Book Title: Kailas Shrutasagar Granthsuchi Vol 3
Author(s): Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 503
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४८६ (+) www.kobatirth.org: पे.वि. गा.१५. - १३७१७. अजितसेनकनकावती रास, संपूर्ण, वि. १७७६, श्रेष्ठ, पृ. ३०, जैदेना., ले. स्थल. सीकरानगर, ले. गणि सुखविजय ( गुरु गणि बुद्धिविजय, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. ढाल - ४३, गा. ७८१, (२५x१०.५, १३-१५X३७-४३). अजितसेनकनकावती रास मु. जिनहर्ष, मागु पद्य वि. १७५१, आदि वीणा पुस्तक धारणी: अंतिः थास्यै लाभ सवाई हो. " १३७१८. अञ्जनासुन्दरीपवनञ्जय रास, संपूर्ण वि. १७१५, श्रेष्ठ, पृ. २०, जैदेना. ले. स्थल. अहमदनगर, ले. गणि कीर्तिसागर, प्र. वि. खण्ड-३ / २२ ढाल, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५४११ १४-१५४४३-५० ). अंजनासुन्दरी रास. मु. पुण्यसागर मागु पद्य वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. १३७१९. अञ्जनासुन्दरीपवनञ्जय रास, संपूर्ण वि. १८वी, मध्यम, पृ. १८ जैदेना. प्र. वि. खण्ड-३/ २२ ढाल, टिप्पण युक्त विशेष पाठ दशा वि. विवर्ण पानी से अक्षरों की स्याही फैल गयी है, (२५x१०, १५-१७०४०-४८). अंजनासुन्दरी रास, मु. पुण्यसागर, मागु., पद्य, वि. १६८९, आदि: श्रीगणधर गौतम प्रमुख; अंतिः वृद्धि मङ्गलमाल. १३७२०. आणन्दविमलसूरि रास, संपूर्ण, वि. १७वी, मध्यम, पृ. ७, जैदेना. (२६.५x१०.५, ११x४०-४१). आणन्दविमलसूरि रास, मु. वासण, मागु., पद्य, वि. १५९७, आदिः सकल पदारथ पामीइ जपता; अंतिः ए आणी नरमल चित्त. " " Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कैलास श्रुतसागर ग्रंथ सूची , १३७२१.” विजयसेनसूरि रास व आरामनन्दन प्रबन्ध, संपूर्ण, वि. १७१६, श्रेष्ठ, पृ. २०, पे. २, जैदेना., ले.स्थल. धोराजीनगर, ले. - मु. भीमकुशल (गुरु मु. भक्तिकुशल, तपागच्छ), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र.वि. कर्ता के शिष्य द्वारा लिखित प्रत, (२५.५४११, १५-१६४३४-४०). पे. १. विजयसेनसूरि रास, मु. दयाकुशल, मागु पद्य वि. १६४९ (पृ. १अ- ८अ ), आदि सरसति मति अति निरमली; अंति: मनरडिंग भासई पे.वि. परिमाण गाथा. १४५ गा. १४५: मूल-गा. १४१. पे. २. आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६८१, (पृ. ८अ - २०आ), आदि: सुख अनन्त सुख अनन्त अंतिः तस भगवती सार करयो, पे.वि. गा.३६७. १३७२२." आरामनन्दन प्रबन्ध संपूर्ण वि. १६८१, श्रेष्ठ, पृ. ११, जैदेना. ले. स्थल. वेराउलबंदिर, ले. मु. रविकुशल (गुरु मु. दयाकुशल), प्र.ले.पु. मध्यम, प्र. वि. गा. ३७१, ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५x१०.५. १६-१७४४३४७), आरामनन्दन प्रबन्ध, मु. भक्तिकुशल, मागु., पद्य, वि. १६८१, आदि: सुख अनन्त सुख अनन्त; अंतिः तस भगवती सार करयो. For Private And Personal Use Only , १३७२३. आर्द्रकुमारऋषि चउपई, संपूर्ण वि. १९वी श्रेष्ठ, पृ. १३, जैदेना ले. मु. सत्यसागर, प्र. वि. ढाल १९ गा.३०१, ग्रं. " ४५१, (२५.५४११, १३४४२-४५). आर्द्रकुमार रास, मु. ज्ञानसागर, मागु पद्य वि. १७२७, आदि: सकल सुरासुर जेहना अंतिः प्रति देउल गेहे रे. १३७२४ आषाढभूति रास, संपूर्ण वि. १७वी, मध्यम, पृ. ६, जैदेना, प्र. वि. ढाल १६ ग्रं. ३५१ (२६४११, १५९५४). आषाढाभूति चौपाई, मु. ज्ञानसागर, मागु., पद्य, वि. १७२४, आदि: सकल ऋद्धि समृद्धिकर; अंतिः होजो परम कल्याणो रे. १३७२५. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण, वि. १७०१, श्रेष्ठ, पृ. १९, जैदेना., ले. गणि तेजसागर (गुरु आ. लक्ष्मीसागरसूरि ), प्र. वि. ढाल-४१, गा.५३९, ग्रं. ८७५, (२५.५x११, १५X४६-४९). ऋषिदत्तासती रास, आ. जयवन्तसूरि, मागु., पद्य, वि. १६४३, आदिः उदय अधिक दिन दिन; अंतिः दिन दिन आस. १३७२६. ऋषिदत्ता रास, संपूर्ण वि. १६९५ श्रेष्ठ, पृ. १८ जैदेना. ले. मु. सकलचन्द्र (गुरु मु. प्रभाचन्द्र अञ्चलगच्छ), प्र.ले.पु. विस्तृत, प्र. वि. खण्ड-३/ ढाल २९, ग्रं. ७७५ ग्रंथ रचना के समीपवर्ती काल मे लिखित (२५.५१०,

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