. संशोधित, (२८x१२.५, १२४५१-६०). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदि: महावीरे मोक्षं प्राप अति सङ्घः प्रवर्ततां Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३१८४.” पट्टावली-खरतरगच्छीय, संपूर्ण, वि. १७२१, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले. स्थल शितपत्र, ले. - गणि राजलाभ, प्र. वि. संशोधित, (२८४१२.५. १२४५३-५५). पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, आदिः वीरे मोक्षगते संवत; अंतिः हंसराजस्य पुत्रौ . १३१८५. क्षेत्रसमास सह टीका, पूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १८४ - १ (१२० १ १ - १८३, जैदेना. पु. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा. ३५६ तक हैं., (२९x१२.५, १३x४८- ५२ ) . बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, वि. ६वी, आदिः नमिऊण सजलजलहर; अंतिःबृहत्क्षेत्रसमास- टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य वि. १३वी आदि जयति जिनवचनमवितथममित: अंतिः१३१८६. उत्पादादिसिद्ध प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९७५ श्रेष्ठ, पृ. १२४, जैदेना, ले स्थल स्थंभनपूर, ले. कुबेरदास रणछोडदास पटेल, प्र. वि. ग्रं. ५२००, ( २८x१२.५, १४४४३-४८). उत्पादादिसिद्ध प्रकरण, मु. चन्द्रसेन, सं., गद्य वि. १२०७, आदि: अर्ह आज्ञा यस्य परै: अंतिः जिनशासनस्य वा. १३१८७.” विमलनाथ चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४२, जैदेना., प्र. वि. सर्ग - ५, श्लो. ५६५२, संशोधित, (२८.५४१३, 94x84-40), विमलजिन चरित्र, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., पद्य, वि. १५१७, आदिः स्वस्ति श्रीवृषभं; अंतिः देयात्सदेष्टं फलं. १३१८८. विमलनाथ चरित्र, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १४५+१ (८२ ) = १४६. जैदेना. प्र. वि. सर्ग-५ श्लो. ५६२० (२८x१३. १४४३-४५). " विमलजिन चरित्र आ. ज्ञानसागरसूरि सं., पद्य १३१८९. उपाधि प्रकरण संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८ उपाधि प्रकरण, सं., गद्य, आदिः उपाधिस्तु साधना; अंतिः अतोनेदन्न दूषणमिति .. " टिप्पण युक्त १३१९०.” पट्टावली, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले. स्थल. पाटणनगर, प्र. वि. प्र. पु. ६३ पाट तक .... विशेष पाठ, (२७.५४१२.५ १२४५४-५६). पट्टावली तपागच्छीय, सं., मागु., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमान; अंतिः पट्टे कल्याणसागरसूर... वि. १५१७ आदि स्वस्ति श्रीवृषमं अंतिः देयात्सदेष्टं फलं. जैदेना, (२९x१३, ८४३७-३९). १३१९१.” गौतमकुलक सह बालावबोध, पूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३६, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा.२०, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. बालावबोध की अंतिम प्रशस्ति पत्र नहीं हैं., (२७.५X१२.५, १२४३७). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदि: लुद्धा नरा अत्थपरा अंतिः सुहं लहन्ति. ; गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पं. पद्मविजय, मागु, गद्य वि. १८४६ (पूर्ण), आदि: नत्वा श्रीमन्महावीर अति:१३१९२.” जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले. स्थल. योधपुर, ले.- ललित, प्र. वि. १३ अधिकार, गा.६७१: प्र.पु. मूल ग्रं. १५०० संशोधित, (२८x१३, २०७५-७७). जिनप्रतिमा स्थापना प्रबन्ध, मु. ब्रह्म मागु, पद्य, वि. १६७७, आदि: श्रीजिणवर वन्दउं अंतिः जा जिनधर्म विस्तरइ. १३१९३. सूर्ययशा कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. श्लो. १५८, (२८.५X१२.५, ११४४२-४४). " सूर्ययशा चरित्र, सं., पद्य, आदि: अथ सूर्ययशाः शोक; अंतिः विलसितानन्दहेतुसकामं. १३१९४. मङ्गलकलस चरित्र, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., ले. स्थल. उदयपुर, ले.- मु. बालाराम (गुरु मु. For Private And Personal Use Only Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४४१ ललितराम), गच्छा.- आ. विजयधर्मसूरि, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. गा.१२८. प्रति. वर्ष- "संवत करऋषिनिधिभू" वर्षे., (२७.५४१२.५, १२४५७-५९). मङ्गलकलस चरित्र, आ. सर्वानन्दसूरि, मागु., पद्य, आदि: सयल मङ्गल; अंतिः श्रीसर्वाणन्दसूरि. १३१९५. पर्युषणाद्यष्टाह्निका व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. पाटडी, ले.- नरोत्तम, पठ.- मु. हेतविजय, (२७.५४१२.५, १४४३९-४०). अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., गद्य, वि. १८६०, आदिः शान्तीशं शान्ति; अंतिः विलोक्य तत्. १३१९६. लोकनालिद्वात्रिंशिकासूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१८, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.स्थल. कपडवणज नगर, ले. ___ नागरदास पटेल, प्र.वि. मूल-गा.३३. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. २५२., (२७४१३, ४४२७-२९). लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणा जं; अंतिः जहा भमह न इह भिसं. लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः हे वीतराग देव ताहरु; अंतिः सूबोध पांमने अर्थे. १३१९७.” सम्बोधसत्तरी सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १९-१(१)=१८, जैदेना., ले.स्थल. समिनगर, ले.- पं. खेमाविजय, प्र.वि. मूल-गा.११२., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२८x१३, ४४३०-३१). सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः नमिऊण तिलोअगुरुं; अंतिः लहई नत्थि सन्देहो. सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ व कथा, मागु., गद्य, (संपूर्ण), आदिः नमस्कार हो त्रिण; अंतिः नही जाणवो नीसें पामे. १३१९८. वैराग्यशतक सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१०४., त्रिपाठ, (२७४१३, ३-४४३२ ३५). वैराग्यशतक, प्रा., पद्य, आदिः संसारंमि असारे नत्थि; अंतिः लहइ जिउ सासयं ठाणं. वैराग्यशतक-टीका, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीधरं; अंतिः व्यपदीश्यतेतिभावार्थ. १३१९९. महीपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.- कुबेरदास रणछोडदास पटेल, प्र.वि. सर्ग-५, ग्रं. ८९५, (२७.५४१३, १५४४६-४७). महीपाल चरित्र, उपा. चारित्रसुन्दर, सं., पद्य, आदिः यस्यां सदेशे शिति; अंति: मगमत्किलपञ्चमोयं. १३२००." शालिभद्र चरित्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९२९, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. जयनगर, ले.- कासीनाथ शर्मा, प्र.वि. मूल-७प्रक्रम, ग्रं. १२२४; प्र.पु.-मूल-ग्रं. १३२४. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पदच्छेद सूचक लकीरें, त्रिपाठ, (२८x१३x). शालिभद्र चरित्र, पण्डित धर्मकुमार, सं., पद्य, वि. १३३४, आदिः श्रीदानधर्मकल्प; अंतिः विस्तारिधर्मोन्नतिः. शालिभद्र चरित्र-टीका, सं., गद्य, आदिः ग्रन्थप्रारम्भेष्टौ; अंतिः धर्मोन्नतिर्यस्यां स. १३२०१. विचारशतक सह बीजक, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ४१, जैदेना., ले.- रामकृष्ण ललितकविन्द्र(रामावत्सम्प्रदाय), प्र.वि. मूल-१०० विचार., संशोधित, (२८x१२.५, १४४५८-५९). विचारशतक, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६७३, आदिः पार्श्वनाथं जिनं: अंतिमेवमेकत्रमीलनात विचारशतकवृत्ति-बीजक, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, आदि: #; अंतिः#. १३२०२. भुवनभानुकेवली चरित्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५१, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना., ले.स्थल. वटप्रदनगर, ले.- ऋ. नानजी (गुरु ऋ. सुन्दरजी),प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु.-उभय-ग्रं. ५०००., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, ६४३७-३९). भुवनभानुकेवली चरित्र, सं., गद्य, आदिः अस्तीह जम्बूद्वीपे; अंतिः नरेन्द्रर्षिः केवली. भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु., गद्य, वि. १८०१, आदिः अस्ति क० छै एहीज; अंतिः तत्वहंसेन धीमता. १३२०३. अक्षयनिधितप विधि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. मुंमोइनयरे-लालब, ले. पला. For Private And Personal Use Only Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४२ www.kobatirth.org: हरगोवन मोतिराम भोजक, (२८.५x१३, १३X३०-३५ ). पे.-१. अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., पद्य, वि. १८७१, (पृ. १आ - ४आ), आदि: श्रीशङ्केश्वर शिर; अंतिः नाचवा घर बारणे, पे.वि. ढाल -५, गा. ५१. . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पे. २. अक्षयनिधितप खमासमण दूहरा, पं. वीरविजय, मागु, पद्य (पृ. ४आ-६अ ), आदि सुखकर सवेश्वर नमी अंति होज्यो ज्ञानप्रकाश., पे.वि. गा. २६. कैलास श्रुतसागर पे. ३. पाश्वजिन स्तवन- अक्षयनिधितप गर्भित, पं. पद्मविजय, मागु, पद्य, वि. १८४३ (पृ. ६अ-६आ), आदि: तपवर कीजे रे; अंतिः पद्मविजय फल लीधो., पे.वि. गा.१२. पे. ४. अक्षयनिधितप विधि, मागु, पद्य, (प्र. ६आ-आ) आदि श्रावण वदी चौथने अंतिः चित्रामण करवा जोईइ. १३२०४. ज्ञानसार सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८५+१(६५)=८६, जैदेना. प्र. वि. मूल- ३२अष्टक, त्रिपाठ, (२८४१३. ११-१२४३९-४९). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंतिः नामेषाकृति प्रीतये. ज्ञानसार-टीका, पं. गम्भीरविजय, सं., गद्य, वि. १९५४, आदि: नत्वा वीरं जगद्ध्येय; अंतिः शौध्यमिदंवरपण्डितैः. १३२०५.” श्रीपाल चरित्र सह सिद्धचक्र यन्त्र, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना., ले. ऋ. परमानन्द, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८४१३, १७५४६-४९). - " श्रीपाल चरित्र ऋ. केशव आधारित, सं. गद्य वि. १८७७, आदि: प्रणम्य वीरं धनकर्म अति: (१) संशोध्यमित्यर्थः " " " (२) सत्साधुभिर्मण्डिते. श्रीपाल चरित्र - सिद्धचक्र यन्त्र, सं., यंत्र, आदि: #; अंति:#. ग्रंथसूची १३२०६. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र पर्व ७ व इलापुत्र कथा प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३३ पे. २ जैदेना. (२८४१३.५. . १२४३७-४६). · पे.-१. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, (पृ. १अ - १२९आ, प्रतिपूर्ण), आदि:-; अंतिः-, पे.वि. प्र.पु. अंश-पर्व ७ राम निर्वाण नामा १० वें पर्व तक हैं. पे. २. पे नाम. भावनायामिलापुत्र कथा, पृ. १२९आ - १३३अ संपूर्ण इलापुत्र कथा, सं., पद्य, आदिः इहेलावर्द्धनं नाम: अंतिः तद्भावनायां प्रयत्न, पे.वि. श्लो. १००. · १३२०७.” अमरसेनवीरसेन कथा, संपूर्ण, वि. १९६४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. पीपाड़, ले. जूगराज, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें (२६.५४१३.५. १६४३९-४४). अमरसेन वीरसेन कथा- दानपूजा अधिकारे प्राहिं गद्य, आदि: माहात्मा पुरुषों अंतिः छठे भवे मोक्ष जासे. १३२०८. वङ्कचूल कथा- शीलोपदेशमालावृत्तौ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. ऋ. किसनचन्द, प्र.वि. श्लो.१०९, (२६.५x१३.५, १४४३४-३५). वङ्कचूल कथा, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, आदि: चौरस्यापि शीलकणिका; अंतिः श्रेयः स्यात्. १३२०९. श्रीपाल कथा संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५६, देना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित टिप्पण युक्त विशेष " पाठ, (२०x१३.५, १३४३८-४१). श्रीपाल चरित्र, ऋ. केशव, आधारित, सं., गद्य, वि. १८७७, आदिः प्रणम्य वीरं धनकर्म; अंतिः सत्साधुभिर्मण्डिते. १३२१०. जीवविचार सह टवार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना., ले. गीरधर भोजक, प्र. वि. मुलगा. ५१, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२७.५४१३. ३-५४२६-२९). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ मागु, गद्य, आदि: भुवन १४ राजलोक रूपी अंतिः मांहीथी उधय छे. For Private And Personal Use Only १३२११ . चोवीसदण्डक प्रकरण संपूर्ण वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, प्र. वि. गा.४५, (२७.५४१३ ४०३६-४२). . Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४४३ दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. १३२१२. चौवीसदण्डकसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. एवलानगर, ले.- पं. खेमाविजय गणि,प्र.वि. मूल-गा.३९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, ५४३३-३९). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः (१) इन्द्रराजिनतं नत्वा (२) नमिउं क० नमस्कार; अंतिः हितने अर्थे लखीछइ. १३२१३. जीवविचार सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. वाराणसी, प्र.वि. मूल-गा.५१., (२८x१३, २२४४०-४९). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टीका, पाठक रत्नाकर, सं., गद्य, वि. १६१०, आदिः सज्ञानभास्करं वीरं; अंतिः तस्मादित्यक्षरार्थः. १३२१४. सोहमकुलरत्नपट्टावली रास व पट्टावली, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६०-५५(१ से ५५)=५, पे. २, जैदेना., पू.वि. बीच के पत्र हैं., (२७.५४१२.५, १३-१४४३४-५०). पे-१. सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. -५६अ-५९आ), आदि:-; अंतिः नाम चतुर्थोल्लास., पे.वि. अध्याय-४/उल्लास. प्रारंभ के पत्र नहीं हैं. पे.२. पट्टावली-विविधगच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ६०अ-६०आ-), आदिः देवसूरि गछे पण्डित; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १३२१५. पट्टावली व तपगच्छ के तेरबेसणा की समानसामाचारी के नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. द्विपाठ, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२९x१२.५, १२-१४४३३-४१). पे.-१. पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, (पृ. १आ-७आ), आदिः श्रीजीनसासन; अंतिः विजयजिणेन्द्रसूरि ६६. पे.२. तपगच्छ के तेरबेसणा की समानसामाचारी के नाम, मागु., गद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः तपगछ १ साण्डेरागछ २; अंतिः १२ मलधारीगच्छ १३. १३२१६. पट्टावली सह टीका, संपूर्ण, वि. १९७२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. उदयपुर, ले.- ऋ. बालाराम, गच्छा.- आ. विजयधर्मसूरि, प्र.वि. मूल-गा.२७., त्रिपाठ, (२८x१२.५, १-२४४१-४८). पट्टावली-तपागच्छ, सं.,प्रा., पद्य, आदिः पणमिअ वीर जिणन्द; अंतिः सन्थुणिआ मङ्गलं दिसउ. पट्टावली-टीका, सं., गद्य, आदिः ज्ञान दर्शनरोचिष्णुं; अंतिः सम्भूयशोधिताया. १३२१७.” वकचूल दृष्टान्त, संपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. अजिमगंज, ले.- पं. उद्योतविजय(तपागच्छ), (२६.५४१३, १४४२६-३१). वकचूल दृष्टान्त, सं., गद्य, आदिः मंसाईणं नियम; अंतिः अनुमोदयन्स्वगृहययौः. १३२१८. नवतत्त्व प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८५, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. वणारस, ले. प्र.वि. मूल-गा.४७., पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, २-४४३७-४१). नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जीवाजीवा पुण्णं पावा; अंतिः बोहिय इक्कणिक्काय. नवतत्त्व प्रकरण-टीका, मु. रत्नचन्द्र, सं., गद्य, आदिः प्रणम्यपादौ जिनराज; अंतिः एकसिद्धः अनेकसिद्धः. १३२१९. सुकृतसागर, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२८x१३, ११४४०-४३). सुकृतसागर, गणि रत्नमण्डन, सं., पद्य, वि. १५वी, आदिः कल्पद्रव इवेष्टं वः; अंति:१३२२०. सुदर्शनश्रेष्ठि चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., प्र.वि. ८परिच्छेद, (२६४१२.५, १४४४६-४८). सुदर्शन चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं., पद्य, आदि: नमः श्रीवर्द्धमानाय; अंतिः श्रीसुदर्शनयोगिनः. १३२२१. अभयकुमार चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, प्र. १७९, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१२, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२८x१३, १५४५४-५५). For Private And Personal Use Only Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभयकुमार चरित्र, उपा. चन्द्रतिलक, सं., पद्य, वि. १३१२, आदिः आदौ धर्मोपदेष्टारं; अंति: श्रीकुमारगणिः कविः. १३२२२." समरादित्य चरित्र, पूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. १२३-१(१२२)=१२२, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, ले.- माईदास मुहतां, प्र.वि. श्लो.७७१; प्र.पु.-संक्षेप-ग्रं. ४०७४, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२८x१३, १५४४५-४८). समराइच्चकहा-सक्षेप समरादित्यचरित्र, आ. प्रद्युम्नसूरि, संक्षेप, सं., पद्य, वि. १३२४, आदिः चित्रभानुसुधाभानु; अंतिः सप्ताशीतिमनुष्टुतां. १३२२३. हरिविक्रम चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६१, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. सर्ग-१२, श्लो.४७५०, (२७.५४१३, १५४४५-४७). हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीतीर्थाय; अंतिः चरिते हरिविक्रमे. १३२२४. धर्मरत्न प्रकरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२९+१(२२७)=२३०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.१४५. प्र.पु.-उभय ग्रं. ९६८२.,प्र.ले.श्लो. (५९५) यदक्षर परिभ्रष्टं, (२८x१३, १५४४१-४८). धर्मरत्नप्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण सयलगुणरयणकुलहर; अंतिः सुहाई पावेंति. धर्मरत्नप्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सज्ज्ञानलोचनविलोकित; अंतिः तिर्जगतोपि तेनास्तु. १३२२५.” अध्यात्मसार प्रकरण सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५५, श्रेष्ठ, पृ. २५१-१(१४५)+१(१४९)=२५१, जैदेना., ले.स्थल. भागनगर, ले.- रामकृष्ण, प्र.वि. मूल-७ प्रबंध., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, त्रिपाठ, (२७४१३, १-४४३३-३९). अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रश्रेणिनतः; अंतिः आनन्दावहं भवतु. अध्यात्मसार-शब्दभावोक्ति वृत्ति, पं. गम्भीरविजय, सं., गद्य, वि. १९५२, आदि: जयति वीरनाथस्य देशना; अंतिः (१)विजय० वृषभजिन कृपया (२)राज्यरमां प्रजेयम्. १३२२६.” कुमारपाल चरित्र, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. १५०+१(७२)=१५१, जैदेना., ले.स्थल. अहपूर, प्र.वि. सर्ग-१०, संशोधित, (२७४१२.५, १४४४८-५२). कुमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., पद्य, वि. १४२२, आदिः चिदानन्दैककन्दाय; अंतिः पुण्यात्मनाम्. १३२२७. हम्मीरमर्दन नाटक व वस्तुपालतेजपालप्रशस्ति सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, पे. ३, जैदेना., (२८.५४१२.५, १५४४८-५७). पे.१. हम्मीरमदमर्दन नाटक, आ. जयसिंहसूरि, सं., गद्य, वि. १२८६, (पृ. १अ-१९अ), आदिः रोहन्मोहतमोहति व्यति; अंतिः विभाङगङ्गनासङगिनी., पे.वि. ५ अंक, ग्रं.९००. पे.२. वस्तुपालतेजपाल प्रशस्ति, आ. जयसिंहसूरि, सं., पद्य, (पृ. १९अ-२२आ), आदिः श्रेयः श्रीमुनिसुव्र; अंतिः जयसिंहः कविय॑धात्., पे.वि. श्लो.७७, ग्रं.१४०. पे.-३. वस्तुपालतेजपाल प्रशस्ति, सं., पद्य, (पृ. २२आ-२३अ), आदिः स्वस्ति श्रीवस्तुपाल; अंति: नामप्यत्र दानक्रिया., पे.वि. श्लो.१३. १३२२८.” उत्तमचरित्रनरेन्द्र कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., प्र.वि. श्लो.९१२, संशोधित, (२७.५४१२.५, १५४५५-५९). उत्तमनरेन्द्र चरित्र कथा, गणि सोममण्डन, सं., पद्य, आदि: भास्वान सुदिनं; अंतिः श्रेयःर्शकृतस्पृहे. १३२२९. सोहमकुलपट्टावलीरास व पट्टावली, संपूर्ण, वि. १८७७, श्रेष्ठ, पृ. ६६+१(४३)=६७, पे. २, जैदेना., ले.- पं. दीपविजय, पठ.- गणि गौतमविजय (गुरु गणि गलालविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२७.५४१२.५, १३४३१-३९). पे.-१. सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पं. दीपविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-६५आ), आदिः स्वस्ति श्रीत्रिसला; अंतिः (१)दीपविजय कविराया रे (२)नाम चतुर्थोल्लास., पे.वि. अध्याय-४/उल्लास,६१ ढाल; प्र.पु.-ग्रं.२०००. पे:२. पट्टावली-विविधगच्छीय, सं., गद्य, (पृ. ६५आ-६६अ), आदिः देवसूरि गछे पण्डित; अंतिः पुन्यसागरमतम्. For Private And Personal Use Only Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४४५ १३२३०. पट्टावली, संपूर्ण, वि. १९०४, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., ले.स्थल. बजांणानगर, ले.- वा. देवकृष्ण (गुरु गणि जशोविजय), गच्छा.- आ. देवेन्द्रसूरि, राज्यकाल- राजा नशीबखान्न, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. प्र.पु.-६७ पाट तक.., प्र.ले.श्लो. (४७५) यादशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (८५) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (२७.५४१२, १३४३९-४७). पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, आदिः (१) वीरोवर प्रीयासीद्धीः (२) श्रीवीर वर्धमान; अंतिः विजय जिनेन्द्रसूरि. १३२३१. गुणावलि चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५७, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले.- उपा. माधवजि जेष्टाराम, प्र.वि. सर्ग-५, श्लो.६०७, (२७४१२.५, १४४४६-५४). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदिः विजयतां जिनवाक्य; अंतिः (१)भविका भजध्वम् (२)भवतु मङ्गलम्. १३२३२. चित्रसेनपदमावती कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- कुंवरजी देवशङ्कर, प्र.वि. श्लो.५०९, (२७४१२.५, १२४४५-४६). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोत्पाठक राजवल्लभः. १३२३३. जयानन्द चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १९०, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-१४, श्लो.६४४५, (२७४१२, १३४४४-४६). जयानन्दकेवलि चरित्र, उपा. पद्मविजय, संबद्ध, सं., प+ग, वि. १८५८, आदिः नमस्कृत्य जिनाधीशं; अंतिः शतायुक्तंविनिश्चितं. १३२३४. त्रिशष्टिशलाकापुरुष चरित्र सह टबार्थ पर्व-८, प्रतिपूर्ण, वि. १८४७, श्रेष्ठ, पृ. ३७१, जैदेना., ले.- पं. केसरविजय (गुरु पं. जयविजय), प्र.ले.श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, (२८x१२.५, ५४४१-४६). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति: त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-टबार्थ, पं. रामविजय, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः१३२३५." गुणवर्मा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९५६, श्रेष्ठ, पृ. ६५, जैदेना., ले.स्थल. पाटण, ले.- वल्लभ लहिया, प्र.वि. सर्ग-५, श्लो.६०७, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२६.५४१३, १२४३७-३९). गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., पद्य, वि. १४८४, आदिः विजयतां जिनवाक्य; अंतिः भवतु मङ्गलम्. १३२३६. विचारपञ्चासिका सह टबार्थ व पुद्गल विचार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., (२६.५४१३, ४४२७ २९). पे.१.पे. नाम. विचारपञ्चाशिका सह टबार्थ, पृ. १आ-१०आ विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपञ्चाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीरपरमात्माना पदकमले; अंतिः प्रधान विनय करिने., पे.वि. मूल गा.५१. पे.२. पुद्गल विचार, मागु., गद्य, (पृ. ११अ-१२अ), आदि: पुद्गलनो विचार; अंतिः ते कलिओयुमा कहिइं. १३२३८. नवपद विधि, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(५)=५, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, (२६४१३, १४४३०-३१). नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, (पूर्ण), आदिः स्वर्णसिङ्घासन स्थित; अंतिः उत्सर्गतपस्येनमः. १३२४०. सुव्रतश्रेष्ठी कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. गा.२०१, (२६.५४१३, १४४३४-३८). मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., पद्य, वि. १६५७, आदिः प्रणम्य ऋषभदेवं; अंतिः सागरशररसशशिप्रमिते. १३२४१. मेरत्रयोदशी कथा सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११-१(४)=१०, जैदेना., ले.- मु. तेजसागर, (२६.५४१३, ७X४२-४७). मेरुत्रयोदशी कथा, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य भारती; अंतिः गुणाइं गुरु सेवने.. मेरुत्रयोदशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: ऋषभदेवस्वामीनो; अंतिः समान गुरुश्रीरतनछे. For Private And Personal Use Only Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४४६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३२४४. योगप्रदीप, संपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. पाडलित नगर, ले.- श्रीकृष्ण मुथा, प्र.वि. श्लो.१४३. इस ग्रन्थ के पेज नंबर दोनो ओर हैं., (२७.५४१३.५, १५४३७-४२). योगप्रदीप, सं., पद्य, आदिः यावन्न ग्रस्यते; अंतिः ब्रह्म परमं पदम्. १३२४५." सिन्दुर प्रकरण, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. श्लो.९९, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, (२७x१४, १४४३८-४०). सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., पद्य, आदिः सिंदूरप्रकरस्तपः; अंतिः सूक्तमुक्तावलीयम्. १३२४६." धातुपाठ व मूलचन्द स्तुति, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१३, ९४२९-३०). पे:१. धातुपाठ, सं., गद्य, (पृ. १अ-२५आ), आदि: भूसत्तायाम् परस्मै; अंतिः इत्येव सिद्धं. पे.२. मुलचन्द स्तुति, मु. नन्दराम , मागु., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ), आदिः मुलचन्दजी मन मस्त; अंतिः आठो पोहर उल्लास., पे.वि. गा.१. १३२४८. चौवीसदण्डकपयन्नसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५४. प्र.पु.-उभय-ग्रं. २२५., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२६४१३.५, ४४१८-२२). दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., पद्य, आदिः नमिउं चउवीस; अंतिः एसा विनत्ति अप्पहिआ. दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करीनै चोवीस; अंतिः आत्माना हीतने काजे. १३२४९. अध्यात्मबिन्दु सह टीका, संपूर्ण, वि. १९५८, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. मूल-श्लो.३२. प्रथम द्वात्रिंशिका., त्रिपाठ, (२७४१३, १६४५०). अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-रखोपज्ञ व्याख्या , मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदिः अनन्तविज्ञानविभूति; अंतिः ज्ञानन्नसिद्ध्योदिति. १३२५०. नवतत्त्वबालावबोध, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., (२५४१३, ११४३१-३३). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः जीवतत्त्व अजीवतत्त्व; अंति: १४ अनेकसिद्ध १५. १३२५१.” कर्मग्रन्थ-१ से ५, संपूर्ण, वि. १९१४, मध्यम, पृ. २९, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. विकानेर, ले.- पं. रावतसुन्दर, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४१३, १०४२७-३४). पे.-१. पे. नाम. प्रथमकर्मविपाक सूत्र, पृ. १आ-६अ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.६०. पे.२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ६आ-९अ), आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं., पे.वि. गा.३४. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ९अ-११अ), आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं ____ कम्मत्थयं सोउं., पे.वि. गा.२५. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-२०अ), आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं., पे.वि. गा.८७. पे.५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २०अ-२९आ), आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः ___ सयगमिणं आयसरणट्ठा., पे.वि. गा.१००. १३२५२. सङ्ग्रहणीसूत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९१९, श्रेष्ठ, पृ. ११५, जैदेना., ले.स्थल. कपडवन, ले.- नागरदास पटेल, प्र.वि. मूल-गा.३९३., (२७४१३.५, ३-४४२६-२९). For Private And Personal Use Only Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४४७ बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः सन्नि गईरागई वेए. बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, आदिः नमिउं क० वान्दिनइं; अंतिः संसारीक सर्वसुख पामै. १३२५३. कुमतीउत्थाण चरचा, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२४.५४१२.५, १६x४२ ४६). दण्ढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, प्राहिं., गद्य, आदिः दुण्ढियो कहे हुं; अंति:१३२५४. जम्बूपृच्छा, संपूर्ण, वि. १९०९, मध्यम, पृ. ११, जैदेना., ले.- मु. वीनीतसागर (गुरु मु. वीरसागर), प्र.वि. ढाल-१३, (२८.५४१२.५, १२४३८-४०). जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., पद्य, वि. १७२८, आदिः सकल पदारथ सर्वदा; अंति: वीरजी मुनि सुखकारी. १३२५५. सन्देहदोलावली सह लघुटीका, पूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. ४३-२(२१*,२४) ४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.१५०; टीका ग्रं. १५५०., (२६.५४१२.५, १२-१५४४१-४९). सन्देहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., पद्य, आदि: पडिबिम्बिय पणय जयं; अंतिः जिणवल्लहसूरिसीसेण. सन्देहदोलावली प्रकरण-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., गद्य, वि. १४९५, आदिः जयति जगत्रितय गुरुः; अंतिः (१)सिद्धिः सम्पनीपद्यत (२)जिनाज्ञेवसताम्मनस्यु. १३२५६. विंशतिस्थानक पूजा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., (२६.५४१२.५, ९४२४-२९). २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., पद्य, वि. १८७८, आदिः सुख सम्पति दायक सदा; अंतिः तणी रचना करी. १३२५७. दानशीलतपभावना कुलक सह टबार्थ व कथा, पूर्ण, वि. १९५३, श्रेष्ठ, पृ. ५१-१(२३)=५०, जैदेना., प्र.वि. मूल गा.५०.प्र.पु.-उभय-ग्रं. २२५०. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६.५४१२४). दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., पद्य, आदिः देवाहिदेवं नमिऊण; अंतिः सूरि खमउ तेणं. दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः रत्नत्रयना प्रकाशक; अंतिः अपराध खमज्योजी. १३२५८. उपदेशशतक सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ६७, जैदेना., प्र.वि. मूल-सर्ग-५, ग्रं. ७४८; टीका-ग्रं. ३२७४., (२६.५४१२, १५४५१-५२). धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणिधाय परं ज्योति; अंतिः संसारे पुन याति. धर्मोपदेशशतक-स्वोपज्ञ टीका, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, आदिः जयति स परमात्माकेवल; अंतिः जिनं क्षाम्यतु. १३२५९. सम्यक्त्वसित्तरी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. २१८, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- गोपीनाथ, प्र.वि. मूल गा.७०; टीका-अध्याय-१२ अधिकार; प्र.पु.-उभय-ग्रं. ८७११., संशोधित, (२६४१२.५, १४४४०-४४). सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः दंसणसुद्धिपयासं; अंतिः दंसणसुद्धिं धुवं लहइ. सम्यक्त्वसप्ततिका-टीका, आ. सङ्घतिलकसूरि, सं., प+ग, वि. १४२२, आदिः सच्चामीकरबन्धु; अंतिः (१)कौमुदीद्योततां भुवि (२)तन्मिथ्यादुःकृतं मम. १३२६०. कालसत्तरि सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना.,ले.स्थल. पाटडी, ले.- पं. विमलविजय (गुरु गणि विनीतविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-गा.७५., (२६४१२.५, ४४३३-३६). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः देविन्दणयं; अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, पण्डित उदयरुचि, मागु., गद्य, आदिः देविन्द्र नमिउ; अंतिः कालस्वरूप कांएक कहिउ. १३२६१. कालसत्तरी सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १९२२, श्रेष्ठ, प्र. १२-१(१)=११, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, पठ.- साध्वीजी जेकुंवरश्री, प्र.वि. मूल-गा.७५., (२६.५४१२.५, ५४३०-३२). कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदि:- अंतिः कालसरूवं किमवि भणियं. कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि:-; अंतिः सरुप कांइक ए कहिउ. १३२६२. उत्तमकुमार कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., (२६.५४१२.५, १४४४२-४५). For Private And Personal Use Only Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४४८ www.kobatirth.org: १३२६४. रत्नचूड कथा, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ( २८x१२, १५४४९). रत्नचूढ कथा, सं. गद्य, आदि मनुष्य लोकानिधे: अंतिः धर्ममुष्टिविधित्सया. " उत्तमकुमार कथा, मागु., गद्य, आदि: अरथ जेणे स्वायते; अंतिः अर्थ होयतो साधी सके. १३२६३. चातुर्मासिक व्याख्यान, संपूर्ण, वि. १९३७, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले. स्थल. राजलदेसर, ले. ऋ. मोहनलाल जति, (२६४१२.५ १२४३०-३१). चातुर्मासिक व्याख्यान *, राज., गद्य, आदि: पंचापी परमेष्टिन; अंतिः तो मिच्छामिदुक्कडम्. १३२६५. पोसदशमी कथा संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ५. जैदेना (२५.५४१२.५, १४-१५४२८-३१) " .. पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंतिः स्वर्गा० प्राप्ति. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३२६६. मौनएकादशी कथा, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- तलजाराम बारोट, (२५x१२.५, ११x२६-२९). मीनएकादशी कथा, सं., गद्य, आदिः श्रीवीरजिणं नत्वा अंतिः गृहे ऋद्धिवृद्धिसात. १३२६७. योगदृष्टिसमुच्चय व्याख्या, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. स्थल. सिरोही नगर, प्र. वि. प्र. पु. - २२०. (+) (२६१२, १५x५२-५७). योगदृष्टि समुच्चय-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, आदिः योगतन्त्रप्रत्यासन्; अंतिः प्रशान्त्यर्थमिति . १३२६८. योगदृष्टि सज्जाय सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १८२८, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना. ले. पं. माणिकविजय (गुरु गणि दीपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-ढाल -८, गा. ७६. टबार्थ के प्रतिलेखक- पं. हितविजय गणि., (२७x१२.५, ३१३x२७-३३) ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु, पद्य, आदि: शिवसुख कारण उपदेशी अंतिः वाचक जशने ; वयणेजी. योगदृष्टि सज्झाय-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, आदि: (१) ऐन्द्रश्रेणिनतं (२) शिव क० निरुपद्रव; अंतिः वाचक० विचार रूप. १३२६९. कर्मग्रन्थ १ से ३ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ४०, पे. ३, जैदेना., प्र. वि. ग्रन्थाग्रन्थ-१३५०., (२५X१२, ३x२६-३०). पे.-१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-२०आ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पच, आदि सिरिवीरजिणं वन्दिय अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, वि. १७वी, आदिः श्रीमहावीरजिन प्रति अंतिः ए कर्मग्रन्थ लिख्यो, पे. वि. मुलगा. ६०. पे. २. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २०आ-३०आ i कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. पद्य, आदि तह थुणिमो वीरजिणं अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ, मु. धनविजय, मागु, गद्य, आदि तिम हुं स्तवं धुं अंतिः वान्द्यो पूज्यो छइ., पे. वि. मूल-गा. ३५. पे. ३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ३०आ-४०आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा., पद्य, आदि बन्धविहाणविमुक्कं अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोतं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, आदि: विचार कहूं कर्मना; अंतिः कर्मस्तव साम्भली. पे.वि. मूल-गा. २५. १३२७०. कर्मग्रन्थ १६ सह टवार्थ व सङ्ख्यामान, संपूर्ण वि. १९०६ श्रेष्ठ, पृ. १०२, पे. ७ जैदेना. ले. स्थल. हम्मीदपुर, ले. - पं. रावतसुन्दर, प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६१२, १ - ५X३४-४३). पे. १. पे नाम, कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टवार्थ, पृ. १२-१३आ For Private And Personal Use Only Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४४९ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदिः प्रणिपत्य जिनं वीरं; अंतिः ___ सूचक वाच्यं., पे.वि. मूल-गा.६१. पे.२.पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १३आ-२०आ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंति: वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदिः तथा तिणे प्रकारे; अंतिः नामकस्य पूर्णमगात्., पे.वि. मूल-गा.३४. पे..३.पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २०आ-२४आ बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदि: जीवप्रदेश साथे कर्म; अंतिः पूर्तिमगात्.,पे.वि. मूल-गा.२४. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. २४आ-४५अ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदिः जिनने नमस्कार करीने; अंतिः नामकस्य पुर्तिमगात्., पे.वि. मूल-गा.८६. पे.५. पे. नाम, शतक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ४५अ-६९आ शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः सयगमिणं आयसरणट्ठा. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदिः जिनप्रति नमस्कार; अंतिः ___ स्यास्यपूर्तिमगात्., पे.वि. मूल-गा.१००.. पे.-६. पे. नाम. सप्ततिका कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ७०अ-१०२अ सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धपएहिं महत्थं; अंतिः एगुणा होइ नउइओ. सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, वि. १८०३, आदिः सिद्ध अचल एहवा पद; अंति: गाथा छै __ इत्यर्थ., पे.वि. मूल-गा.९१. पेज नं.१०१ उपर अंत में संपूर्ण ग्रन्थ का उभय ग्रं.११००० दिया हैं... पे.-७. सङ्ख्यामान, मागु., गद्य, (पृ. १०२अ-१०२आ), आदिः पाला ४ ते मध्ये पाला; अंतिः केवलीनो पाय. १३२७१. अध्यात्मबिन्दु सह टीका-प्रथमद्वात्रिशिका, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.३२., त्रिपाठ, (२५४१२, १३४३५-४२). अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., पद्य, आदिः ब्रूमः किमध्यात्म; अंतिः आत्मस्वरुपः. अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, आदिः अनन्तविज्ञानविभूति; अंतिः ज्ञानन्नसिद्ध्योदिति. १३२७२. विचारपञ्चासिका सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., (२७.५४१२, ४४२८-३५). विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं; अंतिः सूरिवराणं विणएण. विचारपंचाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः वीरपयकयं नमिउं क०; अंतिः परने अर्थे. १३२७३. अध्यात्मगीता सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-गा.४९., संशोधित, (२६.५४१२, १४४३९-४०). अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंतिः रङ्गी मुनि सुप्रतीता. अध्यात्मगीता-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः प्रणमीये क० भक्ति; अंतिः प्रतीतरी करणहार छै. १३२७४. अध्यात्मगीता सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९३१, जीर्ण, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. वीरमगाम, ले.- रायचन्द कचरा, प्र.वि. मूल-गा.४९., प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२७४१२.५, २४२२-२७). For Private And Personal Use Only Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., पद्य, आदिः प्रणमियै विश्वहित; अंतिः रङ्गी मुनि सुप्रतीता. अध्यात्मगीता-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः विश्व क० जे जगत तेने; अंतिः कीधी स्वपरने अर्थे. १३२७५. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., (२६.५४१३, ३४३८-४१). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंति: रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिभुवननें विषे; अंतिः मोटाश्रुतसमुद्र थकी. १३२७६. पुष्पमाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. १५८, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभननगर, ले.- सोमेश्वर शिवलाल व्यास, प्र.वि. मूल-गा.५०५., (२७४१२.५, १३४३९-४६). पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., पद्य, आदिः सिद्धमकम्ममविग्ग; अंतिः सया सुहत्थिहिं. पुष्पमाला प्रकरण-लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., गद्य, वि. १५१२, आदि: जयति जगदेकभानुः; अंतिः नित्यसुखार्थिभिः. १३२७७. कर्मग्रन्थ १ से ५ यन्त्र, प्रतिपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ६३, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. पालीनगरे, ले.- पं. विनयविजय, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६४१२.५४). पे-१. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, (पृ. १अ-१३आ, संपूर्ण), आदिः श्रीवीरजिन प्रते; अंतिः अन्तराय कर्म बांधे.,पे.वि. प्रति.वर्ष-१९०७. पे..२. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, (पृ. १४अ-२२अ, संपूर्ण), आदिः बन्ध प्रकृतिओ छे; ___ अंति: १३ अथवा १२ विच्छेद. पे.-३. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, (पृ. २२आ-२९आ, संपूर्ण), आदिः श्रीवर्द्धमान __ जिन०; अंतिः आउ तीर्यञ्च आउ हीन. पे.-४. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, (पृ. ३०अ-४१अ, संपूर्ण), आदिः जीवरा भेद १४; अंतिः शास्त्रने अनुसारै. पे.-५. शतक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, पं. सुमतिवर्धन, मागु., कोष्टक, वि. १८७५, (पृ. ४१आ-६३अ, संपूर्ण), आदिः श्रीजिन प्रते; अंतिः यन्त्रालो परिपूर्ण. १३२७८. षट्पुरुषीस्वरुप व षड्विधपुरुषजनाचार आलापक, संपूर्ण, वि. १९४६, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. जोधपुर, ले.- छबील वीरचन्दजी व्यास,प्र.वि. प्रत के अंत में दोनो कृतिओका ग्रन्थाग्रन्थ-९५० दिया हैं., (२५.५४१२.५, १६x४१-४२). पे.१. षट्पुरुष चरित्र, गणि क्षेमकर, सं., प+ग, (पृ. १अ-१९अ), आदिः श्रीअर्हन्तश्चतु; अंतिः पुरुषाश्रयिणं विचारं. पे..२. षट्पुरुषजनाचार आलापक, प्रा., गद्य, (पृ. १९अ-२०आ), आदिः तओ जोगाजोग निरुवणत्थ; अंतिः पवत्तणं कायव्वं. १३२७९." षट्पुरुषीस्वरुपं, संपूर्ण, वि. १९४७, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., ले.स्थल. वन्थलि, ले.- मु. कनकविजय, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४१२.५, १०४३३-३४). षट्पुरुष चरित्र, गणि क्षेमकर, सं., प+ग, आदिः श्रीअर्हन्तश्चतु; अंतिः पुरुषाश्रयिणं विचारं. १३२८०. प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, ले.- उपा. माधवजि जेष्टाराम, प्र.वि. ८ परिच्छेद, (२७४१२.५, १८४४९-५४). प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., गद्य, आदिः रागद्वेषविजेतारं; अंतिः च वाच्यम्. १३२८१." अष्टाह्निका व्याख्यान, श्लोक सङ्ग्रह व पोसदसमि व्याख्यान, अपूर्ण, वि. १८९२, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. महिमापुर, ले.- पं. उद्योतविजय(तपागच्छ), पठ.- पं. फतन्द्रविजय(तपागच्छ), प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६.५४१३, १३४२६-२८). पे.-१. पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., पद्य, वि. १७८९, (पृ. १आ-२५अ, संपूर्ण), आदिः स्मृत्वा पार्श्व; For Private And Personal Use Only Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४५१ अंतिः नन्दहेतुः सकामान्. पे..२. दिनज्ञान श्लोक, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ, संपूर्ण), आदिः तर्जनी मेरु मादा; अंतिः शेषाकेपालमादिशेत्., पे.वि. श्लो.१. पे.-३. सीकवरणीज्ञान श्लोक, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ, संपूर्ण), आदिः परिधावह्नि ३ युक्तं; अंतिः ___मार्जनीनृतृणानिवदेत्., पे.वि. श्लो.१. पे.-४. दाडिमादिबीजसङ्ख्याज्ञानविधि श्लोक, मागु.,सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ, संपूर्ण), आदिः दाडिमस्य सुयक्कस्य; अंतिः षड्गुणी कृत्यमिशेत्., पे.वि. श्लो.१. पे.५. पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, (पृ. २५-२५आ-, अपूर्ण), आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १३२८२. हीरप्रश्न, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१+१(१८)=३२, जैदेना.,प्र.वि. ४प्रकाश, (२६४१२.५, १६-१७४४४-४७). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति. १३२८३. प्रश्नोत्तरमाला, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. हर्दुआगंज, ले.- जगन्नाथ ब्राह्मण, (२५४१२.५, २१ २२४५७-६२). प्रश्नोत्तरमाला, ऋ. रतनचन्द, मागु., प+ग, वि. १९०७, आदिः श्रीजिण आदिजिणन्दजी; अंतिः छै समझै चतुर सुजान. १३२८४. चौवीसदण्डक ओगणीसद्वार व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., (२७४१२.५, १२ १३४३६-३८). पे.-१.२४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १आ-१४अ), आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनन्तगुणा अधिका कहवा., पे.वि. प्र.पु.-२४ दंडक १९ द्वार. पे.२. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मागु.सं., गद्य, (पृ. १४अ-१४अ), आदिः#; अंतिः#. १३२८५. जिवना चौदभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२४४१३x). १४ जीव भेद विचार, मागु., गद्य, आदिः सुक्ष्म एकन्द्री; अंतिः कर्मनी उदरणा पण होय. १३२८६. चौवीसदण्डक बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले.- पं. विनयविजय, प्र.वि. ___ *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६४१२.५४). २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः शरीरद्वार नारकी; अंतिः पुरुष वेद स्त्री वेद. १३२८८. गौतमपृच्छा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४४ तक लीखा हैं., (२५.५४१२.५, १२४२७-३१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति:१३२८९. सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. धोलाबंदर, ले.- शीद्धदुलभजी सुन्दरजी, (२४.५४१२, १४४४७-५०). सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः लक्ष्मीभृद् वीतरागः; अंतिः दुखविरहेण गुणानुरागः. १३२९०.” कर्मग्रन्थ १ से ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. धनेरु,ले.- यति नेणसी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१२, ५-६४३५-४३). पे.१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, गणि साधुकीर्ति, मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंतिः हेतु प्रकाश्यो., पे.वि. मूल-गा.६२. For Private And Personal Use Only Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. पे. नाम. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. ८अ-१२आ, संपूर्ण कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः तह थुणिमो वीरजिणं; अंतिः वन्दियं नमह तं वीरं. कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः तिमस्तवाञ्छा अदमे; अंतिः नमो प्रणमो अहो भविको., पे.वि. ___मूल-गा.३५. पे.-३. पे. नाम. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १२आ-१५अ, संपूर्ण बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः बन्धविहाणविमुक्कं; अंतिः नेयं कम्मत्थयं सोउं. बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः कर्मबन्धना प्रकार; अंतिः साम्भलीने जाणिवो., पे.वि. मूल गा.२४. पे.-४. पे. नाम. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १५अ-२५आ, संपूर्ण षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिय जिणं जिय; अंतिः देविन्दसूरीहिं. षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमस्कार करें देव; अंतिः सूरि आचार्यइ., पे.वि. मूल-गा.८६. पे.५.शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. २५आ-२५आ-, अपूर्ण), आदि: नमिय जिणं धुवबन्धोदय; अंतिः-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.मात्र गा.२ अपूर्ण तक हैं. और टबार्थ नहीं लीखा हैं.. १३२९१. लघुसङ्ग्रहणी सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८४०, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- मु. क्षेमवर्द्धन, प्र.वि. मूल-गा.३०., (२६.५४११, ३४३२-३८). लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, आदि: नमिय जिणं सव्वन्नु; अंतिः रईया हरिभद्दसूरिहिं. लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः नमिय क० नमस्कार करी; अंतिः मे सूरिहिं क० आचार्य. १३२९२. बन्धोदयसत्ता प्रकरण सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. राधनपुर, ले.- मु. जयविजय (गुरु पं. दीपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कर्मग्रन्थ ५ सप्ततिका मलयगिरी कृत वृत्ति आधारित है. मूल-गा.२४., त्रिपाठ, (२६४११.५, १-४४४१-५६). बन्धोदयसत्ता प्रकरण, मु. विजयविमल, प्रा., पद्य, आदिः वन्दिअदेवं पास; अंतिः बन्धोदयसत्तपयडीकमा. बन्धोदयसत्ता प्रकरण-अवचूरि, मु. विजयविमल, सं., गद्य, आदिः वन्दिअति नमस्कार; अंतिः प्रकरणावचूरीति. १३२९३." नवतत्त्व सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., ले.- गणि वनीतविजय (गुरु गणि रत्नविजय), प्र.वि. मूल-गा.५७., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ३-१८४३१-४१). नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, (संपूर्ण), आदिः जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः (१) श्रीवीरजिनं नत्वा (२) श्रीसद्धेश्वरपार्श्व; अंतिः१३२९४." जीवविचार सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६.५४१२, ५-६४३७-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदि: भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः त्रिभुवनप्रदीपं; अंतिः श्रुतसमुद्रात्. १३२९५. जीवविचार सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.५१., (२६४१२, ५४३७-४०). जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः भुवन क० स्वर्ग; अंति: रूप जे समुद्र देहथी. १३२९६." नवतत्त्व व जीवविचार प्रकरण सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३३, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., ले.- ऋ. वीरचन्द(स्थानकवासी), पठ.- ऋ. निहालचन्द (गुरु ऋ. वीरचन्द, स्थानकवासी), प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५४१२, ४-५४३३-४२). पे.-१. पे. नाम. नवतत्त्व प्रकरण सह टबार्थ, पृ. १आ-९अ For Private And Personal Use Only Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४५३ नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जीवाजीवापुन्नं पावा; अंतिः लिहिओ मणिरयणसूरिहिं. नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदि: जीवनुं स्वरूप छ; अंति: मणिरत्नसूरिश्वरइं., पे.वि. मूल-गा.५१. पे..२. पे. नाम. जीवविचार सह टबार्थ, पृ. ९अ-१५आ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ. जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः त्रिण जे भुवन तेहनइं; अंतिः तेहथी उद्धर्यु., पे.वि. मूल-गा.५२. १३२९७. नवतत्त्वबालावबोध, संपूर्ण, वि. १९२३, श्रेष्ठ, पृ. १४५, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, ले.- सीमनीराम जोसी, प्र.वि. प्र.पु. ग्रं. ३६८१., (२५४१२, १४४२५-३०). नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द, मागु., गद्य, वि. १७६६, आदिः (१) ज्ञानं पञ्चविधं (२) जिणे करी वस्तुनो; अंतिः (१)सुलभ बुद्धि फुनी होय (२)जगत्रनि शिरोमणी छै. १३२९८. गौतमकुलक सह बालावबोध व कथा, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८६, जैदेना., ले.स्थल. मकसूदाबाद, ले.- मु. चन्दजी(खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-गा.२०. प्र.पु.-कथा-६९., (२५.५४१२, १२-१३४३५-३८). गौतम कुलक, प्रा., पद्य, आदिः लुद्धा नरा अत्थपरा; अंतिः सुहं लहन्ति. गौतम कुलक-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः शिष्य प्रश्न करै; अंतिः सेवै सुखी थायइ. गौतम कुलक-कथा, मागु., गद्य, आदिः श्रीसुयदेवी समरिफुनि; अंतिः इन्द्रीय सुख छण्डीयै. १३२९९. पर्युषणदशशतक सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९५२, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. नागोर, प्र.वि. मूल-गा.११०. *पंक्ति अक्षर अनियमित है।, त्रिपाठ, (२७४१२.५४). पर्युषणादशशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., पद्य, आदि: नमिउं वीरजिणिन्दं; अंतिः लिहिआदसगाहसयगेणं. पर्युषणदशशतक-वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमहावीरं; अंतिः बोध्यमिति गाथार्थः. १३३००. विशेषशतक भाषा, संपूर्ण, वि. १९३६, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. १०० प्रश्नोत्तर, (२५४१२.५, २०४४७-४८). विशेषशतक-भाषा, मु. आनन्दवल्लभ-शिष्य, मागु., गद्य, वि. १८८२, आदिः (१) श्रीसम्भवजिनाधीसं (२) श्रीकृष्ण वासुदेव; अंतिः जिन बुद्धि प्रकास. १३३०१. अष्टक सङ्ग्रह सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., प्र.वि. मूल-३२अष्टक. भुलसे पेज नम्बर ४० नही दिया है पाठ सलंग मिलता है..पू.वि. टबार्थ अष्टक-१४ गा.५ तक ही लिखा हैं., (२६४१२.५, ३४२१-२४). ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., पद्य, (संपूर्ण), आदि: ऐन्द्रश्रीसुखमग्नेन; अंतिः स्वीयं कृतं मङ्गलम्. ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य, (अपूर्ण), आदिः (१) ऐन्द्रवृन्दनतं नत्वा (२) ऐन्द्र क० __ इन्द्र; अंतिः१३३०२. मुनिपति चरित्र, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- ऋ. उमेदचन्द, (२५४१२.५, १६-१७४४४-४६). मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. ११७२, आदिः नमिऊण वद्धमाणं चउवीस; अंतिः रम्यं हरिभद्दसूरिहिं. १३३०३." पाण्डव चरित्र, अपूर्ण, वि. १९५१, श्रेष्ठ, पृ. २४७-५२(१ से ५२)=१९५, जैदेना., ले.स्थल. अणहिल्लपत्तन, ले. गोपीलाल बोडा, प्र.वि. सर्ग-१८, ग्रं. ९२८१, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-प्रारंभिक पत्र, संशोधित, पू.वि. सर्ग-४ गा.३७१ से हैं., (२७.५४१२.५, १४४४०-४१). पाण्डव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः (१)महाकाव्यमेतद्धिनोतु (२)कन्दाम्बुदश्रीः. १३३०४. सुलसा चरित्र, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. भावनगर, ले.- पुनमचन्द बोडा, प्र.वि. सर्ग-८, श्लो.७४०, (२५.५४१२, ११४३९-४१).. सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., पद्य, आदिः अहँ नमस्यामि; अंतिः सङ्ख्ययाक्षरविंशतिः. १३३०५. सदयवत्स कथा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५, जैदेना., ले.स्थल. मीयाग्रामे, ले.- मु. खुश्यालचन्द्र (गुरु गणि विनयसागर), (२६४१२.५, १२-१३४३४). For Private And Personal Use Only Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सदयवत्स कथानक, गणि हर्षवर्धन, सं., प+ग, आदिः धर्माज्जन्म कुले; अंतिः दानविमलाभयदानरम्याम्. १३३०६. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह (मा.गु.)टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६७, श्रेष्ठ, पृ. १२५, जैदेना., ले.स्थल. दांतीवारा, ले. पं. हीरसील(चित्रावलगछ), पठ.- मु. सोभाग्यशील (गुरु पं. हीरसील, चित्रावलगछ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूलश्लो.१२२६. प्रति लेखन पु. श्लोक का भी टबार्थ किया हैं., प्र.ले.श्लो. (६४७) मङ्गलं लेखकानां च; (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा ; (६४८) लेखक पाठक चिरञ्जीवो, (२६.५४१२.५, ५४३२-३५). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः (१)करोत्पाठक राजवल्लभः (२)चारूनिर्मितं. चित्रसेनपदमावती चरित्र-टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः आद्यं क० पेला युगला; अंतिः मनोहर सुन्दर. १३३०७. चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह (मा.गु.)टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८५३, श्रेष्ठ, पृ. १०१, जैदेना., ले.स्थल. मुंडेरा, ले.- मु. हर्षविजय (गुरु पं. हंसविजय, तपागच्छ), प्र.वि. मूल-श्लो.१२२४., (२५.५४१२, ५-७४३१-३२). चित्रसेनपदमावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः चारूनिर्मितं. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, आदिः आद्यं क० पेला युगला; अंति: मनोहर सुन्दर. १३३०८." चित्रसेनपद्मावती चरित्र सह (मा.गु.)टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८३१, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.५०९., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४१२, ६४३८-४०). चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः नत्वा जिनपतिमाद्यं; अंतिः करोति पाठक राजवल्लभः. चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः आदि जिनपति जे; अंतिः कवीश्वर जाणवो करता. १३३०९. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ५४, जैदेना., ले.स्थल. सरीडीसानगर, ले.- गणि उदयचन्द; गणि भक्तिचन्द्र (गुरु पं. मयाचन्द्र), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-२१उद्देश. मूल के प्रतिलेखक-उदयंद व टबार्थ के प्र.लेखक-भक्तिचंदजी हैं., (२६.५४१२, ६४३७-३९). जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक , गणि पद्मसुन्दर, प्रा., गद्य, आदिः तेणं कालेणं० रायगिहे; अंतिः से आराहगा भणिया. जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः ते कालनि विषइ ते; अंतिः आराधक जीव कह्या. १३३१०. सामायिक सूत्र टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ३४, जैदेना., ले.- आ. जगतकीर्तिसूरि (गुरु आ. हर्षचन्द्रदेव), (२७.५४११.५, १३४४०-४५). सामायिकसूत्र-दिगम्बर-टीका, सं., गद्य, आदि: जय जय निस्सही; अंतिः समस्त भवान् पान्तु. १३३११.” सामाइकसूत्र सह अवचूरि-दिगम्बर, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना.,प्र.वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७.५४१२.५, ७४२८-३०). सामायिकसूत्र-दिगम्बर, सं.,प्रा., पद्य, आदिः पडिक्कमामि भन्ते; अंतिः मोक्षमार्गोपदेशकाः. सामायिकसूत्र-दिगम्बर-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः हे भगवन् कृतदोष; अंतिः#. १३३१२. प्रश्नपद्धति व औषध सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., (२५.५४११.५, १५-१७४४९-५३). पे.१. प्रश्नपद्धति सङ्ग्रह, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-२४अ), आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेस; अंतिः दर्शितास्त्रयं. पे.२. औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः#; अंतिः#. १३३१३. लोकतत्त्वनिर्णय, कलङ्काष्टक व द्विजवदनचपेटानामवेदाङ्कुश, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., (२६.५४११, १६-१७४५४-५७). पे.-१. लोकतत्त्वनिर्णय, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः प्रणिपत्यैकमनेकं; अंतिः किमिहेश्वरेण., पे.वि. श्लो.११५. पे.२. कलकाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः त्रैलोक्यं सकलं; अंति: सूक्ष्मः शिवः., पे.वि. For Private And Personal Use Only Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४५५ श्लो.१०. पे.-३. द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ५आ-१०अ), आदिः ब्रह्मालूनशिराहरि; अंतिः तस्य तिष्ठन्तिविप्रा. १३३१४. सिद्धहेमशब्दानुशासनसूत्र, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. जगतारण, ले.- मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर),प्र.वि. अध्याय-८, (२६४११.५, १५४३९-४०). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद्; अंतिः (१)संस्कृतवत्सिद्धम् (२)कानिमानन्तनोति. १३३१५. सिद्धहेमशब्दानुशासन सह वृत्ति सह सूचिपत्र, प्रतिअपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०८-२०(१ से १९,४०३)+२(२९,१८८)=३९०, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. अंत में सूचिपत्र की दूसरी कॉपी की गयी हैं., (२६.५४११, १५४५० ५६). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिःसिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंति:१३३१६." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ४०८-१०१(१ से १०१)=३०७, जैदेना., प्र.वि. मूल-अध्याय-८., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, संशोधित, (२६४११, १५४४६-४८). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः-; अंतिः संस्कृतवत्सिद्धम्. सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्धृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदि:-; अंतिः अभ्युदयश्चेति. १३३१७." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति, प्रतिपूर्ण, वि. १७६९, मध्यम, पृ. १७४+१(५३)=१७५, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु. सर्व-ग्रं. ३४९१. प्रतिलेखन वर्ष १७६९ को सुधारकर १२६९ बनाया गया है., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. पूर्णता अध्याय ४ पाद ४ तक है., (२७४११.५, १७४५२). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद्; अंति:सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्घत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:१३३१८." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति- अध्याय १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १५०२, मध्यम, पृ. ५१, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-सर्व ग्रं. ९५९., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२७.५४११, १५४६५-६६). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद्; अंतिःसिद्धहेमशब्दानुशासन-खोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्धृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:१३३१९." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति-अध्याय १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६.५४११, १७७५५-६१). सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अर्ह सिद्धिः स्याद्; अंतिःसिद्धहमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:१३३२०." सिद्धहेमशब्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति-अध्याय १-२, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १६-१(११)=१५, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रथम पत्र, (२६४११, १५४५६-७०). For Private And Personal Use Only Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः अहँ सिद्धिः स्याद् ; अंतिःसिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्धृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, आदिः प्रणम्य परमात्मानं; अंति:१३३२१. सिद्धहेमशब्दानुशासनस्वोपज्ञ लघुवृत्ति-अध्याय ३-४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., (२६.५४११.५, १५४५४-५६). सिद्धहेमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदि:-; अंति:१३३२२. सिद्धहेमशब्दानुशासन लघुवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५५, जैदेना., ले.स्थल. श्रीपत्तन, ले.- भूपति विप्र, प्र.वि. ग्रं. ३६७५; टीका-अध्याय-७, ग्रं.३६७५, (२६.५४११, १९४५७-६४). सिद्धहेमशब्दानुशासन-लघुढुण्ढिकावृत्ति, आ. मुनिशेखरसूरि, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य श्रीमन्महेन; अंतिः च सामर्थ्यमित्यर्थः १३३२३. हेमचन्द्रानुस्मृताश्चुरादयोणितोधातवः, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२५.५४११, १५४५४-५७). धातुपारायण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः अहं भू सत्तायां; अंति: बहुलमेतन्निदर्शनम्. १३३२४. धातुपाठ सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६६४, श्रेष्ठ, पृ. १३-१(८)+१(९)=१३, जैदेना., ले.- मु. नरपति (गुरु गणि विनयकीर्ति, नागपुरीयतपागच्छ), पठ.- गणि लब्धिसागर-शिष्य (गुरु उपा. लब्धिसागर, बृहत्तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (१५) अदृष्टदोषात् मतिविभ्रमात् च, (२६४११, ६-१०४५५). धातुपारायण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः अहँ भू सत्तायां; अंतिः बहुलमेतन्निदर्शनम्. धातुपारायण-अवचूरि, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः इह पूर्वाचार्य; अंतिः धातुनां काचिदवचूरि. १३३२५. धातुपाठ सह स्वोपज्ञ अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, (२६४११, ७-८४५६-५९). धातुपारायण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः अहँ भू सत्तायां; अंतिः बहुलमेतन्निदर्शनम्. धातुपारायण-अवचूरि, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः इह पूर्वाचार्य; अंतिः इत्याद्यसिद्धं. १३३२६. सिद्धहेमलिङ्गानुशासन, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णदुर्ग, पठ.- गणि जगरूप, प्र.वि. अध्याय-८, (२६४११, ७४३४-३८). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः पुल्लिङ्ग कटणथपभमयर; अंतिः लिङ्गानाम्. १३३२७. लिङगानुशासन सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. १४३, जैदेना.,प्र.वि. पंचपाठ, संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२५४११, ११-१३४२९-४३). हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः (१) पुल्लिङ्गं कटणथपभमयर (२) लिङ्गानुशासनमन्तरेण; अंति: हैमलिङ्गानुशासन-दुर्गपदप्रबोधवृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६१, आदिः स्वस्तिश्री दायकं; अंतिः१३३२८." नामलिङ्गानुशासन स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ७८, जैदेना., प्र.वि. ग्रं. ४०००, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, संशोधित, (२६४१०.५, १५४४३-४९). हैमलिङ्गानुशासन-स्वोपज्ञ विवरण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः श्रीसिद्धहेमचन्द्र; अंतिः लिङ्गानाम्. १३३३०." हेमनाममाला काण्ड १-५, प्रतिपूर्ण, वि. १७९५, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. जैतारण, ले.- शिवराम, पठ. गङ्गाराम, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, संशोधित, (२६४११, १४४४५-४९). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: For Private And Personal Use Only Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५७ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १३३३१.” हेमनाममाला काण्ड १-३, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ४०, जैदेना.,प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ-प्रारंभिक पत्र, (२५.५४११, १७४४६-४७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१३३३२. हेमीनाममाला, संपूर्ण, वि. १५२३, श्रेष्ठ, प्र. २२, जैदेना.,ले.- श्रा. पूजीक दोशी, प्र.वि. ६ कांड, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र.ले.श्लो. (६१२) यादृशं पुस्तके दृष्टं; (३७) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२६४११, १७-१८४७३-७९). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १३३३३. हेमीनाममाला, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. कांड-३ श्लो.६५ तक लिखा हैं., (२६४११.५, १८४४६-५०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः१३३३४. हैमीनाममाला-काण्ड १-२, प्रतिपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- गणि वनीतविजय (गुरु गणि रत्नविजय), पठ.- मु. बालकचन्द (गुरु गणि वनीतविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११.५, १४४३८-४०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१३३३५. हैमीनाममाल सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६४३, श्रेष्ठ, पृ. २६७, जैदेना., ले.स्थल. स्थंभतीर्थे, प्र.वि. मूल-६ कांड; प्र.पु.-टीका-ग्रं. ११००; प्र.पु.-सर्व-ग्रं. १००००.,प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा ; (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्, (२६.५४११, १३४४३-४५). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचां; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. १३३३६. हैमीनाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. २१३, जैदेना., ले.- वशराम, प्र.वि. मूल-६ कांड. प्र.पु. सर्व-ग्रं. १००००., (२५४१०.५, १५४४८-५१). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. १३३३७.” हेमीनाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, पूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. १५७-२(३,७२)=१५५, जैदेना., ले.- गणि लक्ष्मीवल्लभ (गुरु गणि लक्ष्मीकीर्ति, खरतरगच्छ), प्र.वि. मूल-६ कांड. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. १००२०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२४.५४११, १९४५०-५२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचां; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. १३३३८. हेमीनाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१०.५, १७४६२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: For Private And Personal Use Only Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अभिधानचिन्तामणि नाममाला-स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. १२१६, आदिः धर्मतीर्थकृतां वाचा; अंति:१३३३९.” हेमीनाममाला सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८७, श्रेष्ठ, प्र. १७२, जैदेना., प्र.वि. मूल-६ कांड., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा , (२५.५४११, ७-९४२७ ३१). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीमदर्हन्तमानम्य; अंतिः प्रसीदताच्छारदा देवी. १३३४२." स्यादिशब्दसमुच्चय, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२६४११, १५४३९-५७). स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीशारदां हृदि; अंति:१३३४३. चन्द्रप्रभाहैमकौमुदि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९३, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४१०.५, १२-१३४४०-४६). सिद्धहेमशब्दानुशासन-चन्द्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदिः प्रणम्य श्रीमदर्हन्त; अंतिः लक्षणान्वितयाश्रये. १३३४४. हैमविभ्रम सह तत्त्वप्रकाशिका वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., (२६.५४११, २०४६४). हैमविभ्रम , आधारित, सं., पद्य, आदिः कस्य धातोस्तिवादीनाम; अंतिः त इव दुर्वदकः सभायां. हैमविभ्रम-तत्त्वप्रकाशिका टीका, आ. गुणचन्द्रसूरि, सं., गद्य, वि. १२००, आदिः निखिलजगदेकशरणं भव्या; अंतिः द्रव्यकरण० प्राणायि. १३३४५. हेमीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. राजपुरा, ले.- मु. लब्धिकमल (गुरु गणि रूपवल्लभ), पठ.- मु. जेठा (गुरु मु. लब्धिकमल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६ कांड, (२५४११, १३४३८-४२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति: रोषोक्तावु नतौ नमः. १३३४६. हैमीनाममाला, संपूर्ण, वि. १८०८, मध्यम, पृ. ५५, जैदेना., ले.- मु. माणिक्यवल्लभ (गुरु गणि उदयसोम, बृहत्खरतरगच्छे क्षेमशाखा), पठ.- पं. युक्तिधर्म (गुरु मु. माणिक्यवल्लभ, बृहत्खरतरगच्छे क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ६ कांड, (२६.५४१०.५, १३४३९-४०). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १३३४७." हैमीनाममाला सह टिप्पण व शेषसङ्ग्रहसारोद्धार, संपूर्ण, वि. १६६५, श्रेष्ठ, प्र. ५७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. मेडता, ले.- ऋ. वीकाजी, प्र.वि. कोशस्थ पर्यायसूचक अंक दिया गया है., पदच्छेद सूचक लकीरें, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२६.५४११, १३४४२-४५). पे.-१.पे. नाम. हैमी नाममाला सह टिप्पण, पृ. १आ-५०अ अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, आदिः अहं श्रीहेमचन्द्राचा; अंतिः#., पे.वि. मूल-अध्याय-६ कांड; प्र.पु.-मूल-ग्रं.१५९१. For Private And Personal Use Only Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४५९ पे:२. पे. नाम. अभिधानचूडामणिनाममाला शेषसङ्ग्रहसारोद्धार, पृ. ५०अ-५७अ अभिधानचिन्तामणि नाममाला-शेषनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे., पे.वि. प्र.पु.-ग्रं.१८००. १३३४८. हैमीनाममाला-काण्ड १५, प्रतिअपूर्ण, वि. १६६०, श्रेष्ठ, पृ. ५९-२(१० से ११)=५७, जैदेना., (२६x११, १३४४१-४२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः१३३४९.” अभिधानचिन्तामणी नाममाला, अपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. ७४-३२(१ से ११,४८ से ६८) ४२, जैदेना.,ले.स्थल. मसूदानगर, ले.- मु. अजबसागर (गुरु मु. अनोपसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ६ कांड, पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२५.५४११, १५४४२-४७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. १३३५०. हैमीनाममाला काण्ड- १ से ३, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९१, जैदेना.,प्र.वि. संशोधित, (२६४११, ९४३३-४१). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंति:१३३५१.” अनेकार्थसङ्ग्रह सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १७६, जैदेना.,प्र.वि. संबद्ध-अध्याय-६+१. प्रतिलेखन पुष्पिका के अक्षर अवाच्य हैं., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १९४५६).. अनेकार्थ सङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः ध्यात्वार्हतः; अंतिः खेदामन्त्रणयोरपि. अनेकार्थ सङ्ग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः परमात्मानमानम्य; अंतिः कौमुदीत्यभिधानेति. १३३५२. अनेकार्थ सङ्ग्रह सह टीका, पूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २२९-१(१)=२२८, जैदेना., प्र.वि. संबद्ध-अध्याय-६+१., ___ पंचपाठ, (२६४११, ४-६४३१-३५). अनेकार्थ सङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, वि. १२वी, आदि:-; अंतिः खेदामन्त्रणयोरपि. अनेकार्थ सङ्ग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि:-; अंति: कौमुदीत्यभिधानेति. १३३५४. हेमीनाममाला सह टीका, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. १३५, जैदेना., ले.स्थल. जावद, ले.- गणि जससोम (गुरु गणि कनकप्रिय, बृहत्खरतरगच्छे क्षेमशाखा), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-६ कांड., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, त्रिपाठ, (२६४११.५, २-६x४७-५२). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. अभिधानचिन्तामणि नाममाला-वृत्ति, वा. वल्लभ वाचक, सं., गद्य, वि. १६६७, आदिः श्रीमदर्हन्तमानम्य; अंतिः प्रसीदताच्छारदा देवी. १३३५५.” हेमीनाममाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८५, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. कांड-४ गा.१८९ तक हैं., (२५४११, १३४३९-४५). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः अभिधानचिन्तामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल, मागु., गद्य, आदिः हेमाचार्य नाममाला; अंति:१३३५६. अभिधानचिन्तामणी नाममाला सह बालावबोध, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. काण्ड-६ गा.१७५ तक हैं., (२५.५४११.५, १५४४८-५७). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः अभिधानचिन्तामणि नाममाला-बालावबोध+बीजक, पं. देवविमल, मागु., गद्य, आदिः हेमाचार्य नाममाला; अंतिः१३३६९. प्रमेयरत्नकोश, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., प्र.वि. अध्याय-२१; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ११८०, (२६.५४११.५, १७४६३-६६). For Private And Personal Use Only Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची प्रमेयरत्नकोष, आ. चन्द्रप्रभसूरि, सं., पद्य, आदि: नत्वा ज्ञानतमिस्र; अंतिः प्रमाणानि जैमिनेः. १३३७५." शब्दरत्नाकर, संपूर्ण, वि. १७४८, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.स्थल. बीकानेर, ले.- पं. नेमिसुन्दर (गुरु आ. जिनचन्द्रसूरि), प्र.वि. ६ काण्ड, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, (२६४११, १६x४७-५१). शब्दरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, सं., पद्य, आदिः ध्यात्वार्हतो गुरुन्; अंतिः मङ्गले शं च सं सुखे. १३३७७. काव्यकल्पलता स्वोपज्ञवृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८३, जैदेना., प्र.वि. एल. डी. इंडलोजी-अहमदाबाद से प्रकाशित पुस्तक में भी इतना ही भाग उपलब्ध है.. पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. शब्दसिद्धिप्रतान के प्रारंभिक कुछ भाग तक है., (२५.५४११, १५४४८-५५). कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति पर स्वोपज्ञ परिमल वृत्ति, यति अमरचन्द्र, सं., गद्य, वि. १३वी, आदिः श्रीशारदां हृदि; अंतिः१३३८०." वग्भट्टालङ्कार, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- मु. जससागर, प्र.वि. ५परिच्छेद; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २८९, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२६४११, ११४२७-३४). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट , सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वतध्यायिनः. १३३८१.” वग्भट्टालङ्कार-परिच्छेद १-४, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पाठक ज्ञानसमुद्र (गुरु पं. हर्षविशाल, खरतरगच्छ),प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६४११, १५४४१-४४). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट , सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंति:१३३८२." वग्भटालङ्कार सह टीका, संपूर्ण, वि. १७०३, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना., ले.स्थल. सरवाड, ले.- गणि जससागर (गुरु आ. कल्याणसागरसूरि), पठ.- मु. युक्तिसागर,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-५परिच्छेद., संशोधित, (२६४११, १५४४४ ५३). वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः श्रियं दिशतु वो देवः; अंतिः सारस्वताध्यायिनः. वाग्भटालङ्कार-टीका , गणि सिंहदेव, सं., गद्य, आदिः श्रीवर्द्धमानसन्तति; अंतिः इति सारस्वताध्यायिनः. १३३८३." विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., प्र.वि. प्रत १३३८३ और १३३८४ की कृती एक ही है। कर्ता नाम अलग है। ४ परिच्छेद, श्लो.२७१, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ११-१९४४७-४८). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकान्त मदनोत्तरम्. १३३८४." विदग्धमुखमण्डन, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. परिच्छेद-३ गा.३४ तक लिखा हैं., (२६४११, ११ १३४३९-४५). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति:१३३८६. वज्जालग्गं, संपूर्ण, वि. १५२६, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-ग्रं. ७५०., (२७४११.५, १५४५६-५८). वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., पद्य, आदिः विविह कवि विरइयाओ; अंतिः भणेरुत्नाकेणकज्जे. १३३८७." प्राकृत छन्दकोष, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. उग्रसेनकोट, ले.- पं. देवकीर्ति, प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२५.५४११, ८-११४२८-२९). पे.-१. प्राकृत छन्दकोश, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-८आ), आदिः आजोयणट्ठियाणं सुरनर; अंतिः इहछन्दकोसम्मि., पे.वि. गा.८०. पे..२. प्राकृत छन्दकोश, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ८आ-१०अ), आदिः गामाणामाजाई वयसं; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४६१ पढीज्जमाणेसुहंन्देउ., पे.वि. गा.२७. १३३८९. छन्दानुशासन सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. ६४, जैदेना., ले.स्थल. सीरोही, ले.- देवराज, प्र.वि. ___ मूल-अध्याय-८; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ३००.प्र.पु.-सर्व-ग्रं. २९९९. भाषा अंकयुक्त., (२६४११, १४-१७४४९-५६). छन्दोनुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः वाचं ध्यात्वार्हती; अंतिः द्विघ्नानेकाध्वयोगः. छन्दोनुशासन-स्वोपज्ञ छन्दचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, आदिः शब्दानुशासनविरचना; अंतिः त्वस्माभिरुक्तः. १३३९२. अष्टलक्षी, पूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४७, जैदेना., पू.वि. अंतिम पत्र नहीं है. मात्र अंतिम अंश मात्र नही हैं., (२६.५४११.५, १२-१३४३३-३८). अष्टलक्षी, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६४६, (संपूर्ण), आदिः श्रीसूर्यः श्रेयसे; अंतिः यावच्चन्द्रदिवाकरौ. १३३९६. कीर्तिकल्लोलिनी, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ३ अधिकार, (२६.५४११, १३४५५). कीर्तिकल्लोलिनी, पं. हेमविजय गणि, सं., पद्य, आदिः ऐद्रं वृंदममन्दमोद; अंति: गहनागाह्यमानाविरश्री. १३३९८." जैनकुमारसम्भव, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. ३३, जैदेना.,प्र.वि. सर्ग-११, ग्रं. १२२५, पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, दशा वि. मूल पाठ का अंश खंडित है , (२१४०९, १२-१४४४४-४६). जैन कुमारसम्भव, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, आदिः अस्त्युत्तरस्यां; अंतिः महाकाव्येयमेकादशः. १३३९९." सिद्धान्तचन्द्रिकावृत्ति-उत्तरार्द्ध, अपूर्ण, वि. १९६३, श्रेष्ठ, पृ. ३२४-११७(१ से ११६,२६१)+३(२९६,३०७,३१६)=२१०, जैदेना.,प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२६.५४१२, १२४३८ ४२). सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., गद्य, वि. १७९९, आदि:-; अंतिः सदानन्देन निर्मिता. १३४०१.” खण्डप्रशस्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ३०, जैदेना., प्र.वि. मूल-१० अवतार., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभिक पत्र, त्रिपाठ, पू.वि. १० अवतार, (२६४११, २-७X४०-५६). खण्डप्रशस्ति, कवि हनुमत् , सं., पद्य, आदिः कृत क्रोधे यस्मिन्; अंतिः कल्कानि कल्की हरिः. खण्डप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., गद्य, वि. १६४१, आदिः श्रीपार्वं फल; अंतिः महार्णवस्यैव घटत इति. १३४०२. खण्डप्रशस्ति सह टीका व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, पे. २, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, (२५.५४११, २ ७X४२-५६). पे.-१. पे. नाम. खण्डप्रशस्ति सह सुबोधिका टीका, पृ. १आ-२७आ खण्डप्रशस्ति, कवि हनुमत् , सं., पद्य, आदिः कृत क्रोधे यस्मिन्; अंतिः कल्कानि कल्की हरिः. खण्डप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., गद्य, वि. १६४१, आदिः श्रीपाश्र्वं फल; अंति: महार्णवस्यैव घटत इति., पे.वि. मूल-अध्याय-१० अवतार. पे.२. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २७आ-२७आ), आदिः#; अंति: #. १३४०७." हेमकौमुदि, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १९९, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६x१०.५, १५४३१-४१). सिद्धहेमशब्दानुशासन-चन्द्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १७५७, आदिः प्रणम्य श्रीमदहन्त; अंतिः लक्षणान्वितयाश्रये. १३४१२. पुण्यप्रकाश, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ७२-११(१ से ५,४१ से ४२,५७ से ६०)=६१, जैदेना., प्र.वि. सर्ग-९, (२५.५४१२, ९४३६-४२). पुण्यप्रकाश, पं. रत्नकुशल गणि, सं., पद्य, वि. १६५०, आदि:-; अंतिः सद्वाच्यमानं बुधैः. For Private And Personal Use Only Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (+) ४६२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३४१३. दिग्विजय काव्य, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ३८, जैदेना, प्र. वि. सर्ग १३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४११.५, १८-२२x४२-५२). दिग्विजय महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., पद्य, आदिः स्वस्ति श्रीर्नृसुरा; अंतिः श्रीपत्तनान्तस्थितम्. १३४१५. चेतोदूतकाव्य, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. श्लो. १३०, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्नअल्प मात्रा में (२६.५४११ १९ २०५०-६१). (+) www.kobatirth.org: चेतोदूतम् आ. उदयनन्दिसूरि सं., पद्य वि. १५०२, आदि ते जीयासुर्जगति गुरव अंतिः (१) काव्यमेतद्व्यधत्त (२) माचन्द्रसूर्योदयं. " (+) १३४१६. हंमीनाममाला, संपूर्ण वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ४९ जैदेना. ले. स्थल. शिकरानगर, ले. गणि तिलकविजय (गुरु गणि सुखविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. ६ कांड, ग्रं. १६१२, प्र.ले. श्लो. (४६२) मङ्गलं लेखकस्यापि, (२६.५४११.५, १५४३९-४१). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः, १३४१७. हेमीनाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ती - काण्ड ४,५,६, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ७१, जैदेना., प्र. वि. मूल-६ कांड, ग्रं. ११२०. प्र. पु. - सर्व ग्रं. १००००., (२७.५x११, १५×५१-५६). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः . अभिधानचिन्तामणि नाममाला- स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य वि. १२१६, आदि:-: अंतिः निपात्यन्ते पदे पदे. १३४१८. हेमीनाममाला सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न, पंचपाठ, पू. वि. अंत के पत्र नहीं हैं. काण्ड -५ गा. १६१ तक हैं. (२६.५४११, १४-१६४४३-५१). अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिःअभिधानचिन्तामणि नाममाला अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदि सिद्धं प्रतिष्ठां अंति ; १३४१९. हेमीनाममाला सह अवचूरि, संपूर्ण वि. १५१३, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना. प्र. वि. मूल-६ कांड, ग्रं. १५३४. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत, संशोधित (२७४११.५ १३-१५४४२-५०१- अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः प्रणिपत्यार्हतः; अंतिः रोषोक्तावु नतौ नमः. , अभिधानचिन्तामणि नाममाला अवचूरि मु. साधुरत्न, सं., गद्य, आदिः सिद्धं प्रतिष्ठां अंतिः चेति मङ्गलार्थः १३४२२. शब्दरत्नाकर, संपूर्ण वि. १७५६, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना. ले. स्थल मेडता, प्र. वि. ६ काण्ड (२६.५५११, १५९४७-५५). " शब्दरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, सं., पद्य, आदि ध्यात्वार्हतो गुरुन्; अंतिः मङ्गले शं च से सुखे. " १३४२३. काव्यकल्पलता टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २६, जैदेना., प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें - प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. (२६.५४११.५, २२-२८४६१-६८) " कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति, यति अमरचन्द्र, सं., गद्य, ईस. १३वी, आदिः विमृश्य वाङ्मयं; अंतिः , १३४२५.'' वाग्भट्टालङ्कार व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २. जैदेना. प्र. वि. पदच्छेद सुचक लकीरेंसंधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत- क्रियापद संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, (२७.५X११.५, ११-१२×३२-३७). For Private And Personal Use Only पे. १. वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., पद्य वि. १२वी (पृ. १आ- १२ आ), आदिः श्रियं दिशतु वो देवः अंति सारस्वतध्यायिना, पे.वि. ५परिच्छेद प्र.पु.नं. २५८. पे. २. जैन दुहा सङ्ग्रह, सं. प्रा. मागु, प+ग, (पृ. १अ १अ ), आदि: # अंतिः #. Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४६३ १३४२९. सिद्धहेमशब्दानुशासन अध्याय १-५ व कृहत्तिसूत्र, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., (२८.५४११.५, १३४४८). पे-१. सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, वि. ११९३, (पृ. १अ-१५आ, प्रतिपूर्ण), आदिः अहँ सिद्धिः स्याद्; अंति:पे.२. जैन सुभाषित*, सं., पद्य, (पृ. १५आ-१५आ, संपूर्ण), आदिः #; अंतिः #. १३४३०." अनेकार्थ नाममाला सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५५८, मध्यम, पृ. २३६, जैदेना., ले.स्थल. पलादिपुर, प्र.वि. संबद्ध-अध्याय-६+१; टीका-ग्रं. १२०००., पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रथम पत्र, (२७४१२.५, १५-१७४३८-४५). अनेकार्थ सङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, संबद्ध, सं., पद्य, वि. १२वी, आदिः ध्यात्वार्हतः; अंतिः खेदामन्त्रणयोरपि. अनेकार्थ सङ्ग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः परमात्मानमानम्य; अंतिः विवृतिकामंवरीवृध्यते. १३४३३." नेमिजिन काव्य, संपूर्ण, वि. १४९५, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. श्रीयोगिनीपुर, प्र.वि. सर्ग-१२. इसी प्रत के आधार से हर्षचंद्र भूराभाई-भावनगर ने वीर सं.२४४० में प्रकाशित किया है क्योंकि प्रस्तावनामें आदर्शप्रति व प्रतिलेखनवर्ष संबधि जो उल्लेख है वह इस प्रति से मिलता हैं. यही उल्लेख जिनरत्नकोशमें तथा जि.र.को. की माहिती का उल्लेख जैनसंस्कृत साहित्यनो इतिहास भाग-२ पेज नं.२९ में मिलता हैं. आदर्श प्रति होने की संभावना हैं., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२८x१०.५, १४४४७-५६). नेमिजिन चरित्र, उपा. कीर्तिराज, सं., पद्य, वि. १४९५, आदिः वन्दे तन्नेमिनाथस्य; अंतिः काव्यमिदंकीर्तिराजेन. १३४३५.” जैनमेघदूत सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. २३, जैदेना.,प्र.वि. टीका-सर्ग-४. कहीं कहीं पर मारुगुर्जर भाषामे शब्दार्थ कीया हुआ है., संशोधित, (२८.५४११.५, १९४५६-५८). जैनमेघदूत-व्याख्या, सं., गद्य, आदिः कश्चित् अलक्ष्यस्वरु; अंति: देवसद्मस्थानं यया सा. १३४३६. मेघदूत व कुमार सम्भव, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. १२, पे. २, जैदेना., प्र.वि. मूल पत्रांक नं.१८६ से १९७ तक हैं. किसी बडे ग्रन्थका हिस्सा होने की संभावना हैं., (२८x११.५, १४-१५४५०-५७). पे-१. जैनमेघदूत, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-१०आ, संपूर्ण), आदिः कश्चित्कान्तामविषय; अंतिः सौख्यलक्ष्मीम्., पे.वि. सर्ग-४, ग्रं.४१८. पे:२. जैन कुमारसम्भव, आ. जयशेखरसूरि, सं., पद्य, (पृ. १०आ-१२आ, प्रतिपूर्ण), आदिः अस्त्युत्तरस्यां; अंतिः-, पे.वि. ___ मात्र प्रथम सर्ग है. १३४३७." समयसार नाटक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९४९, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले.- कृष्णजी वेलजी दवे, प्र.वि. मूल अध्याय-१०., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२८x१२, ४४३१-३६). समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदिः सव्वन्नु मोक्खमक्खन्; अंतिः सययं सिवं दिन्तु. समयसार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसर्वज्ञदेव मोक्ष; अंतिः सदाइं सिव मोक्ष दिउं. १३४३९. अम्बड रास, संपूर्ण, वि. १९०८, श्रेष्ठ, पृ. ८०, जैदेना., ले.स्थल. बजांणानगर, ले.- रवचन्द, प्र.वि. ढाल-५७, प्र.ले.श्लो. (५७८) याद्रसं पुस्तकं द्रष्टवा, (२८x११.५, १४४३२-४०). अम्बड रास, आ. भावप्रभसूरि, मागु., पद्य, वि. १७७५, आदिः श्रीमहिमा जग विस्तरइ; अंति: मनवञ्छित लहे तेहो हे. १३४४१. नल चरित्र, अपूर्ण, वि. १४९३, जीर्ण, पृ. १२५-१२(७२ से ८३)=११३, जैदेना., ले.स्थल. तालध्वजदुर्गे, ले.- पं. कृपासागर गणि, पठ.- श्रा. सायर,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १० स्कन्ध; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ४९७५, (२७४११.५, १४-१५४३७ ४९). नलायन, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., पद्य, आदि: जयति जयति देवः; अंतिः तदधुना धनदप्रसादात्. For Private And Personal Use Only Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ४६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३४४३. जैनमेघदूत सह टीका, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., प्र. वि. मूल- सर्ग-४; टीका - अध्याय- ४., (२७Xx११.५, १५४५०-५७). Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जैनमेघदूत, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः कश्चित्कान्तामविषय; अंतिः सौख्यलक्ष्मीम्. 1 " जैनमेघदूत वृत्ति, आ. शीलरत्नसूरि सं., गद्य वि. १४९१ आदि आदी यः समकालमेव अंतिः त्यनुप्राससङ्कराश्च. १३४४५.” रघुवंश सह टीका - सर्ग १-७, प्रतिपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ७९, जैदेना., ले. स्थल पाटण, ले. पं. नायकविजय (गुरु - पं. जयविजय ), प्र. वि. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित (२७४११.५ १-४४३४-४६). रघुवंश, कालिदास, सं., पद्य, आदि: वागर्थाविव सम्पृक्तौ; अंति: रघुवंश - टीका, मु. धर्ममेरु, सं., गद्य, वि. १७४८, आदि: वागर्थेति कवीनां; अंति: , १३४४९. युक्तिप्रबोध सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९७१, श्रेष्ठ, पृ. ७५, जैदेना., प्र. वि. मूल - गा. २५., ( २७.५x१२.५, १५४६०-६६). युक्तिप्रबोध उपा. मेघविजय, प्रा., पद्य, आदि पणमिय वीरजिणिन्दं अंतिः सुहसिद्धिसंवसिआ युक्तिप्रबोध-वृत्ति, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, आदिः स्फुरच्चिदानन्दमया; अंति: (१) सुखसिद्धिसंवासिताः (२) श्रियै नन्दतात्. १३४५०.” आरम्भसिद्धिवृत्ति, संपूर्ण, वि. १५२९, श्रेष्ठ, पृ. ८८ - १ (६९* )= ८७, जैदेना., ले. स्थल. स्थंभतीर्थ, ले.- नाकर जोसी, प्र. वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, संशोधित (२६.५४१०.५, १६-१७४५४-६३). आरम्भसिद्धि-सुधीशृङ्गारवार्तिक, गणि हेमहंस, सं., गद्य, वि. १५१४, आदिः श्रीधर्मन्यायसम्यग्; अंतिः यतनीयं तत्वज्ञैः. १३४५१. कुवलयमाला कथा व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९६७, श्रेष्ठ, पृ. ७०, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. योधपुर, ले. - रामचन्द्र लोडा, (२७१२, १५X४६-५३). : पे. १. कुवलयमाला कथा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १आ-६९आ), आदि आदित्यवर्णं तमसः अंतिः तटालंकारहार श्रियः, पे. वि. अध्याय- ४ नं.३८९४. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. ७०अ-७०अ), आदि: #; अंतिः #. १३४५४. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. २५., (१३.५X१२, १३X३४-४०). सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, मु. मल्लिषेण, सं., पद्य, आदि: नत्वा वीरजिनं; अंतिः संसार विच्छित्तये. सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टीका, कवि नेतृसिंह, सं., गद्य, आदिः लब्धिमन्तं विशेषज्ञ; अंतिः सल्लोकसेवान्वितैः. १३४५५.” विजयप्रशस्ति काव्य सह स्वोपज्ञवृत्ति, संपूर्ण, वि. १९६५, श्रेष्ठ, पृ. १८८, जैदेना., ले. वसतीराम जोसी, प्र. वि. मूल - सर्ग-२१., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२७४१२, १५X४०-५५). विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., पद्य, आदिः श्रेयांसि वः सृजतु अंतिः कुर्वन् सतां मङ्गलम्. विजयप्रशस्ति महाकाव्य - विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं., गद्य, वि. १६८८, आदिः स्वस्ति श्रीनाभि; अंतिः पार्श्व० प्रसिद्ध्यै १३४५६.” सोमसौभाग्य काव्य, संपूर्ण, वि. १५३१, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. स्थल. लालपुर, ले.- गोपाल, प्र. वि. सर्ग- १०, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न प्रारंभिक पत्र (२६.५४११, १५४५०-५६), सोमसौभाग्यकाव्य, मु. प्रतिष्ठासोम, सं., पद्य, वि. १५२४, आदिः श्रीनाभिभूः स भवतां अंतिः भूषणगणं च निर्ममे. १३४५८.” सप्तसङ्घान काव्य, संपूर्ण, वि. १७वी श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना, प्र. वि. सर्ग-९, ग्रं. ४४०, संशोधित - प्रारंभिक पत्र, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, ( २६४११, १७-२०X३६-४९). सप्तसन्धान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., पद्य वि. १७६०, आदि श्रीनामिजन्मान्वयपद अंतिः नित्यमुन्नीयमानम्. For Private And Personal Use Only १३४५९. सन्देह समुच्चय, संपूर्ण वि. १६वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना. प्र. वि. श्लो. ४१० (२७४११.५, १३-१५४४४-५९). सन्देह समुच्चय, आ. ज्ञानकलशसूरि, सं., पद्य, आदिः सभूतभावप्रविकाशनैक: अंतिः वाच्यमानो विचक्षणः Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४६५ १३४६१. शतार्थ सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. १०५, जैदेना., प्र.वि. हिस्सा-श्लो.१; टीका-सूत्र-१०६विव.., (२५.५४१२, ९४२४-३२). योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः परिग्रहारम्भमग्ना; अंतिः परमीश्वरीकर्तुमीश्वर. योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, गणि मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) प्रणम्य परमप्रीत्या (२) हंभारम्भेगोरितिनाम; अंतिः (१)कथमिति सम्भवेव्ययः (२)शतार्थीमिमाममलाम्. १३४६२. शतार्थ सह विवरण, संपूर्ण, वि. १९५४, श्रेष्ठ, पृ. ८७, जैदेना., ले.स्थल. पाटडी, प्र.वि. हिस्सा-श्लो.१; टीका-सूत्र १०६विव.., (२५४१२, ११४२४-२९). योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः परिग्रहारम्भमग्ना; अंतिः परमीश्वरीकर्तुमीश्वर. योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, गणि मानसागर, सं., गद्य, वि. १७वी, आदिः (१) प्रणम्य परमप्रीत्या (२) हंभारम्भेगोरितिनाम; अंतिः (१)कथमिति सम्भवेव्ययः (२)शतार्थीमिमाममलाम्. १३४६४. विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., ले.- त्रिविक्रम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, श्लो.२७२, पदच्छेद सूचक लकीरें-वचन विभक्ति संकेत-प्रारंभिक पत्र, (२७४११.५, १३४५२-५४). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंति: मेकान्त मदनोत्तरम्. १३४६५. विदुग्धमुखमण्डन काव्य, पूर्ण, वि. १७४९, मध्यम, पृ. १३-१(११)=१२, जैदेना., ले.स्थल. सांगानेर, ले.- मु. जससागर, पठ.- मु. युक्तिसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, श्लो.२६१, (२६४११, १३-१४४४१-४७). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः मेकान्त मदनोत्तरम्. १३४६६. विदग्धमुखमण्डन, संपूर्ण, वि. १७५०, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढ, ले.- मु. महिमासागर (गुरु आ. अजीतसागर), पठ.- मु. मयगलसागर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ४ परिच्छेद, श्लो.२७३, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत, (२७४११, १२-१४४४३-५०). विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं., पद्य, आदिः सिद्धौषधानि भवदुःख; अंतिः मेकान्त मदनोत्तरम्. १३४७०. भुवनदीपक सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.१७४., (२५४११.५, १३४३१ ३७). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-बालावबोध* , मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीयो; अंतिः इस्यै नामें आचार्यै. १३४७१. भुवनदीपक सह टबार्थ व दिनमान काल, संपूर्ण, वि. १८१५, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., (२६.५४११.५, ६४४०-४५). पे.१. पे. नाम. भुवनदीपक सह टबार्थ @, पृ. १अ-१४आ भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीओ; अंतिः ईस्ये आचार्य कह्यो., पे.वि. मूल-श्लो.१८०. पे.२. दिनमान काल, मागु., गद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदिः पहिलो आपणी देहनी; अंति: घडी निर्णय जाणवी. १३४७२. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. जालोरगढ, ले.- मु. गणपतसागर (गुरु गणि भाणसागर); मु. जीवणसागर (गुरु गणि भाणसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.२१३., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५-६४३६-४०). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीओ; अंतिः ईस्ये आचार्य कह्यो. १३४७४. पासाकेवली, संपूर्ण, वि. १८९९, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदेना., ले.स्थल. बनेडाराजपुर, ले.- ऋ. रामनाथ, (२७४११.५, For Private And Personal Use Only Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १४४३९-४४). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः यामेन तथैकदिवसेन तु. १३४७६. ज्योतिषसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३५-१३(१२ से १८,२४,२६ से २७,३० से ३२)=२२, जैदेना., प्र.वि. ___ *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, पू.वि. बीच के पत्र नहीं हैं व प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२७x११.५४). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:१३४७७. ज्योतिषसार सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. वीरलीगाम, ले.- पं. रा श्लो.३३०, (२६४११.५, ११-१४४२९-३२). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः पुन पोषेवाराह समंतम्. १३४७८. ज्योतिषसार सङ्ग्रह, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं.गा.११० तक हैं., (२५४१०.५, १३-१५४३०-३७). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंति:१३४८३. पञ्चाङ्गसारणी व रोहिणी विचार, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. २, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. संक्रांति मुहूर्त तक है., (२५४११.५, १३४३०-३७). पे.-१. रोहिणी विचार, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ, संपूर्ण), आदिः असाढवदि दसमी भइ; अंतिः नीपजे अन मुंहगो होय., पे.वि. गा.६. पे.२. पञ्चाङ्गविधि, मु. मेघराज, मागु., पद्य, (पृ. १अ-५अ, अपूर्ण), आदिः गवरीनन्द आनन्द करि; अंतिः-,पे.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. १३५०४. सामुद्रिकशास्त्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, पे. ४, जैदेना., (२७४११.५, १७४५६-५७). पे.-१. हस्तरेखा लक्षण, प्रा., पद्य, (पृ. १अ-२अ), आदिः पणमिय जिणममियगुणं; अंतिः परिक्खि० वयं दिज्जा., पे.वि. गा.६४. पे.२. अङ्गस्फुरण विचार, प्रा., पद्य, (पृ. २अ-२अ), आदिः ठाणं निलाडि सुक्खं; अंतिः दक्षणाङ्ग प्रशस्यते., पे.वि. गा.१०. पे.-३. सामुद्रिकशास्त्र, सं., पद्य, (पृ. २अ-४आ), आदिः पूर्वमायुः परीक्ष्या; अंतिः रमयन्ति चित्रणी. पे.४. पुरुषलक्षण, सं., पद्य, (पृ. ४आ-६आ), आदिः विनायकं प्रणम्यादौ; अंतिः सोस्ते श्रियभाजिनः., पे.वि. श्लो.९५+२४. १३५०८. पासाकेवली सुकनावली, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदेना., ले.स्थल. मधुमतीबंदिर, ले.- पं. चतुरकुशल गणि, प्र.वि. श्लो.१८४, (२७४११.५, १५४३७-४०). पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः ॐ नमो भगवती; अंतिः सत्योपासक केवली. १३५०९. पञ्चवाक्यसुकनावली, परदेशीराजासझाय, नारीनीरासकरण सझाय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., ले.स्थल. टीकर, ले.- पं. उत्तमविजय गणि, प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६.५४११.५४). पे.१. पञ्चवाक्यसुकनावली, मागु., गद्य, (पृ. १अ-५अ), आदिः ऐ माणसथी लाभ कहेवो; अंतिः सही रुडु छे फल पामीस. पे..२. प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः सेतम्बिका नयरि; अंतिः किधो सुभ उपगार रे., पे.वि. गा.१९. पे.-३. औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारक, मु. ऋद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः मन आणी जिनवाणी; अंतिः ऋद्धिविजय जय जयकार., पे.वि. गा.१७. पे.-४. प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः चलन्ति तारा विचलन्ति; अंतिः न चलन्ति धर्मम्., पे.वि. For Private And Personal Use Only Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४६७ श्लो.१. १३५१५.” अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १६९५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. सूरतिबंदिरे, ले.- गणि धर्मविजय (गुरु उपा. देवविजय), पठ.- श्राविका तेजबाई,प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १० शतक, कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १३४३६). अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, वा. देवविजय, सं., पद्य, वि. १६५८, आदिः प्रणम्य मगसीपार्श्व; अंतिः विनिर्मितं देवविजयेन. १३५१९." जातकपद्धतिदीपिका, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, प्र. ५, जैदेना., प्र.वि. श्लो.९५, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६.५४११.५, १४-१५४३६-३७). जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., पद्य, वि. १७६५, आदिः प्रणम्य पार्श्वदेवेश; अंतिः एषा जातकदीपिका. १३५२१. प्रियङ्करनृप कथा (उवसग्गहर स्तोत्र प्रभावे), संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., (२६.५४११, १३४३६-४१). उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. जिनसूर मुनि, सं.,प्रा., गद्य, वि. १६वी, आदिः वंशाब्जश्रीकरो हंसो; अंतिः सम्पदः स्युः पदे पदे. १३५२२. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. ५५०., पंचपाठ, (२५.५४११.५, ५-७४३४-३७). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः श्रीपार्श्वजिनमानम्य; अंति: सुगुरुप्रसादात्. १३५२३. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ.६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२७४११, १८ २०४४६-५२). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदिः कल्या० यस्य० रागादि; अंतिः सुगुरुप्रसादात्. १३५२४." कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२०, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.स्थल. वढवाण, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, ५४३३-३९)... कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः जिनेश्वर चरण कमल; अंतिः कुमुदचंद्र नाम दीg. १३५२५. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७३८, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., अन्य- मु. विनयविजय, प्र.वि. मूल श्लो.४४., (२६४११, १३४५२-६९). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः किल इति सम्भावनायां; अंतिः प्रभाश्वर झलहलती छइ. १३५२६." ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. गा.२०८, ग्रं. २६०, पदच्छेद सूचक लकीरें-प्रारंभ में क्वचित बाद में ज्यादा, (२६.५४११.५, ११४४१-४६). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिभरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. १३५२७. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. अवरंगाबाद, ले.- गणि ईश्वरविमल, प्र.वि. मूल-गा.२११., (२६.५४११.५, ६४३३-३७). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्तिनो समूह तिणे; अंतिः मोक्षना सुख पामइं. १३५२८." कायस्थिति स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.- मु. रङ्गरत्न, प्र.वि. मूल-गा.२४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११.५, ३४२२-२४). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदि: जह तुहदंसणरहिओ; अंतिः अकायपयसम्पयं देसु. For Private And Personal Use Only Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४६८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः जिम ताहरा दर्शन रहित; अंतिः हनी सम्पदा प्रतिदिओ. १३५२९. कल्याणमन्दिर स्तोत्र भाषा, संपूर्ण, वि. १७८९, मध्यम, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४४, (२५४११.५, १५-१६४३४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र-भाषा, मु. जयसागर, मागु., गद्य, आदिः सकल मङ्गल के मन्दिर; अंतिः चुंपि च्युआलीस ढाल. १३५३०. गजसुकमाल चौपाइ व मन्त्र, संपूर्ण, वि. १७५७, मध्यम, पृ. १७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. सुईग्राम, ले.- मु. देवविजय, (२७४१२, १५-१६x४२-४४). पे.-१. गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६९९, (पृ. १अ-१७आ), आदिः नेमिसर जिनवरतणा चरण; अंतिः जिणवर चरण नमीजे छे., पे.वि. ढाल-३०. पे..२. ननामी मन्त्र, सं.,मागु., गद्य, (पृ. १७आ-१७आ), आदिः ॐ नमो सप्त द्वीप; अंतिः बान्धीइं ननामी जाई. १३५३२. लघुस्तव सह टीका व श्लोक, संपूर्ण, वि. १९२५, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. २, जैदेना., (२६४११.५, १३४४२). पे.-१.पे. नाम. लघुस्तव सह ज्ञानदीपिका टीका, पृ. १आ-१६अ त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., पद्य, आदि: ऐन्द्रस्यैव शरासनस्य; अंतिः तं सौभाग्यभाग्योदयम्. लघुस्तव-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं., गद्य, वि. १३७९, आदिः ऐन्द्रस्येवेति एषा; अंतिः मया० विवृत्तार्थः., पे.वि. मूल-श्लो.२२. टीका-ग्रं.४७०. पे.२. त्रिपुराभवानी स्तोत्र माहात्म्य, आ. लघ्वाचार्य, संबद्ध, सं., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः इत्येतत्रिपुरास्तव; अंतिः जलोघाङजते.सेव्यमानः., पे.वि. श्लो.३. १३५३३. वीतराग स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-२० प्रकाश., पंचपाठ, (२६.५४११, १०-१४४४७-५२). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंतिः फलमीप्सितम्. वीतराग स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः केवलात्मामुक्ति; अंतिः सुलभैवेति समञ्जसं. १३५३४. दलएलामण्डन युगादिदेव स्तोत्र सह अवचूरि मन्त्र विधिसहित, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.२५., (२७.५४११.५, ४-६४३६-४०). आदिजिन स्तव-देउलामण्डण, मु. शुभसुन्दर, प्रा., पद्य, आदि: जय सुरअसुरनरिन्द; अंतिः सेवासुखं प्रार्थये. आदिजिन स्तव-देउलामण्डण-मन्त्राम्नाय अवचूरि, सं.,मागु., गद्य, आदिः कियदनुभूतमन्त्र; अंतिः वारि सराणीयानु. १३५३५. भक्तामर भाषा, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- पं. गुणसागर,प्र.वि. गा.४९, (२७४१२, १०-११४२९-३२). भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., पद्य, आदिः आदि पुरूष आदिस; अंतिः ते पावै शिवखेत. १३५३६. नवस्मरण व श्लोक, संपूर्ण, वि. १८३६, श्रेष्ठ, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. समीनगर, ले.- पं. अमीविजय, पठ. ___ मु. मोहनचन्द (गुरु गणि भाणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२६४११.५, १३४३८-४१). पे-१. नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., प+ग, (पृ. १अ-१०अ), आदिः नमो अरिहन्ताणं० हवइ; अंतिः जैनं जयति शासनम., पे.वि. ९ स्मरण. कल्याणमंदरि स्तोत्र नहीं है, तिजयपहुत्तस्तोत्र दो बार लीखा हैं. पे..२. ज्योतिष*, सं.,मागु., पद्य, (पृ. १०आ-१०आ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.२. १३५३७. भक्तामर स्तोत्र टीका, पूर्ण, वी. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४२ अपूर्ण तक लिखा हैं., (२७४११.५, १२४३०-३५). भक्तामर स्तोत्र-समास, संबद्ध, सं., गद्य, आदिः भक्ताश्च ते अमराश्च; अंति:१३५३८. भक्तामर स्तोत्र वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८११, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.- मु. जेवन्तसागर, प्र.वि. प्र.पु.-४४ श्लोक., (२७.५४१२.५, १८-१९४४३-५२). भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य परमानन्ददायक; अंतिः मायातीतिमङ्गलम्. For Private And Personal Use Only Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४६९ १३५३९. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. नागोरीसरा, ले.- मु. कस्तुरविजय (गुरु गणि रुपविजय), प्र.वि. मूल-श्लो.४४., त्रिपाठ, (२६४११.५, २-३४४४-४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., गद्य, वि. १८वी, आदिः (१) श्रीशर्केश्वरपार्श्व (२) इह हि भगवान् श्रीमान; अंतिः शोध्यं विशुद्धाशयैः. १३५४०. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १७६२, श्रेष्ठ, पृ. ९-१(२)=८, जैदेना., ले.स्थल. पाडलीपुर, ले.- मु. कर्मसिंह, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२७४११, १५-१८४४५-५२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. १३५४१. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२६४११.५, १२-१३४३२ ३८). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. १३५४२." भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२७X१०.५, १५-१६x४३-४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति सत्ये किलेति; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. १३५४३." भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. १५७२., संशोधित-प्रारंभिक पत्र, (२७४१२, १५४४१-४९). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः प्रायशः सन्ति . १३५४४. श्रावकव्रतभङ्ग प्रकरण व दुषमकाल श्रीश्रमण स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६-१(१)=५, पे. २, जैदेना., ले.- ऋ. हरकर्ण, प्र.वि. त्रिपाठ, (२६.५४११, ४-९x४१-४६). पे.-१. पे. नाम. श्रावकव्रतभङ्ग प्रकरण सह अवचूरि, पृ. २अ-४आ, अपूर्ण श्रावकव्रतभङ्ग प्रकरण, प्रा., पद्य, आदिः जिणदंसणं विणाजं लोअं; अंति:श्रावकव्रतभङ्ग प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः व्रतं नियमविशेषः; अंतिः विरतरूपभेदद्वयाधिके., पे.वि. मूल गा.४१. प्रथम पत्र नहीं है. गा.१ से ८ नहीं हैं. पे.२. पे. नाम. दुषमकाल श्रीश्रमण स्तोत्र सह अवचूरि, पृ. ४आ-६अ, संपूर्ण दुषमकाल श्रीश्रमणसङ्घ स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., पद्य, आदिः वीरजिण भुवण विस्सुय; अंतिः दूसमसचं नमह निच्चं. दुषमकाल श्रीश्रमणसङ्घ स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः सिरिजिणनिव्वाणगमण; अंतिः विउसाण शिरोमणी जाओ., पे.वि. मूल-गा.२४. १३५४५. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९११, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. जूंजणू, प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु. टीका-४४., (२६४१२, ११४३२-३६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः युग्मं किल इति सत्ये; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. For Private And Personal Use Only Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३५४६.” भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., पदच्छेद सूचक लकीरेंसंधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, प्र.ले. श्लो. (६०४) जब लग मेरु अडिग है; (६५४) जला रक्षे स्थला रक्षे, (२५x११, ३-४X३९-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानवुद्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी, भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः युग्मं किल इति सत्ये; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. (+) www.kobatirth.org: १३५४७. भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना ले. स्थल, पाटण, प्र. वि. श्लो. ४४, पदच्छेद सूचक लकीरें, " पू.वि. गा. ४४ (१७५१०, ९४२०-२३). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. १३५४८. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, अपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२९ तक लिखा हैं.. (२६४१२, ७-११४३९-४५). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदि: भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः भक्तामर स्तोत्र - सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं. गद्य, आदिः युग्मं किल इति सत्ये अंति: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३५४९. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. ८ जैदेना. ले. स्थल. सुरतबिंदर ले. मु. प्रीतीविजय (गुरुगणि भीमविजय), प्र. वि. मूल - श्लो. ४४., ( २६.५X११.५, ४४४०-४८). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलीक: अंतिः प्रपद्यन्ते क० पामइ. १३५५३.” भरतबाहुबली काव्य, संपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ६६, जैदेना., प्र. वि. सर्ग- १८, श्लो. १५८३, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६४११, १३४४२-४७). भरतबाहुबली महाकाव्य, गणि पुण्यकुशल, सं., पद्य, वि. १६५९, आदि: अथार्षभिर्भारतभूभुजा; अंतिः कीर्तिरनुत्तराभा. १३५५४.” प्रश्नोत्तरकाव्य सह वृत्ति व श्लोक, संपूर्ण, वि. १६५८, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.- मु. उदयसागर (गुरु पं. सहजरत्न खरतरगच्छ ), प्र. वि. पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संशोधित ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६४१०.५. ५-११४३०-३५). पे.-१. पे. नाम. प्रश्नशतक प्रकरण सह कल्पलतिकवृत्ति, पृ. १अ - २०अ प्रश्नोत्तरकषष्ठीशतक आ जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, आदि क्रमनखदशकोटीदीप्र अंतिः प्रसादलवं मयि प्रश्नशतक प्रकरण-कल्पलतिकावृत्ति, उपा. पुण्यसागर, सं., गद्य, वि. १६४०, आदि: (१) शिरसि यस्य चकास (२) श्रीजिनवल्लभसूरि; अंतिः यमनसो मयि सुप्रसादा:., पे.वि. मूल - श्लो. १६१; टीका-ग्रं.१५००. पे. २. जैन श्लोक *, सं., पद्य, (पृ. २०अ २०अ), आदि: #; अंतिः #. १३५५५.” चमत्कारप्रश्न काव्य व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. १५, पे. २, जैदेना., प्र. वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न वचन विभक्ति संकेत, ( २६४११, १२४३५-३९). - · पे.-१. प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ - १५आ), आदिः क्रमनखदशकोटीदीप्र; अंतिः प्रसादलवं मयि., पे.वि. श्लो. १६१. पे. २. जैन श्लोक सं., पद्य, (प्र. १५-१५आ), आदि में अंति: मं. पे. वि. प्र.पु. ३. , १३५६०." मेघाभ्युदय सह टीका, संपूर्ण, वि. १८८०, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. प्र. वि. मूल-श्लो. ३८. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक " लकीरें संधि सूचक चिह्न (२६४११, २x२२-३३). मेघाभ्युदयकाव्य, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., पद्य, आदिः खं मेघानां शिनयति ; अंतिः समये प्रियजलवारि:. मेघाभ्युदयकाव्य-मुग्धबोधटीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, आदि: विस्फुरन्सायकान्तं अंतिः हर्षप्रकर्षादिनी. ; १३५७१. सङ्घयणीसूत्र, संपूर्ण, वि. १८१६, श्रेष्ठ, पृ. ६८, जैदेना., ले. स्थल छठीअडा, ले. मु. लघुदरसणविजय (गुरु गणि - For Private And Personal Use Only Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४७१ ज्ञानविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. गा.३०७, (२१४९.५, ३-४४२७-३४). बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, वि. १२वी, आदिः नमिउं अरिहन्ताइं; अंतिः नन्दओजाजिणमयंलोए. १३५७५. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ९७, जैदेना., ले.स्थल. लाकडीआ, ले.- मु. विनयविजय (गुरु गणि वनीतविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१०८, ४ उल्लास, गा.२६६४, (२२४११.५, १९४३३-३७). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १३५७६. मानवती रास, संपूर्ण, वि. १७९३, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.- मु. रत्नविजय (गुरु पं. तत्वविजय), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-४७, (२१x१२.५, १८x२९). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. १३५७७. नर्मदासुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, प्र. ४१, जैदेना., ले.- गणि जिनविजय (गुरु गणि रूपविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-६३, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२१.५४१२, २२-२४४३२-३५). नर्मदासुन्दरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५४, आदिः प्रभुचरणाम्बुजरजतणी; अंतिः मोहन वचन विलास जी. १३५७९. त्रिषष्ठिशलाकापुरष चरित्र-पर्व ७, प्रतिपूर्ण, वि. १६वी, मध्यम, पृ. १४६+१(६९)=१४७, जैदेना., प्र.वि. प्र.पु.-मूल अंशमात्र-१३ सर्ग, ग्रं. ३९६८., (२४४९.५, ११४३२-३४). त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, वि. १२२०, आदि:-; अंति:१३५८४. विजय प्रशस्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६६-२५(५ से ६,८ से १२,१६,२० से २२,२६,२८ से २९,३१,३५,३९,४६,५० से ५१,५५,५८,६०,६३,६५)=४१, जैदेना., पू.वि. बीच-बीच व अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १३४४५-४९). विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., पद्य, आदिः श्रेयांसि वः सृजतु; अंतिः१३५८७." मुरारिनाटक टिप्पण, संपूर्ण, वि. १५२९, मध्यम, पृ. ३१, जैदेना., ले.स्थल. गिरिपुर, प्र.वि. ग्रं. २४००. मूल अंश मात्र लीया गया हैं., संशोधित, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, १८४६०-७३). अनर्घराघव-टिप्पण, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: परब्रह्म परंज्योतिः; अंति: मिदमुद्यम वैभवम्. १३५८९. नाट्यदर्पण सह स्वोपज्ञविवृत्ति, संपूर्ण, वि. १७०२, श्रेष्ठ, पृ. १२९, जैदेना.,प्र.वि. मूल-४ विवेक.,प्र.ले.श्लो. (४४९) यदक्षर पदभ्रष्टं, (२५.५४११, ११४३०-३७). नाट्यदर्पण, आ. रामचन्द्रसूरि, आ. गुणचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः चतुर्वर्गफलां नित्यं; अंति: चेटे मङ्गलकिर्तनम्. नाट्यदर्पण-स्वोपज्ञविवरण, आ. रामचन्द्रसूरि, आ. गुणचन्द्रसूरि, सं., , आदिः (१) चतुर्वर्गफलां नित्यं (२) अथ शिष्टसमयपरिपालनाय; अंतिः निर्मलं नाट्यदर्पणम्. १३५९२. ग्रहलाघववार्तिक व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७६०, श्रेष्ठ, पृ. १३, पे. २, जैदेना., ले.- मु. अमरसागर, (२६४१०.५, १४४३७-४१). पे.-१. ग्रहलाघव-वार्तिक, गणि यशवन्तसागर, आधारित, सं., पद्य, (पृ. १अ-१३अ), आदिः श्रीमत्स्वायम्भुवी; अंतिः सुतरां __ विशदीचकार., पे.वि. टीका-३ अधिकार, श्लो.२३८. पे..२. पे. नाम. बबुलवृक्ष वर्णन, पृ. १३अ-१३अ जैन श्लोक *, सं., पद्य, आदिः#; अंतिः#., पे.वि. प्र.पु.-श्लो.२. प्रतिलेखक-अजबसागर, प्रति. ले. वर्ष-१७६२, ___ स्थल-सतिमालपुर. १३५९५. ज्योतिषसार व ज्योतिष श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ५, पे. ४, जैदेना., (२५.५४११, १५४४४-४७). पे.-१. ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, (पृ. १अ-५आ), आदिः तं नमामि जिनाधीशं; अंतिः स्थापनं स्मृतम्., पे.वि. श्लो.१४७. For Private And Personal Use Only Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.२. ज्येष्टप्रतिविचार, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः ज्येष्टस्य प्रथमे; अंतिः रुण्डमुण्डाचमेदिनी., पे.वि. श्लो.४. पे.-३. रोहणी विचार, मागु., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः आसाढाह काली दसमि; अंतिः जोसी काहु करेसि., पे.वि. गा.४. पे.-४. लग्नविचार, सं., पद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: मेषे च द्विपदे; अंतिः स्वभावे विलग्नगे., पे.वि. श्लो.५. १३६००." ज्योतिषसार टिप्पणक व ज्योतिष श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. २, जैदेना., प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १४-१५४४४-५३). पे.-१.पे. नाम. ज्योतिषसार सह यन्त्रकोद्धार, पृ. १आ-२५अ ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः वासराः सम्भवन्ति. ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदिः सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंतिः यन्त्रको० टिप्पनम्. पे..२. ज्योतिषसङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. २५अ-२५अ), आदिः#; अंतिः#., पे.वि. गोधुलिका लग्न, विवाह नक्षत्र, चंद्रयुति फल व प्रतिष्ठादि नक्षत्र विचार. १३६०१. ज्योतिषसार सह टिप्पण, संपूर्ण, वि. १६५४, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. कोरंटानगर, प्र.वि. प्र.पु.-टिप्पण-१५० यंत्र..,प्र.ले.श्लो. (६४५) यादृशं पुस्तके दृष्ट्वा , (२६x११, १५४५३-५५). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदि: श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः स्यात्परिवर्जनीयं. ज्योतिषसार-यन्त्रकोद्धार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि, सं., गद्य, आदि: सरस्वतीं नमस्कृत्य; अंतिः यन्त्रको० टिप्पनम्. १३६०२. ज्योतिषसार सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १८१२, श्रेष्ठ, पृ. ४२-१(४)=४१, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.३४२. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. १३००., (२५.५४११.५, ५४३६-४०). ज्योतिषसार, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः श्रीअर्हन्तजिनं; अंतिः घातचन्द्रप्रकीर्तिता. ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीशब्द छइं सुपुज्य; अंतिः घातचन्द्रमानिषेधिवो. १३६०४. पाशाकेवली, संपूर्ण, वि. १७६३, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. मालपूरा, ले.- मु. दयासागर (गुरु गणि अनोपसागर), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. श्लो.१७९, (२६४१०.५, १४-१५४४७-५०). पाशाकेवली.ऋ. गर्ग, सं., पद्य, आदिः महावीरं नमस्कृत्य; अंतिः सत्योपासक केवली. १३६०७.” महादेवीसारणी सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. ५१, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, प्र.वि. मूल-श्लो.४३; टीका _ग्रं. १५००., संशोधित, (२६४११, १२४३६-४०). महादेवी सूत्र, महादेव, सं., पद्य, आदिः सिद्धिं करोति राजके; अंतिः तज्जेति०. महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., गद्य, वि. १६९२, आदिः श्रीनाभेयं जिनं; अंतिः नाधार्या गुरो भावितः. १३६१३. भुवनदीपक टीका, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., (२४४११, १२-१५४२८-३३). भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, आदिः सरस्वत्याः संबन्धि; अंतिः सूरिभिरितिकवेर्नाम. १३६१४. भुवनदीपक सह अवूचरि, संपूर्ण, वि. १६९९, श्रेष्ठ, पृ. १२, जैदेना., ले.स्थल. सुभटपुर, ले.- पं. रत्नसिंह (गुरु गणि अमरसुन्दर), प्र.ले.पु. मध्यम, पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा मूल गा.१३९ तक ही लिखा हैं., (२५४११, ३-१०x४९-५२). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, (अपूर्ण), आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः भुवनदीपक-अवूचरि, सं., गद्य, (संपूर्ण), आदिः ग्रहसहिता ये भावा; अंतिः विस्तार्यमाणाबुधैः. १३६१५. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.१७८. टबार्थ गा.१७६ तक ही लिखा __ हैं, अंतिमवाक्य नहीं हैं., (२५.५४११.५, ६४३८-४३). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धी जे; अंति: #. For Private And Personal Use Only Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४७३ १३६१६. जातकपद्धति सह बीजक, पूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ६६-१(४)+२(५०,५४)=६७, पे. २, जैदेना., (२६.५४१०.५, ११ १२४४२-५२). पे..१. जातकराजपद्धति, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, (पृ. १आ-६४आ, पूर्ण), आदिः श्रीमद्विद्यागुरुं; अंतिः प्राप्ताधिकार:स्फुटं., पे.वि. १४ अधिकार. बीच का एक पत्र नहीं है. पे..२. जातकराजपद्धति-बीजक, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, (पृ. ६४आ-६५अ, संपूर्ण), आदिः पाकं द्वादशधा प्रोक्; अंतिः सर्वात्मनाश्रीप्रदा., पे.वि. श्लो.१५. १३६१९. भुवनदीपक सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. वेलाउलबंदिर, ले.- मु. देवकुशल (गुरु गणि रविकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.१७३., (२६.५४१०.५, ६४३७-४८). भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., पद्य, वि. १३पू, आदिः सारस्वतं नमस्कृत्य; अंतिः श्रीपद्मप्रभसूरिभिः. भुवनदीपक-टबार्थ , मागु., गद्य, आदिः सरस्वती सम्बन्धीओ; अंतिः आचार्यइ इम पूरो किधो. १३६२०.” जातकपद्धति व ज्योतिष, संपूर्ण, वि. १७४१, मध्यम, पृ. ९, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लक्षकपुर, ले.- गणि विचारसागर, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, संशोधित, (२५.५४१०.५, १५४३९-४४). पे.-१. जातकराजपद्धति, पं. यशस्वत्सागर, सं., पद्य, (पृ. १आ-९आ), आदिः श्रीवर्द्धमानाभिध; अंतिः प्राप्ताधिकारस्फुटं. पे-२. ज्योतिषसङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (पृ. ९आ-९आ), आदिः#; अंतिः#. १३६२२. विवेक रत्नाकर प्रश्नाध्याय, अपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ३०-४(१ से ४)=२६, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-प्रारंभिक पत्र, (२४.५४१०, ७४२६-३२). विवेकरत्नाकर प्रश्नाध्याय, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः कार्यमेति तदास्फुटम्. १३६२७. ज्योतिषसार व षट्ऋतुश्लोक, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ३३, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. लाकडीआ, ले.- गणि वनीतविजय (गुरु गणि रत्नविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, (२३.५४११, १५४३९-४५). पे..१. ज्योतिषसार, पं. हीरकलश, मागु., पद्य, (पृ. १अ-३३अ), आदिः सहगुरु सांनिधि; अंतिः कवित एम हीरे भण्या., पे.वि. गा.९१६. पे..२. षड्ऋतु श्लोक, सं., पद्य, (पृ. ३३अ-३३अ), आदिः वसन्तो मीनमेषं च; अंति: दक्षिणे स्मृता., पे.वि. श्लो.२. १३६३०. स्वप्नसप्ततिका सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७२०, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले.- अम्बादत्त, प्र.वि. मूल गा.७१; टीका-ग्रं. ८००. विजयधर्मलक्ष्मी ज्ञानमंदिर-आगरा प्रत नं.३१८५ इस प्रत का उल्लेख जिनरत्नकोश में मिलता है., (२६४११.५, २१४७३-७८). स्वप्नसप्ततिका, प्रा., पद्य, आदिः एवं विसिट्ठकाला; अंतिः सद्दहमाणस्स सम्मत्तं. स्वप्नसप्ततिका-वृत्ति, आ. सर्वदेवसूरि, सं., गद्य, वि. १२८७, आदिः अधुना क्रियादिकलस्या; अंतिः अकारिवृत्तिः समासेन. १३६३३. मृगसंवाद चौपाई, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. जैयपुर, ले.- फतेचन्द, प्र.वि. गा.३१३, प्र.ले.श्लो. (२८१) गगन धरा बिच मेरुध; (२८२) जीहा लग मेरु अडग हे, (२२.५४११, १३-१६४३९-४१). मृगसंवाद चौपाई, मु. देवराज, मागु., पद्य, वि. १६६३, आदिः सकल देव सारदनमुः; अंतिः सङ्घने नतनत दै आसीस. १३६३५. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले.- मु. भीमसागर, प्र.वि. ढाल-४१, गा.५६४, ग्रं. ८२५, (२६.५४११, १३४४४-४८). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदि: उदय अधिक दिन दिन; अंतिः दिन दिन आस. १३६३६. वीतराग स्तोत्र सह अवचूरि, अपूर्ण, वि. १६वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना.,प्र.वि. पंचपाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. प्रकाश-१९ गा.५ तक हैं., (२६.५४११, १०-१४४३६-४१). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदिः यः परात्मा परं; अंति: For Private And Personal Use Only Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची वीतराग स्तोत्र-अवचूरि , मु. विशालराजसूरि-शिष्य, सं., गद्य, वि. १५१२, आदिः जयति श्रीजिनो वीरः; अंति:१३६३७.” वीस विगत स्तवन, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८-१(१)=७, जैदेना.,प्र.वि. २० प्रकाश, पदच्छेद सूचक लकीरें अल्प मात्रा में, पू.वि. प्रकाश-३ गा.८ से हैं., (२६x१०.५, १०-११४३७-४१). वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, आदि:-; अंतिः फलमीप्सितम्. १३६३९." भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध व कथा, पूर्ण, वि. १६२८, श्रेष्ठ, पृ. २१-१(१)=२०, जैदेना., ले.स्थल. मेडतानगर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११, १४४३४-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध+ कथा, मागु., गद्य, आदि:-; अंति:१३६४०." भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७५१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.- मु. मयगलसागर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-टबार्थ-ग्रं. ४६५., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ४४२९-३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमरदेवता; अंतिः करी प्रगटपणे कह्यो. १३६४१." भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., पदच्छेद सूचक लकीरें वचन विभक्ति संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, पंचपाठ, (२६x११, ५-७४३०-३४). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुळसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किल इति निश्चये अहमप; अंतिः साहकारन्तं समुपैति. १३६४२. भक्तामर स्तोत्र सह टीका, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. गुंदवच, (२६४११, १६४४६-५४). भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः (१) व्याख्या किल इति (२) वर्द्धमानजिनं नत्वा; अंतिः मानमहत्तरामित्यर्थः. १३६४३. भक्तामर स्तोत्र अवचूरि व वर्धमान विद्या जाप, संपूर्ण, वि. १४८२, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २, जैदेना., ले.- गणि विशालरत्न, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६.५४११.५, २०-२२४५१-६१). पे.-१. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, (पृ. १अ-११अ), आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः अवचूरिलिखितेति. पे.२. वर्धमानविद्याजाप, सं., गद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदिः ॐ जय ॐ श्रीं ह्रीं; अंतिः मुगतिः स्यावान्तरे. १३६४४. भक्तामर स्तवन सह टीका, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.४४., पंचपाठ, (२६x११, ७ ९४२४-२६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः युग्मं किल इति सत्ये; अंतिः शोध्यतामियम्. १३६४५. अजितशान्ति स्तव सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., पठ.- श्राविका कवरां, प्र.वि. मूल गा.३९; बालावबोध-ग्रं. ४५०., (२७४१०.५, ११४४३-४६). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंति: पुवु० विणासन्ति. अजितशान्ति स्तव-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, आदिः (१) अजितनामा बीजउ (२) नमस्कृत्य जिनं; अंतिः सविहुनई कल्याण हुवउ. १३६४६. अजितशान्ति व भयहर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६४, मध्यम, पृ. १०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. कृष्णगढमहादुर्ग, ले.- पं. यशस्वत्सागर (गुरु गणि यशस्सागर, तपगच्छीय), (२२४१०, ५४३२-४५). पे.-१. पे. नाम. अजितशान्ति स्तव सह अवचूरि, पृ. १अ-८अ अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. For Private And Personal Use Only Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४७५ अजितशान्ति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: अजितं द्वितीयजिनदेवं; अंतिः भक्त्यतिशय० इत्यर्थः., पे.वि. मूल गा.४०. पे.२. पे. नाम. नमिऊण स्तोत्र सह अवचूर्णि, पृ. ८अ-१०आ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, प्रा., पद्य, आदिः नमिउण पणय सुरगण; अंतिः नासइ तस्स दूरेण. नमिऊण स्तोत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, आदिः नत्वा नमस्कृत्य; अंतिः नाना व्याधि जयानिति., पे.वि. मूल-गा.२४. १३६४७." बृहच्छान्ति सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६७४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. वणोदनगर, ले.- पं. जससोम (गुरु पाठक हर्षसोम, तपागच्छ), प्र.वि. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. २१५., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, त्रिपाठ, संशोधित, (२६४११, १-५४४४-४६). बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः पूज्यमाने जिनेश्वरे. बृहच्छान्ति-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदिः स्ताच्छान्तिः शान्ति; अंतिः विलिखिता चेयम्. १३६४८." भक्तामर स्तोत्र, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- गणि देवविजय, प्र.वि. श्लो.४४, संशोधित, (२६.५४११, ७-८x२७-३१). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंति: समुपैति लक्ष्मी. १३६४९.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टीका व बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६४८, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना.,प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-सर्व-ग्रं. १२२०., पंचपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत, संशोधित, (२६.५४११, १-४४२८-३४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणसागरसूरि, सं., गद्य, आदिः यो नित्यं बहुभिः; अंतिः कस्य न शोभते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-बालावबोध', मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० माङ्गलिक; अंतिः सिधसेनाचार्य इति नाम. १३६५०.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह अवचूर्णि, संपूर्ण, वि. १६८२, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., ले.स्थल. राडइहानगर, ले.- मु. गुणमूर्ति, पठ.- मु. धनमूर्ति, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., त्रिपाठ, संशोधित, (२६.५४११, ३-५४४०-४४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: कल्या० यस्य० रागादि; अंतिः सुगुरुप्रसादात्. १३६५३. वैद्यवल्लभ सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७८६, मध्यम, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. नूतनपुर, ले.- पं. लाभविजय गणि (गुरु गणि समृद्धिविजय, तपगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-अध्याय-८विलास.,प्र.ले.श्लो. (६४४) याद्रिशं पुस्तकं द्रिष्टवा, (२६x११.५, ६४३९-४१). वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., पद्य, वि. १७२६, आदिः सरस्वतीं हृदि; अंति: रोहिरसो सुविशेष एव. वैद्यवल्लभ-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीसारदा प्रतइ हृदि; अंतिः सर्वथकी विशेष जाणवो. १३६५६. अजितशान्ति स्तव सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., ले.- शङ्कर हरिहर भट्ट, प्र.वि. मूल-गा.३८; टीका-ग्रं. ७४०., (२६.५४११.५, १५४५१-५५). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः पुवु० विणासन्ति. अजितशान्ति स्तव-बोधदीपिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदिः अजितशान्तिजिनाधिपयोः; अंतिः (१)तदा पूरितराम्पयोभिः (२)चत्वारिंशत्समन्विता. १३६५७.” अजितशान्ति स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.४०., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-संधि सूचक चिह्न-क्रियापद संकेत, संशोधित, पंचपाठ, (२६४११, २-६x२५-२६). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. अजितशान्ति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः भगवति गर्भस्थे; अंतिः सञ्जाता अपि नश्यति. For Private And Personal Use Only Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची अजितशान्ति स्तव-छन्द सङ्केत, सं., गद्य, आदि:#; अंतिः#. १३६५८. अजितशान्ति स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६४४, श्रेष्ठ, पृ. ५, देना., ले.- मु. वर्धमान (गुरु मु. कृष्णदास), प्र.वि. मूल-गा.४०., पंचपाठ, (२५.५४११, १०४३३-४०). अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषेणसूरि, प्रा., पद्य, आदिः अजियं जिय सव्वभयं; अंतिः जिणवयणे आयरं कुणह. अजितशान्ति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः इहलोकादीनि भयानि; अंति: जाता अपि नश्यति. १३६५९. जिनसहस्रनाम स्तोत्र व अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, प्र. ७, पे. २, जैदेना., (२६४१०.५, १३४३२ ३६). पे.-१. पे. नाम. जिनसहस्रनाम गद्य स्तोत्र, पृ. १अ-३आ शक्रस्तव-अर्हन्नामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., प+ग, आदिः ॐ नमोर्हते परमात्म; अंतिः प्रपेदे सम्पदा पदं. पे.२. अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ३आ-७आ), आदिः ॐ नमोर्हते परमात्मन; अंतिः महानन्दैधुकारणम्., पे.वि. १०प्रकाश. १३६६२. ज्योतिष सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ५, जैदेना., ले.- मु. खेमसुन्दर, (२६.५४११.५, १५-१७४४७-५०). पे.-१. ज्ञानचतुर्विशिका, उपा. नरचन्द्र, सं., पद्य, (पृ. १अ-२आ), आदिः श्रीवीराय जितेशाय; अंतिः चक्रे चतुर्विंशिका., पे.वि. श्लो.२४. पे..२.पे. नाम. नष्टजातक, पृ. २आ-३अ ज्ञानचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, उपा. नरचन्द्र, सं., गद्य, आदिः मेषसंक्रान्ति दिनात्; अंतिः सुजन्मवेलावाच्या. पे..३. ज्योतिष श्लोक, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३अ), आदि: ज्येष्टार्क पश्चिमो; अंति: वारलु राजा होशि तेउ., पे.वि. श्लो .३. पे.४. जन्मलग्नग्रहफल, सं., पद्य, (पृ. ३अ-५आ), आदिः लग्नेर्क जे भवप्ति; अंतिः पृथुल कौशनुवासारविः., पे.वि. श्लो.१११. पे.-५. पाणिग्रहणज्ञान, सं., पद्य, (पृ. ५आ-आ), आदिः नरस्त्रियोश्च लग्ना; अंतिः लाभ संस्थेशशाङ्के., पे.वि. श्लो.७. १३६६३. जन्मपत्रि पद्धति, संपूर्ण, वि. १७८४, मध्यम, पृ. ४०, जैदेना., ले.स्थल. सादडी, पठ.- मु. वस्तानयविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. १३अधिकार, (२६४११, १८-२०x४४-५३). जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., पद्य, आदिः प्रणम्य सारदां ज्योत; अंतिः जन्म: तस्या प्रमाणम्. १३६६४. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४., (२५४११, ४x१९ ४०). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, आ. जिनवर्द्धमानसूरि, मागु., गद्य, आदिः कल्याण क० मङ्गलीक; अंतिः प्रपद्यन्ते क० पामइं. १३६६५.” कल्याणमन्दिर स्तव, संपूर्ण, वि. १७८८, मध्यम, पृ. ५, जैदेना., ले.- मु. महेन्द्रसागर, प्र.वि. श्लो.४४, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत-क्रियापद संकेत-प्रारंभ में ज्यादा, बाद में क्वचित, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ-प्रथम पत्र, (२६४११, ७४३९-४४). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. १३६६६." कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १९२१, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.स्थल. अहिपुर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४., पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, संशोधित, पू.वि. गा. ४४, (२४.५४११.५, ११४३७-४३). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंति: मोक्षं प्रपद्यन्ते. For Private And Personal Use Only Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, आदि: कल्या० यस्य० रागादि अंतिः सुगुरुप्रसादात्. १३६६७.” कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७४३, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले. स्थल. दीवबंदिरे, प्र. वि. मूल-श्लो. ४४; टीका ग्रं. ६०० प्र. पु. सर्व नं. ७२७. त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न क्रियापद संकेत, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२५.५x११.५, १-२४३४-४५). कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि सं., पद्य, आदि कल्याणमन्दिरमुदारमवद: अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य वि. १६५२, आदि: प्रणम्य पार्श्वमिष्ट: अंतिः श्लोकानामिहमङ्गलम्. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - " १३६६८. कल्याणमन्दिर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८४६, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना ले. स्थल वीरपुर, ले. पं. नायक विजय ( गुरु पं. जयविजय ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल-श्लो. ४४ टीका ग्रं. ६०० प्र. पु. सर्व ग्रं. ७२७. पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न - वचन विभक्ति संकेत - क्रियापद संकेत, अन्वय दर्शक अंक युक्त पाठ, त्रिपाठ, (२६X११.५, १- २X३१-४० ). ४७७ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, आदिः कल्याणमन्दिरमुदारमवद; अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते. कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, मु. कनककुशल, सं. गद्य वि. १६५२, आदि (१) प्रणम्य पार्श्वमिष्ट (२) कल्या० यस्य० इत्यनयो; अंतिः श्लोकानामिहमङ्गलम्. , १३६६९. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टवार्थ, संपूर्ण वि. १७१२ श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. ले. स्थल मालपुरा ले गणि दयासुन्दर, प्र. वि. मूल-गा. २१४., ( २६.५X११, ५X३३-४०). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण-टवार्थ, मागु, गद्य, आदि: भत्ति कहतां अन्तरङ्ग अति सुख प्रतइ पामइ. - १३६७०. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, पूर्ण, वि. १६९८, श्रेष्ठ, पृ. ३१ - १ (१) = ३०, जैदेना., ले. गणि अमृतसागर (गुरु उपा. शान्तिसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल - गा. २२४. पू. वि. गाथा १ से ४ नही हैं., ( २६११.५, ४३६-३८). ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदि:-; अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. ऋषिमण्डल प्रकरण- टवार्थ, मागु, गय, आदि:-: अंति: अनन्ता सुख प्रतई. १३६७१. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १३२-३ (७३, १२८, १३१)+१ (१०४) = १३०, जैदेना., पू. वि. बीच बीच व अंत के पत्र नहीं हैं. (२५.५४११.५ १५४४०-५१ ). " ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., पद्य, वि. १४वी, आदिः भत्तिब्भरनमिरसुरवर; अंतिः ऋषिमण्डल प्रकरण-टीका, गणि शुभवर्धन, सं., गद्य, आदि: (१) योभूद्युगादौशिवशुद्ध (२) ऋषभादिजिनवरेन्द्राणा; अंतिः१३६७३. ऋषिमण्डल स्तोत्र, संपूर्ण वि. १६१६, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना, प्र. वि. गा. २१०, पदच्छेद सूचक लकीरें (२६४११, १३x४२-४५). ऋषिमण्डल प्रकरण आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी आदि भत्तिब्मरनमिरसुरवर अंतिः सो लहइ सिद्धिसुहं. , " " १३६७४. ऋषिमण्डल स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७६३, श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना., प्र. वि. मूल-गा. २२४. पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा गा. ६ तक ही टबार्थ लिखा हैं., प्र.ले. श्लो. (५०९) यादृशं पुस्तके दृष्टं, (२५.५x१०.५, ५४३५-४७). . ऋषिमण्डल प्रकरण आ. धर्मघोषसूरि प्रा. पद्य वि. १४वी (संपूर्ण) आदि भत्तिब्भरनमिरसुरवर अंतिः सो लहइ " , J सिद्धिसुहं. For Private And Personal Use Only ऋषिमण्डल प्रकरण-टवार्थ, मागु, गद्य, (अपूर्ण), आदि (१) भक्ति कहतां भक्ति (२) प्रणम्य रम्य कमयक्त; अति:१३६७५. एकीभाव स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १७२९, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले. स्थल. उदयपुर, ले.- पं. यशसागर, पठ.पं. विचारसागर (गुरु पण्डित जसवन्तसागर ). प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. मूल श्लो. २६., (२५५११, १६४४५), एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., पद्य, ईस. ११वी, आदिः एकीभावं गत इव मया; अंतिः वादिराज मनुभव्य Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सहाय. एकीभाव स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदिः भो देवयो यं कर्मबन्ध; अंतिः प्रधान इत्यर्थः. १३६७६. जैनतिथिपत्र उदाहरण, अपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें-अल्प मात्रा में, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४११, १६४४३-५०). जैनतिथिपत्र उदाहरण, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य सम्यग् नाभेय; अंति:१३६७८. जयतिहुअण स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., (२४.५४१०.५, १५४५४-५७). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव विनवइ आणन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, वि. १६८७, आदिः (१) अत्र पूर्वं जयतिहुअण (२) जयतिहुअणथयवृत्ति; अंतिः भवे भवतु भो लोकाः. १३६७९. जयतिहुअण स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५९, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.- मु. कमलविजय-शिष्य(तपागच्छ), गच्छा.- आ. विजयसेनसूरि (गुरु आ. हीरविजयसूरि, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-गा.३०., त्रिपाठ, (२६४११, ५-६४४१-४४). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदिः जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः अभयदेव विनवइ आणन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, आदि: जयतिहुअणेत्यादि अत्र; अंतिः त्रिलोकीलोकस्तोषितः. १३६८०." जयतिहुअण स्तोत्र सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. मूल-गा.३०., टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२३.५४१०, ५४३५-४२). जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., पद्य, आदि: जयतिहुयणवर कप्परुक्ख; अंतिः विण्णवइ अणिन्दिय. जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, आदिः जयवन्तउ थाउ त्रिभुवन; अंतिः सहित वाञ्छा सहित. १३६८१. सन्तिकरं, सप्ततिशतजिन व लघुशान्ति स्तव सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १६५७, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. मयूरपाठकनगर, ले.- गणि तेजविजय (गुरु गणि मानविजय'), गच्छा.- आ. विजयसेनसूरि, प्र.वि. त्रिपाठ, (२६.५४११, ३-४४२८-५१). पे.-१. पे. नाम. सन्तिकरं सह अवचूरि, पृ. १अ-२आ सन्तिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सन्तिकरं सन्तिजिणं; अंतिः सिद्धी भणइ सिसो. सन्तिकरं स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः मुनिसुन्दरसूरिप्रणित; अंतिः विरोध उद्भावनीय., पे.वि. मूल-गा.१४. पे..२. पे. नाम. सप्ततिसतजिन स्तोत्र सह अवचूरि, प्र. २आ-४आ तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः तिजयपहुत्तपयासय अट्ठ; अंतिः निच्चमच्चेह. तिजयपहुत्त स्तोत्र-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, आदिः कृत्वा चतुर्णा सम्पू; अंतिः वृत्तिमोतनुत., पे.वि. मूल गा.१४. पे..३. पे. नाम. लघुशान्ति सह अवचूरि, पृ. ४आ-६अ लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., पद्य, आदिः शान्तिं शान्ति; अंतिः सूरिः श्रीमानदेवश्च. लघुशान्ति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६४४, आदिः सर्वसर्व सिद्ध्यर्थ; अंतिः यायात् प्राप्नुयात्., पे.वि. मूल-श्लो.१७. १३६८२. न्यायावतार सूत्र, न्यायायवतार सूत्र सह वृत्ति व सिद्धान्तकौमुदी का अर्थ, संपूर्ण, वि. १७४६, श्रेष्ठ, पृ. २८, पे. ३, जैदेना., ले.- पं. यशसागर, (२५४१०.५, १७४३९-४५). पे:१. न्यायावतार सूत्र, मु. दयारत्न, सं., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः चिन्मय प्रकृतिर्भूयः; अंतिः विवक्षातः कारकाणि., पे.वि. श्लो.६९. पे..२. पे. नाम. न्यायरत्नावली सह स्वोपज्ञ वृत्ति, पृ. २अ-२८आ For Private And Personal Use Only Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४७९ न्यायावतार सूत्र, मु. दयारत्न, सं., पद्य, आदिः चिन्मय प्रकृतिर्भूयः; अंतिः विवक्षातः कारकाणि. न्यायरत्नावली-स्वोपज्ञ वृत्ति, मु. दयारत्न, सं., गद्य, आदिः प्रणम्य परमानन्द; अंतिः प्रकाशः प्रमः., पे.वि. मूल श्लो.६९. पे.-३. पे. नाम. सिद्धान्तकौमुदी का अर्थ, पृ. २८आ-२८आ। जैन सामान्यकृति, प्रा.,मागु.,सं., गद्य, आदिः#; अंतिः #. १३६८४. बृहच्छान्ति सह टीका, संपूर्ण, वि. १७०७, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. स्तंभतीर्थबंदिर, ले.- गणि मुक्तिविजय (गुरु गणि अमृतविजय), गच्छा.- आ. विजयराजसूरि (गुरु आ. विजयआनन्दसूरि, तपगच्छ),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. त्रिपाठ, प्र.ले.श्लो. (६५७) जलाद्रक्षे स्थलाद्रक्षे, (२६४११, २-४४३६-४०). बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंतिः सिवं भवन्तु स्वाहा. बृहच्छान्ति-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, आदिः स्ताच्छान्तिः शान्ति; अंतिः विहिता बृहत्छान्तिः. १३६८५. बृहच्छान्ति स्तोत्र सह अवचूरि, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. राजनग्र मध्ये, ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. प्र.पु.-टीका-ग्रं. २१५., द्विपाठ, पू.वि. मूल प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.२ अपूर्ण तक लिखा हैं., (२६४११.५, २४३६). बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, (अपूर्ण), आदिः भो भो भव्याः श्रृणुत; अंति: बृहच्छान्ति-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, वि. १६५६, (संपूर्ण), आदिः स्ताच्छान्तिः शान्ति; अंतिः विलिखिता चेयम्. १३६८६. भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति व कथा, संपूर्ण, वि. १५७४, मध्यम, पृ. ४५, जैदेना., ले.स्थल. दाठानगर, ले.- मु. सोमरत्न (गुरु मु. कीर्ति, त्रिभुविआगच्छ), पठ.- मु. ज्ञानरत्न, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. १५७२; अनुवाद अध्याय-२८ कथा., (२६.५४११.५, १३-१४४३९-४६). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः गुणाकरसूरीणां कृतिः. भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, आदि: पुरामरावती जयिन्यां; अंतिः धर्मं च पालयामास. १३६८७. भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.स्थल. कालूग्राम, ले.- पण्डित महिमाकुशल (गुरु गणि चारित्रविजय), पठ.- रूपामानसिङ्घ (गुरु पण्डित महिमाकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ग्रं. १५७२, (२५.५४११, १५-१७४५३-५८). भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., गद्य, वि. १४२६, आदिः पूजाज्ञानवचोपायापगमा; अंतिः प्रायशः सन्ति . १३६८८." भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६६३, श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. ६१६; प्र.पु.-सर्वग्रं. ६९३., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित-टबार्थादि, (२६.५४११.५, १५४३२-३७). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः प्रणम्य परमानन्ददायक; अंतिः (१)मायातीतिमङ्गलम् (२)हि सा समाप्ता. १३६८९." भक्तामर स्तोत्र सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर अक्रमपुर, ले.- मु. निहितविजय; मु. कनकविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. मूल-श्लो.४४; टीका-ग्रं. ६१६; प्र.पु.-सर्व-ग्रं. ६९२. यह प्रति कनकविजयजी ने सं.१७७२ में राजनगर-अक्रमपुर में लिखी है. टीका का प्रतिलेखन निहितविजयजी ने स्ववाचनार्थ १७७३ में किया है. परंतु प्रत में भूल से १७६३ लिखा गया प्रतीत होता है., त्रिपाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें-संधि सूचक चिह्न, (२५४११.५, १-४४२८-४०). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. For Private And Personal Use Only Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., गद्य, वि. १६५२, आदिः (१) प्रणम्य परमानन्ददायक (२) भक्ता० यः संस्तुत; अंतिः (१)मायातीतिमङ्गलम् (२)सङ्ख्या निवेदिना. १३६९०. भक्तामर स्तोत्र की वृत्ति सह अर्थ बालावबोध, संपूर्ण, वि. १८४३, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सुरतबंदिर, पठ. मु. तेजविजय, (२६४११.५, १५-१६x४३-४८). भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, आदिः किलेति सत्ये अहमपि; अंतिः विचित्रपुष्पाम्. भक्तामर स्तोत्रवृत्ति-अर्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्तवन्त एहवा अमर; अंतिः ते जें जेनें विषे. १३६९१." कायस्थिति सह टीका, अपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. त्रिपाठ, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. गा.२० तक हैं., (२६.५४११, १-३४४१-४६). कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., पद्य, आदिः जह तुहदसणरहिओ; अंति: कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमण्डनसूरि, सं., गद्य, वि. १५वी, आदिः वर्द्धमानं जिनं नत्व; अंति:१३६९२." जयतियण स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, प्र. ६, जैदेना.,प्र.वि. ग्रं. २५०. मूल पाठ प्रतिक मात्र हैं., पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x१०.५, १५४३३-३८). जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, आदिः अत्रायं वृद्ध; अंतिः त्रिलोकलोकश्लाघितः. १३६९३." समयसार, महादण्डक व दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-चूर्णि की भव्य-अभव्य हुण्डी, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ११, पे. ३, जैदेना., प्र.वि. पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६४११, ११४४२-५०). पे.-१. पे. नाम. समयसार, पृ. १आ-९आ समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., गद्य, वि. १४६९, आदिः सव्वन्नु मोक्खमक्खन्; अंतिः सययं सिवं दिन्तु., पे.वि. अध्याय-१०. पे.२. पे. नाम. महादण्डक स्तोत्र, पृ. ९आ-१०आ महादण्डक स्तोत्र, प्रा., पद्य, आदिः भीमे भवम्मि भमिओ; अंतिः अणुत्तर पयन्देसु., पे.वि. गा.२०. पे.-३. पे. नाम. दशाश्रुतस्कंध की चूर्णी की हंडी, पृ. १०-११अ दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-चूर्णि की भव्य-अभव्य हुण्डी, संबद्ध, मागु., गद्य, आदिः एणइ आलावइ जिको; अंतिः इति तेहमाहिज लाभइ. १३६९५. भक्तामर स्तोत्र सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. मूल-श्लो.४४. प्र.पु.-सर्वग्रं. ३००., (२५४११, १३४३७-४२). भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः ईणइ पहिलइ काव्य; अंतिः काल घणी प्राप्ति हुइ. १३६९६." भक्तामर स्तव, नेमिनाथ व वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १७०८, श्रेष्ठ, पृ. ९, पे. ३, जैदेना., ले.स्थल. वडनगर, ले.- मु. देवविमल,प्र.वि. संशोधित, टिप्पण युक्त विशेष पाठ, (२६४११, ४४४२-५०). पे.-१. पे. नाम. भक्तामर स्तोत्र सह टबार्थ, पृ. १अ-८अ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, आदिः भक्तामरप्रणतमौलिमणि; अंतिः समुपैति लक्ष्मी. भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः भक्त जे अमरदेवता; अंतिः करी प्रगटपणे कह्यो., पे.वि. मूल-श्लो.४४. पे.२. पे. नाम. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति सह टबार्थ, पृ. ८अ-९अ ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, आदिः श्रीनेमीनाथ पाञ्च; अंतिः पण्डीतने सावधान हूती., पे.वि. मूल श्लो.४. पे.-३.पे. नाम. वीरजिन स्तुति सह टबार्थ, पृ. ९अ-९आ For Private And Personal Use Only Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु सिद्धिम्. पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु, गद्य, आदि जे भगवन्त केहवो छेई अंतिः क० सिद्धिप्रति पे. वि. मूल-श्लो. ४. १३६९७. भयहर स्तोत्र की वृत्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., (२५.५x११, ११४३-५०). नमिऊण स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, आदि: सिद्धार्थपार्थिवसुतं; अंतिः मूलमन्त्रेण पूजनीय. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३७०१. आषाढभूति चौपाई, संपूर्ण, वि. १७५९, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. पद्मावतीनगर, ले. पं. विचारसागर (गुरु पण्डित जसवन्तसागर), पठ. - गणि युक्तिसागर (गुरु पं. विचारसागर), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १६, गा.२२०, (२६×१०.५, १५X३१-३८). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७२४, आदि सकल ऋद्धि समृद्धिकर अंतिः होजो परम कल्याणो रे. १३७०५. नवस्मरण व लघुशान्ति, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. १४, पे. २, जैदेना., ( २४x१०.५, १२४३२-३८). पे. १. नवस्मरण, मु. मिन्न मित्र कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, (पृ. १अ १३आ), आदि नमो अरिहन्तार्ण० हवइ: अंतिः मोक्षं प्रतिपद्यन्ते., पे.वि. ९ स्मरण. नवकारमंत्र व उवसग्गहरं का प्रतिकपाठ मात्र एवं तिजयपहुत्त सूत्र नहीं हैं. पे. २. लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि सं., पद्य, (प्र. १३आ- १४आ), आदि शान्तिं शान्ति: अंतिः जैनं जयति शासनम् .. , पे.वि. श्लो. १७+२. ४८१ १३७०६. नवस्मरण, प्रतिअपूर्ण, वि. १७२६, मध्यम, पृ. ९-१(१) ८, जैदेना ले. मु. लावण्यविमल (गुरु पण्डित दानविमल), प्र. वि. ९ स्मरण, पू. वि. नवकार, उवसग्गहरं, तिजयपहुत्त एवं कल्याणमंदिर नही हैं., ( २५.५x१०.५, १३×३९-४७). नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा. सं., प+ग, आदि:-: अंति जैनं जयति शासनम्. १३७०७. सप्तस्मरण सह वृत्ति, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना., ले. स्थल. उग्रसेनपुरनगर, ले.- मु. उदयहर्ष (गुरु गणि हीरराज, खरतरगच्छ ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. मूल-७ स्मरण., ( २६×११, २३-२४४५७-६५). सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदिः अजिअं जिअ सव्वभयं; अंतिः भवे पास जिणचन्द.. सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., गद्य, वि. १३६५, आदि: अजितशान्ति जिनाधिपयो; अंतिः ख्यातोमुनीनांविभुः. १३७०८. सप्तस्मरण सह बालावबोध, संपूर्ण वि. १६९२ श्रेष्ठ, पृ. २४, जैदेना. ले. वल्लभ, प्र. वि. मूल-७ स्मरण.. (२६.५००११, १५९५२-५७) (4) ; सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि अजिअं जिअ सव्यभयं अंतिः भवे पास जिणचन्द सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय- बालावबोध, मागु., गद्य, आदिः (१) अजितं अजितनामा बीजउ (२) नमस्कृत्याजितं शान्त; अंतिः पार्श्वनाथ जिनचन्द. १३७०९. सप्तस्मरण सह बालावबोध, संपूर्ण, वि. १६३१, मध्यम, पृ. २४, जैदेना., ले. पं. रत्ना, पठ- श्राविका कुवरां, प्र. वि. मूल-७ स्मरण. प्र. पु. सर्व ग्रं. १२६५. दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२७४११, ११०४०४५) सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., पद्य, आदि उल्लासिक्कमनखनिग्गय अंतिः भवे पास जिणचन्द सप्तस्मरण- खरतरगच्छीय बालावबोध, मागु, गद्य आदि कवि श्रीजिनवल्लभसूरि अंतिः पार्श्वनाथ जिनचन्द १३७१०.” जिनरत्नस्तोत्रप्रकाश - १ प्रस्ताव, प्रतिपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., प्र. वि. प्रथम प्रस्तावे २१ स्तोत्र., पदच्छेद सूचक लकीरें संधि सूचक चिह्न-वचन विभक्ति संकेत प्रथम पत्र (२६.५०११, १७०४५४-६१)जिनस्तोत्ररत्नकोशः, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., पद्य, आदि: जयश्रियं ज्ञानतप; अंति: For Private And Personal Use Only १३७११.” प्रकरण स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. ११, जैदेना, दशा वि. विवर्ण- पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२०५११.५. १७४५५-६३). Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८२ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे. १. चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., पद्य, (पृ. १अ - २अ), आदि: (१) सावज्ज जोग विरई (२) चत्तारी मङ्गलं अरिहन: अंतिः कारणं निव्वुइ सुहाणं, पे.वि. मा.६३. पे. २. गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, (पृ. २अ - ३अ), आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंति: गोयमपुच्छा महत्थावि., पे.वि. गा.६४. पे. ३. जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., पद्य, (पृ. ३अ - ४आ), आदिः भुवणपईवं वीरं नमिऊण; अंतिः रुद्दाओ सुयसमुद्दाओ., पे.वि. गा. ५१. पे. ४. अजितशान्ति स्तव आ. नन्दिषेणसूरि प्रा. पद्य (पृ. ४आ-५आ), आदि अजियं जिय सव्वभयं अंतिः , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१) जिणवयणे आयरं कुणह ( २ ) जैनं जयति शासनम्., पे.वि. गा.४४. पे. ५. अजितशान्ति स्तवलघु अञ्चलगच्छीय कवि वीर गणि, प्रा., पद्य, (पृ. ५आ-६अ), आदि गब्भअवयार सोहम्मसुर अंतिः सुह सयल सम्पज्जए., पे.वि. गा. ८. पे. ६. अजितशान्ति स्तवगृहत् अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि सं., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदि: सकलसुखनिवहदानाय; अंतिः सङ्घस्य मुदं., पे.वि. श्लो. १७. पे. ७. कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., पद्य, (पृ. ६आ-७आ), आदि: कल्याणमन्दिरमुदारमवद अंतिः मोक्षं प्रपद्यन्ते, पे.वि. श्लो. ४४. , पे. ८. भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., पद्य, (पृ. ७आ- ९अ ) आदि भक्तामरप्रणतमौलिमणि अंतिः समुपैति लक्ष्मी. पे. वि. श्लो. ४४. पे.-९. पार्श्वजिन स्तवन- जीरावला, आ. महेन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. ९अ-१०अ ), आदिः प्रभुं जीरिकापल्लिवल; अंतिः महेन्द्रस्तवाह, पे.वि. श्लो. ४५. पे.-१०. ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., पद्य, वि. ११वी, (पृ. १०अ ११अ ), आदि: जयजन्तुकप्पपायव; अंतिः बोहित्थ बोहिफलो. पं.वि. गा.५०. पे.-११. पार्श्वजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., पद्य, (पृ. ११अ - ११आ), आदि: श्रीवामेयं विधुमधु; अंतिः एव लक्ष्मी विशेषा.., पे. वि. श्लो. १३. " १३७१२. स्तोत्र सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १४९८, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. ७ जैदेना. (२६.५४११, १०४५६-५८). पे.-१. आदिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि- शिष्य, सं., पद्य, (पृ. १अ - २अ ), आदिः ॐकार सकलत्रिलोककमला; अंतिः परब्रह्मैकलीनंमनः, पे.वि. श्लो. २५. पे. २. आदिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, (पृ. २अ -२ आ), आदि: ऐश्वर्यं सदने सदैव; अंतिः बोधि प्रदाने नमे:., पे.वि. श्लो. २४. पे.-३ . शान्तिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि - शिष्य, सं., पद्य, (पृ. २आ-३आ), आदिः नवज्योतिः स्फातिः; अंतिः विश्वसेनिज्जिनः, पे.वि. श्लो. २५. पे.-४. नेमिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., पद्य, (पृ. ३आ-४आ), आदिः शब्दब्रह्मांबुरांशे; अंतिः प्राग्भारगौरं यश:., पे.वि. श्लो. २६. पे.-५. पार्श्वजिन स्तवन, आ. सोमसुन्दरसूरि - शिष्य, सं., पद्य, (पृ. ४आ - ५आ), आदिः कीर्तिः स्फूर्ति; अंतिः स्वात्मावबोधमं मह:., पे.वि. श्लो. २५. पे. ६. महावीरजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि- शिष्य, सं., पद्य, (पृ. ५आ-६आ), आदिः स श्रीवीरजिनोस्तु अंतिः श्रीह्रीधृतिस्फातये., पे.वि. श्लो. २५. पे. ७. ज्ञानपंचमीपर्व स्तोत्र आ जिनकीर्तिसूरि सं पद्य (पृ. ६आ-६आ), आदि: नम्राखण्डलमण्डल: अंतिः ज्वल " . " बुद्धिलक्ष्मी:., पे.वि. श्लो. १३. १३७१३." साधुप्रतिक्रमणसूत्र, सकलार्हत् स्तोत्र आदि व स्तुति सङ्ग्रह, संपूर्ण वि. १८४२ मध्यम, पृ. १९, पे. २९ जैदेना., ले. स्थल. चिरोलानगर, ले.- मु. रूपविजय, पठ.- मु. नवलविजय, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. पदच्छेद सूचक लकीरें For Private And Personal Use Only Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८३ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ वचन विभक्ति संकेत-अल्प मात्रा में, (२५४११, ११४३१-३६). पे.१. पगामसज्झायसूत्र, संबद्ध, प्रा., गद्य, (पृ. १आ-४आ), आदिः (१) चत्तारि मङ्गलं (२) नमो अरिहन्ताणं; अंतिः वन्दामि जिणे चउवीसं. पे.२. सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (पृ. ४आ-६अ), आदिः सकलार्हत्प्रतिष्ठान; अंतिः धृष्टोजेनजिनोमय., पे.वि. श्लो.३८. पे.-३. पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., पद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः किं कर्पूरमयं सुधारस; अंतिः बोधिबीजं ददातु., पे.वि. श्लो.११. पे.४. नमस्कारस्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८आ), आदिः पञ्चानुत्तर सरणा; अंतिः भावतोहं नमामि., पे.वि. श्लो.२३. पे.-५. साधारणजिन स्तव, आ. जयानन्दसूरि, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः देवाः प्रभो यं; अंतिः जयानन्दमयप्रदेया., पे.वि. श्लो.९. पे.६. चैत्यवन्दना स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ९अ-११अ), आदिः देवोनेक भवार्जितो; अंतिः शेषश्रीविरतासयाः., पे.वि. श्लो.२८. पे.७. संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.,प्रा., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः संसारदावानलदाहनीरं; अंतिः देवि सारम्., पे.वि. श्लो.४. पे..८. कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. ११आ-११आ), आदि: कल्लाणकन्दं पढमं; अंतिः अम्ह सया पसत्था., पे.वि. गा.४. पे.-९. अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., पद्य, (पृ. ११आ-१२अ), आदिः अष्टमी अष्ट परमाद; अंतिः तस विघन दूरे हरे., पे.वि. गा.४. पे.-१०. पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमी, आ. उदयसमुद्रसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १२अ-१२आ), आदिः जय पास देवा करूं; अंतिः केरी सयल आस्या पुरणी., पे.वि. गा.४. पे..११. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, (पृ. १२आ-१३अ), आदिः श्रीसिद्धचक्र सेवो; अंतिः वाचक० उत्तम __सीस सवाई., पे.वि. गा.४. पे.-१२. सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., पद्य, (पृ. १३अ-१३आ), आदिः भत्ति जुत्ताण सत्ताण; अंतिः थुणन्ताणं कल्लाणगम्., पे.वि. गा.४. पे.-१३. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु., पद्य, (पृ. १३आ-१४अ), आदिः श्रीशत्रुञ्जय तीरथ; अंति: पाया ऋषभदास गुणगाया., पे.वि. गा.४. पे.-१४. अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १४अ-१४आ), आदिः मङ्गल आठ करी जस आगल.; अंतिः तपथी कोड कल्याणजी., पे.वि. गा.४. पे.-१५. रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरूचि, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१४आ), आदि: जयकारी जिनवर; अंतिः लब्धिविजय जयकार., पे.वि. गा.४. पे.-१६. साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., पद्य, (पृ. १४आ-१५अ), आदिः चम्पक केतकी पाडल; अंति: जो तुंसे देवी अम्बाई., पे.वि. गा.४. पे.-१७. दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मागु., पद्य, (पृ. १५अ-१६अ), आदि: सासण नायक श्रीमहावीर; अंतिः द्यो सरसती वाणीजी., पे.वि. गा.४. पे.-१८. पर्युषणपर्व स्तुति, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १६अ-१६अ), आदिः परव पजूसण पून्ये; अंतिः संतोषी गुण गायजी., पे.वि. गा.४. पे.-१९. शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., पद्य, (पृ. १६आ-१६आ), आदिः आगे पूरव वार नीवाणु; अंतिः कारिज सिद्धि हमारीजी., पे.वि. गा.४. पे.२०. पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., पद्य, (पृ. १६आ-१७अ), आदिः स्नातस्याप्रतिमस्य; अंतिः कार्येषु For Private And Personal Use Only Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची सिद्धिम्., पे.वि. श्लो.४. पे.:२१. ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १७अ-१७आ), आदिः श्रीनेमिः पञ्चरूप; अंतिः कुशलं धीमतां सावधाना., पे.वि. श्लो.४. पे:२२. ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १७आ-१८अ), आदिः समुद्र भूपाल कुल; अंतिः देवी जगतः किं लम्बा., पे.वि. श्लो.४. पे.२३. साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि , सं., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदि: कल्याणसारसवितानहरे; अंतिः भाव परमागम सिद्धसूरे., पे.वि. श्लो.१. पे.२४. साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., पद्य, (पृ. १८अ-१८अ), आदिः श्रीतीर्थराजपदपद्म; अंतिः वदाता ददतां शिवं वः., पे.वि. श्लो.१. पे.२५. महावीरजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः वीरं देवं नित्यं; अंतिः देवीदेयादम्बा., पे.वि. श्लो.१; प्र.पु.-४. पे:२६. बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः दिन सकल मनोहर; अंति: पुरो मनोरथ माय., पे.वि. गा.४. पे.२७. मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., पद्य, (पृ. १८आ-१८आ), आदिः एकादशी अति रुअडी; अंतिः सङ्घ तणा निशदिश., पे.वि. गा.४. पे.-२८. आदिजिन स्तुति, सं., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः प्रथम तीर्थपरान्ध; अंतिः जयवल्लीषु मेघ महोदयः., पे.वि. श्लो.१. पे.-२९. शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., पद्य, (पृ. १९अ-१९अ), आदिः शेत्रुञ्जय मण्डण; अंतिः तुझ पाय सेवता., पे.वि. गा.४. १३७१४. स्तवन, स्तोत्र, स्वाध्याय आदि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १८५४, श्रेष्ठ, पृ. ११, पे. २४, जैदेना., ले.स्थल. घाटिलानगर, ले.- पं. उत्तमविजय गणि, (२६४११.५, १४४४२-४५). पे.-१.४ मङ्गल पद, मु. उदयरत्न, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१आ), आदिः सिद्धार्थ भूपति सोहे; अंतिः उदयरत्न भाखे एम., पे.वि. गा.२०. पे.२.२४ जिनगणधरसङ्ख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १आ-२अ), आदिः सरस्वति आपो सरस वचन; ___अंतिः वृद्धिविजय गुण गाय., पे.वि. गा.९. पे..३. महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मागु., पद्य, (पृ. २अ-३अ), आदिः समरवि समरवि सारदाऐ; अंतिः कमल कलससूरीश्वर सीस., पे.वि. गा.४१. पे.४. पार्श्वजिन छन्द-शखेश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ३अ-३आ), आदिः सकल सुरासुर; अंतिः जिनहर्ष __ अकल अविनास., पे.वि. गा.८. पे.५. पूजाविधि स्तवन, मु. लालविजय, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-४अ), आदिः जिनचोविसे करु प्रणाम; अंतिः लालविजे पुजा गुण कहे., पे.वि. गा.११. पे:६. अष्टापदतीर्थ स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., पद्य, (पृ. ४अ-५अ), आदिः अष्टापद श्रीआदि; अंतिः जिनहर्ष नमुं करजोडी., पे.वि. गा.३२. पे.-७. नेमराजिमती गीत , मु. कवियण, राज., पद्य, (पृ. ५अ-५अ), आदिः समुद्रविजय कौ नेमि; अंतिः चरणे चित्त ल्यावोनै., पे.वि. गा.४. पे.८. पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ५अ-६अ), आदिः आदि हे आदि जिणेसरु; अंतिः वण्यसमय० __आपै सम्पदा., पे.वि. गा.११. पे:९. पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य , मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६अ), आदिः सकल सदा फल चिन्तामणि; अंतिः For Private And Personal Use Only Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४८५ पूरो सङ्घ जगीस हो., पे.वि. गा.५. पे:१०. औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-७अ), आदिः मङ्गलं करण नमीजे; अंति: नरकावासे नवि अवतरे., पे.वि. गा.२५. पे..११. पे. नाम. शीखामण, पृ. ७अ-७आ औपदेशिक छन्द, पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु., पद्य, आदिः भगवती भारती चरण; अंतिः रातो रङ्गचोल., पे.वि. गा.१६. पे..१२.२४ जिन परिवार सज्झाय, मागु., पद्य, (पृ. ७आ-७आ), आदिः चोवीस तीर्थंकरनो; अंति: कर जोडीने करु __प्रणाम., पे.वि. गा.५. पे-१३. शनिश्चर स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ७आ-८अ), आदिः यः पुरा राज्यभ्रष्टा; अंतिः पीडा न भवन्ति कदाचन., पे.वि. श्लो.९. पे..१४. राहु स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः ॐ नमो सैंहिकेयाय; अंतिः राहुस्तस्य सुखप्रद., पे.वि. श्लो.५. पे..१५.बृहस्पति स्तोत्र, सं., पद्य, (पृ. ८अ-८अ), आदिः ॐ बृहस्पतिः; अंतिः सुप्रतीस्तस्य जायते., पे.वि. श्लो.५. पे.-१६. सूर्याष्टक , कवि सिंह, सं., पद्य, (पृ. ८आ-८आ), आदिः रक्तवर्ण महातेजो; अंति: नामेन वाञ्छितम्., पे.वि. श्लो.११. पे.-१७. ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., पद्य, (पृ. ८आ-९अ), आदिः जगद्गुरुं नमस्कृत्य; अंतिः (१)नवग्रह पीडा न करें (२)शान्तिविधि श्रुतम्., पे.वि. श्लो.११. पे.-१८. शनिश्चर छन्द, कवि हेम, मागु., पद्य, (पृ. ९अ-९आ), आदिः अहि नर असुर सुरापति; अंतिः तुं प्रसन्न सनीसर.,पे.वि. गा.१२. पे.-१९. पे. नाम. चौवीसजिन स्तोत्र, पृ. ९आ-१०अ २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं., पद्य, आदि: आदौ नेमिजिनं नौमि; अंतिः मोक्षलक्ष्मीनिवासम्., पे.वि. श्लो.८. पे.-२०. गौतमस्वामी छन्द, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः मात पृथ्वी सुत; अंतिः ___ सौभाग्य दोलत सवाई., पे.वि. गा.९. पे.२१. गौतमस्वामी स्तोत्र, गणि विजयशेखर, मागु., पद्य, (पृ. १०आ-११अ), आदिः श्रीगौतम गुरु प्रभात; अंतिः विजयशेखर कहे सुविलास., पे.वि. गा.१३. पे.-२२. गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः वीर जिणेसर केरो सीस; अंतिः गौतम तुलै सम्पति कोड., पे.वि. गा.९. पे.-२३. पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., पद्य, (पृ. ११अ-११अ), आदिः अर्हन्तो भगवन्त; अंतिः कुर्वन्तु वो मङ्गलम्., पे.वि. श्लो.१. पे.२४. पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, सं.,मागु., पद्य, (पृ. ११अ-११आ), आदिः सकल भवीकचेतः कल्पना; अंतिः भवद्यार्णवः संस्तुत., पे.वि. श्लो.९. १३७१५. अगडदत्त रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. १२-२(३ से ४)=१०, जैदेना., ले.- डुङ्गरसी, प्र.वि. ढाल-१७, (२६४११, १५-१७४४१-४७). अगडदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मागु., पद्य, वि. १६७९, आदिः नाभिमहिपति सुत जयो; अंतिः रे अविचल सम्पद थाय. १३७१६. अजापुत्र रास व नक्षत्र गीत, पूर्ण, वि. १५६४, जीर्ण, पृ. ८-१(१)=७, पे. २, जैदेना., (२७४११.५, १८४६८). पे.-१. अजापुत्र चौपाई, मु. धर्मदेव, मागु., पद्य, वि. १५६१, (पृ. -२अ-७आ, पूर्ण), आदि:-; अंतिः हुइ मङ्गल रिद्धि., पे.वि. गा.३८२ प्रथम पत्र नहीं है. पे.२. नक्षत्र गीत, मु. धर्मदेव, मागु., पद्य, (पृ. ८अ-८आ, संपूर्ण), आदिः प्राणी एवशिदोहिलु; अंतिः धर्मदेव मुणिसरे., For Private And Personal Use Only Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८६ (+) www.kobatirth.org: पे.वि. गा.१५. - १३७१७. अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले. स्थल. सीकरानगर, ले. गणि सुखविजय ( गुरु गणि बुद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - ४३, गा. ७८१, (२५x१०.५, १३-१५X३७-४३). अजितसेनकनकावती रास मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७५१, आदि वीणा पुस्तक धारणी: अंतिः थास्यै लाभ सवाई हो. " १३७१८. अञ्जनासुन्दरीपवनञ्जय रास, संपूर्ण वि. १७१५, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. ले. स्थल. अहमदनगर, ले. गणि कीर्तिसागर, प्र. वि. खण्ड-३ / २२ ढाल, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५४११ १४-१५४४३-५० ). अंजनासुन्दरी रास. मु. पुण्यसागर मागु पद्य वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. १३७१९. अञ्जनासुन्दरीपवनञ्जय रास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८ जैदेना. प्र. वि. खण्ड-३/ २२ ढाल, टिप्पण युक्त विशेष पाठ दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x१०, १५-१७०४०-४८). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. १३७२०. आणन्दविमलसूरि रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना. (२६.५x१०.५, ११x४०-४१). आणन्दविमलसूरि रास, मु. वासण, मागु., पद्य, वि. १५९७, आदिः सकल पदारथ पामीइ जपता; अंतिः ए आणी नरमल चित्त. " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , १३७२१.” विजयसेनसूरि रास व आरामनन्दन प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १७१६, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. धोराजीनगर, ले. - मु. भीमकुशल (गुरु मु. भक्तिकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत, (२५.५४११, १५-१६४३४-४०). पे. १. विजयसेनसूरि रास, मु. दयाकुशल, मागु पद्य वि. १६४९ (पृ. १अ- ८अ ), आदि सरसति मति अति निरमली; अंति: मनरडिंग भासई पे.वि. परिमाण गाथा. १४५ गा. १४५: मूल-गा. १४१. पे. २. आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. ८अ - २०आ), आदि: सुख अनन्त सुख अनन्त अंतिः तस भगवती सार करयो, पे.वि. गा.३६७. १३७२२." आरामनन्दन प्रबन्ध संपूर्ण वि. १६८१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल. वेराउलबंदिर, ले. मु. रविकुशल (गुरु मु. दयाकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ३७१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५x१०.५. १६-१७४४३४७), आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६८१, आदि: सुख अनन्त सुख अनन्त; अंतिः तस भगवती सार करयो. For Private And Personal Use Only , १३७२३. आर्द्रकुमारऋषि चउपई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना ले. मु. सत्यसागर, प्र. वि. ढाल १९ गा.३०१, ग्रं. " ४५१, (२५.५४११, १३४४२-४५). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना अंतिः प्रति देउल गेहे रे. १३७२४ आषाढभूति रास, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. ढाल १६ ग्रं. ३५१ (२६४११, १५९५४). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे. १३७२५. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. गणि तेजसागर (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि ), प्र. वि. ढाल-४१, गा.५३९, ग्रं. ८७५, (२५.५x११, १५X४६-४९). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन; अंतिः दिन दिन आस. १३७२६. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण वि. १६९५ श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना. ले. मु. सकलचन्द्र (गुरु मु. प्रभाचन्द्र अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खण्ड-३/ ढाल २९, ग्रं. ७७५ ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५.५१०, Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ 94x80-48). " ऋषिदत्तासती रास मु. विजयशेखर, मागु पद्य वि. १६७७ आदि विमल विहङ्गम वाहनी अंति: गणि० वषाणइरी. १३७२७. कयवन्नाश्रेष्ठि रास, संपूर्ण वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना, ले. स्थल थिराग्राम ले गणि लब्धिविजय (गुरु मु. वृद्धिविजय), प्र. वि. ढाल -३१, ( २४.५x१०.५, १६-१८४३५-४३). " , कयवन्नाश्रेष्ठि रास, मु. जयरङ्ग, मागु., पद्य, वि. १७२१, आदिः स्वस्ति श्रीसुष; अंतिः करण मन उल्लस्येजी. १३७२८. करावन्ना रास, पूर्ण, वि. १८वी श्रेष्ठ, पृ. १४-१ ( १ ) = १३, जैदेना. ले. स्थल वाघरा, ले. गणि चतुरविजय, प्र. वि. प्रतिलेखक की भूल से गा.१५ वी नही लिखने के कारण दीपविजय के गुरु देवविजय ऐसा पढा जाता हैं, लेकिन जैन गु. क. भाग-५ पृष्ठ, १२ में मानविजय के शिष्य दीपविजय ऐसी पूर्ण माहिती है., (२५.५x११, १३-१६×३४-४१). कयवत्रा रास, मु. दीपविजय, मागु पद्य वि. १७३५, आदि:- अंतिः निरन्तर सुखप्रदं १३७२९. कलावती रास, संपूर्ण, वि. १६८४ गा. ८४, (२५x११, १३x३५-३९). कलावतीसती रास, कवि विजयभद्र मागु, पद्य, आदि भरतक्षेत्रइ रे नयरी अंतिः कवि भणि० वरसइ सयंवरा १३७३०. कुमारपालभूपाल रास, संपूर्ण, वि. १८७५, श्रेष्ठ, पृ. १०२, देना., ले. स्थल. पाटडीनगर, ले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, ( २६११.५, १४-१५X३९-४३). कुमारपाल रास. मु. जिनहर्ष, मागु, पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमुं अंतिः ओगणत्रीस ढाळ गावो हो. १३७३१.“ कुमारपालराजा रास, संपूर्ण वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. ९५, जैदेना. ले. स्थल पत्तननगर, ले. मु. तेजरत्न ( गुरु मु. धनरत्न, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - १२९, गा. २८७६, ग्रं. ४१६०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, प्र.ले. श्लो. (६५३) भग्न पुष्टि कटि ग्रीवा (५३२) तिलात् रक्षे जला रक्षेत् (१४१) यादशं पुस्तकं कृत्वा, (२५.५४११.५, १५४४८-५४). ; - - कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४२, आदि: श्रीसरसति भगवति नमुं; अंतिः ओगणत्रीस ढाळ गावो हो. १३७३२. कुलध्वज रास, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. ५, जैदेना. प्र. वि. गा.१३८ (२६४११, १६-१७९४८-५१). कुलध्वज रास- शीलोपरी, वा. धर्मसमुद्र मागु, पद्य वि. १५८४ आदि द्यउवर सारदा सामिणीए अंतिः सील सुख इम " सम्भली. श्रेष्ठ, पृ. ७ जैदेना ले. स्थल नवानगर, ले. ॠ भीम ( अञ्चलगच्छ), प्र. वि. " " १३७३३. कुलध्वजराजा कथा, संपूर्ण, वि. १८३८, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले. स्थल. आडीसरनगर, ले. पं. विवेकविजय, पठ. - मु. नायक विजय (गुरु पं. विवेकविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल ३० गा.५३८, (२३४१०.५, १३-१५९३१-३४)कुलध्वजराजा कथा, मु. लालचन्द, मागु., पद्य, वि. १६९३, आदि: लक्ष्मी विसाला फलकारी; अंति: (१) सुणजो दइ कान (२) दीप कहे सुणजो दइ कान. १३७३४. क्षेमसमास चौपाई, संपूर्ण, वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. २२, जैदेना., प्र. वि. ६ उल्लास, गा. ५७८, ( २६११, १३-१४४३७-४१). जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-क्षेत्रसमासचौपाई, मु. सुमतिसागर, संबद्ध, मागु., पद्य, वि. १५९४, आदिः सरसति सामिणि करुं; अंतिः नवे निधि होइ तस घरे. ४८७ " १३७३५. खिमऋषि रास संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. १३, जैदेना. प्र. वि. खण्ड-३, गा.५१२ (२६४११, १५-१९०४६-४९). खिमऋषि बलिभद्र यशोभद्रादि रास, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५८९, आदिः भारति भगवति मनि धरी; अंतिः प्रहि करूं प्रणाम. १३७३६. गजसुकमाल रास, संपूर्ण वि. १७६३ श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना, प्र. वि. ढाल -३०, गा. ५६१ प्र. पु. मूल श्लो. ७५०, 7 (२०४१०.५, ११४३२-३८). गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूर मागू पद्य वि. १६९९ आदि नेमिसर जिनवरतणा चरण: अंतिः जिणवर चरण नमीजे छे.. For Private And Personal Use Only Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३७३७. गिरनार उद्धार, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. मधुमतीबंदिरे, ले.- पं. चतुरकुशल, प्र.वि. ढाल-१४, गा.१९९, (२६x१०.५, १३४३६-४१). गिरनारतीर्थोद्धार रास, पण्डित नयसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः सयल वासव सयल वासव; अंतिः आपो सुख मङ्गळ मुदा. १३७३८. गिरनार महिमोद्धार, संपूर्ण, वि. १७२२, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. सागवाडानगर, ले.- मु. विद्याविमल, प्र.वि. ढाल-१३, गा.१८०, (२४.५४१०.५, ११४३४-३७). गिरनारतीर्थोद्धार रास, पण्डित नयसुन्दर, मागु., पद्य, आदिः सयल वासव सयल वासव; अंतिः आपो सुख मङ्गळ मुदा. १३७३९." गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. उग्रपुर, ले.- पं. गोपाल, प्र.वि. गा.५२, पदच्छेद सूचक लकीरें, (२६x१०.५, ९x४०).. गौतमस्वामी रास , उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः वृद्धि कल्याण करो. १३७४०. गौतमस्वामी रास व वीसविहरमानजिन नाम, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., (२६४१०.५, ९४३४-४०). पे.-१. गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ , मागु., पद्य, वि. १४१२, (पृ. १अ-६अ), आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः नितनित मङ्गल उदय करो., पे.वि. गा.५०. पे.२. विहरमान २० जिन नाम, मागु., गद्य, (पृ. ६आ-६आ), आदिः सीमन्धरजी युगमन्धरजी; अंतिः देवजसजी देवऋद्धि. १३७४१. चन्द्रकेवलि रास, संपूर्ण, वि. १८१९, मध्यम, पृ. २५८, जैदेना., ले.स्थल. आंतरोली, ले.- मु. माणिक्यविजय (गुरु पं. दीपविजय गणि), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. खण्ड-४ उल्लास,१११-ढाल, गा.२३९४, ग्रं. ६९३९, (२६४१२, १५-१७४२२ ४७). श्रीचन्द्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७७०, आदिः सुखकर साहिब सेवीइं; अंतिः भणतां मंगल मालाजी. १३७४२. गौतमस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८७८, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले.स्थल. मेडता, पठ.- साध्वीजी चनणा, प्र.वि. गा.४०, (२५४११, ९४३४-३६). गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु., पद्य, वि. १४१२, आदिः वीर जिणेसर चरण कमल; अंतिः सूरि इम भणे ए. १३७४३. गुणकरण्डकगुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. १५, जैदेना., ले.स्थल. आडिसर, ले.- पं. विवेकविजय गणि (गुरु गणि शुभविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२६, गा.४९३, (२६४११.५, १७X४३-४४). गुणकरण्डकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः दिन दिन आणन्द १३७४४. गुणावली रास, संपूर्ण, वि. १८१७, श्रेष्ठ, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. राणकपूर, ले.- पण्डित केसरविजय, पठ.- मु. प्रेमविजय (गुरु पण्डित केसरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२६, गा.४९४, (२३.५४१०.५, १५-१६४३६-३७). गुणकरण्डकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७५१, आदिः श्रीअरिहन्त अनन्त; अंतिः दिन दिन आणन्द. १३७४५. गुणसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.- पं. कस्तुरविजय, प्र.वि. ढाल-३६, गा.७७५, (२६४१२, १५४४१-४२). पुण्यपालगुणसुन्दरी रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६३, आदिः सकलसिद्धि दायक सदा; अंतिः रच्यो० धणकण मङ्गलमाल. १३७४६. गुणसुन्दरी रास, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना., ले.- गणि शुभविजय, प्र.वि. ढाल-३६, गा.७५७, For Private And Personal Use Only Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४८९ (२३४१०.५, १६४३७). पुण्यपालगुणसुन्दरी रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६३, आदिः सकलसिद्धि दायक सदा; अंतिः रच्यो० धणकण मङ्गलमाल. १३७४७. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १७६५, श्रेष्ठ, पृ. ६९, जैदेना., ले.स्थल. पत्तननगर, ले.- गणि ऋद्धिविजय (गुरु मु. प्रेमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. खण्ड-६/ १०२ढाल, (२५४११, १७४४६-४९). चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः श्रीजिननायक समरीइं; अंतिः सफल फली सवि आस. १३७४८. चन्दराजागुणावलीप्रेमलालच्छी चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३९, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-४४, (२६४११.५, १३ १४४३८-४०). चन्दराजागुणावली चरित्र, मु. दर्शनविजय, मागु., पद्य, वि. १६४४, आदिः श्रीसुषदायक जिनवरु; अंतिः दिन दिन अधिक जगीश रे. १३७४९. चारप्रत्येकबुद्ध रास- नमिराजा रास, प्रतिपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८, जैदेना., ले.स्थल. दशरथपूर, ले.- गणि शुभरत्न, प्र.वि. मूलअंश मात्र अध्याय-३ ढाल-१७., (२५४१०.५, ११-१२४३३). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदि:-; अंति:१३७५०. पञ्चपरमेष्टि रास, संपूर्ण, वि. १८२२, श्रेष्ठ, पृ. ३३, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४१, गा.८५७; प्र.पु.-मूल-ग्रं. ११५१, (२६४१२, १५-१७४३४-४३). नमस्कार महामन्त्र चौपाई, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६२, आदिः अरिहन्त आदि देईनै; अंतिः वाधो जय सुविशाला. १३७५१. केशीगुरुपरदेशी प्रतिबोध, संपूर्ण, वि. १८०१, मध्यम, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. पालीनगर, ले.- गणि गम्भीरहंस, प्र.वि. ढाल-४१, गा.५९४, (२६४११, १५४३८-४६). केशीगणधर परदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचन्द, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणमी श्रीअरिहंत; अंतिः पार समकित सुद्ध आधार. १३७५२. पुरन्दरकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७०२, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना., ले.- मु. कनकविमल, प्र.वि. ढाल-१२, गा.३७८, (२५४१०.५, ११-१२४३०-४०). पुरन्दरकुमार रास, वा. मालदेव, मागु., पद्य, आदिः वरदाई श्रुतदेवता; अंतिः सील व्रत पालउ रे. १३७५३. चारप्रत्येकबुद्ध रास, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले.स्थल. लुणेराग्राम, प्र.वि. खण्ड-४, ढाल-४४, गा.८७०, ग्रं. १२२९, (२६४११.५, १५-१७४४६-५०). ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६६५, आदिः श्रीसिद्धारथ कुलतिलउ; अंतिः आणंद लीलविलास. १३७५४. केसीवचनाप्तपरदेशी प्रतिबोध, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. २८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४१, गा.५९१, (२५४११, १३४४२). केशीगणधर परदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचन्द, मागु., पद्य, वि. १८वी, आदिः प्रणमी श्रीअरिहंत; अंतिः पार समकित सुद्ध आधार. १३७५५. आत्मव्यापकत्वउत्थापकवादस्थलादि सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. ५, पे. ५, जैदेना., ले.- मु. अमरसागर, (२५.५४११.५, २१x६५). पे.-१. आत्मव्यापकत्वोत्थापकस्थल, सं., गद्य, (पृ. १अ-३आ), आदिः ननु आत्माव्यापको; अंतिः आत्मद्रव्यमपि घटते. पे..२. मनोनित्यत्वनिषेधकस्थल, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., गद्य, (पृ. ३आ-५अ), आदिः ननु मनो नित्यं; अंतिः परेषामुपपद्यते. For Private And Personal Use Only Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir RS. ४९० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची पे.-३. सत्व खण्डनपरिहार स्थल, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., गद्य, (पृ. ५अ-५आ), आदिः ननूत्पादव्ययध्रौव्य; ___ अंतिः सम्बन्धाविशेषात्. पे.४. द्रव्यखण्डनन्याय, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., गद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदि: ननु द्रव्यस्य द्रव्य; अंतिः क्रियावत्वस्येति. पे-५. प्रमाणसाधनोपायनिरासस्थल, सं., गद्य, (पृ. ५आ-५आ), आदिः शुभवद्भिर्भवद्भिरायु; अंतिः स्थितिमिति. १३७५६. प्रियमेलक रास, अपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. ढाल-८ गा.७ तक हैं., (२५४१०.५, ११४३४-३८). प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, वि. १६७२, आदिः प्रणमुं सद्गुरु पाय; अंति:१३७५७. बूढा रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २४-१६(१ से १६)=८, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-२२, (२७४१०.५, ८४३७-३८). बुढ़ापा रास, मु. चन्द, राज., पद्य, वि. १८३६, (संपूर्ण), आदिः दयाज माता वीनवु; अंतिः सुणौ कलियुग निसाणी. १३७५८." भरतेश्वरबाहुबली रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., (२६४११, १३४४०-४३). भरतेश्वरबाहुबली रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., पद्य, वि. १२४१, आदिः रिसह जिणेसर पय पणमेव; अंतिः सो नरु __ नवनिधि लहइए. १३७५९. मत्सोदरकुमार रास, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ९-३(१ से ३)=६, जैदेना., ले.- गणि लक्ष्मीविजय, पठ.- गणि जयविजय, प्र.वि. गा.१५७, पू.वि. गाथा ५६ तक नहीं हैं., (२६.५४११.५, ११-१२४४०-४१). मत्सोदरकुमार रास, गणि साधुकिर्ति, मागु., पद्य, आदि:-; अंतिः रचीओ रास० पूगइ आस. १३७६०." मदनधनदेव रास, संपूर्ण, वि. १८६९, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. पाटणनगर, प्र.वि. ढाल-१९, गा.४६२, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५४१२.५, १४४३६-३७). मदनधनदेव रास, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, वि. १८५७, आदिः विहरमान प्रभु राजता; अंतिः वर नाम० मङ्गलमाल. १३७६१. मानतुङ्गमानवती रास, पूर्ण, वि. १७९४, श्रेष्ठ, पृ. ४३-१(१)=४२, जैदेना., ले.स्थल. रवीग्रामे, ले.- पं. कान्तिविजय (गुरु गणि जीवणविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-४७, (२५.५४११, १४४३८-३९). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदि:- अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे. १३७६२. मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १८१९, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., प्र.वि. ढाल-४७, (२४.५४११, १७४३५-४०). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे.. १३७६३." मानतुङ्गमानवती रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.- गणि कपूरविजय (गुरु मु. रूपविजय), पठ. मु. लाभविजय (गुरु गणि कपूरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-४७, संशोधित, (२६४१२, १८४४२-४९). मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७६०, आदिः ऋषभजिणन्द पदाम्बुजे; अंतिः घरघर मङ्गलमाल हे... १३७६४. मुनीपति रास, संपूर्ण, वि. १७९२, श्रेष्ठ, पृ. ५८, जैदेना., ले.स्थल. धायताग्राम, ले.- मु. लक्ष्मीचन्द (गुरु ऋ. जसराज), पठ.- कल्याणजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-४१, (२६.५४१२, १०-१२x२९-३३). मुनिपति रास, मु. रव, मागु., पद्य, वि. १७१९, आदिः श्रीजदुनायक समरीइं; अंतिः परवरतो ए सोभागके. १३७६५. मृगाङ्कलेखा रास, संपूर्ण, वि. १७८७, श्रेष्ठ, पृ. २८, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-४१, गा.८७६. प्रतिलेखन पुष्पिका कालप्रभाव से अक्षर फिक्के पड गये हैं., (२५४११, १५-१७४३८-४६). मृगाङ्कलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७४८, आदिः जिनवर हितकर सदा; अंतिः कहे जिनहरषमुणिन्द. १३७६६. मृगावती रास, स्वाध्याय व श्लोक, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. १६, पे. ३, जैदेना., ले.- गणि तत्त्वविजय (गुरु गणि For Private And Personal Use Only Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ www.kobatirth.org: देवविजय), गच्छा. आ. विजयदेवसूरि प्र.ले.पु. मध्यम (२६४११, १५X३२-३९). पे. १. मृगावती रास उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु, पद्य, (पृ. १- १६अ ), आदि सिद्धारथ नरपति कुलि; अंतिः भरू पुण्य तणा घडा., पे.वि. गा. ४१६. पे. २. पे. नाम. सीखामण स्वाध्याय, पृ. १६-१६अ औपदेशिक राज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु, पद्य, आदि आदित्य जोइने अंतिः वन्दुं श्रीमहावीर, पे.वि. गा. ८. पे.-३. जैन सामान्यकृति *, प्रा., मागु., सं., गद्य, (पृ. १६अ - १६अ ), आदि: #; अंति:#., पे. वि. प्र. पु. १+१. १३७६७. रत्न रास, अपूर्ण, वि. १८०२ श्रेष्ठ, पृ. ६-१ (५) ५. जैदेना ले. स्थल पलांसुआ ग्राम ले. पं. तिलकविजय (गुरु गणि हेमविजय) प्र.ले.पु. मध्यम ( २६४११.५, १७०४४५-५०/ रत्न रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७५८ (पूर्ण), आदि: सकल समीहित पूरण सामि; अंतिः कथन० जयकर जगतगुरु, " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - " १३७६८. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८७४, श्रेष्ठ, पृ. ५०, जैदेना ले. स्थल, पाटडी, ले. पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. खण्ड-खंड४ / ६६ ढाल प्र.पु.-मूल-ग्रं. १५७२, प्र.ले. श्लो. (६२०) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, ( २६४११, १३-१५X३५-४७). रत्नपातरत्नावती चौपाई. मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७६०, आदि सकल श्रेणि में अंतिः मोहनविजय , विलासजी. १३७६९.” रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १७६८, श्रेष्ठ, पृ. ३१, जैदेना., ले. स्थल. पत्तननगर, ले. पं. अमरविजय (गुरु पं. नयविजय), प्र.ले.पु. मध्यम प्र. वि. खण्ड-खंड४ / ६६ दाल, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६४११-५, १५-१८४५१-५८). रत्नपालरत्नावती चौपाई. मु. मोहनविजय, मागु पद्य वि. १७६०, आदि सकल श्रेणि में अंतिः मोहनविजय विलासजी. " ४९१ , १३७७०. रत्नपाल रास, संपूर्ण, वि. १८२०, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले. स्थल. विरव, प्र. वि. खण्ड - खंड ४ / ६६ ढाल प्र.पु.-मूल-ग्रं. २२८५, ( २४.५११, १७४३४-४१ ). रत्नपालरत्नावती चौपाई. मु. मोहनविजय, मागु, पद्य, वि. १७६०, आदि सकल श्रेणि में अंतिः ऋषी चारीत्र पाले. १३७७१. राजसागरसूरिनिर्वाण रास, अपूर्ण, वि. २०वी श्रेष्ठ, पृ. १६-२ (१४ से १५ ) - १४, जैदेना. प्र. वि. गा. २६६ (२५४११, १२x२९-३६). राजसागरसूरिनिर्वाण रास, आ. तिलकसागरसूरि मागु पद्य वि. १७२१ आदि वर्द्धमान जिनवर अंतिः लगि ऐ जीवयो गणधार. זי १३७७२. रूपचन्द्रकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७६९, श्रेष्ठ, पृ. ६०, जैदेना., ले. स्थल. दसाडा नगर, ले. पं. विवेकविजय (गुरु पं. चतुरविजय) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. खण्ड-६, (२५.५४११.५, १३-१५४४०-४६) रूपचन्द्रकुमार रास, पण्डित नयसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १६३७, आदि आदि जिणवर आदि जिणवर; अंतिः निश्चय अफल्यां फलि १३७७३. रूपचन्द्रकुमार रास, पूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६७, जैदेना, पू. वि. अंतिम पत्र नहीं है. (२६४११, १३-१६४४१-४८). रूपचन्द्रकुमार रास, पण्डित नयसुन्दर मागु, पद्य, वि. १६३७, आदि: (१) आदि जिणवर आदि जिणवर (२) अर्हतसिद्धगणेन्द्रो; अंति: For Private And Personal Use Only १३७७४. रूपसेनकुमार रास, संपूर्ण वि. १८५९, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना, ले. स्थल. सणवानगर, ले. मु. लाभविजय, प्र. वि. ढाल३६. गा.७१३, (२५.५४१२, १६-१८४३४-३९). रूपसेनकुमार रास, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १७७८, आदिः विश्वविधाता विरजि: अंतिः घरी घरी कोड कल्याण. Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १३७७५. रोहणीयाऋषी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.३४५, (२५४११, १६-१८४३५-४५). रोहिणीयाचोर रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., पद्य, वि. १६८८, आदिः सार सुकोमल बुद्धि; अंतिः सुष पामे चिर कालोजी. १३७७६. अशोकचन्द्रनृपतिरोहिणी रास, संपूर्ण, वि. १८६४, श्रेष्ठ, पृ. ४६, जैदेना., ले.स्थल. द्रांगद्रानगर, ले.- पं. उत्तमविजय, पठ.- श्रा. अमरसी कानजी, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-३१, (२५.५४१२, १४४३४-४४). रोहणी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७७४, आदिः सुखकर श्रीसङ्घसरु; अंतिः पोहचे मनि आस रे. १३७७७. ललिताङ्गकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. जंबूसर, ले.- मु. दीपविजय (गुरु मु. दानविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२७; प्र.पु.-मूल-६८९,, कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११.५, १४४३६-३९). ललिताङ्गकुमार रास, मु. दानविजय, मागु., पद्य, वि. १७६१, आदिः सकल कुशलकमलासदन; अंतिः धर्मपक्षनो रास १३७७८. रूपसेनकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७८२, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. मार्तंडपुर, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-३६. प्रतिलेखक का ना अस्पष्ट है., ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२४४१०.५, १७-२३४४३-५४). रूपसेनकुमार रास, मु. देवविजय, मागु., पद्य, वि. १७७८, आदिः विश्वविधाता विरजि; अंतिः घरी घरी कोड कल्याण. १३७७९. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८५७, श्रेष्ठ, पृ. १०१+१(११)=१०२, जैदेना., ले.- गणि रूपसागर (गुरु पं. धनसागर), गच्छा.- आ. जिनेन्द्रसूरि, प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-१०८, ४ उल्लास, गा.२६५८, प्र.ले.श्लो. (१) यादृशं पुस्तकं दृष्टं; (४६९) भग्न पृष्टि कटी ग्रीवा, (२५४११.५, १६४३८-३९). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १३७८०. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८४२, श्रेष्ठ, पृ. ९९, जैदेना., ले.स्थल. रामवावग्राम, पठ.- मु. विनयविजय (गुरु गणि वनीतविजय, तपागच्छ), ले.- मु. क्षमाविजय (गुरु उपा. रत्नविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-१०८, ४ उल्लास, (२५.५४११.५, १५-१७४३३-४२). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १३७८१. चन्दराजा रास, संपूर्ण, वि. १८४९, श्रेष्ठ, पृ. ९५-१(१६)=९४, जैदेना., ले.स्थल. द्रागद्रा, ले.- पं. हर्षविजय (गुरु गणि उत्तमविजय), प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. ढाल-१०८, ४ उल्लास, (२६४१२, १६x४०-४४). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १३७८२." चन्दराजा चरित्र, संपूर्ण, वि. १८०९, श्रेष्ठ, पृ. ८२, जैदेना., ले.स्थल. आडिसर, ले.- गणि शुभविजय (गुरु गणि रत्नविजय), पठ.- मु. विनितविजय (गुरु गणि शुभविजय),प्र.ले.पु. विस्तृत,प्र.वि. ढाल-१०८, ४ उल्लास, गा.२६५४, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, प्र.ले.श्लो. (५०६) यादृशं पुस्तकं दृष्ट्वा; (५१८) तैलाद्रक्षे ज्जलाद्रक्षेत्; (५४८) यावत् गङ्गातटे भाति; (४६२) मङ्गलं लेखकस्यापि, (२५.५४११.५, १७४४३-४४). चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., पद्य, वि. १७८३, आदिः प्रथम धराधव तीम; अंतिः वर्णव्या गुण चन्दना. १३७८३. चम्पकमालासती रास, संपूर्ण, वि. १७वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., प्र.वि. गा.९१, (२१.५४१०, ११४३६). चम्पकमाला रास, मागु., पद्य, आदिः नमिय निरंजन जिनवरू; अंतिः सञ्चइ ए निरमल पुण्य. १३७८४. चित्रसम्भूतिऋषि चौपई, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., प्र.वि. ढाल-३९; प्र.पु.-मूल-गा.७८९,, (२६४११, १५ __ १६४५१). चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७३१, आदिः प्रथम नमुं परमेसरु; अंतिः दीइं दोलति दीदारु रे. १३७८५." चित्रसेनपद्मावती रास, संपूर्ण, वि. १७६४, श्रेष्ठ, पृ. ३७, जैदेना., प्र.वि. ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२३४९.५, १७-१८४४६-४७). For Private And Personal Use Only Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४९३ चित्रसेनपद्मावती रास, मु. कान्तिसागर, मागु., पद्य, वि. १७५७, आदिः आदि जिनेसर आदिकर; अंतिः ऋद्धि वृद्धि सार रे. १३७८६. जम्बूस्वामीपञ्चभव रास, संपूर्ण, वि. १६९५, श्रेष्ठ, पृ. १६, जैदेना., ले.- ऋ. नीबा (गुरु ऋ. केशव), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-३०, गा.४८८, (२५.५४१०.५, १४-१५४४५-५०). जम्बूस्वामी चरित्र, मु. मल्लिदास, मागु., पद्य, वि. १६४९, आदिः सरसति सरस सुकवि; अंति: गायो जग आधार. १३७८७. जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८४४, श्रेष्ठ, पृ. ४३, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर, ले.- पं. नायकविजय (गुरु पं. जयविजय), (२६४११.५, १२-१३४३९-४१). जम्बूस्वामी रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७३९, आदिः सारद सार दया करो आपो; अंतिः आदरयो जिनवाणीजी. १३७८८. जम्बूस्वामी रास व विदेहतीर्थकर स्थिति, संपूर्ण, वि. १७८४, श्रेष्ठ, प्र. ३७, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. बर्हानपुर, (२६.५४११.५, १२-१३४३४-३९). पे..१. जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, वि. १७३८, (पृ. १आ-३७आ), आदिः प्रणमी पास जिणन्दना; __अंतिः नितु कोडि कल्याण., पे.वि. ढाल-३५. पे.२. विदेहतीर्थकर स्थिति, प्रा., पद्य, (पृ. ३७आ-३७आ), आदिः सिद्धानि गोयजीवा; अंतिः सतरसधणुयाइन्दीहंतू., पे.वि. गा.५. १३७८९. जम्बूस्वामी रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., प्र.वि. गा.११३, (२५.५४११, १३४४१-४२). जम्बूस्वामी रास, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., पद्य, वि. १५१६, आदिः सरसति सामणि सारदा ए; अंतिः स्वामी जम्बू कुमार. १३७९०. जयविजयकुंअर रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., ले.स्थल. दसरथग्राम, ले.- मु. भाग्यविजय (गुरु गणि जिनविजय), प्र.वि. खण्ड-४अधिकार/ ३३ ढाल, ग्रं. ७२५, (२४४१०.५, १४४४२-४५). जयविजयकुंवर रास, पं. जिनविजय, मागु., पद्य, वि. १७३४, आदिः आदि आदि जिणेसरु पय; अंतिः ए अधिकार । सनेहि रे. १३७९१. जिनविजयनिर्वाण प्रशस्ति, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. राजनगर-अहमदावाद, प्र.वि. ढाल १६, गा.२२३; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २८५, (२६४११.५, ११४४४-४६). जिनविजयनिर्वाण प्रशस्ति, मु. उत्तमविजय, मागु., पद्य, आदि: कमलमुखी श्रुतदेवता; अंतिः कोडी कल्याण ए. ७९२. झाझरियाऋषि रास, संपूर्ण, वि. १७६१, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- पण्डित राजहंस, पठ.- मु. तत्त्वहंस (गुरु पण्डित राजहंस), प्र.वि. ढाल-१३; प्र.पु.-मूल-ग्रं. २२५, (२६४११.५, १८४३४-४०). झाझरियाऋषि रास-शीलविषये, मु. हस्तिरुचि, मागु., पद्य, वि. १७१७, आदिः आदिनाथ आदि नमुं आपे; अंतिः सिद्धि ___ घर आवे रे. १३७९३. तेतलीपुत्र रास, संपूर्ण, वि. १६१९, श्रेष्ठ, पृ. ७, जैदेना., ले.- गणि चारित्रविजय, प्र.वि. गा.२६०, (२६x१०.५, १५४५५-५७). तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५९५, आदिः शासनदेवि नमुं महासती; अंतिः जिम हुइ जई सफल विहाण. १३७९४. त्रिभुवनसिंहकुमार रास, पूर्ण, वि. १७५७, मध्यम, पृ. २२-१(१)=२१, जैदेना., ले.स्थल. थिराद्र, प्र.वि. गा.६४७, पू.वि. गाथा १ से २७ तक नही हैं., (२५.५४१०.५, १६-१७४३९-४२). त्रिभुवनसिंहकुमार रास, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, वि. १७१२, आदि:-; अंतिः मुनि० घर मङ्गलमालकें. १३७९५. त्रिभुवनसिंहकुमार रास व हीरविजयसूरि सज्झाय, संपूर्ण, वि. १७३९, श्रेष्ठ, पृ. ३२, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. For Private And Personal Use Only Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची ___ कुंतीआणानगर, ले.- पं. देवकुशल गणि, (२६४११, १५-१६x४५-४७). पे.-१. त्रिभुवनसिंहकुमार रास, मु. उत्तमसागर, मागु., पद्य, वि. १७१२, (पृ. १आ-३२आ), आदिः श्रीश्रुतदेवी सार; अंतिः ___ मुनि० घर मङ्गलमालकें., पे.वि. ढाल-४४, गा.६५०. पे:२. हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु., पद्य, (पृ. १अ-१अ), आदिः सरसति आपो मति सारी; अंतिः कोड वरीस मनोहर., पे.वि. गा.९. १३७९६. द्रव्यगुणपर्याय रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २५, जैदेना., प्र.वि. ढाल-१७, गा.३८३, (२५४११, ९४२९-३२). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीगुरू जीतविजय; अंति: जसविजय बुध जयकरी. १३७९७. द्रव्यगुणपर्याय रास सह टबार्थ, संपूर्ण, वि. १८६२, श्रेष्ठ, पृ. २७, जैदेना., ले.स्थल. द्रांगद्रानगर, ले.- मु. उत्तमविजय (गुरु मु. वनीतविजय), पठ.- श्रा. अमरसी कानजी,प्र.ले.पु. मध्यम,प्र.वि. मूल-ढाल-१८; प्र.पु.-मूल-२८३. अंतिम गाथाओं का टबार्थ प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२५.५४१२, ५-६४३७-४२). द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., पद्य, वि. १७२९, (संपूर्ण), आदिः श्रीगुरू जीतविजय; अंतिः जसविजय बुध जयकरी. द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ, मागु., गद्य, (पूर्ण), आदिः (१) श्रीजीतविजय श्रीनयवि (२) ऐद्रं धामहृदि स्मृ; अंतिः१३७९८. षटभाईतां देवकीनो रास, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. २९, जैदेना.,प्र.वि. ढाल-१९, (२५४११.५, ८x२४-२७). देवकी ६ पुत्र रास, मागु., पद्य, आदिः श्रीनेम जिणन्द समो०; अंतिः ते लहसे भवजल पार रे. १३७९९. धर्मबुद्धिमन्त्री पापबुद्धिराजा रास, संपूर्ण, वि. १८००, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले.स्थल. मुंडेद्धा, ले.- पं. उदेविजय (गुरु मु. प्रमोदविजय),प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२७, प्र.ले.श्लो. (६१५) जाद्रिसं पुस्तकं दृष्टा, (२४४१०.५, १६x४२). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. नेमिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६८, आदिः परम ज्योति प्रकासकर; अंतिः श्रोता जयकारी रे. १३८००." धर्मबूद्धिपापबूधिमन्त्रीनृप रास, संपूर्ण, वि. १७९१, श्रेष्ठ, पृ. १७, जैदेना., ले.स्थल. सरढोईग्राम, ले.- पं. हस्तिविजय (गुरु गणि रङ्गविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२७, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४११, १६-१७X४७-५१). पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. नेमिविजय, मागु., पद्य, वि. १७६८, आदिः परम ज्योति प्रकासकर; अंतिः श्रोता सुषकारी रे. १३८०१. सीलचौढालीयो, सीयल रास व धन्ना गीत, संपूर्ण, वि. १८वी, मध्यम, पृ. १०, पे. ३, जैदेना., (२६४१०.५, १६ १७४४६-४८). पे..१. पे. नाम. ब्रह्मचर्यविषये नववाडी स्वाध्याय, पृ. १अ-३आ नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., पद्य, वि. १७२९, आदिः श्रीनेमीसर चरणयुग; अंतिः हो जुगति नववाडि., पे.वि. ढाल-११, गा.९८. पे..२. सीयल रास, मु. ज्ञानचन्द्र, मागु., पद्य, (पृ. ३आ-१०अ), आदिः पहिली अरिहन्त प्रणमी; अंतिः गणि करें एह ___ वषाण., पे.वि. गा.१९६. पे..३. धन्ना गीत, मु. देव, मागु., पद्य, (पृ. १०अ-१०आ), आदिः जिणवर ते वेरागीया; अंतिः अम्मां नेह न कीजै., पे.वि. गा.१३. १३८०२." वङ्कचूल रास, संपूर्ण, वि. १६८४, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना., ले.स्थल. सत्यपुर, ले.- मु. सौभाग्यविजय (गुरु वा. लब्धिविजय, पूर्णिमापक्ष), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र.वि. ढाल-६, गा.१२८, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, For Private And Personal Use Only Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४९५ हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ (२५४११, १५-१६x४२-४७). वकचूल रास, मु. गङ्गदास, मागु., पद्य, वि. १६७१, आदिः सन्ति जिणेसर चिरंजीओ; अंतिः टालइ करमह बन्ध. १३८०३. वङ्कचूल रास व जगडुनो छन्द, संपूर्ण, वि. १८६३, श्रेष्ठ, पृ. ६, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. टीकरनगर, ले.- पं. उत्तमविजय गणि, (२०x११, १४४३३-३५). पे..१. वकचूल रास, मु. केसरविमल, मागु., पद्य, वि. १७५६, (पृ. १अ-६अ), आदिः त्रिभुवन नायक गुणनील; अंतिः घरे लछी विसाला रे. पे.२. जगडु छन्द, लालण-सुत, मागु., पद्य, (पृ. ६अ-६आ), आदिः अगमरुप देवी आदेस; अंति: कहें। मान तणं..पे.वि. गा.७. १३८०४. लीलावती सुमतिविलास रास, संपूर्ण, वि. १८६६, श्रेष्ठ, पृ. २१, जैदेना., ले.स्थल. ओगणां, ले.- ऋ. दलीचन्द (गुरु ऋ. मोतीचन्द), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-२१, (२३४११.५, ११-१४४२६-२९). लीलावतीसुमतिविलास रास, वा. उदयरत्न, मागु., पद्य, वि. १७६७, आदिः परम पुरुष प्रभु पास; अंतिः सुख सम्पति __सूरसालजी. १३८०५. विक्रमराजा रास चरित्र, संपूर्ण, वि. १८५६, श्रेष्ठ, पृ. १७२, जैदेना., ले.स्थल. बेलांगरी, ले.- पं. प्रेमविजय (गुरु मु. गम्भीरविजय), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. ढाल-१७४, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४१२, १४ १७४३५-४४). विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मागु., पद्य, वि. १८३०, आदिः अमल कमल सम नयन यूग; अंतिः लहें ऋद्धि विशालजी. १३८०६. विक्रमसेनलीलावती चौपाई, संपूर्ण, वि. १७७२, श्रेष्ठ, पृ. ३२, जैदेना., ले.स्थल. सथाणानगर, ले.- मु. दयासागर (गुरु गणि अनोपसागर), प्र.वि. ढाल-५२, ग्रं. १५००, (२६४११, १७४४३-४६). विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदिः सुखदाता सखेश्वरो; अंतिः दिनदिन दोलति पाई जी. १३८०९. विक्रमादित्य रास, संपूर्ण, वि. १८वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२७, गा.५८५, (२४x१०, १८-२०x४८-५६). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, वि. १७२३, आदिः पुरसादाणी प्रणमीयै; अंतिः तेहने सदा हुइ कल्याण. १३८१०. विक्रमादित्य रास, संपूर्ण, वि. १७७८, मध्यम, पृ. १३, जैदेना., प्र.वि. ढाल-२७, गा.५८५, (२६४११.५, १८-१९४४५ ४९). विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., पद्य, वि. १७२३, आदिः पुरिसादाणी प्रणमीइं; अंतिः तेहने सदा हुइ कल्याण. १३८११. विद्याविलास रास, संपूर्ण, वि. १६४१, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., प्र.वि. गा.२८०, (२५.५४१०.५, १५४४८-५२). विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुन्दर, मागु., पद्य, वि. १५१६, आदिः गोयम गणहर पय नमी; अंतिः प्रमाण मनोरथ फलइं. १३८१२. विद्यासागर चरित्र, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ८, जैदेना., प्र.वि. ढाल-९, (२६.५४११, १३४३६-३७). विद्यासागरसूरि रास, मु. नित्यलाभ , मागु., पद्य, वि. १७९८, आदिः प्रणमी श्रीश्रुतदेव; अंतिः रिद्धि सवाया रे. १३८१३." विमलमन्त्री लघुरास, संपूर्ण, वि. १५७०, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र.वि. खण्ड-३, गा.३०६, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२६४११, १७४५५). विमलमन्त्री लघुरास, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, वि. १५६८, आदिः विमलवन्निसु विमलवर; अंतिः रचिउता प्रति पउए रास. १३८१४. वीरभाण्णउदयभाण्ण रास, संपूर्ण, वि. १८२५, श्रेष्ठ, प्र. ४६, जैदेना., ले.स्थल. सोहिंनगर, ले.- पं. रविविजय, प्र.वि. ढाल-६५, (२६४११, १५-१६x४१-४५). For Private And Personal Use Only Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४९६ www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची " " वीरभाणउदयभाण रास मु. कुशलसागर मागु पद्य वि. १७४५, आदि सदगुरुजी सानिध करो: अंतिः सुख पाये श्रीकार. १३८१६. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय व मदनकुमार रास, संपूर्ण, वि. १७९०, श्रेष्ठ, पृ. ८, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. धमडकानगर, ( २६ ११.५, २०५६-६०). पे. १. सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. चतुरसागर, मागु., पद्य, वि. १७७९, (पृ. १अ - २अ ), आदि: प्रथम जिणेसर वीनवुं; अंतिः मङ्गलमाला वृद्धि, पे.वि. ढाल -३. पे. २. मदनकुमार रास- शीलवताधिकारे, मु. चतुरसागर, मागु पद्य वि. १७७२ (पृ. २अ-८आ), आदि: नामें नवनिधी सम्पजे; अंतिः ऋद्धि सिद्धि थाय रे, पे.वि. ढाल - २१. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८१७. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १६७५, श्रेष्ठ, पृ. ६, जैदेना., ले. स्थल. झालावाड - मालवीणि, ले. - गणि देवविजय (गुरु पण्डित सङ्घविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. २१९, (२५x११, १६-१८४४८-५०). शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मागु., पद्य, वि. १४५५, आदि: देवि सरसति २ सकल; अंतिः इम भणइ० घरि तेह तणइ. १३८१८.” शालिभद्र रास व श्लोक सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १७२५, श्रेष्ठ, पृ. २४, पे. २, जैदेना., ले. स्थल. अमृतपुर, ले.- मु. कनकविमल, प्र. वि. संशोधित (२४४१०५ १०-११४३८-४०). पे.- १. शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, (पृ. १-२४आ), आदि: सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी., पे.वि. ढाल - २९. पे. २. जैन सामान्यकृति-पेटाङ्क बाकी (+) सं., प्रा. मागु प+ग, (पृ. २४-२४आ), आदि में अंतिः #. १३८१९. शालिभद्र चौपाई, संपूर्ण वि. १६९८ श्रेष्ठ, पृ. २३, जैदेना. ले. स्थल राजनगर, ले. ॠ जीवा, प्र. वि. डाल- २९: प्र. पु. - मूल-ग्रं. ८६०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, पदच्छेद सूचक लकीरें, संशोधित, ( २४.५x१०.५, १३४३७). (+) शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. १३८२०. शालिभद्र रास, पूर्ण, वि. १७०५, श्रेष्ठ, पृ. १८ - १ (१७) = १७, जैदेना., ले. स्थल. नवीननगर, ले. गणि लीलकुशल, प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - २९, गा.५१०, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित, (२५.५४११, १५४४४-४७). शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः मनवञ्छित फल लहस्येजी. १३८२१. शालिभद्रधन्ना रास, संपूर्ण वि. १७८८, श्रेष्ठ, पृ. १४ जैदेना. ले. स्थल. वाराही, ले. पं. प्रतापविजय, प्र. वि. बाल २९. गा. ५११ (२६४११. १७०४३-४६). " शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. १३८२२. शालिभद्र रास, संपूर्ण, वि. १७६६, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले. स्थल. पलांसुंआनगर, ले. गणि तिलकविजय (गुरु गणि सुखविजय तपागच्छ) प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल २९ गा. ५११ (२४.५४११.५, २०-२२४४८). " शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., पद्य, वि. १६७८, आदिः सासननायक समरियै; अंतिः फल लहिस्यइजी. १३८२३. समेतसिखरगिरि रास, अपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, जैदेना, पू. वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण., (२२.५x११, ९०२८ ३१). सम्मेतशिखरतीर्थ रास मु. सत्यरत्न, मागु, पद्य वि. १८८०, आदि अजितादिक प्रभु पाय अंति १३८२४. शिवदत्तकुमार रास, संपूर्ण, वि. १६२६, श्रेष्ठ, पृ. १०, जैदेना., प्र. वि. गा. २९१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२६.५४११, १४-१५४५०-५२). शिवदत्तकुमार रास, आ. सिद्धसूरि, मागु, पद्य, वि. १६२३, आदि: सरस सुवचन दीउ सरसति; अंतिः सम्पति हुइ तेह तणई. For Private And Personal Use Only Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ १३८२५. शील रास, पूर्ण, वि. १६९१, मध्यम, पृ. १५- १(३) = १४, जैदेना., ले. पं. गुणसेण, प्र. वि. गा. ७०, ( २६.५x१०.५, ९x३०-३१). शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., पद्य, आदि: पहिलुं प्रणाम करूं; अंतिः इम श्रीविजयदेवसूरि. ।। इति श्री कैलासश्रुतसागरे हस्तप्रतविभागे जैनसाहित्ये तृतीयः खंङः ।। सर्वथा सहु सुखी थाओ पाप ना कोई आचरो । राग-द्वेषथी मुक्त थईने मोक्ष-सुख सहु जग वरो ।। Acharya Shri Kallassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ४९७ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: परिशिष्टः कृति परिवार अनुसार प्रत-पेटाकृति अनुक्रम संख्या विद्वानों की मांग तथा उपयोगिता को दृष्टि में रख कर कैलास श्रुतसागर- जैन हस्तलिखित साहित्य के द्वितीय खंड से सूची के अंत में दो परिशिष्टांतर्गत कृति परिवार अनुसार हस्तप्रतों की अनुक्रम संख्या प्रकाशित की जा रही है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिशिष्ट- १ में संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं के कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. परिवार की मुख्य कृति की भाषा के अनुसार पूरा परिवार इस परिशिष्ट में समाविष्ट कर लिया गया है. पुत्र- प्रपौत्रादि के देशी भाषाओं में होने पर यहीं सम्मिलित कर लिया गया है. ध्यान रहे कि ऐसी कृतियों को परिशिष्ट - २ में पुनः सम्मिलित नहीं किया गया है. इसी तरह एकाधिक भाषा वाली कृतियों में संस्कृत आदि व देशी भाषा दोनों हों वैसी कृतियाँ मात्र इस परिशिष्ट में सम्मिलित की गई है. परिशिष्ट २ में मात्र देशी भाषाओं वाली मूल कृति परिवार अनुसार प्रत क्रमांक दिए गए हैं. • इस परिशिष्ट में अकारादि क्रम से कृति परिवार को क्रमशः मूल व मूल के ऊपर रचित उसकी संतति स्वरूप कृतियों को प्रथम स्तर - पिता, द्वितीय स्तर पुत्र, तृतीय स्तर पौत्र, चतुर्थ स्तर प्रपौत्र, इत्यादि सदस्य के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है. • प्रथम स्तर के बाद के प्रत्येक स्तर का सूचक अंक (२), (३) इत्यादि कृति नाम के प्रारम्भ में ही दे दिया गया है. यथाकल्पसूत्र (२) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका (३) कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका का टार्थ . " कृतियाँ परिवारानुसार दी गई है. यथा लोगस्स शक्रस्तव चैत्यवन्दन, प्रतिक्रमण, पच्चक्खाण आदि स्वतन्त्र तत् तत् अक्षर पर न मिलकर आवश्यकसूत्र के परिवार के रूप में मिलेंगे. कृति को उसके पर्याय नामों से भी खोजें यथा नमस्कार हेतु नवकार, पंचपरमेष्ठि, नवपद हेतु सिद्धचक्र आदि. • सामान्य पद, सज्झाय, लघुकाव्यों आदि को औपदेशिक एवं आध्यात्मिक इन नामों से अभिहित कर बाद में विषयानुसार नामाभिधान करने का प्रयत्न किया गया है. कृति नाम में यदि कोई संख्यावाचक शब्द है तो एकरूपता लाने के लिए वह संख्या शक्य हद तक अंकों में ही लिखी गई हैं. इससे अष्टकर्म व आठकर्म की जगह ८ कर्म लिखा होने से वे अलग-अलग न मिलकर एक ही जगह मिलेंगे. जहाँ तक हो सका है, संख्याओं को नाम के प्रारम्भ में ही ले लिया गया है. • प्रत व पेटांक नाम के रूप में कृति के प्रतिलेखक द्वारा प्रत में उल्लिखित नाम को ही रखकर कृति नाम के रूप में कृति का यथार्थ नाम रखने का नियम अपनाया गया है. इस वजह से प्रत, पेटांक नाम व उसके नीचे आने वाली कृति नाम में उल्लेखनीय फर्क मिल सकता है. यथा प्रत नाम बारसासूत्र कृति नाम कल्पसूत्र • जिन कृतियों के अंत में प्रत क्रमांक की जगह <प्रतहीन ऐसा लिखा हो वहाँ यह समझना होगा कि प्रस्तुत कृति मात्र उसके नीचे और पुत्रादि का संबंध बताने हेतु ही है. • नामों में विशेषण अंत में दिए गए हैं ताकि मूल नामों में एकरूपता बनी रहे. यथा - २४ अनागत जिन स्तवन के स्थान पर २४ जिन स्तवन- अनागत लिखा गया है. इसी तरह शंखेश्वरमंडन पार्श्व जिनस्तवन की जगह पार्श्व जिनस्तवनशंखेश्वरमंडन दिया गया है. • प्रत की अपूर्णता आदि कारणों से जिन कृतियों के आदिवाक्य नहीं मिल सके हैं, वहाँ आदिवाक्य में (-) ऐसा दिया गया है. • छोटे परिमाणवाली मारुगुर्जर भाषा की कृतियों में क्वचित् वास्तव में राजस्थानी, गुजराती तथा प्राचीन हिन्दी भाषा होने की संभावना हो सकती है. PARI-3 • संभावित अप्रकाशित कृतियों का नाम (आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर की कम्प्यूटर आधारित सूचना प्रणाली में अब तक उपलब्ध माहिती के अनुसार ) italics में मुद्रित किया गया है. यथा- अजितशांति स्तव-बोधदीपिका टीका. चूंकि अनेक ४९८ For Private And Personal Use Only Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir प्रकाशनों की विस्तृत सूचना अभी भी कम्प्यूटर में प्रविष्ट करनी बाकी है एवं ज्यादातर प्रविष्ट कृतिगत सूचनाओं का अंतिम पुष्टिकरण भी बाकी है - इत्यादि अनेक कारणों से कुछ एक प्रकाशित कृतियाँ भी सम्भवतया अप्रकाशित के रूप में यहाँ आ गई हैं. खासकर लघु कृतियों हेतु यह सम्भावना अधिक है. अतः कृपया इसे एक संकेत मात्र के ही रूप में देखा जाय. • क्वचित् ऐसा भी प्राप्त हुआ है कि एक ही कृति के लिए भिन्न-भिन्न कर्ताओं के नाम मिले हैं. कृति का प्रायः सब कुछ एक समान होते हुए भी मात्र रचना प्रशस्ति में फर्क मिलता है. अतः कर्ता नाम अंतिमरूप से तय करना दुष्कर हो ऐसी स्थिति में सामान्यतः प्रत्येक कर्ता के अनुसार उस कृति की स्वतंत्र प्रविष्टियाँ दी गई हैं. • अनेक कृतियों के एकाधिक प्रचलितनाम भी मिलते हैं, इनमें से यहाँ व सूचीपत्र में कद बढ़ने के भय से मात्र एक मुख्य नाम ही दिया गया है. यथा- बारसासूत्र के लिए कल्पसूत्र ही दिया गया है. इसी प्रकार कृतियों के सामान्य व विशेष फर्क के साथ एकाधिक आदिवाक्य भी मिलते हैं. इनमें से यहाँ मात्र एक ही आदिवाक्य दिया गया है. जबकि सूचीपत्र में तो तत् तत् प्रतगत प्रथम व क्वचित् द्वितीय स्तर के आदिवाक्य दिए गए हैं. जो कि सम्भवतः यहाँ दिए गए आदिवाक्य से न भी मेल खाते हों. ऐसा ज्यादातर टबार्थ व बालावबोधों में पाया गया है. • कृति के आदिवाक्य के पहले कृति का मूल स्रोत चिह्नित करने हेतु मूपू., स्था., ते., दि., जै., वै., बौ. इन संकेतों का प्रयोग क्रमशः जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक, जैन श्वेताम्बर स्थानकवासी, जैन श्वेताम्बर तेरापंथी, जैन दिगंबर, जैन, वैदिक, बौद्ध के लिए किया गया है. जहाँ पर ये संकेत नहीं हैं वे सामान्य कृतियाँ हैं. इन संकेतों को यथोपलब्ध सूचनाओं के आधार पर दिया गया है तथा इनकी अंतिम रूप से पुष्टि होनी बाकी है. • वाचकों की सुविधा एवं उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए कृति के साथ दिए हुए प्रत क्रमांक क्रमशः प्रत की शुद्धि आदि महत्ता, संपूर्णता, दशा, अपूर्णता व अशुद्धि की वरीयता से दिए गए हैं. शुद्धता सूचक निशानी (+) वाले प्रत क्रमांकों को सर्वाधिक महत्व दिया गया है, उसके बाद संपूर्ण, पूर्ण व प्रतिपूर्ण प्रतों को तथा अंत में (3) (4) (9) निशानी वाले प्रत क्रमांकों को रखा गया है. अतः प्रत क्रमांक अपने स्वाभाविक अनुक्रम से नहीं मिलेंगे. कृति के सामने हस्तप्रत का पहचान स्वरूप प्रत क्रमांक तथा यदि प्रत में एकाधिक कृतियाँ हैं तो प्रस्तुत कृति प्रत में किस क्रमांक की पेटाकृति है, वह पेटांक भी दिया गया है. यथा प्रत क्रमांक १०२०७ के तीसरे पेटांक में महावीरजिन स्तवन है. इसका क्रमांक इस प्रकार लिखा गया है - १०२०७-३. . प्रत संशोधित होने, टिप्पणक आदि से युक्त होने व कर्ता के स्वहस्ताक्षर से लिखित होने पर प्रत की महत्ता को बताने के लिए प्रत क्रमांक के बाद (4) का चिह्न लगाया गया है. यथा ९१३१(4) • प्रत दुर्वाच्य, अवाच्य, अशुद्ध पाठ वाली होने पर प्रत क्रमांक के बाद () का चिह्न लगाया गया है. यथा ५६९९०. • प्रत में प्रस्तुत कृति अपूर्ण, त्रुटक या प्रतिअपूर्ण होने पर प्रत क्रमांक के बाद (5) का चिह्न दे दिया गया है. यथा ६३८९७). • कट, फट जाने आदि के कारण नष्ट हुई प्रत व पाठ की निम्नोक्त अवदशाओं की जानकारी कराने के लिए प्रत क्रमांक के अंत में (4) का चिह्न लगाया गया है. यथा-५६२२। ऐसे संकेत होने पर प्रत के साथ अग्रलिखित दशा सम्बन्धी सम्भावनाएँ हो सकती हैं, जिनका यथेष्ट विवरण सम्बन्धित प्रत विशेष में देखने को मिलेगा. यथा- (१) मूल पाठ का अंश नष्ट हो गया है. (२) टीकादि का अंश नष्ट है. (३) मूल व टीका का अंश नष्ट है. (४) टिप्पणक का अंश नष्ट है. (५) अक्षर फीके पड़ गये हैं. (६) अक्षर मिट गये हैं. (७) अक्षर पन्नों पर आमने-सामने छप गये हैं. (८) अक्षर की स्याही फैल गई है. (९) पत्र नष्ट होने लगे हैं. (१०) पत्र नष्ट हो गये हैं इत्यादि. हस्तप्रत सूची के अंदर संबंधित प्रत क्रमांक के 'प्रत दशा' नामक शीर्षक में ये विवरण देखे जा सकते हैं. • प्रत में प्रस्तुत कृति यदि प्रतिपूर्ण है तो प्रत क्रमांक टेढ़े Italic अंकों में दिखाए गए हैं. यथा-५८१६. ४९९ For Private And Personal Use Only Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०० www.kobatirth.org: कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र, सं., अध्याय ९, पद्य, मूपू., (करकण्डू कल) १०५४२ (+), १२४७९-१ (२) ४ प्रत्येकबुद्ध चरित्र-टवार्थ, मागु, गद्य, भूपू (करकण्डू) १०५४३) ७ माण्डलीतप विधि, प्रा., मागु., पद्य, जै., (सुत्ते अत) १०२६६-२ ८ प्रकारी पूजा, मु. देवचन्द्र, सं., मागु., वि. १७२४, पद्य, मूपू., (गढ़गा मागध) ९३८८-२ ($) ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह, प्रा., ८ कथा, ग्रं. १२००, पद्य, मुपू., (पणमह तं ना) ११२४६ ११ १२४१११-४१ १०७७२ (+) " (२) ८ प्रकारीपूजा कथा सङ्ग्रह - टवार्थ, मागु, गद्य, मृप्पु, (नमस्कार हो) १२४११ ८ मद दृष्टान्त, सं., श्लोक ३, पद्य, मूप्पू., ( जयन्ती वङ) ९५५२ १० दृष्टान्त, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (विप्र प्रा) ११२११-३ (+) १० पच्चक्खाण विचार सूत्र, प्रा., मागु., गद्य, मूपू., ( तिहां प्रथ) १३१७१-२२१० १० मद गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, जै., (मत्तङ्गया) १०२८९-२(+) (२) १० मद गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (मदनुं कारण) १०२८९-२० १२ पर्षदाविचार, सं., श्लोक १, पद्य, मुपू., ( आग्नेयां) १२२०६-२ (२) १२ पर्षदा विचार-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (अग्निखूणे) १२२०६-२ १४ अशुचिस्थान गाथा, प्रा. गा. २. पद्य, भूपू (उच्चारे पा) १०१७६-३($) " १४ गुणठाणा, प्रा., मागु, गद्य, भूपु. ( रात्ततुटइहि) १३१८१-११ १४ गुणठाणा नाम, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (मिच्छे सास) १२५०७-२ (२) १४ गुणठाणा नाम-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., ( मिथ्यात्वत) १२५०७-२ १४ प्रकार श्रावकनाम गाथा, सं., गद्य, मृपू., (मृत् १ चाल) १०२०८-३(+) (२) १४ प्रकार श्रावकनाम गाथा- अर्थ, मागु., गद्य, मुपू., ( माटीनी परि) १०२०८-३ १६ विद्यादेवी वर्णन, सं., श्लोक १६, पद्य, मूपू., ( रोहिणी श्व) १३०७८-४ १६ विद्यादेवी स्तोत्र, प्रा. गा. २१, पद्य, सूपु. ( सङ्खक्खमाल) " १३०७८-५ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६ सती स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., ( ब्राह्मी) ११५७९-३ १७ भेदी पूजा, मु. मेघराज, मागु. सं., १७ पूजा, पद्य, मूपू., (सर्वज्ञ) १०५९०-१००) २० स्थानकतप आराधनविधि, प्रा., मागु., गद्य, मूपू., (प्रथमनालिक) १२७६२ (६) २० स्थानकतप उच्चारविधि, प्रा., मागु., गद्य, मुपू., ( नान्दि सर ) १२७०५-३($) " २२ शत्रुञ्जयतीर्थ नाम, सं. गद्य, मृपू. (शत्रुंजयती) १०९८३-२ २३ जीव नाम, प्रा., गद्य, मूपू., ( जीवेति वा) ११२२२-२ (२) २३ जीव नाम-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (मरे नही ते) ११२२२-२ २३ पदवी विचार, मागु., प्रा., गद्य, जै., (तीर्थङ्कर) ९७३८-१ २४ जिन देववन्दन विधि, मागु., प्रा., पद्य, मुपू., (आदिदेव अरि) १०४४७ २४ जिन यक्ष वर्णन, सं., श्लोक २४, पद्य, मृपू., (ऋषभदेव गोम) १३०७८-२ २४ जिन यक्षिणी वर्णन, सं., श्लोक २४, पद्य, मृपू., (ऋषभस्य चक) १३०७८-३ २४ जिन शरीरमान गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूप्पू., (पञ्च धणुसय) ११४७०-३+ २४ जिन स्तव, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लोक २५, पद्य, मुपु (प्रथमजिनवर) १२७५१-७ २४ जिन स्तवन, श्रा. भूपाल, सं., श्लोक २६, पद्य, मूपू.. (श्रीलीलायत) १०१०८-२ २४ जिन स्तुति, सं., श्लोक ५. पद्य, मूपू. (सुरकिन्नरन) १११६१ " २ २४ जिन स्तुति, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (नामेयाजितव) ११६४७७-२१११ २४ जिन स्तुति- महाप्रभाविक यन्त्र गर्मित, आ. जिनदत्तसुरि, सं.. श्लोक ८, पद्य, मृपू. (सुवर्णवर्ण) १११०८-२ " २४ जिन स्तोत्र, मु. सुखनिधान, सं. श्लोक ८, पद्य, मूपू.. " (आदी नेमिजि) १३७१४-१९ २४ दण्डक द्वार गाथा, प्रा., पद्य, मुपू., (नेरइया असु) १२७९६-२ २४ दण्डक स्तुति, आ. जिनेश्वरसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., ( रुचितरुचिम) ११६७७-३२(+) २४ स्थानक प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, (गइ इन्दिय) - < प्रतहीन > For Private And Personal Use Only Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०१ (२) २४ स्थानक प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू.. (गइ अजितशान्ति स्तव , आ. नन्दिषुणसूरि, प्रा., गा. ४०, पद्य, मूपू., इन्दिय) १२७७७) (अजियं जिय) १०२७०+), १३६५७), ११३३२(१), १००२७, ३२ अनन्तकाय गाथा, प्रा., गा.५, पद्य, जै., (सव्वाउ कन) १०११६-३, १०३००-१, १०३५२, ११२०४, ११२०५, ११२६९, १२६४९-१ १३६४५, १३६५६, १३६५८, १३६४६-१, १३७११-४११, १२१६२३५ वाणीगुण, सं., गद्य, मूपू., (संस्कारवत) १०८४२-२(4) १६) ४५ आगम श्लोक सङ्ख्या , सं., गद्य, मूपू., (आचाराङ्ग) (२) अजितशान्ति स्तव-टीका, आ. गोविन्दाचार्य, सं., गद्य, मूपू., १३१७१-२८(+) (अजितं अजित) ११२६९ ५८ बोल सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू.. (नाणेम जाणइ) (२) अजितशान्ति स्तव-बोधदीपिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ९७८१-२, १२७८७६), ११९७०(5) ग्रं.७४०, वि. १३६५, गद्य, मूपू., (अजितशान्ति) १३६५६ ५८ बोल सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., ग्रं.१२५०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहन) । (२) अजितशान्ति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अजितं द्वि) ९५९१-२, ९७७२ १३६४६-१ (२) ५८ बोल सङ्ग्रह-बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (-) ९५९१-१ (२) अजितशान्ति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इहलोकादीनि) ६४ योगिनी स्तोत्र, सं., श्लोक ११, पद्य, वै., (ॐ दीव्य) ९५३७- १३६५८ (२) अजितशान्ति स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (भगवति गर्ब) ८४ धर्मकथा प्रबन्ध, सं., ग्रं.३५२५, गद्य, जै., (उज्जयिन्या) १३६५७) १२९९२-१ (२) अजितशान्ति स्तव-छन्द सङ्केत, सं., गद्य, मूपू., (-) ९९ प्रकारी पूजा, कवि पद्मविजय, मागु.,सं., वि. १८५१, पद्य, | १३६५७), ११३३२+) मूपू., (उत्तम गुरु) १०२०९ (२) अजितशान्ति स्तव-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., १०८ स्नात्र विधि, मागु.,सं., गद्य, मूपू., (सोपारी १०८) १२९३६- ग्रं.४५०, गद्य, मूपू., (अजितनामा) १३६४५ ४+#) (२) अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ १७० तीर्थङ्कर नाम, सं., गद्य, मूपू.. (श्रीजयदेवस) १३१७१ जी) ११२०५ (२) अजितशान्ति स्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अजितनाथ बी) अंजनासुन्दरी हनुमान कथा, सं., श्लोक १२४, पद्य, मूपू.... १०३००-१ (वैत्ताढ्या ) १२३९२-३ (२) अजितशान्ति स्तव-छन्दयन्त्र, मागु.,प्रा., गद्य, मुपू., (-) अक्षयतृतीयापर्व कथा, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्ति) १०१५६, १०५४४ | ११३३२(+) अक्षौहिणीसैन्य मान, सं., श्लोक १, पद्य, जै., (दशलक्षदन्त) अजितशान्ति स्तवबृहत्-अञ्चलगच्छीय, आ. जयशेखरसूरि, सं., ९६८४-२(+) श्लोक १७, पद्य, मूपू.. (सकलसुखनिवह) १०३००-९, १०९२७(२) अक्षौहिणीसैन्य मान-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (दशकोडी हाथ) | ९, १०९७६, १३७११-६(), १२१६२-२२६६) (२) अजितशान्ति स्तव-बृहत् की अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अहं अगडदत्त चरियं, गणि देवेन्द्र, प्रा., ग्रं.३२८, ईस. ११वी, गद्य, जिन) १०९७६ मूपू., (अस्थि जए) १२३२०(4) (२) अजितशान्ति स्तव-बृहत् का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. अघटकुमार चरित्र, सं., श्लोक ६३७, पद्य, मूपू., (प्राणिनामस) (सकल भणीइं) १०३००-९ १२४८२-१(+), १२४६९ अजितशान्ति स्तवलघु-अञ्चलगच्छीय, कवि वीर गणि, प्रा., गा. अङ्गचूलिका प्रकीर्णक, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो सुय०) ११८४३-१ ८, पद्य, मूपू.. (गब्भअवयार) १०३००-८, १०९२७-८, १३७११अङ्गस्फुरण विचार, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., (ठाणं निलाड) ५), १२१६२-२३(१) १३५०४-२ | (२) अजितशान्ति स्तव-लघु का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., अगुलसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (मातानइं गर) १०३००-८ (उसभसमगमणमु) १२६२३-३(+) अजीवकल्प प्रकीर्णक, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू.. (आहारे उवहि) (२) अङ्गुलसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (ऋषभगामिनं) १०६८९-१२, १०६९०-१२, ११८१४-१ १२६२३-३ अणसणप्रत्याख्यान विधि, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (जे मे हुज) अचकारिता कथा, सं., गद्य, मूपू.. (अच्चङ्कारि) १२५३१-२ १०८३२-२(4) ३१) ९६८४-२(+) For Private And Personal Use Only Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ अतीतअनागतवर्तमानचौवीसीजिन नाम, सं.,मागु., गद्य, मूपू., काल चउथ) ९९८३(+), १११५३(+), ११५०३(+), ११५१०(+), (अथ जम्बू) १३१७१-२७(+) १०९२२(+), ११५२१-१(45), ११५०१, ११५०२ अद्वैतवादनिरासस्थल, सं., गद्य, मूपू., (नापि ब्रह) १२६७३-११ | अनुयोगद्वारसूत्र , आ. आर्यरक्षित, प्रा., गा. १६०४, प+ग, मूतपू., अध्यात्मकल्पद्रुम, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., १६अधिकार, श्लोक (नाणं पञ्चव) ९९३९(+), ११७९९५), ११७९३), १०००५-१, २७२, पद्य, मूपू., (जयश्रीरान) १२११३(१), १२१२२), १०८०४, ११७९२, ११७९५ १२११२(+5), १२०५२, १२०५३, १२१११, १३१२८, १२०५१(5) (२) अनुयोगद्वारसूत्र-चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-अध्यात्मकल्पलता टीका, उपा. रत्नचन्द्र, मूपू.. (कञ्चि पञ्च) ११७९४ सं., अध्याय १६, ग्रं.२४५९, वि. १६७४, गद्य, मूपू., (प्रणत (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., सुरा) १२११२(45), १३१२८ ग्रं.५९००, गद्य, मूपू.. (सम्यक्सुरे) ११७९३(+), १०७५८ (२) अध्यात्मकल्पद्रुम-बालावबोध, मु. हंसरत्न, मागु., गद्य, मूपू., (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (नाणं जाणवउ) (श्रीशङ्खश) १२१२२६), १२१११ ११७९९(+) अध्यात्मतरङ्गिणी, मु. सोमदेव, सं., श्लोक ४०, पद्य, दि., (मा (२) अनुयोगद्वारसूत्र-बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., गद्य, स्माधस) १०१०३) मूपू., (प्रणिपत्य) ९९३९(4). ११७९२ (२) अध्यात्मतरङ्गिणी-टीका, मु. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, दि., (२) अनुयोगद्वारसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, जै., (ना० ज्ञान) (सदेव वो यु) १०१०३(+) ९९३९) अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका, मु. हर्षवर्द्धन, सं., श्लोक ३२, पद्य, | अनुयोग विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (मुहपत्ती) १११६७ मूपू., (ब्रूमः किम) १३०८२, १३१३५, १३२४९, १३२७१ अनेकान्तजयपताका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., अध्याय ६, ग्रं.३७५०, (२) अध्यात्मबिन्दुद्वात्रिंशिका-स्वोपज्ञ व्याख्या, मु. हर्षवर्द्धन, सं., गद्य, (जयति विनिर)-<प्रतहीन.> गद्य, मूपू., (वयमध्यात्म) १३०८२, १३१३५, १३२४९, १३२७१ (२) अनेकान्तजयपताका-टीका, आ. मुनिचन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२०००, अध्यात्मसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ७ प्रबंध, पद्य, मूपू., | वि. १२वी, गद्य, पू., (शेषमतिमतिश) १०१०२ (ऐन्द्रश्रे) १३२२५(५), १२०९५ अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय ९२, ग्रं.८९९, (२) अध्यात्मसार-शब्दभावोक्ति वृत्ति, पं. गम्भीरविजय, सं., वि. गद्य, मूपू., (तेणं कालेण) ९९८२), ११४०५(+), ११५११(+), १९५२, गद्य, मूपू.. (जयति वीरना) १३२२५(+) ११५१३(+), ११५१४-१(+), ११५१५५), ११५१६), ११५२०(+#), (२) अध्यात्मसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२०९५ ९३३४, १०७८०, १०८००, १०८०३-१, १०८९४, १०९१८, अनन्तकीर्ति कथा, सं., गद्य, मूपू., (परदार विरत) १२४७०, १०९५४, १११४७-१, ११२९२, ११४९१-१, ११४९३, ११४९४, १२४८४-५(5) ११२६४, ११४९२, ११४९०० अनन्तचतुर्दशी पूजा, मु. ब्रह्मशान्तिदास, सं.,मागु., प+ग, दि., (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (-) १०७८० (आह्वयामि) ९३४७-१२ (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., गद्य, अनर्घराघव, कवि मुरारि, सं., ७ अंक, पद्य, (निष्प्रत्य) मूपू., (अथान्तकृतद) ११४९८-२१), ११४९९-२(+), १०४९८(45), <प्रतहीन.> १०८००, ११०१२, ११५१७, ११५१८, ११४९०) (२) अनर्घराघव-टिप्पण, आ. नरचन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२४००, गद्य, | (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (अन्तगड शब) पू., (परब्रह्म) १३५८७(4) ९९८२(+), ११५११(५), ११५१३६), ११५२०(+#), ११४९१-१, अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय ३३, ११४९२ ग्रं.१९२, प+ग, मूपू., (तेणं कालेण) ९९८३(+), १०१८३(+), (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (ते कालने) १०९२२(+), १११५३(+), ११२४३(+), ११५००(+), ११५०३(+), ११४९४ ११५१०५), ११५१४-२(+), ११५२१-१(45), १०८०३-२, ११४९५, (२) अन्तकृद्दशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ११४९६, ११४९७, ११५०१, ११५०२ ११४९३ (२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टीका , आ. अभयदेवसूरि , सं., | अन्नपूर्णा स्तोत्र, शङ्कराचार्य, सं., श्लोक ९, पद्य, वै., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (अथानुत्तरौ) १०१८३(+), ११४९८-३(+). (नित्यानन्द) ९५३७-१०७) ११४९९-३(+), ११५००+) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, (२) अनुत्तरौपपातिकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ते सं., श्लोक ३२, पद्य, मूपू., (अनन्तविज्ञ) १२८५४(+), १०३९४, For Private And Personal Use Only Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ समा १२०८३-१, १३०९४-२, १३०९४-३, १३०९५ ($), १०६४८() (२) अन्ययोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका - स्याद्वाद्द्मञ्जरी वृत्ति, आ. मल्लिषेणसूरि, सं. शक. १२१४, गद्य, भूपू. (यस्य ज्ञान) १२८५४(+), १०३९४, १२०८३-१, १३०९४-३, १३०९५ (४), १०६४८ "" " अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, मुपू., ( दानधर्मं ) १२४८२-९ (+) अमरसेन वज्रसेन कथा, सं.. गद्य, ग्रुप., (स्वस) १२४७२ अम्बड चरित्र, आ. मुनिरत्नसरि, सं. ७ आदेश, श्लोक १२२०, ग्रं. १११६, पद्य, मूपू., (धर्मात् सम) ९८१५ (+), ९९८८-१ अम्बिकादेवी स्तोत्र, सं., मागु., गा. ६, पद्य, वै., (नित्यानन्द ) ९५३७-९(S) अपराजित मन्त्रस्तव, आ. उमास्वामि, सं., श्लोक १०, पद्य, दि.., ( विश्लिष्यन) १००९०-२ अभयकुमार चरित्र, उपा. चन्द्रतिलक, सं., सर्ग १२, वि. १३१२, पद्य, मूपू., (आदौ धर्मोप) १३२२१ (+) अभिधानचिन्तामणि नाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ६ कांड . १४५२ परा मृपू. (प्रणिपत्या) १०४१८१० ११२८६), १२६००१), १३३३२) १३३३९) १३३४७-११). (१३३५४) १३४१९) १०८७९१), १३३३७) १३३३०/-), १३३३५४), १३३५००) ९६१६०३) १३३४९० १३३५५निक १३४१८(+), १३३३५, १३३३६, १३३४५, १३४१६, १३३४६, ९६२५, १००२२, १३३३४, १३४१७, ९५७३(), ९५३१(s), १३३३३ की १३३३८कि १३३५६१ ९६८५ १३३४८) (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला-वृत्ति वा वल्लभ वाचक, सं.. वि. १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीमदर्शन) १३३३९(+), १३३५४(+) (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला - स्वोपज्ञ तत्त्वाभिधायिनी विवृति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२१६. गद्य, मृपू.. (धर्मतीर्थक) १३३३७ (+), १३३३५, १३३३६, १३४१७ १३३३८१ (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला - अवचूरि*, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, मुपू., (सिद्धं प्र) ११२८६ (+), १३४१९ (+), १३४१८ (+) (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला-टिप्पण, सं., गद्य, भूपू., (अह श्रीहे) १३३४७-१ (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला- बालावबोध + बीजक, पं. देवविमल, मागु., गद्य, मूपू., ( हेमाचार्य) १३३५५ (+३), १३३५६ क · (२) अनेकार्य सङ्ग्रह आ हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं.. अध्याय ६+१, श्लोक १९३१, वि. १२वी, पद्य, मूपू., ( ध्यात्वार) (१३३५१११ १३४३०१), १३३५२ (३) अनेकार्थ सङ्ग्रह-कैरवाकरकौमुदी टीका, आ. महेन्द्रसूरि, सं. ग्रं. १४०००, गद्य, मूपू., (परमात्मानम) १३३५१(+), १३४३० (+), १३३५२ (२) अभिधानचिन्तामणि नाममाला- शेषनाममाला, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक २०४, पद्य, भूपू (प्रणिपत्या 933-2 अभिषेक विधि, श्रा. आशाधर, सं., प+ग, दि., (श्रीमन्मन) ९३४७ 3(-) अमरसेन वज्रसेन कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानं सुपात) १२४४२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०३ अयोगव्यवच्छेदद्वात्रिंशिका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक ३२, पद्य, मुपू., (अगम्यमध्या) १३०९४-१ अरिहन्त पद विचार गाथा, प्रा. गा. ३, पद्य, मु., (अतविहं पिय) १०८४२-३ अरिहन्त पूजा, सं., प+ग, मृपू., (श्रीमज्जिन) ९३४७-४) अर्हत्रामसहस्रसमुच्चय वा. देवविजय, सं., १० शतक, वि. १६५८, पद्य, भूपू (प्रणम्य मग) १३५१५/न अर्हन्नामसहस्रसमुच्चय आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं.. १० प्रकाश, पद्य, मूपू., (अर्हन्नामा) १३६५९ - २, १०२९८ (६) अष्टकप्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ३२ अष्टक, पद्य, मूपू.. (यस्य सक) १२९९५-११ १००५४) १२६४४ (२) अष्टकप्रकरण-वृत्ति, आ. जिनेश्वरसूरि सं., पं. ३३७०, वि. १०८०, गद्य, मृपू. (इह हि सुगू) १२९९५-१), १००५४४) १२६४४ " अष्टभङ्गी कुलक, गणि विजयविमल, प्रा. गा. १०, पद्य, भूपृ (देवगुरुधम) १२५६७-२१ (२) अष्टभङ्गी कुलक-स्वार्थ, मागु, गद्य, मुप्र.. (सुगुरू सुद) १२५६७-३१ अष्टलक्षी, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., वि. १६४६, गद्य, भूपू.. (श्रीसूर्यः) १३३९२ अष्टाङ्गयोग विवरण, सं., गद्य, मुपू., (योगी योगो) ९७१८-५ अष्टादश जल्पा, सं.,मागु., गद्य, मुपू., ( उपाध्याय ) १२७४४ अष्टानिकाधुराख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं., गद्य, ग्रुपु. ( नत्वा गुरु) १२५२६-१(+) अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८६०, गद्य, मूपू., ( शान्तीशं) १२४५२ - १, १२५२९, १३११६, १३१९५ आगतिकाष्टोत्तर विधि, सं., गद्य, मूप्पू., ( इहापि सर्व ) १२९३६ - For Private And Personal Use Only " आगमअट्ठोत्तरी, आ. अभयदेवसूरि प्रा. गा. ११४, पद्य, भूपू.. (सुविशाललोय) १२६६६ " आगमनामादिविचार सङ्ग्रह मागु.प्रा.सं. पद्य, मृपू. (सूत्र चोर) ९९०१(+), ९५४९ (+$) आधारदिनकर, आ. वर्द्धमानसूरि, सं. ३६ उदय, प+ग, भूपू.. (तत्त्वज्ञा) १००७५ (+), १२८६१, १३१३७ Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १११९२ १०५९४ ५०४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ आचारप्रदीप, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ५ प्रकाश, ग्रं.४०६५, वि. | ११९७१(+), १२०७४) १५१६, गद्य, पू., (श्रीवर्द्ध) ९८९०+६), ९८९०(५६), १०६२१ आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. ७१, प+ग, आचाराङ्गसूत्र , आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., २५अध्ययन, ग्रं.२६४४, मूपू., (देसिक्कदेस) ११८४५-१), ११२५४-२(45), ११२५४ प+ग, मूपू., (सुयं मे आउ) ११४०९(+), ११४१३(१), ११४१५(५), ५०, १०६८९-४, १०६९०-४, ११८०४-२, ९८८१, ११८०३७), ९९६१), १०७२१. १०७५६, १०९८६), ११४२०(+), १२१६२-८(5) ११४२२(१), ११४२३(+), ११४२४१). ११४१९+5), ११४१७+5), (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., ९९०५(45), ११४२५६), ११४२६(+६), ११४२७६+६), ९९५९-१, गद्य, मूपू., (अथातुरप्रत) ११८०४-२ १०४०२, १०९९१, ११४१०, ११४१४, ११४१८, ९७१२, ९९४०, (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., १०६४३, १०७६४, ११४१२, ११४२१, १०६९६१), ११६४४(६), गद्य, पू., (देशस्य त्र) १११६९-१ ११४११(६) (२) आतुरप्रत्याख्यान प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (२) आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ३४६, (जाणीनइ निर) ९८८१, ११८०३(१) पद्य, मूपू., (वन्दितु सव) ११३१७ आत्मप्रतिबोध, सं., श्लोक ४२, पद्य, जै., (महतामपि अभ) (३) आचाराङ्गसूत्र-नियुक्ति की टीका#, आ. शीलाङ्काचार्य, सं., वि. ९१८ , गद्य, मूपू., (तत्र वन्दि) १०५९४ (२) आत्मप्रतिबोध-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (मोटा जे दा) १११९२ (२) आचाराङ्गसूत्र-चूर्णि, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., गद्य, आत्मप्रबोध, कवि कुमारकवि, सं., श्लोक १४९, पद्य, मूपू., मूपू.. (मङ्गलादीणि) ११६५५७), ११६५६(७) (आत्मानमात) १२०८०, ११९७२ (२) आचाराङ्गसूत्र-टीका# . आ. शीलाङ्काचार्य, सं., आत्मप्रबोध, आ. जिनलाभसूरि, सं., ४प्रकाश, वि. १८३३, प+ग, ग्रं.१२०००, वि. ९१८ , गद्य, मूपू., (जयति समस्त) ११४१३६), मूपू., (अनन्तविज्ञ) १२०६४(+5), १२०६२+5). १२०७०-१, १२०६३ (२) आचाराङ्गसूत्र-प्रदीपिकाटीका, आ. जिनहंससूरि, सं., (२) आत्मप्रबोध-बीजक, सं., गद्य, मूपू., (तत्राद्य) १२०७०-२ ग्रं.९५००, वि. १५७३, गद्य, मूपू., (शासनाधीश्व) १०६२३(+). आत्मव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, मूपू., (अत्र चार्व) १२६७३-८ ११४१५(+), १०७५६(4), ११४१९+5), ११४१६ आत्मव्यापकत्वोत्थापकस्थल, सं., गद्य, मूपू., (ननु आत्माव) (२) आचाराङ्गसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम श्रु) १०८१०- १३७५५-१ आत्मानुशासन, सं., पद्य, जै., (-) ९८८७+S) (२) आचाराङ्गसूत्र-प्रथमश्रुतस्कन्ध-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (२) आत्मानुशासन-बालावबोध, प्राहि., गद्य, जै., (--) ९८८७+5) (श्रीआचाराङ) १०७१५ आत्मानुशासन, आ. गुणभद्राचार्य, सं., श्लोक ७१, पद्य, मूपू., (२) आचाराङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., वि. (लक्ष्मी नि) १०४४०, १०१३८६६) १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ११४२२), ११४२५(45), (२) आत्मानुशासन-टीका, पं. प्रभाचन्द्र, सं., गद्य, म्पू., (वीरं ११४२६(45), ९७१२, १०६९६१) प्रणम) १०४४०, १०१३८ (२) आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.६०००, गद्य, मूपू., आदिजिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (जयति प्रथम) (आचाराङ्ग) ९९६१) ९७२३-२(१) (२) आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतराग) आदिजिन जन्माभिषेक कलश, प्रा.,मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., १०९८०), ११४२०), ११४२४), ११४१७(45), ११४१८, (विणयनयरी) १०९२७-६, १२१६२-२८७) ११४२१ आदिजिन त्रयोदशभव वर्णन, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., (धण (२) आचाराङ्गसूत्र-टबार्थ, ऋ. धर्मसी, मागु., ग्रं.१२५५४, गद्य, मिहुण) १११०२-३, १२३२१-२ मूपू., (भगवन्त श्र) ११४२३(+), ९९०५(+5) आदिजिन शतक, कवि कमलविजय, आ. विजयसेनसूरि, सं., (२) आचाराङ्गसूत्र-द्वितीयश्रुतस्कन्ध-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ४स्तव, श्लोक २४२, वि. १६५६, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) (श्रीवर्द्ध) ९९४० १३०८५६) आचारोपदेश, गणि चारित्रसुन्दर, सं., ६वर्ग, पद्य, मूपू., आदिजिन स्तव, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. १६, पद्य, मूपू., (चिदानन्दस) ११९७१(+), १२०७४(+) (विमल गिरिव) १२१६२-२४६७) (२) आचारोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ज्ञान अने) | आदिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., श्लोक २५, पद्य, For Private And Personal Use Only Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १८) ४१) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०५ मूपू.. (ॐकार सकलत) १३७१२-१ (२) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २५५०, आदिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., श्लोक २४, पद्य, ग्रं.३१००, पद्य, मूपू.. (आभिणिबोहिय) ९७५९(५), १०६४९-२), मूपू., (ऐश्वर्यं) १३७१२-२ १०६७३-१(+), १०७३१-२(+), ११५६८६५), १००४७+), ११५६९(+), आदिजिन स्तव-देउलामण्डण, मु. शुभसुन्दर, प्रा., गा. २४, पद्य, १०७४०-२, ११६०२-२, ९८५४-२, ११००१, ११५७१(5) मूपू.. (जय सुरअसुर) १३५३४ (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का भाष्य, प्रा., गा. २५३, पद्य, पू., (२) आदिजिन स्तव-देउलामण्डण-मन्त्राम्नाय अवचूरि, सं.,मागु., (अवरविदेहे) ९७५९(+), १००४७), ११००१, ११५७१(७) गद्य, मूपू., (कियदनुभूतम) १३५३४ (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की लघुटीका#, आ. आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू.. (आनन्दानम्र) तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू.. (-) ११००१ १०९७७-३ (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ३, पद्य, मूपू., (जयत्रिभुवन) सं., गद्य, मूपू., (-) ११५६७), ११५७०, ११५९८, १०५५९ १०९८५-५(४६) (४) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति के भाष्य की अवचूर्णि#, आ. आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (प्रथम तीर) १३७१३- ज्ञानसागरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (-) ११५७२ २८) (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिता टीका#, आ. आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (युगादिपुरु) ११६७७- हरिभद्रसूरि, सं., ग्रं.२२०००, गद्य, मूपू., (--) ११५६७), ११५७०, ११५९८, १०५५९ आदिजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (श्रियं दिश) ११६७७- | (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. १४४०, गद्य, मूपू., (-) ११५७२ आदिजिन स्तुति-अर्बुदगिरिमण्डन, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति का हिस्सा सामायिकअध्ययन नियुक्ति, (वरमुक्तियह) ११६७७-२९(+) । आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., प्रथमअध्ययन, पद्य, मूपू., आदिनाथदेशनोद्धार, प्रा., गा. ८८, पद्य, मूपू., (संसारे नत) (आभिणिबोहिय) १०१५२ १०२५६-३(+), १०९५०-३(+), ११९७६-३(+), १२५८०-२, ११९७५- | (४) विशेषावश्यकभाष्य, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., प्रथम अध्ययन, गा.३६०३, पद्य, मूपू., (कयपवयणप्पण) १०१५२, (२) आदिनाथदेशनोद्धार-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (संसारमाहि) १०९५०-३) (५) विशेषावश्यकभाष्य-टीका, आ. कोट्याचार्य, सं., ग्रं.१३७००, (२) आदिनाथदेशनोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (संसारमांहि) गद्य, मूपू., (नतविबुधवधू) १००४६६). १००४५ १०२५६-३(+), ११९७६-३(+) (५) विशेषावश्यकभाष्य-शिष्यहिता बृहट्टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि आनन्दसमुच्चय योगशास्त्र, समुच्चय, सं., ८ प्रकरण, पद्य, वै., मलधारि, सं., ग्रं.२८०००, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धा) (यत्र चित्र) १०४५२-२(+) १०१५२, ११५६६६६) आरम्भसिद्धि, आ. उदयप्रभसूरि, सं., ५ विमर्श, ग्रं.४६०, वि. (३) आवश्यकसूत्र-नियुक्ति की सङ्क्षिप्त गाथाएं, प्रा., पद्य, मूपू., १३वी, पद्य, मूपू.. (ॐ नमः सकल) १०६७१(+), १०६४४ (संवत्सरेण) १११०२-१ (२) आरम्भसिद्धि-सुधीशृङ्गारवार्तिक, गणि हेमहंस, सं., वि. (२) आवश्यकसूत्र-भाष्य, प्रा., पद्य, मूपू., (जह गणहरेहि) १५१४, गद्य, मूपू.. (शं सुखाय) १३४५०+), १०६४४ ११५६९) आराधनापताका प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. ९९०, पद्य, (२) आवश्यकसूत्र-टीका#, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.१८०००, मूपू., (नियसुचरियग) ११६५३-२, ११८२९ गद्य, मूपू.. (पान्तु वः) १००४७+0, ११५६९(+) आरामनन्दन कथा, सं., श्लोक ६०४, पद्य, मूपू., (पुरं लक्ष) (२) आवश्यकसूत्र-लघुवृत्ति#, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं.१२३२५, १२४७५ वि. १२९६, गद्य, मूपू., (देवः श्रीन) ११००१, ११५७३ आलाप पद्धति, आ. देवसेन, सं., गद्य, दि., (गुणानां वि) (२) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., ११२२७+), ११२९९ ग्रं.२२०००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) ९७५९(+), ११५६७/+), आवश्यकसूत्र, प्रा., ६ अध्ययन, सूत्र १०५, प+ग, मूपू., (णमो १०६११+5), ११५७०, ११५९८, १०५५९, ११५७१९७) अरहंता) ९७५९(+), ११५९७+), ११६४५९), १००४७+), (३) आवश्यकसूत्र-शिष्यहिता टीका का टिप्पणक, आ. ११५६९), ११००१, ११५७१(5) हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं., ग्रं.४६००, गद्य, मूपू., ३(5) ११५६६(5) For Private And Personal Use Only Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५०६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ (जगत्रयमतिक) १००५०, ११५८२ | (२) गुरुवन्दनसूत्र-श्वे.मू.पू., प्रा., गद्य, मूपू.. (इच्छा० सन) (२) आवश्यकसूत्र-अवचूर्णि#, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., वि. ११७३९-२ १४४०, गद्य, मूपू., (प्रेक्षावत) ११५७२ (२) देवसिराईप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-अञ्चलगच्छीय, प्रा.,सं.,गुज., (२) आयरियउवज्झायसूत्र, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (आयरिय प+ग, मूपू.. (नमो अरिहन) १२१६२-२०१६) उवज) १२७४३-३ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-अञ्चलगच्छीय, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, मूपू., (३) आयरियउवज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (आयरि० ये) (प्रथम सन्ध) ११०४१(+), ११६१०-१ १२७४३-३ (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार-अञ्चलगच्छीय, मागु., गद्य, मूपू.. (२) आवश्यकसूत्र-वन्दनकअध्ययन, प्रा., सूत्र ०१, गद्य, मूपू., (इच्छा० गुर) १२९४१(+) (इच्छामि खम) ११७१५-२ (२) पंचप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, (नमो (३) आवश्यकसूत्र-हिस्सा वन्दनकअध्ययन का अर्थ, मागु., गद्य, अरिहन)-<प्रतहीन.> मूपू., (इच्छामि कह) ११७१५-२ | (३) पौषधपारणसूत्र-तपागच्छीय का टबार्थ, प्रा.,गुज., गद्य, मूपू., (२) चैत्यवन्दनसूत्र, प्रा.,सं., प+ग, (नमो अरिहन) <प्रतहीन.> (सागरचन्दो) १०९४१-४९१), ९८७३-३ (३) चैत्यवन्दन सूत्र-पञ्जिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (रागाद्यरात) (३) पौषध प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (करेमि भन्त) १०१६५() ११६७७-४(+), ९८७३-२ (३) चैत्यवन्दनसूत्र-ललितविस्तरा वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., (३) मन्हजिणाणं सज्झाय-तपागच्छीय, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., ग्रं.१५४५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य भु) ११५७७ (मन्हजिणाणं) १०८३३-३ (३) चैत्यवन्दनसूत्र सङ्ग्रह-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., (२) पगामसज्झायसूत्र, प्रा., सूत्र २१, गद्य, मूपू., (करेमि भन्त) ग्रं.५५०, गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन) ११६११-१(+), १०५३४-१ ९८९६(+). ११७३३(+), ११७३१-१(+), १३७१३-१(+), ११२१२(+), (२) लोगस्ससूत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, (लोगस्स उज)-<प्रतहीन.> ९४२९, ११५७८-१, ११६१२, ११७३२, ११७३४ (३) लोगस्ससूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (चउद राजलोक) | (३) पगामसज्झायसूत्र-अर्थनिर्णयकौमुदी टीका, आ. जिनप्रभसूरि, १०१७५ सं., वि. १३६४, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ११६०७ (२) शक्रस्तव, प्रा., पद्य, मूपू.. (नमुत्थुणं) १०३००-७ (३) पगामसज्झायसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., ग्रं.२९६, (३) शक्रस्तव-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो) १०३००-७ ___ गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन) ११६१२, ११७३२ (२) सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दनसूत्र, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (३) पगामसज्झायसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सर्वं नमस) (सकलकुशलवल) १०००९-३, १२५४५-३ ११०९६ (३) सकलकुशलवल्लि चैत्यवन्दन-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (३) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अथ (-) १०००९-३ साधूनां) ११७३३(4) (२) आवश्यकसूत्र-षडावश्यकसूत्र, प्रा., गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) | (३) पगामसज्झायसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (निवर्तवा) ११५८४-१(+), ११७०६), ११५८५(45), १०४७७, १०८६३, ११२१२+7, ११७३४ १०९०१, ११५७९-१, ११६०१, ११६१४, ११७०९, ११७०७) (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चार बोल ते) (३) षडावश्यकसूत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमन्नाभ) १२४८१ ११५७८-१ (३) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (बार गुणे) (३) पगामसज्झायसूत्र-टबार्थ, पं. सुमतिविजय, मागु., गद्य, मूपू., ११६१४ (नत्वा श्री) ९८९६(+) (३) षडावश्यकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त ने) (२) प्रतिक्रमणगर्भहेतु, आ. जयचन्द्रसूरि, सं.,प्रा., वि. १५०६, ११५८४-१(+), १०४७७, १०८६३, १०९०१, ११७०९, ११७०७६) पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११६८५(+), ११६८६(५), १२७३१(+), (३) षडावश्यकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीतराग१२) ११६८७, ११३३३, १०२४६६६) ११५८५(45), ११५७९-१ (२) प्रतिक्रमणविधि सङ्ग्रह-तपागच्छीय, गुज.,मागु.,प्रा., गद्य, (२) कायोत्सर्ग १९ दोष, सं., गद्य, मूपू., (संजइ कविट) ९७८०- मूपू.. (-) १०४३३ (२) प्रतिक्रमणविषयक , प्रा.,सं., प+ग, मूपू., (-) १०७४२-२(4) (२) कायोत्सर्ग २१ दोष, सं., गद्य, मूपू., (ऐर्यापथिक) ११६११- (२) प्रतिक्रमण सज्झाय, मु. धर्मसिंह मुनि, मागु., गा. ६, पद्य, पू., (कर पडिकमणु) ९५७२-२२ २) For Private And Personal Use Only Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५०७ (२) प्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-श्वे.मू.पू.', प्रा.,सं.,मागु., प+ग, मूपू., ११५९७), १००७२ (नमो अरिहन) १०००८) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह चैत्यवन) (२) प्रतिलेखनबोल गाथा, प्रा., गा. ०५, पद्य, मूपू., (सुतत्थतत्थ) १२७२० १२५६७-३(+) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (इह तावत्) (३) प्रतिलेखनबोल गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (पहिली ११५७५ पडिल) १२५६७-३(क) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-अवचूर्णि, सं., गद्य, पू., (इह तावत्) (२) प्रत्याख्यानसूत्र, प्रा., पद्य, मूपू., (उग्गए सुरे) ११६७७-३), ११५७६ १११८५-२, ११६००-३, ११६०५-२, ११६०४-२०) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्तनइ) (२) राइअदेवसी प्रतिक्रमण', प्रा.,गुज., गद्य, मूपू., (-) १०७६६- १०६८८(+) (३) श्रावक पाक्षिक अतिचार-तपागच्छीय, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (२) राईप्रतिक्रमणनिरूपक गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (नाणंमि दंस) १००१५, १०५२२, १०९०६, १२७३०, १२७५१-२, (इरियाकुसुम) ९७८०-३ १२९४०() (२) राईप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा.,सं.,गुज., प+ग, (-)- (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, प्रा.,सं.,मागु., प+ग, <प्रतहीन.> मूपू., (णमो अरिहन) ११६७७-१(+), ११७०५(+), १०९२७-१, (३) भरहेसर सज्झाय, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू.. (भरहेसर बाह) ११६०९-१ ११९७३-१०, १२७५१-१२ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय-बालावबोध, गणि (४) भरहेसर सज्झाय-वृत्ति, गणि शुभशील, सं., २ अधिकार, वि. मेरुसुन्दर, मागु., वि. १५२५, गद्य, मूपू., (शिवाय श्री) १५०९, गद्य, मूपू., (युगादौ व्य) ९९३६६), १००७३(+) ११७०५(+) (५) भरहेसरबाहुबली-वृत्ति का टबार्थ, गणि हरिरूचि, मागु., गद्य, (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू., (नमो मूपू., (युगने आदे) ९९३६६५), १००७३(+) अरिहन) १०३८०+), १०५८५-१५), ११५९९५), १०२३२(+), (२) वन्दित्तुसूत्र, प्रा., गा. ५०, पद्य, मूपू.. (वन्दित्तु) ११७३५17, ११२९४(+), १०३९०(45), १००३१-१, १००९४, १०४८९, ११३६५, ११५८८, ११६१५) ११६०६-१, ११६१३, १२७१०, ११०७०, ११०६२(१), १११००६), (३) वन्दित्तुसूत्र-चूर्णि, आ. विजयसिंहसूरि, प्रा.,सं., ग्रं.४५९०, वि. ११२०७(5) ११८३, गद्य, मूपू., (सिद्धं सिद) ११५८९(+), ११७३५(+), (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, ११६६० मूपू., (अरिहन्त) ११२९४(+) (३) वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिका टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ५ (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, अधिकार, ग्रं.६६४४, वि. १४९६, गद्य, मूपू.. (जयति सततोद) | मूपू., (अरिहन्तनइं) १०३८०+), १०२३२(+), ११२०७(5) १०६०९, ११५८६, १०२४२(5), ११६१५(5) (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, मु. जिनविजय, (४) वन्दित्तुसूत्र-अर्थदीपिकाटीका का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., मागु., ग्रं.८०००उभय, वि. १७५१, गद्य, मूपू.. (बार गुणे) (नत्वा पञ्च) ११५८६, ११६१५(७) १०५८५-१६), १०३९०(45) (३) वन्दित्तुसूत्र-लघुटीका, आ. तिलकाचार्य, सं., गद्य, मूपू., (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-बालावबोध, पं. हेमहंस (प्रणिधाय) ११६११-३(+), ११७३६-३, १०५३४-२ गणि, मागु., वि. १५०१, गद्य, मूपू., (श्रेयांसि) ११७०६(५), (३) वन्दित्तुसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वन्दितु क०) ११५८८ ११६०१ (२) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र , प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (नमो अरिहं०) | (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., १०६८८), ११५८७), १०९४१-964), ११५७५, ११५७६, (माहरउ नमस) १००९४, १०४८९, ११६१३ १२७२० (३) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-तपागच्छीय-टबार्थ, मु. भीमविमल-शिष्य, (३) श्रावक प्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., मागु., गद्य, मूपू., (भीमविमलगुर) १०७४२-१(+) ग्रं.२७२०, गद्य, मूपू., (वृन्दारुत) ११५७४-१(+), ११५८१(4), (२) साधुअतिचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, स्था., (--) १०८०७-१ ११५८७५), ११५९७५), ११६४५(+), १००७२, ११६१६६६) (२) साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र-खरतरगच्छीय, प्रा., प+ग, मूपू., (४) श्रावकप्रतिक्रमणसूत्र-वन्दारू टीका का टबार्थ, मु. देवकुशल, (णमो अरिहन) ११६०४-१०) मागु., वि. १७६१, गद्य, मूपू., (बालानां सु) ११५८७५), | (२) साधुपञ्चप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह-तपागच्छीय, प्रा.,गुज., प+ग, For Private And Personal Use Only Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५०८ मूपू., ( नमो अरिहन) ११६००-१, १०४५१(5) (२) साधुप्रतिक्रमणसूत्र सङ्ग्रह श्वे. मू. पू., प्रा., प+ग, (नमो अरिहन) प्रतहीन > (३) क्षामणकसूत्र, प्रा., सूत्र ४ आलावा, गद्य, मूपू., ( इच्छामि खम) ११७४१-२ (+), ११६७६ - २ (+), ९६४९ -२, १०००९-२, ११६३१-२, ११६७१-२, ११६७२-२, ११६७९ - २, ११६८२-२, ११७३७-२, ११७३९-३ ११७४०-२, १०८०७-२, ११६७३-२, ११६४७-२, ११६७४-२ (-) (४) क्षामणकसूत्र-टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., वि. ११८०, गद्य, मूपू., ( ततो यथा रा ) ११६७१-२ (४) क्षामणकसूत्र अवचूरि, सं., गद्य मृपू. ( यथा राजानं ) ११६८२-२ (३) पाक्षिकसूत्र, प्रा. प+ग, भूपू. (तित्थङ्करे) ११६८३) ११७४१-१ (+), ११६७६-१ (+४), ९६४९-१, १०००९-१, १११९४ - १, ११६२६, ११६३१-१, ११६४७-१, ११६५९, ११६७१ -१, ११६७२१, ११६७५, ११६७९-१, ११६८२ १, ११७३७-१, ११७३८, ११७३९-१, ११७४०-१, १२२५१-२, १०८०७-३, १०९०७, ११६७३-१, ११६८१, ११६७४-१ (-) (४) पाक्षिकसूत्र- टीका, आ. यशोदेवसूरि, सं., ग्रं. २७००, वि. ११८०, गद्य, मूपू., ( इहार्हत्प) ११६७१-१, ११६८० (४) पाक्षिकसूत्र अवचूरि, सं., गद्य, मृपू., (तीर्थङ्करा) ११६८२-१ (४) पाक्षिकसूत्र- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवीरजिन) ११६८१ (४) पाक्षिकसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मृप्पू, (तीर्थङ्कर) ११७३८ (४) पाक्षिकसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, मृप्पू, (तीर्थन कर) ११६८३) " (३) साधुअतिचारचिन्तवन गाथा, प्रा. गा. १, पद्य, पू (सयणासणन्नप) १०४०५-२ १२६०१-५० (३) साधुपाक्षिक अतिचार वे.मू. पू. मागु. प्रा. गद्य, भूपू. (नाणम्मि द) १०३५०-२, १३१६९-१ www.kobatirth.org: (२) साधुश्रावकप्रतिक्रमणसूत्र- तपागच्छीय, प्रा. सं. मागु., प+ग, मूपू., ( नमो अरिहन) १०७४२-१(+), १०७६६-१, १०८८४ (३) पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, प्रा., गा. २, पद्य, भूपू ( चउक्कसायपड) १२७४३-२ (४) पार्श्वजिन स्तुति - अवचूरि, सं., गद्य, मूप्पू., (भुवनत्रयस) १२७४३-२ आवश्यक सूत्र विचार, प्रा. मागु प+ग, मृपू., ( नमो अरिहन) ११७०८ " इन्द्राशी स्तोत्र, सं., श्लोक १८, पद्य, वै. ॐ अस्य ९५३७-८ इन्द्रियपराजयशतक, प्रा., गा. १००, पद्य, मूपू., ( सुच्चिअ सू) ९४६६१०१, १०२५६-१११ १०९५०-११) १११८९१) ११९७६-११), १२५८१ १२५८, १२९८५ ११२१३-१, १२५०९. , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ १२५८०-३, १२९८६, ११९७५-१ (६) १२५८३-१ (S) (२) इन्द्रियपराजयशतक- टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., वि. १६६४, गद्य, भूपु (प्रणम्य गु) १२५८१ (२) इन्द्रियपराजयशतक छाया, सं., श्लोक १०२, पद्य, मृपु. ( स एव शूरः ) १२९८६ (२) इन्द्रियपराजयशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., ( तेहिज सूर ) ९४६६१ १०२५६-१) १०९५०-११ १११८९ ११९७६-१० १२५८२ (+), १२९८५(+), ११२१३-१, १२५८३-१($) इलापुत्र कथा, सं., श्लोक १००, पद्य, मूपू., (इहेलावर्द) १३२०६ २ इश्वरजगत्कर्तृकोस्थापनस्थल, सं., गद्य, मूपू., (तन्वादिकं ) १२६७३-१० इष्टोपदेश, आ. देवनन्दी, सं., श्लोक ५१, पद्य, दि., (यस्य स्वयं) ११९७७ (२) इष्टोपदेश-टीका, सं., गद्य, दि. (इवं इष्टोप) ११९७७ ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक, उपा. धर्मसागर, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (पणमिअ जिणव) १३००९ (४ (5) (२) ईर्यापथिकषट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा धर्मसागर, सं. ग्रं. ७४७, गद्य, मूपू., (प्रणम्यात ) १३००९ (S) ईशानराजा कथाकन- बारव्रतविषये, सं., गद्य, मूपू., (अङ्गदेशे ) १२५१२-३ उक्तित्रय, सं., गद्य, मुपु (सर्वज्ञ) १२८५३ उत्तमकुमार चरित्र, सं., गद्य, मूपू., (भक्त्या वस) १२३२३, १२४३११, १२४७८-१ उत्तमकुमार चरित्र, मु. चारुचन्द्र, सं., श्लोक ५७२, पद्य, मूपू., ( वन्दित्वा ) १२३१९, १२४७७-१, १०५१४ (२) उत्तमकुमार चरित्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ( पोताना गुर) १०५१४ उत्तमनरेन्द्र चरित्र कथा, गणि सोममण्डन, सं., श्लोक ९१२, पद्य, भूपू ( भारवान रा) १३२२८) " " उत्तराध्ययनसूत्र, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा. ३६ अध्ययन प्र. २०००, प+ग, मूपू., (सञ्जोगाविप) ९५२७ (+), १०२९७(+), १०५९३ (+), १०६२६ (५) १०६२८(+) १०६८०) ११७०४/०) ११७५३९ ११७५४) ११७५६) ११७६९ ११७०७) ११७७८ ११७८१ (+), ९६१०(+), १०३९३ (+), १०७५१(+), ११६४८ (+), १०२३६(५), ११७७२(१, ११७७३ ११७७४/ ११६४९(क) ११७८०१), १९७५) ११७५ For Private And Personal Use Only १०६९८४७०+) १०२०३ (+$), ११७६० (+$), ११७६२ (+), ११७७६ ९३३९(+$), १९११ ११६५२/ ११७६३/० ३ (+$), ९९५० - १ (+), १००४०, १०५८१, १०६८३, १११२३, ११६५१, ११७५२, ११७७९, ११७५८, ९९४२, १०५५३, १०६५९, ११७५५, ११७७५, १००६९, (s+) " Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५ ०९ ९४१३, १०५७२,१११०२-४, ११७६७, १००१०, ११७६४, ११७७८(+), ११७८१(+), ११७८०(+), ९९५०-१(+-), १००६९, ९५५१), ९९१७, ११७६८(), ११७८२(१), १०३९९७). ११७६७ ११०१८(६), १०७०८(5) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ, सं., गद्य, जै., (संयोगक्रोध) ११७५८ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति , आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६०७, (२) उत्तराध्ययनसूत्र अध्ययन ४, प्रा., गा. १३, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (नामं ठवणाद) ९९३५(+), ९३३९(+$) (असङ्खयं जी) १३००२-४ (३) उत्तराध्ययनसूत्र-नियुक्ति की शिष्यहिताबृहद्वृत्ति#, आ. (२) महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन-हिस्सा, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., गा. शान्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (-) ११७६५ ६०, पद्य, मूपू.. (सिद्धाणं) १०२९४-२ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अधिरोहिणी वृत्ति, मु. भावविजय, सं., (३) महानिर्ग्रन्थीय अध्ययन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (सिद्धेभ्य) ग्रं.१४२५५, वि. १६८९, गद्य, मूपू., (ॐ नमः सिद) १०२९४-२ ११७७६(+६), ११७६३(45) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह', मागु., गद्य, जै.. (--) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टीका', सं., गद्य, मूपू., (-) ११७६६ १२४७६ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-दीपिका टीका, मु. विनयहंस, सं., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, पं. पद्मसागर, सं., ग्रं.४५००, ग्रं.६०००उभय, वि. १५७२, गद्य, मूपू., (उत्तराध्यय) १०२९७५) वि. १६५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ११७६१(+), १२४३८(+), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., (भिक्षो | १०६९४, १२४३९ विन) १०६८०५), १०६९८(+#5), १०५५३, ११७६४, ११७८२(१), (२) उत्तराध्ययनसूत्र-कथा सङ्ग्रह, मु. मुनिसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., ११०१८) गद्य, मूपू.. (अर्हतः सर) १०७३५) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-लेशार्थदीपिका टीका का बालावबोध, मागु., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययन विषय व गाथासङ्ख्यासूचक गाथा, गद्य, मूपू., (भिक्षु महा) १०६८०), १०६९८+#5), १०५५३, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (जे केइवि) ९९५०-२+-) ११७६४, ११७८२(१), ११०१८(5) (३) उत्तराध्ययनसूत्र-अध्ययनविषय व गाथासङ्ख्यासूचक गाथा (२) उत्तराध्ययनसूत्र-शिष्यहिता बृहद्वृत्ति# , आ. शान्तिसूरि, सं., का-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जे केइ भवस) ९९५०-२+-) ग्रं.१६०००, गद्य, मूपू., (शिवदाः सन) ९९३५(५), ९३३९(+5), उत्पादादिसिद्ध प्रकरण, मु. चन्द्रसेन, सं., ग्रं.५२००, वि. १२०७, ११७६५ ___ गद्य, मूपू., (अर्ह आज्ञ) १३१८६ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सुखबोधा लघुटीका, आ. नेमिचन्द्रसूरि, सं., उदयत्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., ३ त्रिभंगी, ग्रं.१२०००, वि. ११२९, गद्य, मूपू., (प्रणम्य वि) १०५९३५), गा. ७३, पद्य, दि., (पञ्चणवदोणि) ९८९४-१(+), ९८१९(5) ११६४८(+), ११७७२(+), ११७७३(+), ११७७४(+), ११६४९(+), (२) उदयत्रिभङ्गी-टिप्पण, सं., गद्य, दि., (-) ९८९४-१(+) ११७६०+६), ११७६२(45), ११६५२(45), १०५८१, ११६५१, (२) उदयत्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, दि., (गुणस्थानरच) ११७७५, १०५७२, ९५५१(६), १०७०८(5) ९८९४-१(+) (२) उत्तराध्ययनसूत्र-सूत्रार्थदीपिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, उदायननृप कथा, सं., श्लोक १०७, पद्य, मूपू., (जम्बूद्वीप) सं., ग्रं.१५३००, वि. १८पू, गद्य, मूपू., (अर्हन्तो) ११७७७१, १२४७९-६ १००४० उपदेशकन्दली, श्रा. आसड, प्रा., १३ विश्राम, पद्य, मूपू., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-विषमपद टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (-) (तिहुयणमङ्ग) ११९८९ ११७५६(+) (२) उपदेशकन्दली-वृत्ति, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., १३ विश्राम, (२) उत्तराध्ययनसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (भिक्षु महा) ग्रं.७६००, गद्य, मूपू., (यन्नाभिनास) ११९८९ ११७६९) उपदेशचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., ४ भाग, गा. ५४०, (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ + कथा सङ्ग्रह , मागु., गद्य, मूपू., पद्य, मूपू.. (तित्थयरे) १२०६६, १०८९१७) (श्रीमहावीर) ९९४२ (२) उपदेशचिन्तामणि-स्वोपज्ञ टीका, आ. जयशेखरसूरि, सं., (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (संयोग बे) ग्रं.१२०६४, वि. १४३६, गद्य, मूपू., (प्राचीमेका) १२०६६ ९६१०+), १०७५१(+), १०२३६(+), ९७७०(45), १०२०३६+६), उपदेशतरङ्गिणी, गणि रत्नमन्दिरगणि, सं., ५ तरंग, ग्रं.३३००, ११७७९, १००१०, ११७६८(5) पद्य, मूपू., (श्रीनाभेयः) १०८९३ (२) उत्तराध्ययनसूत्र-टबार्थ+कथा सङ्ग्रह, मु. पार्श्वचन्द्रसूरि- उपदेशपद, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १०३९, पद्य, मूपू., शिष्य, मागु., ग्रं.९०००उभय, गद्य, मूपू., (पूर्वसंजोग) ९५२७५), | (नमिऊण महाभ) १००९९, ११९८५ For Private And Personal Use Only Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ ९८९५(5) (२) उपदेशपद-छाया, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा महाभ) १००९९ | (२) उपदेशमाला-कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (वन्दित्वा) ९४२७६) उपदेश प्रबन्ध, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (-) १०९८५-१(45) (२) उपदेशमाला-कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (-) ९६९८(5) उपदेशप्रासाद, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., २४स्तंभ, वि. १८४३, प+ग, | (२) उपदेशमाला कथा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., पद्य, मूपू., मूपू.. (स्वस्ति) १०२८१(+7, १०१८७+#), १०४९०(45) (श्रीउपदेसम) १०३८७, १०६१२, १०५९२ (२) उपदेशप्रासाद-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (--) १०२८१), उपदेशरत्नमाला, आ. पद्मजिनेश्वरसूरि, प्रा., गा. २६, पद्य, १०१८७), १०४९०(45) मूपू., (उवएसरयणकोस) १२०१६, १२६१०-१, १०८१७, उपदेशमाला, गणि धर्मदास, प्रा., गा. ५४४, पद्य, मूपू., (नमिऊण १२७५१-३, ११३००-२, १०४०३६) जिणव) ९९४१(+), १०२४९), १०७५४(+), १०७७९६५), (२) उपदेशरत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (श्रीमहावीर) १०८७०+), १११३४(+), ११२७५(+), ११९७९), ११९८८), १०८१७, १२७५१-३, १०४०३६१) ११९९३(+), ११९९४(२), ११९९५(५), ११९९९), १२०७८(+), (२) उपदेशरत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (उपदेशरूप) १०५६०५), ११२०८(+), ११९९०+), ११९९२), ११६७७-३८+), १२०१६, १२६१०-१, ११३००-२, १०४०३६१) ११९९१(+६), ११९९८+5), १०४९४, १०६४५, १०७३२, १०८३९, उपदेशरत्नाकर, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा.,सं., ३अधिकार १६अंश, १०८७७-१, ११२७६, ११९७८, ११९८०, ११९८२, ११९८४, पद्य, मूपू., (जय सिरिवंछ) ९७१९(+), १२०१०+) ११९८६, ११९८७, ११९९७, १०७०९-६, १०८१२, १०९५८, (२) उपदेशरत्नाकर- स्वोपज्ञवृत्ति, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., गद्य, ११९८१, १२०१२, ९३७४, ११२५२-१७), ९४२७६), ९६९८७), ___ मूपू., (तत्रादौ) ९७१९(+) १०८९२-१(६), ११९८३(5), ११९९६६), ९४३२(5), ९४३३(5), उपदेशरहस्य, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., गा. २०३, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्ध) १०४५६, १०७३७ (२) उपदेशमाला-उपदेशकर्णिका वृत्ति, आ. उदयप्रभसूरि, सं., (२) उपदेशरहस्य-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ग्रं.१२२७४, वि. १२९९, गद्य, मूपू.. (अहँ तनोत) ११९८७ गद्य, मूपू., (ऐंकारकलितर) १०४५६, १०७३७ (२) उपदेशमाला-वृत्ति, गणि रामविजय, सं., ग्रं.७६००, वि. उपदेशशतक, आ. विबुधविमलसूरि, सं., श्लोक १०९, वि. १७९३, १७८१, गद्य, मूपू., (श्रेयस्कर) १२०७८(+), १०६४५, १०१८०, पद्य, मूपू., (श्रीपञ्चास) १११८८ ११९९६(5) उपदेशसप्ततिका, वा. क्षेमराज, प्रा., गा. ७३, वि. १५४७, पद्य, (२) उपदेशमाला-हेयोपादेया वृत्ति, गणि सिद्धर्षि, सं., ग्रं.९५००, मूपू.. (तित्थङ्करा) ९७५३(+#) वि. १०वी, गद्य, मूपू., (हेयोपादेया) ११९८८), ११९९९५), | (२) उपदेशसप्ततिका-स्वोपज्ञ टीका, वा. क्षेमराज, सं., वि. ११९९८(45), १२०१२ १५४७, गद्य, मूपू.. (विश्वाभीष) ९७५३(+#) (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिनव) उपदेशसप्ततिका, गणि सोमधर्म, सं., ५ अधिकार, वि. १५०३, ११९९५(4) पद्य, मूपू., (श्रीसोमसुन) १२६२२ (२) उपदेशमाला-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा प्रण) ११९९७ उपदेशसार, गणि कुलसार, सं., अध्याय ५९, , जै., (२) उपदेशमाला-पर्याय, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं.१५००, गद्य, (यत्कल्याणक) १२००३ मूपू., (इन्द्रनरेन) ११२७३(+), १०७३२ (२) उपदेशसार-वृत्ति, सं., गद्य, जै., (नमो अरिहन) १२००३ (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) उपधानतपआदि विधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., पद्य, मूपू.. (प्रथम १०७७९) द्वि) १२७३९ (२) उपदेशमाला-बालावबोध, मु. वृद्धिविजय, मागु., वि. १७१३, उपधानतप विधि, सं.,प्रा., गद्य, म्पू., (तत्र प्रथम) १२९३६-१२ गद्य, मूपू.. (नमस्कार कर) ९९४१(+), ११९९४(+), ९३७४ उपधानतप विधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू.. (पञ्चमङ्गल) (२) उपदेशमाला-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., १२७४२-१ ग्रं.५९००, वि. १४८५, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११९९०+) उपधान तपविधि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (पहिलुं नवक) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, म्पू., (धीरं वीरं) १०७५४१) १२७०५-१(5) (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (नमिऊण कहीइ) उपधानतप विधि, प्रा.,सं., गद्य, जै., (प्रथमः द्व) ९९७९-१(+) ११९९३(+), ११९९२(+), ११९९१(45), ९४२७६) उपमितिभवप्रपञ्चा कथा, गणि सिद्धर्षि, सं., ८ प्रस्ताव, (२) उपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०५६०५) ग्रं.१६०००, वि. ९६२ , पद्य, (नमो निर्ना)-<प्रतहीन.> (२) उपदेशमाला-कथा, मागु., गद्य, मूपू., (हवे श्रीउप) १०९८६(-) | (२) उपमितिभवप्रपञ्चाकथासारोद्धार, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., For Private And Personal Use Only Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५११ अध्याय ८, ग्रं.५७३०, वि. १२९८, पद्य, मूपू.. (ॐनमो विषय) ऋषिदत्तासती कथा, सं., गद्य, मूपू.. (भरते रथमर) १२४८२-२३(+) १०३६१ ऋषिपुत्रिका अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०१, पद्य, उपसर्गगण, सं., श्लोक २१, पद्य, मूपू., (प्रपरापसमन) १२८८७+) मूपू., (सो जयउ जएउ) १०४७४(+) (२) उपसर्गगण-दीपिकाटीका, सं., गद्य, मूपू., (अयं उपसर्ग) ऋषिभाषितप्रकीर्णक, मु. प्रत्येकबुद्ध, प्रा., अध्याय ४५, प+ग, १२८८७(+) मूपू.. (सोयव्वमेव) ११८४४-१ उपाधि प्रकरण, सं., गद्य, मूपू.. (उपाधिस्तु) १३१८९ (२) ऋषिभाषितप्रकीर्णक-अर्थाधिकारसङ्ग्रहणी, प्रा., गा. ५, पद्य, उपासकदशाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय १०, मूपू., (सोयव्वं जस) ११८४४-३ ग्रं.८१२, प+ग, मूपू., (तेणं० चंपा) १०८३७६+), ११३७६(+), (२) ऋषिभाषितप्रकीर्णक-ऋषिभासितसङ्ग्रहणी, प्रा., पद्य, मूपू., ११४८८(+), ११४८९(+), ११६६६(+), ९३४९, ९९६५, १०२६३, (पत्तेयबुद) ११८४४-२ १०३९१-१, १०६५६, १०६७२, १०७६२, १०७८३, १०८४६, ऋषिमण्डल प्रकरण, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २०९, ग्रं.२५९, १०८८०, १०९०३, १०९३४, ११२२३, ११२४४, ११४८७, वि. १४वी, पद्य, मूपू., (भत्तिब्भरन) ९५५२-१+), १३५२६(५), ११५०९, ११५१९, ११६३०, ११७४९-१, ९६०९, १०७९९, १३६७३(+), १००७१, १०५०५, १११८४, १३५२७, १३६६९, १११२८, १०१६६, ११५१२(5) १३६७४, १३६७०, १२०२६, १२०००(5), १३६७१(5) (२) उपासकदशाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., वि. (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-कथार्णवाङ्क वृत्ति, गणि पद्ममन्दिर, १११७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११४८९), ११४९८-१(+), सं., ग्रं.७२६१, वि. १५५३, गद्य, मूपू.. (जयाय जगताम) ११४९९-१(+), ११५२२(+), ११५०७, ११५०८, ११५०६ ९३४८(45), १२०००) (२) उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) | (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) १०७६२, १०१६६, ११५१२(5) ९५५२-१(+) (२) उपासकदशाङ्गसूत्र-टबार्थ, मु. हर्षवल्लभ, मागु., (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-टीका, गणि शुभवर्धन, सं., गद्य, मूपू., ग्रं.३०००उभय, वि. १६९३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९३४९, ९९६५, | (योभूयुगा) १००७१, १३६७१(5) १०३९१-१, ११५०९, ११५१९, ११६३०, ११७४९-१, ९६०९ (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-प्रभातव्याख्यानपद्धति टीका, गणि (२) उपासकदशाङ्गसूत्र-आनन्दादि श्रावकों का विचार, हर्षनन्दन, सं., ग्रं.४५६४, वि. १७०४, गद्य, मूपू., (अथ मागु.,सं., गद्य, मूपू., (श्रीवर्धमा) ११४८७ मल्लिस) १२०२६ उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५, पद्य, (२) ऋषिमण्डल प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भक्ति घणी) मूपू.. (उवसग्गहरं) १०३००-३ १३५२७, १३६६९, १३६७०, १११८४, १३६७४ (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ५ का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., एकविंशतिस्थान प्रकरण, आ. सिद्धसेनसूरि, प्रा., गा. ६६, पद्य, (उपसर्ग जे) १०३००-३ मूपू., (चवण विमाणा) ९७९०-१(4), ११२७९(+), १२१९१(+), (२) उवसग्गहर स्तोत्र-गाथा ०५ की प्रियङ्करनृप कथा, मु. १२७६३६), १२७७१(45), १०८०५, ११३६१, १२७७०, १२७७८-१, जिनसूर मुनि, सं.,प्रा., वि. १६वी, गद्य, मूपू.. (वंशाब्जश्र) १२७६९-१, १२७७२-१ १३५२१, १२५०५ (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., ऋषभपञ्चाशिका, कवि धनपाल, प्रा., गा. ५०, वि. ११वी, पद्य, (विमान नयरी) १२१९१(+) मूपू., (जयजन्तुकप) १०३२७, १२६०४, १२६०६, १२६०७-२, (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चोवीस १२६०८, १३०५१, १२६०५-१, १३७११-१०(१), १२१६२-१२(5) तीर) ९७९०-१(+), ११२७९६५), १२७६३(+), १२७७१(45), १२७७२(२) ऋषभपञ्चाशिका-टीका, गणि नेमिचन्द्र, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा जिने) १०३२७, १२६०७-२, १२६०८ (२) एकविंशतिस्थान प्रकरण-टबार्थ, मु. मानचन्द्र, मागु., गद्य, (२) ऋषभपञ्चाशिका-टीका, आ. प्रभानन्दसूरि, सं., गद्य, मूपू., मूपू., (श्रीदेवगुर) १२७७० (जयत्ति व्य) १२६०४, १३०५१ एकीभाव स्तोत्र, आ. वादिराजसूरि, सं., श्लोक २६, ईस. ११वी, (२) ऋषभपञ्चाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (जगजन्तु कल) | पद्य, दि., (एकीभावं गत) १००८९-५, १३६७५ १२६०६, १२६०५-१ (२) एकीभाव स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (भो देवयो) १३६७५ ऋषिदत्तासती कथा, सं., श्लोक ४४८, पद्य, मूपू.. (अस्तीह भरत) एगूणतीसी भावना, प्रा., गा. ३०, पद्य, जै.. (संसारम्मि) १२०४३ १२४८०-२(+4) (२) एगूणतीसी भावना-टबार्थ, सं., गद्य, जै., (संसार किदृ) For Private And Personal Use Only Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ १२०४३ | (२) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (व्याख्यान) १०२०८-१(+) एडकाध्ययनसूत्र, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जहा एसं सु) १०९६५ । (२) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्याख्याना) ११३०६(+) (२) एडकाध्ययनसूत्र-अनुवाद, मागु., गद्य, मूपू., (जथा को एक) | (२) कर्पूर प्रकरण-कथा सङ्ग्रह, सं., १५७ कथा, गद्य, मूपू., १०९६५ (श्रीवर्द्ध) १२५४०(4) ओघनियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ११६४, पद्य, मूपू., कर्मदहन पूजा, आ. मलयगिरिसूरि , सं., पद्य, मूपू., (सकल (अरहन्ते वन) ११७८८(+), ११७८५(५), ११६६७, ११७८४, कर्म) १०४७२+#) ११७८७-१, १०३९७ कर्मप्रकृति, सं., गद्य, जै., (जिनेन्द्रा) १३१८१-२(१) (२) ओघनियुक्ति-टीका#, आ. द्रोणाचार्य, सं., ग्रं.६८२५, वि. कर्मप्रकृति, आ. शिवशर्मसूरि, प्रा., ७ अधिकार, गा. ४७५, पद्य, १२वी, गद्य, मूपू., (अर्हद्भ्यस) ११७८५(+), ११६६७, १०३९७ मूपू., (सिद्ध सिद) १२१७१(+), ९३६८(45), ९५१५, १०५७८, (२) ओघनियुक्ति-अवचूर्णि# , आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., ग्रं.३३००, १०६३२, १३१२६, ९७५२ वि. १४३९, गद्य, मूपू.. (प्रक्रान्त) ११७८८), १०७८७, (२) कर्मप्रकृति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., गद्य, मूपू., ११७८६, १०२२९, ११७८७-१ (प्रणम्य कर) १२१७१(+), ९३६८६+६), ९५१५, १०५७८, १०६३२ औपदेशिक दूहा सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., गा. ९, पद्य, जै., (काम वली | (२) कर्मप्रकृति-टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू., सव) ९९०७-२, १२५७२-४ (एन्द्री सम) १३१२६, ९७५२ औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह, सं.,प्रा., श्लोक २७, पद्य, मूपू., कर्मप्रकृतिनो गुणन टीप, सं., गद्य, मूपू., (मतिज्ञानाव) १३१७१ (सकल कुशलवल) ११३००-१ (२) औपदेशिक श्लोक सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सकल | कर्मबन्ध भङ्गानि, सं., गद्य, मूपू., (बन्धी बन्ध) ११२२२-५ कहेतां) ११३००-१ कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ६०, पद्य, औपपातिकसूत्र, प्रा., सूत्र १८९, ग्रं.१६००, प+ग, मूपू., (तेणं मूपू., (सिरिवीरजिण) १०८११-१(+), ११२९०-१(+), ११३५०कालेण) ९४६०+), ११४०७(+), ११५३६(५), ९४७९(+), ११२४२, १(+), १२१४३(+), १२१४८-१(+), १२१५८(+), १२१६१-१(+), ११५३१, ११५३४, ११५३५ १३२७०-१(+), ९७२६-१(+), ९८३७-२(+), १२१६७-१+), १२१६८(२) औपपातिकसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं.३१२५, १(+), १३२५१-१(+), ९५१०-१(45), १०१५९-१(48). १०१८९-१६+६), गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११५३३६५), ११०००, ११५३१, ११५३२ १२१६४-१(६), १३२९०-१(45), ९८०४-१(+5), १०१२०, १०५४९(२) औपपातिकसूत्र-दुर्गमपद बालावबोध, ऋ. मोहन ऋषि, मागु., १, १०५७०-१, १०६०२, १०६७६-१, १०८९५-१, ११०३३-१, गद्य, जै., (प्रणम्य) ११४०७+), ११५३५ ११३५२-१, १२१४५-१, १२१४६, १२१५१-१, १२१६६-१, (२) औपपातिकसूत्र-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, मूपू., १३२६९-१, ९९१९-१, १०८०२-१, १२१५३-१६), १२१७०-१(*), (वन्दित्वा) ९४६०(+), ११५३६(+), ११५३४ १२१६५-१९५), १०१६१-१(5) कथाकोश, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम मृषा) १०४९१(45) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुबोधा टीका, आ. कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (पश्चिमविदे) १२४६८ देवेन्द्रसूरि, सं., ग्रं.१८८२, गद्य, मूपू., (दिनेशवद्ध) १२१६१कथा सङ्ग्रह, सं.प्रा., पद्य, जै.. (येनादौ नयस) १२५१५ १(+), १०१५९-१(45), १०५७०-१, १२१७०-१(#) कथा सङ्ग्रह, पाठक राजवल्लभ, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (ईर्याप्रति) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., ९७७७) (श्रियाष्टप) १२१५८(१), १२१५२-१, १२१४४-१, १२१५३-१(१) कनकरथ कथा, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरत) १२४८३-५ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिरि० कमलश्रेष्टि कथा-मृषावाद, सं., गद्य, जै., (असत्येन नि) १२५१२- | ज्ञा) १२१५९-१ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि#, आ. गुणरत्नसूरि, सं., कर्पूरप्रकर, मु. हरिसेन, सं., श्लोक १७९, पद्य, मूपू.. (कर्पूरप्रक) ग्रं.३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (सिरि० श्रि) १२१५०-१ १००२५६), १०२०८-१(+), १२१८६६), १२१८८५), १२१८९(+). (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु., गद्य, मूपू., (-) १२२३९-१(+), ११३०६(+), १०४३८, १२१८७, १२१९० १२१६४-१(45), ९८३७-२(+) (२) कर्पूरप्रकर-टीका, आ. जिनसागरसूरि, सं., वि. १५५१, गद्य, (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (-) मूपू.. (व्याख्याया) १०४३८, १०७७४-१ १२१६७-१(+), १२१६८-१) (२) कर्पूरप्रकर-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (व्याख्या) १२१८६(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-शब्दार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सिरि For Private And Personal Use Only Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१३ के लक) १०२९२-१ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (तथा (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., वीरजिन) १२१५२-२, १२१४४-२, १२१५९-२, १२१५३-२(१), (वर्द्धमानज) १२१४६ १२१५६-१७) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., वि. (श्रीवर्द्ध) ९५१०-१(45), १२१४९-१ १४५९, गद्य, मूपू.. (तह० गुणस्थ) १२१५०-२ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, उपा. जयसोम, मागु., (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु., गद्य, मूपू., (--) गद्य, मूपू., (ऐंदवीयकलाश) १०६०२ १२१६४-२६) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (आचिरेय (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (-) नमस) १०१८९-१(45) १२१६७-२(+), १२१६८-२(+) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ+बावावबोध, मागु., गद्य, (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., (तिम मुपू., (प्रणिपत्य) १०१२० श्रीमह) ९५१०-२(45), १०२९२-२, १२१४९-२ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (तह कहता (श्रीवीरजिन) १०८११-१(4), १२१४३६), १२१४८-१(+), ९७२६- ति) १२१४८-२(+), १०१८९-२६+६), १०१२१ १(+), १०५४९-१, १०६०२, १२१४५-१ (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (बन्ध ते) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ , मु. जीवविजय, मागु., वि. १०८११-२(१), ९७२६-२(+), १३२९०-२६), १०५४९-२, १२१४५ १८०३, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) १३२७०-१(+), १०१६१-१(5) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., वि. | (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (शारदां वरद) १३२६९-१, १०८०२-१ १८०३, गद्य, मूपू., (तथा तिणे) १३२७०-२६), १०१६१-२(5) (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, गणि साधुकीर्ति, मागु... (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. धनविजय, मागु., गद्य, गद्य, मूपू., (श्रीमद्वीर) १३२९०-१(+$) मूपू., (तिम हु) १३२६९-२, १०८०२-२ (२) कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, | । (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु., यंत्र, मूपू., (श्रीवीरजिन) १२१५१-१, १३२७७-१ मूपू., (बन्ध प्रकृ) १२१५१-२, १३२७७-२ कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रन्थ, ऋ. गर्ग महर्षि, प्रा., गा. १६८, पद्य, | कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रन्थ, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू.. (नमिऊण मूपू., (ववगयकम्मकल) १२१६२-१(5) जिणव) १२१६२-२(5) (२) कर्मविपाक प्राचीन कर्मग्रन्थ-पारमानन्दी टीका, आ. (२) कर्मस्तव प्राचीन कर्मग्रन्थ-भाष्य प्रथम, प्रा., गा. ३२, पद्य, परमानन्दसूरि, सं., ग्रं.९२२, गद्य, मूपू., (निःशेषकर्म) ११७३६- । मूपू., (बन्धे विसु) १२१६२-३(5) कलकाष्टक, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., कर्मसंवेध प्रकरण, गणि देवचन्द्र, प्रा., गा. १७४, पद्य, मूपू., (त्रैलोक्यं) १३३१३-२ (सिरिवीरनाह) १२१९५६) कलावती कथा, सं., गद्य, मूपू., (भदं कलाव) १२५३१-४ कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू.. कलिकुण्ड पूजा, सं., प+ग, जै.. (ह्कार) ९३४७-६०) (तह थुणिमो) १०८११-२(+), ११२९०-२(+), ११३५०-२(+), कलिङ्गसेना कथा, सं., गद्य, मूपू., (अभूत्कलिङ) १२४८२-१३(+) १२१४८-२), १२१६१-२(+), १३२७०-२(+), ९७२६-२), ९८३७- कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., ९-व्याख्यान, ग्रं.१२१६, गद्य, ३(+), १२१६७-२(१), १२१६८-२(१), १३२५१-२(+), ९५१०-२६+६), मूपू.. (तेणं कालेण) ९३२९(+), ९३५१(+), ९३७०+), ९९२७+), १०१५९-२(45), १२१६४-२(+5), १३२९०-२+5), १०१८९-२(45), १००७९(+), १०५५७+), १०५६६६), १०५७१-१(+), १०५७९-१(+), १०१२१, १०५४९-२, १०५७०-२, १०६७६-२, १०८९५-२, १०६००-१(२), १०६१९(+), १०७२५), ११००२), ११६१८५५), ११०३३-२, ११३५२-२, १२१४५-२, १२१५१-२, १२१६३-१, ११६२०(+), ११८५२(+), ११८५४(+), ११८५९), ११८६२(+), १२१६६-२, १३२६९-२, ९९१९-२, १०८०२-२, १२१५३-२(१), ११८६३(५), ११८७४-१(+), ११८९२-१(+), ११९०२), ११९०४(4), १२१७०-२(#), १२१६५-२(१), १०१६१-२(5) ११९०५९+), ११९०६(+), ११९०७(+), ११९१३(+), ११९१४(+), (२) कर्मस्तव नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ सुखबोधा टीका, आ. १०१९६(५), १०६०६(५), ११८६६(+), ११८७३(+), ११९११५), देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (बन्धोदयोदी) १२१६१-२१), ११८८४(+), ९५२४(१), १०६३४-१५), ११६३९५), ११८६०+), १०१५९-२६), १०५७०-२, १२१७०-२(१) ११८९४(+), ११८९५), ११८९९५), ११९०१(+), ९३६२(+), For Private And Personal Use Only Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१४ ११६४२ (+), १०५०३ (+), १०५७५(+), ११८७० (+), ११८७७/+), ११८८५) ११९०३) १३००४-२ ११८९ ९९५१/०४ ११८६ ९९५२(+$), ९९५४(+$), ९९५५ (+), १०२६१ (18) १०७०६-१ ११८५६०४) ११८६१०१, १०३६०/-), ११८५५ ११६३८ (+), ११८४७(+), ९३३०, ९३७२, ९३७५, ९५००, ९७१३, ९७६१, ९९२९, १००७७, १०१५०, १०५५४, १०५८४, १०५८९, ११६१९, ११६२१, ११६२८, ११६२९, ११८५१, ११८५३, ११८५७, ११८५८, ११८६५, ११८६८, ११८८९, ११८९०-१, ११९००, ११९०९, ९७०४, १०६२९, ११८९३, ११८६९, ११८९८, १०४५९, ११८४६, ९३९२, ११६४१, ११८७१, ११८८२. ११८९६, १००६०, ११८७२ ११८८० ९३९० ९७४० ($), १०३०११) १०६८५ाश ११८३३१, ११८८७ ११८८८ श " www.kobatirth.org: १०६३३(s), ११८८३ (३), ११८८६ ($) (२) कल्पसूत्र- पुर्णि, प्रा. गद्य, भूपु. ( सम्बन्धो) ११८५०१० (२) कल्पसूत्र कल्पकिरणावली टीका, उपा. धर्मसागरगणि सं., ग्रं.५२१६, वि. १६२८, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य ) ११८५९(+), ११८६७ १०५५४ ११८५७ ११८५८ (२) कल्पसूत्र- कल्पकौमुदी टीका, उपा. शान्तिसागर सं., " ग्रं. ३७०७, वि. १७०७, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पर) ११८६६ (+) (२) कल्पसूत्र- कल्पदीपिका टीका, मु. जयविजय स. प्र. ३४३२. वि. १६७७, गद्य, मृपू. ( तेणं कालेण) ११८६९ (२) कल्पसूत्र कल्पद्रुमकलिका टीका, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं... ग्रं.४१०९, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११९०२ (+), ११९१३ ११९११ ११८९९१ ११८७८ ११८९६ १२०८२१, ११८८० ११८६५. (३) कल्पसूत्र- कल्पद्रुमकलिकाटीका का वालावबोध, राज, गद्य, मूपू., ( वर्द्धमान ) ९८५१ . (२) कल्पसूत्र-कल्पप्रदीपिकाटीका, पण्डित सङ्घविजय, सं., [प्र.३२५०, वि. १६०४, गद्य मुपू. (श्रीवर्द्ध) १०६८५कि (२) कल्पसूत्र - कल्पमञ्जरी टीका, मु. रत्नसार, सं., गद्य, मूप्पू., (श्रीनाभेयज) ११९०० (२) कल्पसूत्र- कल्परत्नाकरी टीका, मु. धर्मरत्नविजय, सं., वि. १९७६, गद्य, मृपू., (प्रणम्य) ११९०६ (+) " (२) कल्पसूत्र- कल्पलता टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं.. ग्रं. ७७००, वि. १६८५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) ११८६२(+), ११८६३(+), ११८६४(+), ११६४२ (+), १०२६१ (+), ११८६१ (+$), ११६३८(+$), ११३१२ (२) कल्पसूत्र- टीका *, सं., गद्य, मुपू., ( प्रणम्य ) १०५०३ (+), ११८४७(+), १०५८४ (२) कल्पसूत्र - सन्देहविषौषधि टीका, आ. जिनप्रभसूरि, स.. [प्र.२२६८. वि. १३६४, गद्य, मृपू. (ते इति प्र) ११८५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ १३०३६(+), १०१६३, १०७३४, ११६४३, १०१३९, ९५९० (5) (२) कल्पसूत्र - सुबोधिका टीका, उपा. विनयविजय, सं., ग्रं. ६५८०, वि. १६९६, गद्य, मृपू. (प्रणम्य पर) १०५६६१०० ११६१८१), ११९०४(+), ११९०५) ११६३९ ११८६००) ११९०११) ११९०८-१० १०३६०/- १०००७, ११६१९. " ११६२१, ११६४१ (३) कल्पसूत्र-सुबोधिकाटीका का वालावबोध, मागु, गद्य, मृपू.. (प्रणम्य पर) ११८९२ -१ला (२) कल्पसूत्र - अवचूरि*, सं., गद्य, मूपू., (अत्राध्ययन) ११००२ (+), ११८७४ -१(+), ११८७३(*), ११८६८ (२) कल्पसूत्र - दुर्गपदनिरुक्त अवचूरि, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., ग्रं. ४१८, वि. १३२५, गद्य, मृपू. (सोवर्णः सूत) ११८४९ (२) कल्पसूत्र- टिप्पण', सं., गद्य, मुपू. (-) ११००२/ (२) कल्पसूत्र - कल्पदीपिका बालावबोध, गणि मयाचन्दजी, ग्रं. ३२९९, वि. १८१४, गद्य, मुपु. ( प्रणम्य पर) १३५१११ (२) कल्पसूत्र- ज्ञानदीपिका बालावबोध, मु. ज्ञानविजय, मागु, वि. १७२२, गद्य, मृपू., ( इरियावही ) १०६१९ (+) मागु., " " (२) कल्पसूत्र- बालावबोध' मागु राज गद्य भूपू ( नमो अरिहन) ११८९५ (+), ११८८९, ११८९०-१, ९७०४, १०४५९, ९३९२, ११८८२, १२०८२-३, ११८८० (*), १०६३३ ($) (२) कल्पसूत्र अन्तर्वाच्य मागु, गद्य, मृपू. (उत्तराफाल) १०७८५-११) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir , " (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, मूप्पू., ( इह हि सकलक) १९१४च (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाध्य, सं., गद्य, मृपु. ( चतुर्विंशत) ११८७६ - १ (+), ९७६१, १००८७ (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., गद्य, मूपू., (पुरिमचरिमा) ११८७५ (+) (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, मु. जसवन्त, सं., गद्य, मूपू., (चतुर्विंशत) ११९१४ (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, उपा. भक्तिलाभ, सं., गद्य, मूपू., (पुत्राः पञ) ९५३९(+), १०७७७+) For Private And Personal Use Only (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य*, सं., गद्य, मुपू., (कल्याणांपु) १०६३४१) ११८८ वाच्छा (२) कल्पसूत्र - अन्तर्वाच्य, सं., प्रा., प+ग, मूपू., (पुरिम चरिम) ११२८४(+), १०६५० (+), ११८७९-१ (+३), ११८७८ (२) कल्पसूत्र- कल्पप्रकाश टवार्थ, गणि सुखसागर, मागु.. ग्रं. ६२८४, वि. १७६२, गद्य, मुपु. ( ॐ नमः परम) १०५७१-१११ (२) कल्पसूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, ग्रुप., (अरिहन्तनइ) ९३२२), ९३५१(+), ९९२७(+), १००७९(+), १०५५७(+), १०५७९-१(+), १०६१९१५) १०४२५१, ११८९२- १) ११८८४ १०६३४-११ ९३६२११ १०५७५९ ११८८५९ ११९०३का ११८९५) Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ११९१४(+), ९९५२ (+$), ९९५४ (+), ९९५५ (+), ९३३०, ९७६१, ११८९३, १००६०, ९३९० (5), ११८८८ ($) (२) कल्पसूत्र- टवार्थ+ व्याख्यान, मु. देवकुशल, मागु, गद्य, मृपू.. (-) ११८७७) १३००४-जून (२) कल्पसूत्र - टबार्थ+ व्याख्यान + कथा, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (सकलार्थसिद) १०६०६ (+), ११८९४(+), ९९५१ (+), ९९२९, १०३०१३) ११८८३) www.kobatirth.org: (२) कल्पसूत्र - हिस्सा सामाचारी अध्ययन, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्ययन आठवाँ, प+ग, (--) - <प्रतहीन > (३) कल्पसूत्र - हिस्सा साधुसामाचारी का सूत्रार्थ, गणि विमलकीर्ति, सं., आठवां अध्ययन., गद्य, मूपू., ( तस्मिन् का) ११८७१ (२) कल्पसूत्र-गहुंली, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूप्पू., (सवि कल्पसू) १०५१२-१३ (२) कल्पसूत्र - पीठिका, मागु., गद्य, मूपू., (अर्हन्त भग ) ९४७६ (+), १११३२ (२) कल्पसूत्र-पीठिका, मु. हेमविमलसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, मूप्पू., (सकलार्थ सि) ९८६७ " (२) कल्पसूत्र-पीठिका, सं., गद्य, मृपू. (श्रीकल्पः) १२५१०१) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान + कथा*, मागु., गद्य, मूप्पू., ( नमः श्रीवर) ९९२०४७) १००७९१) १०५पाका १०५७१-११) १०५७९-१११, ११८८४) ९३६२) १०५७/५ १९९०३/० ११८९१ ९९५२(+$), ९९५४(+$), ९३३०, १००६०, ९३९० (३), ११८८८ (5), ११८८६ ($) " (२) कल्पसूत्र- व्याख्यान+कथा, सं., गद्य, मृपू., (तत्रादी) ९३२९ १०७२५ १०६०६(५) (२) कल्पसूत्र - व्याख्यान पद्धत्ति, उपा. समयराज, सं., आठवां अध्ययन., वि. १६६२, गद्य, मृपू., (प्रथमजिनः ) ११८७२ कल्पावतंसिकासूत्र, प्रा. १० अध्ययन, गद्य, मृपू. (जति णं भंत) ९९६०-२०) १०८४९-२१०, ११३४८-२०, ११५५४-२०० " ११५९३-२(+), ११५९४-२ (+), ९३१६-२, ११५९५-२, ११५९६-२ (२) कल्पाक्तंसिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं. गद्य, मृपू.. (श्रेणिकनप) १११५०-२० " (२) कल्पावतंसिकासूत्र- टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (जौ हे भगवन ) ९९६०-२१) ११५५४-२ ९३१६-२, ११५९६-२ कल्पिकासूत्र, प्रा. १० अध्ययन गद्य, भूपू (तेणं कालेज) ९९६०१) १०८४९-११), ११३४८- १) ११५५४-११, ११५९३-११), , " ११५९४ - १ (+), ९३१६-१, ११५९५-१, ११५९६-१ . " (२) कल्पिकासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि सं गद्य, भूपू., (पार्श्वनाथ) १११५० १ (२) कल्पिकासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., ( श्रीवीतराग ) ९९६० Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १ (+), ११५५४ - १ (+), ९३१६-१, ११५९६-१ कल्याणमन्दिर स्तोत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., श्लोक ४४, पद्य, मृपू., (कल्याणमन्द) ९४६४४० ९५७५११ ९४२२१० ९९१५, ११२८८१ ११६७७-१५) १३५२४) १३६४९११ १३६५० (+), १३६६६ (+), १३६६७(+), १३६६८ (+), ११२१५-१(+), १३६६५ (+), ९७१६, १०८३१, ११९७३-६, १३५२२, १३५२३, १३५२५, १३५४९, १३६६४, १०२०६ (), १३७११-७(M), ९८०६ ११६०४ ५१५ (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, सं., गद्य, मृपु., (किल इति सम) ११२१५-१ (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, मु. कनककुशल, स.नं.६५०. वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पा) १३६६७ (+), १३६६८ (+) (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मृपू.. (सर्वज्ञ) ११२८८) १३६५०१) १३६६६ १३५२२. " १३५२३ " (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र - टीका, आ. गुणसागरसूरि, सं. ग्रं. २५०, गद्य, मृपू., (यो नित्यं) १३६४९ (+) (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टीका, पाठक हर्षकीर्ति, सं., गद्य, मृपू.. ( श्रीमत्पार) ९४६४(+), ९७२२ (+) (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र - सौभाग्यमञ्जरी टीका, सं. ग्रं. ३४६, गद्य, मृपू., (किलेति सत) ९७१६, ९८०६४) (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-पद्यानुवादचोपाई, कवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४४चोपाई, पद्य, दि., (परमज्योति ) १०३०३-७(+), १०७३६ (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-भाषा, मु. जयसागर, मागु., ढाल ४४, गद्य, मूपू., (सकल मङ्गल) १३५२९ (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र- बालावबोध' मागु, गद्य, ग्रुपू.. ( किल इति सम) १३६४९) १३परंप (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टवार्थ, मागु, गद्य, भूपु (केट छे) ९९१५/१३५२४) १०८३१, १३५४९ (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (मङ्गलिकनुं) १०२०६ (#) (२) कल्याणमन्दिर स्तोत्र- टवार्थ, आ. जिनवर्द्धमानसूरि मागु गद्य, मुपू., ( कल्याण क०) १३६६४ कल्लाणकन्द स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (कल्लाणकन्द) १३७१३-८(+), १२७५१-१३ " For Private And Personal Use Only कविशिक्षा, श्रा. अरिसिंह, सं., ४ प्रतान, ईस. १३वी, पद्य, (वाचं नत्वा) - < प्रतहीन. > (२) कविशिक्षा- काव्यकल्पलतावृत्ति, यति अमरचन्द्र, सं.. " ग्रं. ३३५७, ईस. १३वी गद्य, मृपू (विमृश्य वा ) १३४२३ (३) कविशिक्षा-काव्यकल्पलतावृत्ति पर स्वोपज्ञ परिमल वृत्ति, Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ यति अमरचन्द्र, सं., वि. १३वी, गद्य, मूपू., (श्रीशारदां) १६६६, प+ग, मूपू.. (प्रणम्य) ९८५८), १२४९०(4) १३३७७६) कीर्तिकल्लोलिनी, पं. हेमविजय गणि, सं., ३ अधिकार, पद्य, कातन्त्रव्याकरण, आ. शर्ववर्माचार्य, सं., गद्य, (सिद्धो वर) पू.. (ऐद्रं वृंद) १३३९६ १३१०८ कुमारपाल चरित्र, आ. जयसिंहसूरि, सं., सर्ग १०, श्लोक ६३०७, (२) कातन्त्रव्याकरण-दौर्गसिंहीवृत्ति, दुर्गसिंह, सं., गद्य, (देवदेवं)- _ वि. १४२२, पद्य, मूपू., (चिदानन्दैक) १३२२६(+), १३०७३(+) <प्रतहीन.> कुमारपाल प्रबन्ध, उपा. जिनमण्डन, सं., वि. १४९२, प+ग, मूपू., (३) कातन्त्रव्याकरण-दौर्गसिंहीवृत्ति की दुर्गपदप्रबोधवृत्ति, गणि (ॐ नमः श्र) १०७६३() लेशप्रबोधमूर्ति, सं., ग्रं.२६४४, वि. १३२८, गद्य, मूपू., कुमारसम्भव, कालिदास, सं., सर्ग १७, पद्य, (अस्त्युत्त) (श्रीमन्त) १३०३५(+) <प्रतहीन.> (२) कातन्त्रव्याकरण-बालावबोधटीका, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., (२) कुमारसम्भव-टीका, सं., सर्ग ७, गद्य, मूपू., (इह प्रेक्ष) ९७८५ ग्रं.४८०, वि. १४४४, गद्य, मूपू., (ॐकार बिन) १३१०८ कुम्मापुत्त चरिअं, मु. माणिक्यविमल, प्रा., गा. १९८, ग्रं.१०००, (३) कातन्त्रव्याकरण-बालबोधटीका का स्वोपज्ञ दुर्गपदटिप्पण, पद्य, मूपू., (नमिऊण वद्ध) ११४०११, १०८५८-१, १२४९३ आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., गद्य, मूपू.. (स्वलिखिताय) १३१०८ (२) कुम्मापुत्त चरिअं-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमान) कामदेव चरित्र, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., ग्रं.७४८, गद्य, मूपू., १०८५८-१ (जयतिकामितप) १०८९८५) कुलवालक कथा, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरत) १२४८३-४ कायस्थिति प्रकरण, आ. कुलमण्डनसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, कुवलयमाला कथा, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., अध्याय ४, ग्रं.३८९४, मूपू.. (जह तुहदंसण) १३५२८(+), १३६९१(45), १२०१४, पद्य, मूपू.. (आदित्यवर्ण) १३४५१-१ १२२७१-२, १३०७९-१ कुसुमकुमार कथा, सं., गद्य, मूपू., (तपः प्रोते) १२४८२-१४(+) (२) कायस्थिति प्रकरण-टीका, आ. कुलमण्डनसूरि, सं., वि. कुसुमसार कथा, सं., गद्य, मूपू., (तावच्चिय) १२४९२ १५वी, गद्य, मूपू.. (वर्द्धमान) १३६९१+5), १३०७९-१ कोकाशनराजा कथा, सं., गद्य, जै., (देसावकासिक) १२५१२-१(5) (२) कायस्थिति प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (वन्दे श्री) क्रियाकलाप, आ. जिनदेवसूरि, सं., ग्रं.२२७००, गद्य, मूपू., (नत्वा १२०१४ श्री) ९४५० (२) कायस्थिति प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (जिम ताहरे) | क्षुद्रोपद्रवनिवारण स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (सर्वे यक्ष) १३५२८(+) ११७४१-३(+) काल विधि, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (वाघाई अहुर) १३००२-३ खण्डप्रशस्ति, कवि हनुमत्, सं., १० अवतार, श्लोक १५९, कालसप्ततिका, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. ७४, पद्य, मूपू., ग्रं.३३६, पद्य, वै., (कृत क्रोधे) १३४०१(+), १३४०२-१ (देविन्दणयं) ११२३३(+), १२६२३-२(4), ९५४६, १२६२०, । (२) खण्डप्रशस्ति-सुबोधिका टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., वि. १२६२१, १३०१६, १३०२३, १३२६०, १३२६१ १६४१, गद्य, मूपू.. (श्रीपार्श) १३४०११). १३४०२-१ (२) कालसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (देवेन्द्रन) १२६२३- ।। खामणाकुलक, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू., (जो कोवि मए) १०६४० २ ) (२) कालसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (इन्द्र महा) ११२३३), १२६२०, १२६२१, १३०१६, १३२६१ (२) कालसप्ततिका-टबार्थ, पण्डित उदयरुचि, मागु., गद्य, मूपू., (देविन्द्र) १३२६० कालिकाचार्य कथा, सं., श्लोक ६५, पद्य, मूपू., (श्रीवीरवाक) ९६८४-१(+), ११८९०-२ (२) कालिकाचार्य कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीर वनथकें) ९६८४-१(+) कालिकाचार्य कथा, प्रा., गा. १२०, पद्य, मूपू., (हयपडिणीयपय) ११८७४-२(+) कालिकाचार्य कथा, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., ग्रं.४४१, वि. गगनधूलि कथा, सं., ग्रं.२५५, गद्य, जै.. (उज्जयन्यां) १०००७) गच्छाचार प्रकीर्णक, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू.. (नमिऊण महाव) ११८१३(+), ११८३०(+), १०३७६, १०६८९-१३, १०६९०-१३, ११८११, ११८२३ (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-बृहट्टीका, गणि विजयविमल, सं., ग्रं.५८५०, वि. १६३४, गद्य, मूपू., (उद्बोधं वि) ११८११, ११८२३ (२) गच्छाचार प्रकीर्णक-अवचूरि, सं., ग्रं.५००, गद्य, मूपू., (आदौ शास्त) ११८३०) गणिविद्या प्रकीर्णक, प्रा., गा. ८६, पद्य, मूपू., (वुच्छं बला) | १११८३-३(+), १०६८९-९, १०६९०-९ For Private And Personal Use Only Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५१७ गण्ड कथा सङ्ग्रह, प्रा., ५कथा, गद्य, जै., (नमिऊण जिणव) | गोचरी ४२ दोष गाथा, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (सोलस उग्गम) १२४९५ ११२५१-२(+) गर्भपरावर्तनविचार, सं., गद्य, मूपू., (अत्राह कोप) १२४५२-२ गोचरीदोष, प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (अहाकम्म) १२७२२-२(+) गर्भवृद्धि विचार, सं., श्लोक २, पद्य, जै., (सोणितं प्र) १२५७२-५ । (२) गोचरी ४७ दोष गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., गाथासहस्री, मु. समयसुन्दर, सं.प्रा., श्लोक १०१३, वि. १६८६, (आधाकर्मी) १२७२२-२(+) । पद्य, मूपू., (पडिरुवायचउ) १२६६१-१(+), १२६६०, ९४१८() गौतम कुलक, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (लुद्धा नरा) ९६०३(, गुणमाला, उपा. रामविजय, सं.,प्रा., वि. १८१७, गद्य, मूपू., १०४६९१), १२५६२(१), १२९४५-१६), १३१९१९, १०४७१, (प्रत्यक्षी) १०१४१(+), १२०७९ १२५६३-१, १२५६४, १३२९८, ९७०८-२(5), ९४७५(5) (२) गुणमाला-स्वोपज्ञ टीका, उपा. रामविजय, सं., वि. १८१७, (२) गौतम कुलक-टीका+कथा, मु. ज्ञानतिलक, सं., वि. १६६०, गद्य, मूपू., (स श्रीसिद) १०१४१(+), १२०७९ गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ९६०३(+), ९४७५(5) गुणवर्म कथा, सं., गद्य, मूपू., (जोओण विहि) १२४८२-१६(+) (२) गौतम कुलक-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) गुणवर्म चरित्र, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., सर्ग ५, श्लोक ६०७, | १२५६२६) ग्रं.१८११, वि. १४८४, पद्य, मूपू., (विजयतां जि) १३२३५), | (२) गौतम कुलक-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (लुद्धा० लो) १३२३१, १११६३ १३२९८ गुणस्थानक्रमारोह, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., श्लोक १३५, वि. (२) गौतम कुलक-बालावबोध+कथा, पं. पद्मविजय, मागु., वि. १४४७, पद्य, मूपू.. (गुणस्थानक) १११७३(+), ९४५३ १८४६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) १३१९१(+) (२) गुणस्थानक्रमारोह-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, सं., वि. | (२) गौतम कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (लोभीया मनु) १४४७, गद्य, मूपू., (अहँ पदं) १११७३(4) | १०४६९), १२९४५-१(+), १०४७१, १२५६३-१, १२५६४ गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्विंशिका कुलक, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. (२) गौतम कुलक-कथा, मागु., गद्य, मूपू., (सुददेवी) १३२९८ ४०, पद्य, मूपू., (वीरस्स पए) १३०६२), १२६५३ गौतमपृच्छा, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., (जिणवयणमोयग) ९३३८ (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ दीपिका टीका, | (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध+कथा, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) आ. रत्नशेखरसूरि, सं., ग्रं.१३००, गद्य, मूपू., (श्रीमदर्ह) ९३३८ १३०६२). १२६५३ गौतमपृच्छा, प्रा., गा. ६४, पद्य, मूपू.. (नमिऊण तित) ९९०८), (२) गुरुगुणषट्त्रिंशत्षट्त्रिंशिका कुलक-स्वोपज्ञ बीजक, आ. १२७५४५), १२९४४-३(+), १०६५४, ११०७८, १२७५६, १०७०९ रत्नशेखरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (देशना कथा) १३०६२(+) ४, १२७५५-१, ९६४५, १३७११-२(१), ९६८९), ९६३१६), गुरुगौरव स्तोत्र, आ. रत्नमण्डनसूरि, सं., श्लोक १६१, पद्य, १३२८८(६), १२१६२-१७) मूपू.. (लक्ष्मीलता) १३०८७-२ (२) गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., ग्रं.१६८२, वि. १७३८, गुरुचार, शिवपार्वती, सं., पद्य, (मेषराशि गु) ११०६७-७१) गद्य, मूपू., (वीरजिन) १२७५४(+), ९६८९५), ९६३१(७), गुरुतत्त्वविनिश्चय, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा., ४उल्लास, गा. | १३२८८() ९०३, पद्य, मूपू., (पणमिय पास) १०७०३ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, मु. वृद्धिचन्द्र, मागु., गद्य, मूपू., (२) गुरुतत्त्वविनिश्चय-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, (नत्वा वीरज) ११०७८ सं., ४उल्लास, गद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्रे) १०७०३ (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध, पाठक शिवसुन्दर, मागु., वि. १५६९, गुरु पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (सिद्धान्तस) | गद्य, मूपू., (-) ९६४५ ९३४७-८०० (२) गौतमपृच्छा-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू.. (तीर्थनाथ) गुरुवन्दन विधि, प्रा., गद्य, मूपू.. (इच्छकार भग) १०६७३-२(+) १२९४४-३(+), १२७५६ गुरु स्तुति, सं., श्लोक २, पद्य, मूपू., (येन प्रतिब) १०६३४-२(+) (२) गौतमपृच्छा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (तीर्थनाथ) ९९०८(१), (२) गुरु स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सर्व सङ्ख) १०६३४- १०६५४, १२७५५-१ ग्रहचालण विधि, सं.,मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (आगामिसन्धि) गुरु स्तुति, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (श्रीमन्त) १०९४१-३(+) ९५६४-४(+) गुर्वावली, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ४९६, प+ग, मूपू., ग्रहलाघव, गणेश दैवज्ञ, सं., १६अधिकार, शक. १४४२, पद्य, (जयश्रियं) १२३०१, १३११२ (ज्योतिः)<प्रतहीन.> For Private And Personal Use Only Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५१८ (२) ग्रहलाघव - वार्तिक, गणि यशवन्तसागर सं., ३ अधिकार, श्लोक २३८, पद्य, ग्रुपु. ( श्रीमत्स्व ) १३५९२-१ ग्रहशान्ति स्तोत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (जगद्गुरुं) १२५५०-२, १३७१४-१७ घण्टाकर्णमहावीर स्तोत्र, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (ॐ घण्टाकर) ९५८१-५ चच्चरीचर्चामञ्जरी, आ. जिनदत्तसूरि, अप, गा. ४७, पद्य, मूपू., (नमिवि जिणे ) १२७४५ www.kobatirth.org: (२) चच्चरीसुचर्चामञ्जरी - वृत्ति, उपा. जिनपाल, सं., वि. १२९४, गद्य, मृपू. (जिनपति पदप) १२७४५ चतुःशरण प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा. गा. ६३, पद्य, मृपू. ( सावज्ज जोग) १०८४२-१ (+), १०८६८(+), ११२११-१(+), ११६२४ (+), ११८०६ (+), ११८१६-२ (+), ११२५४-१ (+$), ९६३३, १०११०, १०२५१, १०६८९-१, १०६९०-१, १११८५-१, ११६२३, ११६२५, ११८०४-१, ११८०५, ११८०७, ११८०८, ११८०९, ११८१०-१, ११८१२, ११८१७-३, ११८१८, ११८२१, ११८२२, १३७११-१(#), १२१६२-७(S), ११८१९ ($), १०३९८ ($) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-अवचूरि, सं. गद्य मूपू. (चतुःशरणविष) " 7 १०११०, ११८१२ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक- अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (इदमध्ययनं) ११२११-१ (+), ११८०४-१, ११८२०, ११८२१ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक- बालावबोध, मागु., ग्रं. ३४७, गद्य, मृपू (पहिलं छ) ११८०५, ११८०७, ११८०९, १०३९८) (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु, गद्य, मृपू., ( चउसरण पड़ना) १११८५-१, ११६२५, ११८१९ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु, ग्रं. ३४१, गद्य, मृपू. (प्रणिपत्य ) १०८४२-११) १०८६८) ११८०६) ११६२४४ " १०२५१, ११६२३, ११८०८, ११८२२ (२) चतुःशरण प्रकीर्णक-टवार्थ, गणि लाभकुशल, मागु.. गद्य, मृपू., ( प्रणम्य ) ९६३३, ११८१०-१ चतुःषष्टियोगिनीस्थानकनाम स्तोत्र, सं., श्लोक १७, पद्य, वै., (ॐ काश्मीर) ९५३७-६ ($) " चतुर्दशीतप पारने की विधि, सं., मागु, पग ग्रुप.. (प्रथम इरिय ) १३१७१-३४/१ चन्द्रद्योत चरित्र, सं., श्लोक २५५, पद्य, मूपू., (कल्याणकलशं) १२३३३(+) चन्द्रधवलभूप धर्मदत्तश्रेष्ठि कथा, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ९८, पद्य, मूपू., (चतुर्थी कथ) १२४९७-१ (+) चन्द्रप्रज्ञप्ति, प्रा., २० प्राभृत, ग्रं. १८५४, पद्य, मूपू., ( नमो अरि०) ९९३८ (+), ९४४०, १०६०८, १०७१६, १०९९६, ११५५३ (२) चन्द्रप्रज्ञप्ति टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ९४००, गद्य, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ मूपू., (मुक्ताफलमि) १०६०८, ११५५६ (३) चन्द्रप्रज्ञप्ति-टीका का यार्थक मागु, गद्य, मुपू., (विडां अविघ) १९३८) , चन्द्रप्रभ चरित्र, आ. देवेन्द्रसूरि सं. ग्रं.५३२५. वि. १२६४, गद्य, मूपू., (दृष्टोपि) ९७४७ (+), १००८६ (+), १२३३७(S) (२) चन्द्रप्रभ चरित्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (दिठो पणहर) Quing(+) (२) चन्द्रप्रभ चरित्र - टबार्थ, पं. रुपविजयजी, मागु., वि. १८९०, गद्य, भूपु (बन्दे श्री १००८६) १२३३७ " चन्द्रवर्मनृप कथा, सं., गद्य, मुपु. ( गुणेषु सर) १२४७९-४ चन्द्रसुरेन्द्रभ्रातृ कथा-बह्मवते, सं., गद्य, जै.. ( परकीय वधुभ ) १२५१२-एक चन्द्रावेध्यक प्रकीर्णक, प्रा. गा. १७५, पद्य, मूपू., (जगमत्थयत्थ) १०६८९-७, १०६९०-७ " चन्द्रोदय कथा, सं., गद्य, मृपू. ( चन्द्रोदय) १२४४२-३कि चम्पकश्रेष्ठि कथा, आ. जिनकीर्तिसूरि सं. वि. १५वी गद्य, मूपू.. " · (चम्पानाम) १२५०१-१ १३०५९ चम्पकश्रेष्ठि कथा, मु. प्रीतिविमल, सं., श्लोक ४७७, वि. १६५६, पद्य, मूपू., ( श्रेयः सन) १३०६० चाक्षुषप्राप्यकारित्व वादस्थल, सं., गद्य, मुपू., (ननु प्राप) १२६७३-१७ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, सं., मागु, गद्य, मृपू., ( सामाइकावश ) १०५१८ चातुर्मासिकत्रय व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं., ग्रं.४०१, गद्य, मृपू., ( स्मारं स्म ) ९६५८११, १२५२१११ १३१७१-३६५), १०१९४ १२५२२१ चातुर्मासिक व्याख्यान, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., वि. १६६५, गद्य, मुपू., ( प्रणम्य पर) १२५२६-३(+), १३१७१-१ (+) चित्रसेनपद्मावती चरित्र, आ. महीतिलकसूरि, सं., श्लोक १२३२. वि. १५२४, पद्य, भूपू. (नत्वा जिनप) ११२८७१ १२३३२), १३३०८ (+), १२३३०, १२३३१, १२३४३, १२४९९, १३२३२, १३३०६, १३३०७, १२५००($) (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-स्वार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (अशरण शरण) १३३०८ For Private And Personal Use Only (२) चित्रसेनपद्मावती चरित्र-टवार्थ, गणि भक्तिविजय, मागु., गद्य, मुपू., ( अद्य क० पह) १३३०६, १३३०७ चेटकराजाराप्तकन्या- सक्षिप्तनिर्देश, सं., गद्य, भूपू " (चेटकराज्ञः ) १२५३१-९ चेतोदूतम्, आ. उदयनन्दिसूरि, सं., श्लोक १२९, वि. १५०२, पद्य, मूपू. (ते जीयासुर) १३४१५) " चैत्यप्रभूतिसमवसरण स्तव, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा. गा. ४५, पद्य, Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५ १९ __ _पू., (--) ११०४३(5) (२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ते कालने) (२) चैत्यप्रभृतिसमवसरण स्तव-टीका, सं., गद्य, मूपू., (-) १२३३५(+), ९९४७), १०७४७, १२३२७, १२३३६ ११०४३(5) (२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-कथा, मागु., गद्य, मूपू., (एही ज चैत्यवन्दनभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ६३, पद्य, मूपू., जम्ब) १२३५३ (वन्दित्तु) १०८९९, ९८६८ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, प्रा., ७ वक्षस्कार, ग्रं.४१४६, गद्य, मूपू., (नमो (२) चैत्यवन्दनभाष्य-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वन्दित्तुं) १०८९९, अरिहंत) ९३१७+), ९९३७+), ११५५२६), ११५९०५), ९८६८ १००६७+5), ११२५०+६), १०५५०, १०६५८, ११५९१, ११५९२, (२) चैत्यवन्दनभाष्य-व्याख्यापद्धति, गणि हर्षनन्दन, सं., गद्य, ११६५७, १०९९७ मूपू., (स्वस्ति ) १११७४4+) (२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टीका, उपा. धर्मसागरगणि, सं., ग्रं.१४२५२, चैत्यवन्दना स्तुति, सं., श्लोक २८, पद्य, मूपू., (देवोनेक भव) वि. १६३९, गद्य, मूपू.. (जीयात् तेज) ११५९०(+), १००६७(45) १३७१३-६(4) (२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-कठिनपदटिप्पण, मागु., गद्य, मूपू.. (-) चैत्यशब्दव्युत्पत्ति, सं., गद्य, जै., (ज्ञानार्थस) ११५२७-२(+) ९३१७) चैत्रीपूनमपूजा विधि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (ओसप्पिणीइ) १२९३६- | (२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार हो) ९९३७) चैत्रीपूर्णिमा पूजा, उपा. समयसुन्दर गणि, प्रा.,सं.,मागु., ५ पूजा, (२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., ग्रं.१५०००, वि. पद्य, मूपू., (उसप्पणइ पढ) १३१७१-१८(+) १७७०, गद्य, मूपू., (श्रीसिद्धा) ११५५२(+) चैत्रीपूर्णिमा पूजा विधि, मागु.,हिन्दी,सं., गद्य, मूपू., (प्रथम पवित) (२) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति-क्षेत्रसमासचौपाई, मु. सुमतिसागर, मागु., ६ १३१७१-१६(+) उल्लास, गा. ५७८, वि. १५९४, पद्य, मूपू., (सरसति सामि) छन्दोनुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अध्याय ८, १३७३४ गद्य, मूपू., (वाचं ध्यात) १३३८९ जम्बूस्वामी कथा, मु. सकलहर्ष, सं., गद्य, मूपू., (सप्रभाव) (२) छन्दोनुशासन-स्वोपज्ञ छन्दचूडामणि वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि १२५०३(+) कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (शब्दानुशास) १३३८९ जयकीर्तिसूरिसुगुरु स्तव, प्रा., गा. ९, पद्य, मूपू., (गम्भीणीमद) छिक विचार, सं., श्लोक ४, पद्य, जै., (पूर्व छीका) ९५७९-२ १२१६२-२७६६) जं किञ्चिसूत्र, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (जङ्किञ्चि ) १०३००-६ | जयतिहुअण स्तोत्र, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (२) जं किञ्चिसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जे कांई ती) (जयतिहुयणवर) १०३१३(+), १११३३(+), ११६७७-५(+), १०३००-६ १३६८०+), १०३२९, १०८२२, १३६७८, १३६७९, ११६०४-३९) जघन्योत्कृष्टपद एककालं गुणस्थानकेषु बन्धहेतुप्रकरण, प्रा., गा. | (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, सं., ग्रं.२५०, गद्य, मूपू., (अत्रायं ३, पद्य, मूपू., (जम्मि गुणे) १०७६७-२ वृ) १०३१३(+), १३६९२(+) (२) जघन्योत्कृष्टपद एककालं गुणस्थानकेषु बन्धहेतुप्रकरण- (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टीका, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., वि. टीका, सं., गद्य, मूपू., (यस्मिन् गु) १०७६७-२ १६८७, गद्य, मूपू., (अत्र पूर्व) १३६७८ जन्मपत्री पद्धति, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., १३अधिकार, पद्य, मूपू., (२) जयतिहुअण स्तोत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (जयतिहुअणेत) (प्रणम्य सा) १३६६३ १३६७९ जन्मलग्नग्रहफल, सं., श्लोक १११, पद्य, जै., (लग्नेर्क) १३६६२- | (२) जयतिहुअण स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अभयदेवसुरि) १०३२९ जम्बुद्वीपे रात्रिदिन मान, प्रा., गा.३ अपूर, पद्य, मूपू., (२) जयतिहुअण स्तोत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (जयवन्तो वर) (पुन्वविदेह) ९४८१-२(5) १११३३(+), १३६८०(+) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक, गणि पद्मसुन्दर, प्रा., २१उद्देश, गद्य, जयतीनी विधि, मागु..प्रा., गद्य, मूपू., (इच्छामि०) १०७६६-४ मूपू., (तेणं कालेण) ११४७०-१(+), १२३३५(५), १२३४५(५), जयन्तविजय काव्य, आ. अभयदेवसूरि , सं., सर्ग १९, ग्रं.२२००, ९९४७), १०७४७, ११४६९, १२३२७, १२३३६, १३३०९ पद्य, मूपू., (श्रेयांसि) ९९३२(+) (२) जम्बूअध्ययन प्रकीर्णक-टबार्थ , मागु., गद्य, मूपू., (ते काल जयानन्दकेवलिचरित्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., सर्ग १४, चउथ) ११४६९, १३३०९ ग्रं.७५००, पद्य, (जयश्रीद)-<प्रतहीन.> For Private And Personal Use Only Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ (२) जयानन्दकेवलि चरित्र, उपा. पद्मविजय, सं., सर्ग १४, (२) जिनशतक-अवचूरि, मु. शाम्बमुनि, सं., ग्रं.११३४, वि. ११वी, ____ श्लोक ६४४५, वि. १८५८, प+ग, मूपू., (नमस्कृत्य) १३२३३ | गद्य, मूपू., (श्रीइति) १२५८८ जलयात्रा विधि, मागु.,सं., गद्य, जै., (श्रीजलयात) ९९६७) जिनसहस्रनाम लघुस्तोत्र, सं., श्लोक ४१, पद्य, मूपू., जातकपद्धति, मु. हर्षविजय, सं., श्लोक ९३, वि. १७६५, पद्य, (नमस्त्रिलो) ११९७३-३ मूपू.. (प्रणम्य पा) ९५६४-१(+), १३५१९(4) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, आ. जिनसेनाचार्य, सं., श्लोक १६६, पद्य, (२) जातकदीपकपद्धति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श) दि., (प्रसिद्धाष) १०१११(+), ९३४७-२० ९५६४-१(+) जिनस्तवचौवीसी, मु. समन्तभद्रस्वामि, सं., २४ स्तव, पद्य, दि., जातकराजपद्धति, पं. यशस्वत्सागर, सं., १४ अधिकार, पद्य, (स्वयंभुवा) १०१०९ मुपू., (श्रीमद्विद) १३६२०-१(4), १३६१६-१, १२२९२ (२) स्तवचौवीसी-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (स्वयं परोप) १०१०९ (२) जातकराजपद्धति-बीजक, पं. यशस्वत्सागर, सं., श्लोक १५, | जिनस्तोत्ररत्नकोशः, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं., श्लोक २७, पद्य, पद्य, मूपू., (पाकं द्वाद) १३६१६-२ मूपू., (जयश्रियं) १३७१०(+) जिनचन्द्रसूरि प्रशस्ति, सं., गद्य, मूपू., (रङ्गद्वैवा) १२९९५-२+) जीतकल्पसूत्र, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा.,गा. १०५, पद्य, जिनदत्त कथा, सं., गद्य, मूपू., (आहारैः प्र) १२४८२-८(4) (कयपवयणप्पण)-<प्रतहीन.> जिनदासश्रावक कथा, सं., श्लोक ४६, पद्य, जै., (आपतितः (२) जीतकल्पसूत्र-चूर्णि, आ. सिद्धसेन, प्रा., प+ग, मूपू., सङ) ९९१०-३, १२४७१-३ (सिद्धत्थसि) ११०९३ जिनप्रतिमापूजासिद्धि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (उमास्वातिक) जीवअजीव के रूपीअरूपीभेद गाथा, प्रा., गा. ४, पद्य, जै., १२९३९) (धम्माधम्मा) १०१७६-२(5) जिनबिम्बप्रतिष्ठादि विधि, सं., गद्य, मूपू., (नव्य प्रति) १२९३६- जीवभेद श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (प्रोक्ता) ९८२३-२ ११(+#) (२) जीवभेद श्लोक-टबार्थ, मागु., गद्य, पू.. (प्रथम साते) जिनभवन १० आशातना, प्रा., गा. १, पद्य, मूप., (तम्बोल पाण) ९८२३-२ ११५७९-२ जीवविचार, सं., श्लोक १०, पद्य, मूपू., (अण्डजाः पक) १२१५९(२) जिनभवन १० आशातना-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पान सोपारी) ११५८४-३६), ११५७९-२ जीवविचार प्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., जिनभवन ८४ आशातना सूत्र, प्रा., गा. ४, पद्य, जै., (खेलं १ (भुवणपईवं) १०२०४(+), १०२८६(१), १०४८१-१(+), १०७९०५), केल) १२७२२-३(+) १११०६-१(+), ११३२५(+), ११३६९(+), ११३९८(+), ११६७७(२) जिनभवन ८४ आशातना सूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., १५९), १२२०२(+), १२२०३(+), १३२१०+), १३२९४(+), १३२९६(श्लेष्मा) १२७२२-३(+) २(+), ९३२३, ९३२४, १०१२७, १०४८६-१, १०५३२, १०८७५-२, जिनमत मुनिलिङ्गवेष प्रबोधक, मु. बुद्धिविजय, प्रा.,प्राहिं., पद्य, १०९४७-१, ११३९०, १२१२३, १२१२४-१, १२१२६-२, १२१२७मूपू., (तत्तेणं से) १२७४८-२ १, १२२०५, १२२०६-१, १२२१३-२, १२६४९-२, १३२१३, (२) लिङ्गप्रतिबोध-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीदेव गु) १२७४८- १३२७५, १३२९५, ९८४७-२, १००३६, ११०६८-१, १११११-१, १२१२५-२, १३७११-३(१), १२१६२-१५(६), ९९७७६), १०१३३(१), जिनशतक, मु. जम्बू कवि, सं., ४परिच्छेद, श्लोक १००, वि. ११०४६६६), ११६०४-१०.) ११वी, पद्य, मूपू., (श्रीमद्भिः ) १२५८५-१(+), १२५८७(+), (२) जीवविचार प्रकरण-अक्षरार्थदीपिका टीका, सं., गद्य, मूपू., १२५८६(१), १०१७७, १२५८४, १२५८८, १२५८९, १२५९०, (अहं किञ्चि ) १२२०४ ९७९३() (२) जीवविचार प्रकरण-टीका, पाठक रत्नाकर, सं., वि. १६१०, (२) जिनशतक-पञ्जिकाटीका, मु. शाम्बमुनि, सं., ग्रं.१५५०, वि. गद्य, मूपू., (सज्ञानभास) १२१२३, १३२१३ १०२५, गद्य, मूपू., (निष्क्रान) १०१७७, १२५८९, १२५९० (२) जीवविचार प्रकरण-लघुटीका, सं., गद्य, मूपू., (जीवा मुक्त) (२) जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (एष सूर्यो) १२५८६५१), १२१२४-१ ९७९३(१) (२) जीवविचार प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (त्रिभुवनप) (२) जिनशतक-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (रागादिदोष) १२५८५१(+), १२५८७(+), १२५८४ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (भुवण १३२९४) For Private And Personal Use Only Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ११०४६(5) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५२१ कहेता) ११०६८-१ (कश्चित्कान) १३४३६-१, १३४४३ (२) जीवविचार प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (२) जैनमेघदूत-वृत्ति, आ. शीलरत्नसुरि, सं., ४ सर्ग, वि. १४९१, (भुवनमाहि) १०७९०(+), १२२०६-१, १०१३३६) गद्य, मूपू., (आदौ यः समक) १३४४३ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (तीन भुवन) | (२) जैनमेघदूत-व्याख्या, सं., सर्ग ४, गद्य, मूपू.. (कश्चित् अल) १०२०४(+), १०२८६(५), १०४८१-१(+), १२२०३(+), १३२१०(२), १३४३५(+) ९३२३, ९३२४, १०१२७, १०५३२, १०८७५-२, १०९४७-१, जैन श्लोक सङ्ग्रह, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (दर्शनज्ञान) १३२९५, ९८४७-२, १००३६, ९९७७) ९७८४-४ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (त्रिभुवनमा) (२) जैन श्लोक सङ्ग्रह-भावार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सम्यक्त्वग) ११३६९), १३२९६-२(+), १३२७५ ९७८४-४ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भुवन कहिता) जैनीसप्तपदार्थी, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तिस्य) ११३९० १२८२०(+), १२८११, १२८१९ (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (भूवनमांहि) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., १९अध्ययन, १२२०२५), १२२०५ ग्रं.५५००, प+ग, मूपू., (तेणं कालेण) ९७४५(५), १०५५६(+, (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमान) १०७२७+), १०७२९(+), ११००७+), ११४७५(+). ११४८४+), ११४८६(+), ११६४६(+), ११६६५), ११४८५(+), ९३५५-१, (२) जीवविचार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (विश्व सघला) ९७५४, ९९४३, १००७०, १०५६७, ११४८२, १०७५९, ९७४८, ११३९८) १००६६, ११४७६, ९९९५(45), ९३४४(5) जीवाभिगमसूत्र, प्रा., १० प्रतिपत्ति, ग्रं.४७५०, गद्य, मूपू., (णमो (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., उसभादि) ९९२८(+), १००७६(+), १०५६१(+), ११५५१(4) ग्रं.३८००, वि. ११२०, गद्य, मूपू.. (नत्वा श्री) ११४७७+), ११५४४(+), १०६२०+), ११५४५, १०९९८, ११५४३ ११४७८(+), ११४८०), ११४८१(+5), ९९४५, १०६८२, ११००४, (२) जीवाभिगमसूत्र-कठिनपद टिप्पण", सं.,मागु., गद्य, मूपू., (-- ११४७९ ) ११५५१(+) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.१०५००, गद्य, मूपू., (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.२००००, गद्य, मूपू., (ध्यात्वा) ११४८६+), ९३४४(६) (श्रीवीरजिन) ११५४५ (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार) (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. जिनविजय, मागु., ग्रं.९३००, वि. ९३५५-१, ९९९५(45) १७७२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९९२८(+), १०५६१(+), ११५४४(+) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. कनकसुन्दर, मागु., (२) जीवाभिगमसूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., ग्रं.१६०००उभ, ग्रं.८५००, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) ९७४५(+), ११४८४(+), गद्य, मूपू.. (श्रीशान्ति) १००७६(+) ११४८५६), ९९४३, ११४८२, ९७४८, १००६६ (२) जीवाभिगमसूत्र-विचार, मागु., गद्य, मूपू., (जीवाभिगमउप) (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-टबार्थ, गणि रत्नजय, मागु., १०३२० ग्रं.१३५८१, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १००७० जैन कथाकोश, सं., गद्य, मूपू., (पान्ति दृष) १३०६३ (२) ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्र-भास, पाठक राजरत्न, मागु., पद्य, जैन कुमारसम्भव, आ. जयशेखरसूरि, सं., सर्ग ११, ग्रं.१२२५, मूपू., (श्रीसिद्धा) १०२२७, १०२८५७) पद्य, मूपू., (अस्त्युत्त) १३३९८+#), १३४३६-२ ज्ञानचतुर्विशिका, उपा. नरचन्द्र, सं., श्लोक २४, पद्य, मूपू., जैनतर्कभाषा, पं. यशस्वत्सागर, सं., ४ परिच्छेद, गद्य, मूपू.. (श्रीवीराय) १३६६२-१ (अहँ बीजं) १२८१५९), १२८१६(+), १२८१७६) (२) ज्ञानचतुर्विंशतिका-स्वोपज्ञ अवचूरि, उपा. नरचन्द्र, सं., गद्य, जैनतिथिपत्र उदाहरण, सं., गद्य, जै., (प्रणम्य सम) १३६७६+६) मूपू., (मेषसंक्रान) १३६६२-२ जैनधर्मवर संस्तवन, आ. भावप्रभसूरि, सं., श्लोक ४५, पद्य, मूपू., ज्ञानपंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा., गद्य, मूपू., (इमं ज्ञानप) (कल्याणमन्द) १०१४५६) १२७०५-४(5) (२) जैनधर्मवर संस्तवन-स्वोपज्ञ टीका, आ. भावप्रभसूरि, सं., वि. ज्ञानपंचमी देववन्दन विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम चैत) १७९१, गद्य, मूपू., (नत्वा पार) १०१४५७) १३१७१-९(4) जैनमेघदूत, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., सर्ग ४, ग्रं.४१८, पद्य, मूपू., | ज्ञानपंचमी नमस्कार, सं., गद्य, मूपू., (स्पर्शनेन) १३१७१-१०(4) For Private And Personal Use Only Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५२२ ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मृपू.. (पञ्चानन्तक) ११६७७-२० (+), १२२५३-२ " ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मृपू. (समुद्रमुपा) १३७१३-२२ (+), १०९७७-४ ज्ञानपंचमीपर्व स्तोत्र, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., श्लोक १३, पद्य, मूपू., (नम्राखण्डल) १३७१२-७ ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू. (श्रीनेमिः) १०५८५-२२) १३६९६-२१ १३७१३-२१११ १००३१-३, १०३५०-४, १०९७७-२, १००२८-३ (६) (२) ज्ञानपञ्चमीपर्व स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (श्रीनेमीना) १०५८५-२० १३६९६-२ www.kobatirth.org: ज्ञानसार, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ३२अष्टक, श्लोक २७३, पद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्री) १०५९६ (+), ९५०९ (+), १०४१९(+$), १००५८, १२०१३, १३२०४, १३३०१, १२६५९, ११०४२ (२) ज्ञानसार- ज्ञानमञ्जरी टीका, गणि देवचन्द्र, सं. वि. १७९६, गद्य भूपू. (पार्श्वे ) १०५९६ १००५८ ११०४२ " (२) ज्ञानसार टीका, पं. गम्भीरविजय, सं., वि. १९५४, गद्य, मूपू., (नत्वा वीर) १३२०४ (२) ज्ञानसार-स्वोपज्ञ टबार्थ, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गद्य भूपू.. (ऐन्द्रवृन) १०४१९- १३३०१ " ज्ञानावरणीकर्मभेद गाथा, प्रा., गा. ५, पद्य, जै., " (मइसुअओहीमण) ११०२३-१ (२) ज्ञानावरणी कर्मभेव गाथा- बालानबोध, मागु, गद्य, जै.. ( मइ के० प्र) ११०२३-१ ज्ञानीदसलक्षण श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मृपु. ( अक्रोधवेरा) १२६८९-२०१ ज्येष्टप्रतिविचार, सं., श्लोक ४, पद्य, जै., (ज्येष्टस्य) १३५९५-२ ज्योतिष श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मृपू., (ध्रुवघटी) ९५६४-२ (+) ज्योतिष श्लोक, सं., मागु., श्लोक ३, पद्य, जै., (ज्येष्टार) 7 १३६६२-३ ज्योतिष श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, (इष्टस्यावध) ९५१२-२ ($) ज्योतिष श्लोकसङ्ग्रह, मागु., सं., पद्य, (-) १०४९६-२ ज्योतिषसार आ. नरचन्द्रसूरि सं., श्लोक २९४, पद्य, मृपू.. (श्रीअर्डन) ९५४०) १३६००-११) ९५०५-११) ९५५८निय १३४७७, १३६०१, ९७९४-१, १३६०२, १३४७६ (६), १३४७८ (६ THE CO (S)) (२) ज्योतिषसार- यन्त्रकोद्वार टिप्पण, आ. सागरचन्द्रसूरि सं.. गद्य, भूपू., (सरस्वती) १३६००-११ १३६०१ (२) ज्योतिषसार-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., ( माहरो श्री) १३६०२ (२) ज्योतिषसार-टवार्थ, मागु, गद्य, भूपू., ( श्रीअरिहन) ९७६८१४ (२) ज्योतिषसार सह-टवार्थ, मागु., गद्य, मूपु. ( महाराज श्र) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ P4500ft) (२) ज्योतिषसार सङ्ग्रह टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (श्रीतीर्थख) ९७९४-१ ज्योतिषसारोद्धार, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अध्याय ३, श्लोक ३३७, ग्रं. ५००, पद्य, मृपू., ( तं नमामि ) ९५८८ (+), ९५७९-१, १३५९५-१ " ज्योतिष्करण्डकप्रकीर्णक, आ. पादलिप्तसरि, प्रा. गा. ४०५. पद्य, (कातूण नमोक)- <प्रतहीन > (२) ज्योतिष्करण्डकप्रकीर्णक-टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., ग्रं. ५०००, गद्य, मूपू., (स्पष्टं चर) १००४२ तत्त्वार्थाधिगमसूत्र वा उमास्वाति सं. अध्याय १०, सूत्र १९८ 1 प+ग, मूपू., (सम्यग्दर्श) ९५०३ (+), १००६२ (+), १०८७३(+), १०२०१(+), १००६३, १००९१, ११३३०, १०४५८, १०१३५($), ९३४७-११० " " (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - सर्वार्थसिद्धि वृत्ति आ. देवनन्दी, सं.. गद्य, दि., (मोक्षमार्ग) १००६२ (+) (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-तत्त्वार्थवार्तिक वृत्ति, आ. अकलङ्कदेव (दि.). सं., मद्य, दि., (प्रणम्य सर) १०१३५ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र-वृत्ति, पण्डित योगदेव (दि.), सं., गद्य, दि., (--) १०४५८ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र श्रुतसागरी टीका आ. श्रुतसागरसूरि (दि.), सं., गद्य, दि., (सिद्धोमास ) १००६३ (२) तत्त्वार्थाधिगमसूत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (तीन काल भू) १०२०१(+) " तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक, प्रा. प+ग, मृपू., (निज्जरिय) १११८३१(+), ११८१५(+), १०६८९-६, १०६९०-६, ११२५५-१, ९९९६ (२) तन्दुलवैचारिक प्रकीर्णक-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि मागु, प्र. २००० उभय, गद्य, मृपू.. (कल्याणवल्ल) ११८१५१ ९९९६ तपउच्चारण विधि-सक्षिप्त, सं.प्रा., गद्य, ग्रुपु. ( सविस्तारे) " १२७४२-२ तप सङ्ग्रह, प्रा., मागु., गद्य, मुपू., (श्रेणि तपो) १२७२७ तपस्या विधि सङ्ग्रह, प्रा. मागु, गद्य, मृपू., (नउकार पोरस) For Private And Personal Use Only १३००३ तपागच्छ पट्टावली, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. २१, पद्य, मृपू.. (सिरिमन्तो) १०८५९, १२३०४) १२३१३) १११९०, १२३०५ (२) तपागच्छ पट्टावली- वृत्ति, सं., गद्य, मृपू., (गुरु परिपा) १२३०५ (२) तपागच्छ पट्टावली- स्वोपज्ञ वृत्ति, उपा धर्मसागरमणि, सं.. गद्य, मृपू. (सिरिमन्तोत) १२३०४(+) १११९० Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) तपागच्छ पट्टावली - बालावबोध, पण्डित देवकुशल, मागु., गद्य, मृपू., (ए श्रीपजूस) १२३१३ (+) (२) तपागच्छ पट्टावली-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. ( श्रीमन्तमठ ) १०८५च (२) तपागच्छ पट्टावली, वा. गुणविजय, प्रा., गा. २, वि. १७वी, पद्य, मु., (सिरिविजयसे) १२३१८ १२३०६ (३) तपागच्छ पट्टावली-टीका, सं. गद्य, मुपु. ( अथा तप) www.kobatirth.org: १२३०६ (३) तपागच्छ पट्टावली- विवरण, सं., गद्य, मूपू., (अथ प्राक्त) १२३१८(+) तर्कभाषा केशव मिश्र, सं. गद्य, वै., (बालोपि यो) १३१५५-४१ तर्कभाषा जैन, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ३ परिच्छेद, ग्रं. ७००, गद्य, मूपू., (ऐन्द्र वृन) १३०५२, १३१३४ तार्किकरक्षा आ. वरदराज, सं., श्लोक १६०, पद्य, वै., (नमः परमात) १३०४४-५निधी . तिजयपहुत्त स्तोत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (तिजयपहुत्त ) ९५८१-२१, ११६७७-८ १३६८१-२ (२) विजयपहुत्त स्तोत्र- टीका, आ. हर्षकीर्तिसृपि, सं. गद्य, मृपू.. P · (कृत्वा चतु) १३६८१-२ . " तीर्थमाला स्तोत्र, आ. महेन्द्रसिंहसूरि प्रा. गा. १११, पद्य, मृपू.. ( अरिहन्त) १०९२३), १२६६५/१, १२१६२-१८क (२) तीर्थमाला स्तोत्र अवचूरि, सं. गद्य, मृपू. (अर्हन्त) १०९२३) १२६६५० तीर्थोद्गाली प्रकीर्णक, प्रा., गा. १२३३, ग्रं. १५६५, पद्य, मूपू., (जयइ ससिपाय ) ११६५४ तेरापन्थी चर्चा, मु. शीलविजय, प्रा., मागु. प+ग, जै. (छे लेस्या) १२८०० (+), १२७९९ त्रिपुराभवानी स्तोत्र, आ. लघ्वाचार्य, सं., श्लोक २४, पद्य, वै.. (ऐन्द्रस्यै) १३५३२ - १, ९५३७-२ (क) (२) लघुस्तव-ज्ञानदीपिका टीका, आ. सोमतिलकसूरि, सं., ग्रं.४७०, वि. १३७९, गद्य, मूपू., (सर्व्वज्ञं) १३५३२-१ (२) त्रिपुराभवानी स्तोत्र माहात्म्य, आ. लध्वाचार्य, सं., श्लोक ३. पद्य, वै., ( इत्येतत्रि) १३५३२-२ त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., खण्ड १० पर्व + परिशिष्ट, ग्रं. ३५०००, वि. १२२०, पद्य, भूपू.. (सकलार्हत्य) १२३४३ १२३५७ १२३५ १२३३९(+), १२३४० (+), १०२९९, १२३३८, १२३४१, १२३५८, १२४५६, १३२०६-१, १३२३४, १३५७९, १२३२४, १२३३४ (३), १२३५४१२३६० ($) (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र-टवार्थ, पं. रामविजय, मागु, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पर) १२४५६, १३२३४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२) त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र का हिस्सा अष्टमपर्व, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., सर्ग १२ ४७८८, पद्य, मृपु. ( नमो विश्वन) १३०३/ " (२) रामचन्द्र चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. सर्ग १०. ग्रं. ४०३२, पद्य, मूपू., (अथ श्रीसुव) १००८५ (३) रामचन्द्र चरित्र - टबार्थ, मु. महानन्द, मागु., ग्रं. ११०१६, गद्य, मूपू., ( नत्वा श्री १००८५ (२) सकलार्हत् स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं... श्लोक २६, पद्य, मूपू., (सकलार्हत्प) १३७१३-२(+), १०३५०-१, ११०३८ (३) सकलार्हत् स्तोत्र- टीका, मु. गुणविजय, सं., गद्य, मूपू., (सकलार्हत्) ११०३८ ५२३ त्रीसचौवीसी नामावली स्तोत्र, सं., श्लोक १३८, ग्रं. १६८, पद्य, जे. (नत्या सिद) १०१०४) त्रैविद्यगोष्ठी, आ. मुनिसुन्दरसूरि, सं. ग्रं. ८००, गद्य, मूपू., ( नमो वितर्तक) १३०९०+) दक्षिणालाभ ज्ञान, सं., पद्य, (याचंतो लाभ) ९५७९-३ दण्डक प्रकरण, मु. गजसार, प्रा., गा. ४५, पद्य, मूपू., (नमिउं चलवी) १५०६१) १०२०५१) १०४८१-३) १०८२७१ ११०३६(+), १११०६-३(+), ११३२८(+), ११६७७-१६ (+), १२२०८ (+), १२६४७(+), १३२१२ (+), १२६४६ (+), १३००५ (+), ९४०४ १२२१४- २ ९४१२ ९६५५ १०१४४ १०४९२-१ १०९०८, ११०९४, ११८१७-२, १२१२७-३, १२२०९, १२२१०, १२२४५, १२६४९-४ १२६५०-२, १३००६, १३००७, १३२११, १३२४८, ९८४७-३, १०८१४, १११११-३, १००३९, १०१५५ ($), १०४२० ११६०४-१३१ ($) (२) दण्डक प्रकरण- टीका, मु. रूपचन्द्र, सं., ग्रं.५३६, वि. १६७५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) १२२४२ (S), १०४२०९ (२) दण्डक प्रकरण-स्वोपज्ञ अवचूरि, मु. गजसार, सं., ग्रं. २१६, वि. १५७९, गद्य, मूपू., (श्रीवामेयं) ९५०६ (+), १३०११, १२६४८ (२) दण्डक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मुपू., ( ऐन्द्र जिन ) १३००७ (२) दण्डक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मुपू., (नमस्करी चउ) ९६५५ (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., ग्रं. ३५०, गद्य, मूप्पू., ( इन्द्रराजि) १३२१११ (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ऐन्द्रराजं) १२६४७) १३००५/१) ९४०५/ " (२) दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, मुपू., (चोवीस तीर) १०२०५१) १२२०९, १२२४५ (२) दण्डक प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, गुपु. ( ध्यात्वा) For Private And Personal Use Only Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ ११०३६(५), १०९०८ (३) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति की शिष्यबोधिनी टीका#, आ. (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (-) ११६६२(१), ११६६१(5) १०८२७+), १२६४६(+), १०४८१-३(+), १३२४८ (२) दशवैकालिकसूत्र-भाष्य, प्रा., गा. ६२, पद्य, मूपू., (एस (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमिउं क०) पइन्नसु) ११७४६ ११३२८(+), ११०९४ (२) दशवैकालिकसूत्र-दीपिका वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमी करी चउ) ___ग्रं.३४५०, वि. १६९१, गद्य, मूपू., (स्तम्भनाधी) ९७२०(+, १२२०८६), १०८१४ ११७४५), ११७५०(+), १०१५८, ११६९४, ११७५१ (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (सुपाच) १०१४४ | (२) दशवैकालिकसूत्र-लघुटीका, आ. सुमतिसूरि, सं., ग्रं.३५००, (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मु. प्रीतिविजय, मागु., गद्य, मूपू., गद्य, मूपू.. (जयति विजित) ११६९३, ११७४८(5) (श्रियः पदं) १२२१० (२) दशवैकालिकसूत्र-शिष्यबोधिनी टीका#, आ. हरिभद्रसूरि, सं., (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, मु. भुवनकीर्ति, मागु., गद्य, मूपू., ग्रं.६८५०, गद्य, मूपू., (जयति विजित) १०६७७, ११७४६, (चउवीस तीर) ९४१२ ११६६२६), ११६६१६) (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (ऋषभादिक २४) | (२) दशवैकालिकसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (धम्मो मङ्ग) ९८४७-३, १००३९, १०१५५९७) ९९५७+), ११४०४(+), ११६९५ (२) दण्डक प्रकरण-टबार्थ, राज., गद्य, मपू., (नमी क०) (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (धर्म सर्वो) १३००६ ९९८०, ९७७१(5) दर्शनशुद्धि प्रकरण, आ. चन्द्रप्रभसूरि, प्रा., अध्याय ५, पद्य, मूपू.. | (२) दशवैकालिकसूत्र-बालावबोध, उपा. राजहंस, मागु., गद्य, (पत्तभवण्णव) १००८४, १२२५६ मुपू., (नत्वा श्री) ११७०१(+), ११७०२), ११६९८, १०६४७(5) (२) दर्शनशुद्धि प्रकरण-वृत्ति, आ. तिलकाचार्य, सं., वि. १२७७, (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (ध० जीवनइ) गद्य, मूपू., (यद्वक्त्रा ) १००८४, १२२५६ ९५५३(+), १०७१२(+), ११६९९(१), ११७४७(+), १०६४२(+), ९६७२, दर्शनिजनमनोनयनालादनोपनिषद निगम, सं., ७-३१ पूर्ण, गद्य, १००१९, १०३८४, ११६९६, ११६९७, ११७००, ११७०३, __पू., (-) ९३६६६६० ११७४४, १०२१९) दश पद विचार, प्रा.,सं., ग्रं.४३५, गद्य, पू., (नमः अष्टप) (२) दशवैकालिकसूत्र-टबार्थ, मु. श्रीपाल, मागु., गद्य, मूपू., १२७४६(+) (श्रीजिनधर) ११६३४(+) (२) दश पद विचार-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (जिन मन्दिर) (२) दशवैकालिकसूत्र-हिस्सा प्रथम अध्ययन, आ. शय्यम्भवसूरि, १२७४६(५) प्रा., गा. ५, पद्य, मूपू., (धम्मो मङ्ग) १२१२४-२ दशलाक्षणिक पूजा, प्रा.,सं., प+ग, मूपू., (स्वर्ग मुक) ९३४७-१०. | (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. जैतसी, मागु., अध्याय १०, दशवैकालिकसूत्र, आ. शय्यम्भवसूरि, प्रा., १०अध्ययनरचूलिका, _ वि. १७१७, पद्य, मूपू.. (धर्ममङ्गल) ९५७२-१ गा. ७००, वी. २वी , पद्य, मूपू., (धम्मो मङ्ग) ९५५३६), (२) दशवैकालिकसूत्र-सज्झाय, मु. वृद्धिविजय, मागु., ९७२०६५), ९९५७(+), १०४११(+), १०६४२(+), १०७१२(+), ११सज्झाय, पद्य, मूपू., (श्रीगुरूपद) ११०६९ ११२५१-१(+), ११६३४(+), ११६५०+), ११६७८(+), ११६८९(५), (२) दशवैकालिकसूत्र-योग विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, जै., ११६९९(+), ११७०१५), ११७४५९+), ११७४७(+), ११७५०+), (दशवेयालियम) १०२६६-३ ११२६३(+), ११६९०(+), ११६७७-३७), ९४४७, ९५०८, ९६७२, दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., १० दशा, ग्रं.१३८०, ९९८०, १००१९, १०१५८, १०२१४, १०३०७, १०३८४, १०९३०, पद्य, मूपू., (नमो अरिहंत) ९७४९-१५), १०८३०), ११५५९(१), १०९८९, १०९९३, ११६९१, ११६९४, ११६९५, ११६९६, ११५६०५), १०८८७ ११६९७, ११७००, ११७०३, ११७४३, ११७४४, ११७५१, (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. १११०२-२, १०२१९(), ९७७१(45), ११६६२(5), १०६४७(s), १४१, पद्य, (वन्दामि भद)-<प्रतहीन.> ११६६१(६), ११६८८० (३) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-नियुक्ति की चूर्णि# , प्रा.,सं., गद्य, (--)(२) दशवैकालिकसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, <प्रतहीन.> मूपू., (सिद्धिगइमु) ११२५७), ११६९२६), १०४६५, ११७४६, (४) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-चूर्णि की भव्य-अभव्य हुण्डी, मागु., गद्य, ११६६२(६), ११६६१(६) मूपू., (एणइ आलावइ) १३६९३-३(+) For Private And Personal Use Only Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५ २५ (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-जनहिताटीका, मु. ब्रह्मर्षि, सं., ग्रं.३१००, गद्य, मूपू., (यथास्थिताश) ११५५९(+) दीपावलीपर्व कल्प, प्रा., गा. १३७, पद्य, मूपू.. (उप्पायविगम) (२) दशाश्रुतस्कन्धसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वर्द्धमानं) १००१४ ९७४९-१(+), ११५६०(+) (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (उप्पन्नेवा) दाडिमादिबीजसङ्ख्याज्ञानविधि श्लोक, मागु.,सं., श्लोक २, १००१४ पद्य, जै., (दाडिम पाक) १३२८१-४(5) दीपावलीपर्व कल्प, आ. जिनसुन्दरसूरि, सं., श्लोक ४३७, दानप्रकाश, गणि कनककुशल, सं., ८ प्रकाश, ग्रं.८३४, वि. ग्रं.१५००, वि. १४८३, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) १०७७६(+), १६५६, पद्य, मूपू.. (श्रीपार्श) १२००४, १२००५ ११२३०+), १२६८२(+), १२६८९-१(+), १२६९०५), १३१७१-२(+), दानप्रदीप, गणि चारित्ररत्न, सं., १२प्रकाश, वि. १४९९, पद्य, १०४२१(+), १०६५३, १२५६१-१, १२६८३, १२६८७-२, १२६९१, मूपू., (श्रीसिद्धि) १२००६(5) १२६९२ दान लक्षण , सं., श्लोक २, पद्य, मूपू., (आनन्दश्रेण) ११५७८-३ । (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध, मागु., गद्य, मपू., (मङ्गलीक दानशीलतपभावना कुलक, मु. अशोकमुनि, प्रा., गा. ५०, पद्य, | दी) ११३९६ जै., (देवाहिदेवं) ९६७५६), १०२९४-१, १२५६६, १३२५७ | (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) (२) दानशीलतपभावना कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., १२६९१ (देवाधिदेवन) ९६७५(45). १०२९४-१, १२५६६, १३२५७ (२) दीपावलीपर्व कल्प-टबार्थ, गणि सुखसागर, मागु., ग्रं.१२००, दानशीलतपभावना कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. २०, पद्य, वि. १७६३, गद्य, मूपू., (अर्हन्त बा) १२६८९-१(+), १२६९०(+), ___ मूपू., (परिहरिय रज) १२५६८(5) १०४२१(+), १०६५३, १२६९२ (२) दानशीलतपभावना कुलक-धर्मरत्नमञ्जूषा टीका, गणि (२) दीपावलीपर्व कल्प-बालावबोध+कथा, मागु., गद्य, मूपू., देवविजय, सं., वि. १६६६, गद्य, मूपू., (-) १२५६८६६) (स्वस्ति) १२६९३ दानादि विषयक दृष्टान्त कथा सङ्ग्रह, प्रा.,सं., गद्य, मूपू., दीपावलीपर्व कल्प, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक (वसही सयणास) १२३९३(+), ९६३६+६), १२४८५, १२३९२-२ २७८, पद्य, मूपू.. (सन्तु श्री) १२३७५६५), ९६०७, १२६८०-१ दामनक कथा-जीवदया विषये, सं., गद्य, मूपू., (अत्रैव भरत) दीपावलीपर्वगुणनविधि, सं., गद्य, जै., (ॐ ह्रीं) ९४९३-३ १२४८३-३ दीपावलीपर्व स्तुति, आ. जिनचन्द्रसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., दामन्दक कथा, सं., गद्य, मूपू., (राजगृहे नग) १२४७९-५ (पापायां पु) ११६०९-४ दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व, प्रा., पद्य, मूपू., (पपुदउकमसो) दुरियरयसमीर स्तोत्र, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ४४, पद्य, १११७५-२(45) मूपू.. (दुरिअरयसमी) ११६७७-१३, ११०७२, १२३५५६६), (२) दिक्चतुष्कजीवाल्पबहुत्व-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ११६०४-९०) (पश्चिम पूर) १११७५-२(45) (२) दुरिअरयसमीर स्तोत्र-वृत्ति, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., दिगम्बरमत विचार, आ. महेन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (तत्र च गद्य, मूपू., (अहं तस्य) ११०७२, १२३५५(#) परि) १३०२१ दुषमकाल श्रीश्रमणसङ्घ स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २५, दिग्विजय महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., सर्ग १३, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (वीरजिण भुव) १३५४४-२(5) (स्वस्ति) १३४१३६) (२) दुषमकाल श्रीश्रमणसङ्घ स्तव-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., दिनज्ञान श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (तर्जनी) १३२८१- (सिरिजिणनिव) १३५४४-२(5) दृष्टलोकप्रतर, सं.,मागु., यंत्र, मूपू., (-) १२६७५-४ दीपालिका कल्प, आ. विनयचन्द्रसूरि, सं., श्लोक २७८, वि. दृष्टान्तशतक, ऋ. तेजसिङ्घ, सं., श्लोक १०२, पद्य, जै., १३४५, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) १२६८०-२ (नत्वा श्री) १०९४६), १२५९१(+), १२५९३(+), १२९८७(+), दीपावली कल्प, सं., गद्य, मूपू., (इहेव भरतक) १२६७७-३ ९८६६(२) दीपावली कल्प, आ. जिनप्रभसूरि, प्रा., वि. १३८७, गद्य, मूपू., (२) दृष्टान्तशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) (पणमिय वीरं) १२६८८+), १२६८१ १२५९१), १२५९३(+), १०९४६(५), ९८६६(१), १२९८७(+) (२) दीपावली कल्प-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणाम्म) १२६८८५) | | देवदत्तजयदत्त कथा-परिग्रह विषये, सं., गद्य, जै., (यथा श्रृण) दीपावलीगुणनो, सं.,मागु., ३ मंत्र, गद्य, मूपू., (ॐ ह्रीं) १३१७१- | १२५१२-१०६) २+) For Private And Personal Use Only Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ देवधर्मपरीक्षा, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ग्रं.४२५, गद्य, मूपू.. | (स्वस्ति) १००५३(+) । (ऐन्द्र वृन) १२०११ धर्मकल्पद्रुम, पण्डित उदयधर्म, सं., ८पल्लव, पद्य, मूपू., (श्रियं देवपूजा फल कथासङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (देवपूजाफले) दिश) १२००१(+), १२०६९) १२४८७-२(5) धर्मपरीक्षा, आ. अमितगति (दिगम्बर). सं., २०परिच्छेद, पद्य, देवराजवत्सराज कथानक, सं., श्लोक ४२६, पद्य, मूपू., दि., (श्रीमान्नभ) १२०९२(+5), १२००८ (अस्त्यत्र) १२४२९ धर्मपरीक्षा कथा, गणि देवविजय, सं., श्लोक ३६७, पद्य, मूपू., देवराजादि कथा, सं., गद्य, मूपू., (अविचार्य) १२४८२-४(+) (प्रणम्य) १२४९१ देववन्दन क्रिया, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (इछामि ख०) १०७६६-३ । धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (लज्जातो देवेन्द्रस्तव प्रकीर्णक, मु. ऋषिपालित, प्रा., गा. ३११, पद्य, मूपू., भय) १०२०८-२), १२९४५-२(+) (अमर नरवन्द) १११८३-२६), १०६८९-८, १०६९०-८ (२) धर्मप्राप्ति १८ दृष्टान्त गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., देशावगासिक पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूपू., (अहण्णं भन) (लज्जाथकी) १०२०८-२(+) १३१७१-१९) धर्ममञ्जूषा, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, मूपू., (प्रणमन्तर) १२०७३ दोषावली, सं.,मागु., गद्य, (ॐ नमो सूर) ९६९९-२(१) धर्ममतिश्रेष्टि कथा, प्रा., गा. १६३, पद्य, जै., (दहीपजहनवणी) द्रव्यखण्डनन्याय, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., गद्य, मूपू., १११९६ (ननु द्रव्य) १३७५५-४ धर्मरत्नकरण्डक, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., अध्याय २०, श्लोक द्रव्य सङ्ग्रह, मु. नेमिचन्द्र सिद्धान्त चक्रवर्ती, प्रा., ३ अधिकार, ३७६, पद्य, मूपू., (सर्वनीतिप) १२०७१ गा. ५८, पद्य, दि., (जीवमजीवं) ९७२८, ९८८४ (२) धर्मरत्नकरण्डक-स्वोपज्ञ टीका, आ. वर्द्धमानसूरि, सं., वि. (२) द्रव्यसङ्ग्रह-वृत्ति, आ. ब्रह्मदेव, सं., गद्य, दि., (प्रणम्य पर) ११७२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२०७१ १०६३५ धर्मरत्नप्रकरण, आ. शान्तिसूरि, प्रा., गा. १४५, पद्य, मूपू., (२) द्रव्य सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, जै.. (श्रीमज्जिन) ९८८४ (नमिऊण सयलग) १३२२४ (२) द्रव्यसङ्ग्रह-टबार्थ, मु. हंसराज, मागु., अध्याय ३, गा. ५९, (२) धर्मरत्नप्रकरण-सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमज्जिन) ९७२८ ग्रं.९७००, गद्य, मूपू., (सज्ज्ञानलो) १३२२४ द्रव्यानुयोगतर्कणा, मु. भोजसागर, सं., अध्याय १५, ग्रं.२९५६, धर्मसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. १३९६, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (श्रीयुगादि) १०४६४(+) (नमिऊण वीयर) १२०१८) (२) द्रव्यानुयोगतर्कणा-स्वोपज्ञ टीका, मु. भोजसागर, सं., गद्य, (२) धर्मसङ्ग्रहणी-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.११०००, मूपू., (श्रियं निव) १०४६४(+) ___गद्य, पू.. (यथास्थिताश) १२०१८(5) द्रौपदी चरित्र, सं., गद्य, वै., (अतीताद्वाय) १२३२१-१ धर्मसागरमतखण्डन, प्रा., पद्य, जै., (केई भणन्ति) १२७६८६) द्वात्रिंशद्वात्रिंशिका, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., (२) धर्मसागरमतखण्डन-टीका, सं., गद्य, जै., (नत्वा श्री) २१द्वात्रिंशिका, पद्य, मूपू.. (स्वयम्भुवं) १३०१० १२७६८(३) द्वादशानुप्रेक्षा, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., गा. ९१, पद्य, दि., धर्मसारोत्तरप्रकरण, सं., श्लोक २४२, पद्य, जै., (मायाहङ्कार) (णमिऊण सव्व) १००९०-१(+) १२६३१-१ द्विजवदनचपेटा, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, मूपू., (कूर्मवामनम) धर्मोपदेश, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., १२ प्रक्रम, श्लोक ११०, पद्य, १३३१३-३ मूपू., (ओमित्यक्षर) १२०२०, १२०७२-१ द्विदल विचार, प्रा., गा. १, पद्य, म्पू., (जं मिओ पिल) ११५७८-५ । (२) धर्मोपदेश-स्वोपज्ञ वृत्ति, गणि लक्ष्मीवल्लभ, सं., वि. १७४५, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति प्रकीर्णक, प्रा., गा. २२५, पद्य, मूपू.. गद्य, मूपू., (श्रीपार्श) १२०२० (पुक्खरवरदी) ११६५३-१ । (२) धर्मोपदेश-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ ईसा अक) १२०७२धनद कथा-दानधर्मे, सं., गद्य, मूपू., (दानधर्मप्र) १२४८२-७(4) धनदत्त कथा, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., ग्रं.३००, गद्य, मूपू., धर्मोपदेशशतक, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., सर्ग ५, श्लोक १०६, (धर्मा देव) ११२२१(+) ग्रं.७४८, पद्य, मूपू., (प्रणिधाय) १३२५८ धनपालकवि कथा, सं., गद्य, मूपू., (पुरा समृद) १२४८२-२२) (२) धर्मोपदेशशतक-स्वोपज्ञ टीका, आ. मेरुतुङ्गसूरि, सं., धन्यशालिभद्र चरित्र, उपा. ज्ञानसागर, सं., ९ पल्लव, गद्य, मूपू.. | ग्रं.३२७४, गद्य, मूपू., (जयति स परम) १३२५८ For Private And Personal Use Only Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ धातुपाठ, सं., गद्य, जै., (ॐ नमः सिद) १३२४६-१ (+) धूर्ताख्यान, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., पद्य, (नमिऊण जिणव) - < प्रतहीन > (२) धूर्ताख्यान- बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ( सदुपनिषदने) १०१०७, १०९२६ ध्वजारोहण विधि, मागु., प्रा., सं., गद्य, मृपु. ( तिहां प्रथ) १००९२ ननामी मन्त्र, सं., मागु., गद्य, (ॐ नमो सप) १३५३० - २ नन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., गा. ७००, प+ग, मूपू., ( जयइ जगजीवज) ९९९७) १०९९७-११) ११७९११) ११७९८१), ९९८५, १०१७३, १११२९, ११७९०, ११७९६, ११७९७, १०४१४, १०८२६, ९३४१-२, ९४८८ (S) · " (२) नन्दीसूत्र - टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ७७३२, गद्य, भूपू.. (जयति भुवने) १०३५८) ११७८९ " (२) नन्दीसूत्र- टीका, आ. हरिभद्रसूरि स. ग्रं. २३३६. गद्य, भूपू.. ( जयति भुवनै) १०११२ (२) नन्दीसूत्र - बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अथ नन्दि) १०४१४, ९४८८) (२) नन्दी सूत्र- टवार्थ, मागु गद्य, मु. ( नन्दी ते) ९९९७०), ११७९१(+), ११७९८ (+), ९९८५, ११७९०, ११७९६, ११७९७ (२) नन्दीसूत्र स्तुति, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (अर्हं स्तन) १२९३६-३(+#) " (२) नन्दीसूत्र- स्थविरावली, आ. देववाचक, प्रा. गा. ५०, पद्य, मूपू.. ( जयइजगजीवजो) १०६४९-१० १०७३१-१) १०७४० १, १०९२७-४, ९८५४-१, ११६०२-१ नन्द्यावर्तपूजा विधि, सं., गद्य, मुपू. (परमेष्टि) १०१००) नमस्कारफलदृष्टान्त सङ्ग्रह, से, श्लोक ३२६, पद्य, ग्रुप, (नमो अरिहन) १२९९० नमस्कार महामन्त्र, प्रा. ९ पद, पद्य, (नमो अरिहन) प्रतहीन > (२) नमस्कार महामन्त्र - बालावबोध, मागु., गद्य, मूप्पू., ( नमो अरिहन) १२७९४-४ (२) नमस्कार महामन्त्र बालावबोध' मागु, गद्य, मृपू., (वारसगुण अर) ९८४०, १०३७३, ११४००, ११६८४-१ (२) नमस्कार महामन्त्र - बालावबोध *, मागु., गद्य, भूपू., (माहरउ नमस) १०२९१, १२७५१-८ (२) नमस्कार महामन्त्र - बालावबोध, मागु., गद्य, मूप्पू., (माहरो नमस) ११३१३ नमस्कार महामन्त्र कथा सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., ( नमस्कारप्र) १२४८७-१(S) नमस्कारमहामन्त्रमाहात्म्य कथा सङ्ग्रह, सं., श्लोक ४५, पद्य, जै., (परत्रापि) ९९१०-४ १२४७१-४ नमस्कार माहात्म्य, आ. सिद्धसेनसूरि, सं. ८ प्रकाश, पद्य, मूपू.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (-) १०४५२-११ नमस्कार स्तव, आ. जिनकीर्तिसूरि, प्रा. गा. ३३, पद्य, मूपू., (परमिट्ठि) ११४०२ (२) नमस्कार स्तव-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. जिनकीर्तिसूरि, सं., वि. १४९७, गद्य, मुपू., (जिनं विश्व) ११४०२ नमस्कारस्तोत्र, सं., श्लोक २३, पद्य, मुपु. ( पञ्चानुत) १३७१३g(+) " ५२७ नमिऊण स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि प्रा. गा. २४, पद्य, मृपू.. (नमिऊण पणयस) १०३००-४, १३६४६-२, १०२६२-३१ १२१६२-२१ (8) (२) नमिऊण स्तोत्र- अभिप्रायचन्द्रिकाटीका, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं. ३००, वि. १३६५, गद्य, मुपू., (श्रीपार्श) ११७३६-२ (२) नमिऊण स्तोत्र- टीका, सं., मद्य, मूपू. (सिद्धार्थप) १३६९७ (२) नमिऊण स्तोत्र- अवचूर्णि सं. गद्य, मूप्पू, (नत्वा नमरा) " . For Private And Personal Use Only १३६४६-२ (२) नमिऊण स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, भूपू., (नमस्कार कर) १०३००-४ " नयचक्र, आ. कुन्दकुन्दाचार्य प्रा. गा. ४५३, पद्य, (दव्याविस्स)< प्रतहीन > (२) नयचक- भाषावचनिका, आ. हेमराज शाह, प्राहिं. वि. १७२६, गद्य, दि., (वन्दो श्री) ९६३८(+), १०१२४ (+), १०७९१ नयचक्रसार, गणि देवचन्द्र, सं., वि. १८वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) १०७१९ (२) नयचक्रसार-स्वोपज्ञ बालावबोध, गणि देवचन्द्र, मागु., वि. १८वी, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य पर) १०७१९ नयोपदेश, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लोक १४४, पद्य, मृपू. (ऐन्द्रं धा) १०९५९ नरवर्मराज चरित्र, गणि विवेकसमुद्र, सं., सर्ग ५, ग्रं. ५४२४, वि. १३२४, पद्य, मृपू. ( प्रवज्या) १३०३७/१ नलायन, आ. माणिक्यदेवसूरि, सं., १० स्कन्ध, पद्य, मूपू., ( जयति जयति ) १३४४१ ($) " नवग्रह पूजा, सं., प्रा., मागु, प+ग, मृपू., (हवै स्नात) १००९३ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा. गा. ६०, पद्य, भूपू (जीवाजीवा) ९५४८). ९६८७१ १०४८१-२०० १०५३६) १११०६-२) ११३५९), (+), ११६७७-१४/१) १२२१७५ १२२२९-१) १३२१८) ९३५१) १००३७) ११२०३(१) ९४९६१ १११५४) १२२१४-११-१ ९४३८, १०३१४, १०४८६-२, १०८७५-१, १०९७३-१, १११७७, ११२५८, ११३७३, ११८१०-२, १२१२६-१, १२१२७-२, १२२१३३, १२२१६, १२२१८, १२२१९, १२२२२-१, १२२२८-१, १२२३०, १२२३१, १२२३८, १२४०२, १२६४९-३, ९८४७-१, १११११-२, ११३७२, ११३९७, Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५२८ १२१२५-१, १२७५१-४, १२२२५5), १२२२७-१०, १२१६२-१३६), ११२५२-२(१), १२२२०६), ११६०४-११०) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., ग्रं.४७७, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) १२२१७(+), १२२२५(48) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका, मु. रत्नचन्द्र, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्यपाद) १३२१८(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (वीरं विश्व) १२२२६ (२) नवतत्त्व प्रकरण-अवचूरि, मु. साधुरत्न, सं., गद्य, मूपू.. (जयति श्रीम) ९६८७), ९४९६), १०९७३-१, १२२१६, १२२१८, १२२१९, १२२२१, १२२२२-१, १२२२४-१, १२२२०१७) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टिप्पण', सं., गद्य, म्पू., (-) १२२१४-१) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) ११२५८, १३२५० (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्वना) १११५७+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (यथास्थित) १११३९) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (सम्यक्दृष) कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ (२) नवतत्त्व प्रकरण-रुपी अरूपी बोल, मागु., गद्य, मूपू., (नवतत्त्व) १०४०८ नवतत्त्व प्रकरण, प्रा., गा. १०७, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापु) १०६७९), १२२४०+). १००१२(१), १०१७६-१७), १२२१५६७) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (श्रीवीरजिन) १००१२(5) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, गणि मानविजय, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) १०६७९(+), १२२४०(+) नवतत्त्व प्रकरण, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जीवाजीवा) ९७८४-१, १२१६२-१४(5) | (२) नवतत्त्व प्रकरण-विवेचन, मागु., गद्य, मूपू., (जीव अजीव) ९७८४-१ नवतत्त्व प्रकरण, आ. देवगुप्तसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (सम्मं च मो) १२२२३ | (२) नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य, आ. अभयदेवसूरि , प्रा., गा. १३८, पद्य, मूपू.. (भूयत्था इह) १२२२३ (३) नवतत्त्व प्रकरण-भाष्य की टीका#, उपा. यशोदेव, सं., वि. ११७४, गद्य, मूपू., (-) १२२२३ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टीका#, उपा. यशोदेव, सं., ग्रं.२४००, वि. ११७४, गद्य, मूपू., (मोक्षस्याद) १२२२३ नवतत्त्व प्रकरण, आ. मणिरत्नसूरि, प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (जीवाजीवापु) १२२४१(+), १३२९३५), १३२९६-१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुविमल, मागु., गद्य, मूपू., (जीवनुं स्व) १२२४१(4) | (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नत्वा देवा) १३२९६-१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (श्रीवीरजिन) १३२९३) नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, मूपू., (वृक्षप्रात) ९४९३-१ नवपद खमासणा विधि, सं., गद्य, मूपू., (स्वर्णसिङ) १३२३८(5) नवपदगुणन विधि, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (तिहां प्रथ) १३१७१ ९५४८) (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (साची वस्तू) ११३७२ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. देवचन्द, मागु., वि. १७६६, गद्य, मूपू., (ज्ञानं पञ) १३२९७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-बालावबोध, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीरं) १२२३०, १२२३८ (२) नवतत्त्व प्रकरण-लेशप्रकाशकस्तवप्रदीप बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (वन्दित्वान) १२२२९-१(+) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) १०४८१-२(+), १०५३६(५), ९३५२(+), ११२०३(+), १०३१४, ११८१०-२, १२२२८-१, १२४०२, ९८४७-१, १२२२७-१(६) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जीवनुं स्व) ११३५९) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (यथावस्थित) १००३७) (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (साचा वस्तु) १०८७५-१, १२२३१, ११३९७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-टबार्थ, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (साचउ वस्तु) १११७७ (२) नवतत्त्व प्रकरण-२४ दण्डक विचार, मागु., गद्य, मूपू., (जीवाजीवा) १२७९४-३ २९) नवपद पूजा, उपा. यशोविजयजी गणि, प्रा.,सं.मागु., पद्य, मूपू., (उपन्नसन्ना) १०५९०-३(१), १०९४४, ११३८९-१७) नवपद प्रकरण, प्रा., गा. १२४, पद्य, मूपू., (अरिहाइनवपय) १०१३२ (२) नवपद प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (--) १०१३२ नवपद विधि, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू.. (प्रभाते उठ) १०७६६-५ नवस्मरण, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा.,सं., ९ स्मरण, प+ग, मूपू., (नमो अरिहन) ९८५७-१+), ९५३४), १०४१८-१(4), १३७०६(45), १०८४७, ११५८३-१, ११६०३, ११६०८-१, For Private And Personal Use Only Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५ २९ ९७६५-२(5) ११६१७-१, १३५३६-१, १३७०५-१, १०१०८-३, १०७८८, (२) निशीथसूत्र-विशेष चूर्णी#, गणि जिनदास महत्तर, प्रा.,सं., ११५८०-१ ___ ग्रं.२८०००, वि. ८वी , गद्य, (नमिऊण अरहन)<प्रतहीन.> (२) नवस्मरण-सप्तस्मरणटीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, (३) ६ काय विराधना विचार, प्रा., गद्य, मूपू., (भवे कारणं) मूपू., (प्रणिपत्य) १०५३३-१ १०२४७-२ (२) नवस्मरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (अर्हदादीन) १०७८८ (३) निशीथसूत्र-विशेष चूर्णी का- अपवादसङ्ग्रह, प्रा., गद्य, मूपू., (२) नवस्मरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) ११५८३-१, (भवे कारणं) ११५६३(+) ११५८०-१ नृपशेखरराजा कथा-प्राणातिपात विषये, सं., गद्य, जै., (हिंसा (२) नवस्मरण-टबार्थ', मागु.गद्य, मूपू., (अरिहन्तनइं) ९८५७- | दुख) १२५१२-६(७) १(+) नेमिजिन चरित्र, प्रा., पद्य, जै., (नमिउण सिद) ९४९४(48) (२) बृहत्शान्ति स्तोत्र-तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (भो भो भव्य) नेमिजिन चरित्र, उपा. कीर्तिराज, सं., सर्ग १२, वि. १४९५, पद्य, १३६४७), १००३५), १०११६-१, ११९७३-९, १३६८४, मूपू., (वन्दे तन्न) १३४३३) १३६८५ नेमिजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., श्लोक २६, पद्य, (३) बृहच्छान्ति-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५६, गद्य, मूपू., (शब्दब्रह्म) १३७१२-४ मूपू.. (स्ताच्छान) १३६४७+7, १३६८४, १३६८५ नेमिजिन स्तव-गिरनारतीर्थमण्डन, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. नवस्मरण अञ्चलगच्छीय, सं.प्रा., ९ स्मरण, प+ग, मूपू., १६, पद्य, मूपू., (लच्छिकुलहर) १२१६२-२५६) (परमेष्ठि) ११३१६, १०९०४ नेमिजिन स्तवन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू.. (निजगुरुक्र) १०९४१(२) नवस्मरण अञ्चलगच्छीय-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--) १०९०४ नेमिजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (इन्दिवरदलश) नागकुमार चरित्र, कवि मल्लीषेण, सं., सर्ग ५, ग्रं.५३१, पद्य, मूपू., (श्रीनेमिजि) १२५०९ (२) नेमिजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (नेमिनाथ जय) नागश्री कथा, मु. ब्रह्म नेमिदत्त, सं., श्लोक ३६५, पद्य, मूपू., ९७६५-२(5) (श्रीमज्जिन) १२५२५(५), १०८७४-१ न्यायदीपिका, आ. धर्मभूषणाचार्य, सं., ३ प्रकाश, गद्य, जै., नाट्यदर्पण, आ. रामचन्द्रसूरि, आ. गुणचन्द्रसूरि, सं., ४ विवेक, (श्रीवर्द्ध) १३१५८(+) पद्य, मूपू.. (चतुर्वर्गफ) १३५८९ न्यायसार, आ. भासर्वज्ञ, सं., ३ परिच्छेद, गद्य, (प्रणम्य शं) (२) नाट्यदर्पण-स्वोपज्ञविवरण, आ. रामचन्द्रसूरि, आ. १२८४०(+), १३०४४-१(45) गुणचन्द्रसूरि, सं., , मूपू., (चतुर्वर्गफ) १३५८९ (२) न्यायसार-न्यायतात्पर्यदीपिका वृत्ति, आ. जयसिंहसूरि, सं., निगोदजीव मोक्षगमनकाल गाथा, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., (जम्पइ _ वि. १५वी, गद्य, मूपू., (यत्सत्त्वं) १२८४०), १३०५७(+) जिणो) १०५६२-२६) न्यायावतार सूत्र, मु. दयारत्न, सं., श्लोक ६९, पद्य, मूपू., (२) निगोदजीव मोक्षगमनकाल गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (चिन्मय प्र) १३६८२-१, १३६८२-२ (चन्द्रमौली) १०५६२-२) (२) न्यायरत्नावली-स्वोपज्ञ वृत्ति, मु. दयारत्न, सं., गद्य, मूपू., निर्णयप्रभाकर, पाठक बालचन्द्र, सं.,हिन्दी, ग्रं.१५५१, वि. १९३०, (प्रणम्य पर) १३६८२-२ प+ग, मूपू., (श्रीजैनेन) १०३५७(+) न्यायावतारसूत्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., का. ३२, पद्य, निर्द्रव्यविप्र कथा, सं., श्लोक २८, पद्य, मूपू.. (यः प्राप्य) १२४३४- (प्रमाणं)-<प्रतहीन.> (२) न्यायावतारसूत्र-टीका, गणि सिद्धर्षि, सं., ग्रं.२०७३, गद्य, निर्वाणकलिका, आ. पादलिप्तससूरि, सं., . मूपू.. (वर्धमानं) मूपू., (अवियुतसामा) १३१३९ १३१७७ पंचपरमेष्ठिगुणन विधि, सं., गद्य, मूपू., (प्रभाते मू) १२९३६-८+१) निर्वाणकाण्ड, प्रा., गा. ४७, पद्य, दि., (अद्वावय मि) १००८९-६ पंचपरमेष्ठि स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (अर्हन्तो) ११२५५(२) निर्वाणकाण्ड- भाषा, भैया, प्राहिं., गा. २२, वि. १७४१, पद्य, २, १३७१४-२३ जै., (वीतरागि वन) १००८९-७ पंचपरमेष्ठि स्तोत्र, प्रा., गा. ७, पद्य, मूपू., (परमेष्ठिमन) ९५८१निशीथसूत्र, प्रा., २०उद्देश, ग्रं.८१५, गद्य, (जे भिखु हत) <प्रतहीन.> पंचमीतपउच्चारण विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम गुरु) For Private And Personal Use Only Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ __ १३१७१-७+) १२३१०(45) पंचसूत्र, आ. चिरन्तनाचार्य, प्रा., ५ सूत्र, गद्य, मूपू., (णमो पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (श्रीवज्रस) ११८७९-२(45) वीयराग) १०९७२) पट्टावली तपागच्छीय, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) १३१९०(+) पंचाख्यान वार्तिक, सं., श्लोक ४८, पद्य, जै.. (कुश्रितं) १०७९४(६) पट्टावली-विविधगच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (देवसूरि गछ) १३२२९(२) पंचाख्यान वार्तिक-बालावबोध, मागु., ग्रं.१५००, गद्य, जै.. २, १३२१४-२(5) (दक्षिणदेश) १०७९४६) पडिलेहण कुलक, गणि विजयविमल, प्रा., गा. २८, पद्य, मूपू., पंचाशक प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., अध्याय १९, गा. ९४०, (पडिलेहणा) १२५६७-१(+) ग्रं.११८७, पद्य, मूपू.. (नमिऊण वद्ध) १३०२९०, १११४८, (२) पडिलेहण कुलक-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रतिलेखना) ११९४८ १२५६७-१(+) (२) पंचाशक प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोभद्र, सं., वि. ११२१, पद्मावती कल्प, सं., पद्य, जै., (उत्पत्ति) १२६९५ गद्य, मूपू., (सर्वातिशय) १००४८ पद्मावती वृद्धस्तोत्र, सं., श्लोक २६, पद्य, मूपू.. (-) ९५३७-१(७) (२) पंचाशक प्रकरण-शिष्यहिता वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., पद्मावतीव्रतउद्यापन पूजा, सं.,मागु., प+ग, मूपू., (नमः श्रीपा) ग्रं.७४८०, वि. ११२४, गद्य, मूपू., (सदृष्टीना) ११९४८ ९३४७-१३ पञ्चतन्त्र, विष्णु शर्मा, सं., गद्य, (ब्रह्मा रु)<प्रतहीन.> पद्मावत्यष्टक, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू.. (श्रीमद्गीर) ९८०१३) (२) पञ्चाख्यान भाषा, मागु., पद्य, मूपू., (श्रीअम्बा) १०८९७ (२) पद्मावत्यष्टक-टीका, सं., गद्य, जै., (प्रणिपत्य) ९८०१(६) पञ्चमेरू पूजा, मागु.,सं., गद्य, जै.. (संवौषडाहूय) १००८९-४ (२) पद्मावत्यष्टक-पार्श्वदेवीय वृत्ति, गणि पार्श्वदेव, सं., ग्रं.५२२, पञ्चसङ्ग्रह , आ. चन्द्रमहत्तराचार्य, प्रा., ५ द्वार, पद्य, मूपू., ___ गद्य, मूपू., (प्रणिपत्यं) ९७३०(45) (नमिउण जिणं) १२१६९(+) परमब्रह्मोत्थापनस्थल, आ. भुवनसुन्दरसूरि, सं., गद्य, मूपू., (२) पञ्चसङ्ग्रह-टीका, सं., गद्य, मूपू.. (सिद्धं सिद) १२१६९(4) (श्रीवीरजिन) १२६७३-१९ पञ्चाख्यान कथानक सङ्ग्रह, सं., पद्य, मूपू.. (यस्य बुद्ध) परमाणुपरिणाम भाङ्गा कोष्टक, प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (परमाणु १२३९४-२ योग) १२६७५-१ पञ्चिन्दियसूत्र, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू.. (पञ्चिदिअ) १०३१७-३, । परहेतुतमोभास्करनामस्थल, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, मूपू., १२५६३-५ (इहहि सकलता) १२६७३-४ पट्टावली, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (त्रैलोक्या) १०१९०६) परीक्षामुखसूत्र, आ. माणिक्यनन्दि, सं., ६ अधिकार, सूत्र २०७, पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (आभोहर देशे) _ वि. ५६९ , पद्य, दि.. (प्रमाणदर्थ) १२८४१ १२५७१ पर्यन्ताराधना, आ. सोमसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (नमिउण पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूप., (महावीरे मो) भणइ) ११०८६(+), ११८३२(+), ११२६२(+), ९३९४(+), १०८०६, १०९६७, ११८३१, ११८३४, ११८३५, ११८३७, ११८३८, पट्टावली खरतरगच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (वीरे मोक्ष) १३१८४(4) ११८३९, १२१९२, १०८३२-१(१), ११८३६(5) पट्टावली खरतरगच्छीय, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (गुब्बरग्रा) (२) पर्यन्ताराधना-अवचूरि, गणि विनयराज, सं., गद्य, मूपू., १२३०० (कश्चिद् गु) ११०८६(+), १०९६७ पट्टावली खरतरगच्छीय, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (हिवइ गुरा) (२) पर्यन्ताराधना-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (नमीनइ नमस) १२३०२(5) ११८३१, १०८३२-१(4), ११८३६() पटावली खरतरगच्छीय, वा. क्षमाकल्याण, सं., वि. १८३०, (२) पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मु. लावण्यविजयवाचक शिष्य, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) १२३१५, १२३४७ ___गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) ११८३२(+) पट्टावली खरतरगच्छीय, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, (२) पर्यन्ताराधना-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) मूपू., (गौतमादि गु) १३१८२ ९३९४(+#), १०८०६, ११८३४, ११८३५, ११८३७, ११८३८, पट्टावली-तपागच्छ, सं.प्रा., श्लोक २७, पद्य, मूपू., (वर्द्धमान) ११८३९, १२१९२ १३२१६ पर्युषणपर्व कथा, मु. सौभाग्यलक्ष्मी, सं., गद्य, मूपू., (२) पट्टावली-टीका, सं., गद्य, मूपू., (ज्ञान दर्श) १३२१६ (देवासुवशमा) १२५१८-१ पट्टावली तपागच्छीय, सं., गद्य, मूपू., (कल्याण कार) | पर्युषणादशशतक, उपा. धर्मसागरगणि, प्रा., गा. ११०, पद्य, मूपू., १३१८३६) For Private And Personal Use Only Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५३१ (नमिउं वीरज) १३२९९ पार्श्वजिन माहात्म्य कथासङ्ग्रह- स्थम्भनपार्श्व, आ. मेरुतुङ्गसूरि, (२) पर्युषणदशशतक-वृत्ति, उपा. धर्मसागरगणि, सं., गद्य, मूपू., सं., ३२प्रबंध, वि. ११३१, गद्य, मूपू.. (श्रीस्थम्भ) १२५५९-१(+), (प्रणम्य) १३२९९ १२९८२-१(4), १२९८३-१(4) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, मु. नन्दलाल, सं., श्लोक ६२४, वि. | पार्श्वजिन लघुस्तवन-सारङ्गशब्दयुक्त, मु. रामविजय, सं., श्लोक १७८९, पद्य, जै., (स्मृत्वा) ९४०१(+), १२५३०५). १३२८१- ७. वी. १९४२, पद्य, मूपू.. (वामासुत) १३१७१-३२(+) १(45), १२५२८ पार्श्वजिन स्तवन, आ. लक्ष्मीसागरसूरि, सं., श्लोक १३, पद्य, (२) पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., मूपू., (श्रीवामेयं) १३७११-११(4) (श्रीपार्श) १२५२७ पार्श्वजिन स्तवन, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., श्लोक २५, (२) पर्युषणअष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., पद्य, मूपू., (कीर्तिः) १३७१२-५ (श्रीपार्श) ९४०१(+) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, सं., गा. ४५, पद्य, (-)-<प्रतहीन.> पर्युषणाष्टाह्निका व्याख्यान, आ. लक्ष्मीसूरि, सं., ३व्याख्यान, (२) पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला-बालावबोध, उपा. धर्मनन्दी, ___ गद्य, मूपू.. (सामायिकप्र) १२५४९(+) सं.,मागु., गद्य, मूपू., (अहं पार्श) ११२९१-१ पर्वविकृप्तिशतक, वा. बूटारत्न, सं., श्लोक १०२, वि. १५०४, पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. १६, ___ पद्य, मूपू., (श्रीसान्द) १३०८७-३ पद्य, मूपू., (देव दरिसणि) १२१६२-२६(5) पाक्षिक स्तुति-स्नातस्या, आ. बालचन्द्रसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन-जीरावला, आ. महेन्द्रसूरि, सं., श्लोक ४५, पद्य, ___ मूपू., (स्नातस्याप) १३६९६-३६), १३७१३-२०+), १००३१-६ मूपू.. (प्रभुं जीर) १३७११-९(4) (२) पाक्षिक स्तुति-टीका, सं., गद्य, (स श्रीवर्द)-<प्रतहीन.> पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, सं., श्लोक २, पद्य, मूपू., (श्रीसेढीतट) (३) पाक्षिक स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (जे भगवन्त) ११६०९-२ १३६९६-३(+) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (अमरगिरिशिर) पाणिग्रहणज्ञान, सं., श्लोक ७, पद्य, जै., (नरस्त्रियो) १३६६२-५ ११६७७-२४(+) पाण्डव चरित्र, सं., पद्य, (आसीदथाविक) १२३६७५) पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (दशावतारो) १०६९१पाण्डव चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., सर्ग १८, ग्रं.८०००, पद्य, मूपू., (श्रियं विश) १२३६६(45), १३३०३(45) (२) पार्श्वजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (वामाङ्गजः) पाण्डव चरित्र, गणि देवविजय, सं., सर्ग १८, ग्रं.१००००, वि. १०६९१-२(+) १६६०, गद्य, मूपू., (ॐ नमो वृष) १२३६५६+६), १२३८९ पार्श्वजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (हर्षनतासुर) ११६७७पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथानक, सं., गद्य, मूपू., (धर्मतः २२) सकल) ११३४१(+), १११६१-१ पार्श्वजिन स्तुति-जीरावला, गणि प्रतिष्ठाकल्याण, सं., श्लोक १, पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री कथा, सं., गद्य, जै., (प्रथ्वीभूष) वि. १५२४, पद्य, मूपू., (श्रीमान्) ११७८७-२ १२५०८-३ पार्श्वजिन स्तुति-नाटिकाबन्ध, आ. जिनकुशलसूरि, सं., श्लोक ४, पार्श्वजिन चरित्र, सं., ग्रं.१६००, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) १२३६१ पद्य, मूपू.. (दें द्रे) ११६७७-३२), १०९७७-५ पार्श्वजिन चरित्र, आ. भावदेवसूरि, सं., सर्ग ८, ग्रं.६४००, वि. पार्श्वजिन स्तुति-पलबन्ध, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) १३१२, पद्य, मूपू., (नाभेयाय नम) १००४३(+), १०५९८५), ११६७७-२६(+), १०९७७-७ ११००३(+), १२३६३(+), १२३६२, १२३६४ पार्श्वजिन स्तुति-पलाकित जेसलमेरमण्डन, सं., श्लोक ४, पद्य, (२) पार्श्वजिन चरित्र-टबार्थ, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., ग्रं.१२१४७, मूपू.. (शमदमोत्तमव) ११६७७-१७+) वि. १८००, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) १००४३), १२३६४ पार्श्वजिन स्तुति-सप्तविभक्तिगर्भित, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू.. (ॐ नमः पार) (पाश्चौं) १०९८५-२(45) १०३३०-२(+) पार्श्वजिन स्तुति-स्तम्भन, सं., श्लोक ५, पद्य, मूपू., (भूमिनाभिसु) पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. शिवसुन्दर, सं., श्लोक ७, पद्य, मूपू.. १२५५९-२(+), १२९८२-२(+), १२९८३-२(+) (वरसं वरसं) १३१७१-३३(+) पार्श्वजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ४९, पद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) १२५४५पार्श्वजिन पूजाफल-स्थम्भनपार्श्व, सं., गद्य, मूपू., (प्रथमं श्र) १२९८३-३(4) पार्श्वजिन स्तोत्र-गोडीजी, सं.,मागु., श्लोक ९, पद्य, मूपू.. (सकल For Private And Personal Use Only Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३२ www.kobatirth.org: भवीकचे ) १३७१४-२४ पार्श्वजिन स्तोत्र-चिन्तामणि, सं., श्लोक ११, पद्य, मूपू., (किं कर्पूर) १३७१३-३५) " पार्श्वजिन स्तोत्र- जीरावला महामन्त्रमय आ. मेरुतुङ्गसुरि, सं.. श्लोक १४, वि. १५वी, पद्य, मूपू., ( ॐ नमो देव) १०३००-५ (२) पार्श्वजिन स्तोत्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., ( ॐकार मंगल) १०३००-५ पार्श्वजिन स्तोत्र नवग्रहगति आ जिनप्रभसूरि, प्रा. गा. १०, पद्य, मूपू., ( दोसावहारदक) ९५८१-३ (+), ११६७७-९ (+) पार्श्वजिन स्तोत्र लक्ष्मी, मु. पद्मप्रभदेव, सं., श्लोक ९, पद्य, दि... (लक्ष्मी) १००८९-२ पार्श्वजिन स्तोत्र शङ्खश्वर, मु. लब्धिरूचि, सं.,मागु., श्लोक ३२, वि. १७१२, पद्य, मूपू., ( जय जय जगना ) ९६५७-४(+) पार्श्वनाथ चरित्र, सं., पद्य, मूपू., (श्रीपार्श) १०२३५($) पार्श्वनाथ चरित्र, गणि उदयवीर, सं. सर्ग ८ नं. ५५००, वि. १६५४, मूपू., (प्रोद्यत्स) १०६९५ (+) .. पाशाकेवली, ऋ. गर्ग, सं., श्लोक १९६, पद्य, जै, (महादेवं नम ) ९३९१, ९५६३ - १, १०३६९, १३४७४, १३५०८, १३६०४, १५३८ क पिण्डनिर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ६७१, ग्रं. ७०००, पद्य, मृपू.. (पिण्डे उग) ११७८३ पिण्डविशुद्धि प्रकरण, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. १०३, पद्य, मूपू., (देविन्दविन) १०२३७(+), ११६३२ (+), ११८२४-१ (+), १२१०४-३(+$), ११८२६ (+), १०७१०, ११५७८-२, ११८२७, ११८२८, ११८४८, ११८२५ १२१६२-६ (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण- टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं. ग्रं.४४००, वि. ११७८, गद्य, मूपू., (नम्रानेकसु) ११०८५ (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण-टीका, आ. महीतिलकसूरि, सं., गद्य, भूपू.. ( श्रीमतोतिश ) १०७१० " (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण- दीपिका टीका, आ. उदयसिंहसूरि, सं., वि. १२९५, गद्य, मूपू., ( तं नमत श्र) ११८२६ (+), ११८२७ (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण-लघुवृत्ति, आ. यशोदेवसूरि, सं., ग्रं. २८०० वि. १९४६, गद्य, मृपू., (देवा भवनपत) ११६३२ /० (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण- बालानबोध, मागु, गद्य, मृपु. ( इन्द्रना) " १०२३७(+), ११८२४ - १(+), ११५७८-२ (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण- वालाचबोध, मागु, गद्य, मृपू.. (सुरपतिनरपत ) ११८२५ (२) पिण्डविशुद्धि प्रकरण- बालावबोध, गणि संवेगदेव, मागु. वि. १५१३, गद्य, मुपू., (श्रीमद्वीर) ११८४८ पुण्य कुलक, प्रा., गा. १०, पद्य, मूपू., ( सपुन्न इंद) १२५७२-२ पुण्यपालनरेन्द्र कथा, सं., गद्य, भूपू., (धर्मसिद्धी) १२४४२-ज " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ पुण्यप्रकाश, पं. रत्नकुशल गणि, सं., सर्ग ९, वि. १६५०, पद्य, मृपू., (-) १३४१२ ($) पुण्यसार कथा, सं. गद्य, मृपु. ( साधर्मिकाण) १२४८२-५० पुण्याढ्यनृपति कथा, सं., गद्य, मृपू., (वासपूज्यचर) १२४७९-२ पुद्गलपरावर्तन विचार, सं., मागु., गद्य, मृपू., (द्रव्य क्ष) ११०७९ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ पुरषोत्तम कथा, सं., गद्य, जै.. (पुराणेभ्यो) १२४७९-३ पुरुषलक्षण, सं., श्लोक ९५+२४, पद्य, (विनायक) १३५०४-४ पुष्पचूलिकासूत्र, प्रा., १० अध्ययन, गद्य, मूपू., ( जइ णं भंते ) ९९६०-४(+), १०८४९-४(+), ११३४८-४(+), ११५५४-४(+), ११५९३-४१ ११५९४-४०) ९३१६-४, ११५९५-४, ११५९६-४ (२) पुष्पचूलिकासूत्र-टीका, आ. चन्द्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (चतुर्थवर्ग) १११५०-४(+) (२) पुष्पचूलिकासूत्र - टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (श्रीवीतराग) १९६०-४० ११५५४-४ ९३१६-४, ११५९६-४ पुष्पमाला प्रकरण, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा., गा. ५०५, पद्य भूपू., (सिद्ध कम) १०६३११० १११६५ १२२३३ १२२३४/ १२२३६५ १२२३३ ९३८५ १०८६६, १२२३५. , १३२७६, १३०४८ " (२) पुष्पमाला प्रकरण- लघुवृत्ति, गणि साधुसोम, सं., वि. १५१२, गद्य, मृपू. ( इह संहिता) १०६३१ (५) १३२७६, १३०४८, ९३८५ (२) पुष्पमाला प्रकरण-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, सं. ग्रं. १३८६८, वि. १२वी, गद्य, मूपू., (येन प्रबोध ) १२२३५ (२) पुष्पमाला प्रकरण-टबार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (सिद्ध कहित ) १२२३६ पुष्पिकासूत्र, प्रा., १० अध्ययन, गद्य, मूपू., (जति णं भंत) ९९६० ३) १०८४९-३ ११३४८-३११ ११५५४-३०, ११५२३-३१), ११५९४-३१) ९५२०-११, ९३१६-२, ११५९५-३. ११५९६-३ (२) पुष्पिकासूत्र टीका, आ. चन्द्रसूरि सं. १० अध्ययन, गद्य, मूपू., (अथ तृतीयवर) १११५० -३ (+) (२) पुष्पिकासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जौ हे पूज) ९९६० - ३(+), ११५५४-३(+), ९३१६-३, ११५९६-३ पूजा प्रकरण, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. ५६, पद्य, मृ.. (सिरिवद्धमा) १२४००-२ For Private And Personal Use Only पृथ्वीचन्द्र चरित्र, पं. सत्यराज, सं., ११ भव, ग्रं. १८४६, वि. १५३४, पद्य, मृपू (श्रीनाभेयो) १२३९९ " पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, जै.. (प्रणम्य पा ) १३२८१-५ (+), १०३५९, १२४५४ १२५३२, १२५४१, १३०८४, १३२६५ (२) पौषदशमीपर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, सूपु. ( नमस्कार कर) १३०८४ Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५३३ पौषध विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम इरिय) १०८३३-१ पच्चक्ख) ११७२८ पौषध विधि, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम वन्द) १३१७१-२०+) | (२) प्रत्याख्यानभाष्य-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (दस प्रकारे) प्रज्ञापनासूत्र, वा. श्यामाचार्य, प्रा., ३६ पद., सूत्र २१७६, ११७२८ ग्रं.७७८७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) ९९२३६५), ११५४७), प्रद्युम्न चरित्र, उपा. रत्नचन्द्र, सं., सर्ग १७, ग्रं.३५६९, वि. ११५४८+), ११७७१(+), ११६३५(+), १००६८(+), ९९४९, १०६०७, १६७४, पद्य, मूपू.. (राज्यलक्ष) १२३७० १०९९९, ११५४६, ९७१५, १०३०५००, ११५५५७) प्रद्युम्न चरित्र, मु. रत्नसिंह, सं., सर्ग १८, वि. १६७१, पद्य, मूपू., (२) प्रज्ञापनासूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.१६०००, (श्रीमन्नाभ) १२३६९(4) गद्य, मूपू., (जयति नमदमर) ११५४९(+), ९३६५, ११५५०(६), प्रद्युम्न चरित्र, मु. सोमकीर्ति, सं., सर्ग १६, ग्रं.४८५०, वि. १५३३, ११५५५(5) पद्य, मूपू.. (श्रीमन्तं) १२३७१(5) (२) प्रज्ञापनासूत्र-कठिनपदटिप्पण", सं.,मागु., गद्य, मूपू., (-) प्रबन्धकोश, आ. राजशेखरसूरि, सं., २४ प्रबन्ध, वि. १४०५, गद्य, ११५४८(+) __ मूपू., (राज्याभिषे) १०७४६-१, १२५६९ (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., ग्रं.२८०००, वि. प्रबोधचिन्तामणि, आ. जयशेखरसूरि, सं., ७अधिकार, वि. १४६२, १७८४, गद्य, मूपू.. (प्रणम्य पु) १००६८(+) पद्य, मूपू.. (चिदानन्दमय) १०६२५), १२०२४(+), १११२५(+), (२) प्रज्ञापनासूत्र-टबार्थ, मु. धनविमल, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०५९५७), १०१६०, १२०२७, १०४८०(5) ९९२३(+), ११७७१(+), ११६३५९), ९७१५ (२) प्रबोध चिन्तामणि-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हवे ग्रन्थ) (२) संज्ञा स्तव, प्रा., गा. ११, पद्य, जै., (भत्तिपणमन) ९५४५-२९) | १०६२५(+), १०५९५(+६), १०४८०(5) (३) संज्ञा स्तव-टीका, सं., गद्य, जै., (भत्तीति सु) ९५४५-२(4) प्रबोधोदय, आ. जिनपतिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (स्याद्वादा) १२०२३ प्रतरनाम, प्रा., गद्य, मूपू., (उडुप्रतर) १०९३७-२) प्रभातिमङ्गल स्तुति, प्रा., गा. १८, पद्य, मूपू., (गोयम सोहम) प्रतिमाशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., श्लोक १०४, पद्य, १०९४१-२(+) मूपू., (ऐन्द्रश्रे) १०४८४, १३११७, १३१४९, १२६३९, १३१३१(). | प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार, आ. वादिदेवसूरि, सं., ८ परिच्छेद, ११०३५(5) गद्य, मूपू., (रागद्वेषवि) ११०३४(+), १३१६२), १३०९६(+), (२) प्रतिमाशतक-लघुवृत्ति, आ. भावप्रभसूरि, सं., वि. १७९३, १३०४४-३(45), १११५२, ११३५१, १२९६२, १३१००, १३२८०, गद्य, मूपू., (लक्ष्मीपुण) १३१४९ १३१५० (२) प्रतिमाशतक-स्वोपज्ञ टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., (२) प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकर स्वोपज्ञ वृत्ति, गद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्रे) १२६३९, १३१३१७), ११०३५९) आ. वादिदेवसूरि, सं., ८ परिच्छेद, गद्य, मूपू., (नमः (२) प्रतिमाशतक-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ऐन्द्र श्र) १०४८४ परमविज) १३१५० प्रतिष्ठाकल्प, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं.,मागु., गद्य, मूपू.. (३) प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कार-स्याद्वादरत्नाकर टीका की (प्रणम्य) १२६९४ रत्नाकरावतारिका टीका, आ. रत्नप्रभसूरि, सं., ग्रं.५६८०, प्रतिष्ठा विधि, सं., गद्य, मूपू., (प्रथम नोका) १२७१६ गद्य, मूपू.. (सिद्धये वर) ११०३४(+), १३०९६(+), १२९६२ प्रतिष्ठा विधि, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (पूर्वोक्त) १०१३७६६) (४) रत्नाकरावतारिकाटीका-टिप्पण, मु. ज्ञानचन्द्र, सं.,८ प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (अट्ठाही पू) परिच्छेद, ग्रं.२१०४, गद्य, मूपू.. (एकान्तमत्त) १२९५९(+), १२७४२-५ १२९६३ प्रतिष्ठा विधि सङ्ग्रह, आ. चन्द्रसूरि, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., प्रमाण लक्षणसिद्धि, सं., गद्य, मूपू., (प्रमाणं) १२६७३-१ (मूलगुरुंमि) १२७१३, १२७१५ प्रमाणवादार्थ, मु. यशस्वतसागर, सं., गद्य, जै., (श्रीमद्वाग) प्रतिष्ठोपयोगी औषधीनाम सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू., (ते च यथा) १२८३६ १२७१४-२ प्रमाणसाधनोपायनिरासस्थल, सं., गद्य, मूपू., (शुभवद्भिर) प्रत्यक्षानुमानप्रमाणनिरुपण वादस्थल, सं., गद्य, मूपू., (ननु प्रत्य) १३७५५-५ १२६७३-१४ प्रमाणसुन्दर प्रकरण, मु. पद्मसुन्दर, सं., खण्ड ४, वि. १७३२, प्रत्यङ्गिरा स्तोत्र, सं., श्लोक १०, पद्य, जै., (आरूढा सिंह) गद्य, मूपू.. (स्यात्कारम) १२८४८+), १३१६१(+) १०९७७-९ प्रमेयरत्नकोष, आ. चन्द्रप्रभसूरि, सं., अध्याय २१, पद्य, मूपू., प्रत्याख्यानभाष्य, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ४८, पद्य, मूपू., (दस | (नत्वा ज्ञा) १३३६९ For Private And Personal Use Only Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ प्रयोगविवेकसङ्ग्रह, ऋ. वररुचि, सं., ३ पटल, प+ग, ११६६४(+), ११५०५५), ११५२४(+), १०६१७(5) (प्रयोगमिच) ९३९८-१(+) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं., वि. १८वी, प्ररूपणा विचार, सं., पद्य, जै., (आर्हन्त्यम) १२७४७(+) गद्य, मूपू., (ऐन्द्रवृन) ११५२५(+) प्रवचनसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., गा. २७५, पद्य, दि., (एस | (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु.. सुरासुर) ११९५४(4) ग्रं.७०००उभय, गद्य, मूपू., (अहो जम्बू) ११५२७-१(+), ९५६५(+) (२) प्रवचनसार-वृत्ति, आ. अमृतचन्द्रसूरि, सं., गद्य, दि., (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हे जम्बू) (सर्वव्याप) ११९५४(+) ९६६८०, १०१६८०, ९८४८, ९९५३, ११५२६ प्रवचनसारोद्धार, आ. नेमिचन्द्रसूरि, प्रा., गा. १५९९, ग्रं.२०००, प्रश्न सङ्ग्रह, सं., ग्रं.६७५, गद्य, मूपू.. (कस्य जिनस) १२७६१ वि. १२वी, पद्य, मूपू., (नमिऊण जुगा) ११९५१(+), ११९५२(१), प्रश्न सङ्ग्रह, सं., गद्य, मूपू.. (न तु चतुर) १२७६० ११९५५), १०६७५, १०७४४, ११९५६, ११९५९, ११९६४(६) । प्रश्नोत्तररत्नमाला, आ. विमलसूरि, सं., श्लोक २९, पद्य, मूपू., (२) प्रवचनसारोद्धार-तत्त्वज्ञानविकासिनी वृत्ति, आ. सिद्धसेनसूरि, (प्रणिपत्य) १२२२९-२(१), १२९४४-२(+), १२७७९(48) सं., ग्रं.१८०००, वि. १२४२, गद्य, मूपू.. (सन्नद्धेरप) ११९४९(+), | (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (जिनवरेन्द) ११९५२(+), ११९५० १२९४४-२(+), १२२२९-२(+) (२) प्रवचनसारोद्धार-विषमपदार्थावबोध टिप्पण, आ. (२) प्रश्नोत्तररत्नमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमीकरी श्र) उदयप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (प्रवचन सार) ११९६३(+), १२७७९(48) ११९५९, ११९५७, ११९५८ प्रश्नोत्तररत्नाकर, मु. शुभविजय, सं., ४ उल्लास, गद्य, मूपू., (२) प्रवचनसारोद्धार-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) (प्रणिपत्य) १०७६०, १३१४१ ११९५१), ११९६४(६) प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (भवणपति व्य) प्रवज्या विधि, प्रा.,मागु., पद्य, मूपू., (दीक्षा लेत) १३००२-२ १२७५८) प्रव्रज्या कुलक, प्रा., गा. ३४, पद्य, मूपू., (संसार विसम) ११६७७- | प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह, उपा. जयसोम, मागु..सं., २६ प्रश्नोत्तर, वि. १६२९, गद्य, मूपू., (वामेय ममेय) १२७६४, १२७६७, १२७५९७) प्रशमरति प्रकरण, वा. उमास्वाति, सं., अध्याय १०, श्लोक ३१३, | प्रश्नोत्तर सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू., (-) १२७६५०० पद्य, मूपू., (नाभेयाद्या) १११३७+), ९५८४+६), १०१४९, प्रश्नोत्तरसार्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, सं., १५१ प्रश्नोत्तर, वि. १२०३१ १८५१, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) १२७८०(45), १२७८१ (२) प्रशमरति प्रकरण-टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., प्रश्नोत्तरैकषष्ठीशतक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लोक १६१, (उदयस्थितमर) १०१४९ पद्य, मूपू., (क्रमनखदशको) ९५२५(+), १३५५४-१५), १३५५५(२) प्रशमरति प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (उमास्वाति) १(+), १२७६६) ९५८४(45) | (२) प्रश्नशतक प्रकरण-कल्पलतिकावृत्ति, उपा. पुण्यसागर, सं., प्रश्नचिन्तामणि, गणि वीरविजय, सं., ग्रं.२२००, वि. १८६८, गद्य, ग्रं.१५००, वि. १६४०, गद्य, स्पू., (शिरसि यस्य) ९५२५९५), मूपू., (पुष्टेन्दी) १०१५४-१(5) १३५५४-१(+) (२) प्रश्नचिन्तामणि-बीजक, मागु.. गद्य, मूपू.. (बाह्मी) १०१५४- (२) प्रश्नशतक-अवचूरि, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (स्वस्तिश्र) १२७६६६) प्रश्नपद्धति सङ्ग्रह, आ. हेमप्रभसूरि, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य पा) प्रस्तार विधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (वर्णीन्) १२६७५-३ १३३१२-१ (२) प्रस्तार विधि-यन्त्र, सं., कोष्टक, मूपू., (-) १२६७५-३ प्रश्नव्याकरणसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय १०, गा. प्रस्ताविक श्लोकसङ्ग्रह, मागु.,सं., गा. ४, पद्य, जै., १२५०, ग्रं.१३००, प+ग, मूपू., (जंबू अपरिग) ९६६८+), (जीवअजीव कछ) ११०६८-२ १०१६८(+), १०६४६(+), १०८५७+), ११५२३(+), ११५२७-१(+), प्राकृत छन्दकोश, प्रा., गा. ८०, पद्य, मूपू., (आजोयणट्ठिय) ११५२५(+), ९५६५(+), ९५१४+5), ९८४८, ९९५३, ११३०३, १३३८७-१(+), ९४९८(5) ११५०४, ११५२६, १११३८ (२) छन्दकोश-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (जोअण प्रमा) (२) प्रश्नव्याकरणसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं.५६३०, ९४९८६) वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) १०६४६(५), ११५२३(+), प्राकृत छन्दकोश, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., For Private And Personal Use Only Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra 1 www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (गामाणामाजा) १३३८७-२१) प्राकृतलक्षण, कवि चण्ड कवि, सं., गद्य, जै., ( प्रणम्य शि) १२८९६४ १३१४६ प्रार्थना स्तुति *, सं., श्लोक ६, पद्य, मूपू., (दर्शनं देव) १००८९-१ प्रासङ्गिक श्लोक सङ्ग्रह, सं., श्लोक ८, पद्य, जै., (उच्चैः कल) १०९८५-३ प्रास्ताविक श्लोक सं., श्लोक १, पद्य, मुपु. ( चलन्ति तार) १३५०९-४ प्रास्ताविक श्लोक, सं., पद्य, जै., (योगी योगवस ) ९७०८-३(S) फाल्गुनचातुर्मासिक व्याख्यान, आ. भावप्रभसूरि, सं. वि. १७८२, गद्य, मुपू., ( नत्वा पार) १२५२६ - २ (+) . बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (बन्धविहाणव) १०८११-३ (+), ११२९० -३ (+), ११३५०-३(+), १२१४८-३०) १२१६१-३, १३२७०-३०) ९७२६-३०) ९८३७ ४४% १२१६७-३का १२१६८-३) १३२५१-३१ ९५१०-३०) १०१५९-३०३ १२१६४-३० १३२९०-३०३ ९८०४-২क १०११३, १०५४९-३, १०५७०-३, १०६७६-३, १०८९५-३, ११०३३-३ ११३५२-३, १२१४५-३, १२१४७, १२१५१-३, १२१५७, १२१६३-२, १२१६६-३, १३२६९-३, १०८०२-३, १२१५९-३, १२१५३-३, १२१७०-३०, १२१६५-३१, १०१६१3(s) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूरि, सं. गद्य, मृपू., (बन्ध० बन्ध) १२१५२-३, १२१५७, १२१४४-३, १२१५३-३(#) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूर्णि सं., गद्य, मूपू.. (सम्यग्बन्ध) १२१६१-३१, १०१५९-३०० १०५००-३, १२१५९३, १२१७०-३(#) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं. ३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपु. ( अथ अस्यैव ) १२१५०-३. १२१५६ राश (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, मपू., (-) १२१६७-३(+), १२१६८-३(+) (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, मागु, गद्य, भूपु (--) १२१६४-३० (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- शब्दार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (बन्ध विहाण) १०२९२-३ (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु, गद्य, मृपू.. (सामान्यइ) ९५१०-३+३, १२१४९-३ (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ मागु, गद्य, मृपू. (कर्म बन्धन) १०८११-३(+), १२१४८ - ३(+), ९७२६-३ (+), १३२९०-३(+$), १०५४९-३, १२१४५-३, १२१४७, १०११३ (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ-टवार्थ, मु. जीवविजय, मागु, वि. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८०३. गद्य, ग्रुप्पु, (जीवप्रदेश) १३२७०-३) १०१६१-३ (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ, मु. धनविजय, मागु.. गद्य, भूपू-. ( कर्मबन्धथी) १३२६९-३, १०८०२-३ (२) बन्धस्वामित्व नव्य कर्मग्रन्थ यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, मागु.. यंत्र, मृपू., (श्रीवर्द्ध) १२१५१-३, १३२७७-३ बन्धहेतुउदयत्रिभङ्गीसूत्र, मु. सागरसूरि शिष्य, प्रा. गा. ६५. पद्य, मृपू. (बन्धण हेउ) ११०९०११, ११३०११० १०७६७-१, १२१९४ ५३५ " " (२) बन्धहेतुउदयत्रीभङ्गीसूत्र- टीका, गणि विजयविमल, सं., वि. १६०२, गद्य, मृपू., ( जयति जगत) ११३०१), १०७६७-१ (२) बन्धहेतुदयत्रिभङ्गीसूत्र - यन्त्र, यंत्र, मूपू., (-) ११०९० (+) बन्धहेतु प्रकरण, प्रा., गा. २, पद्य, मूपू., ( सोलसट्ठारस) १०७६७-३ (२) बन्धहेतु प्रकरण- टीका, सं., गद्य, मृपू, (अथ चतुर्दश) १०७६७-३ बन्धोदयसत्ता प्रकरण, मु. विजयविमल, प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू .. ( वन्दिय देव) १३२९२ (२) बन्धोदयसत्ता प्रकरण अवचूरि, मु. विजयविमल, सं., गद्य, मूप्पू., ( वन्दिअति ) १३२९२ बन्धोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार, प्रा., गा. २१, पद्य, मृपू., (अपमतं ता) १०९८२ For Private And Personal Use Only (S) (२) बन्धोदयोदीरणासत्ताप्रकृति विचार वालावबोध, मागु., गद्य, भूपु.. (कर्म आठ छे) १०९८२ " बप्पट्टसूरि चरित्र, आ. राजशेखरसूरि, सं. गद्य, भूपू.. (गुर्जरदेशे ) १२९८१ बलभद्र चरित्र, प्रा., पद्य, जै., (गोयरग्गपवि) ९४५८-१ (२) बलभद्र चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (गो० गोचरीइ) ९४५८-१ बारभवन विचार सं., श्लोक १२, पद्य, (लग्नस्थितो) ९८७१-२ बाहुबली मन्त्र, प्रा., गा. १, प+ग, मुपू., (ॐ नमो भगव) ९४२१-३ तिथि स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (महीमण्डणं) ११६७७२८(+) बृहत्कल्पसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., अध्याय ६, ग्रं. ४७३, गद्य, मूपू., (नो कप्पइ) १०८५० (+), ११५६४-१ (+), ११८९७ (+), ११९१०-१(+), ११९१८-१(+), १०१८६, १०८४०, ११०१४, ११४०३, ११६४० (२) बृहत्कल्पसूत्र-निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (-) ११९१५(+) (३) बृहत्कल्पसूत्र - नियुक्ति का लघुभाष्य गणि सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ६४९०, पद्य, मूपू., ( - ) ११९१५ (+) (४) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति का लघुभाष्य की टीका# आ. Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५३६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ मलयगिरिसूरि , आ. क्षेमकीर्तिसूरि, सं., ग्रं.४२६००, गद्य, (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (रज्जउद्वार) मूपू.. (-) ११९१५(4) १२१८३ (३) बृहत्कल्पसूत्र-नियुक्ति की टीका#, आ. मलयगिरिसूरि , आ. | (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, क्षेमकीर्तिसूरि, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (--) ११९१५(+) मूपू., (वीर जिनवरे) १२१३१(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-लघुभाष्य#, गणि सङ्घदासगणि क्षमाश्रमण, | बृहत्चैत्यवन्दनसूत्र, मागु.,प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू.. (इच्छामि खम) प्रा., गा. ६४९०, पद्य, मूपू., (काऊण नमोक) ११९१५) ११६१०-२ (३) बृहत्कल्पसूत्र-भाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि , आ. बृहत्शान्ति स्तोत्र-खरतरगच्छीय, सं., पद्य, मूपू., (भो भो भव्य) क्षेमकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., (-) ११९१५(+) ९६५७-२(+) (२) बृहत्कल्पसूत्र-सुखावबोधा टीका, आ. मलयगिरिसूरि , आ. | बृहत्शान्तिस्नात्र विधि सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, पू., क्षेमकीर्तिसूरि, सं., ग्रं.४२६००, गद्य, मूपू., (प्रकटीकृतन) (नमोर्हत्सि) १२७०७(+), १२७४२-४, ९४०४ ११९१५(+), ११६४० बृहत्सङ्ग्रहणी, आ. चन्द्रसूरि, प्रा., गा. ३४९, वि. १२वी, पद्य, (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (कव० कश्चित) मूपू., (नमिउं अरिह) ९५८७+), ९६०४(+), ९६४४६५), ९६४७९५), ११५६४-१(+), ११८९७(+), ११९१०-१(+), १०१८६ ९८०८(+), १०४४५(+), १०९९०(+), १०९९४-१(+), १११२४(+), (२) बृहत्कल्पसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.४०००, गद्य, मूपू., (हिवे इहां) ११६७७-४०), १२२४३(+), १२२४४(+), १२२५८(+), १२२६०+), ११९१८-१(+) १२२६१(+), १२२६३), १२२७६(+), १२२७७+7, १२२८०(+), (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि यन्त्र, मागु., गद्य, मूपू., (--) १०४०५-१(+), १०७१७+), १०९३७-१(+), ११११९(), १२२६५(+), ११५६४-३(+), ११९१८-२) १२२६६(५), १२२७९(५), १०६५५), १२२७५(५), ९५१३(45), (२) बृहत्कल्पसूत्र-प्रायश्चित्तविधि, मागु., गद्य, मूपू., (नीवी मास) ९६१३(45), ९६४३, १०१५१-१, १०६८४, १०७७५-१, १०९१३, ११५६४-२(+), ११९१०-२(+) ११२७४, १२२५१-१, १२२५७, १२२५९, १२२६७, १२२६८, बृहत्क्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., ५ अधिकार, १२२६९, १२२७१-१, १२२७८, १३०८०, १३२५२, १३५७१, गा. ६५५, वि. ६वी , पद्य, मूपू., (नमिऊण सजलज) १०८७८, १०७८४, १११५८, १२२६२-१, १२२६४ १२१८१, १३१८५ (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टीका, आ. देवभद्रसूरि, सं., ग्रं.३५००, गद्य, (२) बृहत्क्षेत्रसमास-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., अध्याय ५, मूपू., (अत्यद्भुतं) ९६०४(+), १०६५५(+) वि. १३वी, गद्य, मूपू., (जयति जिनवच) १२१८१, १३१८५ (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू.. (-) १०९९४-१५), (२) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, १२२५८९५), १२२६५(+) प्रा., अध्याय ५, पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजल) ९८६१९+), (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-बीजक, गणि हंसविजय, सं., वि. १७२४, गद्य, १२१३२-१, १२१३५, १२१२८६) मूपू., (इहहि किल) १२२७५(4) (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का बालावबोध, मागु., गद्य, | (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-१४ द्वार वर्णण, मागु., गद्य, मूपू., (सप्रदेशद्व) मूपू., (नमिऊण कहेत) १०८६७, १२१२८६६) १२८०४ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-लघुक्षेत्रसमास का टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध', मागु., गद्य, मूपू., (ॐ नत्वा) (नमीने जे) ९८६१(+), १२१३५ १०९९०(4), १३०८० (२) बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण , आ. जिनभद्रगणि (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, गणि दयासिंह, मागु., ग्रं.१७५७, क्षमाश्रमण, प्रा., पद्य, मूपू., (नमिऊणसजलजल) १२१३३), वि. १४९७, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) ९५१३(45), ९६१३(+६), १२१३४९), १०४०९(4), ९६४१(+5), १०८०८, १०८६७ १०६८४ (३) बृहत्क्षेत्रसमास-सक्षेप जम्बूद्वीप प्रकरण का टबार्थ, मागु., (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-बालावबोध, मु. शिवनिधान, मागु., गद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (नमिऊण कहेत) १२१३३६), १२१३४५), (श्रीपार्श) १२२४३(+) १०४०९(+), ९६४१(+६) (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार अर) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य, आ. सोमतिलकसूरि, प्रा., गा. ३८७, वि. | ९८०८(+), १०४४५), १२२४४(+) । १३७३, पद्य, (सिरिनिलयं)-<प्रतहीन.> (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मागु., गद्य, मूपू., (नमिउं कहता) (२) बृहत्क्षेत्रसमास नव्य-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्त्वा वी) ९५८७५), १११५८ ११२९३ (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., गद्य, मूपू.. For Private And Personal Use Only Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५ ३७ (नत्वा गुरु) १०१५१-१ (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-टबार्थ , मु. धर्ममेरु, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) १०७१७(+), १३२५२ (२) बृहत्सङ्ग्रहणी-यन्त्रसङ्ग्रह', मागु., यंत्र, मूपू., (-) १०९९४ २), १११२४(+), ११११९(+), ९३७९(5) बृहस्पति स्तोत्र, सं., श्लोक ५, पद्य, वै., (ॐ बृहस्पत) १३७१४ १५ बृहस्पति स्तोत्र, विष्णुनाथ, सं., श्लोक ५, पद्य, वै., (ॐ नमो बृस) ११९७३-७ बोल सङ्ग्रह, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (द्वादशव्रत) १३१७० बोल सङ्ग्रह, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, जै., (-) १०५७९-३६), ११५५८-२(+) बोल सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., गद्य, जै., (हिवै शिष्य) ९७३१, ९६२९(5) ब्रह्मचर्यव्रतप्रत्याख्यान आलापक, प्रा., गद्य, मूपू., (प्रथम इरिय) १२७०५-२(5) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. १७२, पद्य, मूपू., (नमिऊण महाइ) ११८४५-२(+), ११२५४-३(45), १०६८९-३, १०६९०-३, १२१६२-९७०, ११८०२७) (२) भक्तपरिज्ञा प्रकीर्णक-अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., (भृग्धातुर) १११६९-२ भक्तामर स्तोत्र, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., श्लोक ४४+४, ग्रं.७७, पद्य, मूपू., (भक्तामरप्र) १००१७+), १०३३०-१+), ११६७७१०+), १३५४२(१), १३५४३(+), १३५४६(५), १३५४७+), १३६४०+), १३६४१(+), १३६४८), १३६८८(+), १३६८९(+), १३६९६-१(+), १३६३९(+), ११३४९(+#), ९४०६, ९४५२, ९६३४, ९६७४, १०००६, १०२६४, १०२८८, १०९६८-१, १०९८८, ११२४८-१, ११९७३-४, १३५३९, १३५४५, १३६४४, १३६९५, ९९८६, १३५४१, १३६८६, १०५२१, ९७५८-१, १३७११-८१), १०२६२-२०, १३५४०६, १३५४८०, ११६०४-६० (२) भक्तामर स्तोत्र-गुणाकरीय टीका, आ. गुणाकरसूरि, सं., ग्रं.१५७२, वि. १४२६, गद्य, मूपू., (पूजाज्ञानव) १३५४३६+), १३६४३-१+), १३६८७, १३६८६ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (किल इति सत) ११२४८-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (व्याख्या) १३६४२ (२) भक्तामर स्तोत्र-टीका, वा. मेघविजय, सं., ग्रं.१०००, वि. १८वी, गद्य, मूपू., (श्रीशद्धेश) १३५३९ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालहितैषिणी टीका, मु. कनककुशल, सं., ग्रं.६९३, वि. १६५२, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) १३६८८५), १३६८९५), १३५३८ (२) भक्तामर स्तोत्र-सुखबोधिका टीका, आ. अमरप्रभसूरि, सं., गद्य, मूपू., (किल इति नि) १३५४२(+), १३५४६(५), १३६४१(4) ९४५२, १३५४५, १३६४४, १३६९०, १३५४१, १३५४०६६), १३५४८(5) (३) भक्तामर स्तोत्रवृत्ति-अर्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (भक्तवन्त) १३६९० (२) भक्तामर स्तोत्र-भाषानुवाद, मु. हेमराज, मागु., गा. ४८, पद्य, मूपू.. (आदि पुरूष) १०२२०, १३५३५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., गद्य, मूपू.. (वर वाण किल) ९६७४, १०२६४, १०९८८, ९७५८-१ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध कथा, मागु., गद्य, मूपू., (--) १३६३९(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०९६८-१, १०५२१ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध + कथा*, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०००६ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम जीने) १३६९५ (२) भक्तामर स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (भगवन्त श्र) ९६३४ (२) भक्तामर स्तोत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (भक्तिवन्त) १३६४०(+), १३६९६-१(+), ११३४९(+#) (२) भक्तामर स्तोत्र-शेषकाव्य, आ. मानतुङ्गसूरि, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (गम्भीरतारर) १०९६८-२ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) १२५१३ (२) भक्तामर स्तोत्र-कथा, आ. गुणाकरसूरि, सं., २८ कथा, गद्य, मूपू.. (पुरामरावती) १३६८६ (२) भक्तामर स्तोत्र-शान्तिजिनभक्तामर-चतर्थपादपूर्तिरूप, मु. लक्ष्मीविमल, सं., श्लोक ४५, पद्य, मूपू., (श्रीशान्ति) १०२१८(+) (३) भक्तामर स्तोत्र-शान्तिभक्तामर-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमद्वाम) १०२१८(+) (२) भक्तामर स्तोत्र-समास, सं., गद्य, मूपू., (भक्ताश्च) १३५३७ भगवतीसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., ४१शतक, ग्रं.१५७५२, गद्य, मूपू.. (नमो अरहन्त) ९९२२(+), ११४५६(५), ११४६६(+), ११४६७+), ११४६८(+), १०५६४(+), १००५६(+), ११४६५), ११६३७+), ११४५८(१), ११४७१(+). ११४८३(+), ११९१६-२(+), १०५५२, १०५५८, १०५६५, ११६७०, ११४५७ (२) भगवतीसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., ४१शतक, ग्रं.१८६१६, वि. ११२८, गद्य, मूपू., (सर्वज्ञमीश) १०५८६६), ११४६३(१), ११६३७+), ११४६४ For Private And Personal Use Only Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५३८ (३) भगवतीसूत्र अभयदेवीय टीका का हिस्सा परमाणुखण्डषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. १५, पद्य, मूपू.. ( खितोगाहण) ९५६७-११) १२६५१-११) १२६५२-१ (४) परमाणुखण्डषट्त्रिशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहरि, सं. गद्य, मूपू., ( यथास्थिताण ) ९५६७-१ (+), १२६५१-१ (+), १२६५२-१, १११९७-१ (#) (३) भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका का हिस्सा निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (लोगस्सेगपए ) ९५६७-३ (+), १२६५१-३(+), १२६५२-३, १३०१२, १३०४७, १११९७ -२ (#) (४) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका के हिस्सा- निगोदषट्त्रिंशिका प्रकरण की टीका, आ. रत्नसिंहरि, सं. गद्य, मृपू., (अथ पंचमांग) ९५६७-३) १२६५१-३१) १२६५२-३ १३०४७, १११९७-२(") (४) निगोदपत्रिशिका - बालावबोध, मागु., गद्य, मृपू.. (इम लोकाकाश) १३०१२, १३०२० (३) भगवतीसूत्र-अभयदेवीय टीका का हिस्सा पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण, प्रा., गा. ३६, पद्य, मूपू., (वुच्छं अप) १२६५१-२(+), ९५६७-२(+), १२६५२-२ www.kobatirth.org: (४) पुद्गलषट्त्रिंशिका प्रकरण- टीका, आ. रत्नसिंहसूरि, सं., मद्य, मूप.. (अथ पञ्चम) ९५६७-२११ १२६५१-११ १२६५२-२ (३) भगवतीसूत्र- अभयदेवीय टीका का हिस्सा पञ्चनिर्ग्रन्थी प्रकरण, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. १०६, वि. ११२८, पद्य, (पत्रवण वेय) प्रतहीन (४) पंचनिर्ग्रन्थी प्रकरण-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (पन्नवण इति ) १२६५६-१ (२) भगवती सूत्र- लघुवृत्ति, आ. दानशेखरसूरि, सं. ग्रं. १२०००, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं ) १००४१ (२) भगवतीसूत्र- टीप, प्रा., गा. १६९, पद्य, मूपू., (नमिऊण तित) १०९२४ (२) भगवतीसूत्र- हुण्डी, ऋ. धर्मसिंह, मागु., वि. १८८२, गद्य, जै., ( नवकार नमो) १३०५० (२) भगवतीसूत्र- बीजक, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं.४०९, गद्य, भूपू., (प्रणम्य पर) ११४७३) ११४ 1 (२) भगवतीसूत्र -टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., ग्रं. ४५८००, वि. १७९०, गद्य, मुपू., ( श्रीमद्वीर) ११४६५ (+) (२) भगवती सूत्र- टवार्थ, उपा. पद्मसुन्दर, मागु.. ग्रं.५२०००, वि. १८५, गद्य, भूपु (श्रेय: अ) ९९२२५, ११४६६) ११४६७) " (२) भगवतीसूत्र - टबार्थ *, मागु., गद्य, मुपू., (ते कालनइ) 998230) (२) भगवती सूत्र- यन्त्र, मागु, यंत्र, भूपू. (-) १०४३० (२) भगवतीसूत्र-आलापक सङ्ग्रह, प्रा. गद्य, भूपू.. (-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ १०७४१) १०६०३ (३) भगवतीसूत्र आलापक की अवचूर्णि, सं., गद्य, मूपू., ( नमो नमस्का) १०७४) (२) भगवतीसूत्र- बोलसङ्ग्रह, प्रा. मागु, गद्य, मृपू., (तिविहं तिव) " ११८०१ (२) भगवतीसूत्र- दश अच्छेरा, मागु., गद्य, मूप्पू., ( उवसग्ग गब) ९४३९ (२) भगवतीसूत्र- बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, मूप्पू., ( एक मासनी ) ११४७२ " भद्रबाहुसंहिता, आ. भद्रबाहुस्वामी, सं. अध्याय २८, पद्य, मृपू.. (मगधेषु पुर) १०३२१ भरटकद्वात्रिंशिका, गणि आनन्दरत्न, सं. ३२कथा, वि. १५वी, गद्य, मूपू., (देवदेवं नम) १२९९६ (+), १२५९४, १२६४५ भरतबाहुबली महाकाव्य, गणि पुण्यकुशल, सं., सर्ग १८ श्लोक १५३५, वि. १६५९, पद्य, भूपू (अधार्षभिर) १३५५३१ भवचरिम पच्चक्खाण, प्रा., गद्य, मूप्पू., (भवचरिमं पच) १२७४२-७ भवभावना, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, प्रा. गा. ५३१, पद्य, मूपू., (णमिऊण णमिर) १०३८६) १२०३० - १२०८८) ९८७४ (+), १२०२९, १२०४४, १०५२७ (ड) (२) भवभावना - बालावबोध, मागु., गद्य, मूप्पू., (पूजाज्ञानव) १०५२७९ o(s) (२) भवभावना वालाववोध+कथा, गणि माणिक्यसुन्दर, मागु., वि. १५०१, गद्य, मुपू., (रएमि रचउं) १२०८८ (+) (२) भवभावना-टबार्थ, पं. शान्तिविजय गणि, मागु., ग्रं. ३४२५, गद्य, मृपू., ( प्रणिपत्व) १०३८६१) १२०४४ ($) भवानी अष्टक, शङ्कराचार्य, सं., श्लोक ९, पद्य, वै., ( न तातो 71) 8434-08 भागाकरण विधि, सं., प्रा., पद्य, मूप्पू, (गन्धेषु गु) १२६७५-२ (२) भागाकरणविधि यन्त्र, सं., कोष्टक, मृपू.. (-) १२६७५-२ भारतोल सङ्ख्या, सं., गद्य, मृपू., ( इमपुप्फ) १२२५१-४ भावत्रिभङ्गी, मु. श्रुतमुनि, प्रा., गा. ११६, वि. १४वी, पद्य, दि. (खवियघणघाइक) ११९६१ (+) For Private And Personal Use Only भावना कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. २१, पद्य, मुपू., (कमठासुरेण) १२५६५क (२) भावना कुलक-बालावबोध, गु. विनयकुशल, मागु., गद्य, मृपू.. (कमठासुरनाम) १२५६५ (#) भाव प्रकरण, गणि विजयविमल, प्रा. गा. ३०, वि. १६२३, पद्य, मूपू., (आणंदभरियनय) ९७८९ (+), १२४०१-१ (+), १३०८१ (२) भाव प्रकरण- स्वोपज्ञ टीका, गणि विजयविमल, सं., वि. १६२३, गद्य, मुपू., ( नत्वा श्री) १३०८१ (२) भाव प्रकरण-टबार्थ* मागु., गद्य, मूपू., ( आनन्दइ करि ) Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ९७८९ १२४०१-as १२३७२) भावितीर्थङ्करजीव श्लोकाः, सं., श्लोक १३, पद्य, मूपू., ( अतःपरं (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-टबार्थ, मु. तत्त्वहंस, मागु., ग्रं. ५०००, पूर) ९९८८-२ वि. १८०१, गद्य, मुपू.. (एहीज जम्बू) १०५६२-१ १२३७३१ १३२०२०) १२३०राका भाष्यत्रय, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., ३ भाष्य, गा. १४५, पद्य, मूपू., (वन्दित्तु) ९७९८ (+), १०५१० (+), १०८३६ (+), ११२४५(+), ११२८०(+), ११३४३(+), ११७१०(+), ११७११(+), ११७१२(+), ११७२४) ११८१६-१(क) ११७२१(4) ११७३014), ११७१४) १००२३ (+), ९७९२, १००९८, १०१९३, १०४६८, १०९४८, १०९५३, ११६०५-१, ११७१७, ११७१९, ११७२०, ११७२२, ११७२३-१, १२६५०-१, १२७७८-२, ९८६९, १०६७८ - १, ११२१९, ११२७२, ११७१३, ११७१५-१, ११७१६, ११७१८, १२५१९-१, ११७२५, ११०५३(३), ११७२६ ($), ११७२९ ($-) (२) भाष्यत्रय - अवचूरि, सं., गद्य, मूप्पू., (वन्दनीयान) ९८६९ (२) भाष्यत्रय- अवचूरि, आ. सोमसुन्दरसूरि सं. गद्य, भूपू.. ( वन्दि० वन) ११२४५ (+), ११७१७, ११७१९, ११७१६, ११७१८, ११७२९) (२) भाष्यत्रय- बालावबोध, मागु, ३भाष्य, गद्य, मृपू. ( तस्या प्रस) १०६७८-१ (२) भाष्यत्रय - बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ग्रं. ३५०, वि. १७५८, गद्य, मुपू., (ऐन्द्रश्रे) ९७९२, १००९८, १०१९३, ११७२०, ११७१५-१, ११७२६ (S) (२) भाष्यत्रय-टवार्थ, मागु, गद्य, मु., (अहं चैत ११७२४५ ११७२४-१ (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (बन्दित्तु ) ९७९८ (+), १०५१०१), ११३४३५) १९७३०) ११७२११ १००२३११२७२ www.kobatirth.org: (२) भाष्यत्रय-टबार्थ, मु. लावण्यविजय, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्यतान) १०४६८, ११७२२, ११७२३-१ भुवन कथा, सं., गद्य, मृपू. (उद्धा जै) १२४८२-१७) भुवनदीपक, आ. पद्मप्रभसूरि, सं., श्लोक १७०, वि. १३पू, पद्य, मृपू.. (सारस्वत ) १३४७२) १०४१०, १३४७०, १३४७१-१, १३६१५, १३६१९, १३६१४ (२) भुवनदीपक-टीका, सं., गद्य, मूपू., (सरस्वत्याः) १०४१०, · · १३६१३ (२) भुवनदीपक- अदूचरि, सं., गद्य, मूप्पू (ग्रहसहिता) १३६१४ (२) भुवनदीपक बालावबोध' मागु, गद्य, सूप्पू (सरस्वती ना " १३४७० (२) भुवनदीपक-टबार्थ*, मागु., गद्य, मूप्पू., ( सरस्वती सम) १३४७२(+), १३४७१-१, १३६१५, १३६१९ भुवनभानुकेवली चरित्र, सं. ग्रं. १८००, गद्य, मृपू. ( अस्तीह जम) १०५६२ - १(+), १२३७३ (+), १३२०२ (+), १०२५७, १०७०५, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भैरवाष्टक, शङ्कराचार्य, सं., श्लोक ११, पद्य, वै., (एकं खड़गाग) ९५३७-३ भोज चरित्र, पाठक राजवल्लभ, सं., ५प्रस्ताव, ग्रं. १८१६, पद्य, मृपू., (अश्वसेनं) १२३७७(+), १२३७६, १२३८८ (२) भोज चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (आश्वसेन रा ) १२३७७ १२३८८ भोजराज प्रबन्ध, आ. मेरुतुलगाचार्य, सं., २ प्रकाश, गद्य, जै.. (पुरा मालवम) १२५७५ भोजराजा श्लोक, सं., पद्य, (येषां न वि) ९८३६-३ ($) भ्रमज्ञाननिरूपण वादस्थल, सं., गद्य, मुपू.. (शुक्तिकाया) १२६७३ ५३९ १५ मकरध्वज कथा, सं., गद्य, मृपू., (सत्यवादे) १२४३२-२ मदनरेखा कथा, सं., पद्य, जै., ( शीलं प्रधा) १२५०८-१ मदिरावती कथा, सं., गद्य, मृपु. ( बुधैर्विधी) १२४८२-३ मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टान्त काव्य, प्रा. सं., मागु, श्लोक ११, पद्य, जै., (चुल्लग पास) १२४८८ (२) मनुष्यभवदुर्लभता १० दृष्टान्त काव्य-टवार्थ, मागु, गद्य, मुपु. ( पुल्लग कहत) १२५०७-१ मनोनित्यत्वनिषेधकस्थल, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., गद्य, मृपू. ( ननु मनो नि) १३७५५-२ मन्त्र सङ्ग्रह, मागु., सं., गद्य, जे., (ॐ नमो भगव) ९६५९-३ मरणसमाधि प्रकीर्णक, प्रा., गा. ६६३. पद्य, भूपू., (तिहुअनसरीर) १०६८९-२, १०६९०-२ मलयासुन्दरी कथा, प्रा. गा. १२०३, पद्य, मुपू. (-) १२५१७ मलयासुन्दरी कथा, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., अध्याय ४, गद्य, पू., ( जातो यः कम) १३०२८ मलयासुन्दरी चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., ४प्रस्ताव, ग्रं. २४३०, पद्य, मृपू., (चतुरङ्गो) १२३८०) १२३८२म मलयासुन्दरी चरित्र, मु. हरिराय, प्रा., गा. ८०३, पद्य, मृपू.. " For Private And Personal Use Only (पणयपयकमलसु) १२३८३ मल्लिजिन कथा, सं., गद्य, मृपु. ( जम्बूद्वीप) १२४८२-२०१ महादण्डक कुलक, आ. अभयदेवसूरि, प्रा., गा. १९, पद्य, मूपू., (थोवागन्मय) १२७९२-२ महादण्डक स्तोत्र, प्रा., गा. २०, पद्य, मूपू., (भीमे भवम्म) १३६९३-२ (*), १०४९२-२, १२७८६-१ " (२) अल्पबहुत्य- अवचूरि, सं., गद्य, मृप्पू (भीमे भवेति) १२७८६-२ महादेवी सूत्र, महादेव, सं., श्लोक ३९, पद्य, (सिद्धिं कर) Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३६०७) ५४० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ ११६७७-१९) (२) महादेवी सूत्र-दीपिका टीका, वा. धनराज, सं., ग्रं.१५००, वि. | महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू.. (वीरं देवं) __ १६९२, गद्य, मूपू., (श्रीनाभेयं) १३६०७(+) ११६७७-३१(१), १३७१३-२५(+), १०३०६-२ महानिशीथसूत्र, प्रा., अध्याय ६अध्ययन+२चूलिका, ग्रं.४५४४, महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ) १२०६१ गद्य, मूपू., (ॐ नमो तित) १०७१३ (२) महानिशीथसूत्र-भावार्थ, मु. दीपविजय कवि, मागु., वि. महावीरजिन स्तुति, मु. जयतिलक, मागु.,सं., गा. ३९, पद्य, १८९०, गद्य, मूपू.. (स्वस्ति) ११५५७, ११५६१, ११६२२ मूपू., (कनक तिलक) १०३१७-१ महाप्रत्याख्यान प्रकीर्णक, प्रा., गा. १४२, पद्य, मूपू., (एस करेमि) | महावीरजिन स्तुति-पञ्चवर्गपरिहार, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., १११८३-४(+), १०६८९-१०, १०६९०-१० (हर हासयशोर) १०२०७-४(+5) महाभारत, ऋ. वेद व्यास, सं., ग्रं.१०००००, गद्य, (नारायणं नम)- | महावीरजिन स्तोत्र, मु. मुनिसुन्दर, प्रा., गा. ५, पद्य, जै., <प्रतहीन.> (जयसिरिजिणव) ११६०६-२ (२) महाभारतश्लोक सङ्ग्रह, सं., श्लोक २८६, पद्य, वै., महासा गीत, आ. हेमाचार्य, सं., श्लोक ६, पद्य, मूपू., (दें है) (श्रूयतां) १२०२१ ११९७३-५ (३) धर्मोपदेश-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (सिद्धगति) १२०२१ महिपालराजा कथा, गणि वीरदेव, प्रा., गा. १८०९, ग्रं.२५००, महालक्ष्मी स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, वै., (लक्ष्मी लक) ९५२९- पद्य, मूपू., (नमिऊण रिसह) १२५३४(+), १२५३५९), १२५३६(+), १२५३७) महावीरआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति, सं., पद्य, मूपू., (जयति महीपाल चरित्र, उपा. चारित्रसुन्दर, सं., सर्ग ५, ग्रं.८९५, पद्य, विजित) १०८८८(-) ___ मूपू., (यस्यां सदे) १३१९९ (२) महावीरआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति-टीका, सं., गद्य, मूपू., (एवं | महेश्वरव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, मूपू., (क्षित्यादि) १२६७३-६ विधः) १०८८८(-) मानमञ्जरी, पं. यशस्वत्सागर, सं., गद्य, मूपू., (स्तुत्वा) (२) महावीरआदिजिनपार्श्वजिन स्तुति-बालावबोध, मागु., गद्य, १२८६५) मूपू., (एहवा जे) १०८८८(-) मुद्रा विधि, सं., श्लोक १३, पद्य, जै., (वाम हस्तो) १२७१४-१ महावीरजिन कलश, आ. मङ्गलसूरि, मागु.,प्रा.,सं., श्लोक १७, मुनिपति चरित्र, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ६४६, वि. ११७२, पद्य, मूपू., (श्रेयः पल) १०२६२-१(5) पद्य, स्पू., (नमिऊण महाव) १२३८७+), १२३५१, १२३७९, महावीरजिन पारणा स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., १३३०२ (यत्पारणासु) ११६७७-२५(+) (२) मुनिपति चरित्र-अनुवाद, मागु., गद्य, मूपू., (एह भरतक्षे) महावीरजिन वृद्धस्तवन, आ. अभयसूरि, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., १२३८६ (जइ जास मणे) ९३५५-२, १०२६२-६() (२) मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) (२) महावीरजिन वृद्धस्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जइज्जा । समण) ९३५५-२ (२) मुनिपति चरित्र-टबार्थ, मु. सुर्यमल्ल-शिष्य, मागु., गद्य, मूपू., महावीरजिन स्तव, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू.. (जयइ नवनलिन) (नमस्कार कर) १२३५१ १०३००-२ (२) मुनिपति चरित्रवार्तिक कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (जम्बूद्वीप) (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (महावीर देव) १२३८५ १०३००-२ मुनिसुव्रतजिन स्तोत्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., श्लोक १७, पद्य, महावीरजिन स्तव, आ. जिनप्रभसूरि, सं., श्लोक १७, पद्य, मूपू., पू., (स फलितनिजभ) १०८९२-२(5) (निस्तीर्णव) १०२०७-३(45) मृगसुन्दरी कथा, सं., श्लोक १४७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२४८३महावीरजिन स्तव, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लोक ३०, ग्रं.३५७, पद्य, मूपू., (भावारिवारण) ११६७७-१२(+), ११६०४-८०) मृगाङ्क चरित्र, मु. ऋद्धिचन्द्र, सं., श्लोक २८८, पद्य, मूपू., महावीरजिन स्तव, आ. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, सं., श्लोक २५, (श्रीपार्श) १२४१०+) पद्य, मूपू., (स श्रीवीरज) १३७१२-६ मृगावती कथा, सं., गद्य, मूपू., (साकेतपुर) १२५३१-८ महावीरजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., (यदंह्निनमन) मृगावती चरित्र, आ. देवप्रभसूरि मलधारी, सं., अध्याय ५, गद्य, १२३८७) For Private And Personal Use Only Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ मृपू. (जयन्ति वर) १२३९८ १२३८४ " मेघमाला, मु. केवलिकीर्ति, प्रा., सं., मागु., अध्याय १२, पद्य, जै., ( तियसिन्दनर) ११०६७-१ मेघाभ्युदयकाव्य, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., श्लोक ३६, पद्य, जै.. (जितालिमाला) १३५६०(+) (२) मेघाभ्युदयकाव्य-मुग्धबोधटीका, वा. लक्ष्मीनिवास, सं., गद्य, मृपू.. (विस्फुरन्स) १३५६० मेतार्य कथा - जीवदया विषये, सं., गद्य, जै., (अत्रैव भरत) १२५०८-२ त्रयोदशी कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य भा) १२४५९. १२४६०, १२५४२, १३२४१ (२) मेरुत्रयोदशीपर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू.. (ऋषभदेवरवा १३२४१ मेरुत्रयोदशीपर्व व्याख्यान, पाठक क्षमाकल्याण, सं. ग्रं. १६५, वि. १८६०, गद्य, मूपू., (मारुदेवं) १३१७१-३७(+) मोहनी मन्त्र, सं., गद्य, (ॐ काले नि) ९४२१-४ "" मौनएकादशी कथा, सं. गद्य, मृपू., (अरस्य प्रव) १११९९ १ मीनएकादशी कथा, सं., गद्य, ग्रुपु. ( श्रीवीरजिण) १३२६६ मीनएकादशी कथा, प्रा. सं., श्लोक ६४, प+ग, मृपु. ( वारवइए नयर) १३१७१-११(+) मौनएकादशी कथा, मु. लक्ष्मीविमल, सं., गद्य, मूपू., ( श्रीमन्नेम) १२५३९१) १२५३८ मौनएकादशीगणणुं, सं., कोष्टक, मूपू., (जम्बूद्वीप) १३१७१-१२ (+) मौनएकादशीपर्व कथा, आ. रविसागर, सं., श्लोक २०१, वि. १६५७, पद्य, मूपू., (प्रणम्य ऋष) १२५४३ (+), १०९००, ११२२६२, १२५४६ - १, १२६७७-२, १३२४०, १२५४५-१, ११२३५. १२६८७-१ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणमीने) १०९००, १२५४६-१, १२५४५-१ (२) मीनएकादशीपर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (प्रणमु अ ) ११२३५ . मी एकादशीपर्व कथा आ. सौभाग्यनन्दिसूरि, सं., श्लोक ११६, वि. १५७६, पद्य, मूपू., (अन्यदा नेम) ११२२८, ११३६०, १२५४४ (२) मौनएकादशीपर्व कथा-टबार्थ, मु. सौभाग्यचन्द्र, मागु., गद्य, मृपू.. (मौनएकादशीप) ११३६०, १२५४४ मौनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, भूपू (अरस्य प्रव) ११६०९-५ मीनएकादशीपर्व स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, ग्रुप्पु (दीक्षा अ ) ११६७७-३५(+) यतिजीतकल्पसूत्र आ. सोमप्रभसूरि प्रा. गा. ३०६, पद्य, भूपू.. " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( कयपवयणप्पण) १०६०१, १०६६० () (२) यतिजीतकल्पसूत्र- टीका, आ. साधुरत्नसूरि, सं., ग्रं.५७००, वि. १४५६, गद्य, भूपू., (जयति महोदय) १०६०१, १०६६० यतिदिनचर्या, आ. देवसुरि, प्रा. गा. ३९४ परा, भूपू ( जयइ सुह) १२७०० यतिदिनचर्या, आ. भावदेवसूरि प्रा. गा. १५४, पद्य, (वीरं नमिऊण) प्रतहीन > (२) यतिदिनचर्या अवचूरि, मु. मतिसागर सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य (जग) १२९९८(+) यन्त्र सङ्ग्रह, सं., मागु., गद्य, (-) ९६९९-४ यशोधर चरित्र, वा. क्षमाकल्याण, सं. वि. १८३९, गद्य, मूपू., (सकलसुरनरेन) १२३५२ युक्तिप्रबोध, उपा. मेघविजय, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (पणमिय वीरज) १३४४९ . · (२) युक्तिप्रबोध-वृत्ति, उपा. मेघविजय, सं., गद्य, मूपू., (स्फुरच्चिद) १३४४९ ५४१ युगप्रधान स्वरुप, आ. भद्रबाहु, प्रा., गद्य, ( नमः श्रीभद) - < प्रतहीन > (२) युगप्रधान स्वरुप-यन्त्र, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., मागु., २३ उदय, यंत्र, मृपू. ( नमः श्रीभद) १३१०९ " युगादिदेशना, गणि सोममण्डन, सं. ५उल्लास, श्लोक ५७७, पद्य मृपू. ( श्रीमानादि) १२०४२ / ९४३५. १२०३८, १२०६५० योगचिन्तामणि, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., अध्याय ७, वि. १७वी, पद्य, मूपू., ( यन्त्र वित्र) १०६१४४) १२०९७ (२) योगचिन्तामणि- बालावबोध, मागु, गद्य, ग्रुप (सर्वज्ञ) १०६५२१) " (२) योगचिन्तामणि- टबार्थ + बीजक, मागु., गद्य, जै., (सर्वज्ञ) १०६१४) योगदृष्टि समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., श्लोक २२८, पद्य, मृपू. ( नत्वेच्छाय ) १०१३१ For Private And Personal Use Only (२) योगदृष्टि समुच्चय-स्वोपज्ञ टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मृपू., ( योगतन्त्रप) १०१३१, १३२६७ योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., गद्य, मुपू., ( श्रीआवश्यक ) १२७१९ (+), १११६२, १११८२, १२७१८-१, १३००२-१ योगद्वहनविधि सङ्ग्रह, प्रा. गा. ५. पच, भूपू (उमिति नमो ) १२९३६-०क योगनन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र ९, गद्य, मूपू., (नाणं पञ्चव) १२९३६ - १(+), १२७१८-२ योगप्रदीप, सं., श्लोक १४३, पद्य, मूपू., ( यावन्न ग्र) १०५३७, १३२४४ योगबिन्दु, आ. हरिभद्रसूरि सं., श्लोक ५२६, पद्य, मृपू.. Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५४२ (नत्वाद्यन) १०४५७९+), १२१०५(+) (२) योगबिन्दु-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, मूपू., (सद्योगचिन) १०४५७(+), १२१०५(+) योगरत्नावली, आ. नागार्जुनाचार्य, सं., श्लोक १४०, पद्य, वै., (विमलमति कि) ९४७२ (२) योगरत्नावली-टीका, मु. गुणाकर भिक्षु, सं., ग्रं.७८०, वि. १२९६, गद्य, मूपू., (गुरुचरणकमल) ९४७२ योगशास्त्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., १२प्रकाश, श्लोक १०००, पद्य, मूपू., (नमो दुर्वा) ९९९०), ११३४२(+), १२०९४-१(4), १२१००+), १२१०९(+), १२१७३-94). १२१७४१(4). १२१७५), १२१७६(+), १२१७९-१+), ११२६६), १२११५(+), १२१०४-१+5), १३१२७६+६), १००६१, १०४०४, १०५७७, १०९२५, १११५४, १२०९६, १२०९८, १२०९९, १२१०१, १२१०७, १२११०, १२११६, १२१७७,९४९७, ९५८६, ९६०५६), १२१०६(३ (२) योगशास्त्र-स्वोपज्ञ वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., गद्य, मूपू., (अत्र महावी) ११३४२), १२१०९(+), ११२६६(+), १३१२७(45), १००६१, १०५७७, १२११०, १२११६ (२) योगशास्त्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (--) १२१०७ (२) योगशास्त्र-बालावबोध, मु. जीवविजय, मागु., वि. १७९२, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथ) १२१७६(+) (२) योगशास्त्र-बालावबोध, गणि मेरुसुन्दर, मागु., १२ प्रकाश, वि. १५०८, गद्य, मूपू.. (सिद्धार्थक) १२१७३-१(+) (२) योगशास्त्र-हिस्सा, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पद्य, (-)-<प्रतहीन.> (३) योगशास्त्र प्रकाश १ से ४-अवचूरि, सं., प्रकाश, गद्य, मूपू., (नमस्करोस्त) १२१७४-१(+) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १ से ४ का बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., ४प्रकाश, गद्य, मूपू., (प्रणम्य जि) १२१७७ (३) योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का बालावबोध, सं.,मागु.. ४प्रकाश, गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) १२१७८ (३) योगशास्त्र-हिस्सा १ से ४ प्रकाश का टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (नमस्कार हउ) १२१७५(५), १२१७९-१(+) (३) योगशास्त्र-हिस्सा प्रकाश १-४ की अवचूरि, आ. अमरप्रभसूरि, सं., १-४प्रकाश, गद्य, मूपू., (नमस्कारोस) १२११५(+), ९४९७, ९६०५(६) (२) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (परिग्रहारम) १३४६१, १३४६२ (३) योगशास्त्र-हिस्सा परिग्रहारम्भ श्लोक का शतार्थ विवरण, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ गणि मानसागर, सं., सूत्र १०६विव., वि. १७वी, गद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) १३४६१, १३४६२ (२) योगशास्त्रसुभाषितानि, सं., श्लोक ८६८, पद्य, मूपू., (-) १२१०८(+) (२) योगशास्त्रान्तर्गत श्लोकसङ्ग्रह, सं., पद्य, मूपू.. (अथ सनत्कुम) १०६८१-१ योगशास्त्र-परिच्छेद ३८ वाँ, मु. अमरकीर्ति, सं., श्लोक ६४, पद्य, जै., (ध्यानस्थित) १२६३१-२ योगसार, सं., ५प्रस्ताव, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) १०४४८ योगसार, मु. योगीन्द्रदेव, अप., गा. १०८, पद्य, दि., (णिम्मलझाणप) १०१७२(+), १२१०२-१ | (२) योगसार-टबार्थ, मागु., गद्य, दि., (निर्मल ध्य) १०१७२(१) योगानुष्ठान कुलक, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (जोगाणुट्ठा) ११३०५-२ योगोद्वहन विधि, प्रा.,सं., गद्य, मूपू.. (पसत्थे खित) ११३०५-१ योगोद्वहनविधि यन्त्र सङ्ग्रह, सं.,प्रा.,मागु., कोष्टक, मूपू., (आवश्यक श्र) १०८२०), १०८१८, १२७०६ रघुवंश, कालिदास, सं., सर्ग १९, पद्य, (वागर्थाविव) १३४४५) (२) रघुवंश-टीका, मु. धर्ममेरु, सं., सर्ग १९, वि. १७४८, गद्य, मूपू.. (वागर्थेति) १३४४५(4) (२) रघुवंश-सञ्जीवनी टीका, कोलाचल मल्लिनाथसूरि, सं., गद्य, (मातापितृभ) ९७६५-१६ रत्नचूड कथा, सं., गद्य, मूपू., (मनुष्य लोक) १३२६४ रत्नत्रय पूजा, सं., प+ग, जै., (शुद्धबुद्ध) ९३४७-११) रत्नपालनृप कथा, गणि सोममण्डन, सं., श्लोक ९३०, वि. १५वी, __पद्य, मूपू.. (श्रेयः श्र) १३०८८(+). १२४५५ रत्नपालराज कथा, सं., गद्य, मूपू., (प्रासुकजलं) १२४५३ रत्नशेखरराजा कथा, सं., गद्य, म्पू., (अन्ने विइब) १२३९२-१ रत्नशेखरराजा कथा, सं., गद्य, मूपू., (विषयान् का) १२४८२ २१(4) रत्नशेखरराजा कथा - पर्वतिथिविचारे, मु. दयावर्द्धन-शिष्य, प्रा.,सं., पद्य, मूपू., (सयल कल्लाण) १०४८५-१(+), १२४२३(+) रत्नसंचय, आ. हर्षनिधानसूरि, प्रा., गा. ५५०, पद्य, मूपू., (नमिऊण जिणव) ९४५६, १०६५७, १०१४२ (२) रत्नसंचय-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण क०) १०८३८(5) (२) रत्नसंचय-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीमहावीर) ९४५६, १०१४२ रत्नाकरपच्चीसी, आ. रत्नाकरसूरि, सं., श्लोक २५, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्र) १०९५६६), १२६७२), १२७२२-१(+), ११०९७, १२७७३ For Private And Personal Use Only Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५४३ (२) रत्नाकरपच्चीशी-टीका, गणि कनककुशल, सं., ग्रं.३००, | लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, प्रा., गा. ७७, पद्य, मूपू.. (सिरिवीरजिण) गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२६७२(+) ११२६८ (२) रत्नाकरपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (अहो (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीर कल्याण) १२७२२-१(+) वा) ११२६८ (२) रत्नाकरपच्चीसी-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू.. (अहो कल्याण) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि , प्रा., ६ अधिकार., १०९५६(+), १२७७३ गा. २६३, वि. १५वी, पद्य, मूपू.. (वीरं जयसेह) ९५४७५), (२) रत्नाकरपच्चीसी-योगचिन्तामणि टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., ९७९५९), १०६३६(+), ११२६५-१(4), ११३३५), १२१३६५), (श्रेयः कहत) ११०९७ १२१८०+), १२२४७(+), १२२४८(+), १२२४९(५), १२३९७(+), रहस्य श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, जै., (लोकगनिरव्र) १०४००-२ १२९३७+), ११२७८(+), १२२५५(+), १००११(६), १०५९९, राजप्रश्नीयसूत्र, प्रा., सूत्र १७५, ग्रं.२१००, गद्य, मूपू., (नमो १२१३७-१, १२१३९, १२१८२, १२१८४, १२२५०, १२४५८, अरिहंत) १०६१८(+), १११३६(५), ११३४४(+), ११५३८(+), १२२४६, १२१३८, १२१८५, १०२२४१), ९४८१-१(5) ११५४२१. ९७६०, ९९२४, ९९६३, १०७०१, १०७३८, ११५३९, । (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-स्वोपज्ञ टीका, आ. रत्नशेखरसूरि, ११५४१, ११५३७, ११५४० सं., अध्याय ६, वि. १५वी, गद्य, मूपू.. (अर्हमिति) १२२४७+), (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.३७००, ११२७८(+), १२२४६ गद्य, मूपू., (प्रणमत वीर) १०६१६(+$) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टिप्पण , सं., गद्य, मूपू., (न (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, मागु., ग्रं.५०३९, गद्य, मूपू., केवलंवीह) १२२५५(+) (नमस्कार हु) ११५३७ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध*, मागु., गद्य, मूपू., (वीरं० (२) राजप्रश्नीयसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., ग्रं.५५००, गद्य, | ग्रन) ११२६५-१६५), १२२५० जै., (देवदेवं जि) १०६१८+), ११५३८(+), ११५४२६), ९७६०, (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध, मु. उदयसागर , मागु., ९९२४, ९९६३, ११५३९, ११५४० वि. १६७६, गद्य, मूपू.. (निश्शेषज्ञ) ९५४७+), ९७९५९), राज्यकी २७ शोभा गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, जै., (वापी वप्र) १२१३६(4) १२५६३-२ (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , पं. दयासिंह, मागु., (२) राज्यकी २७ शोभा गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (वावि ग्रं.४११७, वि. १५२९, गद्य, मूपू., (हं ब्रह्म) १००११), कोट) १२५६३-२ १०५९९, १२१३७-१, १२१३९, १२४५८, १२१३८ रामवनवास-सक्षिप्तनिर्देश, सं., गद्य, मूपू., (अयोधीश दशर) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-बालावबोध , आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, १२५३१-१० मागु., गद्य, मूपू., (वीर केता) १०६३६(५) रावण स्वरुप, सं., गद्य, मूपू., (रावण वाच्य) ११८४५-४(4) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (वीर राहु स्तोत्र, सं., श्लोक ५, पद्य, वै., (ॐ नमो सैं) १३७१४-१४ श्रीमह) १२१८०) रूचादिगण, सं., ग्रं.२७०, गद्य, मूपू., (रूचादिडानु) १२८७४) (२) लघुक्षेत्रसमास प्रकरण-टबार्थ , वा. मेघराजजी, मागु., (२) रूचादिगण-पञ्जिका वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., ग्रं.२३०, ग्रं.२१३५, गद्य, जै., (वीर श्रीमह) १२२४८(+), १२२४९(+), शक. १२४६, गद्य, मूपू., (कर्त्तरि) १२८७४) १२३९७(+) रूपसेन कनकावती चरित्र चतुर्थव्रत पालने, आ. जिनसूरि, सं., लघुखेटसिद्धि, दिनकर भट्ट, सं., श्लोक ३४, पद्य, (--) ९५१२ श्लोक २२४, ग्रं.१५३०, पद्य, मूपू.. (श्रीमन्तं) १२४२८-१(+), १२४२४(+), १२३४९(+#), १३०५४, ११२८५, ९५७५६७), १२४०८९६) लघुचैत्यवन्दनसूत्र, प्रा.,मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. (इच्छं जय) (२) रूपसेनकनकावती चरित्र-टबार्थ, गणि ऋद्धिविजय, मागु., १०९२७-३ गद्य, मूपू., (शरीर नीरोग) १२३४९+#) लघुनन्दीसूत्र-अनुज्ञानन्दीसूत्र, आ. देववाचक, प्रा., सूत्र ३०, गद्य, रोहिणी कथा, सं., गद्य, मपू., (दृष्टादृष) १२४८२-११) मूपू., (से किं तं) १०१९७-२६+) रोहिणी कथा-दिग्व्रते, सं., गद्य, जै., (दिव्रतं) १२५१२-११(६) लघुशान्ति, आ. मानदेवसूरि, सं., श्लोक १७+२, पद्य, मूपू., रोहिणीतप विषये-अशोकचन्द्र कथा, मु. कनककुशल, सं., श्लोक (शान्तिं शा) ९८५७-२), ११६७७-७(+), १०११६-२, ११५८०-२, २०१, पद्य, मपू., (श्रीमान्पा) १२४८३-१ ११५८३-२, ११६०८-२, ११६१७-२, १३६८१-३, १३७०५-२, लग्नविचार, सं., श्लोक ३, पद्य, जै., (मेषे द्विप) १३५९५-४ ११६०४-५०० For Private And Personal Use Only Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४४ (२) लघुशान्ति स्तव-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६४४, गद्य, मूपू., (सर्वं सर्व) १०५३३-२, १३६८१-३ " (२) लघुशान्ति- टवार्थ, मागु, गद्य, मृपु. ( शान्तिनाथ) ९८५१३-२० (२) लघुशान्ति-टवार्थ, मागु., गद्य, मृप्पु, (शान्तिनो) ११५८३-२ (२) लघुशान्ति-टबार्थ*, मागु., गद्य, मूपू., ( श्रीशान्ति) ११५८०-२ लघुसङ्ग्रहणी, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ३०, पद्य, मूपू., (नमिय जि) ९८४६० ११०३७) १२१२९) १२२३७ १०४९२-३, ११०२६, १२१३०, १२१३२ -२, १३२९१ (२) लघुसङ्ग्रहणी- बालावबोध, मु. शान्तिसागरविनेय, मागु., वि. १७०६, गद्य, मृ.. (श्रीमद्वाच) १२१३० (२) लघुसङ्ग्रहणी-टबार्थ *, मागु., गद्य, मुपू., (नमिय क० नम) ९८४६११ ११०३७) १२१२९) १२२३७ ११०२६, १३२९१ लघुस्वयम्भू स्तोत्र, सं., श्लोक २५, पद्य, जै., (येन स्वयं) 7 www.kobatirth.org: १००८९-३ ललिताङ्गकुमार कथा, सं., श्लोक ३०६, पद्य, मूप्पू., (पक्षपातोपि ) १२४२७ (+) ललिताङ्गकुमार कथा, सं., गद्य, मुपू., ( रत्नपुरं ) १२४८४-३ लिङ्गनिर्णय आ. कल्याणसागरसूरि, सं. ६ कांड, भूपू.. (तार्त्तीयी) १२८६३) + लूण पाणी विधि, प्रा., गद्य, मूप्पू., ( उवणेउ मङ्ग) ९७२५-२(# ), १०५३९-३($) लेश्या विचार, प्रा., गा. ८, पद्य, मूप्पू., ( रुद्रो दुष) १२५७२-३ लोकतत्त्वनिर्णय आ. हरिभद्रसूरि सं., श्लोक १४५, पद्य, मृपू.. (प्रणिपत्यै) १३३१३-१ . . लोकनालिद्वात्रिंशिका, आ. धर्मघोषसूरि प्रा. गा. ३२, पद्य, मृपू.. (जिणदंसणं) १२५९८) १०९५५ १०९८३-१, १२५९७, १२५९९, १३०७९-२, १३१९६, ९६८१ (६) (२) लोकनातिद्वात्रिंशिका व्याख्या, सं., गद्य, भूपु (प्रणम्य ) १३०७९-२ " (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू.. (अनन्तज्ञान) १०९५५, १०९८३-१ (२) लोकनातिद्वात्रिंशिका बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू. (स्वस्ति) १२५९६, १२५९९ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका - टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (जिनना दर्श) १२५९८४५ ९६८१११ (२) लोकनालिद्वात्रिंशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मृपू., (हे वीतराग ) १२५९७, १३१९६ वङ्कचूल कथा, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लोक १०९, पद्य, मृपू.. (महासि) १३२०८ " " वकमूल दृष्टान्त से. गद्य, भूपू. (अग्रे दृष) १२४२८-३१ वकल दृष्टान्त, सं. गद्य, ग्रुप (मंसाईण नि) १३२५७/ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ वज्जालग्ग, कवि जयवल्लभ, प्रा., गा. ७९५, ग्रं. १२३०, पद्य, मूपू., (सव्वन्नुवय) १०७६११० १२५०४ १०७४५ ११२४१, १३३८६ (२) बज्जालग्ग-वृत्ति, गणि रत्नदेव, सं., वि. १३९३, गद्य, मृपू... (तत्र शास्त) १०७६१ (+), ११२४१, १०७४५ वज्रपंजर स्तोत्र, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., ( ॐ परमेष्ठ) ९५८१४(+), ११६००-२ वज्रबाहु कथा, सं., गद्य, मृपू., (सप्त भुवना) १२४८४-४ (६) वडीदीक्षा योगविधि सङ्ग्रह, मागु. प्रा. सं., गद्य, मृ.. ( आवस्सगम्मि) १०२६६-१ वत्सराज कथा, सं., श्लोक ४७८, पद्य, मूपू., ( भो भव्या) १११५१ बनमाला कथा, सं. गद्य, भूपु. ( शीलाभिरामा) १२४८२-१०१) वनस्पत्तिसप्ततिका, आ. मुनिचन्द्रसूरि प्रा. गा. ७१, पद्य, मृपू.. (उसभाइजिणिन) १२६२३-१ (+) (२) वनस्पतिसप्ततिका- अवचूरि, सं., गद्य, मुपू., ( उसभेत्यादि) १२६२३-११) वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं., गद्य, मूपू., ( ज्ञानसार) १२५५४, १२५५५ वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, सं., मागु, गद्य, भूपू (ज्ञानं सार) १११९९-२ वरदत्तगुणमञ्जरी कथा, गणि कनककुशल, सं., श्लोक १५०, वि. १६५५, पद्य, पू. श्रीमत्पार) १०८३४*), ११३७४) १३१७१४(+), ११०५७(+), ९४४९, ११२२६-१, १२४६१, १२४६४, १२५४६-२, १२५५०-१, १२५५१, १२५५२, १२५५६, १२५५७-१, १२६७७-१ (२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टवार्थ, मागु. गद्य, मृपु. ( प्रणम्य ) ११०५०) १२५५६ (२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ *, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीपार्श) १२४६१, १२५५७-१ (२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टबार्थ, मागु., गद्य, जै., (श्रीमन्त) १२५४६-२ (२) ज्ञानपंचमीपर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, जै. (श्रीवामेय) ११३७४(+) वरदत्तभूपाल कथा, मु. देवविजय, सं., श्लोक ५२३, पद्य, मुपू., (पुष्णातु) १२५५३ वर्णमाला, सं., गद्य, (अ आ इ ई उ ) १०५०६-३(#) वर्द्धमानदेशना, गणि राजकीर्ति, सं., १०उल्लास, ग्रं. ४३००, गद्य, मृपू., ( नमः श्रीपा ) ९७२९) १२०३९ १२०४१ " " वर्द्धमानदेशना, पं. शुभवर्द्धन गणि, प्रा. १० उल्लास, अं.५२०० पद्य भूपू. ( वीरजिणन्द) १२०३४१ १२०७५ १२०४५. १२०६० (२) वर्द्धमानदेशना- टीका, सं.. गद्य, मुपू. (सिद्धार्थ) १२०४५. For Private And Personal Use Only Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: १२०६०($) वर्धमानविद्याजाप से गद्य, ग्रुप (ॐ जय ॐ) १३६४३-२१ वसुदेवहीण्डी, आ. गुणनिधानसूरि, प्रा. गद्य, मृपू. (तेण कालेज ) १२३५०-ql+) वसुधारा, सं., गद्य, मुपू., (संसारद्वयद) १०९१२ (+), ९३८६, ९६८६, ९७०९, १०९७८, १२६९७, १२६९८, १२६९९ वसुभूति सुमित्र कथा, सं., गद्य, मृपु. ( धर्माज्जयो) १२४८२-२गि वस्तुपालवेजपाल प्रशस्ति, सं., श्लोक १३, पद्य, मृपू. (स्वस्ति) " संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (वीरपयक) १२६०१ - १(+), ९६७८, १२६०२-१, १२६०३, १२९७९-१, १३२३६-१, १३२७२ (२) विचारपञ्चाशिका - अवचूरि, गणि विजयविमल, सं., गद्य, मूपू., (वीरपदकजं) ९६७८, १२६०२ - १, १२६०३ (२) विचारपंचाशिका-टवार्थ, मागु, गद्य, सूपू (वीर पय क० ) " १२९७९-१, १३२७२ (२) विचारपञ्चाशिका-टवार्थ, मागु, गद्य, भूपु. ( प्रणम्य पा ) १२६०१-१(+) (२) विचारपञ्चाशिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीरपरमात्म) १३२२७-३ वस्तुपालवेजपाल प्रशस्ति, आ. जयसिंहसूरि, सं., श्लोक ७७, ग्रं. १४०, पद्य, मूपू., (श्रेयः श्र) १३२२७-२ वस्त्राञ्चल बोल, मागु., प्रा., सं., गद्य, मुपू., ( श्रावक श्र) ११०९९ghel वाक्यप्रकाश, गणि उदयधर्म, सं., श्लोक १२८, वि. १५०७, पद्य, मूपू., (प्रणम्यात) १२८८१(+), १२९०२(+), १३११० (+), १२८८३ (+), १११६८, १२८८२, १२८८४ (२) वाक्यप्रकाश-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, मूपू., (श्रीमज्जिन ) १११४०१) १२८८११) १११६८ वाग्भटालङ्कार, जैनकवि वाग्भट्ट, सं., ५परिच्छेद, वि. १२वी, पद्य, मूपू., ( श्रियं दिश) १३३८० (+), १३३८२ (+), १३४२५-१(+), १३३८१(+), १०३४२ " (२) वाग्भटालङ्कार- टीका, गणि सिंहदेव, सं गद्य, मृपू.. (श्रीवई) १३३८२) वादिघटमुद्गरवादनामस्थल, सं., गद्य, मृपू, ( इहहि पूर्व) १२६७३-२ वासक्षेप विधि, सं., गद्य, मृपू.. ( नमस्कारत्र) १२९३६-१०+) वासरपतिअष्टशतनाम स्तोत्र, सं., श्लोक १४, पद्य, (सूर्योर्यम) ९५३७-४११ वासुपूज्य चरित्र, आ. वर्द्धमानसूरि सं ग्रं. ५४९४ वि. १२९९ पद्य, मूपू., (अर्हन्तं) १२४०६ (+), १२४२५, १०७३९(#) (२) वासुपूज्य चरित्र-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (प्रणम्य) १२४०६(+), १२४२५ " विंशतिविंशिका, आ. हरिभद्रसूरि प्रा. ग्रं. ५००, पद्य, मृपू.. (नमिऊण वीयर) १३१८० विक्रमनरेन्द्र कथा, आ. शालिभद्रसूरि सं. गद्य, ग्रुप.. (देवपूजा सम) १२४३० विक्रमराजाचाचामरहारी कथा सङ्ग्रह, से, गद्य, भूपू- (उज्जनियां) १२४९८-२(+) विक्रमराजापञ्चदण्डछत्र प्रबन्ध, सं., गद्य, मृपु., (धर्माद्यमः) १२४९८-११०१ विचारपंचाशिका, गणि विजयविमल, प्रा., गा. ५१, पद्य, मूपू., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४५ १३२३६-१ विचार प्रकरण, मु. महेश्वरसूरि शिष्य, प्रा., गा. ७८, पद्य, मुपू., (सिरिवद्धमा) १२२५१-३ विचार रत्नाकर, पाठक कीर्तिविजय, सं., वि. १६९०, गद्य, भूपू., (सजयति जिनव) १०५७४ विचारशतक, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., १०० विचार, वि. १६७३, गद्य, मुपू., (पार्श्वनाथ) १३२०१ (+) (२) विचारशतकवृत्ति- बीजक, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., गद्य, मूप्पू., (-) १३२०१ (+) " विचार सङ्ग्रह, सं., प्रा., गद्य, मुपू., (बत्तीसं कव) १३०७८-१ विचार सङ्ग्रह, प्रा. सं., पद्य, जै., (विहवाणुसार) ९५५० (+३), १०२८३) विचार सङ्ग्रह, मागु., प्रा., प+ग, जै., (नवकार इकअक) ९८३० (+) विचारसप्ततिका, आ. महेन्द्रसिंहसूरि, प्रा., गा. ८१, पद्य, भूपू.. (पहिमा मिच) १११९५ (२) विचारसप्ततिका बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू (पडिमा १ मि) १११९५ " विचारसार, प्रा., गा. ५७६, पद्य, मृपू., ( वारस गुण) ९८९१/०३३ (२) विचारसार- टवार्थ, मागु, गद्य, मुपु. ( बा० १२ बार) ९८९०० विचारसार, रक्षाणन्द, सं., गा. ८५, वि. १२६७, पद्य, (--)< प्रतहीन > (२) विचारसार बालावबोध, सं. मागु, गद्य, भूपु. ( अहं श्रीवी) १२९४४-१४ विचारसार प्रकरण, गणि देवचन्द्र, प्रा., २ अधिकार, गा. ३२०, वि. १७९६ परा भूपू. (नमिय जिन) १०६६९*) (२) विचारसार प्रकरण बालावबोध, आ. ज्ञानविजयसूरि, मागु.. " " For Private And Personal Use Only गद्य, मूपू., (वीरप्रभुनी) १२०८४ " विचारामृतसार सङ्ग्रह, गणि जिनहर्ष, सं. ग्रं. ३०००, वि. १५०२, पद्य, मृपू.. (श्रीमुर्मु ) ९८०४ विजयप्रशस्ति महाकाव्य, गणि हेमविजय, सं., सर्ग २१, पद्य, Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४६ मृपू. (श्रेयांसि ) १३४५५ १३५८४ (२) विजयप्रशस्ति महाकाव्य - विजप्रदीपिका वृत्ति, मु. गुणविजय, सं. ग्रं. १००००, वि. १६८८, गद्य, भूपू (सा नाभेः) १३४५५१ विदग्धमुखमण्डन काव्य, आ. धर्मदाससूरि, सं. ४ परिच्छेद, " " श्लोक २७६, पद्य, बौ., (सिद्धौषधान) १३३८३ (+), १३४६४(+), १३४६६ (+), ९७७८(+), १३३८४(+), १३४६५ (२) विदग्धमुखमण्डन काव्य- अवचूरि, सं., गद्य, बी., (शौद्धीदनेर) PORSCH विदेहतीर्थङ्कर स्थिति, प्रा., गा. ५, पद्य, मूप्पू., (सिद्धानि) १३७८८-२ विद्याविलास कथानक पुण्यप्रभाचे, सं., गद्य, मृपू. (धर्माज्जन) www.kobatirth.org: १२३९४-१ " विद्याविलासनृप कथा, सं., गद्य, नूपु. ( विधिवद्विह) १२४८२-१५) विधिकन्दली प्रकरण, वा. नयरङ्ग, प्रा., गा. ६३, वि. १६२५, पद्य, ग्रुप.. (पणमिय वीरं) १२२५२१ (२) विधिकन्दली प्रकरण-वृत्ति, वा. नयरङ्ग, सं., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२२५ विधि सङ्ग्रह, गणि शिवनिधान, सं. प्रा. मागु., पद्य, भूपू., (प्रथम सामा) १२७४५ विपाकसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा. २श्रुत / २०अध्य. ग्रं. १२५०, गद्य, मूपू., (तेणं कालेण) ११३३६(+), ११३४० (+), ११५२८(+), ११५३०१ ११५२१-२३/०३ ९९२५ १०३०८, १०७९२, १११५६. ११५२९, ११६५८ (२) विपाकसूत्र- टीका, आ. अभयदेवसूरि, सं., ग्रं. ९००, गद्य, मृपू. (नत्या श्री) ११५३०) ११०१३, ११२४९, ११६६३ (२) विपाकसूत्र- टवार्थ, मागु.. गद्य, मृपु. ( अथ विपाकश) ९९२५, ११५२९ 1 विमलजिन चरित्र, आ. ज्ञानसागरसूरि, सं., सर्ग ५, श्लोक ५६२५. वि. १५१७, परा मृपू. (स्वस्ति ) १३१८७) १३१८८ विरोधनिरासस्थल, सं., गद्य, मृपू., (ननु सदसदाद) १२६७३-५ विविधगच्छउत्पत्ति समय, सं., पद्य, मुपू., (पढमं चिय) १२६८०-३ विविधतीर्थ कल्प सङ्ग्रह, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १३८५, पद्य, मृपु. ( देवा श्रीप) १२६७९६१ १२६७८ " विविध सङ्ग्रह, सं., प्रा., मागु., पद्य, जै., (--) ११९६८ (+), ११९६७, PHEN (२) विविध सङ्ग्रह-बीजक, प्रा., गद्य, जै., (--) ११९६८(+), ११९६७ विविध सङ्ग्रह, मागु. प्रा.स. पद्य, मूपु. ( ९५९२ विवेकमञ्जरी, श्रा. आसड कवि, प्रा., गा. १४४, वि. १२४८, पद्य, मृपू. (सिद्धिपुरस) १२०५४) १२०५८/ ९५३६-१, १२०५५. १२०५६, १२०५४ " कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ (२) विवेकमञ्जरी अरि, सं., गद्य, मृपू. (मोक्षपुरी) १२०५४ विवेकरत्नाकर प्रश्नाध्याय, सं., श्लोक ३०३, पद्य, (-) १३६२२/०४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " विवेकविलास आ जिनदत्तसूरि, सं. १२उल्लास, पद्य, भूपू.. (शाश्वतानन) १६६०) १२७०१ १३००० १११३० (२) विवेकविलास- बालावबोध, मागु, गद्य, मृपू.. (ते को एक) " ९६६० (+), १११३० विशेषणवती, आ. जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, प्रा., गा. ३१७, ग्रं.३८०, प+ग, मूपू., (उस्सेहंगुल) १२८१३ (+#), १०८५३, १२८१४ विशेषशतक, उपा. समयसुन्दर, सं., गा. १०५, पद्य, (--)< प्रतहीन > (२) विशेषशतक-भाषा, मु. आनन्दवल्लभ - शिष्य, मागु., १०० प्रश्नोत्तर, वि. १८८२, गद्य, मुपू. श्रीसम्भवज) १३३०० विषयताबाद उपा यशोविजयजी गणि सं. वि. १८वी, गद्य, मूपू., (विषयता स्व ) १२८३७-१ विषयतावाद, रघुदेव भट्टाचार्य, सं., गद्य, वै., ( ननु संयोगा) १२८३७-२ ($) वीतराग स्तोत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ सं. २० प्रकाश, पद्य, मूपू., (यः परात्मा) १२१०४ - २ (+8), १३६३७(+), १११७८, १३५३३, १०१६२, १३६३६ (२) वीतराग स्तोत्र- अवचूरि मु. विशालराजसूरि-शिष्य सं. २० प्रकाश, वि. १५१२, गद्य, मूपू., ( जयति श्रीज) १३६३६($) (२) वीतराग स्तोत्र- अवचूरि, सं., गद्य, मुपू., (केवलात्माम) " 1 १३५३३ (२) वीतराग स्तोत्र - हिस्सा अष्टम प्रकाश, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., श्लोक १२, पद्य, मूपू., (सत्वस्यैका) १०४०६-१($) " (३) वीतराग स्तोत्र-हिस्सा अष्टम प्रकाश टीका, सं., गद्य, ग्रुपु. (ननु सिद्ध) १०४०६ प्रि (२) वीतराग स्तोत्र- दुर्गपदप्रकाश विवरण, आ. प्रभानन्दसूरि, सं., [प्र.२१२५, गद्य, भूपू., (अनन्तदर्शन) १०१६२ वीरसेन कथानक - चतुर्विधधर्म विषये, सं., गद्य, जै.. (दान शील तप) १२५१२-५ वीरसेनराजेन्द्र कथा, सं., गद्य, मुपू., (अत्रैव भरत) १२४३१-२ वीरस्तव प्रकीर्णक, प्रा. गा. ४३, पद्य, मुपू. (नमिऊण जिणं) " " For Private And Personal Use Only १०६८९-११, १०६९०-११ वृष्णिदशासूत्र, प्रा., १२ अध्ययन, गद्य, मूपू., ( जइ णं भंते ) ९९६०–५(+), १०८४९-५(+), ११३४८-५ (+), ११५५४-५ (+), ११५९३-५६) ११५९४-५१, ११९१६-१९ ९५२०-२, ९३१६५, ११५९५-५, ११५९६-५ Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ११३३, पद्य, मूपू., (ऐन्द्रीं) १२०६१ - १ (+) वैराग्य कुलक, प्रा., गा. २२, पद्य, मूपू., ( जम्मजरामरण) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ (२) वृष्णिदशासूत्र- टीका, आ. चन्द्रसूरि स गय, भूपू.. (पञ्चमवर्गे) १११५०-५ (+) (२) वृष्णिदशासूत्र- टवार्थ, मागु, गद्य, मुपू., (जी हे पूज) ९९६०५(+), ११५५४-५ (+), ९३१६-५, ११५९६-५ (२) वृष्णिदशासूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (-) ११९१६-१(+) वेदविंसतीजीनानंसन्तीकरमलङ्का, आ. तेजसिंह, सं., श्लोक २४, पद्य, मुपू., ( नमो पञ्चमह) ११९७३-१ वैद्यवल्लभ, मु. हस्तिरुचि, सं., ९विलास, श्लोक ३२६, वि. १७२६, पद्य, मूपू., (सरस्वतीं) १३६५३ (२) वैद्यवत्लम-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू., (श्रीसरस्वत ) १३६५३ वैराग्यकल्पलता, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., ९स्तबक, श्लोक १२५१९-२ वैराग्यशतक, प्रा. गा. १०५. पद्य, मूपू. (संसारमि) १०२५६-२० १०९३५१०) १०९५०-२१, ११०६६१), ११९४६-२१ १२६३५११ ११२१४-१(+), ९३५४, १०९१४, ११२१३-२, १२५८०-१, १२६२९, १२६३०, १२६३३, १२६३४, १३१९८, ९८०३, ११३६७, १२६२४, ९५१९, ११९७५-२(६), १२५८३-२ ($) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., (ए संसार अस ) १२५८३-२(8) (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., गद्य, मुपू., ( एह संसार) १२६३० (२) वैराग्यशतक-टबार्थ, मागु., ग्रं. ४२५, गद्य, मूपू., ( चउदश राजप) १२६३४ (२) वैराग्यशतक- टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (संसार असार) १०२५६-२१०० १०९३५१, १०९५०-२(१) ११०६६, ११९७६२. १२६३५१ ११२१४-१९३५४ १०९१४, ११२१३-२. ९८०३, ११३६७, १२६२४, ९५१९ (२) वैराग्यशतक- टीका, सं., गद्य, मृपू. (प्रणम्य ) १३१९८ वैराग्यशतक, कवि पद्मानन्द कवि सं., श्लोक १०३, पद्य, भूपू.. (त्रैलोक्यं १२६३२, १३०७७ " वैराग्यशतक, भर्तृहरि, सं., श्लोक ११६, पद्य, (चूडोत्तंसि) १०१३६ (२) वैराग्यशतक- सर्वार्थसिद्धिमणिमाला भाषाटीका, आ. जिनसमुद्रसूरि, प्राहिं., गद्य, मूपू., (मा सर्व भू) १०१३६ वैश्रमण कथा जीर्णोद्वार विषये, सं., गद्य, जै.. (जीर्णे समु) १२५१२-जश व्यवहारसूत्र, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., १० उद्देशक, ग्रं. ३७३, गद्य, मृपू.. (जे भिक्खा) ११५५८-११, ११४०६) ११५६२, ११५६५. ११६२७ (२) व्यवहारसूत्र -निर्युक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., पद्य, मूपू., (-) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११६२७ (३) व्यवहारसूत्र -निर्युक्ति की टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं., गद्य, मूपू., (-) ११६२७ (२) व्यवहारसूत्र - भाष्य #, प्रा., गा. ६४००, पद्य, मूपू., (ववहारो ववह) ११६२७ " (३) व्यवहारसूत्र भाष्य की टीका, आ. मलयगिरिसूरि सं. गद्य, मूपू., (-) ११६२७ (२) व्यवहारसूत्र टीका# आ. मलयगिरिसूरि सं. ग्रं. ३४६२५, . "" 1 ५४७ " गद्य, मूपू., (प्रणमतनेमि ) ११६२७ (२) व्यवहारसूत्र - टवार्थ, भागु, गद्य, मृपु. ( प्रणम्य) ११५५८-१ व्याख्यान सङ्ग्रह, सं.प्रा., प+ग, मुपू., (सज्ञानलोचन) १२०१५ व्याख्यान सङ्ग्रह, मागु. प्रा. सं., प+ग, जे. (जयइ जगजीवज) १११७० " व्याख्यान सङ्ग्रह, सं., मागु., गद्य, मृप्पू (देवपूजा दय) २०११प्रवि) ९६९४९का व्रतउच्चारण विधि, प्रा., सं., गद्य, मूपू., (यथा प्रथम ) १२९३६ बोच्चारण विधि आलापकयुक्त, प्रा. सं., प+ग, जै.. (प्रथमा नाल) १९७९-२१ शक्रस्तव अत्रामसहस्र, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., प+ग मृपू. (ॐ नमोर्हत ) १३६५९-१ मूपू., शतक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. १००, पद्य, (नमिय जिणं) १०७९७-१ (+), ११२९०-५ (+), ११३८८ (+), १२१६१-५१) १३२७०-५) ९८३७६) १२१६७-४) १२१६८-५ण १३२५१-५, ११३३१-११) ९८०४ - ४० ९५१०दुनि ९६११-२०१०१५९-५००० १०२०७-१- १३२९०५(+S), १०५४९-५, १०५७०-५, १०६७६-५, १०८९५-५, ११०३३५, ११२२५, ११३२१, ११३५२-५, १२१४१, १२१४५-५, १२१६६५, १०४९३, १२१५५, १२१५९-५, १२१४२, १२१५३-५(M), १२१७०-६, १०१६१-६ १२१६०-२ For Private And Personal Use Only (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञ टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., ग्रं. ४३४०, गद्य, भूपू., (यो विश्ववि) १२१६१-५१, ९६११-२०१ १०१५९-५०१० १०५७०५ १२१७०-६ १२१६०-रामा " " (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूरि, स. गद्य, मूपु. ( नत्वा जिन) १२१४४-५, १२१५५, १२१५९-५, १२१५३-५ () (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि आ. गुणरत्नसूरि, सं., ग्रं.३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (घातिन्यस्त) १२१५२-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ- टिप्पण, सं., गद्य, मुपू., (--) १२१६७ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, भूपू., ( वीतराग नमस) ९५१० -५ (+), १२१४९-५, १२१४२ Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५४८ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. जयसोम, मागु., गद्य, मूपू., (ऐंद्र श्री) १०४९३ मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मृपू.. (रत्नत्रयोप) १२१४१ www.kobatirth.org: (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (परमात्मानइ ) १०७९७-१ (+), ११३८८(+), ११३३१-१ (+), १०५४९-५, १२१४५-५ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-स्वार्थ, मु. जीवविजय, मागु., वि. १८०३, गद्य, मृपू., (जिनाप्रति ) १३२००-५, १०१६१-६ (२) शतक नव्य कर्मग्रन्थ-यन्त्र, पं. सुमतिवर्धन, मागु., ग्रं. ९००, वि. १८७५. कोष्टक, मृपू. (श्रीजिन) १०७६८, १३२७७५ शत्रुंजयतीर्थ आराधनविधि, मागु., सं., गद्य, मृपू. (शत्रुंजयाय) " १०४२९-२ शत्रुंजयतीर्थ इक्कीसनाम व खमासमण विधि, सं., मागु., गद्य, मृपू.. (श्रीशत्रुञ) १०५९०-८१) १०४८८-३ शत्रुंजयतीर्थ कल्प, आ. धर्मघोषसूरि, प्रा., गा. ३९, पद्य, मूपू.. (सुअ धम्मकि ) १२६८४, १२७५१-५ (२) शत्रुंजयतीर्थ कल्प-टवार्थ, मागु, गद्य, जे. (श्रुत कही) १२६८४ शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (अइमुत्तयके ) १०४६७ (२) शत्रुंजयतीर्थ लघुकल्प- टवार्थ, भागु, गद्य, मृपू.. (अइमुत्तइ) १०४६७ शत्रुंजय माहात्म्य, आ. धनेश्वरसूरि, सं., सर्ग १४, ग्रं. १००००, पद्य, मृपू. (ॐ नमो विश) १२४५०१० १३०३२५, ९८१७, " . १००८१, १०५५५, १२४४१, १२४४३, १२४४४, १२४४५, १२४४६, १३०७२, १३१२९, १२४४०, १२३७४, १२४४८ ($), १३११३ १३५७६४ (२) शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (प्रणम्य ) ९८१७, १००८१, १२४४१, १२४४४, १२४४५, १२४४६, १३०७२, १२४४८।३। (२) शत्रुंजय माहात्म्य-टबार्थ, मु. देवकुशल, मागु., ग्रं. १२०००, वि. १७६७, गद्य, मूप्पू., ( नत्वा वीरं) १२४४३ शनिश्वर स्तोत्र, सं., श्लोक १०, पद्य, वै. (यः पुरा रा) ११९७३ ८, १३७१४-१३ शब्दरत्नाकर, उपा. साधुसुन्दर, सं. ६ काण्ड, पद्य, मूपू., ध्यात्वार) १३३७५) १३४२२ शब्दसंचय, सं., गद्य, मृपु. ( शब्दाम्भोध) १३०६५) " शब्दार्णव व्याकरण, मु. सहजकीर्ति, सं., गद्य, मुपू., (सिद्धयर्थं ) १२९१४(+) (२) शब्दार्णव व्याकरण-स्वोपज्ञ प्रक्रिया, मु. सहजकीर्ति, सं.. गद्य, मृपू., (श्रीपार्श) १२९१३-१ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ " शान्तसुधारस, उपा. विनयविजय, सं. १६भावना, श्लोक २३४, वि. १७२३, पद्य, मूपू., (नीरन्ध्रे) १२०५० शान्तिजिन स्तन, आ. सोमसुन्दरसरि शिष्य, सं., श्लोक २५. पद्य, मुपु. ( नवज्योति ) १३७१२-३ शान्तिजिन स्तोत्र, सं., श्लोक ६, पद्य, मुपू., ( वरसान्त जी ) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११९७३-२ " शान्तिनाथ चरित्र, आ. अजितप्रभसूरि, सं. ६ प्रस्ताव, श्लोक १६३२, ग्रं.५०००, वि. १३०७, पद्य, मूपू., ( श्रेयोरत्न) १०९१५१(+), ९८१३(+$), १००७४ (२) शान्तिनाथ चरित्र - टबार्थ, मागु., गद्य, मूप्पू., (मंगलिकरूप) १००७४ (२) शान्तिनाथ चरित्र - हिस्सा मङ्गलकलश कथानक, आ. अजितप्रभसूरि, सं., श्लोक २४१ वि. १३०७, पद्य, मृपू.. (मानुष्यकाद) १२५१४ शान्तिनाथ चरित्र, आ. भावचन्द्रसूरि सं. ६ प्रस्ताव, वि. १५३५. गद्य, मूपू., (प्रणिपत्या) ९९४८ (+), १०५९१, १३११५, १०७२८, १२४१४ १०२२६६ ($) शान्तिस्नात्र विधि, उपा. सकलचन्द्रगणि, सं. मागु, पद्य, मु.. (अथ प्रतिष) १०१०१ शाब्दबोध वादस्थल, सं., गद्य, मुपू., ( ननु शब्द) १२६७३-१८ शालिभद्र चरित्र पण्डित धर्मकुमार, सं. उप्रक्रम नं. १२२४, वि. " " १३३४, पद्य, मृपू. ( श्रीदानधर) १३२००१) " " (२) शालिभद्र चरित्र - टीका, सं. गद्य, मृपु. ( ग्रन्थप्रा) १३२०० शाश्वतचैत्य स्तन, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. २४, पद्य, मृपू.. " (सिरिउसह वद) १२६०७-१ (२) शाश्वतचैत्य स्तव अवचूरि. सं., गद्य, मुपु. ( श्रीऋण वर) " १२६०७-१ शाश्वतजिनभवन स्तोत्र, आ. जयसिंहसुरि, प्रा. गा. २६, पद्य, मृपू.. ( वन्दिय चउव) १२१६२-१९१ शास्त्रवार्ता समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं., श्लोक ७०१ नं. ७००, पद्य, मू.. (प्रणम्य पर) १००५४०४० १३०९९ For Private And Personal Use Only (२) शास्त्रवार्त्ता समुच्चय- स्याद्वादकल्पलतावतारिका टीका, उपा. यशोविजयजी गणि, सं., गद्य, मूपू. (ऐन्द्र) १००५७/न शिवकुमार कथा - नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., श्लोक ५८, पद्य, जै., ( नवकारप्रभा ) ९९१०-२, १२४७१-२ शील कुलक, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. गा. २० पद्य, मृपु. ( सोहग्ग महा) १०६९१-१ " (२) शील कुलक-व्याख्या + कथा, सं., गद्य, मूपू., ( अथ धर्मस्य ) १०६९१-१५) शीलप्रकाश, गणि पद्मसागर, सं., पद्य, मूपू., (तन्याद्धन ) १२०४५।०३। Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५४९ शीलवती कथा, सं., श्लोक २२०, पद्य, जै.. (जम्बू द्वी) १२४३२-१ | (गोभिर्येन) १००५९(+). १०४६२ शीलवती कथा, सं., गद्य, मूपू., (शीलप्रभावत) १२४८२-१२(+) | (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीरं कहीइ) शीलवती कथा, सं., गद्य, मूपू., (सीलवईपसीलं) १२५३१-७ १०६६७ शीलोपदेशमाला, आ. जयकीर्तिसूरि, प्रा., ४३ कथा, गा. ११५, श्राद्धविधि प्रकरण, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., ६प्रकाश, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (आबालबम्भया) ११२३२(+), १२०५९(4), १०२७७, (सिरिवीरजिण) १२६३८(+), १२६३७+5), १०६३०, १२६४३, १२०३४, १२०४८, १२२१३-१, १०५८०, १०७०९-१, १२०३६, १०५८३, १००४४ १०६२२, १२०३५, ९८००६), १२०३२(5), १२०४७(5) (२) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदी टीका, आ. (२) शीलोपदेशमाला-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (-) १२०४७(5) रत्नशेखरसूरि, सं., ६ प्रकाश, ग्रं.६७६१, वि. १५०६, गद्य, (२) शीलोपदेशमाला-वृत्ति, आ. विद्यातिलकसूरि, सं., ग्रं.६५००, मूपू., (अर्हत्सिद) ९७४६(+), १२६३८(+), १३०१३(+), १२६३७+६), वि. १३९४, गद्य, मूपू., (यस्योपदेशम) १२०४८, १०५८० १०६३०, १२६४३, १०५८३, १००४४, १०००२(5) (२) शीलोपदेशमाला-अवचूरि, उपा. धर्मानन्द, सं., गद्य, मूपू., | (३) श्राद्धविधि प्रकरण-विधिकौमुदि टीका का टबार्थ, मागु., गद्य, (अहं शीलोपद) १२०४६(4) मूपू.. (श्रीअरिहन) १३०१३), १००४४ (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (आबाल ब्रह) (३) श्राद्धविधि प्रकरण-स्वोपज्ञ विधिकौमुदीटीका का टबार्थ# , मु. १२०३४ उत्तमविजय, मागु., गद्य, मूपू., (अरिहन्त सि) ९७४६(+) (२) शीलोपदेशमाला-बालावबोध+कथा, गणि मेरुसुन्दर, मागु., श्राद्धविधिविनिश्चय, मु. हर्षभूषण, सं., ग्रं.१८७५, गद्य, मूपू., ग्रं.६२५०, वि. १५५१, गद्य, मूपू.. (श्रीवामेयम) १२०५९), (ऐंदवमण्डलन) १३१७२ ९५४४६), १०२७७, १२०३५, १०६२२, १२०३२७) श्रावक ११ प्रतिमा, सं.,प्रा.,मागु., गद्य, मूपू.. (अहन्नं० मि) (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ+कथा, मागु., गद्य, मूपू., (आबाल १२९३६-७+#) ब्रह) १२०३६ श्रावक १४ नियम गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., (सच्चित्त) (२) शीलोपदेशमाला-कथा*, मागु., गद्य, मूपू.. (--) १०६२२ । ११५७४-२(4), १०३६६-२, १२५६३-४ शीलोपदेशमाला, आ. जयवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., । (२) १४ नियम गाथा-बालावबोध, सं.,मागु., गद्य, मूपू., (सचित्त (आबालबम्भया) १२०३३(+), १२०४० । पृथ) ११५७४-२(+) (२) शीलोपदेशमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (बालपणा लगइ) (२) १४ नियम गाथा-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (पाणी फल बी) १२०३३(+), १२०४० १२५६३-४ शीलोपदेशमाला, आ. जिनवल्लभसूरि, प्रा., गा. ११५, पद्य, मूपू., श्रावक २१ गुण, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (धम्मरयणस्स) १२७५१(आबालबम्भया) १२१०४-४(45) १० शुकराज कथा-शत्रुञ्जयमाहात्म्ये, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, सं., श्रावक आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, सं., ग्रं.१६६, वि. गद्य, मूपू., (श्रीशत्रुञ) ९५२२६+5), ९५७४६+5), १२४३३, १२४३४- १६६७, गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) ११८४१, ९६०८-११) (२) श्रावक आराधना-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) शूरवीरप्रकार गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू.. (क्षमासूरा) १२७९६-३ ११०८८ शृङ्गदत्त कथा, सं., गद्य, मूपू., (अतिलोभो न) १२४८२-१९+) श्रावक आलोयणा विचार, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, मूपू., (प्रथमं मुह) श्राद्धगुण विवरण, उपा. जिनमण्डन, सं., अध्याय ३५, वि. १४९८, ९८१६(#) गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०२३९(+5), १३१३६, १२११८ श्रावक पाक्षिक अतिचार-लघु, मागु.,प्रा., गद्य, मूपू., (ईच्छामि०) श्राद्धजीतकल्प, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. १४२, वि. १४वी, १०९२७-२ पद्य, मूपू.. (कयपवयणप्पण) ९५०२(+) श्रावकप्रज्ञप्ति, वा. उमास्वाति, प्रा., गा. ४०१, पद्य, मूपू., (२) श्राद्धजीतकल्प-टीका, सं., ग्रं.२६४६, गद्य, मूपू., (श्रीवीरं) (अरिहन्तं) ११२६७(+), १०४६३ ।। (२) श्रावकप्रज्ञप्ति-दिक्प्रदा टीका, आ. हरिभद्रसूरि, सं., गद्य, श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ३४१, ग्रं.३९०, मूपू., (स्मरणं यस) ११२६७(+), १०४६३ पद्य, मूपू., (वीरं नमिऊण) १००५९), १०९३६(५), १२७०२६), श्रावकविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, सं.,मागु., वि. १८३८, गद्य, १०४६२, १०६६७, १२७०३, १२९९९, १२७०४ मूपू., (प्रणम्य) ११२१७+) (२) श्राद्धदिनकृत्य प्रकरण-टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., गद्य, पू., | श्रावकव्रतभङ्ग प्रकरण, प्रा., गा. ४१, पद्य, मूपू.. (पणमिअ ९५०२) For Private And Personal Use Only Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५५० www.kobatirth.org: समत) १३५४४-१६) (२) आवकव्रतभङ्ग प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, मृपू ( व्रतं नियम) १३५४४-१ " 1 श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र, मु. सिद्धर्षि सं. ४ अधिकार, श्लोक ९६६. वि. ५९८ पद्य, भूपू.. (ॐ ध्यात्व) १००७८ १२३२२ (२) श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (ऊँकार सिद) १००७८(+) (२) श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र - गाथाकाव्य श्लोक, सं., प्रा., श्लोक ३६३. पत्र, भूपू., (जं चन्द्रणेण) १०७४८) (३) श्रीचन्द्रकेवलि चरित्र - गाथाकाव्य श्लोक का " टवार्थ+ व्याख्यान, मागु., गद्य, गुपु. ( प्रणिपत्य) १०७४८ श्रीदत्त कथा, सं., गद्य, मृपू., (योधिगत्यपद) १२४८२-१८ श्रीपाल चरित्र, मु. जयकीर्ति-शिष्य, सं., ४प्रस्ताव, ग्रं. १२५७, वि. १८६८, गद्य, मूपू., (प्रणम्य सि) १२४१६, १२४०४ श्रीपाल चरित्र, आ. ज्ञानविमलसूरि, सं. ग्रं. १८०० वि. १७४५ गद्य, मूपू., (सकलकुशलवल) १०८९० (+) श्रीमती कथा - नमस्कार महामन्त्र विषये, सं., श्लोक ५३, पद्य, जै.. ( नवकारअक्खर) ९९१०-१ १२४७१-१ श्रुतबोध, कालिदास, स. श्लोक ४१, पद्य, (छन्दसी लक) ११२०१ (२) श्रुतबोध- मनोरमा टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मृपू.. ( श्रीमत्सार) ११२०१ श्रुत विचार, प्रा., मागु., गद्य, मूपू., (नमिऊण जिणव) १३०२५ (+) श्रुत विचार सङ्ग्रह, मागु. प्रा., पद्य, जे. (असनाडि) ९८२५ श्लोकलक्षण, सं., श्लोक १, पद्य, जै.. (प्रथम पदे) १११०२-५ श्लोक सङ्ग्रह, सं., पद्य, () ११२११-२(+), १०७७४-२, १११६० २, १२१५९-७ श्लोकसङ्ग्रह, सं., पद्य, जे. (जिनेन्द्र) १२३५०-२११, १२३९४-३ श्लोक सङ्ग्रह, सं.प्रा., श्लोक ४१, पद्य, मृपू. (नेत्रानंदक) ९७०८-१ श्लोक सङ्ग्रह, सं., मागु., पद्य, (--) ९७११-२(+), ११०९२-४(+), १२२३९-२ (+), १२२७०-२ (+), ११२१४-३(+1), १११९४-२ श्लोक सङ्ग्रह-, मागु., सं., गा. ३, पद्य, (प्यार पाया) ११२३४-३ श्लोक सङ्ग्रह जैनधार्मिक, सं., श्लोक ३, पद्य, जै., (देहे निर्म) ९८७८-२ (९) षट्कारक, मागु. सं., गद्य, मृपू., (छ कारक सात) १०९१५-२० षट्त्रिंशज्जल्पविचार सङ्ग्रह, मु. भावविजय, सं. वि. १६७९, गद्य, मूपू., ( ॐ नमः श्र) १२९३२ (+), १३१६७(+), १२७४९ षट्पुरुष चरित्र, गणि क्षेमङ्कर, सं., प+ग, मूपू., (श्रीअर्हन) १३२७९ (+), १३२७८-१ षट्पुरुषजनाचार आलापक, प्रा., गद्य, मुपू., (तओ जोगाजोग ) १३२७८-२ षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. गा. ८६, पद्य, मृपू.. (नमिय जिणं) १०१८५) ११२९०-४१, ११३५०-४०० १२१४८-४९ १२१६१-४१०) १३२७०-४००, ९८३७-५ १२१६७-५(+), १२१६८-४(+), १३२५१-४(+), ९५१०-४(+$), ९८०४३(+$), १०१५९-४(+$), १३२९० - ४(+), ९६११-१ (+), १२१६४४(+$), १०५४९-४, १०५७०-४, १०६७६-४, १०८९५-४, ११०३३४, ११३५२-४, १२१४५-४, १२१६६-४, १२६७६, १०८०२-४, १२१५९-४, १२१५३-४(# ) १२१७०-४ (#), १२१७०-५(), १२१६५४क १०१६१५ १२१६०-१ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-स्वोपज्ञा सुखबोधा टीका, आ. देवेन्द्रसूरि, सं., ग्रं.२८००, गद्य, मूपू., (यद्भाषितार) १२१६१४) १०१५९-४० ९६११-१-४३ १०५७०-४ १२१७०-४११ १२१६०-१० 1 " (२) षडशीति नव्य कर्मबन्ध- अवचूरि. सं., गद्य, मृपु. ( नमनि० तत्र) १२१५२-४ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीजिनं) १२१४४-४ १२१५९-४, १२१५३-४(#) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-अवचूर्णि आ. गुणरत्नसूरि, सं.. ग्रं.३१००, वि. १४५९, गद्य, मूपू., (नव्यषडशीति) १२१५६-३ ($) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (-) १२१६७-५११ १२१६८-४१०१ . Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ 1 (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- बालावबोध, मागु., गद्य, भूपू., ( वीतरागदेव) ९५१०-४० १२१४९-४ For Private And Personal Use Only (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (हवइं यथा) १०१८५१, १२१४८-४० १३२९०-४० १०५४९-४, १२१४५-४, १२६७६ ($) (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., वि. १८०३, गद्य, भूपु (जिनने नमस) १३२७०-४) १०१६१-५ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- टवार्थ, उपा. धनविजय, मागु.. गद्य, मूपू., ( वान्दीनइ) १०८०२-४ (२) षडशीति नव्य कर्मग्रन्थ- यन्त्र, मु. सुमतिवर्द्धन, राज., गद्य, मूपू., (जीवरा भेद) १३२७७-४ " षडशीति प्राचीन कर्मग्रन्थ, आ जिनवल्लभसूरि, प्रा. गा. ८६. पद्य, मृपू. (निच्छिन्नम) १२२८७-१११ १२१६२-४ (२) षडशीति प्राचीन कर्मग्रन्थ-भाष्य, प्रा., गा. ३८, पद्य, मूपू.. (जीवाइपयत्थ) १२१६२-५ षड्ऋतु श्लोक, सं., श्लोक २, पद्य, मुपू., (वसन्तो मीन) १३६२७-२ षड्दर्शन समुच्चय, आ. हरिभद्रसूरि सं. ७अधिकार, श्लोक ८७, पद्य, मूपू., ( सद्दर्शनं) ११९६५ Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९८०५ plu) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५५१ (२) षड्दर्शन समुच्चय-तर्करहस्यदीपिका टीका, आ. (२) सङ्घपट्टक-लघुवृत्ति, उपा. हर्षराज, सं., गद्य, मूपू.. (वन्दे गुणरत्नसूरि, सं., ७ अधिकार, ग्रं.५७७३, गद्य, मूपू., (जयति | शान) १०४६१(+) विजित) ११९६५, १२०८६ (२) सङ्घपट्टक-व्याख्या , सं., गद्य, मूपू., (-) १०१९५६+६) षष्टिशतक प्रकरण, श्रा. नेमिचन्द्र भाण्डागारिक, प्रा., गा. १६१, सङ्घ स्तुति, सं., श्लोक ६, पद्य, मूपू., (संघीय गुणर) ११८९२ पद्य, मूपू., (अरिहं देवो) १२१७४-२(+), १२६२७(+), १२६२८(+), २(+), १३००४-३(+) १२९९४(+), १०१४७, १०७२६, १२२५३-१, १२६३६, १२९९३, (२) सङ्घ स्तुति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीसङ्घ) ११८९२ २), १३००४-३(+) (२) षष्टिशतक प्रकरण-टीका, मु. धवलचन्द्र-शिष्य, सं., श्लोक सज्जनचित्तवल्लभ काव्य, मु. मल्लिषेण, सं., श्लोक २५, पद्य, १६१, प+ग, मूपू., (इह प्राप्त) १२६२६ दि., (नत्वा वीरज) १३४५४ (२) षष्टिशतक प्रकरण-वृत्ति, उपा. गुणरत्न, सं., गद्य, मूपू., (२) सज्जनचित्तवल्लभ काव्य-टीका, कवि नेतृसिंह, सं., गद्य, __ (इहचा विघ्न) १२९९४(+) दि., (लब्धिमन्त) १३४५४ (२) षष्टिशतक प्रकरण-अवचूरि*, मागु.,सं., गद्य, मूपू., (--) सत्तात्रिभङ्गी, मु. नेमिचन्दजिन, प्रा., ३ त्रिभंगी, गा. ३५, पद्य, १२६२७+) दि., (पञ्चणवदोणि) ९८९४-२(+) । (२) षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (एक श्री | (२) सत्तात्रिभङ्गी-यन्त्र, सं.,मागु., यंत्र, दि., (सत्ताकर्मप) ९८९४ अर) १२६३६ (२) षष्टिशतक प्रकरण-बालावबोध, आ. सोमसुन्दरसूरि, मागु., सत्व खण्डनपरिहार स्थल, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, सं., गद्य, वि. १४९६, गद्य, मूपू., (सिरिवद्धमा) ९८०५६) पू., (ननुत्पादव) १३७५५-३ (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ऐंद्रवृन्द) सदयवत्स कथानक, गणि हर्षवर्धन, सं., प+ग, मूपू.. (धर्माज्जन) १०१४७, १०७२६ १३३०५ (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (राग अनइ) सद्भाषितावली, आ. सकलकीर्ति, सं., पद्य, दि., (जिनाधीशं) १२६२८) १२३४४(+) (२) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, (श्री अरिहन)- सन्तिकरं स्तोत्र, आ. मुनिसुन्दरसूरि, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., <प्रतहीन.> (सन्तिकर) १०१०६, १३६८१-१, १०२६२-४(5) (३) षष्टिशतक प्रकरण-टबार्थ, सं., गद्य, मूपू., (सर्वज्ञदेव) (२) सन्तिकरं स्तोत्र-टीका, सं., गद्य, मूपू., (मुनिसुन्दर) १०१०६, १२१७४-२(+) १३६८१-१ षोडशकारण पूजा, सं.,प्रा., प+ग, मूपू., (इन्द्रपदं) ९३४७-९०) सन्थारापोरसीसूत्र, प्रा., गा. १४, पद्य, मूपू., (निसिही निस) संसारदावानल स्तुति, आ. हरिभद्रसूरि, सं.प्रा., श्लोक ४, पद्य, १०९४१-७+), ११६७७-४२(+), १०८३३-२, १२७४३-१ मूपू., (संसारदावान) १३७१३-७५), १००३१-४, १०३१७-२ (२) सन्थारापोरसीसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (निसीही ३) संस्तारक प्रकीर्णक, गणि वीरभद्र, प्रा., गा. १२२, पद्य, मूपू., १२७४३-१ (काऊण नमुक) ११८४५-३(+), ११२५४-४(5), १०६८९-५, (२) पौषधविधि सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार वि) १०६९०-५, ११२९६, ११८००-१, १२१६२-१०(5) १०८३३-२ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-टीका, सं., गद्य, मूपू.. (शमितनिःशेष) सन्देहदोलावली प्रकरण, आ. जिनदत्तसूरि, प्रा., गा. १५०, पद्य, ११८००-१ ___ मूपू., (पडिबिम्बिय) १३२५५ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-अवचूर्णि, आ. गुणरत्नसूरि, सं., गद्य, (२) सन्देहदोलावली प्रकरण-टीका, उपा. जयसागर गणि, सं., मूपू.. (वसंतपुरे) १११६९-३ ग्रं.१५५०, वि. १४९५, गद्य, मूपू., (व्याख्या) १३२५५ (२) संस्तारक प्रकीर्णक-सन्थाराकर्त्तव्यविधि, सं., गद्य, मूपू., सन्देह समुच्चय, आ. ज्ञानकलशसूरि, सं., श्लोक ४४५, पद्य, (प्रथम मुखव) ११८००-२ मूपू.. (सद्भूतभावप) १३४५९ (३) संस्तारक प्रकीर्णक कर्त्तव्य विधि-अर्थ, मागु., गद्य, मूप... सन्मतितर्क प्रकरण, आ. सिद्धसेनदिवाकर सूरि, प्रा., गा. १६८, (सन्थाराविध) ११८००-३ पद्य, मूपू., (सिद्ध सिद) ११३६४५), ९४७१, ११०८१, १२९५७, सङ्घपट्टक, आ. जिनवल्लभसूरि, सं., श्लोक ४०, पद्य, मूपू.. १२९५८, १२८०९, १२८०७७) (वह्निज्वाल) १०४६१), १०१९५(45) | (२) सन्मतितर्क प्रकरण-तत्त्वबोधविधायिनी टीका, आ. प. पू.. For Private And Personal Use Only Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ अभयदेवसूरि, सं., गद्य, मूपू., (शास्यते जी) १२८०९, सप्तसन्धान महाकाव्य, उपा. मेघविजय, सं., सर्ग ९, ग्रं.४४२, वि. १२८०७० १७६०, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिजन) १३४५८(+) सप्ततिका कर्मग्रन्थ, प्रा., गा. ७२, पद्य, मूपू., (सिद्धपएहिं) | सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, प्रा., ७ स्मरण, १०८५६), ११२९०-६(+), ११३३१-२(+7, १२१९७(+). १२१९८(+), पद्य, मूपू., (णमो अरिहन) ९६५७-१(+), ११६७७-६(+), १३७०७, १२२०१५), १२९८८(+), १३०१५(५), १३२७०-६(+), ९८३७-६(१), १३७०८, १३७०९(*), ९६१८६६), ११६०४-४.) १२१६७-६६), १२१६८-६(५), ९८०४-५(45), १०२०७-२(+5), (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-वृत्ति, आ. जिनप्रभसूरि, सं., वि. १०११४, १०५४९-६, १०५७०-६, १०८९५-६, ११०३३-६, १३६५, गद्य, मूपू., (अजितं अक्ष) १३७०७ ११३५२-६, १२१४५-६, १२२००, १२१४०, १०८०९१, १२१७०- (२) सप्तस्मरण-खरतरगच्छीय-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ७), १२१९९६), १०१६१-७(5), १२१६०-३(5) (अजितं अजित) १३७०८, १३७०९(१) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, सं., गद्य, मूपू., (-) १२१६०- समकितना ६७ बोलभेद, प्रा.,मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (चउसद्दहणा) १०८९६-१(4). १२६०१-२(4) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., (२) समकीतना ६७ बोल भेद-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., ग्रं.३८८०, गद्य, मूपू., (अशेषकर्मा) १२९८८+), १३०१५(५), (चउसद्दहणा०) १०८९६-१(+) १०५७०-६, १२१७०-७#) (२) समकीतना ६७ बोल-विवरण, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम चार) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (सिद्ध० सिद) १२६०१-२(+) १०३५५, ११३२६, १२१५४, १२१५९-८ समयसार, आ. कुन्दकुन्दाचार्य, प्रा., गा. ४१५, पद्य, दि., (वन्दितु (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टिप्पण, सं., गद्य, मूपू., (सिद्धं प्र) सव) १०४६६) १२१६७-६(+) (२) समयसार-आत्मख्याति टीका, आ. अमृतचन्द्राचार्य, सं., (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ए प+ग, (नमः समयसार)-<प्रतहीन.> गाथाने) ११३३१-२(+). १०११४ (३) समयसार-आत्मख्याति टीका का हिस्सा समयसारकलश (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. जयसोम, मागु., ___टीका, आ. अमृतचन्द्राचार्य, सं., श्लोक २७८, पद्य, दि., ग्रं.४०००, वि. १७०२, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) १२२०१६) (नमः समयसार) ११०४८ (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-बालावबोध, मु. मतिचन्द्र, मागु., गद्य, | (४) समयसार नाटक-पद्यानुवाद, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., गा. मूपू., (सिद्ध कहता) १२२००, १२१४० ७२७, वि. १६९३, पद्य, दि., (करम भरम जग) १०७४३, (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सिद्ध निश) ९७९१, १०६२४) १०८५६(+), १२१९७९+), १२१९८(+), १०५४९-६, १२१४५-६, (४) समयसारनाटक कलश-बालावबोध, राज., गद्य, दि., (भावाय १२१९९(5) नमः) ११०४८ (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-टबार्थ, मु. जीवविजय, मागु., वि. १८०३, (२) समयसार-छाया, सं., श्लोक ४१४, पद्य, दि., (वन्दित्वा) गद्य, मूपू., (सिद्ध अचल) १३२७०-६(+), १०१६१-७६) १०४६६) (२) सप्ततिका कर्मग्रन्थ-यन्त्रसङ्ग्रह, मागु., यंत्र, मूपू., (-) समयसार प्रकरण, आ. देवानन्दसूरि, प्रा., अध्याय १०, वि. १२१९६(48) १४६९, गद्य, मूपू., (सव्वन्नु) १३४३७+), १०२८९-१(+), १३६९३सप्ततिशतस्थान प्रकरण, आ. सोमतिलकसूरि , प्रा., गा. ३६०, १(4) वि. १३८७, पद्य, मूपू., (सिरिरिसहाइ) १०३६२१०, १०९३३, (२) समयसार प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) १२६६४ १३४३७) (२) सप्ततिशतस्थान प्रकरण-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., समराइच्चकहा, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., ९ भव, गद्य, मूपू., (पणमह (ऋषभादिक जि) १०३६२(+) विजिअ) १००८३ सप्तनय, सं., श्लोक ८, पद्य, मूपू., (नैगम सङ्ग) १२६०१-३(+) (२) समराइच्चकहा-सङ्क्षप समरादित्यचरित्र, आ. प्रद्युम्नसूरि, सप्तपदार्थी, शिवादित्य मिश्र, सं., गद्य, वै., (हेतवे जगता) सं., श्लोक ७७१, वि. १३२४, पद्य, मूपू., (चित्रभानुस) १३०४४-४(45), १०४०६-२(5) । १००५१(+), १३२२२(+) सप्तव्यसन कथासमुच्चय, आ. सोमकीर्ति, सं., सर्ग ७, श्लोक | समवसरण स्तव, आ. धर्मघोषसूरि , प्रा., गा. २४, पद्य, मूपू., ६७७, ग्रं.२०६७, वि. १५२६, पद्य, दि., (प्रणम्य) १२३९६-१(5) | (थुणिमो केव) १२२५४-१, १२४००-१ For Private And Personal Use Only Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ ५५३ (२) समवसरण स्तोत्र-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (थुणिमो | सम्यक्त्वकौमुदी, आ. जयशेखरसूरि, सं., ग्रं.१६७५, वि. १४५७, इति) १२२५४-१ गद्य, मूपू.. (श्रीवर्द्ध) १०९१०+), १२४०५), १२३९५९), समवायाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., १०३अध्ययन, सूत्र १५९, १०७८१(+). ९८१२), १२४०३, ९८५६, ९९४४(६) । ग्रं.१६६७, गद्य, मूपू., (सुयं मे०) १०२३०५), ११४५१(+), (२) सम्यक्त्वकौमुदी कथानक-टबार्थ", मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११४५३(+), ११४६०(+), ११४५५(45), ११४५९(45), ११४६१(+5), १२४०५९), ९८५६ ९५१७, ९९६२, १०७११, ११०१७, ११२७१, ११४४६, ११४४८, सम्यक्त्वकौमुदी, गणि जिनहर्ष, सं., ७ प्रस्ताव, ग्रं.२८५८, वि. ११४४९, ११४५०, ११४६२ १४८७, पद्य, मूपू., (ॐ नमः शाश) १२०९१(4). १०५८८ (२) समवायाङ्गसूत्र-वृत्ति, आ. अभयदेवसूरि , सं., ग्रं.३५७५, वि. सम्यक्त्वपच्चीसी, प्रा., गा. २५, पद्य, मूपू., (जह सम्मत्त) ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) ११४५१(+), ११४५३(+), १०८९६-२), १२७७६(५), ११०८२, १११३१, ११९६६(5) ११४५५(45), १०७०७, १०७११, ११०१७, ११४५२, ११४५४(६) (२) शिशुबोध-टीका, सं., गद्य, (यथायेनोपरा)-<प्रतहीन> (२) समवायाङ्गसूत्र-टबार्थ, वा. मेघराजजी, मागु., ग्रं.४४७४, वि. | (३) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (यथा १७उ., गद्य, जै., (देवदेवं जि) १०२३०+), ११४६०(+), सम्यक) १०८९६-२(+) ११४५९(45), ११४६१+9), ९९६२, ११४६२ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू.. (यथा सम्यक) समाधिशतक, आ. देवनन्दी, सं., श्लोक १०६, पद्य, दि., १०८९६-२) (येनात्मा) १२६३१-३, १३०६९ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (२) समाधिशतक-बालावबोध, मु. पर्वतधर्मार्थी, मागु., गद्य, दि., । (मनोवाञ्छित) १२७७६(+), ११९६६(६) (जिनान् प्र) १३०६९ (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (यथा जिम सम्बोधसप्ततिका, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १२५+२, पद्य, सम) १११३१ मूपू., (नमिऊण तिलो) ९५४५-१+), ९८८३(+), १०१४६६५), (२) सम्यक्त्वपच्चीसी-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (जह कहतां) १०५०९(+), १२१७४-३(+), १२६०९६५), १२६१४+), १२६१५-१(+), ११०८२ १३१९७५), १२६१२-२(+), १२६१६६५), ११२१६(45), १०३६६-१, सम्यक्त्व व शीलव्रतउच्चार विधि, मागु.,प्रा., पद्य, मूपू., (ते १०९६१, १२६१०-२, १२६११, १२६१३, १३१७९, १०७०९-२, समकीत) ९६०८-३) १०८७२ सम्यक्त्वसप्ततिका, आ. हरिभद्रसूरि, प्रा., गा. ७०, पद्य, मूपू., (२) सम्बोधसप्ततिका-टीका, आ. गुणविनयसूरि, सं., वि. १६५१, (दसणसुद्धि) १०५८२(+), ११३७५६५), १३२५९), १००४९, गद्य, मूपू., (प्रणिपत्य) १३१७९ १०५२६, १०५७३, १२६१७, १२९८९, १०७०९-५ (२) सम्बोधसप्ततिका-वृत्ति, आ. अमरकीर्तिसूरि, सं., गद्य, मूपू., । (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-टीका, आ. सङ्घतिलकसूरि, सं., १२ (नत्वा तं) ९५४५-१(+), १२६१४(+) अधिकार, ग्रं.७७११, वि. १४२२, प+ग, मूपू., (सच्चामीकरब) (२) सम्बोधसप्ततिका-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (नत्वा त्रै) १२६१३ ११३७५६), १३२५९०, १००४९ (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ नमस्ते) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-सम्यक्त्वरत्नप्रकाश बालावबोध+कथा, १२६१०-२ ___ उपा. रत्नचन्द्र, मागु., वि. १६७६, गद्य, मूपू., (नत्वा श्री) (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., ग्रं.४१०, गद्य, मूपू., (नत्वा १०५८२(+), १०५७३, १२६१७ प्रण) ९८८३(+) (२) सम्यक्त्वसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (सम्यक निर) (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमस्कार कर) १०५२६, १२९८९ १०१४६६५), १२१७४-३(१), १२६०९(+), १२६१५-१(4), १०९६१, सम्यक्त्व स्वरूप, सं., पद्य, मूपू., (प्रणम्य पर) १०५७६), ११९५३ १२६११ (२) सम्यक्त्व स्वरूप-बालावबोध, आ. विबुधविमलसूरि, मागु., वि. (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ व कथा, मागु., गद्य, मुपू., १८१३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य क०) १०५७६(१), ११९५३ (नमस्कार हो) १३१९७६) सम्यक्त्वोपरी कथा, सं., गद्य, मूपू., (समत्तं पाल) १२४८४-१(क) (२) सम्बोधसप्ततिका-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (नमीनइं त्र) सरस्वतीदेवी स्तोत्र, सं., श्लोक ९, पद्य, वै., (राजते श्री) ९५२९ १०३६६-१ सम्बोहरसायण, आ. नयचन्दसूरि, प्रा., गा. ५४, पद्य, मूपू., सरस्वती पूजा, मु. ब्रह्मजिनदास, सं.,मागु., पद्य, मूपू., (सति (सावयकुलि) १२११४ श्रुतस) ९३४७-७-) For Private And Personal Use Only Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ सरस्वतीसूत्र, सं., . (-)-<प्रतहीन.> १०९१६-१(+) (२) सारस्वत व्याकरण, आ. अनुभूतिस्वरूप, सं., गद्य, (प्रणम्य साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, मूपू., पर) १२९०५), ९५५४), ९५५६(+5), १२९०४ (अविरलकमलगव) ११६७७-२३(+) (३) सारस्वत व्याकरण-दीपिका टीका, आ. चन्द्रकीर्तिसूरि, सं., साधारणजिन स्तुति, सं., श्लोक ४, पद्य, जै., (मुनीन्द्रह) ३वृत्ति, ग्रं.७५००, वि. १६२३, गद्य, पू., (नमोस्तु सर) १०९८५-४(45) १२९०५(+), १३१४८), ९५५४+), ९५५६(45), १२९०४, १२९२७, साधारणजिन स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि, सं., श्लोक १, पद्य, १०३३८, १२९२६, १०३४८(5) मूपू.. (श्रीतीर्थर) १२०९४-२(+), १३७१३-२४(+), १२७४३-४ (३) सारस्वत व्याकरण-धातुपाठ, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. (२) साधारणजिन स्तुति-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (श्रीतीर्था) १६६३, पद्य, मूपू., (श्रीसर्वज) ९५२१ १२७४३-४ (२) सिद्धान्तचन्द्रिका, आ. रामाश्रम, सं., गद्य, (नमस्कृत्य)- साधुविधि प्रकाश, वा. क्षमाकल्याण, सं.,प्रा., गद्य, मूपू., (प्रणम्य <प्रतहीन.> ती) ११७४२(१), ९७८०-१९७१ (३) सिद्धान्तचन्द्रिका-सुबोधिनी वृत्ति, गणि सदानन्द, सं., वि. सामग्रीभङ्गवाद, सं., गद्य, मूपू., (अथ कैश्चित) १२६७३-१३ १७९९, गद्य, मूपू., (पुराणपुरुष) १३३९९(45) सामाचारी , सं., पद्य, मूपू., (प्रथम सामा) १३००४-१(+) सर्वज्ञव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, मूपू., (अत्र जैमिन) १२६७३-७ सामाचारी प्रकरण, प्रा.,सं., गद्य, मूपू.. (आयारमयं वी) १३१७३(+) सर्वज्ञव्यवस्थापकस्थल, सं., गद्य, मूपू., (नन्वशेषविष) १२६७३-९ सामाचारी सङ्ग्रह, आ. नरेश्वरसूरि, सं., पद्य, मूपू., (नाणं सर्वज्ञव्यवस्थापनस्थल, सं., गद्य, मूपू., (इह हि केचि) १३१५५- किरिय) १३१३० सामायिक ३२ दूषण सज्झाय, मागु.,प्रा., गा. २१, पद्य, मूपू., सर्वज्ञशतकसंशयनिराकरण, सं., गद्य, मूपू., (भट्टारक वि) (पहिलू प्र) ११७३१-२(+) १३०८३ सामायिक ३२ दोष गाथा, प्रा., गा. ३, पद्य, म्पू., (पालद्धी अथ) सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, सं., गद्य, मूप., (इह हि केचि) १३१५५-२(+) | ९८३७-८) सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., श्लोक ६८, पद्य, मूपू., । (२) सामायिक ३२ दोष गाथा-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (लक्ष्मीभृद) १३२८९ (वचनना दोष) ९८३७-८(+) सर्वज्ञस्थापनास्थापकवादस्थल, सं., गद्य, मूपू., (अविनाभूताल) सामायिकसूत्र-दिगम्बर, सं.,प्रा., पद्य, दि., (पडिक्कमामि) १३१५९-२६), १३१६०-२(+) १३३११(4) सर्वाधिकार गाथासङ्ग्रह, मु. ज्ञानविमलसूरि-शिष्य, प्रा.,सं., गा. (२) सामायिकसूत्र-दिगम्बर-टीका, सं., गद्य, दि., (जय जय ३३९, पद्य, मूपू., (पढमोबारसमत) १२७९७-१ निस) १३३१० सर्वानुमानोत्थापनस्थल, सं., गद्य, मूपू.. (ननु भो भो) १३१५५- (२) सामायिकसूत्र-दिगम्बर-अवचूरि, सं., गद्य, दि., (हे भगवन्) १३३१११) सर्वार्थनिरासस्थल, सं., गद्य, मूपू., (यः कार्यसि) १३१५९-१५), सामुद्रिकशास्त्र, सं., अध्याय ३६, श्लोक २७१, पद्य, मूपू., १३१६०-१(+), १२६७३-१२ (आदिदेवं) १३५०४-३ साङ्ख्यमतनिरासन वादस्थल, सं., गद्य, मूपू., (क्षित्यादि) सारस्वतोल्लासकाव्य, आ. रत्नमण्डनसूरि, सं., श्लोक १५४, पद्य, १२६७३-१६ मूपू., (कश्चिज्जनो) १३०८७-१ साधारणजिन अष्टक, मु. कनकप्रभविजय, सं., श्लोक ८, पद्य, | | सारावलीप्रकीर्णक, प्रा., गा. ११६, पद्य, मूपू., (आरम्भेसु) मूपू.. (जयति जङ्गम) ९५३६-२ ११८१४-२ साधारणजिन बल, प्रा., गा. ६, पद्य, मूपू., (गुजा सतिहा) सिंहलसिंहकुमार कथा-दानविषये, सं., गद्य, मूपू., (--) १२४४२ १२२५१-५ साधारणजिन शतार्थी स्तुति, आ. सोमतिलकसूरि , सं., गा. १, | सिंहासनद्वात्रिंशिका कथा, गणि क्षेमकर, सं., प+ग, मूपू., पद्य, मूपू., (कल्याणसारस) १३७१३-२३(+) (अनन्त शब्द) १०७९८ साधारणजिन स्तव, आ. जयानन्दसूरि, सं., श्लोक ९, पद्य, मूपू., | सिद्ध के द्वार, मागु.,प्रा., गद्य, जै., (मोक्ष के) ९७३८-३ (देवाः प्रभ) १०९१६-१(+), १३७१३-५(4) सिद्धचक्र माहात्म्य, सं., गद्य, म्पू., (मगधदेशे रा) १२९९१५) (२) साधारणजिन स्तव-टीका, सं., गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) | सिद्धचक्र स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (भत्तिजुत्त) १३७१३ For Private And Personal Use Only Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ १३३१८४) १३३२८५ १३३१६४१२८९७४१३३१५ १०९०९ १२(+) सिद्धदण्डिका स्तव, आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. गा. १३, पद्य, मृपू., (ज उसहकेवल) १२२८६-२१, १११४५- ११६०४-१३१ (२) सिद्धदण्डिकास्तव बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू.. (जे श्रीआदि) १११७५-१/सा ($) सिद्धदत्त कथा, सं., गद्य, मृपू ( प्राप्तव्य) १२४४२-५० सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण आ. देवेन्द्रसूरि प्रा. गा. ५०, पद्य, मूपू., (सिद्धं सिद) ११०९५(+), १२२८६ - १ (+), १२६५४(+), १२६५५, १२६५७, १२६५८-१, १३००८, १३०२२, १३०८९ (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- अवचूरि, सं., गद्य, मृपू.. (नवरं सिद्ध) १२६५७, १२६५८-१, १३०२२, १३०८९ (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- बालावबोध, मागु, गद्य, भूपू (सिद्ध आपण) ११०९५(+) " . (३) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- अवचूरि. सं., गद्य, ग्रुप.. (इहानन्तर) १२६५६-२ (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण-बालावबोध, आ. विद्यासागरसूरि, मागु., गद्य, मुपु. ( सिद्ध प्रा) १३००८ (२) सिद्धपञ्चाशिका प्रकरण- टवार्थ, मागु, गद्य, भूपु (सिद्ध कहता) १२२८६-१(+), १२६५४ (+), १२६५५ सिद्धपूजा, सं., पद्य, जै., (ॐ उर्ध्वा) ९३४७-५) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक, प्रा. गा. ११९. ग्रं. १३५, पद्य, मू.. (तिहुयणपणए) १०८५१, ११६३३-१ " (२) सिद्धप्राभृत प्रकीर्णक-टीका, स. प्र.८१५. गद्य, मृपू. (सकलभुवनेशभ) १०८५१, ११६३३-२ " सिद्धमातृका, आ. सिद्धसेनसूरि, सं., श्लोक १२८, पद्य, ग्रुपु. ( अहं विभुर) १२२१२ सिद्धहेमशब्दानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अध्याय ८, सूत्र ४६८५, ग्रं. २१८५, वि. ११९३, गद्य, मूपू., (अर्ह सिद) ११२९८-१), १२८५११) १२८९६) १३३१९ १३४२९ वा १३३१७ला १३३१८का १३३२० १३३१६ निक १०३३३०१, १२८९७४७, १३१३३ १३३१५- १३३१४, १३०७६, १३११८, १३११९, १३०५५ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-टीका', सं. गद्य, मृपू.. (-) ९५४३१ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-लघुढुण्ढिकावृत्ति, आ. मुनिशेखरसूरि, सं., अध्याय ७, ग्रं. ३६७५, गद्य, मूपू., (प्रणम्य ) १३३२२ (२) सिद्धमशब्दानुशासन-स्वोपज्ञ लघुवृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं. ६०००, गद्य, मूपू., (अर्हमित्ये) ११२९८ - १) ११२४७) १३३२१, १०८२९शि (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन- स्वोपज्ञ तत्त्वप्रकाशिका बृहद्वृत्ति, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. १८०००, वि. ११९३, गद्य, मृपू., ( प्रणम्य पर) १२८९६४० १३३१९ १३३१४ , Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-तत्त्वप्रकाशिकावृहद्वृत्ति की न्याससारसमुद्धार टीका, आ. कनकप्रभसूरि सं. वि. १२९८, गद्य, मूपू., ( प्रणम्य के) १२९२९(+), १३०५५ (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन स्वोपद्म तत्त्वप्रकाशिकावृहद्वृत्ति का तत्त्वप्रकाशिकाप्रकाश शब्दमहार्णवन्यास आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, गद्य, मूपू., (श्रीमन्तमज) १२९००, १२९७२ ५५५ (३) न्यायसङ्ग्रह, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. सूत्र ४ ५०, गद्य, भूपू., ( स्वं रूप) १३१५२-१४० १३०९१, १३१३२-१ (४) न्यायसङ्ग्रह-न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वृत्ति, गणि हेमहंस, सं., वक्षस्कार, ग्र.३२०६, वि. १५१५ गद्य, मूपू (त्रैलोक्या) १३१५२ - २ (+), १३०९१, १३१३२-२ (५) न्यायसङ्ग्रह न्यायार्थमञ्जूषा टीका का न्यास# गणि हेमहंस, सं., ग्रं. १२००, गद्य, मूपू., ( श्रीजिनवरग) १२८७३ (+) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन अवपुरि, सं. १-६ पाद, गद्य, मृ.. (प्रणम्य) ११३०३) (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन- आख्यात अवरि सं., गद्य, मृ.. (वृद्ध वृद) १०७१४ (२) कविकल्पद्रुम, मु. हर्षकुल, सं., अध्याय ११, पद्य, मृपू. (अर्ट प्रण) १२९६८-१) (३) कविकल्पद्रुम-टीका, मु. हर्षकुल, सं., गद्य, मूपू., (अथ सौत्रा) १२९६८ - २ (+) ' (२) क्रियारत्नसमुच्चय आ. गुणरत्नसूरि, स. ग्रं.५६६१, वि. १४६६. गद्य, मृपू., (जयति जिनवर) १२८५ला १३०९२. १३१५१, १२८६९ " (३) क्रियारत्नसमुच्चय-बीजक, आ. गुणरत्नसूरि, सं. गद्य, मृपू.. (--) १२८५४) १३०९२, १३१५१, १२८६९ (२) हैमविभ्रम, सं., श्लोक २१, पद्य, मूपू., (कस्य धातोस ) १२९७०, १३३४४ (३) हैमविभ्रम-तत्वप्रकाशिका टीका, आ. गुणचन्द्रसूरि सं.. ग्रं.६००, वि. १२००, गद्य, मूपू., ( निखिलजगदेक) १३३४४ (३) हैमविभ्रम- अवचूरि, मु. चारित्रसिंह, सं., वि. १६२५, गद्य, मूपू., ( नत्वा जिने ) १२९७० · (२) प्राकृत व्याकरण आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ४ पाद, सूत्र १११९, गद्य, मूपू., (अथ प्राकृत) १२८९८ (+), १२८९५/०३३ १२८७०, १२८९९ For Private And Personal Use Only (३) प्राकृतव्याकरण-स्वोपज्ञ प्राकृतप्रकाश टीका, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., पं.२१८५, गद्य, मृपू. (अथ शब्द आन) १२८९८(+), १२८९५ (+5), ९९५८ " Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५५६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ (३) सिद्धहमशब्दानुशासन-हिस्सा अष्टमअध्याय की सिद्धान्तहुण्डी, पं. सहजकुशल, प्रा., ग्रं.२०१६, गद्य, मूपू., व्युत्पत्तिदीपिका टीका, गणि उदयसौभाग्य, सं., गद्य, मूपू., (नमिऊण जिणव) १११२७+), ११३३७+7, १२११७, १२७५२ (यस्य क्रमन) १२८७०, १३१४५, १२८९९७) (२) सिद्धान्तहुण्डी-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीजिनादि) (२) धातुपारायण, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.६०३, । १११२७+), १२११७ गद्य, मूपू., (अहँ भू) १३१११, १३३२३, १३३२४, १३३२५ सिद्धिप्रिय स्तोत्र, आ. देवनन्दी, सं., श्लोक २६, ईस. ६वी , पद्य, (३) धातुपारायण-अवचूरि, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ___ दि.. (सिद्धिप्रि) १०१०८-१ गद्य, मूपू., (इह पूर्वाच) १३३२४, १३३२५ सिन्दूरप्रकर, आ. सोमप्रभसूरि, सं., श्लोक १००, पद्य, मूपू., (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि (सिंदूरप्रक) १११५५(+). १२२७०-१(+), १२२७४(+), १२२८१(+), कलिकालसर्वज्ञ, सं., सूत्र १००६, वि. १२वी, गद्य, मूपू., १२२८२(१), १२२८३-१(+), १२२८४), १३२४५(+), १२६१२-१(+), (कृवापाजिस) १२८५५६६) ९४८०+६), ९३४५, ९६६९, ११०८४, १११०८-१, १२२७२, (३) सिद्धहेमशब्दानुशासन-उणादिगणसूत्र का स्वोपज्ञ विवरण, १२२८५-१, १२२७३-१, १०४३७, ९५०७७ आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., ग्रं.३२५०, वि. १२वी, । (२) सिन्दूरप्रकर-टीका, सं., गद्य, मूपू.. (पार्श्वप्र) १२२७०-१(4) गद्य, मूपू., (करोतीत्याद) १२९६९(+), १२८५५(६) (२) सिन्दूरप्रकर-टीका, आ. हर्षकीर्तिसूरि, सं., वि. १६५५, गद्य, (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमपरिभाषासूत्र, आ. हेमचन्द्रसूरि ___ मूपू., (श्रीमत्पार) ९४८०+5), १२२७२, १२२७३-१ कलिकालसर्वज्ञ, सं., वि. १२वी, पद्य, (स्वं स्व)-<प्रतहीन.> (२) सिन्दूरप्रकर-पद्यानुवाद भाषा, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., गा. (३) परिभाषासूत्र-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (पञ्चम्या) १२८७२(+) १०१, वि. १६९१, पद्य, दि., (सोभिततपगजर) १०७३६-१(+), (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-चन्द्रप्रभा प्रक्रिया, उपा. मेघविजय, १०३०३-१(4). ९७६६ सं., ग्रं.१८०००, वि. १७५७, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १३१५३(+), | (२) सिन्दूरप्रकर-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (सिन्दूरनो) १३३४३(+), १३४०७+), १३१३३६+६) १२२८१(+), ९६६९, १०४३७ (२) सिद्धहेमशब्दानुशासन-हैमलघुप्रक्रिया, उपा. विनयविजय , (२) सिन्दूरप्रकर-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सिन्दूरनउ) सं., वि. १७१०, गद्य, मूपू., (अर्हमित्यक) १०७०४(+), १०१४८, १२२८२), १२२८३-१(+), ९३४५ १०१४३(5) (२) सिन्दूरप्रकर-बालावबोध व कथा, पाठक राजशील, सं.,मागु., सिद्धान्तप्रकरण, मु. धनविजय, सं.,हिन्दी, गद्य, मूपू., __ गद्य, मूपू., (शारदाचरणयु) १२२८४(१) (शिवायोर्वी) ११९६९) (२) सिन्दूरप्रकर-कथा , मागु., गद्य, मूपू., (यतः येषां) ९३४५, सिद्धान्तविचार सङ्ग्रह, सं.,प्रा., प+ग, जै., (धर्माधर्मा) ११२३१ १०४३७ सिद्धान्त विधि, मागु.,प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (से नूणं तम) ११३६३ सिरिसिरिवाल कहा, आ. रत्नशेखरसूरि, प्रा., गा. १३४१, सिद्धान्तषट्त्रिंशिका, सं.,प्रा.,मागु., ३६अधिकार, प+ग, मूपू., ग्रं.१६७५, वि. १४२८, पद्य, मूपू., (अरिहाइ नवप) १२४१२, (प्रथमं ताव) १२७३७१०, १२७३६, १३०२४ १२४१५), १२४३६(+), १२४१७(+), १२३९०, १२४३५ सिद्धान्तसमुच्चय, सं.प्रा., प+ग, मूपू., (अन्नत्थणाभ) १३०६६-१ | (२) सिरिसिरिवाल कहा-अवचूरी, मु. हेमचन्द्र, सं., ग्रं.४०२२, सिद्धान्तसार, सं.,मागु., गद्य, जै., (तथा त्रिवि) १२८४९ गद्य, मूपू., (ध्यात्वा) १२४१२(+), १२४३६(+) सिद्धान्तसार, ऋ. कनीरामजी, प्रा., वि. १९०६, पद्य, स्था., (-) | (२) श्रीपाल चरित्र, ऋ. केशव, सं., वि. १८७७, गद्य, मूपू., ९७८६(+$) (प्रणम्य वी) १३२०५(+), १३२०९(+) (२) सिद्धान्तसार-बालावबोध, मागु., गद्य, स्था., (--) ९७८६+६) । (३) श्रीपाल चरित्र-सिद्धचक्र यन्त्र, सं., यंत्र, मूपू., (-) सिद्धान्तसार, आ. सकलकीर्तिसूरि, सं., पद्य, दि., (श्रीमन्तं) १३२०५(क) १३१५४(६) (२) श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ४०, ग्रं.११३१, वि. सिद्धान्तसार चर्चा-तेरापन्थमत निरसन, प्रा., गद्य, स्था., १७२६, पद्य, मूपू.. (सकल सुरासु) ९९९२(+) (अणाणाए एगे) ९७३७+5) सीकवरणीज्ञान श्लोक, सं., श्लोक १, पद्य, मूपू., (परिधावह्नि) (२) सिद्धान्तसार चर्चा-टबार्थ, मु. दुलीचन्द रतनेश, मागु., वि. १३२८१-३(5) १९०६, गद्य, स्था., (तेरापन्थिय) ९७३७+5) सीमन्धरजिन स्तुति, प्रा., गा. ४, पद्य, मूपू., (जोरज्यं पव) सिद्धान्तसारोद्धार-देवतत्त्वस्थापनाअधिकार, उपा. कमलसंयम, १०९७७-८ मागु.,प्रा.,सं., गद्य, मूपू., (संवत १५०८) ९५०४-२, १०८६०-२ | सीलसन्धि, आ. जयशेखरसूरि, प्रा., गा. ३४, ईस. १४३७, पद्य, For Private And Personal Use Only Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९५७७ ९३९६६) १०७९३(45) संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट- १ ५ ५७ मूपू., (सिरिनेमिजि) १२१६२-११(६) मूपू.. (सकलसुकृत्य) ९६४६(५), १२४५७+), ९४५५, ९६९२, सुकृतसागर, गणि रत्नमण्डन, सं., ८ तरंग, ग्रं.१४५६, वि. १५वी, १०४००-१, ९८४९-१, ९६३७६), १००१८(5) पद्य, मूपू.. (कल्पद्रव) १३२१९(5) (२) सूक्तमाला-बालावबोध', मागु., गद्य, जै., (सकल सर्व) सुदर्शन चरित्र, मु. सकलकीर्ति, सं., ८परिच्छेद, पद्य, मूपू., (नमः १०४००-१ श्रीवर) १३२२० (२) सूक्तमाला-टबार्थ, मु. धर्मनाम, मागु., वि. १८२७, गद्य, मूपू., सुदर्शनश्रेष्ठि कथा, सं., गद्य, मूपू., (मुणिउं तस) १२५३१-५ (सघलि पुण्य) १२४५७) सुदर्शना चरित्र, आ. देवेन्द्रसुरि, प्रा., अध्याय १६, गा. ४०५३, सूक्तमुक्तावली, सं., , मूपू., (-) १२२९९ ___पद्य, मूपू., (वन्दितु सु) १२४१८(+), १२४३७ सूक्तावली, सं., श्लोक ७७८, पद्य, मूपू., (अर्हन्तो) १०२९३५), (२) सुदर्शनासती चरित्र-टबार्थ, मु. वल्लभविजय, मागु., गद्य, मूपू.. (मुनिसुव्रत) १२४३७ सूक्तावली, सं., श्लोक १३८, पद्य, जै., (राज्यं निः) १०७९३(48), सुनन्दासती कथा, सं., गद्य, मूपू., (मगधदेशे कु) १२५३१-६ सुपासनाह चरिअं, गणि लक्ष्मण, प्रा., गा. ८६५०, ग्रं.१०१३८, वि. (२) सूक्तावली सङ्ग्रह-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (राज्य प्रध) ११९९, पद्य, मूपू.. (जयइ जुयाईज) १२३९१७) सुभद्रासती कथा, सं., श्लोक ६१, पद्य, मूपू., (अस्ति दत्त) सूक्तावली, प्रा., पद्य, मूपू., (सव्व कला) १०९५२(+) १२४८०-१{+#) सूक्तावली सङ्ग्रह, मागु.,प्रा., गा. १०७४, पद्य, मूपू., (कीजइ सुभद्रासती कथा, सं., गद्य, मूपू., (सुभद्रा दृ) १२५३१-३ धर्म) १२२८९६) सुभाषित श्लोक, सं.,मागु., श्लोक २, पद्य, जै., (अपुत्रस्य) सूक्ष्मनिगोद विचार, प्रा., गा. ३, पद्य, मूपू., (लोए असङ्खज) १११२२-३ १०९७३-२, १२२२२-२ सुभाषित श्लोक सङ्ग्रहः, प्रा.,सं.,मागु., पद्य, जै., (-) ९८७१- (२) सुक्ष्मनिगोदविचार विवरण-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ए १६), ९८७१-३(३) चउद राजप) १२२२२-२ सुभाषित श्लोक सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., श्लोक ७१५, ग्रं.२५५१, | (२) सूक्ष्मनिगोद विचार-बालावबोध, मागु., गद्य, जै., (ए पद्य, जै., (दानं सुपात) ९४६२(+), १३०४६(45), १२२९३ चउदराज) १०९७३-२ (२) सूक्तावली-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (सकल क० समस) सूक्ष्मार्थविचारसारोद्धार, गणि जिनवल्लभ, प्रा., गा. १५०, पद्य, १२२९३ मूपू., (सयलन्तरारि) १२२८७-२(+) सुभाषित सङ्ग्रह, सं., श्लोक १९५३, पद्य, जै., (वीरं विश्व) सूत्रकृताङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., अध्याय २३, ग्रं.२१००, १०८४५ प+ग, मूपू., (बुज्झिज्ज) १०२३८(+), ११४३४१), ११४३५(+), सुभाषित सङ्ग्रह-, सं.,मागु..प्रा., पद्य, (-) १०७४६-२ ११४३६(+). ११४३०+), ११३४५-१५), १०७५२, ११४२८-१, सुभाषित सङ्ग्रह, प्रा.,सं., गा. ७३, पद्य, मूपू., (नवि ते पार) ११४२९, ११४३०, १०७७३, १०३४६, १०७६९, ११४३३, १०७८५-३(+) ११४३८, १०३४७५), ११४३२(5) सुभाषित सङ्ग्रह', सं.,प्रा.,मागु., प+ग, जै., (ॐकारबिन्द) (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-नियुक्ति, आ. भद्रबाहुस्वामी, प्रा., गा. २०५, १०७७१(-) ___ पद्य, मूपू., (तित्थयरे) ११४२८-२ सुमित्रकेवली चरित्र, आ. ईश्वरसूरि, सं., वि. १५८१, पद्य, मूपू., (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-दीपिका वृत्ति, मु. हर्षकुल, सं., ग्रं.७०००, (श्रीनाभिभू) १२४१९(5) वि. १५८३, गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १०२३८(+) सुरदत्त कमलसेन कथा-अदत्तादान विषये, सं., गद्य, जै., (नादत्तं | (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-बृहद्वृत्ति#, आ. शीलाङ्काचार्य, सं.. गृ) १२५१२-८(5) ग्रं.१२८५०, वि. १०वी, गद्य, मूपू., (स्वपरसमयार) ११४३१(+), सुलसा चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं., सर्ग ८, श्लोक ७४०, ११४३०, ११४३२(5) पद्य, मूपू., (अहँ नमस) १३११४, १३३०४ (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-सम्यक्त्वदीपिका टीका, उपा. साधुरङ्ग, सुलसासती कथा, सं., गद्य, मूपू.. (सिरिवद्धमा) १२५३१-१ सं., अध्याय २३, वि. १५९९, गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर) ११४३३ सुसढ कथानक-यतनाविषये, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., गा. ५१८, पद्य, | (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-बालावबोध, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (रायगिहे गु) १२४५१(+), १२४६६५), १२४२१ मूपू., (प्रणम्य सद) ११४३६), ११४३००, ११४३८ सूक्तमाला, मु. केशरविमल, सं.,मागु., ४ वर्ग, वि. १७५४, पद्य, (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (बुज्झि० छक) For Private And Personal Use Only Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९५२९-६(5) ५५८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ ११४३४+), ११४३५(+), १०३४७) मूपू., (-) ९७४९-२(+) (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा वीरस्तुति अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, | (२) स्थानाङ्गसूत्र-दीपिकाटीका, मु. मेघराज, सं., १०स्थान, प्रा., गा. २९, पद्य, मूपू., (पुछिंसुण) ९६५१, ११८१७-१, ग्रं.११९१७, वि. १६५९, गद्य, मूपू., (वर्द्धमानो) ११४४४(+) (२) स्थानाङ्गसूत्र-अवचूरि, सं., गद्य, मूपू., (एको नह्याद) ९४०९ (२) सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन, आ. सुधर्मास्वामी, । (२) स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीसुधर्म) ११४४५ __प्रा., गा. ५५, पद्य, मूपू., (पुरेकडं अद) १२४७३(+) (२) स्थानाङ्गसूत्र-टबार्थ, उपा. मेघराज, मागु., ग्रं.१३५००, गद्य, (३) सूत्रकृताङ्गसूत्र-हिस्सा अद्दइज्ज अध्ययन-टबार्थ, मागु.. मूपू.. (श्रीमद्वीर) ९९३४(+), ९३६१ ___ गद्य, मूपू., (पूर्विइ) १२४७३(+) । (२) स्थानाङ्गसूत्र-बोल, मागु., गद्य, मूपू., (एगे अरिहन) सूरपाल कथा, सं., गद्य, मूपू., (दानधर्मधुर) १२४८२-६(+) ११४४७, १११४३ सूरराजा कथा, सं., गद्य, मूपू., (जम्बूद्वीप) १२४८४-२६) स्थूलिभद्र चरित्र, आ. जयानन्दसूरि, सं., श्लोक ६८४, पद्य, मूपू., सूर्यप्रज्ञप्ति, प्रा., २० प्राभृत, ग्रं.२२००, गद्य, मूपू., (नमो अरि०) (वीरोवर्यः) १०००३, १२४२०, १२४२२ ९९३१, १०९९५ (२) स्थूलिभद्र चरित्र-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (वीर परमेश) (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टीका, आ. मलयगिरिसूरि , सं., ग्रं.९०००, गद्य, १२४२० मूपू., (यथास्थितं) ११६३६ स्नात्रपञ्चाशिका, गणि शुभशील, सं., श्लोक ५०, पद्य, मूपू., (२) सूर्यप्रज्ञप्ति-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (तेणे काले) ९९३१ (प्रणम्य) १२९९७ सूर्ययशा चरित्र, सं., श्लोक १५७, पद्य, मूपू., (अथ सूर्ययश) (२) स्नात्रपञ्चाशिका-कथा, मागु., ५० कथा, गद्य, मूपू., (श्रीपुर १३१७५, १३१९३ नग) १२९९७ सूर्याष्टक, कवि सिंह, सं., श्लोक १५, पद्य, वै., (रक्तवर्ण) स्नात्र पूजा, श्रा. देपाल भोजक, मागु.प्रा., ५ कुसुमांजलि, वि. १३७१४-१६ १६वी, पद्य, मूपू., (पवित्र उदक) ११३९३ सूर्योदयपूर्वे १० पडिलेहण गाथा, प्रा., गा. १, पद्य, मूपू., स्नात्रपूजा सङ्ग्रह, मु. भिन्न भिन्न कर्तृक, सं.,प्रा.,मागु., प+ग, (मुहपत्ती) १२६०१-४(4) मुपू., (नमो अरिहन) १०५९०-९(+), १०३११, ९७२५-१(१) सोमसुन्दरसूरि स्तुति, गणि प्रतिष्ठाकल्याण, सं., श्लोक १, वि. स्नात्रपूजा सविधि, सं.,मागु., पद्य, मूपू.. (पूर्वे तथा) १२७३२(१), १५२४, पद्य, मूपू., (यस्य भ्रश) ११७८७-३ १०८७६, ११२६१-१, १२७३३ सोमसौभाग्यकाव्य, मु. प्रतिष्ठासोम, सं., सर्ग १०, ग्रं.१३००, वि. स्नात्रविधिपञ्जिका, आ. शान्तिसूरि, सं., ५ पर्व, गद्य, मूपू., १५२४, पद्य, मूपू., (श्रीनाभिभू) १३४५६(4) (अर्पितमनर) १२७४०), १२९३८ स्तुतिचतुर्विंशतिका, आ. बप्पभट्टसूरि, सं., २४ स्तुति जोडा., (२) स्नात्रविधि-व्याख्या, सं., गद्य, मूपू., (गुरुगरिमगु) १२७४०) श्लोक ९६, पद्य, मूपू., (नमेन्द्र) ११२५६ स्यादिशब्दसमुच्चय, आ. अमरचन्द्रसूरि, सं., ४ उल्लास, पद्य, (२) स्तुतिचतुर्विंशतिका-वृत्ति, सं., गद्य, मूपू., (नाभेयरपत्य) __मूपू., (श्रीशारदां) १३३४२(45) ११२५६ स्याद्वाद कलिका, आ. राजशेखरसूरि, सं., श्लोक ४०, पद्य, मूपू., स्तुतिचतुर्विंशतिका, मु. शोभनमुनि, सं., २४ स्तुतिजोडा, श्लोक (षद्रव्यज) १२०८३-२ ९६, पद्य, मूपू., (भव्याम्भोज) १०९७७-१, ११२२०, ११३७१ स्याद्वाद भाषा, गणि शुभविजय, सं., वि. १६६७, गद्य, मूपू., स्तोत्र, सं., श्लोक ४, पद्य, (सरसा सघना) ९५३७-११(६) (श्रीमद्वीर) १३०७०+), १३०९३ स्थविरावली सज्झाय, प्रा., गा. २७, पद्य, मूपू., (सुहम्मं अग) स्याद्वादमुक्तावली, पं. यशस्वत्सागर, सं.,४स्तबक, पद्य, मूपू., १०९२७-५ (प्रणम्य शङ) १२८५० स्थानाङ्गसूत्र, आ. सुधर्मास्वामी, प्रा., १०स्थान, ग्रं.३७००, प+ग, स्वप्नसप्ततिका, प्रा., गा.७१, पद्य, मूपू.. (एवं विसिट) १३६३० मूपू., (सुयं मे आउ) ९९३४(+), ११४३९(+), ९३६१, १०७५७, (२) स्वप्नसप्ततिका-वृत्ति, आ. सर्वदेवसूरि, सं., ग्रं.८००, वि. ११४४०, ११४४२, ११४४३, ११४४५, १०५६३ १२८७, गद्य, मूपू., (अधुना क्रि) १३६३० (२) स्थानाङ्गसूत्र-टीका, आ. अभयदेवसूरि , सं., १०स्थान, हम्मीरमदमर्दन नाटक, आ. जयसिंहसूरि, सं., ५ अंक, ग्रं.९००, ग्रं.१४२५०, वि. ११२०, गद्य, मूपू., (श्रीवीर) ११४४१६५), वि. १२८६, गद्य, मूपू., (रोहन्मोहतम) १३२२७-१ १०५६३ हरिवंशपुराण, मु. ब्रह्मजिनदास, सं., सर्ग ३९, पद्य, दि., (सिद्ध (३) स्थानाङ्गसूत्र-अभयदेवीयाटीका का टिप्पण', हिन्दी, गद्य, | सम) ९३४०-१ For Private And Personal Use Only Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: संस्कृत, प्राकृत व अपभ्रंश भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-१ हरिविक्रम चरित्र, आ. जयतिलकसूरि, सं. सर्ग १२ श्लोक ४७५०, पद्य, मूपू., ( श्रीतीर्था) १३२२३ हस्तरेखा लक्षण, प्रा., गा. ६४, पद्य, भूपू (पणमिय जिणम) १३५०४-१ हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय, सं. ४प्रकाश, गद्य, मूपू., (स्वस्ति) १२७८४(+), १२९५२-१(+), १२७८३ (+), १३२८२, १२९५३ (२) हीरप्रश्न- बीजक, सं., गद्य, मृपू., (तत्र प्रथम ) १२९५२-२ हुण्डकचोर कथा, सं., श्लोक ४८, पद्य, जै., (पापिष्ट चौ) ९९१०-५, १२४७१-५ हुण्डिका ग्रन्थ, उपा. जयसोम, प्रा., सं., वि. १६५७, पद्य, मृपू., (--) ९५०५ हेतुसिद्धि, सं., गद्य, मूपू., ( समस्तुतिसम) १२६७३-३ हैमलिङ्गानुशासन, आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं., अध्याय ८, श्लोक १३९. वि. १२वी, परा मृपू. (पुल्लिङ्ग) १२८६७) १२८६८), परबग १३१६८(क) १२८७७/१ . " १२९७६ (+), १३३२७(+), १२८७९, १३१२०, १३३२६ (२) हैमलिङ्गानुशासन- दुर्गपदप्रबोधवृत्ति वा वल्लभ वाचक, सं., ग्रं. २०००, वि. १६६१, गद्य, मृपू. (स्वस्तिश्र) १३३२४ (२) हेमलिङ्‌गानुशासन- अवचूरि, आ. रत्नशेखराचार्य, सं., गद्य, मूपू., (कटणथपट्टमयरष) १२८७८ . (२) हैमलिङ्गानुशासन स्वोपद्मा विवरण आ. हेमचन्द्रसूरि कलिकालसर्वज्ञ, सं. ग्रं. ३३००, गद्य, मृपू. (श्रीसिद्धह) १२८६६ (+), १२९७५ (+), १३३२८ (+), १२९७६(+), १२८७५, १२८७६ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५५९ (३) हैमलिङ्गानुशासन- अवचूर्णि, सं., गद्य, भूपू.. (कटणथपममयरण) १२८७९, १३१२० होलिकापर्व कथा, सं., श्लोक ६५, परा, भूपु (ऋषभस्वामिन १३१७१ - १४(+), १२५४७, १२५४८ (२) होलिकापर्व कथा-टवार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (ऋषभ स्वामी) १२५४७, १२५४८ होलिकापर्व कथा, आ. जिनसुन्दरसूरि से, श्लोक ५३, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानज) १२५६१-३ होलिकापर्व प्रबन्ध, गणि पुण्यराज, सं., श्लोक ३४, वि. १४८५, पद्य, मूपू., (प्रणम्य सम) १२४६३ (+), १२४६२, १२५६१-२ (२) होलिकापर्व प्रबन्ध-टवार्थ, मु. कान्तिविजय, मागु, गद्य, मृपू.. ( नमस्कार कर) १२४६३ (+) (२) होलिकापर्व प्रबन्ध-वार्थ, मु. कान्तिविजय, मागु, वि. १७९२, गद्य, मूपू., ( हे भविन हे ) १२४६२ होलीरजपर्व कथा, सं., श्लोक ५०, पद्य, मूपू., (श्रीवर्द्ध) १३१७११५ (+), ९८६४ (+), ९६२० (२) होलिपर्व कथा-टवार्थ, मागू., गद्य, जं. (श्रीमहावीर) ९८६४का (२) होलीरजपर्व कथा-टवार्थ, मागु., गद्य, भूपू., (वर्द्धमानस) For Private And Personal Use Only ९६२० होलीरजपर्व प्रबन्ध, गणि फतेन्द्रसागर, सं., श्लोक १३९, वि. १८२२, पद्य, मुपू., (श्रीवर्द्ध) १११४४ (२) होलीरजपर्व प्रबन्ध-स्वार्थ, मागु, गद्य, मृपू. (श्रीवर्धमा ) " १११४४ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ मा.गु., प्राचीन हिन्दी, राजस्थानी, गुजराती आदि देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट ४ जिन नमस्कार, मु. पद्मविजय, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (रिषभचंद्रा) १०४१८-४(4) ४ प्रत्येकबुद्ध रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड ४, ढाल-४५, गा. ८६२, ग्रं.११२०, वि. १६६५, पद्य, मूपू.. (सिद्धारथ) १०८२४, १३७५३, १०७३०, १३७४९, ९४६१) ४ प्रत्येकबुद्ध सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (चिहुं दीसथ) ९७००-१० ४ मङ्गल पद, मु. उदयरत्न, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., (सिद्धार्थ) १३७१४-१ ४ मङ्गल पद, कवि पद्मविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सासन देवता) १०५१५-१ ४ शरणा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., अध्याय ४, गा. १२, पद्य, मूपू.. (मुजने चार) १००२०-७६) ५ अणुव्रत भाङ्गा, मागु., गद्य, मूपू., (तथा श्रावक) ११२२२-३ ५ इन्द्रिय चौपाई, प्राहिं., ढाल ६, गा. १५४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रण) ९८३१ ५ कारण छढालिया, उपा. विनयविजय, मागु., ढाल ६, गा. ५८, वि. १७३२, पद्य, भूपू.. (सिद्धारथ) १०८८३(+) ५ कुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ६, गा. ३९, पद्य, मूपू.. (सेवो सदगुर) ११३०४-१) ५ बोल- वीतरागप्रतिमा आश्रयी, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीवीतराग) १०८८१ ६ काय विचार, मागु., गद्य, मूपू., (पृथ्वीकाय) १२७९४-१ ६ खण्डसाधनाकाल समय, मागु., गद्य, मूपू., (भरतने देश) १२०७०-३ ६ पल्लवी, मागु., गद्य, मूपू., (अङ्क पल्लव) ९४४३-५० ७ व्यसन सज्झाय, मु. किसनदास, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (सात विसन) ९५७२-२१ ८ कर्म १५८ प्रकृति विचार, मागु., गद्य, मूपू., (मूल कर्म) १०७९६, १०५४५०, ९७३९६) ८ कर्म ३० बोल विवरण, मागु., गद्य, मूपू., (ज्ञानावरणी) ११३१९ ८ कर्म विचार, मागु., गद्य, जै., (ज्ञानावरणी) १२७८८-३७) ८ प्रकारी पूजा, मागु., पद्य, मूपू., (स्वस्ति) १०५९०-२१ ८ प्रकारी पूजा, मु. कीर्तिविमल, मागु., ढाल ८, वि. १८२१, पद्य, मूपू.. (अजर अमर अक) ११३८९-२) ८ प्रकारी पूजा, मु. देवविजय, मागु., ढाल ९+कलश, गा. ७७, वि. १८२१, पद्य, मूपू., (अजर अमर नि) १०५९०-१, १०९७४१, १०७९५(५) ८ प्रकारी पूजा-पिस्तालीसआगमगर्भित, पं. वीरविजय, मागु., वि. १८८१, पद्य, मूपू., (श्रीशद्धेश) १००३८, १०११९, १०३०६ १, ११०२८ ८ प्रकारी पूजा रास, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल ७८, वि. १७५५, पद्य, मूपू., (अजर अमर अव) १०२१६), १०३८५ ८ योगदृष्टिगुण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ८, गा. ७६, पद्य, मूपू.. (शिवसुख कार) ९८४४, ११३२७, १३२६८ (२) योगदृष्टि सज्झाय-बालावबोध, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्रे) ११३२७ (२) योगदृष्टि सज्झाय-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्रे) १३२६८ १० कल्पवृक्ष भेद, मागु., गद्य, मूपू., (मत्तङ्गकल) १२२२८-३ १० दान दोहरा, प्राहि., गा. १४, पद्य, जै., (गो सुवर्ण) १०३०३ २७), १०७३६-२७० १० दृष्टान्त गीत, आ. सोमविमलसूरि, मागु., ढाल १०, पद्य, मूपू.. (सरसति मझ) १०३५३ | १० पच्चक्खाणफल स्तवन, पं. रामचन्द्र गणि, मागु., ढाल ३, गा. ३३, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (सिद्धारथनन) १३१७१-२३१ १० बोल, प्राहिं., गा. १२, पद्य, जै., (जिन की बात) १०३०३ २८), १०७३६-२८) १० यतिधर्म सज्झाय, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ११, गा. १३६, पद्य, मूपू., (सुकृत लत्त) १०२८७, १०३०२-१, १०४२६, १०७८९, ११३९५ १० श्रावक सज्झाय, गढमल, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (आनन्दे आणन) १३१७१-२१ १० स्थान बोल-आनन्दादि दशश्रावक, मागु., गद्य, जै., (मन ठामि रा) ११२२२-१, ९५६९ ११ गणधर देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, मूपू., (बिरुद धरी) ११०८७ ११ रुद्र विचार, मागु., गद्य, मूपू., (रिषभदेवनइ) १२१३७-२ १२ आरा रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., ढाल १२, गा. ७७, वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवत) १०२४८, १०५१५-२, १०५२४, ११३६६ १२ देवलोकइन्द्र सङ्ख्या , मागु., गद्य, स्पू., (पहिले देवल) ११२२२-४ For Private And Personal Use Only Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ १२ पुनम विचार, मागु., गद्य, (चैत्री पून) ११०६७-५ (+) १२ भावना, मु. विद्याधर, मागु., ढाल १२, पद्य, मुपू., (पहिलीय भाव) ९५७८ १२ भावना सज्झाय, उपा. जयसोम, मागु., ढाल १३, गा. १२८, ग्रं. २००, वि. १७०३, पद्य, मूपू., ( पास जिणेसर) १०९७१, ११०२७, १११०५, ११२१८, ९७८३ (# ) १२ भावना सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., ढाल १४, पद्य, मूपू., (विमल कुल ) १०२७२, १०८२८, १०९२९, ११२३७, १२११९-१, १०९०५-१, ९६७०-१ (8) १२ व्रत चौपाई, गणि गजलाभ, मागु., गा. ८४, वि. १५९७, पद्य, जै., (पहिलं प्र) १०६६४ १२ व्रत टीप, मागु., गद्य, मूपू., ( प्रथम सम्य) १०५१७ ($) १२ व्रत पूजा विधि, मु. वीरविजय, मागु., गा. १२४, वि. १८८७ पद्य, भूपू., (उच्चैर्गुण) १०४७५ १०५२८ ११३८५ १२ व्रतविचार रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., ढाल ८१, गा. ८६२, वि. १६६६, पद्य, मृपू., ( पास जिनेस) ११३१८ (+) १२ व्रत सज्झाय, पं. लावण्यसौभाग्य, मागु, पद्य, गुप् (परमानन्द) १०४४४ " १३ काठिया दोहरा, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. १८, पद्य, जै., (जे वट पारे) १०३०३-१८(+), १०७३६-१८ (+) १४ गुणठाणा २८ द्वार, मागु, २८ द्वार, गद्य, मुपु., (नामद्वार) १३१६६ १४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, जै., (तत्र प्रथम ) १०३६५ १४ गुणठाणा विचार, मागु., गद्य, मुपू., (श्रीसर्वज) १००३४ १४ गुणठाणा विवरण, मागु, गद्य, भूपू., ( जे कर्मनी) १०१६१-४ (२) १४ गुणठाणा विवरण- यन्त्र, कोष्टक, मूपू., (-) १०१६१४(S) " 3 www.kobatirth.org: १४ रत्न नाम, मागु., गद्य, मूपू., (खड्गरत्न) १०२९४-३ १४ रत्न नाम, मागु., गद्य, वै., (लक्ष्मी ति) ९५५२-४(+) १४ विद्या नाम, मागु, गद्य, ग्रुपु. ( विद्याकला ) ९४४३-४ (S+)* ($) १४ गुणठाणा सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., १४ सज्झाय, पद्य, मृपू. (ज्ञानिवाकर ) ११२०२-२ १४ गुणठाणा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (होई मिथ्य ) ११३११-३ " १४ गुणठाणे ५७ कर्मबन्धहेतु, मागु, गद्य, मुपु. ( मिथ्यात्व ) १२८०३-१, १२८०५-१ १४ गुण सज्झाय, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( जिन सवेनइ ) ९५७२-१० १४ जीव भेद विचार, मागु., गद्य, मुपू., ( सुक्ष्म एक) १३२८५ १४ नियम सज्झाय, मु. विवेकविजय, मागु., गा. १५, पद्य, भूपू., (सकल सार मे) ९४४३-२/१ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ स्वप्न विचार, मागु., गद्य, मूपू., (स्वप्न पाठ) ९६७७ १४ स्वप्न सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., पद्य, मुपू., (श्रीदेवतीर) १०३२४-२ १५ तिथि चोपाई, मु. तुलसी, मागु., गा. १६, पद्य, जै., (परिवा प्राथ) १०३०३-१७४१ १०७३६-१७ १६ सती सज्झाय, मागु., गा. ५, पद्य, मुपू., (शीतल जिणवर) ९७०७-२४१ ५६१ १६ सती सज्झाय, मु. टीकम, मागु., गा. १६, वि. १७७०, पद्य, जै., (श्रीऋषभ तण) ९७०७-२५९ ($) १६ सती सज्झाय, मु. मेघराज, मागु., १६ भास, पद्य, मूपू... ( जिन गुरु) १११९८ १७ भेदी पूजा, मु. अमरविबुध, मागु., पद्य, जै., (प्रथम प्रण) १०२४५ १७ भेदी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., ढाल १७, गा. १०८, पद्य, मू. (अरिहन्त ) १०५९०५ १०१९१, ११३४७, ९८५० (२) १७ भेदी पूजा-टबार्थ, मु. सुखसागर, मागु., गद्य, मूपू., (हवें स्नान) ११३४७, ९८५० १७ भेदी पूजा रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ९५, ग्रं. ७२२५, वि. १७९७, पद्य, मूपू., (सुख सम्पति) १०१७४(s) १७ भेदी पूजा सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ९, पद्य, मृपू., (सतर भेद) १००२९ ($) " (२) जिनप्रतिमामण्डन स्वाध्याय- बालावबोध, मागु., गद्य, मुपू., (-) १००२९९ ($) For Private And Personal Use Only १८ पापस्थानक निवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., १८ सज्झाय, ग्रं. २११, पद्य, मूपू., (पापस्थानक) १०२१०, १०४२८, ११०७१, ११३६२ (२) द्वेषपापस्थानक सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, गा. ९, पद्य, मुपू., (द्वेष न धर) ११११२-५ १८ बोल पत्रोत्तर, मागु., वि. १६७२, गद्य, मुपू., ( तत्त्वार्थ) १२७५ १८ भार वनस्पती गाथा, कवि शुभ, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (प्रथम कोडि) ११७२३-२ २० असमाधिस्थान सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिन आगम सा) १०८२३-३५ २० स्थानकतप विधि, मागु., गद्य, मूपू., ( श्रीदंयदर) १११८६ २० स्थानकतप स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ६, गा. ८१, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (जिनमुखपंकज) १०२६० मागु., २० स्थानक पूजा, आ. जिनहर्षसूरि, मागु., वि. १८७८, पद्य, मृपू., ( सुख सम्पति ) १३२५६ " २० स्थानक पूजा, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., ढाल २०, वि. १८४५, Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५६२ पद्य मृपू. श्रीशङ्खश) १०५९०-४० ११०६०-७, १०१२५. · १०१२६, ९७६९ २० स्थानक विचारसार रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १३१, गा. ३४०३, वि. १७४८, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि) १०१७० २१ प्रकारी पूजा, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., गा. १०५, पद्य, भूपू (प्रणम् १०५९०-११, १११३५ २२ अभक्ष्य ३२ अनन्तकाय सज्झाय, आ. लक्ष्मीरत्नसूरि, मा. गा. १०, पद्य, मूपू., (जिनशासन रे) १०११७-३ २३ पदवी गहुंली, मु. ऋषभविजय, मागु, गा. ११, पद्य, भू.. (सयल जिणेसर) १०५१२-१० २४ जिन ५ बोल स्तवन, मागु., ढाल ४, गा. २७, पद्य, मूपू., (जिनवरनइ ना ) ९५७२-१३ २४ जिन कलश, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (कलस निसुणो) १०९२७-७ २४ जिन गणधर सङ्ख्या स्तवन, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( पहिला वान ) ९५७२-११ २४ जिनगणधर सङ्ख्या स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु गा. ९. पद्य, मूपु. ( सरसती आपे ) १३७१४-२ " २४ जिन तीर्थमाला स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, " www.kobatirth.org: मागु., गा. २४, पद्य, मूपू., (शत्रुञ्जे) १०४१८-१३ (+) २४ जिन देववन्दन, मागु., अध्याय २४स्तवन + २४ स्तुत, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिन) १०२४४ २४ जिन नाम व जीवनाम-अनागत, मु. लब्धिउदय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., ( पहिला श्री) ९७०७-१०९ (३ २ (क) २४ जिननाम स्तवन, पण्डित ललितसागर, मागु., गा. ८, पद्य, मृपू. (ऋषभजिन पहि) ११६१०-४ " २४ जिन परिवार सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (चोवीस तीर) १३७१४-१२ २४ जिन स्तवन आ ज्ञानविमलसूरि, मागु.. गा. ५. परा, भूपू... " ( प्रह समे) १०८२३-७ २४ जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., गा. १५, वि. १८१६, पद्य, जै., (प्रातुकाले) ९४१७-१(+$) २४ जिन स्तवन, मु. रत्नसिंह, मागु., गा. १८, पद्य, जै., (प्रथम जिन ) ९५७२-१८ " २४ जिन स्तवन, मु. लालविनोद, मागु गा. ५, पद्य, जै., (जय जय आदि) ९६५७-७(+) २४ जिन स्तवन, मु. विनयचन्द, प्राहिं., गा. ८, वि. १८८३, पद्य, जे. (प्रभातसमय) २००७-७५ २४ जिन स्तवन- ऐरावत क्षेत्रगत, ऋ. भुधर, मागु., गा. १५, वि. १८१४, पद्य, जै., (प्रह समे) ९४१७-२(+5) २४ जिन स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. २९, पद्य, मूपू.. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ (ब्रह्मसुता) ११३९२ २४ जिन स्तुति, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. २७, पद्य, ( कनक तिलक) १०४१८-२, १०३७१-२ २४ दण्डक २३ द्वार विचार, मागु., गद्य, मूपू., (नारकी माहे) १२७९३-१ २४ दण्डक २४ द्वार विचार, मागु., कोष्टक, मूपू., ( दण्डक २४) १३१२२ २४ दण्डक २६ द्वार विचार, मागु., गद्य, मुपू., ( शरीर अवगाह) ११२५३, ९४७७/(5) २४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, मुपू., ( प्रथम नामद) ९९०९, १००९७-१, ११०६१-१, ११३२४, १२७९२ १ १३२८४-१, १०८८६, १२७८९, ९७५१, १२९५१ २४ दण्डक ३० द्वार विचार, मागु., गद्य, मूपू., (दण्डक लेश) ११०९२-१(+), १२७९०-१, १२७९१, १२८१८, १२९५०, १२७८८ मूपू... 9(5) २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह *, मागु., गद्य, मुपू., ( दण्डक २४) ११२७७, ११२९५, १२२०७ १२७९३-२ १२७९६१ १२७९८, १३२८६ २४ दण्डक यन्त्र, मागु., कोष्टक, मूपू., (-) १०१५१-२ (२) २४ दण्डक यन्त्र - विवरण, मागु., गद्य, मूपू., (उदारिक १) १०१५१-२ २४ दण्डक विचार, मागु., गद्य, मुपू., ( प्रथवीकायन) १२७९४ -२, भूपू., ( शुभ गुरू) १०११७-४ " १००३० ३२ आगमनाम सज्झाय, मु. खिमा, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (वीर जिणेस ) ९५७२-१६ ३२ सामायिकदोष सज्झाय, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( संयम घर सु) १०३०२-२ ३२ सामायिकदोष सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., गा. ९, पद्य, ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मुपू., ( एकविहं सञ) १२७८५ ३३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (सात्त भये) १३१६५ (+) ३४ अतिसय स्तवन, मु. कान्ह, मागु., ढाल २, गा. १५, वि. १६५२, पद्य, जं., (पाय वन्दिय ) ९५७२-८ For Private And Personal Use Only ४५ आगम स्तवन, मु. रूपविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (भवि तुमे) १०१२९-३ 3 (5) ५० जिन स्तवन, मागु, गा. १४, पद्य, मुपु. ( जिनवर चरणे) ९५७२-१५ ६८ आगम पूजा, कवि दीपविजय, मागु., वि. १८५६, पद्य, मूपू., (प्रथम विशा) १०५०८ ७२ कला नाम, मागु, गद्य, भूपू., (लेखककला भण) ९४४३-३ ७२ जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., गा. १७, पद्य, जै., Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६३ (श्रीअरिहन) ९४१७-३६) मूपू., (अट्ठ महासि) ११२३४-१, १३७१६-१ ९६ जिन स्तवन, आ. जिनचन्द्रसूरि, मागु., ढाल ५, वि. १७४३, अजितजिन छन्द, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, वि. १६७०, पद्य, मूपू., (वरतमान चोव) ९६५७-६(+) पद्य, दि., (गोयम गनहर) १०३०३-३५०, १०७३६-३५) ९९ प्रकारी पूजा- शत्रुञ्जयमहिमा गर्भित, पं. वीरविजय, मागु., अजितजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ढाल ११+कळश, वि. १८८४, पद्य, मूपू., (श्रीशद्धेश) (श्रीजितशत) ९९२१-४६) १०४५५), १०५३८५, १०४२७, १०५४६, ११०५० अजितजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., १५८ कर्मप्रकृति सज्झाय, मु. मणिविजय, मागु., ढाल २, गा. २२, | (वालो अजित) १०५१२-२१ __ पद्य, मूपू.. (श्रीशङ्खश) ११२०२-१, ११११२-१ अजितजिन स्तवन, मु. कान्ह, मागु., गा. १०, वि. १६६२, पद्य, १७० जिननाम स्तवन, मु. देवविजय, मागु., ढाल ६, गा. ५२, वि. जै., (अजित जिनवर) ९५७२-९ १७१६, पद्य, मूपू., (कास्मेरी) १०२५९ अजितजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., १७० जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., पद्य, जै., (प्रह समे) ९४१७- (अजित जिन) १०८२३-४ अजितजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ५६३ जीव भेद विचार, मागु., गद्य, मूपू., (उंचा लोक) १०९७३-३ | (श्रीअजितजि) १३१२३-५ अंजनासुन्दरी चौपाई, पं. हंसहर्ष, मागु., वि. १७०९, पद्य, मूपू., । अजितजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) १०४१२-१(4) (अजितजिणन्द) १०४१८-९१) अंजनासुन्दरी रास, मागु., गा. १६५, पद्य, मूपू., (शील समो वड) | अजितजिन स्तवन, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मेरो ९८४५, ९९१३ सफल) ९५७२-४ अंजनासुन्दरी रास, मु. नरेन्द्रकीर्ति, मागु., वि. १६५२, पद्य, दि., अजितजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (आज (-) १०८८९ __आनन्द) ९९२१-५(45) अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., ३/२२ ढाल, गा. अजितजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., ६३२, वि. १६८९, पद्य, मूपू.. (गणधर गौतम) १३७१८), (जितशत्रु) ९९२१-६ १३७१९(4), ९६४८) अजितसेनकनकावती रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ४३, गा. अंजनासुन्दरी रास, मु. शान्तिकुशल, मागु., गा. ५७१, वि. ७५८, ग्रं.१०१४, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्त) १०८४४, १६६७, पद्य, मूपू., (सरस वचन वर) १११९३ १३७१७ अक्षयनिधितप खमासमण दूहा, पं. वीरविजय, मागु., गा. २६, अजीव ५३० भेद, मागु., गद्य, मूपू., (कालावरण मा) १२७८८-२(9) पद्य, मूपू., (सुखकर सङ्ख) ११३९१-२, १३२०३-२, ९७१७- अणगारगुणवन्दन स्तुति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (पापपन्थ पर) १०२६६-४ अक्षयनिधितप विधि, मागु., पद्य, मूपू., (प्रथम इरिय) ११३९१-४, अतिचार आलोयणा-रात्रिदिवसगत, मागु., गद्य, मूपू., (आजुणा १३२०३-४, ९७१७-४० चौपह) ११६७७-३९ अक्षयनिधितप स्तवन, पं. वीरविजय, मागु., ढाल ५, गा. ५१, वि. अतिचारशुद्धि प्रायश्चित, मागु., गद्य, मूपू., (ज्ञानाशातन) १८७१, पद्य, मूपू., (श्रीशङ्खश) ११३९१-१, १३२०३-१, १३१७१-२६) ९७१७-१(१) अध्यात्मगीता, गणि देवचन्द्र, मागु., गा. ४९, पद्य, मूपू., अक्षरबावनी, वा. किशन, प्राहिं., गा.६१, वि. १७६७, पद्य, जै., (प्रणमियै) १३२७३१, ११३८३, १२१२१, १२४२६, १३२७४ (ॐकार अमर) १२६७० (२) अध्यात्मगीता-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रणमीये) अक्षरबावनी , मु. केशवदास, प्राहि., गा. ६२, वि. १७३६, पद्य, १३२७३० मूपू., (ॐकार सदा) १२६७१(+) (२) अध्यात्मगीता-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणमियै) १३२७४ अक्षौहिणीसैन्य मान, मागु., कोष्टक, मूपू., (६५६१०० रथ) अध्यात्म फाग, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. १८, पद्य, जै., १२७९७-२ (अध्यातम बि) १०३०३-१६१, १०७३६-१६(१) अगडदत्त चौपाई, मु. ललितकीर्ति, मागु., ढाल १७, गा. ३९६, अध्यात्मवत्रीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ३२, पद्य, जै., वि. १६७९, पद्य, मूपू., (नाभिमहीपति) १३७१५७ (सुध वचन सद) १०३०३-१२), १०७३६-१२(+) अजापुत्र चौपाई, मु. धर्मदेव, मागु., गा. ३८२, वि. १५६१, पद्य, | अध्यात्मसार प्रश्नोत्तर, मागु., गद्य, जै., (चेतः केवरा) १००५२ २) For Private And Personal Use Only Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ अनन्तजिन पद, मु. सुमति, राज., गा. ३, पद्य, मूपू., (अनन्त १०८८५, १०९८४-१, १२९१०-१ जिन) ९९२१-४१(#$) अवस्थाष्टक, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (चेतन लच्छन) १०३०३अनन्तजिन प्रार्थना-स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (अनन्तनाथ) ३२), १०७३६-३२) ९९२१-४२(45) अष्टमीतिथि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., अनन्तजिन प्रार्थना-स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (श्रीसरसतिन) ९७००-३ (चवदमा जिनव) ९९२१-४०(45) अष्टमीतिथि स्तवन, पं. लावण्यसौभाग्य, मागु., ढाल ४, वि. अनन्तजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., १८३९, पद्य, मूपू., (पंचतिरथ) १००२८-१(5) (अनन्त भगवन) १०८२३-२९ अष्टमीतिथि स्तुति , मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (अष्टमी अष) अनन्तजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., १३७१३-९(१) (आज सफल दिन) १०८२३-२७ अष्टमीतिथि स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (महामङ्गलं) अबयद सुकनावली, मागु., ४ प्रकीर्णक, गद्य, मूपू., (गुरुणां) ११६७७-३४१, ११६०९-३ १०४९७ अष्टमीतिथि स्तुति, मु. जीवविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., अभिनन्दनजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (अभिनन्दनजि) (चौवीसे जिन) ९९२१-२४/) ९९२१-१२(68) अष्टमीतिथि स्तुति, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., अभिनन्दनजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (मङ्गल आठ) १३७१३-१४), १०३४०-३ (अभिनन्दन) ९९२१-११(48) अष्टापदतीर्थ पूजा, मु. पद्मसागर, मागु., ढाल २४, वि. १९४९, अभिनन्दनजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. पद्य, मूपू., (प्रथम पीठ) १००९६ (श्रीअभिनन) १३१२३-७ अष्टापदतीर्थ स्तवन, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ३२, पद्य, मूपू., अभिनन्दनजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (अष्टापद) १३७१४-६ (श्रीअभिनन) ९९२१-१०(5) अष्टापदतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., अमरदत्त श्रीमती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (वसन्तपुर) १२४६५-१६ (अष्टापद गि) १०८२३-१९ अमरसेन वीरसेन कथा-दानपूजा अधिकारे, प्राहि., गद्य, मूपू.. अष्टाह्निकापर्व व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (शान्तीशं) ९७२४, (माहात्मा) १३२०७० १००३२-२ अम्बड चरित्र, मु. लक्ष्मीसागर, मागु., ७ आदेश, गद्य, मूपू.. अष्टाह्निका व्याख्यान, , , (--)-<प्रतहीन.> (आदिभिकित) ११३३८ (२) अष्टाह्निका व्याख्यान-बालावबोध, पं. मतिमन्दिर, मागु., वि. अम्बड रास, आ. भावप्रभसूरि, मागु., ढाल ५७, वि. १७७५, पद्य, १८८२, गद्य, मूपू.. (शान्तीशं) ९४२१-१, ९६५९-१ मूपू., (श्रीमहिमा) १३४३९ अष्टोत्तरी विधि, मागु., गद्य, मूपू.. (पितापितामह) १२७४२-३ अम्बसार कथा, मागु., गद्य, मूपू., (सुसमापुर) १२४६५-५ असङ्ख्यात अनन्त विचार, मागु., गद्य, मूपू.. (यथोक्त भेद) अरजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, म्पू., (अरनाथ जिने) ९९२१ ९७८४-३ असज्झाय सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., अरजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, मूपू., (अर जिनेसर) ९९२१- (सरसति माता) १०५१२-८ आगम अध्यात्म स्वरुप, प्राहिं., गद्य, जै., (अगमवसु को) अरजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, मूपू., (अरनाथ जुहा) १०३०३-४५) ९९२१-५३(45) आगमपुरुष चित्र, मागु., गद्य, मूपू., (-) १३१७१-३५१ अरणिकमुनि रास, गणि महिमासागर, मागु., ढाल ८, वि. १७७४, आगमसारोद्धार, गणि देवचन्द्र, मागु., वि. १७७६, गद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (सरसति सामि) १०८६४-१ (हिवै भव्यज) ९८६२, १०६९९, १०७५०, १०४८२, १०७८२) अर्जुनमाली कथा, मागु., गद्य, मूपू., (मगधदेश राज) १२४६५-२४ | (२) आगमसारोद्धार-स्वोपज्ञ बालावबोध, गणि देवचन्द्र, मागु., वि. अर्बुदगिरितीर्थ कल्प, ऋ. विसेष्ट, मागु., गद्य, जै., (अर्बुदगिरि) १७७६, गद्य, मूपू., (तिहां प्रथ) ११०७९-१ आचार्यगुण भास, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., अवन्तिसुकुमाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १३, गा. १०७, (नमी सरसति) १०५१२-६ वि. १७४१, पद्य, मूपू., (मुनिवर आर) ९७०३-१, १०३४०-१, | आणन्दविमलसूरि रास, मु. वासण, मागु., वि. १५९७, पद्य, मूपू., ९८३३ For Private And Personal Use Only Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ (सकल पदारथ) १३७२० आत्मबोध ऋ. गोकल, मागु, गा. ८०, पद्य, मृपू.. (मन्त्र मुत) ११९७३-११ आत्मराज रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. १०१, वि. १५८८, पद्य, मृपू., (सिरि सरसति) ११०४० आत्मशिक्षा भावना, मु. रतनहर्ष, मागु., गा. १८५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., ( जिनवर मुख ) ११९७४ आत्महितशिक्षा गीत, मु. ज्ञान, मागु., गा. ६, पद्य, मूप्पू., ( रे मेरे पर) ११६१०-८ आत्महितशिक्षा सज्झाय, मु. भीमविजय, मागु., गा. ६२, वि. १६९९, पद्य, मुपू., ( दोहिलो मुग) १०४८३ आत्मा के ६५ गुण, मागु., गद्य, मूप्पू., (असङ्ख्यात) १०३३२ आदिजिन चरित्र, मागु., गद्य, मुपू., (जंबुद्वीपइ) ९८६०-१ आदिजिन चौपाई, ऋ. रायचन्द, मागु., ढाल ४७, वि. १८४०, पद्य, जै.. (अरिहन्त सि) ९४८५/ (+$) आदिजिन पद, मु. न्यायसागर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( प्रह समें) १०२४१-५ आदिजिन पद, मु. सुमति मागु गा. २, पद्य, मृपू.. ( रिषभजिनन्द) ९९२१-२० आदिजिन प्रार्थना स्तुति, मु. सुमति मागु, गा. ३, पद्य, भूपू (गढ़वी करणे) ९९२१-१/ (#$) " आदिजिन बृहत्स्तवन- शत्रुञ्जय, मु. प्रेमविजय, मागु., गा. २३, पद्य, मृपू., ( प्रणमु सयल) १०४१८-११(+) आदिजिन विनती स्तवन- शत्रुंजयतीर्थमण्डन, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ४५, वि. १५६२, पद्य, मूपू., (जय पढम जिण) ९६५७-३ ११११५ आदिजिन विनतीस्तवन- शत्रुञ्जयतीर्थ मण्डन, आ. विजयतिलकसूरि, मागु, गा. ३५, पद्य, मृपु. ( पहिलं पणम) १०७०९-३ आदिजिन विवाहलो, मागु., ढाल ४४, गा. २४३, पद्य, भूपू.. (सासनदेवीय ) ९५१८ आदिजिन स्तवन, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन आदेसरज) ९५७२-६ आदिजिन स्तवन, मागु., गा. १४, पद्य, भूपू., (जिन रिषभ) ९५७२-२४ आदिजिन स्तवन, मु. आनन्दघन, मागु, गा. ६, पद्य, मूपू.. (ऋषभ जिणेसर) ९६२३ आदिजिन स्तवन, मु. केसर, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जे जगनायक) १०२०६५/ आदिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, भूपू., (आदीसर अरिह) १०८२३-३९ ५६५ आदिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (तुम दरिसण) १०८२३-१ आदिजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मृपू., (सकल समीहित) १३१२३-४ आदिजिन स्तवन, मु. मोहन, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., ( उ रङ्ग लाग) १०२७६-६) " आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु गा. ५. पत्र, मृपू (जयकारी जिन) १०४१८-८(+) " आदिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू. ( हारे आज १०४१८-५ आदिजिन स्तवन, आ. हीररत्नसूरि, प्राहिं., गा. ६, पद्य, भूपू., (एसा जिन एस) १००२०-३ ($) आदिजिन स्तवन- केसरीयाजी, मु. ऋषभविजय, मागु गा. १३. पद्य, मृपू. ( सरसति माता) १०५१२-५ आदिजिन स्तवन- देउलामण्डन- विज्ञप्तिविचारगर्मित, गणि विजयतिलक, मागु., गा. २१, पद्य, मुपू., (पहिलु पणमि) ९९९१-२ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आदिजिन स्तवन- शत्रुञ्जयतीर्थ, आ. ज्ञानविमलसुरि, मागु, गा. ७, पद्य, मुपू., (लाहओ लेयो) १०८२३-३०, ११११६-८ आदिजिन स्तुति, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ४, पद्य, मृपू. (प्रह उठी) ९३४१०-१ आदिजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., ( रिषभ जिनेस ) ९९२१ - ३ M (#S) आदिजिन स्तुति-बीसलपुरमण्डन, मु. देवकुशल, मागु.. गा. ४. पद्य मूपू. (बिसलपुर वा ) ९३४७-२० आदिजिन हरियाली, मागु, गा. १०, पद्य, मृपू.. (एक अचम्भो) १२२०६-३ (२) आदिजिन हरियाली-टवार्थ, मागु, गद्य, मुपु. ( पुरुष कउआ ) १२२०६-३ आदित्यव्रत कथा, पं. गङ्गादास, मागु., गा. १०४, वि. १६१५, पद्य, जै., (प्रणमुं पा) १२४७४(#) आध्यात्मिक गीत, मु. ज्ञानविमल, प्राहिं., गा. ९, पद्य, मूपू., (मेरठ साहिब) १०८२३-१७ आध्यात्मिक गीत, मु. लब्धिविजय, प्राहि. गा. ५. पद्य, मृपू ( जबलगे विषय) ९७१८-२ आध्यात्मिक पद प्राहि. गा. ४, पद्य, सूप, (पवन को करे ) " ११०२३-२ आध्यात्मिक पद, प्राहिं, गा. ४, पद्य, जै, (हम बैठें) १०३०३89/ For Private And Personal Use Only आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, मागु, गा. ४, पद्य, मूपू., (आस्था औरन ) ९९०७-४ Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ आध्यात्मिक पद, मु. आनन्दघन, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (औy | क्या) ९९०७-३ इलाचीपुत्र सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (-) आध्यात्मिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., | ९६५६-२ (तुं आतम गु) १०३०३-५५), १०७३६-५३) उत्तमकुमार कथा, मागु., ग्रं.५२५, गद्य, मूपू.. (अरथ जेणे) आध्यात्मिक हरियाली, श्रा. देपाल भोजक, मागु., गा. ६, वि. १३२६२ १६वी, पद्य, मूपू., (वरसे काम्ब) १२२०६-४ उत्तमकुमार चरित्र, मु. विनयचन्द्र, मागु., ढाल ४२, गा. ८४८, (२) हरियाली-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (काम्बली कह) १२२०६-४ ग्रं.१२६०, वि. १७५२, पद्य, मूपू., (ॐ अक्षर) ९७४२) आनन्दघन गीतबहोत्तरी, मु. आनन्दघन, प्राहि., ७८ पद, पद्य, उद्यापन वस्तु सूची, मागु., गद्य, मूपू., (५ नोकारवली) १२५५७-२ मूपू., (क्या सोवेउ) १२६६७, ९७१८-१ उधवावर वैराग्य, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. २६, पद्य, आनन्दश्रावक गौतमस्वामी चर्चा स्तवन, ऋ. चौथमल, मागु., गा. जै., (वालभ तु हु) १०३०३-५७) १३, वि. १८२४, पद्य, जै., (हाथ जोडी) ९७०७-६१६) उपदेश दृष्टान्त, मागु., गद्य, जै., (गर्भावास) ९४५८-२ आयम्बिलतप सज्झाय, उपा. विनयविजय , मागु., गा. ११, वि. ऋषिदत्तासती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (एहज जम्बूद) १२४९४ १७उ., पद्य, मूपू., (समरी श्रुत) ११०७५-३ आयुष्य विचार*, मागु., गद्य, मूपू., (१२० हाथीनो) १२७९०-२ ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., ढाल ४१, गा. ५६२, आराधना, मागु., ग्रं.२२७, गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) १०६३९, ग्रं.८५०, वि. १६४३, पद्य, मूपू.. (उदय अधिक) १०८३५, १०६४०-१ १३६३५, १३७२५ आराधना कुलक, मागु., गा. १२५, पद्य, मूपू., (वन्दिय चउव) ऋषिदत्तासती रास, मु. विजयशेखर, मागु., खण्ड ३/ ढाल-२९, १०९२१,११८४२ ग्रं.७७५, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (विमल विहङ) १३७२६(+) आराधनासूत्र, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गा. ४०६, वि. १५९२, औपदेशिक अष्टपदी-भोन्दुभाई, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., पद्य, मूपू., (जिनवर चरणय) ९८१० (भोंदूभाई) १०३०३-६६, १०७३६-५८(१) आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., गा. ३७०, वि. १६८१, औपदेशिक अष्टपदी-भोन्दुभाई, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (भोन्दू पद्य, मूपू., (सुख अनन्त) १३७२१-२", १३७२२+7 भाई) १०३०३-६५०, १०७३६-५७+7 आरामशोभा कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (एसो मङ्गल) १०१४०) औपदेशिक गहुंली, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल १९, गा. ३०१, (मुनिवर शिव) १०५१२-३ ग्रं.४५१, वि. १७२७, पद्य, मूपू., (सकल सुरासु) १०३७०), औपदेशिक गहुंली, पं. वीरविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., ११०९१, १३७२३, ९८९७-१७, १०५३१(5) (मुनिवर मार) ११३८१-३(5) आलोयणा विधि, मागु., गद्य, मूपू., (नमो अरिहन) ९५३२ औपदेशिक गाथा, मु. केसवदास, मागु., पद्य, जै., (कामनी आषाढभूति सम्बन्ध, मागु., गद्य, मूपू., (राजगृही नग) ९४९२-६७ कन्त) १३१६९-२(5) आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल १६, गा. २१८, औपदेशिक गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ३१, पद्य, ग्रं.३५१, वि. १७२४, पद्य, मपू., (सकल ऋद्धि) १०४२५५), ___ जै., (मेरा मन का) १०३०३-१९), १०७३६-१९(4) ११२४०-३", ९३५३, १०९१९-१, १११७९, ११३५४, १३७०१, औपदेशिक गीत-जीवकाया, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ७, १३७२४ पद्य, मूपू., (रे जीव जुग) १०८२३-१२, ११११६-१० आषाढाभूति सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., ढाल ५, पद्य, मूपू., | औपदेशिक छन्द, पण्डित लक्ष्मीकल्लोल, मागु., गा. १६, पद्य, (श्रीश्रुतद) ९७००-२३ पू., (भगवती भारत) १३७१४-११ आसाढीपुनम विचार, मागु., गद्य, (आसाढी पूनम) ११०६७-४(4) औपदेशिक पद, मागु., गा. २, पद्य, जै., (पञ्चाग्नि) ९३४०-२ इच्छापरिमाण, मागु., गा. ८१, वि. १६७५, पद्य, मूपू., (पणमीय औपदेशिक पद, मागु., पद्य, मूपू., (पल पल छाजे) १०००५-२ वीर) १०४२३ औपदेशिक पद, मागु., पद्य, मूपू., (भविकजीव पू) ९६७०-२६) इलाचीकुमार चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल १६, गा. १८७, औपदेशिक पद, मागु., गा. १, पद्य, जै., (मेल मायाकी) ११४९१ ग्रं.२९९, वि. १७१९, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धदा) ९६०१, १०३१९, १०८१३-१, १०९१९-२, ११०७३, १११२०, ११२३६ | औपदेशिक पद, मागु., गद्य, मूपू., (समयनो सदुप) ९७८४-७ इलाचीकुमार सम्बन्ध, मागु., गद्य, मूपू., (किणहीक ग्र) ९४९२- | औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ७, पद्य, मूपू., (कामी नर कू) ९७०७ For Private And Personal Use Only Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ www.kobatirth.org: ८२ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (कोऊ सरल कह) १०३०३-६०) अपदेशिक पद प्राहिं गा. ६, पद्य, पु. ( परणी जिन) ९७०७ (S) १०० अपदेशिक पद प्राहिं, गा. ८, पद्य, वै., ( पीहर सासर) ९७०७८५ औपदेशिक पद, प्राहिं., गा. ७, पद्य, वै., (राघव बन्धव) ९७०७१०८ (S) अपदेशिक पद, मु. उदयरत्न, मागु, पद्य, मुपु. ( अनुभवियाना) ९७००-२२ औपदेशिक पद, मु. ऋषभ, प्राहिं., गा. ७, पद्य, भूपू., (अवधु घर मे) १०५१२-११ अपदेशिकपद, चांपाराम, प्राहिं, गा. ६, पद्य, जे., (अरे सजन ते) ९९०७-५ औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (चली चेतन) ९७०२७-५८ ($) .. औपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहि. गा. ४, पद्य, जे. (तुम तजी जग ) ९७०७-६६ अपदेशिक पद, मु. जिनदास, प्राहिं, गा. ५. पद्य, जे., (सुकत की) ९७००-६५ औपदेशिक पद, मु. ज्ञानसागर, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मृपू., (पण्डित कहि) ११०६५-२० ($) औपदेशिक पद, मु. धर्मपाल, मागु., गा. ५. पद्य, मृपू. (काह जीवन) १७०७-१०४ औपदेशिक पद, मु. नवललाभ, मागु., गा. ५, पद्य, जै., ( भववन धरणी ) ९७०७-१०५ ($) औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (चेतन उलटी) १०३०३-५८) औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., " (चेतन तूं) १०३०३-५०% १०७३६-४९१ औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., ( चेतन नै कु ) १०३०३-५९ण औपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. २, पद्य, जै., (तूं भ्रम) १०३०३-६७(+), १०७३६-५९(+) अपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं. गा. ८, पद्य, जै.. (देखो भाई) १०३०३-७०) १०७३६-६२) अपदेशिक पद, बनारसीदास, प्राहिं, गा. ८, पद्य, जै. (या चेतन की) १०३०३-४९) १०७३६-४७१ अपदेशिक पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं. गा. ४, पद्य, जै., (रे मन कुरु) १०३०३-५६१ " ५६७ औपदेशिक पद, मीराबाई, प्राहिं., गा. ५, पद्य, वै., (सुवा सुवा) ९७०७-९० औपदेशिक पद, मु. वल्लभसागर, मागु., गा. ६, पद्य, मृपू., (चालो सहेली) ९७००-४ औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ९, पद्य, जै., (कोई एक दात) ९७०२७-९८३ औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं, गा. ५, पद्य, जै.. (चवदे नेम) PHO-909 औपदेशिक पद, मु. विनय, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (मे हुं पाप) ९७०७-८७ (5) औपदेशिक पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., गा. ९, पद्य, जै., (करले भलाई) ९७०७-८३* ($) औपदेशिक पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., गा. ६, पद्य, जै., (नव घाटी ल) ९७०७-८५१ औपदेशिक पद . विनयचन्द, प्राहि, गा. १२, पद्य, जै.. (पिउजी उठ) ९७०७ ९९ (S) " औपदेशिक पद, मु. सुमति मागु, गा. ५. पत्र, भूपू (आतम ओलंगात) ९५४२-३ औपदेशिक पद- ४ वर्ण, प्राहिं., गा. ५, पद्य, दि., ( जो निहचे) १०३०३-३४(+), १०७३६-३४+ औपदेशिक पद-परनारी, प्राहिं, गा. ७, पद्य, मूपू., (चतुर नर ना) ९७०७-१०३ ३(5) औपदेशिक लावणी, मागु, गा. ९, पद्य, मुपू. (एक एक रे) ($) ९७०७-३४९ औपदेशिक लावणी, मु. अखमल, प्राहिं, गा. ११, पद्य, जै., (खबर नही आ ) ९७०७-७७ " औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं. गा. ४, पद्य, भूपू(करमदल मलकु) ९७०७-५६ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं, गा. ४, पद्य, जे. (तुम तजीय) ९७०७-५९* ($) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (तुम भजो नि) ९७०७-१०६ ($) (S) औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहि. गा. ५. पद्य, ग्रुपु. ( बल जावो रे) ९७०७-६३ औपदेशिक लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं, गा. ५. पद्य, जै (मन सुरे) २००७-६४ (5) औपदेशिक लावणी, रामकिसन प्राहिं, गा. १९. वि. १८६८. पद्य, जै., (चेत चतुर) ९७०७-३३ औपदेशिक सज्झाय, राज., गा. ६, पद्य, मूपू., (धर्म पावे) ९७०७ ($) ($) For Private And Personal Use Only (+) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir " ६० औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. १४, पद्य, मुपू., (निज गुणनाय) Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५६८ ९७०७-२९६ औपदेशिक सज्झाय, मागु., गा. २२, पद्य, मुपू., (बैठे साधु) ९७०७-३० औपदेशिक सज्झाय, मागु., पद्य, मूपू., (सुखकर हितक) ९४१६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ औपदेशिक होरी, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (जानत है जि) ९७०७-६७) औषध सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (-) ९५६३-२, १११९४-३, १३३१२ कंसकृष्ण विवरण लावणी, ऋ. विनयचन्द, प्राहि., ढाल २७, गा. ४३, पद्य, जै., (गाफल मत रह) ९७०७-४३१) कथा सङ्ग्रह, मागु., ८४कथा, गद्य, मूपू., (उजेणीनगरीन) १२४८९ कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (गजपुरनइ वि) ९३३१) कथा सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (वसन्तपुर) १२५११ कमलामहासती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (एहज भरत) १२४९४ औपदेशिक सज्झाय, मु. अखेराज, राज., गा. १३, पद्य, जै., (यो भव रतन) ९७०७-३७ औपदेशिक सज्झाय, मु. कृपासागर, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (प्रवचननी) ९७००-७ औपदेशिक सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (आउखु तुटा) ९७०७-४९१६) औपदेशिक सज्झाय, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (आदित्य जोइ) १३७६६-२ औपदेशिक सज्झाय, मु. विजयभद्र, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., (मङ्गल करण) १३७१४-१० औपदेशिक सज्झाय, मु. विनयचन्द, राज., गा. ९, पद्य, जै., (प्रभुजी रो) ९७०७-८६(5) औपदेशिक सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (काया पुर) ९७००-२० औपदेशिक सज्झाय, मु. हंसमुनि, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (मन शुद्धइ) ११६१०-११ औपदेशिक सज्झाय-६ दर्शन प्रबोध, मु. रूपचन्द, मागु., गा. ९, पद्य, जै.. (ओरनसें रङ) १०५६८-२ औपदेशिक सज्झाय-गर्भावास, पाठक श्रीसार, मागु., गा. ७२, पद्य, मूपू., (उत्पति जोज) ९३९३-१, ९७२७ औपदेशिक सज्झाय-धर्मोपदेश, मु. श्रीदेव, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (जिनधर्म आर) ९५७२-२८ औपदेशिक सज्झाय-निन्दक, मु. रायचन्द, मागु., गा. २८, पद्य, जै., (निखरो माणस) ९७०७-३१) औपदेशिक सज्झाय-निन्दात्याग, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (निन्दा म) ९५७२-२३ औपदेशिक सज्झाय-पुण्योपरि, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (पारकी होड) १०९८४-२ औपदेशिक सज्झाय-विषयराग निवारक, मु. ऋद्धिविजय, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., (मन आणी जिन) १३५०९-३ औपदेशिक सज्झाया-घृत विषये, मु. लालविजय, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू.. (भवियण भाव) ९५२९-५६) औपदेशिक स्तवन, मु. दोलतविजय, मागु., ढाल ५, वि. १८७७, पद्य, मूपू., (सरसति भगवत) १०३४५ औपदेशिक हरीयाळी, पं. वीरविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (चेतन चेतो) १००२०-१९६ कमलावती सज्झाय, ऋ. जैमल, मागु., गा. २९, पद्य, जै., (महिला में) ९७०७-३८७) कयवन्ना चौपाई, मु. जयतसी, मागु., ढाल ३१, गा. ५५५, वि. १७२१, पद्य, मूपू.. (स्वस्ति ) ९६९०, १०३१५, १११०१, ९५९७) कयवन्ना चौपाई, मु. विजयशेखर, मागु., ढाल १६, गा. ३६५, वि. १६८१, पद्य, मूपू., (आदीसर सुखक) १०९५७) कयवन्ना रास, मु. दीपविजय, मागु., वि. १७३५, पद्य, मूपू., (ब्रह्मसुता) १३७२८ कयवन्नाश्रेष्ठि रास, मु. जयरङ्ग, मागु., ढाल ३१, वि. १७२१, पद्य, मूपू.. (स्वस्ति) १३७२७ कयवन्ना सज्झाय, मु. लालविजय, मागु., गा. २७, वि. १६८०, __ पद्य, मूपू., (आदि जिनवर) १०९७०-२ कर्मछत्रीसी, मागु., गा. ३७, पद्य, जै., (परम निरज) १०३०३ १०), १०७३६-१०+) कर्मछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३६, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (कर्म थकी) ११११८-१ कर्मप्रकृति विधान, श्रा. बनारसीदास, प्राहिं., गा. १७५, वि. १७००, पद्य, दि., (परमसङ्कर) १०३०३-६), १०७३६-६(+) कर्मविपाकफल सज्झाय, मु. ऋद्धिहर्ष, मागु., गा. १८, पद्य, मूपू., (देव दाणव) १०३४०-२, ९७०७-३९() कलावतीसती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (इणइं जम्बू) १२४९४-३१) कलावतीसती रास, कवि विजयभद्र, मागु., गा. ८४, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र) ११२९७, १३७२९ कलासिद्धसाधु सम्बन्ध, मागु., गद्य, मूपू., (इहिज जम्बू) ९४९२ कवित्त, कवि हेम, प्राहिं., गा. ९०, पद्य, जै., (सुनय पोषहत) ११३०८) कहरानामचाली, प्राहि., गा. ११, पद्य, (कुमति सुमत) १०३०३ २९), १०७३६-२९) For Private And Personal Use Only Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ९१७ देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५६९ कामाख्या मन्त्र, मागु., गद्य, (ॐ नमो काम) १२७६९-२ कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, (अहंत भगव)-<प्रतहीन.> कृष्ण विवाहलो, मागु., ढाल १०, पद्य, मूपू.. (प्रथम जिणे) ९४१४ (२) कालिकाचार्य कथा-बालावबोध, मागु., ग्रं.३८१, गद्य, मूपू.,.. कृष्णव्रजनारी पद, सूरदास, प्राहिं., गा. ८, पद्य, वै., (बंसरी (अहंत भगव) ९६२६ दीजे) ९७०७-६८) कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, मूपू., (तिहां पूर) ९७४४-१) कृष्ण सज्झाय, प्राहि., गा. ३३, पद्य, मूपू.. (बन्धव बेहु) ९७०७कालिकाचार्य कथा, मागु., गद्य, मूपू., (हवें थिवरा) १०५७१-२+) कालिकाचार्यभेद विचार, मागु., गद्य, मूपू., (कालिकाचार) केशीगणधर परदेशीराजा चौपाई, मु. ज्ञानचन्द, मागु., ढाल ४१, १२२२८-२ गा. ५९४, वि. १८वी, पद्य, मूपू.. (प्रणमी श्र) १३७५१, १३७५४ कुन्थुजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मू'.. (कुन्थु जिन) ९९२१- केशीगणधरप्रदेशीराजा प्रश्नोत्तर, मु. देवमुनि, मागु., वि. १७२१, ५१(5) पद्य, मूपू., (सकल सम्पद) ९६६१-२(+) कुन्थुजिन प्रार्थना स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, पू., क्षमाविजय निर्वाण रास, मु. सुमतिविजय, मागु., ढाल (सतरमा जिनव) ९९२१-४९(5) १०+कलश, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ११२१० कुन्थुजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. क्षेत्रचौवीसजिन स्तवन, मु. कान्ह, मागु., ढाल २, गा. १२, पद्य, (कुन्थुजीने) ९९२१-५०(45) जै., (वीर जिनेस) ९५७२-१२ कुमतकदलीकृपाणिका चौपाई, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., (वीर खडगचण्डाल हंसकपुरोहीत कथा-प्राणातिपातव्रते, मागु., गद्य, जिणेसर) ९५०४-१, १०८६०-१ मूपू.. (सुसमापुर) १२४६५-१४ कुमारपाल रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., ग्रं.५८००, वि. खन्धकमुनि चौढालिया, ऋ. जैमल, राज., ढाल ४, वि. १८११, १६७०, पद्य, मूपू.. (सकल सिद्ध) १००५५, १००८० पद्य, जै., (नमुं वीर) ९७०७-७ कुमारपाल रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १२९, गा. २८७६, खिमऋषि बलिभद्र यशोभद्रादि रास, मु. लावण्यसमय, मागु., ग्रं.४१६०, वि. १७४२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसति) १३७३११), खण्ड ३, गा. ५१२, वि. १५८९, पद्य, मूपू.. (भारति भगवत) १०२६५, १३७३० १३७३५ कुरगडुमुनि दृष्टान्त, मागु., गद्य, मूपू., (खन्तिसुहाण) १२५१८-२ | गच्छस्थापनकाल, मागु., गद्य, मूपू., (पूर्णिमा) १२७४२-८ कुलध्वजकुमार रास, मु. कक्कसूरिशिष्य, मागु., गा. ३५८, पद्य, गजसुकमाल चरित्र, मागु., ढाल १४, पद्य, मूपू.. (रथनेमि नाम) मुपू., (पास जिणेसर) ९९०३ ९७०७-१४ कुलध्वजराजा कथा, मु. लालचन्द, मागु., ढाल ३०, गा. ५३८, गजसुकुमाल चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., ढाल ३०, गा. वि. १६९३, पद्य, मूपू., (लषमी विसाल) १३७३३ ५००, वि. १६९९, पद्य, मूपू., (नेमिसर जिन) १३७३६, कुलध्वज रास-शीलोपरी, वा. धर्मसमुद्र, मागु., गा. १३८, वि. १३५३०-१ १५८४, पद्य, मूपू., (द्यउवर सार) १३७३२ गजसुकुमाल रास, मु. शुभवर्द्धन-शिष्य, मागु., गा. ९१, पद्य, कृतकर्म चौपाई, मागु., गा. २५०, पद्य, मूपू., (पढम पणमु) मुपू., (देस सोरठ) १०९७०-१, ११०५८, ११२८१ १०३४४६) गजसुकुमाल सज्झाय, मु. दानविजय, मागु.. गा. १७, पद्य, मूपू., कृष्ण पद, मागु., गा. ६, पद्य, वै., (में मोहन) ९७०७-९२) (श्रीनेमिसर) ९७००-१६ कृष्ण पद, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै., (वाई जसोदाज) ९७०७-९३६) गणधरगुण गुंहली, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (गणधर हे के) कृष्ण पद, प्राहि., गा. ३, पद्य, वै., (वावरी बन) ९७०७-९५७) ___ ११०९९-३) कृष्ण पद, मीराबाई, प्राहिं., गा. ५, पद्य, वै., (कुवज्या ने) ९७०७- | गमाभवाधिकार, मागु., गद्य, जै., (२ ठाम नारक) ९७८१-१ Quels गर्भवेलि, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ११४, वि. १६वी, पद्य, कृष्ण पद, मीराबाई, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै., (वावरी वन) ९७०७- मूपू., (ब्रह्माणी) ११२३४-२ गिरनारतीर्थोद्धार रास, पण्डित नयसुन्दर, मागु., ढाल १३, गा. कृष्ण पद, मीराबाई, प्राहिं., गा. ४, पद्य, वै., (सांवरे विन) १८४, पद्य, मूपू.. (सयल वासव) १३७३७, १३७३८ ९७०७-९६६ गीतचौवीसी, मु. आनन्द, मागु., २४स्तवन, पद्य, मूपू., (आदि कृष्ण बारमासु, मागु., गा. १३, पद्य, (-) १०४१२-२(4) जिणन्द) १०३१०, ९९७४ कृष्ण लावणी, प्राहिं., गा. ५, पद्य, वै., (चाल गत गयन) ९७०७- | गीतवीसी, मु. आनन्द, मागु., २०गीत, पद्य, मूपू., (सीमन्धर सम) For Private And Personal Use Only Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७० कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ १०२७९-१ १३७४०-१, १३७४२, १२७५१-६ गुणकरण्डकगुणावली रास-बुद्धिविषये, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल | गौतमस्वामी रास, श्रा. शान्तिदास, मागु., गा. ६६, वि. १७३२, २६, गा. ४९३, वि. १७५१, पद्य, मूपू., (श्रीअरिहन) १३७४३, पद्य, मूपू., (सरस वचन दा) १०२५२-१+#5), १०५०६-१*) १३७४४ गौतमस्वामी स्तोत्र, गणि विजयशेखर, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., गुणमाला रास, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ७, वि. १८८५, पद्य, | (श्रीगौतम) १३७१४-२१ मूपू., (सरस्वती मा) ९७०७-२०१६) ग्रहस्पष्टकरण विधि, मागु., गद्य, (वर्तमान) ९५६४-३” गुणरत्नाकर छन्द, मु. सहजसुन्दर, मागु., अध्याय ४, वि. १५७२, चन्दनबाला चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ४, वि. __ पद्य, मूपू., (शशिकरनिकर) ९४४३-१), ११२७०+), १०९१७-१ १८२५, पद्य, मूपू.. (अविन्यासी) ९७०७-१५ गुणस्थानके बन्धोदयोदीरणा सत्ता विचार, मागु., गद्य, मूपू., (वर्ण चन्दनबाला चौपाई, मु. ब्रह्म, प्राहि., गा. १६०, पद्य, जै., (मोह १ गन) ११११३ पिसाच) ९८२४ गुणावलि चौपाई, गणि गजकुशल, मागु., ढाल २९, वि. १७१४, चन्दनबाला सज्झाय, मु. कुंअरविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ) ९४४८, ९४८६ (बालकुंआरी) ९७००-१७ गुणावलि रास, मु. ज्ञानमेरु, मागु., ढाल १६, वि. १६७६, पद्य, चन्दराजागुणावली चरित्र, मु. दर्शनविजय, मागु., ढाल ४४, वि. __ पू., (प्रणमुं चउ) ९८८८, १०३२२ १६४४, पद्य, मूपू.. (श्रीसुषदाय) १३७४८ गुरुगुण गुंहली, पं. वीरविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (सुण चन्द्रकुमार वार्ता, मागु., गा. १२५, पद्य, मूपू.. (समरु सरसति) साहेली) १००२०-६ १२४९६ गोचरी के ४२ दोष*, मागु.,गुज.. , मूपू.. (--) १०७४२-३ चन्द्रप्रभजिन थुई, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (चन्द्रप्रभ) गोरख वचनिका, प्राहिं., गा. ७, पद्य, (जो भग देखि) १०३०३ ९९२१-२३(5) ४२), १०७३६-४२(+) चन्द्रप्रभजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (चन्द्रप्रभ) गोराबादल रास, गणि लब्धिउदय, मागु., खण्ड ३/ ढाल ३९, गा. ९९२१-२२(65) ८१६, ग्रं.११५७, वि. १७०७, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर) चन्द्रप्रभजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ९८७५, १२३५६, ९६६४-१ (चन्द्रप्रभ) १०४१८-१० गौतमपृच्छा चौपाई, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. १२४, वि. चन्द्रराजा रास, मु. मोहनविजय, मागु., ढाल १०८, ४ उल्लास, १५४५, पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ) ९५६८, १०२२१, १०८१६, गा. २६७९, वि. १७८३, पद्य, मूपू., (प्रथम धराध) ९९३०), १२७५७, १३१२३-१, १२७५१-१, ११११४) १०३८११, १०३९२१), १३७८२१), ९७१०), ९३६७, ९४७०, गौतमपृच्छा भाषा, मागु., सूत्र १०१ प्र, गद्य, मूपू., (भगवन्त देव) ९८२३-१, १०३१६, १०६०४, १३५७५, १३७७९, १३७८०, ९६९७ १३७८१, ९३६०, ९८५२, १०२७१) गौतमस्वामी गहुंली, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. (राजगृही रळ) चन्द्रराजा रास, मु. विजयशेखर, मागु., अध्याय ९, वि. १६९४, १००२०-१२ पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ११०५२ गौतमस्वामी गहुंली, मु. दीपविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., चन्द्रराजा रास, मु. विद्यारुचि, मागु., ६/१०३ढाल, गा. २५०५, (आज्यो रे) ११०३९-३ ग्रं.३०५५, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (श्रीजिननाय) १३७४७ गौतमस्वामी गहुंली, मु. दीपविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू.. चन्द्रलेखा रास, मु. मतिकुशल, मागु., ढाल २९, गा. ६२४, वि. (चरण करण गू) १००२०-१३(७) १७२८, पद्य, मूपू., (सरसति भगवत) ९३५९, १०१७८, गौतमस्वामी छन्द, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ९, पद्य, १०२६८, ११३७७, ९५३० मूपू., (मात पृथ्वी) १३७१४-२०, १०५०६-२) चम्पकमाला रास, मागु., गा. ९२, पद्य, जै., (नमिय निरंज) गौतमस्वामी छन्द, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., १३७८३ (वीर जिणेसर) १३७१४-२२ चम्पक श्रेष्ठि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल २९, गा. गौतमस्वामी रास, आ. विजयभद्रसूरि, मागु., गा. ६६, पद्य, मूपू., | ५०७, वि. १६९५, पद्य, मूपू., (जालोर मांह) १०८६२) । (वीर जिणेसर) १०२१२ चातुर्मासिक व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (नमः श्रीवर) ९६८८7 गौतमस्वामी रास, उपा. विनयप्रभ, मागु., गा. ६३, वि. १४१२, । चातुर्मासिक व्याख्यान, राज., गद्य, मूपू., (पंचापी परम) पद्य, मूपू., (वीर जिणेसर) १३७३९), ९७२१, १०४४६, १००३२-१, १३२६३ For Private And Personal Use Only Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ४०) 980 देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७१ चित्तब्रह्मदत्त संवाद, मागु., गा. २३, पद्य, मूपू., (प्रणमुं) ९७०७- | जम्बूस्वामी भास, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (स्वामी सुध) ११०३९-२ चित्रसम्भूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ३९, ग्रं.११००, जम्बूस्वामी रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ३५, गा. ६०८, वि. १७३१, पद्य, मूपू., (प्रथम नमुं) ९८२८, १३७८४, ११०६५- ग्रं.१०३५, वि. १७३८, पद्य, मूपू.. (प्रणमी पास) ११२३८, १३७८८-१, ९९०४ चित्रसेनपद्मावती रास, मु. कान्तिसागर, मागु., वि. १७५७, पद्य, जम्बूस्वामी रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., गा. १८५, वि. मूपू.. (आदि जिनेसर) १३७८५(+) १५२२, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर) १०१९९) चेतन वृतान्त, श्रा. भगवतीदास, प्राहि., गा. २९८, वि. १७३२, जम्बूस्वामी रास, गणि भुवनकीर्ति, मागु., अध्याय ___ पद्य, मूपू., (जिनचरण प्र) १२३२८ ४अधिकार,ढाल५५, गा. १३६९, वि. १७०५, पद्य, मूपू., (जोति चैत्यवन्दनचौवीसी, कवि ऋषभ कवि, मागु., २४ चैत्यवंदन, पद्य, पुरात) १०२२३ मूपू., (आदिदेव अरि) १०२७६-४२) जम्बूस्वामी रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., वि. १७३९, चैत्रीपूर्णिमा तपउच्चारण विधि, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रथम गुरु) पद्य, मूपू., (सारद सार) १३७८७ १३१७१-१७) जम्बूस्वामी रास, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., गा. ११३, वि. चैत्रीपूर्णिमापर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, १५१६, पद्य, मूपू., (सरसति सामण) १३७८९ मूपू., (प्रथम प्रत) १०५९०-७१) जम्बूस्वामी सज्झाय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., (सरस्वती) चौभङ्गी रूपकार वचनिका सङ्ग्रह, मागु., गद्य, जै., (एक जीव ९९७०-१२) द्र) १०३०३-४४०, १०७३६-४४, ९७३३१ जम्बूस्वामी सज्झाय, ऋ. खुशालचन्द्र, मागु., गा. १४, वि. १८१७, चौमासीदेववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, मूपू., (प्रथम पद्य, मूपू., (मगध देश रा) ९७०७-३५ जिने) १०२८२६) जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. जीवकुशल, मागु.. गा. १७, पद्य, मूपू., चौमासी देववन्दन सविधि, पं. वीरविजय, मागु., गा. ४२५, पद्य, (परमपुरुष) ९७००-९ मूपू., (प्रथम ईरिय) ११२२९, ११३५८, १२९४३ जम्बूस्वामी सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., चौमासीपर्व देववन्दन, पं. पद्मविजय, मागु., पद्य, मूपू., (राजग्रही) ९९७०-२ (विमलकेवलज) १०१५७, १०५१६, ११०९८, १२७०८-१, जम्बूस्वामी सम्बन्ध, मागु., गद्य, मूपू., (राजगृह नगर) ९७४४-३ १०१८८७), ९९८७६) जयविजयकुंवर रास, पं. जिनविजय, मागु., ४अधिकार/३३ ढाल, छअट्ठाइ स्तवन, मागु., ढाल ९, पद्य, मूपू., (स्यादवाद) ११३८६ ग्रं.७२५, वि. १७३४, पद्य, मूपू., (आदि आदि जि) १०००१, (२) छअट्ठाइ स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (कहेतां शोभ) १३७९० ११३८६ जयानन्दकेवली रास, पं. पद्मविजय, मागु., खण्ड ९ / ढाल छन्दबावनी, कवि नन्दलाल, मागु., गा.५५, वि. १८९६, पद्य, २०२, गा. ५८९७, वि. १८५८, पद्य, मूपू., (प्रथम प्रथ) जै., (उतम कनक दे) ९९०७-१ १०१२२ जगडु छन्द, लालण-सुत, मागु., गा. १२, पद्य, जै., (अगमरुप जावडभावडसेठ रास, श्रा. देपाल भोजक, मागु., गा. १९४, वि. देव) १३८०३-२ १६वी, पद्य, जै., (पणमवि मरुद) ९८९९ जम्बूपृच्छा, मु. वीरजी, मागु., ढाल १३, वि. १७२८, पद्य, मूपू., जिन आन्तरा, मागु., गद्य, मूपू., (५० कोडि ला) ९७९०-२(+) (सकल पदारथ) १०६६३-१, ११०४७, १३२५४ जिनजन्मादिक चौढालिया, मागु., ढाल ४, गा. ४९, पद्य, मूपू., जम्बूस्वामी कथा, मागु., गद्य, जै., (सप्रभाव) १२३४६१), (सरस वर कुस) १०३२४-१। १२३२५१, १२३२६ जिनजन्माभिषेक स्तवन, पण्डित वीरविजय, मागु., गा. ११, पद्य, जम्बूस्वामी चरित्र, मु. मल्लिदास, मागु., ढाल ३५, गा. ४८८, वि. | मूपू.. (माताजी तुम) १००२०-११६) १६४९, पद्य, मूपू., (सरसति सरस) १३७८६ जिनपूजा अष्टक, प्राहिं., गा. ११, पद्य, जै., (जलधारा चन) जम्बूस्वामी चौपाई, मागु., ढाल ४६, वि. १८४०, पद्य, मूपू., (तिण | १०३०३-२६), १०७३६-२६) कालै) १०३२५ जिनप्रतिमा एकादशी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ११, जम्बूस्वामी चौपाई, मु. उदयरत्न, मागु., ढाल ६६, गा. १८३८, पद्य, जै., (इह विधि दे) १०३०३-५२ ग्रं.२५००, वि. १७४९, पद्य, मूपू., (परम ज्योति) १०५६९ जिनप्रतिमा स्तवन, प्राहिं., गा. १०, पद्य, जै., (जिनप्रतिमा) For Private And Personal Use Only Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ १०७३६-५०) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, मु. गुणविजय, मागु., ढाल ६, गा. ४९, जिनप्रतिमास्थापना प्रबन्ध, मु. ब्रह्म, मागु., १३अधिकार, गा. पद्य, मूपू.. (प्रणमी पास) ९६२३-१) ६७१, ग्रं.१६००, वि. १६७७, पद्य, मूपू., (श्रीजिणवर) ज्ञानपंचमीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., ढाल ६, वि. १७९३, १३१९२१), १२५७०) पद्य, मूपू.. (सुत सिद्धा) ११००९-१, ११०२९-१ जिनविजयनिर्वाण प्रशस्ति, मु. उत्तमविजय, मागु., ढाल १६, गा. | ज्ञानपंचमीपर्व स्तुति, मु. सुखविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. २२३, ग्रं.२८५, पद्य, मूपू., (कमलमुखी) १३७९१ (कार्तिक शु) १०२५२-२**5) जिनसहस्रनाम स्तोत्र, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., १०शतक, ज्ञानपच्चीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. २५, पद्य, जै., गा. १०१, वि. १६९०, पद्य, जै., (-) १०३३७ (सुरनर तिर) १०३०३-१३१, १०७३६-१३(4) जिनस्तवनचौवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., २४ स्तवन, | ज्योतिष श्लोक, मागु., गा. २, पद्य, (मे वरदाझिज) ९५०५-२(4) पद्य, मूपू., (जगजीवन जगव) १०२७६-१, १११४९, ११३१५, ज्योतिष सङ्ग्रह, मागु... (-) १२३९६-२+5) ११३९४, ९४१६-१ ज्योतिषसार, पं. हीरकलश, मागु., गा. ९१६, पद्य, मूपू., (सहगुरु जिनस्तवनचौवीशी-१४ बोल, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., २४ । सां) १३६२७-१ स्तवन, पद्य, मूपू., (ऋषभदेव नित) १०३५१(१) झाझरियाऋषि रास-शीलविषये, मु. हस्तिरुचि, मागु., ढाल १३, जिनस्तवनचौवीसी, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., २४ स्तवन, पद्य, वि. १७१७, पद्य, मूपू., (आदिनाथ आदि) १३७९२ मूपू.. (आदिकरण अरि) १०२४३ झाञ्झरियामुनि सज्झाय, मु. भावरत्नसूरि, मागु., ढाल ४, गा. जिनस्तवनचौवीसी, मु. रामविजय, मागु., २४स्तवन, पद्य, मूपू., ४३, वि. १७५६, पद्य, मूपू.. (सरसति चरणे) ९७००-११, (जयकारी जिन) ११३०९ ९५२९-१(5) जिनस्तवनचौवीसी, आ. हंसरत्नसूरि, मागु., २४स्तवन, वि. ढंढणऋषि सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., १७५७, पद्य, मूपू., (सकल वञ्छित) १०५४० (ऋषिजीने वन) ९७००-१९ जीवदया सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ६, पद्य, ढण्ढणकुमार कथा, मागु., गद्य, मूपू.. (पुष्फीअ फल) १२४६५-२३ मूपू., (जिण सासण) ९५७२-२ ढुण्ढक रास, मु. उत्तमविजय, मागु., ढाल ७, वि. १८७८, पद्य, जीवदया सज्झाय, मु. सोमसुन्दरसूरि-शिष्य, मागु., गा. १५, वि. पू., (सरसती चरण) १०४७६(+5 १६वी, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर) १२६०५-२ ढुण्ढीया नवबोल चर्चा, मु. दीपविजय, राज., वि. १८७६, गद्य, जीवविचार रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु., गा. ५०२, वि. मूपू., (श्रीमन्त) १२९३३, १३१२४ १६७६, पद्य, मूपू., (सरस वचन) ११०४४ दण्ढकमत कुमतिउत्थापन चर्चा, प्राहि., ग्रं.२४०, गद्य, मूपू., जीवविचार स्तवन, मु. वृद्धिविजय, मागु., ढाल ९, गा. ८३, वि. | (दुण्ढियो) १३२५३६ १७१२, पद्य, मूपू., (श्रीसरसती) ११०४५ तपगच्छ के तेरबेसणा की समानसामाचारी के नाम, मागु., गद्य, जैनदर्शनमण्डन छत्रीसी, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गा. ३६, पद्य, मूपू., (तपगछ १ साण) १३२१५-२ मूपू., (रिसह पमुह) ९६६३-२१ तपपद सज्झाय, मु. रायचन्द, प्राहि., गा. १४, पद्य, जै., (तप ज्ञानदर्शनचारित्र संवाद, मु. ऋषभविजय, मागु., ढाल ३, पद्य, वडो रे) ९७०७-७३(६) मूपू., (प्रणमु प्र) १०५१२-२७ तपावली, मागु., गद्य, मूपू.. (महासर्वतो) १३१७१-२४(१), १३०३० ज्ञानपंचमीपर्व कथा, मागु., गद्य, मूपू., (फलविधि पार) ९६९३ तीनदृष्टि बोल, मागु., गद्य, जै., (१० बोल एकं) ९७३८-२ ज्ञानपंचमीपर्व देववन्दन, आ. लक्ष्मीसूरि, मागु., पद्य, मूपू., तेजसारकुमार रास, मु. खेमविजय, मागु., ढाल २८, पद्य, मूपू., (श्रीसौभाग) १०८५४, १०९८०, ११३८२, ११३८४, १२७०८-२, (सुखदाई सार) १०३५४(+) १२७०९, १२७११, १०११८६, ११०८०) तेजसारकुमार रास, मु. नेमिविजय, मागु., ढाल ३९, वि. १७८७, ज्ञानपंचमीपर्व पूजा, पं. रूपविजय, मागु., वि. १८८७, पद्य, मूपू., ___पद्य, मूपू.. (परम परमेश) १०३०९(१) (सकल कुशल) ९७१४-१ तेजसारकुमार रास, मु. रामचन्द, मागु., ढाल १०९, वि. १८०८, ज्ञानपंचमीपर्वमहावीरजिन स्तवन-बृहत्, उपा. समयसुन्दर गणि, पद्य, जै., (स्वस्ति) ९३६९ मागु., ढाल ३, गा. २५, पद्य, मूपू., (प्रणमुं) १३१७१-५५) तेतलीपुत्र रास, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. २६०, वि. १५९५, ज्ञानपंचमीपर्व लघुस्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (शासनदेवि) १३७९३ पद्य, मूपू., (पञ्चमी तप) १३१७१-६(+) त्रिभुवनदीपक प्रबन्ध, आ. जयशेखरसूरि, मागु., गा. ४४८, वि. For Private And Personal Use Only Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: दत्तवाह्मण कथा, मागु., गद्य, भूपु. ( तुरमणी नगर) ९७४४-२ दमयन्ती चौपाई, ऋ. प्रेमराज, मागु., गा. २०९, पद्य, जै., देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत- पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट २ जिणन्द) १३७९८ १५वी, पद्य, मूपू., (पहिलु परमे) १२९८० (+) त्रिभुवनसिंहकुमार रास, मु. उत्तमसागर, मागु., ढाल ४४. गा. ६४७, वि. १७१२, पद्य, मुपू., (श्रीश्रुतद) १३७९५-१, १३७९४ त्रिषष्टिशलाकापुरुष उत्पत्तिक्रम मागु., गा. १३, पद्य, जै., (नमौ जिनवर) १०३०३-४ १०७३६-४ देवदत्त कथा, मागु., पद्य, मृपू., (सावस्ती ना) १२४६५-१ देवनारक के ५ बोल १६ द्वार विचार मागु गद्य, भूपू., (पहिलो " नारक) ९६७६ थावच्यामुनि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु खण्ड २ गा. ४३७, ग्रं.६५०, वि. १६९१, पद्य, मूपू., (नेमिनाथना) ११०७७ (+) थावच्यासुत चीढालिया, मु. विनयचन्द, मागु, बाल ४, वि. १८८५, पद्य, जे. (सोरठ देश) ९७०७-३ ($) ( जिणधरमसुं) ९६५६ - १ दयाछत्रीसी, मु. साधुरङ्ग, मागु, गा. ३६. वि. १६८५, पद्य, मृपू., (दयाधर्म मो) ११११८-२ दर्पणपूजा स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मुपू., ( प्रभु दरीश) ९७१४-२ दर्शनभक्ति दोहा, प्राहि. गा. ५. पद्य, भूपू. (तीनलोक तिह) " ९७८४-६ दलाली सज्झाय, मागु., गा. ३१, पद्य, मूप्पू., (दलाली इस) ९७०७-११२(5) दशार्णभद्रराजा कथा, मागु., गद्य, मूपू., (दशार्ण नाम) १२४६५२५ दशार्णभद्रराजा चौढालिया, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिनेसर) ९७०७-६ ($) दशार्णभद्र सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मागु., ढाल २, पद्य, मुपू., (प्रणमी श्र) १०५१२-२६ दसाणुवाइ, मागु, गद्य, भूपु. ( जीव समुचय) ११०२२-२ दानशीलतपभावना संवाद, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, बाल ४, गा. १०१, ग्रं.१३५, वि. १६६२, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिने ) ९३८२, ९४६३, १०८६४ - २, १११२१, १२००७, १२००९, १०३३१, ९७७६ - २ दिनमान काल, मागु., गद्य, जै., (पहिलो आपणी) १३४७१-२ दीपावली देववन्दन, आ. ज्ञानविमलसूरि मागु, गा. ७६, पद्य, मृपू. (वीर जिनवर) १२५२०१/१ " दीपावलीपर्व रास, मु. जेमलजी मुनि, मागु गा. ४३, पद्य, जै.. (भजन करो) ९७०७-११४ " दीपावलीपर्व स्तुति, मु. रत्नविमल, मागु गा. ४, पद्य, भूपू.. (सासननायक) १३७१३-१७(+) दूहा, मागु., गा. २, पद्य, जै., (कुप पडत नद) ९९६९-२ दृष्टिरागनिवारण सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ११, पद्य, मृपू. (दृष्टि राग ) ११३११-२ " देवकी ६ पुत्र रास, मागु., ढाल १९ गा. ३०७, पद्य, मूपू., (नेम Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५७३ देवपाल कथा, मागु., गद्य, मूपू., ( वसन्तपुर) १२४६५-११ देवराजवत्सराज प्रबन्ध, मु. मलयचन्द्र, मागु., गा. १२८, वि.. १५१९, पद्य, मुपू., (अम्बिकि सम) ११०१०-२ देववन्दन विधि, मु. हुकमचन्द, मागु., पद्य, जै., (सर्वारथसिध) १३०१९ देवाधिदेव रचना, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. ५६९, वि. १८६०, पद्य, मूपू., (सकल जगपति) ९७६४ देवानन्दा चौढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ४, गा. ४१, पद्य, जै., (सकल जीव सु) ९७०७-१३ देवानन्दा सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, प्राहिं, गा. १२, पद्य, मृपू. (जिनवर रूप) ९९७०-१४ द्रव्यगुणपर्याय, मागु., गद्य, जै., (द्रव्यचेतन) ११९६२ द्रव्यगुणपर्याय रास, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल १७, गा. ३८४, वि. १७२९, पद्य, मूपू., ( श्रीगुरु ) १०६२७(+), ११२३९-१, १३७९६. १३७९७ (२) द्रव्यगुणपर्याय रास-टबार्थ *, मागु., गद्य, भूपू., ( द्रव्यानुय) १०६२७, १३७९७ ($) द्रव्यभङ्गा, मागु, गद्य, मृपु. ( संस्थशेहस) ११८२४-२५ द्रौपदी चौपाई, वा. कनककीर्ति, मागु., ढाल ३९, वि. १६९३, पद्य, मुपू., (पुरिसादाणी) ९७७६-३ द्वारामतीनगरी वर्णन, मागु, गद्य, मूपु. ( तेणइ समि) ११९१६-३ द्वारिकाऋद्धिवर्णन सज्झाय, ऋ. जयमल, मागु., गा. ३२, पद्य, " जै., ( बावीसमा ) ९७०७-४२(5) धनदत्त धनदेव रास, मु. मलयचन्द्र, मागु., गा. २४२, वि. १५१९, पद्य, मृपू., ( सरसति समिण ) ११०१०-१ धन्ना अणगार सज्झाय, मु. श्रीदेव, मागु., गा. १२, पद्य, जै., (जिनवचने वय ) ९७००-१४ धन्नाऋषिगुण सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु, गा. २०, पद्य, स्था., (जिनशासन) ९७०७-४५ धन्नाऋषि सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., ( सरसति सामि ) ९९७० -१० (# ) धन्ना गीत, मु. देव, मागु, गा. १३, पद्य, जै.. (जिणवर ते) For Private And Personal Use Only १३८०१-३ धन्ना चौपाई, वा. कमलहर्ष, मागु., पद्य, मूप्पू., ( वर्द्धमान) ९९१६ धन्ना रास, वा. मतिशेखर, मागु., गा. ३३०, वि. १५१४, पद्य, मूपू., (पहिलउं पणम) १०८६५, ९७९६ धन्नाशालिभद्र रास, मु. जिनविजय, मागु., ढाल ८५, गा. २२४२, Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ ग्रं.२५००, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (ऐन्द्रश्रे) १०३७९ ध्यानस्वरुपनिरुपण प्रबन्ध, मु. भावविजय, मागु., ढाल ९, गा. धन्नाशालिभद्र रास, मु. भावरत्नसूरि, मागु., खण्ड २, वि. १७७२, १६३, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (सकल जिणेसर) १३१२३-२ पद्य, मुपू., (अरिहन्त अन) ९३५० नक्षत्र गीत, मु. धर्मदेव, मागु., गा. १५, पद्य, मूपू., (प्राणी एवश) धन्नाशालिभद्र सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. १३, पद्य, १३७१६-२ मूपू., (धन धन धन्न) ९७००-१५ नन्दराजवेरोचनप्रधान कथा, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ७, वि. धन्नाशालीभद्र सम्बन्ध, मागु., गद्य, मूपू.. (राजगृहि नग) ९४९२- १८७९, पद्य, जै., (जिन वीर जि) ९७०७-२७ नन्दिषेण चोपाई, मु. दानविनय, मागु., गा. ८६, वि. १६६५, पद्य, धन्ना सज्झाय, मु. रत्न, मागु., गा. १५, पद्य, जै., (नगरकाकन्दी) मूपू., (जिनेसर पाय) १२९१०-२ ९७०७-११३ नन्दिषेणमुनि चौढालिया, मु. उदयवल्लभ, मागु., ढाल ४, गा. धन्य चरित्र, मागु., पद्य, मूपू., (-) ९५५७) ३२, पद्य, मूपू.. (जय जिन श्र) ९७०७-१०) धम्मिल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., खण्ड ३ ढाल-२०, गा. नन्दिषेणमुनि रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल १६, ग्रं.४२१, वि. १००६, वि. १७१५, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) १०३६३ १७२५, पद्य, मूपू., (सुत सिद्धा) ९८९७-२(5) धम्मिल रास, आ. सोमविमलसूरि, मागु., गा. २८२, वि. १५९१, नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. जिनराज, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (सरसति मुझ) १११०३ (साधुजी न) ९९७०-१३) धर्मजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (धरम जिनेसर) ९९२१- नन्दिषेणमुनि सज्झाय, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (पञ्चसयां) ९७००-१ धर्मजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (धर्मनाथ जि) नन्दीश्वरजिन स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नन्दिसर वर) ९९२१-४३(5) ११०४९-२ धर्मजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. १२, पद्य, मूपू., (धर्म नन्दीश्वरद्वीप बावनजिनप्रसाद स्तवन, गणि शिवचन्द्र, मागु., वि. जिणेस) १०५१२-२८ १८७७, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) १२७१२(+) धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (धर्म | नन्दीषेणमुनि चौढालिया, मु. पुर्णमुनि, मागु., ढाल ४, पद्य, मूपू., जिनवर) १०८२३-१६ (सारद पय) ९९१८ धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू.. (धर्म नमस्कारचौवीसी, मु. पद्मविजय, मागु., २४ चैत्यवंदन, गा. ७२, जिनेस) १०८२३-३४ पद्य, मूपू., (सोमवदन रवि) १०४१८-३), १०३७४ धर्मजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (नेह । नमस्कार चौवीसी, मु. लखमो, मागु., अध्याय नयन सइ) १०८२३-१० २४नमस्कार+कळश, पद्य, जै., (पदम जिणवर) १०३७१-१ धर्मजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (मुगट | नमस्कार महामन्त्र चौपाई, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल ४१, गा. भलो) १०४१८-७17 ८८१, वि. १७६२, पद्य, मूपू., (अरिहन्त आद) ९७५६, १३७५० धर्मजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (भवि तुमे) नमस्कार महामन्त्र रास, मागु., गा. २२, पद्य, मूपू., (पहिलो ९९२१-४४(5) लीजि) ९६५७-५८) धर्म परीक्षा, मागु., गा. २१६, पद्य, जै., (हरिहरं ब्र) ९४९१ नमस्कार महामन्त्र रास, मु. लब्धिविजय, मागु., ढाल २१, पद्य, धर्मरुचि अणगार सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, राज., गा. १५, वि. मुपू.. (श्रीमत गोड) १०३६७ १८६५, पद्य, स्था., (चम्पानगरनी) ९७०७-५४ नमस्कार महामन्त्र स्तवन, मु. प्रेमराज, मागु., गा. १३, पद्य, जै., धमधिर्म विचार, मु. ताराचन्द, मागु., गा. ३६६, वि. १६५३, पद्य, (जिन गणधर) १३१७१-२५९ मूपू., (सरसति देवि) ९५८० नमिजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (इकवीसमा) ९९२१ध्यानबत्रीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ३६, पद्य, जै.. ६३) (ग्यान सरूप) १०३०३-११), १०७३६-११(+) नमिजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., (नमि ध्यानमाला, कवि नेमिदास रामजी शाह कवि, मागु., ढाल । जिनराज) ९९२१-६२(5) ६+कलश, गा. १४३, वि. १७६६, पद्य, मूपू., (श्रीजिनवाण) नमिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, मूपू., (नमीनाथ इकव) १२१२० ९९२१-६१) (२) ध्यानमाला-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (श्रीजिन चो) १२१२० । नमिजिन स्तवन, मु. खिमाविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., For Private And Personal Use Only Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७५ (विप्रानन्द) ९७१८-३ नववाडी सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ११, गा. ९७, वि. नयचक्र विचार, मागु., गद्य, जै., (ए षट द्रव) १२९५६ १७२९, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश) १३८०१-१ नरक विभक्ति, मागु., गा. १४१, पद्य, जै., (-) १२२११(६) नवसेना विधान, प्राहिं., गा. १२, पद्य, (प्रथम हि) १०३०३-३८), नरकविस्तार स्तवन, मागु., ढाल ६, गा. ३५, पद्य, मूपू., १०७३६-३८) (वर्द्धमानज) १०९०५-२ नामनिर्णय विधान, प्राहिं., गा. ११, पद्य, जै., (काहु दिनका) नरनारी प्रबोध, मागु., गा. १६८, पद्य, मूपू., (वन्दिय त्र) १२०२२ १०३०३-२४), १०७३६-२४) नर्मदासुन्दरी कथा, मागु., गद्य, मूपू., (एहज जम्बूद) १२४९४-१(+) | निमित्तउपादान दोहरा, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ७, नर्मदासुन्दरी रास-शीलव्रतविषये, मु. मोहनविजय, मागु., ढाल पद्य, जै., (गुरु उपदेस) १०३०३-४८५), १०७३६-४६(4) ६३, गा. १४५४, ग्रं.१४६६, वि. १७५४, पद्य, मूपू., निमित्तकारनउपादानकारणनिर्णय सङ्ग्रह, प्राहि., गद्य, जै., (प्रभुचरणाम) १३५७७), १०७२२ (प्रथम ही) १०३०३-४७), १०७३६-४५) नलदमयन्ती रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ६ खंड/३९ निर्मोही ढाल, ऋ. रतनचन्द, मागु., ढाल ५, वि. १८७४, पद्य, ढाल, गा. ९३१, ग्रं.१३५०, वि. १६७३, पद्य, मूपु., जै., (निरमोही गु) ९७०७-५) (सीमन्धरस्व) ९३१८ नेमगोपी संवाद-चौवीसचोक, मु. अमृतविजय, मागु., २४ चोक, नवअङ्ग पूजा दुहा, मु. वीरविजय, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू.. _ वि. १८३९, पद्य, मूपू., (एक दिवस वस) ११०७५-१ (जल भरि सम) १०५९०-१४) नेमराजिमती गीत, मु. कवियण, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., नवअङ्गपूजा दोहा, मु. आनन्दघन, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (समुद्रविजय) १३७१४-७ (परम उपगारी) ९४२१-२, ९६५९-२ नेमराजिमती नवरसो, मु. रूपचन्द, मागु., ढाल ९, गा. ४०, पद्य, नवतत्त्व १३ द्वार विचार, मागु., गद्य, जै., (जीव चेतन) १२८०२(4) ____ मूपू., (समुद्रविजय) ११३८०-२७ नवतत्त्व २७६ भेद, मागु., गद्य, मूपू., (जीवतत्त्व) १००९७-२ नेमराजिमती पद, प्राहि., गा. ३, पद्य, मूपू., (मे तो गिरन) नवतत्त्व स्तवन, मु. विवेकविजय, मागु., वि. १८७२, पद्य, मूपू., ९७०७-१०२) (सरस्वतीनें) १०१२९-१७ नेमराजिमती पद, चन्द्रप्रताप, मागु., गा. ५, पद्य, जै., नवदुर्गा विधान, प्राहिं., गा. ९, पद्य, जै., (प्रथम हि) १०३०३- (सांवराजी) ९७०७-६२६) २३१, १०७३६-२३ नेमराजिमती पद, ऋ. विनयचन्द, प्राहिं., गा. ७, पद्य, जै., (नेम नवपद गुंहली, मु. शुभविजय, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू.. वतावन) ९७०७-८०६) (आतमरामी मु) १००२०-२६) नेमराजिमती पद, मु. शिवरतन, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. नवपदजी स्तवन, मु. दानविजय, मागु., गा. २३, वि. १७६२, (बावीस सुभट) ९७०७-८४६) पद्य, मूपू.. (सकल कुशल) १०२७६-७(+) नेमराजिमती बारमासो, मागु., गा. ५०, पद्य, मूपू.. (प्रेम गहेल) नवपद पूजा, मु. देवचन्द्र, मागु., ढाल ९, पद्य, मूपू., (परम मन्त्र) | ९६५२-२(4) ९३८८-३० नेमराजिमती बारमासो, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. १४, पद्य, मूपू., नवपद पूजा, पं. पद्मविजय, मागु., वि. १८३८, पद्य, मूपू., (वेसाखे वन) ९३४७-२२० । (श्रुतदायक) १००९५ नेमराजिमती बारमासो, वा. देवविजय, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., नवपद वचनिका, मागु., गद्य, मूपू., (ॐ ह्री नम) १०९८१ (ब्रह्माणी) ९७०३-२ नवपद स्तवन, मागु., गा.७, पद्य, मूपू., (गोतम पुच्छ) ९७००-१२ | नेमराजिमती बारमासो, मु. विनयचन्द, मागु., गा. १३, पद्य, जै., नवपद स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., गा.५, पद्य, मूपू., | (चढी सांवणे) ९७०७-४१%) (गोयम नाणी) १०२७६-९) नेमराजिमती बारमासो, उपा. विनयविजय , मागु., गा. २८, वि. नवरत्न कवित, प्राहि., गा. ११, पद्य, जै., (धन्वन्तरि) १०३०३- १७२८, पद्य, मूपू., (मागसर मासे) ११३८०-१(5) २५), १०७३६-२५) नेमराजिमती लावणी, मु. जिनदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., नववाडि सज्झाय, मु. अमरविजय, मागु., गा. ५६, पद्य, मूपू., (लग रही रे) ९७०७-३२(६) (परम प्रभुत) १०८८२ नेमराजिमती सज्झाय, प्राहिं., पद्य, मूपू.. (किम आया कि) नववाडि सज्झाय, कवि विजयभद्र, मागु., गा. २८, पद्य, मूपू., __ ९७०७-१११ (पहेला प्रण) ९५७२-१९ नेमिजिन चरित्र, मागु., गद्य, मूपू., (जम्बुद्वीप) ९८६०-२६१ For Private And Personal Use Only Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ नेमिजिन पद, मागु., पद्य, मूपू., (जयकारि श्र) ९९२१-६६३) (सुरतरुनी) ९५७२-७ नेमिजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (नेम जिणन्द) | पंचमीतपपारवानी विधि, मागु., गद्य, मूपू., (तपकरी उजमण) ९९२१-६५६) १३१७१-८) नेमिजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (नेमनाथ पंचमीतिथि स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., बाई) ९९२१-६४(45) (सरसति माता) १०५१२-१२ नेमिजिन रास, पं. पद्मविजय, मागु., अध्याय ४ खंड, १६९ ढाल, | पंचाख्यान चौपाई, मु. रत्नसुन्दरसूरि, मागु., ५ अधिकार, गा. गा. ५४२५, वि. १८२०, पद्य, मूपू., (उदधि सुता) १००६४ २६१६, वि. १६२२, पद्य, मूपू., (प्रणम्य पू) ९९७५-5) नेमिजिन रास, मु. रुपविजय, मागु., ढाल ६, पद्य, मूपू., (जिन | पञ्च ढालीया, प्राहि., ढाल ५, पद्य, मूपू., (लाल तुम्ह) ९७०७सासन) ९५६० २१६) नेमिजिन लावणी, मु. जिनदास, प्राहि., गा. ४, पद्य, मूपू., (मति पञ्चपदविधान वर्णन, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. १२, जावो) ९७०७-५७० पद्य, जै., (नमो ध्यान) १०३०३-२००, १०७३६-२०६८) नेमिजिन सलोको, कवि उदयरत्न, मागु., गा. ५७, पद्य, मूपू., पञ्चपाण्डव प्रबन्ध, मागु., गद्य, मूपू., (कुरुदेशने) ९४९२-१० (सिद्धि बुद) ९५७६-१ पञ्चपाण्डव सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. २०, पद्य, मूपू., नेमिजिन स्तवन, मु. अमृत, मागु., गा.८, पद्य, मूपू., (एतो बाल (हस्तीनापुर) ९९७०-९१) थक) ११०३९-६ पञ्चवाक्यसुकनावली, मागु., गद्य, जै., (ऐ माणसथी) १३५०९-१ नेमिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (नेम पञ्चाङ्गविधि, मु. मेघराज, मागु., गा. ५८, पद्य, मूपू., जिणन्द) १०५१२-२० (गवरीनन्द) ११०६७-२(१), १३४८३-२६) नेमिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पञ्चेन्द्रीय गीत, मु. गुणसागर, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (साम्भलीया) १०८२३-२३ (मयगलमातोवन) ११६१०-९ नेमिजिन स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., | पट्टावली, मागु., गद्य, जै., (महावीर देव) १०५७९-२, १२३११, (उज्जलगिरी) १०३७१-५ ___१२३१२, १२३१७ नेमिजिन स्तवन, श्रा. रिषभ, मागु., ढाल ४, गा. २४, पद्य, मूपू., | पट्टावली, मागु., गद्य, मूपू.. (वर्द्धमानस) १२३०७ (सरसती सामन) १००२४ पट्टावली अञ्चलगच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (जिणइ कलिका) नेमिजिन स्तवन-समवसरणविचारगर्भित, मु. सोमसुन्दरसूरि १०७८५-२", १११२२-२ शिष्य, मागु., गा. ३६ कडी, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (जायव पट्टावली अञ्चलगच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (महावीरन पा) कुल) १०२६२-५ ११३५३ नेमिजिन स्तुति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू.. (सुरअसुरवन) १०९७७- | पट्टावली तपागच्छीय, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य) १२३१४१), ६, ११६०९-६ १२३१६, १३२१५-१ पंचकल्याणकअभिषेक स्तवन, मु. लक्ष्मी, मागु., ढाल ५, पद्य, पट्टावली तपागच्छीय, मागु., ग्रं.२२५०, गद्य, मूपू., (वीरोवर प्र) मूपू., (जय केवल कम) १०५९०-१२) १३०६८, १३२३० पंचकल्याणक पूजा, पं. रूपविजय, मागु., ढाल ११, गा. १४०, पण्डितशिक्षा पद, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै., (ऐ सौयो प्र) १०७३६ ग्रं.२१०, वि. १८८९, पद्य, मूपू.. (अमरनिकर नि) १०११५ पंचकल्याणक पूजा-पार्श्वजिन, पं. वीरविजय, मागु., वि. १८८९, पद्मप्रभजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (पद्मप्रभुज) ९९२१ पद्य, मूपू.. (सद्धेश्वर) १०४९५५), ११०५६(+) पंचतीर्थ स्तवन, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., पद्मप्रभजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., (आदि हे आदि) १३७१४-८ (पद्मप्रभु) ९९२१-१७#$) | पंचमआरा ३० बोल दुढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल २, | पद्मप्रभजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., गा. ३०, पद्य, मूपू., (धर्मकथा हि) ९७०७-१२ (पद्मप्रभुज) ९९२१-१६() पंचमआरा सज्झाय, मु. जिनहर्ष, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (वीर | पद्मावती आराधना, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ३, गा. कहे गौ) १०५१३-२, १११६६-१, ९७००-८, ९९७०-६) ३६, पद्य, मूपू., (हवे राणी) ९६०८-२) पंचमहाव्रत सज्झाय, आ. देवसूरि, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., परनिन्दात्याग सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. ९, १८) For Private And Personal Use Only Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७७ पद्य, मूपू., (सुन्दर पाप) ११११२-६ धर) ९९२१-६८() परमार्थअष्टपदी, प्राहिं., गा. ८, पद्य, जै.. (ऐसै ज्यौं) १०३०३- पार्श्वजिन लघुस्तवन, मु. भक्तिलाभ, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (जीरावलौ छइ) ९५८१-८(+) परमार्थ वचनिका, प्राहिं., गा. २६, पद्य, जै., (करम रोग की) पार्श्वजिन लघुस्तवन- जीरावला, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., १०७३६-४३(+) (कामिक तीरथ) ९५८१-९(१) परमार्थहिण्डाल अष्टपदी, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (सहज पार्श्वजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., हिण्डो) १०३०३-६९ (साहेबा सरस) १०५१२-२४ परमार्थ हिण्डोलना, मु. केसवदास, मागु., गा. ८, पद्य, जै., पार्श्वजिन स्तवन, ऋ. ज्ञानचन्द, मागु., गा.७, पद्य, जै., (पास (हरख हिण्डो) १०७३६-६१(+) जिणेसर) ९५७२-२० पर्युषणपर्व स्तुति, आ. विजयदेवसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (पर्व पजुसण) १३७१३-१८+) (अङ्खीयां) १०८२३-११ पाण्डव रास, आ. गुणसागरसूरि, मागु., ९ खंड/१५१ ढाल, पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (जिन ग्रं.५७५०, वि. १६७६, पद्य, मूपू.. (श्रीजिन आद) १२५७६, पास बड़) ११११६-१४ ९९६४, १२५७७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. (परम पापबुद्धिराजा धर्मबुद्धिमन्त्री रास, मु. नेमिविजय, मागु., ढाल पुरुष) १०८२३-३६ २७, वि. १७६८, पद्य, मूपू., (परम ज्योति) १३८००१), १३७९९ | पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु.गा. ५, पद्य, मूपू.. (पास पार्श्वजिन १० भव चौपाई, कवि नन्दलाल, मागु., ढाल १०, वि. | जिणेसर) १०८२३-४१ १८७६, पद्य, जै., (प्रथम नमो) ९७५७ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन कलश-नवपल्लव- माङ्गरोलमण्डन, श्रा. वच्छ भण्डारी, | (पूजयो रे) १०८२३-४० मागु., गा. २२, पद्य, मूपू., (श्रीसौराष) ११२६१-२ पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., पार्श्वजिन गीत, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (प्रणमउ पास) १०८२३-३१ (चिन्तामणि) १०३०३-६८१), १०७३६-६०(+) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (प्रभु पार्श्वजिन चरित्र, मागु., पद्य, मूपू., (-) ९८६०-३७ पास) १०८२३-४४ पार्श्वजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, प्राहि., पद्य, मूपू., (पारस पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (मेरे पारस) ९९२१-६७#5) साहिब) १०८२३-९ पार्श्वजिन च्यवनकल्याणक स्तवन, मु. कपूरसागर, मागु., ढाल | पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., १५, पद्य, मूपू.. (सकल मनोरथ) १०५९०-६, १०९६०-१ (विमलवर सकल) १०८२३-२५ पार्श्वजिन छन्द-अंतरीक्ष, वा. भावविजय, मागु., गा. ५१, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., मूपू.. (सरसत मात) १०२९६ (साम्भलि सह) १०८२३-२४ पार्श्वजिन छन्द-गोडी, मागु., गा.७, पद्य, जै., (सरसति धो) पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. (सुख ९६९९-३६) सागर) १०८२३-२६ पार्श्वजिन छन्द-गौडी-उत्पत्ति, मु. कल्याण, मागु., गा. २८, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. जै., (साचा स्वाम) १०९१७-२ (प्रभु पास) १०८२३-३७ पार्श्वजिन छन्द-नाकोडा, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा.८, | पार्श्वजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., गा. ५, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (आपण घर बेठ) ९५८१-१०+) (प्रभु दरिस) १०८२३-३ पार्श्वजिन छन्द-शर्खेश्वर, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ७, पद्य, पार्श्वजिन स्तवन, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू, ___ मूपू., (सेवो पास) १०३३०-३(4) (सरसति सामि) ११६१०-३ पार्श्वजिन छन्द-शर्केश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ८, पद्य, | पार्श्वजिन स्तवन-अणहिलपुरगोडीजी प्रतिष्ठा महोत्सव, मु. मूपू., (सकल सुरासु) १३७१४-४ प्रीतिविमल, मागु., ढाल ५, गा. ५५, पद्य, मूपू., (वाणी ब्रह) पार्श्वजिन पद, मागु., पद्य, मूपू., (जयकारि श्र) ९९२१-६९१६) ९८२६ पार्श्वजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (भवि भाव पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, For Private And Personal Use Only Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५७८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ मूपू., (धनना ठाकुर) १०८२३-२२ पार्श्वजिन होरी, प्राहिं., गा. २, पद्य, मूपू., (चालो अब खे) पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, ९३४७-१४) मूपू., (मङ्गल कल्प) १०८२३-२१ पाश्वजिन स्तवन-अक्षयनिधितप गर्भित, पं. पद्मविजय, मागु., पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. सूरविजय, मागु., गा. २६, वि. गा. १२, वि. १८४३, पद्य, मूपू., (तपवर कीजे) ११३९१-३, १७१३, पद्य, मूपू., (सरसति देवी) १०२७६-११() १३२०३-३, ९७१७-३() पार्श्वजिन स्तवन-गोडीजी, मु. गुणसागर, मागु., गा. ९, पद्य, पासाकेवली सुकनावली, मागु., गद्य, (१११ उत्तम) ९६९९-१(७) मूपू., (सरसति सामि) ११६१०-६ पाहुडपाहुड वर्णन, मागु., गद्य, मूपू., (पाहुड पाहु) ९८३७-१(+) पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ७, पद्य, पुण्यछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३६, वि. १६६९, मूपू., (प्रणमुं पा) ११११६-६ पद्य, मूपू., (पुण्यतणां) ११११८-३ पार्श्वजिन स्तवन-चिन्तामणि, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ८, पद्य, | पुण्यपालगुणसुन्दरी रास, मु. मोहनविजय, मागु., ढाल ३६, गा. मूपू., (प्रणमुं पा) ११११६-७ ७७५, वि. १७६३, पद्य, मूपू., (सकलसिद्धि) १३७४५, १३७४६, पार्श्वजिन स्तवन-भटेवा, मु. ज्ञानविमल, मागु.. गा. ९, पद्य, मूपू., ९७५० (भटेवा पासज) ११११६-५ पुण्यप्रकाश स्तवन, उपा. विनयविजय , मागु., ढाल ८+कलश, पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मागु., पद्य, मूपू., (सोसर सङ) गा. १०२, वि. १७२९, पद्य, मूपू., (सकल सिद्धि) ११११०, ९५८१-६) ९७६२, १०९११, ११०२५ पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, वा. उदयविजय, मागु., गा. ३६, पुण्यसार रास-पुण्याधिकारे, मु. पुण्यकीर्ति, मागु., ढाल ९, गा. पद्य, मूपू., (सकल मङ्गल) १३१२३-३ २०५, वि. १६६६, पद्य, मूपू.. (नाभिराय नन) ९३४१-१ पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ५, पद्य, पुद्गल विचार, मागु., गद्य, जै., (पुद्गलनो) १२९७९-२, १३२३६ मूपू.. (अन्तरजामी) ९६२३-८(5) पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ७, पद्य, | पुरन्दरकुमार रास, वा. मालदेव, मागु., ढाल १२, गा. ३७६, पद्य, मूपू., (पास जिन गा) १०८२३-२० मूपू.. (वरदाई श्रु) १३७५२ पार्श्वजिन स्तवन-शद्धेश्वर, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, पुष्पपूजा चर्चा-ढुण्ढकमत निरसन, पं. देवचन्द्रजी, मागु., वि. मूपू.. (पास सङ्ग्रेस) ११११६-३ १८५८, गद्य, मूपू.. (अथ सं. १८५) १३१२५ पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, पुष्पवती सातढालिया, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ७, पद्य, मूपू., मूपू., (प्रभुजी पा) ११११६-४ (अविनासी अव) ९७०७-४६) पार्श्वजिन स्तवन-शखेश्वर, पं. सुन्दरविजय, मागु., गा. ७, वि. पूजाविधि स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ढाल ७, गा. ७५, १७७८, पद्य, मूपू.. (श्रीशखेस) १०४१८-१४) । वि. १७४१, पद्य, मूपू., (जिनवदन निव) १०४४९ पार्श्वजिन स्तवन-सहस्रफणा, मु. पद्मविजय, मागु., गा. ५, पद्य, | पूजाविधि स्तवन, मु. लालविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू.. मूपू., (चिन्तामणि) १०४३१-२ (जिनचोविसे) १३७१४-५ पार्श्वजिन स्तवन-स्तम्भन, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., पृथ्वीचन्द गुणसागर वेली, मागु., गा. ५४, पद्य, मूपू., (सिरि (सकल मूरत) १०३७१-६ नेमिज) १०२४० पार्श्वजिन स्तुति, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (प्रभु पृथ्वीचन्द्रनेरन्द्रचरित्र, आ. माणिक्यसुन्दरसूरि, मागु., ग्रं.२१००, पारस) १०५१२-१५ ___ गद्य, मूपू., (श्रीमहीपाल) १२३६८(१) । पार्श्वजिन स्तुति, मु. पुण्यरुचि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीपास | पौषध के २१ दोष, मागु., गद्य, मूपू., (वासी विना) ९८३७-९१) जि) ९३४७-१८) पौषधव्रत सज्झाय, ऋ. विनयचन्द, मागु., गा. ९, पद्य, जै., (व्रत पार्श्वजिन स्तुति-पौषदशमी, आ. उदयसमुद्रसूरि, मागु., गा. ४, इग्या) ९७०७-५३६) पद्य, मूपू., (जय पास देव) १३७१३-१०+) पौषधसामाइक सज्झाय, पण्डित सुमतिकमल, मागु., गा. १०, पार्श्वजिन स्तोत्र, मु. चरणप्रमोद-शिष्य, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू.. (वीर जिणवर) ११६८४-४ (सकल सदा फल) १३७१४-९ प्रत्याख्यान ४९ भाङ्गा, मागु., गद्य, मूपू., (मनई न करु) पार्श्वजिन स्तोत्र-जीरावला, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., (जीरावली ११७२४-२ दे) ९५८१-७) प्रदेशीराजा केशीसम्बध, मागु., गद्य, मूपू., (स्वेतम्बिक) ९४९२ For Private And Personal Use Only Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५७९ सकल मन) १३७१३-२६), ११२१४-२(१), १००३१-२, ९३४७प्रदेशीराजा सज्झाय, मु. कवियण, मागु., गा. १९, पद्य, मूपू., १९ (सेतम्बिका) १३५०९-२ बुढ़ापा रास, मु. चन्द, राज., ढाल २२, वि. १८३६, पद्य, मूपू., प्रश्न सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (सम्यकग्यान) ९७८४-५ (दयाज माता) १३७५७ प्रश्नसमुच्चयभाषा, मु. मन्दिविजय, मागु., गद्य, मूपू., (--) बुढ़ापा रास, श्रा. मोतीचन्द, राज., ढाल २२, वि. १८३६, पद्य, १०२४७-१ मूपू.. (दया ज माता) ९७०७-१९(5) प्रश्नोत्तरदसदोहरा, प्राहि., गा. १०, पद्य, जै., (कोन वस्तु) बुद्धि रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु.. गा. ६२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं १०३०३-३०), १०७३६-३०) दे) ९६५२-१), ११२०२-३ प्रश्नोत्तरमाला, बनारसीदास, प्राहि., गा. २१, पद्य, वै., (नमित बूटेरायजी महाराज की आत्मकथा, मु. बुद्धिविजय, प्राहिं., गद्य, सीस) १०३०३-३१), १०७३६-३१) मूपू., (दिल्ली का) १२७४८-१ प्रश्नोत्तरमाला, ऋ. रतनचन्द, मागु., वि. १९०७, प+ग, जै., बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (दस प्रकारे) ९७३२(45) (श्रीजिण आद) १३२८३ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (पाञ्च मिथ) १२८२१ प्रश्नोत्तर रत्नमाला, मागु., गद्य, मूपू., (हवै प्रश्न) १२६६९ बोल सङ्ग्रह, मागु., गद्य, मूपू., (हिवें ५ दे) १२८२२ प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक, वा. क्षमाकल्याण, मागु., १५१ प्रश्नोत्तर, वि. | ब्रह्मचर्य दश समाधिस्थान कुलक, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., गा. १८५३, गद्य, मूपू., (पहिलै बोलै) १२७८२), १२९५४ ४२, पद्य, मूपू., (श्रीनेमीश) ९४६८-२ (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, मागु., गद्य, मूपू.. (पहिले बोले) ब्रह्मचर्यबावनी, आ. समरचन्द्रसूरि, मागु., गा. ५२, पद्य, मूपू., १२९४८ (सरसति अमृत) ९४६८-१ (२) प्रश्नोत्तरसार्द्धशतक-बीजक, मागु., गद्य, मूपू., (-) ९८३८७) ब्रह्मबावनी, मु. निहालचन्द, प्राहिं., गा. ५२, वि. १८०१, पद्य, प्रास्ताविक कवित्त, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. २३, पद्य, पू.. (ॐकार अपार) ११९४६ जै.. (पूरव कि पछ) १०३०३-४११), १०७३६-४१(+) भरतबाहुबलीजी सलोको, कवि उदयरत्न, मागु., गा. ६८, पद्य, प्रियकर राजा रास, मु. ज्ञानमुर्ति, मागु., पद्य, जै.. (-) मूपू., (प्रथम प्रण) ९५७६-२ भरतबाहुबली सज्झाय, मु. रामविजय, मागु., ढाल ४, वि. १७७१, प्रियमेलक चौपाई-दानाधिकारे, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ९९७०-५) ढाल ११, गा. २२०, वि. १६७२, पद्य, मूपू., (प्रणमुं सद) भरतबाहुबली सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ७, ९५१६"), ९८३२), ९८२०+), १०५३०, १०९६२, १२५७२-१, पद्य, मूपू., (राजतणा अति) ९९७०-१५) ९८७८-१(#5), ९७७६-१६, १२३८१-२६), १३७५६६) भरतेश्वरबाहुबली रास, आ. शालिभद्रसूरि, मागु., वि. १२४१, बनारसीविलास बीजक, प्राहि., गद्य, जै., (-) १०३०३-७१(+) पद्य, मूपू.. (रिसह जिणेस) १३७५८) बलभद्रमुनि सज्झाय, ऋ. चोथमल, मागु., गा. १४, पद्य, जै., भलेनो अर्थ, मागु., गद्य, मूपू., (प्रभु नीशा) १०५४३ (मासखमणने) ९७०७-११० भवदेवनागिला सज्झाय, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ८, बांसुरी पद, मोहन, मागु., गा. ६, पद्य, वै., (सुण वांसडल) पद्य, मूपू.. (भवदेव भाई) ९७००-२ ९७०७-५५ भवदेवनागीला सज्झाय, ऋ. रतनचन्द, मागु., गा. ११, वि. बारव्रतना नियमनी टीप, मागु., वि. १७९७, गद्य, मूपू., (स्वस्ति) १८७२, पद्य, स्था., (भवदेव जागी) ९७०७-२६(६) १०५०२) भवसिन्धु चतुईसी, मागु., गा. १४, पद्य, जै., (जैसै काहू) बासठमार्गणा, मागु... (-)-<प्रतहीन.> १०७३६-१५) (२) बासठमार्गणा-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (देव गतिमां) भीमसेन कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अवन्तीनांम) १२४६५-१७ १२८०३-२(+), १२८०५-२ भुवनभानुकेवली चरित्र, आ. हेमचन्द्रसूरि मलधारि, मागु., पद्य, (बासठमार्गणायां मोहनीय करम बन्धोदय सत्ता स्थान भाङ्गा ___-)-<प्रतहीन.> यन्त्र, मागु., , मूपू.. (अथ बासठमार) १२८०६ (२) भुवनभानुकेवली चरित्र-बालावबोध, मु. हरिकलश, मागु., बीजतिथि स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., ढाल २, पद्य, मूपू., गद्य, मूपू., (सिरिवीर) १२३७८, १३०६१ (हारे मोरे) १०५१२-१६ भुवनानन्द रिपुमर्दनराजा कथा, मागु., गद्य, म्पू., (एहज भरतक्ष) बीजतिथि स्तुति, मु. लब्धिविजय, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (दिन | १२४९४-६० ९५८२७ For Private And Personal Use Only Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org: ५८० मङ्गलकलश रास, मु. ज्ञानरुचि, मागु., गा. ३५०, वि. १५२५, पद्य, मूपू., (आदि जिणवर) ९८३४ क " मङ्गलकलस चरित्र, आ. सर्वानन्दसूरि, मागु गा. १२८, पद्य, मूपू., (सयल मङ्गल) १३१९४ मत्सोदरकुमार रास, गणि साधुकिर्ति, मागु., गा. १५७, पद्य, भूपू., (-) १३७५९ (5) मदनकुमार रास-शीलव्रताधिकारे, मु. चतुरसागर, मागु., ढाल २१, ३६० वि. १७७२, पद्य, गुपू (नागे नवनि) ११०६४ १३८१६-२ मदनधनदेव रास, पं. पद्मविजय, मागु., ढाल १९, गा. ४६२, वि. १८५७, पद्य, भूपु (विहरमान) १३७६०२/१ " मदनरेखा रास, मागु., गा. १८८, पद्य, मूपू., (जूआ मांस ) ९३८७ मदनरेखा रास, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ६, वि. १८७०, पद्य, स्था., (आदि धरम घो) ९७०७-१६ मदनरेखा सज्झाय, मागु., गा. १६३, पद्य, मृपू., (अरिहन्त सि) ९८२९ ($) मधुबिन्दु सज्झाय, मु. चरण प्रमोद - शिष्य, मागु., गा. १०, पद्य, मृपू. ( सरसति मुझन) ११६१०-१० मरुदेवीमाता सज्झाय, मु. कल्याण, मागु., गा. १३, पद्य, मुपू., ( रिषभ जीवन ) ९५७२-२९ मरुदेवीमाता सज्झाय, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १३, वि. १८३७, पद्य, जै.. ( नगरी वनीता) ९७०७-६९१ मल्लिजिन पद, मागु., पद्य, मूपू., ( साहबा मारा ) ९९२१-५६ * मल्लिजिन पद प्राहि. गा. १, पद्य, मुपु. ( मल्लिनाथ) ९९२१ · (#S) ५७/**) मल्लिजिन प्रार्थना- स्तुति, मागु, पद्य, मृपू., (मल्लीनाथ) ९९२१ (#$) ५५ (+) महावीरजिन १० श्रावक नाम मागु, गद्य, भूपू.. ( आनन्द कामद) १२६६१-३ महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. ज्ञानकुशल, मागु., ढाल ११, गा. ८७, वि. १७३१, पद्य, मूपू., ( पूरण प्रेम) १०४४२, ११०५१ (क) महावीरजिन २७ भव स्तवन, मु. लालविजय, मागु., ढाल ६, गा. ८१. वि. १६६२, पद्य, मृपू. (विमलकमलदलल) १०३३४, ११३५७, ११३८१-१३ १०५१९ महावीरजिन २७ भव स्तवन, पं. वीरविजय, मागु, ढाल ५. वि. १९०१, पद्य, मृपू. श्रीशुभविज) १००२८-२२ महावीरजिन गहुंली मागु गा. ७, पद्य, मृपू (प्रभु मारी) " १००२०-१४(5) महावीरजिन गहुंली, मु. ऋद्धिसौभाग्य, मागु., गा. ९, पद्य, मृपू., (श्रीजिनवीर) ११०३९-१ महावीरजिन चौढालिया, ॠ. रायचन्द, राज., ढाल ४, गा. ६३, कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ ($) वि. १८३९, पद्य, जै, (सिद्धार्थक ) ९४०४-८ महावीरजिनजन्माभिषेक कलश, आ. मङ्गलसूरि, मागु., पद्य, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मृपू.. (विनयनवरी) १२७३४ महावीरजिन निर्वाण महिमा स्तवन- दीपावलीपर्व, मु. गुणहर्ष, मागु., ढाल १०, गा. १२५, पद्य, मूपू., ( श्रमणसङ्घत) १०१३० (+), ९९८१, १०५०१, ११०८९ महावीरजिन पञ्चकल्याणक वधावा स्तवन, मु. दीपविजय, मागु., ढाल ५, पद्य, पू., (वन्दी जगजन) ११०३९-८ महावीरजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., ( वर्द्धमान) ९९२१-७० (#S) महावीरजिन पद, मु. सुमति मागु, गा. ५. पद्य भू.. (सासननायक ) ९९२१-७१ (#5) महावीरजिन पारणा स्तवन, मु. माल, मागु., गा. ३१, पद्य, मूपू .. (श्रीअरिहन) ११०३९-७ महावीर जिनविनती स्तवन उपा. समयसुन्दर गणि, मागु, गा. " १९, पद्य, मूपू., (वीर सुणो) ९७०७-५१(३) महावीरजिन सज्झाय, मु. सकल, मागु., गा. १२, पद्य, जै., (एक वरसीजी) ९७००-२१ महावीरजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, राज., गा. ७, पद्य, मूपू., ( नीजरां रहस ) ९४९३-२ (२) महावीरजिन स्तवन-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू., (--) ९४९३-२ महावीरजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ( सरसति मातन) १०५१२-७ " महावीरजिन सावन, मु. ऋषभविजय, मागु, गा. ६, पद्य, मृपू. ( सरसति माता) १०५१२-२ महावीरजिन सावन, मु. जिनदास, मागु, गा. ५. पद्म, मृयू.. (सन्देसो दे) ९३४७-१५ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. १०, पद्य, भूपू., (जिनमुख देख ) १०४९६-१ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, गा. ५. पच, भूपू.. ( बलिजाउं) १०८२३-३२ महावीरजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ९, पद्य, मृपू., (मोहन मुरति ) १०८२३-३८ महावीर जिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु, गा. ६, पद्य, भूपू.. (वाटडी विलो) ११११६-९ (#) महावीरजिन स्तवन, गु. दानविजय, मागु, ढाल ७, गा. १३६. वि. १७५५, पद्य, मूपू., (सकल कुशल) १०३३५ महावीरजिन स्तवन, मु. धर्मसी, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (श्रीसीधार) ९७०७-२३(क) For Private And Personal Use Only महावीरजिन स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु, गा. ६. मु.. (साचुंरि पर) १०३७१-७ Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८१ महावीरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. महीपाल चौपाई, मु. विनयचन्द, मागु.. खण्ड ४/ ढाल-१२३, (महावीर मनो) १०२४१-६ ग्रं.५५०४, पद्य, स्था., (श्रीनाभेय) ९७०६ महावीरजिन स्तवन, मु. माणेक, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., (मोरा | महीपालराजा रास, मु. अमीपाल, मागु., गा. १०९३, वि. १५७२, स्वाम) ११०३९-४ पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ) ११३२० महावीरजिन स्तवन, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ६, माजीरी सज्झाय, ऋ. विनयचन्द्र, राज., गा. १९, पद्य, जै., पद्य, पू.. (सुखदायक चो) ११०३२ (आतो नाम धर) ९७०७-२८) महावीरजिन स्तवन, ऋ. रायचन्द, मागु., गा. १२, वि. १८३७, माधवानल चौपाई, वा. कुशललाभ, मागु., गा. ५५२, वि. १६१६, __ पद्य, जै.. (सिद्धारथ) ९७०७-२२६) पद्य, मूपू., (देवि सरसति) १०९४० महावीरजिन स्तवन, श्रीपति, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (सुख मानतुङ्गमानवती चौपाई, मु. विनयचन्द, मागु., ढाल ७, वि. मटके) १०१२९-२ १८७०, पद्य, जै., (जिनशान्ति) ९७०७-१७) महावीरजिन स्तवन-२४ दण्डकगर्भित, कवि पद्मविजय, मागु., मानतुङ्गमानवती रास, उपा. अभयसोम, मागु., ढाल १४, वि. ढाल ६, गा. ८९, पद्य, मूपू.. (प्रणमि सरस) १०४३१-१ १७२७, पद्य, मूपू., (प्रणमुं मा) ९५८९, १०४९६-३ महावीरजिन स्तवन-कोणिकाराजाभक्तिगर्भित, पं. वीरविजय, मानतुङ्गमानवती रास-मृषावादविरमण अधिकारे, मु. मागु., ढाल ११, गा. २१२, ग्रं.२७०, वि. १८६४, पद्य, स्पू., मोहनविजय, मागु., ढाल ४७, गा. १०१५, वि. १७६०, पद्य, (विमल वचन) १०४७९(+) मूपू.. (ऋषभजिणन्द) ९९९३-११, १३७६३, ९३५७, ९३७७, महावीरजिन स्तवन-चौदस्वप्नफलगर्भित, ऋ. भुधर, मागु., गा. ९९७२, १०१२८, १०२२८, १०४१६, १०६९७-१, १३५७६, १३, पद्य, जै., (श्रीय वर्ध) ९४१७-४+5) १३७६२, ९८७३-१, १३७६१, १०२११७, १०५२०१६) महावीरजिन स्तवन-छट्ठाआरानु, श्रा. देवीदास, मागु., ढाल ५, मान सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (रे जीव ___गा. ६६, वि. १६११, पद्य, मूपू., (सकल जिणन्द) १११६६-२ ___ मान) ९६२३-६ महावीरजिन स्तवन-बामणवाडजी, आ. कमलकलशसूरि, मागु., माया सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (माया कारमी) ९७००-६ गा. ४१, पद्य, मूपू., (समरवि समरथ) १३७१४-३ माया सज्झाय, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., महावीरजिन स्तवन-षट्पर्वी, पं. पद्मविजय, मागु., ढाल ९, वि. (समकीतर्नु) ९६२३-४(३) । १८३०, पद्य, मूपू.. (गुरु पद पङ) १०२३४५) मार्गणा विधान, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. २८, पद्य, जै., महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणीगर्भित, पं. उत्तमविजय , मागु., (वन्दौ देव) १०३०३-५), १०७३६-५(4) ढाल ४, वि. १७९९, पद्य, मूपू., (वर्द्धमानज) ११०७४/+5) मिथ्यात्ववानी, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (नारायन देव) १०३०३(२) महावीरजिन स्तवन-संयमश्रेणीगर्मित-स्वोपज्ञ टबार्थ, पं. ४०५, १०७३६-४०+) ___ उत्तमविजय , मागु., गद्य, मूपू., (-) ११०७४+६) मुनिपति चरित्र, मागु., पद्य, मूपू.. (-) ९४२५ महावीरजिन स्तवन-सत्यावीसभवगर्भित, मु. हंसराज , मागु., मुनिपति रास, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल ९३, गा. ४००५, वि. ढाल १२, गा. १००, वि. १७वी, पद्य, मूपू.. (सरसति भगवत) १७६१, पद्य, मूपू., (सकल सुख मङ) १०४२२ ११०२९-२, ११०३१, १११४५, १००२६ मुनिपति रास, मु. रव, मागु., ढाल ४१, वि. १७१९, पद्य, जै., महावीरजिन स्तवन-स्थापनानिक्षेपप्रमाण पञ्चाङ्गीगर्भित, उपा. । (श्रीजदुनाय) १३७६४ यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ६, ग्रं.२२८, वि. १७३३, पद्य, मुनिसुव्रतजिन पद, मागु., पद्य, मूपू., (मुनिसुव्रत) ९९२१-६०४६) मूपू., (प्रणमी श्र) ९८८६, १०११७-१, ११२२४, ११३५५, मुनिसुव्रतजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, मूपू., (वीसमा जिनव) ११३७८, १०५११, १०५४८९) ९९२१-५८(48) (२) महावीरजिन स्तवन-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (ए मुनिसुव्रतजिन पद, मु. सुमति, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू., (भवि स्तवनमा) ११२२४, ११३५५, १०५४८६) भावधरी) ९९२१-५९(45) महावीरजिन स्तुति, आ. जिनलाभसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., | मुलचन्द स्तुति, मु. नन्दराम, मागु., गा. १, पद्य, जै., (मुरति मनमो) ११६७७-३६(+) । (मुलचन्दजी) १३२४६-२(4) महावीर स्तवन-१४ गुणस्थानगर्भित, उपा. विनयविजय , मागु., मुलदेव कथा, मागु., गद्य, मूपू., (कोसंबी नगर) १२४६५-१८ ढाल ४, गा. ७३, वि. १७उ., पद्य, म्पू., (वीर जिनेसर) मुहपत्ति ५० बोल सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., गा. १२, पद्य, १०८२१ मूपू., (सिरि जम्बू) ११३८१-२६) For Private And Personal Use Only Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir १३ ५८२ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ मूढ शिक्षा अष्टपदी, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (ऐसे क्यु) १०३०३- | मौनएकादशीपर्व स्तवन, पं. जिनविजय, मागु., गा. ४२, वि. ५३), १०७३६-५१) १७९५, पद्य, मूपू., (जगपति नायक) ११००९-२ मृगसंवाद चौपाई, मु. देवराज, मागु., गा. ३१३, वि. १६६३, पद्य, | मौनएकादशीपर्व स्तवन, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. १३, मूपू., (सकल देव सा) १३६३३ ___वि. १६८१, पद्य, पू., (समवसरण बेठ) १३१७१-१३(+) मृगाङ्ककुमार रास, मु. प्रीतिविमल, मागु., गा. १९४, वि. १६४९, मौनएकादशीपर्व स्तवन-१५० कल्याणक, उपा. यशोविजयजी पद्य, मूपू., (सरसति सामि) १०६६५-१ गणि, मागु., ढाल १२, वि. १७३२, पद्य, पू., (धुरि प्रणम) मृगाङ्कलेखा रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ४१, गा. ८७६, वि. १०३१८, १०९४५, ११०२४-१, ११०३० १७४८, पद्य, मूपू.. (जिनवर हितक) १३७६५ मौनएकादशीपर्व स्तुति, मु. गुणहर्ष-शिष्य, मागु., गा. ४, पद्य, मृगापुत्र चौपाई, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १०, गा. १२८, वि. मूपू.. (एकादशी अति) १३७१३-२७), १००३१-५, १०३५०-३ १७१५, पद्य, मूपू., (परतक्षि) ९८२७१) यशोधर चरित्र, मागु., गद्य, मूपू., (प्रणम्य जग) १२४०९ मृगापुत्र सज्झाय, मु. सिंहविमल, मागु., गा. २४, पद्य, मूपू., यशोधर रास, मु. जिनदास ब्रह्मचारी, मागु., गा. ४६, वि. १६वी, (सुग्रीव नय) ११११२-३ पद्य, दि., (मुनिसुव्रत) ११३३९ मृगावती चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड ३, गा. रतनव्यवहारी कथा, मागु., गद्य, मूपू., (शङ्खपुर नग) १२४६५ ७४५, ग्रं.११००, वि. १६६८, पद्य, मूपू., (समरु सरसति) ९९०२), १०३४१, १२३८१-१) रतिसुन्दरी कथा, मागु., गद्य, मूपू., (साकेतपुर) १२४९४-५) मृगावती रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., गा. ४२१, पद्य, मूपू., रत्नचूड चौपाई, मु. कनकनिधान, मागु., ढाल २४, वि. १७२८, (सिद्धारथ) १०९४२, १३७६६-१ पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ९८३५ मृषावादपापस्थान सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. | रत्नचूड चौपाई, मु. रत्नसिंहसूरि-शिष्य, मागु., गा. ३४५, वि. ६, पद्य, मूपू., (बीजे रे पा) ११११२-४ ।। १५०९, पद्य, मूपू., (सरसति देवी) १०५०७, १०३२६६) मेघकुमार चौढालिया, मु. जिनहर्ष-शिष्य, मागु., ढाल ४, पद्य, | रत्नपालरत्नावती चौपाई, मु. मोहनविजय, मागु., खंड४/६६ ढाल, मूपू., (श्रीजिनवरन) १२९१०-३ गा. १३७२, वि. १७६०, पद्य, मूपू., (सकल श्रेणि) १०२५५, मेघकुमार सज्झाय, प्राहि., गा. २०, पद्य, मूपू., (दुर्लभ लाध) १०३६४), १०३८९", १३७६९, १०३७५, १०५९७, १३७६८, ९७०७-४४६ १३७७०, ९३२८, ९९४६ मेघकुमार सज्झाय, कवि कुसल, मागु., गा. १०, पद्य, जै., (वीर रत्नपालरत्नावती रास-दानाधिकारे, मु. सूरविजय, मागु., खण्ड जिणेसर) ९७०७-४६० ३/ढाल-३२, गा. ७७४, वि. १७३२, पद्य, मूपू., (रीषभादिक) मेघकुमार सज्झाय, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., ९४५७, १०४७८ (नवजवालण ते) ९९७०-१ रत्नपाल रास, गणि जिनहर्ष, मागु., गा. ४८२, पद्य, मूपू., मेघकुमार सज्झाय, मु. पुनो, मागु., गा. २२, पद्य, जै., (वीर (स्वस्ति) ९६७३ जिणन्द) ९७०७-७९ रत्न रास, मु. मोहनविजय, मागु., वि. १७५८, पद्य, मूपू., (सकल मोक्षमार्ग पयडी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. २४, पद्य, समीहित) १३७६७७) ___ जै., (इक्क समै) १०३०३-९(१), १०७३६-९) रथनेमिराजिमती गीत, मु. वीरविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., मोतीकपासीया सम्बन्ध, पाठक श्रीसार, मागु.. गा. १०३, वि. (रहनेमी राज) १००२०-१८७) ___१६८९, पद्य, मूपू., (सुन्दर रुप) ११२४०-१(२) स्थनेमिराजिमती सज्झाय, मु. गुलाबकीर्ति, प्राहि., गा. १३, पद्य, मौनएकादशीपर्व कथा, मागु., गद्य, मूपू., (महावीरस्वा) १०१३४ मूपू., (गिरनारी की) ९७०७-५०७) मौनएकादशीपर्व देववन्दन, मु. दानविजय, मागु., पद्य, मूपू.. रथनेमिराजिमती सज्झाय, मु. सुखविजय, मागु., गा. ११, पद्य, (सकल नयर सि) १०२०२ मूपू.. (राजुल घरथी) ९९७०-११) मौनएकादशीपर्व देववन्दन, मु. सौभाग्य, मागु., प+ग, मूपू., | रथनेमि सज्झाय, मु. हीरमुनि, मागु., गा. १०, पद्य, जै., (संयम (श्रीअरनाथ) १०४३५ लेवा) ९९७०-८() मौनएकादशीपर्व देववन्दन विधि, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., पद्य, | राजसागरसूरिनिर्वाण रास, आ. तिलकसागरसूरि, मागु., गा. मूपू., (सयल सम्पत) ११२०६ २६६, वि. १७२१, पद्य, मूपू.. (वर्द्धमान) १३७७१ मौनएकादशीपर्व व्याख्यान, मागु., गद्य, मूपू., (सिरिवीरं) ९६५० | राजसिंहरत्नवती कथा, मु. गौडीदास, मागु., ढाल २४, गा. ६०५, For Private And Personal Use Only Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ (#) ग्रं. ८८५, वि. १७५५, पद्य, मूप्पू., ( सारद शुभमत) १०६६२ राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. देवविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मु.. (काकरडी मत) ९९७०-७ राजिमतीरथनेमि सज्झाय, मु. सीसविजय ?, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., ( राजुल देखी ) ११११२-२ रात्रीभोजन सज्झाय, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ९, पद्य, भूपू., (वीर जिणन्द) १०५१२-१९ रामयशोरसायन चौपाई, मु. केशराज, मागु., अध्याय ४अधिकरा, ढाल६, ग्रं. ४८००, वि. १६८०, पद्य, मूप्पू., (मुनिसुव्रत) १०६०५ रामरक्षा स्तोत्र, रामानन्द, मागु., पद्य, वै., (ॐ सन्ध्या) १२२२८ ४ (S) रामलक्ष्मण लावणी, प्राहिं., गा. ११, पद्य, मूपू., ( जनक सुता) ९७०७-१०७ रामसीता रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड ९, गा. २४१२, ग्रं.३७०४, वि. १७उ, पद्य, मूपू., (स्वस्ति) ९५५९(*), ($) ९४६५ रामायन अष्टपदी प्राहि. गा. ८, पद्य, वै., (विराजे राम) · " (+) www.kobatirth.org: १०३०३-६३(+), १०७३६-५५" रावणने शिखामणनी सज्झाय, विद्याचन्द, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (सीता हरि) ११६८४-३ रूपचन्द्रकुमार रास, पण्डित नयसुन्दर, मागु., खण्ड ६, वि. १६३७, पद्य, मूपू., (आदि जिणवर) १३७७२, १३७७३ रूपसेनकुमार रास, मु. देवविजय, मागु., ढाल ३६, गा. ७१३, वि. १७७८, पद्य, मूपू., (विश्वविधात) १३७७८ *), १३७७४ रूपसेन चरित्र, मागु पद्य, भूपू., (वृषभ शान्त) ९७७५१ रेन्टीया सज्झाय, रतनबाई, मागु., गा. २५, पद्य, मूपू., ( बाई रे अमन ) ९७००-५ " रोहणी रास. आ. ज्ञानविमलसूप, मागु, ढाल ३१. वि. १७७४, पद्य, मूपू., ( सुखकर श्री) १०६९३, १३७७६, ९९२६ रोहणी विचार, मागु., गा. ४, पद्य, जै., (आसाढाह काल ) १३५९५-३ रोहिणी कथा, ऋ. विनयचन्द, मागु., ढाल ६, पद्य, जै., (सकल सुरासु) २७०७-१८ रोहिणी चौढालिया, ऋ. विनयचन्द, मागु., ढाल ४, पद्य, जै., ( शाशन नायक ) ९७०७-११७ (S) रोहिणी चौपाई, मु. कर्मसिंह, मागु, ढाल २९. वि. १७३० प मृपू.. (जिनपय युग) ९४८९५ रोहिणीतप स्तवन, कवि दीपविजय, मागु., ढाल ६, वि. १८५९, पद्य, मृ.. (हा रे मार) १२९१०-४ रोहिणीतप स्तवन, मु. दीपविजय, मागु गा. ६, पद्य, मृपू. (हरे मारे) ९६२३- शि " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८३ रोहिणीतप स्तुति, मु. लब्धिरुचि, मागु, गा. ४, पद्य, मृपू.. ( जयकारी जिन) १३७१३-१५* 4(+) रोहिणी नक्षत्र स्तुति, मु. ऋषभविजय, मागु, गा. ४, पद्य, मृपू (रोहीणी नक) १०५१२-१८ रोहिणी नमस्कार, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूप्पू., (पद्मप्रभू) १०५१२-९ " रोहिणीयाचोर कथा, मागु., गद्य, मृपु. ( मगधदेशने) १२४६५-२६ रोहिणीयाचोर प्रबन्ध, श्रा. देपाल भोजक, मागु., गा. २७७, वि. १६वी, पद्य, मूपू., (बाहिरि टङ) १२५७४ रोहिणीयाचोर रास, कवि ऋषभदास सवी, मागु, गा. ३४५. ($) वि. १६८८, पद्य, मृपू., (सार सकोमल) १०३७२, १३७७५ रोहिणी विचार, मागु., गा. ६, पद्य, मूप्पू., (असाढवदि दस ) १३४८३-१ ललिताङ्गकुमार रास, मु. दानविजय, मागु., ढाल २७, गा. ६८९. वि. १७६१, पद्य, भूपू (सकल कुशलकम) ९८७०/५ 930 ललिताङ्गकुमार सम्बन्ध, मागु, गद्य, मृपू., ( येषां न वि) ९४९२ ($) लीलावती रास, मु. कडुआ, मागु गा. १८६, पद्य, जै.. (-) ९५९३ लीलावती सुमतिविलास रास वा उदयरन, मागु, दाल २१, गा. ३४८, वि. १७६७, पद्य, मूपू., (परम पुरुष ) ९७०२, १३८०४, १०२८४-१ लुंकावदन चपेटा, मु. लावण्यसमय, मागु.. गा. १८१, वि. १५४३, पद्य, मृपू.. (सकल जिणंदह) १२७५० लोभनन्दी कथा, मागु, गद्य, मृपू. (पृथ्वीभुवष) १२४६५-९ लोभसारशेठ कथा, मागु., गद्य, मूपू., ( पदमपुर नगर) १२४६५-१० कचूल रास, मागु, गा. ९४, पद्य, जै.. (आदि जिनवर ) १०९२० बकल रास, मु. केसरविमल, मागु, वि. १७५६, पद्य, मृपू. (त्रिभुवन) १३८०३-१ " For Private And Personal Use Only वङ्कचूल रास, मु. गङ्गदास, मागु., ढाल ६, गा. १२८, वि. १६७१, पद्य, पु. ( सन्ति जिणे) १३८०२/ वज्रस्वामी रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल १५, वि. १७५९, पद्य, मूपू., ( अरध भरतमां) १०२९५ ($) वणझारा सज्झाय, मु. पद्मविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मूपू., (नवभव नगर) ९६२३-५ वसुदेवहीण्डी, मागु., गा. १००, पद्य, मृपू., ( इणि जम्बूद) १२४०७ वसूराजा कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अङ्गदेशे) १२४६५-२ वासुपूज्यजिन महिमावर्णन स्तवन, मु. प्रेमविजय, मागु., ढाल १२, पद्य, मूपू., ( वासुपूज्य) १०५०० वासुपूज्यजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मुपु. ( श्रीवासुपू) ९९२१ - Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८४ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ विनयअध्ययन सज्झाय, वा. उदय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., वासुपूज्यजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (पवयण चिचिं) ९७००-१३ (वासपूजजिन) ९९२१-३४) विमलजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (विमलजिनेसर) वासुपूज्यजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., ९९२१-३९६) (श्रीवसुपूज) ९९२१-३५(45) विमलजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू.. (विमलनाथ वासुपूज्यजिन पुण्यप्रकाश रास, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., जि) ९९२१-३७६) ढाल ६१, गा. ४५६, पद्य, मूपू., (ऋषभ अजित) १०६७० विमलजिन पद, मु. सुमति, प्राहिं., गा. ३, पद्य, मूपू., (विमल वासुपूज्यजिन स्तवन, मु. नेमसागर, मागु., गा. २४, वि. १७७४, जिनन) ९९२१-३८(45) पद्य, मूपू., (वासुपूज्य) १०६६३-२ विमलजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., विक्रमचोबोली प्रबन्ध, आ. हर्षधरसूरि, मागु., ढाल १६, गा. ४१८, (मेरउ तुहि) १०८२३-५ पद्य, मूपू., (जिनवर चरणे) ९३९७ विमलजिन स्तवन, मु. रूपसी, मागु., गा. १७, वि. १६७८, पद्य, विक्रमचौबोली रास पुण्यफलकथन, वा. अभयसोम, मागु., ढाल जै., (विमलकर विम) ९५७२-१४ १७, ग्रं.३२५, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (वीणा पुस्त) १२४१३ विमलमन्त्री प्रबन्ध, मु. लावण्यसमय, मागु., खण्ड ९+चूलिका, विक्रमराज खापरतस्कर रास, वा. मङ्गलमाणिक्य, मागु., गा. गा. ३८७, ग्रं.१७००, वि. १५६८, पद्य, मूपू., (आदिजिनवर) ४३६, वि. १६०८, पद्य, मूपू., (प्रथम नमी) १२९८४ १०८०१ विक्रमराजा रास, मागु., पद्य, मूपू.. (-) १०२३१७ विमलमन्त्री लघुरास, मु. लावण्यसमय, मागु., खण्ड ३, गा. विक्रमराजा रास, मु. भाणविजय, मागु., ढाल १७४, गा. ५७९७, ३०६, वि. १५६८, पद्य, मूप.. (विमलवन्निस) १३८१३६) ग्रं.७४४०, वि. १८३०, पद्य, मूपू., (अमल कमल सम) विहरमान २० जिन नाम, मागु., गद्य, मूपू., (सीमन्धरस्व) १३८०५) १३७४०-२, ९३४७-२३) विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. परमसागर, मागु., ढाल ६४, वि. विहरमान २० जिन रास, जैनकवि वस्तिग, मागु., गा. ३९, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (परम ज्योति) ९६३०, १०६६८ १३६८, पद्य, जै., (विहरमाण ति) ९९९१-१ विक्रमसेनराजा चौपाई, मु. मानसागर, मागु., ढाल ५२, गा. विहरमान २० जिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ९, पद्य, ११६२, ग्रं.१६२४, वि. १७२४, पद्य, मूपू., (सुखदाता सङ) मूपू., (श्रीसीमंधर) १०५१२-१ १३८०६ विहरमान २० जिन स्तवन, आ. पुण्यरत्नसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, विक्रमादित्य चौपाई, मु. लाभवर्द्धन, मागु., ढाल २७, गा. ५८५, मूपू., (विहिरमान) ११६१०-५ वि. १७२३, पद्य, मूपू., (पुरिसादाणी) ९६५३, १३८०९, १३८१० | विहरमान २० जिन स्तवन, ऋ. भुधर, मागु., गा. २९, वि. विचार सङ्ग्रह', मागु., गद्य, (ठाणाङ्गमाह)-<प्रतहीन.> १८२५, पद्य, जै., (सम्प्रति) ९४१७-५६) (२) विचार सङ्ग्रह-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (वीरं गुरुश) विहरमान २० जिन स्तवन, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ९, पद्य, १०७३३, ९८८५ जै., (प्रात समय) ९७०७-७०) विजयकुमारविजयाकुंवरी सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ९, | विहरमान २० जिन स्तवन-वीसी, लीबउ, मागु., २० गीत, पद्य, वि. १८८०, पद्य, जै., (विजयकुमर) ९७०७-४७) जै., (सरसति सामि) १०३४९ विजयशेठविजयाशेठाणी सज्झाय, कुसल, मागु., ढाल ३, गा. विहरमान २० जिन स्तुति, मागु.गा. ४, पद्य, मूपू.. (पञ्चविदेह) २८, पद्य, मूपू., (भरतक्षेत्र) ९९७०-४ ११६७७-२७) विजयसेठविजयासेठाणी सज्झाय, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. १७, | विहरमानजिन स्तवनवीशी, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., २० वि. १८६१, पद्य, स्था., (श्रीवीतराग) ९७०७-७४६) स्तवन, पद्य, मूपू., (पुखलवई विज) १०२७६-३१, १०९६९-७), विजयसेनसूरि रास, मु. दयाकुशल, मागु., गा. १४१, वि. १६४९, १०५२९, १०८१९ पद्य, मूपू., (सरसति मति) १३७२१-१(+) विहरमानजिन स्तवनवीसी, मु. जिनहर्ष, मागु., २०स्तवन, वि. विद्याविलास चरित्र, उपा. आज्ञासुन्दर, मागु., गा. ३६३, वि. १७५५, पद्य, मूपू.. (पुण्डरीकणी) १०२१३-१, ११११७ १५१६, पद्य, मूपू., (गोयम गणहर) १३८११ विहरमानजिन स्तवनवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु., २०स्तवन, पद्य, विद्यासागरसूरि रास, मु. नित्यलाभ, मागु., ढाल ९, वि. १७९८, मूपू.. (श्रीसीमन्ध) ९७३६, ११३२२ पद्य, मूपू.. (प्रणमी श्र) १३८१२ विहरमानजिन स्तवनवीसी , उपा. विनयविजय , मागु., For Private And Personal Use Only Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८५ २०स्तवन, गा. ११६, ग्रं.२५०, वि. १७उ., पद्य, मुपू., शत्रुञ्जय १०८ खमासणाना दुहा, मु. कल्याणसागरसूरि-शिष्य, (सीमन्धरस्व) १०३७७-१ मागु., गा. १०९, पद्य, मूपू., (श्रीआदिसर) १०४२९-१, वीतराग प्रार्थना, मागु., गद्य, मूपू., (हे वीतरागस) १२७५१-९ १०४८८-१ वीरभाणउदयभाण रास, मु. कुशलसागर, मागु., ढाल ६५, वि. शत्रुञ्जयतीर्थ गीत, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., १७४५, पद्य, मूपू., (सदगुरुजी) १३८१४ (अह्मे नाह) १०८२३-४३ वीराङ्गद चौपाई, वा. मालदेव, मागु., गा. ७०४, वि. १६१२, शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, वा. उदयरत्न, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (संति जिनेस) ९७७३१) (डुंगर पोहल) १००२०-१७ वृद्ध आराधना, मु. मलिदास, मागु., गा. ४४५, वि. १६५०, पद्य, शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. १३, पद्य, मूपू., मूपू., (वीर जिणेसर) ११८४० (आवो गीरी) १०५१२-१७ वेदनिर्णयपञ्चासिका, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. ५१, शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., पद्य, जै., (जगत विलोचन) १०३०३-३१), १०७३६-३(१) (प्यारी कहे) १०५१२-२५ वैतालपञ्चवीसी कथा, मु. देवशील, मागु., गा. ८२१, वि. १६१९, | शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (सरसति सांम) ९६६१-३(45) (सरसति माता) १०५१२-१४ वैद्य लक्षण, प्राहिं., गा. ४१, पद्य, जै.. (करमरोग की) १०३०३- | शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., ४३) (सेत्रुज रल) १०३७१-३ वैराग्य सज्झाय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (आतम अति अभ) शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., १०४९६-४ (विमलाचल वन) १०२४१-३ व्यवहारशुद्धि चौपाई, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ९, गा. | शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. माणिक्य, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., १६१, वि. १६९६, पद्य, मूपू., (शान्तिनाथ) ९८८० (विमलगिरि) ११०३९-५ शत्रुजयतीर्थ २१ नाम स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. २२, | शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. रङ्ग, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू..(-) १०५१२-४ (प्यारी पीउ) १०४१८-१२) शत्रुजयतीर्थउद्धार रास, मु. नयसुन्दर, मागु., ढाल १२, गा. शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., १२०, ग्रं.१७०, वि. १६३८, पद्य, मूपू., (विमल गिरिव) ९५९४, (विमलाचल वि) ११०२४-३ ९९९४, १०५१३-१, ११०८३, १११८१, १०२४४६ शत्रुञ्जयतीर्थ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., गा. ११, पद्य, मूपू., शत्रुजयतीर्थमाला स्तवन, मु. अमृतरङ्ग, मागु., ढाल १०, वि. (सिद्धाचल) ११०२४-२ १८४०, पद्य, मूपू., (विमलाचल वा) १०४८८-२, ११३२३ शनिश्चर छन्द, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू., (आनन्दनजगजय) शत्रुजयतीर्थ रास, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., ढाल ६, गा. ११६१७-३ ११२, वि. १६८२, पद्य, मूपू.. (श्रीरिसहेस) ९८७६, १२९१०-५ | शनिश्चर छन्द, मागु., गा. १६, पद्य, मूपू.. (छायानन्दन) शत्रुजयतीर्थ स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. १२१२७-४ (विमल गिरिव) १०८२३-१५, ११११६-१३ शनिश्चर छन्द, कवि हेम, मागु., गा. १७, पद्य, जै., (अहि नर शत्रुजयतीर्थ स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ७, पद्य, असु) १३७१४-१८ मूपू., (मोरा आतमरा) १०८२३-२८, ११११६-१५ शान्तिजिन कलश, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. २२, पद्य, शत्रुजयतीर्थ स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (विमलाचल मण) मूपू., (शान्ति जिन) १०५९०-१५), १०५३९-१६) १२७५१-११ शान्तिजिन छन्द, प्राहिं., गा.२, पद्य, जै., (सहिएरी दिन) शत्रुजयतीर्थ स्तुति, प्राहिं., गा. ४, पद्य, मूपू.. (आगे पूरव) १०३०३-३६), १०७३६-३६) १३७१३-१९, १००३१-७ शान्तिजिन त्रिभङ्गी छन्द, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. ५, शत्रुजयतीर्थ स्तुति, श्रा. ऋषभदास, मागु.. गा. ४, पद्य, मूपू... पद्य, जै., (विश्वसेन) १०३०३-३७), १०७३६-३७+) (श्रीशत्रुञ) १३७१३-१३ शान्तिजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (सन्त जिनेस) ९९२१शत्रुजयतीर्थ स्तुति-शत्रुञ्जयमण्डन, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (श्रीशत्रुञ) १०९४१-५०, ११६७७-३००, १३७१३- शान्तिजिन पद, मु. सुमति, राज., गा. ५, पद्य, मूपू., २९, ११६०९-७ (सन्तजिनन्द) ९९२१-४७) For Private And Personal Use Only Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८६ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ शान्तिजिन पद, मु. सुमति, मागु., पद्य, मूपू., (सोलम जिनवर) | पद्य, मूपू., (सरस सुवचन) १३८२४) ९९२१-४६(68) | शिवपच्चीसी, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. २६, पद्य, जै., शान्तिजिन रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., ढाल ६६, गा. १४२८, (ब्रह्म विल) १०३०३-१४), १०७३६-१४+) ग्रं.२२०५, वि. १७२०, पद्य, मूपू., (सकल सुख सम) १०१०५- | शीतलजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., १, १०६४१ (शीतल जीनवर) ९९२१-२८(5) शान्तिजिन रास, मु. रामविजय, मागु., खण्ड ६, गा. ६९५१, वि. शीतलजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (शीतल १७८५, पद्य, मूपू., (सकलश्रेयवर) १००८२ __शीतलन) ९९२१-२९(45) शान्तिजिन स्तवन, मागु., गा. ३२, वि. १७४८, पद्य, जै., (-) शीतलजिन स्तुति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (शीतल जीनवर) ९५२९-२(5) ९९२१-३०) शान्तिजिन स्तवन, मु. उदयरत्न, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., शीलप्रकाश रास, आ. विजयदेवसूरि, मागु., गा. ६८, ग्रं.२५१, (अचिरानन्दन) १०२१३-२ __पद्य, मूपू., (पहिलं प्र) ९५४०, ९४४५, १३८२५ शान्तिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., शीलमहिमा सज्झाय, मु. अमर, मागु., गा. १४, वि. ??७१, पद्य, (मृदङ्ग वजा) ११११६-२ जै., (सतगुण य नम) ९७०७-७८(5) शान्तिजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., शीलवती रास, मु. नेमीविजय, मागु., खण्ड ६ ढाल८४, गा. (शान्ति जिण) १०८२३-१८ २०६१, वि. १७५०, पद्य, मूपू., (ॐकार अक्ष) ९७८८, १०३८३ शान्तिजिन स्तवन, आ. नन्दसूरि, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू.. शीलवतीसती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (सुर्जपुर) १२४६५-६ (देउइहपुरी) १०३७१-४ शीलसुन्दरीसती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अवन्तीपुर) १२४६५-२० शान्तिजिन स्तवन, मु. मोहनविजय, मागु.. गा.७, पद्य, मूपू., शुकबहोत्तरी, मागु., गद्य, मूपू.. (करि प्रणाम) १२४६७६) (शान्ति जिन) ९९७०-१६*) शुकराज सहेली कथारास, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. १६७, शान्तिजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु.. गा.७, पद्य, मूपू., पद्य, मूपू., (सरसती हंसग) १०२३३ (अचिरानन्दन) १०४१८-६) श्रावक आलोयणा विधि, मागु., पद्य, मूपू.. (अष्टविधि) १३०१७) शान्तिनाथ चरित्र, मागु., गद्य, मूपू., (-) ९८५५० श्रावक इकवीसी, मु. रतनचन्द, मागु., गा. २१, पद्य, जै., शारदाष्टक, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. १०, पद्य, जै., (श्रावक नाम) ९७०७-४८६) (नमो केवल) १०३०३-२२), १०७३६-२२+) श्रावक दिनकृत्य, मागु., गद्य, मूपू., (मानवी श्री) ११५८४-२) शालिभद्र चौपाई, आ. जिनराजसूरि, मागु., ढाल २९, गा. ५१०, श्रीचन्द्रकेवली रास, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., खण्ड ४ वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सासननायक) ९३४३-११, १३८१८- उल्लास,१११ढाल, गा. २३९५, ग्रं.६९३९, वि. १७७०, पद्य, १), १३८१९(१), १३८२०), ९४४६, १०३६८, १०४३४, १०९०२, मूपू., (सुखकर साहि) १०५५१), १३७४१ ११०६३, १३८२१, १३८२२, ९७७४, १०२२२(45), १०१८४(5) श्रीदत्त कथा, मागु., गद्य, मूपू., (वसन्तपुर) १२४६५-१५ शालिभद्र रास, मु. साधुहंस, मागु., गा. २१९, वि. १४५५, पद्य, श्रीपाल चरित्र*, मागु., पद्य, मूपू., (--) १२५१२-२७ मूपू., (देवि सरसति) ११०११-१, १३८१७ श्रीपाल बृहद्रास, मु. जिनहर्ष, मागु., ढाल ४९, गा. ८६१, वि. शालिभद्र सज्झाय, मु. सहजसुन्दर, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू.... १७४०, पद्य, मूपू., (अरिहन्त अन) ९९२०, ११४०८ (प्रथम गोवा) ९७००-१८ श्रीपाल रास, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. ३२३, वि. १५३१, पद्य, शाश्वतजिनप्रतिमा नमस्कार, मागु., पद्य, मूपू., (एहि वडां) मूपू., (करकमल जोडि) ११२०९ ।। १०२५४ श्रीपाल रास, उपा. विनयविजय , उपा. यशोविजयजी गणि, शाश्वतजिन स्तवन, मु. माणिकविमल, मागु., ढाल ७, गा. ८४, मागु., खण्ड ४, ढाळ ४१, गा. १८२५, वि. १७३८, पद्य, मूपू., वि. १७१४, पद्य, मूपू.. (वीर जिणेसर) १०९६३ (कल्पवेल कव) ९३७३(१), ९३९५), ९८९३१), १०३८८), शाश्वता जिनबिंब प्रासाद विचार, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम १०५२५३, ९९३३, १०२६७, १०२८०, १०३९५, १०५६८-१, सौधर) १०४४३ १०७२३, ११०२०, ११३७०, १०१६४, १०२७८, १०८२५, शिवजी आचार्य रास, ऋ. धर्मसिंह, मागु., ढाल २५, वि. १६९२, १०६१०६), ९३७१६, १०७२४६, ९३८४६) ___ पद्य, जै., (आदिपुरुष) ९५६१ (२) श्रीपाल रास-बालावबोध*, मागु., गद्य, मू'.. (-) १०१६४, शिवदत्तकुमार रास, आ. सिद्धसूरि, मागु., गा. २९१, वि. १६२३, | १०२७८, ९३८४६) For Private And Personal Use Only Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ३३(5) देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ५८७ (२) श्रीपाल रास-टबार्थ, मागु., गद्य, मूपू.. (प्रथम ऋषभद) (जयो सम्भव) १३१२३-६ १०५६८-१ सम्भवजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूपू., (मेघ (२) श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु., गद्य, मूपू., (-) ९९३३ नरेसर) ९९२१-९(48) (२) श्रीपाल रास-टबार्थ', मागु.,राज., गद्य, मूपू., (त्रीजो खण) | सम्भवजिन स्तुति, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., १०३८८) (श्रीसम्भवज) ९९२१-८(5) श्रेयांसजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., सम्मेतशिखरतीर्थ रास, मु. सत्यरत्न, मागु., वि. १८८०, पद्य, (श्रेयांस) ९९२१-३१(5) मूपू., (अजितादिक) १३८२३(७) श्रेयांसजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूपू.. (श्रेयांसजि) ९९२१- सम्यक्त्वद्वार, मु. हुकमविजय, मागु.. अध्याय ७, वि. १९०५, पद्य, मूपू., (संखेश्वर) १२०८११, १२०८५ श्रेयांसजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., (मडौ सम्यक्त्व भेद विचार, मु. मेरुतुङ्गसूरि-शिष्य, मागु., गद्य, मूपू., तुमसुं) ९९२१-३२() (अपशमिक सम) ९७८४-२ श्लोक, मागु., गा. १, पद्य, जै., (मेघानंच घट) ९९६९-३ सम्यक्त्व षट्थान चौपाई, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., षड्दर्शनाष्टक, प्राहि., गा. ८, पद्य, जै., (शिवमत बोध) १०३०३- अध्याय १२४, पद्य, मूपू., (वीतराग प्र) १०८५२-२ ३३), १०७३६-३३ सम्यक्त्व सडसठबोल सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., संवेगरस चन्द्राओला, ऋ. लीबो, मागु., गा. ४९, पद्य, जै., ढाल १२, गा. ६८, पद्य, मूपू., (सुकृतवल्लि) १०११७-२, (प्रहऊठी रे) १०३२८ ११०२२, ११२०० संवेगरस चन्द्रावली, लीबउ, मागु., गा. ४९, पद्य, जै., (सकल | सर्वानुभूति सुनक्षत्रसाधु सम्बन्ध, मागु., गद्य, मूपू., (एकदा सुरिन) १०९६६ भगवन) ९४९२-४ संवेगरसायनबावनी सज्झाय, मु. कान्तिविजय, मागु., गा. ५३, सवैया, मागु., गा. १, पद्य, जै., (केहत कुरङ) ९८३६-२७) पद्य, मूपू., (सकल मनोरथ) १०४०७ सवैया बावनी, श्रा. बनारसीदास, मागु., गा. ५२, वि. १६८६, सगपण व्यवहार पच्चीसी, ऋ. लालचन्द, मागु., गा. २९, वि. पद्य, दि., (ॐकार सबद) १०३०३-२), १०७३६-२(+) ___१८६३, पद्य, जै., (श्रीअरिहन) ९७०७-७५७) सागरशेठ कथा, मागु., गद्य, मूपू., (वसन्तपुर) १२४६५-८ सङ्ख्यामान, मागु., गद्य, मूपू.. (पाला ४ ते) १३२७०-७१) साधारणजिन गहुंली, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (-) १००२०-९ सद्गुरुआलाप दोहरा, प्राहि., गा.६, पद्य, जै., (ज्यौं दातर) साधारणजिन गहुंली, मु. वीरविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., १०३०३-६४+), १०७३६-५६(+) (चतुरा चतुर) १००२०-५७) सनत्कुमारचक्रवर्ति सज्झाय, मु. चतुरसागर, मागु., ढाल ३, वि. साधारणजिन गहुंली, पं. वीरविजय, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू., १७७९, पद्य, मूपू., (प्रथम जिणे) १३८१६-१ (जी रे ललित) ११३८१-४६) सन्तोषछत्रीसी, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., गा. ३६, वि. साधारणजिन गहुंली, मु. वीरविजय, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., १६८४, पद्य, मूपू., (सांहामी) ११११८-४ (राजगृही वन) १००२०-४ सप्तनय रास, मु. मानविजय, मागु., ढाल १५, गा. १८५, पद्य, साधारणजिन गीत, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहि., गा. ५, पद्य, मूपू., (श्रीगुरुचर) १०७७८(न) मूपू., (जब जिनराज) १०८२३-८ (२) सप्तनय रास-बालावबोध, मागु., गद्य, मूपू., (--) १०७७८(१) साधारणजिन गुहंली, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू.. (सजनी मोरी) समताशतक, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., गा. १०५, पद्य, १००२०-१७) मूपू.. (समता गङ्गा) १०८५२-१ साधारणजिन पद, ऋ. जिणदास, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., समयसारसिद्धान्तनाटिक के कवित, प्राहिं., गा. ४, पद्य, जै., (अरिहन्ताई) १०७७५-२ (प्रथम अग्य) १०३०३-३९१, १०७३६-३९(+) । साधारणजिन पद, मु. न्यायसागर, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., सम्भवजिन चैत्यवन्दन, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपु., (जिनराज हमा) १०२४१-४ (श्रीसम्भवज) ९९२१-७(45) साधारणजिन पद, जैनकवि बनारसीदास, प्राहिं., गा. ४, पद्य, सम्भवजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., जै., (सुखदायक सु) १०३०३-६२१, १०७३६-५४) (सम्भव जिनव) १०५१२-२२ साधारण जिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा.६, पद्य, मूपू., सम्भवजिन स्तवन, मु. भावविजय, मागु., गा. ५, पद्य, मूपू., (जिनराज नमो) १०८२३-४२ For Private And Personal Use Only Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir ५८८ कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ८, पद्य, मूपू., सिंहासनबत्रीसी, गणि सङ्घविजय, मागु., गा. १५४७, ग्रं.१६००, (जिनराजे रे) १०८२३-३३ वि. १६७८, पद्य, मूपू., (सकल मङ्गल) ९६६१-१+5), ९४३४ साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ९, पद्य, मूपू.. सिद्धचक्र स्तवन, मु. उत्तमसागर-शिष्य, मागु., गा. १०, पद्य, (माहरो वांक) ९७०३-३ ____ मूपू., (नवपद महिमा) १०२७६-८() साधारणजिन स्तवन, मु. ज्ञानविमल, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., सिद्धचक्र स्तवन, मु. कान्तिसागर, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., (मिल जाज्यो) ९७१८-४ (वीर जिणन्द) १०२७६-१०+) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ८, वि. सिद्धचक्र स्तुति, मु. उत्तमसागर, मागु.. गा. ४, पद्य, मूपू.. १८वी, पद्य, मूपू., (भमतां आ सं) ११११६-१ (श्रीसिद्धच) १३७१३-११) साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ७, वि. सिद्धान्तसारोद्धार, मागु., गद्य, मूपू., (प्रथम जम्ब) १२०६७ १८वी, पद्य, मूपू., (भोर भयो भय) १०८२३-१३, ११११६-११ । सिन्धुचतुर्दशी, प्राहि., गा. १४, पद्य, जै., (जैसे काहु) १०३०३साधारणजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ८, पद्य, १५) मूपू.. (सकल समता) १०८२३-१४, ११११६-१२ सीतासती कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अजोध्या नग) १२४६५-२१ साधारणजिन स्तवन, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. ८, पद्य, सीतासती पद, मु. विनयचन्द, प्राहिं., गा. ५, पद्य, जै., (राम जै., (मगन होइ आर) १०३०३-५१, १०७३६-४८(+) __ अयोध्य) ९७०७-८५७ साधारणजिन स्तुति, मु. कवियण, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., सीतासती सज्झाय, मु. विनयचन्द, मागु., गा. ११, पद्य, जै., (चम्पक केतक) १३७१३-१६(+) (वेगवतीथी) ९७०७-८८७ साधुगुण भास, मु. रामविमल, मागु., गा. ६६, पद्य, जै., (सरसती | सीमन्धरजिन नमस्कार, मु. विनयविजय, मागु., गा. ६, पद्य, सांम) ११३८७ मूपू.. (शत्रु मित) १०४९२-४ साधुगुण सज्झाय, मु. चन्द्रभाण, मागु., गा. १७, वि. १८६३, पद्य, सीमन्धरजिननुं स्तवन-१, कवि पद्मविजय, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू., (समकितधारी) ९७०७-२७६) मूपू., (सुणो चन्दा) ९६२३-२ साधुगुण सज्झाय, मु. वल्लभदेव, मागु., गा. १५, पद्य, जै., सीमन्धरजिन विज्ञप्तिस्तवन-३५० गाथा, उपा. यशोविजयजी (सकल देव जि) ९५७२-५ गणि, मागु., ढाल १७, गा. ३५०, पद्य, मूपू., (श्रीसीमंधर) साधुवन्दना, मागु., गा. २४९, पद्य, मूपू., (वन्दिय गुर) १११७१ १०६७४, १११८७, ११३१४, १०१६७ साधुवन्दना, आ. पार्श्वचन्द्रसूरि, मागु., ढाल ७, गा. ८८, पद्य, | (२) सीमन्धरजिन स्तवन-बालावबोध, कवि पद्मविजय, मागु., मूपू., (रिसहजिण पम) १०८१५ ढाल १७, वि. १८३०, गद्य, मूपू., (पार्श्वनाथ) १०१६७ साधुवन्दना, जैनकवि बनारसीदास, प्राहि., गा. ३२, पद्य, जै., सीमन्धरजिनविनती स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, प्राहिं., गा. ५, (जिन भाषित) १०३०३-८, १०७३६-८(4) पद्य, पू., (सीमन्धर वि) १०८२३-६ साधुवन्दना, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ७, वि. १७२१, | सीमन्धरजिन विनती स्तवन १२५ गाथा, उपा. यशोविजयजी पद्य, मूपू., (प्रणमुं) १०३१२१, ११३६८ गणि, मागु., ढाल ११, गा. १२५, ग्रं.१८८, पद्य, मूपू., (स्वामी साधुवन्दना चौपाई-चौवीसजिन, ऋ. कुंवरजी, मागु., गा. २४६, । सीम) ११०५९, ९८११ वि. १६२४, पद्य, स्था., (त्रिभुवनमा) १०९६४ सीमन्धरजिन स्तवन, मु. अगरचन्द, मागु., गा. २१, वि. १८८१, साधुवन्दना बडी, ऋ. जेमल, मागु., गा. १११, वि. १८०७, पद्य, पद्य, मूपू., (त्रिभवन सा) ९७०७-७६(5) जै., (नमुं अनन्त) ९६९६(२) सीमन्धरजिन स्तवन, मु. कान्तिविजय, मागु.. गा.७, पद्य, मूपू., साधुवन्दना लघु, ऋ. जेमल, मागु., गा. ५९, वि. १८०७, पद्य, (सीमन्धर सु) ९५७२-२५ जै., (नमुं अनन्त) ९६०० सीमन्धरजिन स्तवन, ऋ. किसन, मागु., गा. १०, पद्य, जै., सामायिक सज्झाय, ऋ. विनयचन्द, मागु., गा. २०, पद्य, जै., (दिल लागो) ९५७२-२६ (सामायक पोझ) ९७०७-५२ सीमन्धरजिन स्तवन, मु. न्यायसागर, मागु., गा. ४, पद्य, मूपू., साम्ब प्रद्युम्न प्रबन्ध, उपा. समयसुन्दर गणि, मागु., खण्ड २खंड, (हमारो श्री) १०२४१-२ २२ढाल, गा. ५३५, ग्रं.८००, वि. १६५९, पद्य, मूपू., सीमन्धरजिन स्तवन, मु. सिद्धिविजय, मागु., ढाल ७, गा. ११५, (श्रीनेमीसर) १०२५८ __ वि. १७१३, पद्य, मूपू., (अनन्त चोवी) ११२८३, १०२९०१) सारशिखामण रास, उपा. संवेगसुन्दर, मागु., गा. २३७, वि. सीयल रास, मु. ज्ञानचन्द्र, मागु., गा. १९६, पद्य, जै., (पहिली १५४८, पद्य, मूपू., (श्रीपार्श) १०५२३, ११२८२ अरिह) १३८०१-२ For Private And Personal Use Only Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra देशी भाषाओं की मूल कृति के अकारादि क्रम से प्रत-पेटाकृति क्रमांक सूची परिशिष्ट-२ ९८३६-४ सीयल सज्झाय, मु. किसनदास, मागु., गा. ८, पद्य, जै., (सील सदा से) ९५७२-२७ (२) सुमतिदुर्मति चाँपाई बालायवोध, मागु, गद्य, जं., (मुर्ख ना) ९८३६-४ सुगुरु सज्झाय, उपा. यशोविजयजी गणि, मागु., ढाल ४, गा. ४०, पद्य, मृपू. (सदगुरु एह) ११३०४-२ सुदर्शनशेठ कथा, मागु., गद्य, मुपू., ( पादलिप्तपु) १२४६५-१९ सुदर्शनसेठ रास, मु. दीपो, राज, गा. १२४, पद्य, मृपु. ( वन्दु श्री) १२५०२ सुदर्शनसेठ रास, मु. मुनिसुन्दरसूरि - शिष्य, मागु., गा. २५५, वि. १५०१, पद्य, मृपू., (पहिलउं प्र) १०८७१, ११३३४ सुधर्मस्वामी गहुंली. मु. मोहन, मागु गा. ७, पद्य, मृपू. ( सोहम स्वाम) १००२०-१५ सुधर्मास्वामी गहुंली, मागु., गा. ५, पद्य, जै., (ज्ञान दर्स) ११०९९-२ सुधर्मास्वामी गहुंली, मु. मोहन, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू.. ( उनाणि चोख ) १००२०-१६ ($) सुपार्श्वजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूप्पू., (सामी सुपार) ९९२१-१९ सुपार्श्वजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ४, पद्य, मूप्पू., (स्वामी सुप) ९९२१-२० सुपार्श्वजिन स्तवन, मु. रामविजय, मागु, गा. ७, पद्य, मृपू.. (सेवज्यौ रे) १००२०-८क ($#) १५ सुभद्रासती पञ्चडालीयो, मु. विनयचन्द, मागु, ढाल ५. वि. १८७०, पद्य, जै., (सिवदायक ला) ९७०७-१३ सुभद्रासती सज्झाय मागु गा. २५, पद्य, भूपू ( मुनिवर सोध) ९५७२-१७ सुभाषितानि मागु गा. ६, पद्य, मुपू., ( साजणनइ निज) ११६१० " ($#) १३ सुमतिजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मुपू., (पञ्चम जिनव) ९९२१ - •(#$) २१ सुमतिजिन पद, मागु, गा. १, पद्य, भूपू (सुमतिनाथ ) ९९२१ " www.kobatirth.org: सुमतिजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. ३, पद्य, मूपू., ( सुमतिनाथ ) ९९२१ - १४(MS) सुमतिजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. २, पद्य, मूपू., ( सुमतिनाथ ) ९९२१-१३ () सुमतिजिन स्तवन, मु. ऋषभविजय, मागु, गा. ५. पद्य, सुपु ( सुमति जिणे) १०५१२-२३ सुमतिजिन स्तवन, पं. जिनविजय, मागु, गा. ५, पद्य, मृपू.. (तुम हो बहु) १०८२३-२ सुमतिदुर्मति चौपाई, मागु, गा. ६, पद्य, जै.. (मुरख के घर ) सुमतिदेवी के अठोत्तरसतनाम दोहरा, प्राहिं. गा. ६, पद्य, जै, ( नमो सिद्धस) १०३०३-२१) १०७३६-२१०० सुमीत्रकुमार कथा, मागु., गद्य, मुपू., (मगधदेशे रा) १२४६५-३ सुरप्रिय केवली रास, मु. लावण्यसमय, मागु., गा. २००, वि. १५६७, पहा, मृपू. (राजगृह रली) ९६६३- 9 (#) सुरसुन्दरी रास, मु. नयसुन्दर, मागु, ढाल २१, गा. ५१७, वि. १६४४, पद्य, मृपू. (आदि धरमने) ११०५५, १११७६ सुविधिजिन पद, मागु., गा. १, पद्य, मूप्पू., (सुविधिनाथ) ९९२१ - २७ (#S) ( सुमति जिणे ) १०९४३ -२ सुमतिजिन स्तवन, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५८९ सुविधिजिन पद, मु. सुमति, मागु., गा. १, पद्य, मूप्पू., (नवमा जिनवर ) ९९२१-२५ (#S) सुविधिजिन पद, मु. सुमति मागु, गा. ४, पद्य, मृपू. (सुविधिजिन) ९९२१-२६ (#S) सुव्रतशेठ कथा, मागु., गद्य, मूप्पू., (पञ्चाल देस) १२४६५-४ सुसीला कथा, मागु., गद्य, मुपू., (मालवदेशे) १२४६५-२२ सुसीलासाध्वी कथा, मागु., गद्य, मृपू. (पोतनपुर नग) १२४६५-७ सूरजदेव सलोको विषमसुन्दर मागु, गा. २८. पद्य, (प्रणमु सा) ९३४७-१६ (-) सोदागर सज्झाय, पं. वीरविजय, मागु., गा. ६, पद्य, मूपू., (सुण सोदागर) ९६२३-३ सोरठी दूहा, मागु., गा. ७, पद्य, मूप्पू., (सुगुण सुगु) ११६१०-१२ सोहमकुलरत्न पट्टावली रास, पं. दीपविजय, मागु अध्याय ४/ उल्लास, ६५ ढाल, पद्य, मूप्पू., (स्वस्ति ) १३२२९-१, १३२१४ " M For Private And Personal Use Only सौधर्मगणधर गहुंली, मु. सोहव, मागु., गा. ७, पद्य, मूपू.. (चेलणा लावे) १००२०-१०० ($) स्तवनचौवीसी, मु. आनन्दघन, मागु, २४ स्तवन, वि. १८पू, पद्य, मृपू. (ऋषभ जिनेश) १०२७६-२५, ११३५६१, १०८४३. ११३७९, ११२५९. ९७२३-११, १०१८३० ग (२) स्तवन चौवीसी-टबार्थ, आ. ज्ञानविमलसूरि, मागु., ग्रं. ८२८, गद्य, मूपु., ( आनन्दघघनस) १०८४३ " स्तवनचीवीसी, मु. कान्तिविजय, मागु. २४स्तवन, पद्य, मृपू.. (आज अधिक भा) १०९७५ ($) स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु. २४ स्तवन, वि. १८वी, पद्य, मृपू.. (नामिनरेसर ) १०४१५ स्तवनचौवीसी, पं. जिनविजय, मागु, २४ स्तवन, ग्रं. २६०, पद्य, मूपू., ( प्रथम जिणे ) १०९४३ - १ स्तवनचौवीसी, मु. ज्ञानसागर, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूपू., ( आदिपुरुष ) १०२७३ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ५९० स्तवनचौवीसी, मु. दीपसौभाग्य, मागु., पद्य, मूपू., (ऋषभजी (S) साहि) ९९७६ स्तवनचौवीसी, गणि देवचन्द्र, मागु, २४ स्तवन, वि. १८वी, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणिन) १०४०१, १०९४९, ११३११-१, ९९१४, १०६१५, ९६५४ ($) (२) स्तवनचीवीसी - बालावबोध, मागु, २४स्तवन, गद्य, मृपू.. (श्रीआदिनाथ) १०४०१, १०६१५ स्तवनचीवीसी, वा. देवविजय, मागु, २४ स्तवन, वि. १७५७, पद्य, भूपु. ( प्रथम जिणन) ९६०२/ स्तवनचौवीसी, मु. न्यायसागर मागु २४ स्तवन, पद्य, भूपू.. (जग उपगारी) १०२४१-१ स्तवनचौवीसी, मु. महानन्द, मागु., २४ स्तवन, वि. १८०६, पद्य, 1 www.kobatirth.org: " जै., ( आदेशर अवधा ) ९४२३ स्तवनचौवीसी, मु. मानविजय, मागु, २४ स्तवन, पद्य, मूपू., (ऋषभ जिणन्द) १०४३६, ११३२२ स्तवनचीबीसी, मु. रामविजय, मागु. २४ स्तवन, पद्य, मृपू.. (ओलगडी आदीन) ११३१० स्तवनचौवीसी, उपा. लावण्यविजय, मागु., २४ स्तवन, पद्य, मूप्पू., (आदि जिनेसर) ९७४१ स्तवनचीनीसी, मु. सुखविजय, माग २४स्तवन, पद्य, गुपू (पूजो प्रथम) १०८५५ स्तवनवीसी, उपा. रामविजय, मागु., २०स्तवन, पद्य, मूपू., (सुणि भवि ) १०१७९९ ($) स्तवनवीसी अतीत, मु. देवचन्द्र, मागु, २१ स्तवन, पद्य, ग्रुपु.. (जिणन्दा ता) १०९७९ १००२१ स्तुतिचौवीसी, मु. दानविजय, मागु २४ स्तुति जोडा, गा. ४०, पद्य, मूपू., ( श्री ऋषभजिण) ११०४९-१ " स्थुलिभद्रनवरस सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मागु, ढाल ९, पद्य, मृपू., (करी श्रृङ) ११२४०-२ (+) स्थूलभद्र कथा, मागु., गद्य, मूपू., (अथ पाडलीपु) ९७४४-४(#) स्थूलिभद्र नवरसो ढाल एवं दोहायुक्त, वा. उदयरत्न, मु. दीपविजय, मागु., ढाल ९ गा. ७४ वि. १७५९, पद्य, मूपू., ( सुखसंपति) ९६२१-१ स्थूलिभद्र रसवेल, मु. माणिक्यविजय, मागु., ढाल १७, गा. १३५, वि. १८६७, पद्य, मूपू., (पार्श्वदेव) १०४५४(+) स्थूलिभद्र शीयलवेलि पं. वीरविजय, मागु, ढाल १८, वि. " " १८६२, पद्य, मृपू (सयल सुहक) ९६२४, १०५०४ स्थूलभद्र सज्झाय, मु. ज्ञानसागर, मागु., गा. १०, पद्य, मृपू., (कोशा बोलइ) ११६१०-७ स्थूलभद्र सज्झाय, मु. रूपविजय, मागु गा. ७, पद्य, मृपू.. (परमेसर प्र) ९६२१-३ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची १.१.३ स्थूलभद्र सज्झाय, मु. लक्ष्मीविजय, मागु., गा. १७, पद्य, मूपू., ( लाछल दे मा ) ९६२१-२, ९९७०-३ (#) स्नात्रपूजा विधिसहित, गणि देवचन्द्र, मागु., ढाल ८, गा. ६०, पद्य, मृपू., (चोति से अति) १०५९० १३० १०१२३, १०४१७, १०४२४, १०५४१, १०७६५, १११६०-१, ९३८८ - १ (S), १०५३९२० १९७८ म ($) स्याद्वादपञ्चवादी चर्चा, ऋ. तिलोक, मागु., गा. ४१, वि. १९२९, पद्य, स्था., ( अरिहन्त सि) ९८३६ - १ ($) स्वार्थपच्चीसी, मागु गा. २५. वि. १८६७, पद्य, मृपू.. (भरत " ($) बाहुबल) ९७००-३६ हंसराजवच्छराज चौपाई, मागु., पद्य, मूपू., ( गुरुचरण कम ) १११९१ हरकुंअरसेठाणी सङ्घ स्तवन, मु. वीरविजय, मागु., ढाल ५, पद्य, मुपू., (विमलगीरि) ९९६९-१ हरिबल चौपाई, मु. लब्धिविजय, मागु. ४ उल्लास ५९ ढाल, ग्रं. ३७५१, वि. १८१०, पद्य, मृपू. ( प्रथम धराध) १०२७५/० १०१६९ हरिबल रास, मु. कुशलसंयम, मागु., खण्ड ४, गा. ९२५, ग्रं. १०५०, वि. १५५५, पद्य, मूप्पू., (पहिलुं प्र) ११३४६ हरिबल रास, मु. जितविजय, मागु., गा. ८४९, पद्य, भूपू., ( सुखदाई समर ) ९६१९ ($) हरिवंश रास, वा. उदयरत्न, मागु., ढाल १२७, गा. २५०६, वि. १७९९, पद्य, मुपू., (अकल सकल अम) ९८५३ हरिषेणभील द्रोणाचार्य कथा, मागु, गद्य, मुपु. ( हस्तीनागपु (+) १२४६५-१२ हीरजी सज्झाय, मु. भीम, मागु., गा. २१, पद्य, मूपू., (बे करजोडीज) ११०७५-२ For Private And Personal Use Only हीरविजयसूरि देशना सुरवेली, उपा. सकलचन्द्रगणि, मागु., गा. ११५, पद्य, मूपू., (देव देव ) १२११९-२ हीरविजयसूरि रास, कवि ऋषभदास सङ्घवी, मागु गा. ३११९. वि. १६८५, पद्य, भूपू ( सरसति भाषा ) १०१५३ हीरविजयसूरि सज्झाय, उपा. सकलचन्द्रगणि, मा. गा. ८. पद्य, मुपू., (छंडिजा रे ) ११२४८-२ हीरविजयसूरि सज्झाय, मु. सिद्धिविजय, मागु., गा. १०, पद्य, मूपू., ( सरसती मती) १३७९५-२ हेयज्ञेयउपादेय विचार, प्राहिं, गद्य, जै. (हेय त्यागर) १०३०३४६ (+) होलिकापर्व ढाल, मु. विनयचन्द, मागु, ढाल ४, पद्य, जै.. (प्रथम पुरु) ९७०७-९ होली कथा, मागु., वि. १८८३, गद्य, जै., (आदिश्वर) ९६८३ Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatithora Acha Shikash G adis जैन आर आराधना जैन पहावार केन्द्र कोब कोबा. 卐श्री ) अमृतं तु विद्या तु Acharya Sri Kailasasagarsuri Gyanmandir Sri Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba Tirth, Gandhinagar E-mail : gyanmandir@kobatirth.ora 'Website : www.kobatirth.org ISBN:81-89177-02-8 Set:81-89177-00-1 Fonte And Personal use only