Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 468
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatith.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandir हस्तलिखित जैन साहित्य १.१.३ ४५१ अंतिः नन्दहेतुः सकामान्. पे..२. दिनज्ञान श्लोक, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ, संपूर्ण), आदिः तर्जनी मेरु मादा; अंतिः शेषाकेपालमादिशेत्., पे.वि. श्लो.१. पे.-३. सीकवरणीज्ञान श्लोक, सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ, संपूर्ण), आदिः परिधावह्नि ३ युक्तं; अंतिः ___मार्जनीनृतृणानिवदेत्., पे.वि. श्लो.१. पे.-४. दाडिमादिबीजसङ्ख्याज्ञानविधि श्लोक, मागु.,सं., पद्य, (पृ. २५अ-२५अ, संपूर्ण), आदिः दाडिमस्य सुयक्कस्य; अंतिः षड्गुणी कृत्यमिशेत्., पे.वि. श्लो.१. पे.५. पौषदशमीपर्व कथा, आ. कनकाचार्य, सं., गद्य, (पृ. २५-२५आ-, अपूर्ण), आदिः प्रणम्य पार्श्वनाथ; अंति:-, पे.वि. अंत के पत्र नहीं हैं. १३२८२. हीरप्रश्न, संपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ३१+१(१८)=३२, जैदेना.,प्र.वि. ४प्रकाश, (२६४१२.५, १६-१७४४४-४७). हीरप्रश्न, उपा. कीर्तिविजय , सं., गद्य, आदिः स्वस्ति श्रियो निदान; अंतिः तु तत्वविद्वेद्यमिति. १३२८३. प्रश्नोत्तरमाला, संपूर्ण, वि. १९३९, श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना., ले.स्थल. हर्दुआगंज, ले.- जगन्नाथ ब्राह्मण, (२५४१२.५, २१ २२४५७-६२). प्रश्नोत्तरमाला, ऋ. रतनचन्द, मागु., प+ग, वि. १९०७, आदिः श्रीजिण आदिजिणन्दजी; अंतिः छै समझै चतुर सुजान. १३२८४. चौवीसदण्डक ओगणीसद्वार व सामान्य कृति, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. १४, पे. २, जैदेना., (२७४१२.५, १२ १३४३६-३८). पे.-१.२४ दण्डक २९ बोल, मागु., गद्य, (पृ. १आ-१४अ), आदिः प्रथम नामद्वार बीजु; अंतिः अनन्तगुणा अधिका कहवा., पे.वि. प्र.पु.-२४ दंडक १९ द्वार. पे.२. जैन सामान्यकृति*, प्रा.,मागु.सं., गद्य, (पृ. १४अ-१४अ), आदिः#; अंतिः#. १३२८५. जिवना चौदभेद विचार, संपूर्ण, वि. २०वी, श्रेष्ठ, पृ. ५, जैदेना.,प्र.वि. *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२४४१३x). १४ जीव भेद विचार, मागु., गद्य, आदिः सुक्ष्म एकन्द्री; अंतिः कर्मनी उदरणा पण होय. १३२८६. चौवीसदण्डक बोल सङ्ग्रह, संपूर्ण, वि. १९०७, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना., ले.स्थल. पाली, ले.- पं. विनयविजय, प्र.वि. ___ *पंक्ति-अक्षर अनियमित है।, (२६४१२.५४). २४ दण्डक बोलसङ्ग्रह', मागु., गद्य, आदिः शरीरद्वार नारकी; अंतिः पुरुष वेद स्त्री वेद. १३२८८. गौतमपृच्छा सह वृत्ति, अपूर्ण, वि. १९वी, श्रेष्ठ, पृ. ४२, जैदेना., पू.वि. प्रतिलेखक द्वारा अपूर्ण. गा.४४ तक लीखा हैं., (२५.५४१२.५, १२४२७-३१). गौतमपृच्छा, प्रा., पद्य, आदिः नमिऊण तित्थनाहं; अंतिः गौतमपृच्छा-टीका, मु. मतिवर्द्धन, सं., गद्य, वि. १७३८, आदिः वीरजिनं प्रणम्यादौ; अंति:१३२८९. सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, संपूर्ण, वि. १९६२, श्रेष्ठ, पृ. ९, जैदेना., ले.स्थल. धोलाबंदर, ले.- शीद्धदुलभजी सुन्दरजी, (२४.५४१२, १४४४७-५०). सर्वज्ञसिद्धि प्रकरण, आ. हरिभद्रसूरि, सं., पद्य, आदिः लक्ष्मीभृद् वीतरागः; अंतिः दुखविरहेण गुणानुरागः. १३२९०.” कर्मग्रन्थ १ से ४ सह टबार्थ, अपूर्ण, वि. १८५५, श्रेष्ठ, पृ. २५, पे. ५, जैदेना., ले.स्थल. धनेरु,ले.- यति नेणसी, प्र.वि. टिप्पण युक्त विशेष पाठ, पदच्छेद सूचक लकीरें, पू.वि. अंत के पत्र नहीं हैं., (२६४१२, ५-६४३५-४३). पे.१. पे. नाम. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ सह टबार्थ, पृ. १आ-८अ, संपूर्ण कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ, आ. देवेन्द्रसूरि, प्रा., पद्य, आदिः सिरिवीरजिणं वन्दिय; अंतिः लिहिओ देविन्दसूरीहिं. कर्मविपाक नव्य कर्मग्रन्थ-टबार्थ, गणि साधुकीर्ति, मागु., गद्य, आदिः श्रीमद्वीरजिनं नत्वा; अंतिः हेतु प्रकाश्यो., पे.वि. मूल-गा.६२. For Private And Personal Use Only

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